दिशा की दृष्टिभ्रम- भाग 2 : क्या कभी खत्म हुई दिशा के सच्चे प्यार की तलाश

लेखक- राम महेंद्र राय

दिशा ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

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दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा. इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो.

मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं. दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया.

वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था.

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वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरीचोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

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कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

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लौकडाउन: बुआ के घर आखिर क्या हुआ अर्जुन के साथ?

लौकडाउन- भाग 1 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

2020का मार्च का महीना था. मौसम काफी सुहाना था. गुरुग्राम में अपने अपार्टमैंट के शानदार शयनकक्ष में तपेश आराम से सो रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बजी. नींद में ही जरा सी आंख खोल कर उस ने टाइम देखा. रात के 2 बज रहे थे.

‘‘इस वक्त किस का फोन आ गया यार,’’  वह बड़बड़ाया और हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से फोन उठाया. बोला, ‘‘हैलो.’’

‘‘जी क्या आप तपेश बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, तपेश बोल रहा हूं. आप कौन?’’

‘‘सर मैं मेदांता अस्पताल से बोल रहा हूं. क्या आप पीयूष को जानते हैं? आप का नंबर हमें उन के इमरजैंसी कौंटैक्ट से मिला है.’’

‘‘जी, पीयूष मेरा दोस्त है. क्या हुआ उस को?’’ बैड से उठते हुए तपेश घबरा कर बोला.

‘‘तपेशजी आप के दोस्त को हार्टअटैक हुआ है.’’

‘‘उफ… कैसा है वह?’’

‘‘वह अभी ठीक है. स्थिति कंट्रोल में है.’’

‘‘मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं, अभी आने की जरूरत नहीं है. हम ने उसे नींद का इंजैक्शन दिया है. वह सुबह से पहले नहीं उठेगा, तो आप सुबह 11 बजे आ जाना. उस वक्त तक डाक्टर भी आ जाएंगे. आप की उन से भी बात हो जाएगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तपेश ने फोन रख दिया और बैड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी. उस का मन बेचैन हो गया था. बराबर में चैन से सोती हुई शालू को जगाने का भी उस का मन नहीं हुआ.

वह आंखें बंद कर के एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन नींद की जगह उस की आंखों में आ बसे थे 20 साल पुराने यूनिवर्सिटी के वे दिन जब तपेश रुड़की यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग करने गया था.

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निम्नमध्यम वर्गीय परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते तपेश से उस के मातापिता को बहुत उम्मीदें थीं. उस का उद्देश्य अच्छी शिक्षा ले कर जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो कर अपने छोटे भाईबहनों की पढ़ाई में मातापिता की मदद करना था.

इसी योजना के तहत उस ने अपनेआप को इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस ऐग्जाम्स की तैयारियों में   झोंक दिया था. उस की कड़ी मेहनत का ही फल था कि पहली ट्राई में ही उस को अच्छी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल गया.

यूनिवर्सिटी में आ कर पहली बार उस का पाला उस तबके के छात्रों से पड़ा, जिन्हें कुदरत ने दौलत की नेमत से नवाजा था. उन छात्रों में से एक छात्र था पीयूष. लंबा कद, गोरा रंग और घुंघराले घने बालों से घिरा खूबसूरत चेहरा.

पीयूष जहां एक ओर आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था वहीं दूसरी ओर पढ़ाईलिखाई में भी अव्वल था. अमीर मातापिता और उन की सब से छोटी संतान पीयूष. इस नाते उसे दौलत का सुख और पूरे परिवार का अतिरिक्त प्यार हमेशा ही मिला था. हर प्रकार की कला के प्रति पारखी नजर भी उसे विरासत में मिली थी, जो उस के व्यक्तित्व को एक अलग ही निखार देती थी. अपनी तमाम खूबियों के कारण वह लड़कियों में भी खासा पौपुलर था. कालेज की सब से सुंदर और स्मार्ट लड़की रिया एक डिफैंस औफिसर की बेटी थी और कालेज के शुरू के दिनों से ही पीयूष को बहुत पसंद करती थी.

पीयूष को देख कर कभीकभी सामान्य रंगरूप वाले तपेश को ईर्ष्या होती.  उसे लगता जैसे कुदरत ने सारी नेमतें पीयूष की ही   झोली में डाल दी हैं. तपेश ने सुना था कि कुदरत ने हरेक के हिस्से में जिंदगी की सभी फील्ड्स जैसे रूप, दौलत, शिक्षा, परिवार आदि में कुल मिला कर 100 नंबर लिखे हैं.

इसलिए अगर जिंदगी की किसी एक फील्ड में किसी को 80 नंबर मिल गए. तो सम  झो बाकी फील्डस के लिए उस के पास बीस ही बचे हैं, लेकिन पीयूष को देख कर तपेश को यह फिलौसफी कन्विनसिंग नहीं लगती थी. उस के नंबर जिंदगी की किसी भी फील्ड में कटे हुए नहीं लगते थे, बल्कि हर फील्ड में पूरे सौ दिखते थे. शायद इसी को मुकम्मल जहान कहते होंगे, जो किसी को मिले न मिले पीयूष को तो मिला था.

‘‘पीयूष और तपेश में कहीं कोई समानता नहीं थी. लेकिन वह फिजिक्स का रूल है न ‘अप्पोजिट्स अट्रैक’ शायद इसीलिए इन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. पहले साल दोनों रूममेट्स थे, क्योंकि फर्स्ट ईयर में रूम शेयर करना होता था. उन्हीं दिनों में इन दोनों की दोस्ती कुछ ऐसी गहराई कि बाकी के 3 साल अगलबगल के कमरों में ही रहे.

तपेश, पीयूष की दोस्ती बड़ी अनोखी थी. एक अगर सोता रह गया तो मैस बंद होने के पहले दूसरा उस का खाना रूम पर पहुंचा देता. एक का प्रोजैक्ट अधूरा देख कर दूसरा उसे बिना कहे ही पूरा कर देता. अगर एक का मैथ स्ट्रौंग था तो दूसरे की ड्राइंग.

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दोनों एकदूसरे को सपोर्ट करते. अगर एक पढ़ाई में ढीला पड़ता तो दूसरा उसे पुश करता. कभी कोई   झगड़ा नहीं, कोई गलतफहमी नहीं. उन के सितारे कालेज के शुरू के दिनों से ही कुछ ऐसे अलाइन हुए थे कि आर्थिक, सामाजिक या रूपरंग, कोई भी असमानता कभी आई ही नहीं. वे दोनों अपने बाकी मित्रों के साथ भी समय बिताते, घूमतेफिरते लेकिन तपेश पीयूष की दोस्ती कुछ अलग ही थी. कभी दोनों एकदूसरे के साथ घंटों बैठे रहते और एक शब्द भी न बोलते तो कभी बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. एक को दूसरे की कब जरूरत है यह कभी बताना नहीं पड़ता था.

एक बार गरमी की छुट्टियों में तपेश को पीयूष के घर जाने का अवसर मिला. पहली बार उस के परिवार से मिलने का मौका मिला था. उस के मातापिता और 2 बड़े भाइयों के साथ 2 दिन तक तपेश एक परिवारिक सदस्य की तरह रहा. खूब मस्ती की और पहली बार पता चला कि समाज के इतने खास लोगों का व्यवहार इतना सामान्य भी हो सकता है.

तपेश ने देखा कि पैसों के पंखों के बावजूद पीयूष के परिवार वालों के पांव जमीन पर ही टिके थे. उस की दोस्ती पीयूष के साथ क्यों फूलफल रही थी यह बात उसे अब सम  झ आई थी. वापस आने के बाद भी तपेश उस के परिवार के साथ खासकर उस की मां के साथ फोन पर जुड़ा रहा.

एक बार सेमैस्टर की फाइनल परीक्षा आने वाली थी. हर विद्यार्थी मस्ती भूल कर किताबों से चिपका हुआ था. तपेश पढ़तेपढ़ते पीयूष के कमरे से कोई किताब उठाने गया तो देखा कि वह बेहोश पड़ा था. माथा छूआ तो पता चला कि वह तो बुखार में तप रहा था.

तपेश ने बिना वक्त गंवाए, तुरंत कुछ और फ्रैंड्स को सहायता के लिए बुलाया और सब ने मिल कर उसे हौस्पिटल पहुचाया. कंपाउंडर ने जाते ही इंजैक्शन दिया और कहा, ‘‘अभी इसे ऐडमिट करना पड़ेगा. बुखार काफी ज्यादा है, इसलिए एक रात अंडर औब्जर्वेशन में रखना होगा. सुबह तक हर घंटे में बुखार चैक करना होगा. मैं इस का ध्यान रखूंगा और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को भी बुला लूंगा. अब तुम लोग जा सकते हो.’’

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कहीं यह प्यार तो नहीं- भाग 2 : विहान को किससे था प्यार

विहान का मन विरक्त हो रहा था. उसे कल सुगंधा की कही हुई बातें याद आने लगीं. विहान की तारीफ कर उसे तरहतरह से खुश करते हुए वह काम निबटाने में उस की मदद लेना चाह रही थी. सुगंधा पर एक हिकारत भरी नजर डाल वह मन ही मन खिन्न हो उठा.

घर आ कर भी वह स्वयं को उपेक्षित सा महसूस करता रहा. रात को जूही से वीडियो कौल करने का मन हुआ. उस समय जूही सोने की तैयारी कर रही थी. कौल कनैक्ट हुई तो जूही को अपने कमरे में स्किन कलर की औफ शोल्डर नाइट ड्रैस में बैठे देख विहान की सांस ठहर गई. जूही का गोरा तन ऐसा लग रहा था जैसे संगमरमर की कोई प्रतिमा हो. विहान ने सुगंधा वाली घटना बताने के लिए वीडियो चैट करने का निर्णय लिया, लेकिन मंत्रमुग्ध सा वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा था, ‘‘आज तुम बोलती रहो, मैं सिर्फ सुनूंगा,’’ कहते हुए वह अपलक उस के रूपलावण्य को निहारता ही रहा.

