दिल दे चुके सनम

शिखा को नीचे से ऊपर तक प्रशंसा भरी नजरों से देखने के बाद रवि ऊंचे स्वर में सविता से बोला, ‘‘भाभी, आप की बहन सुंदर तो है, पर आप से ज्यादा नहीं.’’

‘‘गलत बोल रहा है मेरा भाई,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो सविता से कहीं ज्यादा खूबसूरत है.’’

‘‘लगता है शिखा को देख कर देवरजी की आंखें चौंधिया गई हैं,’’ सविता ने रवि को छेड़ा.

‘‘भाभी, उलटे मेरी स्मार्टनैस ने शिखा को जबरदस्त ‘शाक’ लगाया है. देखो, कैसे आंखें फाड़फाड़ कर मुझे देखे जा रही है,’’ रवि ने बड़ी अकड़ के साथ अपनी कमीज का कालर ऊपर किया.

जवाब में शिखा पहले मुसकराई और फिर बोली, ‘‘जनाब, आप अपने बारे में काफी गलतफहमियां पाले हुए हैं. चिडि़याघर में लोग आंखें फाड़फाड़ कर अजीबोगरीब जानवरों को उन की स्मार्टनैस के कारण थोड़े ही देखते हैं.’’

‘‘वैरीगुड, साली साहिबा. बिलकुल सही जवाब दिया तुम ने,’’ राकेश तालियां बजाने लगा.

‘‘शिखा, गलत बात मुंह से न निकाल,’’ अपनी मुसकराहट को काबू में रखने की कोशिश करते हुए सावित्री ने अपनी छोटी बेटी को हलका सा डांटा.

‘‘आंटी, डांटिए मत अपनी भोली बेटी को. मैं ने जरा कम तारीफ की, इसलिए नाराज हो गई है.’’

‘‘गलतफहमियां पालने में माहिर लगते हैं आप तो,’’ शिखा ने रवि का मजाक उड़ाया.

‘‘आई लाइक इट, भाभी,’’ रवि सविता की तरफ मुड़ कर बोला, ‘‘हंसीमजाक करना जानती है आप की मिर्च सी तीखी यह बहन.’’

‘‘तुम्हें पसंद आई है शिखा?’’ सविता ने हलकेफुलके अंदाज में सब से महत्त्वपूर्ण सवाल पूछा.

‘‘चलेगी,’’ रवि लापरवाही से बोला, ‘‘आप लोग चाहें तो घोड़ी और बैंडबाजे वालों को ऐडवांस दे सकते हैं.’’

‘‘एक और गलतफहमी पैदा कर ली आप ने. कमाल के इंसान हैं आप भी,’’ शिखा ने मुंह बिगाड़ कर जवाब दिया और फिर हंस पड़ी.

‘‘भाभी, आप की बहन शरमा कर ऐसी बातें कर रही है. वैसे तो अपने सपनों के राजकुमार को सामने देख कर मन में लड्डू फूट रहे होंगे,’’ रवि ने फिर कालर खड़ा किया.

‘‘इन का रोग लाइलाज लगता है, जीजू. इन्हें शीशे के सामने ज्यादा खड़ा नहीं होना चाहिए. मेरी सलाह तो किसी दिमाग के डाक्टर को इन्हें दिखाने की भी है. आप सब मेरी सलाह पर विचार करें, तब तक मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ ड्राइंगरूम से हटने के इरादे से शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

‘‘शर्मोहया के चलते ‘हां’ कहने से चूक गईं तो मैं हाथ से निकल जाऊंगा, शिखा,’’  रवि ने उसे फिर छेड़ा.

जवाब में शिखा ने जीभ दिखाई, तो ठहाकों से कमरा गूंज उठा.

रवि अपनी सविता भाभी का लाड़ला देवर था. उस की अपनी बहन शिखा के सामने प्रशंसा करते सविता की जबान न थकती थी.

अपनी बड़ी बहन सविता की शादी की तीसरी सालगिरह के समारोह में शामिल होने के लिए शिखा अपनी मां सावित्री के साथ दिल्ली आई थी.

सविता का इकलौता इंजीनियर देवर रवि मुंबई में नौकरी कर रहा था. वह भी सप्ताह भर की छुट्टी ले कर दिल्ली पहुंचा था.

सविता और उस के पति राकेश के विशेष आग्रह पर रवि और शिखा दोनों इस समारोह में शामिल हो रहे थे. जब वे पहली बार एकदूसरे के सामने आए, तब सविता, राकेश और सावित्री की नजरें उन्हीं पर जम गईं.

राकेश अपनी साली का बहुत बड़ा प्रशंसक था. वह चाहता था कि शिखा भी उन के घर की बहू बन जाए.

अपने दामाद की इस इच्छा से सावित्री पूरी तरह सहमत थीं. देखेभाले इज्जतदार घर में दूसरी बेटी के पहुंच जाने पर वह पूरी तरह से चिंतामुक्त हो जातीं.

सावित्रीजी, राकेश और सविता को उम्मीद थी कि लड़कालड़की यानी रवि और शिखा इस बार की मुलाकात में उन की पसंद पर अपनी रजामंदी की मुहर जरूर लगा देंगे.

रवि ने अपनी बातों व हावभाव से साफ कर दिया कि शिखा उसे पसंद आ गई है. उस का दीवानापन उस की आंखों से साफ झलक रहा था. उस के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि शिखा की ‘हां’ के प्रति उस के मन में कोई शक नहीं है.

अपने भैयाभाभी का लाड़ला रवि शिखा को छेड़ने का कोई मौका नहीं चूक रहा था.

उस दिन शाम को शिखा अपनी बहन का खाना तैयार कराने में हाथ बंटा रही थी, तो रवि भी वहां आ पहुंचा.

‘‘शिखा, मेरी रुचियां भाभी को अच्छी तरह मालूम हैं. वे जो बताएं, उसे ध्यान से सुनना,’’ रवि ने आते ही शिखा को छेड़ना शुरू कर दिया.

‘‘आप को मेरी एक तमन्ना का शायद पता नहीं है,’’ शिखा का स्वर भी फौरन शरारती हो उठा.

‘‘तुम इसी वक्त अपनी तमन्ना बयान करो, शिखा. बंदा उसे जरूरपूरी करेगा.’’

‘‘मैं दुनिया की सब से घटिया कुक बनना चाहती हूं और इसीलिए अपनी मां या दीदी से पाक कला के बारे में कुछ भी सीखने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

‘‘लेकिन यह तो टैंशन वाली बात है. मैं तो अच्छा खानेपीने का बहुत शौकीन हूं.’’

‘‘मैं कब कह रही हूं कि आप इस तरह का शौक न पालिए.’’

‘‘पर तुम अच्छा खाना बनाना सीखोगी नहीं, तो हमारी शादी के बाद मेरा यह शौक पूरा कैसे होगा?’’

‘‘रवि साहब, बातबात पर गलतफहमियां पाल लेने में समझदारी नहीं.’’

‘‘अब शरमाना छोड़ भी दो, शिखा. तुम्हारी मम्मी, भैया, भाभी और मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हैं, तो तुम क्यों जबरदस्ती की ‘न’ पर अड़ी हो?’’

‘‘जब लड़की नहीं राजी, तो क्या करेगा लड़का और क्या करेंगे काजी?’’ अपनी इस अदाकारी पर शिखा जोर से हंस पड़ी.

रवि उस से हार मानने को तैयार नहीं था. उस ने और ज्यादा जोरशोर से शिखा को छेड़ना जारी रखा.

अगले दिन सुबह सब ने सविता और राकेश को उन के सुखी वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं. इस दौरान भी रवि और शिखा में मीठी नोकझोंक चलती रही.

अपने असली मनोभावों को शिखा ने उस दिन दोपहर को अपनी मां और दीदी के सामने साफसाफ प्रकट कर दिया.

‘‘देखो, रवि वैसा लड़का नहीं है, जैसा मैं अपने जीवनसाथी के रूप में देखती आई हूं. उस से शादी करने का मेरा कोई इरादा नहीं है,’’ शिखा ने दृढ़ लहजे में उन्हें अपना फैसला सुना दिया.

‘‘क्या कमी नजर आई है तुझे रवि में?’’ सावित्री ने चिढ़ कर पूछा.

‘‘मां, रवि जैसे दिलफेंक आशिक मैं ने हजारों देखे हैं. सुंदर लड़कियों पर लाइन मारने में कुशल युवकों को मैं अच्छा जीवनसाथी नहीं मानती.’’

‘‘शिखा, रवि के अच्छे चरित्र की गारंटी मैं लेती हूं,’’ सविता ने अपनी बहन को समझाने का प्रयास किया.

‘‘दीदी, आप के सामने वह रहता ही कितने दिन है? पहले बेंगलुरु में पढ़ रहा था और अब मुंबई में नौकरी कर रहा है. उस की असलियत तुम कैसे जान सकती हो?’’

‘‘तुम से तो ज्यादा ही मैं उसे जानती हूं. बिना किसी सुबूत उसे कमजोर चरित्र का मान कर तुम भारी भूल कर रही हो, शिखा.’’

‘‘दीदी मैं उसे कमजोर चरित्र का नहीं मान रही हूं. मैं सिर्फ इतना कह रही हूं कि उस जैसे दिलफेंक व्यक्तित्व वाले लड़के आमतौर पर भरोसेमंद और निभाने वाले नहीं निकलते. फिर जब मैं उसे ज्यादा अच्छी तरह जानतीसमझती नहीं हूं, तो उस से शादी करने को ‘हां’ कैसे कह दूं? आप लोगों ने अगर मुझ पर और दबाव डाला, तो मैं कल ही घर लौट जाऊंगी,’’ शिखा की इस धमकी के बाद उन दोनों ने नाराजगी भरी चुप्पी साध ली.

सविता ने शिखा का फैसला राकेश को बताया, तो राकेश ने कहा, ‘‘उसे इनकार करने का हक है, सविता. इस विषय पर हम बाद में सोचविचार करेंगे. मैं रवि से बात करता हूं. तुम शिखा पर किसी तरह का दबाव डाल कर उस का मूड खराब मत करना.’’

पति के समझाने पर फिर सविता ने इस रिश्ते के बारे में शिखा से एक शब्द भी नहीं बोला.

राकेश ने अकेले में रवि से कहा, ‘‘भाई, शिखा को तुम्हारी छेड़छाड़ अच्छी नहीं लग रही है. उस से अपनी शादी को ले कर हंसीमजाक करना बंद कर दो.’’

‘‘लेकिन भैया, उस से तो मेरी शादी होने ही जा रही है,’’ रवि की आंखों में उलझन और उदासी के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘सोच तो हम भी यही रहे थे, लेकिन अंतिम फैसला तो शिखा का ही माना जाएगा न?’’

‘‘तो क्या उस ने इनकार कर दिया है?’’

‘‘हां, पर तुम दिल छोटा न करना. ऐसे मामलों में जबरदस्ती दबाव बनाना उचित नहीं होता है.’’

‘‘मैं समझता हूं, भैया. शिखा को शिकायत का मौका मैं अब नहीं दूंगा,’’ रवि उदास आवाज में बोला.

