मिलावट: क्यों रहस्यमय थी सुमन

कमलाजी के दोगलेपन को देख कर बीना चिढ़ उठती थी. वह उन के इस व्यवहार के पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक तथ्य तक पहुंचना चाहती थी. और जिस दिन उसे वजह पता चली तो उस पर विश्वास करना बीना के लिए मुश्किल हो रहा था.

‘‘वाह बीनाजी, आज तो आप कमाल की सुंदर लग रही हैं. यह नीला सूट और सफेद शौल आप पर इतना फब रहा है कि क्या बताऊं. मेरे साहब को भी नीला रंग बहुत पसंद है. जब भी खरीदारी करने जाओ, यही नीला रंग सामने रखवा लेंगे.’’

कमलाजी के जानेपहचाने अंदाज पर उस दिन बीना न मुसकरा पाई और न ही अपनी प्रशंसा सुन कर पुलकित ही हो पाई. सदा की तरह हर बात के साथ अपने पति को जोड़ने की उन की इस अनोखी अदा पर भी उस दिन वह न तो चिढ़ पाई और न ही तुनक पाई.

‘‘कमलाजी हर बात में अपने पति को क्यों खींच लाती हैं?’’ बीना ने सुमन से पूछा.

‘‘अरे भई, बहुत प्यार होगा न उन्हें अपने पति से,’’ सुमन ने उत्तर दिया.

‘‘फिर भी, कालेज के स्टाफरूम में बैठ कर हर समय अपनी अति निजी बातों का पिटारा खोलना क्या ठीक है?’’ बीना ने एक दिन सुमन के आगे बात खोली, तब हंस पड़ी थी सुमन.

‘‘कई लोगों को अपने प्यार की नुमाइश करना अच्छा लगता है. लोगों में बैठ कर बारबार पति का नाम, उस की पसंदनापसंद का बखान करना भाता है. भई, अपनाअपना स्वभाव है. अब तुम्हीं को देखो, तुम तो पति का नाम ही नहीं लेती हो.’’

‘‘अरे, जरूरी है क्या यह सब?’’

बीना की बात सुन कर सुमन खिलखिला कर हंसने लगी थी. फिर उस के बदले तेवर देख कर सुमन ने उस का हाथ थपथपा कर पुचकार दिया था, ‘‘चलो, छोड़ो, प्रकृति ने अनेक तरह के प्राणी बनाए हैं. उन में एक कमलाजी भी हैं, सुन कर  झाड़ दिया करो, दिल से क्यों लगाती हो?’’

‘‘अरे, मैं भला दिल से क्यों लगाऊंगी. इतनी गंभीर नहीं हूं मैं, और न ही मेरा दिल इतना…’’

बीना की बात को बीच में ही काटते हुए सुमन बोली, ‘‘चलो, छोड़ो भी. लो, समोसा खाओ.’’

मस्त स्वभाव की सुमन स्थिति को सदा हलकाफुलका बना कर देखती थी. बीना को कालेज में आए अभी कुछ ही समय हुआ था और इस बीच सुमन से उस का दिल अच्छा मिल गया था.

कभीकभी उसे सुमन बड़ी रहस्यमयी लगती थी. ऐसा लगता था जैसे बहुतकुछ अपने भीतर वह छिपाए हुए है. सुमन किसी भी स्थिति की समीक्षा  झट से कर के दूध पानी अलगअलग कर सारा  झं झट ही समाप्त कर देती है.

‘‘देखो बीना, किसी बात को अधिक गंभीरता से सोचने की जरूरत नहीं है. रात गई बात गई, बस. समाप्त हुआ न सारा  झमेला,’’ सुमन ने बीना को सम झाया. वह बात को  झट से एक सुखद मोड़ दे देती, मानो कहीं कुछ घटा ही नहीं.

‘‘अरे, वाह नीमाजी, आज तो आप बहुत सुंदर लग रही हैं.’’

एक सुबह बीना के सामने ही कमलाजी ने उस की एक सहयोगी नीमा की जी खोल कर तारीफ की थी, मगर जैसे ही वह क्लास लेने गई, पीछे से मुंह बिचका कर यह कह कर हंसने लगीं, ‘‘कैसी गंदी लग रही है नीमा. एक तो कालीकलूटी सूरत और ऊपर से ऐसा रंग, मु झे तो मितली आने लगी थी.’’

कमलाजी के इस दोगले आचरण को देख कर बीना अवाक रह गई. एक पढ़ीलिखी, कालेज की प्रोफैसर से उसे इस तरह के आचरण की आशा न थी.

‘‘मेरे पति को भी इस तरह के चटक रंग पसंद नहीं हैं. शादी में मेरी मां की ओर से ऐसी साड़ी मिली थी, पर उन्होंने कभी मु झे पहनने ही नहीं दी. मैं तो कभी पति की नापसंद का रंग नहीं पहनती. क्या करें, जिस के साथ जीना हो उस की खुशी का खयाल तो रखना ही पड़ता है,’’ कमलाजी के मुंह से इस तरह की बातों को सुन कर तब बीना को अपनी प्रशंसा में कहे गए कमला के शब्द  झूठे लगे थे. उसे लगा था कि उस की तारीफ में कमलाजी जो कुछ कहती हैं उस का दूसरा रूप यही होता होगा जो उस ने अभीअभी नीमा के संदर्भ में देखा है. उस के बाद तो बीना कभी भी कमलाजी के शब्दों पर विश्वास कर ही नहीं पाई.

कमलाजी के शब्दों पर सदा  झल्ला ही पड़ती थी. एक दिन बोल पड़ी थी, ‘‘हांहां, कमलाजी, आते समय मैं ने भी शीशा देखा था. वास्तव में सुंदर लग रही थी.’’

‘‘आप को आतेआते शीशा देखना याद रहता है क्या? मु झे तो समय ही नहीं मिलता. सुबहसुबह कितना काम रहता है. सुबह के बाद कहीं देररात जा कर चारपाई नसीब होती है. दिनभर काम करतेकरते कमर टूट जाती है. ऊपर से पतिदेव का कहना न मानो, तो मुसीबत. हम औरतों की भी क्या जिंदगी है. मैं तो सोच रही हूं कि नौकरी छोड़ दूं. फिर मेरे पति भी कहते हैं कि यह क्या, 3 हजार रुपए की नौकरी के पीछे तुम मेरा घर भी बरबाद कर रही हो.’’

‘‘तो छोड़ दीजिए नौकरी. आप के पति की आमदनी अच्छी है और आप शाम तक इतना थक भी जाती हैं, तो जरूरत भी क्या है?’’ बीना ने तुनक कर उत्तर दिया था.

‘‘बीना, चलो, तुम्हारी क्लास है,’’ सुमन उस की बांह पकड़ कर उसे बाहर ले आई थी, ‘‘क्यों सुबहसुबह कमलाजी से उल झ रही हो?’’

‘‘मु झे ऐसे दोगले इंसान दोमुंहे सांप जैसे लगते हैं, सुमनजी. मुंह पर कुछ और पीठपीछे कुछ. और जब देखो, अपनी राय दूसरों को देती रहती हैं.’’

‘‘बीना, तुम वही कमजोरी दिखा रही हो. मैं ने कहा न, इस तरह के लोगों को सुनाअनसुना कर देना चाहिए.’’

‘‘सुमनजी, आप भी बस…’’

‘‘देखो बीना, यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि मनुष्य अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए उसी कमजोरी के न होने का ढोंग बड़े जोरशोर से करता है. मन में किसी तरह की कोई कुंठा हो तो दूसरों का मजाक उड़ा कर उस कुंठा को शांत करता है. ऐसे लोग दया के पात्र होते हैं. उन पर हमें क्रोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्या कमजोरी है कमलाजी को? अच्छीखासी सुंदर हैं. अमीर घर से संबंध रखती हैं. पति उन पर जान छिड़कता है. इन के मन में क्या कुंठा है?’’

‘‘कोई तो होगी. हमें क्या लेनादेना. हम यहां नौकरी करने आते हैं, किसी की कुंडली जानने नहीं.’’

चुप रह गई थी बीना. सुमन उस से उम्र में बड़ी थी, इसलिए आगे बहस करना उसे अच्छा न लगा था.

एक शाम बीना परिवार समेत सुमन के घर गई थी. तब सुमन ने बड़े प्यार से, बड़ी बहन की तरह उसे सिरआंखों पर बिठाया था.

‘‘मेरे बेटे से मिलो. ये देखो, मेरे बच्चे के जीते हुए पुरस्कार,’’ फिर बेटे की तरफ देख कर बोली, ‘‘बेटे, ये बीना मौसी हैं. मेरे साथ कालेज में पढ़ाती हैं.’’

कालेज में शांत और संयम से रहने वाली सुमन बीना को कुछ दिखावा सा करती प्रतीत हुई थी. बारबार अपने बेटे की प्रशंसा और उस की उपलब्धियों का बखान करती हुई, उस के द्वारा जीते गए कप व अन्य पुरस्कार ही दिखाती रही.

‘‘मुझे अपने बेटे पर गर्व है,’’ सुमन फिर बोली, ‘‘क्या बताऊं, बीना, बहुत प्यार करता है. असीम को छोड़ कर कहीं चली जाऊं, तो इसे बुखार हो जाता है.’’

मां और बच्चे में प्यार और ममता तो सहज होती है. उसे बारबार अपने मुंह से कह कर प्रमाणित करने की जरूरत भला कहां होती है.

उस रात बीना ने अनायास पति के सामने अपने मन की बात कह दी, तो वे भी गरदन हिला कर बोले, ‘‘हां, अकसर ऐसा होता है. जहां जरा सी मिलावट हो वहां मनुष्य जोरशोर से यही साबित करने में लगा रहता है कि मिलावट है ही नहीं. जो पतिपत्नी घर पर अकसर कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ते रहते हैं वे चार लोगों में ज्यादा चिपकेचिपके से रहते हैं. मानो, लैलामजनू के बाद इतिहास में इन्हीं का स्थान आने वाला है.’’

‘‘आप का मतलब सुमनजी को अपने बच्चे से प्यार नहीं है.’’