चैट के बाद सोते हुए वह सोच रहा था कि जिस निगाह से सुगंधा को देखा था, उस नजर से शायद मैं ने जूही को कभी देखा ही नहीं था. जूही तुम कितनी खूबसूरत हो.

उधर जूही विहान के चले जाने से अकेली पड़ गई थी. मन लगाने के लिए एक दिन उस ने सहेलियों के साथ घूमने का कार्यक्रम बना लिया. मौल में घूमते हुए खूब मस्ती हो रही थी, फिर भी विहान उसे याद आ ही जाता था. किसी शौप में कोई भी आकर्षक सामान देख विहान को बताने की इच्छा होती.

कपड़ों के शोरूम में एक डमी को वायलेट शर्ट और ब्लैक ट्राउजर्स में देख अपनी उंगली से इशारा करते हुए वह सहेलियों से बोल पड़ी कि उस मैनेकिन की जगह विहान होता तो इन कपड़ों की वैल्यू बढ़ जाती… इस पुतले पर तो ये बिलकुल जम ही नहीं रहे. सहेलियों ने एक बार नजर घुमा कर उधर देखा और फिर बातों में लग गईं. जूही का मन उदास हो गया.

सभी सहेलियों ने अपने लिए कुछ न कुछ खरीदा, लेकिन जूही को विहान की पसंदनापसंद जाने बिना जैसे शौपिंग करने की आदत ही नहीं थी.

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खरीदारी पूरी कर वे सब खाना खाने फूड कोर्ट में पहुंच गए. इस से पहले कि जूही अपनी पसंद बताती, गु्रप की सभी सहेलियों ने एकमत हो पिज्जा और कोल्डड्रिंक का और्डर दे दिया. जूही को वहां के चाट कौर्नर की आलूटिक्की और लच्छा टोकरी बहुत स्वादिष्ठ लगती थी. विहान के साथ जब भी वह उस मौल में आती, विहान उस की पसंद को ध्यान में रख सब से पहले चाट की दुकान पर जाता था.

जब तक वे सब मौल में रहे, जूही को उदासी ने घेरे रखा. उस का जी चाह रहा था कि अभी विहान को कौल कर ले, लेकिन औफिस में उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं यह सोच कर मोबाइल नहीं निकाला. उसे क्या पता था कि बैंगलुरु में बैठा विहान भी उस समय जूही को याद कर उस से बात करने को अधीर हो रहा है.

विहान जब बीटैक कर रहा था तब जूही और वह दिन में कई बार एकदूसरे के पास पहुंच कर बातें शेयर किया करते थे. कालेज पासपास होने से कोई असुविधा भी नहीं होती थी उन्हें, लेकिन उन का यह मिलनाजुलना जूही के साथ पढ़ने वाले राहुल को बहुत खटकता था. जूही की सुंदरता पर मुग्ध राहुल को विहान के रहते हुए जूही के निकट आने का कभी अवसर नहीं मिला था. विहान के जाते ही धीरेधीरे वह जूही से मित्रता बढ़ाने लगा. जूही तो पहले ही एक करीबी दोस्त की कमी महसूस कर रही थी.

अपने जन्मदिन पर राहुल ने दोस्तों को क्नाट प्लेस के एक महंगे रैस्टोरैंट में ट्रीट देने का प्रोग्राम बनाया. जूही भी आमंत्रित थी. बहुत दिनों बाद आज अपने भीतर वह एक उमंग का अनुभव कर रही थी. वार्डरोब से उस ने वही मिनी स्कर्ट निकाली जिसे एक बार तब पहना था जब विहान के साथ आर्ट गैलरी में लगी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी देखने गई थी. प्रदर्शनी में उन की भेंट राहुल से हो गयी थी. राहुल ने ही आज उसे वही एग्जीबिशन वाली ड्रैस पहनने को कहा था.

जूही जब घर से निकल रही थी तो राहुल का मैसेज आ गया कि वह राजीव चौक मैट्रो स्टेशन के बाहर उस की प्रतीक्षा करेगा. जूही मैट्रो में चढ़ी तो सैकड़ों घूरती आंखों से बचने का असफल प्रयास करती रही. उसे याद आ रहा था जब पहले उस ने वह ड्रैस पहनी थी तो विहान उसे देखते ही बोला था, ‘‘आज तो हमें कैब करनी पड़ेगी.’’

‘‘क्यों?’’ पूछ बैठी थी जूही.

‘‘मिनी स्कर्ट में इतनी क्यूट लग रही हो कि मैट्रो में सब तुम्हें घूरघूर कर देखेंगे, मु झे अच्छा नहीं लगेगा.’’

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तब जूही की हंसी रोके नहीं रुकी थी, लेकिन आज सचमुच कुछ लोगों की लोलुप दृष्टि उसे निरंतर उद्विग्न किए थी. वह बेसब्री से राजीव चौक आने की प्रतीक्षा कर रही थी. जानती थी कि वहां राहुल मिल जाएगा. अच्छा दोस्त कवच के समान होता है, यही कहता था उस का अनुभव. स्टेशन आया तो उस की जान में जान आ गई. बाहर निकली तो राहुल खड़ा था. साथ में कुछ अन्य युवक भी थे. उन में से कोई भी उन के कालेज का नहीं था.

‘‘अपने गु्रप के बाकी लोग कहां हैं?’’ जूही ने घबराते हुए पूछा.

‘‘उन्हें नहीं बुलाया. आज अपने पुराने साथियों को तुम से मिलवाना था,’’ कहते हुए राहुल ने जूही का हाथ पकड़ लिया.

जब जूही ने कसमसा कर हाथ छुड़ाना चाहा तो उन में से एक दोस्त हंसते हुए बोला, ‘‘शाय गर्ल.’’

राहुल सब के सामने उस से ऐसे बात कर रहा था जैसे वह उस की गर्लफ्रैंड हो. जूही ने बातोंबातों में सब को एहसास दिलाना चाहा कि वे दोनों किसी रिलेशनशिप में नहीं हैं, लेकिन राहुल निर्लज्जता से उस पर अधिकार जमाने का प्रयास कर रहा था.

रैस्टोरैंट में अपनी चेयर से जूही की चेयर सटा कर बैठा राहुल बारबार उस का स्पर्श कर रहा था. उस के दोस्त जूही की सुंदरता की प्रशंसा करते हुए एक ओर राहुल की पसंद की दाद दे रहे थे तो दूसरी ओर मिनीस्कर्ट में दिख रहे उस के पैरों को बेहूदगी से ताक रहे थे. राहुल सब सम झते हुए भी अनजान बना बैठा था.

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Serial Story: कीर्तन, किट्टी पार्टी और बारिश- भाग 2

अलका का भी कुछ ही दिन पहले पूना ट्रांसफर हुआ था. इन सब का साथ सुनंदा को अच्छा लगता था, लेकिन वह तब परेशान हो जाती जब ये तीनों उसे किसी न किसी कीर्तन या सत्संग में ले जाने के लिए तैयार रहतीं और उस की इन सब चीजों में कोई रुचि नहीं थी.

वह इन लोगों का अपमान भी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि नीलेश की मृत्यु के समय इन सब ने उसे बहुत भावनात्मक सहारा दिया था, जिसे वह भूली नहीं थी.

सुनंदा लेटेलेटे सोच रही थी कि वह अपना जीवन पुण्य कमाने के लिए किसी धार्मिक आयोजन में नहीं बिता सकती, वह वही करेगी जो उसे अच्छा लगता है, जिस से उस के मन को खुशी मिलती है.

नीलेश भी तो अंतिम समय तक उस से यही कहते रहे कि वह हमेशा खुश रहे, अपनी जिंदादिली कभी नहीं छोड़े. वह थी भी तो शुरू से ऐसी ही हंसमुख, मिलनसार, बेहद सुंदर, अपने कोमल व्यवहार से सब के दिल में जगह बनाने वाली.

सुभद्रा बूआ का तो उसे सम  झ आता था. पुराने जमाने की बुजुर्ग महिला थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी. अपने बहूबेटे के साथ रहती थीं. उन की बहू को उन की कितनी भी जरूरत हो वे हमेशा किसी न किसी प्रवचन या सत्संग में अपना समय बिताती थी.

सुनंदा से वे कभीकभी नाराज हो जाती थीं. कहतीं, ‘‘सुनंदा, क्यों अपना परलोक खराब कर रही हो? नीलेश तो चला गया, अब तुम्हें धर्मकर्म में ही मन लगाना चाहिए. मन शांत रहेगा.’’

सुनंदा कभी तो उन की उम्र और रिश्ते का लिहाज कर के चुप रह जाती. कभी प्यार से कहती, ‘‘बूआजी, मन की शांति के लिए मु  झे किसी के प्रवचन की जरूरत नहीं है.’’

सुनंदा को रमा और अलका पर मन ही मन गुस्सा आता, इस जमाने की पढ़ीलिखी औरतें हो कर कैसे अपना समय किसी बाबाजी के लिए खराब करती हैं, लेकिन वह यही कोशिश करती ये तीनों उसे न ले जाने पाएं.

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अगले दिन वह नाश्ता कर के फ्री हुई. रोज की तरह उस ने वेबकैम सैट किया और गौरव और कविता से बात करने लगी. आस्ट्रेलिया के समय के अनुसार गौरव लंच करने इस समय घर आता था तो सुनंदा से जरूर बात करता था. दोनों से बात कर के सुनंदा का मन पूरा दिन खुश रहता था.

गौरव ने पूछा, ‘‘मां, कैसा रहा कल बर्थडे?’’

