Short Stories in Hindi : प्रज्ञा आज बहुत खुश थी. उसे अमित ने एक स्पैशल ट्रीट के लिए अपने औफिस के पास वाले रैस्टोरैंट में मिलने बुलाया था. प्रज्ञा ने हलके गुलाबी रंग का सूट पहना. बालों को कर्ल किया और अमित की पसंद का परफ्यूम लगा कर उस से मिलने चल दी.
प्रज्ञा और अमित 4 सालों से दोस्त हैं. कुछ दिनों से उन के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो चला था. प्रज्ञा कहीं न कहीं अमित में अपना जीवनसाथी देखने लगी थी. अमित भी उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगा था, मगर कभी इस बात का इजहार नहीं किया था. आज वह इसी मकसद से प्रज्ञा से मिलने वाला था. वह अच्छी जौब करता था. प्रज्ञा ने भी अपनी फाइनैंशियल कंसलटैंसी खोल रखी थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. अमित के मांबाप ने भी इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे दी थी. जाहिर है अब अमित को इस बात का पूरा विश्वास था कि प्रज्ञा हमेशा के लिए उस की बन जाएगी. बस प्यार का इजहार करने की देरी थी.
सही समय पर प्रज्ञा रैस्टोरैंट पहुंची. अमित ने कोने वाली एक बड़ी टेबल बुक करा रखी थी. स्पैशल ट्रीट की पूरी तैयारी थी. अमित ने पहले प्रज्ञा को एक खूबसूरत बुके गिफ्ट किया. फिर खाने का और्डर कर दिया.
प्रज्ञा अमित की नजरों में झांकती हुई बोली, ‘‘इतना सबकुछ क्यों. आज कोई खास दिन है या कोई खास बात?’’
‘‘खास दिन भी है और खास बात भी. तुम्हें याद है 4 साल पहले जब हम ने एमबीए की पढ़ाई शुरू की थी तो सब से पहले आज के दिन ही हमारी मुलाकात हुई थी. हम उसी दिन अच्छे दोस्त बन गए थे और वह दोस्ती आज तक चली आ रही है.
‘‘इस दोस्ती ने मु झे जिंदगी के खूबसूरत पलों से आबाद किया है और मैं चाहता हूं कि यह दोस्ती किसी खास रिश्ते में बदल जाए. मैं तुम्हारे दिल की बात पूरी तरह नहीं जानता मगर अपने पूरे दिल से तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने की इच्छा रखता हूं. अगर तुम्हारी हां हो तो हम आगे का प्लान बनाएं,’’ अमित ने अपने दिल की बात रखी.
प्रज्ञा उसे देखती रह गई. अमित ने सबकुछ इतनी सादगी और सहजता से कह दिया कि प्रज्ञा के पास सिवा हां कहने के कुछ बचा ही नहीं था. वह शरमाती हुई बोली, ‘‘आई लव यू. जैसा तुम चाहो. मैं तो हमेशा से तुम्हारी ही हूं. मैं तैयार हूं इस रिश्ते को एक नाम देने के लिए.’’
अमित का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस ने प्रज्ञा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है इस महीने की 25 तारीख को हम सगाई कर लेते हैं और अगले महीने शादी.’’
‘‘ओके डन.’’
जल्द ही दोनों की सगाई का दिन आ गया. प्रज्ञा की बचपन की सहेली निभा जो मुंबई में रहती थी सगाई में नहीं आ सकी. मगर वह शादी से 2-3 दिन पहले आने वाली थी. उसे प्रज्ञा का फैसला जल्दबाजी में किया हुआ लगा.
सगाई के बाद उस ने प्रज्ञा से फोन पर बात की और पाया कि प्रज्ञा अपनी शादी को ले कर बहुत उत्साहित है. मगर निभा के मन में कुछ और ही चल रहा था.
