मेरे बाल कर्ली हैं, मै इन्हें सीधे करने के लिए क्या करूं?

सवाल

मेरे बाल कर्ली हैं जो देखने में अच्छे नहीं लगते और उन्हें बांधने का कोई नया स्टाइल भी नहीं बन पाता. बालों को सीधा करने का उपाय बताएं?

जवाब

आप के लिए परमानैंट स्ट्रेटनिंग करवाना सही रहेगा क्योंकि कर्ली बालों को टैंपरेरी स्ट्रेटनिंग करने पर यह आप को रोजरोज करनी पड़ेगी और इस से बारबार हीट लगने से बाल खराब भी हो जाएंगेजबकि परमानैंट स्ट्रेटनिंग में यूज होने वाले प्रोडक्ट्स बालों को न्यूट्रिशन प्रदान करेंगे और बाल लंबे समय के लिए सीधे रहने के साथसाथ खूबसूरत भी दिखेंगे. घर में आप बालों में कोई भी तेल लगा थोड़ा पानी लगा कर जूडे़ की तरह बांधें और सुबह खोलेंगी तो भी बाल कुछ हद तक स्ट्रेट हो जाते हैं.

सुरंग में कुरंग : शमशेर के सामने कैसे आई स्वामी की सच्चाई

स्वामीजी के आने से पहले ही सारी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं. मकान में स्थित बड़े कमरे से सारा सामान निकाल कर उसे खाली कर दिया गया था. स्वामीजी के आदेशानुसार दीवारों पर लगे चित्र भी हटा दिए गए थे. अनुष्ठान रात में 8 बजे के आसपास निकले मुहूर्त में स्वामीजी द्वारा प्रारंभ होना था.

स्वामीजी समय से आ गए थे और उचित समय पर एकांत कमरे में उन्होंने पूजा प्रारंभ कर दी. यह अनुष्ठान सुबह 4 बजे तक अनवरत चलना था और इस दौरान किसी को भी कमरे में आने की इजाजत नहीं थी.

स्वामी करमप्रिय आनंद का आश्रम मुख्य राष्ट्रीय मार्ग के दक्षिण में शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर था. आश्रम में बरगद के विशाल वृक्षों के अलावा नीम, बेल और आम आदि के वृक्ष थे, जिन पर लंगूरबंदरों का वास था.

स्वामीजी के आश्रम में भक्त जब भी जाते, बंदरों के खाने के लिए केले, चने, गुड़ आदि जरूर ले जाते. भक्तों के हाथ की उंगली पकड़ कर गदेली पर रखे चने, गुड़ आदि बंदर खाते और सफेद दांत दिखा कर उन को घुड़कते भी रहते. बाबा के संकेत पर यदि कोई बंदर किसी भक्त को अपनी पूंछ मार देता तो वह अपने को धन्य समझता कि उस आशीर्वाद से उस का कार्य निश्चित ही सफल हो जाएगा.

स्वामीजी के भक्तों की सूची बहुत लंबी थी, जिस में अतिसंपन्न लोगों से ले कर सामान्यजन तक सभी समानभाव से हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लेते थे. ऐसा भक्तों में प्रचारित था कि आश्रम में स्थित मंदिर में दर्शन कर के मनौती मांगने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है. कोई भी विघ्नबाधा हो, स्वामीजी के बताए उपाय से संकट का समाधान जरूर हो जाता था. स्वामीजी विधिविधान से पूजा, अनुष्ठान आदि कर के भक्त की समस्या का हल निकाल ही लेते थे.

शमशेर बहादुर व उन के परिवार की श्रद्धा स्वामीजी पर शुरू से ही थी. वे शिक्षा विभाग में उच्च अधिकारी थे. मोटी आमदनी और अच्छे वेतन के बावजूद वे लालच से मुक्त नहीं थे. गलत काम कर के कमाई करने को स्वामीजी पाप की कमाई बताते और इस से बचने के तमाम उपाय भी पुजारीपंडों ने बता रखे थे. इसी क्रम में स्वामी करमप्रिय आनंद के दर्शन लाभ के बाद उन की व्यवस्था ने शमशेर बहादुर को इतना चमत्कृत किया कि वे सपरिवार स्वामीजी के अनन्य भक्त हो गए. जम कर कमाओ और जम कर स्वामीजी की सेवा करो, पापबोध से मुक्त हो कर पुण्यलाभ अर्जन का आशीर्वाद स्वामीजी से प्राप्त करते रहो, यही उन का जीवनदर्शन हो गया था.

नौकरी से रिटायर होने के बाद शमशेर सिंह ने आमदनी का जरिया बनाए रखने के लिए एक राइस मिल लगा दी. मिल घाटे में चलने लगी. जब तक अधिकारी थे, तमाम व्यापारी झुकझुक कर उन्हें सलाम करते थे. अब अधिकारी के पद से रिटायर हो कर व्यापारी बने तो किसी को झुक कर सलाम करना उन्हें गवारा नहीं हुआ. अत: व्यापार में घाटा होना शुरू हो गया. इस विपरीत आर्थिक स्थिति का कारण और उपाय जानने के लिए वे स्वामीजी की शरण में गए. तमाम तरह के फल, लाई, चना और गुड़ आदि खिलाने के बाद भी किसी बंदर ने अपनी पूंछ से उन की पिटाई नहीं की. सभी बंदर पुरानी जानपहचान होने के कारण उन्हें पीटना ठीक नहीं समझते थे. बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारने और घाटे को मुनाफे में बदलने के लिए पूरा परिवार स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

पुराने और संपन्न भक्त के परिवार की समस्या का समाधान तो स्वामीजी को करना ही था. ज्योतिष से गणना कर के ग्रहनक्षत्र की स्थिति देख कर उन्होंने बताया कि शनिमंगल आमनेसामने हैं. षडष्टक योग बन रहा है. मेष राशि में उच्च के सूर्य की स्थिति बनी हुई है. अत: प्रचंड अग्नि में धनवैभव का जलना स्वाभाविक है. सूर्य के घर सिंह राशि में शनि होने के कारण सूर्य आगबबूला हो रहे हैं.

इस विकट परिस्थिति से राहत पाने के लिए ग्रह शांति के अनेक उपाय करने पड़ेंगे. इस का अनुष्ठान आज रात्रि से शुरू कर दिया जाएगा और समापन तुम्हारे भवन के किसी कक्ष में पूजन के बाद होगा.

अत: आश्रम में विधिपूर्वक विभिन्न प्रकार के पूजापाठ व अनुष्ठान करने के बाद शमशेरजी के घर के एक कमरे में स्वामी ने रात 8 बजे से सुबह 4 बजे तक लगातार मंत्रों का जाप कर विधिवत पूजा कर के अनुष्ठान का समापन किया.

प्रात:काल स्वामी ने परम संतुष्ट भाव से बताया कि इस कमरे में ही मुसीबत की जड़ तथा भाग्योदय के उपकरण छिपे हैं. अत: कमरे का फर्श 4-4 फुट गहरे तक खोदा जाए. जिस स्तर पर कच्ची मिट्टी मिल जाए उस स्तर पर पहुंचने पर ही आगे की कार्यवाही होगी.

नतीजतन, संगमरमर का फर्श उखाड़ दिया गया और फर्श की खुदाई शुरू कर दी गई. 4 फुट खुदाई के बाद कच्ची मिट्टी के स्तर पर पहुंचने पर 4 छोटीछोटी सुरंगें दृष्टिगोचर हुईं, जिन्हें शायद चूहों ने बनाया होगा. कमरे के ठीक बीच में से एक सुरंग दक्षिण दिशा की ओर गई थी और दूसरी उत्तरपूर्व दिशा में. भक्तजनों ने सुरंगों का यह चमत्कार देख कर स्वामीजी को पुन: सादर प्रणाम किया व जिज्ञासा जाहिर की.

स्वामीजी ने उत्तर दिया, ‘‘अनुष्ठान सफल हुआ पुत्र…पूजा के समय ही मुझे संकेत मिल गया था कि इस कमरे में स्वर्णकलश दबा पड़ा है, जिस में सोने की असंख्य मोहरों का खजाना छिपा है. पूजा के बाद उस की प्राप्ति का योग तुम्हारे लिए बन गया है. इस अतुल धनराशि से तुम्हारे सारे आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे.’’

सभी परिवारजनों के चेहरे खिल गए. शमशेर अति उत्साह में खुद फावड़ा उठा लाए और आगे किस सुरंग की खुदाई करनी है, स्वामी से पूछा. वे स्वयं गड्ढा खोद कर स्वर्णकलश निकालना चाहते थे जिस से मजदूरों को या बाहर के किसी व्यक्ति को इस की जानकारी न हो.