‘‘बच्चे से प्यार नहीं है, ऐसा तो नहीं हो सकता. मगर कुछ तो असामान्य अवश्य है जिसे तुम्हारी सुमन बहनजी सामान्य बनाने के चक्कर में स्वयं ही असामान्य व्यवहार कर रही थीं, क्योंकि जो सत्य है, उसे चीखचीख कर बताने की जरूरत नहीं होती. और फिर रिश्तों में तो दिखावे की जरूरत होनी ही नहीं चाहिए. अरे भई, पतिपत्नी, मांबेटे, सासबहू, भाईबहन, इन में अगर सब सामान्य है, तो है. प्यार होना चाहिए इन रिश्तों में जो कि प्राकृतिक भी है. उसे मुंह से कह कर बताने व दिखाने की जरूरत नहीं होती. अगर कोई चीखचीख कर कहता है कि उन में बहुत प्यार है, तो सम झो, कहीं कोई दरार अवश्य है.’’

पति के शब्दों पर विचार करतीकरती बीना फिर कमलाजी के बारे में सोचने लगी. मनुष्य लाख अपने आसपास से कट कर रहने का प्रयास करे, मगर एक सामाजिक जीव होने के नाते वह ऐसा नहीं कर सकता. उस का माहौल उसे प्रभावित किए बगैर रह ही नहीं सकता. सुमन कभी कालेज में अपने बेटे का नाम नहीं लेती थी, जबकि कमला बातबात में पति का बखान करती हैं. वह मन ही मन कमला और सुमन का व्यवहार मानसपटल पर लाती रही थी और उस मनोवैज्ञानिक तथ्य तक पहुंचना चाहती थी कि क्या वास्तव में कहीं कोई मिलावट है?

धीरेधीरे समय बीतने लगा था और वह कालेज के वातावरण में रह कर भी उस में पूरी तरह लिप्त न होने का प्रयास करने लगी थी.

एक दिन सब चाय पी रही थीं कि एकाएक कप की चाय छलक कर सुमन की शौल पर गिर गई.  झट से बाथरूम की ओर भागी थी वह.

‘‘नई शौल खराब हो गई,’’ नीमाजी ने कहा.

तब  झट से कमलाजी ने भी कहा था, ‘‘यह वही शौल है जो हम सब ने मिल कर सुमन की शादी पर उसे उपहार में दी थी.’’

उन की बातों को सुन कर बीना तब स्तब्ध रह गई थी. सुमन की शादी में शौल दी थी. यह शौल तो आजकल के फैशन की है, मतलब सुमन की शादी अभी हुई है.i]k8

बीना चुप थी. उसे बातोंबातों में पता चल गया था कि सुमन की शादी सालदोसाल पहले ही हुई है और वह 20 साल का जवान लड़का, अवश्य सुमन का सौतेला बेटा होगा. इसीलिए सुमन मेहमानों के सामने यही प्रमाणित करने में लगी रहती है कि उसे उस से बहुत प्यार है. मेरा बेटा, मेरा बच्चा कहतेकहते उस की जीभ नहीं थकती.

जीवन के इस दृष्टिकोण से बीना का पहली बार सामना हुआ था. वास्तव में इस जीवन के कई रंग हैं, यही कारण होगा जिस ने सुमन को इतना संजीदा व सम झदार बना दिया होगा.

इतनी अच्छी है सुमन, तभी तो सौतेले बेटे के सामने उस की इतनी प्रशंसा, इतना सम्मान कर रही थी. उस ने इसे दिखावा माना था. हो सकता है वहां दिखावे की ही जरूरत थी. कई बार मुंह से भी कहना पड़ता है कि किसी को किसी से प्यार है. जहां कुछ सहज न हो वहां असहज होना जरूरत बन जाती है.

सुमन से उस ने इस बारे में कोई बात नहीं की थी, परंतु उस के व्यवहार को वह बड़ी बारीकी से सम झने लगी थी. सुमन बेटे का स्वेटर बुन रही थी. जब पूरा हो गया तब अनायास उस के मुंह से निकल गया, ‘‘मैं नहीं चाहती, उसे कभी अपनी मां की कमी महसूस हो.’’

बीना उत्तर में कुछ नहीं कह पाई थी. आंखें भर आई थीं सुमन की.

‘‘सौतेली मां होना कोई अभिशाप नहीं होता. मेरा बच्चा आज मु झ पर जान छिड़कता है. यह डेढ़ साल की अथक मेहनत का ही फल है जो असीम सामान्य हो पाया है. बहुत मेहनत की है मैं ने इस बगैर मां के बच्चे पर, तब जा कर उसे वापस पा सकी हूं, वरना पागल ही हो गया था यह अपनी मां की मौत के बाद.’’

तब बीना ने सुमन का हाथ थपथपा दिया था.

‘‘बीना, हर इंसान का जीवन एक युद्ध है. हर पल स्वयं को प्रमाणित करना पड़ता है. यह जीवन सदा, सब के लिए आसान नहीं होता, किसी के लिए कम और किसी के लिए ज्यादा दुविधापूर्ण होता है. इस तरह कुछ न कुछ कहीं न कहीं लगा ही रहता है.’’

एक लंबी सांस ले कर सुमन बोली, ‘‘ये जो कमला हैं, जिन पर तुम सदा चिढ़ी सी रहती हो, इन के बारे में तुम क्या जानती हो?’’ सुमन की अर्थपूर्ण व धाराप्रवाह बातों को सुन कर बीना की सांस रुक गई थी.

‘‘6 साल का एक बच्चा है उन का. शादी के 4-5 महीने के बाद ही पति ने कमला को तलाक दे दिया, क्योंकि उस का संबंध किसी और युवती से था. कमला कितनी सुंदर हैं, अच्छे घर की हैं, पढ़ीलिखी हैं, मगर जीवन में सुख था ही नहीं.’’

बीना जैसे आसमान से नीचे गिरी. सुमन के शब्दों पर उसे विश्वास नहीं आया.

‘‘पति का नाम लेले कर अगर वे अपने मन का कोई कोना भर लेती हैं तो हमें भरने देना चाहिए. यहां हमारे कालेज में सभी जानते हैं कि कमलाजी तलाकशुदा हैं. मगर वे इस सचाई को नहीं जानतीं कि हम इस कड़वे सत्य को जानते हैं. अब क्यों उन का दिल दुखाएं, यही सोच कर उन की बातों को सुनाअनसुना कर देते हैं.’’

बीना रो पड़ी थी. सुमन के हिलते हुए होंठों को देखती रही थी. बातों के प्रवाह में समुन बहुतकुछ कहती रही थी, जिन्हें उस ने सुना ही नहीं था.

‘‘क्या सोच रही हो, बीना, मैं तुम्हारे सूट की तारीफ कर रही हूं और तुम…’’

कमलाजी के इसी अंदाज पर बीना कितनी पीछे चली गई थी. अपना व्यवहार  झटक दिया बीना ने. नई नजर से देखा उस ने कमलाजी को और मुसकरा कर उन का हाथ थपक दिया.

‘‘जी कमलाजी, आप ठीक कह रही हैं.’’

कभीकभी उसे सुमन बड़ी रहस्यमय लगती थी. ऐसा लगता था जैसे बहुतकुछ अपने भीतर वह छिपाए हुए है. सुमन किसी भी स्थिति की समीक्षा  झट से कर के दूध पानी अलगअलग कर सारा  झं झट ही समाप्त कर देती है.

आउटसोर्सिंग: क्या माता-पिता ढूंढ पाए मुग्धा का वर

मुग्धा के लिए गरमागरम दूध का गिलास ले कर मानिनी उस के कमरे में पहुंची तो देखा, सारा सामान फैला पड़ा था.

‘‘यह क्या है, मुग्धा? लग रहा है, कमरे से तूफान गुजरा है?’’

‘‘मम्मी बेकार का तनाव मत पालो. सूटकेस निकाले हैं, पैकिंग करनी है,’’ मुग्धा गरमागरम दूध का आनंद उठाते हुए बोली.

‘‘कहां जा रही हो? तुम ने तो अभी तक कुछ बताया नहीं,’’ मानिनी ने प्रश्न किया.

‘‘मैं आप को बताने ही वाली थी. आज ही मुझे पत्र मिला है. मेरी कंपनी मुझे 1 वर्ष के लिए आयरलैंड भेज रही है.’’

‘‘1 वर्ष के लिए?’’

‘‘हां, और यह समय बढ़ भी सकता है,’’ मुग्धा मुसकराई.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता. विवाह किए बिना तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘क्या कह रही हो मां? यह मेरे कैरियर का प्रश्न है.’’

‘‘इधर, यह तुम्हारे जीवन का प्रश्न है. अगले मास तुम 30 की हो जाओगी. कोई न कोई बहाना बना कर तुम इस विषय को टालती रही हो.’’

‘‘मैं ने कब मना किया है? आप जब कहें तब मैं विवाह के लिए तैयार हूं. पर अब प्लीज मेरी आयु के वर्ष गिनाने बंद कीजिए, मुझे टैंशन होने लगती है.

मुझे पता है कि अगले माह मैं 30 की हो जाऊंगी.’’

‘‘मैं तो तुझे यह समझा रही थी कि हर काम समय पर हो जाना चाहिए. यह जान कर अच्छा लगा कि तुम शादी के लिए तैयार हो. सूरज मान गया क्या?’’

‘‘सूरज के मानने न मानने से क्या फर्क पड़ता है?’’ मुग्धा मुसकराई.

‘‘तो विवाह किस से करोगी?’’

‘‘यह आप की समस्या है, मेरी नहीं.’’

‘‘क्या? तुम हमारे चुने वर से विवाह करोगी? अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम तो चांद से दूल्हों की लाइन लगा देते.’’

‘‘क्यों उपहास करती हो, मां. चांद सा दूल्हा तुम्हारी नाटी, मोटी, चश्मा लगाने वाली बेटी से विवाह क्यों करने लगा?’’

‘‘क्या कहा? नाटी, मोटी चशमिश? किसी और ने कहा होता तो मैं उस का मुंह नोच लेती. मेरी नजरों से देखो, लाखों में एक हो तुम. ऐसी बातें आईं कहां से तुम्हारे मन में? कुछ तो सोचसमझ कर बोला करो,’’ मानिनी ने आक्रोश व्यक्त किया.

मानिनी सोने चली गई थीं पर मुग्धा शून्य में ताकती बैठी रह गई थी. वह मां को कैसे बताती कि अपने लिए उपयुक्त वर की खोज करना उस के बस की बात नहीं थी. मां तो केवल सूरज के संबंध में जानती हैं. सुबोध, विशाल और रंजन के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. चाह कर भी वह मां को अपने इन मित्रों के संबंध में नहीं बता पाई. यही सब सोचती हुई वह अतीत के भंवर में घिरने लगी.

