लौट जाओ सुमित्रा: भाग 3- उसे मुक्ति की चाह थी पर मुक्ति मिलती कहां है

‘‘लेकिन विवाद के बाद मैं ने तो जानबूझ कर अपने अंदर की प्रतिभा को दफना दिया ताकि दोनों के अहं का टकराव न हो और पुरुषत्व हीनभावना का शिकार न हो जाए. अकसर पढ़ीलिखी बीवी की कामयाबी पति को चुभती है.’’

‘‘सही कह रही हो, ऐसा हो सकता है पर सब के साथ एक ही पैमाना लागू नहीं होता है. वह तुम्हें कामयाब देखना चाहता था, इसलिए छोटीछोटी अड़चनों से तुम्हें दूर रखना चाहा होगा और तुम स्वामित्व व अधिकार में ऐसी उलझी कि न सिर्फ अपनों से दूर होती चली गईं बल्कि यह भी मान लिया कि तुम्हारी वहां कोई जरूरत नहीं है. भूल तेरी ही है.’’

‘‘लेकिन संवेदनाओं को साझा करना क्या स्वामित्व के दायरे में आता है?’’

‘‘नहीं, वह तो जीवन का हिस्सा है, पर शायद शुरुआत ही कहीं से गलत हुई है. एक बार फिर शुरू कर के देख, तू तो कभी इतने उल्लास से भरी थी, फिर जीने की कोशिश कर.’’ समझाने की प्रक्रिया जारी थी.

‘‘कोशिशकोशिश, पर कब तक?’’ सुमित्रा त्रस्त हो उठी थी.

‘‘तू ने कभी कोशिश की?’’

‘‘बहुत की, तभी तो पराजय का अनुभव होता है.’’ सुमित्रा का मन हो रहा था कि वह झ्ंिझोड़ डाले उन्हें, क्यों बारबार उसी से समस्त उम्मीदें रखीं उन्होंने.

‘‘वह तो होगा ही, जब तब प्यार नहीं करती अपने पति से.’’

उथलपुथल सी मच गई उस के भीतर. कहीं यही तो ठीक नहीं है, पति को प्यार नहीं करती पर उस ने बेहद कोशिश की थी पूर्ण समर्पण करने की. बस, एक बार उसे यह एहसास करा दिया जाता कि वह घर की छोटीछोटी बातों का निर्णय ले सकती है. उसे चाबी का वह गुच्छा थमा दिया जाता जो हर पत्नी का अधिकार होता है तो वह उस आत्मसंतोष की तृप्ति से परिपूर्ण हो खुद ही प्यार कर बैठती. पर उसे उस तृप्ति से वंचित रखा गया जो मन को कांतिमय कर एक दीप्ति से भर देती है चेहरे को.

शरीर की तृप्ति ही काफी होती है, क्या, बस. वहीं तक होता है पत्नी का दायरा, उस के आगे और कुछ नहीं. फिर वह तो बलात्कार हुआ. इच्छा, अनिच्छा का प्रश्न कब उस के समक्ष रखा गया है. प्यार कोई निर्जीव वस्तु तो नहीं जिसे एक जगह से उठा कर दूसरी जगह फिट कर दिया जाए.

‘‘मैं ने बहुत कोशिश की और साथ रहतेरहते एक लगाव भी उत्पन्न हो जाता है, पर दूसरा इंसान अगर दूरी बनाए रखे तो कैसे पनपेगा प्यार?’’

‘‘फिर बच्चे?’’ उन्होंने तय कर लिया था कि चाहे आज सारी रात बीत जाए पर वे सुमित्रा के मन की सारी गांठें खोल कर ही दम लेंगे, चाहे उन के ध्यान का समय भी क्यों न बीत जाए.

यह कैसा प्रश्न पूछा? स्वयं इतने ज्ञानी होते हुए भी नहीं जानते कि बच्चे पैदा करने के लिए शारीरिक सान्निध्य की जरूरत होती है, प्यार की नहीं. उस के लिए मन मिलना जरूरी नहीं होता. क्या बलात्कार से बच्चे पैदा नहीं होते? मन का मिलाप न हो तो अग्नि के समक्ष लिए हुए फेरे भी बेमानी हो जाते हैं. गठजोड़ पल्लू बांधने से नहीं होता. दोनों प्राणियों को ही बराबर से प्रयास कर मेल करना होता है. एक ज्यादा करे, दूसरा कम, ऐसा नहीं होता. फिर विवाह सामंजस्य न हो कर बोझ बन जाता है जिसे मजबूरी में हम ढोते रहते हैं.

बस, बहुत हो चुका, अब चली जाएगी यहां से वह. कितना उघाड़ेगी वह अपनेआप को. नग्नता उसे लज्जित कर रही है और वे अनजान बने हुए हैं. उसे क्या पता था कि जिन से वह मुक्ति का मार्ग पूछने आई है, वे उन्हें हराने पर तुले हुए हैं.

‘‘मैं जानती हूं कि बड़ा व्यर्थ सा लगेगा यह सुनना कि मेरा पति मुझे रसोई तक का स्वामित्व नहीं देता, वहां भी उस का दखल है, दीवारों से ले कर फर्नीचर के समक्ष मैं बौनी हूं. दीवारें जब मैली हो जाती हैं तो नए रंगरोशन की इच्छा करती हैं, फर्नीचर टूट जाता है तो उसे मरम्मत की जरूरत पड़ती है, पर मैं तो उन निर्जीव वस्तुओं से भी बेकार हूं. मुझे केवल दायित्व निभाने हैं, अधिकार की मांग मेरे लिए अवांछनीय है. हैं न ये छोटीछोटी व नगण्य बातें?’’

‘‘हूं.’’ वे गहन सोच में डूब गए. ‘समस्या साफ है कि वह स्वामित्व की भूखी है ताकि घर को अपनी तरह से परिभाषित कर उसे अपना कह सके. हर किसी को अपनी छोटी सी उपलब्धि की चाह होती है. चाहे स्त्री कितनी ही सुरक्षित व आधुनिक क्यों न हो, वह भी छोटेछोटे सुख और उन से प्राप्त संतोष से युक्त साधारण जिंदगी की अपेक्षा करती है, चाहे वह दूसरों को बाहर से देखने पर कितनी ही सामान्य क्यों न लगे.’

‘‘फिर भी बेटी…’’ इतने लंबे संवाद के बाद अब उन्होंने इस संबोधन का प्रयोग किया था. वे तो समझ रहे थे कि बेकार ही घबरा कर यह पलायन करने निकल पड़ी है वरना सुखसाधनों के जिस अंबार पर वह बैठी है, वहां आत्मसंतुष्टि की कैसी कमी…सुशिक्षित, विवेकी पति, आचरण भी मर्यादित है…फिर दुख का सवाल कहां उठता है.

‘‘लौटना तो तुझे होगा ही, धैर्य रख और अपने आत्मविश्वास को बल दे. किसी रचनात्मक कार्य को आधार बना ले. ध्यान बंटा नहीं कि सबकुछ सहज हो जाएगा. तूने भी खुद को केंचुल में बंद कर के रखा हुआ है. अध्ययन, अध्यापन सब चुक गए हैं तेरे. उन्हें फिर आत्मसात कर,’’ कहते हुए शब्दों में कुछ अवरोध सा था.

पश्चात्ताप तो नहीं कहीं…

चलो बेटी तो कहा, यह सोच कर सुमित्रा थोड़ी आश्वस्त हुई. ‘‘मैं चाहती हूं आप एक बार फिर पिता बन कर देखें, तभी पुत्री की मनोव्यथा का आभास होगा. ज्ञानी, महात्मा का चोला कुछ क्षणों के लिए उतार फेंकें, बाबूजी,’’ सुमित्रा समुद्र में पत्थर मार उफान लाने की कोशिश कर रही थी, ‘‘ध्यान मग्न हो सबकुछ भुला बैठे, पलायन तो आप ने किया है, बाबूजी. माना मैं ही एकमात्र आप की जिम्मेदारी थी जिसे ब्याह कर आप अपने को मुक्त मान संसार से खुद को काट बैठे थे.