स्वामीजी ने संकेत किया कि उत्तरपूर्व दिशा में जाने वाली सुरंग के नीचे कलश दबा पड़ा है पर अभी इधर फावड़ा न चलाना. इस में अभी बाधा है. इस भयंकर व्यवधान को दूर करना पड़ेगा. इस कलश का रक्षक दक्षिण दिशा में जाने वाली सुरंग में मणिधारी नाग के रूप में रहता है, जो अति विषैला और भयंकर है. प्रत्येक अमावस्या को वह आधी रात में इस कमरे में प्रकट होता है और अपनी मणि उत्तरपूर्व की सुरंग के दहाने पर रख कर उस के प्रकाश में अपना आहार प्राप्त करता है.

अत: तुम्हें अमावस्या तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. अमावस्या की रात को मैं आ कर स्वयं नाग देवता की आराधना कर के उन्हें अपने वश में कर लूंगा और फिर उन्हें अपने आश्रम में स्थापित कर दूंगा. उस के बाद उन से अनुमति ले कर इस स्वर्णकलश को हासिल करने की कार्यवाही करूंगा.

तुम्हें ज्ञात होगा कि बंदर सांप के फन को कौशल से पकड़ लेता है और उसे भूमि पर तब तक रगड़ता है जब तक वह मर नहीं जाता. यहां के नागराज अजेय हैं पर वानरों के सान्निध्य में जीवनरक्षा की प्राणीसुलभ चेष्टा के कारण निष्क्रिय हो जाएंगे और तब उन्हें मंत्रों द्वारा वश में कर लेना आसान हो जाएगा.

शमशेर सिंह और उन का परिवार यह जान गया था कि स्वर्णकलश मिलने में अभी देरी है पर निराशा की भावना पर विजय पाते हुए उन्होंने स्वामी से कहा कि हम सब उचित समय की प्रतीक्षा करेंगे. स्वामी ने कमरे को ठीक से बंद करा कर बड़ा सा ताला लगवा दिया.

एकादशी को स्वामी के आश्रम पर एक महायज्ञ का आयोजन था जिस में भंडारा भी होना था. यज्ञ 10 दिन तक चलना था. उस में पूजनहवन आदि में जो व्यय होना था वह भक्तों द्वारा दिए गए सामान और दान की धनराशि से संपन्न होना था.

शमशेर अति श्रद्धावान थे. भंडारे के लिए स्वामी को सवा लाख रुपए नकद दान में दिए. जहां करोड़ों की धनराशि मिलनी हो वहां सवा लाख दे कर स्वामी को प्रसन्न रखने में क्या बुराई है.

महायज्ञ के आयोजन में भक्तों द्वारा लगभग 3 लाख का सामान और नकद चढ़ावा आ गया. सभी कार्यक्रम आनंद से संपन्न हो गए. इस आयोजन के बाद स्वामीजी का 3 माह का तीर्थयात्रा का और अपने गुरुदर्शन का कार्यक्रम बना, जिस के लिए उन्होंने सब को आशीर्वाद देते हुए प्रस्थान किया.

शमशेर के कमरे पर अभी भी मोटा ताला लटक रहा था. हर अमावस्या को वे खिड़कीदरवाजों की झिरी (दरार) से झांक कर नाग देवता द्वारा छोड़ी गई मणि के प्रकाश को देखने का प्रयास करते थे.

अमावस्या की रात बीत गई. स्वामी तो अभी तीर्थयात्रा पर थे. उन का कड़ा निर्देश था कि कमरे का ताला न खोला जाए और न ही कमरे में कोई जाए. अमावस्या की सुबह शायद अपनेआप नाग के या मणि के दर्शन हो जाएं, इस आशा से खिड़की की झिरी से झांका तो देखा कि चोरों ने सेंध लगा कर 10-10 फुट तक फर्श खोद डाला है और मिट्टी का ढेर बाहर लगा है.

स्वर्णकलश की बात छिपाते हुए शमशेर ने पुलिस में चोरी की रिपोर्ट लिखाई. तेजतर्रार दारोगा को पटाया. सेंधमार चोर पकड़ा गया. रोते हुए उस ने बताया कि उसे किसी तरह खजाने की खबर लग गई थी. वह भी स्वामी का चेला था. रात भर फर्श को 10-10 फुट गहरा खोद कर मिट्टी का ढेर बाहर लगा दिया. अमावस्या की रात थी पर न तो स्वर्णकलश दिखाई दिया न नागमणि. रात भर खुदाई की मजदूरी भी मिट्टी में मिल गई.

2 कदम तुम चलो, 2 कदम हम

पति पत्नी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है, जिस में अपने साथी के साथ प्यार होने के साथसाथ एकदूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के निर्वाह का भाव भी होना जरूरी है. जब हम अपने साथी के प्रति अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करते हैं, तो हमें अपने अधिकारों को मांगने की जरूरत नहीं पड़ती. वे स्वत: मिल जाते हैं. लेकिन जब हम अपने कर्तव्यों को तिलांजलि दे देते हैं और अधिकारों की मांग करते हैं, तो फिर यहीं से शुरुआत होती है प्रेमपूर्ण संबंधों में टकराव की. जैसाकि अनिल और रोमा के साथ हुआ.

‘‘यह क्या है, सारे कपड़े बिखरे पड़े हैं. जरा सी भी तमीज नहीं है,’’ घर को अस्तव्यस्त देख कर औफिस से आते ही अनिल का पारा चढ़ गया.

किचन में खाना बनाती रोमा उस की बात सुन कर एकदम से बोल पड़ी, ‘‘सामान बिखरा पड़ा है, तो ठीक कर दो न, क्या मेरी ही जिम्मेदारी है कि मैं ही घर के सारे काम करूं? मैं भी तो औफिस जाती हूं. लेकिन घर आने के बाद सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. तुम तो सब्जी तक नहीं लाना चाहते. औफिस से आते ही खाना बनाऊं या घर समेटूं? खाने में देर होने पर भी तुम्हारा पारा चढ़ जाता है. खाना भी समय पर मिलना चाहिए और घर भी सजासंवरा. मैं भी इनसान हूं कोई मशीन नहीं.’’

रोमा की बात सही थी, लेकिन उस का कहने का तरीका तीखा था, जो अनिल को चुभ गया. फिर क्या था छोटी सी बात झगड़े में बदल गई और 3 दिनों तक दोनों में बोलचाल बंद रही.

एकदूसरे को समझें

आमतौर पर ऐसी स्थिति हर उस घर में होती है, जहां पतिपत्नी दोनों वर्किंग होते हैं. वहां काम को ले कर आपस में चिकचिक होती रहती है. इस का कारण यह है कि पति को पत्नी का पैसा तो चाहिए, लेकिन उस के काम में हाथ बंटाना उसे गंवारा नहीं. ऐसा नहीं है कि इस तरह की खटपट सिर्फ कामकाजी पतिपत्नी के बीच ही होती है. जो पत्नियां हाउसवाइफ हैं, उन के पति उन के बारे में यही सोचते हैं कि वे दिन भर औफिस में काम करते हैं और बीवी घर पर आराम करती है. जबकि सच यह है कि हाउसवाइफ भी दिन भर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में आराम करने की फुरसत नहीं पाती है. सच तो यह है कि पतिपत्नी के बीच तकरार का कारण उन का एकदूसरे को न समझना और एकदूसरे के काम को कम आंकना है.

जब तक हम अपने साथी के प्रति प्रेम और आदर का भाव नहीं रखेंगे और उसे और उस के परिवार के सदस्यों को अपना नहीं समझेंगे, तब तक हम सुखमय पारिवारिक जीवन की कल्पना चाह कर भी नहीं कर सकते.

प्यार दो प्यार लो

प्यार कभी भी एकतरफा नहीं हो सकता है. अगर आप चाहते हैं कि आप का साथी आप को सराहे, तो इस के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप भी उसे उसी शिद्दत से प्यार करें, जिस तरह से वह करता है. सच तो यह है कि एकतरफा संबंधों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है. जब आप किसी के साथ वैवाहिक बंधन में बंध जाते हैं, तो यह बात बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि आप अपने साथी को उसी रूप में चाहें जैसा वह है. अगर आप उसे बदलने की कवायद में लग जाएंगे, तो आप दोनों के बीच कभी भी सहज प्रेमसंबंध नहीं बन पाएंगे. खुश रहने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप दोनों एकदूसरे से बिना शर्त प्यार करें.

थोड़ा आदर थोड़ा सम्मान

प्यार भरे संबंधों के लिए एकदूसरे को प्यार करने और एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करने के साथसाथ यह भी बेहद जरूरी है कि आप अपने साथी को वही आदरसम्मान दें, जिस की आप उस से अपेक्षा करते हैं. अगर आप को अपने साथी की कोई बात अच्छी नहीं लगती है या आप को उस से शिकायत है, तो उसे चार लोगों के सामने बुराभला कहने के बजाय अकेले में बात करना उचित होता है.

माना कि आप की पत्नी ने खाना बनाया और उस में थोड़ा सा नमक ज्यादा हो गया, मगर आप ने उसे परिवार के सभी सदस्यों के सामने खरीखोटी सुना दी. इस से आप की पत्नी की भावनाएं ही आहत नहीं होती हैं उस का सम्मान भी खंडित होता है.

