Short Stories in Hindi : चैटिंग – क्या हुआ जब शादी से पहले प्रज्ञा से मिलने पहुंची?

Short Stories in Hindi : प्रज्ञा आज बहुत खुश थी. उसे अमित ने एक स्पैशल ट्रीट के लिए अपने औफिस के पास वाले रैस्टोरैंट में मिलने बुलाया था. प्रज्ञा ने हलके गुलाबी रंग का सूट पहना. बालों को कर्ल किया और अमित की पसंद का परफ्यूम लगा कर उस से मिलने चल दी.

प्रज्ञा और अमित 4 सालों से दोस्त हैं. कुछ दिनों से उन के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो चला था. प्रज्ञा कहीं न कहीं अमित में अपना जीवनसाथी देखने लगी थी. अमित भी उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगा था, मगर कभी इस बात का इजहार नहीं किया था. आज वह इसी मकसद से प्रज्ञा से मिलने वाला था. वह अच्छी जौब करता था. प्रज्ञा ने भी अपनी फाइनैंशियल कंसलटैंसी खोल रखी थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. अमित के मांबाप ने भी इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे दी थी. जाहिर है अब अमित को इस बात का पूरा विश्वास था कि प्रज्ञा हमेशा के लिए उस की बन जाएगी. बस प्यार का इजहार करने की देरी थी.

सही समय पर प्रज्ञा रैस्टोरैंट पहुंची. अमित ने कोने वाली एक बड़ी टेबल बुक करा रखी थी. स्पैशल ट्रीट की पूरी तैयारी थी. अमित ने पहले प्रज्ञा को एक खूबसूरत बुके गिफ्ट किया. फिर खाने का और्डर कर दिया.

प्रज्ञा अमित की नजरों में  झांकती हुई बोली, ‘‘इतना सबकुछ क्यों. आज कोई खास दिन है या कोई खास बात?’’

‘‘खास दिन भी है और खास बात भी. तुम्हें याद है 4 साल पहले जब हम ने एमबीए की पढ़ाई शुरू की थी तो सब से पहले आज के दिन ही हमारी मुलाकात हुई थी. हम उसी दिन अच्छे दोस्त बन गए थे और वह दोस्ती आज तक चली आ रही है.

‘‘इस दोस्ती ने मु झे जिंदगी के खूबसूरत पलों से आबाद किया है और मैं चाहता हूं कि यह दोस्ती किसी खास रिश्ते में बदल जाए. मैं तुम्हारे दिल की बात पूरी तरह नहीं जानता मगर अपने पूरे दिल से तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने की इच्छा रखता हूं. अगर तुम्हारी हां हो तो हम आगे का प्लान बनाएं,’’ अमित ने अपने दिल की बात रखी.

प्रज्ञा उसे देखती रह गई. अमित ने सबकुछ इतनी सादगी और सहजता से कह दिया कि प्रज्ञा के पास सिवा हां कहने के कुछ बचा ही नहीं था. वह शरमाती हुई बोली, ‘‘आई लव यू. जैसा तुम चाहो. मैं तो हमेशा से तुम्हारी ही हूं. मैं तैयार हूं इस रिश्ते को एक नाम देने के लिए.’’

अमित का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस ने प्रज्ञा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है इस महीने की 25 तारीख को हम सगाई कर लेते हैं और अगले महीने शादी.’’

‘‘ओके डन.’’

जल्द ही दोनों की सगाई का दिन आ गया. प्रज्ञा की बचपन की सहेली निभा जो मुंबई में रहती थी सगाई में नहीं आ सकी. मगर वह शादी से 2-3 दिन पहले आने वाली थी. उसे प्रज्ञा का फैसला जल्दबाजी में किया हुआ लगा.

सगाई के बाद उस ने प्रज्ञा से फोन पर बात की और पाया कि प्रज्ञा अपनी शादी को ले कर बहुत उत्साहित है. मगर निभा के मन में कुछ और ही चल रहा था.

शादी से करीब 3 दिन पहले वह प्रज्ञा के घर पहुंची. उस दिन मेहंदी की रसम चल रही थी. इसलिए निभा प्रज्ञा से ज्यादा बात नहीं कर सकी. मगर दोनों सहेलियों ने मिल कर इस रस्म को यादगार बना लिया. प्रज्ञा की दूसरी कई सहेलियां भी आई हुई थीं. सब के जाने के बाद अगले दिन निभा कुछ देर प्रज्ञा से बात करने उस के कमरे में चली आई.

उस ने प्रज्ञा से पूछा, ‘‘क्या तु झे नहीं लगता कि जीवन का इतना बड़ा फैसला तूने बहुत जल्दी में ले लिया.’’

‘‘जल्दी में कहां निभा, पिछले 4 साल से हम एकदूसरे को जानते हैं,’’ प्रज्ञा ने सहजता से जवाब दिया.

‘‘जानते हो मगर क्या सम झते भी हो?’’

‘‘हां यार काफी हद तक,’’ प्रज्ञा ने साफ स्वर में कहा.

‘‘मगर पूरी तरह नहीं न प्रज्ञा. यही गलती मैं ने भी की थी और उस की सजा आज तक भुगत रही हूं. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ भी वैसा कुछ हो जो मेरे साथ हुआ.’’

‘‘यह क्या कह रही है निभा, तेरे साथ क्या हुआ? तू क्या मनीष के साथ खुश नहीं? कालेज में तुम दोनों भी तो एकदूसरे के काफी करीब थे?’’

‘‘हां यार हम दोनों ने 2-3 साल डेटिंग की थी. हमें लगता था कि हम एकदूसरे को अच्छी तरह सम झते हैं और एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच हैं. मगर शादी के बाद पता चला कि वह जिंदगी बहुत अलग होती है. शादी के बाद बहुत कुछ मैनेज करना होता है. आप इतनी आसानी से किसी के हो जाते हो मगर जब जिम्मेदारियों का बो झ सिर पर आता है तो आप का रवैया ही बदल जाता है. आज हमारे बीच रोज किसी न किसी बात को ले कर  झगड़े होते हैं. अकसर हम कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात नहीं करते. फिर एकसाथ हमारे अंदर का लावा फूट पड़ता है. मेरी लव मैरिज आज तलाक के कगार पर पहुंच गई है. इसलिए तु झे सावधान रहने को कह रही हूं,’’ निभा ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘मगर तुम्हारे  झगड़ों की वजह क्या है? क्या सासननद की दखलंदाजी या

मनीष शराब पीता है या फिर कोई और है तुम दोनों के बीच?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘हमारे बीच न सास है, न दारू और न लड़की. हमारे बीच हमारा ईगो है. हम छोटीछोटी बातों पर लड़ते हैं. शादी के बाद ऐक्सपैक्टेशंस बहुत बढ़ जाती हैं. वे पूरी न हों तो दिल दुखता है और यह अंजाम होता है. इसलिए शादी से पहले ही छोटीछोटी बातें भी डिस्कस कर लेनी चाहिए ताकि एकदूसरे का असली स्वभाव पता चल सके और बाद में कोई लफड़ा न हो,’’ निभा ने सम झाया.

‘‘तो फिर अब मु झे क्या करना चाहिए?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘मेरे खयाल से तुम अभी इसी वक्त इस दुविधा से निकल सकती हो. ऐसा करो तुम अपने हस्बैंड से किस तरह की ऐक्सपैक्टेशन रखती हो, लाइफ में क्या चाहती हो यह सब अभी डिस्कस करो. अपने मन की बातें करो ताकि शादी के बाद पछताना न पड़े.’’

‘‘ओके. मैं करती हूं बात,’’ प्रज्ञा ने फोन निकाला और अमित को मैसेज किया, ‘‘यार क्या कर रहे हो. मु झे कुछ जरूरी बातें करनी थीं तुम से. आर यू फ्री?’’

‘‘आप के लिए तो यह बंदा हमेशा फ्री है मेरे ख्वाबों की मलिका.’’

‘‘अब इतना भी मस्का मत लगाओ.’’

‘‘ओके बताओ क्या कह रही थीं?’’

‘‘तुम्हें याद है मैं ने कल तुम्हें अपनी सहेली से मिलवाया था जो मुंबई में रहती है.’’

‘‘हां याद है मु झे. तुम निभा की बात कर रही हो न जिस का जिक्र पहले भी तुम कभीकभी करती रहती थीं.’’

‘‘हां यार कल जब वह आई तो मु झे उस की जिंदगी के एक बड़े सच के बारे में पता चला. जानते हो उस का अपने पति से  झगड़ा चल रहे है और वह कभी भी तलाक ले सकती है.’’

‘‘मगर क्यों? उन की आपस में क्यों नहीं बनती?’’

‘‘क्योंकि वह निभा को समय नहीं देता है. उस की ऐक्सपैक्टेशंस को पूरा नहीं करता है. दोनों छोटीछोटी बातों पर  झगड़ते हैं. अगर निभा किसी बात पर रूठ जाती है तो वह अपने ईगो के कारण कई कई दिनों तक उस से बात नहीं करता. उस की परवाह नहीं करता. तुम तो ऐसा नहीं करोगे न अमित?’’ प्रज्ञा ने सवाल किया.

‘‘नहीं यार, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. अगर गलती मेरी होगी तो तुम्हें जरूर मनाऊंगा,’’ अमित ने आश्वस्त किया.

‘‘और अगर तुम्हारे अनुसार गलती मेरी होगी तो क्या तुम अपने ईगो को ले कर बैठे रहोगे? मु झ से बात नहीं करोगे? मु झे मनाओगे नहीं?’’

‘‘ओफ्कौर्स मैं तुम्हें मनाऊंगा. हमारे बीच एक दिन भी खामोशी नहीं रह सकती. भले ही कितना भी  झगड़ा हो जाए पर मैं तुम्हारी परवाह करना कभी नहीं छोड़ सकता क्योंकि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं,’’ अमित ने अपना प्यार दिखाया.

‘‘सो स्वीट वैसे तुम्हारा असली रूप तो शादी के बाद ही दिखेगा,’’ मुसकराते हुए प्रज्ञा ने मैसेज किया.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. लड़कियों का असली रूप भी शादी के बाद ही दिखता है. तुम्हें पता है नीरज की पत्नी क्या करती है? हर दूसरे दिन मायके चली जाती है. तब नीरज को खुद ही खाना बनाना पड़ता है.’’

‘‘तो क्या हो गया. क्या तुम शादी के बाद खाना बनाने में मेरी हैल्प नहीं करोगे?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘हैल्प जरूर करूंगा मगर कई दफा इंसान बिजी होता है तो हैल्प नहीं कर पाता,’’ अमित ने अपनी बात रखी.

‘‘वह तो ठीक है मगर यह बताओ कि तुम शादी के बाद इतने व्यस्त तो नहीं हो जाओगे कि वीकैंड पर भी मु झे समय नहीं दोगे या मु झे शौपिंग के लिए नहीं ले जाओगे?’’

‘‘देखो मैं तुम्हें वीकैंड पर घुमाने जरूर ले जाऊंगा और शौपिंग भी कराऊंगा, मगर हो सकता है कभी मेरे पास समय नहीं हो तब तुम मुंह फुला कर तो नहीं बैठ जाओगी? मेरा साथ तो दोगी न.’’

‘‘हां बिलकुल. मगर तुम कभी मु झ पर चिल्लाओगे तो नहीं, हमेशा प्यार से बात करोगे न?’’

‘‘बिलकुल यार मैं प्यार से ही बात करता हूं. अच्छा याद है मैं ने तुम्हें एक बार अपनी बूआजी की कहानी सुनाई थी न? उन्होंने फूफाजी को 2-3 बार किसी महिला से बातें करते देख लिया था और बस फुजूल का शक कर के अपनी जिंदगी खराब कर ली. आज उम्र के इस मोड़ पर दोनों अकेले जिंदगी जी रहे हैं.’’