शाम को शादी की सालगिरह के समारोह में राकेश के कुछ बहुत करीबी दोस्त सपरिवार आमंत्रित थे. घर के सदस्यों ने उन की आवभगत में कोई कमी नहीं रखी, पर कोई भी खुल कर हंसबोल नहीं पा रहा था.

रवि ने एकांत में शिखा से सिर्फ इतना कहा, ‘‘मैं सचमुच बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार था. मेरी जिन बातों से आप के दिल में दुख और नाराजगी के भाव पैदा हुए, उन सब के लिए मैं माफी मांगता हूं.’’

‘‘मैं आप की किसी बात से दुखी या नाराज नहीं हूं. आप के व मेरे अपनों के अति उत्साह के कारण जो गलतफहमी पैदा हुई, उस का मुझे अफसोस है,’’ शिखा ने मुसकरा कर रवि को सहज करने का प्रयास किया, पर असफल रही, क्योंकि रवि और कुछ बोले बिना उस के पास से हट कर घर आए मेहमानों की देखभाल करने में व्यस्त हो गया. उस के हावभाव देख कर कोई भी समझ सकता था कि वह जबरदस्ती मुसकरा रहा है.

‘इन जनाब की लटकी सूरत सारा दिन देखना मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. मां को समझा कर मैं कल की ट्रेन से घर लौटने का इंतजाम करती हूं,’ मन ही मन यह फैसला करने में शिखा को ज्यादा वक्त नहीं लगा, मगर उसे अपनी मां से इस विषय पर बातें करने का मौका ही नहीं मिला और इसी दौरान एक दुर्घटना घटी और सारा माहौल तनावग्रस्त हो गया.

आखिरी मेहमानों को विदा कर के जब सविता लौट रही थी, तो रास्ते में पड़ी ईंट से ठोकर खा कर धड़ाम से गिर गई.

सविता के गर्भ में 6 महीने का शिशु था. काफी इलाज के बाद वह गर्भवती हो पाई थी. गिरने से उस के पेट में तेज चोट लगी थी. चोट से पेट के निचले हिस्से में दर्द शुरू हो गया. कुछ ही देर बाद हलका सा रक्तस्राव हुआ, तो गर्भपात हो जाने का भय सब के होश उड़ा गया.

राकेश और रवि सविता को फौरन नर्सिंगहोम ले गए. सावित्रीजी और शिखा घर पर ही रहीं और कामना कर रही थीं कि कोई और अनहोनी न घटे.

सविता की हालत ठीक नहीं है, गर्भपात हो जाने की संभावना है, यह खबर राकेश ने टेलीफोन द्वारा सावित्रीजी और शिखा को दे दी.

मांबेटी दोनों की आंखों से नींद छूमंतर हो गई. दोनों की आंखें रहरह कर आंसुओं से भीग जातीं.

सुबह 7 बजे के करीब रवि अकेला लौटा. उस की सूजी आंखें साफ दर्शा रही थीं कि वह रात भर जागा भी है और रोया भी.

‘‘सविता की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है,’’ यह खबर इन दोनों को सुनाते हुए उस का गला भर आया था.

फिर रवि जल्दी से नहाया और सिर्फ चाय पी कर नर्सिंगहोम लौट गया.

उस के जाने के आधे घंटे बाद राकेश आया तो उस का उदास, थका चेहरा देख कर सावित्रीजी रो पड़ीं.

राकेश बहुत थका हुआ था. वह कुछ देर आराम करने के इरादे से लेटा था, पर गहरी नींद में चला गया. 3-4 घंटों के बाद सावित्रीजी ने उसे उठाया.

नाश्ता करने के बाद सावित्री और राकेश नर्सिंगहोम चले गए. शिखा ने सब के लिए खाना तैयार किया, पर शाम के 5 बजे तक रवि, राकेश या सावित्रीजी में से कोई नहीं लौटा. चिंता के मारे अकेली शिखा का बुरा हाल हो रहा था.

 

करीब 7 बजे राकेश और सावित्रीजी लौटे. उन्होंने बताया कि रवि 1 मिनट को भी वहां से हटने को तैयार नहीं था.

सुबह से भूखे रवि के लिए राकेश खाना ले गया. फोन पर जब शिखा को अपने जीजा से यह खबर मिली कि रवि ने अभी तक खाना नहीं खाया है और न ही वह आराम करने के लिए रात को घर आएगा, तो उस का मन दुखी भी हुआ और उसे रवि पर तेज गुस्सा भी आया.

खबर इस नजरिए से अच्छी थी कि सविता की हालत और नहीं बिगड़ी थी. उस रात भी रवि और राकेश दोनों नर्सिंगहोम में रुके. शिखा और सावित्रीजी ने सारी रात करवटें बदलते हुए काटी. सुबह सावित्रीजी पहले उठीं. शिखा करीब घंटे भर बाद. उस ने खिड़की से बाहर झांका, तो बरामदे के फर्श पर रवि को अपनी तरफ पीठ किए बैठा पाया.

अचानक रवि के दोनों कंधे अजीब से अंदाज में हिलने लगे. उस ने अपने हाथों से चेहरा ढांप लिया. हलकी सी जो आवाजें शिखा के कानों तक पहुंची, उन्हें सुन कर उसे यह फौरन पता लग गया कि रवि रो रहा है.

बेहद घबराई शिखा दरवाजा खोल कर रवि के पास पहुंची. उस के आने की आहट सुन कर रवि ने पहले आंसू पोंछे और फिर गरदन घुमा कर उस की तरफ देखा.

रवि का थका, मुरझाया चेहरा देख कर शिखा का दिल डर के मारे जोरजोर से धड़कने लगा.

‘‘दीदी की तबीयत…’’ शिखा रोंआसी हो अपना सवाल पूरा न कर पाई.

‘‘भाभी अब ठीक हैं. खतरा टल गया है,’’ रवि ने मुसकराते हुए उसे अच्छी खबर सुनाई.

‘‘तो तुम रो क्यों रहे हो?’’ आंसू बहा रही शिखा का गुस्सा करने का प्रयास रवि को हंसा गया.

‘‘मेरी आंखों में खुशी के आंसू हैं, शिखाजी,’’ रवि ने अचानक फिर आंखों में छलक आए आंसुओं को पोंछा.

‘‘मैं शिखा हूं, ‘शिखाजी’ नहीं,’’  मन में गहरी राहत महसूस करती शिखा उस के बगल में बैठ गई.

‘‘मेरे लिए ‘शिखाजी’ कहना ही उचित है,’’ रवि ने धीमे स्वर में जवाब दिया.

‘‘जी नहीं. आप मुझे शिखा ही बुलाएं,’’ शिखा का स्वर अचानक शरारत से भर उठा, ‘‘और मुझ से नजरें चुराते हुए न बोलें और न ही मैं आप को ठंडी सांसें भरते हुए देखना चाहती हूं.’’

‘‘वह सब मैं जानबूझ कर नहीं कर रहा हूं. तुम्हें दिल से दूर करने में कष्ट तो होगा ही,’’ रवि ने एक और ठंडी सांस भरी.

‘‘वह कोशिश भी छोडि़ए जनाब, क्योंकि मैं अब जान गई हूं कि इस दिलफेंक आशिक का स्वभाव रखने वाले इनसान का दिल बड़ा संवेदनशील है,’’ कह शिखा ने अचानक रवि का हाथ उठा कर चूम लिया.

रवि मारे खुशी के फूला नहीं समाया. फिर अचानक गंभीर दिखने का नाटक करते हुए बोला, ‘‘मेरे मन में अजीब सी बेचैनी पैदा हो गई है, शिखा. सोच रहा हूं कि जो लड़की जरा सी भावुकता के प्रभाव में आ कर लड़के का हाथ फट से चूम ले, उसे जीवनसंगिनी बनाना क्या ठीक होगा?’’

‘‘मुझ पर इन व्यंग्यों का अब कोई असर नहीं होगा, जनाब,’’ शिखा ने एक बार फिर उस का हाथ चूम लिया, ‘‘क्योंकि आप की इस सोच में कोई सचाई नहीं है और…’’

‘‘और क्या?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा.

‘‘अब तो तुम्हें हम दिल दे ही चुके सनम,’’ शिखा ने अपने दिल की बात कही और फिर शरमा कर रवि के सीने से लग गई.

देर आए दुरुस्त आए

रात का 1 बज रहा था. स्नेहा अभी तक घर नहीं लौटी थी. सविता घर के अंदर बाहर बेचैनी से घूम रही थी. उन के पति विनय अपने स्टडीरूम में कुछ काम कर रहे थे, पर ध्यान सविता की बेचैनी पर ही था. विनय एक बड़ी कंपनी में सीए थे. वे उठ कर बाहर आए. सविता के चिंतित चेहरे पर नजर डाली. कहा, ‘‘तुम सो जाओ, मैं जाग रहा हूं, मैं देख लूंगा.’’

‘‘कहां नींद आती है ऐसे. समझासमझा कर थक गई हूं. स्नेहा के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. क्या करूं?’’

तभी कार रुकने की आवाज सुनाई दी. स्नेहा कार से निकली. ड्राइविंग सीट पर जो लड़का बैठा था, उसे झुक कर कुछ कहा, खिलखिलाई और अंदर आ गई. सविता और विनय को देखते ही बोली, ‘‘ओह, मौम, डैड, आप लोग फिर जाग रहे हैं?’’

‘‘तुम्हारे जैसी बेटी हो तो माता पिता ऐसे ही जागते हैं, स्नेहा. तुम्हें हमारी हैल्थ की भी परवाह नहीं है.’’

‘‘तो क्या मैं लाइफ ऐंजौय करना छोड़ दूं? मौम, आप लोग जमाने के साथ क्यों नहीं चलते? अब शाम को 5 बजे घर आने का जमाना नहीं है.’’

‘‘जानती हूं, जमाना रात के 1 बजे घर आने का भी नहीं है.’’

‘‘मुझे तो लगता है पेरैंट्स को चिंता करने का शौक होता है. अब गुडनाइट, आप का लैक्चर तो रोज चलता है,’’ कहते हुए स्नेहा गुनगुनाती हुई अपने बैडरूम की तरफ बढ़ गई.

सविता और विनय ने एकदूसरे को चिंतित और उदास नजरों से देखा. विनय ने कहा, ‘‘चलो, बहुत रात हो गई. मैं भी काम बंद कर के आता हूं, सोते हैं.’’

सविता की आंखों में नींद नहीं थी. आंसू भी बहने लगे थे, क्या करे, इकलौती लाडली बेटी को कैसे समझाए, हर तरह से समझा कर देख लिया था. सविता ठाणे की खुद एक मशहूर वकील थीं.

उन के ससुर सुरेश रिटायर्ड सरकारी अधिकारी थे. घर में 4 लोग थे. स्नेहा को घर में हमेशा लाड़प्यार ही मिला था. अच्छी बातें ही सिखाई गई थीं पर समय के साथ स्नेहा का लाइफस्टाइल चिंताजनक होता गया था. रिश्तों की उसे कोई कद्र नहीं थी. बस लाइफ ऐंजौय करते हुए तेजी से आगे बढ़ते जाना ही उस की आदत थी. कई लड़कों से उस के संबंध रह चुके थे. एक से ब्रेकअप होता, तो दूसरे से अफेयर शुरू हो जाता. उस से नहीं बनती तो तीसरे से दोस्ती हो जाती. खूब पार्टियों में जाना, डांसमस्ती करना, सैक्स में भी पीछे न हटने वाली स्नेहा को जबजब सविता समझाने बैठीं दोनों में जम कर बहस हुई. सुरेश स्नेहा पर जान छिड़कते थे. उन्होंने ही लंदन बिजनैस स्कूल औफ कौमर्स से उसे शिक्षा दिलवाई. अब वह एक लौ फर्म में ऐनालिस्ट थी. सविता और विनय के अच्छे पारिवारिक मित्र अभय और नीता भी सीए थे और उन का इकलौता बेटा राहुल एक वकील.