सुनंदा ने प्रवचन और किट्टी का किस्सा सुनाया, तो गौरव बहुत हंसा. बोला, ‘‘मां, आप का जवाब नहीं. आप हमेशा ऐसी रहना.’’

और थोड़ीबहुत बातचीत के बाद सुनंदा रोज के काम निबटाने लगी. शारीरिक रूप से वह बहुत चुस्तदुरुस्त, स्मार्ट थी, किसी को अंदाजा नहीं होता था कि वह 50 की हो गई है. वह एमए, बीएड थी.

उस ने काफी साल तक एक स्कूल में अध्यापिका के पद पर काम किया था, लेकिन गौरव ने अपनी नौकरी लगते ही बहुत जिद कर के मां से रिजाइन करवा दिया था. अब वह मनचाहा जीवन जी रही थी और खुश थी. पासपड़ोस की किसी भी स्त्री को उस की जरूरत होती, वह हमेशा हाजिर रहती. पूरी कालौनी में उस ने अपने मधुर व्यवहार और जिंदादिली से अपनी विशेष जगह बनाई हुई थी.

बस कभीकभी पड़ोस की कुछ महिलाएं उस के धार्मिक आयोजनों से दूर भागने पर मुंह बनाती थीं, जिसे वह हंस कर नजरअंदाज कर देती थी. उस का मानना था कि यह जीवन उस का है और वह इसे अपनी इच्छा से जीएगी, हमेशा खुश रहना उसे अच्छा लगता था.

एक दिन नेहा शाम को आई. कहने लगी, ‘‘संडे को हमारी पहली मैरिज ऐनिवर्सरी की ‘वैस्ट इन’ में पार्टी है, आप को जरूर आना है.’’

सुनंदा ने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार किया. थोड़ी देर इधरउधर की गप्पें मार कर नेहा चली गई. संडे को पूरा गु्रप ‘वैस्ट इन’ पहुंचा. पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी. लौन में चारों ओर पेड़ों और सलीके से कटी   झाडि़यों पर टंगी छोटेछोटे बल्बों की   झालरें बहुत सुंदर लग रही थी.

जुलाई का महीना था, बारिश की वजह से प्रोग्राम अंदर हौल में ही था, जो  बहुत अच्छी तरह सजा हुआ था. सब ने नेहा और उस के पति विपिन को बहुत सी शुभकामनाएं और गिफ्ट्स दिए. सब से मिलनेमिलाने का सिलसिला चलता रहा.

नेहा ने सब को अपने मातापिता, सासससुर से मिलवाया और अंत में एक सौम्य, स्मार्ट और आकर्षक व्यक्ति को अपने साथ ले कर आई और सब से मिलवाने लगी, ‘‘ये मेरे देव मामा हैं, अभी इन का ट्रांसफर पूना में ही हो गया है. बाकी सब तो कल ही चले जाएंगे, ये हमारे साथ ही रहेंगे.’’

देव ने सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की, अपनी आकर्षक मुसकराहट और बातों से उन्होंने सब को प्रभावित किया.

डिनर हो गया. सुनंदा घर जाना चाहती थी. 12 बज रहे थे. किसी को घर जाने की जल्दी नहीं थी. सुनंदा ने नेहा और विपिन से विदा ली और बाहर निकल आई. थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि अचानक उस की कार रुक गई. बारिश बहुत तेज थी. उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन कार स्टार्ट नहीं हुई. वह परेशान हो गई. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. कुछ सम  झ नहीं आया तो उस ने नेहा को अपनी परेशानी बताई.

नेहा ने फौरन कहा, ‘‘आप वहीं रुकिए, मैं अभी मामा को भेजती हूं.’’

‘‘अरे, नहीं, उन्हें क्यों तकलीफ देती हो?’’

‘‘कोई तकलीफ नहीं होगी उन्हें. बाकी सब डांस फ्लोर पर हैं. मामा ही अकेले बैठे है. वे आ जाएंगे. मैं आप का नंबर भी उन्हें दे देती हूं.’’

थोड़ी देर में देव पहुंच गए, उन्होंने फोन पर कहा, ‘‘आप अपनी गाड़ी वहीं लौक  कर के मेरी गाड़ी में आ जाइए. बारिश बहुत तेज है. ध्यान से आइएगा. मैं सामने खड़ी ब्लैक गाड़ी में हूं.’’

सुनंदा ने गाड़ी में हमेशा रहने वाला छाता उठाया, गाड़ी लौक की और फिर देव की गाड़ी में बैठते ही बोली, ‘‘सौरी, मेरी वजह से आप को परेशानी उठानी पड़ी.’’

देव हंसते हुए बोले, ‘‘मैं तो वहां अकेले बेकार ही बैठा था. मु  झे बरिश में ड्राइविंग करना अच्छा लगता है.’’

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सुनंदा उन्हें अपने घर का रास्ता बताती रही. घर आ गया, तो देव ने कहा, ‘‘अगर आप चाहें तो अपनी कार की चाबी मु  झे दे दें, मैं ठीक करवा दूंगा या घर पर कोई है तो ठीक है.’’

‘‘ओह, थैंक्स अ लौट,’’ कहते हुए सुनंदा ने कार की चाबी देव को दे दी.

देव ‘गुडनाइट’ बोल कर चले गए.

अगले दिन शाम को नेहा देव के साथ सुनंदा से मिलने चली आई. सुनंदा दोनों को देख कर खुश हुई. नेहा देव को सुनंदा के बारे में सब बता चुकी थी. बातचीत के साथ चायनाश्ता होता रहा, रात की पार्टी की बातें होती रहीं.

नेहा ने कहा, ‘‘कितना मना कर रहे हैं हम लोग मामा को अलग फ्लैट ले कर शिफ्ट करने से, लेकिन मामा तो हैं ही शुरू से जिद्दी.’’

देव मुसकराते हुए बोले, ‘‘तुम लोगों को प्राइवेसी चाहिए या नहीं?’’

सुनंदा हंस पड़ी, तो देव उठ खड़े हुए. बोले, ‘‘मैं चलता हूं. मु  झे अपनी नई गृहस्थी की शौपिंग करनी है.’’

नेहा ने कहा, ‘‘विपिन आने वाले होंगे, मैं भी चलती हूं.’’

सुनंदा बोली,’’ मैं भी थोड़ा घर का सामान लेने जा रही हूं.’’

नेहा ने कहा, ‘‘तो आप मामा के साथ ही चली जाइए न. कार तो अभी है नहीं आप के पास.’’

सुनंदा ने औपचारिकतावश मना किया तो देव बोले, ‘‘चलिए न, मु  झे कंपनी मिल जाएगी.’’

सुनंदा ने सहमति में सिर हिला दिया. कहा, ‘‘आप बैठिए, मैं तैयार हो जाती हूं.’’

नेहा चली गई. देव सुनंदा का इंतजार करने लगे. सुनंदा तैयार हो कर आई तो देव ने उसे तारीफ भरी नजरों से देखा तो वह थोड़ा सकुचाई. फिर दोनों घर से निकले ही थे कि बहुत तेज बारिश होने लगी. दोनों ने एकदूसरे को देखा. देव ने कहा, ‘‘क्या हमेशा हम दोनों के साथ होने पर तेज बारिश होगी?’’

सुनंदा खुल कर हंस दी. दोनों ने शौपिंग की. फिर कौफी पी और देव ने सुनंदा को उस के घर छोड़ दिया. देव की बातों से उस ने इतना जरूर अंदाजा लगाया था कि देव अकेले हैं. ज्यादा कुछ उस ने पूछा नहीं था.

वह सोच रही थी वह माने या न माने, देव ने उस के मन में कुछ हलचल सी जरूर पैदा कर दी है. यदि ऐसा नहीं है तो उस का मन देव के इर्दगिर्द ही क्यों भटक रहा है, बाहर बारिश, कार के अंदर चलता एक पुराना कर्णप्रिय गीत, देव का बात करने का मनमोहक ढंग सुनंदा को बहुत अच्छा लगा था. नीलेश के बाद आज पहली बार किसी पुरुष के साथ ने उस के मन में इस तरह हलचल मचाई थी.

आगे पढ़ें- अगली किट्टी पार्टी का दिन आ गया….

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कहीं यह प्यार तो नहीं- भाग 3 : विहान को किससे था प्यार

जूही के लिए वहां एक मिनट भी ठहरना मुश्किल हो रहा था. सूप पीने के बाद उस ने अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाया और बिना खाना खाए वापस लौट आई.

घर पहुंच कर उसे लग रहा था जैसे किसी शिकारी के जाल से बच कर आई हो. जूही का जी चाह रहा था कि अभी विहान के पास पहुंच जाए और उस के सीने में अपना मुंह छिपा ले. विहान फिर उसे खूब प्यार करे. स्वयं पर आश्चर्यचकित हो जूही सोच रही थी कि राहुल के हाथ पकड़ने पर उस का मन घृणा से भर उठा था, लेकिन विहान के बाहुपाश में समाने को वह व्याकुल हो रही है. अचानक उस का दिल पूछ बैठा कि कहीं यह प्यार तो नहीं?

रात को सोने से पहले जूही ने व्हाट्सऐप पर विहान को लिखा, ‘‘बहुत याद आ रहो आज, मन कर रहा है मिलने का, साथ में उदास चेहरे वाला इमोजी भी लगा दी.’’

विहान का तुरंत जवाब आ गया कि मोबाइल से हाथ बाहर निकालो. अभी खींच लूंगा.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रही हूं. आ जाऊंगी किसी दिन मिलने. आमनेसामने बैठ कर बातें किए कितने दिन हो गए.’’

‘‘मु झे भी अच्छा ही लगेगा तुम्हारा आना, लेकिन एक प्रौब्लम है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘यहां 4 कमरे हैं और दोस्त भी 4. सब के कमरे में अपनाअपना सिंगल बैड है. तुम कहां सोओगी रात में?’’

