Film Review: ड्रीम गर्ल 2 -आयुश्मान खुराना के कैरियर पर लगा प्रश्न चिन्ह..?

रेटिंग: पांच में से एक स्टार

 निर्माता: एकता कपूर शोभा कपूर

लेखनः राज शांडिल्य नरेश कथूरिया

निर्देषन: राज शांडिल्य

कलाकार:आयुश्मान खुराना,अनन्या पांडे,अन्नू कपूर,परेश रावल,राजपाल यादव,अभिषेक बनर्जी,मनजोत सिंह, मनोज जोशी सीमा पाहवा,विजय राज,असरानी अन्य.

अवधिः दो घंटे तेरह मिनट

लगातार आठ वर्ष तक  टीवी शो ‘‘कौमेडी सर्कस’’ के संवाद लिखते रहे राज शांडिल्य ने बाद में कुछ असफल फिल्मों के भी संवाद लिखे, मगर बतौर लेखक व निर्देशक 2019 में आयी उनकी फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल’’ ने सफलता के परचम लहरा दिए थे. उसी फिल्म का सिक्अवल ‘ड्रीम गर्ल 2’’ लेकर अब वह आए हैं और उन्होने बता दिया कि वह महज व्हाट्सअप युनिवर्सिटी के चेले है,जिन्हे एक अच्छी कहानी,पटकथा व संवाद लिखना नही आता और न ही वह अच्छे निर्देशक हैं. वास्तव में राज शांडिल्य ने टीवी एपीसोडिक की तरह कुछ हास्य एपीसोड ‘व्हाट्सअप युनिवर्सिटी’ की मदद से लिख डाले, मगर उन्हे फिल्म की कहानी के रूप में बुनना नहीं आया. राज शांडिल्य वही हैं,जिन पर पिछली फिल्म ‘जनहित में जारी’ पर चोरी की कहानी होने का आरोप लगा था और मामला अदालत पहुॅचा,तब लेखक को बड़ी रकम देकर छुटकारा पाया था.

कहानी:

फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल 2‘’ की कहानी मथुरा में यमुना नदी के किनारे रह रहे जगजीत(अन्नू कपूर) व उनके बेटे करम (आयुश्मान खुराना ) के इर्द गिर्द घूमती है. पिछली फिल्म की तरह इस फिल्म में भी करम अपने पिता का कर्ज चुकाने के लिए हर दिन संघर्ष कर रहा है. लेकिन इस बार उसकी जिंदगी में वकालत कर रही परी (अनन्या पांडे  ) आ गयी हैं. परी के वकील पिता श्रीवास्तव ( मनोज जोशी  ),करम के घर के हालात देखकर शर्त रख देते हैं कि करम को शादी से पहले छह माह के अंदर अच्छा घर और अपने खाते में 25 लाख रुपये जमा करके दिखाने होंगे. यहीं से सारा झोल शुरू होता है.

करम पहले तो लेना देना बैंक के टाइगर पांडे(रंजन राज)  से पूजा बन लड़की की आवाज में बात करके अपने पिता के क्रेडिट कार्ड की रकम भरवाते हैं.पिछली फिल्म में करम नाटकों में सीता या राधा बनते थे,इस बार करम अपने दोस्त स्माइली(मनजोत सिंह)  की सलाह मानकर निजी जिंदगी में लड़की यानी कि पूजा बनकर बार डांस में डांस करने से लेकर अपने दोस्त स्माइली की शादी अबू सलीम ( परेश रावल)की बेटी सकीना (अनुषा मिश्रा) से हो सके,इसलिए स्माइली के कहने पर करम उर्फ पूजा अबू सलीम के अवसादग्रस्त बेटे शाहरुख ( अभिषेक बनर्जी) के साथ शादी करते हैं. जबकि शाहरुख का सौतेला भाई षौकिया (राजपाल यादव )  खुद पूजा से शादी करना चाहता है. उधर बार डांस के मालिक साजन तिवारी उर्फ सोना भाई (विजय राज)  के दो बच्चों की मां बनने के लिए भी हामी भरते हैं. जबकि करम के साथ शाहरुख की बुआ और साजन की पत्नी जुमानी (सीमा पाहवा) शादी करना चाहती हैं. अब इन्हीं मुश्किलों के चलते हास्य पैदा होता है.

लेखन निर्देशनः

इस बार राज शांडिल्य ने लेखन में नरेश कथूरिया की मदद ली है. इसके बावजूद पटकथा व संवाद अति कमजोर हैं.पर फूहड़ संवाद भरे पड़े हैं. राज शांडिल्य ने फिल्म में गंगा जमुनी तहजीब परोसते हुए भारतीय संस्कृति का जमकर माखौल उड़ाया है. श्रीलंका के आर्थिक संकट से लेकर बूढ़े इंसान की उम्र तक पर जिस तरह का अति फूहड़ व घटिया मजाक उड़ाया गया है,उससे यह लगता है कि राज शांडिल्य भारत में नही बल्कि उस देश के निवासी हैं,जहां रिश्तों व मानवता की कोई कद्र नही है. कई दृष्यों में लेखक व निर्देशक की असंवेदन शीलता नजर आती है. फिल्मकार ने पटकथा की कमी को छिपाने के लिए फिल्म में परेश रावल, अन्नू कपूर और राजपाल  यादव से लेकर मनोज जोशी, सीमा पाहवा, विजय राज, अभिषेक बनर्जी, मनजोत सिंह जैसे हास्य कलाकारों की पूरी बरात जमा कर ली,पर फिल्म अच्छी न बना सके. फिल्म के क्लायमेक्स में जब परी नाव पर यमुना नदी से अपनी बारात लेकर आती हैं,वह दृश्य अवश्य खूबसूरत लगता है.

फिल्म का गीत संगीत भी स्तरहीन ही है. मजेदार बात यह है कि इस फिल्म में भी ‘गदर 2’ का गाना ‘में गड्डी लेके निकला..’ को बैकग्राउंड में डाला गया है. ऐसा क्यों यह तो निर्माता व निर्देशक ही जाने?

अभिनयः

करम व पूजा का किरदार निभाने वाले तथा खुद को ‘गृहशोभा मैन’ कहने वाले अभिनेता आयुश्मान खुराना शुरू से ही अलग तरह का सिनेमा कर लोकप्रियता हासिल करते आए हैं,मगर पिछले कुछ समय से उनकी फिल्में असफल हो रही हैं और उनके अभिनय में भी कमी नजर आने लगी है. फिल्म ‘ड्रीं गर्ल’ में वह पूजा के रूप में काल सेंटर में सिर्फ लड़की की आवाज में बात करते थे.

लेकिन ‘ड्रीम गर्ल 2’ मे तो वह पूजा नामक लड़की बने हैं और इस बार उनके दिमाग सिर्फ यही था कि उन्हे लड़की बनना है.वैसे आयुष्मान खुराना ने अपनी तरफ से नारी सुलभ भाव व नखरों से लोगों को आकर्षित करने का प्रयास करते हुए नजर आते हैं,मगर वह शास्त्रीय नृत्य के जानकर नही है. इसके अलावा उन्हे पटकथा व संवादो का भी आपेक्षित सहयोग नही मिला,इसलिए वह मार खा गए.

