Fraud Marriages : पति का अफेयर

Fraud Marriages : मेजपर रखी कौफी ठंडी हो रही थी. अनुप्रिया ने कौफी मंगा तो ली थी पर उठा कर पीने की हिम्मत नहीं हो रही थी. दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था मानो बाहर ही आ जाएगा. कई बार कलाई पर बंधी घड़ी में समय देख चुकी थी. 5 बजने में अभी 10 मिनट बाकी थे. यानी पराग की पत्नी के वहां आने में ज्यादा समय बाकी नहीं था. पराग की पत्नी के बारे में सोच कर अनुप्रिया फीकी सी हंसी हंस दी. उसे पराग की पत्नी का नाम तक मालूम नहीं था और वह उस का एक फोन आने पर उस से यहां मिलने के लिए तैयार हो गई थी. 5 बजे मिलने का समय तय कर के 4 बजे से यहां बैठ कर उस का इंतजार कर रही थी. कभी कैफे के दरवाजे को तो कभी कौफी मग पर बने स्माइली को निहार रही थी.

तभी कैफे का दरवाजा खुला और एक सुंदर महिला ने अंदर प्रवेश किया. कुछ क्षणों तक इधरउधर देखने के बाद वह महिला अनुप्रिया की ओर आने लगी. मेज के पास आ कर रुक गई और फिर पूछा, ‘‘आप अनुप्रिया हैं?’’ अनुप्रिया कुरसी से उठ खड़ी हुई, ‘‘जी हां और आप?’’

‘‘हैलो, मैं गौतमी. पराग की वाइफ.’’ ‘‘हैलो, प्लीज बैठिए,’’ कह कर अनुप्रिया ने सामने रखी कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘थैंक्स,’’ गौतमी ने कुरसी पर बैठ अपना पर्स मेज पर रख दिया और अनुप्रिया की ओर देख कर मुसकराई, ‘‘मुझ से यहां मिलने के लिए आप का शुक्रिया.’’ अनुप्रिया ने उस की बात को अनसुना कर पूछा, ‘‘आप क्या लेंगी?’’

‘‘कौफी और्डर करने के बाद कुछ पलों तक दोनों खामोश बैठी रहीं.

अनुप्रिया तिरछी नजरों से गौतमी की ओर देख रही थी. उस ने जैसा सोचा था गौतमी उस से बिलकुल उलट थी. वह अच्छीखासी स्मार्ट थी और बड़े ही शांत भाव से उस के सामने बैठी थी. लेकिन वह कैफे में इतने सारे लोगों के सामने और करती भी क्या. उस पर चिल्लाती, इलजाम लगाती कि उस ने उस के पति को अपने प्रेमजाल में क्यों फंसा रखा है या फिर उस के आगे रोती, गिड़गिड़ाती कि वह उस के पति की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर चली जाए?’’ अनुप्रिया से गौतमी की चुप्पी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वह चाहती थी कि उसे जो भी कहना हो कहे और यहां से चली जाए. तभी कौफी आ गई. अनुप्रिया ने हिम्मत कर पूछ ही लिया, ‘‘आप मुझ से क्यों मिलना चाहती थीं?’’

गौतमी ने मुसकरा कर कप हाथ में उठा लिया, ‘‘चलिए, आप ने मुझ से यह सवाल तो पूछा. मैं तो इंतजार कर रही थी कि आप मेरा निरीक्षण कर चुकी हों तो आप से बातें करना शुरू करूं.’’ अनुप्रिया सकपका गई. गौतमी के भीतर तेज दिमाग के साथ आत्मविश्वास भी कूटकूट कर भरा था. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘देखिए, मेरे पास अधिक समय नहीं है. आप मुद्दे की बात कीजिए. आप ने मुझे यहां क्यों बुलाया है?’’

‘‘आप ने औफिस से छुट्टी ली हुई है और पराग 3 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हैं. जहां तक मेरी जानकारी है आजकल वे आप से मिलना तो दूर आप का फोन तक नहीं उठा रहे हैं. फिर आज आप के पास वक्त की कमी तो नहीं होनी चाहिए. खैर छोडि़ए, मैं सीधे मुद्दे पर ही आ जाती हूं. मैं आप को यह बताने आई हूं कि आप पराग के साथ सिर्फ अपना वक्त बरबाद कर रही हैं. वह मुझे छोड़ कर आप से शादी नहीं करेगा.’’ अनुप्रिया इसी बात की उम्मीद कर रही थी. उसे पता था कि गौतमी कुछ ऐसा ही कहेगी, इसलिए वह भी पूरी तैयारी के साथ आई थी. वह कम से कम इस औरत से तो हार नहीं मानने वाली थी. अत: उस ने चेहरे पर आत्मविश्वास लाते हुए कहा, ‘‘अच्छा…तो फिर वह आप के साथ शादीशुदा होते हुए भी मेरे साथ रिलेशनशिप में क्यों है?’’

‘‘क्योंकि वह एक कमजोर व बेवकूफ व्यक्ति है जो फिलहाल रास्ता भटक गया है, पर लौट कर अपने ही घर आएगा.’’ ‘‘आप का वह बेवकूफ आदमी दिन में 10 बार मुझे आई लव यू कहता है.’’ ‘‘तो क्या हुआ? पराग चौबीस घंटों में 48 बार मुझे व अपने बेटे सिद्धार्थ को आई लव यू कहता है.’’ ‘‘उस ने मुझ से वादा किया है कि वह जल्दी तुम्हें तलाक दे कर मुझ से शादी करेगा.’’

‘‘तुम्हारी और पराग की रिलेशनशिप को कितना वक्त हुआ है?’’ ‘‘करीब 2 साल.’’

‘‘तो फिर उस ने अब तक अपने खोखले वादे पूरे करने की दिशा में कदम क्यों नहीं बढ़ाया? मैं आज भी उस की पत्नी क्यों हूं?’’ ‘‘मैं जानती हूं कि तुम क्या कर रही हो…तुम मेरे और पराग के रिश्ते में दरार डालना चाहती हो. तुम चाहती हो कि पराग मुझे छोड़ कर वापस तुम्हारे पास आ जाए,’’ अनुप्रिया ने गौतमी को घूरते हुए कहा.

‘‘पराग मुझे छोड़ कर तुम्हारे पास गया ही कब था जो मुझे उसे वापस बुलाना पड़े. वह तो आज भी मेरे साथ, मेरे पास ही है.’’ ‘‘तो मैं इस मुलाकात का क्या मतलब समझूं कि मेरे सामने एक बेबस पत्नी बैठी है, जो मुझ से अपने पति को वापस पाने की मिन्नतें कर रही है?’’

‘‘और मेरे सामने जिंदगी से हारी हुई औरत बैठी है जो इतनी हताश हो चुकी है कि किसी और के पति को उस से छीन कर दूसरी औरत कहलाने के लिए भी तैयार है.’’ अनुप्रिया भड़क उठी, ‘‘तुम आखिर चाहती क्या हो? तुम ने मुझे यहां मेरी बेइज्जती करने के लिए बुलाया है?’’

‘‘तुम बताओ, तुम मेरे बुलाने पर यहां क्यों आई हो? क्या तुम मेरे हाथों बेइज्जत होना चाहती हो?’’ गौतमी ने मुसकराते हुए कहा. अनुप्रिया खौल उठी. फिर भी उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘मैं यहां तुम से यह पूछने आई हूं कि तुम पराग को तलाक देने के लिए तैयार हो या नहीं?’’

‘‘पराग ने मुझ से तलाक मांगा ही कब?’’ ‘‘नहीं मांगा तो अब मांग लेगा. हम दोनों जल्दी शादी करने वाले हैं.’’

‘‘सपने देखना बहुत अच्छी बात है अनुप्रिया. पर इतना याद रखना कि सपनों के टूटने पर कई बार तकलीफ भी बहुत होती है.’’ ‘‘किस के सपने टूटेंगे यह तो वक्त बताएगा,’’ अनुप्रिया ने गौतमी को घमंडभरी नजरों से देखते हुए कहा.

गौतमी अब भी शांत थी. उस के चेहरे पर शिकन का नामोनिशान नहीं था. उस ने अनुप्रिया की ओर देख कर पूछा, ‘‘अगर तुम्हें एतराज न हो तो क्या मैं तुम से एक सवाल पूछ सकती हूं?’’ अनुप्रिया के स्वीकृति देने पर उस ने प्रश्न किया, ‘‘तुम तलाकशुदा हो न?’’

‘‘मेरी निजी जिंदगी से जुड़े सवाल पूछने का तुम्हें कोई हक नहीं है गौतमी,’’ अनुप्रिया ने गुस्से में कहा. ‘‘मुझे पूरा हक है अनुप्रिया. तुम ने मेरी निजी जिंदगी में दखल दे कर मेरे पति को मुझ से छीनने की ठान रखी है. फिर मैं तो सिर्फ सवाल ही पूछ रही हूं.’’

अनुप्रिया के पास गौतमी के इस तर्क की कोई काट नहीं थी. उस ने मन मार कर उत्तर दिया, ‘‘हां.’’ ‘‘तुम्हारा तलाक क्यों हुआ?’’

‘‘इस बात का मेरे और पराग के रिश्ते से कोई संबंध नहीं है.’’ ‘‘प्लीज अनुप्रिया…कुछ देर के लिए कड़वाहट भुला कर मेरे प्रश्नों के उत्तर दो. संबंध का पता तुम्हें खुद ही चल जाएगा. बदले में तुम जो चाहो मुझ से पूछ सकती हो.’’

अनुप्रिया गौतमी के सवालों के जवाब नहीं देना चाहती थी. उसे महसूस हो रहा था कि उस ने यहां आ कर गलती कर दी. पर अब यहां आ ही गई थी तो करती भी क्या? अगर वह चाहती तो यहां से उठ कर जा सकती थी, पर ऐसा कर के वह गौतमी के सामने खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी. इसलिए उस ने अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताना शुरू किया, ‘‘मेरे पति तरुण का किसी निदा नाम की लड़की के साथ अफेयर था. जब मुझे पता चला तो मैं ने उन से तलाक लेने का फैसला कर लिया.’’ ‘‘उफ, तुम्हारी शादी कितने समय तक चली थी?’’ ‘‘लगभग डेढ़ साल. 2 साल पहले तलाक के बाद मैं दिल्ली आ गई थी.’’

‘‘दिल्ली आने के बाद तुम पराग से मिलीं और तुम दोनों का अफेयर शुरू हो गया,’’ गौतमी बोली.

‘‘हां…’’ ‘‘क्या तुम्हें शुरू से पता था कि पराग शादीशुदा हैं और उन का 1 बेटा भी है?’’

‘‘हां, मैं ने उन के दफ्तर में आप तीनों की तसवीर देखी थी.’’ गौतमी कुछ क्षण चुप रही. फिर अनुप्रिया की ओर गंभीरता से देख कर पूछा, ‘‘क्या तुम ने कभी तरुण को वापस पाने की कोशिश

नहीं की? उसे इतनी आसानी से तलाक क्यों दे दिया?’’ अनुप्रिया समझ रही थी कि गौतमी उसे अपनी बातों के जाल में फंसाना चाह रही है, पर उस ने यह सवाल पूछ कर अनुप्रिया को अपनी बात ऊपर रखने का बहुत अच्छा मौका दे दिया. उस ने बिना वक्त गंवाए उत्तर दिया, ‘‘नहीं, क्योंकि ऐसे आदमी के साथ रहने का कोई फायदा नहीं है जो किसी और से प्यार करता हो. इसलिए मैं ने उसे तलाक दे दिया. तुम्हें भी पराग को तलाक दे कर आजाद कर देना चाहिए.’’

‘‘स्मार्ट मूव,’’ गौतमी ने हंसते हुए कहा, ‘‘पर तुम में और मुझ में बहुत फर्क है. मैं पीठ दिखा या मैदान छोड़ भागने वालों में से नहीं हूं.’’ ‘इस औरत पर तो किसी बात का कोई असर ही नहीं हो रहा है. पता नहीं किस मिट्टी की बनी है,’ सोच कर अनुप्रिया मन ही मन खीज उठी. फिर तलखीभरे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारे सवालों के जवाब दे दिए. अब सवाल पूछने की बारी मेरी है.’’

‘‘ठीक है, पूछो.’’ अनुप्रिया ने गौतमी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हारा पति मेरे साथ रिलेशनशिप में है, यह जानते हुए भी तुम यहां बैठ कर मेरे साथ कौफी पी रही हो. ऐसा क्यों?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब तो मैं ने यहां आते ही दे दिया था. मैं तुम्हें यह बताने आई हूं कि पराग तुम से शादी नहीं करेगा.’’ ‘‘और मैं भी तुम्हें बता चुकी हूं कि पराग तुम से नहीं मुझ से प्यार करता है. वह बहुत जल्दी मुझ से शादी करेगा.’’

‘‘अगला सवाल,’’ गौतमी ने कौफी का घूंट भरते हुए पूछा.’’ ‘‘क्या तुम्हें मुझ से डर नहीं लगता है?’’ अनुप्रिया को लगा कि अब मुसकराने की बारी उस की है.

‘‘बिलकुल नहीं. डरता वह है जो गलत होता है. तुम अपने पति से धोखा खा कर तलाक ले चुकी हो और अब खुद दूसरी औरत बन कर पराग की जिंदगी में पड़ी हो. अब तुम्हें दूसरी बार भी धोखा ही मिलने वाला है, डरना तो तुम्हें चाहिए अनुप्रिया.’’ अनुप्रिया के चेहरे से मुसकान के साथ रंग भी उड़ गया. वह दांत पीसते हुए बोली, ‘‘हाऊ डेयर यू?’’

गौतमी ने सीधे बैठते हुए कहा, ‘‘बस इतनी बात पर तुम्हें गुस्सा आ गया? मैं तुम पर कटाक्ष नहीं कर रही हूं, बल्कि तुम्हें सच का आईना दिखा रही हूं और सच तो सब को मीठा नहीं लगता है न?’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हारी बातों से डर जाऊंगी?’’ अनुप्रिया ने आंखें तरेरी.

गौतमी ने हौले हंस कर कहा, ‘‘तुम्हें डराने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है. यह तुम भी जानती हो कि तुम ने मेरे साथ बहुत गलत किया है पर क्या मैं ने अभी तक तुम से बदला लेने के लिए कुछ भी किया है? तुम पर चीखीचिल्लाई या इलजाम लगाए? अगर मैं ऐसा कुछ भी करूं तो तुम्हें भी पता है कि कितने लोग तुम्हें गलत कहेंगे और कितने मुझे सही कहेंगे.’’ अनुप्रिया चुप हो गई तो गौतमी ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं जब से यहां आई हूं तुम ने बस एक ही रट लगा रखी है कि पराग तुम से शादी करेगा पर कब करेगा क्या तुम बस मुझे इतना बता सकती हो?’’

‘‘जल्द ही…’’ ‘‘जल्द ही कब अनुप्रिया? अगर पराग मुझे तलाक ही नहीं देगा तो तुम से शादी कैसे करेगा? कभी तुम ने यह सोचा है?’’

अनुप्रिया कुछ कहती उस से पहले ही गौतमी फिर बोल पड़ी, ‘‘पराग ने तुम से यही कहा होगा न कि वह मेरे साथ खुश नहीं है. मैं ने उस की जिंदगी नर्क बना रखी है और वह बस अपने बेटे की खातिर मुझे बरदाश्त कर रहा है?’’ ‘‘आप को यह सब कैसे पता है?’’ अनुप्रिया ने हैरानी प्रकट की.

‘‘तुम दिखने में तो समझदार लगती हो. जिंदगी में इतना कुछ देख चुकी हो. फिर इतना भी नहीं जानतीं कि पराग जैसे आदमी इसी तरह की बातों से पहले तुम जैसी लड़कियों की हमदर्दी और फिर प्यार हासिल करते हैं.

आगे पढ़ें- जब मैं तुम्हें फेसबुक पर ढूंढ़ कर तुम्हारे…

अब यह मत कहना कि तुम नहीं जानती थीं कि पराग तुम से झूठ बोल रहा है. जब मैं तुम्हें फेसबुक पर ढूंढ़ कर तुम्हारे बारे में सबकुछ पता कर सकती हूं, तुम से संपर्क कर सकती हूं तो क्या तुम ने वहां कभी हमारे फोटो नहीं देखे होंगे. अभी कुछ हफ्ते पहले ही हमारी शादी की सालगिरह थी. तुम ने तसवीरों में देखा भी होगा कि हम साथ में कितने खुश थे. क्या तुम ने इस बारे में पराग से कोई सवाल नहीं किया?’’

‘‘पराग ने कहा था कि तुम ने उसे बिना बताए पार्टी का आयोजन किया था. उसे मजबूरी में शामिल होना पड़ा.’’ ‘‘अच्छा… तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि पराग ने खुद मेरे लिए सरप्राइज पार्टी रखी थी. अगर तुम अपनी आंखों से प्यार की पट्टी हटा कर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए उन तसवीरों को ध्यान से देखोगी तो शायद तुम्हें सच नजर भी आ जाए और यह केवल उन तसवीरों की बात नहीं है. क्या तुम ने खुद कभी यह महसूस किया कि पराग सच में मुझे तलाक देना चाहता है? उस ने तुम से वादे तो बहुत किए पर क्या कभी कोई वादा पूरा भी किया? तुम उस की खातिर यहां मेरे सामने आ कर खड़ी हो पर पराग कहां है? क्या वह भी तुम्हारे लिए दुनिया का सामना करेगा? उस ने तुम्हें अपने दोस्तों या परिवार से मिलवाया? खुद तुम्हारे दोस्तों या परिवार से मिलने के लिए तैयार हुआ? ‘‘वक्त रहते संभल जाओ अनुप्रिया. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. पराग के वादों की तरह ही उस का प्यार भी खोखला है.’’

अनुप्रिया के हाथपांव सुन्न पड़ने लगे. गौतमी की कही 1-1 बात उस के दिल को छलनी करती जा रही थी. गौतमी की बातें कड़वी जरूर थीं, मगर कहीं न कहीं उन में सचाई भी थी. उस ने अपने दिमाग में 1-1 बात का विश्लेषण करना शुरू किया. आज तक जब भी उस ने पराग के परिवार से मिलने की बात की या उसे अपने मातापिता से मिलवाने की, पराग ने हर बार उसे कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया. जब भी वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ कहीं घूमनेफिरने जाता या किसी समारोह में शामिल होता और वह उस पर नाराज होती तो वह उसे अपनी मजबूरी का हवाला दे कर सारी बात गौतमी पर डाल देता. तसवीरों को ले कर भी उस ने हजार झूठ बोले थे जिन्हें उस ने पकड़ भी लिया था पर अपने रिश्ते में शांति बनाए रखने की खातिर चुप रही. उन की मुलाकातें भी तो दुनिया की नजरों से छिप कर अनुप्रिया के घर पर होती थीं. औफिस में बाकी स्टाफ का तो समझ सकती थी, पर पराग तो अपने दोस्तों के सामने भी उस से इस तरह व्यवहार करता था जैसे एक सीनियर अपने जूनियर से करता है.

वह जब भी उस से शादी की बात करती वह एक नया बहाना बना कर बात टाल देता. उस ने पराग को अपना सबकुछ मान लिया था पर वह पराग के लिए क्या थी? गौतमी सही ही तो कह रही है कि इस रिश्ते में पराग ने उसे खोखले वादों के अलावा और कुछ नहीं दिया. और अब वह कुछ दिनों से उस से कटाकटा सा भी रहने लगा है. न उस से मिलने उस के घर आता है और न ही फोन करता. वह उसे फोन कर के नाराजगी जताती तो काम या सिरदर्द का बहाना बना देता. उसे तो यह बात भी एक सहकर्मी से पता चली थी कि वह 3 दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहा है. सारी बातें इसी ओर इशारा कर रही थीं कि पराग उस से दूर भाग रहा है. अपने मन के भीतर किसी छोटे से कोने में अनुप्रिया को भी इस बात का एहसास है. पहले तरुण ने उस की जिंदगी बरबाद की और अब पराग ऐसा करने चला था.