इसी तरह से आप के पति कोई सामान लाएं और उस में कुछ खराब निकल गया और आप ने उन्हें सुना दिया कि आप को तो कोई भी सामान खरीदने का तरीका नहीं आता है. इस से उन की भावनाएं आहत होंगी और आप दोनों के संबंध में न चाहते हुए भी दूरी आने लगेगी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी है कि आप दोनों एकदूसरे की कमियों को दूसरों के सामने जाहिर कर के अपने साथी को अपमानित करने के बजाय एकदूसरे की कमियों को दूर कर के उसे पूरा करने की कोशिश करें. पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं, आप को अपने जीवन में इस भावना को भरने की जरूरत है. तभी आप अपने जीवनसाथी को पूरा आदरसम्मान दे पाएंगे.

दायित्वों का निर्वाह

कोई भी काम किसी एक का नहीं है. अगर आप अपने मन में यह भावना रखेंगे तो कभी आप दोनों के बीच तकरार नहीं होगी. पतिपत्नी दोनों के लिए यह जरूरी है कि वे किसी काम को किसी एक पर थोपने के बजाय उसे मिलजुल कर करें. ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हैं, तो ऐसे में पत्नी से यह अपेक्षा करना कि औफिस से आने के बाद घर समेटना, खाना बनाना, बच्चों को होमवर्क कराना सारी उस की जिम्मेदारी है, गलत बात है. घर आप दोनों का है, इसलिए जिम्मेदारियां भी आप दोनों की हैं. अगर आप दोनों एकसाथ मिल कर दायित्वों का निर्वाह करेंगे, तो आप को जीवन में खुशियों का समावेश स्वत: हो जाएगा. अगर आप ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर घरेलू कामों को पूरा कर दिया, तो आप छोटे नहीं हो जाएंगे, उलटे इस से आप दोनों के संबंधों में प्रगाढ़ता ही आएगी. पतिपत्नी का संबंध साझेदारी का है, जिस में एकदूसरे के साथ अपना सुखदुख साझा करने के साथसाथ घरबाहर की जिम्मेदारियों में भी साझेदारी निभाने की जरूरत है. तभी आप अपने घर का माहौल हंसीखुशी से परिपूर्ण बना सकते हैं.

बहस है बेकार

यह सच है कि पतिपत्नी के संबंध में प्यार के साथ तकरार भी होती है, लेकिन छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे से झगड़ना अच्छी बात नहीं है. अगर आप को अपने साथी की कोई बात अच्छी नहीं लगती है, तो उसे ले कर बेकार की बहस करना अच्छा नहीं है, क्योंकि कब छोटी सी बात भयंकर झगड़े का रूप ले लेती है, पता ही नहीं चलता है. अगर आप दोनों के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव हो गया है, तो एकदूसरे से माफी मांगने में झिझकें नहीं. सुखमय दांपत्य जीवन के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने संबंधों के बीच अपने अहं को न आने दें.

एकदूसरे की केयर करते हैं

‘‘आज की बिजी लाइफ में लोग अपना ही खयाल नहीं रख पाते, तो दूसरे का क्या रखेंगे. लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते में यह लागू नहीं होता. भले ही वे अपना खुद का ध्यान न रख पाते हों, लेकिन अपने पार्टनर का ध्यान जरूर रखते हैं. यहीं से भावनात्मक जुड़ाव की शुरुआत होती है. वैसे रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए दांपत्य जीवन के पुराने ढर्रों से बाहर निकल कर उसे रोमांचित बनाने का भी प्रयास करना चाहिए. इस से बौंडिंग और भी मजबूत होती है.’’

– स्मिता व पोरस चड्ढा, शादी को 5 वर्ष बीत चुके हैं

इन बातों का रखें ध्यान

– सुखमय दांपत्य जीवन के लिए यह जरूरी है कि आप अपने साथी को उस की अच्छाईबुराई के साथ स्वीकार करें. उसे बदलने की कोशिश करने के बजाय उसे समझने की कोशिश करें.

– अपनेआप को अपने साथी से ज्यादा समझदार और महत्त्वपूर्ण समझने के बजाय उस का पूरक बनने की कोशिश करें. इस बात को समझें कि जिस तरह से साइकिल 1 पहिए से नहीं चल सकती है, उसी तरह पतिपत्नी रूपी साइकिल भी 1 पहिए से नहीं चल सकती. जब तक पतिपत्नी दोनों के बीच तालमेल नहीं होगा आप के जीवन में खुशियों का समावेश नहीं होगा.

– अपने जीवनसाथी के साथसाथ उस से जुड़े लोगों को भी पूरा आदरसम्मान दें.

– घर के काम को किसी एक की जिम्मेदारी समझने के बजाय उसे मिलबांट कर निबटाने की कोशिश करें.

– इस बात को समझें कि कोई भी संबंध एकतरफा नहीं चल सकता. अगर आप चाहते हैं कि आप का साथी आप को प्यार करे और आप का सम्मान करे, तो आप को भी ऐसा ही करना होगा.

– अपने जीवनसाथी की भावनाओं का खयाल रखें और महत्त्वपूर्ण दिनों पर उस का मनपसंद उपहार दें.

अच्छे दोस्त भी हैं

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता ताउम्र हंसीखुशी निभाने के लिए आपस में दोस्ती का संबंध होना बहुत जरूरी है. यदि दोनों दोस्ती का रिश्ता रखेंगे, तो कभी भी दोनों के मध्य अहंकार का कोई स्थान नहीं होगा. यह सच है कि किसी महिला के लिए एक नए परिवार से जुड़ना, नए रिश्ते निभाना आसान नहीं होता. मगर यह चंद दिनों की बात होती है. बाद में यही अटपटी चीजें प्यारी लगने लग जाती हैं.’’

– डा. मीनाक्षी ओमर व रवि ओमर, शादी को 10 वर्ष बीत चुके हैं

साथी साथ निभाना

– अपने प्रेम को प्रगाढ़ करने के लिए एकदूसरे की भावनाओं को समझें.

– सरप्राइज उपहार दें. पत्नी अगर कामकाजी है और पति औफिस से पहले घर आए तो घर को सजासंवरा कर पत्नी को तारीफ करने का मौका दें.

– पत्नी अस्वस्थ है, तो पति घर पर रह कर पत्नी का खयाल रखे.

– एकसाथ घूमने जाएं. नए प्रेमी की तरह हाथ में हाथ डाले चलें.

– कभीकभी एकदूसरे को फूल उपहार में दें. इस से रिश्ते में गरमाहट बनी रहती है.

– हमेशा खुश रहने की कोशिश करें और संबंधों के बीच कभी भी स्वार्थ, अहं को न आने दें.

आजीविका बन सकती है Gardening

बागबानी सिर्फ शौक है. शहरों में हरियाली देखनी है तो बागबानी का सहारा लेना ही पड़ेगा. बागबानी से जुड़ी वस्तुओं के बाजार बन गए हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहले राणा प्रताप मार्ग स्टेडियम के पीछे हजरतगंज में ही बागबानी का बाजार लगता था. अब गोमतीनगर, पीजीआई, महानगर और आलमबाग में भी इस तरह की तमाम दुकानें खुल गई हैं. यहां पौधे ही नहीं, तरहतरह के गमले, गमला स्टैंड और गमलों में डाली जाने वाली खाद बिकती है.

तेजी से हो रहे विकास के चलते शहरों के आसपास की हरियाली गायब हो गई है. ऐसे में घरों के अंदर, छत के ऊपर, बालकनी और लौन में छोटेछोटे पौधों को लगा कर हरियाली की कमी को पूरा करने का काम किया जा रहा है. यही वजह है कि बागबानी से जुड़े हुए कारोबार तेजी से बढ़ रहे हैं. एक ओर जहां सड़कों पर बागबानी को सरल बनाने वाली सामग्री की दुकानें मिल जाती हैं वहीं पौश कालोनियों में इस से जुड़े काम खूब होने लगे हैं.

बेच रहे हैं खाद और गमले

शहरों के आसपास की जगहों पर लोगों ने खाली पड़ी जमीन पर नर्सरी खोल ली है. कुछ कारोबारी नर्सरी से पौधे शहर में ला कर बेचते हैं. ये लोग कई बार गलीगली फेरी लगा कर भी पौधे, गमले और खाद बेचते मिल जाते हैं. जिन को पौधों की देखभाल करनी आती है वे समयसमय पर ऐसे पौधों की देखभाल करने भी आते हैं. इस के लिए वे तय रकम लेते हैं. ऐसे में बागबानी से जुड़ा हर काम आजीविका का साधन हो गया है. लखनऊ के डालीगंज इलाके में रहने वाला राजीव गेहार 20 साल से बागबानी के लिए गमले, खाद और दूसरे सामान बेचने का काम कर रहा है. उस का कहना है, ‘‘जुलाई से ले कर अक्तूबर तक लोग पौधे लगाने का काम करते हैं. इन 4 माह को हम बागबानी का सीजन भी कहते हैं.’’