‘‘तुम एक क्या कई लड़कियों से बात कर लो मु झे फर्क नहीं पड़ने वाला. बस मेरा बर्थडे और ऐनिवर्सरी हमेशा याद रखना.’’

‘‘वह सब तो मु झे याद रहता ही है. अच्छा एक बात और तुम्हें मेरी मां और बहन को अपनी मां और बहन सम झना होगा,’’ अमित ने मन की बात कही.

‘‘ठीक है लेकिन तुम्हें भी मेरे मायके वालों का पूरा सम्मान करना होगा,’’ प्रज्ञा ने भी शर्त रख दी.

‘‘औफकोर्स यार वैसे भी मु झे तुम्हारी बहन बहुत पसंद है,’’ अमित ने चुहलबाजी की.

‘‘देखा अभी से शुरू हो गए. तुम कहो तो अपनी बहन से ही तुम्हारी शादी करा दूं,’’ प्रज्ञा न चिढ़ कर लिखा.

‘‘क्या यार मैं तो उसे अपनी छोटी बहन जैसा मानता हूं,’’ अमित ने स्पष्ट किया, ‘‘यही नहीं मैं तो तुम्हारी मौम को अपना सा और डैड को अपने डैड जैसा मानता हूं.’’

‘‘मैं भी मजाक ही कर रही थी और मेरे मौमडैड के बारे में तुम से सुन कर खुशी

हुई. उन्होंने तो अब बहुत सी बातों में मेरा सुनना भी बंद कर दिया है और कहते हैं कि अमित से पूछ कर करेंगे,’’ प्रज्ञा ने भी बात साफ की, ‘‘मगर चिंता न करो मैं ने अपनी और तुम्हारी मां से तुम्हारी शिकायत कर दी है कि मेरी अब मेरे घर में ही कोई पूछ नहीं रही.’’

अमित बोला, ‘‘तो मेरी मां ने क्या कहा?’’

‘‘कहना क्या था, यही कि तुम्हारी अब तुम्हारे घर में कौन सी चलती है. इसीलिए तो हम दोनों कल तुम्हारे लिए तुम्हारे बिना कपड़े खरीदने जा रहे हैं. कह दूं. खबरदार हमारी पसंद पर कोई मुंह बनाया,’’ प्रज्ञा ने खिलखिलाते हुए कहा.

‘हुजूर मेरी जुर्रत कि मैं कुछ कहूं. बस मेरे दोस्तों से यह बात सीक्रेट रखना वरना मजाक उड़ाएंगे.  वैसे मैं ने सुना है लड़कियां बहुत सी बातें सीक्रेट रखती हैं. क्या तुम भी मु झ से कुछ राज छिपा कर रखोगी?’’

‘‘नहीं. हम दोनों के बीच कोई राज नहीं रहना चाहिए. हमारी जिंदगी एकदूसरे के लिए खुली किताब होगी. पर मेरी तुम्हारी मां और पापा से जो बातें होंगी वे सीक्रेट रहेंगी,’’ प्रज्ञा हंसते हुए बोली.

‘‘ओके डन,’’ अमित ने हार्ट की स्माइली भेजी तो प्रज्ञा ने भी प्यारी सी स्माइली भेजते हुए चैटिंग बंद की.

जब प्रज्ञा निभा की तरफ मुखातिब हुई तो वह हंसती हुई बोली, ‘‘वैरी नाइस. यह चैटिंग बहुत काम आएगी. शादी के बाद जब  झगड़ा हो तो तुम दोनों अपनी यह चैटिंग पढ़ लेना. जिंदगी प्यार से गुजरेगी. अगर तुम दोनों से यह चैट खो भी जाए  तो भी तुम्हें याद रहेगा कि क्या करना है क्या नहीं.’’

प्रज्ञा ने मुसकरा कर अपनी दोस्त को गले से लगा लिया. उस की आंखों में सुनहरी जिंदगी के ख्वाब सज रहे थे.

जब आप के कोई अपने बड़ी बीमारी से जूझ रहे हों, तो क्या करें क्या नहीं?

जिंदगी में कई बार ऐसे पल आ जाते हैं कि हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है. सोचनेसमझने की शक्ति गायब होने लगती है. ऐसा लगता है कि अचानक ही हम आसमान से जमीन पर आ गिरे. मन में खयाल आने लगता है कि सबकुछ तो ठीकठाक चल रहा था अचानक यह कैसे हो गया. इतनी बड़ी बीमारी हमारे अपने को कैसे हो सकती है जिस का नाम तक अंगरेजी में होने की वजह से हमें ठीक से लेना तक नहीं आता, वह हमारे सब से प्यारे इंसान को कैसे हो सकती है जबकि वह अनुशासित जिंदगी जी रहा है, घर का खाना और लगातार व्यायाम के बावजूद भला कैंसर या इस से भी भयानक बीमारी कैसे हो सकती है?

सब से पहले तो इस बात का विश्वास ही नहीं होता और जब होता है तो पता चलता है कि हमें मरीज को बड़े अस्पताल में भर्ती कराना है क्योंकि उस भयानक बीमारी का इलाज महंगे अस्पताल और बड़े नामी डाक्टरों द्वारा ही संभव है.

ऐसे में जब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता तो बड़े हौस्पिटल में जहां बड़े डाक्टर और सारी सहूलियत मौजूद हैं वहां एडमिट करना ही एक हल होता है.

ऐसे में हमारा मकसद एक ही होता है कि किसी भी तरह हमें बीमार व्यक्ति की जान बचानी है फिर चाहे उस के लिए कुछ भी करना पड़े.

आज के समय में ज्यादातर लोग ऐसी मुसीबत का सामना करने के लिए पहले से मैडिक्लेम कर के रखते हैं ताकि बुरे वक्त में वे पैसे काम आ सकें. लेकिन कई बार बीमारी इतनी बड़ी हो जाती है कि मैडिक्लेम पौलिसी की छोटी रकम ज्यादा काम नहीं आती और बड़े अस्पताल में घुसते ही पैसों और पेमैंट किए जाने वाले बिल का मीटर जो चालू होता है वह लाखों तक पहुंच जाता है.

ऐसे में जिस के पास इलाज के लिए पैसे हैं उन को तो ज्यादा तकलीफ नहीं होती और सिर्फ मरीज का ही ध्यान रखना होता है. मगर जिस के पास पैसे नहीं होते उन के लिए मरीज की तकलीफ के अलावा दूसरा सब से बड़ा टैंशन यह होता है कि इलाज के लिए पैसों का बंदोबस्त कैसे और कहां से करें क्योंकि इलाज के दौरान तेजी से हो रहे खर्चे पर रोक लगाना संभव नहीं होता। डाक्टर जब तक और जैसे बोलता है मरीज के घर वालों को वह सबकुछ फौलो करना पड़ता है क्योंकि उन के पास दूसरा कोई चारा नहीं होता.

ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप पैनिक न हों और कोई भी निर्णय लेने से पहले सैकंड ओपिनियन दूसरे डाक्टर से जरूर लें और मरीज को अस्पताल में एडमिट करते वक्त कुछ बातों का खासतौर पर ध्यान रखें. पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

आज के समय में हालात कुछ ऐसे हैं कि किसी भी उम्र के इंसान को कुछ भी होने की संभावना रहती है. इस के पीछे खास वजह पिछले कुछ सालों तक चली आ रही भयानक बीमारी कोविड का बुरा प्रभाव है. इस बीमारी के आने के बाद कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और कोरोना की बीमारी जाने के बाद आज भी उस के दुष्परिणाम अलगअलग रूप में सामने आ रहे हैं। ऐसे नाजुक हालत में अपना ध्यान रखने के अलावा और स्वास्थ्य पर, खानपान पर ध्यान रखने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता.

अगर इस के बाद भी अचानक कुछ हो जाता है और अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है तो खास बातों का ध्यान रखें जिस में आप का इलाज भी हो जाए, पैसे भी कम खर्च हों और आप ठीक हो कर घर वापस आ जाएं.

अस्पताल में भर्ती होने से ले कर इलाज, दवाई और टेस्ट करने तक इन बातों का ध्यान रखें

सब से पहले तो किसी भी अस्पताल में भर्ती करने से पहले यह जानकारी जरूर लें कि वह अस्पताल जानबूझ कर बिल बढ़ाने वाला षड्यंत्र तो नहीं रच रहा? मरीज उस अस्पताल के लिए महज एक कस्टमर तो नहीं है जिसे लूटने का प्रोग्राम पहले से कुछ अस्पतालों में तय होता है?

ऐसे में बहुत जरूरी है कि जहां आप अपने मरीज को एडमिट करें वह अस्पताल वही खर्चे प्राप्त करे जो एक रैपुटेड अस्पताल में जरूरी होता है. जैसे, मरीज की देखभाल के लिए नर्स, डाक्टर और वार्डबौय का हर दिन का खर्चा, मरीज की देखभाल के लिए महंगी सहूलियतें का खर्चा जैसे महंगी मशीन, आईसीयू, वैंटिलेटर, महंगी दवाइयां आदि. क्योंकि यह सब ऐसे खर्चे हैं जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन यही खर्चे जरूरी और लिमिट में हैं तो उसे अदा करना खलता नहीं है, क्योंकि यह सब मरीज के भले के लिए है. लेकिन वहीं कई बार कुछ अस्पतालों में मरीजों को लूटने का गोरखधंधा भी जोरों पर चलता है जिस में मरीज तो ठीक हो जाता है लेकिन उस के इलाज का बिल इतना ज्यादा होता है कि उसे भरने में खुद का दम निकल जाता है.

लिहाजा, जब आप अपने मरीज को इलाज के लिए भर्ती करें तो मैडिकल उपकरण खरीदने से ले कर टेस्ट और दवा खरीदने तक हर तरह की सावधानी बरतें। सही दवा सही दाम में मिल सकें, जल्दबाजी में और बिना सोचेसमझे खर्चा कर के न सिर्फ आप पैसों की बरबादी करते हैं बल्कि मरीज की सेहत के साथ भी रिस्क लेते हैं.

दवाइयां और इंजैक्शन लेने के लिए अस्पताल के मैडिकल स्टोर का इस्तेमाल न करें क्योंकि वहां पर डाक्टर अस्पताल की दवाइयां और इंजैक्शन के लिए मैडिकल स्टोर वाले के साथ परसेंटेज बंधा रहता है जिस की वजह से कई बार डाक्टर ऐसी दवाइयां भी खरीदने के लिए जोड़ देते हैं जिस की जरूरत नहीं होती क्योंकि डाक्टर के साथ मैडिकल का कमीशन फिक्स होता है। इसलिए दवाओं की बिक्री भी ज्यादा करवाई जाती है. लिहाजा, अस्पताल के मैडिकल स्टोर के बजाय बाहर दर्जनों सरकारी लैब और मैडिकल स्टोर होते हैं, जहां से दवाएं ली जा सकती हैं जिस में कंसेशन भी मिल जाता है और बिना वजह की दवाओं से बचत भी हो जाती है.

गौरतलब है कि कुछ अस्पतालों में फिक्स कंपनियों की दवाइयां मरीज के लिए लिखी जाती हैं जिन पर डाक्टर का कमीशन फिक्स होता है. महंगे अस्पताल में टेस्ट और मैडिकल जांच के लाखों रुपए लगते हैं जैसे बड़े अस्पतालों में ब्लड, यूरीन, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, मलेरिया, शुगर, हेपेटाइटिस, कैंसर सहित बीमारियों की जांच पर लाखों का खर्चा हो जाता है जो सरकारी अस्पतालों में आधे दाम में हो जाते हैं. बीमारियां उतनी बड़ी नहीं होती हैं जितना उस का इलाज बड़ा बताया जाता है। ऐसे में अक्लमंदी से काम लेकर टेस्ट, एक्सरे आदि प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में कर के पैसे बचाएं जा सकते हैं.