‘‘12 वर्षों तक आप ने सुध भी न ली यह सोच कर कि धनसंपत्ति के जिस अथाह भंडार पर आप ने अपनी बेटी को बैठा दिया है, उसे पाने के बाद दुख कैसा. ज्ञानी होते हुए भी यह कैसे मान लिया कि आप ने सुखों का भंडार भी बेटी को सौंप दिया है. यह निश्चितता भ्रमित करने वाली है, बाबूजी.’’ सुमित्रा का स्वर बीतती रात की भयावहता को निगलने को आतुर था. बवंडर सा मचा है. हाहाकार, सिर्फ हाहाकार.

‘‘अब इतने सालों बाद क्यों चली आई हो मेरी तपस्या भंग करने, क्या मुझे दोषी ठहराने के लिए…मैं नियति को आधार बना दोषमुक्त नहीं होना चाहता. हो भी नहीं सकता कोई पिता, जिस की बेटी संताप लिए उस के पास आई हो. लौट जाओ सुमित्रा और संचित करो अपनेआप को, अपने भीतर छिपे बुद्धिजीवी से मिलो, जिसे तुम ने 12 सालों से कैद कर के रखा है. वापस अध्यापन कार्य शुरू करो. पर दायित्व निभाते रहना, अधिकार तुम से कोई नहीं छीन पाएगा. समय लग सकता है. उस के लिए तुम्हें अपने प्रति निष्ठावान होना पड़ेगा.

‘‘संबल अंदरूनी इच्छाओं से पनपता है. यहांवहां ढूंढ़ने से नहीं. तुम्हें लौटना ही होगा, सुमित्रा. अपने घर को मंजिल समझना ही उचित है वरना कहीं और पड़ाव नहीं मिलता. तुम कहोगी कि बाबूजी आप भी घर छोड़ आए, लेकिन मेरे पीछे कोई नहीं था, सो, चिंतन करने को एकांत में आ बसा. ध्यान कर अकेलेपन से लड़ना सहज हो जाता है. संघर्ष कर हम एक तरह से स्वयं को टूटने से बचाते हैं, तभी तो रचनाक्रम में जुटते हैं, इसी से गतिशीलता बनी रहती है.’’

एक ताकत, एक आत्मविश्वास कहां से उपज आए हैं सुमित्रा के अंदर. लौटने को उठे पांवों में न अब डगमगाहट है न ही विरोध. क्षमताएं जीवंत हो उठें तो असंतोष बाहर कर संतोष की सुगंध से सुवासित कर देती हैं मनप्राणों को.

अभिनेत्री मंजरी फडनिस ने अपनी किस मायूसी की बात की, पढ़ें इंटरव्यू

मुंबई की खूबसूरत, छरहरी काया, मृदुभाषी मॉडल और अभिनेत्री मंजरी फड़नीस के पिता आर्मी में थे, जिस वजह से उन्हें पूरे देश में घूमने का मौका मिला. वह एक गैर फ़िल्मी परिवार से सम्बन्ध रखतीं हैं, और उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह एक अभिनेत्री बनेंगी, लेकिन उन्हें स्टेज पर परफॉर्म करना पसंद रहा.

मंजरी ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म ‘रोक सको तो रोक लो’ से किया है.  यह फिल्म कुछ खास नहीं रही, लेकिन इसके बाद फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ में नज़र आयीं. इस फिल्म में मंजरी ने इमरान की प्रेमिका की भूमिका निभाई आयीं थीं. फिल्म ने बॉक्स-ऑफिस पर सफल रही और आलोचकों ने मंजरी के अभिनय की तारीफ की. इससे वह सबकी नजर में आई और उन्हें काम मिलना थोडा आसान हुआ. हिंदी के अलावा मंजरी ने तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला आदि में भी काम किया है. अभी उनकी वेब सीरीज फ्रीलांसर रिलीज हो चुकी है, जिसमे उन्होंने एक मजबूत इरादों वाली पत्नी की भूमिका निभाई है. उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में ख़ास गृहशोभा के साथ बात की पेश है कुछ ख़ास अंश.

 

मिली प्रेरणा

एक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारें में मंजरी कहती है कि मेरे परिवार में सभी आर्ट के किसी भी फॉर्म की कद्र करते है. कई लोग संगीत से जुड़े है. मैं 3 साल की उम्र से स्टेज पर परफॉर्म कर रही हूँ, जिसमे सिंगिंग डांसिंग, सभी किया है. अधिकतर साधारण परिवार में इन सब चीजों को एक्स्ट्रा करिकुलर के रूप में लेते है, उसे प्रोफेशन के रूप में नहीं ले सकते, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री बहुत कठिन है, इमोशनली बहुत स्ट्रोंग होना पड़ता है, क्योंकि इतना अधिक रिजेक्शन और कॉम्पिटीशन होता है कि खुद को सम्हालना मुश्किल होता है. इसलिए मैंने कभी सोचा नहीं था कि इस फील्ड में जाउंगी, लेकिन 16 साल की उम्र में मुझे आर्ट और उससे जुड़े लोगों के बारें में जानना बहुत पसंद रहा, जिसमें मुझे किसी दूसरे के चरित्र के बारें में जानना अच्छा लगता है और केवल एक्टिंग से ही मुझे इसकी जानकारी मिल सकती है. इससे बाद 14 साल की उम्र में जब मैंने स्कूल की एक प्ले में एक्टिंग किया, सभी को मेरा अभिनय पसंद आया, तो इतनी ख़ुशी मिली कि मैं उसे बयान नहीं कर सकती और वही मेरी पहली प्रेरणा थी.

चुनौतीपूर्ण भूमिका पसंद

मंजरी हमेशा किसी रोल को चुनते समय उस फिल्म में उनकी भूमिका, बैनर, को स्टार और निर्माता, निर्देशक को अधिक महत्व को देखती है. पूरी फिल्म की पैकेजिंग को देखती है, उन्हें अभिनेत्री माधुरी दीक्षित और विद्या बालन की फिल्मे बहुत अच्छी लगती है, क्योंकि उनका काम के प्रति पैशन बहुत स्ट्रोंग है. इसके अलावा मंजरी फिल्म में उनकी भूमिका ऐसी हो, जो दर्शकों को प्रभावित कर सकें. वह कहती है कि मैंने जब फ्रीलांसर वेब सीरीज की स्क्रिप्ट पढ़ी, तब से मैं बहुत उत्साहित थी. इसमें मैने मोहित रैना की पत्नी की भूमिका निभाई है. उनकी लाइफ के ट्रामा में भी पत्नी बहुत स्ट्रोंग है और पति को सहारा देती है. मैं इससे रिलेट नहीं करती, लेकिन कई बार इमोशनल बातों को खुद से रिलेट किया है. देखा जाय तो रियल लाइफ में सभी एक्टर्स कुछ हद तक इमोशनल होते है और मैंने इस भूमिका के लिए बहुत मेहनत की है. ये बहुत चुनौतीपूर्ण भूमिका रही.

मिली मायूसी

इंडस्ट्री की अनिश्चित दुनिया में बिना गॉडफादर के टिके रहना कितना मुश्किल है, क्या कभी आप मायूस हुई ? इस बारें में अभिनेत्री हंसती हुई कहती है कि मैं एक ह्युमन बीइंग हूँ और इमोशन मेरे अंदर है. मैं कई बार टूटी और मायूस हुई हूँ और इस इंडस्ट्री में बड़े से बड़े एक्टर्स उनकी जीवन में उतार – चढ़ाव आते है. ये पूरे प्रोफेशन का एक पार्ट है, जिससे सभी को डील करना पड़ता है. ऐसे में एक अच्छा मानसिक स्ट्रेंथ देने वाला परिवार चाहिए और वह मेरे पेरेंट्स है, जो मेरे बैक बोन है. मेरे अब तक के कैरियर के फेज में, 15 साल में, तीन बार ऐसा लगा कि मुझे सब छोड़कर घर वापस जाना है और मैं आगे नहीं बढ़ पाउंगी, लेकिन तभी कुछ ऐसा प्रोजेक्ट आया कि मुझे वापस घर जाना नहीं पड़ा. आज मैं खुश हूँ कि इंडस्ट्री में मुझे अच्छा काम मिला, और जो भी काम मिला, उस काम ने मुझे आगे बढ़ने में मदद की. मुंबई शहर ने मुझे घर जाने नहीं जाने दिया.