‘‘क्या विहान, मु झे अपने पास नहीं सुला सकते? इतना भी एडजस्ट नहीं करोगे मेरे लिए? तुम बदल गए हो,’’ इस मैसेज के साथ जूही ने रोते चेहरे वाले 2 इमोजी लगा दी.

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‘‘अरे, नहींनहीं… बदला नहीं हूं. आ जाना जब चाहो. मैं इंतजार करूंगा. नाराज मत होना, मेरी जान निकल जाएगी,’’ मैसेज के अंत में लगाने के लिए इमोजी ढूंढ़ते हुए विहान का मन किस करती इमोजी पर जा कर ठहर गया. मन में हलचल होने लगी. जीवन में पहली बार किसी को वह चुंबन करते चेहरे वाला इमोजी भेज रहा था.

विहान की ओर से किसिंग फेस इमोजी और वह भी उस दिन जब जूही कल्पना में विहान के गले लगी हुई थी. जूही के गाल तपने लगे. सोच में पड़ गई कि अब क्या टाइप करे?

जब कुछ देर तक जवाब नहीं आया तो बातचीत का रुख बदलते हुए विहान ने लिखा, ‘‘कल मैं अपने औफिस न जा कर एमजी रोड जाऊंगा, वहां के एक औफिस में काम है. 4 फ्रैंड्स भी जा रहे हैं साथ. तीन दिन रुक कर वापस आएंगे हम सब… और हां… उन चारों फ्रैंड्स में एक लड़की भी है.’’

जवाब में जूही ने लिखा, ‘‘सो व्हाट…? लड़की ही तो जा रही है न या फिर वह कोई भूतनी है कि स्पैश्ली बता रहे हो?’’ मैसेज भेजते ही अपने डाउनलोड किए स्टिकर्स में से  झाड़ू पर बैठी विच का स्टिकर लगाना नहीं भूली जूही.

विहान की हंसी छूट गई. उस ने लिखा, ‘‘भूतनी हो या हूर की परी, मु झे किसी और से क्या लेनादेना अब?’’

जूही के मन की वीणा के तार  झंकृत होने लगे. पूछना तो चाहती थी कि फिर अब किस से लेनादेना है यह तो बता दो, लेकिन संकोचवश लिख नहीं पाई. जवाब में एक गुलाब का फूल पोस्ट कर दिया.

कुछ देर बाद विहान का मैसेज आ गया, ‘‘अब सोना है मु झे क्योंकि कल जल्दी उठना है. आज से ही आधे बैड पर सोने की प्रैक्टिस शुरू कर दूंगा, तुम प्रोग्राम बना ही लो आने का… गुड नाइट.’’

जूही ने इस बार जवाब दिया,’’ गुड नाइट… मैं भी सो जाती हूं. सपनों में मिलेंगे.’’

विहान जूही को याद कर बेचैन हो सोने का प्रयास करने लगा. लग रहा था जैसे जूही आ कर उस के पास बिस्तर पर लेटी है. वीडियो चैटिंग वाले दिन देखा जूही का रूप उस के मनमस्तिष्क पर छा रहा था. कल्पना में महकती जूही उसे कुछ और सोचने ही नहीं दे रही थी. ‘कहीं यह प्यार तो नहीं?’ सोच कर वह मुसकरा दिया.

एमजी रोड बैंगलुरु का एक व्यस्त इलाका है, जहां विभिन्न कंपनियों के कार्यालय भी हैं और घूमनेफिरने के लिए सुंदर स्थल भी. पहले दिन का काम निबटा कर विहान मित्रों के साथ यूबी सिटी मौल चला गया. दिल्ली में उस ने इस प्रकार के मौल नहीं देखे थे. लक्जरी मौल होने के कारण सभी प्रमुख इंटरनैशनल ब्रैंड्स के उत्पाद उपलब्ध थे वहां.

विहान मौल में घुसा तो लगा जैसे विदेश में आ गया हो. जगमगाता ऊंचा चौका ऐस्कलेटर, चकाचौंध कर देने वाली गुंबदनुमा छत, खूबसूरत इंटीरियर वर्क और बड़ेबड़े स्टोर्स. इतना भव्य स्थान और जूही का साथ न होना, विहान जैसे भीड़ में अकेला सा हो गया. दोस्त अपनी बातों में मस्त थे और विहान यादों में उल झा हुआ था.

अगले दिन उन सभी ने देर तक रुक कर काम निबटा लिया और अंतिम दिन घूमनेफिरने के नाम कर दिया. सुबह होते ही वे नाश्ता कर कब्बन पार्क पहुंच गए. सुंदरसुंदर फूलों से लदे छायादार पेड़ों के नीचे लगे बैंच, मूर्तियां, ब्रिटिश काल के पुस्तकालय की सुंदर लाल बिल्डिंग व रंगबिरंगे फुहारे वातावरण को सुखद बना रहे थे. हाथों में हाथ डाले प्रेमी युगल विहान को जूही और अपना प्रतिरूप लग रहे थे, एक ऐसा रूप जो उस के दिल में कहीं छिपा बैठा था, लेकिन दिमाग तक पहुंचने में बहुत समय लग गया.

पार्क से निकल पास के एक होटल में लंच कर सभी मित्र उल्सूर  झील देखने निकल पड़े. वहां बोटिंग करते हुए नाव जब एक टापू पर रुकी तो विहान को बचपन याद आ गया. जूही और वह जब गुड्डेगुडि़या का खेल खेलते थे तो विहान टब में पानी ले कर उसे  झील कहता था. छोटेछोटे डब्बों पर मिट्टी और घास रख वह जब  झील में टापू बनाता तो जूही उछल पड़ती थी.

जूही को खुश करने के लिए बारबार वह भिन्नभिन्न प्रकार से टापुओं को सजाता. विहान सोच रहा था कि जूही आज यहां होती तो  झील में बने छोटेछोटे टापुओं को देख कर कितनी प्रसन्न होती कि कल्पना साकार हो गई है.

शाम हुई तो सभी चाय पीने बैठ गए. चाय वाले की टपरी पर हिंदी गाने बज रहे थे. अचानक किशोर कुमार की आवाज में ‘कुदरत’ फिल्म का गाना सुन विहान ने जूही को फोन मिला दिया और उस से हैलो कहते ही बोल पड़ा, ‘‘पता है कौन सा गाना सुन रहा हूं मैं अभी?’’

‘‘अचानक इस समय फोन और ऐसी बहकी सी बात, ठीक हो न?’’ जूही अचरज में पड़ गई.

सब छोड़ो और सुनो न गाने के बोल, ‘‘‘हमें तुम से प्यार कितना ये हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना…’’’

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जूही को ऐसा लगा जैसे गुलाब की सैकड़ों पंखुडि़यां उस पर लगातार गिरती जा रही हैं. अभिभूत हो वह बोल उठी, ‘‘मेरे मन में तो इसी फिल्म का कोई और गाना गूंज रहा है, लता मंगेशकर का गाया हुआ.’’

‘‘कौन सा?’’ विहान भी प्यार में डूबा था.

‘‘‘तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया, पियापिया बोले मतवाला जिया…’’’

‘‘जूही मु झे नहीं पता प्यार कैसा होता है, पर मैं रह नहीं सकता तुम्हारे बिना… यही सच है,’’ विहान अब चुप नहीं रह सका.

‘‘जो जादू तुम ने मु झ पर किया शायद उसे ही कहते हैं प्यार… कितना खूबसूरत है यह एहसास,’’ जूही की आवाज में नमी थी,

प्रेम था और लज्जा भी.

‘‘जल्दी आऊंगा दिल्ली. मम्मीपापा से आज ही बात करता हूं,’’ विहान कह उठा.

जूही की खनकती हंसी सुन विहान ने ‘बाय’ कह फोन काट दिया. ‘हमें तुम से प्यार कितना…’

गाना  झील से टकरा कर उसे अभी भी तरंगित कर रहा था.

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Serial Story: कीर्तन, किट्टी पार्टी और बारिश- भाग 3

अगली किट्टी पार्टी का दिन आ गया. पार्टी सुरेखा के यहां थी. इस बार नेहा सब को उत्साहित हो कर बता रही थी, ‘‘मामा की शादी के 1 साल बाद ही उन का डाइवोर्स हो गया था. मामी अपने किसी प्रेमी के साथ शादी करना चाहती थी.

वह मामा के साथ एक दिन भी नहीं चाहती थी, मामा को उन्होंने बहुत तंग किया. मामी की इच्छा को देखते हुए मामा ने उन्हें चुपचाप डाइवोर्स दे दिया, उन्होंने तो अपने प्रेमी से शादी कर ली, लेकिन मामा ने उस के बाद गृहस्थी नहीं बसाई. मामा एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हैं. बस, उन्होंने काम में ही हमेशा खुद को व्यस्त रखा.’’

सुनंदा चुपचाप देव की कहानी सुन रही थी. नेहा ने अचानक पूछा, ‘‘सुनंदाजी, आप की और मामा की शौपिंग कैसी रही?’’

‘‘बहुत अच्छी,’’ कह कर सुनंदा और बाकी महिलाएं बातों में व्यस्त हो गईं.

अगले दिन औफिस से लौट कर देव सुनंदा के घर आए, उन्हें कार की चाबी दी. कहा, ‘‘आप की गाड़ी ले आया हूं.’’

सुनंदा ने कहा, ‘‘थैंक्स, आप बैठिए. मैं चाय लाती हूं.’’

थोड़ी देर में सुनंदा चाय ले आई. बातों के दौरान पूछा, ‘‘आप कैसे जाएंगे अब?’’

देव हंसे, ‘‘आप छोड़ आइए.’’