अनुप्रिया की चुप्पी देख कर गौतमी ने आगे कहा, ‘‘तुम यह मत सोचना कि मैं सारा इलजाम तुम पर लगा रही हूं. ऐसा बिलकुल नहीं है. जो भी हुआ उस में तुम से कहीं अधिक दोष पराग का है. जिस वक्त तुम दिल्ली आईं, तुम बेहद संवेदनशील थीं. ऐसे में पराग ने तुम्हारी कमजोरी का फायदा उठाया, जिसे तुम उस का प्यार समझ बैठीं. तुम्हें गहरा आघात लगा था, तुम अवसादग्रस्त थीं पर पराग तो बिलकुल ठीक था न. वह अपने स्वार्थ की पूर्ति करता रहा. वह दोहरी जिंदगी जीता रहा, एक मेरे और सिद्घार्थ के साथ और दूसरी दुनिया से छिप कर तुम्हारे साथ. वह तुम से झूठ बोल कर तुम्हारा फायदा उठाता रहा और तुम इसे उस का प्यार समझती रही.’’

गौतमी की बातें सुन कर अनुप्रिया की आंखें भर आईं. उस ने डबडबाई आंखों से गौतमी की ओर देख कर सवाल किया, ‘‘आप ने पराग से इस बारे में बात की होगी. उस ने क्या कहा?’’

‘‘जब मुझे तुम्हारे और पराग के बारे में पता चला और मैं ने उस से इस बारे में सवाल किया तो उस ने कहा कि तुम उस के पीछे पड़ी थीं. वह तुम्हारी बातों में आ कर बहक गया था. उस ने मुझ से बारबार माफी मांगी और सिद्धार्थ का वास्ता दे कर कहा कि वह अब तुम से कभी नहीं मिलेगा. उस ने ट्रांसफर के लिए अर्जी भी दे दी है.’’ यह सुन कर अनुप्रिया की आंखों से आंसू बह निकले. वह पराग जिस ने कई हफ्तों तक उस का पीछा किया. उसे अपने प्यार का एहसास दिलाने के लिए इतने जतन किए. अपनी खराब व तनावपूर्ण शादीशुदा जिंदगी का हवाला दे कर उस के दिल में अपने लिए हमदर्दी जगाई. जो कभी उस के लिए दुनिया से लड़ जाने की बातें किया करता था आज पकड़े जाने पर कितनी आसानी से सारा दोष उस के सिर मढ़ कर खुद बच निकल जाना चाहता है. उस ने सिर झुका कर रुंधे स्वर में कहा, ‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं आप से क्या कहूं. मैं आप से किस तरह माफी मांगू? सब कुछ आईने की तरह साफ था, फिर भी मैं जानबूझ कर अनजान बनी रही. मैं ने आप के साथ बहुत गलत किया.’’

‘‘गलत तो हम दोनों के साथ हुआ है अनुप्रिया. यदि मैं केवल तुम्हें दोषी मानती तो आज यहां बैठ कर तुम से बातें नहीं कर रही होती. सच पूछो तो मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. पराग ने हम दोनों को धोखा दिया है और रही बात माफी की तो मैं यहां तुम्हारी माफी की उम्मीद में नहीं आई थी.

मेरा मकसद केवल तुम्हें सच से रूबरू कराना था.’’ गौतमी की कही बात ने अनुप्रिया के दिल को और भी अधिक छलनी कर के उसे आत्मग्लानि के बोझ तले दबा दिया. उसे यह सोच कर शर्म आ रही थी कि वह इस भली औरत का घर तोड़ने चली थी और यह औरत उस पर दोषारोपण करने के बजाय यहां बैठ कर उस से सहानुभूति प्रकट कर रही है. साथ ही साथ उसे अपनेआप पर भी तरस आ रहा था. उस में अब फिर से एकबार खुद को समेटने की ताकत बाकी नहीं थी.

गौतमी ने उस की हालत देख कर उसे दिलासा देने की कोशिश की, ‘‘अनुप्रिया, तुम हिम्मत मत हारो. उस वक्त तुम जैसी मानसिक स्थिति में थीं, ऐसे पराग तो क्या उस के जैसा कोई भी विकृत मानसिकता का पुरुष तुम्हारा फायदा उठा सकता था. मैं यह नहीं कह रही हूं कि जो कुछ हुआ उस में तुम्हारा कोई दोष नहीं है. गलती तुम से भी हुई है. तुम्हें एक बार धोखा खाने के बाद भी इस तरह बिना कुछ सोचेसमझे और आंख मूंद कर पराग पर विश्वास नहीं करना चाहिए था. पर अब उस गलती पर पछता कर या पराग के लिए रो कर अपने वक्त और आंसू बरबाद मत करो, बल्कि इस गलती से सबक ले कर जिंदगी में आगे बढ़ो.’’ ‘‘मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है गौतमी…’’

‘‘ऐसा न कहो अनुप्रिया. तुम्हें अपनी जिंदगी में पराग जैसे आदमी की जरूरत नहीं है. अपना स्तर इतना नीचे मत गिरने दो. तुम सुंदर हो, पढ़ीलिखी व स्मार्ट हो. अपना सहारा खुद बनना सीखो. आजकल तलाकशुदा होना या दूसरी शादी करना कोई बुरी बात नहीं है. खुद को थोड़ा वक्त दो और यकीन करो कि तुम्हारी जिंदगी में भी कोई न कोई जरूर आएगा, जो तुम्हारे और अपने रिश्ते को नाम देगा, तुम्हें पत्नी होने का सम्मान देगा,’’ गौतमी ने अनुप्रिया को धैर्य बंधाते हुए कहा.

गौतमी की बात सुन कर अनुप्रिया न चाहते हुए भी मुसकरा उठी और फिर अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैं कितना कुछ सोच कर यहां आई थी. मैं आप को अपने रास्ते से हटाना चाहती थी और आप ने मुझे ही सही रास्ता दिखा दिया. आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं. अगर आप को एतराज न हो तो क्या मैं आप को दीदी कह सकती हूं?’’ गौतमी के मुसकरा कर सहमति देने पर उस ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो दीदी. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं भी आप के साथ वही करने जा रही थी जो कभी निदा ने मेरे साथ किया था.’’

गौतमी ने आगे बढ़ कर अनुप्रिया के जुड़े हाथों को थाम कर कहा, ‘‘तुम्हें माफी मांगने की जरूरत नहीं है अनुप्रिया. बस जो मैं ने कहा है उस पर विचार करना. सिर उठा कर अपने जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना.’’ ‘‘मैं वादा करती हूं कि आज के बाद मेरी जिंदगी में पराग या उस के जैसे किसी भी आदमी के लिए कोई जगह नहीं होगी. मैं आगरा वापस चली जाऊंगी. अपने मम्मीपापा के पास रह कर कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी.’’

आज अनुप्रिया खुद को बेहद हलका महसूस कर रही थी. ऐसा लग रहा था मानो सीने से कोई बोझ उतर गया हो. वह भले ही अपने मुंह से खुद को सही कहती आई हो पर उस के मन में बैठा चोर तो यह जानता था कि वह गलत कर रही है और अब वह दुनिया से अपराधी की तरह छिप कर नहीं, इसी तरह खुल कर जीना चाहती थी. गौतमी के शब्दों ने उस के भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर दिया था. उस ने गौतमी से आग्रह कर के फिर कौफी का और्डर किया और इधरउधर की बातें करने लगीं. कौफी पीते हुए अनुप्रिया गौतमी को देख कर यह सोच रही थी कि यदि 2 वर्ष पहले वह भी इसी तरह हिम्मत जुटा कर तरुण और निदा के सामने दीवार बन कर खड़ी हो गई होती तो आज शायद उस की स्थिति कुछ और ही होती. उस की आंखों में शर्म व ग्लानि के बजाय स्वाभिमान व जीत की चमक होती. वह अपनी शादी को बचा पाती या नहीं यह तो वक्त ही बताता पर कम से कम मन में यह संतोष तो होता कि उस ने अपने रिश्ते को बचाने का पूरा प्रयास किया और आज वह इतनी बड़ी गलती कर के गौतमी के सामने शर्मिंदा होने से बच जाती. काश, उस का दिल व सोच का दायरा गौतमी की तरह बड़ा होता. आज गौतमी के साथ पी कौफी ने जिंदगी व रिश्तों के प्रति उस की सोच ही बदल कर रख दी थी. ‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं. सिद्धार्थ को मांजी के पास छोड़ कर आई हूं. उस ने परेशान कर रखा होगा,’’ कहते हुए गौतमी उठ खड़ी हुई.

गौतमी जाने के लिए मुड़ी ही थी कि अनुप्रिया ने उसे रोका, ‘‘गौतमी दीदी.’’ गौतमी के पलट कर देखने पर उस ने वह प्रश्न पूछ लिया जो उसे बेचैन कर रहा था, ‘‘आप ने पराग को इतनी आसानी से कैसे माफ कर दिया? सिद्धार्थ के लिए?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा कि मैं ने पराग को माफ कर दिया है?’’ ‘‘पर आप ने मुझे तो माफ कर दिया है, फिर पराग को क्यों नहीं?’’

‘‘तुम्हारी बात अलग है अनुप्रिया. तुम दोषी के साथ पीडि़ता भी थीं. धोखा तो तुम ने भी खाया है, इसलिए मैं ने तुम्हें माफ कर दिया. तुम मेरी कुछ नहीं लगती थीं पर पराग तो मेरा अपना था न. उस ने जानबूझ कर मुझे धोखा दिया. यदि मैं ने उसे रंगे हाथों नहीं पकड़ा होता तो वह आज भी मुझ से छिप कर तुम से मिल रहा होता.’’ ‘‘पर अब तो वह अपना ट्रांसफर करा रहा है…मेरा यकीन मानिए, अब हम दोनों कभी नहीं मिलेंगे. क्या अब भी आप उसे माफ नहीं करेंगी?’’

गौतमी ने अनुप्रिया की ओर डबडबाई आंखों से देख कर कहा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम पराग की पहली और आखिरी गलती हो? तुम से पहले भी वह ऐसी गलती और पश्चाताप कर चुका है. उस ने मुझ से माफी केवल इसलिए मांगी है, क्योंकि वह पकड़ा गया है और रही बात ट्रांसफर की तो वह भी उस का नाटक ही है. उसे सुधरना होता तो पहली बार गलती पकड़े जाने पर ही सुधर गया होता. पराग जैसे फरेबी आदमी अपने मुखौटे बदल सकते हैं, फितरत नहीं. आज मैं उसे फिर माफ कर दूंगी तो वह एक बार फिर से यही सब करेगा और पकड़े जाने पर मुझ से माफी मांग लेगा. इस तरह तो यह सिलसिला यों ही चलता रहेगा. मेरा स्वाभिमान मुझे अब पराग को माफ करने की इजाजत नहीं देता है.’’

जिस गौतमी की आंखों में अनुप्रिया ने अब तक केवल आत्मविश्वास व हिम्मत को देखा था, उन में इतना दर्द समाया होगा उस ने यह कल्पना नहीं की थी. उस ने गौतमी की तकलीफ को अपने भीतर महसूस करते हुए पूछा, ‘‘पर दीदी, ट्रांसफर… आप यहां अकेली सिद्धार्थ को कैसे संभालेंगी?’’

‘‘पराग कोई दूध पीता बच्चा नहीं, जो अकेला किसी और शहर में नहीं रह पाएगा. उसे यहां रहते हुए भी अपनी बीवी और बच्चे की जरूरत कहां थी. जहां जाएगा वहां एक और अनुप्रिया या निदा ढूंढ़ ही लेगा. मुझे और सिद्धार्थ को पराग की जरूरत नहीं है. मैं पहले भी सिद्धार्थ को अकेली ही पाल रही थी, आगे भी पाल लूंगी. ‘‘पढ़ीलिखी हूं, बेहतर ढंग से अपनी और सिद्धार्थ की जिंदगी को संवार कर उसे एक अच्छा भविष्य दे सकती हूं. आज तक मैं ने पराग को और अपने रिश्ते को बदले में कुछ चाहे बिना अपना सबकुछ दिया है, पर अब मेरे पास उसे देने के लिए कुछ नहीं है, माफी भी नहीं,’’ कह कर गौतमी तेज कदमों से चलती हुई कैफे से बाहर निकल गई और पीछे रह गई अनुप्रिया जो अब भी कभी कैफे के दरवाजे को तो कभी मेज पर पड़े कौफी के कप को देख रही थी.

Hindi Drama 2025 : बुढ़ापे में बच्चों के साथ रिश्ते की कहानी

Hindi Drama 2025 : सुनयना का निधन 3 महीने पहले ही तो हुआ था. पत्नी का यूं अचानक चले जाना मेरे लिए बहुत घातक था. इस सदमे ने मेरे वजूद को तोड़ कर रख दिया था. मैं, मैं नहीं रहा था. मेरी स्थिति उस खंडहर मकान जैसी हो गई थी जो नींव से तो जुड़ा था पर मकान कहलाने लायक नहीं था. इन 3 महीनों में ही परिवार पर से मेरा दबदबा लगभग खत्म हो चला था. बहू स्नेहा, जो कभी मेरे पैरों की आहट से डरती और बचती फिरती थी, अब मुझ से जिरह करने लगी थी. बेटा प्रतीक मुझ से चेहरा उठा कर बात करने लगा था. दोनों पूरी तरह से गिरगिट की तरह रंग बदल चुके थे. आखिर क्यों? मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था.

वैसे तो घर में सभी तरह के काम करने के लिए नौकर हैं पर अब मैं होलटाइमर हूं. चौबीस घंटे वाला खिदमतगार. झाड़ूपोंछा करने वाली सुबह 9 बजे आती है और अपना काम कर के 10 बजे तक चली जाती है. उस के कुछ देर बाद ही चौकाबरतन करने वाली आती है और पौन घंटे में काम खत्म कर के चली जाती है. कपड़े धोने के लिए अलग नौकरानी है और कार चलाने के लिए एक ड्राइवर भी है, लेकिन दिन में तो  24 घंटे होते हैं और 24 तरह के काम भी. सुनयना की मृत्यु के बाद से वे सभी काम मैं, 65 साल का बूढ़ा, संभालता हूं.

मैं ने बदलते हालात से समझौता कर लिया है. मेरा मानना है कि समझौता शब्द बहुत गुणकारी है. आप की सारी उलझनों को पल भर में सुलझा देता है. आप की जिंदगी में बड़े से बड़ा तूफान आ जाए, मुलायम घास की तरह झुक कर उसे गुजर जाने देना ठीक है. अकड़ू पेड़ तो टूट कर गिर जाते हैं.

पत्नी के निधन के कुछ दिन बाद प्रतीक गुस्से से भरा मेरे पास चला आया था. आते ही एक प्रश्न जड़ा था, ‘रात आप ने खाना क्यों नहीं खाया?’

मैं ने सहज भाव से कहा था, ‘कल हमारी शादी की वर्षगांठ थी, बेटे. तेरी मां की याद आ गई. फिर खाने का मन ही नहीं हुआ. रात तो मैं सो भी नहीं पाया.’

जब उसे एहसास हुआ कि मेरे भूखे सो जाने का कारण किसी प्रकार की नाराजगी नहीं थी तो नाटकीय अफसोस जताते हुए वह बोला, ‘ओह, मुझे याद ही नहीं रहा, बाबा. दरअसल, जिंदगी इतनी मशीनी हो गई है कि न दिन के गुजरने का एहसास होता है और न ही रात के. काम, काम और सिर्फ काम. आराम के पल, इन काम के पलों के बीच कहां खो जाते हैं, पता ही नहीं चलता? ऐसे में कोई क्याक्या याद रखे?’

प्रतीक चला गया था. और मैं सोचने लगा कि आज रिश्ते कितने संकुचित हो चले हैं. इस पीढ़ी के लोग यह तो याद रखते हैं कि पति का बर्थडे कब है? पत्नी का कब? बच्चों का कब? अपनी मैरिज ऐनीवरसरी कब है? पर हमारी पीढ़ी के बारे में कुछ याद नहीं रहता. यह कैसी विडंबना है? एक हमारा समय था. हम मातापिता को बेहिसाब सम्मान देते थे.  जबकि यह पीढ़ी तो मांबाप को नौकरों की तरह समझने में भी नहीं हिचकिचाती, सेवा करना तो दूर की बात है.

इस पीढ़ी की एक और खास आदत है, मातापिता का किया भूलने की. आज प्रतीक यह भी भूल चुका है कि उस की पढ़ाई के लिए हम ने यह घर कभी गिरवी रखा था. अपना भविष्य भुला कर उस का वर्तमान संवारा था. पता नहीं, इस पीढ़ी को अपने काम के सामने रिश्ते भी क्यों छोटे लगने लगते हैं? घर वालों से भी बातें करते समय शब्दों में व्यावसायिकता की बू आती है. पक्के पेशेवर हो चुके हैं. हमारी शादी की वर्षगांठ भूल जाने का बड़ा ही अच्छा बहाना बनाया था उस ने.

सुनयना की मृत्यु से पहले तक घर में, मेरा दबदबा हमेशा बना रहा. न प्रतीक ने कभी मुझ से आंखें मिला कर बात की और न ही स्नेहा ने कभी ऐसा व्यवहार किया, जिस से कि हमें ठेस पहुंचे. जीवन में हम ने मातापिता से यही सीखा था कि घर तो सभी बना लेते हैं. आदर्श घर भी बनाए जा सकते हैं, पर घर को प्यार भरा घर बनाना असंभव नहीं तो दूभर जरूर होता है.

ऐसा घर रिश्तों में प्यार व स्नेह की भावना से बनता है. प्यार केवल जोड़ता है, तोड़ता नहीं. उन की इस नसीहत को मैं ने घर की नींव में डाला था. यही कारण है कि मैं यह प्रयास करता रहता ताकि रिश्तों में कड़वाहट कभी न आए.

एक दिन शरीर की टूटन के कारण मैं देर तक सोता रह गया तो स्नेहा ने मुझे कमरे में आ कर जगाया. तेज आवाज में बोली, ‘बाबा, आप ने तो हद कर दी है. सुबह 10 बजे उठने की आदत बना डाली है. दिनभर हमारे पीछे आप सोते रहते हैं. मुफ्त का खाना खाते हैं. इस आलीशान घर में रहते हैं. आप को न पानी का बिल भरना पड़ता है और न ही लाइट का. सर्दी में हीटर और गरमी में एसी जैसी सुविधाएं तो हम ने जुटा ही रखी हैं तो क्या हम आप से यह उम्मीद भी न करें कि आप सुबह समय से उठ जाएं और घर संभालें? हम औफिस जा रहे हैं. घर में नौकर काम कर रहे हैं. उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ा जा सकता. उठिए और घर का दरवाजा बंद कर लीजिए.’

स्नेहा मुझे नींद से झकझोर कर चली गई. मैं स्तब्ध था. सोच रहा था कि स्नेहा ने कितनी आसानी से मेरे एक दिन लेट उठने को, मेरी रोज की आदत में तबदील कर दिया था. शरीर की टूटन की परवा न करते हुए भी उठ कर दरवाजा बंद कर लिया था. कल प्रतीक ने भी ऐसा ही व्यवहार किया था. उस ने औफिस जाते समय मुझ से कहा था, ‘बाबा, आखिर इस तरह कब तक चलेगा? आप घर का जरा सा भी ध्यान नहीं रखते. घर से नौकर सामान चुराचुरा कर ले जाते हैं. रसोई से मसाले चोरी होते हैं. तेल, घी हर 15-20 दिन में खत्म हो जाते हैं. साबुन पता नहीं कहां जाते हैं. मेरा एक तौलिया और एक नीली शर्ट कितने दिनों से ढूंढ़े नहीं मिल रहे. स्नेहा की कई मैक्सियां और साडि़यां दिखाई नहीं देती हैं. घर में चोरियां न हों, आप को इस का खयाल तो रखना चाहिए. जरा इस तरफ भी अपना ध्यान लगाइए.’