सरकार भी अब डाक्टर पर महंगी दवाई बेचने को ले कर नकेल कसने के लिए तैयारी कर रही है, जिस के तहत राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ऐसे डाक्टरों पर निगरानी रखने की तैयारी कर रही है, जो इलाज के नाम पर मरीज से मनचाहे पैसे वसूलते हैं.

नए प्रावधान में डाक्टर वही दवाई या मैडिकल उपकरण अपने मरीज को दे सकते हैं जिस का इलाज वह खुद कर रहे हैं.

लिहाजा, अस्पताल में भर्ती करते वक्त मैडिकल उपकरण और दवाइयां खरीदने को ले कर पूरी सावधानी बरतें. इस के अलावा जैनेरिक दवाइयां भी चुनें, ब्रैंडेड दवा की तुलना में जैनेरिक दवाइयां अकसर सस्ती होती हैं और उन की गुणवत्ता भी समान होती है.

इस के अलावा नियमित हैल्थ जांच करने की आदत डालें, क्योंकि उस से अगर कोई बीमारी है तो उस का पता जल्दी चल जाता है और उस का जल्दी इलाज होने के वजह से बाद में बड़ी बीमारी होने से बच जाती है और इस से स्वास्थ्य और पैसे दोनों की बचत होती है.

इस के अलावा मैडिकल बिलों का औडिट भी करवा सकते हैं जिस में बिलिंग के दौरान हुई त्रुटियों का पता चलता है और उस से बचा जा सकता है .

मरीज के लिए अत्यावश्यक देखभाल केंद्रों का उपयोग करें

आपातकालीन स्थिति में अत्यावश्यक देखभाल केंद्र अकसर सामान्य अस्पतालों की तुलना में कम महंगे होते हैं. इन सब सावधानियों के अलावा सब से जरूरी है कि स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, सही खानपान, अनुशासन और पौजिटिव सोच के साथ जिंदगी गुजारना, जो आने वाली बीमारी से बचने में अहम भूमिका अदा करता है.

 Alia Bhatt और खुशी कपूर को रोना है बहुत पसंद, ये ऐक्ट्रैसेस आंसू बहाने का नहीं छोड़ती का एक मौका…

 Alia Bhatt : आलिया भट्ट और खुशी कपूर जो कि फैमिली बैकग्राउंड से आई हैं, दोनों ने ही अपने बचपन से लेकर जवानी तक ऐसा बहुत कुछ झेला और देखा है, जो बचपन में या कम उम्र में शायद देखना सही नहीं रहता. शायद इसलिए यह दोनों ही बड़ी होकर हीरोइन तो बन गई लेकिन उनका दिल बच्चों जैसा ही है जो इमोशनल हुए बिना नहीं रह पाता, ऐसे में कहना गलत ना होगा यह दोनों ही हीरोइन भले ही बाहर से मजबूत दिखाई देती हैं. लेकिन अंदर से बहुत टूटी हुई है. शायद इसी वजह से आलिया और खुशी दोनों में एक कौमन बात है कि यह दोनों ही रोने में एक्सपर्ट है.

खुशी कपूर के अनुसार वह बिना ग्लिसरिन के घंटों रो सकती है. वही आलिया भट्ट के अनुसार प्रोफैशनली हो नहीं पर्सनली भी वह किसी भी वक्त रो सकती हैं. खुशी कपूर जहां कौमेडी या रोमांटिक फिल्मों के बजाय इमोशनल और रोने धोने वाली फिल्में करने की इच्छा रखती है.

कोई आलिया भट्ट एक बेटी की मां होने के बाद अब इमोशन पर काबू पाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि बारबार रोने से इमोशनली डिस्टर्ब हो रही है और मानसिक तौर पर बीमार. इसलिए वह अपने रोने की आदत को बेटी होने के बाद बदलने की कोशिश कर रही है. शायद दोनों के मन में एक ही बात है एक इमोशन है, यह आंसू मेरे दिल की जुबान है, आंसुओं के जरिए दिल में छुपा दर्द छलक ही जाता है.

Pudina Rice Recipe : बच्चों को खिलाएं पुदीना पुलाव, ये रही आसान रेसिपी

Pudina Rice Recipe : अगर आप बच्चों के लिए हेल्दी और टेस्टी डिश खिलाना चाहती हैं तो पुदीना पुलाव की ये रेसिपी ट्राय करे. पुदीना पुलाव आसानी से बनने वाली रेसिपी हैं, जिसे आप लंच हो या डिनर में अपनी फैमिली और बच्चों को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

– 60 ग्राम कटी गाजर

– 80 ग्राम बींस कटी

– 40 ग्राम फ्रोजन मटर

– 30 ग्राम ब्लैंचड फूलगोभी

– 5 ग्राम कटा हुआ पुदीना

– 10 ग्राम अदरक कद्दूकस किया

– 10 ग्राम हरीमिर्च कटी

– 5 ग्राम जीरा

– 50 ग्राम देशी घी

– 20 ग्राम रिच क्रीम

– 5 ग्राम हींग

– 30 ग्राम ब्राउन ग्रेवी

– थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

– 15 ग्राम प्याज भुना

– 300 ग्राम बिरयानी राइस

– 60 मिलीलीटर बिरयानी  झोल

– थोड़ा सा केवरा वाटर.

बनाने का तरीका

पैन में  झोल डाल कर उस में उबली सब्जियों को डाल कर उस में सारे सूखे मसालों के साथ पुदीना, अदरक, प्याज, केवरा वाटर और देशी घी ऐड करें. फिर इस मिक्स्चर पर पके बिरयानी राइस डाल कर 2-3 मिनट तक ढक कर पकाएं और फिर प्याज, पुदीना और अदरक के टुकड़ों से सजा कर रायते के साथ गरमगरम सर्व करें.

Govinda की बेइज्जती करने वाले बड़े निर्माता को जब धर्मेंद्र ने डांट कर दौड़ाया….

Govinda : एक इंसान चाहे कितना ही कामयाब हो जाए लेकिन वह उस इंसान को कभी नहीं भूलता जिसकी उसने बुरे वक्त में मदद की हो, ऐसा ही कुछ गोविंदा के साथ भी हुआ था , जो वह आज तक नहीं भूल पाए हैं. उस दौरान उनकी मदद करने वाले वह शख्स कोई और नहीं बल्कि धर्मेंद्र अर्थात धरम पाजी थे. हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान गोविंदा ने अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए एक वाकया बताया, जिसके अनुसार धर्मेंद्र गोविंदा के लिए उसे दौरान किसी फरिश्ते से कम नहीं थे.

गोविंदा के अनुसार बात उन दिनों की है जब मैं गरीबी से उठकर फिल्मों में काम करने आया था और एक बड़े प्रोड्यूसर की फिल्म कर रहा था क्योंकि उस दौरान मैं स्ट्रगलर था इसलिए हर कोई मुझ पर जोर आजमाने की कोशिश करता रहता था. उस वक्त मैं ज्यादा कुछ बोलता भी नहीं था क्योंकि अपनी गरज थी, ईसी के चलते एक बड़ा निर्माता उस दौरान जिसकी मैं फिल्म कर रहा था, वह बारबार आकर मेरी बेइज्जती कर रहा था, यानी कि उस दिन वह निर्माता मेरी बेइज्जती करने का एक मौका भी नहीं छोड़ रहा था क्योंकि उसे पता था कि मैं नया हूं इसलिए क्या ही बोल पाऊंगा.

क्योंकि वह बड़ा निर्माता था इसलिए मैं चुपचाप सब कुछ सुन रहा था, तभी दूर से एक आवाज आई, ए ए…. गोविंद को कुछ बोला तो तेरी जबान खींच लूंगा, अगर तूने गोविंदा की तरफ देखा भी तो तेरी आंखे निकाल लूंगा ,यह आवाज इतनी बुलंद और भारी भरकम थी कि वह निर्माता डर के मारे वहां से भाग खड़ा हुआ.

बाद में जब मैंने उस आवाज वाले इंसान को देखा तो देखता ही रह गया क्योंकि वह कोई और नहीं धर्मेंद्र पाजी थे. जिनका मैं बचपन से फैन हूं. धर्म पाजी बाद में मेरे पास आए और बोले बेटा तू चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूँ , आज जो तू झेल रहा है. वह मैं भी अपनी शुरुआती दिनों में झेल चुका हूं .

उस दौरान धरम पाजी की सहानुभूति से बड़ी बातें मेरे दिल को छू गई और मेरी आंखों से आंसू आने लगे . उनका वह प्यार भरा अंदाज मैं आज तक नहीं भूल पाया हूं. धरम पाजी बहुत प्यारे हैं , इसीलिए सब उनको बहुत प्यार करते हैं.

Relationship Tips : मेरी 16 साल की बहन रिलेशनशिप में है, मैं क्या करूं?

Relationship Tips  : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी बहन 16 वर्ष की है, मैं उस से उम्र में 7 वर्ष बड़ा हूं. वह 12वीं कक्षा में है. उस के क्लास के ही एक लड़के के साथ वह रिलेशनशिप में है. यह बात मुझे मेरी बहन की एक दोस्त ने बताई है. मुझे मेरी बहन के रिलेशनशिप से कोई परेशानी नहीं है, बस, मैं उस को ले कर थोड़ा चिंतित हूं. मैं क्या करूं?

जवाब-

पहले तो मैं आप की सोच की सराहना करना चाहूंगी. आप सचमुच आज के युवा हैं, जिसे सही गलत का एहसास भी है और समानता में विश्वास भी. बड़ा भाई होने के नाते आप की चिंता बिलकुल जायज है.

आप को अपनी बहन से इस विषय में बात करनी चाहिए. उसे बताइए कि आप को उस की रिलेशनशिप से कोई दिक्कत नहीं है पर उसे रिलेशनशिप में रहते हुए सही और गलत की पहचान करनी होगी. वह रिलेशनशिप में है तो इस का अर्थ है कि वह बड़ी है तो उसे अपनी जिम्मेदारियां खुद ही समझनी होंगी. आप उसे सलाह दे सकते हैं और साथ रहने का आश्वासन दे सकते हैं.यकीनन वह भी सुरक्षित महसूस करेगी और आप की बातों को समझ कर अपने लिए सही फैसले लेगी.

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कहीं आप भी तो आर-बोम्बिंग रिलेशनशिप का शिकार तो नहीं? आप जानते हैं इस रिलेशनशिप के बारे में?आपको उत्सुकता होगी जानने की, कि आखिर आर-बोम्बिंग रिलेशनशिप क्या बला है?

दरअसल आज के समय में रिलेशनशिप को एक अलग ही तरीके से और बिल्कुल अलग नजरिए से देखा जा रहा है .आप ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि इस कदर रिश्तो की परिभाषाएं बदल जाएगी.