 

परिवार का सहयोग

वह आगे कहती है कि हम सभी ह्युमन बीइंग है और इमोशनली कई बार टूट भी जाते है, ऐसे में एक मजबूत इमोशनल फॅमिली सिस्टम का होना जरुरी होता है, लेकिन कई लोग ऐसे है, जिन्हें परिवार का सहयोग नहीं मिलता, उन्हें एक अच्छे फ्रेंड की जरुरत होती है, जिससे आप कनेक्ट कर सके, आपकी भावनाओं को समझ कर एक अच्छी राय दे सकें और आगे बढ़ने में मदद करें. इसमें मैं खासकर यूथ जो स्कूल और कॉलेज गोइंग है, उन्हें कहना चाहती हूँ कि वे शुरू से अपने परिवार और दोस्त के सहयोग को बनाये रखने की कोशिश करें, जिनका सहयोग भविष्य में जरुरी होता है.

अपनी संघर्ष के बारें में मंजरी कहती है कि मैने हर रिजेक्शन को पॉजिटिव रूप में लेने की कोशिश की है और खुद को समझाया है कि कुछ चीज के ‘ना’ होना अच्छे के लिए होता है. मेरे लिए यह बहुत सही रहा, क्योंकि कई बार जो प्रोजेक्ट मुझे पसंद था और मुझे नहीं मिला, मैं बहुत उदास हुई और कई बार रोई भी, लेकिन बाद में वह मुझे ही मिला. इससे मेरे अंदर ये भावना जगी है कि जो प्रोजेक्ट मेरे नाम से है, वह मुझे अवश्य मिलेगा. अगर नहीं है तो कितना भी हाथ पैर मार ले, वह प्रोजेक्ट नहीं मिल सकता. इसलिए मुझे जो काम मिलता है, मैं उसी को एन्जॉय करती हूँ और दूसरे जो अच्छा काम कर रहे है, उनसे कुछ सीखने की कोशिश करती हूँ.

पसंद – नापसंद 

रियल लाइफ में मंजरी किसी बात से डरती नहीं, खुद का ध्यान रखना जानती है. उन्हें इंडस्ट्री की पार्ट बनना पसंद है, जहाँ बहुत सारे टैलेंटेड कलाकार परफोर्मिंग आर्ट से जुड़े है, जिनके साथ उन्हें काम करने का मौका मिल रहा है, लेकिन उन्हें झूठे, प्लेयिंग गेम और एक दूसरे के साथ राजनीति करने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं.

 

दर्शक है मुख्य  

वेब सीरिस में कहनियों में एक जैसी है, इसका प्रभाव फिल्म निर्माता पर कितना पड़ेगा? पूछे जाने पर मंजरी का कहती है, ये सही है कि थ्रिलर वेब सीरीज अधिक बन रहे है, पर कहानियां अलग – अलग परिवेश की है. इसे दर्शक पसंद कर रहे है, दर्शकों के अनुसार ही वेब सीरीज बनती है. उनके पसंद न होने पर ये बंद हो जाएगी.

आगे मंजरी संगीत के क्षेत्र में गाना चाहती है और जैसे – जैसे अभिनय का काम आता जायेगा, करती जाएगी. भविष्य के बारें में वह अधिक नहीं सोचती.

औकात से ज्यादा: भाग 2- सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे का सच जान पाई निशा

संजय के औफिस में केवल लड़कियां ही काम करती दिखती थीं. पूरे मेकअप में एकदम अपटूडेट लड़कियां, खूबसूरत और जवान. किसी की भी उम्र 22-23 वर्ष से अधिक नहीं. औफिस में संजय ने अपने बैठने के लिए एक अलग केबिन बना रखा था. केबिन का दरवाजा काले शीशों वाला था. किसी भी लड़की को अपने केबिन में बुलाने के लिए वह इंटरकौम का इस्तेमाल करता था. काफी ठाट में रहने वाला संजय चैनस्मोकर भी था. सिगरेट लगभग हर समय उस की उंगलियों में ही दबी रहती थी. नौकरी के पहले दिन सिगरेट का कश खींच संजय ने गहरी नजरों से निशा को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘दिल लगा कर काम करना, इस से तरक्की जल्दी मिलेगी.’’ ‘‘यस सर,’’ संजय की नजरों से खुद को थोड़ा असहज महसूस करती हुई निशा ने कहा. कल के मुकाबले में संजय की नजरें कुछ बदलीबदली सी लगीं निशा को. फिर उसे लगा कि यह उस का वहम भी हो सकता था. तनख्वाह के मुकाबले में औफिस में काम उतना ज्यादा नहीं था. उस पर सुविधाएं कई थीं. औफिस टाइम के बाद काम करना पड़े तो उस को ओवरटाइम मान उस के पैसे दिए जाते थे. किसी न किसी लड़की का हफ्ते में ओवरटाइम लग ही जाता था. निशा नई थी, इसलिए अभी उसे ओवरटाइम करने की नौबत नहीं आती थी.

शायद इसलिए अभी उसे ओवरटाइम के लिए नहीं कहा गया था क्योंकि अभी वह काम को पूरी तरह से समझी नहीं थी. उस के बौस संजय ने भी अभी उसे किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. केबिन के दरवाजे के शीशे काले होने की वजह से यह पता नहीं चलता था कि केबिन में बुला कर संजय किसी लड़की से क्या काम लेता था. कई बार तो कोई लड़की काफी देर तक संजय के केबिन में ही रहती. जब वह बाहर आती तो उस में बहुतकुछ बदलाबदला सा नजर आता. किंतु निशा समझ नहीं पाती कि वह बदलाव किस किस्म का था. एक महीना बड़े मजे से, जैसे पंख लगा कर बीत गया. एक महीने के बाद तनख्वाह की 20 हजार रुपए की रकम निशा के हाथ में थमाई गई तो कुछ पल के लिए तो उसे यकीन ही नहीं आया कि इतने सारे पैसे उसी के हैं. पहली तनख्वाह को ले कर घर की तरफ जाते निशा के पांव जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. निशा की तनख्वाह के पैसों से घर का माहौल काफी बदल गया था. 20 हजार रुपए की रकम कोई छोटी रकम नहीं थी. एक प्राइवेट फर्म में मुनीम के रूप में 20 वर्ष की नौकरी के बाद भी उस के पापा की तनख्वाह इस रकम से कुछ कम ही थी.

निशा की पहली तनख्वाह से उस की नौकरी का विरोध करने वाले पापा के तेवर काफी नरम पड़ गए. मम्मी पहले की तरह ही नाराज और नाखुश थीं. निशा की तनख्वाह के पैसे देख उन्होंने बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया दी. जैसी कि पहली तनख्वाह के मिलने पर निशा का एक टच स्क्रीन मोबाइल लेने की ख्वाहिश थी, उस ने वह ख्वाहिश पूरी की. इस के बाद रोजमर्रा के खर्च के लिए कुछ पैसे अपने पास रख निशा ने बाकी बचे पैसे मम्मी को देने चाहे, मगर मम्मी ने उन्हें लेने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘घर का सारा खर्च तुम्हारे पापा चलाते हैं, इसलिए ये पैसे उन्हीं को देना.’’ ‘‘लगता है तुम अभी भी खुश नहीं हो, मम्मी?’’ निशा ने कहा.