आयुश्मान खुराना को याद रखना चाहिए था कि उनकी तुलना ‘चाची 420’ के कमल हासन के संग भी की जा सकती है. उनके कमजोर अभिनय ने फिल्म का बंटाधार कर दिया. इस फिल्म की कमजोर कड़ी में परी का किरदार निभाने वाली अदाकारा अनन्या पांडे हैं. जो कि महज नेपोटिजम के भरोसे फिल्में पा रही हैं. मगर वह परदे पर उनके अभिनय का जादू नजर नही आता. परदे पर अनन्या को देखकर अहसास होता है कि वह संवादों को याद रखने के चक्कर में उनका ध्यान अभिनय से भटक रहा है. कलाकार के तौर पर वह दृश्य की जरुरत  और अपने संवादों की गहराई समझ ही नही पा रही हैं. शायद निर्देषक भी उन्हे समझाने में असफल रहे हैं. अपने अभिनय को निखारने के लिए अनन्या पांडे को अभी बहुत मेहनत करने की जरुरत है.अन्नू कपूर,राजपाल यादव,सीमा पाहवा,विजय राज,परेश रावल,मनोज जोशी,मनजोत सिंह व अभिषेक बनर्जी ने अपनी तरफ से बेहतर अभ्निय करने का प्रयास किया है.मगर यदि पटकथा व संवाद ही गड़बड़ हो तो यह क्या करते?

अनुपमा में आया ट्विस्ट, पाखी अधिक को छोड़ थामेगी रोमिल का हाथ

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ को लेकर दर्शकों के बीच खासी दिवानगी देखने को मिलती है. जबसे ‘अनुपमा’ टेलीकस्ट हुआ है तभी से टीआरपी में आगे हैं. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में फुल ऑन ड्रामा चल रहा है. टीवी सीरियल में अब ढेर सारे ट्विस्ट आने वाले हैं, जिससे अनुपमा की जिंदगी में फिर से हंगामा होगा. आइए आपको सीरियल अपकमिंग एपिसोड के बारे में ट्विस्ट बताते हैं.

अधिक पाखी को मरेगा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में अधिक का असली चेहरा सब जान गए हैं, जिस वजह से वह पखी के साथ अच्छा बर्ताव कर रहा है. वहीं शो में जल्द ही अधिक फिर से पाखी के साथ मारपीट करेगा.

पाखी रोमिल का हाथ थामेगी

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ के बीते एपिसोड में रोमिल ने पाखी को समझाया था कि वह अधिक का टेस्ट ले. वह पाखी का साथ देने की बात करता है. कहानी में आगे रोमिल ही पाखी के साथ खड़ा होगा.

अधिक पर अनुपमा-अनुज भड़केंगे

एक बार फिर से पाखी के साथ मारपीट को लेकर अधिक पर अनुपमा और अनुज का गुस्सा फुटेगा. अनुपमा के गुस्से से अधिक को कोई नहीं बचा पाएगा.

डिंपल से दूर होगा समर

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में एंटरटेनमेंट का डोज यहीं खत्म नहीं होता. शो में आगे देखने को मिलेगा कि डिंपल घर में काफी ज्यादा चिढ़-चिढ़ करने लगेगी. इस वजह से उसका झगड़ा समर से भी बढ़ जाएगा. समर अब डिंपल को दो बातें सुनाना शुरू कर देगा. ऐसे में दोनों के बीच दूरी आएगी.

रोमिल और बरखा में होगी लड़ाई

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कि रोमिल से बरखा पंगा लेती है. वह आधी रात को रोमिल को ताने सुनाएगी. जो अनुपमा सुन लेगी. तब अनुपमा बरखा की बोलती बंद करेगी

आखिर किस गलतफहमी की वजह से एल्विश यादव से नहीं मिल पाई मनीषा रानी

बिग बॉस ओटीटी 2 की धकाड़ कंटेस्टेंट मनीषा रानी सबकी चाहेती रही है. शो में उन्हें काफी लोकप्रियता मिली है. उन्हें शो में जनता से खूब प्यार मिला. मनीषा का हंसमुख और अच्छे स्वभाव हर किसी का दिल जीत लिया. शो में उनकी दोस्ती एल्विश यादव के साथ काफी गहरी थी जो हमेशा चर्चा में रहती थी. शो के बाहर या अंदर दोनों का नाम अक्सर छोड़ा जाता है. हालिए एक इंटरव्यू में मनीषा रानी ने एल्विश यादव से मिलने को लेकर एक बात कही.

मनीषा ने बताया- गलतफहमी की वजह से नहीं मिल पाई एल्विश से

बिग बॉस ओटीटी सीजन 2 की दूसरी रनर-अप मनीषा रानी ने बिग बॉस के घर के बाहर एल्विश यादव के साथ अपने रिश्ते के बारे में बताया. मनीषा ने कहा, “मैं अभी भी एल्विश के संपर्क में हूं और उसने शुरू में मुझे मिलने के लिए व्हाट्सएप पर मैसेज भी किया था. हालांकि, मेरा व्हाट्सएप तीन दिनों तक बंद था, इसलिए हम मिल नहीं  सके, और मैंने उसे एक बार कॉल भी किया.

क्यों नहीं मिल पाई एल्विश से मनीषा ने बताया

उन्होंने आगे कहा, “एक गलतफहमी के कारण हम मिल नहीं सके, लेकिन अब भी, जब वह दिल्ली में थे और मैंने एक प्रैंक कॉल किया, तो उन्होंने तुरंत कॉल का जवाब दिया. तो, हम दोस्ती साझा करते हैं, लेकिन निस्संदेह, वह भी काफी व्यस्त है, और मैं भी व्यस्त हूं. इसलिए, हम इस समय इतनी बात नहीं करते. हालांकि, मेरा मानना ​​​​है कि कुछ दिनों के बाद, जब चीजें थोड़ी शांत हो जाएंगी, हम दोनों फिर से बातचीत करेंगे.

एल्विश यादव की गर्लफ्रेंड पर मनीषा रानी ने प्रतिक्रिया दी

इंटरव्यू के दौरान मनीषा से पूछा गया कि क्या उन्हें एल्विश यादव की गर्लफ्रेंड होने का दावा करने वाली एक एक्ट्रेस के बारे में पता है और क्या वह उनकी असली गर्लफ्रेंड से मिल चुकी हैं. मनीषा ने कहा, ”नहीं, मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. मैं वास्तव में अभी जान रही हूं बाहर क्या हो रहा है मुझे नहीं पता कि उसकी गर्लफ्रेंड कौन है. और अभी, यह एक ऐसी स्थिति है जहां अगर कोई गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड के रिश्ते में नहीं है, वह आकर कहेगा, ‘मैं मनीषा का बॉयफ्रेंड हूं, मैं एल्विश की गर्लफ्रेंड हूं,’ तो ऐसी चीज हो सकती है. इसलिए मुझे उसकी गर्लफ्रेंड के बारे में कुछ नहीं पता. मैंने कभी उससे इस बारे में नहीं पूछा.”

