Love At First Sight- लाल फ्रेम: जब पहली नजर में दिया से हुआ प्रियांक को प्यार

कार पार्क कर के प्रियांक तेज कदमों से इधरउधर कुछ ढूंढ़ता हुआ औफिस की लिफ्ट की तरफ बढ़ गया.  कहीं वह लाल फ्रेम के चश्मे वाली स्मार्ट सुंदरी पहले चली तो नहीं गई. लिफ्ट का दरवाजा खुला मिल गया, वह सोच ही रहा था कि अंदर घुसूं या नहीं, तभी चिरपरिचित सुगंध के झोंके के साथ वह युवती लिफ्ट में प्रवेश कर गई तो वह भी यंत्रवत अंदर चला आया. अब तो रोज ही का कुछ ऐसा किस्सा था. नजरें मिलतीं, फिर दोनों दूसरी ओर देखने लगते. धीरेधीरे वे एकदूसरे को पहचानने लगे तो देख कर अब स्माइल भी करने लगे. युवती 10वीं मंजिल पर जाती तो 11वीं मंजिल पर उतर कर उस के साथ के खुशनुमा एहसासों को समेटे ऊर्जावान हुआ प्रियांक दोगुने उत्साह से सीढि़यां उतरता तीसरी मंजिल पर स्थित अपने औफिस में गुनगुनाते हुए पहुंच जाता.

‘ला ल ला हूम् हूम् ल ला…चलो, अच्छा हुआ उसे आज भी नहीं पता चला कि मैं सिर्फ उस का साथ पाने के लिए ही 11वीं मंजिल तक जाता हूं. उस के लाल फ्रेम ने तो मेरे दिल को ही फ्रेम कर लिया है…’ अपनी धुन में सोचता प्रियांक फिसलतेफिसलते बचा.

‘‘अरे भाई, संभल के, प्रियांक, क्या बात है, बड़ा खुश नजर आ रहा है. कहीं किसी से प्यार तो नहीं हो गया…. और यह बता ऊपर से कहां से आ रहा है? कई बार पहले भी तुम्हें ऊपर सीढि़यों से आते देखा, लेकिन पूछना भूल जाता हूं.’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो प्यारे,’’ प्रियांक ने मस्ती में जवाब दिया.

‘‘वाह भई वाह, मुबारक हो, मुबारक हो…अब कौन है, क्या नाम है ये भी तो बता दो प्यारे.’’

‘‘अरे ठहर भई, सब यहीं पूछ लेगा, कैंटीन में बात करते हैं. वैसे, इस से ज्यादा मुझे भी कुछ नहीं पता, बस,’’ कह कर प्रियांक मुसकराया.

जिस दिन वह युवती नहीं मिलती तो पूरे दिन उस का मन फ्यूज बल्ब जैसा बुझाबुझा सा रहता. न तो उस दिन उस के मन को तरोताजा करने वाली वह खुशबू रचबस पाती, न ही किसी काम में उस का मन लगता. 2 महीने तक यही सिलसिला चलता रहा.

फिर वह औफिस के बाद भी उस का साथ पाने के लिए इंतजार करता… उस के साथ ही बाहर निकलता और कार पार्किंग तक साथसाथ जाता. पता चला कि घर का रास्ता भी कुछ दूर तक एक ही है. उन की कार कभी आगे, कभी पीछे होती, नजरें मिलतीं, वे मुसकराते. इतने में उस के घर का रास्ता आ जाता. आखिर में लड़की की कार उसे बाय कहते हुए आगे निकल जाती. प्रियांक मन मसोस कर रह जाता.

कुछ दिन यों ही बीत गए. प्रियांक उस युवती का इंतजार तो करता लेकिन दूर से ही उस का लाल फ्रेम देख कर झट से लिफ्ट के अंदर हो लेता, जैसा कि उस ने उसे देखा ही नहीं. ऐसा इसलिए करता कि वह यह न समझ बैठे कि मैं उस से मुहब्बत करता हूं. पर क्या मैं सही में तो उस से प्यार नहीं करने लगा हूं.

उधर भीड़ में भी वह युवती दिया उसे महसूस कर लेती. उस का दिल जोरों से धड़क उठता. ऐसा क्यों हो रहा है, कहीं उस अनजाने से प्यार तो नहीं हो गया. यह सोचते ही उस के लाल फ्रेम के नीचे दोनों कान और गुलाबी गाल गरम लाल हो कर और भी मैच करने लगते. वह कोशिश करती कि आंख बचा कर निकल जाए, पर आंखें तो जैसे उसी का पीछा करने को आतुर रहतीं और जैसे ही वह देखती, उस का जी धक से हो उठता.

बहुत पुराना मम्मी का पसंदीदा गाना उस के जेहन में चलने लगता…’ मेरे सामने जब तू आता है जी धक से मेरा हो जाता है… महसूस ये होता है मुझ को जैसे मैं तेरा दम भरती हूं, इस बात से ये न समझ लेना कि मैं तुझ से मुहब्बत करती हूं…’ सच ही तो है, कितनी हकीकत है इस गाने में. उस ने माथे पर उभर आया पसीना पोंछ लिया था. जबतब मेरा पीछा ही करता रहता है, मेरा ही इंतजार कर रहा था शायद, पर आता देख जल्दी से अंदर हो लिया वरना लिफ्ट और भी तो जाती हैं. यह महज संयोग तो नहीं हो सकता. कभीकभी लिफ्ट के डोर पर ही उधर मुुंह घुमा कर खड़ा हो जाता है जब तक मैं चढ़ नहीं जाती. फिर भी, वह दिखने में कोई लुच्चालफंगा तो नहीं लगता. हां, अकड़ू जरूर लगता है.

एक दिन उसे आता देख वह लिफ्ट रोक कर खड़ा हो गया कि तभी लाल फ्रेम वाली लड़की से पहले तेज चलती हुई एक मोटी अफ्रीकन महिला टकराई और वह धड़ाम से नीचे गिर गई. महिला बड़ेबड़े हाथों से जल्दी का इशारा करते हुए सौरीसौरी बोलते हुए फिर उसी तेजी से निकल गई. प्रियांक लिफ्ट से बाहर आ कर उस की ओर लपका.

‘‘मे आई हैल्प यू,’’ उस ने संकोच से हाथ बढ़ा दिया था.

‘‘नोनो थैंक्स…इट्स ओके.’’

‘‘रियली?’’

वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई. तो प्रियांक ने उस का बैग झाड़ कर उसे थमा दिया.

‘‘अजीब हैं लोग, अपनी तेजी में अपने सिवा कुछ और देख ही नहीं पाते…’’

‘‘हूं,’’ एक पल को उस ने नजरें उठा कर देखा, कुछ अलग सा आकर्षण लगा था युवक में उसे.

बस, फिर खामोशी…

चलते हुए दोनों लिफ्ट के अंदर हो लिए.

‘वह इग्नोर कर रही है तो मैं कौन सा मरा जा रहा हूं.’ उधर दिया भी सोच रही थी, मैं ने एक बार मना किया तो क्या दोबारा भी तो पूछ सकता था, कितना दर्द हुआ उठने में, अब खड़े होने में तकलीफ हो रही है. अवसर का लाभ न उठा पाने का उसे भी मलाल था.

इस बार हफ्तेदस दिन हो गए, प्रियांक को लड़की दिखी ही नहीं. प्रियांक की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. अपने औफिस से शायद उस ने छुट्टी ली होगी, घर पर कोई शादीवादी हो. कहीं बीमार तो नहीं, कोई दुर्घटना… अरे यार, मैं भी क्याक्या फालतू सोचे जा रहा हूं… बुद्धू हूं जो उस का नाम भी नहीं पता किया. उस के औफिस जा कर पूछूं भी तो क्या कैसे? वह लाल फ्रेम वाली मैडम? हां, चपरासी से पूछना ठीक रहेगा, बाहर जो बैठता है उसी से पूछता हूं.

उस दिन शाम को औफिस से निकलते वक्त मौका देख कर उस ने चपरासी से पूछ ही लिया था.

‘‘कौन? लाल चश्मेवाली? वे दिया मैम हैं साब, कोई काम था क्या…’’

‘‘कई दिनों से औफिस नहीं आ रहीं? क्या बात हो गई?’’

‘‘अब मुझे क्या पता, कोई काम था क्या?’’ उस ने दोबारा पूछा था.

‘‘नहीं, यों ही. कई दिनों से देखा नहीं,’’ अपने आप झुंझलाए खड़े प्रियांक के मन में तो आ रहा था कि कह दे कि अपने काम से काम रख, औफिस की इतनी सी खबर नहीं रख सकता तो क्या कर सकता है. उसे अपनी ओर देखतेदेखते वह खिसियाया सा लिफ्ट की तरफ मुड़ गया. चलो, यह तो अच्छा हुआ, नाम तो पता चला उस का. दिलोदिमाग उजाले से भर गया हो जैसे…‘‘दिया,’’ वह बोल उठा था.

3 दिनों बाद प्रियांक के साथ ही दिया कि कार पार्किंग में रुकी. दिया को देखते ही वह झटके से गाड़ी से उतरा, फिर सधे कदमों से उस के पास पहुंचने से अपनेआप को रोक नहीं पाया. वह नीचे उतरी थी. उस की लौंग स्कर्ट के नीचे बाएं पैर की एंकल में बंधी क्रेप बैंडेज साफ नजर आ रही थी. उसे देख कर वह मुसकराई और धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.

‘‘मैं कुछ मदद करूं?’’ वह  सहारा देने बढ़ा था.

‘‘नो थैंक्स, इट्स ओके… आप चलें,’’ अपना चश्मा ठीक करते हुए वह मुसकराई. अपने दिल की तेज होती धड़कन उसे साफ सुनाई देने लगी थी. वह भी साथसाथ चलने लगा.

‘‘मैं, प्रियांक, 11वीं मंजिल पर स्थित निप्पो ओरिएंटल में काम करता हूं. आप को कई बार आतेजाते देखा है. पर कभी परिचय नहीं हुआ था. कैसे चोट लगा ली आप को?’’ वह मन की अकुलाहट छिपाते हुए बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने लगा था.

‘‘माइसैल्फ दिया, दिया दीक्षित.’’

‘‘दिया, आई नो.’’

‘‘जी?’’ दिया ने उसे हैरानी से देखा था.

‘‘जी, वो आप भी नाम बताएंगी, मैं जानता था,’’ थोड़ी घबराहट के साथ वह बात घुमाने में कामयाब हो गया था.

‘‘एक मैरिज पार्टी में गई थी. डांस करते समय पैर ऊंचेनीचे पड़ा और बस मुड़ गया. जबरदस्त मोच आ गई थी. बिलकुल नहीं चला जा रहा था. अब तो काफी ठीक हूं,’’ कह कर वह फिर मुसकराई.

‘‘अच्छा, डांस का तो मैं भी दीवाना हूं. बस, मौका मिलना चाहिए कि शुरू हो जाता हूं. हाहा,’’ अपने जोक पर खुद ही हंसा था. दिया को मौन देख कर हंसी को ब्रेक लग गया था. वह सीरियस होते हुए बोला, ‘‘आप का मेरा रास्ता काफी दूर तक एक ही है. आप चाहें तो आप को मैं घर से ही पिकड्रौप कर सकता हूं. आप को गाड़ी चलाने में बेकार की असुविधा नहीं झेलनी पड़ेगी. मैं लाजपत नगर मुड़ जाता हूं, आप शायद मूलचंद…साउथऐक्स… वह बातोंबातों में उस का पताठिकाना जान लेना चाहता था.

‘‘ओ नो. चोट बाएं पैर में है, फिर कार को चलाने के लिए एक ही पैर की जरूरत पड़ती है. औटोमैटिक है न,’’ कह कर वह मुसकराई.

ओ क्विड, नाइस. कार है तो छोटी सी पर पिकअप फीचर बढि़या हैं. मेरे एक दोस्त के पास भी यही है. मैं ने चलाई है पर वह औटोमेटिक मौडल नहीं थी,’’ वह खिसियाई हंसी हंसा. थोड़ी देर बाद वे दोनों लिफ्ट के अंदर थे.

‘‘शाम को मैं आप का वेट कर लूंगा, निकलेंगे साथ ही घर को… क्या पता कोई मदद ही हो जाए,’’ प्रियांक ने माथे पर आई झूलती घुंघराले बालों की लट को स्टाइल से ऊपर किया तो माथे की नसों के साथ उस का चेहरा चमकने लगा.

‘‘ओके, नो प्रौब्लम,’’ कुछ तो आकर्षण था प्रियांक के चितवन में, जब भी देखती तो उस की नजरें जैसे बंध जातीं. पर जाहिर नहीं होने देती.

शाम को दिया लिफ्ट से बाहर निकली तो प्रियांक खड़ा मिला.

‘‘चलें?’’ दिया लिफ्ट से उतरी तो प्रियांक की प्रश्नवाचक नजरें पूछ रही थीं.

‘‘हूं, उस ने हामी भरी तो प्रियांक ने बड़े हक से उस के हाथों से बड़ा बैग अपने हाथों में ले लिया.’’

‘‘कोई नहीं, इस में क्या हुआ, इंसान इंसान के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा,’’ दोनों मुसकरा दिए.

‘‘न्यू कौफी होम की कौफी पी है आप ने, गजब की है.’’

‘‘अच्छा?’’ कुछ पलों के साथ के लिए थोड़ी दिलचस्पी दिखाना दिया को अच्छा लग रहा था.

‘‘मैं जा रहा हूं, ट्राई करनी है आप को? थोड़ा टाइम हो तो?’’ वह अपना भाव बनाए हुए बोला.

‘‘डोंट माइंड, आज देखती हूं पी कर, काफी थक भी गई हूं. काम था औफिस में. किसी ने बताया ही नहीं कभी. मैं भी तो बस, औफिस आती हूं, काम किया और फिर सीधे घर, चलिए,’’ आज न जाने कैसे दिया ने आसानी से हामी भर दी. जैसे उस के साथ के लिए तड़प रही हो और इतने दिनों तक उसे न देखने की सारी कसर अभी पूरी कर लेना चाहती हो. वह खुद हैरान थी, लेकिन उस ने कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया. उस के दिल की धड़कन कुछ हद तक सामान्य हो गई थी.

‘‘घर पर इंतजार करने वाले हों तो औफिस के बाद घर जाना ही अच्छा लगता है,’’ शायद वह बता दे कि कौनकौन रहता है उस के घर में साथ. पर नहीं, दिया ने तो बात का रुख ही मोड़ दिया.

‘‘अंदर नहीं, यहीं बाहर ओपन एयर में बैठते हैं. वेटर…’’ उस ने पुकारा था.

‘‘अरे, मैं और्डर दे कर आता हूं. कूपन सिस्टम है यहां, भीड़ देख रही हैं? आप बैठिए, मैं ले आता हूं.’’

‘‘वाउ, वेरी नाइस कौफी, पी कर दिनभर की थकान दूर हो गई,’’ कौफी पी कर दिया ने कहा. इधरउधर की बातें करते हुए वह चोर नजरों से उसे बारबार देख लेती. उस का साथ दिया को अच्छा लग रहा था. कुछ और साथ बैठना भी चाहती थी पर कहीं ये ज्यादा ही भाव में न आ जाए…

‘‘अब चलना चाहिए मिस्टर प्रियांक.’’

‘‘हां, चलिए.’’ मन तो उस का भी नहीं कर रहा था कभी जाने का. वह शाम के धुंधलके में चल रही मंदमंद बयार की दीवाना बनाने वाली चिरपरिचित भीनीभीनी सुगंध में सबकुछ भूल जाना चाहता था. पर मन ही मन सोचता कि इसे पता नहीं चलने देना है अभी, कहीं मुझे चिपकू न समझने लगे. घमंडी है थोड़ी, न घर बताया, न घर में कौनकौन है बताया. बस, बात घुमा दी. कहीं मुझे ऐसावैसा तो नहीं समझ रही मिस लाल फ्रेम. मैं भी थोड़ा कड़क, थोड़ा रिजर्व बन जाता हूं. पर इस के बारे में जानने का जो दिल करता है, उस का क्या करूं?

एक दिन प्रियांक ने ठान लिया कि जैसे ही दिया की कार आगे निकलेगी, वह बैक कर के गाड़ी वापस कर लेगा और फिर दिया का गंतव्य जान कर ही रहेगा. उस ने ऐसा ही किया. दिया जान भी नहीं पाई कि वह एक निश्चित दूरी बनाते हुए उस के पीछे चलने लगा पर दिया ने तो यू टर्न ले लिया और आश्रम के पैट्रोल पंप के साथ लगे मकानों में से किसी एक में घुस गई. 3 दिन लगातार पीछा करने के बाद प्रियांक इस नतीजे पर पहुंचा.

‘तो शायद मुझे चकमा देने के लिए ऐसा किया जा रहा था ताकि यहां रहती होगी, मैं सोच भी न सकूं… हाउस नंबर ये, नेम प्लेट पर नाम रिटायर्ड कर्नल एस के दीक्षित. फिर तो सही है… ठिकाने का पता तो लगा ही लिया मिस लाल फ्रेम. मगर खाली पते का करूंगा क्या?’ अपना सवाल सोच वह बौखलाया सा सड़क पर ही दो पल रुका रहा. ‘सड़कछाप आशिक तो नहीं कि मुंह उठाए घर चला जाऊं… पुरानी फिल्मों के हीरो जैसे कि मैं आप की लड़की का हाथ मांगने आया हूं. लड़की अपने लाल फ्रेम में से घूरे कि जैसे’ मेरा तो इस से कोई सरोकार ही नहीं. और कर्नल बाप मुझे गोली से ही उड़ा दे. अच्छा लगने या एकतरफा प्यार से क्या हो सकता है भला? वह तो अपने ही में रहती है, कछुए की तरह सबकुछ सिकोड़ कर बैठ जाती है, कुछ बताना ही नहीं चाहती. शायद ट्राई तो किया था या मेरी तरह वह भी कह नहीं पाती हो. अगर ऐसा है तो कायनात पर ही छोड़ देते हैं… पर शिद्दत से, बस, चाहो और बाकी कायनात पर छोड़ दो. नो एफर्ट… यह दुनिया का एक ही उदाहरण होगा शायद… चलता हूं…’ सोच कर वह मुसकराया. कार की दीवार पर हलके से मुक्के मारता वह वापस हो लिया.

‘आज ऊपर जा कर इन की मंजिल देख ही आती हूं, जनाब वहां काम करते भी हैं या नहीं… क्यों इस के बारे में जानने को दिल करता है. कहीं वाकई इस से मुझे इश्क तो नहीं होने लगा.’ दिया अपनी मंजिल पर न उतर कर आज प्रियांक के साथ उस के 11वें फ्लोर पर पहुंच गई.

‘‘चलिए, आज थोड़ा टाइम है मैं ने सोचा आप का औफिस ही देख लेती हूं. वैसे भी मैं ने इस बिल्डिंग में किसी और फ्लोर को अभी देखा नहीं…’’

अचकचा गया था प्रियांक उस के इस अचानक निर्णय पर. अब…‘ क्या कहे, मैं ने उस का साथ पाने के लिए उस से 11वीं फ्लोर पर अपना औफिस होने का झूठ बोला था, पर सच तो अब बोलना ही पड़ेगा. खिसियाया सा वह बोला, ‘‘वो दरअसल, मेरा औफिस तो तीसरे फ्लोर पर ही है. मैं ने आप का साथ पाने के लिए आप से झूठ बोला था दिया पर आप भी…मूलचंद नहीं… बल्कि आश्रम में…’’ उस के मुंह से अधूरा वाक्य रोकतेरोकते भी फिसल ही गया था.

अब खिसियाने की बारी दिया की थी, ‘अच्छा, तो इसे मेरे झूठ का पता चल गया कि मैं इस के मोड़ से आगे मूलचंद साउथऐक्स वगैरह में कहीं नहीं बल्कि इस के भी पहले रहती हूं. लगता है मेरा पीछा करते हुए उस ने मेरा घर देख लिया, तभी तो आश्रम…’’ सोचते ही उस के दांतों में जीभ अपनेआप आ गई.

‘‘जी, वो मैं…’’ उस के लाल फ्रेम में से उस की आंखों से झांकती झेंप स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

‘इस का मतलब तुम भी…’ वह हर्ष मिश्रित विस्मय से अधीर होता हुआ आप से तुम पर आ कर और पास आ गया था.

दिया ने आंखोंआंखों में ही हामी भरी.

‘‘ओहो, प्रियांक ने खुशी से अपनी छाती पर घूंसा मारा. फिर दोनों हाथों को वी बनाते हुए ऊपर उठाया मानो उस ने जग जीत लिया हो.’’