क्या आपको जानकर विश्वास होगा कि रिलेशनशिप में भी ट्रेंड का दौर चल चुका है? कभी ब्रेकअप पार्टी ,कभी डबल डेटिंग ,कभी ऑनलाइन चैटिंग, कभी डाइवोर्स पार्टी ,तो कभी वन नाइट स्टैंड. लेकिन अब आप इसमें एक ट्रेंड और जोड़ लीजिए वह है आर-बोम्बिंग.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जीना इसी का नाम है: अपनों द्वारा ही हजारों बार छली गई सांवरी

यह कोई नई बात नहीं थी. सांवरी कोशिश करती कि ऐसी स्थिति में वह सामान्य रहे, लेकिन फिर भी उस का मन व्यथित हो रहा था. किचन में से भाभी की नफरत भरी बातें उसे सुनाई दे रही थीं, जो रहरह कर उसे कांटे की तरह चुभ रही थीं. किचन से बाहर निकल कर जलती हुई दृष्टि से सांवरी को देखते हुए भाभी बोलीं, ‘‘जाइए, जा कर तैयार हो जाइए महारानीजी, जो तमाशा हमेशा होता आया है, आज भी होगा. लड़के वाले आएंगे, खूब खाएंगेपीएंगे और फिर आप का यह कोयले जैसा काला रूप देख कर मुंह बिचका कर चले जाएंगे.’’ भाभी की कटाक्ष भरी बातें सुन कर सांवरी की आंखें डबडबा आईं. वह भारी मन से उठी और बिना कुछ कहे चल दी अपने कमरे में तैयार होने. भाभी का बड़बड़ाना जारी था, ‘‘पता नहीं क्यों मांबाबूजी को इन मैडम की शादी की इतनी चिंता हो रही है? कोई लड़का पसंद करेगा तब तो शादी होगी न. बीसियों लड़के नापसंद कर चुके हैं.

‘‘अरे, जब इन की किस्मत में शादी होना लिखा होता तो कुदरत इन्हें इतना बदसूरत क्यों बनाती? सोनम भी 23 साल की हो गई है. सांवरी की शादी कहीं नहीं तय हो रही है तो उस की ही शादी कर देनी चाहिए. उसे तो लड़के वाले देखते ही पसंद कर लेते हैं.’’ मां ने अपनी विवशता जाहिर की, ‘‘ऐसे कैसे हो सकता है, बहू. बड़ी बेटी कुंआरी घर में बैठी रहे और हम छोटी बेटी की शादी कर दें.’’

भाभी आंखें तरेर कर बोलीं, ‘‘आप को क्या लगता है मांजी, आज लड़के वाले सांवरी को पसंद कर लेंगे? ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. सांवरी की वजह से सोनम को घर में बैठा कर बालों में सफेदी आने का इंतजार मत कीजिए. मेरी मानिए तो सोनम की शादी करा दीजिए.’’ सांवरी अपनी मां जैसी ही सांवली थी. सांवले रंग के कारण मां ने उस का नाम सांवरी रखा था. मांबाप, भाईबहन को छोड़ कर सांवरी औरों को काली नजर आती थी. उस के पैदा होने पर दादी सिर पकड़ कर बोली थीं, ‘‘अरे यह काली छिपकली घर में कहां से आ गई? कैसे बेड़ा पार होगा इस का?’’

भाभी जब इस घर में ब्याह कर आई थीं तो सांवरी को देख कर उन्होंने तपाक से कहा था, ‘‘तुम्हारा नाम तो कलूटी होना चाहिए था. यह सांवरी किस ने रख दिया.’’ भाभी ने एक बार तो यहां तक कह दिया था, ‘‘सांवरी को अपनी मां के जमाने में पैदा होना चाहिए था, क्योंकि उस समय तो लड़की देखने का रिवाज ही नहीं था. शादी के बाद ही लड़कालड़की को देख पाता था. अगर सांवरी उस समय पैदा हुई होती तो मांजी की तरह ही निबट जाती.’’

मां ने जब यह व्यंग्य सुना तो वह तिलमिला उठीं और सांवरी पर चिल्ला उठीं, ‘‘इतनी सारी अच्छी और महंगी क्रीमें घर में ला कर रखी हैं, लगाती क्यों नहीं उन्हें?’’ सांवरी अपमान और पीड़ा से भर उठती थी, ‘‘मुझे जलन होती है उन क्रीमों से, मैं नहीं लगा सकती.’’ मां जानती थी कि चेहरे का रंग नहीं बदला जा सकता. फिर भी अपनी तसल्ली के लिए ढेर सारी अंगरेजी और आयुर्वेदिक क्रीमें लाला कर रखती रहती थीं. सभी लोगों को सांवरी का गहरा सांवलापन पहले ही दिख जाता था, पर वह कितनी गुणी है, काबिल है, प्रतिभावान है, अनेक खूबियों से भरपूर है, यह किसी को नजर ही नहीं आता था. घर के सारे कामों में निपुण सांवरी जिस कालेज में पढ़ी थी, उसी कालेज में लैक्चरर नियुक्त हो गई थी और साथसाथ वह प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए भी तैयारी कर रही थी.

इतनी गुणवान और बुद्धिमान होने के बाद भी मातापिता के मन में एक टीस थी. कई बार उस ने पापा को कहते सुना था, ‘‘काश, सांवरी थोड़ी सी गोरी होती तो सोने पर सुहागा होता,’’ ऐसा वाक्य सांवरी को अकसर निराश कर देता था. वैवाहिक विज्ञापनों में भी मांबाप को निराशा ही हाथ लगी थी. उन में लड़कों की पहली शर्त होती थी कि लड़की गोरी होनी चाहिए. फिर बाद में सारे गुणों का उल्लेख रहता था. उस दिन शाम को भी वही हुआ जिस की आशंका थी. सोनम को अंदर ही रहने को कह दिया गया था, ताकि कहीं पिछली बार की तरह सांवरी की जगह सोनम को न पसंद कर लें लड़के वाले. मां प्रार्थना करती रहीं, पर सब बेकार गया. सांवरी को देखते ही लड़के की मां की भौंहें तन गईं. वे उठ खड़ी हुईं, ‘‘इतनी भद्दी, काली और बदसूरत लड़की, इस से मैं अपने बेटे की शादी कभी नहीं कर सकती.’’

कमरे में सन्नाटा छा गया. पापा हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘‘बहनजी, हमारी बेटी केवल रंग से मात खा गई है. आप की घरगृहस्थी को अच्छे से जोड़ कर रखेगी. बहुत ही गुणी और सुशील है, मेरी बेटी. कालेज में भी इस का बहुत नाम है.’’ ‘‘रहने दीजिए, भाईसाहब, गुण और नाम तो बाद में पता चलता है, लेकिन हर कोई रूप सब से पहले देखता है. मैं इस लड़की को बहू बना कर ले जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे कि जरूर मेरे बेटे में कोई कमी है. तभी ऐसी बहू घर आई है,’’ कह कर सब चलते बने.

घर का वातावरण तनावयुक्त और बोझिल हो उठा. पापा चुपचाप सोफे पर बैठ कर सिगरेट पीने लगे. मां रोने लगीं. भैया बाहर निकल गए. सोनम अंदर से आ कर चायनाश्ते के बरतन समेटने लगी. भाभी के ताने शुरू हो गए थे और सांवरी सबकुछ देखसुन कर फिर से सहज और सामान्य हो गई. उस वर्ष सांवरी को अपने कालेज की सब से लोकप्रिय प्रवक्ता का पुरस्कार मिला था. अपने अच्छे व्यवहार और काबिलीयत के दम पर वह कालेज के प्रत्येक विद्यार्थी और शिक्षक की पहली पसंद बन गई थी. इतनी कम उम्र में किसी प्रवक्ता को यह पुरस्कार नहीं मिला था. उसे लगातार बधाइयां मिल रही थीं. एक दिन कालेज पहुंच कर जैसे ही वह स्टाफरूम में गई तो वहां टेबल पर एक बड़ा सा बुके देखा. समूचा वातावरण उस बुके के फूलों की खुशबू से महक रहा था.

‘‘कितना सुंदर बुके है,’’ सांवरी के मुंह से निकला. वहीं बैठी सांवरी की एक सहयोगी और दोस्त रचना हंस पड़ी और बोली, ‘‘यह बुके आप के लिए ही है, मिस सांवरी.’’

‘‘मुझे किस ने बुके भेजा है?’’ ‘‘मैं ने,’’ पीछे से किसी युवक की आवाज आई.

सांवरी चौंक कर पलटी तो देखा कि एक सुंदर और स्मार्ट युवक उस की तरफ देख कर मुसकरा रहा था. ‘‘आप कौन हैं?’’ सांवरी ने पूछा. रचना ने दोनों को परिचय कराया, ‘‘सांवरी, ये मिस्टर राजीव, हिंदी के लैक्चरर. आज ही कालेज जौइन किया है. ये कवि भी हैं और मिस्टर राजीव ये हैं मिस सांवरी, जीव विज्ञान की लैक्चरर.’’

‘‘कमाल है, आप लैक्चरर हैं. मुझे तो लगा शायद कालेज की कोई स्टूडैंट है,’’ सांवरी ने हैरान हो कर कहा. ‘‘हैरान तो मैं हूं. इतने कम समय में आप कालेज में इतनी लोकप्रिय हो गई हैं, वरना लोगों की तो पूरी जिंदगी ही निकल जाती है कालेज में हरेक की पसंद बनने में.’’

सांवरी हंस दी. मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. खाली समय में राजीव सांवरी से कविता और साहित्य पर बातें करता था, जो सांवरी को बहुत अच्छी लगती थीं. उन दिनों राजीव एक कविता संग्रह लिखने की तैयारी कर रहा था. कविता संग्रह छपने के बाद वह काफी प्रसिद्ध हो गया. हर तरफ से बधाइयों का तांता लग गया. राजीव को सब से पहले बधाई सांवरी ने ही दी.

बधाई स्वीकार करते हुए राजीव ने कहा, ‘‘पता है सांवरी, मेरी इन कविताओं को लिखने की प्रेरणा तुम्हीं हो. तुम मेरे पतझड़ जैसे जीवन में बसंत बन कर आई हो,’’ बिना किसी भूमिका के राजीव ने यह बात कह दी. सांवरी के दिल की धड़कनें मानो तेज हो उठीं. उस दिन सांवरी ने राजीव की आंखों में अपने लिए दोस्ती के अलावा और भी कुछ देखा था. ‘क्या वे सचमुच मुझ से प्यार करते हैं?’ यह विचार मन में आते ही सांवरी का रोमरोम पुलकित हो उठा. उन्होंने मेरे रंग को नहीं देखा, मेरी सुंदर आंखें देखीं, सुंदर बाल देखे, सुंदर होंठ देखे. राजीव कवि हैं और कवि तो हर चीज में सुंदरता ढूंढ़ ही लेते हैं. वह भी राजीव को चाहने लगी थी.

रौयल्टी की रकम मिलने के बाद राजीव ने पार्टी रखी. सोनम को पार्टियों में जाने का बहुत शौक था, लिहाजा, सांवरी उसे भी साथ लेती गई. ‘‘आई कांट बिलीव दिस, क्या वाकई में सोनम तुम्हारी बहन है?’’ सोनम को देख कर राजीव आश्चर्य और हैरानी से सांवरी से बोला. राजीव की इस बात पर दोनों हंसने लगीं, क्योंकि यह सवाल उन के लिए नया नहीं था. जो भी उन दोनों को साथ देखता, विश्वास नहीं न करता कि दोनों बहनें हैं.

पूरी पार्टी के दौरान राजीव सोनम के इर्दगिर्द मंडराता रहा. सांवरी की ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया. सांवरी को यह थोड़ा बुरा भी लगा, पर वह यह सोच कर सामान्य हो गई कि शायद राजीव अपनी होने वाली साली से मेलजोल बढ़ा रहे हैं. पार्टी खत्म होने के बाद राजीव ने उन दोनों से कहा, ‘‘तुम्हारे मांबाप ने तुम दोनों बहनों का नाम बहुत सोचसमझ कर रखा है. सांवली सी सांवरी और सोने जैसी सुंदर सोनम. दोनों बहनें यह सुन कर मुसकरा दीं.’’

उस के बाद राजीव का सांवरी के घर भी आनाजाना शुरू हो गया. घर के सभी सदस्यों से वह काफी घुलमिल गया था. एक दिन राजीव सभी लोगों से बैठा बातें कर रहा था. सांवरी किचन में चाय बना रही थी. चाय ले कर जैसे ही कमरे में घुसने को थी कि उसे भाभी का स्वर सुनाई पड़ा. वे राजीव से पूछ रही थीं, ‘‘तो कैसी लगी आप को हमारी ननद?’’