तुम्हारी कोई गलती नहीं: भाग 1- रिया के साथ ऐसा क्या हुआ था

ड नंबर 8 के मरीज की दवाओं और इंजैक्शन के बारे में नर्स को समझ कर रिया जनरल वार्ड से निकल कर प्राइवेट वार्ड की ओर चल दी. स्त्रीरोग विभाग में 16 प्राइवेट कमरे थे, जिन में से 11 इस समय भरे हुए थे. उन में औपरेशन, डिलीवरी, गर्भपात आदि के पेशैंट थे. 1-1 पेशैंट का हालचाल पूछते हुए जब डा. रिया सब से आखिरी पेशैंट को देख कर रूम से बाहर निकली, तो बहुत थक गई थी. नर्सों के ड्यूटीरूम में जा कर उस ने हैड नर्स को कुछ पेशैंट्स के उपचार संबंधी निर्देश दिए और डाक्टर्स ड्यूटीरूम की ओर चल दी.

ड्यूटीरूम में डा. प्रशांत और डा. नीलम बैठे थे.

‘‘क्या बात है रिया, काफी थकी हुई लग रही हो? लो, कौफी पी लो,’’ कह डा. प्रशांत ने 1 कप रिया की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्स डा. प्रशांत,’’ रिया ने आभार प्रकट करते हुए कौफी ले ली.

‘‘सच में रिया तुम्हारा चेहरा काफी डल लग रहा है. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

डा. नीलम ने पूछा.

‘‘तबीयत तो ठीक है. बस थोड़ा थक गई हूं, इसलिए सिर थोड़ा भारी है,’’ रिया ने जवाब दिया, ‘‘ओह, 4 बज गए, आज मुझे जरा जल्दी घर जाना है. मैं डा. अश्विन को बता कर घर चली जाती हूं,’’ रिया ने घड़ी देखते हुए कहा.

‘‘डा. अश्विन तो ओ.टी. में होंगे, तुम आशा मैडम को रिपोर्ट कर के चली जाओ,’’ नीलम ने कहा और फिर चुटकी लेते हुए पूछ ही लिया, ‘‘वैसे काम क्या है, जो आज अचानक जल्दी जा रही हो? घर में खास मेहमान आ रहे हैं क्या?’’

रिया मुसकरा दी, ‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. शौपिंग करने जाना है,’’ रिया दोनों को बाय कर के आशा मैडम के कैबिन की ओर चली दी. वैसे डिपार्टमैंट के हैड डा. अश्विन थे, लेकिन चूंकि वे सर्जन थे, इसलिए उन का अधिकांश समय औपरेशन थिएटर में ही गुजरता था. उन के बाद डा. आशा थीं, जो उन की अनुपस्थिति में विभाग का काम संभालती थीं. रिया ने उन के पास जा कर अपनी प्रौब्लम बताई और छुट्टी ले कर अपनी गाड़ी से घर की ओर चल दी.

नीलम ने सही सोचा था कि रिया के यहां खास मेहमान आने वाले हैं. सचमुच वह आज इसीलिए जल्दी जा रही थी कि लड़के वाले उसे देखने आ रहे हैं. लड़का नीरज भी डाक्टर है. लंदन से कैंसर पर रिसर्च कर के आया है. उस के पिताजी का भोपाल में स्वयं का क्लीनिक है, लेकिन वह कैंसर हौस्पिटल में कार्यरत है. नीरज के पिता और्थोपैडिक सर्जन हैं और मां ने रिटायरमैंट के बाद प्रैक्टिस छोड़ दी है.

रिया 5 बजे अपने घर पहुंची. सारे रास्ते वह अनमनी सी रही. घर पहुंचते ही देखा मां दरवाजे पर ही खड़ी थीं.

‘‘कितनी देर लगा दी बेटी,’’ आते ही उन्होंने रिया को प्यार भरा उलाहना दिया.

‘‘सौरी मां, राउंड लेते हुए लेट हो गई थी,’’ रिया ने मां के गले में बांहें डाल कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा चल, हाथमुंह धो कर चाय पी ले,’’ मां ने कहा.

‘‘नहीं मां, मैं कौफी पी कर आई हूं. वे लोग कितने बजे आएंगे?’’ रिया ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘6 बजे तक आने को कह रहे थे,’’ मां ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा.

रिया ने अपने जीवन का यही ध्येय बनाया था कि डाक्टर बन कर लोगों की सेवा करेगी. वह हर रिश्ते के लिए मना कर देती थी, क्योंकि वह भलीभांति जानती थी कि उस के अतीत के बारे में पता लगते ही हर कोई मना कर देगा. डाक्टर लड़की के लालच में बहुत से लोग अपने बेटे का रिश्ता ले कर आए, लेकिन रिया ने किसी से भी मिलने से इनकार कर दिया. लेकिन नीरज के पिता रिया के पिता से एक पार्टी के दौरान मिले, तो रिया से मिलने की जिद ही कर बैठे. हार कर रिया के पिता को उन्हें घर पर आमंत्रित करना ही पड़ा.

6 बजने में 5 मिनट थे, जब रिया पलंग से उठी. सिर थोड़ा हलका लग रहा था. बाथरूम में जा कर उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे तो थोड़ी ताजगी आई. उस ने एक साधारण सा सूट निकाला और पहन लिया. पता था रिश्ता तो होना नहीं, तो क्यों बेकार अपना प्रदर्शन करे? माथे पर बिंदी लगाई, केशों की चोटी बनाई और नीचे मां के पास आ गई. उस ने जरा भी मेकअप नहीं किया था, लेकिन वह सुंदर ही इतनी थी कि उसे किसी भी तरह का मेकअप करने की जरूरत ही नहीं थी. उस के खिले हुए रंग पर उस के सूट का गुलाबी रंग उसे एक स्वाभाविक गुलाबी आभा प्रदान कर रहा था. उस के कानों में छोटेछोटे सोने के टौप्स थे.

मां ने उसे देखा तो टोका नहीं, क्योंकि उन्हें पता था कि वह अन्य लड़कियों की तरह बननेसंवरने में विश्वास नहीं करती. उन्होंने केवल अपनी चैन निकाल कर उसे पहना दी और उस के खाली हाथों में 1-1 चूड़ी पहना दी. रिया ने विरोध नहीं किया.

ठीक साढ़े 6 बजे नीरज अपने मातापिता के साथ आ गया. वे लोग काफी सहज थे. रिया के मातापिता को थोड़ा तनाव था, लेकिन जल्द ही नीरज और उस के मातापिता के सहजसरल स्वभाव ने माहौल को एकदम सहज बना दिया. जल्द ही रिया भी औपचारिकता और झिझक छोड़ कर उन लोगों से घुलमिल गई.

नीरज की मां सीधेसादे स्वभाव की लगीं. पिताजी काफी हंसमुख थे. बातबात पर वे ठहाके लगा रहे थे. नीरज स्वयं गंभीर स्वभाव का था, परंतु उस के चेहरे पर एक सरल स्वाभाविकता थी, जिस ने सब को काफी प्रभावित किया. चायनाश्ते के बाद सब के कहने पर नीरज और रिया बाहर लौन में चले गए.