‘‘चलो यार, यह भी खूब रही, अब मुझे 11वीं मंजिल और तुम्हें मूलचंद की तरफ जाने की जरूरत नहीं…’’ पास के लोगों से अनजान दोनों जोरों से हंस कर आलिंगनबद्ध हो गए. प्रियांक ने दिया का वह लाल फ्रेम वाला चेहरा मारे खुशी के दोनों हथेलियों में हौले से ऐसे भर लिया मानो तितली संग गुलाब थाम रखा हो.

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Best Hindi Story- भोर: राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास

उस दिन सवेरे ही राजवी की मम्मी की किट्टी फ्रैंड नीतू उन के घर आईं. उन की कालोनी में उन की छवि मैरिज ब्यूरो की मालकिन की थी. किसी की बेटी तो किसी के बेटे की शादी करवाना उन का मनपसंद टाइमपास था. वे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाने के बाद एक तसवीर पर उंगली रख कर बोलीं, ‘‘देखो मीरा बहन, इस एनआरआई लड़के को सुंदर लड़की की तलाश है. इस की अमेरिका की सिटिजनशिप है और यह अकेला है, इसलिए इस पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं है. इस की सैलरी भी अच्छी है. खुद का घर है, इसलिए दूसरी चिंता भी नहीं है. बस गोरी और सुंदर लड़की की तलाश है इसे.’’

फिर तिरछी नजरों से राजवी की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘उस की इच्छा तो यहां हमारी राजवी को देख कर ही पूरी हो जाएगी. हमारी राजवी जैसी सुंदर लड़की तो उसे कहीं भी ढूंढ़ने से नहीं मिलेगी.’’ यह सब सुन रही राजवी का चेहरा अभिमान से चमक उठा. उसे अपने सौंदर्य का एहसास और गुमान तो शुरू से ही था. वह जानती थी कि वह दूसरी लड़कियों से कुछ हट कर है.

चमकीले साफ चेहरे पर हिरनी जैसी आंखें और गुलाबी होंठ उस के चेहरे का खास आकर्षण थे. और जब वह हंसती थी तब उस के गालों में डिंपल्स पड़ जाते थे. और उस की फिगर व उस की आकर्षक देहरचना तो किसी भी हीरोइन को चैलेंज कर सकती थी. इस से अपने सौंदर्य को ले कर उस के मन में खुशी तो थी ही, साथ में जानेअनजाने में एक गुमान भी था. मीरा ने जब उस एनआरआई लड़के की तसवीर हाथ में ली तो उसे देखते ही उन की भौंहें तन गईं. तभी नीतू बोल पड़ीं, ‘‘बस यह लड़का यानी अक्षय थोड़ा सांवला है और चश्मा लगाता है.’’

‘लग गई न सोने की थाली में लोहे की कील,’ मीरा मन में ही भुनभुनाईं. उन्हें लगा कि मेरी राजवी शायद इसे पसंद नहीं करेगी. पर प्लस पौइंट इस लड़के में यह था कि यह नीतू के दूर के किसी रिश्तेदार का लड़का था, इसलिए एनआरआई लड़के के साथ जुड़ी हुई मुसीबतें व जोखिम इस केस में नहीं था. जानापहचाना लड़का था और नीतू एक जिम्मेदार के तौर पर बीच में थीं ही.

फिर कुछ सोच कर मीरा बोलीं, ‘‘ओह, बस इतनी सी बात है. आजकल ये सब देखता कौन है और चश्मा तो किसी को भी लग सकता है. और इंडियन है तो रंग तो सांवला होगा ही. बाकी जैसा तुम कहती हो लड़का स्मार्ट भी है, समझदार भी. फिर क्या चाहिए हमें… क्यों राजवी?’’

अपने ही खयालों में खोई, नेल पेंट कर रही राजवी ने कहा, ‘‘हूं… यह बात तो सही है.’’

तब नीतू ने कहा, ‘‘तुम भी एक बार फोटो देख लो तो कुछ बात बने.’’

‘‘बाद में देख लूंगी आंटी. अभी तो मुझे देर हो रही है,’’ पर तसवीर देखने की चाहत तो उसे भी हो गई थी.

मीरा ने नीतू को इशारे में ही समझा दिया कि आप बात आगे बढ़ाओ, बाकी बात मैं संभाल लूंगी. मीरा और राजवी के पापा दोनों की इच्छा यह थी कि राजवी जैसी आजाद खयाल और बिंदास लड़की को ऐसा पति मिले, जो उसे संभाल सके और समझ सके. साथ में उसे अपनी मनपसंद लाइफ भी जीने को मिले. उस की ये सभी इच्छाएं अक्षय के साथ पूरी हो सकती थीं.

नीतू ने जातेजाते कहा, ‘‘राजवी, तुम जल्दी बताना, क्योंकि मेरे पास ऐसी बहुत सी लड़कियों की लिस्ट है, जो परदेशी दूल्हे को झपट लेने की ख्वाहिश रखती हैं.’’

नीतू के जाने के बाद मीरा ने राजवी के हाथ में तसवीर थमा दी, ‘‘देख ले बेटा, लड़का ऐसा है कि तेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी. हमारी तो हां ही समझ ले, तू भी जरा अच्छे से सोच लेना.’’

पर राजवी तसवीर देखते ही सोच में डूब गई. तभी उस की सहेली कविता का फोन आया. राजवी ने अपने मन की उलझन उस से शेयर की, तो पूरे उत्साह से कविता कहने लगी, ‘‘अरे, इस में क्या है. शादी के बाद भी तो तू अपना एक ग्रुप बना सकती है और सब के साथ अपने पति को भी शामिल कर के तू और भी मजे से लाइफ ऐंजौय कर सकती है. फिर वह तो फौरेन कल्चर में पलाबढ़ा लड़का है. उस की थिंकिंग तो मौडर्न होगी ही. अब तू दूसरा कुछ सोचने के बजाय उस से शादी कर लेने के बारे में ही सोचना शुरू कर दे…’’

कविता की बात राजवी समझ गई तो उस ने हां कह दिया. इस के बाद सब कुछ जल्दीजल्दी होता गया. 2 महीने बाद नीतू का दूर का वह भतीजा लड़कियों की एक लिस्ट ले कर इंडिया पहुंच गया. उसे सुंदर लड़की तो चाहिए ही थी, पर साथ में वह भारतीय संस्कारों से रंगी भी होनी चाहिए थी. ऐसी जो उसे भारतीय भोजन बना कर प्यार से खिलाए. साथ ही वह मौडर्न सोच और लाइफस्टाइल वाली हो ताकि उस के साथ ऐडजस्ट हो सके. पर उस की लिस्ट की सभी मुलाकात के बाद एकएक कर के रिजैक्ट होती गईं. तब एक दिन सुबह राजवी के पास नीतू का फोन आया, ‘‘शाम को 7 बजे तक रेडी हो जाना. अक्षय के साथ मुलाकात करनी है. और हां, मीरा से कहना कि वे तुझे अच्छी सी साड़ी पहनाएं.’’

‘‘साड़ी, पर क्यों? मुझ पर जींस ज्यादा सूट करती है,’’ कहते हुए राजवी बेचैन हो गई.

‘‘वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. तुम साड़ी यही समझ कर पहनना कि उसी में तुम ज्यादा सुंदर और अटै्रक्टिव लगती हो.’’

नीतू आंटी की बात पर गर्व से हंस पड़ी राजवी, ‘‘हां, वह तो है.’’

और उस दिन शाम को वह जब आकर्षक लाल रंग की डिजाइनर साड़ी पहन कर होटल शालिग्राम की सीढि़यां चढ़ रही थी, उस की अदा देखने लायक थी. होटल के मीटिंग हौल में राजवी को दाखिल होता देख सोफे पर बैठा अक्षय उसे देखता ही रह गया. नीतू ने जानबूझ कर उसे राजवी का फोटो नहीं भेजा था, ताकि मिलने के बाद ही अक्षय उसे ठीक से जान ले, परख ले. नीतू को वहीं छोड़ कर दोनों होटल के कौफी शौप में चले गए.

‘‘प्लीज…’’ कह कर अक्षय ने उसे चेयर दी. राजवी उस की सोच से भी अधिक सुंदर थी. हलके से मेकअप में भी उस के चेहरे में गजब का निखार था. जैसा नाम वैसा ही रूप सोचता हुआ अक्षय मन ही मन में खुश था. फिर भी थोड़ी झिझक थी उस के मन में कि क्या उसे वह पसंद करेगी?

ऐसा भी न था कि अक्षय में कोई दमखम न था और अब तो कंपनी उसे प्रमोशन दे कर उस की आमदनी भी दोगुनी करने वाली थी. फिर भी वह सोच रहा था कि अगर राजवी उसे पसंद कर लेती है तो वह उस के साथ मैच होने के लिए अपना मेकओवर भी करवा लेगा. मन ही मन यह सब सोचते हुए अक्षय ने राजवी के सामने वाली चेयर ली. अक्षय के बोलने का स्मार्ट तरीका, उस के चेहरे पर स्वाभिमान की चमक और उस का धीरगंभीर स्वभाव राजवी को प्रभावित कर गया. उस की बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कुल मिला कर राजवी को अक्षय का ऐटिट्यूड अपील कर गया.

उस मुलाकात के बाद दोनों ने एकदूसरे को दूसरे दिन जवाब देना तय किया. पर उसी दिन रात में राजवी ने अक्षय को फोन लगाया, ‘‘एक बात का डिस्कशन तो रह गया. क्या शादी के बाद मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं? और क्या मैं आगे जा कर जौब कर सकती हूं? अगर आप को कोई एतराज नहीं तो मेरी ओर से इस रिश्ते को हां है.’’

‘‘ओह. इस में पूछने वाली क्या बात है? मैं मौडर्न खयालात का हूं क्योंकि मौडर्न समाज में पलाबढ़ा हूं. नारी स्वतंत्रता मैं समझता हूं, इसलिए जैसी तुम्हारी मरजी होगी, वैसा तुम कर सकोगी.’’

अक्षय को भी राजवी पसंद आ गई थी, उसे इतनी सुंदर पत्नी मिलेगी, उस की कल्पना ही उस को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी. फिर तो जल्दी ही दोनों की शादी हो गई. रिश्तेदारों की उपस्थिति में रजिस्टर्ड मैरिज कर के 4 ही दिनों के बाद अक्षय ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ ली और उस के 2 महीने बाद आंखों में अमेरिका के सपने संजोए और दिल में मनपसंद जिंदगी की कल्पना लिए राजवी ने ससुराल का दरवाजा खटखटाया. ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है. एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां, 2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया. पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास. फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था. राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती. एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

अब वह न तो अपने खाने का ध्यान रखती थी न ही ढंग से आराम करती थी. देर रात तक दोस्तों और अनजान लोगों के साथ भटकते रहने की आदत से उस की जिंदगी अव्यवस्थित बन चुकी थी. एक दिन रात को 3 बजे किसी अनजान आदमी ने राजवी के मोबाइल से अक्षय को फोन किया, ‘‘आप की वाइफ ने हैवी ड्रिंक ले लिया है और यह भी लगता है कि किसी ने उस के साथ रेप करने की कोशिश…’’

अक्षय सहम गया. फिर वह वहां पहुंचा तो देखा कि अस्तव्यस्त कपड़ों में बेसुध पड़ी राजवी बड़बड़ा रही थी, ‘‘प्लीज हैल्प मी…’

पास में खड़े कुछ लोगों में से कोई बोला, ‘‘इस होटल में पार्टी चल रही थी. शायद इस के दोस्तों ने ही… बाद में सब भाग गए. अगर आप चाहो तो पुलिस…’’

‘‘नहींनहीं…,’’ अक्षय अच्छी तरह जानता था कि पुलिस को बुलाने से क्या होगा. उस ने जल्दी से राजवी को उठा कर गाड़ी में लिटा दिया और घर की ओर रवाना हो गया. राजवी की ऐसी हालत देख कर उस कलेजा दहल गया था. आखिर वह पत्नी थी उस की. जैसी भी थी वह प्यार करता था उस को. घर पहुंचते ही उस ने अपने फ्रैंड व फैमिली डाक्टर को बुलाया और फर्स्ट ऐड करवाया. उस के चेहरे और शरीर पर जख्म के निशान पड़ चुके थे. दूसरे दिन बेहोशी टूटने के बाद होश में आते ही राजवी पिछली रात उस के साथ जो भी घटना घटी थी, उसे याद कर रोने लगी. अक्षय ने उसे रोने दिया. ‘जल्दी ही अच्छी हो जाओगी’ कह कर वह उसे तसल्ली देता रहा पर क्या हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. खाना बनाने वाली माया बहन की हैल्प से उसे नहलाया, खिलाया फिर उसे अस्पताल ले जाने की सोची.

‘‘नहींनहीं, मुझे अस्पताल नहीं जाना. मैं ठीक हो जाऊंगी,’’ राजवी बोली.

अक्षय को लगा कि राजवी कुछ छिपा रही है. कहीं वह मां तो नहीं बनने वाली? पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो कहती रही है कि बच्चे के बारे में तो अभी 5 साल तक सोचना भी मत. पहले मैं कैरियर बनाऊंगी, लाइफ को ऐंजौय करूंगी, उस के बाद ही सोचूंगी. फिर कौन सी बात छिपा रही है यह मुझ से? क्या इस के साथ वाकई रेप हुआ होगा? दुखी हो गया अक्षय यह सोच कर. उसे जीवन का यह नया रंग भयानक लग रहा था. 2 दिन बाद अक्षय जब शाम को घर आया तो देखा कि राजवी फिर से बेहोश जैसी पड़ी थी. उसे तेज बुखार था. अक्षय परेशान हो गया. फिर बिना कुछ सोचे वह उसे अस्पताल ले गया. डाक्टर ने जांचपड़ताल करने के बाद उस के जरूरी टैस्ट करवाए और उन की रिपोर्ट्स निकलवाईं.

लेकिन रिपोर्ट्स हाथ में आते ही अक्षय के होश उड़ गए. राजवी की बच्चेदानी में सूजन थी और इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी. डाक्टर ने बताया कि उसे कोई संक्रामक रोग हो गया है.

चेहरा हाथों में छिपा कर अक्षय रो पड़ा. यह क्या हो गया है मेरी राजवी को? वह शुरू से ही कुछ बता देती या खुद ट्रीटमैंट करवा लेती तो बात इतनी बढ़ती नहीं. ये तू ने क्या किया राजवी? मेरे प्यार में तुझे कहां कमी नजर आई कि प्यार की खोज में तू भटक गई? काश तू मेरे दिल की आवाज सुन सकती. अक्षय को डाक्टर ने सांत्वना दी कि लुक मिस्टर अक्षय, अभी भी उतनी देर नहीं हुई है. हम उन का अच्छे से अच्छा ट्रीटमैंट शुरू कर देंगे. शी विल बी औल राइट सून… और वास्तव में डाक्टर के इलाज और अक्षय की केयर से राजवी की तबीयत ठीक होने लगी. लेकिन अक्षय का धैर्य और प्यार भरा बरताव राजवी को गिल्टी फील करा देता था.

अस्पताल से घर लाने के बाद अक्षय राजवी की हर छोटीमोटी जरूरत का ध्यान रखता था. उसे टाइम पर दवा, चायनाश्ता व खाना देना और उस को मन से खुश रखने के लिए तरहतरह की बातें करना, वह लगन से करता था. और राजवी की इन सब बातों ने आंखें खोल दी थीं. नासमझी में उस ने क्याक्या नहीं कहा था अक्षय को. दोस्तों के सामने उस का तिरस्कार किया था. उस के रंग को ले कर सब के बीच उस का मजाक उड़ाया था और कई बार गुस्से और नफरत के कड़वे बोल बोली थी वह. यह सब सोच कर शर्म सी आती थी उसे.

अपनी गोरी त्वचा और सौंदर्य के गुमान की वजह से उस ने अपना चरित्र भी जैसे गिरवी रख दिया था. अक्षय सांवला था तो क्या हुआ, उस के भीतर सब कुछ कितना उजला था. उस के इतने खराब ऐटिट्यूड के बाद भी अक्षय के बरताव से ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. वह पूरे मन से उस की केयर कर रहा था. राजवी सोचती थी मेरी गलतियों, नादानियों और अभिमान को अनदेखा कर अक्षय मुझे प्यार करता रहा और मुझे समझाने की कोशिश करता रहा. लेकिन मैं अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल करती रही. कुछ दिनों में राजवी के जख्म तो ठीक हो गए पर उन्होंने अपने गहरे दाग छोड़ दिए थे. जब भी वह आईना देखती थी सहम जाती थी.

पूरी तरह से ठीक होने के बाद राजवी ने अक्षय के पास बैठ कर अपने बरताव के लिए माफी मांगी. अक्षय गंभीर स्वर में बोला, ‘‘देखो राजवी, मैं जानता हूं कि तुम मेरे साथ खुश नहीं हो. मैं यह भी जानता हूं कि मैं शक्लसूरत में तुम्हारे लायक नहीं हूं. काश मैं अपने शरीर का रंग बदलवा सकता पर वह मुमकिन नहीं है. तब एक ही रास्ता नजर आता है मुझे कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती रहने के बजाय अपना मनपसंद रास्ता खोज लो.’’ इस बात पर राजवी चौंकी मगर अक्षय बोला, ‘‘मेरा एक कुलीग है. मेरे जैसी ही पोस्ट पर है और मेरी जितनी ही सैलरी मिलती है उसे. प्लस पौइंट यह है कि वह हैंडसम दिखता है. तुम्हारे जैसा गोरा और तुम्हारे जैसा ही फ्री माइंडेड है. अगर तुम हां कहो तो मैं बात कर सकता हूं उस से. और हां, वह भी इंडिया का ही है. खुश रखेगा तुम्हें…’’

‘‘अक्षय, यह क्या बोल रहे हो तुम?’’ राजवी चीख उठी. अक्षय ऐसी बात करेगा यह उस की सोच से परे था.

‘‘मैं ठीक ही तो कह रहा हूं. इस झूठमूठ की शादी में बंधे रहने से अच्छा होगा कि हम अलग हो जाएं. मेरी ओर से आज से ही तुम आजाद हो…’’

अक्षय के होंठों पर अपनी कांपती उंगलियां रखती राजवी कांपती आवाज में बोली, ‘‘इस बात को अब यहीं पर स्टौप कर दो अक्षय. मैं ने कहा न कि मैं ने जो कुछ भी किया वह मेरी भूल थी. मेरा घमंड और मेरी नासमझी थी. अपने सौंदर्य पर गुमान था मुझे और उस गुमान के लिए तुम जो चाहे सजा दे सकते हो. पर प्लीज मुझे अपने से अलग मत करना. मैं नहीं जी पाऊंगी तुम्हारे बिना. तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी हूं. जिंदगी का और रिश्तों का सच्चा सुख बाहरी चकाचौंध में नहीं होता वह तो आंतरिक सौंदर्य में ही छिपा होता है, यह सच मुझे अच्छी तरह महसूस हो चुका है.’’

इस के आगे न बोल पाई राजवी. उस की आंखों में आंसू भर गए. उस ने हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘मेरी गलती माफ नहीं करोगे अक्षय?’’ राजवी के मुरझाए गालों पर बह रहे आंसुओं को पोंछता अक्षय बोला, ‘‘ठीक है, तो फिर इस में भी जैसी तुम्हारी मरजी.’’  और यह कह कर वह मुसकराया तो राजवी हंस पड़ी. फिर अक्षय ने अपनी बांहें फैलाईं तो राजवी उन में समा गई.

Husband Wife Story- दिल जंगली: पत्नी के अफेयर होने की बात पर सोम का क्या था फैसला

रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

प्रशांत के जाने के बाद सोम ने सान्वी को घूरते हुए कहा, ‘‘ये सब क्या चल रहा है?’’

सान्वी ने जब कड़े तेवर से कहा कि जो तुम्हें सम झना है, सम झ लो तो सोम को हैरत हुई. सान्वी पैर पटकते हुए तेजी से घर की तरफ बढ़ गई. आ कर दोनों ने एक नजर धु्रव पर डाली. सान्वी ने धु्रव को ले जा कर उस के रूम में सोने के लिए लिटा दिया. अगले दिन उस का स्कूल भी था.

सान्वी के बैडरूम में पहुंचते ही सोम गुर्राया, ‘‘सान्वी, ये सब क्या चल रहा है? इतनी रात प्रशांत के साथ क्यों घूम रही थी?’’

‘‘ऐसे ही… वह दोस्त है मेरा… नीचे मिल गया तो साथ घूमने लगे.’’

‘‘यह नहीं सोचा कि कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?’’

‘‘नहीं सोचा… ऐसा क्या तूफान खड़ा हो गया?’’