मन ही मन मैं उबल कर रह गया. जी में आया कि मुंह पर कस कर एक थप्पड़ जड़ दूं. मुझे सिखाने चला है कि मैं क्या करूं, क्या न करूं? आज के बच्चे जब घर में भी प्रोफैशनल किस्म की बातें करते हैं तो मुझे गुस्सा कुछ ज्यादा ही आता है. चिढ़ होने लगती है. वैसे मैं समझ गया था कि उस ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया है? दिल्ली में विश्वासपात्र नौकर मिलना एक बड़ी समस्या है. बाहरी प्रदेशों से नौकरी की चाह लिए आए लोगों को बिना उन का आचरण और चरित्र जाने

24 घंटे घर में नहीं रखा जा सकता. पता नहीं वे कब कौन सा कांड कर बैठें या घर की बहुमूल्य संपत्ति ले कर चलते बनें. उन की इस जरूरत के लिए भला मुझ से अधिक लायक होलटाइमर नौकर और कौन हो सकता है?

बस, इसी क्षण मेरा मन घर से उचट गया. मुझे लगने लगा कि मेरी सल्तनत अब पूरी तरह से धराशायी हो गई है. परिवार में मेरी स्थिति शून्य हो गई है. घर में रोज बढ़ता तनाव मुझे पसंद नहीं था, इसलिए परेशानी मुझे अधिक थी. बेटाबहू मिल कर मुझ पर प्रहार किए जा रहे थे. परिवार में एकदूसरे को प्रतिदिन सहना यदि दूभर होने लगे तो घर टूटने की संभावनाएं बढ़ ही जाती हैं. घर टूटे, मुझे यह मंजूर नहीं था, क्योंकि मैं समझता था कि घर तोड़ना बहुत आसान है, उसे जोड़े रखना बहुत कठिन.

सोचा, कैसे हाथों से फिसलती रेत को रोकूं? अपनी परेशानियों को घर की चारदीवारी से बाहर जाने से बचाऊं? वह भी ऐसे समय में जब परिवार के किनारे टूटते हुए लग रहे हैं? रिश्तों में दरार साफसाफ दिखाई दे रही है. घर के झगड़े और रिश्तों में मनमुटाव के किस्से यदि बाहर जाने लगें, तब कोई क्या कर पाएगा? जगहंसाई होगी. उसे न प्रतीक रोक पाएगा, न स्नेहा और न मैं. कपड़ा जरा सा फटा हो तो उस में से थोड़ा ही दिखाई देता है, यदि पूरा का पूरा फट जाए तो कोई क्या छिपा पाएगा?

मन हुआ था कि शांति से जीने के लिए इस जलालतभरी जिंदगी से हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाऊं. घर बेच कर, इन्हें बेघर कर दूं और वृद्धाश्रम चला जाऊं. तब न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. इन रिश्तों के लिए मैं मर जाऊंगा. फिर स्नेहा किसे अपना क्रोध दिखाएगी? प्रतीक किस से यह कहेगा कि जरा इस तरफ भी अपना ध्यान लगाइए?

वृद्धाश्रम के हाल ही कौन से अच्छे होते हैं. वहां अजीब तरह की छीछालेदर होती है. संचालक से ले कर इनमेट तक आप को नोंचने लगते हैं. प्रश्न पर प्रश्न. क्या हुआ? बच्चों ने निकाल दिया? बच्चे मारतेपीटते थे? कोई बीमारी है? दवादारू नहीं करते थे? खाना नहीं देते थे? भैया, अगर कुछ पैसों का जुगाड़ हो सके तो यहां से खिसक लो. किराए का मकान लो और अपनी मरजी की जिंदगी जिओ.  आश्रम नाम के सेवाधाम होते हैं, किसी जेल से कम नहीं हैं वे. मैं तो इन बेतुके प्रश्नों का उत्तर देतेदेते ही मर जाऊंगा.

दूसरे पल ही मेरी इस सोच को मन नकार गया. मेरे निश्चय की दृढ़ता तोड़ने लगा. मन ने मुझे समझाया कि यदि मैं ने ऐसा कदम उठाया तो स्नेहरूपी घर को बनाए रखने के सपने का क्या होगा? मैं अपने पैर पर आप ही कुल्हाड़ी नहीं मार लूंगा? मन ने यह भी समझाया कि एक क्षण तो मैं झगड़ों और मनमुटाव की बातों को घर से बाहर न जाने देने की बात सोचता हूं, फिर दूसरे ही पल वृद्धाश्रम जाने की बात करता हूं. यह विरोधाभास क्यों? क्या मेरे रिश्ते इस तरह हमेशा के लिए नहीं टूट जाएंगे?

हमारी पीढ़ी के लोग कहेंगे कि कैसे मतलबी होते हैं आज के बच्चे? जिन्होंने जरा से खर्च के बोझ की खातिर बूढ़े बाप को घर से निकाल दिया. इस पीढ़ी के बच्चे सोचेंगे कि घर आखिर घर होता है. उस में हमेशा कूड़ा जमा किए रखने की कोई जगह नहीं होती. प्रतीक और स्नेहा ने ठीक ही किया. कम से कम अब बूढ़े से कोई अटक तो नहीं रहेगी, और न रहेगी हर वक्त की चखचख. दोनों अब अपने तरीके से जी तो सकेंगे.

दोपहर को मेरे सोने का समय होता है. तब तक घर के सभी काम खत्म हो जाते हैं. खाना बनाने वाली मेरे लिए खाना बना कर जा चुकी होती है. उस के जाने के बाद मैं तसल्ली से खाना खाता हूं और खा कर सो जाता हूं. शाम को काम का सिलसिला 5 बजे से शुरू होता है. उस से कुछ पहले उठ कर मैं चाय पीता हूं और नौकरों के आने का इंतजार करने लगता हूं.

पर आज मुझे नींद ही नहीं आई. लाख चाहा कि प्रतीक और स्नेहा के किए बरताव को भूल जाऊं. घर जिस तरह चल रहा है, चलने दूं. पर अपनों के दिए घाव कुछ इतने गहरे होते हैं कि कभी सूखते ही नहीं. सोचने लगा कि सुनयना की मृत्यु के बाद से ही, ऐसा क्या हो गया कि बच्चे इतना अकड़ने लगे हैं? अभद्र व्यवहार करने का दुस्साहस करने लगे हैं.

मैं सोचने लगा कि बढ़ती हुई उम्र के साथ मेरी मजबूरियां बढ़ गई हैं. मैं अशक्त हो गया हूं. हाथपैर अब साथ नहीं देते. बीमारियों ने शरीर पर अपना कब्जा कर लिया है. एक जाती है तो दूसरी आती है. कुछ तो पक्का घर बना बैठी हैं. यदि डाक्टरों की बात मानूं तो जिंदगी एकचौथाई ही बची है. दिमाग दगा दे चुका है. क्या सही है और क्या गलत, समझ में ही नहीं आता. मन और मस्तिष्क के बीच उठापटक चलती रहती है. पूंजी के नाम पर अब केवल यह मकान ही है. बाकी जो थी वह सुनयना की बीमारी में खत्म हो गई. जराजरा सी जरूरतों के लिए मुझे इन बच्चों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. शायद ये मजबूरियां ही इन की अकड़ और अभद्र व्यवहार का कारण हों? केवल मेरी ही नहीं, इन की भी तो मजबूरियां हैं. दिल्ली में मकान खरीदना आसान बात नहीं है. मकानों की कीमतें दिनदूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही हैं. इस उम्र में महंगे मकान खरीदने का पैसा इन के पास नहीं है. ये इसीलिए इस घर में टिके हुए हैं, वरना कभी का मुझे अकेला छोड़ कर चले गए होते.

दूसरी मजबूरी यह है कि इन्हें एक होलटाइमर नौकर नहीं मिल रहा है. निश्चित रूप से इन का यह व्यवहार इसी कारण है. मन ने कहा, ‘मैं मजबूर जरूर हूं, पर इतना लाचार भी नहीं कि अपने स्वाभिमान की चिता जला दूं. अब मैं किसी हालत में इन से समझौता नहीं करूंगा. मैं ने निश्चय कर लिया कि मकान बेच दूंगा और किराए के मकान में रह कर जिंदगी गुजार दूंगा.’

शाम को प्रतीक और स्नेहा के घर लौटने से पहले प्रौपर्टी ब्रोकर आ गया. मकान देख कर दूसरे दिन खरीदार लाने का वादा कर के चला गया. जब प्रतीक और स्नेहा घर लौटे तो रोजमर्रा की तरह मैं ने ही दरवाजा खोला. मैं उन से सख्त नाराज था. मैं ने उन की तरफ देखा भी नहीं. दरवाजा खोल कर अपने कमरे में चला गया. वे दोनों भी अपने कमरे में चले गए. सोते वक्त जी बहुत हलकाहलका लगा. तनाव भी कम हो गया था.

बडे़ सवेरे ब्रोकर खरीदार ले कर आ गया. उस समय प्रतीक और स्नेहा दोनों ही घर में थे. इस से पहले कि मैं ब्रोकर से कुछ बात कर पाऊं, प्रतीक ब्रोकर से बोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘ये सज्जन इस मकान को खरीदना चाहते हैं,’’ ब्रोकर ने अपने साथ आए खरीदार की ओर इशारा करते हुए कहा.

अब इस से पहले कि प्रतीक कुछ और पूछ पाए, मैं बोल उठा, ‘‘मैं यह मकान बेच रहा हूं.’’

‘‘आप मकान बेच रहे हैं, क्यों?’’ प्रतीक मेरे इस फैसले पर अचंभित दिखा.

‘‘मेरी मरजी.’’

‘‘यह मकान नहीं बिकेगा. यह मैं कह रहा हूं,’’ प्रतीक ने अब ब्रोकर की तरफ मुड़ कर कहा, ‘‘आप जाइए, प्लीज. बाबा ने यह फैसला जरा जल्दी में ले लिया है. अगर हम पक्का निर्णय ले सके तो मैं खुद आप को फोन कर के बुला लूंगा.’’

ब्रोकर और परचेजर दोनों लौट गए. मेरे क्रोध की सीमा टूटने वाली ही थी कि प्रतीक मुझ से बोला, ‘‘यह आप क्या करने जा रहे थे, बाबा? अपना प्यारा सा घर बेच रहे थे? आखिर क्यों?’’

‘‘ताकि मैं तुम लोगों के अत्याचार से छुटकारा पा सकूं. जीवन के जो आखिरी दिन बचे हैं, उन्हें चैन से जी सकूं. मुझे नौकर बना कर छोड़ दिया है तुम दोनों ने. बच्चे मुझे अपमानित करें, यह मैं कभी बरदाश्त नहीं कर सकता,’’ मैं आवेश में कांपने लगा था.

प्रतीक मुझे बांहों से थामते हुए बोला, ‘‘बाबा, मैं आप के आक्रोश का कारण समझ गया हूं. आप पहले बैठिए.’’

मुझे कुरसी पर बिठाने के बाद वह और स्नेहा फर्श पर मेरे समीप ही बैठ गए. प्रतीक ने मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘आप स्नेहा और मेरे व्यवहार से नाराज हैं, मैं समझ चुका हूं. हम भी पश्चात्ताप में जल रहे हैं, यह हमारा सच है. हम आप से इस व्यवहार के लिए क्षमा मांगना चाहते थे, पर आप के खौफ के कारण हम आप का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. हमारे ही व्यवहार के कारण यह घर बिखर जाएगा. बाबा, हम उन बच्चों में से नहीं हैं जो घर में अपने बुजुर्गों की अहमियत नहीं समझते. दरअसल, दिनभर की भागमभाग और काम की टैंशन हमें इतना चिड़चिड़ा कर देती है कि हम कभीकभी यह भूल जाते हैं कि हम किस से बातें कर रहे हैं और क्या बातें कर रहे हैं.’’

प्रतीक की इन बातों से मेरा क्रोध कुछ शांत हुआ. मैं ने प्रतीक और स्नेहा के चेहरों को पढ़ा. वास्तव में पश्चात्ताप उन के चेहरों पर डोल रहा था. संवेदनाओं के बादल उमड़घुमड़ रहे थे. किसी भी समय आंसुओं की बारिश संभव थी.

प्रतीक ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘बाबा, पहले तो आप यह समझ लीजिए कि आप हम पर बोझ नहीं हैं. आप मजबूर भी नहीं हैं और यह भी कि हम भविष्य में आप को अकेला छोड़ कर कहीं जाने वाले नहीं हैं. घर में आप का स्थान नौकरों का भी नहीं है. आप जरा मेरे साथ हमारे कमरे में चलिए. वहां मंदिर को देखिए और खुद तय कर लीजिए कि हमारे दिल में आप का स्थान कहां है? सोचिए, यदि घर में 3 प्राणी हों और उन में से 2 सुबह से रात तक घर से बाहर रहते हों तो पीछे से घर कौन संभालेगा? वही जो घर में रहता हो.’’

प्रतीक ने लंबी सांस ली. भर आई आंखों को अपने रूमाल से पोंछा. स्नेहा ने भी अपनी आंखें पोंछी. प्रतीक फिर बोल उठा, ‘‘होता यह है कि जीवन की मुख्यधारा से अलगथलग पड़ते बुजुर्ग अपनेआप को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. इंसीक्योरिटी की यह भावना उन में डर और शंकाओं को जन्म देती है. वे हर वक्त यही सोचते रहते हैं कि उन के इस बुरे वक्त में उन का सहारा कौन बनेगा? बच्चे उन की आंखों से दूर हो जाएं तो लगता है कि बच्चों को भी उन की परवा नहीं है. यह इंसिक्योरिटी की भावना फिर उन्हें सही सोचने ही नहीं देती.

‘‘हमारी पीढ़ी भी बाबा, बुजुर्गों के प्रति कुछ कम लापरवाह नहीं है. हम खुली जिंदगी जीना चाहते हैं. कोई रोकटोक और अनुशासन हमें पसंद नहीं. जब हम घर से बाहर होते हैं, खुले आकाश में आजाद पंछियों की तरह उड़ते हैं. जो जी चाहे करते हैं और जब घर में घुसते हैं तो हमारी आजादी के पंख कट जाते हैं. हम घर में फड़फड़ाते रहते हैं. बुजुर्गों का दबदबा, खौफ और घर का अनुशासन घुटन पैदा करने लगता है. तब हमारा भी मन करता है कि इस घुटनभरी जिंदगी से दूर भाग जाएं. ऐसे में दोनों पीढि़यों के बीच सामंजस्य नहीं बन पाता. दोनों पीढि़यां ही मानने लगती हैं कि घर में यदि सासबहू हैं, तो झगड़ा तो होगा ही. बुजुर्ग और युवा साथसाथ रहते हैं, तो टकराव तो होगा ही.’’

मैं प्रतीक को एकटक देखता ही चला गया. सोचने लगा, मेरा छोटा सा बच्चा इतना विद्वान कब हो गया, मुझे पता ही नहीं चल पाया. कितनी नजदीकी से इस ने जिंदगी को पढ़ा है. मुझे मेरे सोच गड़बड़ाते हुए लगने लगे. प्रतीत हुआ कि शायद मैं ही गलत था.

प्रतीक फिर बोल उठा, ‘‘बाबा, आप ने हमें सिखाया था कि घर तो सभी बना लेते हैं. आदर्श घर भी बनाए जा सकते हैं पर घर को प्यार भरा घर बनाना असंभव नहीं तो दूभर तो होता ही है. ऐसा घर रिश्तों में प्यार व स्नेह की भावना से बनता है. जो रिश्ता टूट जाए, समझ लो वहां प्यार था ही नहीं. बड़ा होतेहोते इस सीख का सही अर्थ मैं समझ गया हूं. यदि मैं गलत नहीं हूं तो घर सिर्फ ईंटगारे का बना होता है.

‘‘आदर्श घर वह होता है जहां रिश्ते एकदूसरे का आदर करते हैं. वहां ससुर ससुर होते हैं, सास सास और बहू बहू. उन में आदर तो होता है, प्यार नहीं. और घर वही मधुवन बन पाता है जहां रिश्तों में प्यार होता है. वहां न ससुर होते हैं, न सास और न बहू. तीनों के बीच आदर से अधिक एकदूसरे के लिए प्यार होता है.’’

उस ने मुझे देखा, शायद मेरे चेहरे पर उभरे भावों को पढ़ने के लिए. फिर बोला, ‘‘बाबा, हम इस घर को केवल आदर्श घर ही बना सके, महकतागमकता उपवन नहीं. यह घर आज तक आप के खौफ में जिया है. हम डरतेडरते जीते रहे हैं. रिश्तों में प्यार था कहां? सिर्फ खौफ था. घर में घुसने की इच्छा नहीं होती थी. लगता था कि हम जेल में घुस रहे हैं. आज भी हमारे संबंधों में वह खुलापन है कहां? हम जो खुली जिंदगी जीना चाहते हैं, वह है कहां?’’

‘‘बस बेटे, बस…’’ मैं ने उठ कर दोनों बच्चों को गले लगा लिया और कहा, ‘‘घर में गलत मैं ही था. जो सीख मैं तुम लोगों को देता रहा, मैं ने खुद उस पर अमल नहीं किया. अभी इसी वक्त मैं ने अपने खौफ का गला घोंट दिया है. अब हम तीनों आपस में मित्र हैं. ससुर, बेटा या बहू नहीं.’’

दोनों बच्चे मुझ से लिपटलिपट कर रोने लगे. मेरी आंखें भी बिना बहे न रह पाईं. अब मैं ने अपना कमरा, जो घर के मुख्यद्वार के पास था, उन्हें दे कर खुद को घर के पिछवाड़े में शिफ्ट कर लिया है ताकि बच्चे अपनी खुली जिंदगी जी सकें. मुख्यद्वार पर लगी अपनी नेमप्लेट हटा कर प्रतीक के नाम की लगवा दी है. अब हम तीनों जब साथ बैठते हैं तो हंसीठट्ठे ही सुनाई देते हैं.

अब घर से बाहर जो भी बुजुर्ग या युवा मुझ से मिलते हैं, मैं सभी से

कहता हूं कि यदि घर को घर बनाए रखना है तो बुजुर्ग अपना रौबदाब

छोड़ें, बच्चों को खुली जिंदगी दें और बच्चे अपने बुजुर्गों को कूड़ा न समझें, उन का खयाल रखें. विचारों का यह तालमेल घर में प्यार ही प्यार भर देगा. वह प्यार जो सब को आपस में जोड़ता है, एकदूसरे से तोड़ता नहीं.

– सतीश सक्सेना

Latest Funny Story : मार गई यह महंगाई

Latest Funny Story : ‘‘अमांयार क्यों मुंह लटकाए बैठे हो?  जाओ ऐश करो, तुम्हारी दिलरुबा जल्द ही तुम्हारी बेगम बनने जा रही. क्या तकदीर लिखवा कर लाए हो ऊपर वाले से,’’ रमेश जब भी चुहल करता तो लखनवी अंदाज में बात शुरू कर देता.

विजय उदास स्वर में बोला, ‘‘अभी तेरी शादी फिक्स नहीं हुई है न इसीलिए तू मेरा दर्द नहीं सम झ सकता.’’

‘‘क्या मतलब? मैं सचमुच कुछ नहीं सम झा. हम ने तो यही सुना था मियां, प्रेम विवाह फिक्स करने में लोगों के पसीने छूट जाते हैं. मगर तुम्हारी तो महीनेभर बाद ही सगाई और अगले 6 महीने बाद शादी है…’’

तभी विजय के मोबाइल पर मैसेज उभरा ‘फ्री हो?’ विजय अपनी बातचीत को अधूरा छोड़ कर उठ खड़ा हुआ.

विजय और रश्मि दोनों ही कालेज से एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं, यह बात सभी सहपाठियों ने बीटैक प्रथम वर्ष में ही नोटिस कर ली थी, जिस का इन दोनों ने भी कभी छिपाने का प्रयास नहीं किया. हालांकि विजय ब्राह्मण परिवार से और रश्मि वैश्य परिवार से थी. फेयरवैल पार्टी के दिन तो सहपाठियों ने नाटकीय शादी भी करवा दी थी, जिस का इन दोनों ने कोई विरोध भी नहीं किया था. तब ये सोच रहे थे कि असल विवाह तो हो न पाएगा नकली ही सही. मगर समय ने दोनों को वापस एक ही कंपनी के औफिस में ला कर खड़ा कर दिया. एकसाथ एक ही समय में समान प्रोजैक्ट में काम कर रहे थे. सोई भावनाओं ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया. काफी सोचविचार कर दोनों ने यह निर्णय लिया कि घर वालों से इस विषय में चर्चा कर राय ले ली जाए, फिर आगे की सोचेंगे.