नीरज का व्यवहार और बातचीत का तरीका बेहद शालीन था. रिया को ऐसा लगा ही नहीं कि वह उस से पहली बार बात कर रही है. डाक्टरी से ले कर बगीचे के फूलों तक विभिन्न विषयों पर उस ने रिया से बात की. रिया उस से काफी प्रभावित हुई. नीरज ने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया.

रात घिरने लग गई, तब वे दोनों अंदर आ गए. कुछ देर बाद नीरज के पिताजी जाने के लिए उठ खड़े हुए. बाहर निकलते वक्त उन्होंने रिया और उस के मातापिता को चौंका दिया.

वे कार में बैठने से पहले बोले, ‘‘भई,

हमें तो रिया बहुत पसंद आई. हम ने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया है. हमारी ओर से यह रिश्ता पक्का है. अब आप लोग हमें अपना फैसला बता दीजिएगा,’’ और वे चले गए.

उन के जाने के बाद रिया और उस के मातापिता 2 मिनट तक तो अवाक से वहीं खड़े रह गए. उन्हें इतनी जल्दी हुए फैसले पर यकीन ही नहीं हो रहा था.

अंदर आ कर रिया की मां ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘रिया बेटा, सोच ले, नीरज बहुत अच्छा लड़का है और परिवार भी अच्छा है. सारी बातें भूल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत कर ले बेटा,’’ उन की आवाज में मां के दिल का दर्द उमड़ आया.

रिया हौले से आश्वासन की मुद्रा में मुसकरा दी तो मां थोड़ी आश्वस्त हो गईं.

Cook Book special: खुशबू कश्मीर की

कश्मीरी दम आलू बहुत ही फेमस रेसिपी है. आप भी अपनी फैमिली के लिए डिनर में बनाएं कश्मीरी दम आलू. घर में सभी उंगलियां चाटते रह जाएगे. आज ही घर पर बनाएं कश्मीरी दम आलू. आइए बताते है इसकी रेसिपी.

  1. कश्मीरी दम आलू

सामग्री

1.  1 बड़ा चम्मच औयल 

   2. 400 ग्राम छोटे आलू उबले

   3. 1 बड़ा चम्मच सौंफ 

   4. 3-4 लौंग

    5.  3-4 इलायची

    6. 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

     7. 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

      8.  1/2 कप दही

      9. 2 छोटे चम्मच कश्मीरी चिली पाउडर

      10. 2 कप पानी में भिगोया 

      11. गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में घी गरम कर आलू फ्राई करें. आलू जब सुनहरे हो जाएं तो उन्हें एक तरफ रख दें. फिर उसी घी में सौंफ, लौंग व इलायची डाल कर चटकाएं. उस में हलदी और धनिया पाउडर डाल कर भूनें. अब इस में दही और पानी में भीगा चिली पाउडर डालें. फिर नमक और आलू डाल कर ढक कर पकने रख दें. पक जाने पर धनियापत्ती से गार्निश कर चावल के साथ सर्व करें.

2. कुलथ की दाल

सामग्री

1.  1 बड़ा चम्मच घी 

 2. थोड़ा सा अदरक कटा

  3.  2-3 हरीमिर्चें बीच से कटी 

   4. 1 कप उबली कुलथ की दाल

    5. 1 चम्मच अनारदाना पाउडर पानी में भीगा 

    6. गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती 

7. दही और प्याज के छल्ले.

विधि

एक पैन में घी गरम कर अदरक और हरीमिर्चें डाल कर भूनें. कुलथ की दाल डाल कर ढक कर 20-25 मिनट पकने दें. इसी दौरान इस में नमक और अनारदाना पाउडर भी डाल दें. दाल के पक जाने पर धनियापत्ती, दही और प्याज के छल्लों से सजा कर रोटी या चावल के साथ सर्व करें.

3. अम्बाल

सामग्री

1.  1 बड़ा चम्मच घी 

  2. 1 छोटा चम्मच जीरा

   3. 1 बड़ा चम्मच मेथी दाना 

   4. 2-3 लालमिर्चें बड़ी 

    5. 400 ग्राम कद्दू छिला 

    6. 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर 

     7. 1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर 

     1 छोटा चम्मच अनारदाना पाउडर.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में घी गरम कर जीरा, मेथीदाना व लालमिर्च डाल कर चटकाएं. अब इस में कद्दू डाल कर 2 मिनट फ्राई करें. फिर हलदी पाउडर, मिर्च पाउडर, नमक और 1/2 कप पानी डाल कर ढक कर धीमी आंच पर पकने दें. पक जाने पर अनारदाना पाउडर डाल कर फिर 3-4 मिनट पकाएं और चावल के साथ सर्व करें.

4. जंगली गोश्त

सामग्री

1.  2 बड़े चम्मच घी या औलिव औयल

 2.  3-4 लालमिर्चें कुटी द्य थोड़ा सा अदरक कद्दूकस किया 

  3. थोड़ा सा लहसुन पेस्ट

  4.  500 ग्राम गोश्त 

  5. नमक स्वादानुसार.

विधि

कुकर में घी डाल कर गरम करें. फिर लहसुन, अदरक व नमक डाल कर अच्छी तरह से भूनें. भुन जाने पर इस में गोश्त डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर 5 मिनट पकने दें. अब इस में 1 कप पानी डाल कर कुकर में स्टीम लगाएं. इसे रोटी या चावल के साथ सर्व करें.

रक्षाबंधन पर ड्रेस के साथ ज्वेलरी कैरी करें कुछ ऐसे

भाई-बहनों का त्यौहार रक्षाबंधन देशभर में बड़े धूमधाम से हर साल मनाया जाता है. इस त्यौहार पर बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. ये त्यौहार भाई – बहन के बीच के रिश्ते को अधिक मजबूत और प्यारा बनाती है. जहां एक तरफ बेस्ट राखी खरीदने को लेकर बहनें पहले से ही मार्केट में खोजना शुरू कर देती हैं, वहीं अपने आउटफिट और लुक को लेकर भी बहुत कन्फ्यूज रहती हैं. इस बारें में महालक्ष्मी ज्वेलर्स के स्टाइलिश विवेक अग्रवाल कहते है कि इस बार इस त्यौहार को कुछ अलग और यादगार बनाने के लिए ऐसे स्टाइलिंग आइडियाज शेयर कर रहे हैं, जिससे उस दिन आपकी लुक होगी एकदम अलग और खूबसूरत.

वे आगे कहते है कि रक्षाबंधन पर ड्रेस और ज्वेलरी को लेकर कन्फ्यूज होने की जरुरत नहीं है, इन टिप्स को आप आसानी से फोलो कर सकती है.

  1. बनारसी साड़ी के साथ गोल्ड ज्वेलरी  

रक्षाबंधन पर मैरिड विमन्स अधिकतर साड़ी पहनना पसंद करती हैं, जिसके साथ ज्वेलरी पर खास ध्यान देना चाहिए, जो आपकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. अगर आप अपने लिए बनारसी साड़ी चुन रही हैं, तो इसके साथ प्योर गोल्ड चोकर नेकलेस सबसे बढ़िया लगते हैं. कान में झुमकी और मांगटीका लुक को कम्पलीट कर देगा.