सुबह सोम को औफिस जाना था. वह बिजनैसमैन था. आजकल उस का काम घाटे में चल रहा था… उस का दिमाग गुस्से में घूम रहा था पर इस समय वह सान्वी के अजीब से तेवर देख कर चुपचाप गुस्से में करवट बदल कर लेट गया.

सान्वी ने रोज की तरह कपड़े बदले, फ्रैश हुई, नाइट क्रीम लगाई और मन ही मन मुसकराते हुए प्रशांत को याद करते उस की बातों में खोईखोई बैड पर लेट गई. बराबर में नाराज लेटे सोम पर उस का जरा भी ध्यान नहीं था. उस से बिलकुल लापरवाह थोड़ी देर पहले की प्रशांत की बातों को याद कर मुसकराए जा रही थी.

प्रशांत और सान्वी का परिवार 2 साल पहले ही इस सोसाइटी में करीबकरीब साथ ही शिफ्ट हुआ था. प्रशांत से उस की दोस्ती जिम में आतेजाते हुई थी जो बढ़ कर अब प्रगाढ़ संबंधों में बदल चुकी थी. प्रशांत की पत्नी नेहा और उन के 2 युवा बच्चों आर्यन और शुभा से वह बहुत बार मिल चुकी थी. आपस में घर भी आनाजाना हो चुका था. सब से नजरें बचाते हुए प्रशांत और सान्वी अपने रिश्ते में फूंकफूंक कर कदम आगे बढ़ा रहे थे. दोनों का दिल किसी जंगली की तरह न किसी रिश्ते का नियम मानता था, न समाज का कोई कानून. दोनों को एकदूसरे को देखना, बातें करना, साथ हंसना, कुछ समय साथ बिताना बहुत खुशी दे जाता था. दोनों ने अब किसी की भी परवाह करनी छोड़ दी थी.

धु्रव छोटा था. उस की पूरी जिम्मेदारी सान्वी ही उठाती थी. सोम लापरवाह इंसान था. सोम से उस का विवाह उस की दौलत देख कर सान्वी के पेरैंट्स ने तय किया था पर शादी के बाद सोम की पर्सनैलिटी सान्वी को कुछ ज्यादा जंची नहीं. जहां सान्वी बहुत सुंदर, स्मार्ट, फिटनैस के प्रति सजग, जिंदादिली स्त्री थी, वहीं सोम ढीलाढाला सा नौकरों पर बिजनैस छोड़ दोस्तों के साथ शराब पीने में खुशी पाने वाला गैरजिम्मेदार, मूडी, गुस्सैल इंसान था.

सोम के मातापिता भी इसी बिल्डिंग में दूसरे फ्लैट में रहते थे. सान्वी उन के प्रति भी हर फर्ज पूरा करती आई थी. सासससुर को जब भी कोई जरूरत होती, इंटरकौम से सान्वी को बुला लेते. सान्वी फौरन जाती. सोम घरगृहस्थी की हर जिम्मेदारी सान्वी पर डाल निश्चिंत रहता. दोस्तों के साथ पी कर आता. अंतरंग पलों में सान्वी के साथ जिस तरह पेश आता सान्वी कलप कर रह जाती. कहां उस ने कभी रोमांस में डूबे दिनरातके सपने देखे थे और कहां अब पति के मूडी स्वभाव से तालमेल मिलाने की कोशिश ही करती रह जाती.

प्रशांत से मिलते ही दिल खिल सा गया था. प्रशांत उस की हर बात पर ध्यान देता, उस की हर जरूरत का ध्यान रखता  था. सोम कभीकभी मुंबई से बाहर जाता. धु्रव स्कूल में होता तब प्रशांत औफिस से छुट्टी कर धु्रव के आने तक का समय सान्वी के साथ ही बिताता. किसी भी नियम को न मानने वाले दोनों के दिल सभी सीमाएं पार कर गए थे. दोनों एकदूसरे की बांहों में तृप्त हो घंटों पड़े रहते.

सान्वी के तनमन को किस सुख की कमी थी, वह सुख जब प्रशांत से मिला तो उस की सम झ में आया कि अगर प्रशांत न मिला होता तो यह कमी रह जाती. मशीनी से सैक्स के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में… अब सान्वी को पता चला सैक्स सिर्फ शरीर की जरूरत के समय पास आना ही नहीं है, तनमन के अंदर उतर जाने वाला मीठा सा कोमल एहसास भी है.

प्रशांत न मिलता तो न जाने जीवन के कितने खूबसूरत पल अनछुए से रह जाते. उसे कोई अपराधबोध नहीं है. उस ने हमेशा सोम को मौका मिलने पर किसी के साथ भी फ्लर्ट करते देखा है. उस के टोकने पर हमेशा यही जवाब दे कर उसे चुप करवा दिया कि कितनी छोटी सोच है तुम्हारी… 2 बार वह रिश्ते की एक कजिन के साथ सोम को खुलेआम रंगरलियां मनाते पकड़ चुकी है, पर सोम नहीं सुधरा. पराई औरतों के साथ मनमानी हरकतें करना उस के हिसाब से मर्दानगी है. उसे खुशी मिलती है. आज प्रशांत के साथ उसे देख कर ज्यादा कुछ शायद इसलिए ही कह न सका… प्रशांत को याद करतेकरते सान्वी को नींद आ गई.

प्रशांत घर पहुंचा तो नेहा, आर्यन, शुभा सब लेट चुके थे. आर्यन, शुभा दोनों कालेज के लिए जल्दी निकलते थे. उन के लिए नेहा को भी टाइम से सोना पड़ता था.

प्रशांत चेंज कर के बैडरूम में आया तो नेहा ने पूछा, ‘‘इतना लेट?’’

‘‘हां, टहलना अच्छा लग रहा था.’’

‘‘किस के साथ थे?’’

‘‘सान्वी मिल गई थी, फिर सोम भी आ गया था.’’

नेहा चुप रही. पति की सान्वी से बढ़ती नजदीकियों की उसे पूरी खबर थी पर क्या करे, कैसे कहे, युवा बच्चे हैं… बहुत सोचसम झ कर बात करनी पड़ती है. प्रशांत को गुस्से में चिल्लाने की आदत है. शुभा सम झ रही थी कि सान्वी को क्या पता प्रशांत के बारे में… वह बाहर कुछ और है, घर में कुछ और जैसेकि आम आदमी होते हैं. 20 साल के वैवाहिक जीवन में नेहा प्रशांत की रगरग से वाकिफ हो चुकी थी. दूसरी औरतों को प्रभावित करने में उस का कोई मुकाबला नहीं था. नेहा की खुद की छोटी बहन से प्रशांत की अंतरंगता थी. वह कुछ नहीं कर पाई थी. जब उस की बहन की शादी कहीं और हो गई तब जा कर नेहा की जान में जान आई थी. पता नहीं कितनी औरतों के साथ वह फ्लर्ट कर चुका था. गरीब घर की नेहा अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने के चक्कर में प्रशांत के साथ निभाती आई थी, पर सान्वी का यह किस्सा आज तक का सब से ज्यादा ओपन केस हो रहा था. अब नेहा परेशान थी. सोसाइटी को यह पता था कि दोनों का जबरदस्त अफेयर है. दोनों डंके की चोट पर मिलते, मूवी देखते, बाहर जाते. प्रशांत तो लेटते ही खर्राटे भरने लगा था पर नेहा बेचैन सी उठ कर बैठ गई कि कैसे रोके प्रशांत की दिल्लगियां? कब सुधरेगा यह? बच्चे भी बड़े हो गए… वह जानती है बच्चों तक यह किस्सा पहुंच चुका है, बच्चे नाराज से रहते हैं, चुप रहने लगे हैं. आजकल नेहा का कहीं मन नहीं लग रहा है. क्या करे. इस बार जैसा तो कभी नहीं हुआ था. अब तो प्रशांत और सान्वी डंके की चोट पर बताते हैं कि हम साथ है.

नेहा रातभर सो नहीं पाई. सुबह यह फैसला किया कि बच्चों के जाने के बाद प्रशांत

से बात करेगी. बच्चे चले गए. प्रशांत थोड़ा लेट निकलता था. उस का औफिस पास ही था. नेहा ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘प्रशांत, बच्चों को भी तुम्हारा और सान्वी का किस्सा पता है… दोनों का मूड बहुत खराब रहता है… सारी सोसाइटी को पता है. मेरी फ्रैंड्स ने तुम दोनों को कहांकहां नहीं देखा. शर्म आती है अब प्रशांत… अब उम्र भी हो रही है. ये सब अच्छा नहीं लगता. मैं ने पहले भी तुम्हारी काफी हरकतें बरदाश्त की हैं… अब बरदाश्त नहीं हो रहा है. तुम उस के ऊपर पैसे भी बहुत खर्च कर रहे हो. यह भी ठीक नहीं है.’’

‘‘पैसे मेरे हैं, मैं उन्हें कहीं भी खर्च करूं और रही उम्र की बात, तो तुम्हें लगता होगा कि तुम्हारी उम्र हो गई, मैं सान्वी के साथ भरपूर ऐंजौय कर रहा हूं. दरअसल, उस का साथ मु झे यंग रखता है. यहां तो घर में तुम्हारे उम्र, बच्चे, खर्चों के ही बोरिंग पुराण चलते हैं और रही सोसाइटी की बात तो मैं किसी की परवाह नहीं करता, ठीक है? और कुछ?’’

नेहा का चेहरा अपमान और गुस्से से लाल हो गया, ‘‘पर मैं अब यह बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

प्रशांत कुटिलता से हंसा, ‘‘अच्छा, क्या कर लोगी? मायके चली जाओगी? तलाक ले लोगी? हुंह,’’ कह कर वह तौलिया उठा कर नहाने चला गया.

नेहा की आंखों से क्षोभ के आंसू बह निकले. सही कह रहा है प्रशांत, क्या कर लूंगी, कुछ भी तो नहीं. मायका है नहीं. नेहा रोती हुई किचन में काम करती रही. मन में आया, सोम से बात कर के देखूं. सोम का नंबर नेहा के पास नहीं था. अब नेहा ने सान्वी से बात करना बिलकुल छोड़ दिया था. सोसाइटी में उस से आमनासामना होता भी तो वह पूरी तरह से सान्वी को इग्नोर करती. सान्वी भी बागी तेवरों के साथ चुनौती देती हुई मुसकराहट लिए पास से निकल जाती तो नेहा का रोमरोम सुलग उठता.

अपनी किसी सहेली से नेहा को पता चला कि सान्वी 2 दिन के लिए अपने मायके गई है. अत: सही मौका जान कर वह शाम को सोम से मिलने उस के घर चली गई. सोम ने सकुचाते हुए उस का स्वागत किया.

नेहा ने बिना किसी भूमिका के बात शुरू की, ‘‘आप को भी पता ही होगा कि सान्वी और प्रशांत के बीच क्या चल रहा है… आप उसे रोकते क्यों नहीं?’’

‘‘हां, सब पता है. आप प्रशांत को क्यों नहीं रोक रही हैं?’’

‘‘बहुत कोशिश की पर सब बेकार गया.’’

‘‘मेरी कोशिश भी बेकार गई,’’ कह कर सोम ने जिस तरह से कंधे उचका दिए, उसे देख नेहा को गुस्सा आया कि यह कैसा आदमी है… कितने आराम से कह रहा है कि कोशिश बेकार गई.

‘‘तो आप इसे ऐसे ही चलने देने वाले हैं?’’

‘‘हां, क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मैं स्ट्रौंग पोजीशन में हूं नहीं, अतीत की मेरी हरकतों के कारण आज वह मु झ पर हावी हो रही है.

‘‘मेरा बिजनैस घाटे में है. मैं सान्वी को रोक नहीं पा रहा हूं, सारा दिन बैठ कर उस की चौकीदारी तो कर नहीं सकता.

‘‘बच्चे, घर और मेरे पेरैंट्स की पूरी जिम्मेदारी वह उठाती है… पर ठीक है. कुछ तो करना पड़ेगा… वह लौट आए. फिर कोशिश करता हूं.’’

नेहा दुखी मन से घर आ गई. सोम बहुत कुछ सोचता रहा. सान्वी कैसे किसी से खुलेआम प्रेम संबंध रख सकती है. बहुत हो गया… हद हो गई बेशर्मी की. आ जाए तो उसे ठीक करता हूं, दिमाग ठिकाने लगाता हूं.

उस दिन फोन पर भी उस ने सान्वी से सख्त स्वर में बात की पर सान्वी पर जरा भी

फर्क नहीं पड़ा. सोम की बातों का उस पर फर्क पड़ना बंद हो चुका था. जब से दिल की सुनने लगी थी, दिमाग भी दिल के ही पक्ष में दलीलें देता रहता था. सो जंगली सा दिल बेखौफ आगे बढ़ता जा रहा था और खुश भी बहुत था.

सान्वी आ गई. अगले दिन जब धु्रव को स्कूल भेज सुस्ताने बैठी तो सोम उस के पास आ कर तनातना सा बैठ गया. सान्वी ने महसूस किया कि वह काफी गंभीर है.

‘‘सान्वी, जो भी चल रहा है उसे बंद करो वरना…’’

सान्वी पलभर में कमर कस कर मैदान में खड़ी हो गई, ‘‘वरना क्या?’’

‘‘बहुत बुरा होगा.’’

‘‘क्या बुरा होगा?’’

‘‘जो तुम कर रही हो मैं उसे बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

‘‘क्यों? क्या तुम मु झ से कमजोर हो? मैं तुम्हारी ये सब हरकतें बरदाश्त करती रही हूं तो तुम क्यों नहीं कर सकते?’’

‘‘सान्वी,’’ सोम दहाड़ा, ‘‘तुम मेरी पत्नी हो… तुम मेरी बराबरी करोगी?’’

‘‘मैं वही कर रही हूं जो मु झे अच्छा लगता है. कुछ पल अपने लिए जी रही हूं तो क्या गलत है? जिस खुशी का तुम ने ध्यान नहीं रखा, वह अब मिल गई… खुश हूं, क्या गलत है? ये सब तो तुम बहुत सालों से करते आए हो.’’

‘‘सान्वी, सुधर जाओ, नहीं तो मु झे गुस्सा आ गया तो मैं कोर्ट में भी जा सकता हूं… तुम्हारे और प्रशांत के खिलाफ शिकायत कर सकता हूं.’’

‘‘हां, ठीक है, चलो कोर्ट… सारी उम्र मन मार कर जीती रहूं तो ठीक है?’’

‘‘सान्वी, बहुत हुआ. प्रशांत से रिश्ता खत्म करो, नहीं तो कानूनी काररवाई के लिए तैयार रहो… मैं प्रशांत को भी नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘अच्छा? कौन सी कानूनी काररवाई करोगे? नया कानून नहीं जानते? यह न अपराध है, न पुरुषों की बपौती. औरत को भी सैक्सुअल चौइस का हक है.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो?’’

‘‘हां, शादीशुदा होते हुए भी सालों से पराई औरतों के साथ नैनमटक्का कर रहे हो, हमारे रिश्ते को एडलट्री की आग में तुम भी  झोंकते

रहे हो.’’

‘‘पर कोर्ट ने अवैध संबंधों में जाने के लिए नहीं कहा है, न उकसाया है.’’

‘‘पर यह तो साफ हो गया है कि न तुम मेरे मालिक हो, न मैं तुम्हारी गुलाम हूं. मु झे कानून की धमकी देने से कुछ नहीं होगा. तुम्हारी खुद की फितरत क्या रही है… अब बैठ कर सोचो कि मैं ने कितना सहा है. मु झे प्रशांत के साथ अच्छा लगता है. बस, मु झे इतना ही पता है और मु झे भी खुश रहने का उतना ही हक है जितना तुम्हें. और किसी भी जिम्मेदारी से मैं मुंह नहीं मोड़ रही हूं,’’ कह कर घड़ी पर नजर डालते हुए सान्वी ने आगे कहा, ‘‘ध्रुव के स्कूल से वापस आने से पहले मु झे घर के कई काम निबटाने होते हैं, उस के प्रोजैक्ट के लिए सामान लेने भी मु झे ही जाना है,’’ कह कर सान्वी उठ कर नहाने चली गई.

बाथरूम से उस के गुनगुनाने की आवाजें बाहर आ रही थीं. सोम सिर पकड़ कर बैठा था. कुछ सम झ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे.

‘‘अगले दिन जब धु्रव को स्कूल भेज सुस्ताने बैठी तो सोम उस के पास आ कर तनातना सा बैठ गया. सान्वी ने महसूस किया कि वह काफी गंभीर है…’’

Romantic Story In Hindi : रिश्ते का सम्मान- क्या हुआ था राशि और दौलत के साथ

Romantic Story In Hindi: दौलत और राशि को आदर्श पतिपत्नी का खिताब महल्ले में ही नहीं, उस के रिश्तेदारों और मित्रों से भी प्राप्त है. 3 साल पहले रुचि के पैदा होने पर डाक्टर ने साफ शब्दों में बता दिया था कि आगे राशि मां तो बन सकती है पर उसे और उस के गर्भस्थ शिशु दोनों को जीवन का खतरा रहेगा, इसलिए अच्छा हो कि वे अब संतान की इच्छा त्याग दें.

माहवारी समय से न आने पर कहीं गर्भ न ठहर जाए यह सोच कर राशि सशंकित हो चली कि आदर्श पतिपत्नी से आखिर चूक हो ही गई. अपनी शंका राशि ने दौलत के सामने रखी तो वह भी सशंकित हुए बिना नहीं रहा. झट से राशि को डाक्टर के पास ले जा कर दौलत ने अपना भय बता दिया, ‘‘डाक्टर साहब, आप तो जानते ही हैं कि राशि के गर्भवती होने से मांबच्चा दोनों को खतरा है, आप की सलाह के खिलाफ हम से चूक हो गई. इस खतरे को अभी क्यों न खत्म कर दिया जाए?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं? 10 दिन बाद आ जाना,’’ डाक्टर ने समझाते हुए कहा.

रास्ते में राशि ने दौलत से कहा, ‘‘सुनो, यह बेटा भी तो हो सकता है…तो क्यों न खतरे भरे इस जुए में एक पांसा फेंक कर देखा जाए? संभव है कि दैहिक परिवर्तनों के चलते शारीरिक कमियों की भरपाई हो जाए और हम खतरे से बच जाएं.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो,’’ दौलत बोला, ‘‘सोचो कि…एक लालच में कितना बड़ा खतरा उठाना पड़ सकता है. नहीं, मैं तुम्हारी बात नहीं मान सकता. इतना बड़ा जोखिम…नहीं, तुम्हें खो कर मैं अधूरा जीवन नहीं जी सकता.’’

राशि चुप रह गई. वह नहीं चाहती थी कि पति की बात को ठुकरा कर उसे नाराज करे या कोई जोखिम ले कर पति को दुख पहुंचाए.

10 दिन बाद दौलत ने राशि को डाक्टर के पास चलने को कहा तो उस ने अपनी असहमति के साथ कहा, ‘‘गर्भपात तो 3 माह तक भी हो जाता है. 3 माह तक हम यह तो समझ सकते हैं कि कोई परेशानी होती है या नहीं. जरा सी भी परेशानी होगी तो मैं तुम्हारी बात नहीं टालूंगी.’’

‘‘जाने दो, मैं भी छोटी सी बात भूल गया था कि यह गर्भ और खतरे तुम्हारी देह में हैं, तुम्हारे लिए हैं. मैं कौन होता हूं तुम्हारी देह के भीतर के फैसलों में हस्तक्षेप करने वाला?’’ निराश मन से कहता हुआ वह कार्यालय चला गया.

शाम को कार्यालय से दौलत घर जल्दी पहुंच गया और बिना कुछ बोले सोफे में धंस कर बैठ गया. यह देख राशि बगल में बैठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा मन ठीक नहीं है. नाहक परेशान हो. अभी डेढ़दो माह तुम्हें गंवारा नहीं है तो चलो, सफाई करवा लेती हूं. बस…अब तो खुश हो जाओ प्यारे…यह तुच्छ बात क्या, मैं तो आप के एक इशारे पर जान देने को तैयार हूं,’’ कहते हुए राशि ने दौलत की गोदी में सिर औंधा कर उस की कमर में बांहें डाल कर उसे कस लिया.

दौलत को लगा कि राशि उसे अनमना नहीं देख सकती, इसीलिए वह उस के फैसले को महत्त्व दे रही है. वह आपादमस्तक न्योछावर है तो उस के प्रति कुछ अहम दायित्व उस के भी बनते हैं और ऐसे दायित्वों की राशि सस्नेह उस से उम्मीद भी करती होगी. कहते भी हैं कि एक कदम पत्नी चले तो पति को दो कदम चलना चाहिए. मतलब यह कि राशि की सहमति पर अपनी ‘हां’ का ठप्पा लगा कर खतरे की प्रतीक्षा करे. पर वह किस विश्वास पर एक डाक्टर की जांच को हाशिए में डाल कर भाग्यवादी बन जाए? मस्तिष्क में एक के बाद एक सवाल पानी के बुलबुले की तरह बनते व बिगड़ते रहे. अंत में विचारों के मंथन के बाद दौलत ने पत्नी की प्रार्थना मान ली और दोनों एकदूसरे में सिमट गए.