सुनंदा ने भी कहा, ‘‘ठीक है,’’ और खिलखिला दी.

तभी सुनंदा के मोबाइल की घंटी बजी. अलका थी. हालचाल पूछने के बाद वह कह रही थी, ‘‘सुनंदा, तुम फ्री हो न?’’

सुनंदा के कान खड़े हुए, ‘‘क्यों, कुछ काम है क्या?’’

‘‘अभी से बता रही हूं, मेरी सहेली ने घर पर कीर्तन रखा है. उस ने तुम्हें भी बुलाया है. कल आ जाना, साथ चलेंगे.’’

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‘‘ओह दीदी, कल नहीं आ पाऊंगी, मेरी गाड़ी खराब है. मु  झे कल तो समय नहीं मिलेगा. कल डाक्टर के यहां भी जाना है. रैग्युलर चैकअप के लिए और गाड़ी लेने भी जाना है. बहुत काम है दीदी कल.’’

थोड़ीबहुत नाराजगी दिखा कर अलका ने फोन रख दिया. सुनंदा भी फोन रख कर मुसकराने लगी, तो देव ने कहा, ‘‘लेकिन आप की गाड़ी तो ठीक है.’’

सुनंदा ने हंसते हुए अपनी कीर्तन, प्रवचनों से दूर रहने की आदत के बारे में बताया तो देव ने भरपूर ठहाका लगाया. बोले, ‘‘  झूठ तो बहुत अच्छा बोल लेती हैं आप.’’

देव अलग फ्लैट में शिफ्ट हो चुके थे. सुनंदा उन्हें उन की कालोनी तक छोड़ आई. अब तक दोनों में अच्छी दोस्ती हो चुकी थी. कोई औपचारिकता नहीं बची थी. अब दोनों मिलते रहते, अंतरंगता बढ़ रही थी. कई जगह साथ आतेजाते. सबकुछ अपनेआप होता जा रहा था. देव कभी नेहा के यहां भी चले जाते थे. उन्होंने एक नौकर रख लिया था, जो घर का सब काम करता था.

सुनंदा ने गौरव को देव के बारे में सब कुछ बता दिया था. उन के साथ उठनाबैठना, आनाजाना सब. सुनंदा विमुग्ध थी, अपनेआप पर, देव पर, अपनी नियति पर. अब लगने लगा था शरीर की भी कुछ इच्छाएं, आकांक्षाएं हैं. उसे भी किसी के स्निग्ध स्पर्श की कामना थी. आजकल सुनंदा को लग रहा था कि जैसे जीवन का यही सब से सुंदर, सब से रोमांचकारी समय है. वह पता नहीं क्याक्या सोच कर सचमुच रोमांचित हो उठती.

देव और सुनंदा की नजदीकियां बढ़ रही थीं. देव औफिस से भी सुनंदा से फोन पर हालचाल पूछते. अकसर मिलने चले आते. सुनंदा की पसंदनापसंद काफी जान चुके थे. अत: अकसर सुनंदा की पसंद का कुछ लेते आते तो सुनंदा हैरान सी कुछ बोल भी न पाती.

एक दिन विपिन से विचारविमर्श के बाद नेहा ने सुनंदा को छोड़ कर किट्टी पार्टी की  बाकी सब सदस्याओं को अपने घर बुलाया.

सब हैरान सी पहुंच गईं.

मंजू ने कहा, ‘‘क्या हुआ नेहा? फोन पर कुछ बताया भी नहीं और सुनंदा जी को बताने के लिए क्यों मना किया?’’

नेहा ने कहा, ‘‘पहले सब सांस तो ले लो. मेरे मन में बहुत दिन से कोई बात चल रही है. मु  झे आप सब का साथ चाहिए.’’

अनीता ने कहा, ‘‘जल्दी कहो, नेहा.’’

नेहा ने गंभीरतापूर्वक बात शुरू की, ‘‘सुनंदाजी और मेरे देव मामा को आप ने कभी साथ देखा है?’’

सब ने कहा, ‘‘हां, कई बार.’’

‘‘आप ने महसूस नहीं किया कि दोनों एकदूसरे के साथ कितने अच्छे लगते हैं, कितने खुश रहते हैं एकसाथ.’’

अनीता ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ? सुनंदाजी तो हमेशा खुश रहती हैं.’’

‘‘मैं सोच रही हूं कि सुनंदाजी मेरी मामी बन जाएं तो कैसा रहेगा?’’

पूजा बोली, ‘‘पागल हो गई हो क्या नेहा? सुनंदाजी सुनेंगी तो कितना नाराज होंगी.’’

‘‘क्यों, नाराज क्यों होंगी? अगर वे देव मामा के साथ खुश रहती हैं तो हम आगे का कुछ क्यों नहीं सोच सकते? आज तक वे हमारी हर जरूरत के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. हम उन के लिए कुछ नहीं कर सकते क्या?’’

अनीता ने कहा, ‘‘तुम्हें अंदाजा है उन की सुभद्रा बूआ, जेठानी और बहन यह सुन कर भी उन का क्या हाल करेंगी?’’

‘‘क्यों, इस में बुरा क्या है? मैं आप सब से छोटी हूं. आप से रिक्वैस्ट ही कर सकती हूं कि आप लोग मेरा साथ दो प्लीज, समय बहुत बदल चुका है और सुनंदाजी तो किसी की परवाह न करते हुए जीना जानती हैं.’’

पूजा ने कहा, ‘‘गौरव के बारे में सोचा है?’’

बहुत देर से चुप बैठी सुनीता ने कहा, ‘‘जानती हूं मैं अच्छी तरह गौरव को, वह बहुत सम  झदार लड़का है, वह अपनी मां को हमेशा खुश देखना चाहता है.’’

बहुत देर तक विचारविमर्श चलता रहा. फिर तय हुआ सुनीता ही इस बारे में सुनंदा से बात करेगी.

अगले दिन सुनीता सुनंदा के घर पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सुनीता ने  पूछा, ‘‘और देव कैसे हैं? मिलना होता है या नहीं?’’

सुनंदा के गोरे चेहरे पर देव के नाम से ही एक लालिमा छा गई और वह बड़े उत्साह से देव की बातें करने लगी.

सुनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘इतने अच्छे हैं मि. देव तो कुछ आगे के लिए भी सोच लो.’’

सुनंदा ने प्यार भरी डांट लगाई, ‘‘पागल हो गई हो क्या? दिमाग तो ठीक है न?’’

‘‘हम सब की यही अच्छा है. अभी मैं जा रही हूं, अच्छी तरह सोच लो, लेकिन जरा जल्दी. हम लोग जल्दी आएंगी.’’

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सुनंदा कितने ही विचारों में डूबतीउतराती रही कि क्या करें. मन तो यही चाहता है देव को अपने जीवन में शामिल कर ले सदा के लिए, पर अब? गौरव क्या कहेगा? सुभद्रा बूआ, रमा और अलका क्या कहेंगी? वह रातभर करवटें बदलती रही. बीचबीच में आंख लगी भी तो देव का चेहरा दिखाई देता रहा.

उधर विपिन और नेहा ने देव से बात की. उम्र के इस मोड़ पर उन्हें भी किसी साथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. देव के मन में भी जीवन के सारे संघर्ष   झेल कर भी हंसतीमुसकराती सुनंदा अपनी जगह बना चुकी थी. कुछ देर सोच कर देव ने अपनी स्वीकृति दे दी.

सुबह जब सुनंदा का गौरव से बात करने का समय हो रहा था, सब पहुंच गईं और विपिन और देव के साथ. देव और सुनंदा एकदूसरे से आंखें बचातेशरमाते रहे.

सुनीता ने कहा, ‘‘सुनंदा, तुम हटो, मैं गौरव से बात करती हूं,’’ और फिर वेबकैम पर सुनीता ने गौरव को सबकुछ बताया.

सुनंदा बहुत संकोच के साथ गौरव के सामने आई तो गौरव ने कहा, ‘‘यह क्या मां, इतनी अच्छी बात, मु  झे ही सब से बाद में पता चल रही है.’’

सुनंदा की आंखों से भावातिरेक में अश्रुधारा बह निकली. वह कुछ बोल ही नहीं पाई.

सुनीता ने ही गौरव का परिचय देव से करवाया. देव की आकर्षक, सौम्य सी मुसकान गौरव को भी छू गई और उस ने इस बात में अपनी सहर्ष सहमति दे दी तो सुनंदा के दिल पर रखा बो  झ हट गया.

गौरव ने कहा, ‘‘मां, आप दादी, ताईजी और मौसी की चिंता मत करना, उन सब को मैं आ कर संभाल लूंगा. आप किसी की चिंता मत करना मां. आप अपना जीवन अपने ढंग से जीने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं. मु  झे तो अभी छुट्टी नहीं मिल पाएगी, लेकिन आप मेरे लिए देर मत करना.’’

गौरव की बातें सुनंदा को और मजबूत बना गईं.

थोड़ी देर चायनाश्ता कर सब सुनंदा को गले लगा कर प्यार करती हुईं अपनेअपने घर चली गईं.

नेहा, विपिन और देव रह गए. विपिन ने कहा, ‘‘अब देर नहीं करेंगे, कल ही मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस में चलते हैं.’’

अगले दिन सुनंदा तैयार हो रही थी. सालों पहले नीलेश की दी हुई लाल साड़ी निकाल कर पहनने का मन हुआ. फिर सोचा नहीं, कोई लाइट कलर पहनना चाहिए. मन को न सही, शरीर को उम्र का लिहाज करना ही चाहिए. वह कुछ सिहर गई, क्या देव को उस के शरीर से भी उम्मीदें होंगी? स्त्री को ले कर पता नहीं क्यों लोग हमेशा नकारात्मक भ्रांतियां रखते हैं, कभी किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि उम्रदराज स्त्री भी…

आगे कुछ सोचने से पहले ही वह खुद ही हंस दी, उम्रदराज? उम्र से क्या होता है, फिर नीलेश का चेहरा अचानक आंखों को धुंधला कर गया. नीलेश उसे हमेशा खुश देखना चाहते थे और बस वह अब खुश थी, सारे संदेहों, तर्कवितर्कों में डूबतेउतराते वह जैसे ही तैयार हुई, डोरबैल बजी. सुनंदा ने गेट खोला. देव उसे ले जाने आ गए थे.