2. नेट की साड़ी के साथ डायमंड ज्वेलरी

रक्षाबंधन पर नेट की साड़ी पहनना एक बढ़िया ऑप्शन है. इस फैब्रिक की साड़ी के साथ आप डायमंड नेकलेस आराम से मैच कर सकती हैं. लाइट वेट हीरे के हार के साथ आप मैचिंग अमेरिकन डायमंड ईयररिंग्स, मांगटीका और ब्रेसलेट पेअर कर सकती हैं. इसका खास ध्यान रखें कि हर एक ज्वेलरी पीस का स्टाइल एक जैसा हो.

3. गोल्ड ज्वेलरी के ट्रेंडी डिजाइन्स भी करें ट्राई

आज के दौर की लड़कियों को अक्सर पीले रंग की गोल्ड जवेलरी पहनना आउट ऑफ फैशन लगता है. ऐसे में कुंदन डिजाइन वाले नेकलेस भी खरीद सकती हैं. इसे सिर्फ रक्षाबंधन पर ही नहीं, बल्कि दूसरे फेस्टिवल पर भी एथनिक आउटफिट के साथ आराम से मैच कर सकती हैं.

4. शॉर्ट कुर्ती और पैंट्स के साथ कलरफुल आर्टिफिशियल जवेलरी

गर्मी का मौसम है और ऐसे में अगर आप एकदम कम्फर्टेबल क्लोद्स कैरी करना चाहती हैं, तो शॉर्ट कुर्ती से बढ़िया ऑप्शन नहीं हो सकता. रक्षाबंधन पर पहनने के लिए हल्के फ्लोरल प्रिंट वाले कॉटन कुर्ते के साथ आर्टिफिशियल स्टोनवर्क ज्वेलरी कैरी किया जा सकता है. स्टोन्स वाले नेकलेस और ईयररिंग्स के कई बढ़िया कलर कॉम्बिनेशन मार्केट में भी मिल जाते हैं.

5. चिकनकारी सूट और पेंडेंट नेकलेस

अगर आपका बजट हेवी ज्वेलरी खरीदने का नहीं है, तो आप पेंडेंट नेकलेस भी ले सकती हैं. जिसके साथ आपको ज्यादातर लटकन ईयररिंग्स मिलते हैं, जिन्हें आप चिकनकारी सूट या इंडो-वेस्टर्न के साथ भी कैरी कर सकती हैं. मिड लेंथ के ये नेकलेस काफी सुंदर और अलग लुक देते हैं.

6. इंडो-वेस्टर्न के साथ ज्वेलरी

इस रक्षाबंधन पर अगर आप इंडो-वेस्टर्न आउटफिट पहन रही हैं, तो इसके साथ  लॉन्ग गोल्ड चेन नेकलेस कैरी कर सकती हैं. ये आपके लुक को परफेक्ट बना देगा. अगर आप लुक को थोड़ा हैवी रखना चाहती हैं, तो लेयर्ड सेट ले सकती हैं.

7. आउटफिट के अनुसार रखें सिंपल ज्वेलरी

गोल्ड ज्वेलरी हो या आर्टिफिशियल, इसे पहनते वक्त इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आप जितना अपने लुक को सिंपल रखेंगी, उतना लोगों का ध्यान आपकी तरफ रहेगा. साड़ी, सूट या इंडो-वेस्टर्न कुछ भी हो, लेकिन त्यौहार पर हल्की ज्वेलरी ही आपके लुक को एन्हान्स करती है.

Raksha Bandhan: इस राखी पर बच्चों की भावनाओं को दे प्राथमिकता कुछ ऐसे

मुझे अभी भी याद आता है, जब मैं अपने घर पर तैयार हो रही थी, क्योंकि मुझे माँ के पास भाई को राखी बाँधने जाना था. मैंने बेटे रोहन को जल्दी तैयार किया और जाने की तैयारी करने लगी, तभी माँ का फ़ोन आता है कि आते हुए रास्ते से मिठाई लेते आना, क्योंकि रिया आज आ रही है. उसके पास समय नहीं होगा. माँ की ये बात सुनकर सीमा को पहले गुस्सा आया,  उसके नजदीक रहने की वजह से माँ हर काम उसे ही सौंप देती है. जबकि वह भी मुंबई में पली-बड़ी है, उसे भी सब मालूम होगा.दो बहनों के भाई राजीव को रक्षाबन्धन पर  दोनों बहने राखी बांधती है, बचपन में सभी साथ थे, लेकिन बड़े होने पर सभी अलग हो गए, लेकिन राजीव से बड़ी बहन सीमा और उससे छोटी बहन रिया की शादी होने पर वे अपने ससुराल चले गए. सीमा मुंबई में रहती है, इसलिए भाई को राखी बाँधने हर साल आती है, जबकि रिया दुबई में रहती है,पर राखी पर आने की हमेशा कोशिश करती है.

भावनाओं को महत्व देती त्यौहार

हमारे देश में वैसे तो कई खुशियों के त्यौहार होते है, लेकिन राखी उनमे सबसे अधिक खुशियाँ देता है. इस त्यौहार में भाई-बहन के रिश्ते को एक रेशम की डोरी के द्वारा भावनाओं को गहराई में उतरने का मौका मिलता है. सावन का महीना वैसे भी साज-श्रृंगार और प्यार-अनुराग का प्रतीक होता है, ऐसे में यह त्यौहार सभी भाई-बहनों के दिल में उमंग भर देता है. इस त्यौहार पर बहने भाई को ऐसी राखियाँ बांधे, जो उनके जीवन को प्रेरित करें, क्योंकि इस बार राखीप्यार, विश्वास, मुस्कान, स्वतंत्रता और क्षमा की. इसमें एकाकी होते परिवार में भूमिका होती है, पेरेंट्स की, जो इस रिश्ते को सालों साल मजबूत बनाए रखने की दिशा में अहम भूमिका निभाते है.

समझे बच्चों को

इस बारें मेंसाइकोलोजिस्ट राशिदा कपाडिया कहती है कि बच्चे के जन्म के बाद से माता-पिता की जरुरत होती है. माता-पिता का प्यार बच्चे को मिलते रहते है, उस प्यार की जरुरत उसे हमेशा रहती है, लेकिन एक बच्चे के बाद जब उन्हें दूसरा बच्चा होता है, तो उनके अंदर हमेशा यही डर रहता है कि अब मेरा प्यार बट जाएगा. जाने अनजाने में पेरेंट्स भी छोटे बच्चे पर अधिक ध्यान रखते है. माता-पिता को बच्चे की भावना को समझना जरुरी है. भाई और बहन के बीच में प्यार का बंटवारा होने पर, या दोनों में से किसी एक के दूर चले जाने पर, जो बच्चा दूर होता है, उसके आने पर पेरेंट्स का ध्यान उस बच्चे पर अधिक जाता है. हालाँकि ये स्वाभाविक है, क्योंकि हमेशा वे उससे मिल नहीं पाते. इसलिए वे उस बच्चे की पैम्परिंग अधिक करते है, उनकी पसंद, नापसंद का ख्याल रखते है, ये नैचुरल होने पर भी दूसरी बहन या भाई जो पेरेंट्स के पास रहते है, जो पेरेंट्स का अधिक ध्यान नजदीक रहने की वजह से रखते है, उनके मन में थोड़ी खटास आ जाती है. वे सोचते है कि मेरे पेरेंट्स मुझसे अधिक दूसरे भाई या बहन को प्यार दे रहे है, उनकी किसी गलतियों को नजरंदाज कर रहे है, जबकि नजदीक रहने वाले बच्चे की थोड़ी गलती को वे नजरंदाज नहीं कर पाते, लेकिन जरुरत के समय दूर रहने वाले बच्चे किसी काम के नहीं होते.