‘‘बहुत सुंदर. इन के सौम्य रूप से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं. पहली बार जब मैं ने इन्हें देखा था, तभी से इन की मूरत मेरी आंखों में बस गई. मेरी तलाश पूरी हो गई है. अब मैं इस संबंध को नया नाम देना चाहता हूं. शादी करना चाहता हूं मैं इन से. मेरे पापा तो नहीं हैं, केवल मां और एक छोटी बहन है. उन्हें ले कर कल आऊंगा शादी की बात करने.’’ सांवरी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह अंदर नहीं गई. रात को खाने के समय भी वह किसी के सामने नहीं गई. कहीं भाभी या सोनम उसे प्यार से छेड़ न दें.

आज रात नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. अब सबकुछ अच्छा ही होगा. पहली बार अपने जीवन को ले कर वह बहुत उत्साहित थी. राजीव से उस की शादी होने के बाद सोनम की शादी का भी रास्ता साफ हो जाएगा. 2 दिन पहले मां को पापा से कहते सुना था, ‘‘अब हमें और देर नहीं करनी चाहिए. सोनम की शादी कर देने में ही भलाई है. सांवरी के नसीब में कोई होगा तो उसे मिल जाएगा,’’ पापा ने भी हामी भर दी थी. सांवरी के जी में आया था कि उसी समय राजीव के बारे में बता दे, पर अब तो उन की सारी चिंता दूर हो गई होगी. राजीव ने खुद सांवरी का हाथ मांगा था. यही सब सोचते न जाने कब उस की आंख लग गई.

सुबह काफी देर से सांवरी की आंख खुली. घड़ी में देखा, 10 बज चुके थे. वह हड़बड़ा कर उठी. किसी ने मुझे जगाया भी नहीं. राजीव तो सुबह 9 बजे तक अपनी मां और बहन के साथ आने वाले थे. ड्राइंगरूम से जोरजोर से हंसने की आवाजें आ रही थीं. परदे की ओट से सांवरी ने देखा कि राजीव अपनी मां और बहन के साथ बैठे पापा और भैया से बातें कर रहे हैं. उन की बातों से पता चला कि वे अभी कुछ देर पहले ही आए हैं. उस ने चैन की सांस ली. उसे गुस्सा भी आ रहा था. एक तो किसी ने जगाया नहीं, ऊपर से न तो कोई उस पर ध्यान दे रहा है और न ही तैयार होने को कह रहा है. उस ने ठान लिया कि जब मां, भाभी और सोनम खूब मिन्नतें करेंगी, तभी वह तैयार होगी.

ड्राइंगरूम में सब की बातचीत चल रही थी कि पापा ने मां को आवाज लगाई. फिर सांवरी ने जो देखा, वह उस के लिए अकल्पनीय, अविश्वसनीय और अनपेक्षित था. हाथ में चाय की ट्रे लिए सोनम उन लोगों के सामने गई. मां और भाभी साथ थीं. सोनम ने राजीव की मां के पैर छुए. उन्होंने सोनम का माथा चूम कर कहा, ‘‘सचमुच चांद का टुकड़ा है, मेरे बेटे की पसंद,’’ कह कर उन्होंने सोनम के गले में सोने की चेन पहना दी. राजीव ने सोनम को अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म पूरी कर दी. सांवरी स्तब्ध थी. राजीव और सोनम की सगाई? यह कैसे हो सकता है? राजीव तो मुझ से प्यार करते हैं. उन की प्रेरणा तो मैं हूं. मुझे अपने जीवन का बसंत कहा था, राजीव ने. तो क्या वह सब झूठ था? धोखा दिया है राजीव ने मुझे. बेवफाई की है मेरे साथ और सोनम, उस ने मेरे साथ इतना बड़ा छल क्यों किया? वह तो मेरे सब से ज्यादा करीब थी.

वह हमेशा कहा करती थी कि दीदी, जब तक आप की शादी नहीं हो जाती, मैं अपनी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. फिर ये सब क्या है? कितनी बुरी तरह से छला है राजीव और सोनम ने मुझे. इतना बड़ा आघात, इतना भीषण प्रहार किया है इन दोनों ने मुझ पर. इन्हीं दोनों को तो मैं सब से ज्यादा प्यार करती थी. लाख चाह कर भी सांवरी सहज नहीं हो पा रही थी. जीवन के इन कठिनतम क्षणों में उस की दोस्त रचना ने उसे सहारा दिया, ‘‘मैं जानती हूं कि यह तेरे लिए बहुत बड़ी पीड़ा है. तेरे अपनों ने ही तुझे बहुत बड़ा धोखा दिया है. कितनी बार तू अपना अपमान करवाएगी शादीब्याह के चक्कर में पड़ कर? अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना सांवरी.

’’ तू कितनी बुद्धिमान, प्रतिभाशाली और काबिल है, फिर क्यों इतनी निराश हो गई है? तेरे सामने तेरा उज्ज्वल भविष्य पड़ा है. तू कुछ भी कर सकती है, सांवरी,’’ रचना की बातों से सांवरी कुछ सहज हुई. उसे नया हौसला मिला. धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होने लगा. वक्त बहुत आगे निकल चुका है. बहुत कुछ बदल चुका है. आज सांवरी एक प्रशासनिक अधिकारी होने के साथसाथ समाजसेविका और सैलेब्रिटी भी है. अपने बलबूते उस ने ‘जीवन रक्षा केंद्र’ नामक संस्था खोल रखी है, जिस के माध्यम से वह विकलांग, गरीब, असहाय और अनाथों के लिए काम करती है.

वह लोगों के जीवन में खुशियां लाना चाहती है. सादगी, ईमानदारी और मानवीयता जैसी भावनाओं और संवेदनाओं से पूर्ण सांवरी को जितना प्यार, सम्मान, सुख और विश्वास गैरों से मिला, अपनों से उतनी ही बेरुखी, नफरत, धोखा, छल और बेवफाई मिली थी पर सांवरी अब इन सब से दूर हो गई थी. अब यहां न तो मांबाप की बेबसी थी, न ही थे भाभी के चुभते ताने, न बहन का धोखा और न ही विश्वासघाती और बेवफा राजीव.

आज उस ने इन सब पर विजय प्राप्त कर ली है. समाज के उपेक्षित लोगों के जीवन में अंधकार कम करना ही सांवरी का एकमात्र लक्ष्य है. गरीबों और असहाय लोगों के लिए वह ढेर सारा काम करना चाहती है. जो मन में है, उसे पूरा करने के लिए सांवरी फिर से जन्म लेना चाहती है. एक जन्म काफी नहीं है. छोटेछोटे बच्चों, बड़ेबूढ़ों के चेहरे पर अपनी वजह से मुसकान देख कर सांवरी को अपार सुख और संतुष्टि प्राप्त होती है.

सचमुच आज उस ने जान लिया है कि दूसरों के लिए जीने में कितना सुख है. दूसरों के लिए जीना ही तो सही माने में जीना है. आखिर, जीना इसी का नाम है.

Hindi Story Collection : बड़ा जिन्न

Hindi Story Collection : सकीना बी.ए. पास थी और शक्ल ऐसी कि लाखों में एक. कई जगह से उस की शादी के पैगाम आए परंतु उस के मांबाप ने सब नामंजूर कर दिए. कारण यह था कि सभी लड़के साधारण घरानों के थे. कुछ नौकरी करते थे तो कुछ का छोटामोटा व्यापार था. उन का रहनसहन भी साधारण था.

सकीना के बाप कुरबान अली चाहते थे कि सकीना को ऊंचे खानदान, धनी लड़का और ऊंचा घर मिले. ऐसा लड़का उन्हें जल्दी ही मिल गया. हालांकि समाज की मंडियों में ऐसे लड़कों के ग्राहकों की कमी नहीं होती, मगर कुरबान अली की बोली इस नीलामी में सब से ऊंची थी.

कुरबान अली बेटी के लिए जो लड़का लाए, वह खरा सैयद था. लड़के के बाप ठेकेदार थे, लंबाचौड़ा मकान था और हजारों की आमदनी थी. लड़का कुछ भी नहीं करता था. बस, बाप के धन पर मौज उड़ाता था.

वह लड़का भी कुरबान अली को 80 हजार रुपए का पड़ा. स्कूटर, रंगीन टीवी, वी.सी.आर., फ्रिज सबकुछ ही देना पड़ा. कुरबान अली का दिवाला निकल गया. उन के होंठों पर से वर्षों के लिए मुसकराहट गायब हो गई. ऊंचे लड़के के लिए ऊंची कीमत देनी पड़ी थी. छोटू ठेकेदार का एक ही बेटा था. अच्छे पैसे बना लिए उस के. क्यों न बनाते? जब देने वाले हजार हों तो लेने वाले क्यों तकल्लुफ करें? बब्बन मियां एक बीवी के मालिक हो गए और 80 हजार रुपए के भी.

एक वर्ष बीत गया. स्कूटर भी पुराना हो गया और बीवी भी. पुरानी वस्तुओं पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना नई पर दिया जाता है. बब्बन मियां की दिलचस्पी सकीना में न होने के बराबर रह गई.

सकीना सबकुछ सह लेती परंतु उस की गोद खाली थी. सासननदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. बच्चा होने के दूरदूर तक आसार नहीं थे. सकीना जानती थी कि औरत का पहला फर्ज बच्चा पैदा करना है.

आसपास की बूढि़यों ने सकीना की सास से कहा, ‘‘बहू पर असर है. इसे जलालशाह के पास ले जाओ.’’

सकीना स्वयं पढ़ीलिखी थी और उस का घराना भी जाहिल नहीं था. ससुराल में तो अंधेरा ही अंधेरा था, जहालत और अंधविश्वास का.

उस ने बहुत सिर मारा. ससुराल वालों को समझाया, ‘‘जिन्नआसेब, भूतप्रेत, असर, जादूटोना ये सब जहालत की बातें हैं. जिस का जो काम है उसे ही करना चाहिए. घड़ी में खराबी हो जाए तो उसे घड़ीसाज ही ठीक करता है. टूटे हुए जूतों को मोची संभालते हैं. मोटरकार की मरम्मत मिस्तरी करता है परंतु मेरा इलाज डाक्टर की जगह पीर क्यों करेगा?’’

सास खीज कर बोलीं, ‘‘जबान बंद कर. क्या इसीलिए पढ़ालिखा है तू ने कि पीरफकीरों पर भी कीचड़ उछाले? जानती नहीं कि हजारों लोग पीर जलालशाह की खानकाह में हाजिरी दे कर अपनी खाली झोलियां मुरादों से भर कर लौटते हैं? क्या वे सब पागल हैं?’’

एक बूढ़ी ने सास के कान में कहा, ‘‘यह सकीना नहीं बोल रही है, यह तो इस पर सवार जिन्न की आवाज है. इस पर न बिगड़ो.’’

सकीना ने मजबूर हो कर बब्बन मियां से कहा, ‘‘यह क्या जहालत है? मुझे पीर साहब के पास खानकाह भेजा जा रहा है. वैसे तो औरतों से इतना सख्त परदा कराया जाता है, लेकिन पीर साहब भी तो गैर आदमी हैं. आप शायद नहीं जानते कि ये लोग खुद भी किसी जिन्न से कम नहीं होते. मुझे किसी डाक्टर को दिखा दीजिए या फिर मुझे घर भिजवा दीजिए.’’

बब्बन मियां ने साफसाफ कह दिया, ‘‘पीर साहब को खुदा ने खास ताकत दी है. उन्होंने सैकड़ों जिन्न उतारे हैं. वह किसी औरत के लिए भी गैरमर्द नहीं हैं क्योंकि उन की आंखें औरत के बदन को नहीं, उस की रूह को देखती हैं. तुम पर असर है, इसलिए तुम अपने घर भी नहीं जा सकतीं. कान खोल कर सुन लो, तुम्हें पीर साहब से इलाज कराना ही होगा. अगर तुम्हारे बच्चा न हुआ तो फिर मुझे इस खानदान के वारिस के लिए दूसरी शादी करनी पड़ेगी.’’