आखिर डाक्टर की देखरेख में गर्भस्थ शिशु का 9वां महीना चल रहा था. राशि को किसी की मदद की आवश्यकता महसूस हुई तो उस ने अपनी मौसेरी बहन माला को बुलवाने के लिए कहा. फोन पर बात की, मौसी मान ही नहीं गईं, माला को राशि के हाथ सौंप कर वापस भी चली गईं.

दिन करीब आते देख राशि और दौलत एकदेह नहीं हो सकते थे. देहाग्नि दौलत को जैसे राख किए जा रही थी. बारबार ‘जीजाजी’ कह कर दौलत से सट कर माला का उठनाबैठना राशि को इस बात का संकेत दे रहा था कि कहीं वह नादान लड़की बहक गई तो? या फिर दौलत बहक गया तो?

राशि का संदेह तब मजबूत हो चला जब अगली सुबह माला न तो समय से उठी, न ही उस ने चायनाश्ते का ध्यान रखा. राशि ने दौलत को अपने बिस्तर पर नहीं देखा तो वह माला के कमरे में गई जो अकेली सो रही थी. रसोई में देखा तो दौलत टोस्ट और चाय तैयार कर रहा था.

आहट पा कर दौलत अधबुझी राशि को देख चौंक कर बोला, ‘‘अरे, तुम ने ब्रश किया कि नहीं?’’ उस के गाल पर चुंबन की छाप छोड़ते हुए फिर बोला, ‘‘मैं ने सोचा, आज मैं ही कुछ बना कर देखूं. पहले हम दोनों मिल कर सबकुछ बना लेते थे पर अब मेरी आदत छूट गई है. तुम्हारी वजह से मैं पक्का आलसी हो गया हूं. जाओ, कुल्ला करो और मैं चाय ले कर आता हूं.’’

‘‘मैं तो यह देख रही थी कि रुचि स्कूल के लिए लेट हो रही है और घर में आज सभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं. आज रुचि को जगाया नहीं गया,’’ मन का वहम छिपा कर राशि रुचि के स्कूल की बात कह बैठी.

‘‘कल रात को तो बताया था कि आज उस की छुट्टी है, मेरी भुलक्कड़ रानी. कहीं मुझे न भूल जाना. वैसे भी आजकल मुझे बहुत तड़पा रही हो,’’ कहते हुए दौलत राशि को अपनी बांहों में भींच कर लिपट गया.

प्यार करने के लिए लिपटे पतिपत्नी को पता नहीं था कि रसोई में आती माला ने उन्हें लिपटे हुए देख लिया है…वह बाधा डालते हुए बोली थी, ‘‘दीदी, तुम क्यों रसोई में आ गईं? मैं छुट्टी की वजह से आज लेट हो गई.’’

चौंक कर दौलत राशि से अलग छिटक गया और खौल रही चाय में व्यस्त हो कर बोला, ‘‘साली साहिबा, मैं ने सोचा कि आज सभी को बढि़या सी चाय पिलाऊं. चाय तैयार हो तब तक आप रुचि को जगा कर नाश्ते के लिए तैयार कीजिए.’’

माला रुचि को जगाने में लग गई.

सब से पहले चाय माला ने पी और पहली चुस्की के साथ ही ताली बजा कर हंस पड़ी…दौलत झेंप गया. उसे लगा कि कहीं चाय में चीनी की जगह नमक तो नहीं पड़ गया? उस को हंसते देख कर राशि ने चाय का प्याला उठाया और मुंह से लगा कर टेबल पर रखते हुए हंस कर बोली, ‘‘बहुत अच्छी चाय बनी है. रुचि… जरा देख तो चाय पी कर.’’

रुचि ने चाय का स्वाद लिया और वह भी मौसी से चिपट कर हंस पड़ी. बरबस दौलत ने चाय का स्वाद लिया तो बोल पड़ा, ‘‘धत् तेरे की, यह दौलत का बच्चा भी किसी काम का नहीं. इतनी मीठी चाय…’’ उस ने सभी कप उठाए और रसोई की ओर चल दिया.

पीछे से माला रसोई में पहुंची, ‘‘हटिए, जीजाजी, आप जैसी हरीभरी चाय मैं तो फिलहाल नहीं बना पाऊंगी, पर नीरस चाय ही सही, मैं ही बनाती हूं,’’ कह कर माला हंस पड़ी.

दौलत ने सोचा था कि सभी को नाश्ता तैयार कर के सरप्राइज दे. पर पांसे उलटे ही पड़ गए लेकिन जो हुआ अच्छा हुआ. काफी दिनों बाद शक में जी रही राशि आज जी भर कर हंसी तो…

पेट में दर्द के चलते दौलत ने राशि को अस्पताल में भरती करवाया और माला को अस्पताल में रातदिन रुकना पड़ा. दूसरे दिन मौसी आ गई थीं, सो यह काम उन्होंने ले लिया और माला को घर भेज दिया. घर में भोजन की व्यवस्था करतेकरते माला को दौलत के करीब आने व बहकने के मौके मिले. जवान लड़की घर में हो…संगसाथ, एकदूसरे को कुछकुछ छूना और छूने की हद पार कर जाना, फिर अच्छेबुरे से बेपरवाह एक कदम और…बस…एक और कदम ही दौलत और माला के करीब लाया.

दौलत ने और करीब आ कर माला को अपनी बांहों में भींच कर गाल पर चुंबन जड़ दिया. माला लाज से सिहर उठी साथ ही भीतर से दहक गई. दौलत ने भी माला की सिहरन व दहक महसूस की.

दौलत एक बार तो तड़प उठा पर… ‘‘सौरी, मालाजी,’’ कह कर झटके से दूर हो चुका था और कान पकड़ कर माफी मांगने लगा, ‘‘सौरी, अब कभी नहीं. किसी हालत में नहीं. मैं भूल गया था कि हमारे बीच में क्या रिश्ता है,’’ और फिर नजर झुका कर वह बाहर चला गया था.

मर्द का स्पर्श पा कर देह के भीतर स्वर्गिक एहसास से माला तड़प गई थी, शायद कुछ अधूरा रह गया था जो अब पूरा न हुआ तो वह बराबर छटपटाती रहेगी. काश, यह अधूरापन समाप्त हो जाए. काश, एक कदम और…

उस एक कदम और…के परिणाम अब माला की सोच के बाहर थे. उस को दुनियादारी की चिंता नहीं रही. उसे सुधबुध थी तो सिर्फ यह कि यह अधूरापन अब वह नहीं सह पाएगी. अब उसे हर कीमत पर दौलत का स्पर्श चाहिए. भले ही उसे कई मौत मरना पड़े. वह तकिए को वक्ष के नीचे भींच कर पलंग पर औंधी पड़ी छटपटाती रही.

अस्पताल की कैंटीन में मौसी को लंच करवा कर दौलत काफी देर रुका. डाक्टर ने तो सब सामान्य बताया, इसलिए उस की खुशी का ठिकाना न था. अगले दिन आपरेशन की तारीख थी. आपरेशन को ले कर दौलत व राशि संदेहजनक स्थिति से गुजर रहे थे.

रात को घर आ कर दौलत रुचि और माला के साथ खाना खा कर अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रहा था और माला अपने कमरे में. दौलत सोच रहा था कि माला ने आपत्ति नहीं जताई तो क्या…पर अब वह उस के लिए सम्माननीय व्यक्ति नहीं रहा. अपने ही घर में उसे माला जैसी मेहमान की इज्जत के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए थी. हर अगले कदम के भलेबुरे के बारे में उसे अवश्य सोच लेना चाहिए.

मुश्किल से दौलत को उनींदी हालत में रात काटनी पड़ी. पुरुष हो कर इतना भलाबुरा सोच ले तो वह वाकई पुरुष है. बहक कर संभल चुके पुरुष को चट्टान समझ कर उलटे पांव वापस लौट जाए वही समझदार स्त्री है. जमीर सभी का सच बोलता है, परंतु उस जमीर के सच को सुनने वाले दौलत जैसे पुरुष विरले ही होते हैं.

माला तो करवटें बदलबदल कर अपने गदराए यौवन को दौलत के हाथ सौंपना चाहती थी पर कैसे? क्या यह संभव था? दौलत माफी मांग कर माला से नजदीकी समाप्त कर चुका है. परंतु माला में एक ही चाहत पल रही थी कि वह अपना सबकुछ दौलत को सौंप दे.

माला अब अपनी देह की दास थी. छटपटा कर वह कब उठ कर कमरे से निकली और कब दौलत की चादर में धीरे से घुस कर लेट गई, उसे पता ही नहीं चला. पर आहट पाते ही दौलत उठ कर बैड के नीचे उतर कर धीमे स्वर में बोल पड़ा, ‘‘माला, मैं ने तुम से माफी मांगी है. इस माफी का सम्मान करो. मैं तुम्हारे, राशि, रुचि, इस घरौंदे के भविष्य को धोखा नहीं दे सकता. देखो, भूल जब समझ में आ जाए, त्याग देनी चाहिए. तुम जानती हो कि जिस इच्छापूर्ति के लिए तुम पहल कर रही हो, इस से कितनी जिंदगियां बरबाद हो सकती हैं…जिन में एक जिंदगी तुम्हारी भी है? मौसीजी जानेंगी, तब क्या होगा? और राशि जानेगी तो पता है?…वह मर जाएगी जिस की जिम्मेदार तुम भी बनोगी. चलो, अब अपने कमरे में जाओ और मेरी साली साहिबा की तरह बरताव करो. तुम अपनी इस देह को और अपने स्त्रीत्व को अपनी सुहागरात के लिए बचा कर रखो. ऐसी जल्दी न करो कि अपने पति के लिए यह तोहफा गंवा कर अंतिम सांस तक आत्मग्लानि के बोझ से दब कर आनंद न पा सको और न ही पति को दे सको.

‘‘हमारे बीच जीजासाली का रिश्ता है, इस रिश्ते का सम्मान करो. मैं गलत हूं, मैं ने अपना कदम पीछे हटाया तो तुम भी अपने को गलत मान कर अपने कदम पीछे हटा लो. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहा जाता. मैं भूल कर लौट आया. इसी तरह तुम भी लौट जाओ और अपनी जिंदगी के साथ तमाम जिंदगियों को तबाह होने से बचाओ.’’

माला चुप नहीं रह सकी, वह बोल पड़ी, ‘‘जीजाजी, रिश्तों का मैं क्या करूं? अहम बात तो यह है कि मेरे शरीर में आग आप ने लगाई है, इसे बुझाने के लिए कहां जाऊं? किस घाटी में कूद जाऊं?’’

दौलत ने माला की मंशा को स्पष्ट किया, ‘‘तुम गलत हो, माला.’’

माला जिद कर बोली, ‘‘मैं गलतसही की बात नहीं करती. मैं तो सिर्फ जानती हूं कि आप मुझे मेरी ही देहाग्नि से जला कर राख कर देना चाहते हो. मैं अपनी इस देहाग्नि को बरबाद नहीं होने दूंगी और न ही इसे और ज्यादा छटपटाने दूंगी.’’

‘‘मुझे पता नहीं था कि तुम इतनी जिद्दी और महत्त्वाकांक्षी हो कि अपना तो अपना, सारे परिवार, समाज की हदें पार करने पर तुल जाओगी. क्या तुम्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जो तुम करने वाली हो वह कितना बुरा है?’’ दौलत ने समझाने की कोशिश की और उस की बांह पकड़ कर बच्चों की तरह खींच कर उस के कमरे में ले गया और बोला, ‘‘कुछ लाज हो तो यह नादानी छोड़ दो और अच्छी औरत की तरह पेश आओ. जो तुम चाहती हो वह पति के साथ किया जाता है.’’

बात टल गई…पर माला रात भर नहीं सोई. आंखें सूज कर लाल हो गईं और उस के चेहरे पर रंगत की जगह अधूरेपन की बेचैनी झलक रही थी जैसे वह कुछ भी कर सकती है.

अगले दिन आपरेशन की वजह से दौलत अस्पताल में रहा और दोपहर बाद माला भी पहुंच गई. आपरेशन सफलतापूर्वक हो गया और बेहोश राशि बाहर आ गई. कुछ घंटों बाद दौलत बेटे को देख कर खुशी से उछल पड़ा था. इस अवसर पर माला भी नवजात बहनौते को गोदी में ले कर राशि के चेहरे पर तब तक नजर गड़ाए रही जब तक कि उसे यह समझ में नहीं आ गया कि राशि और उस के नवजात शिशु का मासूम चेहरा उस से किस तरह प्यार के हकदार हैं. कुछ पल सोचने के बाद पिछली रात तक उस के मन पर पला ज्वार आंखों के रास्ते बह चला. आंखों में रोशनी लौटी तो माला ने अपने आंसू पोंछ कर नवजात बहनौते को इस प्रकार से चूमा जैसे कह रही हो कि अरे, फूल की पंखुड़ी से बच्चे आज तुझे देख कर मेरा मन भी फूल सा हलका हो गया है.

Romantic Story : प्रेम की इबारत

रात के अंधियारे में पूरा मांडवगढ़ अब कितना खामोश रहता है, यहां की हर चीज में एक भयानकता झलकती है. धीरेधीरे खंडहरों में तबदील होते महल को देख कर इतना तो लगता है कि ये कभी अपार वैभव और सुविधाओं की अद्भुत चमक से रोशन रहते होंगे. कभी गूंजती होंगी यहां रहने वाले सैनिकों की तलवारों की खनक, घोड़ों के टापों की आवाजें, हाथियों की चिंघाड़, जिस की गवाह हैं ये पहाडि़यां, ये दीवारें उस शौर्यगाथा की, जो यहां के चप्पेचप्पे पर बिखरी पड़ी हैं.

यहां बने महल का हर कोना, जिस ने देखे होंगे वह नजारे, युद्ध, संगीत और गायन जिस की स्वर लहरियां बिखरी होेंगी यहां की फिजा में. काश, ये खामोश गवाह बोल सकते तो न जाने कितने भेद खोल देते और खोल देते हर वह राज, जो दफन हैं इन की दीवारों में, इन के दिलों में, इन के फर्श में, मेहराबों में, झरोखों में, सीढि़यों में और यहां के ऊंचेऊंचे गुंबदों में.’’

‘‘चुप क्यों हो गए दोस्त, मैं तो सुन रहा था. तुम ही खामोश हो गए दास्तां कहतेकहते,’’ रानी रूपमती के महल के एक झरोखे ने दूसरे झरोखे से कहा.

‘‘नहीं कह पाऊंगा दोस्त,’’ पहला वाला झरोखा बोलतेबोलते खामोश हो चुका था. किंतु महल की दीवारों ने भी तन्मयता से उन की बातें सुनी थीं. आखिरकार जब नहीं रहा गया तो एक दीवार बोल ही पड़ी :

‘‘दिन भर यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है. देशीविदेशी इनसानों ने हमारी छाती पर अपने कदमों के जाने कितने निशान बनाए होंगे. अनगिनत लोगों ने यहां की गाथाएं सुनी हैं, विश्व में प्रसिद्ध है यह स्थान.

‘‘मांडवगढ़ के सुल्तानों का इतिहास, उन की वीरता, शौर्य और ऐश्वर्य के तमाम किस्सों ने, जो लेखक लिख गए हैं, यहां के इतिहास को अमर कर दिया है. समूचे मांडव में बिखरा पड़ा है प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य. नीलकंठ का रमणीक स्थान हो या हिंडोला महल की शान, चाहे जामा मसजिद की आन हो, हर दीवार, गुंबद अपने में समेटे हुए है एक ऐसा रहस्य, जहां तक बडे़बडे़ इतिहासकार भी कहां पहुंच पाए हैं.’’

‘‘हां, तुम सच कहती हो, ये कहां पहुंचे?’’ दूसरी दीवार बोली, ‘‘यह तो हम जानते हैं, मांडव का हर वह किला, उस की हर मेहराब, हर सीढ़ी, हर दीवार जो आज चुप है…जानती हो बहन, वह बेबस है. काश, कुदरत ने हमें भी जबां दी होती तो हम बोल पड़ते और वह सब बदल जाता, जो यहां के बारे में दोहराया जाता रहा है, बताया जाता रहा है, कहा जाता रहा है.

‘‘हम ने बादशाह अकबर की यात्रा देखी है. कुल 4 बार अकबर ने मांडवगढ़ के सौंदर्य का आनंद उठाया था. हम ने अपनी आंखों से देखा है उस अकबर महान की छवि को, जो आज भी हमारी आंखों में बसी हुई है. हम ने सुल्तान जहांगीर की वह शानोशौकत भी देखी है जिस का आनंद उठाया था, यहां की हवाओं ने, पत्तों ने, इस चांदनी ने.’’

पहली दीवार की तरफ से कोई संकेत न आते देख दूसरी दीवार ने पूछा, ‘‘सुनो, बहन, क्या तुम सो गईं?’’

‘‘नहीं बहन, कहां नींद आती है,’’ पहली दीवार ने एक ठंडी आह भर कर कहा.

‘‘देखो तो, रात की खामोशी में हवाएं उन मेहराबों को, झरोखों को चूमने के लिए कितनी बेताब हो जाती हैं, जहां कभी रानी रूपमती ने अपने सुंदर और कोमल हाथों से स्पर्श किया था,’’ पहली दीवार बोली, ‘‘ताड़ के दरख्तों को सहलाती हुई आती ये हवाएं धीरेधीरे सीढि़यों पर कदम रख कर महल के ऊपरी हिस्से में चली जाती हैं, जहां से संगीत की पुजारिन और सौंदर्य की मलिका रानी रूपमती कभी सवेरेसवेरे नर्मदा के दर्शन के बाद ही अपनी दिनचर्या शुरू करती थीं.’’

‘‘हां बहन, मैं ने भी देखा है,’’ दूसरी दीवार बोली, ‘‘इस हवा के पागलपन को महसूस किया है. यह रात में भी कभीकभी यहीं घूमती है. सवेरे जब सूरज की किरणों की लालिमा पहाडि़यों पर बिखरने लगती है तो यह छत पर उसी स्थान पर अपनी मंदमंद खुशबू बिखेरती है, जहां कभीकभी रूपमती जा कर खड़ी हो जाती थीं. कैसी दीवानगी है इस हवा की जो हर उस स्थान को चूमती है जहांजहां रूपमती के कदम पडे़ थे.’’

पहली दीवार कहां खामोश रहने वाली थी. झट बोली, ‘‘हां, इन सीढि़यों पर रानी की पायलों की झंकार आज भी मैं महसूस करती हूं. मुझे लगता है कि पायलों की रुनझुन सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर आ रही है.’’

दीवारों की बातें सुन कर अब तक खामोश झरोखा बोल पड़ा, ‘‘आप दोनों ठीक कह रही हैं. वह अनोखा संगीत और रागों का मिलन मैं ने भी देखा है. क्या उसे कलम के ये मतवाले देख पाएंगे? नहीं…बिलकुल नहीं.

‘‘पहाडि़यों से उतरती हुई संगीत की वह मधुर तान, बाजबहादुर के होने का आज भी मुझे एहसास करा देती है कि बाजबहादुर का संगीत प्रेम यहां के चप्पेचप्पे पर बिखरा हुआ है.’’

उपरोक्त बातचीत के 2 दिन बाद :

रात की कालिमा फिर धीरेधीरे गहराने लगी. ताड़ के पेड़ों को वही पागल हवाएं सहलाने लगीं. झरोखों से गुजर कर रूपमती के महल में अपने अंदाज दिखाने लगीं.

झरोखों से रात की यह खामोशी सहन नहीं हो रही थी. आखिरकार दीवारों की ओर देख कर एक झरोखा बोला, ‘‘बहन, चुप क्यों हो. आज भी कुछ कहो न.’’

दीवारों की तरफ से कोई हलचल न होते देख झरोखे अधीर हो गए फिर दूसरा बोला, ‘‘बहन, मुझ से तुम्हारी यह चुप्पी सहन नहीं हो रही है. बोलो न.’’

तभी झरोखों के कानों में धीमे से हवा की सरगोशियां पड़ीं तो झरोखों को लगा कि वह भी बेचैन थीं.

‘‘तुम दोनों आज सो गई हो क्या?’’ हवा ने पूरे वेग से अपने आने का एहसास दीवारों को कराया.

‘‘नहीं, नहीं,’’ दीवारें बोलीं.