आर्थिक रूप से संपन्न बच्चे

इसके आगे राशिदा कहती है कि ऐसा अधिक पैसे वाले बच्चे के साथ भी होता है. तीनों बच्चों में जो बेटी धनी है, उसका ध्यान भी पेरेंट्स अधिक रखते है, क्योंकि जरुरत की महंगी चीजे वही दे सकते है, भले ही वे देर से क्यों न दे. इससे बच्चे के अंदर इर्ष्या की भावना पैदा होती है. दोनों बच्चों को समान रूप से ध्यान देना जरुरी है. वह नहीं मिलने पर भाई या बहन हर्ट फील करते है.

तुलना न करें

साइकोलोजिस्ट राशिदा आगे कहती है कियहाँ यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि बड़े बच्चों के शादी हो जाने पर उनके बच्चे भी होते है, जो अपने माता-पिता के प्रति उनके पेरेंट्स का व्यवहार नजदीक से देखते है. अब वे ग्रैंड पेरेंट्स बन चुके होते है, ऐसे में बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के व्यवहार पसंद नहीं आते. एक दूसरे के बीच तुलना उनके बच्चों को पसंद नहीं होता.इसपर ध्यान न देने पर परिवार की एक ट्रेडिशन बन जाती है, जो ठीक नहीं. जबकि आज बच्चे बहुत अकेले और सोशल मीडिया की दुनिया में व्यस्त होते है, जहाँ उन्हें परिवार, रिश्ते आदि का महत्व कम होता है.

Raksha Bandhan:सोनाली की शादी- क्या बहन के लिए रिश्ता ढूंढ पाया प्रणय

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अंशिका: भाग 1- क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

प्रशांत और मैं पटना शहर के एक ही महल्ले में रहते थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे. यह भी इत्तफाक ही था कि दोनों अपने मातापिता की एकलौती संतान थे. एक ही गली में थोड़ी दूरी के फासले पर दोनों के घर थे. प्रशांत के पिता रेलवे में गोदाम बाबू थे तो मेरे पिता म्यूनिसिपल कौरपोरेशन में ओवरसियर. दोनों अच्छेखासे खातेपीते परिवार से थे. पर एक फर्क था वह यह कि प्रशांत बंगाली बनिया था तो मैं हिंदी भाषी ब्राह्मण थी. पर प्रशांत के पूर्वज 50 सालों से यहीं बिहार में थे.

हम एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. प्रशांत मेधावी विद्यार्थी था तो मैं औसत छात्रा थी. हमारा स्कूल आनाजाना साथ ही होता था. हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे.

ऐसा नहीं था कि मेरी कक्षा में और लड़कियां नहीं थीं, पर मेरी गली से स्कूल में जाने वाली मैं अकेली लड़की थी. हमारा स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. करीब पौना किलोमीटर दूर था, इसलिए हम पैदल ही जाते थे. मैं प्रशांत को शांत बुलाया करती थी, क्योंकि वह और लड़कों से अलग शांत स्वभाव का था. प्रशांत मुझे तनुजा की जगह तनु ही पुकारता था. हमारी दोस्ती निश्छल थी. पर स्कूल के विद्यार्थी कभी छींटाकाशी भी कर देते थे. उन की कुछ बातें उस समय मेरी समझ से बाहर थीं तो कुछ को मैं नजरअंदाज कर देती थी.

जब मैं 9वीं कक्षा में पहुंची तो एक दिन मां ने मुझ से कहा कि तू अब प्रशांत के साथ स्कूल न जाया कर. तब मैं ने कहा कि इस में क्या बुराई है? वह हमेशा कक्षा में अव्वल रहता है… पढ़ाई में मेरी मदद कर देता है.

जब मैं 10वीं कक्षा में पहुंची थी तो एक दिन शांत ने पूछा था कि आगे मैं क्या पढ़ना चाहूंगी तब मैं ने कहा था कि इंजीनियरिंग करने का मन है, पर मेरी मैथ थोड़ी कमजोर है. उस दिन से शांत गणित के कठिन सवालों को समझने में मेरी सहायता कर देता था. कभीकभार नोट्स या किताबें लेनेदेने मेरे घर भी आ जाता, पर घर के अंदर नहीं आता था, बाहर से ही चला जाता था. मेरी मां को वह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैं चाह कर भी अंदर आने को नहीं कहती थी. पर मुझे उस का साथ, उस का पास आना अच्छा लगता था. मन में एक अजीब सी खुशी होती थी.

देखते ही देखते बोर्ड की परीक्षा भी शुरू हो गई. 3 सप्ताह तक हम इस बीच काफी व्यस्त रहे. शांत की सहयाता से मेरा मैथ का पेपर भी अच्छा हो गया. अब स्कूल आनाजाना बंद था तो शांत से मिले भी काफी दिन हो गए थे. अब तो बोर्ड परीक्षा के परिणाम का बेसब्री से इंतजार था.

परीक्षा परिणाम भी घोषित हो गया. मैं अपनी मार्कशीट लेने स्कूल पहुंची. वहां मुझे प्रशांत भी मिला. जैसे कि पूरे स्कूल को अपेक्षा थी शांत अपने स्कूल में अव्वल था. मैं ने उसे बधाई दी. मुझे भी अपने मार्क्स पर खुशी थी. आशा से अधिक ही मिले थे. जब प्रशांत ने भी मुझे बधाई दी तो मैं ने उस से कहा कि इस में तुम्हारा भी सहयोग है. तब शांत ने कहा था कि मुझे भी इसी स्कूल में प्लस टू में साइंस विषय मिल जाना चाहिए.

अब मैं 11वीं कक्षा में थी. मुझे भी साइंस विषय मिला पर मैं ने मैथ चुना था, जबकि शांत ने बायोलौजी ली थी. वह डाक्टर बनना चाहता था. अब मेरे और शांत के सैक्शन अलग थे. फिर भी ब्रेक में हम अकसर मिल लेते थे. कभीकभी प्रयोगशाला में भी मुलाकात हो जाती थी.