एक जैसा व्यवसाय, शौक और स्वभाव ने दोनों परिवारों में बहुत अच्छे संबंध स्थापित कर दिए थे. राहुल बहुत ही अच्छा इनसान था. वह मन ही मन स्नेहा को बहुत प्यार करता था पर स्नेहा को राहुल की याद तभी आती थी जब उसे कोई काम होता था या उसे कोई परेशानी खड़ी हो जाती थी. स्नेहा के एक फोन पर सब काम छोड़ कर राहुल उस के पास होता था.

सविता और विनय की दिली इच्छा थी कि स्नेहा और राहुल का विवाह हो जाए पर अपनी बेटी की ये हरकतें देख कर उन की कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि वे इस बारे में राहुल से बात भी करें, क्योंकि स्नेहा के रंगढंग राहुल से छिपे नहीं थे. पर वह स्नेहा को इतना प्यार करता था कि उस की हर गलती को मन ही मन माफ करता रहता था. उस के लिए प्यार, केयर, मानवीय संवेदनाएं बहुत महत्त्व रखती थीं पर स्नेहा तो इन शब्दों का अर्थ भी नहीं जानती थी.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. स्नेहा अपनी मरजी से ही घर आतीजाती.  विनय और सविता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं था. जब भी दोनों कुछ डांटते, सुरेश स्नेहा को लाड़प्यार कर बच्ची है समझ जाएगी कह कर बात खत्म करवा देते. वे अब बीमार चल रहे थे. स्नेहा में उन की जान अटकी रहती थी. अपना अंतिम समय निकट जान उन्होंने अपना अच्छा खासा बैंक बैलेंस सब स्नेहा के नाम कर दिया.

एक रात सुरेश सोए तो फिर नहीं जागे. तीनों बहुत रोए, बहुत उदास हुए, कई दिनों तक रिश्तेदारों और परिचितों का आनाजाना लगा रहा. फिर धीरेधीरे सब का जीवन सामान्य होता गया. स्नेहा अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई. वैसे भी किसी भी बात को, किसी भी रिश्ते को गंभीरतापूर्वक लेने का उस का स्वभाव था ही नहीं. अब तो वह दादा के मोटे बैंक बैलेंस की मालकिन थी. इतना खुला पैसा हाथ में आते ही अब वह और आसमान में उड़ रही थी. सब से पहले उस ने मातापिता को बिना बताए एक कार खरीद ली.

सविता ने कहा, ‘‘अभी से क्यों खरीद ली? हमें बताया भी नहीं?’’

‘‘मौम, मुझे मेरी मरजी से जीने दो. मैं लाइफ ऐंजौय करना चाहती हूं. रात में मुझे कभी कोई छोड़ता है, कभी कोई. अब मैं किसी पर डिपैंड नहीं करूंगी. दादाजी मेरे लिए इतना पैसा छोड़ गए हैं, मैं क्यों अपनी मरजी से न जीऊं?’’

विनय ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तुम्हें ड्राइविंग सीखने में टाइम लगेगा, पहले मेरे साथ कुछ प्रैक्टिस कर लेती.’’

‘‘अब खरीद भी ली है तो प्रैक्टिस भी हो जाएगी. ड्राइविंग लाइसैंस भी बन गया है. आप लोग रिलैक्स करना सीख लें, प्लीज.’’

अब तो रात में लौटने का स्नेहा का टाइम ही नहीं था. कभी भी आती, कभी भी जाती. सविता ने देखा था वह गाड़ी बहुत तेज चलाती है. उसे टोका, ‘‘गाड़ी की स्पीड कम रखा करो. मुंबई का ट्रैफिक और तुम्हारी स्पीड… बहुत ध्यान रखना चाहिए.’’

‘‘मौम, आई लव स्पीड, मैं यंग हूं, तेजी से आगे बढ़ने में मुझे मजा आता है.’’

‘‘पर तुम मना करने के बाद भी पार्टीज में ड्रिंक करने लगी हो, मैं तुम्हें समझा कर थक चुकी हूं, ड्रिंक कर के ड्राइविंग करना कहां की समझदारी है? किसी दिन…’’

‘‘मौम, मैं भी थक गई हूं आप की बातें सुनतेसुनते, जब कुछ होगा, देखा जाएगा,’’ पैर पटकते हुए स्नेहा कार की चाबी उठा कर घर से निकल गई.

सविता सिर पकड़ कर बैठ गईं. बेटी की हरकतें देख वे बहुत तनाव में रहने लगी थीं. समझ नहीं आ रहा था बेटी को कैसे सही रास्ते पर लाएं.

एक दिन फिर स्नेहा ने किसी पार्टी में खूब शराब पी. अपने नए बौयफ्रैंड विक्की के साथ खूब डांस किया, फिर विक्की को उस के घर छोड़ने के लिए लड़खड़ाते हुए ड्राइविंग सीट पर बैठी तो विक्की ने पूछा, ‘‘तुम कार चला पाओगी या मैं चलाऊं?’’

‘‘डोंट वरी, मुझे आदत है,’’ स्नेहा नशे में डूबी गाड़ी भगाने लगी, न कोई चिंता, न कोई डर.

अचानक उस ने गाड़ी गलत दिशा में मोड़ ली और सामने से आती कार को भयंकर टक्कर मार दी. तेज चीखों के साथ दोनों कारें रुकीं. दूसरी कार में पति ड्राइविंग सीट पर था, पत्नी बराबर में और बच्चा पीछे. चोटें स्नेहा को भी लगी थीं. विक्की हकबकाया सा कार से नीचे उतरा. उस ने स्नेहा को सहारा दे कर उतारा. स्नेहा के सिर से खून बह रहा था. दोनों किसी तरह दूसरी कार के पास पहुंचे तो स्नेहा की चीख से वातावरण गूंज उठा. विक्की ने भी ध्यान से देखा तो तीनों खून से लथपथ थे. पुरुष शायद जीवित ही नहीं था.

विक्की चिल्लाया, ‘‘स्नेहा, शायद कोई नहीं बचा है. उफ, पुलिस केस हो जाएगा.’’

स्नेहा का सारा नशा उतर चुका था. रोने लगी, ‘‘विक्की, प्लीज, हैल्प मी, क्या करें?’’

‘‘सौरी स्नेहा, मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. प्लीज, कोशिश करना मेरा नाम ही न आए. मेरे डैड बहुत नाराज होंगे, सौरी, मैं जा रहा हूं.’’

‘‘क्या?’’ स्नेहा को जैसे तेज झटका लगा, ‘‘तुम रात में इस तरह मुझे छोड़ कर जा रहे हो?’’

विक्की बिना जवाब दिए एक ओर भागता चला गया. सुनसान रात में अकेली, घायल खड़ी स्नेहा को हमेशा की तरह एक ही नाम याद आया, राहुल. उस ने फौरन राहुत को फोन मिलाया. हमेशा की तरह राहुल कुछ ही देर में उस के पास था. स्नेहा राहुल को देखते ही जोरजोर से रो पड़ी. स्नेहा डरी हुई, घबराई हुई चुप ही नहीं हो रही थी.

राहुल ने उसे गले लगा कर तसल्ली दी, ‘‘मैं कुछ करता हूं, मैं हूं न, तुम पहले हौस्पिटल चलो, तुम्हें काफी चोट लगी है, लेकिन उस से पहले भी कुछ जरूरी फोन कर लूं,’’ कह उस ने अपने एक पुलिस इंस्पैक्टर दोस्त राजीव और एक डाक्टर दोस्त अनिल को फोन कर तुरंत आने के लिए कहा.

अनिल ने आकर उन 3 लोगों का मुआयना किया. तीनों की मृत्यु हो चुकी थी. सब सिर पकड़ कर बैठ गए. स्नेहा सदमें में थी. उस पर केस तो दर्ज हो ही चुका था. उसे काफी चोटें थीं तो पहले तो उसे ऐडमिट किया गया.

सरिता और विनय भी पहुंच चुके थे. स्नेहा मातापिता से नजरें ही नहीं मिला पा रही थी. कई दिन पुलिस, कोर्टकचहरी, मानसिक और शारीरिक तनाव से स्नेहा बिलकुल टूट चुकी थी. उस की जिंदगी जैसे एक पल में ही बदल गई थी. हर समय सोच में डूबी रहती. उस के लाइफस्टाइल के कारण 3 लोग असमय ही दुनिया से जा चुके थे. वह शर्मिंदगी और अपराधबोध की शिकार थी. 1-1 गलती याद कर, बारबार अपने मातापिता और राहुल से माफी मांग रही थी. राहुल और सविता ने ही उस का केस लड़ा. रातदिन एक कर दिया. भारी जुर्माने के साथ स्नेहा को थोड़ी आजादी की सांस लेने की आशा दिखाई दी. रातदिन मानसिक दबाव के कारण स्नेहा की तबीयत बहुत खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में ऐडमिट किया गया. अभी तो ऐक्सिडैंट की चोटें भी ठीक नहीं हुई थीं. उस की जौब भी छूट चुकी थी. पार्टियों के सब संगीसाथी गायब थे. बस राहुल रातदिन साए की तरह साथ था. हौस्पिटल के बैड पर लेटेलेटे स्नेहा अपने बिखरे जीवन के बारे में सोचती रहती. कार में 3 मृत लोगों का खयाल उसे नींद में भी घबराहट से भर देता. कोर्टकचहरी से भले ही सविता और राहुल ने उसे जल्दी बचा लिया था पर अपने मन की अदालत से वह अपने गुनाहों से मुक्त नहीं हो पा रही थी.

विनय, सविता, राहुल और उस के मम्मीपापा अभय और नीता भी अपने स्नेह से उसे सामान्य जीवन की तरफ लाने की कोशिश कर रहे थे. अब उसे सहीगलत का, अच्छेबुरे रिश्तों का, भावनाओं का, अपने मातापिता के स्नेह का, राहुल की दोस्ती और प्यार का एहसास हो चुका था.

एक दिन जब विनय, सविता, अभय और नीता चारों उस के पास थे, बहुत सोचसमझ कर उस ने अचानक सविता से अपना फोन मांग कर राहुल को फोन किया और आने के लिए कहा.

हमेशा की तरह राहुल कुछ ही देर में उस के पास था. स्नेहा ने उठ कर बैठते हुए राहुल का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘इस बार तुम्हें किसी काम से नहीं, सब के सामने बस इतना कहने के लिए बुलाया है, आई एम सौरी फौर ऐवरीथिंग, आप सब मुझे माफ कर दें और राहुल, तुम कितने अच्छे हो,’’ कह कर रोतेरोते स्नेहा ने राहुल के गले में बांहें डाल दीं तो राहुल वहां उपस्थित चारों लोगों को देख कर पहले तो शरमा गया, फिर हंस कर स्नेहा को अपनी बांहों के सुरक्षित घेरे में ले कर अपने मातापिता, फिर विनय और सविता को देखा तो बहुत दिनों बाद सब के चेहरे पर एक मुसकान दिखाई दी, सब की आंखों में अपनी इच्छा पूरी होने की खुशी साफसाफ दिखाई दे रही थी.