सुबोध उस का अच्छा मित्र था. कालेज में वे दोनों सहपाठी थे. अद्भुत व्यक्तित्व था उस का. पर मुग्धा को उस के गुणों ने आकर्षित किया था. सुबोध उस के लिए आसमान से चांदतारे तोड़ कर लाने की बात करता तो वह अभिभूत हो जाती.

पर जब वह मां और अपने पिता राजवंशी से इस संबंध में बात करने ही वाली थी कि सुबोध ने अपनी शादी तय होने का समाचार दे कर उसे आकाश से धरती पर ला पटका. सुबोध बातें तो उस के बाद भी बहुत मीठी करता था. उस के अनुसार प्यार तो अजरअमर होता है. वह चाहे तो वे जीवनभर प्रेमीप्रेमिका बने रह सकते हैं. सुबोध तो अपने परिवार से छिप कर उस से विवाह करने को भी तैयार था पर वह प्रस्ताव उस ने ही ठुकरा दिया था.

उस प्रकरण के बाद वह लंबे समय तक अस्वस्थ रही थी. फिर उस ने स्वयं को संभाल लिया था. मुग्धा चारों भाईबहनों में सब से छोटी थी. सब ने अपने जीवनसाथी का चुनाव स्वयं ही किया था. अब अपने ढंग से वे अपने जीवन के उतारचढ़ाव से समझौता कर रहे थे. भाईबहनों के पास न उस के लिए समय था न ही उस से घुलनेमिलने की इच्छा. तो भला उस के जीवन में कैसे झांक पाते. मां भी सोच बैठी थीं कि वह भी अपने लिए वर स्वयं ही ढूंढ़ लेगी.

विशाल और रंजन उस के जीवन में दुस्वप्न बन कर आए. दोनों ही स्वच्छंद विचरण में विश्वास करते थे. रंजन की दृष्टि तो उस के ऊंचे वेतन पर थी. उस ने अनेक बार अपनी दुखभरी झूठी कहानियां सुना कर उस से काफी पैसे भी ऐंठ लिए थे. तंग आ कर मुग्धा ने ही उस से किनारा कर लिया था.

सूरज उस के जीवन में ताजी हवा के झोंके की तरह आया था. सुदर्शन, स्मार्ट सूरज को जो देखता, देखता ही रह जाता. सूरज ने स्वयं ही अपने मातापिता से मिलवाया. उसे भी विवश कर दिया कि वह उस का अपने मातापिता से परिचय करवाए. कुछ ही दिनों में उस से ऐसी घनिष्ठता हो गई, मानो सदियों की जानपहचान हो. अकसर सूरज उस के औफिस में आ धमकता और वह सब से नजरें चुराती नजर आती.

मुग्धा अपने व्यक्तिगत जीवन को स्वयं तक ही सीमित रखने में विश्वास करती थी. अपनी भावनाओं का सरेआम प्रदर्शन उसे अच्छा नहीं लगता था.

‘मेरे परिचितों से घनिष्ठता बढ़ा कर तुम सिद्ध क्या करना चाहते हो?’

‘कुछ नहीं, तुम्हें अच्छी तरह जाननेसमझने के लिए तुम्हारे मित्रों, संबंधियों को जानना भी तो आवश्यक है न प्रिय,’ सूरज नाटकीय अंदाज में उत्तर देता.

‘2 वर्ष हो गए हमें साथ घूमतेफिरते, एकदूसरे को जानतेसमझते. चलो, अब विवाह कर लें. मेरे मातापिता बहुत जोर डाल रहे हैं,’ एक दिन मुग्धा ने साहस कर के कह ही डाला था.

‘क्या? विवाह? मैं ने तो सोचा था कि तुम आधुनिक युग की खुले विचारों वाली युवती हो. एकदूसरे को अच्छी तरह जानेसमझे बिना भला कोई विवाहबंधन में बंधता है?’ सूरज ने अट्टहास किया था.

‘कहना क्या चाहते हो तुम?’ मुग्धा बिफर उठी थी.

‘यही कि विवाह का निर्णय लेने से पहले हमें कुछ दिन साथ रह कर देखना चाहिए. साथ रहने से ही एकदूसरे की कमजोरियां और खूबियां समझ में आती हैं. तुम ने वह कहावत तो सुनी ही होगी, सोना जानिए कसे, मनुष्य जानिए बसे,’ सूरज कुटिलता से मुसकराया था.

‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ मुझ से ऐसी बात कहने का? मैं कोई ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं. 2 वर्षों में भी यदि तुम मेरी कमजोरियों और खूबियों को नहीं जान पाए तो भाड़ में जाओ, मेरी बला से,’ मुग्धा पूरी शक्ति लगा कर चीखी थी.

‘इस में इतना नाराज होने की क्या बात है, मुझे कोई जल्दी नहीं है, सोचसमझ लो. अपने मातापिता से सलाहमशविरा कर लो. मैं चोरीछिपे कोई काम करने में विश्वास नहीं करता. आज के अत्याधुनिक मातापिता भी इस में कोई बुराई नहीं देखते. वे भी तो अपने बच्चों को सुखी देखना चाहते हैं.’

‘किसी से विचारविनिमय करने की आवश्यकता नहीं है. मैं स्वयं इस तरह साथ रहने को तैयार नहीं हूं,’ मुग्धा पैर पटकती चली गई थी.

उधर, काम में उस की व्यस्तता बढ़ती ही जा रही थी. किसी और से मेलजोल बढ़ाने का न तो उस के पास समय था और न ही इच्छा. इसलिए जब मां ने उस के विवाह की बात उठाई तो उस ने सारा भार मातापिता के कंधों पर डालने में ही अपनी भलाई समझी.

मुग्धा करवटें बदलतेबदलते कब सो गई, पता भी न चला. प्रात: जब वह उठी तो मन से स्वस्थ थी.

मुग्धा ने अपनी ओर से तुरुप का पत्ता चल दिया था. उस ने सोचा था कि अब कोई उसे विवाह से संबंधित प्रश्न कर के परेशान नहीं करेगा.

पर शीघ्र ही उसे पता चल गया कि उस का विचार कितना गलत था.

मानिनी और राजवंशीजी भला कब चुप बैठने वाले थे. उन्होंने युद्धस्तर पर वर खोजो अभियान प्रारंभ कर दिया था. दोनों पतिपत्नी में मानो नवीन ऊर्जा का संचार हो गया था.

मित्रों, संबंधियों, परिचितों से संपर्क साधा गया. समाचारपत्रों, इंटरनैट का सहारा लिया गया और आननफानन विवाह प्रस्तावों का अंबार लग गया.

वर खोजो अभियान का पता चलते ही मुग्धा के बड़े भाईबहन दौड़े आए.

‘‘क्यों आप अपना पैसा और समय दोनों बरबाद कर रहे हैं. मुग्धा जैसी लड़की आप के द्वारा चुने गए वर से कभी विवाह नहीं करेगी,’’ मुग्धा के सब से बड़े भाई मानस ने तर्क दिया था.

‘‘इस समस्या का समाधान तो तुम मुग्धा से मिल कर ही कर सकते हो. हम ने उस की सहमति से ही यह कार्य प्रारंभ किया है,’’ राजवंशीजी का उत्तर था.

मुग्धा के औफिस से आते ही तीनों भाईबहनों ने उसे घेर लिया था, ‘‘यह क्या मजाक है? तुम अपने लिए एक वर भी स्वयं नहीं ढूंढ़ सकतीं?’’ मुग्धा की बहन मानवी ने प्रश्न किया था.

‘‘मैं बहुत व्यस्त हूं, दीदी. वर खोजो अभियान के लिए समय नहीं है. मम्मीपापा शीघ्र विवाह करने पर जोर दे रहे थे तो मैं ने यह कार्य उन्हीं के कंधों पर डाल दिया. कुछ गलत किया क्या मैं ने?’’

‘‘बिलकुल पूरी तरह गलत किया है तुम ने. बिना किसी को जानेसमझे केवल मांपापा के कहने से तुम विवाह कर लोगी? यह एक दिन का नहीं, पूरे जीवन का प्रश्न है यह भी सोचा है तुम ने,’’ उस के बड़े भैया मानस बोले थे.

‘‘मुझे लगा मम्मीपापा हमारे हितैषी हैं. जिस प्रकार वे इस प्रकरण में सारी छानबीन कर रहे हैं, मैं तो कभी नहीं कर पाती.’’

‘‘क्या छानबीन करेंगे वे, धनदौलत पढ़ाईलिखाई, शक्लसूरत, पारिवारिक पृष्ठभूमि इस से अधिक क्या देखेंगे वे. इस से भी बड़ी कुछ बातें होती हैं,’’ छोटे भैया, जो अब तक चुप थे, गुरुगंभीर वाणी में बोले थे.

‘‘आप शायद ठीक कह रहे हैं पर आप तीनों के वैवाहिक जीवन की भी कुछ जानकारी है मुझे. मानस भैया को नियम से हर माह प्लेटें, प्याले खरीदने पड़ते हैं. नीरजा भाभी को उन्हें फेंकने और तोड़ने का ज्यादा ही शौक है. तन्वी भाभी और अवनीश जीजाजी…’’

‘‘रहने दो, हम यहां अपने वैवाहिक जीवन की कमजोरियां सुनने नहीं, तुम्हें सावधान करने आए हैं. अपने जीवन के साथ यह जुआ क्यों खेल रही हो तुम?’’  मानवी थोड़े ऊंचे स्वर में बोली.

‘‘यह जीवन जुआ ही तो है. हमारा कोई भी निर्णय गलत या सही हो सकता है, इसीलिए मैं ने अपने विवाह की आउटसोर्सिंग करने का निर्णय लिया है,’’ मुग्धा ने मानो अंतिम निर्णय सुना दिया था.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. जब विवाह निश्चित हो जाए तो हमें बुलाना मत भूलना,’’ तीनों व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर अपनी दुनिया में लौट गए थे.

इधर, मानिनी और राजवंशीजी की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 3 माह बाद ही मुग्धा को आयरलैंड जाना था और एक माह बीतने पर भी कहीं बात बनती नजर नहीं आ रही थी.

यों उन के पास प्रस्तावों का अंबार लग गया था पर उन में से उन के काम के 4-5 ही थे. लड़के वालों को मुग्धा से मिलवाने और अन्य औपचारिकताओं का प्रबंध करते हुए उन के पसीने छूटने लगे थे पर बात कहीं बनती नजर नहीं आ रही थी.