विजय ने अपने घर वालों को रश्मि की पोस्ट और सैलरी पैकेज पहले बताया, फिर उस की कास्ट बताई. यह युक्ति काम कर गई. रश्मि का पैकेज उस से ज्यादा है.

सब से पहले विजय के पिताजी ही बोले, ‘‘देखो बेटा, आजकल जातिपांति से बढ़ कर महंगाई हो गई है. यह अच्छा है कि रश्मि का वेतन ठीकठाक है. बैंगलुरु जैसे महंगे शहर में तुम अच्छी तरह गुजारा करो, इस के लिए यह बहुत जरूरी है कि दोनों मिल कर कमाओ. मगर तुम्हारा प्रेम विवाह है. हम दहेज के लिए मुंह भी नहीं खोल सकते. इसलिए हम ने सोचविचार कर यह फैसला लिया है कि तुम दोनों अपनी शादी का खर्चा खुद उठाओ. हम ने तो यही सोचा था कि तिलक में क्व15-20 लाख कैश ले कर शादी निबटा देंगे. अब जैसी तुम लोगों की मरजी हो करो. हम भी शामिल हो जाएंगे.’’

उधर रश्मि की मां ने भी तुरंत फैसला सुना दिया, ‘‘देख रश्मि जातिपांति से बाहर तेरी शादी तो कर दें, मगर तेरी छोटी बहनों की शादी के समय यही लोग ज्यादा दहेज मांगने लगेंगे. इसीलिए तू अपनी शादी का खर्च खुद उठा ले… 3-4 साल की सेविंग तेरे पास ही है. हम ने तो कभी कुछ नहीं लिया तुम से.’’

फिर फोन रख कर रश्मि के पिताजी से कहने लगीं, ‘‘अजी लव मैरिज का फायदा ही क्या जब दहेज ही देना पड़े… मैं ने साफ मना कर दिया है… अपनी मरजी की शादी करनी है तो खुद खर्चा उठाओ. पढ़ीलिखी, कमाऊ बिटिया को अपनी जातिपांति से बाहर जा कर दे रहे हैं… सारी लानतें तो हमें ही सुननी पड़ेंगी, फिर अपना खजाना भी खाली करें? यह हम से न होगा.’’

रश्मि के पिताजी भी हां में हां मिला कर बोले, ‘‘जिस तरह से दिनोंदिन महंगाई बढ़ रही है लगता है भूखों मरने की नौबत आने वाली है. तुम ने बिलकुल ठीक कहा उस से… अब रश्मि की शादी के लिए रखे फिक्स डिपौजिट से अपना भविष्य सुरक्षित कर लेंगे.’’

दोनों परिवार शादी के खर्चे से पल्ला  झाड़ चुके थे. विजय और रश्मि अपने कार्यस्थल में से थोड़ा समय निकाल खर्चों की योजना बनाते रहते. विजय कौफी की मशीन से 2 कप कौफी ले कर जैसे ही पलटा सामने रश्मि खड़ी थी.

‘‘सगाई की जगह तय करी?’’ कौफी का कप हाथ में थाम कर रश्मि बोली.

‘‘लखनऊ में बहुत महंगे हैं सभी होटल. क्व700 से क्व1 हजार तक प्लेट में थोड़े ढंग के होटल दिख रहे हैं. ऊपर से डीजे और सजावट का खर्च… क्व15 से क्व20 हजार और जोड़ लो,’’ विजय ने बताया.

‘‘मेहमान दोनों तरफ के मिला कर सौ से सवा सौ तो हो ही जाएंगे,’’ रश्मि सोचते हुए बोली.

‘‘हमारे मेहमानों को तो शगुन की मिठाई  और टीका भी देना पड़ेगा,’’ विजय ने बताया तो रश्मि ने बुरा सा मुंह बनाया जिसे देख विजय हंस पड़ा.

‘‘हम दोनों की ड्रैस? वे भी तो खरीदनी हैं,’’ रश्मि बोली.

‘‘क्या पहनोगी? लहंगा, गाउन या साड़ी?’’ विजय ने पूछा, ‘‘मु झे भी तो उसी के अनुसार कपड़े सिलाने पड़ेंगे.’’

‘‘ऐसा करती हूं कोई इंडोवैस्टर्न ड्रैस खरीद लेती हूं और तुम सूट पहन लेना… बाद में भी दूसरों की शादी में काम आ जाएंगे,’’ रश्मि ने कहा.

विजय चिड़ गया, ‘‘सारी बचत मेरे कपड़ों में? तुम्हारी इंडोवैस्टर्न ड्रैस कब काम आएगी? इस से बेहतर होगा कि तुम साड़ी पहनो. वह सालोंसाल फैशन में रहती है.’’

यह सुन कर रश्मि ने अपना कप ट्रेश में डाला और पलट कर चलती बनी. विजय भी अपनी मेज पर लौट गया.

2 दिन अबोला रहा. पहल विजय को ही करनी थी. शनिवार की सुबह कुछ सोचविचार कर उस ने फोन मिलाया, ‘‘हैलो रश्मि, आज शौपिंग को चलें?’’

‘‘किस बात की शौपिंग?’’

‘‘अरे अभी तक नाराज हो? मु झे माफ करो यार, तुम्हारी जो मरजी हो वह पहनो.’’

‘‘कह तो ऐसे रहे हो जैसे रुपयों का अंबार लगा है… मैं ने अपनी सहेलियों से पता किया तो किसी की क्व15 हजार की ड्रैस थी तो किसी की क्व50 हजार की. ड्रैस के साथ सगाई के अन्य खर्चे जोड़ लो तो क्व4 लाख से कम नहीं पड़ेगी सगाई.’’

‘‘सच यार… सोना भी तो क्व40 हजार के करीब है… अंगूठी भी खासी महंगी हो गई है,’’ विजय निरुत्साहित हो बोला.

‘‘कहां मैं ने सपने देखे थे कि सगाई में प्लैटिनम की हीरे जड़ी कपल रिंग लाऊंगी… एक बढि़या सी इंडोवैस्टर्न ड्रैस पहनूंगी. हाय री किस्मत, मेकअप और फोटोग्राफर का खर्चा पता किया?’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था.’’

‘‘2 दिन से सो रहे थे क्या? मैं ने सब पता कर लिया है. सस्ता फोटोग्राफर भी क्व50 हजार से कम नहीं है महंगे को तो छोड़ ही दो. मेकअप वाली ब्राइडल के क्व20 हजार और सगाई के दिन के क्व10 हजार मांग रही है.’’

‘‘क्या?’’ विजय को जैसे बिच्छू ने काटा हो, ‘‘अच्छा हुआ तूने याद दिला दिया. यह बैंडबाजा का भी तो खर्चा होगा न?’’

‘‘उस का भी पता कर लिया है. अगर आतिशबाजी व घोड़ी को छोड़ दो तो क्व18 हजार में बात बन जाएगी,’’ रश्मि ने उसे जानकारी दी.

‘‘तब तो तूने पूरा बजट बना लिया होगा न, ग्रेट रश्मि,’’ विजय उत्साहित स्वर में बोला.

‘‘हां हम अपने बजट में सिर्फ एक ही फंक्शन धूमधाम से कर सकते हैं सगाई या फिर शादी.’’

‘‘ऐसा करते हैं अभी सगाई कर लेते हैं, साथ में रहना शुरू कर देते हैं. किराया, खाना सब की बचत हो जाएगी. जब क्व10-12 लाख जुड़ जाएंगे तब शादी कर लेंगे.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग है,’’ रश्मि व्यंग्य से बोली, ‘‘जरा अपने कट्टरपंथी मातापिताजी से पूछ कर बताना.’’

‘‘तो तुम कहो क्या करें? हम दोनों के पास मिला कर भी क्व11 लाख से ज्यादा नहीं हैं,’’ विजय ने उदास हो कर कहा.

‘‘सगाई को रहने ही दो, सीधे शादी ही कर लेते हैं. अगले महीने… साथ में रहेंगे तो कुछ बचेगा… मैं ने अपने विदेश में हनीमून मनाने के लिए रुपए जोड़ रखे थे… हनीमून तो दूर की बात, शादी का खर्च उठाना ही कितना भारी पड़ गया है.’’

‘‘मैं ने तो एक शानदान कार का सपना देखा था… सोचा था शादी के बाद तुम्हें सरप्राइज दूंगा… थोड़ा बैंक से लोन ले लूंगा… अब सब खत्म.’’

‘‘ऐसा करो तुम मु झे 2 बजे शौपिंग मौल में मिलो. कुछ प्लान करते हैं,’’ रश्मि ने कहा तो विजय ने सहमति दे दी.

शौपिंग मौल में उन्हें रमेश भी मिल गया. तीनों फूड कोर्ट में जा कर बैठ गए.

रमेश उन्हें चुप बैठे देख कर छेड़ते हुए बोला,‘‘अरे मियां, ऐसा भी क्या हो गया तुम्हारी जिंदगी में जो मातम मना रहे हो?’’

‘‘सुनो हमारे परिवार वाले शादी को तो राजी हैं, मगर खर्च करने को तैयार नहीं हैं. हमारी जमापूंजी इतनी नहीं है कि हम धूमधाम से शादी करें.’’

विजय की बात सुन कर रमेश कुछ सोच कर बोला, ‘‘सही कहते हो यार, प्याज क्व120 किलोग्राम, लहसुन  क्व200 किलोग्राम. वैसे यह अच्छा है तुम्हारे यहां शादी में नौनवैज नहीं पकेगा वरना लुट जाते… ऐसा करो अपने घर से बरात निकालो और सीधी रश्मि के घर… होटल का तो चक्कर ही छोड़ो. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि शादी की तारीख पूर्णमासी या एकादशी ही रखना.’’

‘‘वह भला क्यों?’’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘अमां कुछ सम झा करो. इस दिन बिना लहसुनप्याज का खाना बनवा लेना. तुम्हारी क्व8-10 हजार की बचत इसी में हो जाएगी. लोग भी खुश होंगे कि हमारे व्रत का ध्यान रखते हुए मेनू तैयार किया.’’

‘‘ठीक है, होटल और खाने के खर्चों के अलावा भी अन्य खर्चे हैं उन का क्या?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘शादी के गहने और कपड़े किराए पर ले लो. बस मेकअप और फोटोग्राफर ठीकठाक रखो… बाद में तो फोटो ही रह जाते हैं.’’

विजय को देर तक सोचता देख कर रमेश ने छेड़ा, ‘‘अब क्या हुआ तेरी परेशानी का हल तो निकल ही गया?’’

‘‘सारे रुपए तो शादी में ही खर्च हो जाएंगे… हमारी नई गृहस्थी का सामान कहां से आएगा? नए घर का रैंट ऐग्रीमैंट जैसे न जाने कितने जरूरी खर्चे अभी बाकी हैं,’’ विजय  झुं झलाते हुए बोला.

‘‘तो ऐसा करो, कोर्ट में शादी कर लो और अपने रुपयों से गृहस्थी की शुरुआत कर लो,’’ रमेश ने तर्क रखा.

‘‘और मेरे सपनों का क्या? मेहंदी, सगाई, शादी की मजेदार रस्मों का क्या? हंसीठिठोली का क्या?’’ रश्मि तुनक कर बोली.

विजय परेशान हो बोला, ‘‘अब क्या करें बताओ? मार गई हमें यह महंगाई…’’

Special Hindi Story : घर की तलाशी

Special Hindi Story : ‘‘सुनो क्या आप औफिस से आते हुए सब्जी लेते आओगे?’’ संगीता जल्दी जल्दी घर में ताला लगाते हुए बोली.

सुन कर राहुल चौंक गया. बोला, ‘‘क्यों, तुम्हें क्या हुआ? रोज तो तुम्हीं लाती हो?’’

‘‘आज मुझे घर आने में देर हो जाएगी… मम्मी के घर जाना है. उन की तबीयत ठीक

नहीं है.’’

संगीता की बात सुनते ही राहुल की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘तुम्हें तो रोज मायके जाने का कोई बहाना चाहिए… कभी मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, तो कभी पापा का मूड खराब है,’’ राहुल झुंझलाते हुए बोला.

राहुल की बात सुन कर संगीता रोंआसी हो गई. मांबाप की इकलौती संतान संगीता ने विवाह से पहले ही राहुल से कह दिया था कि उसे अपने मांबाप का खयाल रखना है. तब तो राहुल ने उस की इस सोच को सराहा था, लेकिन अब जब भी वह मायके जाने का नाम लेती है, राहुल ऐसे ही रिऐक्ट करता है. वैसे तो वह चुपचाप राहुल की बात सुन लेती है, लेकिन आज उस की बात संगीता के मन में चुभ गई. अत: वह भी तल्ख लहजे में बोली, ‘‘ठीक है, अब मैं वापस घर नहीं आऊंगी वहीं रह लूंगी.’’

राहुल ने संगीता की बात को हलके में लिया और उसे बसस्टौप पर छोड़ कर औफिस चला गया.

संगीता का मूड पूरी तरह खराब हो गया था. बस जब उस के सामने रुकी, तो वह अनमनी सी उस में चढ़ गई. औफिस में जल्दीजल्दी पैंडिंग काम निबटा कर लंच में घर के लिए निकल गई. लेकिन घर जाने के बजाय अपनी सहेली रितु के पास चली गई.

दरवाजे पर संगीता को देखते ही रितु खुशी से उस के गले लग गई.

उस के उदास चेहरे की ओर देखते हुए रितु बोली, ‘‘सचसच बता क्या हुआ? राहुल से फिर झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘नहीं यार, ऐसी बात नहीं है,’’ संगीता आंखें चुराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तो अब तुम मुझ से बात छिपाओगी,’’ रितु नाराजगी दिखाते हुए बोली.

‘‘नहीं यार, तुझ से क्या छिपाना. तुझे तो सब पता है,’’ संगीता रितु का हाथ पकड़ते हुए बोली.

‘‘अच्छा ठीक है, तू बैठ मैं अभी आती हूं,’’ कह कर रितु किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद चायनाश्ता ले कर बाहर आई.

जब संगीता नाश्ता कर चुकी, तो रितु बोली, ‘‘अब बता क्या बात है? क्यों इस खूबसूरत चेहरे पर 12 बज रहे हैं?’’

‘‘क्या बताऊं यार, रोजरोज की किचकिच से तंग आ गई हूं. जब भी राहुल से मम्मी के घर जाने की बात करती हूं, तो उस का पारा चढ़ जाता है. तू तो जानती ही है कि मम्मीपापा का मेरे अलावा और कोई नहीं है. राहुल से यह बात मैं ने पहले ही कह दी थी कि विवाह के बाद भी मैं मम्मीपापा की जिम्मेदारी इसी तरह निभाऊंगी. तब तो उन्होंने हंसते हुए हामी भर दी थी. लेकिन अब अपनी ही बात से पलट गए हैं.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है, राहुल ने फिर से तेरे मायके जाने पर ऐतराज जताया. इसीलिए तेरा मूड खराब है,’’ रितु ठंडी सांस लेते हुए बोली, ‘‘चिंता न कर, इस समस्या का कोई समाधान निकालते हैं.’’

‘‘क्या समाधान निकलेगा इस का. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है… एक तरफ मम्मीपापा हैं, तो दूसरी ओर राहुल. दोनों के प्रति अपने दायित्व निभातेनिभाते मैं तो थक गई हूं… कभीकभी तो मन करता है सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर भाग जाऊं,’’ संगीता रोंआसे स्वर में बोली.

रितु कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘सही कह रही है तू. कुछ दिनों के लिए इन झमेलों से कहीं दूर चली जा, तब राहुल को पता चलेगा कि बीवी घर में न रहे, तो कैसा महसूस होता है.’’

‘‘क्या तू मेरी बात से सहमत है रितु,’’ संगीता असमंजस में भर कर बोली.

‘‘और नहीं तो क्या? मैं कोई बात बिना सोचेसमझे थोड़े ही करती हूं,’’ रितु बोली.

‘‘पर जाऊं कहां यार यह भी तो समस्या है?’’

‘‘कहीं जाने की जरूरत नहीं है. यहीं मेरे पास ही रह… वरुण पूरे महीने के लिए अमेरिका गए हैं. मैं घर में अकेली ही हूं. दोनों सहेलियां मिल कर कालेज के दिनों की यादों को ताजा करेंगी.’’

‘‘चल यही ठीक है. कुछ दिन मैं तेरे पास ही रहती हूं,’’ संगीता राहत की सांस लेते हुए बोली.

‘‘अभी राहुल को इस बारे में कुछ भी नहीं बताना. उन्हें भी तो पता चले तेरी कीमत… आज जब तू घर नहीं पहुंचेगी तो बच्चू को पता चलेगा.’’

रितु से अपने मन की बात बताने के बाद संगीता बहुत हलका महसूस कर रही थी. रितु ने संगीता के अपने घर रहने की बात उस के माता पिता और सास ससुर को बता दी और साथ ही यह भी बोला कि वे राहुल से यह न बताएं कि संगीता कहां पर है.

औफिस जा कर राहुल संगीता से हुए झगड़े की बात भूल कर अपने काम में बिजी हो गया. जब घड़ी में 8 बजे तो उसे घर जाने की सुध आई. घर पहुंचने के बाद उस ने घर पर ताला देखा, तो उसे सुबह के वाद विवाद की याद आई. वह बड़बड़ाते हुए ताला खोलने लगा, ‘‘कितना भी मना कर लो, पर मैडम करेंगी अपने ही मन की… मायके जाना बंद नहीं कर सकतीं चाहे उस के लिए भले ही पति से झगड़ा मोल लेना पड़े.’’

जब रात के 10 बजे तक भी संगीता घर नहीं आई, तो राहुल को गुस्सा आने लगा कि आज तो हद हो गई. 10 बज गए पर मैडम का कहीं पता नहीं. आज घर आए, तो इस मामले का सही तरीके से निबटारा करता हूं. लेकिन जब 12 बजे तक भी संगीता नहीं आई, तो राहुल को सुबह का वाकेआ याद आ गया, साथ ही अपना डायलौग भी याद आ गया कि तुम वहीं क्यों नहीं रुक जातीं. अब उसे अपनेआप पर गुस्सा आने लगा कि क्यों नहीं वह अपनी जबान पर नियंत्रण रख पाता है. अभी वह संगीता को फोन करने की सोच ही रहा था कि फोन की घंटी बज उठी. धड़कते दिल से उस ने रिसीवर उठाया, तो उस के ससुर रमाकांत थे, ‘‘क्या बात है पापाजी इतनी रात को क्यों फोन किया?’’ राहुल झल्लाते हुए बोला.

‘‘बेटा, जरा संगीता से बात करवा दो, आज वह यहां आने वाली थी, पर आई नहीं. उस की तबीयत तो ठीक है न?’’ रमाकांत सुस्त स्वर में बोले.

रमाकांत की बात सुन कर राहुल घबराहट भरे स्वर में बोला, ‘‘क्या संगीता आप लोगों के पास नहीं गई है? वह तो वहीं जाने वाली थी. अभी तक घर भी नहीं आई है.’’

‘‘क्या कह रहे हो तुम? कहां चली गई मेरी बेटी बिना बताए?’’ रमाकांत रोंआसे स्वर में बोले फिर रिसीवर रख दिया.

अब तो राहुल की हालत खराब हो गई. वह बारबार संगीता के मोबाइल पर फोन करने लगा, लेकिन उस का फोन स्विच औफ आ रहा था.

सुबह होते ही राहुल सब से पहले संगीता के मायके गया. उसे लगा शायद संगीता अपने मम्मीपापा के पास गई हो और उसे सबक सिखाने के लिए यह सब कर रही हो… लेकिन जब संगीता वहां भी नहीं मिली तो वह निराश हो कर उस के औफिस गया. वहां तो पता चला कि संगीता तो लंच के समय ही औफिस से चली गई थी और आज औफिस नहीं आई. हताश सा राहुल घर चला गया. पूरा दिन वह संगीता की अच्छाइयों को याद कर के सुबकता रहा और यह सोच कर कहीं नहीं गया कि शायद संगीता घर वापस आ जाए. लेकिन सुबह से रात हो गई, संगीता नहीं आई.