इन 6 टिप्स से लगाएं नेल पेंट

नेल पॉलिश आपके हाथों को और भी खूबसूरत बनाती है, लेकिन नाखूनों पर नेल पॉलिश लगते समय नेल पेंट खराब तरीके से लग जाए, तो उससे आपके नाखून और हाथ भद्दे दिखने लगते हैं.

आइए  जानें,  नेल पेंट लगाते समय ध्यान रखने वाली ये 6 बातें…

1. नेल पेंट लगाते समय ध्यान रखें कि जब आपके नाखून पूरी तरह सूखे हों, तब ही नेल पेंट लगाएं. नेल पेंट लगाने से पहले अपने नाखूनों को शेप देना न भूलें.

2. नाखूनों को अच्छा और सही शेप देने के बाद सबसे पहले नेल पेंट का एक ट्रांसपेरैंट बेस कोट लगाएं, ट्रांसपेरैंट नेल पेंट को ब्रश से नाखूनों के बीच से लगाना शुरू करें और एक बार फिर ब्रश को ट्रांसपेरैंट नेल पेंट में डुबोकर ब्रश से नाखूनों के दो अलग हिस्सों में भी एक-एक कोट लगाएं.

3. ट्रांसपेरैंट नेल पेंट बेस कोट अच्छी तरह सूख जाए उसके बाद अपनी पसंद का नेल पेंट रंग लें और जिस तरह ट्रांसपेरैंट नेल पेंट बेस कोट नाखूनों पर लगाया है. उसी तरह अपने पसंदीदा नेल पॉलिश के रंग को भी नाखूनों पर बेस कोट के ऊपर लगाएं. अगर रंग हल्का दिख रहा है, तो पहला कोट सूखने के बाद नेल पॉलिश के रंग का दूसरा कोट भी लगाएं.

4. हमेशा अच्छी नेल पॉलिश लगाएं, अगर आपकी नेल पॉलिश अच्छी नहीं है तो नेल पॉलिश लगाने के बाद अपनी उंगलियों को बर्फ के पानी में डुबाएं इससे आपके नाखूनों पर नेल पॉलिश अच्छी तरह सेट हो जाएगी और चमकेगी.

5. अगर आपकी नेल पॉलिश नाखूनों से बाहर किनारों पर लग गई है तो उसे ध्यान से और अच्छी तरह नेल पॉलिश रिमूवर से साफ कर लें जिससे आपके नाखूनों पर नेल पॉलिश अच्छी और साफ दिखे.

6. नाखूनों पर नेल पॉलिश लगने के बाद अपने हाथ ठण्डे पानी में डुबाएं इससे आपकी नेल पॉलिश और पक्की हो जाएगी साथ ही साथ साफ दिखेगी, नेल पॉलिश पूरी तरह सूखने के बाद ही कोई काम करें.

पराया लहू: भाग 1- मायके आकर क्यों खुश नहीं थी वर्षा

वर्षा के हाथों में थमा मायके से आया भाभी का पत्र हवा से फड़फड़ा रहा था. वह सोच रही थी न जाने कैसा होगा लव, भाभी उस की सही देखभाल भी कर पा रही होंगी या नहीं.

भाभी ने लिखा था कि लव जब छत पर बच्चों के साथ पतंग उड़ा रहा था, नीचे गिर गया. उस के पैर की हड्डी टूट गई, पर उस की हालत गंभीर नहीं है, जल्दी ठीक हो जाएगा. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी मामूली चोटें आई थीं. हम उस का उचित इलाज करा रहे हैं.

‘‘मां, तुम रो रही हो?’’ भरत ने पुकारा तो वर्षा की तंद्रा भंग हुई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उस ने झटपट आंखें पोंछीं और भरत को गोद में बैठा कर मुसकराने का यत्न कर पूछने लगी, ‘‘स्कूल से कब आया, भरत?’’

‘‘कब का खड़ा हूं, पर तुम ने देखा ही नहीं. बहुत जोरों से भूख लगी है,’’ भरत ने कंधे पर टंगा किताबों का बोझा उतारते हुए कहा.

‘‘अभी खाना परोसती हूं,’’ कहती हुई वर्षा रसोईघर में गई. फौरन दालचावल गरम कर लाई और भरत को खाना परोस दिया.

‘‘मां, तुम भी खाओ न,’’ भरत ने आग्रह किया.

उस का आग्रह उचित भी था क्योंकि प्रतिदिन वर्षा उस के साथ ही भोजन करती थी, लेकिन आज वर्षा के मुंह में निवाला चल नहीं पा रहा था. बारबार आंखों में आंसू आ रहे थे. मन लव के आसपास ही दौड़ रहा था.

भरत शायद उस के मन के भाव समझ गया था सो खाना खातेखाते रुक कर बोला, ‘‘किस की चिट्ठी आई है?’’

‘‘किसी की नहीं, देखो, मैं खा रही हूं,’’ वर्षा बोली. वह घर में बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी, सो होंठों पर नकली मुसकान ला कर बेमन से खाने लगी.

भरत संतुष्ट हो कर चुप हो गया, फिर वह खाना खा कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गया.

वर्षा उस के सिरहाने बैठ कर थोड़ी देर उस का सिर सहलाती रही. फिर जब भरत ऊंघने लगा तो वह अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर पड़ गई, पर मन फिर से मायके की दहलीज पर जा पहुंचा. कैसा होगा लव? इस दुर्घटना के क्षणों में उस ने मां को अवश्य याद किया होगा, वह उसे याद कर के रोया भी बहुत होगा, इतने छोटे बच्चे मां से दूर रह भी कैसे सकते हैं? हो सकता है लव ने आदित्य को भी याद किया हो, आदित्य का कितना दुलारा था लव. वह दफ्तर से आते ही लव को गोद में ले कर बैठ जाते, उस के लिए भांतिभांति के बिस्कुट, टाफियां व खिलौने ले कर आते.

उस वक्त लव था भी कितना प्यारा, गोराचिट्टा, गोलमटोल. जो देखता प्यार किए बिना नहीं रह पाता. जब लव डेढ़ वर्ष का हुआ तो उस ने नन्हेनन्हे बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता था. नन्हा सा दूल्हा बन कर कितना जंच रहा था लव.

यही सब सोच कर वर्षा की आंखों से फिर आंसू बहने लगे. रक्त कैंसर से आदित्य की मृत्यु न हुई होती तो उस का भरापूरा परिवार क्यों बिखरता. आदित्य जीवित होता तो उस का प्यारा लव इस तरह क्यों भटकता.

आदित्य को खो कर वर्षा 3 वर्ष के लव को सीने से चिपकाए मायके लौटी तो वहां उन दोनों मांबेटों को दिन बिताने कठिन हो गए. आदित्य के जीवित रहते जो भैयाभाभी उसे बारबार मायके आने को पत्र लिखते, वे ही एकाएक बेगाने बन गए. उन्हें उन दोनों का खर्च संभालना भारी लगा था.

तब दुखी हो कर पिता ने उस के पुनर्विवाह की कोशिशें शुरू कर दीं और एक अखबार में वैवाहिक विज्ञापन पढ़ कर सुधीर के घर वालों से पत्र व्यवहार शुरू किया तो सुधीर से उस का रिश्ता पक्का हो गया, पर सुधीर व उस के घर वालों की एक ही शर्त थी कि वे बच्चे को स्वीकार नहीं करेंगे. उन्हें सिर्फ बिना बच्चे की विधवा ही स्वीकार्य थी, जबकि सुधीर भी एक बेटे का बाप था. विधुर था और अपने बेटे की खातिर ही पुनर्विवाह कर रहा था, पर वह उस के बेटे का दर्द नहीं समझ पाया और उसे अस्वीकार कर दिया.

अपने जिगर के टुकड़े को मांबाप की गोद में छोड़ कर वर्षा, सुधीर से ब्याह कर ससुराल आ पहुंची थी, तब से सिर्फ पत्र ही लव की जानकारी पाने का साधन मात्र रह गए थे. पर उन पत्रों में यह भी लिखा होता कि वह अब हमेशा को लव को भूल कर अपने भविष्य को संवारे व सुधीर और भरत को किसी अभाव का आभास न होने दे. भरत को पूरी ममता दे.

मेरठ से आए हुए उसे पूरा वर्ष बीत गया, तब से एक बार भी वह मायके नहीं गई. सुधीर ने ही नहीं जाने दिया. हमेशा यही कहा कि अब मायके से कैसा मोह. घर में किसी वस्तु का अभाव है क्या. लेकिन अभाव तो वर्षा के मन में बसा था, वह एक दिन के लिए भी अपने लव को नहीं भूल पाती थी और अब भाभी के पत्र ने उस के मन की बेचैनी कई गुना बढ़ा दी थी. मन लव को बांहों में लेने और हृदय से लगाने को बेचैन हो उठा था.

सुधीर घर लौटा तो वर्षा खुद को रोक न पाई और कह उठी, ‘‘मैं 2 दिन के वास्ते मेरठ जाना चाहती हूं.’’

सुधीर ने वही रटारटाया उत्तर दे डाला, ‘‘क्या करोगी जा कर, वैसे भी आजकल तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती, तीसरा महीना चल रहा है, वहां आराम कहां मिल पाएगा…’’

‘‘क्यों नहीं मिलेगा? भैयाभाभी क्या मुझे हल में जोतेंगे? मैं वहां पूरे दिन बिस्तर तोड़ने के अलावा और करूंगी भी क्या?’’ वर्षा जैसे विद्रोह पर उतर आई थी.

उस ने सास से भी जिद की, ‘‘बहुत दिन हो गए मुझे मायके वालों को देखे. दिल्ली से मेरठ का रास्ता ही कितना है. सिर्फ 2 घंटे का, फिर भी मैं साल भर से मायके नहीं जा पाई हूं और न कभी उन लोगों ने ही आने का साहस किया. फिर आनाजाना दोनों तरफ से होता है, एक तरफ से नहीं.’’

इस पर सास ने जाने की इजाजत  यह कहते हुए दे दी कि इस का मायके आनाजाना भी जरूरी है.

वर्षा अटैची में कपड़े रखने लगी तो भरत भी जिद कर उठा, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ जाऊंगा, मां. तुम्हारे बिना कैसे मन लगेगा?’’

साल भर में ही भरत उस से काफी हिलमिल चुका था और उसे ही अपनी सगी मां समझने लगा था.

भरत को रोतेबिसूरते देख सास ने उसे भी साथ ले जाने को कह दिया, ‘‘क्या हुआ, यह भी कुछ दिन को घूम आएगा. बेचारे को असली ननिहाल तो कभी मिला ही नहीं, सौतेला ही सही.’’

वर्षा ने भरत के कपड़े भी रख लिए. भरत के कपड़ों की अटैची अलग से तैयार हो गई. भले ही 2 दिनों को जाना हो, भरत को कई जोड़ी कपड़ों की आवश्यकता पड़ती थी. वह बारबार कपड़े मैले कर लेता था.