शादी से करीब 3 दिन पहले वह प्रज्ञा के घर पहुंची. उस दिन मेहंदी की रसम चल रही थी. इसलिए निभा प्रज्ञा से ज्यादा बात नहीं कर सकी. मगर दोनों सहेलियों ने मिल कर इस रस्म को यादगार बना लिया. प्रज्ञा की दूसरी कई सहेलियां भी आई हुई थीं. सब के जाने के बाद अगले दिन निभा कुछ देर प्रज्ञा से बात करने उस के कमरे में चली आई.
उस ने प्रज्ञा से पूछा, ‘‘क्या तु झे नहीं लगता कि जीवन का इतना बड़ा फैसला तूने बहुत जल्दी में ले लिया.’’
‘‘जल्दी में कहां निभा, पिछले 4 साल से हम एकदूसरे को जानते हैं,’’ प्रज्ञा ने सहजता से जवाब दिया.
‘‘जानते हो मगर क्या सम झते भी हो?’’
‘‘हां यार काफी हद तक,’’ प्रज्ञा ने साफ स्वर में कहा.
‘‘मगर पूरी तरह नहीं न प्रज्ञा. यही गलती मैं ने भी की थी और उस की सजा आज तक भुगत रही हूं. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ भी वैसा कुछ हो जो मेरे साथ हुआ.’’
‘‘यह क्या कह रही है निभा, तेरे साथ क्या हुआ? तू क्या मनीष के साथ खुश नहीं? कालेज में तुम दोनों भी तो एकदूसरे के काफी करीब थे?’’
‘‘हां यार हम दोनों ने 2-3 साल डेटिंग की थी. हमें लगता था कि हम एकदूसरे को अच्छी तरह सम झते हैं और एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच हैं. मगर शादी के बाद पता चला कि वह जिंदगी बहुत अलग होती है. शादी के बाद बहुत कुछ मैनेज करना होता है. आप इतनी आसानी से किसी के हो जाते हो मगर जब जिम्मेदारियों का बो झ सिर पर आता है तो आप का रवैया ही बदल जाता है. आज हमारे बीच रोज किसी न किसी बात को ले कर झगड़े होते हैं. अकसर हम कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात नहीं करते. फिर एकसाथ हमारे अंदर का लावा फूट पड़ता है. मेरी लव मैरिज आज तलाक के कगार पर पहुंच गई है. इसलिए तु झे सावधान रहने को कह रही हूं,’’ निभा ने परेशान स्वर में कहा.
‘‘मगर तुम्हारे झगड़ों की वजह क्या है? क्या सासननद की दखलंदाजी या
मनीष शराब पीता है या फिर कोई और है तुम दोनों के बीच?’’ प्रज्ञा ने पूछा.
‘‘हमारे बीच न सास है, न दारू और न लड़की. हमारे बीच हमारा ईगो है. हम छोटीछोटी बातों पर लड़ते हैं. शादी के बाद ऐक्सपैक्टेशंस बहुत बढ़ जाती हैं. वे पूरी न हों तो दिल दुखता है और यह अंजाम होता है. इसलिए शादी से पहले ही छोटीछोटी बातें भी डिस्कस कर लेनी चाहिए ताकि एकदूसरे का असली स्वभाव पता चल सके और बाद में कोई लफड़ा न हो,’’ निभा ने सम झाया.
‘‘तो फिर अब मु झे क्या करना चाहिए?’’ प्रज्ञा ने पूछा.
‘‘मेरे खयाल से तुम अभी इसी वक्त इस दुविधा से निकल सकती हो. ऐसा करो तुम अपने हस्बैंड से किस तरह की ऐक्सपैक्टेशन रखती हो, लाइफ में क्या चाहती हो यह सब अभी डिस्कस करो. अपने मन की बातें करो ताकि शादी के बाद पछताना न पड़े.’’
‘‘ओके. मैं करती हूं बात,’’ प्रज्ञा ने फोन निकाला और अमित को मैसेज किया, ‘‘यार क्या कर रहे हो. मु झे कुछ जरूरी बातें करनी थीं तुम से. आर यू फ्री?’’
‘‘आप के लिए तो यह बंदा हमेशा फ्री है मेरे ख्वाबों की मलिका.’’