सकीना कांप उठी.

जुमेरात के दिन वही औरतें खानकाह में जाती थीं जो बच्चे की मुराद मानती थीं. पीर साहब की यह पाबंदी थी कि उन के साथ कोई मर्द नहीं जा सकता था.

जब सकीना बुरका ओढ़ कर खानकाह पहुंची तो दिन छिप रहा था. रास्ते के दोनों तरफ मर्द और औरतें हाथों में सुलगते हुए फलीते लिए बैठे थे. एक ओर फकीरों की भीड़ थी. वहां हार, फूल और मिठाई की दुकानें भी थीं. हवा में लोबान और अगरबत्तियों की खुशबू बिखरी पड़ी थी.

खानकाह की बड़ी सी इमारत औरतों से भरी पड़ी थी. चौड़े मुंह वाले भारीभरकम पीर साहब कालीन पर बैठे थे. घनी दाढ़ी और लाललाल आंखें. वह औरतों को देखदेख कर उन्हें फलीते पकड़ा रहे थे.

सकीना की बारी आई तो उन की लाल आंखों में चमक आ गई.

‘‘बहुत बड़ा जिन्न है,’’ वह दाढ़ी पर हाथ फेर कर बोले, ‘‘2 घंटे बाद सामने वाले दरवाजे से अंदर चली जाना. एक आदमी तुम्हें बता देगा.’’

सकीना यह सुन कर और भी परेशान हो गई.

‘न जाने क्या चक्कर है?’ वह सोच रही थी, ‘अगर कोई ऐसीवैसी बात हुई तो मैं अपनी जान तो दे ही सकती हूं.’

और उस ने गिरेबान में रखे चाकू को फिर टटोल कर देखा.

2 घंटे बीतने पर एक भयंकर शक्ल वाले आदमी ने सकीना के पास आ कर कहा, ‘‘उस दरवाजे में से अंदर चली जाओ. वहां अंधेरा है, जिस में पीर साहब जिन्न से लड़ेंगे. डरना नहीं.’’

सकीना कांपती हुई अंदर दाखिल हुई. घुप अंधेरा था.

उस के कानों में सरसराहट की सी आवाज आई और फिर घोड़े की टापों की सी धमक के बाद सन्नाटा छा गया.

उस के कानों के पास किसी ने कहा, ‘‘मैं जिन्न हूं और तुझे उस दिन से चाहता हूं जब तू छत पर खड़ी बाल सुखा रही थी. मैं ने ही तेरे बच्चे होने बंद कर रखे हैं. सुन, मैं तो हवा हूं. मुझ से डर कैसा?’’

सकीना पसीने में नहा गई. उसे किसी की सांसों की गरमी महसूस हो रही थी.

उस ने थरथर कांपते हुए गिरेबान से चाकू निकाल लिया.

किसी ने सकीना से लिपटना चाहा. मगर अगले ही पल उस का सीधा हाथ ऊपर उठा. चाकू ‘खचाक’ से किसी नरम वस्तु में धंस गया. उलटा हाथ बालों से टकराया. उस ने झटका दिया. बालों का गुच्छा मुट्ठी में आ गया. उसी के साथ एक करुणा भरी चीख कमरे में गूंज गई.

सकीना पागलों के समान उलटे पैरों भाग खड़ी हुई, भागती ही रही.

अगले दिन वह पुलिस थाने में अपना बयान लिखवा रही थी और पीर साहब अस्पताल में पड़े थे. उन के पेट में गहरा घाव था और दाढ़ी खुसटी हुई थी.

शाम को देखते ही देखते खानकाह पर पत्रकारों की भीड़ लग गई थी.

Interesting Hindi Stories : पुष्पा – कहां चली गई थी वह

Interesting Hindi Stories : उस बड़ी सी कालोनी के 10 घरों में पार्टटाइम काम कर रही थी. कब से, यह बात कम ही लोग जानते थे. कितने ही घरों में नए मालिक आ चुके थे, पर हर नए मालिक ने पुष्पा को अपना लिया था. 240 सी वाली यादव मेम साहब ने नई बहू को बताया था, ‘‘जब मैं ने अपनी ससुराल में पहला कदम रखा था, तब पुष्पा ने ही सब से पहले मेरे लंबे घूंघट में अपना मुंह घुसा कर मेरी सास को कहा था, ‘अरे अम्मां, तुम बहू लाई हो या चांद का टुकड़ा… मैं वारी जाऊं, हाथ लगाते ही मैली हो जाएगी.’ 240 सी वाली मेम साहब एक बडे़ दफ्तर में काम करती थीं और उसी दिन से पुष्पा की चहेती बन गई थीं. पुष्पा यादव मेम साहब की सास को ‘अम्मां’ कह कर ही बुलाती थी. अम्मां ने उसे मां की तरह ही पाला था और उसे अपने बच्चों सा ही प्यार दिया था. किसी भी नए घर में रखने से पहले पूरी जानकारी अम्मां लेती थीं और फिर यह काम 240 सी वाली यादव मेम साहब ने करना शुरू कर दिया था. 20 सालों में पुष्पा 19 साल से 39 की हो गई,

पर अभी भी उस में फुरती भरी थी. पुष्पा का बाप अम्मां के ही गांव का चौकीदार था. पुष्पा के जन्म के फौरन बाद उस की मां चल बसी थी. लेकिन बाद में बाप ने कभी उसे मां की कमी महसूस नहीं होने दी थी. दिन बीतते देर नहीं लगती. एक के बाद एक 14 साल पार कर के बरसाती नदी सी अल्हड़ पुष्पा बचपन को पीछे छोड़ जवानी की चौखट पर आ पहुंची थी. उन्हीं दिनों बाप ने पढ़ाई छुड़वा कर 17 साल की उम्र में ब्याह करा दिया, लेकिन जिस शान से वह ससुराल पहुंची, उसी शान से 10 दिन में वापस भी आ गई. पति ने एक सौत जो बिठा रखी थी पड़ोस में. बाप के पास रह कर मजूरी करना पुष्पा को मंजूर था, लेकिन सौत की चाकरी करना उस के स्वभाव में नहीं था. उस घर में दूसरे दर्जे की पत्नी बन कर रहना उसे कतई पसंद न आया. चौकीदार बाप ने उसे इस कालोनी में नौकरी दिला दी थी.

पुष्पा ने भी खुशीखुशी सारे घरों को संभाल लिया था. सर्वैंट क्वार्टर में उस का पक्का ठिकाना हो गया था. दुख की हलकी सी छाया भी उस के चेहरे पर दिखाई न दी थी. 2 साल बाद पुष्पा का बाप भी चल बसा. फिर धीरेधीरे वह इस कालोनी के लोगों में ही शामिल होती चली गई. किसी ने भी उसे कभी कुछ कहा हो, याद नहीं. पुष्पा ने हर घर का काम मुस्तैदी से किया और शिकायत का सवाल ही नहीं था. 5-6 घरों की चाबियां उसी के पास रहती थीं. बच्चे कब स्कूल से आएंगे, कौन सी बस से आएंगे, खाने में क्या खाएंगे, उसे मालूम था. ऐसा लगता था कि वह कालोनी की कामकाजी औरतों की जान है. घर के भंडारे से ले कर बाहर तक के सारे कामकाज का जिम्मा पुष्पा के ही सिर पर था. शादीब्याह के मौकों पर रिश्ते की औरतें आतीं और कमरों का एकएक कोना थाम कर अपनाअपना सामान सजा कर बैठ जातीं. लेकिन सब को समय पर चाय मिलती और समय पर खाना. ऐसे में पुष्पा को जरा भी फुरसत नहीं मिलती थी.

हर मेमसाहब और मेहमानों के काम में हाथ बंटाती वह चकरघिन्नी की तरह घूमती हुई सारा घर संभालती थी. पुष्पा को इस कालोनी से न जाने कैसा मोह सा हो गया था कि वह कहीं और जाने को तैयार न होती. सब बच्चे उसी की गोद में पले थे. अकसर सभी की छोटीमोटी जरूरतें पुष्पा ही पूरी करती थी. न जाने कितनी बार उस ने बच्चों को अपनीअपनी मांओं से पिटने से भी बचाया था. यादव मेम साहब अकसर कहतीं, ‘‘तुम इन सब को सिर पर चढ़ा कर बिगाड़ ही दोगी पुष्पा.’’ ‘‘अरे नहीं मेम साहब, मैं क्या इन का भलाबुरा नहीं समझती,’’ कहते हुए वह बच्चों को अपनी बांहों में समेट लेती.

धीरेधीरे बच्चों के ब्याह होने लगे. घरों में नए लोग आने लगे. ऐसे में एक दिन 242 सी वाली मेम साहब ने पूछ ही लिया, ‘‘अरे पुष्पा, सब का ब्याह हुआ जा रहा है, तू कब ब्याह करेगी?’’ ‘‘मैं तो ब्याही हूं मेम साहब,’’ वह लजा गई. ‘‘अरे, वह भी कोई ब्याह था तेरा, न जाते देर, न आते देर. अब तक तो तुझे दूसरा ब्याह कर लेना चाहिए था,’’ 250 सी वाली ने भी उसे समझाते हुए कहा ही था कि पुष्पा अपने कान पकड़ते हुए बोली, ‘‘यह क्या कहती हो मेम साहब, एक मरद के रहते दूसरा कैसे कर लूं? अरे, उस ने तो मुझे भगाया नहीं, मैं खुद ही चली आई थी.’’ लेकिन एक दिन न जाने कहां से पता पूछतेपूछते पुष्पा का मर्द आ ही टपका. पुष्पा सोसाइटी की सीढि़यां धो रही थी. दरवाजा खुलने के साथ ही उस ने घूम कर देखा. दूसरे ही पल साफ पहचान गई अपने मर्द को. इतने सालों बाद भी उस में ज्यादा फर्क नहीं आया था. बालों में हलकी सफेदी जरूर आ गई थी, पर शरीर वैसा ही दुबलापतला था.

लेकिन वह पुष्पा को नहीं पहचान पाया. उस को एकटक अपनी ओर देखता पा कर उस ने थोड़ी हिम्मत से कहा, ‘‘मैं… दिनेश हूं. पुष्पा क्या यहीं…?’’ लेकिन दूसरे ही पल उसे लगा कि शायद यही तो पुष्पा है, ‘‘कहीं तुम ही तो…?’’ पुष्पा ने धीरे से सिर झुका लिया. उस की चुप्पी से उस का साहस बढ़ा, ‘‘मैं तुम्हें लेने आया हूं पुष्पा.’’ पुष्पा सिर झुकाए चुपचाप खड़ी रही. ‘‘मैं बिलकुल अकेला रह गया हूं. तुम्हारी बहुत याद आती?है. देखो, इनकार मत करना.’’ पुष्पा हैरानी से अपने मर्द को देखती रह गई. इतने सालों बाद आज किस हक से वह उसे लेने आया है. पुष्पा के चेहरे पर कई रंग आए और गए. उस ने कुछ सख्त लहजे में कहा, ‘‘क्यों…? तुम्हारी ‘वह’ कहां गई?’’ ‘‘कौन… लक्ष्मी…? वह तो बहुत समय पहले ही मुझे छोड़ कर चली गई थी. लालची थी न…

जब तक मेरे पास पैसे रहे, वह भी रही. पैसे खत्म हो गए, तो वह भी चली गई.’’ कुछ ठहर कर दिनेश ने फिर गिड़गिड़ा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. जो चाहे सजा दे लो, लेकिन तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा. देखो, इनकार मत करना,’’ उस की आंखों से आंसू बह चले थे. पुष्पा का दिल भर आया. औरत का दिल जो ठहरा. जरा सा किसी के आंसू देखे, झट पिघल गया. उस ने गौर से उसे देखा, ‘कैसा तो हो आया है इस का चेहरा. ब्याह के समय कैसी मजबूत और सुंदर देह थी इस की. बहुत कमजोर भी लग रहा है,’ आंसुओं को आंचल के कोर से पोंछ कर उस ने अपने पति दिनेश को बरामदे में रखे स्टूल पर बैठाया और खुद एक फ्लैट में चली गई. मेम साहब के पास जा कर वह धीरे से बोली, ‘‘मेम साहब, मेरा मर्द आया है.’’ ‘‘क्या…?’’ सुन कर वे चौंक गईं. पुष्पा पागल तो नहीं हो गई.