पहले पौधों को रखने के लिए मिट्टी के गमले ही चलते थे. वे कुछ समय के बाद ही खराब हो जाते हैं. अब सिरेमिक और प्लास्टिक के गमले भी आते हैं. सिरेमिक के गमले महंगे होते हैं. ये देखने में बेहद सुंदर, रंगबिरंगे होते हैं और जल्दी खराब नहीं होते. प्लास्टिक के गमले देखने में भले ही कुछ कम अच्छे लगते हों पर यह टिकाऊ होते हैं. गमलों से गिरने वाला पानी फर्श को खराब न करे, इस के लिए गमलों के नीचे रखने की प्लेट भी आती है. झूमर की तरह पौधों को लटकाने के लिए हैंगिंग गमले भी आते हैं. इन को रस्सी या जंजीर के सहारे बालकनी, लौन या फिर दीवार पर लटकाया जा सकता है.

पौधों को मजबूत बनाने के लिए खाद देने की जरूरत पड़ती है. इस के लिए डीएपी, पोटाश, जिंक जैसी खादें बाजार में बिकती हैं. राजीव कहते हैं, ‘‘मैं खादें बेच कर ही अपने घर का खर्च चलाता हूं. बागबानी करने में मदद करने वाली चीजें, जैसे कटर, खुरपी, स्प्रे भी बेचता हूं.’’

देखभाल में है कमाई

घर के लौन में मखमली घास लगी हो तो आप की शान बढ़ जाती है. अब तो इंटीरियर में भी पेड़पौधों को पूरी जगह दी जाने लगी है. ऐसे में इन का कारोबार करना मुनाफे का काम हो गया है. शादी, बर्थडे या मैरिज ऐनिवर्सरी की पार्टी आने पर घर के किसी हिस्से को पौधे से सजाने का चलन बढ़ गया है. हर किसी के लिए पौधों को रखना और उन की देखभाल करना सरल नहीं होता. ऐसे में छोटेबड़े पौट में पौधे लगा कर बेचने का काम भी होने लगा है.

ऐसे ही पौधों का कारोबार करने वाले दिनेश यादव कहते हैं, ‘‘हम पौधे तैयार रखते हैं. खरीदने वाला जिन गमलों में चाहे उन को रखवा सकता है. इस के बाद समयसमय पर थोड़ीथोड़ी देखभाल कर के पौधों को सुरक्षित रखा जा सकता है.’’ पौधों की देखभाल करने वाले नीरज कुमार का कहना है, ‘‘मैं गांव से नौकरी करने शहर आया था. यहां 2 हजार रुपए महीने की नौकरी मिल गई. इस से काम नहीं चल रहा था. मैं समय बचा कर कुछ लोगों के पेड़पौधों की देखभाल करने लगा. इस के बदले में मुझे कुछ पैसा मिलने लगा. धीरेधीरे मेरे पास पेड़पौधों की देखभाल का काम बढ़ गया. मुझे नौकरी करने की जरूरत खत्म हो गई. आज मेरे पास 50 ग्राहक हैं. मेरा काम ठीक से चल रहा है.’’

बक्शी का तालाब (लखनऊ) इलाके में रहने वाला रामप्रसाद पहले गांव में मिट्टी के बरतन बनाने का काम करता था. उस की कमाई खत्म हो गई थी. इस के बाद उस ने मिट्टी और सीमेंट के गमले बनाने का काम शुरू किया. वह कहता है, ‘‘मैं सड़क किनारे अपनी दुकान लगाता हूं. इस से लोग राह आतेजाते मेरे यहां से गमलों की खरीदारी करने लगे हैं. मेरी आमदनी बढ़ने लगी है. कुछ लोग सीमेंट के गमले अपनी पसंद के अनुसार भी बनवाते हैं. सीमेंट के गमलों का ज्यादातर प्रयोग लौन में रखने के लिए किया जाता है.’’

इस तरह बागबानी लोगों की आजीविका का आधार बन रही है और उन की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रही है.

12 टिप्स: रिबौन्डिंग से बढ़ाएं बालों की खूबसूरती

आज के बिजी लाइफस्टाइल में बालों की देखभाल करना काफी मुश्किल हो गया है. इसलिए आजकल अधिकांश महिलाएं बालों की खूबसूरती बरक़रार रखने के लिए रिबॉन्डिंग की मदद ले रही हैं. आइए इसके बारे में जानते हैं दिल्ली के गेट सेट यूनिसेक्स सैलून के मैनेजर एंड हेयर एक्सपर्ट समीर से. उनका कहना है कि आपके बाल छोटे, घुंघराले या डल हैं और आप चाहती हैं कि यह ज्यादा चमकदार और सुंदर दिखें तो इसका समाधान मौजूद है. विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए जिनके बाल डल  हैं और उन्हें संभालना मुश्किल है. हेयर रिबॉन्डिंग ऐसी हेयर ट्रीटमेंट तकनीक है, जो आपके बालों को कोमल और चमकदार बना देगी.

क्या है हेयर रिबॉन्डिंग ट्रीटमेंट

स्टेटनिंग रिबॉन्डिंग में ज्यादा फर्क नहीं है. लेकिन हेयर रिबॉन्डिंग स्टेटरिंग की ही  स्पेशल तकनीक है. इसे परमानेंट स्ट्रैट हेयर केयर भी कहते हैं, लेकिन जब बालों  की नेचुरल ग्रोथ  आनी शुरू हो जाती है तो बाल दोबारा अपनी पहली पोजीशन पर धीरेधीरे  आने शुरू हो जाते हैं. अगर आपके बाल काफी घने व मोटे हैं तो आप इस ट्रीटमेंट को चुनें. इसमें पहले स्टेट्ररनेर की मदद से हेयर स्ट्रक्चर और नेचुरल बांड को तोड़ा जाता है. दरअसल हमारे बाल अमीनो एसिड से बने होते हैं और ये प्रोटीन ऐसे बांड्स से बने होते हैं, जो हमारे बालों का  स्ट्रक्चर पता लगाने में मदद करते हैं. यानि हमारे बाल घुंघराले हैं , वेवी हैं या फिर सीधे. रिबॉन्डिंग प्रक्रिया में केमिकल्स की मदद से इन्हीं बांड्स को तोड़ा जाता है, ताकि बालों के स्ट्रक्चर में मनमुताबिक परिवर्तन किया जा सके. इसके बाद हेयर न्यूट्रीलाइजर से हेयर बांड को फिक्स किया जाता है. इसे करने में कम से कम 4 से  5 घंटे का समय लगता है. इसमें केमिकल्स  आपके बालों  की अंदरूनी लेयर तक  जाता है . इस ट्रीटमेंट में काफी स्ट्रोंग केमिकल्स का इस्तेमाल होता है. ये बाकी ट्रीटमेंट की तुलना में महंगा होता है. इसमें बाल काफी कमजोर हो जाते हैं, इसलिए इस ट्रीटमेंट के बाद बालों की काफी केयर करने की जरुरत होती है. इसके बाद बाल काफी सॉफ्ट व स्मूद हो जाते हैं.

हेयर रिबॉन्डिंग ट्रीटमेंट प्रोसेस

1. स्टाइलिश बालों को बनावट और वोलुमन के आधार पर वर्गों में विभाजित करता है.

2. बालों को माइल्ड शैम्पू से धोया जाता है, शैम्पू से नहीं.

3. फिर बालों को प्राकर्तिक रूप से सूखने के लिए छोड़ देते हैं या फिर बालों को ब्लो ड्रायर से सुखाया जाता है.

4. फिर बालों को पतले प्लास्टिक बोङो की मदद से सीधे रखा जाता है. तब हेयर रिबॉन्डिंग किट में शामिल हेयर रीलैक्सेंट लगाया जाता है. स्टाइलिश रीलैक्सेंट लगाते समय यह ध्यान रहता है कि वह बालों के हर स्टैंड पर कोट लगाएं.

5. फिर बालों की बनावट के आधार पर रीलैक्सेंट को 30 से 45 मिनट तक लगा छोड़ दिया जाता है.

6. 15 से 20 मिनट बाद एक बाल को खींच कर देखा जाता है ,यदि बाल स्प्रिंग की तरह झूम रहा होता है तो समझ लिया जाता है कि सल्फर बंस टूट गए और अगर ऐसा नहीं होता तो 5 से 10 मिनट और रखते हैं.

7. इसके बाद बाल को उसकी स्थिति,मात्रा, बनावट आदि के आधार पर 10 से 15 मिनट तक स्टीम्ड किया जाता है.

8. अब बारी आती है बाल धोने और सुखाने की.

9. इसके बाद बालों पर केराटिन लोशन लगाया जाता है. और फिर बालों को 180 डिग्री सेल्सियस पर फ्लैट आयरन की मदद से सीधा किया जाता है. ऐसा करने के लिए एक सिरेमिक फ्लैट आयरन का इस्तेमाल किया जाता है.

10. बांड को सुरक्षित करने के लिए बालों पर न्यूट्रीलीजेर का उपयोग किया जाता है. और उसे 30 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है.