विमोहिता:भाग 2- कैसे बदल गई अनिता की जिंदगी

अभी उस ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि वह अचानक उठ खड़ी हुई, जैसा वह शुरू के दिनों में करती थी और कहा, ‘कुछ जरूरी काम याद आ गया है. अखिल, माफ करना मुझे जाना होगा,’ और अपना कार्ड मेरी ओर बढ़ाते हुए फोन करने के लिए कह कर चली गई.

अनिता से मैं सब से पहले नम्रता के घर पर मिला था. वह पिलानी से नई नई मुंबई आई थी. गोरीचिट्टी, छरहरी और बड़ीबड़ी काली आंखें. वैस्टर्न ड्रैस में, विशेषकर जींस और टौप में वह बहुत स्मार्ट लगती थी.

उस दिन जब मैं पहली बार उस से मिला तो अपलक अपने को मुझे देखते हुए उस ने कहा था, ‘क्या देख रहे हो? बहुत सुंदर लगती हूं?’

मैं ने हंसते हुए कहा था ‘हां, बहुत सुंदर लग रही हो. रंभा से भी अधिक सुंदर.’

‘झूठ.’

‘नहीं, यह सच है.’

और उस के बाद 1-2 बार मिलने पर मन में उस के पति प्रेम का भाव अंकुरित हो उठा. वह अस्वाभाविक नहीं था. वह सुंदर तो थी ही, पढ़ीलिखी भी थी. पिलानी से ग्रैजुएट थी और एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी.

उस दिन घर आई तो मैं ने कहा, ‘चलो, आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं. वहीं कहीं खाना खा लेंगे और तुम्हें घर भी छोड़ दूंगा.’

‘ठीक है, पर हम पहले लौंग ड्राइव पर जाएंगे और उस के बाद तुम जहां चाहो मुझे ले चल सकते हो.’

उस के बाद हम पहले लौंग ड्राइव पर गए. रास्ते में 1-2 जगह रुके. और बाद में बांद्रा के बैंड स्टैंड पर आ गए. वहां बहुत देर तक इधरउधर घूमते रहे. वह दिन रविवार था. बैंड वाला कोई मराठी धुन बजा रहा था.

कुछ समय घूमने के बाद हम समुद्र के किनारे एक पत्थर पर आ कर बैठ गए. वह समुद्र की लहरों की ओर देखने लगी. हवा तेज थी और लहरें बहुत ऊंची उठ रही थीं. पर दिन का उजाला सिमटने लगा था.

मैं ने कहा, ‘क्या देख रही हो? कुछ बातें करो अपने मन की.’

उस ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘नहीं, आज तुम्हारे मन की बात सुनने के मूड में हूं.’

मेरे लिए यह अच्छा अवसर था. मैं कुछ कहने के लिए सोच ही रहा था कि बीच में डाभ वाला आ गया और बिना कुछ कहे एक डाभ और दो स्ट्रा रख कर चला गया.

एक स्ट्रा उसे देते हुए मैं ने पाया कि वह अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मुझे देख रही थी और उस के होंठों पर मुसकराहट थी. बाद में हम स्ट्रा बदलबदल कर साथसाथ डाभ पीते रहे. डाभ खत्म होने पर स्ट्रा को पर्स में रखते हुए उस ने कहा, ‘इसे अपने पास रखूंगी. यह अधिकार मैं ने पहली बार किसी को दिया है.’

हम वहां बहुत देर बैठे रहे. उस के बाएं हाथ को अपने हाथों में ले उस की उंगलियों को सहलाते हुए मैं ने कहा, ‘कुछ कहो न.’

‘नहीं, आज और कुछ नहीं. तुम भी कुछ न कहना,’ कहती हुई वह मेरे कंधे से आ लगी और मेरी उंगलियों से खेलती रही. हम बीच खाली होने तक वहां ऐसे ही बैठे रहे. कोई बात नहीं हुई. मैं सिर्फ अपलक उसे देखता रहा और वह आंखें बंद किए मेरे कंधे से लगी रही.

उस के बाद हम एक रैस्टोरैंट में आ गए. खाने के समय हमारी कोई बात नहीं हुई. बस, एकदूसरे को देखते रहे और एकदूसरे के बारे में सोचते रहे. उसे घर छोड़ जब चलने को हुआ तो उस ने पास आ कर कहा, ‘पहुंच कर फोन करना.’

मैं उस दिन बहुत खुश था. खुशी संभल नहीं रही थी मुझ से. उस के कुछ दिनों के बाद वह दिल्ली चली गई. हमारा संपर्क शुरू के दिनों में रोज का था पर बाद में धीरेधीरे वह कम होने लगा और एक दिन उस ने फोन रिसीव करना बंद कर दिया. मन बेचैन हो उठा पर उन दिनों कंपनी के काम से मलयेशिया में था, इसलिए चाह कर भी उस से मिलने दिल्ली नहीं जा सका.

उधर मां की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. बहू देखने की उन की बहुत इच्छा थी. उन की बात मान ली और रमा से मेरी शादी हो गई. रमा बहुत सुंदर थी. उस की सुंदरता के आगे मैं अनीता को भूल गया.

2 महीने पहले एक दिन उस का फोन आया. कहने लगी, ‘तुम से मिलना चाहती हूं. कुछ जरूरी काम है. नहीं, न कहना.’

‘अभी तो मैं औफिस जा रहा हूं. कुछ जरूरी काम है आज. शाम को औफिस से लौटते वक्त अवश्य मिलने आऊंगा.’

उस दिन औफिस जाते हुए रमा से मैं ने कहा, ‘शाम लौटते हुए अनिता से मिलने की सोच रहा हूं. उस का फोन आया था. कह रही थी कुछ जरूरी काम है. आने में देरी हो सकती है, खाना खा लेना.’

औफिस से लौटते हुए उस दिन जब अनिता के फ्लैट पर पहुंचा तो अंधेरा छा चुका था. कौरीडोर में बहुत कम लाइट थी. किसी तरह उस के फ्लैट के दरवाजे तक पहुंच कर मैं ने बैल बजाई तो उस ने कहा, ‘भीतर आ जाओ. दरवाजा खुला है.’

भीतर गया तो देखा वह खिड़की के सामने खड़ी बाहर की ओर देख रही थी. मैं ने पूछा, ‘क्या देख रही हो?’

‘अंधेरे को.’

‘मैं समझा नहीं.’

उसी समय वह मेरी ओर मुड़ी. उस का शरीर गल कर आधा हो चुका था. मैं ने कहा, ‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है न?’

‘नहीं ठीक नहीं है,’ उस ने कहा और कह कर सामने सोफे पर बैठ गई और कुछ देर बाद दुपट्टे को मुंह पर रख कर फफकफफक कर रोने लगी.

मैं ने कहा, ‘क्या हुआ? किसी फ्लैट वाले से झगड़ा हुआ है या और कुछ?’

‘कुछ दिनों से तबीयत ठीक नहीं चल रही थी,’ उस ने कहा, ‘डाक्टर बाखला के कहने पर एचआईवी टैस्ट के लिए गई थी. उस की रिपोर्ट आ गई है. वह पौजिटिव निकली है. डाक्टर कह रहा था, बहुत ऐडवांस स्टेज है, अब कुछ नहीं हो सकता. वैसे तकलीफ कम करने के लिए उस ने कुछ दवाएं दी हैं.’

उस समय मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसकती सी लगी. समझ नहीं आ रहा था उस से क्या कहूं? सब कुछ इतना दुखद था कि मैं कुछ कह नहीं पा रहा था.

मौका: पुरूषवादी सोच वाले सुरेश को बीवी ने कैसे समझाया?

दिन के 11 बज चुके थे और सुरेश अभी भी गहरी नींद में सोया था. आजकल उस की शाम की शिफ्ट चल रही है इसलिए सुबह जल्दी उठने की परवाह नहीं होती. वैसे भी बीवी सुजाता 2 दिन पहले ही मायके गई है. अभी कम से कम 15-20 दिन तो वह बीवी की चिकचिक से भी आजाद था.

सुजाता घर में होती है तो उसे जल्दी उठ कर व्यायाम के लिए जाने की जिद करती है. वैसे सुरेश कभी उस की सुनता नहीं. सुरेश हमेशा से अपनी मरजी का मालिक रहा है. उस की मां ने भी बचपन से उसे यही सिखाया था. कितनी दफा वह सुजाता को मां की बात कह चुका है कि मर्द घर का मालिक होता है और औरत उस की गुलाम. घर कैसे चलाना है इस का फैसला मर्द करता है. औरत कभी भी मर्द को आज्ञा नहीं दे सकती मगर उसे मर्द की आज्ञा माननी जरूर चाहिए. ऐसी बातें सुन कर सुजाता चुप रह जाती और वह हंसता हुआ अपने मन की करने लगता.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो सुरेश को उठना पड़ा. दरवाजा खोला तो सामने कुरियर वाला खड़ा था,” सर आप का कुरियर.”

उस के हाथ में एक लिफाफा था. सुरेश ने लिफाफा खोला तो भौंचक्का रह गया. यह तो वकील का नोटिस था जिसे सुजाता द्वारा भिजवाया गया था.

हड़बड़ाते हुए सुरेश ने नोटिस पढ़नी शुरू की. यह तलाक का नोटिस था जिस में लिखा हुआ था,’ श्रीमान सुरेश महाजन, यह नोटिस आप के नाम हमारी मुवक्किल सुजाता कपूर द्वारा भेजा गया है.

हमारी मुवक्किल सुजाता निम्न बातों पर आप को गौर कराना चाहती हैं. उन्होंने क्रम से कुछ घटनाओं का विवरण लिखा है कि आप की ज्यादतियों ने उन के अधिकार छीने और वे घरेलू हिंसा का शिकार हुईं. ऐसी तमाम घटनाओं के मद्देनजर वे आप से आजिज आ चुकी हैं और छुटकारा पाना चाहती हैं.

नोटिस में विस्तार से कुछ घटनाओं का वर्णन था. ये घटनाएं सुरेश के पुरुषवादी रवैये की पोल खोल रही थीं. सुजाता ने क्रम से ये घटनाएं लिखी थीं :

14 फरवरी, 2020 : मिस्टर सुरेश महाजन यानी माननीय पति महोदय आप को हमारी शादी के करीब 1 सप्ताह बाद की वह रात तो याद ही होगी. लौकडाउन से 1 महीने पहले वैलेंटाइन डे के दिन जब हम हनीमून पर मनाली गए थे तो उस दिन मैं ने अपनी बहन द्वारा दिए गए तोहफे को खोला था. बहन ने चुपके से मेरे बैग में एक ड्रैस रख दी थी और मैं उसे पहन कर तैयार हो गई. ड्रैस कहीं से भी बेकार नहीं लग रही थी. स्लीवलैस जरूर थी मगर भद्दी नहीं थी. उस ड्रैस को पहन कर खुशीखुशी मैं अपने कमरे से बाहर निकली. आप ने बुरा सा मुंह बनाया. अपने हाथ में पकड़ा हुआ अखबार नीचे फेंका और झकझोरते हुए मुझे यह कहते हुए वापस बाथरूम में धकेल दिया कि ऐसी ड्रैस पहन कर साथ चलने की बात सोचना भी मत.