उस दिन प्रतिदिन की तरह मुग्धा अपने औफिस गई हुई थी. राजवंशीजी जाड़े की धूप में समाचारपत्र में डूबे हुए थे कि द्वार की घंटी बजी.

राजवंशीजी ने द्वार खोला तो सामने एक सुदर्शन युवक खड़ा था. वे तो उसे देखते ही चकरा गए.

‘‘अरे बेटे तुम? अचानक इस तरह न कोई चिट्ठी न समाचार? अपने मातापिता को नहीं लाए तुम?’’

‘‘जी उन के आने का तो कोई कार्यक्रम ही नहीं था. मां ने आप के लिए कुछ मिठाई आदि भेजी है.’’

‘‘इस की क्या आवश्यकता थी, बेटा? तुम्हारी माताजी भी कमाल करती हैं. आओ, बैठो, मैं अभी आया,’’ युवक को वहीं बिठा कर वे लपक कर अंदर गए थे.

‘‘जल्दी आओ, जनार्दन आया है,’’ वे मानिनी से हड़बड़ा कर बोले थे.

‘‘कौन जनार्दन?’’ मानिनी ने प्रश्न किया था.

‘‘लो, अब यह भी मुझे बताना पड़ेगा? याद नहीं मुग्धा के लिए प्रस्ताव आया था. विदेशी तेल कंपनी में बड़ा अफसर है. याद आया? उन्होंने फोटो भी भेजा था,’’ राजवंशी ने याद दिलाया.

मानिनी ने राजवंशीजी की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. वे लपक कर ड्राइंगरूम में पहुंचीं, सौम्यसुदर्शन युवक को देख कर उन की बाछें खिल गईं.

युवक ने उन्हें देखते ही अभिवादन किया. उत्तर में मानिनी ने प्रश्नों की बौछार ही कर डाली, ‘‘कैसे आए? घर ढूंढ़ने में कष्ट तो नहीं हुआ? तुम्हारे मातापिता क्यों नहीं आए? वे भी आ जाते तो अच्छा होता, आदिआदि.’’

युवक ने बड़ी शालीनता से हर प्रश्न का उत्तर दिया. मानिनी उस की हर भावभंगिमा का बड़ी बारीकी से निरीक्षण कर रही थीं. मन ही मन वे उसे मुग्धा के साथ बिठा कर जोड़ी की जांचपरख भी कर चुकी थीं.

इसी बीच राजवंशीजी जा कर ढेर सारी मिठाईनमकीन आदि खरीद लाए थे. मानिनी ने शीघ्र ही चायनाश्ते का प्रबंध कर दिया था.

‘इतना सबकुछ? अंकल, आप को इतनी औपचारिकता की क्या आवश्यकता थी,’ युवक मेज पर फैली सामग्री को देख कर चौंक गया था.

‘‘बेटे, ये सब हमारे शहर की विशेष मिठाइयां हैं. ये खास कचौडि़यां हमारे शहर की विशेषता है,’’ मानिनी प्लेट में ढेर सी सामग्री डालते हुए बोली थीं.

‘‘मेरी मां ठीक ही कहती हैं, हम दोनों परिवारों के बीच जो प्यार है वह शायद ही कहीं देखने को मिले,’’ युवक प्लेट थामते हुए बोला. मानिनी उलझन में पड़ गईं पर शीघ्र ही उन्होंने संशय को दूर झटका और घर आए अतिथि पर ध्यान केंद्रित कर दिया.

‘‘अच्छा, आंटी, अब मैं चलूंगा. आप दोनों से मिल कर बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘अरे, हम ने मुग्धा को फोन किया है, वह आती ही होगी. उस से मिले बिना तुम कैसे जा सकते हो?’’

‘‘उस की क्या आवश्यकता थी? आप ने व्यर्थ ही मुग्धाजी को परेशान किया.’’

‘‘इस में कैसी परेशानी? तुम कौन सा रोज आते हो,’’ राजवंशीजी मुसकराए.

तभी मुग्धा की कार आ कर रुकी. मानिनी और राजवंशीजी लपक कर बाहर पहुंचे. मानिनी उसे पीछे के द्वार से अंदर ले गईं.

‘‘जल्दी से तैयार हो जा. यह जींस टौप बदल कर अच्छा सा सूट पहन ले, बाल खुले छोड़ दे.’’

‘‘क्या कह रही हो मम्मी. किसी से मिलने के लिए इतना सजनेसंवरने की क्या आवश्यकता है?’’

‘‘किसी से नहीं जनार्दन से मिलना है. तू क्या सोचती है बिना बताए वह तुझ से मिलने क्यों आया है?’’

‘‘मुझे क्या पता, मम्मी. मैं आप का फोन मिलते ही दौड़ी चली आई. मुझे लगा किसी की तबीयत अचानक बिगड़ गई है.’’

‘‘तबीयत बिगड़े हमारे दुश्मनों की. मैं जनार्दन के पास जा रही हूं. तुम जल्दी तैयार हो कर आ जाओ,’’ मानिनी फिर ड्राइंगरूम में जा बैठीं.

मुग्धा तैयार हो कर आई तो दोनों पतिपत्नी बाहर चले गए. दोनों एकदूसरे को जानसमझ लें तो बात आगे बढ़े. वे इस तरह घबराए हुए थे मानो साक्षात्कार देने जा रहे हों.

मुग्धा ड्राइंगरूम में बैठे युवक को अपलक ताकती रह गई.

‘‘आप का चेहरा बड़ा जानापहचाना सा लग रहा है. क्या हम पहले कभी मिल चुके हैं?’’ चायनाश्ते की मेज पर रखी केतली से कप में चाय डालते हुए मुग्धा ने प्रश्न किया.

‘‘जी हां, मैं रूपनगर से आया हूं, कुणाल बाबू मेरे पिता हैं,’’ चाय का कप थामते हुए वह युवक बोला.

‘‘कुणाल बाबू यानी दया इंटर कालेज के पिं्रसिपल?’’

‘‘जी हां, मैं उन का बेटा राजीव हूं. यहां अपने वीसा आदि के लिए आया हूं. मां ने आप लोगों के लिए कुछ मिठाई अपने हाथ से बना कर भेजी है.’’

‘‘अर्थात तुम जनार्दन नहीं राजीव हो. मम्मीपापा तुम्हें न जाने क्या समझ बैठे,’’ मुग्धा खिलखिला कर हंसी तो हंसती ही चली गई. राजीव भी उस की हंसी में उस का साथ दे रहा था.

‘‘मैं सब समझ गया. इसीलिए मेरी इतनी खातिरदारी हुई है.’’

‘‘तुम जनार्दन नहीं हो न सही, खातिर तो राजीव की भी होनी चाहिए. तुम ने हमारे यहां आने का समय निकाला यही क्या कम है?’’ कुछ देर में हंसी थमी तो मुग्धा ने कृतज्ञता व्यक्त की.

‘‘आप और मानस मेरी दीदी के विवाह में आए थे. हम ने खूब मस्ती की थी. उस बात को 7-8 वर्ष बीत गए.’’

‘‘तुम से मिल कर अच्छा लगा, आजकल क्या कर रहे हो. तब तो तुम आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहे थे?’’

‘‘जी, उस के बाद एमबीए किया. अब एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई है. बीच में 3-4 वर्ष एक प्राइवेट कंपनी में था.’’

‘‘क्या बात है. तुम ने तो कुणाल सर का सिर ऊंचा कर दिया,’’ मुग्धा प्रशंसात्मक स्वर में बोली.

‘‘आप से एक बात कहनी थी मुग्धाजी.’’

‘‘कहो न, क्या बात है?’’

‘‘क्या मैं आप के जीवन का जनार्दन नहीं बन सकता? मैं ने तो जब से अपनी दीदी के विवाह में आप को देखा है, केवल आप के ही स्वप्न देखता रहा हूं.’’

मुग्धा राजीव को अपलक निहारती रह गई.

पलभर में ही न जाने कितनी आकृतियां बनीं और बिगड़ गईं. दोनों ने आंखों ही आंखों में मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.

मानिनी और राजवंशीजी तो सबकुछ जान कर हैरान रह गए. उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ा कि वह जनार्दन नहीं राजीव था. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था, यही बहुत था.

अगले ही दिन कुणाल बाबू सपत्नीक आ पहुंचे थे. राजवंशीजी और मानिनी सभी आमंत्रित अतिथियों को रस लेले कर सुना रहे थे कि कैसे मुग्धा का भावी वर स्वयं ही उन के दर पर आ खड़ा हुआ था.

आधी रात को घर से नंगे पैर क्यों निकल गए अमिताभ

अमिताभ बच्चन आधी रात को अपने 81वें जन्मदिन का जश्न मनाने के लिए मुंबई स्थित अपने घर के बाहर एकत्र हुए सैकड़ों फैंस का स्वागत करने के लिए बाहर निकले. जब सुपरस्टार ने अपने हाथ जोड़कर जलसा के बाहर खड़ी भीड़ का अभिवादन किया तो जोरदार जयकारों और तालियों के साथ उनका स्वागत किया गया.

अमिताभ बच्चन अपने फैंस से मिलने के लिए अपने घर के बाहर निकाले रहे हैं. शोले अभिनेता एक ऊंचे मंच पर खड़े थे ताकि हर कोई उनकी एक झलक देख सके. सुरक्षा से घिरे हुए वह मुस्कुराए और अपने फैंस की ओर हाथ हिलाया.

आधी रात को जलसा के बाहर फैंस के साथ मनाया जन्मदिन

अमिताभ बच्चन 11 अक्टूबर, 2023 को 81 वर्ष के हो गए. अभिनेता ने मुंबई स्थित आवास, जलसा के बाहर अद्भूत उपस्थिति ने फैंस को खुश कर दिया, वहीं उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन और पोती आराध्या और नव्या भी दिखाई दी. तीनों को अपने फोन से तस्वीरें लेते देखा गया.

 

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ऐश्वर्या राय बच्चन, नव्या और आराध्या को वीडियो लेते और वीडियो कॉलिंग करते हुए देख सकते हैं क्योंकि बिग बी अपने जन्मदिन पर बाहर अपने लाखों फैंस का स्वागत कर रहे हैं. अमिताभ बच्चन ने जाहिर तौर पर अपना 81वां जन्मदिन परिवार के सदस्यों के साथ मनाया. उनकी बेटी श्वेता बच्चन नंदा ने उसी रात की एक तस्वीर पोस्ट की और उन्हें 81वें जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं.