संगीता और रितु दोनों रात भर गप्पें मारती रहीं. देर रात सोईं. सुबह कालबैल की आवाज से संगीता की नींद टूटी, तो उस ने देखा कि रितु गहरी नींद सो रही है, संगीता का मन उसे जगाने को नहीं हुआ. वह यह सोच कर दरवाजा खोलने चली गई कि दूध वाला आया होगा.

संगीता ने दरवाजा खोला, तो देखा कि दरवाजे पर 4 अजनबी खड़े हैं. उन्हें देख कर वह घबरा गई और जल्दी से दरवाजा बंद करने लगी. लेकिन इस से पहले ही उन चारों में से 2 ने संगीता को दबोच कर गाड़ी में डाल दिया. जब संगीता की आंख खुली, तो उस ने खुद को एक कच्चे घर में पाया. वह घबराई सी इधरउधर देखने लगी, लेकिन कुछ समझ नहीं आया.

संगीता घबराहट के मारे रोने लगी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, किस से बात करे? फिर चुपचाप किसी के आने की राह देखने लगी. शाम के करीब 4 बजे 2 लोग आए और संगीता से उस के पति के बारे में पूछने लगे. संगीता ने अपने पति राहुल के बारे में बता दिया, तो वे बोले, ‘‘हम राहुल की नहीं वरुण की बात कर रहे हैं.’’

‘‘वरुण तो मेरी सहेली रितु का पति है,’’ संगीता ने अचकचाते हुए पूछा, ‘‘क्या किया है उस ने और आप लोग मुझे क्यों पकड़ कर लाए हैं?’’

रितु की बात सुन कर दोनों अजनबी अचकचा गए. उन्होंने संगीता को डांटते हुए कहा, ‘‘ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश न करो, तुम्हारे पति ने हमारे मालिक से कर्जा लिया है और अब उसे चुकाने से कतरा रहा है. जब तक हमारा पैसा नहीं मिलेगा हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे… पैसा नहीं मिला तो हम तुम्हें बेच देंगे.’’

अजनबियों की बात सुन कर संगीता के हाथपांव फूल गए. वह सोचने लगी कि अजीब मुसीबत में फंस गई… कैसे छुटकारा मिलेगा? काश, राहुल को फोन कर पाती. दोनों अजनबी संगीता को धमका कर चले गए.

जब अगले दिन भी संगीता अपने घर नहीं पहुंची तो राहुल बुरी तरह टूट गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. संगीता को गए 2 दिन हो गए थे, लेकिन उस की कोई खबर नहीं थी. कहीं वह किसी हादसे का शिकार तो नहीं हो गई. यह सोचसोच कर वह रोने लगा.

अगले दिन डोरबैल की आवाज से उस की नींद टूटी. वह खुशीखुशी यह सोच कर दरवाजा खोलने गया कि शायद संगीता हो दरवाजे पर. लेकिन सामने उस के मातापिता खड़े थे. उन्हें देखते ही राहुल के सब्र का बांध टूट गया और वह अपने पिता के गले लग कर बच्चों की तरह रोने लगा.

उस के इस तरह रोने पर घबराते हुए उस के पिता बोले, ‘‘क्या बात है, तुम रो क्यों रहे हो? सब ठीक तो है?’’

‘‘नहीं पिताजी, कुछ भी ठीक नहीं है… संगीता घर छोड़ कर चली गई है… 2 दिन हो गए, लेकिन घर वापस नहीं आई,’’ राहुल सुबकते हुए बोला.

‘‘क्या कहा बहू घर छोड़ कर चली गई. पर क्यों?’’ राहुल की मां हैरानी से बोलीं, ‘‘जरूर तूने ही उस से झगड़ा किया होगा वरना मेरी बहू तो बेहद समझदार है.’’

‘‘हां मां, मैं ने ही उस का दिल दुखाया है… पहली बार नहीं, हमेशा उसे दुखी करता हूं मैं. तभी वह मुझे छोड़ कर चली गई,’’ कहते हुए राहुल ने सारी बात मातापिता को बता दी.

‘‘हूं, किया तो तूने गलत है बेटा, जब उस ने शादी से पहले ही यह कह दिया था कि उसे ही अपने मातापिता का सहारा बनना है, तो तू क्यों उस के मायके जाने पर ऐतराज जताता है? क्या कभी उस ने तुझे रोका है हमारे प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने से या फिर उस ने कभी हमारी सेवा करने में कोई कसर छोड़ी है?’’ राहुल के पिता उसे समझाते हुए बोले.

‘‘आप सही कह रहे हैं पापा. मैं ही गलत था, जो अपनी बीवी के मनोभावों को नहीं समझ सका. एक बार वह वापस आ जाए, तो मैं उस की सारी बातों को मानूंगा और उस के मातापिता को भी आप की ही तरह समझूंगा.’’

राहुल के मम्मीपापा को उस के घर आए 2 दिन हो गए, लेकिन संगीता का कोई फोन नहीं आया, तो उन्हें भी घबराहट होने लगी. वे सोचने लगे कि संगीता ने हम से कौंटैक्ट क्यों नहीं किया? कहीं सचमुच में उस के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया?

उधर संगीता के अचानक गायब हो जाने से रितु बहुत परेशान थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अचानक कहां चली गई. उस ने अपने दिल को यह सोच कर तसल्ली दी कि हो सकता है वह राहुल के पास लौट गई हो, लेकिन जाने से पहले वह अपना फोन क्यों नहीं ले कर गई. यह बात रितु को परेशान कर रही थी. 2 दिन तक उस ने संगीता के आने का इंतजार किया, लेकिन जब उस की कोई खबर नहीं मिली, तो उस ने राहुल से मिलने का निश्चय किया. अगले दिन रितु राहुल के औफिस पहुंची और उसे सारी बात बता दी. रितु की बात सुन कर राहुल घबरा गया.

रितु बोली, ‘‘ऐसे घबराने से काम नहीं चलेगा राहुल. लगता है संगीता किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई… हमें पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए.’’

फिर दोनों पुलिस स्टेशन पहुंचे और संगीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी. रिपोर्ट लिखवाने के अगले ही दिन राहुल के पास फोन आया कि पास के गांव से कुछ लोगों की शिकायत आई है कि वहां एक खाली मकान में कुछ औरतों को कैद कर के रखा गया है… उन्हें कहीं बाहर भेजने की तैयारी चल रही है. हम वहां रेड मारने जा रहे हैं… आप भी हमारे साथ चलिए… शायद आप की पत्नी की कोई खबर मिल जाए.

फोन सुनते ही राहुल अपने और संगीता के मम्मीपापा के साथ पुलिस स्टेशन पहुंचा, साथ में रितु भी थी. पुलिस की टीम के साथ वे सभी गांव में पहुंचे. वहां एक कमरे में संगीता बंद थी.

सभी औरतों और वहां उपस्थित गुंडों को पकड़ लिया गया. पुलिस इंस्पैक्टर ने राहुल से कहा, ‘‘देखिए, इन में से कोई आप की पत्नी तो नहीं है?’’

उन्हें देख कर राहुल निराश हो गया, क्योंकि उन में संगीता नहीं थी.

इंस्पैक्टर बोले, ‘‘आप परेशान न हों. हम पूरे घर की तलाशी लेते हैं. हो सकता है कि आप की पत्नी को किसी और कमरे में रखा गया हो.’’

पूरे घर की तलाशी लेने के बाद संगीता एक कमरे में घुटनों पर मुंह रखे रोती मिली.

संगीता को देखते ही खुशी के मारे राहुल की चीख निकल गई, ‘‘थैंक्यू इंस्पैक्टर, मेरी पत्नी वह रही.’’

राहुल को देखते ही संगीता उस से लिपट गई. राहुल उस से माफी मांगते हुए बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो संगीता… मेरी वजह से तुम्हें इतनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. मैं तुम से वादा करता हूं कि अब कभी तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने से नहीं रोकूंगा… अब घर चलो.’’

‘‘बहू घर चलो… तुम्हारा पति पूरी तरह सुधर गया है,’’ संगीता अपने सासससुर का सम्मिलित स्वर सुन मुसकराने लगी.

Story In Hindi 2025 : इज्जत की जिंदगी

Story In Hindi 2025 : आगंतुकों के स्वागत सत्कार के चक्कर में बैठक से मुख्य दरवाजे तक नीरा के लगभग 10 चक्कर लग चुके थे, लेकिन थकने के बजाय वे स्फूर्ति ही महसूस कर रही थीं, क्योंकि आगंतुकों द्वारा उन की प्रशंसा में पुल बांधे जा रहे थे. हुआ यह था कि नीरा की बहू पूर्वी का परीक्षा परिणाम आ गया था. उस ने एम.बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. लेकिन तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे नीरा के. पूर्वी तो बेचारी रसोई और बैठक के बीच ही चक्करघिन्नी बनी हुई थी. बीचबीच में कोई बधाई का जुमला उस तक पहुंचता तो वह मुसकराहट सहित धन्यवाद कह देती. आगंतुकों में ज्यादातर उस की महिला क्लब की सदस्याएं ही थीं, तो कुछ थे उस के परिवार के लोग और रिश्तेदार. नीरा को याद आ रहा था इस खूबसूरत पल से जुड़ा अपना सफर.

जब महिला क्लब अध्यक्षा के चुनाव में अप्रत्याशित रूप से उन का नाम घोषित हुआ था, तो वे चौंक उठी थीं. और जब धन्यवाद देने के लिए उन्हें माइक थमा दिया गया था, तो साथी महिलाओं को आभार प्रकट करती वे अनायास ही भावुक हो उठी थीं, ‘‘आप लोगों ने मुझ पर जो विश्वास जताया है उस के लिए मैं आप सभी की आभारी हूं. मैं प्रयास करूंगी कि अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं.’’

लेकिन इस तरह का वादा कर लेने के बाद भी नीरा का पेट नहीं भरा था. वे चाहती थीं कुछ ऐसा कर दिखाएं कि सभी सहेलियां वाहवाह कर उठें और उन्हें अपने चयन पर गर्व हो कि अध्यक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण पद के लिए उन्होंने सर्वथा उपयुक्त पात्र चुना है. बहुत सोचविचार के बाद नीरा को आखिर एक युक्ति सूझ ही गई. बहू पूर्वी को एम.बी.ए. में प्रवेश दिलवाना उन्हें अपनी प्रगतिशील सोच के प्रचार का सर्वाधिक सुलभ हथियार लगा. शादी के 4 साल बाद और 1 बच्चे की मां बन जाने के बाद फिर से पढ़ाई में जुट जाने का सास का प्रस्ताव पूर्वी को बड़ा अजीब लगा. वह तो नौकरी भी नहीं कर रही थी.

उस ने दबे शब्दों में प्रतिरोध करना चाहा तो नीरा ने मीठी डांट पिलाते हुए उस का मुंह बंद कर दिया, ‘‘अरे देर कैसी? जब जागो तभी सवेरा. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? मेरे दिमाग में तो तुम्हें आगे पढ़ाने की बात शुरू से ही थी. शुरू में 1-2 साल तो मैं ने सोचा मौजमस्ती कर लेने दो फिर देखा जाएगा. पर तब तक गोलू आ गया और तुम उस में व्यस्त हो गईं. अब वह भी ढाई साल का हो गया है. थोड़े दिनों में नर्सरी में जाने लगेगा. घर तो मैं संभाल लूंगी और ज्यादा जरूरत हुई तो खाना बनाने वाली रख लेंगे.’’

‘‘लेकिन एम.बी.ए. कर के मैं करूंगी क्या? नौकरी? मैं ने तो कभी की नहीं,’’ पूर्वी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि सास के मन में क्या है?

‘‘पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए ही नहीं की जाती. वह करो न करो तुम्हारी मरजी. पर इस से ज्ञान तो बढ़ता है और हाथ में डिगरी आती है, जो कभी भी काम आ सकती है. समझ रही हो न?’’

‘‘जी.’’

‘‘मैं ने 2-3 कालेजों से ब्रोशर मंगवाए हैं. उन्हें पढ़ कर तय करते हैं कि तुम्हें किस कालेज में प्रवेश लेना है.’’

‘‘मुझे अब फिर से कालेज जाना होगा? घर बैठे पत्राचार से…’’

‘‘नहींनहीं. उस से किसी को कैसे पता चलेगा कि तुम आगे पढ़ रही हो?’’

‘‘पता चलेगा? किसे पता करवाना है?’’ सासूमां के इरादों से सर्वथा अनजान पूर्वी कुछ भी समझ नहीं पा रह थी.

‘‘मेरा मतलब था कि पत्राचार से इसलिए नहीं क्योंकि उस की प्रतिष्ठा और मान्यता पर मुझे थोड़ा संदेह है. नियमित कालेज विद्यार्थी की तरह पढ़ाई कर के डिगरी लेना ही उपयुक्त होगा.’’

पूर्वी के चेहरे पर अभी भी हिचकिचाहट देख कर नीरा ने तुरंत बात समेटना ही उचित समझा. कहीं तर्कवितर्क का यह सिलसिला लंबा खिंच कर उस के मंसूबों पर पानी न फेर दे.

‘‘एक बार कालेज जाना आरंभ करोगी तो खुदबखुद सारी रुकावटें दूर होती चली जाएंगी और तुम्हें अच्छा लगने लगेगा.’’

वाकई फिर ऐसा हुआ भी. पूर्वी ने कालेज जाना फिर से आरंभ किया और आज उसे डिगरी मिल गई थी. उसी की बधाई देने नातेरिश्तेदारों, पड़ोसियों, पूर्वी  की सहेलियों और नीरा के महिला क्लब की सदस्याओं का तांता सा बंध गया था. पूर्वी से ज्यादा नीरा की तारीफों के सुर सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘भई, सास हो तो नीरा जैसी. इन्होंने तो एक मिसाल कायम कर दी है. लोग तो अपनी बहुओं की शादी के बाद पढ़ाई, नौकरी आदि छुड़वा कर घरों में बैठा लेते हैं. सास उन पर गृहस्थी का बोझ लाद कर तानाशाही हुक्म चलाती है. और नीरा को देखो, गृहस्थी, बच्चे सब की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर बहू को आजाद कर दिया. ऐसा कर के उन्होंने एक आदर्श सास की भूमिका अदा की है. हम सभी को उन का अनुसरण करना चाहिए.’’

‘‘अरे नहीं, आप लोग तो बस ऐसे ही…’’ प्रशंसा से अभिभूत और स्नेह से गद्गद नीरा ने प्रतिक्रिया में खींसे निपोर दी थीं.

‘‘नीरा ने आज एक और बात सिद्ध कर दी है,’’ अपने चिरपरिचित रहस्यात्मक अंदाज में सुरभि बोली.

‘‘क्या? क्या?’’ कई उत्सुक निगाहें उस की ओर उठ गईं.

‘‘यही कि अपने क्लब की अध्यक्षा के रूप में उन का चयन कर के हम ने कोई गलती नहीं की. ये वास्तव में इस पद के लिए सही पात्र थीं. अपने इस प्रगतिशील कदम से उन्होंने अध्यक्षा पद की गरिमा में चार चांद लगा दिए हैं. हम सभी को उन पर बेहद गर्व है.’’ सभी महिलाओं ने ताली बजा कर अपनी सहमति दर्ज कराई. ये ही वे पल थे जिन से रूबरू होने के लिए नीरा ने इतनी तपस्या की थी. गर्व से उन की गरदन तन गई.

‘‘आप लोग तो एक छोटी सी बात को इतना बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे हैं. सच कहती हूं, यह कदम उठाने से पहले मेरे दिल में इस तरह की तारीफ पाने जैसी कोई मंशा ही नहीं थी. बस अनायास ही दिल जो कहता गया मैं करती चली गई. अब आप लोगों को इतना अच्छा लगेगा यह तो मैं ने कभी सोचा भी नहीं था. खैर छोडि़ए अब उस बात को…कुछ खानेपीने का लुत्फ उठाइए. अरे सुरभि, तुम ने तो कुछ लिया ही नहीं,’’ कहते हुए नीरा ने जबरदस्ती उस की प्लेट में एक रसगुल्ला डाल दिया. शायद यह उस के द्वारा की गई प्रशंसा का पुरस्कार था, जिस का नशा नीरा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

‘‘मैं आप लोगों के लिए गरमगरम चाय बना कर लाती हूं,’’ नीरा ने उठने का उपक्रम किया.

‘‘अरे नहीं, आप बैठो न. चाय घर जा कर पी लेंगे. आप से बात करने का तो मौका ही कम मिलता है. आप हर वक्त घरगृहस्थी में जो लगी रहती हो.’’

‘‘आप बैठिए मम्मीजी, चाय मैं बना लाती हूं,’’ पूर्वी बोली.

‘‘अरे नहीं, तू बैठ न. मैं बना दूंगी,’’ नीरा ने फिर हलका सा उठने का उपक्रम करना चाहा पर तब तक पूर्वी को रसोई की ओर जाता देख वे फिर से आराम से बैठ गईं और बोली, ‘‘यह सुबह से मुझे कुछ करने ही नहीं दे रही. कहती है कि हमेशा तो आप ही संभालती हैं. कभी तो मुझे भी मौका दीजिए.’’

पूर्वी का दबा व्यक्तित्व आज और भी दब्बू हो उठा था. सासूमां के नाम के आगे जुड़ती प्रगतिशील, ममतामयी, उदारमना जैसी एक के बाद एक पदवियां उसे हीन बनाए जा रही थीं. उसे लग रहा था उसे तो एक ही डिगरी मिली है पर उस की एक डिगरी की वजह से सासूमां को न जाने कितनी डिगरियां मिल गई हैं. कहीं सच में उसे कालेज भेजने के पीछे सासूमां का कोई सुनियोजित मंतव्य तो नहीं था?…नहींनहीं उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

‘‘पूर्वी बेटी, मैं कुछ मदद करूं?’’ बैठक से आवाज आई तो पूर्वी ने दिमाग को झटका दे कर तेजी से ट्रे में कप जमाने आरंभ कर दिए, ‘‘नहीं मम्मीजी, चाय बन गई है. मैं ला रही हूं,’’ फिर चाय की ट्रे हाथों में थामे पूर्वी बैठक में पहुंच कर सब को चाय सर्व करने लगी. विदा लेते वक्त मम्मीजी की सहेलियों ने उसे एक बार फिर बधाई दी.

‘‘यह बधाई डिगरी के लिए भी है और नीरा जैसी सास पाने के लिए भी, सुरभि ने जाते वक्त पूर्वी से हंस कर कहा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

अंदर लौटते ही नीरा दीवान पर पसर गईं और बुदबुदाईं, ‘‘उफ, एक के बाद एक…हुजूम थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. थक गई मैं तो आवभगत करतेकरते.’’ जूठे कपप्लेट उठाती पूर्वी के हाथ एक पल को ठिठके पर फिर इन बातों के अभ्यस्त कानों ने आगे बढ़ने का इशारा किया तो वह फिर से सामान्य हो कर कपप्लेट समेटने लगी.

‘‘मीनाबाई आई नहीं क्या अभी तक?’’ नीरा को एकाएक खयाल आया.

‘‘नहीं.’’

‘‘ओह, फिर तो रसोई में बरतनों का ढेर लग गया होगा. इन बाइयों के मारे तो नाक में दम है. लो फिर घंटी बजी…तुम चलो रसोई में, मैं देखती हूं.’’

फिर इठलाती नीरा ने दरवाजा खोला, तो सामने पूर्वी के मातापिता को देख कर बोल उठीं, ‘‘आइएआइए, बहुतबहुत बधाई हो आप को बेटी के रिजल्ट की.’’

‘‘अरे, बधाई की असली हकदार तो आप हैं. आप उसे सहयोग नहीं करतीं तो उस के बूते का थोड़े ही था यह सब.’’

‘‘अरे आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं. मैं ने तो बस अपना फर्ज निभाया है. आइए, बैठिए. मैं पूर्वी को भेजती हूं,’’ फिर पूर्वी को आवाज दी, ‘‘पूर्वी बेटा. तुम्हारे मम्मीपापा आए हैं. अब तुम इन के पास बैठो. इन्हें मिठाई खिलाओ, बातें करो. अंदर रसोई आदि की चिंता मुझ पर छोड़ दो. मैं संभाल लूंगी.’’