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लौकडाउन- भाग 2 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

सभी दोस्त वापस होस्टल चले गए.

सुबह जब पीयूष की आंख खुली तो देखा कि तपेश भी वहीं बराबर वाले बैड पर सो रहा था.

‘‘अरे, तू यहां क्या कर रहा है? तु  झे तो रात भर पढ़ना था न?’’ पीयूष ने हैरानी से पूछा

‘‘अरे नहीं यार. सोना ही था, तो यहीं सो गया.’’

तभी कंपाउंडर और डाक्टर दोनों साथ में दाखिल हुए. कंपाउंडर डाक्टर से बोला, ‘‘सौरी डाक्टर साहब रात को नींद लग गई तो

हर घंटे पर बुखार चैक नहीं कर सका, लेकिन मैं ने इंजैक्शन दे दिया था.’’

डाक्टर ने पीयूष के बैड साइड से चार्ट उठाते हुए कहा, ‘‘लेकिन चार्ट में तो हर घंटे की रीडिंग है.’’

इस के साथ ही पीयूष की निगाहें तपेश की ओर घूमीं तो वह आंखें मिचका कर मुसकरा दिया.

थोड़ी देर में पीयूष की मां का फोन आया, ‘‘बेटा अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘ठीक है मां.’’

‘‘तपेश तेरे पास ही था न?’’

‘‘हां मां, लेकिन आप को कैसे पता?’’

‘‘मैं ने ही उसे तेरा ध्यान रखने को बोला था, जब वह हमारे घर आया था. बहुत प्यारा लड़का है. आज तु  झे भी बोल रही हूं. हमेशा उस का ध्यान रखना. प्रौब्लम में उसे कभी अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं मां.’’

वक्त की रफ्तार यूनिवर्सिटी में कुछ ज्यादा ही तेज होती है. 4 साल पलक   झपकते ही बीत गये. कालेज के इन 4 सालों ने सभी दोस्तों को इंजीनियरिंग की डिगरी दे कर उन के पंखों को नई उड़ान के लिए मजबूत कर दिया था और उन्हें एक नए आकाश पर अपने नाम लिखने के लिए खुला छोड़ दिया था.

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पीयूष और रिया की खूबसूरत जोड़ी के प्यार का पौधा भी अब तक एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था.

फिर हरकोई अपने कैरियर के चलते कहांकहां जा बसा, हिसाब रखना भी मुश्किल हो गया. इन की उड़ान देश के हर शहर से ले कर विदेशों तक उड़ चली थी.

धीरेधीरे सब की शादियां होने लगीं. तपेश की शादी एक मध्यवर्गीय  परिवार की पढ़ीलिखी लड़की शालू से हो गई. जाहिर है अरेंज्ड मैरिज थी, लेकिन दोनों की अच्छी निभ रही थी. 1 साल बाद शालू ने बेटे को जन्म दिया तो ऐसा लगा कि घर खुशियों से भर गया.

उधर पीयूष और रिया दोनों को भी अच्छी नौकरी मिल गई थीं. लेकिन वे दोनों अभी शादी नहीं करना चाहते थे. कुछ और दिन अपनी बैचलर लाइफ ऐंजौय करना चाहते थे. कभीकभी तपेश को लगता कि पीयूष यहां भी बाजी मार गया. जहां वह घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां निभा रहा था वहीं पीयूष अभी भी बैचलर लाइफ की मस्ती ले रहा था.

लेकिन अपने प्यारे से बेटे को गोद में ले कर जब तपेश उसे प्यार करता तो उस के सामने दुनिया की हर नेमत छोटी लगती थी. जब उस ने अपना पहला शब्द ‘पप्पा’ बोला तो तपेश उसे गोद में उठा कर खुशी से   झूम उठा और जैसे खुद से ही बोला कि इस एक पल पर सारी मस्तियां वारी जा सकती हैं.

अगले साल बड़ी धूमधाम से पीयूष और रिया की भी शादी हो गई. शादी के कुछ दिन बाद ही पीयूष को किसी असाइनमैंट के लिए विदेश जाना पड़ा. फिर पता नहीं क्यों और कैसे, लेकिन वापस आते ही रिया ने उस के सामने तलाक की मांग रख दी.

पीयूष का प्यार आज तक उस की किसी मांग को नकार नहीं सका था लिहाजा, इस मांग को भी उस की खुशी मान कर न नहीं कर पाया. म्युचुअल कंसर्न से तलाक हो गया. यह शादी उतने दिन भी नहीं चली जितने दिन उस की तैयारियां चली थीं. गलती किस की थी या क्या थी, इन सब बातों की फैसले के बाद कोई अहमियत नहीं रह जाती. कुछ दिन बाद उड़ती सी खबर सुनी कि रिया ने उस से शादी कर ली, जिस के लिए उस ने पीयूष को छोड़ा था.

इधर तपेश की पत्नी शालू ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. परिवार में इस इजाफे के साथ ही उन का परिवार भी पूरा हो गया और हर अरमान भी.

उधर पीयूष का तलाक हुए काफी वक्त बीत चुका था. सभी के सम  झानेबु  झाने के बाद भी फिर उस का मन किसी की ओर नहीं   झुका. रिया से टूटे हुए रिश्ते ने उस को इस कद्र तोड़ दिया कि फिर वह किसी से जुड़ ही नहीं सका.

अब तपेश को साफ दिखाई दे रहा था कि पीयूष के नंबर कहां कटे हैं. अब वह सौ नंबर वाली फिलौसफी उसे पूरी तरह कन्विनसिंग लग रही थी.

पीयूष की उम्र पैसा कमाने और दोस्तों से मिलनेमिलाने में ही बीत रही थी. उस का मिलनसार व्यवहार और गाने का शौक हर महफिल में जान डाल देता था. अपने हर दोस्त के घर उस का स्वागत प्यार से होता था. हर परिवार में उस के दिए गए तोहफे न सिर्फ यूजर मैनुअल के साथ आते, बल्कि इस इंस्ट्रक्शन के साथ भी आते कि घर में उन को कहां रखना है.

अपने कलात्मक सु  झाव और मस्तमौला अंदाज के कारण वह दोस्तों की पत्नियों के बीच भी उतना ही पौपुलर था जितना दोस्तों के बीच. दुनिया के न जाने कितने देशों में अपने काम के सिलसिले में पीयूष का जाना हुआ, लेकिन हर बार अपने नीड़ में पंछी अकेला ही लौटा.

अब 45 साल की उम्र में गुरुग्राम के एक लग्जरी अपार्टमैंट में वह अकेला रह रहा था.

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सारी रात तपेश इन्हीं यादों में डूबतातैरता रहा. तभी सूरज की एक किरण ने उस के बैडरूम की खिड़की पर दस्तक दी. शालू की आंख खुली तो वह तपेश की ओर देख कर बोली, ‘‘अरे आज तो बड़ी जल्दी उठ गए.’’

‘‘नहीं, असल में मैं सोया ही नहीं,’’ कह कर उस ने शालू को पीयूष के बारे में सब बताया.

‘‘उफ, सो सैड…’’ तो चलो फिर हम अस्पताल चलते हैं.

‘‘नहीं, तुम घर पर बच्चों के पास रुको, मैं जाता हूं.’’

तपेश तैयार हो कर वक्त से कुछ पहले ही अस्पताल पहुंच गया और आईसीयू की विंडो से पीयूष को देखता रहा. डाक्टर ने उसे बताया, बात कर के उसे पता चला कि रात को करीब 1 बजे उसे अस्पताल लाया गया था. हार्टअटैक सीवियर था, लेकिन कुदरत का शुक्र है कि समय पर सहायता मिल गई. अब स्थिति काबू में है. बाकी अपडेट्स शाम को दे पाऊंगा,’’ कह कर डाक्टर जल्दी से चला गया.

तपेश पूछता ही रह गया. अरे, लेकिन डाक्टर उसे अस्पताल लाया कौन था?

तभी उस ने देखा कि एक औरत उसी डाक्टर को आवाज लगाती हुई आई और उस  से पीयूष के बारे में पूछताछ करने लगी. तपेश हैरानी से उस की ओर देख रहा था. वह करीब 35-40 साल की खूबसूरत औरत थी, जो इंडियन तो नहीं थी. वह फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश बोल रही थी, उस से साफ जाहिर था कि वह किसी इंग्लिश स्पीकिंग देश से भी नहीं है.

पहनावे से तो वह काफी कुछ आजकल की मौडर्न औरतों जैसी ही लग रही थी, लेकिन नैननक्श से कुछकुछ अरबी लग रही थी. लेकिन उस की फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश सुन कर तपेश को लगा कि शायद वह लैबनान या ईजिप्ट से हो सकती है.

आगे पढ़ें- तपेश खुद काम के सिलसिले में…

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लौकडाउन- भाग 3 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

तपेश खुद काम के सिलसिले में कई देशों में रह चुका था. इसलिए उसे इंग्लिश के भिन्नभिन्न एकसैंट्स की पहचान थी. उसे पता था कि लैबनान और ईजिप्ट जैसे देशों में पैसे वाले लोग अपनी पढ़ाई फ्रैंच माध्यम में भी करते हैं. तभी तपेश को कुछ दिन पहले पीयूष से फोन पर हुई बात याद आई. जब तपेश के घर पार्टी थी और पीयूष भी आमंत्रित था. लेकिन पार्टी वाले दिन पीयूष का फोन आया था, ‘‘आज मैं तेरे यहां पार्टी में नहीं आ सकूंगा. सारी यार.’’

‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘तबीयत बिलकुल ठीक है. दरअसल, आज ईजिप्ट से मेरा एक दोस्त आ रहा है तो उसे रिसीव करने जाना है.’’

‘‘ ठीक है.’’

‘‘उफ, तो यही दोस्त था जो ईजिप्ट से आया था,’’ तपेश अकेले ही बैठाबैठा बुदबुदा रहा था.

तभी नर्स ने आ कर सूचना दी कि आप पीयूष से मिल सकते हैं. उसे रूम में शिफ्ट कर दिया गया है.

तपेश रूम में पहुंचा तो वह महिला पहले से पीयूष के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठी थी. पीयूष की हालत ठीक लग रही थी. उस ने उस महिला से मिलवाते हुए कहा, ‘‘तपेश, यह मेरी दोस्त नाहिद है. ईजिप्ट से आई है और नाहिद यह मेरा दोस्त तपेश.’’

‘‘हाई नाहिद.’’

‘‘हाई तपेश.’’

नाहिद की आंखों में पीयूष के लिए   झलकता चिंता का भाव काफी कुछ कह रहा था. पीयूष की हालत अब ठीक लग रही थी. तपेश उन दोनों को अकेला छोड़ कर डाक्टर से बात करने के बहाने वहां से चला गया. पता चला कि डाक्टर तो अभी व्यस्त हैं, तो वह रूम के बाहर बैंच पर बैठ गया.

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अब तपेश की कल्पना की उड़ान इस कहानी के सिरे ढूंढ़ने  लगी. उसे यह तो पता था कि पीयूष करीब 4 साल पहले किसी फौरेन असाइनमैंट पर ईजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था. पर यह नाहिद की क्या कहानी है, इस बारे में उसे बिलकुल भी भनक नहीं थी.

तभी सामने से डाक्टर को आते देख कर तपेश उन से पीयूष के अपडेट्स लेने लगा.

डाक्टर ने बताया, ‘‘हम करोना के चलते पीयूष को यहां और ज्यादा दिन नहीं रखना चाहते. उस की हालत अब ठीक है. आप उसे घर ले जा सकते हैं. कुछ समय बाद उन को ऐंजिओप्लास्टी की जरूरत पड़ सकती है. हो सकता है न भी पड़े. फिर दवाइयों और इंस्ट्रक्शंस की लंबी लिस्ट दे कर डाक्टर चले गए.

तपेश ने पीयूष को अपने घर ले जाने की पेशकश करते हुए कहा, ‘‘मैं तु  झे अकेले नहीं छोड़ सकता यार. तू मेरे घर चल, वहां मैं और शालू मिल कर तेरी अच्छी देखभाल कर सकेंगे.’’

पीयूष ने सवालिया निगाहों से नाहिद की ओर देखा तो वह अपनी फ्रैंच इंग्लिश में बोली, ‘‘तपेश आप पीयूष की चिंता बिलकुल भी न करें. मैं उस का ध्यान रखूंगी. कोई जरूरत हुई तो आप को कौल कर लूंगी.’’

तपेश ने हैरानी और परेशानी से पीयूष की ओर देखा, ‘‘यार यह कैसे संभालेगी? न तो यह यहां की भाषा जानती है न ही इसे यहां का सिस्टम सम  झ आएगा.’’

नाहिद उन की हिंदी में हो रही बातचीत को न सम  झ पाने के कारण कुछ असमंजस में थी, सो बोली, ‘‘तपेश आप पीयूष के पास बैठो तब तक मैं डाक्टर से मिल कर आती हूं.’’

उस के जाते ही तपेश ने अपनी प्रश्नों से भरी निगाहें पीयूष की तरफ मोड़ी.

पीयूष अपनी सफाई देता सा बोला, ‘‘वह तु  झे पता है न कि मैं कुछ साल पहले ईजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था?’’ पीयूष ने नजरें   झुका कर थोड़ा शरमाते हुए कहा.

‘‘हां, तो?’’

‘‘तो नाहिद वहां मेरी ही कंपनी में काम करती थी. यह ईजिप्ट के काफी जानेमाने परिवार की लड़की है, लेकिन जरा मनमौजी है. उसी दौरान इस का तलाक हुआ था. इसीलिए इस का नौकरी से भी मन उचट गया था. यह काफी परेशान रहने लगी थी.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर इस ने नौकरी भी छोड़ दी थी.’’

‘‘तो फिर करती क्या है?’’

‘‘फिर इस ने वहीं ईजिप्ट के ऐलैक्जैंडरिया शहर में अपनी एक सोविनियर की शौप खोल ली थी. कला और कलाकृतियों की इसे काफी परख थी और यही उस का शौक भी था. तु  झे तो पता ही है कि मु  झे भी कला से काफी लगाव है.’’

‘‘हांहां, यह कौन नहीं जानता?’’

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‘‘तो बस इस के नौकरी छोड़ने के बाद भी हमारे शौक समान होने के कारण हमारी दोस्ती बरकरार रही. फिर मेरी सलाह पर इस ने इंडियन सोविनियर्स भी रखने शुरू कर दिए.’’

‘‘हां, पर तु  झे तो इंडिया वापस आए 2 साल हो गए, फिर अब यह यहां कैसे?’’

‘‘वह क्या है न मैं यहां से सोविनियर्स भेजता रहता हूं, जिन की वहां अब काफी मांग बढ़ गई है. तो इस बार नाहिद ने सोचा कि क्यों न इस बार अपनी पसंद से और ज्यादा मात्रा में सोविनियर खरीदे जाएं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर बस यह इसीलिए यहां आई थी, लेकिन 2 दिन बाद ही कोरोना की वजह से लौकडाउन हो गया और यह यहीं फंस गई.

‘‘लेकिन फंसी अच्छी,’’ मैं ने मजाक करते हुए एक आंख दबाई.

‘‘अरे नहीं यार, ऐसा कुछ भी नहीं है,’’ पीयूष नजरें   झुका कर बोला.

पीयूष और नाहिद पीयूष के घर लौट गए. 1-2 बार तपेश उस से मिलने पीयूष के घर गया और उस के चेहरे की लौटती रौनक देख कर नाहिद द्वारा की जा रही देखभाल से आश्वस्त हो कर लौट आया.

एक दिन तपेश के पास सुबहसुबह पीयूष का फोन आया, ‘‘क्या तू कल सुबह 9 बजे मेरे घर आ सकता है? मु  झे अस्पताल जाना है.’’

‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’

‘‘हांहां सब ठीक है. चैकअप के लिए बुलाया है.’’

‘‘ठीक है.’’

जब तपेश अगले दिन उस के घर पहुंचा तो उसे नाहिद और पीयूष दोनों कुछ ज्यादा ही ड्रैसअप से लगे. वह सम  झ न पाया कि

अस्पताल जाने के लिए इतना तैयार होने की भला क्या जरूरत थी. फिर सोचा छोड़ो यार जैसी उन की मरजी.

बाहर निकले तो पीयूष बोला, ‘‘गाड़ी मैं चलाऊंगा.’’

‘‘अरे लेकिन मैं हूं न.’’

‘‘नहीं मैं ही चलाऊंगा. अब तो मैं ठीक हूं,’’ वह जिद करने लगा.

हार कर तपेश ने उसे गाड़ी की चाबी देते हुए कहा, ‘‘ओके.’’

मगर थोड़ी देर में गाड़ी को अस्पताल की तरफ न मुड़ते देख तपेश बोला, ‘‘अरे यार, अस्पताल का कट तो पीछे रह गया. तेरा ध्यान कहां है?’’

पीयूष मुसकराते हुए बोला, ‘‘ध्यान सीधा मंजिल पर है.’’

‘‘मंजिल, कौन सी…’’ तपेश का वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि उस ने देखा गाड़ी मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस के सामने जा रुकी.

‘‘पीयूष यार यहां क्यों, कैसे…’’

‘‘अरे यार मैरिज के लिए और कहां जाते हैं, मु  झे नहीं पता,’’ पीयूष ने गाड़ी से निकलते हुए ठहाका लगाया.

‘‘मैरिज, किस की, कैसे?’’

गाड़ी से निकल कर पीयूष और नाहिद ने एकदूसरे की बांहों में बांहें डालते हुए  एकसाथ कहा, ‘‘ऐसे,’’ और दोनों खिलखिला उठे.

तपेश ने नाहिद की ओर देखा तो उस के शर्म से लाल चेहरे से नईनवेली दुलहन   झलक रही थी.

‘‘अच्छा तो यह बात है. तो फिर यह भी बता दो कि इस गरीब की दौड़ क्यों लगवाई सुबहसुबह?’’

‘‘तो क्या गवाह हम खुद ही बन जाते?’’ अदा से मुसकराते हुए पीयूष बोला.

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तपेश खफा हुआ सोच रहा था, कितनी अजीब बात है मेरे दोस्त की भी. जिस की किश्ती किनारे पर डूब गई थी, उसे पार भी लगाया तो किस ने? तूफानों ने?

जिस करोना ने सारी दुनिया को हिला दिया, सब को घरों में बैठा दिया, सब की बड़ीबड़ी योजनाओं पर पानी फेर दिया, मिले हुओं को हमेशा के लिए बिछड़वा दिया, उस ने मेरे दोस्त की वह योजना भी सफल करवा दी, जो उस ने बनाई भी नहीं थी और उन्हें मिलवा दिया जिन्हें पता ही नहीं था कि उन्हें मिलना भी है. वाह रे करोना. वाह रे लौकडाउन.