11. फिर बालों को ठंडे पानी से धोया जाता है.

12. बालों को ब्लो ड्रायर करके उसपर सीरम लगाया जाता है और बालों को एक बार फिर सीधा किया जाता है.

अस्तित्व : पहली किस्त

घड़ीका अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो ल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने हिला कर कहा.

मैं उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे ? चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू…सोनू…स्कूल नहीं जाना क्या?’’

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तु से छोटा है पर तुझे से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे 7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह चिल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर झटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

मैं ने चाय का अंतिम घूंट लिया और रसोई में आ गई. बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. जल्दीजल्दी 2 परांठे सेंके  और गिलास में दूध डाल बच्चों को नाश्ता दे उन का टिफिन तैयार करने लगी.

‘‘मम्मी, मेरी कमीज नहीं मिल रही,’’ ऐनी ने आवाज लगाई.

‘‘तुझे कभी कुछ मिलता भी है?’’ फिर कमरे में आ कर अलमारी से कमीज निकाल कर उसे दी.

‘‘मम्मी दूध ज्यादा गरम है. प्लीज ठंडा कर दो,’’ सोनू ने टाई की नौट बांधते हुए हुक्म फरमा दिया.

दूध ठंडा कर वापस जाने लगी तो सोनू मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया, ‘‘मम्मी प्लीज 1 मिनट,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी स्कूल बैग से कुछ निकालने लगा. फिर मिन्नतें करने लगा कि मम्मी, मेरा रिपोर्टकार्ड साइन कर दो…प्लीज मम्मी.’’

‘‘जरूर मार्क्स कम आए होंगे. इस बार तो मैं बिलकुल नहीं करूंगी. बेवकूफ समझ रखा है क्या तू ने मुझे जा, अपने पापा से करवा साइन. और तू ने मुझे कल क्यों नहीं दिखाया अपना रिपोर्टकार्ड?’’

‘‘मम्मा, प्लीज धीरे बोलो, पापा सुन लेंगे,’’ उस के चेहरे पर याचना के भाव उभर आए. हाथ पकड़ कर प्यार से मुझे पलंग पर बैठाते हुए उस ने पेन और रिपोर्टकार्ड मुझे पकड़ा दिया.

‘‘जब भी मार्क्स कम आते हैं तो मुझे कहते हैं और जब ज्यादा आते हैं तो सीधे पापा के पास जाते हैं,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रिपोर्टकार्ड खोल कर देखने लगी. साइंस में 100 में से 89, हिंदी में 85, मैथ्स में 92. मेरी आंखें चमकने लगीं. चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उसे शाबासी देने के लिए मैं ने नजरें उठाई तो देखा कि आईने में बाल संवारता हुआ वह शरारत भरी निगाहों से मुझे ही देख रहा था. मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोल उठा, ‘‘जल्दी से साइन कर दो न मम्मा, इतनी देर से मार्क्स ही देखे जा रही हो.’’

बेकाबू होती खुशी को नियंत्रित करते हुए मैं ने पेन का ढक्कन खोला. रिपोर्टकार्ड के दायीं ओर देखा तो ये पहले ही साइन कर चुके थे. दोनों फिर मुझे देख कर हंसने लगे तो मैं खिसिया गई.

‘‘घर की चाबी रख ली है न? कहीं ऐसा न हो कि आज मुझे बाहर गमले के पीछे छिपा कर जाना पड़े,’’ मैं ने अपनी झेप मिटाते हुए कहा.

बच्चों के काम से फारिग हुई ही थी कि पति ने दोबारा चाय की फरमाइश कर दी. ‘‘पत्ती जरा तेज डालना. सुबह जैसी चाय न बनाना. तुम्हें 16 सालों में चाय बनानी नहीं आई.’’

‘‘तुम अपनी चाय खुद क्यों नहीं बना लेते? कभी पत्ती कम तो कभी दूध ज्यादा. हमेशा मीनमेख निकालते रहते हो,’’ मैं ने भी अपना गुबार निकाल दिया.

आज दफ्तर को देर हो कर रहेगी. अभी सब्जी भी बनानी है और दूध भी उबालना है. क्याक्या करूं.

‘‘क्यों, तू समय पर  नहीं आ सकती? ये कौन सा वक्त है आने का? तेरी वजह से क्या मैं दफ्तर जाना छोड़ दूं?’’ मैं ने काम वाली पर सारा गुस्सा उतार दिया. सारा काम निबटा कर नहाने गई तो देखा बाथरूम बंद.

‘‘तुम रोज जल्दी क्यों नहीं नहाते? जबकि तुम्हें पता है कि इस वक्त ही मेरा काम खत्म हो पाता है. अब जल्दी बाहर निकलो,’’ मैं बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए लगभग चिल्ला दी.

‘‘जब तक मैं नहा कर निकलूं प्लीज मेरा रूमाल और मोजे पलंग पर रख दो,’’ शौवर के शोर को चीरती उन की मद्धिम पड़ गई आवाज सुनाई दी.

‘‘तुम मुझे 2 मिनट भी चैन से जीने मत देना,’’ मैं ने अपना तौलिया और गाउन वहीं पटका और रूमाल और मोजे ढूंढ़ने कमरे में चली गई.

यह इन का रोज का काम था. बापबेटे मुझ पर हुक्म चलाते.

‘चाय कड़क बनाना’

‘अखबार कहां है?’

‘मम्मी, दूध में मालटोवा नहीं डाला?’

‘आमलेट कच्चा है.’

‘मम्मी, ब्रैड में मक्खन नहीं लगाया?’

‘कभी बहुत गरम दूध दे देती हो तो कभी बिलकुल ठंडा. मम्मी, आप को हुआ क्या है?’

‘‘अब किस सोच में खड़ी हो? जाओ नहा लो,’’ पति बाथरूम से बाहर निकल कर बोले.

मैं पैर पटकती बाथरूम में घुस गई.

घर पर ही 10 बज गए. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दफ्तर पहुंची. सोचा कि आज बौस से फिर डांट खानी पड़ेगी. लेकिन अपने सैक्शन में पहुंचने पर पता चला कि आज बौस छुट्टी पर हैं. दिमाग कुछ शांत हुआ.

‘रोज का काम यदि रोज न निबटाओ तो काम का ढेर लग जाता है,’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

कोर्ट केस की फाइल पूरी कर बौस की मेज पर पटकी और अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करने लगी. कभी अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. घरदफ्तर, पतिबच्चों के बीच एक कठपुतली की तरह दिन भर नाचती रहती हूं. कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी इतनी व्यस्त हो जाएगी. कल से सुबह ठीक 5 बजे उठा करूंगी. ऐनी को आमलेट पसंद नहीं है तो उसे नाश्ते में दूध ब्रैड या परांठा दूंगी. सोनू को आमलेट और फिर अखबार के साथ इन्हें दोबारा कड़क सी चाय.

‘‘किस सोच में बैठी हो मैडम? आज चाय पिलाने का इरादा नहीं है क्या?’’ साथ बैठी सहयोगी ने ताना मारा.

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. चलो कैंटीन चलते हैं,’’ मैं थोड़ा सामान्य हुई.

‘‘आज बड़ी उखड़ीउखड़ी लग रही हो.

क्या बात है? सुबह से कोई बात भी नहीं की,’’ उस ने कैंटीन में इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए कोने में एक खाली मेज की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘यार, बात तो कोई नहीं. लेकिन आजकल काम का बहुत बोझेहै. जिंदगी जैसे रेल सी बन गई है. बस भागते रहो, भागते रहो,’’ कह कर मैं ने चाय की चुसकी ली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. कल मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई तो डाक्टर के पास 2 घंटे लग गए. मेरे साहब के पास तो फुरसत ही नहीं है. सब काम मैं ही करूं,’’ अब उस के चेहरे पर भी आ गई.

‘‘लगता है आज का दिन ही बोझल है. चलो छोड़ो, कोई दूसरी बात करते हैं. ये भी क्या जिंदगी हुई कि बस सारा दिन बिसूरते रहो,’’ मैं हंस दी.

‘‘मैं ने एक नया सूट लिया है, लेटैस्ट डिजाइन का,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तुम ने पहले तो नहीं बताया?’’

‘‘दफ्तर के काम की वजह से भूल गई.’’

‘‘कितने का लिया?’’

‘‘700 का. उन्हें बड़ी मुश्किल से मनाया. मेरे नए कपड़े खरीदने से बड़ी परेशानी होती है उन्हें. बच्चे भी उन्हीं के साथ मिल जाते हैं.’’

मेरी हंसी निकल गई, ‘‘मेरे साथ भी तो यही होता है.’’

‘‘कब पहन कर आ रही हो?’’ मैं ने बातों में रस लेते हुए पूछा.

‘‘अभी तो दर्जी के पास है. शायद 3-4 दिन में सिल कर दे दे,’’ उस ने कहा.