उस की बातों से अब मुझे ऐसा एहसास होता कि वह मुझ में कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहा है. इस बात से मैं भी मन से आनंदित थी पर दोनों में ही खुल कर मन की बात कहने का साहस न था. पर शांत कहा करता था कि हमारे विषय भिन्न हैं तो पता नहीं 12वीं कक्षा के बाद हम दोनों कहां होंगे. एक बार मुझे जो नोटबुक उस ने दिया था उस के पहले पन्ने पर लिखा था तनु ईलू. मैं ने भी उस के नीचे ‘शांत…’ लिख कर लौटा दिया था. देखते ही देखते हम दोनों की बोर्ड की परीक्षा खत्म हो गई. शांत ने मैडिकल का ऐंट्रेंस टैस्ट दिया और मैं ने इंजीनियरिंग का. 12वीं कक्षा का परिणाम भी आ गया था. प्रशांत फिर अव्वल आया था. मुझे भी अच्छे मार्क्स मिले थे. शांत मैडिकल के लिए कंपीट कर चुका था. मैं ने उसे बधाई दी, परंतु मैं इंजीनियरिंग में कंपीट नहीं कर सकी थी. शांत ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. मुझे अपने मनपसंद विषय में औनर्स ले कर गै्रजुएशन की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी थी. कुदरत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया. मुझे पटना साइंस कालेज में फिजिक्स औनर्स में दाखिला मिल गया और शांत ने पटना मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. दोनों कालेज में कुछ ही दूरी थी. यहां भी हम लौंग बे्रक में मिल कर साथ चाय पी लेते थे.

मुझे याद है एक बार शांत ने कहा था, ‘‘तनु, चलो आज तुम्हें कौफ्टी पिलाता हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘शांत यह कौफ्टी क्या बला है? कभीकभी तुम्हारी बातें मुझे मिस्ट्री लगती हैं बिलकुल वैसे ही जैसे ईलू.’’

उस ने कहा, ‘‘तो तनु मैडम को अभी तक ईलू समझ नहीं आया…कोई बात नहीं…उस पर बाद में बात करते हैं. फिलहाल कौफ्टी से तुम्हारा परिचय करा दूं,’’ और मुझे मैडिकल कालेज के गेट के सामने फुटपाथ पर एक चाय वाले ढाबे पर ले गया. फिर 2 कौफ्टी बनाने को कहा. ढाबे वाले ने चंद मिनटों में 2 कप कौफ्टी बना दिए. सच, गजब का स्वाद था. दरअसल, यह चाय और कौफी का मिश्रण था, पर बनाने वाले के हाथ का जादू था कि ऐसा निराला स्वाद था.

कुछ दिनों तक शांत और मैं एक ही बस से कालेज आते थे. वह तो शांत का संरक्षण था जो बस की भीड़ में भी सहीसलामत आनाजाना संभव था वरना बस में पटना के मनचले लड़कों की कमी न थी. फिर भी उन के व्यंग्यबाण के शिकार हम दोनों थे पर हम नजरअंदाज करना ही बेहतर समझते थे. चूंकि बस में आनेजाने में काफी समय बरबाद होता था, इसलिए शांत के पिता ने उस के लिए एक स्कूटर ले दिया. अब तो दोनों के वारेन्यारे थे. रास्ते में पहले मेरा कालेज पड़ता था. शांत मुझे ड्रौप करते हुए अपने कालेज जाता था. हालांकि लौटने में कभी मुझे अकेले ही बस या रिकशा लेना पड़ता था. ऐसा उस दिन होता था जब मेरे या शांत की क्लास खत्म होने के बीच का अंतराल ज्यादा होता था.

Raksha Bandhan: बहनें- भाग 1- रिश्तों में जलन का दर्द झेल चुकीं वृंदा का बेटिंयों के लिए क्या था फैसला?

स्वप्न इतना डरावना तो नहीं था किंतु न जाने कैसे वृंदा पसीने से तरबतर हो गई. गला सूख गया था उस का. आजकल अकसर ऐसा होता है. स्वप्न से?डरना. यद्यपि वह इन मान्यताओं को नहीं मानती थी कि स्वप्न किसी शुभाशुभ फल को ले कर आता है, पर पता नहीं क्यों, आजकल वह उस कलैंडर की तलाश में रहने लगी है जिस में स्वप्न के शुभाशुभ फल दिए रहते हैं. क्या करे, सहेलियां डरा जो देती हैं उसे.

कभीकभी जब वह अपना कोई स्वप्न बता कर पूछती है कि मरा हाथी देखने से क्या होता है? या फिर मकान गिरते हुए देखने का क्या फल मिलता है? तब सहेलियां चिंतित हो कर अपनी बड़ीबड़ी आंखें घुमा कर उस का भविष्य बताने लगतीं, ‘लगता है, अभी तुम्हारी मुसीबत खत्म नहीं हुई है. कोई बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है तुम पर. अपनी बेटियों की देखभाल जरा ध्यान से करना.’

तब वृंदा मारे डर के कांपने लगती है. अब ये मासूम बेटियां ही तो उस की सबकुछ हैं. कैसे नहीं ध्यान रखेगी इन का? दोनों कितनी गहरी नींद में सो रही हैं? वृंदा अरसे से ऐसी गहरी नींद के लिए तरस रही है. यदि किसी रात नींद आ भी जाती है तो कमबख्त डरावने स्वप्न आ धमकते हैं और नींद छूमंतर हो जाती है.

वृंदा ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. स्वप्न की बेचैनी और घबराहट से माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई थीं. वह बिस्तर से उठी, मटके से गिलास भर पानी निकाला व एक ही सांस में गटागट पी गई. माथे पर आए पसीने को साड़ी के आंचल से पोंछती हुई वह फिर बिस्तर पर आ कर लेट गई. वृंदा ने पूरे कमरे में नजर घुमाई. यह छोटा सा कमरा ही अब उस का घर था. न अलग से रसोई, न स्टोर, न बैठक. सबकुछ इसी कमरे में था. गैस चूल्हे की आंच से जो गरमी निकलती वह रातभर भभकती रहती.

कमरे से लगा एक छोटा सा बाथरूम था और एक छोटी सी बालकनी भी. वृंदा का मन हुआ कि बालकनी का दरवाजा खोल दे, बाहर की थोड़ी हवा तो अंदर आएगी, किंतु उस की हिम्मत नहीं पड़ी. रात के 3 बजे सवेरा तो नहीं हो जाता. वृंदा मन मार कर लेटी रही.

उस का ध्यान फिर से स्वप्न पर गया. एक बड़े से गड्ढे में गिर कर उस की बड़ी बेटी प्राची रो रही थी और रश्मि बड़ी बहन को रोता देख कर खिलखिला रही थी. यह भी कोई स्वप्न है? इतना डरने लायक? वह डरी क्यों? इस स्वप्न के किस हिस्से ने उसे डराया? प्राची का गड्ढे में गिरना या रश्मि का किनारे खड़े हो कर खिलखिलाना? रश्मि हंस क्यों रही थी? शायद प्राची को गड्ढे में उस ने ही धकेला था. वृंदा फिर कांप गई.

स्वप्न, स्वप्न था. आया और चला गया. किंतु उस की परछाईं किसी सच्ची घटना की तरह उसे डरा रही थी. वह इस प्रकार डरी मानो अभी घर में तूफान आया हो और घर की दीवारें तक हिल गई हों.