नीरा ने दिखाने को यह कह तो दिया था. पर अंदर रसोई में आ कर जो बरतनों का पहाड़ देखा तो सिर पकड़ लिया. मन ही मन बाई को सौ गालियां देते हुए उन्होंने बैठक में नाश्ता भिजवाया ही था कि देवदूत की तरह पिछले दरवाजे से मीनाबाई प्रकट हुई.

‘‘कहां अटक गई थीं बाईजी आप? घर में मेहमानों का मेला सा उमड़ आया है और आप का कहीं अतापता ही नहीं है. अब पहले अपने लिए चाय चढ़ा दो. हां साथ में मेहमानों के लिए भी 2 कप बना देना. मैं तो अब थक गई हूं. वैसे आप रुक कहां गई थीं?’’

‘‘कहीं नहीं. बहू को साथ ले कर वर्माजी के यहां गई थी इसलिए देर हो गई.’’

‘‘अच्छा, काम में मदद के लिए,’’ नीरा को याद आया कि अभी कुछ समय पूर्व ही मीनाबाई के बेटे की शादी हुई थी.

‘‘नहींनहीं, उसे इस काम में नहीं लगाऊंगी. 12वीं पास है वह. उसे तो आगे पढ़ाऊंगी. वर्माजी के यहां इसलिए ले गई थी कि वे इस की आगे की पढ़ाई के लिए कुछ बता सकें. उन्होंने पत्राचार से आगे पढ़ाई जारी रखने की कही है. फौर्म वे ला देंगे. कह रहे थे इस से पढ़ना सस्ता रहेगा. मेरा बेटा तो 7 तक ही पढ़ सका. ठेला चलाता है. बहुत इच्छा थी उसे आगे पढ़ाने की पर नालायक तैयार ही नहीं हुआ. मैं ने तभी सोच लिया था कि बहू आएगी और उसे पढ़ने में जरा भी रुचि होगी तो उसे जरूर पढ़ाऊंगी.’’

‘‘पर 12वीं पास लड़की तुम्हारे बेटे से शादी करने को राजी कैसे हो गई?’’ बात अभी भी नीरा को हजम नहीं हो रही थी. 4 पैसे कमाने वाली बाई उसे कड़ी चु़नौती देती प्रतीत हो रही थी.

‘‘अनाथ है बेचारी. रिश्तेदारों ने किसी तरह हाथ पीले कर बोझ से मुक्ति पा ली. पर मैं उसे कभी बोझ नहीं समझूंगी. उसे खूब पढ़ाऊंगीलिखाऊंगी. इज्जत की जिंदगी जीना सिखाऊंगी.’’

‘‘और घर बाहर के कामों में अकेली ही पिसती रहोगी?’’

‘‘उस के आने से पहले भी तो मैं सब कुछ अकेले ही कर रही थी. आगे भी करती रहूंगी. मुझे कोई परेशानी नहीं है, बल्कि जीने का एक उद्देश्य मिल जाने से हाथों में गति आ गई है. लो देखो, बातोंबातों में चाय तैयार भी हो गई. अभी जा कर दे आती हूं. मैं ने कड़क चाय बनाई है. आधा कप आप भी ले लो. आप की थकान उतर जाएगी,’’ कहते हुए मीनाबाई ट्रे उठा कर चल दी. नीरा को अपना नशा उतरता सा प्रतीत हो रहा था.

Cyber Cafe : नेहा और साइबर कैफे

Cyber Cafe : ये उन  दिनों की बात है जब देश में इंटरनेट का क्रेज बढ़ने लगा था. मोबाइल तो तब हर किसी की पहुंच में था ही नहीं. गिने चुने लोगों के पास पत्थर के से वजन के मोबाइल हुआ करते थे. सरकारी/निजी दफ्तरों और साइबर कैफे में ही इंटरनेट जोर पकड़ रहा था. नेहा (बदला हुआ नाम, न भी बदला हो तो कहना ऐसा ही पड़ता है, कोर्ट की रूलिंग आड़े आती है) ने तय किया कि वो भी इंटरनेट सीखे. जरूरी था. बाकि सहेलियां ईमेल का जिक्र किया करती थीं. एमएसएन, याहू के किस्से सुनाया करती थीं. जब भी कहीं उसके सर्किल में कोई याहू मैसेंजर या रैडिफ चैट की बातें करता, वो कोफ्त खाती. आखिर उसे ये सब क्यों नहीं पता.

नेहा ने तय किया वो भी इंटरनेट सीखेगी. उसका भी ऑरकुट पर अकाउंट होगा. सन् 2000 के शुरुआती समय में साईबर कैफे में जाकर एक बंद से कैबिन में 80 रुपए घंटा, 50 रुपए आधा घंटा के हिसाब से इंटरनेट सर्फिंग करना शगल हो चला था. नेहा ने कॉलेज के पास वाले साइबर कैफे में 50 रुपए दिए और आधे घंटे के लिए सिस्टम पर जा बैठी. इंटरनेट एक्सप्लोरर खुला हुआ था. पर करना क्या है उसे कुछ समझ नहीं आया. आज का बच्चा बच्चा कह सकता है कि जो न समझ आए, गूगल से पूछलो.. या यू ट्यूब पर देख लो कि हाऊ टू यूज इंटरनेट फर्स्ट टाइम. पर वो वक्त ऐसा न था. जिसने कभी इंटरनेट नहीं चलाया हो कम से कम एक बार तो कोई बताने वाला होना चाहिए न..

नेहा को लगा, 50 रुपए बर्बाद हो गए. उसे कुछ परेशान होता देख, साइबर कैफे मालिक ने कहा- ‘कोई दिक्कत तो नहीं?’ तकरीबन 24-25 साल के इस गुड लुकिंग गाय को नेहा ने बताया, ‘इंटरनेट सीखना है’. राहुल (सायबर कैफे ऑनर) ने कहा- ‘बस इतनी सी बात. दोपहर 2 से 2.30 नीचे बेसमेंट में आ जाओ. सात दिन की क्लास है. ‘और फीस’ नेहा ने सवाल किया. ‘3 हजार रुपए है, पर आपको 50 परसेंट डिस्काउंट.’

‘मतलब कि मुझे 1500 रुपए देने पड़ेंगे. और अगर सात दिन न आना हो, दो-तीन दिन ही…’ नेहा के ये कहते ही राहुल ने कहा- ‘आप 1000 रुपए दीजिए.. दो या तीन दिन, जब तक सीखना हो सीखो.’ नेहा ने कंप्यूटर स्क्रीन की विंडो मिनिमाइज की और चेयर से उठ खड़ी हुई. बोली- ‘थैंक्स. कल आती हूं 2 बजे. फीस कल ही दूंगी.’ ‘आराम से, कोई जल्दी नहीं है’ राहुल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.

नेहा ठीक 1.55 पर साइबर कैफे के बेसमेंट में कॉपी पैन लेकर मोर्चा संभाल चुकी थी. उसके साथ कोई आठ दस लड़के लड़कियां उस बैच में थे. राहुल ने कंप्यूटर जेंटली ऑन करने, मॉनिटर ऑन करने से लेकर ब्रॉडबेंड आइकन को क्लिक कर मॉडम में नंबर डाइलिंग से शुरुआत की.. और इंटरनेट चलाने के बेसिक्स बताए. आधे घंटे की क्लास शानदार रही. जाते-जाते काउंटर पर राहुल को हजार रुपए दिए और कहा- ‘ये लीजिए फीस.’ राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘ऊं…. अभी नहीं. पहले सीख लो.. फिर दे देना.’ नेहा सरप्राइज थी. उसने मुस्कुरा कर पैसे जींस की जेब में रख लिए. पहले दिन की क्लास से वो उत्साहित थी. इंटरनेट एक्सप्लोरर नाम के नए दोस्त से हुए इंट्रो ने घर तक के पूरे रास्ते उसके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी.

सात दिन बीत चुके थे. नेहा इंटरनेट सर्फिंग का रोज आनंद ले रही थी, राहुल ने अब तक उससे फीस नहीं ली थी. बल्कि अब साइबर कैफे की आधे, एक घंटे की फीस भी वो उससे नहीं ले रहा था. नेहा दो नए दोस्त पाकर खुश थी. नेहा आज याहू मैसेंजर पर अकाउंट बनाकर चैट कर रही थी. ASL (एज, सेक्स, लोकेशन), LOLZ, OMG जैसे नए टर्म लिखे हुए मैसेज देख उत्साहित थी.

‘ओह तो चैटिंग शैटिंग चल रही है’, अचानक पीछे आए राहुल ने कहा. ‘हम्म.. सीख रही हूं.’ नेहा ने जवाब दिया. ‘कैरी ऑन कैरी ऑन.. अब एक घंटा नहीं पूरा दिन भी इंटरनेट पर कम लगने लगेगा. कुछ दिनों में तो घर पर भी सिस्टम लगवा ही लोगी. असल दोस्तों को भूल जाओगी और वर्चुअल दोस्त ही पसंद आएंगे.’ राहुल का तंज समझ नेहा मुस्कुराई और टेबल पर रखे उसके हाथ पर हाथ इस तरह मारा जैसे बिना कहे कह रही हो, ‘चल हट’. ‘अच्छा नेहा थोड़ी देर में नीचे क्लास में आ जाना, आज कुछ स्पेशल सैशन रखा है. नए स्टूडेंट्स भी हैं, बेसिक तो तुम्हीं बता देना सबको.’ ‘मैं’..मैं तो खुद ट्रेनी हूं, मैं क्या बताऊंगी.’ नेहा के जवाब को इग्नोर कर राहुल फुर्ती से नीचे की ओर रवाना हुआ, जाते-जाते सीढ़ी से उसकी आवाज़ जरूर आई, ‘सीयू इन नेक्स्ट 5 मिनट इन बेसमेंट’.

नेहा ने पांच मिनट बाद याहू मैसेंजर से लॉगआउट किया. सिस्टम शट डाउन कर नीचे बेसमेंट की ओर रवाना हो गई. उसे अजीब सा लग रहा था, कि वो कैसे पढ़ाएगी. नीचे जाकर ऐसा कुछ नहीं हुआ. राहुल ने वीपीएन सर्वर के बारे में बताया, कि कैसे आपके ऑफिस में कोई साइट ब्लॉक हो तो आप उसे वहां भी खोल सकते हो. आईटी टीम को बिना पता चले. फ्रैशर्स को सिखाने के लिए एक दूसरे लड़के को कह दिया, जो करीब 15 दिन से क्लास में आ रहा था. नेहा ने राहत की सांस ली. उसने आंखों ही आंखों में राहुल को थैंक्स भी कहा, लंबी सांस लेते हुए. बाकि स्टूडेंट्स अपने अपने टास्क में बिजी थे, नेहा जाने की तैयारी कर ही रही थी कि राहुल से फिर उसकी नजरें मिली, उसने उसकी तरफ आने का इशारा किया. नेहा पर्स वहीं छोड़ डायस पर टेबल के पीछे लगी कुर्सी पर बैठ गई, जो राहुल की कुर्सी के ठीक बराबर थी. सामने टेबल पर राहुल ने इंटरनेट खोल रखा था.  जैसे ही नेहा की नजर स्क्रीन पर गई, वो सकपका गई. राहुल स्क्रीन पर ही नजरें गड़ाए हुए बोला- ‘ये लो नेहा, आज की ये एक्सरसाइज, आगे भी तुम्हारे काम आएगी, ये न देखा तो इंटरनेट पर क्या देखा, तुम्हारे कॉलेज प्रोजेक्ट्स में भी तुम अब एडवांस हो जाओगी.’ राहुल की लैंग्वेज पूरी क्लास को भ्रमित करने के लिए काफी थी, इसीलिए किसी का ध्यान उस ओर गया भी नहीं कि अब तक नेहा पसीने-पसीने हो चुकी है.

स्क्रीन पर पॉर्न साइट खुली हुई थी. राहुल बिलकुल न्यूट्र्ल फेस किए हुए कुछ न कुछ बोले जा रहा था, नेहा अब तक समझ ही नहीं पा रही थी कि वो कैसे रिएक्ट करे. इतने में राहुल ने नेहा के पैर पर हाथ रखा, टेबल कवर होने के कारण उसकी इस हरकत को सामने क्लास में कोई समझ न पाया. नेहा का डर के मारे कलेजा कांप रहा था. उसने उठने की कोशिश की तो राहुल ने जोर से उसे बैठा दिया. ये मानते हुए कि नेहा अब कुछ बोलने वाली है, राहुल ने उसे टोका, ‘नेहा जी ये भी देख लो.’ ये कहते ही राहुल ने वीएलसी प्लेयर पर कर्सर क्लिक किया. वहां एक वीडियो पॉज्ड था. कुछ धुंधला-धुंधला दिखा, लेकिन तीन या चार सैकेंड के बाद ही नेहा को साफ दिख गया कि ये उसी का वीडियो है. नेहा की आंखों से आंसू टपके, लेकिन सामने क्लास को देखते हुए उसने उन्हें पौंछ लिया. उसने अब तक सिर्फ खबरों में ही पढ़ा था कि बाथरूम्स व्गैरह में हिडन कैमरे से लड़कियों के वीडियो बन रहे हैं. पर खुद को उसका शिकार होते देख वो अब स्तब्ध थी. सात दिन पहले बने दोस्त की मुस्कान के पीछे की दरिंदगी वो समझ ही नहीं पाई. नेहा को याद आ गया था कि तीन दिन पहले वो साइबर कैफे से अपनी फ्रेंड की पार्टी में सीधे गई थी. सुबह की घऱ से निकली हुई थी इसलिए ड्रेस साथ लाई थी. साइबर के वाशरूम में ही उसने ड्रेस चेंज की थी, जो उसकी सबसे बड़ी भूल थी.

राहुल धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला- ‘शाम को सात बजे तुम्हारा इंतजार रहेगा, यहीं. बताने की जरूरत तो नहीं न कि न आई तो कल इंटरनेट पर तुम ही धमाल मचाती दिखोगी.’

नेहा झट से सामने अपनी सीट तक आई, टेबल पर रखा पर्स और स्कार्फ उठाया और अपनी स्कूटी की और दौड़ पड़ी.

दोपहर से शाम तक नेहा की हालत बिगड़ी रही, घर वाले सोच रहे थे कि लू लग गई. ‘बार-बार कहते हैं फिर भी ध्यान नहीं ऱखती, धूप में बाहर आती जाती है.’ सब उसे ऐसा कहकर टोक रहे थे. नेहा चाहकर भी किसी को बता न सकी. घबराहट में उसे दो बार वोमिट हुई. कभी राहुल की पोर्न वाली हरकत, तो कभी अपना वीडियो आंखों के सामने आ रहा था. और कभी ये सोचकर ही रूह कांप रही थी कि शाम को वो क्या करने वाला है. इसी बीच मम्मी एप्पल ले आईं. वहीं काटकर उसे खिलाने लगीं. मम्मी ये सोच रही थीं कि भूखे पेट गर्मी असर कर गईं और नेहा चाकू को देख रही थी.

शाम सवा सात बजे नेहा साइबर कैफे पहुंची. जैसा उसने सोचा था, ठीक वैसा ही नजर भी आया. राहुल कैफे में टेबल पर पैर रख कर बैठा था. बत्तियां बुझा रखी थी, बस एक कैबिन की लाइट चल रही थी, उसी से रौशनी बाहर आ रही थी. नेहा को आते देख राहुल ने कहा- ‘आओ जान आओ, तीन दिन से जब से तुम्हें वीडियो में बिना टॉपर के देखा है, इस ही लम्हे का इंतजार कर रहा हूं.’

राहुल ने ये कहते हुए सामने रखा डीओ अपनी पूरी शर्ट और बगलों के नीचे छिड़का. सहमी हुई नेहा कुछ धीमे कदमों से ही राहुल की ओर बढ़ी. राहुल ने होठ आगे कर दिए, इस जबरन हक को मानते हुए, कि जैसा वो पिछले पांच घंटों से इमेजन कर रहा है, अब बस वो होने को है.

एक तेज तमाचे ने राहुल को इमेजिनेशन से बाहर निकाला. उसका गाल पर हाथ पहुंचा ही था कि एक जोर का मुक्का उसकी नाक पर आकर लगा और तेजी से खून बहने लगे. अचानक सकपकाए राहुल ने होठों तक आए खून को हाथ से देखा फिर पागल सा होकर वो नेहा को मारने दौड़ा. वो नेहा की ओर बढ़ा ही था कि बाहर के गेट से दो लड़के दो लड़कियां अंदर आए और नेहा को पीछे कर राहुल को पीटने लगे. चंद मिनटों में राहुल अधमरा हुआ पड़ा था, माफी मांग रहा था. बेशर्मी से बार बार माफी मांग रहा था. नेहा के दोस्तों ने एक-एक कंप्यूटर को खंगाला. साइबर के बाकी सिस्टम्स में तो कुछ नहीं था, एक क्लास रूम और दूसरे ऊपर कैफे एरिया में राहुल के सिस्टम में वॉश रूम की कुछ क्लिप्स थी. क्लास रूम के सिस्टम में ऊपर का ही फोल्डर कॉपी किया हुआ था, जिसमें तकरीबन चार लड़कियों के वॉशरूम वीडियो थे. काफी मार पड़ी तो राहुल गिड़गिड़ाया कि नेहा उसका पहला शिकार ही थी. इंटरनेट पर साइबर कैम के लीक्ड वीडियो देख उसकी भी हिम्मत हुई वो ऐसा करे. नेहा के दोस्तों ने दोनों ही सिस्टम से फोल्डर ऑल्ट प्लस कंट्रोल दबाकर डिलीट किए और फिर गुस्से में दोनों सिस्टम भी तोड़ डाले.

फिर कभी उस साइबर कैफे का ताला खुला किसी ने न देखा. कुछ दिनों बाद वहां एक परचूनी की दुकान खुल गई. राहुल वहां कभी नहीं दिखा, हां, नेहा अक्सर गर्दन ऊंची कर स्कूटी पर वहां से गुजरते हुए नजर आती रही.

Best Husband Wife Comedy : तूतू, मैंमैं

Best Husband Wife Comedy : ‘‘क्यातुम ने प्रैस के कपड़ों में अंडरवियर भी डाल दिया था?’’ शिखा ने पति शेखर से पूछा.

‘‘शायद… गलती से कपड़ों के साथ चला गया होगा,’’ शेखर बोला.

‘‘प्रैस वाले ने उस के भी क्व5 लगा लिए

हैं. अब ऐसा करना कि कल अंडरवियर पहनो

तो उस पर पैंट मत पहनना क्व5 जो लगे हैं,’’

शिखा बोली.

‘‘तुम भी बस… हर समय मजाक के मूड में रहती हो. कभीकभी सीरियस भी हो जाया करो.’’

‘‘अरे, हम तो हैं ही ऐसे… इसीलिए तो आज भी 50 की उम्र में भी हम से कोई शादी

कर ले.’’

बेटी नेहा बोली, ‘‘तो पापा आप मेरे लिए बेकार में लड़का ढूंढ़ रहे हो… मम्मी की शादी करवा दो. वैसे भी मु झे शादी नहीं करनी.’’

शेखर ने पूछा, ‘‘क्यों बेटा?’’

‘‘पापा, मैं ने अब तक की जो जिंदगी जी है उस में ऐसा महसूस किया है… मैं शादी कर के अपनी आजादी को खो दूंगी… शादी एक बंधन है और मैं बंधन में नहीं बंध सकती. इस बारे में मैं मम्मी से सारी बात शेयरकर लूंगी,’’ नेहा ने स्पष्ट सा जवाब दिया.

तभी शेखर की नजर दरवाजे पर पड़ी. एक कुत्ता घुस आया था. शेखर ने शिखा से कहा, ‘‘तुम ने बाहर का दरवाजा भी ठीक से बंद नहीं किया. देखो कुत्ता घुस आया.’’