‘‘देखो, आज अंधेरा कुछ कम है. शायद पूर्णिमा है. चांद कितना सुंदर है,’’ हवा फिर अपनी दीवानगी पर उतरी.

‘‘मैं आज फिर नीलकंठ गई तो वहां मुझे फूलों की खुशबू अधिक महसूस हुई. मैं ने फूलों को देखा और उन के पराग को स्पर्श भी किया. साथ में उन की कोमल पंखडि़यों और पत्तियों को भी….’’

‘‘क्या कहा तुम ने, जरा फिर से तो कहो,’’ एक दीवार की खामोशी भंग हुई.

हवा आश्चर्य से बोली, ‘‘मैं ने तो यही कहा कि फूलों की पंखडि़यों को…’’

‘‘अरे, नहीं, उस से पहले कहा कुछ?’’ दीवार ने फिर प्रश्न दोहराया.

‘‘मैं ने कहा फूलों के पराग को… पर क्या हुआ, कुछ गलत कहा?’’ हवा के चेहरे पर अपराधबोध झलक रहा था. मानो वह कुछ गलत कह गई हो. वह थम सी गई.

‘‘अरे, तुम को थम जाने की जरूरत नहीं… तुम बहो न,’’ दीवार ने उस की शंका दूर की.

हवा फिर अपनी गति में लौटने लगी.

‘‘वह जो लंबा लड़का आता है न और उस के साथ वह सांवली सी सुंदर लड़की होती है…’’

‘‘हां…हां… होती है,’’ झरोखा बोल पड़ा.

‘‘उस लड़के का नाम पराग है और आज ही उस लड़की ने उसे इस नाम से पुकारा था,’’ दीवार का बारीक मधुर स्वर उभरा.

‘‘अच्छा, इस में आश्चर्य की क्या बात है? हजारों लोग  मांडव की शान देखने आतेजाते हैं,’’ हवा ने चंचलता बिखेरी.

‘‘किस की बात हो रही है,’’ चांदनी भी आ कर अब अपनी शीतल किरणों को बिखेरने लगी थी.

‘‘वह लड़का, जो कभीकभी छत पर आ कर संगीत का रियाज करता है और वह सांवलीसलोनी लड़की उसे प्यार भरी नजरों से निहारती रहती है,’’ दीवार ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

‘‘अरे, हां, उसे तो मैं भी देखती हूं जो घंटों रियाज में डूबा रहता है,’’ हवा ने मधुर शब्दों में कहा, ‘‘और लड़की बावली सी उसे देखती है. लड़का बेसुध हो जाता है रियाज करतेकरते, फिर भी उस की लंबीलंबी उंगलियां थकती नहीं… सितार की मधुर ध्वनि पहाडि़यों में गूंजती रहती है .’’

‘‘उस लड़की का क्या नाम है?’’ झरोखा, जो खामोश था, बोला.

‘‘नहीं पता, देखना कहीं मेरे दामन पर उस लड़की का तो नाम नहीं,’’ दीवार ने झरोखे से कहा.

‘‘नहीं, तुम्हारे दामन में पराग नाम कहीं भी उकेरा हुआ नहीं है,’’ एक झरोखा अपनी नजरों को दीवार पर डालते हुए बोला.

‘‘हां, यहां आने वाले प्रेमी जोड़ों की यह सब से गंदी आदत है कि मेरे ऊपर खुरचखुरच कर अपना नाम लिख जाते हैं, जिन की खुद की कोई पहचान नहीं. भला यों ही दीवारों पर नाम लिख देने से कोई अमर हुआ है क्या?’’ दीवार का स्वर दर्द भरा था.

‘‘कहती तो तुम सच हो,’’ शीतल चांदनी बोली, ‘‘मांडव की लगभग हर किले की दीवारों का यही हाल है.’’

‘‘हां, बहन, तुम सच कह रही हो,’’ नर्मदा की पवित्रता बोली, जो अब तक खामोशी से उन की यह बातचीत सुन रही थी.

‘‘तुम,’’ झरोखा, दीवार, हवा और शीतल चांदनी के अधरों से एकसाथ निकला.

‘‘हर जगह नाम लिखे हैं, ‘सविता- राजेश’, ‘नैना-सुनीला’, ‘रमेश, नीता को नहीं भूलेगा’, ‘रीतू, दीपक की है’, ‘हम दोनों साथ मरेंगे’, ‘हमारा प्रेम अमर है’, ‘हम दोनों एकदूसरे के लिए बने हैं.’ यही सब लिखते हैं ये प्रेमी जोडे़,’’ नर्मदा की पवित्रता ने कहा.

‘‘बडे़ कठोर प्रेमी हैं ये लोग, जिस बेदर्दी से दीवारों पर लिखते हैं, इस से क्या इन का प्रेम अमर हो गया?’’ दीवार के स्वर में अब गुस्सा था.

‘‘ये क्या जानें प्रेम के बारे में?’’ झरोखे ने कहा, ‘‘प्रेम था रानी रूपमती का. गायन व संगीत मिलन, सबकुछ अलौकिक…’’

नर्मदा की पवित्रता की मुसकान उभरी, ‘‘मेरे दर्शनों के बाद रूपमती अपना काम शुरू करती थीं, संगीत की पूजा करती थीं.’’

बिलकुल, या फिर प्रेम का बावलापन देखा है तो मैं ने उस लड़की की काली आंखों में, उस के मुसकराते हुए होंठों में’’, हवा बोली, ‘‘मैं ने कई बार उस के चंदन से शीतल, सांवले शरीर का स्पर्श किया है. मेरे स्पर्श से वह उसी तरह सिहर उठती है जिस तरह पराग के छूने से.’’

चांदनी की किरणों में हलचल होती देख कर हवा ने पूछा, ‘‘कुछ कहोगी?’’

‘‘नहीं, मैं सिर्फ महसूस कर रही हूं उस लड़की व पराग के प्रेम को,’’ किरणों ने कहा.

‘‘मैं ने छेड़ा है पराग के कत्थई रेशमी बालों को,’’ हवा ने कहा, ‘‘उस के कत्थई बालों में मैने मदहोश करने वाली खुशबू भी महसूस की है. कितनी खुशनसीब है वह लड़की, जिसे पराग स्पर्श करता है, उस से बातें करता है धीमेधीमे कही गई उस की बातों को मैं ने सुना है…देखती रहती हूं घंटों तक उन का मिलन. कभी छेड़ने का मन हुआ तो अपनी गति को बढ़ा कर उन दोनों को परेशान कर देती हूं.’’

‘‘सितार के उस के रियाज को मैं भी सुनता रहता हूं. कभी घंटों तक वह खोया रहेगा रियाज में, तो कभी डूबने लगेगा उस लड़की की काली आंखों के जाल में,’’ झरोखा चुप कब रहने वाला था, बोल पड़ा.

ताड़ के पेड़ों की हिलती परछाइयों से इन की बातचीत को विराम मिला. एक पल के लिए वे खामोश हुए फिर शुरू हो गए, लेकिन अब सोया हुआ जीवन धीरे से जागने लगा था. पक्षियों ने अंगड़ाई लेने की तैयारी शुरू कर दी थी.

दीवार, झरोखा, पर्यटकों के कदमों की आहटों को सुन कर खामोश हो चले थे.

दिन का उजाला अब रात के सूनेपन की ओर बढ़ रहा था. दीवार, झरोखा, हवा, किरण आदि वह सब सुनने को उत्सुक थे, जो नर्मदा की पवित्रता उन से कहने वाली थी पर उस रात कह नहीं पाई थी. वे इंतजार कर रहे थे कि कहीं से एक अलग तरह की खुशबू उन्हें आती लगी. सभी समझ गए कि नर्मदा की पवित्रता आ गई है. कुछ पल में ही नर्मदा की पवित्रता अपने धवल वेश में मौजूद थी. उस के आने भर से ही एक आभा सी चारों तरफ बिखर गई.

‘‘मेरा आप सब इंतजार कर रहे थे न,’’ पवित्रता की उज्ज्वल मुसकान उभरी.

‘‘हां, बिलकुल सही कहा तुम ने,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

उन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए पवित्रता ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्या तुम सब को नहीं लगता कि महल के इस हिस्से में अभी कहीं से पायल की आवाज गूंज उठेगी, कहीं से कोई धीमे स्वर में राग बसंत गा उठेगा. कहीं से तबले की थाप की आवाज सुनाई दे जाएगी.’’

‘‘हां, लगता है,’’ हवा ने अपनी गति को धीमा कर कहा.

‘‘यहां, इसी महल में गूंजती थी रानी रूपमती की पायलों की आवाज, उस के घुंघरुओं की मधुर ध्वनि, उस की चूडि़यों की खनक, उस के कपड़ों की सरसराहट,’’ नर्मदा की पवित्रता के शब्दों ने जैसे सब को बांध लिया.

‘‘महल के हर कोने में बसती थी वीणा की झंकार, उस के साथ कोकिलकंठी  रानी के गायन की सम्मोहित कर देने वाली स्वर लहरियां… जब कभी बाजबहादुर और रानी रूपमती के गायन और संगीत का समय होता था तो वह पल वाकई अद्भुत होते थे. ऐसा लगता था कि प्रकृति स्वयं इस मिलन को देखने के लिए थम सी गई हो.

‘‘रूपमती की आंखों की निर्मलता और उस के चेहरे का वह भोलापन कम ही देखने को मिलता है. बाजबहादुर के प्रेम का वह सुरूर, जिस में रानी अंतर तक भीगी हुई थी, बिरलों को ही नसीब होता है ऐसा प्रेम…’’

‘‘उन की छेड़छाड़, उन का मिलन, संगीत के स्वरों में उन का खो जाना, वाकई एक अनुभूति थी और मैं ने उसे महसूस किया था.

‘‘मुझे आज भी ऐसा लगता है कि झील में कोई छाया दिख जाएगी और एहसास दिला जाएगी अपने होने का कि प्रेम कभी मरता नहीं. रूप बदल लेता है समय के साथ…’’

‘‘हां, बिलकुल यही सब देखा है मैं ने पराग के मतवाले प्रेम में, उस की रियाज करती उंगलियों में, उस के तराशे हुए अधरों में,’’ झरोखे ने चुप्पी तोड़ी.

‘‘गूंजती है जब सितार की आवाज तो मांडव की हवाओं में तैरने लगते हैं उस सांवली लड़की के प्रेम स्वर, वह देखती रहती है अपलक उस मासूम और भोले चेहरे को, जो डूबा रहता है अपने सितार के रियाज में,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

‘‘कितना सुंदर लगता था बाजबहादुर, जब वह वीणा ले कर हाथों में बैठता था और रानी रूपमती उसे निहारती थी. कितना अलौकिक दृश्य होता था,’’ नर्मदा की पवित्रता ने बात आगे बढ़ाई.

इस महान प्रेमी को युद्ध और उस के नगाड़ों, तलवारों की आवाजों से कोई मतलब नहीं था, मतलब था तो प्रेम से, संगीत से. बाज बहादुर ने युद्ध कौशल में जरा भी रुचि नहीं ली, खोया रहा वह रानी रूपमती के प्रेम की निर्मल छांह में, वीणा की झंकार में, संगीत के सातों सुरों में.

‘‘ऐसे कलाकार और महान प्रेमी से आदम खान ने मांडव बड़ी आसानी से जीत लिया, फिर शुरू हुई आदम खान की बर्बरता इन 2 महान प्रेमियों के प्रति…’’

‘‘कितने कठोर होंगे वे दिल जिन्होंने इन 2 संगीत प्रेमियों को भी नहीं छोड़ा,’’ हवा ने अपनी गति को बिलकुल रोक लिया.

‘‘हां, वह समय कितना भारी गुजरा होगा रानी पर, बाज बहादुर पर. कितनी पीड़ा हुई होगी रानी को,’’ नर्मदा की पवित्रता बोली, ‘‘रानी इसी महल के कक्ष में फूटफूट कर रोई थीं.’’

‘‘आदम खान रानी के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुआ. रानी का कहना था कि वह एक राजपूत हिंदू कन्या है. उस की इज्जत बख्शी जाए…आदम खान ने मांडव जीता पर नहीं जीत पाया रानी के हृदय को, जिस में बसा था संगीत के सुरों का मेल और बाज बहादुर का पे्रम.

‘‘जब आदम खान नियत समय पर रानी से मिलने गया तो उस ने रूपमती को मृत पाया. रानी ने जहर खा कर अमर कर दिया अपने को, अपने प्रेम को, अपने संगीत को.’’

‘‘हां, केवल शरीर ही तो नष्ट होता है, पर प्रेम कभी मरा है क्या?’’ झरोखा अपनी धीमी आवाज में बोला.

तभी दीवार की धीमी आवाज ने वहां छाने लगी खामोशी को भंग किया, ‘‘हर जगह मुझे महसूस होती है रानी की मौजूदगी, कितना कठोर होता है यह समय, जो गुजरता रहता है अपनी रफ्तार से.’’

‘‘पराग, वह लंबा लड़का, जो रियाज करने आता है और उस के साथ आती है वह सुंदर आंखों वाली लड़की. मैं ने उस की बोलती आंखों के भीतर एक मूक दर्द को देखा है. वह कहती कुछ नहीं, न ही उस लड़के से कुछ मांगती है. बस, अपने प्रेम को फलते हुए देखना चाहती है,’’ झरोखा बोला.

‘‘हां, बिलकुल सही कह रहे हो. प्रेम की तड़प और इंतजार की कसक जो उस के अंदर समाई है वह मैं ने महसूस की है,’’ हवा ने अपने पंख फैलाए और अपनी गति को बढ़ाते हुए कहा, ‘‘उस के घंटों रियाज में डूबे रहने पर भी लड़की के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती. वह अपलक उसे निहारती है. मैं जब भी पराग के कोमल बालों को बिखेर देती हूं, वह अपनी पतलीपतली उंगलियों से उन को संवार कर उस के रियाज को निरंतर चलने देती है.’’

‘‘सच, कितनी सुंदर जोड़ी है. मेरे दामन में कभी इस जोड़ी ने बेदर्दी से अपना नाम नहीं खुरचा. अपनी उदासियों को ले कर जब कभी वह पराग के विशाल सीने में खो जाती है तो दिलासा देता है पराग उस बच्ची सी मासूम सांवली लड़की को कि ऐसे उदास नहीं होते प्रीत…’’ दीवार ने कहा.

‘‘यों ही प्रेम अमर होता है, एक अनोखे और अनजाने आकर्षण से बंधा हुआ अलौकिक प्रेम खामोशी से सफर तय करता है,’’ झरोखा बोला.

हवा ने अपनी गति अधिक तेज की. बोली, ‘‘मैं उसे देखने फिर आऊंगी, समझाऊंगी कि ऐ सुंदर लड़की, उदास मत हो, प्रेम इसी को कहते हैं.’’

खामोशी का साम्राज्य अब थोड़ा मंद पड़ने लगा था, सुबह की किरणों ने दस्तक देनी शुरू जो कर दी थी

लुकाछिपी: क्या हो पाई कियारा और अनमोल की शादी

कियारा के गेट पर पांव रखते ही वाचमैन से ले कर औफिस के हर शख्स तक की आंखें चौड़ी हो जातीं. उस के अद्वितीय सौंदर्य व आकर्षक व्यक्तित्व के आगे किसी का जोर नहीं चलता. बिना डोर के सभी कियारा की ओर स्वत: खिंचे चले आते. हरकोई बस इसी प्रयास में लगा रहता कि वह कियारा को किसी भी प्रकार से आकर्षित कर ले या किसी भी बहाने से कियारा उस से बात कर ले, लेकिन कियारा अपनी ही धुन में मस्त रहती, उसे अपने हुस्न का अंदाजा था. उस से यह बात भी छिपी नहीं थी कि पूरा औफिस उस पर लट्टू है. वह हाई हील्स पहन कर इस अदा से बल खा कर चलती कि उसे देख केवल लड़कों या पुरुषों के ही दिल नहीं बल्कि लड़कियों और महिलाओं के भी दिल डोल जाते.

देश की राजधानी दिल्ली में पलीबढ़ी कियारा खुली और स्वत्रंत विचारधारा की लड़की थी जिस की वजह से कई बार लोग उसे गलत भी सम झ लेते और उस के खुलेपन का मतलब आमंत्रण सम झ लेते. उस की यही स्वच्छंदता और उस का बेबाकपन कई बार उस के लिए आफत भी बन जाता.

पिछले 2 सालों से कियारा बैंगलुरु की मल्टीनैशनल कंपनी में बतौर असिस्टैंट मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्यरत थी. वह अपने घर से दूर यहां अपनी कलीग और रूममेट सलोनी के साथ रहती थी, सलोनी नागपुर से थी. वह अपने नाम के अनुरूप देखने में सांवली थी. कियारा और सलोनी दोनों एकदूसरे के विरोधाभास थे.

कियारा जितनी चंचल, शोख, बातूनी और दिल की साफ थी, सलोनी उतनी ही शांत, गंभीर और कम बोलने वाली, लेकिन काफी चालाक और मौकापरस्त थी. यह बात कियारा उस के साथ रहते हुए जान चुकी थी, लेकिन औफिस कलीग्स और उन के परिचित इस बात से अनभिज्ञ थे.

अकसर ऐसा देखा गया है जो महिला या लड़की अपने विचारों को बिना किसी हिचकिचाहट, निडर और बेबाक तौर पर बगैर किसी लागलपेट के कहती है लोग उसे खुली तिजोरी सम झ कर उस पर हाथ साफ करने की मंशा रखते हैं. यही हाल यहां भी था. हरकोई बस कियारा को फांसने में लगा रहता.

कियारा के चाहने वालों की लंबी लिस्ट थी इस बात से सलोनी अंदर ही अंदर कियारा से चिढ़ती भी थी. कभीकभी मजाक में उस से कह भी देती कि इस औफिस में क्या पूरे शहर के लड़के तो बस तु झ पर ही मरते हैं, एकाध हमारे लिए भी तो छोड़ दे.

कियारा जानती थी कि सलोनी यह बात मजाक में नहीं कह कर रही है, यह उस के अंदर का दर्द है जिसे वह मजाक का जामा पहनाए हुए है, इसलिए कियारा खिलखिला का हंसती हुई कहती कि मेरी जान तू किसी को भी दबोच ले, मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं ने कौन सा किसी को पकड़ रखा है. मेरा दिल तो अब तक किसी पर आया ही नहीं है, हां. यह अलग बात है कि यहां हरेक का दिल मु झ पर ही अटका हुआ है.

जब भी कियारा ये सारी बातें सलोनी से कहती, वह एक और बात उस से जरूर कहती कि जब भी मु झे किसी से प्यार हो जाएगा या जिस किसी पर भी मेरा दिल आ जाएगा, मैं शादी उसी से करूंगी.

कियारा के इस बात पर सलोनी हंसने लगती और कियारा से कहती कि देख यार मेरा मानना है प्यार, महब्बत, इश्क, घूमनाफिरना यहां तक किसी के साथ फिजिकल रिलेशन रखने में भी कोई बुराई नहीं है, लेकिन शादी हमेशा वहीं करना चाहिए जहां हमारे मम्मीपापा चाहते हैं. इस से समाज में हमारी मानप्रतिष्ठा भी बनी रहती है और जीवन में मजे भी हो जाते हैं.

सलोनी का यह विचार उस के दोहरे चरित्र को दर्शाता था. एक ओर जहां सलोनी जिंदगी के मजे खुल कर लेना चाहती थी वहीं दूसरी ओर संस्कारी होने का टैग भी अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती.

दोनों अपनेअपने सिद्धांतों और नियमों के अनुसार जी रहे थे. दोनों के विचारों में टकराव होने के बावजूद दोनों साथसाथ रहते, मूवी जाते, पार्टी करते और वीकैंड को खूब मजा भी करते. कियारा कहती मेरा तो बस यह सोचना है कि हर वह काम करो जिस में खुशी मिलती है. बस इस बात का ध्यान रखो कि हमारी खुशी से किसी को दुख न पहुंचे और किसी का भी नुकसान न हो.

दोनों यों ही अपनेअपने तरीके से जीवन का आनंद उठा रहे थे कि एक रोज लंच ब्रेक में सलोनी ने कियारा से कहा, ‘‘यार मु झे तु झ से हैल्प चाहिए, क्या तू मेरी हैल्प कर पाएगी?’’

कियारा ने बिना सोचे ही कह दिया, ‘‘तू बोल न एनी थिंग फौर यू.’’

कियारा के ऐसा कहने पर सलोनी ने उसे गले लगा लिया और बोली, ‘‘यार… आज मैं औफिस में सैकंड हाफ नहीं रहूंगी, मैं ने किसी से कुछ भी नहीं कहा है. अगर कोई कुछ पूछे तो तू संभाल लेना.’’