उन्होंने एक बार फिर पूछा, ‘‘कौन आया है?’’ ‘‘वह बाहर बैठा है. कह रहा है, मुझे लेने आया है,’’ पुष्पा धीरे से बाहर की ओर मुड़ गई. अब तो आगेआगे पुष्पा और पीछे से एकएक कर के सब फ्लैटों की मेम साहबें अपने सब काम छोड़ कर एक लाइन से बरामदे में आ कर खड़ी हो गईं. सब को देखते ही वह घबरा कर खड़ा हो गया. सब की घूरती निगाहों का सामना करने की हिम्मत शायद उस में नहीं थी. सिर झुका कर वह धीरे से बोला, ‘‘मैं दिनेश हूं. पुष्पा को लेने आया हूं.’’ ‘‘क्यों…?’’ अपने गुस्से को दबाते हुए एक मेम साहब बोलीं, ‘‘इतने बरस कहां था, जब पुष्पा…’’ तब तक पुष्पा ने आगे आ कर भरे गले से उन्हें वहीं रोक दिया, ‘‘कुछ न कहो मेम साहब इसे. यह अकेला है. इसे मेरी जरूरत है. देर से ही सही, मेरी सुध तो आई इसे.’’ अब इस के आगे कोई क्या बोलता. पुष्पा अंदर जा कर अपना सामान समेटने लगी. अचानक उस के हाथ रुक गए. इस कालोनी को छोड़ते हुए उसे जाने कैसा लग रहा था.

वह सोचने लगी, ‘कितनी मतलबी हूं मैं. अपने सुख के लिए आज इन लोगों का सारा स्नेह, सारा प्रेम मैं कैसे भूल गई. कितनी आसानी से मैं इन लोगों को छोड़ कर जाने को तैयार हो रही हूं,’ उस की आंखों से टपटप गिरते आंसू उस का आंचल भिगोने लगे. अभी वह कुछ सोच ही रही थी कि कई मालकिनें एकसाथ उस के कमरे में जा पहुंचीं. पुष्पा एक मेम साहब के गले लग कर जोर से रो पड़ी, ‘‘मुझे माफ करना, आज मैं सबकुछ भूल गई.’’ ‘‘नहीं पुष्पा, तुम ने उस के साथ जाने का इरादा कर के बहुत अच्छा किया है. अपना मर्द अपना ही होता है. चाहे कितना भी वह भटकता रहे, एक दिन उसे वापस लौटना ही होता?है. जब जागो तभी सवेरा समझो,’’ यादव मेम साहब ने पुष्पा की पीठ थपथपाते हुए कहा.

उस का सामान बाहर पहुंचा दिया गया था. आगे बढ़ कर उस कालोनी के सब लोगों को एकएक कर के नमस्ते करते हुए पुष्पा बोली, ‘‘आप सब खुश रहो.’’ अब तक 240 सी वाली अम्मां भी बाहर आ गई थीं, जो सब से ज्यादा बुजुर्ग थीं. पुष्पा ने सिर झुकाए आंसू भरी आंखों से उन्हें देखा, ‘‘अम्मां,’’ भरे गले से आगे कुछ न बोल सकी. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘इतना दुखी क्यों हो रही हो पुष्पा…? तुम खुशीखुशी उस के साथ घर बसाओ, यही हम सब चाहते हैं. अरे, औरत का जीवन ही यही है. औरत मर्द के बिना और मर्द औरत के बिना अधूरा होता है. ‘‘तुम्हारे जाने का दुख हम सब को है, किंतु तुम्हारे इस फैसले से हमें बहुत खुशी हो रही है. हंसतीखेलती जाओ, मगर हमें भूल मत जाना.’’

इतने में सब ने उन दोनों को रुकने के लिए कहा. 15 मिनट में सारी मालकिनें अपनेअपने हाथों में थैले पकड़े आ गईं. हर कोई बढ़चढ़ कर पुष्पा के लिए अच्छी से अच्छी चीज लाया था. 240 सी वाली यादव मेम साहब ने अपने ड्राइवर को कहा, ‘‘गाड़ी की डिग्गी खोलो और सब सामान रखो. यह इन के साथ जाएगा.’’ 242 सी वाली मेम साहब ने 10,000 रुपए पकड़ाए और कहा, ‘‘मेरा नौकर तुम दोनों को ट्रेन में भी बैठा आएगा.’’ दिनेश ने आगे बढ़ कर पुष्पा का हाथ पकड़ा. धीरेधीरे वे दोनों सब की नजरों से दूर होते चले गए. पुष्पा का कमरा आज भी उस कालोनी में खाली है. सब ने वादा लिया?है बच्चों से कि पुष्पा कभी भी आए, कैसी भी हो, उसे कोई रहने से नहीं रोकेगा.

Hindi Moral Tales : उम्र के इस मोड़ पर

Hindi Moral Tales : आज रविवार है. पूरा दिन बारिश होती रही है. अभी थोड़ी देर पहले ही बरसना बंद हुआ था. लेकिन तेज हवा की सरसराहट अब भी सुनाई पड़ रही थी. गीली सड़क पर लाइट फीकीफीकी सी लग रही थी. सुषमा बंद खिड़की के सामने खोईखोई खड़ी थी और शीशे से बाहर देखते हुए राहुल के बारे में सोच रही थी, पता नहीं वह इस मौसम में कहां है. बड़ा खामोश, बड़ा दिलकश माहौल था. एक ताजगी थी मौसम में, लेकिन मौसम की सारी सुंदरता, आसपास की सारी रंगीनियां दिल के मौसम से बंधी होती हैं और उस समय सुषमा के दिल का मौसम ठीक नहीं था.

विशाल टीवी पर कभी गाने सुन रहा था, तो कभी न्यूज. वह आराम के मूड में था. छुट्टी थी, निश्चिंत था. उस ने आवाज दी, ‘‘सुषमा, क्या सोच रही हो खड़ेखड़े?’’

‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही बाहर देख रही हूं, अच्छा लग रहा है.’’

‘‘यश और समृद्धि कब तक आएंगे?’’

‘‘बस, आने ही वाले हैं. मैं उन के लिए कुछ बना लेती हूं,’’ कह कर सुषमा किचन में चली गई.

सुषमा जानबूझ कर किचन में आ गई थी. विशाल की नजरों का सामना करने

की उस में इस समय हिम्मत नहीं थी. उस की नजरों में इस समय बस राहुल के इंतजार की बेचैनी थी.

सुषमा और विशाल के विवाह को 20 वर्ष हो गए थे. युवा बच्चे यश और समृद्धि अपनीअपनी पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त हुए तो सुषमा को जीवन में एक रिक्तता खलने लगी. वह विशाल से अपने अकेलेपन की चर्चा करती, ‘‘विशाल, आप भी काफी व्यस्त रहने लगे हैं, बच्चे भी बिजी हैं, आजकल कहीं मन नहीं लगता, शरीर घरबाहर के सारे कर्त्तव्य तो निभाता चलता है, लेकिन मन में एक अजीब वीराना सा भरता जा रहा है. क्या करूं?’’

विशाल समझाता, ‘‘समझ रहा हूं तुम्हारी बात, लेकिन पद के साथसाथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती जा रही हैं. तुम भी किसी शौक में अपना मन लगाओ न’’

‘‘मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता है. मन करता है कोई मेरी बात सुने, मेरे साथ कुछ समय बिताए. तुम तीनों तो अपनी दुनिया में ही खोए रहते हो.’’

‘‘सुषमा, इस में अकेलेपन की क्या बात है. यह तो तुम्हारे हाथ में है. तुम अपनी सोच को जैसे मरजी जिधर ले जाओ. अकेलापन देखो तो कहां नहीं है. आजकल फर्क बस इतना ही है कि कोई बूढ़ा हो कर अकेला हो जाता है, कोई थोड़ा पहले. इस सचाई को मन से स्वीकारो तो कोई तकलीफ नहीं होती और हां, तुम्हें तो पढ़नेलिखने का इतना शौक था न. तुम तो कालेज में लिखती भी थी. अब समय मिलता है तो कुछ लिखना शुरू करो.’’ मगर सुषमा को अपने अकेलेपन से इतनी आसानी से मुक्त होना मुश्किल लगता.

इस बीच विशाल ने रुड़की से दिल्ली एमबीए करने आए अपने प्रिय दोस्त के छोटे भाई राहुल को घर आने के लिए कहा तो सुषमा राहुल से मिलने के बाद खिल ही उठी.

होस्टल में रहने का प्रबंध नहीं हो पाया तो विजय ने विशाल से फोन पर कहा, ‘‘यार, उसे कहीं अपने आसपास ही कोई कमरा दिलवा दे, घर में भी सब लोगों की चिंता कम हो जाएगी.’’

विशाल के खूबसूरत से घर में पहली मंजिल पर 2 कमरे थे. एक कमरा यश और समृद्धि का स्टडीरूम था, दूसरा एक तरह से गैस्टरूम था, रहते सब नीचे ही थे. जब कुछ समझ नहीं आया तो विशाल ने सुषमा से विचारविमर्श किया, ‘‘क्यों न राहुल को ऊपर का कमरा दे दें. अकेला ही तो है. दिन भर तो कालेज में ही रहेगा.’’

सुषमा को कोई आपत्ति नहीं थी. अत: विशाल ने विजय को अपना विचार बताया और कहा, ‘‘घर की ही बात है, खाना भी यहीं खा लिया करेगा, यहीं आराम से रह लेगा.’’

विजय ने आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘ठीक है, उसे पेइंगगैस्ट की तरह रख ले.’’

विशाल हंसा, ‘‘क्या बात कर रहा है. जैसे तेरा भाई वैसे मेरा भाई.’’

राहुल अपना बैग ले आया. अपने हंसमुख स्वभाव से जल्दी सब से हिलमिल गया. सुषमा को अपनी बातों से इतना हंसाता कि सुषमा तो जैसे फिर से जी उठी. नियमित व्यायाम और संतुलित खानपान के कारण सुषमा संतुलित देहयष्टि की स्वामिनी थी. राहुल उस से कहता, ‘‘कौन कहेगा आप यश और समृद्धि की मां हैं. बड़ी बहन लगती हैं उन की.’’

राहुल सुषमा के बनाए खाने की, उस के स्वभाव की, उस की सुंदरता की दिल खोल कर तारीफ करता और सुषमा अपनी उम्र के 40वें साल में एक नवयुवक से अपनी प्रशंसा सुन कर जैसे नए उत्साह से भर गई.

कई दिनों से विशाल अपने पद की बढ़ती जिम्मेदारियों में व्यस्त होता चला गया था. अब तो बस नाश्ते के समय विशाल हांहूं करता हुआ जल्दीजल्दी पेपर पर नजर डालता और जाने के लिए बैग उठाता और चला जाता. रात को आता तो कभी न्यूज, कभी लैपटौप, तो कभी फोन पर व्यस्त रहता. सुषमा उस के आगेपीछे घूमती रहती, इंतजार करती रहती कि कब विशाल कुछ रिलैक्स हो कर उस की बात सुनेगा. वह अपने मन की कई बातें उस के साथ बांटना चाहती, लेकिन सुषमा को लगता विशाल की जिम्मेदारियों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. उसे लगता एक चतुर अधिकारी के मुखौटे के पीछे उस का प्रियतम कहीं छिप सा गया है.