‘‘अब इतना भी मस्का मत लगाओ.’’
‘‘ओके बताओ क्या कह रही थीं?’’
‘‘तुम्हें याद है मैं ने कल तुम्हें अपनी सहेली से मिलवाया था जो मुंबई में रहती है.’’
‘‘हां याद है मु झे. तुम निभा की बात कर रही हो न जिस का जिक्र पहले भी तुम कभीकभी करती रहती थीं.’’
‘‘हां यार कल जब वह आई तो मु झे उस की जिंदगी के एक बड़े सच के बारे में पता चला. जानते हो उस का अपने पति से झगड़ा चल रहे है और वह कभी भी तलाक ले सकती है.’’
‘‘मगर क्यों? उन की आपस में क्यों नहीं बनती?’’
‘‘क्योंकि वह निभा को समय नहीं देता है. उस की ऐक्सपैक्टेशंस को पूरा नहीं करता है. दोनों छोटीछोटी बातों पर झगड़ते हैं. अगर निभा किसी बात पर रूठ जाती है तो वह अपने ईगो के कारण कई कई दिनों तक उस से बात नहीं करता. उस की परवाह नहीं करता. तुम तो ऐसा नहीं करोगे न अमित?’’ प्रज्ञा ने सवाल किया.
‘‘नहीं यार, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. अगर गलती मेरी होगी तो तुम्हें जरूर मनाऊंगा,’’ अमित ने आश्वस्त किया.
‘‘और अगर तुम्हारे अनुसार गलती मेरी होगी तो क्या तुम अपने ईगो को ले कर बैठे रहोगे? मु झ से बात नहीं करोगे? मु झे मनाओगे नहीं?’’
‘‘ओफ्कौर्स मैं तुम्हें मनाऊंगा. हमारे बीच एक दिन भी खामोशी नहीं रह सकती. भले ही कितना भी झगड़ा हो जाए पर मैं तुम्हारी परवाह करना कभी नहीं छोड़ सकता क्योंकि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं,’’ अमित ने अपना प्यार दिखाया.
‘‘सो स्वीट वैसे तुम्हारा असली रूप तो शादी के बाद ही दिखेगा,’’ मुसकराते हुए प्रज्ञा ने मैसेज किया.
‘‘ऐसा कुछ नहीं है. लड़कियों का असली रूप भी शादी के बाद ही दिखता है. तुम्हें पता है नीरज की पत्नी क्या करती है? हर दूसरे दिन मायके चली जाती है. तब नीरज को खुद ही खाना बनाना पड़ता है.’’
‘‘तो क्या हो गया. क्या तुम शादी के बाद खाना बनाने में मेरी हैल्प नहीं करोगे?’’ प्रज्ञा ने पूछा.
‘‘हैल्प जरूर करूंगा मगर कई दफा इंसान बिजी होता है तो हैल्प नहीं कर पाता,’’ अमित ने अपनी बात रखी.
‘‘वह तो ठीक है मगर यह बताओ कि तुम शादी के बाद इतने व्यस्त तो नहीं हो जाओगे कि वीकैंड पर भी मु झे समय नहीं दोगे या मु झे शौपिंग के लिए नहीं ले जाओगे?’’
‘‘देखो मैं तुम्हें वीकैंड पर घुमाने जरूर ले जाऊंगा और शौपिंग भी कराऊंगा, मगर हो सकता है कभी मेरे पास समय नहीं हो तब तुम मुंह फुला कर तो नहीं बैठ जाओगी? मेरा साथ तो दोगी न.’’
‘‘हां बिलकुल. मगर तुम कभी मु झ पर चिल्लाओगे तो नहीं, हमेशा प्यार से बात करोगे न?’’
‘‘बिलकुल यार मैं प्यार से ही बात करता हूं. अच्छा याद है मैं ने तुम्हें एक बार अपनी बूआजी की कहानी सुनाई थी न? उन्होंने फूफाजी को 2-3 बार किसी महिला से बातें करते देख लिया था और बस फुजूल का शक कर के अपनी जिंदगी खराब कर ली. आज उम्र के इस मोड़ पर दोनों अकेले जिंदगी जी रहे हैं.’’