कियारा को कुछ सम झ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या है. उस ने आश्चर्य से कहा, ‘‘लेकिन तू जा कहां रही है. हाफ डे ऐप्लिकेशन तो दे कर जा.’’

कागज का एक पन्ना कियारा के हाथों में थमाती हुई सलोनी बोली, ‘‘यह ले ऐप्लिकेशन अब मैं जाऊं?’’

‘‘लेकिन तू जा कहां रही है यह तो बता?’’ कियारा ने सलोनी से दोबारा कहा.

तब कियारा की दोनों हथेलियों को दबाती हुई सलोनी बोली, ‘‘वह मैं तु झे रूम पर आने के बाद बताऊंगी,’’ ऐसा कहती हुई तेजी से सलोनी वहां से निकल गई.

कियारा लंच ब्रेक के बाद अपने काम में लग गई. करीब 1 घंटे के बाद औफिस की एक कलीग ने कियारा से पूछा, ‘‘अरे कियारा सलोनी काफी देर से दिखाई नहीं दे रही है वह है कहां?’’

कियारा को कुछ सम झ नहीं आया कि वह  क्या कहे तो उस ने कह दिया, ‘‘उस की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए घर चली गई.’’

बात आईगई हो गई. शाम को जब औफिस से कियारा रूम पर लौटी तब तक सलोनी नहीं आई थी. कियारा ने सलोनी को फोन किया, लेकिन उस का नंबर स्विच्ड औफ आ रहा था. कियारा ने हाथमुंह धो कर अपने लिए चाय बनाई और फिर चाय पीने के बाद थोड़ा आराम कर खाना बनाने में जुट गई. इस बीच वह हर थोड़ी देर के अंतराल में सलोनी को फोन करती रही. लेकिन हर बार सलोनी का फोन स्विच्ड औफ ही आ रहा था.

खाना बनाने के बाद कियारा सलोनी के इंतजार में गैलरी में जा खड़ी हुई. उस ने खाना भी नहीं खाया. रात के 11 बज रहे थे. तभी एक बाइक फ्लैट के सामने आ कर रुकी. रात के अंधेरे और स्ट्रीट लाइट की धीमी रोशनी में कियारा को कुछ साफ दिखाई नहीं दिया. बस वह इतना देख पाई कि उस बाइक से सलोनी उतरी.

सलोनी के रूम पर आते ही कियारा ने उस से कहा, ‘‘कहां चली गई थी… इतना देर कैसे हो गई?’’

सलोनी के चेहरे पर खुशी  झलक रही थी. उस ने कियारा के कांधों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘चिल… यार मैं वरूण के साथ मूवी देखने गई थी और फिर वहां से वह मु झे डिनर पर ले गया इसलिए देर हो गई.’’

वरुण सुनते ही कियारा चिढ़ गई और सलोनी पर गुस्सा करती हुई बोली, ‘‘वरुण के साथ गई थी. तू पागल हो गई है क्या? वह शादीशुदा है और तू उस के साथ…’’

‘‘अरे यार कियारा तू ही तो कहती है न खुश होने का अधिकार सब को है और जिस काम को कर के खुशी मिलती है वह काम कर लेना चाहिए. तो मैं तेरा ही रूल तो फौलो कर रही हूं,’’ सलोनी बेपरवाह होती हुई बोली.

‘‘लेकिन मैं यह भी कहती हूं कि ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिस से किसी को दुख या नुकसान हो, तु झे यह बात याद नहीं,’’ कियारा थोड़ा चिढ़ती हुई बोली.

‘‘वरुण के साथ मेरे मूवी देखने से या उस के साथ डिनर करने से भला किस को दुख होने वाला है या फिर किस को नुकसान होने वाला है और तु झे क्यों बुरा लग रहा है? तेरे तो बहुत चाहने वाले हैं. तू तो जिस के साथ चाहे उस के साथ यह सब कर सकती है, लेकिन तु झे तो यह सब करना नहीं है फिर तू क्यों इतनी दुखी और परेशान हो रही है?’’ सलोनी अपने कंधे ऊंचकाती हुई बोली.

‘‘मैं परेशान इसलिए हूं क्योंकि तू ने मु झ से कहा था तू अपनी भाभी के छोटे भाई अंशु को पसंद करती है और उस से शादी करना चाहती है, फिर तू वरुण के साथ क्यों घूम रही और जरा सोच वरुण की वाइफ को पता चलेगा कि उस का पति उसे छोड़ कर तेरे साथ मूवी देखने और डिनर करने गया था तो उसे कितना दुख होगा और इस का असर उन के वैवाहिक जीवन पर भी पड़ सकता है,’’ कियारा सलोनी को सम झाती हुई बोली.

‘‘अरे यार ऐसा कुछ नहीं होगा. पहली बात तो उस की वाइफ को कभी कुछ पता ही नहीं चलेगा. मैं और वरुण रिलेशनशिप में हैं और हमारे बीच यह सब 6 महीने से चल रहा है. मेरी रूममेट हो कर तु झे कभी पता चला? औफिस में हम सब साथ रहते हैं. औफिस में अब तक किसी को पता चला? नहीं न तो उस की बीवी को कैसे पता चलेगा और कौन सी मु झे वरुण से शादी करनी है. रही बात अंशु की तो वह कभी जान ही नहीं पाएगा कि मैं यहां क्या कर रही हूं क्योंकि मैं तेरी तरह हर किसी से फ्री हो कर बात नहीं करती. मैं एक सीधी सादी कम बोलने वाली लड़की हूं.’’

सलोनी का एक और नया रूप देख कर कियारा हैरान थी. उस ने सलोनी से कुछ नहीं कहा. चुपचाप खाना खाश्स और सो गई. सुबह जब वह उठी तो उस ने देखा सलोनी दोनों के लिए चाय बना रही है. चाय बनाने के बाद दोनों ने साथ में चाय पी, लेकिन कियारा शांत रही. सलोनी चाय पीते वक्त कियारा से बात करने का प्रयास करती रही, लेकिन कियारा ने कुछ नहीं कहा.

उस के बाद वक्त पर तैयार हो कर दोनों औफिस भी आ गए. दोनों के बीच कतई असामानता थी उस के बावजूद कियारा के लिए सलोनी केवल उस की एक रूममेट नहीं उस की सहेली भी थी, जिसे वह अपने दिल की हर बात बताती, भले सलोनी उस से कई बात छिपा जाती थी. कियारा नहीं चाहती थी कि सलोनी कोई भी ऐसा काम करे जो गलत हो.

औफिस आने के बाद दोनों अपनेअपने काम में लग गईं. कियारा अपने काम में व्यस्त थी कि तभी वरुण उस के समीप आ कर बैठ गया. कियारा उसे अनदेखा कर अपने काम में लगी रही.

तभी वरुण बोला, ‘‘तुम अपनेआप को क्या सम झती हो. तुम सलोनी की लाइफ को कंट्रोल करने की कोशिश क्यों कर रही हो? वह मेरे साथ घूमे या फिर जिस के साथ चाहे उस के साथ घूमेंफिरे, तुम कौन होती हो उसे मना करने वाली? तुम खुद तो सब के साथ हंसहंस कर बातें कर सकती हो और वह मेरे साथ कहीं जा भी नहीं सकती… तुम उसे रोकनाटोकना बंद करो वरना…’’

वरुण का इतना कहना था कि कियारा  कंप्यूटर स्क्रीन पर से अपनी नजरें हटाती हुई बोली, ‘‘वरना क्या? क्या कर लोगे तुम? मु झे तुम से कोई लेनादेना नहीं है. सलोनी मेरी फ्रैंड है और उसे सहीगलत बताना मेरा फर्ज है. वह माने या न माने यह उस की मरजी. यह मेरे और उस के बीच की बात है. तुम इन सब में मत पड़ो तो अच्छा होगा वरना तुम मु झे बहुत अच्छी तरह से जानते हो, मैं अभी जोरजोर से चिल्ला कर सब को बता दूंगी कि शादीशुदा हो कर तुम्हारा अफेयर चल रहा है और तुम्हारे घर जा कर तुम्हारी बीवी को तुम्हारे सारे कारनामे बता दूंगी, फिर सोचो तुम्हारी साफसुथरी, सभ्य पुरुष की इमेज का क्या होगा जो तुम ने इस औफिस और अपने घर में बना रखी है.’’

कियारा का इतना कहना था की वरुण के माथे पर पसीना आ गया और वह चलता बना. कियारा इन 2 सालों में इतना तो जान चुकी थी कि जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है. यहां ज्यादातर लोगों के चेहरे पर मुखौटे होते हैं और मुखौटे के पीछे का असली चेहरा बिलकुल अलग.

वरुण के जाते ही सलोनी आ गई और कियारा से बोली, ‘‘यह वरुण तेरे पास क्यों आया था.’’

कियारा ने सलोनी को घूर कर देखा फिर बोली, ‘‘तेरे लिए. तू ने कल रात हमारे बीच हुई सारी बातें उसे बता जो दीं.’’

सलोनी नजरें चुराती हुई बोली, ‘‘नहीं ऐसी बात नहीं है. मैं ने तो बस वरुण से इतना कहा कि तुम मु झ से बात नहीं कर रही हो,’’ फिर धीरे से सलोनी बोली, ‘‘कियारा सच बता वरुण तेरे पास क्यो आया था. कहीं तेरा और वरुण का भी…’’ कहते हुए सलोनी रुक गई.

कियारा गुस्से में बोली, ‘‘मैं तु झे कैसे सम झाऊं कि मेरा न वरुण के साथ कोई संबंध है और न ही किसी और के साथ, हां मैं मानती हूं कि मैं सब से हंस कर घुलमिल कर बात करती हूं. इस का अर्थ यह कतई नहीं है कि मेरा किसी के साथ कोई संबंध है.’’

कियारा के ऐसा कहने पर सलोनी वहां से चली गई और कियारा यह सोचने लगी कि आखिर लोगों की मानसिकता इतनी संकीर्ण क्यों है? क्यों हरकोई यह सम झ लेता है कि जो लड़की सभी से फ्रीली बात करती है, हंसती, मुसकराती है वह चालू ही होगी या अवश्य ही उस का किसी न किसी के साथ कोई संबंध होगा ही और जो कम बोलती है सब के सामने छुईमुई बनी रहती है उस का किसी से कोई संबंध हो ही नहीं सकता.

इसी तरह से हर दिन अपने पीछे एक नई कहानी गढ़ते हुए गुजर रही थी. हरकोई बस कियारा को पाना चाहता था, लेकिन कियारा किसी के हाथ नहीं आ रही थी और सलोनी कपड़ों की तरह अपने बौयफ्रैंड बदल रही थी. जब भी कोई कियारा को पाने के अपने मंसूबे में नाकामयाब होता, वह कियारा को ही भलाबुरा कहने लगता और उस में ही कई खोट निकालने लगता बिलकुल वैसे ही जैसे अंगूर को न पा कर लोमड़ी कहती फिरती कि अंगूर खट्टे हैं.

कियारा से संबंध जोड़ने में असफल हुए लड़के व पुरुष सलोनी को आजमाते और सलोनी उसे एक अवसर के रूप में लेती और उस का भरपूर आनंद उठाती. साथ ही साथ सलोनी हरेक के संग सारी हदें लांघने में भी पीछे नहीं रहती. अब कियारा भी सलोनी से कुछ कहना या उसे सम झाना छोड़ चुकी थी, लेकिन दोनों के बीच दोस्ती अब भी बरकरार थी.

अचानक एक दिन औफिस के किसी काम से कियारा को अपने ही विभाग के दूसरे अनुभाग में जाना पड़ा, जहां उस की मुलाकात अनमोल नाम के एक ऐसे शख्स से हुई जिस से मिल कर कियारा को पहली बार लगा कि उस व्यक्ति ने उसे गलत नजरों से नहीं देखा और कियारा अपना दिल उसी पल उसे दे बैठी.

कियारा अपने अनुभाग में आते ही फौरन सलोनी के पास जा पहुंची और उसे अपना हाले दिल व अनमोल के बारे में बताने लगी.

यह सुनते ही सलोनी हंसती हुई बोली, ‘‘वाऊ… आखिर तु झे भी प्यार हो ही गया. अनमोल और तु झे मिलाने में मैं तेरी मदद कर सकती हूं.’’

यह सुनते ही कियारा बोली, ‘‘प्लीज बता न कैसे?’’

तब सलोनी थोड़ा इतराती हुई बोली, ‘‘मैं अनमोल के रूममेट को जानती हूं. पहले

वह तेरा दीवाना था और आजकल मेरा है.’’

कियारा आश्चर्य से बोली, ‘‘कौन?’’

सलोनी मुसकराती हुई बोली, ‘‘अजय.’’

कियारा मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘वह… अजय.’’

‘‘हां अजय… अजय और अनमोल रूममेट भी हैं और फ्रैंड भी. अनमोल से तो मैं उस के रूम में कई बार मिल चुकी हूं. जब भी अजय से मिलने जाती हूं अकसर मेरी मुलाकात अनमोल से होती है और अनमोल तो तु झे भी अच्छी तरह से जानता है.’’

यह सुन कर कियारा को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि अनमोल से बातें करते हुए उसे एक क्षण के लिए भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि अनमोल उसे जानता है.

वह यह सोच ही रही थी की कियारा के क्लासमेट संदीप का फोन आ गया. संदीप उस का स्कूल फ्रैंड था, उस के शहर दिल्ली से था और वह भी यहां बैंगलुरु की ही एक आईटी कंपनी में था. अकसर संदीप वीकैंड पर या फिर जब भी फ्री होता कियारा के साथ समय स्पैंड करने आ जाता या कियारा उस के पास चली जाती. दोनों के बीच इतना अच्छा तालमेल था कि लोगों को संदेह होता कि शायद संदीप और कियारा के बीच संबंध है.

कियारा के फोन रिसीव करते ही संदीप बोला, ‘‘हाय? किया क्या कर रही हो?’’

यहां बैंगलुरु में संदीप ही था जो कियारा को किया नाम से पुकारता था. उस के केवल कुछ खास दोस्त ही थे जो उसे किया पुकारते थे. उन में से एक संदीप भी था.

‘‘कुछ नहीं बस औफिस में हूं.’’

‘‘आज शाम मैं फ्री हूं डिनर पर चलोगी? बहुत दिनों से हम ने साथ डिनर नहीं किया है,’’ संदीप खुश होते हुए बोला.

कियारा डिनर के लिए मना कर देना चाहती थी क्योंकि उस का मन विचलित था, लेकिन वह संदीप को दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए बोली, ‘‘हां ठीक है. कहो मु झे कहां आना है?’’

‘‘अरे यार तुम्हें कहीं आने की जरूरत नहीं. मैं आ जाऊंगा तु झे लेने फिर साथ चलेंगे,’’ संदीप आत्मीयता और अपना पूरा हक जताते हुए बोला.

‘‘ओके आई विल वेट,’’ कह कर कियारा ने फोन रख दिया.

कियारा के फोन रखते ही सलोनी शरारती अंदाज में मुसकराती हुई बोली, ‘‘संदीप का फोन था?’’

कियारा के हां कहने पर सलोनी उसे छेड़ती हुई बोली, ‘‘क्या बात है कहां चलने को कह रहा है हीरो… तेरी तो ऐश है यार, संदीप जैसा हैंडसम लड़का भी तु झ पर ही मरता है और मु झ से ठीक से बात भी नहीं करता.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है वी आर जस्ट ए गुड फ्रैंड. तू भी साथ चलना… मजा आएगा.’’

डेढ़ साल पहले जब सलोनी संदीप से मिली थी तब से वह संदीप को आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन विफल ही रही. उसे इस बात से बहुत चिढ़ है कि संदीप का ध्यान केवल कियारा की ओर ही रहता है, लेकिन उस ने कभी कियारा को इस बात का आभास नहीं होने दिया.

‘‘ठीक है तू कह रही है तो मैं भी चलती हूं वरना संदीप के साथ कहीं जाना मु झे पसंद नहीं.’’

सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा ने कोई जवाब नहीं दिया और फिर दोनों अपनेअपने काम में लग गईं.

शाम को औफिस से लौटने के बाद कियारा डिनर पर जाने के लिए तैयार होने लगी.

तभी उस ने देखा सलोनी हैडफोन लगा कर शांत बैठी हुई है. यह देख कियारा ने कहा, ‘‘अरे संदीप आने ही वाला है तू रैडी कब होगी?’’

‘‘नहीं मैं नहीं चल रही, मेरा मन नहीं कर रहा. तुम जाओ मेरी वजह से तुम अपना प्रोग्राम ड्राप मत करो,’’ सलोनी गंभीर होती हुई बोली.

‘‘क्या हुआ? कुछ है तो बता न मैं संदीप को डिनर के लिए मना कर दूंगी,’’ कियारा बोली.

‘‘अरे कुछ नहीं तू जा न… आई विल मैनेज,’’ सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा अकेले ही संदीप के साथ डिनर पर चली गई.

जब वह डिनर से लौटी तो उस ने देखा सलोनी काफी खुश लग रही थी. कियारा को कुछ सम झ नहीं आया कि आखिर इन 2 घंटों में ऐसी क्या बात हो गई जो शांत उदास सलोनी अचानक इतनी खुश लग रही है. कियारा उस से यह जानना चाहती थी लेकिन चुप रही.

अगले दिन औफिस में अभी कियारा ने अपना डैस्कटौप खोला ही था कि वहां अनमोल आ गया. अनमोल को देखते ही सलोनी की धड़कनें तेज हो गईं. ऐसा पहली बार हुआ था

जब कियारा का दिल किसी के लिए इतना अधीर हुए जा रहा था. कियारा अपनी सीट से उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘अनमोल तुम? कहो कुछ काम है?’’

अनमोल ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘नहीं बस यों ही तुम से मिलने आ गया.’’

यह सुनते ही कियारा के आंखों में चमक आ गई और औफिस के बाकी लोगों के कान खड़े हो गए, कियारा थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘ प्लीज हेव ए सीट.’’

कियारा के ऐसा कहते ही अनमोल बैठ गया और थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच गहरी शांति ने स्थान ले लिया जिसे तोड़ते हुए अनमोल ने कहा, ‘‘कियारा कल रात मैं तुम से मिलने तुम्हारे फ्लैट पर आने वाला हूं यह जानते हुए भी तुम किसी संदीप के साथ डिनर पर चली गई, अगर तुम्हें मु झ से नहीं मिलना था तो फोन कर के मु झे बता भी सकती थी. सलोनी के पास तो मेरा और मेरे रूममेट अजय हम दोनों का नंबर है, लेकिन तुम इस तरह बिना बताए.

कियारा बीच में ही अनमोल को रोकती हुई बोली, ‘‘एक मिनट. एक मिनट. तुम ने मु झ से कब कहा कि तुम मु झ से मिलने आ रहे हो?’’

‘‘अरे… मैं ने सलोनी से फोन कर के कहा तो था कि मैं आ रहा हूं… तुम्हारा मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था, इसलिए मैं ने सलोनी से कहा था,’’ अनमोल थोड़ा हैरान होते हुए बोला.

कियारा को बात सम झने में देर नहीं लगी कि कल सलोनी उन के साथ डिनर पर क्यों नहीं गई और वह इतनी खुश क्यों लग रही थी.

कियारा के चेहरे पर दुख के भाव आ गए और वह बोली, ‘‘आई एम सौरी अनमोल मु झे नहीं पता था तुम आने वाले हो, सलोनी मु झे बताना भूल गई होगी.’’

अनमोल मुसकराते हुए बोला, ‘‘इट्स ओके अच्छा अब मैं चलता हूं.’’

अनमोल जैसे ही जाने लगा कियारा ने कहा ‘‘अनमोल फिर कभी आना हो तो…’’ ऐसा कहते हुए एक कागज का टुकड़ा उस की ओर बढ़ा दिया, जिस पर उस का फोन नंबर लिखा था. उस के बाद क्या था अनमोल और कियारा की प्यार की गाड़ी सुपरफास्ट ऐक्सप्रैस की तरह दौड़ने लगी. औफिस में भी अफसाने बनने लगे. किसी को कुछ सम झ नहीं आ रहा था. सभी के सम झ से परे थी यह बात कि आखिर किस का रिश्ता किस के साथ है.

कियारा का रिश्ता संदीप के संग है या अनमोल के संग, सलोनी कभी अजय के साथ नजर आती तो कभी अनमोल के साथ, लोगों को यह अंदाजा लगाना मुश्किल था. आखिर इन सभी पांचों में किस का संबंध किस के साथ. कियारा पहले की ही तरह संदीप के साथ आउटिंग पर जाती उस के साथ मूवी जाती और कभीकभी डिनर पर भी जाती, लेकिन जब संदीप और कियारा साथ जाते उन के साथ कोई तीसरा नहीं होता क्योंकि कोई भी संदीप के साथ कहीं जाना पसंद नहीं करता, लेकिन जब कियारा अनमोल के साथ कहीं जाती संदीप को छोड़ कर सलोनी और अजय भी साथ होते.