 

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अमिताभ बच्चन की अपकमिंग फिल्में

81 साल की उम्र में भी बच्चन हमेशा की तरह सक्रिय हैं, जिससे साबित होता है कि उम्र उनके लिए सिर्फ एक नंबर है. उन्हें आखिरी बार सूरज बड़जात्या की फिल्म ऊंचाई में अनुपम खेर, परिणीति चोपड़ा और बोमन ईरानी के साथ देखा गया था. उनके अपकमिंग फिल्में कल्कि 2898 ई., सेक्शन 84 और गणपथ भी रिलीज के लिए तैयार हैं.

Amir Khan ने की नई फिल्म की घोषणा, ‘सितारे है जमीन पर’ से करेंगे दमदार कमबैक

बॉलीवुड के दमदार एक्टर आमिर खान जल्द ही पर्दे पर कमबैक करने जा रहे है. लाल सिंह चड्ढा बॉक्स ऑफिस पर पिटने के बाद से आमिर गायब हो गए. आमिर खान के फैंस उनकी अगली फिल्म का काफी लंबे से इंतजार कर रहे थे. फिलहाल आमिर खान प्रोड्यूसर की कुर्सी संभाले हुए है. हाल ही में उन्होंने लहौर 1947 की घोषणा की है अब एक्टर ने एक और फिल्म की घोषणा कर दी है. वह अपनी फिल्म साल 2024 में बड़े पर्दे पर लाएंगे. इस फिल्म के साथ आमिर अक्षय कुमार की बेलकम 3 को टक्कर देंगे.

आमिर की फिल्म का नाम आया सामने

बॉलीवुड में मिस्टर परफेक्शनिस्ट के नाम से जाने वाले आमिर खान अपनी फिल्मों में बारीकियों पर काम करते है. आमिर खान साल 2024 में अक्षय कुमार की बेलकम 3 टक्कर देने के लिए क्रिसमस पर अपनी नई फिल्म से वापसी कर रहे है. इसी बीच उनके फैंस खुशी झूम उठे है. आमिर ने मीडिया इंटरव्यू में कहा कि, वो एक एक्टर की तौर पर फिल्म ‘सितारे है जमीन पर’ से वापसी करने वाले है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि फिल्म ‘तारे जमीन पर’  दर्शकों को खूब रुलाया था और अब ‘सितारे है जमीन पर’ आपको खूब हंसाएगी. सबको जमकर हंसाने वाली है.’ आमिर खान के इस बयान ने साफ कर दिया है कि वह कॉमेडी फिल्म से बॉक्स ऑफिस पर वाससी करने वाले हैं.

आपको बता दें, आमिर खान लास्ट फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ में नजर आए थे. जो बॉक्स ऑफिस पर खासा कमाई नहीं कर सकी. इस फिल्म में आमिर खान के साथ करीना कपूर अहम रोल में थी.

बेटे को लेकर कही ये बात

मीडिया इंटरव्यू के दौरान आमिर ने अपनी फिल्म के साथ-साथ बेटे के बारे में भी बताया. एक्टर ने कहा कि उनके बेटे जुनैद बॉलीवुड में निर्माता फिल्म ‘प्रीतम प्यारे से’ डेब्यू करेंगे. यह बिल्कुल तय कि आमिर के बेटे जुनैद पर्दे के पीछे काम करेंगे वह एक्टिंग नहीं करेंगे.

मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द है मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल

मुझे खुद को फिट रखनेके लिए दौड़ना पसंद है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द, खिंचावऔर कड़ापन महसूस हो रहा है.मैं क्या करूं?

जवाब

ऐसा लगता है कि ऊंचीनीची सतह पर दौड़ने या किसी और कारण से आप के टखने चोटिल हो गए हैं. यह समस्या टखनों की हड्डियों के फ्रैक्चर होने या मांसपेशियों, लिगामैंट्स और टैंडन के क्षतिग्रस्त होने से होती है. टखनों में होने वाली समस्याओं को स्पोर्ट्स इंजरी कहा जाता है क्योंकि इस के अधिकतर मामले खिलाडि़यों में ही देखे जाते हैं. अगर समस्या लगातार बनी हुई है तो किसी और्थोपैडिक सर्जन को दिखाएं. पहले नौनसर्जिकल उपायों से उपचार किया जाता है. जब इन से मरीज को आराम नहीं मिलता तो एंकल ऐंथ्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा टखने की सर्जरी की जाती है. यह एक मिनिमली इनवेसिव सर्जरी है जो काफी आसान और दर्दरहित होती है.

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मैं 55 वर्षीय बैंककर्मी हूं. मु   झे औस्टियोपोरोसिस है. अपनी हड्डियों की मजबूती के लिए मैं क्या उपाय कर सकती हूं?

जवाब

हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए आप संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें जिस में सब्जियां, फल, दूध व दुग्ध उत्पाद, सूखे मेवे, अंडे, साबूत अनाज और दालें शामिल हों. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज और वाक करें. इस से बोन डैंसिटी बढ़ती है. रोज कम से कम 20-30 मिनट सुबह की कुनकुनी धूप लें. इस से आप को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाएगा जो आप की हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. अगर आप धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं तो बंद कर दें. नियमित अंतराल पर अपना बोन डैंसिटी टैस्ट कराती रहें.

सवाल

मैं 35 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे नी आर्थ्राइटिस है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या बिना सर्जरी के इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है?

नी आर्थ्राइटिस यानी घुटनों का आर्थ्राइटिस एक लगातार गंभीर होती समस्या है क्योंकि समय के साथ घुटनों के जोड़ों की खराबी बढ़ती जाती है. कई कारण हैं जो घुटनों के आर्थ्राइटिस का कारण बन सकते हैं जैसे घुटनों में लगी कोई चोट, गठिया, औटो इम्यून डिजीजेज आदि. अगर आप की समस्या ज्यादा गंभीर नहीं है तो आप अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं. जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाएं, मोटापे को नियंत्रण में रखें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. डायग्नोसिस के बाद उचित उपचार करने में देरी न करें तो बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और किसी हद तक घुटना प्रत्यारोपण से बचा जा सकता है.

-डा. ईश्वर बोहराजौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन,

बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Festival Special: इन 11 Makeup टिप्स से बनाएं लुक को खास

हर महिला की ख्वाहिश होती है कि वह सब से सुंदर दिखे. महिलाओं की इसी चाह को पूरा करने के लिए पेश हैं कुछ खास मेकअप टिप्स:

1. चीक्स पर रैड या पीच शेड का ब्लशऔन लगाएं. रात की पार्टी के वक्त हलका गहरा ब्लशर लगा सकती हैं.

2. नाखूनों पर नेल पेंट लगाने के बजाय नेल आर्ट बनाना भी डिफरैंट आइडिया रहेगा. अपनी मनचाही या दूसरी कोई ट्रैंडी नेल आर्ट जैसे पर्ल, ग्लिटरी, ब्लैक ऐंड व्हाइट इत्यादि बनवा सकती हैं.

3. परफैक्ट मेकअप के लिए जरूरी है क्लीन स्किन. ऐसे में अपनी स्किन को क्लींजिंग मिल्क की मदद से क्लीन कर लें. इस के बाद पोर्स को बंद करने के लिए किसी अच्छी क्वालिटी के टोनर से स्किन टोन कीजिए. सर्द हवाएं स्किन को रूखा बना देती हैं, इसलिए मेकअप से लगभग 15 मिनट पहले स्किन को मौइश्चराइजर से मौइश्चराइज कर लें. ऐसा करने से स्किन स्मूद हो जाएगी और मेकअप भी अच्छी तरह स्प्रैड होगा.

4. चेहरे पर मौइश्चराइजर मेनटेन करने के लिए सिलिकोन बेस्ड प्री बेस लगाएं और फिर मूज लगा कर चेहरे को फ्लालैस लुक दें. मूज चेहरे पर लगाते ही पाउडर फौर्म में तबदील हो जाता है. ऐसे में ऊपर से पाउडर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.

5. मेकअप में सब से पहले थीम को ध्यान में रखें. आप किसी पार्टी में जा रही हैं और अगर पार्टी का कोई थीम है, तो मेकअप उसी थीम पर फोकस करें.

6. आंखों के लिए कुछ डिफरैंट चुनना चाहिए. ज्यादा कुछ नहीं बस हलका सा बेसिक आईशैडो लगाने के बाद ग्लिटर कलर से आईलाइन बनाएं और उस पर ब्लैक आईलाइनर लगाएं ताकि ब्लैक लाइनर के ठीक ऊपर ग्लिटर लाइनर दिखाई दे. अब सफेद काजल लगाने के बाद बेसिक आईशैडो का एक कोट ब्रश की सहायता से आंखों के ठीक नीचे काजल की तरह लगाएं.

7. अगर आप ईवनिंग पार्टी के लिए तैयार हो रही हैं तो आईज को स्मोकी लुक दे सकती हैं, क्योंकि इस मौके पर ज्यादातर महिलाएं रैड कलर पहनती हैं. ऐसे में आंखों पर रैड शेड लगाएं और उसे ब्लैक के साथ मर्ज कर लें. फेस मेकअप में लाइनर को फोकस में रखें.

8. आंखों से बाहर निकाल कर लाइनर लगाएं. ब्लैक विंग्ड लाइनर से आईज को कैट लुक दें और रात में शाइन के लिए आईज के आउटर कौर्नर पर स्वरोस्की स्टड लगा लें. इस में ड्रैस से मैच करते स्टोन का यूज कर सकती हैं. बोल्ड काजल और डबल कोट मसकारे से आंखों को सजाना न भूलें.

9. खास सैलिब्रेशन में सभी महिलाएं बेहद स्टाइलिश गाउन या अन्य वैस्टर्न ड्रैस पहनती हैं, इसलिए मेकअप भी इस दिन कुछ स्टन्निंग सा होना चाहिए. दिन के वक्त आंखों पर लाइट जैसे कौपर या गोल्डन शेड लगाएं और आईलिड पर ब्लैक लाइनर, कलरफुल लुक चाहती हैं तो ऐमरल्ड ग्रीन, टर्क्वाइज ब्लू, ब्राउन या पर्पल शेड का लाइनर लगा सकती हैं.