‘‘एक मां की अपनी जवान बेटी के लिए दूसरी कई चिंताएं होती हैं, वह पैसों को देख उन चिंताओं से मुक्त नहीं हो सकती. मगर मेरी इन बातों का मतलब तुम अभी नहीं समझोगी. जब समझोगी तब तक बड़ी देर हो जाएगी. उस वक्त शायद मैं भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगी.’’ मम्मी की बातों को निशा ने सुना अवश्य किंतु गंभीरता से नहीं लिया. पहली तनख्वाह के मिलने के बाद उत्साहित निशा के सपने जैसे आसमान को छूने लगे थे. सारी ख्वाहिशें भी मुट्ठी में बंद नजर आने लगी थीं. दूसरी तनख्वाह के पैसों से घर की हालत में साफ एक बदलाव आया. मम्मीपापा जिस पुराने पलंग पर सोते थे वह काफी जर्जर और कमजोर हो चुका था. पलंग मम्मी के दहेज में आया था और तब से लगातार इस्तेमाल हो रहा था. अब पलंग में जान नहीं रही थी. पापा लंबे समय से एक सिंगल बड़े साइज का बैड खरीदने की बात कह रहे थे मगर पैसों की वजह से वे ऐसा कर नहीं सके थे. अब जब निशा की तनख्वाह के रूप में घर में ऐक्स्ट्रा आमदनी आई थी तो पापा ने नया बैड खरीदने में जरा भी देरी नहीं की थी. नए बैड के साथ ही पापा उस पर बिछाने के लिए चादरों का एक जोड़ा भी खरीद लाए थे. नए बैड और उस पर बिछी नई चादर से पापा और मम्मी के सोने वाले कमरे का जैसे नक्शा ही बदल गया था. पापा खुश थे, किंतु मम्मी के चेहरे पर आशंकाओं के बादल थे. वे चाहती हुई भी हालात के साथ समझौता नहीं कर पा रही थीं.

इधर, निशा के सपनों का संसार और बड़ा हो रहा था. जो उस को मिल गया था वह उस से कहीं ज्यादा हासिल करने की ख्वाहिश पाल रही थी. अपनी ख्वाहिशों के बीच में निशा को कई बार ऐसा लगता था कि उस की भावी तरक्की का रास्ता उस के बौस के केबिन से हो कर ही गुजरेगा. मगर औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों की तरह अभी बौस ने उसे एक बार भी अकेले किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. हालांकि औफिस में काम करते हुए उस को 2 महीने से अधिक हो चुके थे. बौस के द्वारा एक बार भी केबिन में न बुलाए जाने के कारण निशा के अंदर एक तरह की हीनभावना जन्म लेने लगी थी. वह सोचती थी दूसरी लड़कियों में ऐसा क्या था जो उस में नहीं था? जब उक्त सवाल निशा के जेहन में उठा तो उस ने औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों पर गौर करना शुरू किया. गौर करने पर निशा ने महसूस किया कि औफिस में काम करने वाली और बौस के केबिन में आनेजाने वाली लड़कियां उस से कहीं अधिक बिंदास थीं. इतना ही नहीं, वे अपने रखरखाव और ड्रैस कोड में भी निशा से एकदम जुदा नजर आती थीं. औफिस की दूसरी लड़कियों को देख कर लगता था कि वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने मेकअप और कपड़ों पर ही खर्च कर डालती थीं और ब्यूटीपार्लरों में जाना उन के लिए रोज की बात थी.

लड़कियां जिस तरह के कपड़े पहन औफिस में आती थीं, वैसे कपड़े पहनने पर तो शायद मम्मी निशा को घर से बाहर भी नहीं निकलने देतीं. उन वस्त्रों में कटाव व उन की पारदर्शिता में से जिस्म का एक बड़ा हिस्सा साफ नजर आता था. कई बार तो निशा को ऐसा भी लगता था कि बौस के कहने पर औफिस में काम करने वाली लड़कियां औफिस से बाहर भी क्लाइंट के पास जाती थीं. क्यों और किस मकसद से, यह अभी निशा को नहीं मालूम था. मगर तरक्की करने के लिए उसे खुद ही सबकुछ समझना था और उस के लिए खुद को तैयार भी करना था. वैसे बौस के केबिन में कुछ वक्त बिता कर बाहर आने वाली लड़कियों के अधरों की बिखरी हुई लिपस्टिक को देख निशा की समझ में कुछकुछ तो आने ही लगा था. निशा को उस की औकात और काबिलीयत से अधिक मिलने पर भी मम्मी की आशंका सच भी हो सकती थी, किंतु भौतिक सुखों की बढ़ती चाहत में निशा इस का सामना करने को तैयार थी. आगे बढ़ने की चाह में निशा की सोच भी बदल रही थी. उस को लगता था कि कुछ हासिल करने के लिए थोड़ी कीमत चुकानी पड़े तो इस में क्या बुराई है. शायद यही तो कामयाबी का शौर्टकट था. बौस के केबिन से बुलावा आने के इंतजार में निशा ने खुद को औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों के रंग में अपने को ढालने के लिए पहले ब्यूटीपार्लर का रुख किया और इस के बाद वैसे ही कपड़े खरीदे जैसे दूसरी लड़कियां पहन कर औफिस में आती थीं.

क्या आपको भी होते हैं वैक्सिंग के बाद दाने, तो राहत पाने के लिए अपनाएं घरेलू उपाय

महिलाएं अक्सर अपनी सुंदरता को निखारने के लिए ब्यूटी पार्लर जाना पसंद करती हैं. चेहरे के क्लीनअप से लेकर वैक्सिंग तक महिलाओं के लिए जरूरत बन गया है. वैक्सिंग करने से आपकी स्किन सॉफ्ट होती है लेकिन कई बार वैक्सिंग से आपकी स्किन पर दाने निकल सकते हैं. यह दाने दर्द रहित हो सकते हैं लेकिन फिर भी इन दानों को अनदेखा करना आपकी भूल हो सकता है इसीलिए यहां हम आपको इन दानों से बचने के लिए कुछ घरेलू उपाय बताएंगे तो देर किस बात की है आईए जानते हैं-

  1. एलोवेरा

वैक्सिंग के बाद निकले दाने बैक्टीरियल इनफेक्शन के कारण हो सकते हैं और एलोवेरा को बैक्टीरियल इंफेक्शन के खिलाफ लड़ने में सहायक माना जाता है इसीलिए एलोवेरा इन दानों के बचाव में सहायक माना जाता है.

आईए जानते हैं इसके इस्तेमाल करने की विधि-

  • एलोवेरा को काटकर इसका जेल निकाल लें और वैक्सिंग के बाद अपनी त्वचा पर रात भर के लिए लगा रहने दे.
  • बचे हुए जेल को बाउल में निकाल कर किसी ठंडे स्थान पर रख लें और उसे रोजाना रात को सोने से पहले इस्तेमाल करें.

2. टी-ट्री ऑयल

टी ट्री ऑयल को वैक्सिंग के बाद दानों के लिए काफी अच्छा तरीका माना जाता है. इसमें एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल होते हैं जो सूजन और दानों से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं.

आईए जानते हैं इसके इस्तेमाल करने की विधि-

  • सबसे पहले टी ट्री ऑयल की दो बूंदों के साथ एक चम्मच ओलिव ऑयल को अच्छी तरह मिला लें.
  • अब इस मिश्रण से दानों वाली त्वचा पर 1 से 2 मिनट तक मालिश करें.
  • आप इसे रात भर के लिए लगा रहने दे.
  • आप इसका इस्तेमाल रोजाना दो से तीन बार कर सकती हैं.

3. सेब का सिरका

वैक्सिंग के बाद दानों को ठीक करने के लिए आप सेब के सिरके का इस्तेमाल कर सकते हैं.  सेब के सिरके में एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो दानों को काम करने में मदद कर सकते हैं. इसमें एसिडिक भी होता है इसलिए अगर आपकी स्किन ड्राई है या त्वचा पर घाव है तो इसका इस्तेमाल न करें.

आईए जानते हैं इस्तेमाल करने की विधि-

  • सब के सिरके को पानी में मिलाकर कॉटन से अपनी प्रभावी त्वचा पर लगे और सूखने के बाद इसे अच्छे से धो लें.
  • आप इस प्रक्रिया को दिन में एक या दो बार कर सकती हैं.

4. नारियल का तेल

नारियल में मौजूद फेनोलिक एसिड और पॉलीफेनोल एंटीबैक्टीरियल की तरह काम कर सकते हैं इसीलिए नारियल के तेल को वैक्सिंग के बाद दानों से बचने के लिए एक कारगर उपाय माना है.

  • वैक्सिंग के बाद अपनी स्किन को क्लींजर से साफ करें और उसके बाद नारियल का तेल लगाएं.
  • इसे लंबे समय तक त्वचा पर रहने दे.
  • आप इसका इस्तेमाल रोजाना नहाने से पहले कर सकती

मेरी सास के घुटने में बहुत दर्द रहता है,कब सर्जरी कराना जरूरी है?