‘‘अरे, अगले महीने 21 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी तो है, तभी पहनना,’’ मैं ने जैसे अपनी याददाश्त पर गर्व करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे याद रहा?’’

‘‘हर साल तुम्हें बताती हूं कि मेरे छोटे बेटे का बर्थडे भी उसी दिन पड़ता है, भुलक्कड़ कहीं की.’’

‘‘हां यार, मैं हमेशा भूल जाती हूं,’’ वह खिसिया गई.

कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर, ‘‘चलो अब अंदर चलते हैं. बहुत गप्पें मार लीं. थोड़ाबहुत काम निबटा लें. आज शर्माजी की सेवानिवृत्ति पार्टी भी है,’’ मैं एक ही सांस में कह गई.

दिन भर फाइलों में सिर खपाती रही तो समय का पता ही नहीं चला. ओह 5 बज गए… मैं ने घड़ी पर नजर डाली और दफ्तर के गेट के बाहर आ गई.

पति पहले ही मेरे इंतजार में स्कूटर ले कर खडे़ थे. उन्हें देख मैं मुसकरा दी.

रास्ते में इधरउधर की बातें होती रहीं.

‘‘आज बढि़या सा खाना बना लेना.’’

‘‘क्यों, आज कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं, कई दिनों से तुम रोज ही दालचावल बना देती हो.’’

‘‘तो तुम सब्जी ला कर दिया करो न.

सब्जी मंडी जाने के नाम पर तुम्हें बुखार चढ़ जाता है.’’

‘‘रोज रेहड़ी वाले गली में घूमते हैं. उन से सब्जी क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘खरीद कर तो तुम्हीं लाओ. चाहे रेहड़ी वाले से, चाहे मंडी से. मुझे तो बस घर में सब्जी चाहिए वरना आज भी दालचावल…’’

‘‘अच्छा मैं तुम्हें घर के पास छोड़ कर सब्जी ले आता हूं. अब तो खुश?’’

‘‘हां, बड़ा एहसान कर रहे हो,’’ कहती हुई मैं घर की सीढि़यां चढ़ने लगी.

‘‘मेरे गुगलूबुगलू क्या कर रहे हैं?’’ मैं ने लाड़ जताते हुए बच्चों से पूछा.

‘‘मम्मी कैंटीन से खाने के लिए क्या लाई हो?’’ ऐनी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यहां सब्जी बड़ी मुश्किल से आती है, तुझे अपनी पड़ी है,’’ मैं ने पर्स खोलते हुए कहा.

‘‘सब के मम्मीपापा रोज कुछ न कुछ लाते हैं. जस्सी का फ्रिज तो तरहतरह की चीजों से भरा रहता है,’’ सोनू ने उलाहना दिया.

‘‘तो अपने पापा को बोला कर न बाजार से ले आया करें. मैं कहांकहां जाऊं. ये लो,’’ मैं ने एक पैकेट उन की तरफ उछाल दिया.

‘‘ये क्या है?’’

‘‘मिठाई है. औफिस में पार्टी हुई थी. मैं तुम्हारे लिए ले आई.’’

मैं ने पर्स अलमारी में रखा, जल्दीजल्दी कपड़े बदले और टीवी चालू कर दिया. थोड़ी देर में मेरा मनपसंद धारावाहिक आने वाला था.

‘‘आज चाय कौन बनाएगा?’’ मैं ने आवाज में रस घोलते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं उठ कर उन के कमरे में गई. देखा दोनों बच्चे कंप्यूटर पर गेम खेलने में मस्त थे.

‘‘रोज खुद चाय बनाओ. इन लड़कों का कोई सुख नहीं. लड़की होती तो कम से कम मां को 1 कप चाय तो बना कर देती,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रसोई में आ गई.

‘‘मम्मी, कुछ कह रही हो क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं चिल्ला दी.

रोटी का डब्बा खोल कर देखा तो लंच के लिए बनाए परांठों में से 2 परांठे अभी भी उस में पड़े थे.

‘‘दोपहर का खाना किस ने नहीं खाया?’’ मैं ने कमरे में दोबारा आ कर पूछा.

‘‘मैं ने तो खा लिया था,’’ सोनू बोला.

मैं ने ऐनी की तरफ देखा.

‘‘मम्मी आप के बिना खाना अच्छा नहीं लगता…अपने हाथ से खिला दो न,’’ उस ने स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ही लाड़ से कहा मेरा मन द्रवित हो उठा. खाना गरम कर अपने हाथों से उसे खिलाया और वापस रसोई में आ कर चाय बनाने लगी.

ट्रिंगट्रिंग…

शायद ये आ गए. बच्चों ने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर किताबें खोल लीं. मेरी हंसी निकल गई.

‘‘कुंडी खोलने में बड़ी देर लगा दी. कितनी देर से वजन उठाए खड़ा हूं,’’ सब्जी और दूध के लिफाफे रसोई की तरफ लाते हुए ये भुनभुनाए.

‘‘अरे चाय बना रही थी इसीलिए.’’

‘‘जरा ढंग से बना लेना. मेरी चाय में अलग से चाय की पत्ती डाल कर कड़क कर देना. सुबह की चाय फीकीफीकी थी.’’

‘‘अरे सुबह तो मैं ने दोबारा कड़क चाय बनाई थी. किसी दिन पत्ती का सारा डब्बा उड़ेल दूंगी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए कहा. फिर जल्दीजल्दी सुबह का बचा दूध गरम कर बच्चों को दे आई और ताजा दूध को गैस सिम कर उबलने के लिए रख दिया. चाय ले कर कमरे में आई तो मेरा पसंदीदा धारावाहिक शुरू हो चुका था.

-क्रमश:

‘शोले’ फेम सतिंदर कुमार खोसला का दिल का दौरा पड़ने से हुआ निधन

बीरबल के नाम से मशहूर दिग्गज अभिनेता सतिंदर कुमार खोसला का मंगलवार शाम को निधन हो गया. मीडिया के मुताबिक, उनका निधन मुंबई के एक अस्पताल में हुआ. वह 80 वर्ष के थे. उनका अंतिम संस्कार बुधवार को किया जाएगा.

सतिंदर के दोस्त ने उनके निधन की पुष्टि की

सतिंदर के दोस्त जुगनू ने मीडिया से उनकी मौत की खबर की पुष्टि की. अभिनेता का कोकिलाबेन अस्पताल में कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार आज किया जाएगा.

 

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संतिदर का फिल्मी करियर

सतिंदर को उनके कॉमिक किरदारों के लिए जाना जाता है. गंजे बालों और घनी मूंछों वाले उनके विशिष्ट लुक ने उन्हें आसानी से पहचानने योग्य बना दिया. उन्होंने उपकार, रोटी कपड़ा और मकान और क्रांति समेत मनोज कुमार की कई फिल्मों में काम किया.

‘शोले’ फिल्म से संतिदर को पहचान मिली

हालांकि, शोले में एक कैदी के रूप में उनकी भूमिका ने उन्हें बहुत अधिक ध्यान आकर्षित कराया. उन्हें ‘नसीब’, ‘याराना’, ‘हम हैं राही प्यार के’ और ‘अंजाम’ जैसी फिल्मों में भी देखा गया.

 

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क्षेत्रीय सिनेमा में भी किया काम

सतिंदर कुमार खोसला ने हिंदी सिनेमा के अलावा पंजाबी, भोजपुरी और मराठी सिनेमा सहित विभिन्न भाषाओं में 500 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. अभिनेता को उनकी हास्य भूमिकाओं के लिए जाना जाता था. वी शांताराम की फिल्म बूंद जो बन गई मोती में बंचराम की उनकी प्रारंभिक भूमिका ने उनके करियर की शुरुआत की. बाद में उन्होंने रमेश सिप्पी की 1975 की ब्लॉकबस्टर फिल्म शोले में एक कैदी की संक्षिप्त भूमिका निभाई जिसने उन्हें एक जाना-पहचाना चेहरा बना दिया. बाद में उन्होंने ‘अनुरोध’ और ‘अमीर गरीब’ जैसी फिल्मों में संक्षिप्त भूमिकाएं निभाईं.

महाराष्ट्र के चैम्पियन बॉडी बिल्डर संदीप रामचंद्र वालावलकर से जानें बॉडी बिल्डिंग स्पोर्ट्स में जानें का सही तरीका, पढ़ें इंटरव्यू

फिटनेस के क्षेत्र में आने की इच्छा मध्यमवर्गीय संदीप रामचंद्र वालावलकर को बचपन से ही था, क्योंकि उनकी माँ ने उन्हें केवल पढाई नहीं, बल्कि हेल्थ पर फोकस करने को कहा था. वह मानती थी कि स्वास्थ्य स्ट्रोंग रहने पर पढ़ाई में अधिक अच्छा नहीं भी कर पाने पर व्यक्ति बॉडी बिल्डिंग में कैरियर बना सकता है. उनकी पहली प्रेरणा उनकी माँ है, जिससे उनका मन एक्सरसाइज की ओर बढ़ा और उनकी सफलता का श्रेय वे अपनी माँ को देते है. अभी वे फिटनेस के क्षेत्र में जागरूकता फ़ैलाने का काम कर रहे है. महाराष्ट्र के चैम्पियन बॉडी बिल्डर संदीप ने खास गृहशोभा के लिए बात की. आइये जाने, उनकी कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

संदीप कहते है कि शुरुआत पहले मैं घर में दंड-बैठक किया करता था, बाद में साइकिलिंग, रनिंग, स्विमिंग आदि करने लगा. इससे आसपास के लोग मुझे मेरी हाइट, शोल्डर, बॉडी शेप आदि को देखकर तारीफ करते थे और बॉडी बिल्डिंग की ओर जाने की सलाह देने लगे. इससे मेरी इच्छा जिम की तरफ जाने को हुई , ताकि मैं खुद को और अधिक मजबूत कर सकूँ.