10. अगर आप ने डार्क स्मौकी मेकअप किया है, तो लिप्स पर रैडिश टोन लेता न्यूट्रल शेड जैसे पीच या कौपर कलर की लिपस्टिक लगाएं और लिप्स को लिपग्लौस से सील कर दें. ऐसा करने से लिप्स शाइन भी करेंगे.

11. अपनी ड्रैस के अनुसार हेयरस्टाइल बनाएं. अगर हमेशा बालों को खुला रखती हैं, तो इस बार फ्रैंच बन बनाएं. डिजाइनर चोटी भी बना सकती हैं. बालों को खुला रखना चाहें तो कर्ल करना भी एक बढि़या विकल्प है.

-भारती तनेजा

(डाइरैक्टर औफ एल्पस ब्यूटी क्लीनिक ऐंड ऐकैडमी)

Festival Special: इस त्योहार सजे घरसंसार

फैस्टिव सीजन में हर कोई अपना घर खूबसूरत सजावट और रोशनी से गुलजार करना चाहता है. लेकिन डैकोर के सही तरीकों व तकनीकों के बिना घर की सजावट अधूरी ही रहती है. ऐसे में इस त्योहार पर अपने आशियाने में कैसे लगाएं चारचांद, बता रहे हैं राजेश कुमार.

घर की सजावट से जुड़ी 3 चीजें अहम हैं. आप की पसंद, घर का साइज और आप का बजट. मार्केट में ऐसे औप्शंस की कमी नहीं है जो आप को कन्फ्यूज कर देंगे. जरूरी नहीं है घर की सजावट में सिर्फ नई चीजें ही इस्तेमाल की जाएं, कुछ पुरानी और विंटेज कलैक्शन टाइप चीजें भी आप के घर को एकदम नया लुक दे सकती हैं. दीवाली के मौके पर सजावट के लिए जरूरी सामान की बात करें तो इस में कैंडल्स, फल, दीए, बंदनवार, रंगोली, लाइटिंग, मोटिफ्स, फ्लोटिंग कैंडल्स के अलावा घर के इंटीरियर के लिए रंगीन कुशंस, परदे, प्लांट्स और रंगबिरंगी इलैक्ट्रिक ?ालरें प्रमुख तौर पर काम आती हैं. इन के इर्दगिर्द ही घर की सारी साजसज्जा सिमटती है.

रोशनी से गुलजार आशियाना

दीवाली में सजावट की सब से अहम चीज है रोशनी. चूंकि यह त्योहार ही रोशनी का है इसलिए इस दिन दीप, कैंडल्स और इलैक्ट्रिक लाइट्स वगैरह हर घरमें जगमगाहट भरती हैं. लाइटिंग काफी महत्त्वपूर्ण है, ध्यान रखें कि यह खूबसूरत तो हो लेकिन भारीभरकम रंगों व चुभने वाले प्रकाश वाली न हों. बैडरूम घर का मुख्य भाग होता है, वहां सफेद रोशनी ही करें. इस से आप रिलैक्स फील करेंगे.

घर के किसी कोने को उभारने के लिए ट्रैक लाइट जबकि स्टाइलिश लुक के लिए फेयरी लाइट्स का विकल्प ठीक होता है. इस के अलावा घर के हर कोने में रोज जलने वाले दीए मिट्टी के बने हों और उन पर कुछ पेंट या ड्राइंग कर उन्हें नया लुक दें. दीए के साथसाथ कैंडल की जगमगाहट भी जरूरी है. इसलिए कई रंगों और डिजाइंस की कैंडल्स प्रयोग में लाएं, घर जगमगा उठेगा. लडि़यों और दीयों का कौंबिनेशन भी बनाया जा सकता है. इस का इफैक्ट अच्छा लगता है.

घर का बदलें इंटीरियर

दीवाली पर घर सिर्फ पेंट करने से ही नहीं चमकता. आप घर की दीवारों को कई तरह के वाल पेपर्स और सीनरी के जरिए भी नया लुक दे सकते हैं. फर्नीचर के साथ भी कई क्रिएटिव ऐक्सपैरीमैंट कर सकते हैं. मसलन, ऐंटीक लुक का फर्नीचर आजमाएं. कोई कलर थीम चुन लें और फिर उसी के अनुसार घर की साजसज्जा करें. मैचिंग का विशेष ध्यान रखें. नक्काशीदार सामान के जरिए भी घर को डिफरैंट लुक दे सकते हैं. कुछ और तरीके भी अपनाए जा सकते हैं, मसलन, घर के पायदान बदल कर नए लगाएं, सोफों के कुशन कवर बदलें, फर्नीचर को रिअरेंज करें, घर के इनडोर प्लांट्स के गमले पेंट करें, परदों का कौंबिनेशन और कलर थीम बदलें, किचन को मौड्यूलर अंदाज में सजाएं.

फूलों से सजेमहके घर

रंग और रोशनी के अलावा फूल डैकोरेशन में नया आकर्षण जोड़ते हैं. दीए तो रात में ही जगमगाते हैं जबकि फूल तो घर को दिनरात सजाते व महकाते रहते हैं. फूलों को घर में कई तरह से सजाया जा सकता है. पानी के टब से ले कर थाली तक, फूल अपने रंग और खुशबू से घर का कोनाकोना महका देते हैं. स्टील के प्लैटर के किनारे पर ताजा फूल रखें और फिर मिठाइयां सजा दें या फिर बेंत की टोकरी ले कर उस में नीचे फूल सजा कर, अलगअलग तरह की ढेर सारी चौकलेट्स भर कर मेज पर रख सकते हैं.

किसी पानी भरे गुलदान में किनारों पर ही फूल या पंखडि़यां बिछा कर बीचोंबीच पानी पर तैरते दीए या कैंडल रखने से रोशनी, रंग और खुशबू से आप का आशियाना अलग ही रंगत में रोशन होगा. हां, सजाने से पहले फूलों को ताजा बनाए रखने के लिए फूलों की डंडियों को किसी गहरे बरतन में पानी में डुबो कर रखें, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा पानी सोख सकें. जब आप इन की डंडियों को अरेंजमैंट के लिए काटेंगी तो इन का नीचे से जल्दी सूखना शुरू हो जाएगा.

पुराने कांच के डिजाइनर गिलासों, पौट या होल्डर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. फूलों की सजावट के लिए रचनात्मकता और थोड़े से तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है. सजावट के बाद फूलों की नमी बनाए रखने के लिए उन पर पानी छिड़कते रहें.

रंग, रंगोली और शौपिंग

बिना रंगोली के दीवाली की हर सजावट अधूरी है. आमतौर पर रंगोली बनाने में कलई का सफेद रंग, गेरू का लाल रंग, पीली मिट्टी का पीला रंग व कई रंगबिरंगे गुलाल उपयोग में ला सकते हैं. आजकल बाजार में मिलने वाली रैडीमेड रंगोलियां भी इस्तेमाल की जा सकती हैं. मुख्यद्वार या फर्श का एक छोटा हिस्सा इस्तेमाल करें और गीली चौक से रंगोली का आकार बनाएं. इस के बाद गुलाल के विभिन्न रंगों व चावलों से उसे सजाएं. चावलों को कई रंगों में रंग कर भी रंगोली बना सकते हैं. समतल रंगोली बनाएं, स्थान को अच्छी तरह धो कर सुखा लें. अगर आप को रंगोली बनानी नहीं आती तो कोई बात नहीं, मार्केट में डिजाइनर खांचे मौजूद हैं.

रही बात खरीदारी की, तो शौपिंग लोकल मार्केट के बजाय थोक बाजारों से करें. इन जगहों से सस्ता और वैरायटी वाला सामान मिलेगा. सजावटी कैंडल्स जहां 50 से 350 रुपए के बीच मिलती हैं वहीं रंगोली के पैटर्न स्टिकर्स आप को महज 15 से 20 रुपए में मिल जाएंगे. इस के अलावा सजावट की लरें और कैंडल भी 50 रुपए से शुरू हो कर 800 रुपए तक में मिल जाएंगी. दीवारों पर लगाने के लिए चाइनीज 3डी पेंटिंग्स भी 40 रुपए से ले कर 500 रुपए तक में खरीदी जा सकती हैं.

कुल मिला कर इस दीवाली पर आप अपने घर को बिना किसी इंटीरियर डिजाइनर की मदद के भी रंग, रोशनी, और फूलों से न सिर्फ महका व सजा सकते हैं बल्कि इस त्योहार को सजावट के खास अंदाज से कुछ अलग और यादगार भी

Festival Special: ऐसे करें नकली मिठाई की पहचान

अभी भी त्योहार का मजा मिठाइयों से ही आता है. केवल खुद खाने में ही नहीं, फैस्टिवल में मिठाइयां उपहार में भी देने का रिवाज है. दशहरा से ले कर दीवाली तक मिठाइयों की खरीदारी सब से अधिक होती है. इन की दुकानों के आगे लगी भीड़ इस बात की गवाह होती है कि लोग फैस्टिवल सीजन में कितनी मिठाई खरीदते हैं. मगर मिठाई की बढ़ी हुई खपत को पूरा करने और ज्यादा मुनाफे के लिए फैस्टिव सीजन में नकली मिठाई बनाने का काम बढ़ जाता है. मिठाई में सब से ज्यादा खोया ही नकली यानी मिलावटी होता है. इस के अलावा मिठाई में डाला जाने वाला रंग भी नकली होता है. बेसन और बूंदी से तैयार होने वाले लड्डू और बालू शाही तक मिलावटी हो जाती हैं.

यही वजह है कि अब मिठाई कम खरीदी जा रही है. अब ज्यादातर लोग ड्राईफ्रूट्स, चौकलेट और मेवे से तैयार मिठाई उपहार में देने लगे हैं. यह महंगी होने के बावजूद लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है.

मिलावट की वजह से फैस्टिवल में मिठाई का मजा किरकिरा न हो ऐसे में उसे खाने से पहले उस की जांच कर लेनी जरूरी होती है. अब यह जांच आप खुद भी कर सकते हैं, जिस से सेहत को नुकसान नहीं होता है.

1. कैसे बनता है नकली खोया

1 किलोग्राम दूध से सिर्फ 200 ग्राम खोया ही निकलता है. इस से खोया बनाने वालों और व्यापारियों को ज्यादा फायदा नहीं हो पाता. अत: ज्यादा लाभ के लिए मिलावटी खोया बनाया जाता है. इसे बनाने में शकरकंदी, सिंघाड़े का आटा, आलू और मैदे का इस्तेमाल होता है. आलू का प्रयोग सब से ज्यादा होता है.