सवाल

मेरी सास की उम्र 58 साल है. पिछले 2 वर्षों से उन के घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं जानना चाहता हूं कि कब घुटनों की सर्जरी कराना जरूरी हो जाता है? रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी क्या है?

जवाब

कोई भी और्थोपैडिक सर्जन डायग्नोसिस के बाद ही बता पाएगा कि मरीज के घुटनों के जोड़ कितने क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और क्या घुटना प्रत्यारोपण उपचार का अंतिम विकल्प है. घुटनों का एक्स रे, सीटी स्कैन और एमआरआई कराने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाती है. अगर समस्या गंभीर नहीं है तो नौनसर्जिकल उपचारों से आराम मिल सकता है. लेकिन समस्या गंभीर होने पर घुटना प्रत्यारोपण कराना जरूरी हो जाता है. रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी सर्जरी की एक प्रक्रिया है जिस में रोबोट की सहायता से सर्जरी की जाती है. यह सर्जरी की एक अत्याधुनिक तकनीक है. इस के द्वारा जो कृत्रिम इंप्लांट लगाए जाते हैं, उन का जोड़ों में बेहतर तरीके से प्लेसमैंट होता है.

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मेरी माताजी की उम्र 61 साल है. उन के दोनों घुटने खराब हो गए हैं. डाक्टर ने दोनों घुटनों के लिए घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी कराने की सलाह दी है. लेकिन हमें इस सर्जरी की सफलता को ले कर संदेह है?

जवाब

जिन लोगों के घुटने पूरी तरह खराब हो जाते हैं और दूसरे उपचारों से उन्हें आराम नहीं मिलता है तो घुटना प्रत्यारोपण उन के लिए अंतिम विकल्प बचता है. यह आज के दौर की सब से सफल सर्जरी मानी जाती है क्योंकि अच्छे इंप्लांट्स और बेहतर तकनीकों की उपलब्धता के कारण इस की सफलता दर 100 % है.

-डा. ईश्वर बोहरा

जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन, बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली. 

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Festive Special: नाश्ते में बच्चों के लिए बनाएं Cheese परांठा

चीज तो हम सभी को पसंद है, और खास तौर पर बच्चों को. पर आपने चीज को सैंडविच या पिज्जा के साथ ही खाया होगा. पर क्या आपने चीज स्टफिंग वाले पराठे खाएं हैं? ब्रेकफस्ट में जरूर बनाएं चीज पराठा. आप इसे ब्रंच के लिए भी बना सकती हैं.

सामग्री

– 3 कप आटा

– 1/2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

– लहसुन की 3 कलियां

– बारीक कटा हुआ हरी धनिया

– 2 कप चीज क्यूब

– 3-4 बारीक कटी हरी मिर्च

– 1 टी स्पून जीरा

– नमक स्वादानुसार

– सेंकने के लिए घी

विधि

ढाई कप आटा लेकर उसमें नमक मिला लें. इसमें अच्छी तरह पानी डालकर आटा गूथ लें. इसे एक हल्के गीले तौलिए से ढक दीजिए. एक दूसरे बर्तन में चीज, मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, लहसुन, जीरा और धनिए की पत्तियां अच्छी तरह मिला लें. गूथे हुए आटे को हाथ में लेकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें. इसमें चीज मिक्सचर डालें और अच्छी तरह सील करके लोई बना लें. इसे बेलकर पराठा तैया कर लें.

तवे को मध्यम आंच पर गर्म करें. पराठे को दोनों तरफ से सेकें. जब ये रंग बदलने लगे तो इस पर घी लगाएं. जब यह पक जाए तो इसे रायते या चटनी के साथ सर्व करें.

Festival Special: इस दीवाली करें घर को जर्म फ्री

क्या आप प्रतिदिन खुद के नहाने, घर में झाड़ूपोंछा करने और बरतनों व कपड़ों की सफाई को ही घर का रोगाणुरहित होना मानती हैं? अगर हां तो आप गलत हैं. कभी आप ने सोचा है कि ऐसा करने के बावजूद आप या घर के दूसरे सदस्य बारबार बीमार क्यों पड़ते हैं? उदाहरण के लिए आप नहाने की ही बात करें तो क्या जिस बालटी व मग का प्रयोग आप नहाने के लिए करती हैं या शावर से नहाती हैं उसे प्रतिदिन ऐंटीसेप्टिक लोशन से साफ किया जाता है? यहां भी बैक्टीरिया पनपते हैं.

यद्यपि बढ़ते प्रदूषण और बदलते लाइफस्टाइल के चलते घर को जर्म फ्री रखना किसी चुनौती से कम नहीं है और फिर वातावरण को पूरी तरह से नहीं बदला जा सकता पर फिर भी घर व घर के सदस्यों का थोड़ीबहुत सूझबूझ व थोड़ा सा ज्यादा समय लगा कर बचाव तो किया ही जा सकता है. रोगाणुरहित बनना है तो शारीरिक हाइजीन, पर्सनल हाइजीन व घर के हाइजीन के बारे में जानना ही होगा.

घर को बनाएं जर्म फ्री

घर की बात करें तो लिविंगरूम या ड्राइंगरूम, बैडरूम, किचन और बाथरूम का जिक्र अनिवार्य है. यहां पर ही पनपते हैं जर्म्स और इन के संपर्क में आने से हम हो जाते हैं बीमार.

लिविंगरूम/ड्राइंगरूम

इस जगह का प्रयोग घर के सदस्यों के द्वारा सर्वाधिक किया जाता है. यहां की खिड़कियां, दरवाजे अकसर लोग बंद रखते हैं ताकि धूल अंदर न आए. पर ऐसा होता नहीं है. कुशन कवर, सोफे की गद्दियों, सैंटर टेबल, डाइनिंग टेबल कवर पर धूल जम ही जाती है, जो हमें दिखाई नहीं देती. कालीन तो सब से अधिक धूल अब्जौर्ब करता है. इसी तरह परदों पर भी धूल इकट्ठा होती रहती है. आप भले ही कितनी डस्टिंग करें धूल पुन: उड़ कर आ जाएगी और इसी से उपजते हैं बैक्टीरिया. पंखे, स्विचबोर्ड आदि पर भी धूल की परत साफ देखी जा सकती है.

रोकथाम

  1.  सब से अधिक जरूरी यह है कि ड्राइंगरूम की खिड़कियों को कुछ देर खुला रखें ताकि ताजा हवा का सर्कुलेशन अच्छी तरह हो.
  2.  वैज्ञानिकों का कहना है कि कमरे में इनडोर प्लांट्स रखें, जो वायु क्वालिटी को बढ़ाते हैं और टौक्सिन को अब्जार्ब कर लेते हैं. इनडोर प्लांट्स में मनी प्लांट सब से अधिक उपयुक्त हैं.
  3.  कारपेट बिछाया है तो उसे सप्ताह में एक बार अवश्य वैक्यूम क्लीनर से साफ करें व 1 या 2 महीने बाद ड्राईक्लीन करवाएं. या फिर 1 महीने बाद धूप अवश्य दिखाएं.
  4.  कुशन कवर, टेबल कवर आदि को 10 दिनों बाद अवश्य धोएं.
  5.  परदों को हर महीने धोएं और अच्छा हो यदि सूती परदों का इस्तेमाल करें.
  6.  लकड़ी के फर्नीचर को प्रतिदिन पहले गीले कपड़े से और फिर सूखे से पोछें. हर चौथे महीने वार्निश करवाएं.
  7.  सजावटी सामान को भी प्रतिदिन ऐंटीसैप्टिक लोशन लगा कर कपड़े से पोंछें.
  8.  एअरकंडीशन की जाली को सप्ताह में 1 बार अवश्य धोएं. पंखों की सफाई सप्ताह में 1 बार जरूर करें.
  9.  फर्श की रोज सफाई करें. इस के लिए पानी में थोड़ा सा डिसइन्फैक्टैंट क्लीनर अवश्य डालें.
  10.  मेनडोर पर धूलमिट्टी सोखने वाला डोरमैट लगाएं. इस से घर में बाहर से आने वाली डस्ट से बचा जा सकता है.
  11.  सप्ताह में कम से कम 2 बार घर की खिड़कियों को अच्छी तरह साफ करें. अंदर वाले हिस्सों को लंबाई में व बाहर वालों को चौड़ाई में साफ करें. ऐसा करने पर अगर दागधब्बा न छूटा हो तो यह पता चल जाता है.
  12.  स्विचबोर्ड, खिड़कियों के हैंडल आदि को डिसइन्फैक्टैंट कपड़े से प्रतिदिन साफ करें, क्योंकि दिन में कितनी ही बार हमारे हाथ इन चीजों के संपर्क में आते हैं. अत: इन का साफसुथरा रहना बहुत जरूरी है.