अनमोल को पा कर कियारा बेहद खुश थी. वह अनमोल में कुछ इस तरह डूबी हुई थी कि उस ने अपना सबकुछ अनमोल पर लुटा दिया. अपनेआप को अनमोल को समर्पित दिया. अनमोल के प्यार में कियारा इस कद्र अंधी थी कि उसे अनमोल के आगे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था. वह यह भी देखने को तैयार नहीं थी कि संदीप भी उस से बेइंतहा मुहब्बत करता है, लेकिन यह बात अनमोल भाप चुका था और यही वजह थी कि कियारा का संदीप से मिलना उसे पसंद नहीं था.

अकसर वीकैंड पर कियारा अनमोल के फ्लैट में रात रुक जाती या जब

भी अजय नहीं होता वह अनमोल के साथ ही रातें गुजारती. अब कियारा जल्द से जल्द अनमोल के संग ब्याह के बंधन में बंध कर अपना घर बसाना चाहती थी, इसलिए एक रात जब वह अनमोल की बांहों में अपना सिर रख कर लेटी हुई थी तो उस ने अनमोल से कहा, ‘‘अनमोल अब हमें शादी कर लेनी चाहिए.’’

यह सुनते ही अनमोल कियारा के लबों पर अपने प्यार की निशानी अंकित करते हुए बोला, ‘‘माई डियर मैं भी यही सोच रहा हूं कोई तुम्हें उड़ा कर ले जाए, उस से पहले मैं तुम्हें उड़ा ले जाऊं.’’

उस के बाद अनमोल और कियारा ने अपने घर वालों के समक्ष अपनी शादी की इच्छा जाहिर की और दोनों के ही परिवार वाले भी इस शादी के लिए सहर्ष तैयार हो गए क्योंकि दोनों एक ही बिरादरी से थे और दोनों का सामाजिक स्तर भी बराबरी का था. कुछ ही हफ्तों बाद अनमोल और कियारा की सगाई हो गई और औफिस में चल रही सारी अठखेलियां कियारा और अनमोल के सगाई के बाद समाप्त हो गईं.

सलोनी की शादी भी उस की भाभी के छोटे भाई अंशु से फिक्स हो गई. यों लग रहा था जैसे सबकुछ सही हो गया है. सभी के सपनों को पंख मिल गए थे और सभी ऊंची उड़ान भरने लगे थे, लेकिन जिंदगी जितनी सरल दिखती है उतनी आसान होती कहां है. अभी जिंदगी को अपना एक अलग ही रंग दिखाना बाकी था.

तभी एक दिन कियारा किसी से कुछ भी बताए बगैर अनमोल के फ्लैट में जा पहुंची. सगाई के बाद से अनमोल के फ्लैट की एक चाबी कियारा के पास भी थी. फ्लैट पहुंच कर जैसे ही उस ने दरवाजा खोला और कियारा की आंखों ने जो देखा उसे देख कियारा को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. सलोनी को अनमोल की बांहों में देख कियारा स्तब्ध रह गई. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सलोनी और अनमोल उस के साथ ऐसा करेंगे. वह जानती थी कि सलोनी हर हफ्ते बौयफ्रैंड बदलती है, लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि अनमोल और सलोनी उस की पीठ पीछे लुकाछिपी का ऐसा गंदा खेल खेल रहे हैं. वह सम झती थी कि अजय और सलोनी के बीच में कुछ है शायद इसलिए सलोनी बारबार अनमोल के फ्लैट में अजय से मिलने जाती है. उसे तो कभी भनक तक नहीं लगी कि सलोनी और अनमोल उसे धोखा दे रहे हैं.

अनमोल और सलोनी के बीच का यह दृश्य देखने के बाद कियारा वहां से उलटे पांव अपने फ्लैट पर लौट आई. यह देख अनमोल और सलोनी भी उस के पीछे भागते हुए आए.

अनमोल अपनी सफाई देते हुए बोला, ‘‘देखो कियारा मैं और सलोनी

केवल फिजिकल रिलेशनशिप में हैं और कुछ नहीं, मैं  शादी सिर्फ और सिर्फ तुम से ही करना चाहता हूं और केवल तुम से ही करूंगा, किसी और से नहीं.’’

तभी सलोनी बोली, ‘‘हां कियारा मेरे और अनमोल के बीच में कुछ नहीं है. मेरा अजय और अनमोल के साथ एकजैसा ही रिलेशन है. तू तो जानती है न मेरा ऐसा रिलेशन कितनों के साथ रहा है. मैं ने तु झ से कहा भी था कि मैं किसी के साथ भी रिलेशनशिप में रहूं पर शादी अपनी कास्ट, अपनी बिरादरी के लड़के से ही करूंगी और तु झे भी ऐसा ही करना चाहिए. मु झे देख इतनों के साथ रिलेशन में होने के बावजूद मैं शादी तो अंशु से ही कर रही हूं.’’

यह सब चल ही रहा था कि संदीप भी वहां आ गया. संदीप को देखते ही कियारा उस से लिपट गई. यह देख अनमोल का पारा चढ़ गया और वह कियारा को संदीप से अलग करते हुए बोला, ‘‘ये सब क्या है कियारा? जब तक हमारी सगाई नहीं हुई थी, तब तक तुम्हारा इस संदीप के संग बेतकल्लुफ  होना मैं बरदाश्त कर सकता था, लेकिन अब ये सब नहीं चलेगा.’’

अनमोल का इतना कहना था कि कियारा की आंखों में खून खौल गया और बोली, ‘‘तुम सगाई के बाद किसी और लड़की से हमबिस्तर हो सकते हो और मैं अपने दोस्त के गले भी नहीं लग सकती?’’

अनमोल गुस्से में बोला, ‘‘नहीं, अब तुम मेरी होने वाली पत्नी हो और मैं किसी भी हाल

में नहीं चाहूंगा तुम इस संदीप के साथ कोई

रिश्ता रखो.’’

यह सुनते ही कियारा संदीप की ओर देखने लगी. आज पहली बार संदीप की आंखों में

कियारा अपने लिए प्यार देख पाई थी. कियारा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, ‘‘अनमोल अभी हमारी शादी हुई नहीं है और शादी से पहले मेरी एक शर्त है.’’

अनमोल ने कहा, ‘‘कैसी शर्त?’’

संदीप और सलोनी आश्चर्य से कियारा को देखने लगे. तभी कियारा बोली, ‘‘मैं शादी से पहले एक रात संदीप के साथ अकेले गुजारना चाहती हूं.’’

कियारा का इतना कहना था कि सभी की भौंहें तन गईं. कियारा को  झं झोड़ते हुए संदीप बोला, ‘‘पागल हो गई हो क्या? कुछ भी बोल रही हो…’’

तभी अनमोल बोला, ‘‘यह कैसी बेकार की शर्त

है. यह नहीं हो सकता. मेरी होने वाली बीवी किसी

पराए मर्द के साथ रात नहीं गुजार सकती.’’

‘‘मेरा होने वाला पति अगर पराई लड़की के साथ रात गुजार सकता है तो मैं क्यों नहीं? यदि शादी होगी तो इसी शर्त पर होगी नहीं तो नहीं होगी,’’ कहते हुए कियारा ने अपनी उंगली पर पहनी सगाई की अंगूठी निकाल कर अनमोल को थमा दी.

अनमोल ने फिर आगे कुछ नहीं कहा क्योंकि उसे यह शर्त मंजूर नहीं थी. वह कियारा को छोड़ सकता था, इस शादी को भी तोड़ सकता था, लेकिन एक ऐसी लड़की से शादी करने को तैयार नहीं था जो एक रात किसी दूसरे लड़के के साथ गुजार कर आई हो. अनमोल ने शर्त मानने से मना कर दिया.

तभी कियारा बोली, ‘‘हर लड़का एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है जो लड़की जिस्मानी तौर पर पाक साफ हो, चाहे उस का खुद का कितनी भी लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध क्यों न हो. एक लड़की कई लड़कों से संबंध रखने के बाद शादी अपनी ही जातबिरादरी और धर्म में करना चाहती है ताकि समाज में उस की मानप्रतिष्ठा बनी रहे यह कैसी दोहरी मानसिकता है? यह कैसी सोच है? मु झे इस दोहरी सोच का हिस्सा नहीं बनना.

कियारा की शर्तों पर अनमोल ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया.

तभी संदीप बोला, ‘‘कियारा अनमोल सच कह रहा है, मैं ने आज तक तुम से यह

बात छिपाई कि मैं तुम से प्यार करता हूं. आज तुम यह बात जान चुकी हो, इसलिए पूछ रहा हूं क्या तुम एक विजातीय लड़के के संग यानी मेरे संग शादी करना चाहोगी?’’

संदीप के ऐसा कहते ही कियारा बोली, ‘‘संदीप क्या तुम यह जानते हुए भी मु झ से शादी करना चाहोगे कि मैं ने अपनी कई रातें अनमोल के साथ गुजारी हैं और मैं पाक साफ नहीं हूं?’’

‘‘प्यार तो बस प्यार होता है कियारा इस में किस ने किस के साथ रात गुजारी है यह नहीं देखा जाता, तुम ने किस के साथ कितनी रातें गुजारी हैं इस से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मन की पवित्रता ही सब से बड़ी पवित्रता है और मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम दिल से पाक साफ हो, पवित्र हो और अपने जीवनसाथी के प्रति सदा ईमानदार थी और रहोगी. मु झे और क्या चाहिए,’’ ऐसा कहते हुए संदीप ने अपना हाथ कियारा की ओर बढ़ा दिया और कियारा ने बिना देर किए उस का हाथ थाम लिया. उस के बाद दोनों एकदूसरे की बांहों को थामे वहां से निकल गए. अनमोल और सलोनी उन्हें जाते हुए देखते रहे.

खुली छत: कैसे पतिपत्नी को करीब ले आई घर की छत

रमेश का घर ऐसे इलाके में था जहां हमेशा ही बिजली रहती थी. इसी इलाके में राजनीति से जुड़े बड़ेबड़े नेताओं के घर जो थे. पिछले 20 सालों से रमेश अपने इसी फ्लैट में रह रहा है. 15 वर्ष मातापिता साथ थे और अब 5 वर्षों से वह अपनी पत्नी नीना के साथ था. उन का फ्लैट बड़ा था और साथ ही 1 हजार फुट का खुला क्षेत्र भी उन के पास था.

7वीं मंजिल पर उन के पास इतनी खुली जगह थी कि लोग ईर्ष्या कर उठते थे कि उन के पास इतनी ज्यादा जगह है.

रमेश के पिता का बचपन गांव में बीता था और उन्हें खुली जगह बहुत अच्छी लगती थी. रिटायर होने से पहले उन्होंने इसी फ्लैट को चुना था, क्योंकि इस में उन के हिस्से इतना बड़ा खुला क्षेत्र भी था. दोस्तों और रिश्तेदारों ने उन्हें समझाया था कि इस उम्र में 7वीं मंजिल पर घर लेना ठीक नहीं है. यदि कहीं लिफ्ट खराब हो गई तो बुढ़ापे में क्या करोगे पर उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी थी और 1 लाख रुपए अधिक दे कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

पत्नी ने भी शिकायत की थी कि अब बुढ़ापे में इतनी बड़ी जगह की सफाई करना उन के बस की बात नहीं है. नौकरानियां तो उस जगह को देख कर ही सीधेसीधे 100 रुपए पगार बढ़ा देतीं. पर गोपाल प्रसाद बहुत प्रसन्न रहते. उन की सुबह और शामें उसी खुली छत पर बीततीं. सुबह का सूर्योदय, शाम का पहला तारा, पूर्णिमा का पूरा चांद, अमावस्या की घनेरी रात और बरसात की रिमझिम फुहारें उन्हें रोमांचित कर जातीं.

उस छत पर उन्होंने एक छोटा सा बगीचा भी बना लिया था. उन के पास 50 के करीब गमले थे, जिस में  तुलसी, पुदीना, हरी मिर्च, टमाटर, रजनीगंधा, बेला, गुलाब और गेंदा आदि सभी तरह के पौधे लगा रखे थे. हर पेड़पौधे से उन की दोस्ती थी. जब वह उन को पानी देते तो उन से मन ही मन बातें भी करते जाते थे. यदि किसी पौधे को मुरझाया हुआ देखते तो बड़े प्यार से उसे सहलाते और दूसरे दिन ही वह पौधा लहलहा उठता था. वह जानते थे कि प्यार की भाषा को सब जानते हैं.

मातापिता के गुजर जाने के बाद से घर की वह छत उपेक्षित हो गई थी. रमेश और नीना दोनों ही नौकरी करते थे. सुबह घर से निकलते तो रात को ही घर लौटते. ऐसे में उन के पास समय की इतनी कमी थी कि उन्होंने कभी छत वाला दरवाजा भी नहीं खोला. गमलों के पेड़पौधे सभी समाप्त हो चुके थे. साल में एक बार ही छत की ठीक से सफाई होती. उन का जीवन तो ड्राइंगरूम तक ही सिमट चुका था. छुट्टी वाले दिन यदि यारदोस्त आते तो बस, ड्राइंगरूम तक ही सीमित रहते. छत वाले दरवाजे पर भी इतना मोटा परदा लटका दिया था कि किसी को भी पता नहीं चलता कि इस परदे के पीछे कितनी खुली जगह है.

नीना भी पूरी तरह से शहरी माहौल में पली थी, इसलिए उसे कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि उस के ससुर उन के लिए कितना अमूल्य खजाना छोड़ गए हैं. काम की व्यस्तता में दोनों ने परिवार को बढ़ाने की बात भी नहीं सोची थी पर अब जब रमेश को 40वां साल लगा और उसे अपने बालों में सफेदी झलकती दिखाई देने लगी तो उस ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया. अब नीना भी उस से सहमत थी, पर अब वक्त उन का साथ नहीं दे रहा था. नीना को गर्भ ठहर ही नहीं रहा था. डाक्टरों के भी दोनों ने बहुत चक्कर लगा लिए. काफी दवाएं खाईं. डी.एम.सी. कराई. स्पर्म काउंट कराया. काम के टेंशन के साथ अब एक नया टेंशन और जुड़ गया था. दोनों की मेडिकल रिपोर्ट ठीक थी फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. अब उन के डाक्टरों की एक ही सलाह थी कि आप दोनों तनाव में रहना छोड़ दें. आप दोनों के दिमाग में बच्चे की बात को ले कर जो तनाव चल रहा है वह भी एक मुख्य कारण हो सकता है आप की इच्छा पूरी न होने का.

इस मानसिक तनाव को दूर कैसे किया जाए? इस सवाल पर सब ओर से सलाह आती कि मशीनी जिंदगी से बाहर निकल कर प्रकृति की ओर जाओ. अपनी रोजमर्रा की पाबंदियों से निकल कर मुक्त सांस लेना सीखो. कुछ व्यायाम करो, प्रकृति के नजदीक जाओ आदि. लोगों की सलाह सुन कर भी उन दोनों की समझ में नहीं आता था कि इन पर अमल कैसे किया जाए.

इसी तरह की तनाव भरी जिंदगी में वह रात उन के लिए एक नया संदेश ले कर आई. हुआ यों कि रात को 1 बजे अचानक ही बिजली चली गई. ऐसा पहली बार हुआ था. ऐसी स्थिति से निबटने के लिए वे दोनों पतिपत्नी तैयार नहीं थे, अब बिना ए.सी. और पंखे के बंद कमरे में दोनों का दम घुटने लगा. रमेश उठा और अपने मोबाइल फोन की रोशनी के सहारे छत के दरवाजे के ताले की चाबी ढूंढ़ी और दरवाजा खोला. छत पर आते ही जैसे सबकुछ बदल गया.

खुली छत पर मंदमंद हवा के बीच चांदनी छिटकी हुई थी. आधा चंद्रमा आकाश के बीचोंबीच मुसकरा रहा था. रमेश अपनी दरी बिछा कर सो गया. उस ने अपनी खुली आंखों से आकाश को, चांद को और तारों को निहारा. आज 20-25 वर्षों बाद वह ऐसे खुले आकाश के नीचे लेटा था. वह तो यह भी भूल चुका था कि छिटकी हुई चांदनी में आकाश और धरती कैसे नजर आते हैं.

बिजली जाने के कारण ए.सी. और पंखों की आवाज भी बंद थी. चारों ओर खामोशी छाई हुई थी. उसे अपनी सांस भी सुनाई देने लगी थी. अपनी सांस की आवाज सुननेके लिए ही वह आतुर हो उठा. रमेश को लगा, जिन सांसों के कारण वह जीवित है उन्हीं सांसों से वह कितना अपरिचित है. इन्हीं विचारों में भटकतेभटकते उसे लगा कि शायद इसे ही ध्यान लगाना कहते हैं.

उस के अंदर आनंद का इतना विस्तार हो उठा कि उस ने नीना को पुकारा. नीना अनमने मन से बाहर आई और रमेश के साथ उसी दरी पर लेट गई. रमेश ने उस का ध्यान प्रकृति की इस सुंदरता की ओर खींचा. नीना तो आज तक खुले आकाश के नीचे लेटी ही नहीं थी. वह तो यह भी नहीं जानती थी कि चांदनी इतनी धवल भी होती है और आकाश इतना विशाल. अपने फ्लैट की खिड़की से जितना आकाश उसे नजर आता था बस, उसी परिधि से वह परिचित थी.

रात के सन्नाटे में नीना ने भी अपनी सांसों की आवाज को सुना, अपने दिल की धड़कन को सुना, बरसती शबनम को महसूस किया और रमेश के शांत चित्त वाले बदन को महसूस किया. उस ने महसूस किया कि तनाव वाले शरीर का स्पर्श कैसा अजीब होता है और शांत चित्त वाले शरीर का स्पंदन कैसा कोमल होता है. दोनों को मानो अनायास ही तनाव से छुटकारा पाने का मंत्र हाथ लग गया.

वह रात दोनों ने आंखों ही आंखों में बिताई. रमेश ने मन ही मन अपने पिता को इस अनमोल खजाने के लिए धन्यवाद दिया. आज पिता के साथ गुजारी वे सारी रातें उसे याद हो आईं जब वह गांव में अपने पिता के साथ लेट कर सुंदरता का आनंद लेता था. पिता और दादा उसे तारों की भी जानकारी देते जाते थे कि उत्तर में वह ध्रुवतारा है और वे सप्तऋषि हैं और  यह तारा जब चांद के पास होता है तो सुबह के 3 बजते हैं और भोर का तारा 4 बजे नजर आता है. आज उस ने फिर से वर्षों बाद न केवल खुद भोर का तारा देखा बल्कि पत्नी नीना को भी दिखाया.

प्रकृति का आनंद लेतेलेते कब उन की आंख लगी वे नहीं जान पाए पर सुबह सूर्यदेव की लालिमा ने उन्हें जगा दिया था. 1 घंटे की नींद ले कर ही वे ऐसे तरोताजा हो कर उठे मानो उन में नए प्राण आ गए हों.

अब तो तनावमुक्त होने की कुंजी उन के हाथ लग गई. उसी दिन उन्होंने छत को धोपोंछ कर नया जैसा बना दिया. गमलों को फिर से ठीक किया और उन में नएनए पौधे रोप दिए. बेला का एक बड़ा सा पौधा लगा दिया. रमेश तो अपने अतीत से ऐसा जुड़ा कि आफिस से 15 दिन की छुट्टी ले बैठा. अब उन की हर रात छत पर बीतने लगी. जब अमावस्या आई और रात का अंधेरा गहरा गया, उस रात को असंख्य टिमटिमाते तारों के प्रकाश में उस का मनमयूर नाच उठा.

धीरेधीरे नीना भी प्रकृति की इस छटा से परिचित हो चुकी थी और वह भी उन का आनंद उठाने लगी थी. उस ने  भी आफिस से छुट्टी ले ली थी. दोनों पतिपत्नी मानो एक नया जीवन पा गए थे. बिना एक भी शब्द बोले दोनों प्रकृति के आनंद में डूबे रहते. आफिस से छुट्टी लेने के कारण अब समय की भी कोई पाबंदी उन पर नहीं थी.

सुबह साढ़े 4 बजे ही पक्षियों का कलरव सुन कर उन की नींद खुल जाती. भोर के टिमटिमाते तारों को वे खुली आंखों से विदा करते और सूर्य की अरुण लालिमा का स्वागत करते. भोर के मदमस्त आलम में व्यायाम करते. उन के जीवन में एक नई चेतना भर गई थी.