‘‘अरे, ठीक से तो देख लिया करो. यह कुत्ता नहीं कुतिया है. शायद तुम से मिलने आई है. मिल लो. फिर इसे बाहर का रास्ता दिखा देना,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम तो हर समय मेरे पीछे ही पड़ी रहती हो,’’ शेखर ने तुनक कर कहा.

‘‘तुम्हारे पीछे नहीं तो क्या पड़ोसी के पीछे पड़ूंगी? वह भी तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा और ऐसा तो होता ही आया है कि पति आगेआगे और पत्नी पीछेपीछे,’’ शिखा ने झट जवाब दिया.

‘‘खैर, छोड़ो मै तुम से जीत नहीं सकता.’’

‘‘शादी भी एक जंग है. उस में जीत कर ही तो तुम मु झे लाए हो. यही सब से बड़ी जीत है…ऐसी पत्नी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी,’’ शिखा बोली.

‘‘अच्छा छोड़ो, अपने गुण बहुत बखान कर लिए तुम ने. अब मेरी सुनो,’’ शेखर ने कहा.

‘‘तुम्हारी ही तो सुन रही हूं अब तक.’’

‘‘अपनी नेहा के लिए रिश्ता आया है… नेहा ने मु झ से कहा था कि वह शादी नहीं करना चाहती. तुम जरा उस से बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है श्रीमानजी जो आप की आज्ञा… शादी की इस जंग में पत्नी को जीत लाए थे. तब से अब तक आप के ही इशारों पर नाच रही हूं,’’ शिखा बोली.

‘‘अच्छा बहुत जोर की भूख लगी है. अब कुछ खिलाओपिलाओ,’’ शेखर ने कहा.

‘‘देखोजी, खिलानेपिलाने की नौकरी मैं ने नहीं बजाई. अब तुम नन्हे बच्चे तो हो नहीं… लड़की के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हो. वह उम्र तो तुम्हारी निकल चुकी.’’

‘‘ठीक है मेरी मां तू दे तो सही.’’

‘‘देखो मां शब्द का इस्तेमाल मत करो. घाटे में रहोगे. सोच लो फिर कुछ मिलने वाला नहीं. बस मां के प्यार पर ही आश्रित रहोगे.’’

‘‘अरे यार तेरे मांबाप ने तु झे क्या खा कर जना था?’’ शेखर के मुंह से निकला.

‘‘पूछूंगी जा कर उन से कि आप के दामाद को आप का राज पता करना है… इतने सालों बाद आज कुरेदन हो रही है उन को.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. बस अब बहुत हो गया,’’ शेखर बोला.

‘‘अरे नेहा, बेटी मेरा चश्मा कहां है?’’ शेखर ने बेटी को आवाज दी.

‘‘अरे पापा, चश्मा आप के सिर पर ही

रखा है. इधरउधर क्यों ढूंढ़ रहे हो?’’ नेहा हंसते हुए बोली.

‘‘इन का हिसाब तो यह है कि बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा,’’ शिखा बोली.

‘‘पूछूंगा बच्चू…’’ शेखर ने मुंह बनाते

हुए कहा.

‘‘वाहवाह, कभी बच्चू, कभी अम्मां, कभी मां. अरे जो रिश्ता है, उसी में रहो न?’’

‘‘तुम नहीं सम झोगी… वैसे भी चिराग तले अंधेरा… पूरी दुनिया में भी ढूंढ़ती, तो ऐसा पति नहीं मिलता. कल की ही बात लो. चीनी का डब्बा फ्रिज में रख दिया और जमाने में ढूंढ़ते हुए परेशान हो रही थी… बात करती है कि मैं जवान हूं…ये बुढ़ापे के लक्षण नहीं हैं तो और क्या है?’’

‘‘चलो, छोड़ो अब. बहुत हो गया. 1 कप चाय मिलेगी?’’

‘‘1 कप नहीं, एक बालटी भर लो,’’ शिखा ने कहा.

‘‘बस बहुत हो गया. शेर जब जख्मी हो जाता है न, तो ज्यादा खूंख्वार हो जाता है,’’ मेरी सहनशक्ति का इम्तिहान मत लो. जबान में मिस्री है ही नहीं.’’

‘‘हांहां, मेरी जबान में तो जहर घुला है.

कुएं के मेढक की तरह टर्रटर्र किए जाएंगे,’’ शिखा बोली.

‘‘कभी नहीं सम झोगी तुम… ये शब्द ही हैं, जो जिंदगी  में उल झन पैदा करते हैं. मुसकराहट जिंदगी को सुल झाती है, सम झी?’’

‘‘अरे बेटी नेहा 1 कप चाय बना दे. 1 कप चाय मांगना गुनाह हो गया.’’

‘‘हांहां, चाय तो नेहा ही बनाएगी… सारी जिंदगी छाती पर बैठा कर रखना इसे… मेरे हाथों में तो जहर है,’’ शिखा हाथ नचाते हुए बोली.

‘‘न… न… तुम्हारे हाथों में नहीं, तुम्हारी जवान में जहर है,’’ शेखर ने कहा.

‘‘मेरे लिए तो प्यार के 2 बोल भी नहीं… अब क्या मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘मैं ने कब कहा? अरे पगली, तेरे से अच्छी तो दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती… बस थोड़ा सा ज्यादा नहीं चुप रहना सीख ले. हर बात पर पलट कर वार मत किया कर… पगली अब इस उम्र में मैं कहां जाऊंगा?’’ शेखर बोला.

‘‘चाय पीयोगे?’’ शिखा ने दबे शब्दों में पूछा.

‘‘अरे, मैं तो कब से चाय के लिए तरस

रहा हूं.’’

‘‘अरे बेटी नेहा जरा आलू छीलना… सोच रही हूं चाय के साथ पकौड़े भी बना लेती. क्योंजी?’’ शिखा ने पूछा.

‘‘देर आए दुरुस्त आए,’’ शेखर ने हंसते

हुए कहा.

Best Political Satire : अदने आदमी का सूट

Best Political Satire : वाह,क्या किस्मत पाई है मोदीजी के सूट ने. बस 1 बार पहना और ओबामाजी के गले लगा और रातोंरात 10 लाख से साढ़े चार करोड़ रूपए का हो गया. वैसे ऐसा ही भाग्यशाली सूट हम सब के पास होता है. जी हां, वही शादी वाला सूट जिसे हम सहेज कर रखते हैं अच्छी या बुरी यादों की तरह. जितनी देखभाल उस सूट की एक आम आदमी करता है उतनी शायद मोदीजी ने भी न की होगी. असल में उन्हें टाइम कम मिला. हम ने तो अपनी इस फैमिली धरोहर को 20 सालों से संभाला हुआ है.

चलो, मोदीजी को क्वसाढ़े चार करोड़ मिल गए एक नेक काम के लिए. हमें तो कोई हमारे सूट की असल कीमत ही दे दे तो हम भी उस पैसे को दान में दे देंगे. सच्ची बिलकुल सच्ची. हम इतने में ही खुश हो जाएंगे. उस समय पूरे 5 हजार का था. 1 तोला सोने की कीमत के बराबर. चलो, आज सोना करीब क्व27 हजार है पर हमें इतना नहीं चाहिए. बस 5 हजार ही मिल जाएं तो काफी हैं. हम भी उन्हें नेक काम में लगा देंगे.

फिर दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे कि आखिर इसे खरीदेगा कौन? तो 1-1 कर उन सब के चेहरे आंखों के आगे से गुजरने लगे जिन के हम शादी में गले मिले थे. जब हम ने झुकझुक कर चाचा, मामा, फूफा आदि के पैर छुए थे तो कमर कितनी अकड़ गई थी. अब क्या उन में से कोई भी इसे न खरीदेगा?

अब छूने की बात से याद आई अपने 2 सालों की जो हमें घोड़ी से उतार कर स्टेज तक लाए थे. तब वे दोनों ही तो थे, जो इस सूट के अंगसंग रहे थे. अब उन से ज्यादा इस सूट की कीमत कौन जानता होगा? आखिरकार यह सूट उन के एकमेव जीजा का जो है.

मन ही मन संतुष्ट हो कर हम ने श्रीमतीजी को अपना खयाल ज्यों का त्यों कह सुनाया. उन्होंने पहले तो सारी बातें ध्यान से सुनीं और फिर हमें ऐसी खरीखरी सुनाई कि हम ने तोबा कर ली कि सूट तो क्या हम तो कभी रूमाल बेचने की भी नहीं सोचेंगे. श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘मेरे भाई क्या इतने गएगुजरे हैं, जो आप का उतारा हुआ सूट पहनेंगे? अगर गले लगने से कीमत बढ़ जाती है तो सब से ज्यादा तो हकदार इस के आप के जीजाजी हैं, जो शराब के नशे में शादी वाले दिन से ले कर रिसैप्शन तक आप को गले लगालगा कर नाच रहे थे. जैसे कह रहे हों कि बच्चू अब तुझे पता चलेगा शादी क्या होती है. अपनी ऐसी

बहन मेरे पल्ले बांधी है कि आज तक सांस नहीं आई है. ‘‘मेरे भाइयों ने तो सिर्फ 1 बार गले लगाया होगा और वह भी रीतिरिवाजों के चलते पर तुम्हारे जीजाजी तो सारी खुंदस इस सूट पर ही उतार रहे थे… उन्हें क्यों नहीं बेच देते यह सूट और फिर क्व5 हजार उन के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. वे भले ही इटैलियन सूट पहनते हों पर गले तो उन्हीं के लगा था न आप का यह पुश्तैनी सूट.’’

हम ने अपना थूक गिलते हुए जवाब दिया, ‘‘न बाबा न, जीजाजी के बारे में तो सोचना भी मत… उन के तो ड्राइवर तक इस से बढि़या सूट पहनते हैं.’’ यह सुनते ही श्रीमतीजी का गुस्सा कुकर की सीटी की तरह फट पड़ा. ‘‘तो क्या मेरे भाई उन के ड्राइवर से भी गएगुजरे हैं? क्या उन के पास सूटों का अकाल है, जो आप से खरीदें?’’

इतनी खरीखरी सुन कर हम ने सोच चलो जब इतने साल संभाला तो और कुछ साल संभाल लेते हैं. पर मोदीजी के सूट की नीलामी सोने नहीं देती थी. एक दिन श्रीमतीजी को पता नहीं कैसे दया आ गई. बोलीं, ‘‘अच्छा, चलो मैं बाई को दिखाती हूं. गरीब है पैसे नहीं दे पाएगी. पर अपनी तनख्वाह में से कटवाती रहेगी.’’ मुझे उन का सुझाव पसंद आ गया. चलो, कैश न सही ऐसे ही सही. पर यह क्या? श्रीमतीजी ने जैसे ही लक्ष्मी को सूट दिखाया तो वह नाकभौं सिकोड़ कर बोली, ‘‘बीबीजी, आजकल कौन पहनता है ऐसा सूट… यह तो कब का आउट औफ फैशन हो गया है. मेरा मर्द न पहने ऐसा सूट कभी…’’ श्रीमतीजी बड़बड़ाते हुए बोलीं, ‘‘ठीक है… ठीक है… नहीं लेना है तो मत ले पर कम से कम इतनी बेइज्जती भी तो न कर.’’

जाने क्या चोट लगी श्रीमतीजी के अहं को कि उन्होंने कमर कस ली हमारे अति प्रिय सूट से छुटकारा पाने की. दूसरा निशाना उन्होंने बरतन वाली को बनाया. हम खुश हो गए कि चलो एकाध डिनर सैट तो आ ही जाएगा. उसे बेटी को शादी में दे देंगे. चलो कैश न सही ढेर सारे बरतन ही सही. मगर बरतन वाली ने सूट देख कर कहा, ‘‘बीबीजी, यह कहां से लिया आप ने? क्या रघुवीर नगर में जहां पुराने कपड़ों को धोसाफ कर प्रैस कर के बेचा जाता है वहां से लाई हैं? इसे तो कोई भिखारी भी न लेगा.’’

हमें श्रीमती समेत गुस्सा तो बहुत आया पर हम ने उसे कुछ कहे बिना बाहर का रास्ता दिखाया. इतनी बेकदरी हमारे इतने अजीज सूट की. श्रीमतीजी का पारा 7वें आसमान पर पहुंच गया. वे गुस्से से बोलीं, ‘‘आइंदा इस घर में पैर भी मत रखना. रोज मेरा सिर खाती थी कि कोई पुराना कपड़ा हो तो दे दीजिए. और अब तुझे मैं ने इन की जिंदगी का सब से महंगा सूट दिखाया तो तू इसे भिखारियों वाला बोल रही है… दफा हो जा यहां से.’’

हम ने पूछा, ‘‘अब क्या करेंगे?’’

‘‘आप दिल छोटा न करो… कोई बात नहीं हम जमादार को दे देंगे. वह पैसे तो नहीं देगा पर दुआ तो देगा और फिर दुआ की कोई कीमत नहीं होती है,’’ श्रीमतीजी बोलीं.

हम इतने में ही खुश थे कि चलो मोदीजी के सूट की तरह हमारा सूट भी शान से इस घर से निकलेगा. पर यह क्या? श्रीमतीजी सूट के साथ कुछ और भी जमादार को दे रही थीं और कह रही थीं कि इस मनहूस सूट को मेरी नजरों से दूर ले जा. मानों शादी का अभी तक का सारा गुस्सा/खुंदस इसी सूट पर निकाल रही थीं. और जमादार क5 सौ यह कहते हुए मांग रहा था कि बीबीजी इतना भारी सूट उठा कर नहीं ले जा पाऊंगा. घर तक औटो करना पड़ेगा और फिर घर जा कर बीवी की डांट सहनी पड़ेगी वह अलग.

श्रीमतीजी ने 2 सौ दे कर हमारे नीलामी वाले सपने को मटियामेट कर दिया. अब तक हम समझ गए थे कि बड़े लोगों की बड़ी बातें, हम तो अदना आदमी हैं और वह भी शादीशुदा. जमादार खुशीखुशी 2 सौ जेब में डाल कर सूट उठा कर चलता बना. सूट घर से बाहर जा रहा था और हमें हसरत भरी निगाहों से देख रहा था जैसे कह रहा हो कि बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले.

Storytelling : अतृप्त प्यास

“तूने क्या सोच कर अपनी मां से मेरी शादी कराई ? जब देखो मैडम साधू माता के चरणों में पड़ी रहती है. दिन भर काम कर के मैं थकामांदा घर लौटता हूं कि चलो अब बीवी के साथ समय बिताऊंगा पर नहीं. बीवी तो कभी फ्री मिलती ही नहीं. कभी बाबा के आश्रम में तो कभी साधू माता के साथ फोन पर, कभी अपनी आश्रम की सहेलियों के साथ गायब रहती है तो कभी तुझ से बातें करने में मगन. मेरे पास आने का तो कभी समय ही नहीं है उस के पास. फिर क्यों मुझ से शादी कर मेरी जिंदगी खराब की?” निशा का तथाकथित डैडी यानी सौतेला पिता गुस्सा में बोले जा रहा था.

निशा कोई जवाब देने में असमर्थ थी. क्या करती? बातें तो उस की सही ही थीं। अपने पापा के मरने के बाद निशा ने काफी समय तक मां को अकेला और उदास देखा था. कॉलेज से उस के लौटने के बाद ही मां के चेहरे पर खुशी की चमक दिखाई पड़ती थी. वह कॉलेज के बाद का अपना सारा समय इसी प्रयास में निकाल देती कि किसी तरह मां खुश रहे. उन के होठों पर मुस्कान आ सके.

निशा का प्रयास रंग लाता। मां उस के साथ दुनिया के गम भुला कर खिलखिलाने लगतीं। तब उसे लगता जैसे वह दुनिया की सब से खुशहाल बेटी है. आखिर मां को मिला ही क्या था जीवन में? दिनरात ताने सुनाने वाली सास, हुक्का गुड़गुड़ ने वाले बीमार ससुर ,किशोर बेटे की असामयिक मौत का गम और फिर कम उम्र में ही विधवा हो जाने का दंश. आज के समय में मां के पास उस के सिवा अपना कहने वाला कौन था? मायके में भी एक भाई के सिवा कोई नहीं था और उस भाई का होना न होना बराबर था. वह सिंगापुर में रहता था और सालों में कभी मुलाकात होती थी.

ऐसे में अपनी शादी के बाद मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए निशा ने उन से दूसरी शादी की बात छेड़ी थी,”मां मेरी मानो अब आप भी शादी कर लो. अकेले जिंदगी कैसे गुजरेगी आप की ?”

मां एकदम से नाराज हो गई थी,” यह क्या कह रही है तू ?होश में तो है? इस उम्र में शादी करूंगी मैं? रमेश क्या सोचेंगे? मैं उन के सिवा किसी और के साथ….  नहींनहीं। कभी नहीं। कल्पना भी मत करना ऐसी बातों की.”

मां के साफ इनकार करने पर निशा का मुंह उतर गया था. निशा ने उन्हें फिर से समझाने का प्रयास किया था,” जरा ध्यान से सुनो आप मेरी बात. आप अब 50 साल से ऊपर की हो. पूरे घर में अकेली हो. कल को अचानक कोई तकलीफ हुई तो मेरे पहुंचतेपहुंचते तो बहुत देर हो जायेगी न. और फिर मेरे सासससुर का मिजाज तो जानती ही हो आप। उन्हें तो यही डर लगा रहता है कि कहीं मैं अपनी मां को हमेशा के लिए उन के घर ले कर न पहुँच जाऊँ. मेरे हाथ बंधे हुए हैं मां। वैसे भी मेरे घर आप की कोई इज्जत नहीं होगी तो फिर अपना घर ही बसा लो न. यही उपाय सब से बेहतर है. बी प्रैक्टिकल मॉ और पापा क्या सोचेंगे इस की चिंता आप बिलकुल भी मत करो. एक तो पापा अब इस दुनिया में है नहीं और यदि रहते भी तो आप को दुखी तो नहीं ही देखना चाहते।”

” पर बेटी इस उम्र में कोई और पुरुष?”

“तो क्या हुआ मां ? अपने बारे में सोचो आप. कोई बहुत बड़ा बैंकबैलेंस नहीं है आप के पास. बड़ा सा बंगला भी नहीं है. अकेली रहती हैं आप इस छोटे से घर में. नौकरचाकर भी नहीं हैं. आगे आप की उम्र बढ़ेगी. उम्र के साथ बीमारियां भी आती है. मैं आप की जिम्मेदारी उठाना भी चाहूं तो भी पति की मर्जी के खिलाफ ऐसा नहीं कर सकती। इसलिए शादी ही सब से अच्छा उपाय है. आप हां बोल दो मां। आप का जीवन सुरक्षित हो जाएगा। मैं भी निश्चिंत हो सकूंगी आप की तरफ से.”

“ठीक है बेटा। तुझे सही लगता है तो ऐसा ही सही,” बुझे मन से मा ने स्वीकृति दी थी पर निशा बहुत खुश थी. जल्दी से जीवनसाथी मेट्रोमोनियल साइट में मां की प्रोफाइल बनाने लगी , ‘ 50 साल की स्वस्थ, खूबसूरत और संस्कारी बहू…. ‘

मां यह पढ़ कर बहुत हंसी थी. फिर दोनों ने मिल कर प्रोफाइल तैयार की। पहला इंटरेस्ट भेजा था निशा के प्रेजेंट डैडी यानी कमल कुमार सिंह ने. 55 साल के बिजनेसमैन। बेटाबहू लंदन में सेटलड। नोएडा में अपना बंगलागाड़ी। निशा ने पहली नजर में ही यह रिश्ता पसंद कर लिया था. मां ने भी ज्यादा आनाकानी नहीं की और उन की शादी हो गई.

मां की शादी करा कर निशा बड़ी खुश थी. अपनी जिम्मेदारियां किसी और के माथे सौंप कर निशा को सुकून मिल रहा था पर उसे कहां पता था कि यह सुकून कुछ पलों का साथी है.

अगले दिन ही कमल कुमार निशा के आगे उस की मां की शिकायत का पिटारा खोल कर बैठ गए,”कल रात तुम्हारी मां ने बड़ा अजीब व्यवहार किया. मुझे करीब भी नहीं आने दिया. बस कहने लगी कि थोड़ा समय दो. मैं रमेश के साथ ऐसा नहीं कर सकती. रमेश जो जिन्दा भी नहीं उसी के ख्यालों में खोई रही कि कहीं उसे बुरा न लग जाए. यदि ऐसा था तो मुझ से शादी ही क्यों की उस ने ?”