उस वक्त मुझे ऐसा लगा था जैसे मेरे वजूद पर ही सवाल खड़ा किया गया हो. क्या मुझे अपनी पसंद के कपड़े पहनने का हक भी नहीं मिलना चाहिए? क्या अपने हनीमून पर अपने पति के साथ भी मैं वैस्टर्न ड्रैस नहीं पहन सकती?

नोटिस में एक और घटना का विवरण था. सुजाता ने हिंसा का आरोप लगाते हुए एक दिन क्या हुआ था, इस बारे में विस्तार से लिखा था :

23 मार्च, 2020 : उस दिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. मुझे उठने में देर हो गई. आप तो मेरे उठाने पर ही उठते हो. इस वजह से आप को औफिस जाने में देर हो गई. मैं ने तबीयत खराब में भी जल्दीजल्दी नाश्ता बनाया मगर आप झल्लाते हुए औफिस गए. शाम तक मुझे 102 डिग्री बुखार हो चुका था. मैं ने फोन करने की सोची फिर रुक गई कि आप का मूड सही नहीं. मैं दवा खा कर पूरे दिन सोई रही. शाम को दरवाजे की घंटी लगातार तेज आवाज में बजती सुन मैं हड़बड़ा कर उठी और चक्कर खा कर गिर पड़ी. किसी तरह लड़खड़ाते हुए मैं ने दरवाजा खोला.

मेरी तरफ एक पल को भी देखे बगैर आप ने मुझे धक्का दिया और चिल्लाते हुए घर में घुसे. अपना बैग बिस्तर पर पटकते हुए चीखने लगे,” दरवाजा खोलने में इतनी देर लगती है? पता नहीं क्यों पूरे दिन बिस्तर तोड़ती रहती है. मैं थकहार कर औफिस से लौटता हूं और एक तुम हो कि दरवाजा भी नहीं खुलता. अब मुंह क्या देख रही हो? पानी लाओ. ”

उस वक्त मुझे खुद पर कितना तरस आया यह केवल मैं ही जानती हूं. तुम ने एक नजर भी मेरे मलिन पड़े चेहरे की तरफ नहीं डाली. मेरी तकलीफ तुम्हें दिखाई ही नहीं दी. तुम ने यह सोचने की कोशिश भी नहीं की कि मैं आज इतनी सुस्त क्यों हो रही हूं. तुम्हारे लिए मैं ने चाय बनाई मगर खाना बनाने की हिम्मत नहीं हुई. तुम्हें कुछ कहने का भी दिल नहीं किया. मैं जा कर सो गई और तुम ने रात में खाना न मिलने पर फिर से हंगामा कर दिया. मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए तुम थप्पड़ लगाने ही वाले थे मगर हाथ गरम देख कर रुक गए.

यह कैसा रिश्ता है हमारा, जहां पति को अपनी पत्नी की तकलीफ भी नहीं दिखती? यह बात अलग है कि अगले दिन से ही लौकडाउन हो गया और तुम मुझे चायब्रैड खिलाने के लिए घर में थे. मगर आज सोचती हूं कि यदि उस समय मुझे वायरल बुखार के बजाय कोरोना हुआ होता तो तुम मेरी क्या हालत करते.

3 अप्रैल 2020 : इस दिन मैं ने तुम से बिना पूछे घर के परदे बदल दिए थे जिन्हें कुछ दिन पहले ही खरीदे थे. तुम ने उन पर सरसरी नजर डाली और कोने में पटक दिया. मुझ पर चिल्लाते हुए तुम ने कहा था,” इतने चटकीले रंग के परदे मेरे घर में नहीं लगेंगे.”

उस दिन मैं पूछना चाहती थी कि क्या यह घर केवल तुम्हारा है? मैं यहां मेहमान हूं? यह मेरा घर नहीं? मगर हमेशा की तरह मुझे तुम से कुछ भी पूछने या बताने की इच्छा नहीं हुई. मैं अपने कमरे में जा कर बैठ गई. मेरी आंखें छलछला आईं थीं मगर तुम अपने अहम के नशे में गुम थे.

26 अप्रैल 2020 : याद करो उस दिन शाम 7 बजे मैं हंसतीमुसकराती अपनी सहेली से बातें कर के मुड़ी और तुम ने मेरे गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया. चीख पड़े थे तुम. मेरी गलती इतनी सी थी कि मैं ने अपनी सहेली से उस के पति की तारीफ कर दी थी. तुम्हारे अंदर जलन की आग ऐसी भड़की कि तुम ने आगेपीछे सोचे बगैर मुझ पर हाथ उठा दिया.

तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी तारीफ करती रहूं जबकि तुम मेरी खुशी की कोई कदर नहीं करते. मेरी सहेली विभा का पति हमेशा विभा की पसंद और उस की खुशी को तवज्जो देता है. ऐसे में मैं ने उस की तारीफ कर के क्या गलत कर दिया था?

2 मई 2020 : इस दिन अपनी मां की शह पर तुम ने मेरी बांह मरोड़ दी. कई दिनों तक मैं इस दर्द से परेशान रही. वजह सिर्फ इतनी ही थी कि मैं तुम्हारे शर्ट की बटन टांकना भूल गई जबकि उस दिन तुम्हारी जूम मीटिंग थी. पर क्या इतनी सी बात पर तुम मेरे साथ इतना दुर्व्यवहार करोगे? लौकडाउन में तुम भी तो पूरे दिन घर में बैठे रहते हो. औफिस का काम तो मुश्किल से 3-4 घंटे करते हो बाकी समय कभी दोस्त, कभी टीवी तो क्या कभी बीवी का हाथ बंटाना जरूरी नहीं?

सच तो यह है कि तुम्हारे लिए दूसरी सभी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं सिवाए हमारे रिश्ते के. तो फिर इस रिश्ते को ढोते रहने की मजबूरी कैसी? खत्म करते हैं न इस रिश्ते को.

5 मई 2020 : इस दिन आप ने मेरी औकात समझाई थी. आप ने बताया था कि मुझे औरत होने का धर्म निभाना है. आप को एक बेटा देना है बेटी नहीं. बेटी की तो आप के जीवन में कोई अहमियत ही नहीं है. बेटा पैदा करना बस मेरे ही हाथ में तो है. कभीकभी तो मुझे शक होता है कि क्या वाकई आप पढ़ेलिखे हो? आप से बेहतर तो अनपढ़ हैं जो अपनी बिटिया को कंधों पर बैठाए दुनियाजहान घूम आते हैं. पर आप के लिए बेटी बोझ है. आप को तो सिर्फ बेटा चाहिए. जाने कैसी रूढ़िवादी मानसिकता में जकड़े हुए हो आप कि जब साथ चलती हूं तो एक अजीब सी जकड़न का एहसास होता है. अब आजादी चाहती हूं मैं आप से. आप की धौंस भरी बातों से, आप के पुरुषवादी व्यवहार से.

14 मई 2020 : उस दिन शाम को सब्जी काटते हुए मेरा हाथ कट गया था. मेरे दाहिने हाथ में पट्टी बंधी थी मगर आप को कोई परवाह नहीं हुई कि मैं खाना कैसे बनाऊंगी. पिछले 2 महीने से मैं आप को पसंद की चीजें बनाबना कर खिला रही हूं न. फिर क्या आप एक दिन मेरे लिए कुछ बना नहीं सकते थे? बेशर्म हो कर मैं ने आप को कहा भी कि हैल्प कर दो तो आप ने कैसा धौंस भरा जवाब दिया था,” खाना बनाना औरतों का काम है. बता दो तुम से नहीं होता तो किसी और को रख लेता हूं.”

आप का जवाब सुन कर मैं बिलकुल चुप रह गई थी. आगे कुछ कहने को बचा ही नहीं था मेरे पास

मैं ने सोचा था कि लौकडाउन के इस समय में आप के साथ ज्यादा वक्त बिता पाऊंगी. ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकूंगी आप को. ज्यादा करीब आ पाऊंगी. मगर अफसोस, करीब आने के बजाय हमेशा के लिए दूर हो जाना चाहती हूं. क्योंकि लौकडाउन के इन दिनों में बेहतर ढंग से समझ लिया है.

मैं ऐसे शख्स के साथ कतई नहीं रह सकती जिस के लिए रिश्तों का कोई अर्थ नहीं. जो अपने जीवनसाथी की तकलीफ न समझ सके, उसे बराबरी का दरजा न दे सके उस की खुशियों का खयाल न कर सके, उस पर विश्वास भी न करे और न ही उसे अपनी जिंदगी में कोई अहमियत ही दे सके.

सुरेश बिस्तर पर लुढ़क गया. कागज छूट कर नीचे जा गिरा. उसे आज रोशनी भी चुभने लगी थी. उस ने जल्दी से अपने चेहरे को तकिए से ढंक लिया. आज पहली दफा किसी ने उसे आईना दिखाया था और अपनी सूरत देख कर उसे शर्म आ रही थी.

उसे सुजाता के साथ बिताए एकएक पल याद आने लगे थे. वे पल जब सुजाता को जीभर कर प्यार किया था उस ने. वे पल जब सुजाता के साथ ने जीवन आनंद से भर दिया था. उसे याद आ रहा था कैसे सुबह से शाम तक सुजाता उस के और घर के कामों में लगी रहती थी. सुजाता को तो हमेशा मुसकराने की आदत थी. तो क्या वाकई वह इतना स्वार्थी और घमंडी था जिस ने सुजाता की हंसी छीन ली?

सुरेश बारबार उस कागज में लिखी बातें पढ़ने लगा. उस में लिखी हर घटना उस की आंखों के आगे सजीव हो उठीं. वाकई सुजाता ने जो भी लिखा था वह 100% सही था. मगर जब घटनाएं हो रही थीं उस वक्त सुरेश ने कभी भी सुजाता की नजरों से नहीं सोचा था. सुजाता जो उस की जीवनसाथी है, कितनी दुखी थी और सुरेश को इस बात का अहसास भी नहीं था. उस ने कभी यह सोचा ही नहीं था कि सुजाता इस तरह सब कुछ छोड़ कर भी जा सकती है.

उसे तो सुजाता की आदत हो गई थी. उस के बिना घर में कितना अकेला हो जाएगा. एक छोड़ा हुआ पति कहलाएगा. दोस्त पीठ पीछे उस का मजाक उड़ाएंगे. ऐसी कितनी ही बातें सुरेश के जेहन में घूमने लगीं.

सुजाता के यों मुंह मोड़ने से उस की जिंदगी कितनी बदल जाएगी. पहले तलाक की भागदौड़ और परेशानियां और फिर सुजाता संपत्ति में से भी तो हिस्सा मांगेगी. उसे गुजाराभत्ता भी देना पड़ेगा. तलाक के बाद दूसरी शादी की टैंशन भी रहेगी.

सुरेश को अपना कुलीग विजय याद आया. तलाक के बाद बहुत मुश्किलों से उसे दूसरी दफा कोई ढंग की दुलहन मिल पाई थी. मगर वह भी फ्रौड निकली.

सुरेश सोफे के कोने में बैठ गया. एक सीधीसादी व पढ़ीलिखी पत्नी को गंवाने के बाद कहीं वह भी परेशानियों के भंवर में न फंस जाए. सुजाता में कोई कमी नहीं. यह तो सचमुच उस का खोखला घमंड था, पुरुषवादी रवैआ था जिस की वजह से उस की शादीशुदा जिंदगी बरबाद होने वाली थी.