बच्चों का अपना रूटीन था. वे घर में होते तो भी अपने मोबाइल पर या टीवी में लगे रहते या फिर पढ़ाई में. वह बच्चों से बात करना भी चाहती तो अकसर दोनों बच्चों का ध्यान अपने फोन पर रहता. सुषमा उपेक्षित सी उठ कर अपने काम में लग जाती.

और अब अकेले में वह राहुल के संदर्भ में सोचने लगी. लेकिन कौन, कब, बिना कारण, बिना चेतावनी दिए इंसान के भीतर जगह पा जाता है, इस का आभास उस घटना के बाद ही होता है. सुषमा के साथ भी ऐसा ही हुआ. राहुल आया तो दिनबदिन विशाल और बच्चों की बढ़ती व्यस्तता से मन के एक खाली कोने के भरे जाने की सी अनुभूति होने लगी.

विशाल टूर पर रहता तो राहुल कालेज से आते ही कहता, ‘‘भैया गए हुए हैं. आप बोर हो रही होंगी. आप चाहें तो बाहर घूमने चल सकते हैं. यश और समृद्धि को भी ले चलिए.’’

सुषमा कहती, ‘‘वे तो कोचिंग क्लास में हैं. देर

से आएंगे. चलो, हम दोनों ही चलते हैं. मैं गाड़ी निकालती हूं.’’

दोनों जाते, घूमफिर कर खाना खा कर ही आते, सुषमा राहुल को अपना पर्स कहीं निकालने नहीं देती. राहुल उस के जीवन में एक ताजा हवा का झोंका बन कर आया था. दोनों की दोस्ती का दायरा बढ़ता गया. वह अकेलेपन की खाई से निकल कर नई दोस्ती की अनुभूति के सागर में गोते लगाने लगी. अपनी उम्र को भूल कर किशोरियों की तरह दोगुने उत्साह से हर काम करने लगी. राहुल की हर बात, हर अदा उसे अच्छी लगती.

कई दिनों से अकेलेपन के एहसास से चाहेअनचाहे अपने भीतर का खाली कोना गहराई से महसूस करती आ रही थी. अब उस जगह को राहुल के साथ ने भर दिया था. कोई भी काम करती, राहुल का ध्यान आता रहता. उस का इंतजार रहता. वह लाख दिल को समझाती कि अब किसी और का खयाल गुनाह है, लेकिन दिल क्या बातें समझ लेता है? नहीं, यह तो सिर्फ अपनी ही जबान समझता है, अपनी ही बोली जानता है. उस में जो समा जाए वह जरा मुश्किल ही से निकलता है.

अब तो न चाहते हुए भी विशाल के साथ अंतरंग पलों में भी वह राहुल की चहकती आवाज से घिरने लगती. मन का 2 दिशाओं में

पूरे वेग से खिंचना उसे तोड़ जाता. मन में उथलपुथल होने लगती, वह सोचती यह बैठेबैठाए कौन सा रोग लगा बैठी. यह किशोरियों जैसी बेचैनी, हर आहट पर चौंकना, कभी वह शीशे के सामने खड़ी हो कर अपनी मनोदशा पर खुद ही हंस पड़ती.

अचानक एक दिन राहुल कालेज से मुंह लटकाए आया. सुषमा ने खाने

के लिए पूछा तो उस ने मना कर दिया. वह चुपचाप ड्राइंगरूम में ही गुमसुम बैठा रहा. सुषमा ने बारबार पूछा तो उस ने बताया, ‘‘आज कालेज में मेरा मोबाइल खो गया है. यहां आते समय विजय भैया ने इतना महंगा मोबाइल ले कर दिया था. भैया अब बहुत गुस्सा होंगे.’’

सुषमा चुपचाप सुनती रही. कुछ बोली नहीं. लेकिन अगले ही दिन उस ने अपनी जमापूंजी से क्व15 हजार निकाल कर राहुल के हाथ पर जबरदस्ती रख दिए. राहुल मना करने लगा, लेकिन सुषमा के जोर देने पर रुपए रख लिए.

कुछ महीने और बीत गए. विशाल भी फुरसत मिलते ही राहुल के हालचाल पूछता, वैसे उस के पास समय ही नहीं रहता था. सुषमा पर घरगृहस्थी पूरी तरह से सौंप कर अपने काम में लगा रहता था. सुषमा मन ही मन पूरी तरह राहुल की दोस्ती के रंग में डूबी हुई थी. पहले उसे विशाल में एक दोस्त नजर आता था, अब उसे विशाल में एक दोस्त की झलक भी नहीं दिखती.

यह क्या उसी की गलती थी. विशाल को अब उस की कोमल भावनाएं छू कर भी नहीं जाती थीं. राहुल में उसे एक दोस्त नजर आता है. वह उस की बातों में रुचि लेता है, उस के शौक ध्यान में रखता है, उस की पसंदनापसंद पर चर्चा करता है. उसे बस एक दोस्त की ही तो तलाश थी. वह उसे राहुल के रूप में मिल गया है. उसे और कुछ नहीं चाहिए.

एक दिन विशाल टूर पर था. यश और समृद्धि

किसी बर्थडे पार्टी में गए थे. अंधेरा हो चला था. राहुल

भी अभी तक नहीं आया था. सुषमा लौन में टहल रही

थी. राहुल आया, नीचे सिर किए हुए मुंह लटकाए ऊपर अपने कमरे में चला गया. सुषमा को देख कर भी रुका नहीं तो सुषमा को उस की फिक्र हुई. वह उस के पीछेपीछे ऊपर गई. जब से राहुल आया था वह कभी उस के रूम में नहीं जाती थी. मेड ही सुबह सफाई कर आती थी. उस ने जा कर देखा राहुल आंखों पर हाथ रख कर लेटा है.

सुषमा ने पूछा, ‘‘क्या हो गया, तबीयत तो ठीक है?’’

राहुल उठ कर बैठ गया. फिर धीमे स्वर में बोला, ‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘तो रोनी सूरत क्यों बनाई हुई है?’’

‘‘भैया ने बाइक के पैसे भेजे थे, मेरे दोस्त उमेश की बहन की शादी है, उसे जरूरत पड़ी तो मैं ने उसे सारे रुपए दे दिए. अब भैया बाइक के बारे में पूछेंगे तो क्या कहूंगा, कुछ समझ नहीं आ रहा है. वही उमेश याद है न आप को. यहां एक बार आया था और मैं ने उसे आप से भी मिलवाया था.’’

‘‘हांहां याद आया,’’ सुषमा को वह लड़का याद आ गया जो उसे पहली नजर में ही कुछ जंचा नहीं था. बोली, ‘‘अब क्या करोगे?’’

‘‘क्या कर सकता हूं? भैया को तो यही लगेगा कि मैं यहां आवारागर्दी कर रहा हूं, वे तो यही कहेंगे कि सब छोड़ कर वापस आ जाओ, यहीं पढ़ो.’’

राहुल के जाने का खयाल ही सुषमा को सिहरा गया. फिर वही अकेलापन होगा, वही बोरियत अत: बोली, ‘‘मैं तुम्हें रुपए दे दूंगी.’’

‘‘अरे नहींनहीं, यह कोई छोटी रकम नहीं है.’’

‘‘कोई बात नहीं, मेरे पास बच्चों की कोचिंग की फीस रखी है. मैं तुम्हें दे दूंगी.’’

‘‘लेकिन मैं ये रुपए आप को जल्दी लौटा दूंगा.’’

‘‘हांहां, ठीक है. मुझ से कल रुपए ले लेना. अब नीचे आ कर खाना खा लो.’’

सुषमा नीचे आ गई. अपनी अलमारी खोली. सामने ही रुपए रखे थे. सोचा अभी राहुल को दे देती हूं. उसे ज्यादा जरूरत है इस समय. बेचारा कितना दुखी हो रहा है. अभी जा कर पकड़ा देती हूं. खुश हो जाएगा. वह रुपए ले कर वापस ऊपर गई. राहुल के कमरे के दरवाजे के बाहर ही उस के कदम ठिठक गए.

वह फोन पर किसी से धीरेधीरे बात कर रहा था. न चाहते हुए भी सुषमा ने कान उस की आवाज की तरफ  लगा दिए. वह कह रहा था, ‘‘यार उमेश, मोबाइल और बाइक का इंतजाम तो हो गया. सोच रहा हूं अब क्या मांगूगा. अमीर औरतों से दोस्ती करने का यही तो फायदा है, उन्हें अपनी बोरियत दूर करने के लिए कोई तो चाहिए और मेरे जैसे लड़कों को अपना शौक पूरा करने के लिए कोई चाहिए.’’

‘‘मुझे तो यह भी लगता है कि थोड़ी सब्र से काम लूंगा तो वह मेरे साथ सो भी जाएगी. बेवकूफ तो है ही… सबकुछ होते हुए भटकती घूमती है. मुझे क्या, मेरा तो फायदा ही है उस की बेवकूफी में.’’

सुषमा भारी कदमों से नीचे आ कर कटे पेड़ सी बैड पर पड़ गई. लगा कभीकभी इंसान को परखने में मात खा जाती है नजरें. ऐसे जैसे कोई पारखी जौहरी कांच को हीरा समझ बैठे.

तीखी कचोट के साथ उसे स्वयं पर शर्म आई. इतने दिनों से वह राहुल जैसे चालाक इंसान के लिए बेचैन रहती थी, सही कह रहा था राहुल. वही बेवकूफी कर रही थी. अकेलेपन के एहसास से उस के कदम जिस राह पर बढ़ चले थे, अगर कभी विशाल और बच्चों को उस के मन की थाह मिल जाती तो क्या इज्जत रह जाती उस की उन की नजरों में.

तभी विशाल की आवाज कानों में गूंजी, ‘‘अकेलेपन से हमेशा दुखी रहने और नियति को कोसने से तो अच्छा है कि हम चीजों को उसी रूप में स्वीकार कर लें जैसी वे हैं. तुम ऐसा करोगी तभी खुल कर सांस ले पाओगी.’’

इस बात का ध्यान आते ही सुषमा को कुछ शांति सी मिली. उस ने कुदरत को धन्यवाद दिया, उम्र के इस मोड़ पर अभी इतनी देर नहीं हुई थी कि वह स्थिति को संभाल न सके. वह कल ही राहुल को यहां से जाने के लिए कह देगी और यह भी बता देगी वह इतनी बेवकूफ नहीं कि अपने पति की कमाई दूसरों की भावनाओं से खेलने वाले लड़के पर लुटा दे.

वह अपने जीवन की पुस्तक के इस दुखांत अध्याय को सदा के लिए बंद कर रही है ताकि वह अपने जीवन की नई शुरुआत कर सके. कुछ सार्थक करते हुए जीवन का शुभारंभ करने का प्रयत्न तो वह कर ही सकती है. अब वह नहीं भटकेगी. क्रोध, घृणा, अपमान और पछतावे के मिलेजुले आंसू उस की आंखों से बह निकले लेकिन अब सुषमा के मन में कोई दुविधा नहीं थी. अब वह जीएगी अपने स्वयं के सजाएसंवरे लमहे, अपनी खुद की नई पहचान के साथ अचानक मन की सारी गांठें खुल गई थीं. यही विकल्प था दीवाने मन का.

उस ने फोन उठा लिया, राहुल के भाई को फोन कर दिए गए पैसों की सूचना देने के लिए और उन्हें वापस मांगने के लिए.

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