नकली खोए से बनने वाली मिठाई जल्दी खराब हो जाती है. इस के अलावा नकली खोया बनाने में स्टार्च, आयोडीन और आलू इसलिए मिलाया जाता है ताकि खोए का वजन बढ़ जाए. इस के अलावा खोए का वजन बढ़ाने के लिए उस में आटा भी मिलाया जाता है.

नकली खोया असली खोए की तरह दिखे इस के लिए उस में कैमिकल भी मिलाया जाता है. कुछ दुकानदार मिल्क पाउडर में वनस्पति घी मिला कर खोया तैयार करते हैं. इस के लिए सिंथैटिक दूध का प्रयोग किया जाता है. फैस्टिवल से पहले बाजार में सिंथैटिक दूध का भी आतंक बढ़ जाता है.

सिंथैटिक दूध बनाने के लिए सब से पहले उस में यूरिया डाल कर उसे हलकी आंच पर उबाला जाता है. उस के बाद उस में कपड़े धोने वाला डिटर्जैंट, सोडा स्टार्च, वाशिंग पाउडर आदि मिलाया जाता है. उस के बाद थोड़ा असली दूध भी मिलाया जाता है. इस दूध से तैयार होने वाला खोया सब से खराब होता है.

2. शरीर को नुकसान देती मिलावटी मिठाई

मिलावटी खोए और सिंथैटिक दूध से फूड पौइजनिंग हो सकती है. इस से उलटी और दस्त की शिकायत भी हो सकती है. ये किडनी और लिवर पर भी बहुत असर डालते हैं. इन से स्किन से जुड़ी बीमारी भी हो सकती है. अधिक मात्रा में नकली मावे से बनी मिठाई खाने से लिवर को भी नुकसान पहुंच सकता है. लिवर का साइज बढ़ जाता है. इस से कैंसर तक का खतरा हो सकता है. ऐसे में यह जरूरी है कि खाने से पहले असली दूध और नकली दूध में फर्क करना समझ लें. इस के लिए थोड़ा सजग रह कर असली और नकली दूध में फर्क कर सकते हैं.

सिंथैटिक दूध से साबुन जैसी गंध आती है, जबकि असली दूध में कोई खास गंध नहीं आती. असली दूध का स्वाद हलका मीठा होता है जबकि नकली दूध का स्वाद डिटर्जैंट और सोडा मिला होने की वजह से कड़वा हो जाता है.

इस के साथ ही साथ असली दूध स्टोर करने पर अपना रंग नहीं बदलता जबकि नकली दूध कुछ वक्त के बाद पीला पड़ने लगता है. अगर असली दूध में यूरिया भी हो तो यह हलके पीले रंग का ही होता है. वहीं अगर सिंथैटिक दूध में यूरिया मिलाया जाए तो यह गाढ़े पीले रंग का दिखने लगता है. अगर असली दूध को उबालें तो उस का रंग नहीं बदलता, वहीं नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है. असली दूध को हाथों के बीच रगड़ने पर कोई चिकनाहट महसूस नहीं होगी. मिलावट का यह महाजाल त्योहारों के मौसम में खासतौर से रचा जाता है. इस में मिठाई, मावा, दूध, पनीर और घी के तो पूरे पैसे लिए जाते हैं, लेकिन इस के बदले मिलती बीमारियां हैं.

3. आसान है असली-नकली की पहचान

दूध में मिलावट की पहचान करना आसान है. थोड़े से दूध में बराबर मात्रा में पानी मिलाएं. अगर उस में झाग आए तो समझ लें कि इस में डिटर्जैंट की मिलावट है. सिंथैटिक दूध की पहचान करने के लिए दूध को हथेलियों के बीच रगड़ें. अगर साबुन जैसा लगे तो दूध सिंथैटिक हो सकता है. सिंथैटिक दूध गरम करने पर हलका पीला हो जाता है.

ऐेसे ही मिलावटी खोए की पहचान के लिए फिल्टर पर आयोडीन की 2-3 बूंदें डालें. अगर वह काला पड़ जाए तो समझ लें कि मिलावटी है. खोया अगर दानेदार है तो वह मिलावटी हो सकता है. इस की पहचान के लिए उंगलियों के बीच उसे मसलें. दाने जैसे लगें तो खोया मिलावटी है.

मिलावटी घी की पहचान के लिए उस में कुछ बूंदें आयोडीन टिंचर की मिला दें. अगर घी का रंग नीला हो जाए तो वह मिलावटी हो सकता है.

पनीर को पानी में उबाल कर ठंडा कर लें. इस में कुछ बूंदें आयोडीन टिंचर की डालें. अगर पनीर का रंग नीला हो जाए तो समझ लें कि वह मिलावटी है. मिठाई पर चढ़े चांदी के वर्क में ऐल्यूमिनियम धातु की मिलावट की जाती है, जो सेहत के लिए अच्छी नहीं होती. ऐल्यूमिनियम की मिलावट की आसानी से जांच की जा सकती है. चांदी के वर्क को जलाने से वह उतने ही वजन का छोटे से गेंद जैसा हो जाता है. अगर वर्क मिलावटी हुआ तो वह स्लेटी रंग का जला हुआ कागज बन जाएगा.

चौकलेट, कौफी या चौकलेट पाउडर में चिकोरी और गुड़ की मिलावट की जाती है. चौकलेट का पाउडर बना लें और उस पाउडर पर 1 गिलास पानी छिड़कें. कौफी और चौकलेट पाउडर पानी के ऊपर तैरने लगेगा और चिकोरी नीचे बैठ जाएगी. यही हाल गुड़ की मिलावट का है. पानी में चौकलेट डालिए. अगर गुड़ हुआ तो चिकना मीठा सा लिसलिसा पदार्थ पानी में घुल जाएगा.

Festive Special: ब्रेड क्रम्ब्स से बनाएं ये टेस्टी डिशेज

ब्रेड का उपयोग प्रत्येक घर में किया जाता है. आजकल तो मैदा से बनने वाली प्लेन ब्रेड के अतिरिक्त गार्लिक, आटा, ब्राउन और  मल्टीग्रेन जैसी अनेकों ब्रेड बाजार में उपलब्ध है. अक्सर ब्रेड से डिशेज बनाते समय उनके किनारों को काटकर अलग कर दिया जाता है. कई बार तो ये ब्रेड के किनारे  इतनी अधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं कि समझ ही नहीं आता कि इनका क्या करें. आमतौर पर ब्रेड के इन किनारों को पीसकर ब्रेड बना लिया जाता है और फिर इन ब्रेड क्रम्ब्स को डिश के ऊपर लपेटने या डिश को थिक टैक्सचर देने के लिए किया जाता है परन्तु आज हम आपको ब्रेड क्रम्ब्स से बनने वाली दो डिशेज के बारे में बता रहे हैं जिन्हें बनाना तो बेहद आसान है ही साथ ही ये बहुत स्वादिष्ट भी बनतीं हैं. तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

-ब्रेड क्रम्ब्स गुलाबजामुन

कितने लोंगों के लिए          4

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

ब्रेड क्रम्ब्स  2 कटोरी

शकर 1 कटोरी

पानी    1/2 कटोरी

घी    पर्याप्त मात्रा में

ताजी मलाई युक्त दूध  3/4 कटोरी

बारीक कटी मेवा  1टेबलस्पून

इलायची पाउडर  1/2 टीस्पून

विधि

ब्रेड क्रम्ब्स में दूध को धीरे धीरे मिलाकर आटे जैसा गूंथ लें. अब शकर में पानी और इलायची पाउडर डालकर चिपचिपी सी चाशनी तैयार करें. तैयार ब्रेड के मिश्रण में से छोटी सी लोई लेकर हथेली पर फैलाएं और बीच में थोड़ी सी कटी मेवा रखकर चारों तरफ से अच्छी तरह बंद कर दें.इसी प्रकार सारे बॉल्स तैयार कर लें. गर्म घी में इन बॉल्स को डालकर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक तलें. गर्म गर्म तले गुलाबजामुन को चाशनी में डालें. 2 घण्टे के बाद चाशनी में से निकालकर सर्व करें.

-ब्रेड क्रम्ब्स मठरी

कितने लोंगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

ब्रेड क्रम्ब्स  1 कटोरी

सूजी  1/4 कटोरी

गेहूं का आटा   1/4 कटोरी

मैदा 1/4 कटोरी

नमक  स्वादानुसार

अजवाइन  1/4 टीस्पून

बारीक कटा प्याज  1

अदरक, हरी मिर्च, लहसुन पेस्ट 1टीस्पून

कसूरी मेथी  1 टेबलस्पून

तलने के लिए तेल   पर्याप्त मात्रा में

विधि

ब्रेड क्रम्ब्स में मैदा, बेसन, आटा सभी मसाले, नमक, अदरक, लहसुन हरी मिर्च पेस्ट, 2 टेबलस्पून तेल और कसूरी मैथी को भली भांति मिलाएं. धीरे धीरे पानी डालते हुए कड़ा आटा गूंथे. इसे ढककर आधे घण्टे के लिए रख दें. आधे घण्टे बाद बड़ी सी लोई लेकर चकले पर बेलें. मनचाहे आकार में मठरी काटकर गर्म तेल में मद्धिम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकालें. एयरटाइट जार में भरकर प्रयोग करें.

लौट जाओ सुमित्रा: भाग 1- उसे मुक्ति की चाह थी पर मुक्ति मिलती कहां है

‘‘मैं मुक्ति चाहती हूं.’’

‘‘किस से?’’

‘‘सब से.’’

‘‘मनुष्यों से, अपने परिवेश से या भौतिक वस्तुओं से?’’

‘‘अपने परिवेश से, उस में रहने वाले लोगों से.’’

‘‘यानी सुखसुविधाएं नहीं छोड़ना चाहती, केवल लोगों का त्याग करना चाहती हो. इस के पीछे तुम्हारा क्या कोई खास मकसद है?’’

‘‘मैं उन्हें त्यागना नहीं चाहती. न इसे छोड़ना कह सकते हैं. केवल मुक्ति चाहती हूं ताकि छू सकूं, उन्मुक्त आकाश को.’’