सुरेश रातभर करवटें बदलता रहा. वह लगातार यही सोचता रहा कि सुजाता को तलाक न लेने के लिए कैसे राजी किया जाए.

अगले दिन सुबह उठते ही उस ने सुजाता को फोन लगाया और एक दफा मिलने की इच्छा जाहिर की. किसी तरह सुजाता तैयार हो गई. सुजाता का मायका आगरा में था. सुरेश ने सुबहसुबह बस ली और इलाहाबाद से आगरा के लिए रवाना हो गया. सुजाता ने उसे माल में मिलने बुलाया.

सुजाता का हाथ थाम कर सुरेश ने कहा,”बस एक मौका दे दो मुझे सुजाता. तुम्हारी हर शिकायत दूर कर दूंगा. तुम्हें खोने के एहसास ने ही मुझे मेरी औकात समझा दी है. सुजाता बस एक मौका दे दो अपने पति को. फिर जो चाहे कर लेना. तुम ने मुझे आईना दिखा दिया है. यकीन रखो मैं चेहरा बदल लूंगा. बस तुम्हारा साथ नहीं खो सकता.”

सुजाता ने सोचा भी नहीं था कि सुरेश इस तरह उस से माफी मांगेगा.
“एक मौका तो हर अपराधी को दिया जाता है. आप को भी दे दूंगी. पर ध्यान रखना, मौके बारबार नहीं मिलते.” मुसकराते हुए सुजाता ने कहा तो सुरेश ने बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. सुजाता के द्वारा भेजे गए नोटिस ने उस की जिंदगी की दिशा ही बदल दी थी. सुरेश को सबक मिल चुका था कि वह तुलसीदास की रामचरित मानस की चौपाइयों पर भरोसा करके सुखी जिंदगी नहीं जी सकता. सुजाता उन में से नहीं है जो सिर पर पल्लू ढांक कर प्रवचनकर्ताओं की ऊलजलूल बातें मान ले. वह एक बराबरी का हक रखने वाली पत्नी है, ताड़न की अधिकारी नहीं.

करीपत्ता: भाग 3-आखिर पुष्कर ने ईशिता के साथ क्या किया

प्रेम ओ झल हो चुका है मात्र 2-3 सप्ताह में ही.जिस ओर से रस फुहार बरसती थी अब नग्न लालसाएं लपलपाती हुई चीखती हैं. ईशिता के मन की पीड़ा सुनने की उस की आग्रहपूर्ण मुद्रा, धैर्य खो गया था. ‘जैसा तुम चाहो,’ ‘एज यू विश’ कहने वाला पुष्कर अब उसे अपने हिसाब से सोचने को विवश कर रहा था. उस के संस्कारों का उपहास करता उसे सींखचों में जकड़ रहा था.

उकसा रहा था उसे बंधन तोड़ने, सीमाएं तोड़ने को, ‘‘बेकार की टैबूज हैं. तुम तो पढ़ीलिखी हो. तुम सोचती बहुत हो.’’हां, वह सोचती बहुत है. एक ओर मन की वल्गा हाथ से छूटती जा रही है, दूसरी ओर वह नैतिकअनैतिक, उत्थानपतन, पवित्रतामर्यादा के बारे में सोचती है.

मस्तिष्क किसी सजग प्रहरी सा उसे कोंचता है, गलत राह पर आगे बढ़ने से रोकता है.तनी हुई शिराएं, दूभर जीवन. सोचती, हां, सुखी जीवन की अधिकारिणी वह भी है. यह जीवन एक बार ही तो मिलता है, मन मार कर, दबा कर अंकुश लगा कर कब तक जिया जाए, पर सुख है कहां? कुल मिला कर सबकुछ एक बड़ा शून्य है. बिग जीरो है.

इधर पुष्कर को अखर रहा था, वह हाथ में आतेआते निकली जा रही थी. बोला, ‘‘तुम इतना क्यों सोचती हो?’’‘‘अच्छा, तुम्हारे घर में इतने सारे करीपत्ते के पौधे हैं तुम से कब से मांग रही हूं. लाए क्या?’’‘‘नहीं भूल गया.’’उसे याद आया, पति देव इस तरह से कुछ भूलें तो पानीपत का युद्ध छिड़ जाता है.‘‘तुम ने कहा था कि…’’‘‘अरे यार, छोड़ो करीपत्ता, कहीं भी मिल जाएगा 5 रुपये का.

चलो कहीं होटल में चलते हैं जहां बस हम और तुम हों.’’‘‘क्या बकवास कर रहे हो? अगर कोई तुम्हारी पत्नी से ऐसा कहे तो?’’‘‘मेरी पत्नी तो बहुत सीधी है. किसी परपुरुष की ओर देखती तक नहीं. मु झ से कहती है कि मेरी आंखें समंदर जैसी हैं, वह बस इन्हीं में डूबी रहती है, बेचारी. देखो तो मेरी आंखें क्या सच में इन में समंदर जैसी गहराई है?’’ईशिता ने नजर  झुका ली. वह कहता रहा, ‘‘मेरी पत्नी तो मु झे लेडी किलर कहती है.

चलो न आज कहीं बैठ कर आराम से बातें करते हैं. आज किसी होटल में… यों दूरदूर अब रहा नहीं जाता. वहीं आराम से बातें करेंगे. होटल के खर्च के पैसे भी आधेआधे शेयर कर लेंगे. अब ऐंजौय तो तुम भी करोगी न?’’ईशिता के कानों में जाने कोई एसिड डाल रहा हो. कितना नीच हो सकता है कोई. छि:, यह कहां आ गई वह. उस ने तो एक सहज मैत्री, अपनत्व भरा साथ चाहा था.

किसी से बात कर लेने की इतनी बड़ी सजा. चल निकल ले यहां से. बड़े आए लेडी किलर कहीं के. यह तो सपने दिखा कर सौदागरी करने वाले सौदागर हैं. महीन जाल फैलाने वाले जालक हैं. कैसी मधुर विद्वतापूर्ण बातें, अपनत्व. री झ गई जिन बातों पर वह रैपर थीं, आवरण था, मूल में तो वही ढाक के तीन पात. यहां ताल में जाल डाले बैठे हुए लोग हैं.

किसी का जाल दिखता है, किसी का इतना महीन और सौफिस्टिकेटेड कि वह शीघ्र दिखता नहीं. कैसा सुखद भ्रम पाल लिया. मन नहीं देखा, देखा तन. भावनाओं से खिलवाड़ कर उस तक पहुंचने का हथियार बनाया. इसे प्यार नहीं कहते.

अचानक वह चैतन्य हो जाग गई. प्लैटोनिक लव के, देहातीत संबंध के जो प्रतिमान मन में गढे़ थे वे किर्चकिर्च हो बिखर गए, मन में चुभ गए. यथार्थ यही, सच यही मात्र देह ही सच मन, हृदय सब व्यर्थ की बातें. छि:, वह भी कहां के मल कुंड में गिरने को उद्यत हो उठी.दिग्दिगंत तक उस अनंत की कृपा महसूसती ईशिता को स्वयं पर लज्जा हुई.

समझ आई सब से अहम बात वह यह है कि शक्ति और सांत्वना स्वयं में ही खोजो, बाहर इसे ढूंढ़ना व्यर्थ है-‘तू ही सागर है तू ही किनाराढूंढ़ता है तू किस का सहारा.’ईशिता अपने मूल रूप में लौट आई. कभीकभी उसे अतीव आश्चर्य होता कि वहकैसे किसी के प्रभाव में आ कर स्वयं का प्रभामंडल दूषित करने चली थी. वह पौधों की नर्सरी से करीपत्ते के कई पौधे ले आई.

एक पौध तो उस ने बोन्साई बना कर अपनी औफिस टेबल पर सजा रखा है. अब वह कहीं नहीं उल झती. किसी की प्रशंसा भरी मीठी बातें लुभाती नहीं, शिखर पुरुष भी आकर्षित करते नहीं. मन में कहीं कोई रीतापन नहीं.

अब घर चल: भाग 4- जब रिनी के सपनों पर फिरा पानी

रविवार का लगभग पूरा दिन बीत गया. न कोई फोन आया वहां से और न कोई खुद आया. कई बार जी चाहा कि बच्चियों को फोन कर ले पर बढ़े हुए हाथ जबरन रोक लिए उस ने. सोचतेसोचते 2 रातों से जागी आंखों में न जाने कब नींद चली आई और वह तो टूटी लगातार बजती फोन की घंटियों से. शेखर का स्वर सुन कर सन्न रह गई.

‘‘हैलो रिनी, क्या शुचिरुचि वहां आई हैं?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’ घबरा गई वह.

‘‘पता नहीं कहां चली गईं? सुबह स्कूल छोड़ कर आया था उन्हें. अब लेने पहुंचा तो

मिली ही नहीं. स्कूल भी खाली पड़ा है. मैं ने सोचा…’’

तभी बाहर गेट खुलने की आवाज सुन कर वह  चौंकी, ‘‘रुकिए शेखर, मैं बाहर देखती हूं,’’ और फिर अगले ही पल लौट आई. बोली, ‘‘हां शेखर, यहीं आई हैं वे अभीअभी… आप चिंता न करें… शाम तक यही रह लेंगी… शाम को पापा छोड़ आएंगे. मैं भी जा रही हूं कल, फिर न जाने ये कभी मिलेंगी भी या नहीं,’’ कह कर शेखर का जवाब सुने बिना रिनी ने लाइन काट दी.

शुचिरुचि उस से लिपटी जा रही थीं, ‘‘मम्मा, आप हमें अकेले छोड़ कर क्यों आ गईं नानी के घर? पता है हम कितना रोए?’’

उन्हें दुलार कर, खाना खिला कर होमवर्क भी करवा दिया रिनी ने और रोज की तरह सुला भी दिया.

शाम को उन्हें जगा कर दूध पिला कर पापा के साथ रवाना करने ही वाली थी कि शेखर आ गए. बच्चियां रोज की तरह दौड़ कर उन से नहीं लिपटीं. रिनी को कस कर थामे रहीं.

‘‘पापा, हम नहीं जाएंगे आप के साथ… फिलहाल हम यहीं रहेंगे मम्मा के पास… फिर उन के साथ, ही जाएंगे,’’ शुचि ने कहा.

‘‘कहां?’’‘‘मम्मा की नानी के घर,’’ रुचि ने कहा.

‘‘मम्मा कैसे जा सकती हैं बेटा नानी के घर? वहां उन की देखभाल कौन करेगा? हम तीनों को मिल कर मम्मा का खयाल रखना है… पता है हमारे घर एक नया बेबी आने वाला है?’’

‘‘सच्ची पापा?’’ दोनों एकसाथ चहकीं.

‘‘और क्या? पापा, मम्मा के कमरे में प्यारे से बेबी की तसवीर लगा कर आए हैं. उसे रोज देखेंगी मम्मा तभी तो तुम दोनों जैसा स्वीट बेबी आएगा. रिनी, जो कुछ हुआ उस के लिए सौरी. चलो, अब अपने घर,’’ कम शब्दों में सब कुछ कह डाला शेखर ने.