बैडरूम

बैडरूम में धूल के कणों से उपजे कीटाणु गद्दों और तकियों में अपनी जगह बनाते हैं. इन्हीं में ये अपना भोजन लेते हैं. डा. फिलिप टियरनो ने अपनी पुस्तक ‘द सीक्रेट लाइफ औफ जर्म्स’ में लिखा है कि बिस्तर पर पसीना और वीर्य के अलावा कुछ और पदार्थ भी गिरते रहते हैं, जिन से बैक्टीरिया पनपते हैं.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल ईएनटी स्पैशलिस्ट डा. कविता नागपाल का भी यह मानना है कि त्वचा संबंधी रोगों व ऐलर्जी होने का मुख्य कारण बैक्टीरिया ही है.

रोकथाम

  1.  तकियों और गद्दों पर कवर चढ़ाएं. हर महीने गद्दों को पलट दें. महीने में 1 बार धूप दिखाएं.
  2.  तकियों व गद्दों के कवरों को सप्ताह में 1 बार गरम पानी से धोएं ताकि कीटाणु नष्ट हो सकें.
  3.  ध्यान रहे, एक तकिए की उम्र 3 से 5 साल होती है. इंटरनैशनल कंज्यूमर हाइजीन सर्वे के अनुसार 5 साल में 1 तकिए में 10% धूल जमा हो जाती है. अत: 5 साल बाद उसे जरूर बदल देना चाहिए.
  4.  पिलो कवर, चादर व बैड कवर को हर हफ्ते बदलें.
  5.  ओढ़ने वाली चादरों को भी सप्ताह में 1 बार धोएं. कंबल को भी सप्ताह में 1 बार वैक्यूम क्लीनर से साफ करें और 1 महीने बाद ड्राइक्लीन करवाएं अथवा उस पर भी कवर चढ़ा कर रखें और उसे नियमित धोएं.

बाथरूम

बाथरूम एरिया में टौयलेट सीट, वाशबेसिन, शावर, कर्टेन, शावर हैड, बालटी, मग, डोर हैंडल, फ्लश हैंडल, शीशा, स्विचबोर्ड आदि पर बैक्टीरिया बहुत ज्यादा पाए जाते हैं और सही वातावरण मिलने पर कुछ ही समय में दोगुने हो जाते हैं.

उपचार

  1.  नहाने की प्लास्टिक की बालटी, मग को प्रतिदिन थोड़े से साबुन से अवश्य साफ करें, बाद में 2 बूंदें ऐंटीसेप्टिक लोशन डाल कर रिंस करें.
  2.  नहाने के बाद बाथरूम को वाइपर से साफ करें और ऐक्जौस्ट व पंखा चला दें ताकि बाथरूम गीला न रहे.
  3.  नहाने के लिए बाथटब है तो सप्ताह में 3 बार उस का पानी हटा कर ऐंटीसेप्टिक लोशन डाल कर साफ करें.
  4.  तौलिए को प्रतिदिन गरम पानी से धोएं.
  5.  प्रतिदिन थोड़ी देर बाथरूम की खिड़कियां खुली रखें ताकि ताजा हवा व धूप की किरणें अंदर आ सकें.
  6.  जूते, चप्पलों को शू रैक में रखें, बैडरूम में न रखें.
  7.  बैडरूम में रखी अलमारियों को सप्ताह में 1 बार अवश्य साफ करें.
  8.  बच्चों के सौफ्ट टौयज को 10-15 दिन में साफ करें. उन्हें तकिए के कवर में बंद कर वाशिंग मशीन में धो लें.
  9.  सप्ताह में 3 बार फ्लश हैंडल, टौयलेट सीट, डोर हैंडल लाइट स्विच आदि को ऐंटीसैप्टिक वाइप्स से अवश्य पोंछें.
  10.  शावर हैड्स पर कीटाणु बहुत जल्दी पनपते हैं. अत: यदि कम प्रयोग में आता हो तो 2 मिनट हौट सैटिंग पर पानी के साथ चलाएं ताकि कीटाणु मर जाएं.
  11.  बाथरूम की नाली में कूड़ा पड़ा न रहने दें. नाली को साफ कर 2 कप सिरका डालें. सिरका लगभग 99% बैक्टीरिया को समाप्त कर देता है.

किचन

एरिजोना विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने किचन में बरतन साफ करने वाले स्पंज, बरतनों को पोंछने वाले कपड़े और सिंक में सब से ज्यादा कीटाणु पाए. इस के अलावा कूड़ेदान, रैफ्रीजरेटर, डिश रैक आदि पर भी. हम सोचते हैं कि हमारे बरतन साफ हैं, पोंछने वाला कपड़ा साफ है पर यह सही नहीं है. रोगाणुरहित बनना है तो किचन की भी सफाई ठीक प्रकार से होनी चाहिए.

उपचार

  1.  किचन स्लैब व गैस चूल्हे को पहले साबुन वाले स्पंज से साफ करें फिर 2 बार दूसरे कपड़े से ताकि वर्किंग स्पेस साफसुथरी रहे.
  2.  किचन सिंक को हमेशा साफ रखें. बरतन धोने से पहले व उस के बाद उसे विम पाउडर से साफ करें और काम के बाद पोंछ दें.
  3.  किचन सिंक को जर्म फ्री बनाने के लिए एकचौथाई कप सिरके में समभाग पानी मिलाएं और सिंक में फैला दें. थोड़ी देर बाद साफ करें.
  4.  बरतन पोंछने के लिए डस्टर, हाथ पोंछने के लिए तौलिए और स्लैब पोंछने के लिए नेपकिंस अलग रखें. प्रतिदिन सुबहशाम अलग धुला नैपकिन प्रयोग में लाएं.
  5.  बरतन धोने वाले स्क्रब को काम करने के बाद ऐंटीसैप्टिक लोशन से रिंस कर के सुखा लें. विप को भी ढक कर रखें.
  6.  किचन ऐक्जौस्ट फैन, कैबिनेट हैंडल, चिमनी आदि को भी सप्ताह में 1 बार अवश्य साफ करें.
  7.  फ्रिज को भी सप्ताह में 1 बार अवश्य साफ करें. इस के लिए मैडिकेटेड डिटर्जैंट का इस्तेमाल करें.
  8.  किचन की खिड़कियां व जालियों को साफ करने के लिए एकतिहाई कप सिरके में एकचौथाई कप अल्कोहल मिलाएं और मिश्रण से खिड़कियां व जालियां साफ करें.
  9.  माइक्रोवेव ओवन, आदि को भी सप्ताह में 1 बार अवश्य साफ करें.
  10.  किचन के डस्टबिन में सूखा विम पाउडर और सिरका डाल कर सप्ताह में 1 बार रगड़ें और धो कर सुखाएं. कचरा डालने से पहले उस में डस्टबिन वाला थैला अवश्य लगाएं.
  11.  किचन की नालियों को साफ रखें. उन में कूड़ाकचरा न रहने दें ताकि बैक्टीरिया न पनपें.
  12.  सब्जी काटने वाले बोर्ड की भी सफाई करें, क्योंकि सब से अधिक बैक्टीरिया यहीं पनपते हैं. वैज और नौनवैज काटने के लिए अलगअलग चौपिंग बोर्ड का इस्तेमाल करें.

अन्य सावधानियां

  1.  वाशिंग मशीन में भी बैक्टीरिया बहुत जल्दी पनपते हैं. अत: कपड़े धोने के बाद वाशर ड्रम को डिसइन्फैक्टैंट से पोंछें.
  2.  ऐसे आइटम्स जो ज्यादा प्रयोग में आते हैं जैसे रिमोट कंट्रोल, टैलीफोन रिसीवर, फ्रिज का हैंडल, मोबाइल, डोर की बैल आदि को प्रतिदिन ऐंटीबैक्टीरियल वाइप्स से पोंछें.
  3.  मोबाइल, कंप्यूटर की बोर्ड को तो दिन में 4-5 बार साफ करें.