‘‘इस के लिए किसी का त्याग करना आवश्यक नहीं है, साथ रहतेरहते भी खुली हवा को भीतर समेटा जा सकता है. कौन रोकता है तुम्हें आकाश छूने से. शायद तुम्हारी सोच में ही जंग लग गया है या तुम मुक्ति की परिभाषा से अपरिचित हो.’’

‘‘नहीं, यह सच नहीं है. उन्मुक्त आकाश को छूने के लिए अपने ही पैरों की जरूरत होती है, किसी सहारे या बैसाखी की नहीं. इसलिए मुझे मुक्ति चाहिए. संबंधों की तटस्थता या घुटन नहीं.’’

‘‘यह तो पलायन होगा.’’

‘‘हां, हो भी सकता है, और नहीं भी.’’

‘‘यानी?’’

‘‘मुक्ति मार्ग भी तो है, दिशा भी तो है. फिर पलायन कैसा?’’ निस्पृहता का गुंजन उस की आवाज में निहित था.

‘‘फिर घरपरिवार, पति, बच्चे, समाज का क्या होगा, उन के प्रति क्या तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है?’’

‘‘जिम्मेदारी अशक्त व बेसहारों की होती है. वे सक्षम हैं, अपनी जरूरतें स्वयं पूरी कर सकते हैं.’’

‘‘क्या तुम्हें उन की जरूरत नहीं?’’

‘‘कभी महसूस होती थी, पर अब नहीं. सब अपनाअपना जीवन जीना चाहते थे. कोई अतिक्रमण, न व्यवधान अपेक्षित है. फिर निरर्थक ही क्यों अपनी उपस्थिति को ले कर जीऊं.’’

‘‘निरर्थकता कैसी, जगह स्थापित करनी पड़ती है, अपनी उपस्थिति का बोध कराना पड़ता है, वही तो संबल होती है. पलायन करने से क्या निरर्थकता का बोध कम हो जाएगा? नहीं, बल्कि और बढ़ेगा ही. पीछे भागने के बजाय अपने को पुख्ता कर सब में आत्मविश्वास बांटो, फिर देखना तुम कैसे महत्त्वपूर्ण हो जाओगी.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होता. यह मात्र स्वयं को छलने का प्रयास है. अपने ही अस्तित्व का बोध कराने के लिए अगर संघर्ष करना पड़े तो उस की क्या महत्ता रह जाएगी.’’

‘‘यह छल नहीं है, बल्कि तुम्हारे भीतर का कोई भटकाव है वरना जीवन के प्रति इतनी घोर निराशा संभव नहीं है. क्या पाना चाहती हो?’’ प्रश्नकर्ता विचलित मन को भांप गया था. विचलित मन में ही ऐसे निरर्थक, दिशाहीन भावों का वास होता है. उफनती लहरें ही उद्वेग का प्रतीक होती हैं. जब तक इन में कोई कंकड़ न फेंके या तूफान न आए, वे शांत बनी रहती हैं.

‘‘मैं ने कहा न, मुझे मुक्ति चाहिए अपनेआप से.’’

‘‘वह तो मृत्यु पर ही संभव है.’’

‘‘फिर?’’

प्रश्नदरप्रश्न, वरना समाधान कैसे संभव होगा. भीतर तक टटोलना हो तो शब्दों से भेदना अनिवार्य होता है. संवादहीनता की स्थिति जड़ बना देती है, भटकाव बढ़ता जाता है. मन के भीतरबाहर न जाने कितनी गुफाएं होती हैं, सब के अंधेरे चीर कर वहां तक रोशनी पहुंचाना तो संभव नहीं. लेकिन जब निश्चित कर लिया है कि दिशाभ्रमित इंसान को राह सुझानी है तो फिर पीछे क्या हटना.

‘‘यानी एक अंतहीन दौड़ पर निकलना चाहती हो? रुकोगी कहां, कुछ निश्चित किया है?’’

‘‘दौड़ कैसी, यह तो विराम होगा. उस के लिए कुछ भी निश्चित करना अनिवार्य नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम भ्रमित हो, अपने को तोड़मरोड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से भाग कर तुम विराम की घोषणा कर रही हो? दौड़ तो इस के बाद ही यात्रा है- दिशाहीन, उद्देश्यहीन दौड़. घरपरिवार, समाज, नातेरिश्तों को तोड़ कर आखिर किस की खातिर जीना चाहती हो? अपनी?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, अपने से मोह कतई नहीं है. मैं तो मर जाना चाहती हूं.’’

‘‘यानी फिर पलायन? डर कर, घबरा कर भागना ही पलायन है. मुक्ति तो उद्देश्यों की पूर्ति से मिलती है. पहले अपने मन को शांत व नियंत्रित करो.’’

‘‘लेकिन?’’

विस्मित है वह कैसे समझाए कि मन के उद्वेग तो कब के कुचले पड़े हैं. मन को नियंत्रित करतेकरते ही तो घबरा गई है वह. कुचली हुई भावनाएं सिर उठाने लगी हैं, तभी तो वह परेशान है. चली जाना चाहती है सारी उलझनों से बच कर. जब पाने की राह अवरुद्ध हो तो खोने की राह तलाशने में कैसी झिझक.

‘‘उत्तर तुम्हें स्वयं ही ढूंढ़ना होगा. खुद को इस तरह समेटने का अर्थ है स्वयं को आत्मकेंद्रित करना.’’

‘‘उत्तर मिलता तो यों नैराश्य न आ जकड़ती. जड़ता सहभागिता न होने लगती. अपने को झिंझोड़ कर थक गई हूं.’’ स्वर भीग गया था जैसे बड़े जतन से संभाला रुदन बहने को आतुर है.

कब तक कोई बांध सकता है संवेगों को. ज्वालामुखी तक फट जाता है, तब मानवीय संवेदना तो उस के सामने बहुत क्षीण है. वह तो जरा से दुख से ही भरभरा कर ढहने लगती है.

‘‘लौट जाओ सुमित्रा. जाओ और खोजो उस उत्तर को वह तुम्हारे भीतर ही मिलेगा लेकिन अपने अंतर्द्वद्वों से लड़ना होगा. अपने मनोभावों से तुम्हें संघर्ष करना होगा. उस के लिए अपने परिवेश में लौटना अत्यंत आवश्यक है. सब से जुड़ कर ही तलाश संभव है, एकांत में तुम किस जिजीविषा को शांत करने निकली हो?’’

धीरेधीरे शाम होने लगी थी. हवा के झोंके सुखद एहसास से भर रहे थे. पक्षी भी अपने घोंसलों में लौटने को तैयार थे. बीतता हर पल अपने साथ सब को घरों में लौटा रहा था. संध्या की बेला भी अजीब है. पहरेदार की तरह आ खड़ी होती है सब को भीतर खदड़ने के लिए. कोई चतुराई दिखा उसे धोखा देने का प्रयत्न करता है तो वह रात को बिखरा देती है. अंधेरे से भला किसे डर नहीं लगता. सारे प्रपंच धरे रह जाते हैं और हर ओर सन्नाटा फैल जाता है. भयानक खामोशी के आगे सारी चहलपहल ध्वस्त हो जाती है.

लेकिन सुमित्रा क्यों नहीं लौट पा रही है? क्या उसे सन्नाटे से भय नहीं लगता या उस के भीतर और गहरा सन्नाटा है जो व्याप्त खामोशी को चोट देने को आकुल है, तभी तो शायद वह निकली है उस अनदेखी, अनजानी मुक्ति की तलाश में जिस का ओरछोर स्वयं उसे मालूम नहीं है.

घोर पीड़ा का उद्भव सदा एक रहस्य ही रहा है. अनुभूति तो स्पष्ट होती है क्योंकि वह भीतरबाहर सब जगह बजती रहती है किसी दुखद आवाज की तरह, किंतु उस के अंकुर के फूटने का आभास तभी हो सकता है जब हम सतर्क हों. पीड़ा सामान्य स्थिति की द्योतक नहीं है, वही तो है जो सारी विमुखता प्रियजनों से विमुखता, अपने कर्मकर्तव्यों से विमुखता, की उत्तरदायी है.

‘‘मैं लौटना नहीं चाहती. अगर ऐसा होता तो निकलती ही क्यों. मैं ने बहुत चाहा कि अपने भीतर के कोलाहल को हृदय के कपाटों से बंद कर दूं पर शायद कमजोर थी, इसलिए ऐसा न कर सकी. तभी तो फट पड़ा है कोलाहल. अब कैसे शांत करूं उसे? कोई रास्ता नहीं दिखा, तभी तो भागी चली आई मुक्ति की तलाश में.’’

‘‘पलायन कौन से कोलाहल को शांत कर सकता है, बल्कि और हलचल ही मचा देता है. कोरी शून्यता है जो तुम्हें लगता है कि भर जाएगी. रिक्तता की पूर्ति कैसे होगी? इस पूर्णता की प्राप्ति के लिए तुम कहां भागोगी? कोई दिशा निर्धारित की है क्या तुम ने?’’

‘‘मुझे कुछ सुझाई नहीं दे रहा है. अगर रोशनी की हलकी सी कौंध भी देख पाती तो यों आप के पास दौड़ी चली नहीं आती उत्तर पाने, समाधान ढूंढ़ने.’’

सुमित्रा की कातरता बढ़ती ही जा रही थी और रात की नीरवता भी.

संध्या तक जो हवा कोमल लग रही थी वही अब कंपकंपाने लगी थी. फरवरी की शामें चाहे गुनगुनी हों पर रातें अभी भी ठंडी थीं. रात का मौन और नींदों में प्रवेश होने के बाद बंद कपाटों से उत्पन्न सन्नाटा लीलने को आतुर था. कभीकभी कोलाहल से त्रस्त हो इंसान सिर्फ सन्नाटे की अपेक्षा करता है, उसे ढूंढ़ने के लिए स्थान खोजता है और कभी वही सन्नाटा उसे खंजर से भी अधिक नुकीला महसूस होता है. तब वही आतुर निगाहों से अपने आसपास किसी को देखने की चाह करने लगता है.

सुमित्रा क्या इन दोनों ही स्थितियों से परे है या फिर वह अनजान बन रही है ताकि किसी तरह कमजोर या लक्ष्यहीन न महसूस करे. तभी अपने आसपास के वातावरण के प्रति कितनी तटस्थ लग रही है. इसीलिए तो मात्र एक साड़ी में लिपटे होने पर भी ठंड उसे कंपा नहीं रही थी.

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