‘‘तुम एक क्या कई लड़कियों से बात कर लो मु झे फर्क नहीं पड़ने वाला. बस मेरा बर्थडे और ऐनिवर्सरी हमेशा याद रखना.’’
‘‘वह सब तो मु झे याद रहता ही है. अच्छा एक बात और तुम्हें मेरी मां और बहन को अपनी मां और बहन सम झना होगा,’’ अमित ने मन की बात कही.
‘‘ठीक है लेकिन तुम्हें भी मेरे मायके वालों का पूरा सम्मान करना होगा,’’ प्रज्ञा ने भी शर्त रख दी.
‘‘औफकोर्स यार वैसे भी मु झे तुम्हारी बहन बहुत पसंद है,’’ अमित ने चुहलबाजी की.
‘‘देखा अभी से शुरू हो गए. तुम कहो तो अपनी बहन से ही तुम्हारी शादी करा दूं,’’ प्रज्ञा न चिढ़ कर लिखा.
‘‘क्या यार मैं तो उसे अपनी छोटी बहन जैसा मानता हूं,’’ अमित ने स्पष्ट किया, ‘‘यही नहीं मैं तो तुम्हारी मौम को अपना सा और डैड को अपने डैड जैसा मानता हूं.’’
‘‘मैं भी मजाक ही कर रही थी और मेरे मौमडैड के बारे में तुम से सुन कर खुशी
हुई. उन्होंने तो अब बहुत सी बातों में मेरा सुनना भी बंद कर दिया है और कहते हैं कि अमित से पूछ कर करेंगे,’’ प्रज्ञा ने भी बात साफ की, ‘‘मगर चिंता न करो मैं ने अपनी और तुम्हारी मां से तुम्हारी शिकायत कर दी है कि मेरी अब मेरे घर में ही कोई पूछ नहीं रही.’’
अमित बोला, ‘‘तो मेरी मां ने क्या कहा?’’
‘‘कहना क्या था, यही कि तुम्हारी अब तुम्हारे घर में कौन सी चलती है. इसीलिए तो हम दोनों कल तुम्हारे लिए तुम्हारे बिना कपड़े खरीदने जा रहे हैं. कह दूं. खबरदार हमारी पसंद पर कोई मुंह बनाया,’’ प्रज्ञा ने खिलखिलाते हुए कहा.
‘हुजूर मेरी जुर्रत कि मैं कुछ कहूं. बस मेरे दोस्तों से यह बात सीक्रेट रखना वरना मजाक उड़ाएंगे. वैसे मैं ने सुना है लड़कियां बहुत सी बातें सीक्रेट रखती हैं. क्या तुम भी मु झ से कुछ राज छिपा कर रखोगी?’’
‘‘नहीं. हम दोनों के बीच कोई राज नहीं रहना चाहिए. हमारी जिंदगी एकदूसरे के लिए खुली किताब होगी. पर मेरी तुम्हारी मां और पापा से जो बातें होंगी वे सीक्रेट रहेंगी,’’ प्रज्ञा हंसते हुए बोली.
‘‘ओके डन,’’ अमित ने हार्ट की स्माइली भेजी तो प्रज्ञा ने भी प्यारी सी स्माइली भेजते हुए चैटिंग बंद की.
जब प्रज्ञा निभा की तरफ मुखातिब हुई तो वह हंसती हुई बोली, ‘‘वैरी नाइस. यह चैटिंग बहुत काम आएगी. शादी के बाद जब झगड़ा हो तो तुम दोनों अपनी यह चैटिंग पढ़ लेना. जिंदगी प्यार से गुजरेगी. अगर तुम दोनों से यह चैट खो भी जाए तो भी तुम्हें याद रहेगा कि क्या करना है क्या नहीं.’’
प्रज्ञा ने मुसकरा कर अपनी दोस्त को गले से लगा लिया. उस की आंखों में सुनहरी जिंदगी के ख्वाब सज रहे थे.