तब मेरी उम्र 20 साल की थी और मुंबई की पाटकर कॉलेज की बॉडी बिल्डिंग की एक कम्पटीशन में ‘मिस्टर पाटकर’ की एक प्रतियोगिता में, मेरे सभी दोस्तों के खाने पर भाग लिया, जबकि तब मुझे बॉडी बिल्डिंग की कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन मैं टाइटल जीत गया. इससे मेरे अंदर आत्मविश्वास बढ़ा. मैंने इसे प्रोफेशन के रूप में लिया और ओपन कम्पटीशन में भाग लेने और उसकी तैयारी में जुट गया. मैंने एक ही साल में मिस्टर मुंबई, मिस्टर महाराष्ट्र और मिस्टर इंडिया बन गया. उसके बाद से मैंने साल 2000 से बॉडी बिल्डिंग के क्षेत्र में स्टेट लेवल और नेशनल लेवल पर भाग लेता रहा और जीतता गया.

था मुश्किल दौर  

संदीप का कहना है कि तकरीबन 10 साल की मेहनत के बाद मैं बॉडी बिल्डिंग की एक मुकाम पर पहुँच पाया. बॉडी बिल्डिंग स्पोर्ट्स में व्यक्ति को 20 से 25 साल होने तक वेट करना पड़ता है, ताकि बॉडी मैच्योर हो. अगर व्यक्ति 16 से 17 साल में बॉडी बिल्डिंग शुरू करता है, तो मैच्योर बॉडी उसे 26 से 27 साल में मिलता है, जबकि 20 साल में शुरू करने पर 30 साल की उम्र ही मैच्योर बॉडी मिल पाता है. इसमें बाकी स्पोर्ट्स की तरह कम समय में कुछ नहीं किया जा सकता. धीरज और लगन इस स्पोर्ट में बहुत रखने की जरुरत होती है.

धीरज जरुरी  

वे आगे कहते है कि मैंने शुरुआत एक छोटे से कमरे की जिम से की थी, लेकिन जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता गया, कॉम्पिटिशन का पता लगता गया और मैं खुद को अपग्रेड करता गया. डिस्ट्रिक्ट लेवल पर जाने में मुझे 5 साल का एक्सरसाइज लगा. स्टेट लेवल पर 7 साल और नेशनल लेवल पर 10 साल का समय लगा. मेरी अभ्यास ही मुझे बताती है कि मैं किस लेवल पर हूँ. लगातार जीत को बनाए रखना एक बड़ी बात होती है, एक स्तर के बाद गोल्ड भले ही न मिले , लेकिन अभ्यास जारी रखते जाना पड़ता है.

सही डाइट पर दे ध्यान  

डाइट पर इस खेल में बहुत ध्यान देना पड़ता है. संदीप कहते है कि जैसे – जैसे मैं इस प्रोफेशन की ओर मुड़ा, मुझे सीनियर बॉडी बिल्डर से इस स्पोर्ट्स के बारें में काफी जानकारी मिलती रही. इसमें केवल बॉडी और एक्सरसाइज ही नहीं बल्कि प्रॉपर डाइट की बहुत जरुरत होती है. 40 प्रतिशत एक्सरसाइज के साथ 40 प्रतिशत डाइट भी जरुरी है. 20 प्रतिशत में मेडिटेशन, योगा, रेस्ट, सोचने का तरीका आदि सब मिलकर एक 100 प्रतिशत होता है. सभी का संतुलन बहुत जरुरी होता है, इससे बॉडी मैच्योर होता है.

प्रोफेशनल बॉडी बिल्डर की डाइट में प्रोटीन की मात्रा उनके बॉडी वेट की डबल होने चाहिए, मसलन 70 किलोग्राम के व्यक्ति को प्रोटीन 140 की जरुरत होती है. डाइट में प्रोटीन के साथ कार्बोहाइड्रेट और फाइबर्स की मात्रा का पूरा संतुलन होने की आवश्यकता है. इसमें सलाद और फ्रूट्स होने जरुरी है. ऑयली, स्पाइसी और स्वीट को अपने रूटीन से निकाल दें. फॅमिली पार्टी, जन्मदिन, लेटनाईट डिनर आदि को पूरी तरह से अवॉयड करना पड़ता है.

मिला परिवार का सहयोग

संदीप मध्यमवर्गीय परिवार से है, आर्थिक अवस्था सामान्य रही है, लेकिन जैसे -जैसे वे आगे बढ़ते और जीतते गये, काफी लोग उनसे जुड़ गए और घर वालों का भी हौसला बढ़ता गया. वे कहते है कि मैं जब बॉडी बिल्डर बना तब सप्लीमेंट का प्रयोग कम था, धीरे-धीरे इसका प्रचलन काफी बढ़ गया है, इससे बॉडी बिल्डिंग आज महंगी होती जा रही है और कॉम्पिटिशन भी अधिक बढ़ गयी है, लेकिन मध्यमवर्गीय के काफी लोग इस क्षेत्र में आ रहे है और मैं नए बॉडी बिल्डर को कहना चाहता हूँ कि वे स्पोंसर के बारें में न सोचकर अपनी बॉडी और परफोर्मेंस पर ध्यान दे और एक्सरसाइज करें. लोग खुद आप से जुड़ जाते है. मैं अभी बी एम् सी में डिप्टी चीफ सिक्यूरिटी की पोस्ट पर काम कर रहा हूँ.

बॉडी को पहचाने

अधिक एक्सरसाइज न हो, जिससे किसी प्रकार की शारीरिक क्षति न हो, इस बात का ध्यान कैसे ध्यान रखते है? पूछने पर वे कहते है कि इस खेल में इंज्यूरी, एक्सरसाइज का एक पार्ट हुआ करती है. इससे बचना संभव नहीं, इसमें केवल रेस्ट की जरुरत होती है. बीच – बीच में ब्रेक लेकर उसे ठीक करना पड़ता है और अधिक इंज्यूरी होने पर डॉक्टर की सलाह भी लेने की आवश्यकता पड़ती है. साथ ही वर्कआउट की प्लान तैयार करनी पड़ती है. इंज्यूरी की डर से व्यायाम को रोकना संभव नहीं होता, क्योंकि किसी भी व्यायाम को एक्सट्रीम करने पर इंज्यूरी होती है, लेकिन वह एक्सीडेंट के रूप में न हो, इसे देखना पड़ता है. कई बार स्लिप डिस्क, मसल्स में क्षति हो जाती है, लेकिन इसमें खुद को ही अपनी लिमिट समझने की जरुरत होती है.

इसमें कोच की भूमिका बड़ी होती है, जो लगातार गाइड करते रहते है. मेरे कोच शैलेश परुलेकर रहे है, उन्होंने मेरे लिए ऑस्ट्रेलिया जाकर खुद मेरे लिए ट्रेनिंग ली थी. उन्होंने मेरी पूरी विकास का ध्यान रखा है, जिससे मुझे काफी सहयोग मिला. अधिक वर्क लोड, स्ट्रेस, कम रेस्ट आदि होने पर व्यक्ति को समझदारी से वर्कआउट करना पड़ता है. उन्हें कहाँ खुद को रोकना है इसकी जानकारी न होने पर कई प्रकार के हादसे हो जाया करते है. जिम में कुछ होने पर जिम समस्या नहीं होती, बल्कि उनकी आगे – पीछे लाइफस्टाइल को देखना जरुरी है.

दिनचर्या में फिटनेस को करें शामिल

अभी संदीप फिटनेस को लोगों तक फ़ैलाने की कोशिश करता है, क्योंकि फिटनेस की कोई जाति, धर्म, पुरुष या महिला नहीं होती, हर व्यक्ति को इसे किसी न किसी रूप में करना चाहिए. वे लोगों में जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश कर रहे है. अभी वे प्रोफेशनल बॉडी बिल्डिंग में नहीं, फिटनेस की फील्ड में काम कर रहे है.