यह स्वप्न उसे अतीत के बिंबों की तरफ ले जा रहा था जिस में न जाने की उस ने सैकड़ों बार प्रतिज्ञा की थी.

बिंब अभी थोड़े धुंधले थे. उसे थोड़ा संतोष हुआ. वह इन्हें और चटक नहीं होने देगी. यहीं से उबर जाएगी. किंतु उस का प्रयास अधिक देर तक टिक नहीं पाया. शीघ्र ही एक के बाद एक सारे बिंब चमकदार होने लगे हैं जिन्हें देखते ही उस की धड़कनें अधिक तेज हो गईं.

उस की भी एक छोटी बहन थी, कुंदा. हमेशा उस के चौकलेट, खिलौनों तथा कपड़ों को हथिया लेती थी. वृंदा या तो उस से जीत नहीं पाती थी या जीतने का भाव मन में लाती ही नहीं थी. छोटी बहन से क्या जीतना और क्या हारना? खुशीखुशी अपने चौकलेट, खिलौने और कपड़े कुंदा को दे देती थी. कुंदा विजयी भाव से उस की चीजों का इस्तेमाल करती थी. वृंदा को बस उस का यह विजयभाव ही खटकता था. वह सोचती, ‘काश, कुंदा समझ पाती कि उस की विजय का कारण मेरी कमजोरी नहीं बल्कि प्रेम है, छोटी बहन के प्रति प्रेम.’ पर कुंदा को न समझना था, न ही समझी.

बचपन छूटता गया पर कुंदा का स्वभाव न बदला. रश्मि के जन्म के समय वृंदा के घर आई कुंदा ने उस से उस का पति भी छीन लिया. वृंदा हतप्रभ थी. 5 वर्ष के संबंध चंद दिनों की परछाईं में दब कर सिसकने लगे.

वृंदा का विश्वास टूटा था, वह स्वयं नहीं. उस ने अपने घर को संभालने का पूरा प्रयास किया. सब से पहले उस ने अपने पति से बात की.

‘यह सब क्यों हुआ रवि…बोलो, ऐसा क्यों किया तुम ने? तुम्हारे जीवन में मैं इतनी महत्त्वहीन हो गई? इतनी जल्दी? मात्र 5 वर्षों में?’

‘ऐसी बात नहीं है वृंदा, तुम्हारा महत्त्व तनिक भी कम नहीं है,’ एकदम सपाट और भावशून्य शब्दों में जवाब दिया था रवि ने. वृंदा कुछ संतुष्ट हुई, ‘तो फिर यह महज भूल थी जो हो गई होगी. कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ मन में सोचा था उस ने, पर ऊपर से कठोर बनी प्रश्न करती रही.

‘जब तुम्हारे जीवन में मेरा महत्त्व कम नहीं हुआ है तो तुम ने ऐसा क्यों किया…? कुंदा तो नासमझ है, पर तुम्हें तो कुछ सोचना था?’

‘तुम इतनी छोटी बात का बतंगड़ बना रही हो?’ रवि की आवाज में खीज थी. वृंदा सब्र खो बैठी. क्षणभर पहले उस के मन में रवि के लिए उठे विचार विलीन हो गए.

‘मैं बतंगड़ बना रही हूं…? मैं? तुम्हारी नजर में यह इतनी छोटी बात है? अरे, तुम ने मेरे विश्वास का गला घोंटा है रवि, जिंदगीभर की चुभन दी है तुम ने मुझे. समय बीत जाएगा, ये बातें समाप्त हो जाएंगी लेकिन मेरे दिल में पहले जैसे भाव कभी नहीं आएंगे. हमेशा एक अविश्वास घेरे रहेगा मुझे. मुझे तो तुम ने जिंदगीभर की पीड़ा दी ही, साथ ही मेरी बहन को भी बेवकूफ बनाया.’

‘क्या बकवास कर रही हो? मैं ने किसी को बेवकूफ नहीं बनाया है…किसी को कोई पीड़ा नहीं दी है,’ क्रोध में रवि चिल्ला पड़े थे. फिर थोड़ी देर बाद संयत हो कर अपने एकएक शब्द पर जोर देते हुए बोले, ‘कुंदा से मेरी बात हो चुकी है. मैं उस से शादी करूंगा. वह भी राजी है. हां, तुम इस घर में पूरे मानसम्मान के साथ रह सकती हो. अब यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम बात का बतंगड़ बनाती हो या अपना और कुंदा का जीवन बरबाद करती हो,’ रवि ने बेपरवाह उद्दंडता से जवाब दिया.

वृंदा अवाक् रवि का मुंह ताकती रह गई. हाथपैर जम गए उस के. मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. बात यहां तक बढ़ गई और वह कुछ जान ही न पाई. किस दुनिया में रहती है वह.

छत पर पंखा धीमी गति से घूम रहा है. दोनों बेटियां अब भी गहरी नींद में सो रही हैं. वृंदा ने पंखे को कुछ तेज किया किंतु उस की रफ्तार ज्यों की त्यों रही. बेटियों के माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को वृंदा ने अपने आंचल से थपथपा कर सुखाया, फिर छत निहारती हुई लेट गई.

पति के जवाब से आहत वृंदा के मन में उम्मीद की डोर अभी बाकी थी. सास से उम्मीद. वे कुछ करेंगी. वैसे थीं वे कड़क गुस्से वाली. वृंदा को उन के साथ रहते हुए 5 वर्ष बीत चुके थे किंतु हिम्मत थी कि उन के सामने सिकुड़ कर रह जाती थी. मुंह ही नहीं खुलता था. पर बात तो करनी थी, आखिर उसे इस घर से अलगथलग कर देने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.

इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह उस के अस्तित्व का प्रश्न है. वह बात करेगी. अनुचित के विरोध में बोलना अपने अस्तित्व को बनाए रखने की बुनियादी जरूरत है. कुंदा के साथ अपने खिलौनों को बांटना छोटी बहन के प्रति प्यार है, बड़ी बहन का बड़प्पन है. पति खिलौना नहीं है, वह उसे कैसे बांटेगी? कैसे बंट जाने देगी? पर क्या करे वह, जब पति खुद ही बंटना चाहता हो. बंटना ही नहीं पूरी तरह से निकल जाना चाहता हो. फिर भी वह प्रयास करेगी.

मौका देख कर वृंदा ने सास से बात शुरू की, ‘मां, रवि कुंदा से शादी करने की सोच रहे हैं.’

‘हां, कह तो रहा था,’ एकदम ठंडी आवाज में जवाब दिया था सास ने.

‘तो मां, आप को पता है?’ वृंदा की आवाज में आश्चर्य समाया था.

‘हां, पता है.’

‘तो क्या आप यह सब होने देंगी?’

‘क्या करूंगी मैं? तुम देखो. तुम्हारी ही तो बहन है…उसे नहीं सोचना था तुम्हारे बारे में? चौबीस घंटे आगेपीछे नाचेगी तब तो यही होगा न?’ 

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