अम्मू व पापा की आंखें भर आई थीं. पर रिनी बुत बनी खड़ी थी जैसे ख्वाब देख रही हो.

शेखर ने फिर से हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘रिनी, तुम्हारे बिना गुजारे ये 2 दिन, 2 रातें मु झे एहसास करा गईं कि तुम्हारी मेरी जिंदगी में क्या जगह है… न ये शैतान लड़कियां तुम्हारे बिना रह सकती हैं और न इन का यह बाप. अब चलो घर प्लीज… हमारा बच्चा हमारे घर में ही जन्म लेगा.’’

रिनी टस से मस न हुई. दोनों बच्चियों के हाथ थामे यों खड़ी थी जैसे वहीं ‘फ्रीज’ हो गई हो.

‘‘जा बेटी… मैं कह रहा हूं… तुम्हारा पापा. अंत भला तो सब भला,’’ पापा ने कहा.

‘‘जा बेटी, बड़ी मुश्किल से खुशियां तु झे ढूंढ़ कर अपने घर ले जाने आई हैं. अब मुंह न मोड़ इन से… जो हुआ उसे बुरा सपना सम झ कर भूल जा,’’ अम्मू ने आंसू पोंछते हुए कहा पर वह इंच भर भी अपनी जगह से न हिली, क्योंकि वह नहीं जाना चाहती थी. बारबार तमाशा बन कर हार गई थी वह.

तभी सहसा शुचि ने उस से अपना हाथ छुड़ाया और अपना बस्ता खोल कर एक नोटबुक निकाल लाई और पैंसिल थाम कर बोली, ‘‘मम्मा, आप ने यूकेजी में सिखाया था न?’’ और फिर वह बोलबोल कर लिखने लगी, ‘‘अ…ब अब, घ…र. घर, च…ल चल. अब घर चल.’’

जैसे कोई चमत्कार हुआ. उस ने शुचि को गोद में उठा कर ताबड़तोड़ चूमना शूरू कर दिया और फिर भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘हां मेरी बच्ची हां, ठीक कहती है तू… अब घर चल.’’

विमोहिता: भाग 1- कैसे बदल गई अनिता की जिंदगी

अभी भी हम बिस्तर पर ही थे और यही कोई 6 बजे का समय होगा जब फोन की घंटी बज उठी. फोन रमा ने उठाया और मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘निर्मला, अस्पताल से नर्स बोल रही है. कह रही है कोई जरूरी मैसेज तुम्हें देना है.’’

निर्मला का नाम सुनते ही नींद गायब हो गई और मन अनिता के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. नर्स ने वही कुछ कहा जो मैं सोच रहा था. वह रात को कोमा में चली गई थी.

मुझे चिंतित देख रमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है? सब ठीक तो है न?’’

‘‘नहीं, सब ठीक नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘कल रात से वह कोमा में चली गई है. नर्स कह रही थी अब वह कुछ ही घंटों की मेहमान है.’’

वह मौन हो गई. उसे मौन देख कर मैं ने कहा, ‘‘क्या सोचने लगीं?’’

‘‘क्या यहां उस का कोई अपना नहीं है? लोग कह रहे थे कि उस की बड़ी बहन और जीजाजी यहां रहते हैं.’’

‘‘हां,’’ मैं ने कहा, ‘‘हम जब पहली बार मिले थे उस समय वह अपने जीजाजी और बड़ी बहन के साथ ही रह रही थी. पर इधर कुछ दिन हुए, उन लोगों के बारे में जब मैं ने जिक्र किया तो कह रही थी कि उस की बड़ी बहन नम्रता अब इस दुनिया में नहीं रही और उस के जीजाजी दूसरी शादी कर मौरिशस चले गए हैं. नम्रता को कोई बच्चा वगैरह नहीं था, इसलिए उस का अपने जीजाजी से अब कोई संबंध नहीं रहा है.’’

‘‘क्या सोचते हो?’’

‘‘सोचना क्या है? यहां उस का और कोई रिश्तेदार या जानने वाला है नहीं, इसलिए उस का अंतिम संस्कार हम लोगों को ही करना पड़ेगा, ऐसा लगता है,’’ कह कर मैं उस की ओर देखने लगा.

उस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

कई वर्षों के बाद अनिता 6 महीने पहले गोरेगांव के ओबेराय मौल में मिली थी. लेकिन वह पहले वाली अनिता नहीं थी. पहले से बिलकुल अलग. उलझे सफेद बाल, सूखा चेहरा और धंसी हुई आंखें. मैं तो पहचान ही नहीं सका था उसे पर वह हैलो कह कर मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई थी.

‘कैसी हो?’ मैं ने पूछा.

‘ठीक हूं, तुम कैसे हो?’

‘कुछ विशेष नहीं, कह सकती हो सब ठीक है,’ मैं ने कहा.

‘और बच्चे?’

‘एक 4 साल का लड़का है. अमित नाम है उस का. बहुत सुंदर है. बिलकुल अपनी मां पर गया है.’

सुन कर वह कुछ असहज हो गई. उसे असहज होते देख मैं दूसरी बातें करने लगा. थोड़ी देर बाद कौफी के लिए उस के ‘हां’ कहने पर उसे ले कर कैफेटेरिया में आ गया.

मैं ने पूछा, ‘साथ में कुछ लोगी?’

‘नहीं, और कुछ नहीं. सिर्फ कौफी.’

‘अभी भी चाय नहीं पीती हो?’

उस ने इस पर कुछ नहीं कहा. बस हलकी सी मुसकराहट उस के चेहरे पर आई.

वहां बैठते हुए मैं ने पूछा, ‘तुम तो आजकल दिल्ली में हो. यहां किसी काम से आई हो या किसी से मिलने?’

‘दिल्ली में थी, अब नहीं हूं. यही कोई 6 महीने पहले मुंबई लौट आई हूं,’ उस ने कहा.

‘वहां दिल नहीं लगा?’

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं थी. तुम तो जानते हो पिलानी से जब मुंबई आई तो जीजाजी और दीदी के आग्रह को ठुकरा नहीं सकी और उन के साथ ही रहने लगी. तुम से पहली बार मैं दीदी के घर ही तो मिली थी,’ कह कर उस ने मेरी ओर देखा.

‘हां, तुम्हारी दीदी इंटर में मेरे साथ थी, इसलिए कभीकभार उस के पास चला जाया करता था. लेकिन घर आने के लिए उस ने कभी आग्रह नहीं किया, क्योंकि शायद तुम्हारे जीजाजी वैसा नहीं चाहते थे. पर बाद के दिनों में तुम से मिलने की इच्छा से आने लगा था,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

उस ने एक पल के लिए मेरी ओर देखा फिर अपनी पलकें नीची कर कौफी के

कप की ओर देखने लगी. फिर बोली, ‘दीदी पढ़ीलिखी, सुंदर और अच्छे नाकनक्श की थीं. उन का रंग भी गोरा था. पर जीजाजी शायद दीदी के थुलथुले बदन से ऊब चुके थे और उन्होंने जब मुझे इतना करीब पाया तो मुझे आंखों में पालने लगे. कुछ दिन मैं देखती रही उन्हें और जब मेरे लिए उन्हें मैनेज करना मुश्किल हो गया तो अपना ट्रांसफर करा कर दिल्ली चली गई.

‘दिल्ली में अंजलि के कहने पर मैं उस के साथ रहने लगी. पिलानी के दिनों में वह मेरे साथ थी और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे. दिल्ली में वह किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी.

‘अंजलि खुले स्वभाव की और स्वतंत्र विचारों वाली थी और अपने मित्रों से, जिन में पुरुष अधिक थे वह सदा घिरी रहती थी. रात में वह बाहर ही रहती अथवा देर से आती. उस के जाने के बाद शुरू के दिनों में मैं अपने कमरे में बंद हो जाती.

‘वैसे उस ने कभी अपने साथ चलने के लिए मुझ से नहीं कहा पर मैं ही एक दिन अपने अकेलेपन से ऊब गई तो उस के साथ जाने लगी.

‘वहां की दुनिया बड़ी ही रंगीन थी. कुछ दिनों में ही मैं उस रंग में रंग गई. अच्छा खाना, बढि़या ड्रिंक और रोज एक नया चेहरा. फिर मेरे कब पंख निकल आए पता ही न चला. मैं खुले आसमान में उड़ने लगी. लेकिन शरीर पर जब कुछ चरबी चढ़ी तो कल तक मेरी मुसकराहट पर बिछने वाले मुझ से कतराने लगे. उस में कुछ अस्वाभाविक नहीं था. नए चेहरों की वहां कमी नहीं थी और हमारे संबंध कोई भावनात्मक तो थे नहीं, जो कोई किसी के बारे में सोचता या उस के लिए दुखी होती.

‘ये सब तब मेरी जरूरत बन चुकी थी. ऐसे में क्या करती? खरीदफरोख्त पर उतर आई. बाद में वह भी मुश्किल हो गया. शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. प्रौलैप्स की सर्जरी में सब पहले ही रिमूव करवा चुकी थी.

‘और कोई तो वहां था नहीं. अंजलि अपने बौयफ्रैंड के साथ आस्ट्रेलिया सैटल कर गई थी और जो वहां थे वे मुझे अच्छी नजरों से नहीं देखते थे. क्या करती और किसी जगह को जानती नहीं थी, इसलिए मुंबई लौट कर आ गई…’

Anupama: शाह हाउस में होगा बवाल, काव्या छोड़ेगी घर

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. शो के मेकर्स नए-नए ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आ रहे है. अनुपमा मे इतने ट्विस्ट देखकर दर्शकों का सिर चकरा गया है. बीते एपिसोड में देखने को मिला कि काव्या को बहुत पछतावा है कि वो अनिरुद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है.

काव्या ने किया खुलासा 

अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि काव्या पछतावे में आकर अपनी सच्चाई शाह परिवार को बता देंगी और बा के सामने सब बक देगी कि ये बच्चा बनराज का नहीं बल्कि अनिरुद्ध का है. यह सब सुनकर शाह हाउस में खलबली मच जाती है. काव्या का ये सच बा बर्दाश्त नहीं कर पाएगी और गुस्से से भड़क जाएगी. इस बात पर वो काव्य और वनराज को खूब सुनाएंगी और ये सब नाटक के बाद वो काव्य को घर से बाहर निकालने का फैसला कर लेंगी.

 

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अनुपमा करेगी काव्या को सपोर्ट

अनुपमा काव्या का साथ देगी और बा से कहेगी अगर आपको कुछ कहना है तो काव्या से कहिए, बा इस बच्चे का क्या दोष. आप ही तो कहती हो बच्चे बाल गोपल का रूप होते है तो आप इस बच्चं से नफरात मत कीजिए, बच्चों को मत कोशो, बच्चे को बद-दुआ मत दो बा. अपना न सही तो किसी और का ही सही, बच्चा तो बच्चा है. आगे अनुपमा कहती है गलती बड़े करते है सजा बच्चों को मिलता है.

काव्या बा को सफाई देगी

अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि काव्या बा से कहेगी मुझसे जो गलती हुई है वह कमजोर पल था मैं वीक पड़ गई थी. मैं मानती हूं मैं बहुत गलत थी. उसके बाद तोषू काव्या को खारी खोटी सुनाता है.

 

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