एक्सरसाइज है स्टाइल स्टेटमेंट

एक्सरसाइज आजकल एक स्टाइल स्टेटमेंट बन चुका है, ऐसे में हर कोई जिम जाना पसंद करता है. संदीप कहते है कि जिम जाने से पहले कुछ बातों की जानकारी अवश्य लें. मसलन वहां ट्रेंड कोच डायटीशियन, डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट आदि होने चाहिए. जिम की एरिया कोई मैटर नहीं करता, क्वालिटी को देखना आवश्यक है. बीच में वर्क आउट को छोड़ने की कोशिश न करें. सीढी चढ़ना, वाक करना आदि नियमित तौर पर 30 मिनट करें. सप्ताह में 3 घंटे व्यायाम अवश्य रखें. मोटापे को कम करने की हड़बड़ी न करें, ढाई से तीन किलों हर महीने वजन कम हो, तो सही रहता है, इसे मेन्टेन करने की कोशिश करते रहे.

Anupama: मालती देवी पाखी के लिए बनीं फरिशता, परिवार हुआ हैरान

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा के बीते एपिसोड़ में देखने को मिला कि रोमिल ने ही पाखी का किडनैप करवाया है. हालांकि उसके लिए वह एक प्रैंक था. तोषू और समर पाखी को ढूढ़ने जाते है. टीवी सीरियल अनुपमा में आया नया ट्विस्ट पाखी को गुंडो से मालती देवी ने बचाया.

पाखी को नींद की दवा का हुआ असर

अनुपमा में अभी तक आप देख सके है पाखी उस कमरे से भाग चुकी है, जहां उसे किडनैप किया गया था. आगे एपिसोड में देखने को मिलता है कि पाखी को नींद की दवा का असर रहता है. वह बेसुध सी रहती है. एक तरफ पाखी जमीन पर पड़ी रहती है उसके पास गुंडे आते है. उसका फायदा उठाना चाहेंगे. लेकिन ऐसा होगा नहीं.

 

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मालती देवी ने पाखी को बचाया

अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि गुंडे लोग पाखी के पास आते है तभी वहां मालती देवी पहुंच जाएगी, जिसकी याददाश्त जा चुकी है. लेकिन मालती देवी की वजह से वह गुंडे भाग जाते है.

पाखी को लेकर घर पहुंची मालती देवी

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा देखने को मिलेगा कि अनुपमा को लगता है पाखी घर आ रही है जिस वजह से वह दरवाजे पर अपनी बेटी की राह देखती है. कुछ ही देर बाद मालती देवी पाखी को लेकर दरवाजे पर आती है. जिस देखकर सभी लोग खुश हो जाते है वहीं पाखी की ऐसी हालत देखकर बहुत परेशान हो जाते है. इसके बाद मालती देवी बोलती है कि, ये लड़की मिली है.

गुरु मां की एक लाइन बोलकर पूरे परिवार को अंदाजा हो जाता है कि उनकी मानसिक हालत का. लेकिन सभी इसलिए भी हैरान थे कि इस स्टेज पर मालती देवी को याद था कि यह अनुपमा की बेटी है और उसे वह घर लेकर आई.

बने एकदूजे के लिए: भाग 2- क्या विवेक और भावना का प्यार परवान चढ़ा

काले नए सूट, सफेद कमीज, मैचिंग टाई में ऐसा लग रहा था जैसे अभी बोल पड़ेगा. बैठक फूलों के बने रीथ (गोल आकार में सजाए फूल), क्रौस तथा गुलदस्तों से भरी पड़ी थी.आसपास के लोग तो नहीं आए थे लेकिन उन के कुलीग वहां मौजूद थे.

लोगों ने अपनेअपने घरों के परदे तान लिए थे, क्योंकि विदेशों में ऐसा चलन है. पोलीन और जेम्स के आते ही उन्हें विवेक के साथ कुछ क्षण के लिए अकेला छोड़ दिया गया. मामाजी ने बाकी लोगों को गाडि़यों में बैठने का आदेश दिया.

हर्श (शव वाहन) के पीछे की गाड़ी में विवेक का परिवार बैठने वाला था. अन्य लोग बाकी गाडि़यों में.‘‘मंजू, किसी ने पुलिस को सूचना दी क्या? शव यात्रा रोप लेन से गुजरने वाली है?’’ (यू.के. में जहां से शवयात्रा निकलती है, वह सड़क कुछ समय के लिए बंद कर दी जाती है.

कोई गाड़ी उसे ओवरटेक भी नहीं कर सकती या फिर पुलिस साथसाथ चलती है शव के सम्मान के लिए).‘‘यह काम तो चर्च के पादरीजी ने करदिया है.’’‘‘और हर्श में फूल कौन रखेगा?’’‘‘फ्यूनरल डायरैक्टर.’’‘‘मंजू, औरतें और बच्चे तो घर पर हीरहेंगे न?’’‘‘नहीं मामाजी, यह भारत नहीं है.

यहां सभी जाते हैं.’’‘‘मैं जानता हूं लेकिन घर को खाली कैसे छोड़ दूं?’’‘‘मैं जो हूं,’’ मामीजी ने कहा.‘‘तुम तो इस शहर को जानतीं तक नहीं.’’‘‘मैं मामीजी के साथ रहूंगी,’’ पड़ोसिन छाया बोली.अब घर पर केवल छाया तथा मामीजी थीं. मामाजी तथा मंजू की बातें सुनने के बाद छाया की जिज्ञासा पर अंकुश लगाना कठिन था. छाया थोड़ी देर बाद भूमिका बांधते बोली, ‘‘मामीजी, अच्छी हैं यह गोरी मेम. कितनी दूर से आई हैं बेटे को ले कर.

आजकल तो अपने सगेसंबंधी तक नहीं पहुंचते. लेकिन मामीजी, एक बात सम?ा में नहीं आ रही कि आप उसे कैसे जानती हैं? ऐसा तो नहीं लगता कि आप उस से पहली बार मिली हों?’’अब मामीजी का धैर्य जवाब दे गया. वे झंझलाते हुए बोलीं, ‘‘जानना चाहती हो तो सुनो.

भावना से विवाह होने से पहले पोलीन ही हमारे घर की बहू थी. विवेक और भावना एकदूसरे को वर्षों से जानते थे. मुझे याद है कि विवेक भावना का हाथ पकड़ कर उसे स्कूल ले कर जाता और उसे स्कूल से ले कर भी आता. वह भावना के बिना कहीं न जाता. यहां तक कि अगर विवेक को कोई टौफी खाने को देता तो विवेक उसे तब तक मुंह में न डालता जब तक वह भावना के साथ बांट न लेता.

धीरेधीरे दोनों के बचपन की दोस्ती प्रेम में बदल गई. वह प्रेम बढ़तेबढ़ते इतना प्रगाढ़ हो गया कि पासपड़ोस, महल्ले वालों ने भी इन दोनों को ‘दो हंसों की जोड़ी’ का नाम दे दिया. उस प्रेम का रंग दिनबदिन गहरा होता गया.

विवेक एअरफोर्स में चला गया और भावना आगे की पढ़ाई करने में लग गई.‘‘लेकिन जैसे ही विवेक पायलट बना, उस की मां दहेज में कोठियों के ख्वाब देखने लगी, जो भावना के घर वालों की हैसियत से कहीं बाहर था.

विवेक ने विद्रोह में अविवाहित रहने का फैसला कर लिया और दोस्तों से पैसे ले कर मांबाप को बिना बताए ही जरमनी जा पहुंचा. किंतु उस की मां अड़ी रहीं. जिस ने भी सम?ाने का प्रयत्न किया, उस ने दुश्मनी मोल ली.’’‘‘तब तक तो दोनों बालिग हो चुके होंगे, उन्होंने भाग कर शादी क्यों नहीं कर ली?’’ छाया ने जिज्ञासा से पूछा.‘‘दोनों ही संस्कारी बच्चे थे. घर में बड़े बच्चे होने के नाते दोनों को अपनी जिम्मेदारियों का पूरा एहसास था.

दोनों अपने इस बंधन को बदनाम होने नहीं देना चाहते थे. लेकिन वही हुआ जिस का सभी को डर था. विकट परिस्थितियों से बचताबचता विवेक दलदल में फंसता ही गया. उसे किसी कारणवश पोलीन से शादी करनी पड़ी. दोनों एक ही विभाग में काम करते थे.‘‘विवेक की शादी की खबर सुन भावना के परिवार को बड़ा धक्का लगा.

भावना तो गुमसुम हो गई. भावना के घर वालों ने पहला रिश्ता आते ही बिना पूछताछ किए भावना को खूंटे से बांध दिया. 1 वर्ष बाद उसे एक बच्ची भी हो गई.‘‘लेकिन भावना तथा विवेक दोनों के ही विवाह संबंध कच्ची बुनियाद पर खड़े थे, इसलिए अधिक देर तक न टिक सके.

दोनों ही बेमन से बने जीवन से आजाद तो हो गए, किंतु पूर्ण रूप से खोखले हो चुके थे. विवेक की शादी टूटने के बाद उस के मामाजी ने जरमनी से उसे यू.के. में बुला लिया. वहां उसे रौयल एअरफोर्स में नौकरी भी मिल गई.

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