प्यार की जीत: भाग 4- निशा ने कैसे जीता सोमनाथ का दिल

घर आ कर निशा ने अपनी सास की चोट पर मरहम लगाया. इस दुर्घटना की खबर मिलते ही बिलाल के अब्बूजान घर लौट आए. उन सब के सामने निशा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘अब्बूजान, मेरे भाइयों ने ही हमारे बुटीक पर पत्थर फेंके थे. आप मेरे बारे में मत सोचिए. उन्होंने जो किया, गलत किया और आप पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए.’’ निशा की बातें सुन कर सब ने अब्बूजान की ओर देखा क्योंकि फैसला लेने वाले वे ही थे.

‘‘ठीक है जुबैदा, तुम अभी आराम करो. कल से बुटीक के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड रखेंगे. तुम दोनों औरतें अकेले में ऐसी हालत को नहीं संभाल पाओगी. इसलिए एक गार्ड की जरूरत है.’’ उन की बातों से यह स्पष्ट था कि वे इस मामले को पुलिस तक ले जाना नहीं चाहते हैं. मगर निशा ने उन के पास जा कर सहम कर कहा, ‘‘अब्बूजान, मैं आप से निवेदन करती हूं कि आप मेरे भाइयों को माफ मत कीजिए. उन्होंने जो भी किया वह बिलकुल गलत है. अगर आप इस बार उन्हें माफ करेंगे तो उन की जुर्रत और बढ़ जाएगी. इसलिए आप उन के खिलाफ पुलिस में शिकायत करा दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हारे जज्बे को समझ सकता हूं बहू, मगर हमें इस मामले में सावधानी बरतनी होगी. जिन्होंने यह हरकत की, वे तुम्हारे भाई हैं. आज नहीं तो कल, हम एक परिवार हो जाएंगे. अगर हम आज जल्दबाजी में पुलिस के पास गए तो हमारे रिश्ते में दरार आ जाएगी. हमें सब्र से काम लेना चाहिए. उन दोनों को एक न एक दिन अपनी गलती का एहसास होगा. हम उस दिन का इंतजार करेंगे.’’ उन के बड़प्पन के सामने अपने पिता की हरकतों को याद कर निशा की आंखें नम हो गईं.

इस दरमियान रमजान का महीना आया. रमजान के महीने के 10वें दिन दोपहर की नमाज के बाद अचानक निशा बेहोश हो गई और उसे देख कर सब के होश उड़ गए. तुरंत डाक्टर को बुलावाया गया. निशा की जांच करने के बाद डाक्टर ने मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘आप लोगों के लिए खुशखबरी है, आप के घर में एक नया मेहमान आने वाला है.’’ यह सुन कर सभी पुलकित हो उठे.

बिलाल के परिवार ने निशा को पलकों पर बिठाया. अब्बूजान और भाईजान दोनों रोज निशा के लिए फल खरीद कर लाते थे. जुबैदा और जीनत दोनों खास पकवान बनातीं. सब का प्यार देख कर निशा की आंखें डबडबा गईं.

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अचानक एक दिन जुबैदा को थकान महसूस हुई और वे एक कुरसी पर बैठ गईं. उन के दाहिने हाथ में इतना दर्द होने लगा कि उसे उठा ही नहीं पाई और धीरेधीरे वह दर्द सीने तक पहुंच गया और जुबैदा बेहोश हो गईं. घर के लोग उन्हें ले कर अस्पताल पहुंचे. डाक्टर ने जांच कर के उन्हें तुरंत आईसीयू में दाखिल कर दिया.

डाक्टर ने कहा, ‘‘इन्हें हार्टअटैक आया है. इन की आर्टरी में ब्लौकेज है और तुरंत बाइपास सर्जरी करनी पड़ेगी. सारी फौर्मेलिटीज पूरी करने के बाद हम औपरेशन करेंगे. इस के लिए कुल मिला कर 5 लाख रुपए खर्च करना होगा आप को.’’ यह सुन कर परिवार के सभी लोग उदास हो गए. बिलाल के पिताजी हताश हो गए थे. शादी हुए इतने सालों में अपनी बीवी को ऐसी हालत में वे पहली बार देख रहे हैं और वे उसे बरदाश्त नहीं कर सके. बच्चों ने पहली बार अपने अब्बूजान की आंखों में आंसू छलकते हुए देखे.

बिलाल के अब्बूजान के पास इस वक्त इतने रुपए नहीं थे. उन्होंने अपने दोनों बेटों के लिए लखनऊ की मेन मार्केट में अलगअलग दुकान खोलने के लिए अपनी सारी बचत उस में लगा दी थी. उन की मजबूरी देख कर निशा ने कहा, ‘‘अब्बूजान, आप ने हमारी बुटीक की कमाई को कभी भी नहीं मांगा. अब हमारे पास 10 लाख रुपए हैं और आप बेफिक्र रहिए.’’

अम्मीजान का औपरेशन बिना किसी परेशानी के साथ हो गया. सभी अस्पताल में अम्मीजान के पास थे. उस समय निशा के मोबाइल की घंटी बजी. उस की मां का फोन था. शादी होने के बाद मां ने एक बार भी फोन नहीं किया था. अब क्यों फोन कर रही है? सोचते हुए निशा ने ‘हैलो’ कहा तो दूसरी तरफ उस की मां की हड़बड़ाई आवाज सुनाई दी, ‘‘निशा, तुम्हारी मदद चाहिए. तुम्हारे भाइयों को पुलिस पकड़ कर ले गई है और उन्हें जमानत पर छुड़वाने के लिए 5 लाख रुपए चाहिए.’’ यह सुनते ही निशा के क्रोध की सीमा नहीं रही.

औपचारिकता के लिए भी मां ने यह नहीं पूछा कि तुम कैसी हो, मगर अपना अधिकार जताते हुए अपने नालायक बेटों के लिए रुपए मांग रही है. वह गुस्से में बोली, ‘‘किस हक से आप मुझ से इतने रुपए मांग रही हैं? आप लोगों ने दर्द के सिवा क्या दिया है मुझे और मुझ से मदद मांगने में आप को लज्जा नहीं आई?’’ ऐसा कहते हुए निशा ने गुस्से में तमतमाते हुए फोन काट दिया. अब्बूजान यह सब सुन रहे थे.

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5 दिनों के बाद जुबैदा घर वापस आ गईं. दोनों बहुओं ने अपनी सास की खूब देखभाल की. दूसरे दिन सुबह ही अब्बूजान कहीं बाहर जाने की तैयारी करने लगे. सब ने सोचा कि शायद वे अपनी दुकान जा रहे हैं. उन्होंने निशा से पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे पास जो 5 लाख रुपए हैं, क्या तुम मुझे दे सकती हो? निशा ने बिना कोई सवाल पूछे चैक में दस्तखत कर के अब्बूजान को दे दिया. उस चैक को अपने पौकेट में रख कर उन्होंने कहा,’’ मैं अपने संबंधी के घर तक जा रहा हूं.’’ यह सुन कर सब हैरान हो गए क्योंकि बड़ी बहू जीनत का घर लखनऊ में नहीं, फिर किस संबंधी का जिक्र कर रहे हैं अब्बूजान.

‘‘मैं निशा के मायके के बारे में बात कर रहा हूं. वे हमारे संबंधी ही हैं. उन के घर के बेटे जेल में सड़ रहे हैं. उन्हें रिहा कराने के लिए ये रुपए ले जा रहा हूं.’’ निशा ने कुछ कहने की कोशिश कि तो अब्बूजान ने बीच में बात काट कर कहा, ‘‘बहू, तुम्हारा गुस्सा जायज है मगर यह वक्त नहीं है गुस्सा निकालने का. जब वे हम से मदद मांग रहे हैं, तो इनकार करना ठीक नहीं और इंसानियत भी नहीं है.’’ उन की बातें सुन कर सब सन्न हो गए.

अचानक अपने घर की चौखट पर निशा के ससुरजी को देख कर निशा के मांबाप दोनों आश्चर्यचकित हो गए. मगर वे मुसकराते हुए घर के अंदर गए और लक्ष्मी को 5 लाख रुपए का चैक दे कर कहा, ‘‘बहनजी, निशा एक बच्ची है. इसलिए जब आप ने उसे फोन किया तो गुस्से में आ कर न जाने उस ने क्या कह दिया. उस की तरफ से मैं आप से माफी मांगता हूं. इन रुपयों से अपने बेटों को रिहा कराने का काम शुरू कीजिए.’’ यह सुन कर लक्ष्मी और सोमनाथ दोनों की नजरें झुक गईं.

‘‘भाईजान, आप से मैं कुछ बात करना चाहता हूं. बच्चे पतिपत्नी की देन होते हैं. उन्हें अच्छी परवरिश देना हमारा फर्ज है. बच्चों में बेटाबेटी का फर्क करना प्यार का अपमान करने के समान है. जो भी हमें मिले उसे सच्चे मन से अपनाना ही हमारे लिए उचित है और एक बात सुनिए, बच्चों को सहीगलत सिखाना भी हमारा ही कर्तव्य है. अगर बच्चे गलत रास्ते पर चल पड़ें तो इस का मतलब है हमारी परवरिश में ही खोट है. यह मत सोचना कि मैं आप के बेटों की गलतियों के लिए आप को दोषी ठहरा रहा हूं. आगे से उन दोनों को सही रास्ते पर चलने की सीख दीजिए. अपने मन से द्वेष की भावना को हटा दीजिए और अपने बच्चों के मन में भी इस जहर के बीच को मत बोइए. इस दुनिया में हमेशा प्यार की ही जीत होगी, नफरत की नहीं.’’ उन की बातें सुन कर जिंदगी में पहली बार सोमनाथ का अभिमान टूट गया और फूटफूट कर रोने लगे. आगे बढ़ कर जमाल साहब ने सोमनाथ को गले लगाया और वहां हुई प्यार की जीत.

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