बौडी हाइजीन

सिर्फ घर को साफसुथरा रखने से ही काम नहीं चलता स्वयं की सफाई भी आवश्यक है. शारीरिक हाइजीन में हाथों की अहम भूमिका है. यह बात कम लोग ही जानते हैं कि घरों में संक्रमण फैलाने में हाथ सब से अधिक जिम्मेदार होते हैं. उस के बाद नाखूनों की, बालों की व शरीर के अन्य अंगों की सफाई.

उपचार

बाहर से आने के तुरंत बाद, खांसनेछींकने के बाद, टौयलेट से आने के बाद, पालतू जानवर को छूने के बाद, बच्चों को खिलाने और खुद खाना खाने से पहले हाथ अवश्य धो लें.

हाथ धोने के लिए मैडिकेटेड लिक्विड सोप सब से अधिक उपयुक्त रहता है.

नहाने के पानी में कुछ बूंदें ऐंटीबैक्टीरियल लोशन अवश्य डालें.

पसीना ज्यादा आता हो तो अंडरआर्म्स की सफाई पर पूरा ध्यान दें. प्यूबिक एरिया के बालों की सफाई भी समयसमय पर करें.

नहाने के लिए अपना सोप अलग रखें. नाखूनों को समयसमय पर जरूर काटें. गंदे नाखूनों से भी अस्वस्थ होने की संभावना ज्यादा रहती है.

पर्सनल हाइजीन

  1.  हमेशा साफ कपड़े पहनें, जो सिर्फ धुले ही नहीं वरन संक्रमण रहित भी हों.
  2.  दूसरे का तौलिया, कपड़े, चश्मा, कंघा, लिपस्टिक आदि प्रयोग न करें.
  3.  मेकअप किट में भी जर्म्स पाए जाते हैं. अत: मेकअप ब्रश, पफ, आईब्रो पैंसिल आदि को भी प्रयोग में लाने से पहले ऐंटीसैप्टिक वाइप्स से पोंछ लें.
  4.  महिलाओं के पर्स के हैंडल में उतने ही जर्म्स पाए जाते हैं जितने एक टौयलेट सीट पर. यह बात हाल ही में हुए सर्वे में पता चली. अत: अपने पर्स की भी नियमित सफाई करती रहें.

Festival Special: Acidity दूर भगाने के 10 हर्बल उपचार

लाजबाव, स्‍वादिष्‍ट भोजन करने के बाद अक्‍सर आपको गैस और एसिडिटी की समस्‍या हो जाती है. पेट में गुड़गुड़ होती रहती है, हल्‍का सा दर्द होता है और गैस बनती है जिसकी वजह से किसी भी काम को करने में मन नहीं लगता है.

दुनिया भर के लोगों को इस समस्‍या से कभी न कभी दो चार होना पड़ता है. अगर आपका भी चटपटे और तला भोजन को खाने के बाद यही हाल होता है तो यहां हम आपको कुछेक आयुर्वेदिक टिप्‍स बता रहे हैं जो पेट की जलन को शांत करके, एसिडिटी को भी दूर भगा देते हैं.

1. आजवाइन: दो चम्‍मच आजवाइन लें और उसे एक कप पानी में उबाल लें. इस पानी को आधा होने तक उबालें और बाद में छानकर पी जाएं. पेट में होने वाली गड़बड़ सही हो जाएगी.

2. आंवला: सूखा हुआ आंवला, यूं ही चबा लें. इससे पेट दर्द में आराम मिलता है. सूखा हुआ आवंला, बाजार में उपलब्‍ध होता है. आप चाहें तो इसे आंवलें के सीज़न में घर पर भी उबालकर धूप में सुखाकर इस्‍तेमाल कर सकती है.

3. लौंग: लौंग से पाचनक्रिया दुरूस्‍त बनी रहती है. लौंग का सेवन करके पानी पी लें. इससे राहत मिलेगी.

4. काली मिर्च: काली मिर्च, पेट में होने वाली ऐंठन व गैस की समस्‍या को दूर कर देती है. छाछ के साथ काली मिर्च का सेवन करने पर फायदा होता है. काली मिर्च के पाउडर को छाछ में डालकर पी जाएं.

5. अदरक: अदरक में पाचन क्रिया दुरूस्‍त करने के गुण होते हैं. अदरक को कच्‍चा खाने या चाय में डालकर पीने से पेट की जलन में आराम मिलती है. आप चाहें तो अदरक की जगह सोंठ का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं.

6. तुलसी: तुलसी में बहुत सारे हर्बल गुण होते हैं. इसकी चार पत्तियां खाने से पेट में एसिडिटी की समस्‍या नहीं रहती है.

7. जीरा: जीरा, पेट दर्द और गैस का तुंरत उपचार करने के लिए सबसे अच्‍छा माना जाता है. काले नमक के साथ इसका सेवन लाभकारी होता है.

8. आर्टिचोक का पत्‍ता: आर्टिचोक के पत्‍ते को कच्‍चा ही चबा जाने से पेट में एसिडिटी की समस्‍या दूर हो जाती है. साथ ही कब्‍ज भी नहीं होता है.

9. कैमोमाइल: कैमोमाइल टी, पाचन क्रिया के लिए अच्‍छी मानी जाती है. इसे बनाकर पीने से जलन, पेट दर्द और एसिडिटी की समस्‍या दूर हो जाती है.

10. हल्‍दी: हल्‍दी को दही में मिलाकर सेवन करें, इससे पेट दर्द और ऐंठन व एसिडिटी में राहत मिलती है.

असमंजस: क्यों अचानक आस्था ने शादी का लिया फैसला

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लौट जाओ सुमित्रा: भाग 2- उसे मुक्ति की चाह थी पर मुक्ति मिलती कहां है

कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के अंदर ही कहीं एक ज्वालामुखी धधक रहा था जिस की तपिश ठंड के वेग को छूने भी नहीं दे रही थी, लेकिन उस की देह को दग्ध रखा हुआ था.

सुमित्रा अपनी बात जारी रखे हुए थी, ‘‘पहले अपनेआप से ही संघर्ष किया जाता है, अपने को मथा जाता है और मैं तो इस हद तक अपने से लड़ी हूं कि टूट कर बिखरने की स्थिति में पहुंच गई हूं. सारे समीकरण ही गलत हैं. विकल्प नहीं था और हारने से पहले ही दिशा पाना चाहती थी, इसीलिए चली आई आप के पास. जब पांव के नीचे की सारी मिट्टी ही गीली पड़ जाए तो पुख्ता जमीन की तलाश अनिवार्य होती है न?’’ इस बार सुमित्रा ने प्रश्न किया था. आखिर क्यों नहीं समझ पा रहे हैं वे उस को?

‘‘ठीक कहती हो तुम, पर मिट्टी कोे ज्यादा गीला करने से पहले अनुमान लगाना तुम्हारा काम था कि कितना पानी चाहिए. फिर तलाश खुदबखुद बेमानी हो जाती है. हर क्रिया की कोई प्रतिक्रिया हो, यह निश्चित है. बस, अब की बार कोशिश करना कि मिट्टी न ज्यादा सख्त होने पाए और न ही ज्यादा नम. यही तो संतुलन है.’’

‘‘बहुत आसान है आप के लिए सब परिभाषित करना. लेकिन याद रहे कि संतुलन 2 पलड़ों से संभव है, एक से नहीं,’’ सुमित्रा के स्वर में तीव्रता थी और कटाक्ष भी. क्यों वे उस के सब्र का इम्तिहान ले रहे हैं.

‘‘ठीक कह रही हो, पर क्या तुम्हारा वाला पलड़ा संतुलित है? तुम्हारी नैराश्यपूर्ण बातें सुन कर लगता है कि तुम स्वयं स्थिर नहीं हो. लड़खड़ाहट तुम्हारे कदमों से दिख रही है, सच है न?’’