निशा ने किसी तरह कमल कुमार को समझाया,” आप बस थोड़ा समय दो. ममा नॉर्मल हो जाएंगी. धीरेधीरे इस नई जिंदगी की आदी बन जाएंगी. ”

मगर ऐसा हुआ नहीं. 2-3 माह गुजर गए मगर निशा की मा ने कमल कुमार को करीब नहीं आने दिया. उल्टा अब तो वह एक बाबा की शिष्या भी बन गई थी. जब देखो भजनकीर्तन के प्रोग्राम में चली जाती. वहां की सहेलियों के साथ बातों में लगी रहती. कमल कुमार इंतजार में ही रह जाता मगर निशा की मां अपना बहुत कम समय ही उसे देती. कमल कुमार को यही शिकायत रहती कि वह पत्नी की तरह व्यवहार नहीं करती और उस की शारीरिक आवश्यकता को सिरे से नकार देती है.

निशा की एक सहेली थी, कुसुम. कुसुम के 2 किशोर उम्र के बच्चे थे. पति से तलाक हो चुका था. वह अक्सर निशा के घर आतीजाती रहती थी. उस दिन भी निशा मां के पास आई हुई थी और कुसुम उस के साथ बैठी चाय पी रही थी. निशा उस से अपने सौतेले पिता कमल कुमार और मां के बीच की दूरियों का जिक्र कर रही थी. तभी कमल कुमार ने घर में प्रवेश किया. सामान्य अभिवादन के बाद भी उस की नजरें कुसुम पर टिकी रहीं. “तेरा बाप तो बड़ा ठरकी लग रहा है,” कुसुम ने आहिस्ते से कहा.

यह बात निशा को भी महसूस हुई कि वह कुसुम को ऐसे देख रहा था जैसे कोई कामुक व्यक्ति किसी खूबसूरत स्त्री को घूरता है. इस के बाद तो निशा ने और भी 2 -3 बार नोटिस किया कि कमल कुमार की नजरें कुसुम में वह स्त्री ढूंढ रही हैं जो उस की अतृप्त प्यास को बुझा सके.

एक दिन कमल कुमार के कहने पर निशा ने सब के साथ शिमला घूमने का प्रोग्राम बनाया. कुसुम और मां भी साथ थीं. निशा ने 2 कमरे बुक कराए. एक मां और कमल कुमार के लिए और दूसरा अपने और कुसुम के लिए.

शाम का समय था. निशा की मां कुछ शॉपिंग के लिए बाहर निकली हुई थी. आते समय उन्होंने खानेपीने की चीजें भी रख लीं. कमरे में निशा और कुसुम दोनों ही नहीं थे पर दरवाजा खुला हुआ था. मां ने बेटी को आवाज लगाई तो अंदर वॉशरूम से निशा चिल्ला कर बोली, “मां 2 मिनट में आ रही हूं.”

“अच्छा तू आराम से आ… ,” कहते हुए मां ने दूसरे कमरे की चाबी ली और दरवाजा खोलने लगी. दरवाज़ा खुलते ही एकदम सामने का दृश्य देख कर वह भौंचक्की रह गई.

सामने कमल कुमार बेड पर कुसुम के साथ थे. कुसुम कमल कुमार से लिपटी जा रही थी. कमल कुमार कुसुम के होंठों का चुंबन लेने में व्यस्त थे. उन दोनों को अहसास ही नहीं हुआ कि कब रीता देवी दरवाजा खोल कर सामने खड़ी हो गईं हैं. रीता देवी से यह दृश्य देखा नहीं गया और वह उलटे पांव निशा के कमरे में आ कर चीखचीख कर रोने लगी.

निशा घबराती हुई बाहर निकली और मां से वजह पूछने लगी. रीता देवी रोते हुए केवल यही कहे जा रही थी ,” मैं नहीं जानती थी कि तेरी सहेली मेरे घर में डाका डालेगी. हाय ! कितनी बेशर्मी से दोनों … मैं यह देखने से पहले मर क्यों नहीं गई…..  निशा मैं फिर अकेली हो गई….”

निशा लगातार मां को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी,” मां बात सुनो मेरी… ”

पर रीता देवी आप से बाहर हुए जा रही थी, ” तेरी सहेली ने मेरी खुशियां लूट लीं.. मैं ने सोचा भी नहीं था कि तेरी सहेली ऐसा करेगी… ”

हल्ला सुन कर कमल कुमार और कुसुम भी भी नजरें चुराते कमरे में आ कर खड़े हो गए. उन्हें देख कर रीता देवी दहाड़ उठीं, ” मुझे क्या पता था कि मेरे पीठ पीछे यह सब होता है? मेरी बेटी की सहेली मेरे पति के साथ….. ? हाय मैं मर क्यों नहीं गई यह सब देखने से पहले….. ” कहतेकहते वह जमीन पर गिर पड़ीं और फूटफूट कर रोने लगीं.

रोतेरोते भी वह कुसुम को भलाबुरा सुनाती रहीं ,”मैं ने सोचा था कि मेरी बेटी मेरी खुशियों की चिंता कर रही है इसलिए मेरी शादी कराई पर मुझे क्या पता था कि इस सब के पीछे वह अपनी सहेली की खुशियां ढूंढ रही थी. मेरी अपनी बेटी की सहेली मेरे पति के प्यार पर डाके डाल रही है. तुझे लाज नहीं आई कुसुम अपने बच्चों को छोड़ कर उस शख्स के साथ मुंह काला कर रही है जो रिश्ते में तेरे बाप जैसा है और लानत है ऐसे मर्द पर भी जिस ने एक विधवा से केवल इस लिए शादी की ताकि उस की जवान बेटी की सहेली को अपने झांसे में ले कर मजे उड़ा सके…”

“बस करो रीता। किन रिश्तो की बात कर रही हो तुम? मेरे साथ अपना रिश्ता भला कब निभाया तुम ने? हमारी शादी को 5 महीने बीत चुके हैं पर आज तक 1 दिन भी मुझे अपने करीब नहीं आने दिया। जब साथ में बैठती हो, रमेश की बातें करने लगती हो. जब मैं प्यार करना चाहता हूं तो भी रमेश बीच में आ जाता है. तुम आज भी रमेश के लिए जीती हो , रमेश के लिए सजती हो और रमेश के लिए ही रोतीहंसती हो. तो फिर मैं कहां हूं? जब तुम्हें मेरी खुशियों की परवाह नहीं तो फिर मैं तुम्हारी परवाह क्यों करूं ? हो कौन तुम मेरी जिंदगी में ? क्या दिया है तुम ने मुझे ? क्यों की थी मैं ने शादी ? एक ऐसी औरत को अपने घर में लाने के लिए जिस के पास मेरे लिए कभी समय ही नहीं? अपने बेटे को छोड़ कर मैं यहां आ कर क्यों बसा? अगर ऐसे ही रहना था तो उसी के साथ क्यों न रहूं? “कमल कुमार का गुस्सा भी भड़क उठा था.

अब तक निशा भी संभल चुकी थी. मां के कन्धों को झकझोरते हुए बोली, “मां यह पुरुष जो सामने खड़ा है, इस से मैं ने आप की शादी कराई थी ताकि आप को इस के जरिए सुरक्षा मिल सके.आप का भविष्य सुरक्षित हो जाए. आप का अपना घर हो, पति हो. जरूरत के वक्त आप को किसी अपने या पैसों के लिए मेरे मोहताज न रहना पड़े। जब कि मैं जानती थी कि मैं आप के लिए कुछ नहीं कर सकूंगी। पर आप ने इन्हें अपनाया ही नहीं। मिस्टर कमल कुमार ने कितनी दफा मुझ से अपने दुखड़े रोए. मैं ने आप को समझाया पर आप नहीं समझी और फिर धीरेधीरे मिस्टर कमल की नजरें कुसुम पर गईं . उन्हें लगा लगा कि कुसुम वह स्त्री बन सकती है जो उन्हें प्यार और साथ देगी. उन की शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगी. मैं चाहती तो साफ इंकार कर सकती थी. कुसुम को उन से दूर कर सकती थी. पर हर बार इन्होने यह धमकी दी कि वह तुम्हें छोड़ कर चले जाएंगे. यह बात मुझे बैचैन कर देती थी. मैं गिड़गिड़ ई। आप का साथ न छोड़ने की विनती की और तब बदले में उन्होंने कीमत के तौर पर कुसुम का साथ मांगा। कुसुम भी पहले तैयार नहीं थी पर बाद में उस ने इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे दी. ”

“तो क्या उस ने इस वजह से…. ” रीता देवी के शब्द गले में अटक कर रह गए.

“हां मां,  आप ही बताओ क्या करती मैं? आप इन के और अपने बीच से न तो दूरियां हटने दे रही थी और न पापा को बीच में लाने से रुकी. बहुत समय तक मैं कशमकश में रही. पर अंत में यह सोच कर कि शायद समय के साथ आप बदल जाओ मैं ने इन का कहा मान लिया. इन्हें आप की जिंदगी में रोके रखने के लिए वह सब किया जो इन्होंने कहा. मैं मानती हूं कि मैं गलत हूं. कुसुम भी गलत है और मिस्टर कुमार भी गलत हैं. पर क्या अपने सीने पर हाथ रख कर आप कह सकती है कि आप गलत नहीं? गलती की शुरुआत तो आप ने ही की थी न. तो फिर हमारी तरफ उंगली उठाने से पहले अपने अंदर झांक कर देखो. अब सब आप के सामने है. आप को मिस्टर कुमार से रिश्ता रखना है या नहीं और कितना रिश्ता रखना है यह सब आप के ऊपर छोड़ कर जा रही हूं मैं. कुसुम भी कभी आप की जिंदगी में दोबारा नहीं आएगी. अब मैं आप की जिंदगी में कोई दखल भी नहीं दूंगी. पर अपना कल आप को खुद देखना है. पापा लौट कर नहीं आएंगे आप को संभालने….. इस लिए फैसला आप का है कि आप मिस्टर कुमार को माफ कर नया जीवन शुरू करेगी या तलाक ले कर … ,” अपनी बात अधूरी छोड़ते हुए निशा ने बैग उठाया और कुसुम के साथ जाने लगी. रीता देवी ने हाथ बढ़ा कर निशा को रोका और निढाल सी सोफे पर बैठती हुई बोली, “सॉरी मिस्टर कुमार…”

Stories 2025 : यमदूत का चक्कर

राइटर- वंदना सिंह

सरला को कहां पता था कि आज उस के जीवन का यह आखिरी दिन है. पता होता तो क्या वह अचार के  दोनों बड़े मर्तबान भला धूप में न रख देती और छुटकी के स्वेटर का तो केवल गला ही बाकी बचा था, उसे न पूरा कर लेती. खैर, यह सब तो तब होता जब सरला को पता होता कि उसे बस, आज और अभी चल देना है.

पिछले 45 सालों से, इस 2 कमरे के छोटे से घर के अनंत कार्यों में वह इतनी व्यस्त थी कि सचमुच उसे मरने तक की फुरसत नहीं थी, लेकिन यह तो एक मुहावरा है. मरना तो उसे था ही. हर रोज की तरह आज भी जब मुंहअंधेरे उस की आंख खुली तो लगा कि उस का शरीर दर्द से जैसे जकड़ गया हो. बड़ी कोशिश के बाद भी न तो उस के मुंह से आवाज निकली न वह हिलडुल सकी. पंडित गिरजा शंकर शर्मा बगल के पलंग पर लेटे चैन से खर्राटे भर रहे थे. सरला को बहुत गुस्सा आया कि ऐसी भी क्या नींद कि बगल में लेटा इनसान मर जाए पर इस भले आदमी को खबर भी न हो. फिर पूरी शक्ति लगा कर उठने की दोबारा कोशिश की पर नाकामयाब रही.

सरला मन ही मन सोचने लगी, क्या करूं. अगर जल्दी उठ कर पानी नहीं भरा तो पूरे दिन घर में पानी की हायतौबा मचेगी. और तो और ऊपर वाली किरायेदारनी को तो मौका मिल जाएगा मुफ्त का पानी बहाने का.

वह झटके से उठ बैठी, लेकिन तभी उसे 4 बलशाली हाथों ने पुन: पकड़ कर लिटा दिया. सरला ने अचकचा कर देखा तो 2 अजीबोगरीब हुलिए के भयानक सी शक्लों वाले आदमी उसे पकडे़ हुए थे. वह पूरा जोर लगा कर चिल्लाई मगर उस की आवाज गले में घुट कर रह गई. वह आंखें फाड़फाड़ कर उन शक्लों को पहचानने की कोशिश करने लगी. तभी उस में से एक बोला, ‘‘श्रीमती सरला देवी, आप का समय पूरा हो गया है. हम यमदूत आप को लेने आए हैं.’’

पहले तो सरला को लगा कि शायद टीवी या रेडियो से आवाज आ रही है. जिंदगी भर छुटकी की मां, बहूजी, अम्मां और ऐसे कितने संबोधन सुनतेसुनते उसे याद ही नहीं रहा कि उसी का नाम ‘सरला’ है. इतने आदरपूर्वक श्रीमती सरला देवी तो आज तक किसी ने बुलाया नहीं. मारे खुशी के उस की आंखों में आंसू भर आए. हां, कभीकभी न्योते के कार्ड पर श्री एवं श्रीमती गिरजा शंकर शर्मा लिखा देख कर ही वह खुशी से गद्गद हो जाया करती है. पंडितजी से अलग उस का भी कोई नाम है यह वह भूल चुकी थी.

खैर, दिमाग पर जोर डालने पर याद आया कि श्रीमती सरला देवी उसी का नाम है. इस का मतलब उसी का बुलावा आ गया है पर पंडितजी के बगैर वह आज तक कहीं गई नहीं, अब क्या करे, यही सोच रही थी कि यमदूतों ने फिर कहा, ‘‘माताजी, चलिए. अभी हमें और भी बहुत काम हैं.’’

अब सरला रोंआसी हो कर कहने लगी, ‘‘भैया, जरा पंडितजी को उठ जाने दो. उन को घर की तालाकुंजी बता दूं फिर चलती हूं. तब तक तुम लोग कोई दूसरा काम कर आओ.’’

यमदूतों ने कहा, ‘‘माताजी, हमारे पास इतनी पावर नहीं होती, फिर भी हम आप को 5 मिनट का समय देते हैं. आप जो कुछ करना चाहती हैं, जल्दी कर लें.’’

सरला घुटनों का दर्द भूल कर फुर्ती से उठ बैठी और पंडितजी को झिंझोड़ कर जगाया. उनींदे से पंडितजी बोल पडे़, ‘‘क्या कर रही हो, नाहक ही मेरी नींद खराब कर दी. अब जाओ, अदरक वाली चाय जल्दी से बना लाओ.’’

‘‘अरे, आग लगे तुम्हारी नींद को, तुम्हें चाय की सूझ रही है…यहां यमदूत मुझे लेने के लिए खडे़ हैं.’’

‘‘तुम्हें तो रोज ही यमदूत लेने आते हैं, यह कौन सी नई बात है. जाओ, पहले चाय बना लाओ फिर चली जाना.’’

सरला ने सोचा इन से सर फोड़ने में ही 5 मिनट खर्च हो जाएंगे और कोई फायदा भी नहीं होगा. वह चाय बनाने गई ही थी कि इतनी देर में 5 मिनट खत्म. यमदूत फिर सर पर सवार. सरला ने कहा, ‘‘अब मैं क्या करूं? 5 मिनट तो पंडितजी की चाय बनाने में ही लग गए. घर का प्रबंध अभी कहां हुआ? भैया, आप लोगों का बड़ा पुण्य, मुझे थोड़ा समय और दे दो.’’

यमदूतों ने कहा, ‘‘अम्मां, यह नियम के विरुद्ध है. पर आप ने जिंदगी भर कोई बुराई नहीं की है इसलिए हम अपनी स्पेशल पावर से आप को 1 घंटा देते हैं. बस, इस के बाद कुछ मत कहना.’’

‘‘अरे बेटा, इतना बहुत है,’’ कह कर सरला देवी झटपट पिछले कमरे का दरवाजा खोल उस में रखे बडे़ बक्सों में से सामान निकालने लगी. अब क्या करूं. जब जाना ही है, तो सारे सामान का ठीक से बंटवारा करती चलूं. बक्सों में से निकालनिकाल कर पुरानी साडि़यां, कुछ बचेखुचे जेवर, चांदी के सिक्के, बड़के और छुटके के अन्नप्राशन के चांदी के छोटेछोटे बरतन, पायलें, पुराने कई जोड़ी बिछुए, शादी के समय के कुछ बरतन आदि जल्दीजल्दी निकाल कर उस की 4 ढेरियां बनाने बैठ गई.

सरला ने अपनी एक बनारसी साड़ी बड़के की बहू के नाम रखी तो दूसरी थोड़ी हलकी छुटके की बहू के नाम. इतने में याद आया कि अभी पिछली छुट्टी में जब बड़का आया था तो बड़ी बहू ने खुद तो कैसी बढि़याबढि़या साडि़यां पहनी थीं और उस के लिए लाई थी रद्दी साड़ी, जैसे कि वह इसी लायक है. सरला का मन फिर गया, तो उस ने वह भारी साड़ी उठा कर छुटके की बहू को रख दी, फिर सोचने लगी कि छुटके की बहू ने ही कब इस घर को अपना समझा है. न खुद आती है न छुटके को आने देती है. उसी ने कौन बड़ा सुख दिया है. सरला ने तत्काल वह साड़ी बड़की बिटिया शांति को देने का निर्णय कर लिया.

इसी तरह हर एक कपड़ा और गहना सभी बच्चों के गुणदोषों को परखते हुए अलगअलग ढेरी में रखते हुए कब 1 घंटा बीत गया पता ही नहीं चला. यमदूत फिर आ कर खडे़ हो गए. सरला फिर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘अभी तो सारे बक्सों का सामान वैसे ही पड़ा है. पंडितजी को तो कुछ पता नहीं है. तमाम धराउठाई मेरे ही हाथों की है. 45 साल से जोड़ी गृहस्थी भला ऐसे ही छोड़ कर कैसे चल दूं. पिछला कमरा फिर इस के बाद और भी न जाने कितने काम, खटाई धूप में डालनी है. कांच का बढि़या वाला टी सेट पड़ोसी की लड़की नयना को देखने वाले  आए थे तब ही नयना की मां मांग कर ले गई, उसे अभी वापस लाना है.

‘‘गुल्लो महरी की बिटिया कब से कह रही थी, सरला अपनी पुरानी साड़ी से उस का फ्राक सिल रही थी, जो वहीं का वहीं सिलाई मशीन पर आधा सिला रखा है. रमुआ पिछली बार के कपड़ों में पंडितजी की एक कमीज कम लाया था, वह भी मंगानी है.

‘‘छुटके के बेटे का मुंडन नजदीक है, सो अनाज धोनेपछोरने के लिए काम वाली लगा रखी है. वह भी 2 दिन की मजदूरी पेशगी ले कर बैठ गई है, उसे बुलवाया है. और यह छुटकी सुशीला… इस के लच्छन भी ठीक नहीं दिख रहे हैं, जब देखो, सिंगार में ही लगी रहती है. पंडितजी से कह कर इस साल इस का ब्याह भी निबटाना है. अरे, मुझे तो सचमुच ही मरने की भी फुरसत नहीं है.’’

बोलतेबोलते अचानक सरला को कोई भारी चीज गिरने की आवाज सुनाई दी. उसे पता ही नहीं चला कि उस की बात सुनतेसुनते दोनों यमदूत चकरा कर वहीं गिर पडे़ हैं. ताजा खबर मिलने तक वे दयालु यमदूत उसे समय पर समय देते गए. यहां तक कि यमलोक के नियम तोड़ने के जुर्म में उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. दोनों यमदूत आज भी सरला के घर में उस के कामों को खत्म कराने में लगे हैं पर सरला के कामों का न कोई अंत होता है और न उस को मरने की फुरसत मिलती है.

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