जब उत्साह खत्म हो जाता है तो परास्त होने का खयाल ही इंसान को निराश कर देता है. सुमित्रा को लग रहा था कि उस की व्यथा आज चरमसीमा पर पहुंच जाएगी. सभी के जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं जब लगता है कि सब चुक गया है. पर संभलना जरूरी होता है, वरना प्रकृति क्रम में व्यवधान पड़ सकता है. टूटनाबिखरना…चक्र चलता रहता है. लेकिन यह सब इसलिए होता है ताकि हम फिर खड़े हो जाएं चुनौतियां का सामना करने के लिए, जुट जाएं जीवनरूपी नैया खेने के लिए.

‘‘कहना जितना सरल है, करना उतना सहज नहीं है,’’ सुमित्रा अड़ गई थी. वह किसी तरह परास्त नहीं होना चाहती थी. उसे लग रहा था कि वह बेकार ही यहां आई. कौन समझ पाया है किसी की पीड़ा.

‘‘मैं सब समझ रहा हूं पर जान लो कि संघर्ष कर के ही हम स्वयं को बिखरने से बचाते हैं. भर लो उल्लास, वही गतिशीलता है.’’

‘‘जब बातबात पर अपमान हो, छल हो, तब कैसी गतिशीलता,’’ आंखें लाल हो उठी थीं क्रोध से पर बेचैनी दिख रही थी.

‘‘मान, अपमान, छल सब बेकार की बातें हैं. इन के चक्कर में पड़ोगी तो हाथ कुछ नहीं आएगा. मन के द्वार खोलो. फिर कुंठा, भय, अज्ञानता सब बह जाएगी. सबकुछ साफ लगने लगेगा. बस, स्वयं को थोड़ा लचीला करना होगा.’’ बोलने वाले के स्वर में एक ओज था और चेहरे पर तेज भी. अनुभव का संकेत दे रहा था उन का हर कथन. बस, इसी जतन में वे लगे थे कि सुमित्रा समझ जाए.

रात का समय उन्हें बाध्य कर रहा था कि वे अपने ध्यान में प्रवेश करें पर सुमित्रा तो वहां से हिलना ही नहीं चाहती थी. चाहते तो उसे जाने के लिए कह सकते थे पर जिस मनोव्यथा से वह गुजर रही थी उस हालत में बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे उसे जाने देना ठीक नहीं था. भटकता मन भ्रमित हो अपना अच्छाबुरा सोचना छोड़ देता है.

‘‘मैं अपने पति से प्यार नहीं करती,’’ सुमित्रा ने सब से छिपी परत आखिर उघाड़ ही दी. कब तक घुमाफिरा कर वह तर्कों में उलझती और उलझाती रहती.

‘‘यह कैसा भ्रम है सुमित्रा?’’ उन के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी.

‘‘यह कटु सत्य है,’’ उस की वाणी में तटस्थता थी. झिझक खुल जाना ही अहम होता है. फिर डर नहीं रहता.

‘‘कितने वर्ष हो गए हैं विवाह को?’’

‘‘यही कोई 12.’’

‘‘जिस इंसान के साथ तुम 12 वर्षों से रह रही हो, उस से प्यार नहीं करतीं. बात कुछ निरर्थक प्रतीत होती है?’’

‘‘यही सच है. मैं ने अपने पति से एक दिन भी प्यार नहीं किया. वास्तविकता तो यह है कि मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि वे मेरे पति हैं. एक पत्नी होेने का स्वामित्व, अधिकार दिया ही कहां मुझे.’’ हर जगह एक तरलता व्याप्त हो गई थी.

‘‘यह क्या कह रही हो, पति का पति होना महसूस न हुआ हो. रिश्ते इतने क्षीण धागे से तो नहीं बंधे होते हैं. परस्परता तो साथ रहतेरहते भी आ जाती है. एहसासों की गंध तो इतनी तीव्र होती है कि मात्र स्पर्श से ही सर्वत्र फैल जाती है. तुम तो 12 वर्षों से साथ जी रही हो, पलपल का सान्निध्य, साहचर्य क्या निकटता नहीं उपजा सका? मुझे यह बात नहीं जंचती,’’ स्वर में रोष के साथ आश्चर्य भी था.

सुमित्रा पर गहरा रोष था कि क्यों न वह प्यार कर सकी और अपने ऊपर ग्लानि. अपनी शिष्या, जो बाल्यावस्था से ही उन की सब से स्नेही शिष्या रही है, को न समझ पाने की ग्लानि. कहां चूक हो गई उन से संस्कारों की धरोहर सौंपने में. उन्हें ज्यादा दुख तो इस बात का था कि अब तक वे उस के भीतर जमे लावे को देख नहीं पाए थे. कैसे गुरु हैं वे, अगर सुमित्रा आज भी गुफाओं के द्वार नहीं खोलती तो कभी भी वे उन अंधेरों को नहीं देख पाते.

‘‘आप को क्या, किसी को भी यह बात अजीब लग सकती है. सुखसंसाधनों से घिरी नारी क्योंकर ऐसा सोच सकती है. यही तो मानसिकता होती है सब की. असल में समृद्धि और ऐश्वर्य ऐसे छलावे हैं कि बाहर से देखने वालों की नजरें उन के भौतिक गुणों को ही देख पाती हैं, गहरे समुद्र में कितनी सीपियां घोंघों में बंद हैं, यह तो सोचना भी उन के लिए असंभव होता है.’’

‘‘मुझे लगता है कि सुमित्रा, तुम परिवार को दार्शनिकता के पलड़े में रख कर तोलती हो, तभी सामंजस्य की स्थिति से अवगत नहीं. सिर्फ कोरी भावुकता, निरे आदर्शों से परिवार नहीं चलता, न ही बनता है.’’

‘‘मैं किन्हीं आदर्शों या भावुकता के साथ घर नहीं चला रही हूं,’’ सुमित्रा भड़क उठी थी, ‘‘आप समझते क्यों नहीं, न जाने क्यों मान बैठे हैं कि मैं ही गलत हूं. जिस घर की आप बात कर रहे हैं, वह मुझे अपना लगता ही कहां है. आप ने उच्चशिक्षा के साथ पल्लू में यही बांधा कि पति का घर ही अपना होता है, लेकिन मैं तो अपनी मरजी से उस की एक ईंट भी इधरउधर नहीं कर सकती.’’

फफक उठी थी वह. रहस्यों को खोलना भी कितना पीड़ादायक होता है, अपनी ही हार को स्वीकार करना. 12 वर्षों से वह जिस तूफान को समेटे हुई थी यह सोच कर कि कभी तो उसे पत्नी होने का स्वामित्व मिलेगा, उसे आज यों बहती हवा के साथ निकल जाने दिया था. उपहास उड़ाएगा सारा संसार इस सत्य को जान कर जिसे उस ने बड़ी कुशलता से आवरणों की असंख्य तहों के नीचे छिपा कर रखा था ताकि कोई उस के घर की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश न करे.

सुमित्रा बोले जा रही थी, ‘‘मैं अपने मन के संवेगों को उन के साथ नहीं बांट सकती. शेयर करना भी कुछ होता है. बहुतकुछ अनकहा रह जाता है जो काई की तरह मेरे हृदय में जमा हुआ है. इतनी फिसलन हो गई है कि अब स्वयं से डरने लगी हूं कि कहीं पग धरते ही गिर न जाऊं.

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता क्या ऐसा होता है जिस में भावनाओं को दबा कर रखना पड़ता है. मैं थक गई हूं. मेरा मन थक गया है. सब शून्य है, फिर कहां से जन्म लेगा प्यार का जज्बा?’’ सुमित्रा बेकाबू हो गई थी.

‘‘ऐसा भी तो हो सकता है कि वह तुम्हें बुद्धिजीवी मानने के कारण छोटीछोटी बातों से दूर रखना चाहता हो. तुम्हें ऊंचा मानता हो और तुम नाहक रिश्तों में काई जमा कर जी रही हो. तुम्हारे अध्ययन, तुम्हारे सार्थक विचारों से अभिभूत हो कर वह तुम्हारी इज्जत करता है और तुम ने नाहक ही थोथे अहं को पाल रखा है.’’ स्वर इतना संयमित था कि एकबारगी तो वह भी हिल गई. तटस्थता जबतब सहमा देती है.

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