छत के पक्के फर्श पर सोने से दोनों की पीठ का दर्द भी गायब हो चुका था अन्यथा दिन भर कंप्यूटर पर बैठ कर और रात को मुलायम गद्दों पर सोने से दोनों की पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगी थी. अनायास ही शरीर को स्वस्थ रखने का गुर भी वे सीख गए थे.

ऐसी ही एक चांदनी रात की दूधिया चांदनी में जब उन के द्वारा रोपे गए बेला के फूल अपनी मादक गंध बिखेर रहे थे, उन दोनों के शरीर के जलतत्त्व ने ऊंची छलांग मारी और एक अनोखी मस्ती के बाद उन के शरीरों का उफान शांत हो गया तो दोनों नींद के गहरे आगोश में खो गए थे. सुबह जब वे उठे तो एक अजीब सा नशा दोनों पर छाया हुआ था. उस आनंद को वे केवल अनुभव कर सकते थे, शब्दों में उस का वर्णन हो ही नहीं सकता था.

अब उन की छुट्टियां खत्म हो गई थीं और उन्होंने अपनेअपने आफिस जाना शुरू कर दिया था. फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गई थी पर अब आफिस से आने के बाद वे खुली छत पर टहलने जरूर जाते थे. दिन हफ्तों के बाद महीनों में बीते तो नीना ने उबकाइयां लेनी शुरू कर दीं. रमेश पत्नी को ले कर फौरन डाक्टर के पास दौड़े. परीक्षण हुआ. परिणाम जान कर वे पुलकित हो उठे थे. घर जा कर उसी खुली छत पर बैठ कर दोनों ने मन ही मन अपने पिता को धन्यवाद दिया था.

पिता की दी हुई छत ने उन्हें आज वह प्रसाद दिया था जिसे पाने के लिए वह वर्षों से तड़प रहे थे. यही छत उन्हें प्रकृति के निकट ले आई थी. इसी छत ने उन्हें तनावमुक्त होना सिखाया था. इसी छत ने उन्हें स्वयं से, अपनी सांसों से परिचित करवाया था. वह छत जैसे उन की कर्मस्थली बन गई थी. रमेश ने मन ही मन सोचा कि यदि बेटी होगी तो वह उस का नाम बेला रखेगा और नीना ने मन ही मन सोचा कि अगर बेटा हुआ तो उस का नाम अंबर रखेगी, क्योंकि खुली छत पर अंबर के नीचे उसे यह उपहार मिला था.

इंग्लिश रोज: क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

वह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,

मैं ने आप के प्रस्ताव पर विचार किया. कोई भी नया रिश्ता जोड़ने से पहले एकदूसरे के बीते जीवन के बारे में जानना बहुत जरूरी है. ऐसी मेरी सोच है. 10 वर्ष पहले मेरा विवाह एक बहुत रईस घर में संपन्न हुआ. मेरी ससुराल का मेरे रहनसहन, सोचविचार और संस्कारों से कोई मेल नहीं था. वहां के तौरतरीकों के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी. वहां मुझे लगा कि मैं चूहेदानी में फंस गई हूं. मेरे पति शराब और ऐयाशी में डूबे रहते थे. शराब पी कर वे बेलगाम घुड़साल के घोड़े की तरह हो जाते थे, जिस का मकसद सवार को चोट पहुंचाना था. ऐसा हर रोज का सिलसिला था. हर रात अलगअलग औरतों से रंगरेलियां मनाते थे.

धीरेधीरे बात यहां तक पहुंच गई कि वे ग्रुपसैक्स की क्रियाओं में भाग लेने लगे. जबरदस्ती मुझ से भी औरों के साथ हमबिस्तर होने की अपेक्षा करने लगे. उन के अनुकूल उन की बात मानते जाओ तो ठीक था वरना कहते, ‘हम मर्द अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे औरतों को अपने हिसाब से रखा जाए.’ ‘‘एक साधारण सी लड़की के लिए कितना कठिन था यह. एक दिन जब मैं ने किसी और के साथ हमबिस्तर होने से इनकार किया तो मुझे घसीट कर सामने बिठा कर सबकुछ देखने को मजबूर कर दिया. उस दिन मैं ने बरदाश्त की सभी सीमाएं लांघ कर उन के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और सामान उठा कर भाई के घर चली आई. पैसे और मनगढ़ंत कहानियों के बल पर मेरा बेटा उन्होंने अपने पास रख लिया. उस दिन के बाद आज तक मैं अपने बेटे को देख नहीं पाई. अब सबकुछ जानते हुए भी आप तैयार हैं तो आप मेरे बड़े भाईसाहब अजय से बात करें.’’

‘‘आप की विधि’’

विधि का ईमेल पढ़ कर जौन नाचने लगा. तुरंत ही उस ने उत्तर दिया,

‘‘मेरी प्यारी विधि,

बस, इतनी सी बात से परेशान हो. जीवन में हादसे सभी के साथ होते हैं. मैं ने तो तुम से पूछा तक नहीं. तुम ने बता दिया तो मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत और बढ़ गई. मेरी जान, मैं ने तुम्हें चाहा है. मैं स्त्री और पुरुष की समानता में विश्वास रखता हूं. तुम मेरी जीवनसाथी ही नहीं, पगसाथी भी होगी. जिन खुशियों से तुम वंचित रही हो, मैं उन की भरपाई की पूरी कोशिश करूंगा. मैं अगली फ्लाइट से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

‘‘प्यार सहित

‘‘तुम्हारा जौन.’’

वह दिल्ली आ पहुंचा. होटल में विधि के बड़े भाईसाहब को बुला कर ईमेल दिखाते हुए उन से विधि का हाथ मांगा. भाईसाहब ने कहा, ‘‘शाम को तुम घर आ जाना.’’ पूरा परिवार बैठक में उस की प्रतीक्षा कर रहा था. जौन का प्रस्ताव सामने रखा गया. सभी हैरान थे. सन्नी तैश में आ कर बोला, ‘‘इतने बूढ़े से…? दिमाग खराब हो गया है क्या. जाहिर है विधि की उम्र के उस के बच्चे होंगे. अंगरेजों का कोई भरोसा नहीं.’’ बाकी बहनभाई भी सन्नी की बात से सहमत थे.

‘‘तुम ने क्या सोचा?’’ बड़े भाई अजय ने विधि से पूछा.

‘‘मुझे कोई एतराज नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘दीदी, होश में तो हो, क्या सचमुच सठियाए से शादी…?’’ विधि के हां करते ही अजय ने जौन को बुला कर कहा, ‘‘शादी तय करने से पहले हमारी कुछ शर्तें हैं. शादी हिंदू रीतिरिवाजों से होगी. उस के लिए तुम्हें हिंदू बनना होगा. हिंदू नाम रखना होगा. विवाह के बाद विधि को लंदन ले जाना होगा.’’ जौन को सब शर्तें मंजूर थीं. वह उत्तेजना से ‘आई विल, आई विल’ कहता नाचने लगा. पुरुष चहेती स्त्री को पाने का हर संभव प्रयास करता है. उस में साम, दाम, दंड, भेद सभी भाव जायज हैं. अच्छा सा मुहूर्त देख कर उन का विवाह संपन्न हआ. जौन लंदन से इमीग्रेशन के लिए जरूरी कागजात ले कर आया था. विधि का पासपोर्ट तैयार ही हो रहा था कि अचानक जौन के बेटे मार्क का ऐक्सिडैंट होने के कारण, जौन को विधि के बिना ही लंदन जाना पड़ा. जौन तो चला गया. विधि का मन बेईमान होने लगा. उसे घबराहट होने लगी. मन में अनेक प्रश्न उठने लगे. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती थी. 6 महीने से ऊपर हो गए. उधर जौन बहुत बेचैन था, चिंतित था. वह बारबार रेणु को ईमेल कर के पूछता. एक दिन हार कर रेणु विधि के घर आ ही पहुंची और उसे बहुत डांटा, ‘‘विधि, क्या मजाक बना रखा है, क्यों उस बेचारे को परेशान कर रही हो? तुम्हें पता भी है कितनी मेल डाल चुका है. कहतेकहते थक गया है कि आप विधि को समझाएं और कहें ‘डर की कोई बात नहीं है. मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’ ‘‘अब गुमसुम क्यों बैठी हो. कुछ तो बोलो. यह तुम्हारा ही फैसला था. अब तुम्हीं बताओ, क्या जवाब दूं उसे?’’

‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. परेशान हूं. खानापीना, उठनाबैठना बिलकुल अलग होगा. फिर उस के बच्चे…? क्या वे स्वीकार करेंगे मुझे…?’’

‘‘विधि, तुम बेकार में भावनाओं के द्वंद्व में डूबतीउतरती रहती हो. यह तो तुम्हें वहीं जा कर पता लगेगा. हम सब जानते हैं, तुम हर स्थिति को आसानी से हैंडल कर सकती हो. ऐसा भी होता है  कभीकभी सबकुछ सही होते हुए भी, लगता है कुछ गलत है. तू बिना कोशिश किए पीछे नहीं मुड़ सकती. चिंता मत कर. अभी जौन को मेल करती हूं कि तुझे आ कर ले जाए.’’ जौन को मेल करते ही एक हफ्ते में वह दिल्ली आ पहुंचा. 2 हफ्ते में विधि को लंदन भी ले गया. लंदन में घर पहुंचते ही जौन ने अंगरेजी रिवाजों के अनुसार विधि को गोद में उठा कर घर की दहलीज पार की. अंदर पहुंचते ही वह हतप्रभ रह गई. अकेले होते हुए भी जौन ने घर बहुत तरतीब और सलीके से रखा था. सुरुचिपूर्ण सजाया था. घर में सभी सुविधाएं थीं, जैसे कपड़े धोने की मशीन, ड्रायर, स्टोव, डिशवाशर और औवन…काटेज के पीछे एक छोटा सा गार्डन था जो जौन का प्राइड ऐंड जौय था. पहली ही रात को जौन ने विधि को एक अनमोल उपहार देते हुए कहा, ‘‘विधि, मैं तुम्हें क्रूर संसार की कोलाहल से दूर, दुनिया के कटाक्षों से हटा कर अपने हृदय में रखने के लिए लाया हूं. तुम से मिलने के बाद तुम्हारी मुसकान और चिरपरिचित अदा ही तो मुझे चुंबक की तरह बारबार खींचती रही है और मरते दम तक खींचती रहेगी. मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम अपने अतीत को भूल जाओगी. मैं तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत करता हूं.’’ इतना कह कर जौन ने उसे सीने से लगा लिया और यह सब सुन कर विधि की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे.

ऐसे प्रेम का एहसास उसे पहली बार हुआ था. धीरेधीरे वह जान पाई कि जौन केवल गोराचिट्टा, ऊंचे कद का ही नहीं, वह रोमांटिक, सलोना, जिंदादिल, शरारती और मस्त इंसान है जो बातबात में किसी को भी अपना बनाने का हुनर जानता है. उस का हृदय जीवन की आकांक्षाओं से धड़क उठा. जौन ने उसे इतना प्यार दिया कि जल्दी ही उस की सब शंकाएं दूर हो गईं. विधि उसे मन से चाहने लगी थी. दोनों बेहद खुश थे. वीकेंड में जौन के तीनों बच्चों ने खुली बांहों से विधि का स्वागत किया और अपने पिता के विवाह पर एक भव्य पार्टी दी. विधि अपने फैसले पर प्रसन्न थी. अब उस का अपना घर था. अलग परिवार था. असीम प्यार देने वाला पति. जौन ने घर की बागडोर उसी के हाथ में थमा दी थी. उसे प्यार करना सिखाया, उस का आत्मविश्वास जगाया यहां तक कि उसे पोस्टग्रेजुएशन भी करवा दिया. क्योंकि भीतर से वह जानता था कि उस के जाने के बाद विधि अपने समय का सदुपयोग कर सकेगी.

गरमी का मौसम था. चारों ओर सतरंगी फूल लहलहा रहे थे. दोपहर के खाने के बाद दोनों कुरसियां डाल कर गार्डन में धूप सेंकने लगे. बाहर बच्चे खेल रहे थे. बच्चों को देखते विधि की ममता उमड़ने लगी. जौन की पैनी नजरों से यह बात छिपी नहीं. जौन ने पूछ ही लिया, ‘‘विधि, हमारा बच्चा चाहिए…? हो सकता है. मैं ने पता कर लिया है. पूरे 9 महीने डाक्टर की निगरानी में रह कर. मैं तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, हमारे हैं तो सही, वो 3, और उन के बच्चे. मैं ने तो जीवन के सभी अनुभवों को भोगा है. मां बन कर भी, अब नानीदादी का सुख भोग रही हूं,’’ विधि ने हंसतेहंसते कहा. ‘‘मैं तो समझा था कि तुम्हें मेरी निशानी चाहिए?’’ जौन ने विधि को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगर बच्चा नहीं तो एक सुझाव देता हूं. बच्चों से कहेंगे मेरे नाम का एक (लाल गुलाब) इंग्लिश रोज और तुम्हारे नाम का (पीला गुलाब) इंडियन समर हमारे गार्डन में साथसाथ लगा दें. फिर हम दोनों सदा एकदूसरे को प्यार से देखते रहेंगे.’’ इतना कह कर जौन ने प्यार से उस के गाल पर चुंबन दे दिया.

विधि भी होंठों पर मुसकान, आंखों में मोती जैसे खुशी के आंसू, और प्यार की पूरी कशिश लिए जौन के आगोश में आ गई. जौन विधि की छोटी से छोटी जरूरतों का ध्यान रखता. धीरेधीरे विधि के पूरे जीवन को उस ने अपने प्यार के आंचल से ढक लिया. सामाजिक बैठकों में उसे अदब और शिष्टाचार से संबोधित करता. उसे जीजी करते उस की जबान न थकती. कुछ ही वर्षों में जौन ने उसे आधी दुनिया की सैर करा दी थी. अब विधि के जीवन में सुख ही सुख थे. हंसीखुशी 10 साल बीत गए. इधर, कई महीनों से जौन सुस्त था. विधि को भीतर ही भीतर चिंता होने लगी, सोचने लगी, ‘कहां गई इस की चंचलता, चपलता, यह कभी टिक कर न बैठने वाला, यहांवहां चुपचाप क्यों बैठा रहता है? डाक्टर के पास जाने को कहो तो टालते हुए कहता है, ‘‘मेरा शरीर है, मैं जानता हूं क्या करना है.’’ भीतर से वह खुद भी चिंतित था. एक दिन बिना बताए ही वह डाक्टर के पास गया. कई टैस्ट हुए. डाक्टर ने जो बताया, उसे उस का मन मानने को तैयार नहीं था. वह जीना चाहता था. उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘वह नहीं चाहता कि उस की यह बीमारी उस के और उस की पत्नी की खुशी में आड़े आए. समय कम है, मैं अब अपनी पत्नी के लिए वह सबकुछ करना चाहता हूं, जो अभी तक नहीं कर पाया. मैं नहीं चाहता मेरे परिवार को मेरी बीमारी का पता चले. समय आने पर मैं खुद ही उन्हें बता दूंगा.’’

अचानक एक दिन जौन वर्ल्ड क्रूज के टिकट विधि के हाथ में थमाते बोला, ‘‘यह लो तुम्हारा शादी की 10वीं वर्षगांठ का तोहफा.’’ उस की जीहुजूरी ही खत्म नहीं होती थी. विधि का जीवन उस ने उत्सव सा बना दिया था. वर्ल्ड क्रूज से लौटने के बाद दोनों ने शादी की 10वीं वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई. घर की रजिस्ट्री के कागज और एफडीज उस ने विधि के नाम करवा कर उसे तोहफे में दे दिए. उस रात वह बहुत बेचैन था. उसे बारबार उलटी हो रही थी और चक्कर आते रहे. जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे भरती कर लिया गया. जौन की दशा दिनबदिन बिगड़ती गई. डाक्टर ने बताया, ‘‘उस का कैंसर फैल चुका है. कुछ ही समय की बात है.’’

‘‘कैंसर…?’’ कैंसर शब्द सुन कर सभी निशब्द थे. ‘‘तुम्हारे डैड, जाने से पहले, तुम्हारी मां को उम्रभर की खुशियां देना चाहते थे. तुम्हें बताने के लिए मना किया था,’’ डाक्टर ने बताया. बच्चे तो घर चले गए. विधि नाराज सी बैठी रही. जौन ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से समझाया, ‘‘जो समय मेरे पास रह गया था, मैं उसे बरबाद नहीं करना चाहता था, भोगना चाहता था तुम्हारे साथ. तुम्हारे आने से पहले मैं जीवन बिता रहा था. तुम ने जीना सिखा दिया है. अब मैं जिंदगी से रिश्ता चैन से तोड़ सकता हूं. जाना तो एक दिन सभी को है.’’ एक वर्ष तक इलाज चलता रहा. कैंसर इतना फैल चुका था कि अब कोई कुछ नहीं कर सकता था. अपनी शादी की 11वीं वर्षगांठ से पहले ही जौन चल बसा. अंतिम संस्कार के बाद उस के बेटे ने जौन की इच्छानुसार उस की राख को गार्डन में बिखरा दिया. एक इंग्लिश रोज और एक इंडियन समर (पीला गुलाब) साथसाथ लगा दिए. उन्हें देखते ही विधि को जौन की बात याद आई, ‘कम से कम तुम्हें हर वक्त देखता तो रहूंगा?’ इस सदमे को सहना कठिन था. विधि को लगा मानो किसी ने उस के शरीर के 2 टुकड़े कर दिए हों. एक बार वह फिर अकेली हो गई. एक दिन उस के अंतकरण से आवाज आई, ‘उठ विधि, संभाल खुद को, तेरे पास जौन का प्यार है, स्मृतियां हैं. वह तुझे थोड़े समय में जहानभर की खुशियां दे गया है.’ धीरेधीरे वह संभलने लगी. जौन के बच्चों के सहयोग और प्यार ने उसे फिर खड़ा कर दिया. कालेज में उसे नौकरी भी मिल गई. बाकी समय में वह गार्डन की देखभाल करती. इंग्लिश रोज और इंडियन समर की कटाईछंटाई करने की उस की हिम्मत न पड़ती. उस के लिए माली को बुला लेती. गार्डन जौन की निशानी था. एक दिन भी ऐसा न जाता, विधि अपने गार्डन को न निहारती, पौधों को न सहलाती. अकसर उन से बातें करती. बर्फ पड़े, कोहरा पड़े या फिर कड़कती सर्दी, वह अपने फ्रंट डोर से जौन के लगाए पौधों को निहारती रहती. उदासी में इंग्लिश रोज से शिकवेशिकायतें भी करती, ‘खुद तो अपने लगाए परिवार में लहलहा रहे हो और मैं? नहीं, नहीं, मैं शिकायत नहीं कर रही. मुझे याद है आप ने ही कहा था, ‘यह मेरा परिवार है डार्लिंग. मुझे इन से अलग मत करना.’

उस दिन सोचतेसोचते अंधेरा सा होने लगा. उस ने घड़ी देखी, अभी शाम के 4 ही बजे थे. मरियल सी धूप भी चोरीचोरी दीवारों से खिसकती जा रही थी. वह जानती थी यह गरमी के जाने और पतझड़ के आने का संदेशा था. वह आंखें मूंद कर घास पर बिछे रंगबिरंगों पत्तों की कुरमुराहट का आनंद ले रही थी. अचानक तेज हवा के झरोखे से एक सूखा पत्ता उलटतापलटता उस के आंचल में आ अटका. पलभर को उसे लगा, कोई उसे छू कर कह रहा हो… ‘डार्लिंग, उदास क्यों होती हो, मैं यही हूं तुम्हारे चारों ओर, देखो वहीं हूं, जहां फूल खिलते हैं…क्यों खिलते हैं? यह मैं नहीं जानता. बस, इतना जरूर जानता हूं, फूल खिलता है, झड़ जाता है. क्यों? यह कोई नहीं जानता. बस, इतना जानता हूं इंग्लिश रोज जिस के लिए खिलता है उसी के लिए मर जाता है. खिले फूल की सार्थकता और मरे फूल की व्यथा एक को ही अर्पित है.’

उस दिन वह झड़ते फूलों को तब तक निहारती रही जब तक अंधेरे के कारण उसे दिखाई देना न बंद हो गया. हवा के झोंके से उसे लगा, मानो जौन पल्लू पकड़ कर कह रहा हो, ‘आई लव यू माई इंडियन समर.’ ‘‘मी टू, माई इंग्लिश रोज. तुम और तुम्हारा शरारतीपन अभी तक गया नहीं.’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

वे तीन शब्द: क्या आरोही को अपना हमसफर बना पाया आदित्य ?

दीवाली की उस रात कुछ ऐसा हुआ कि जितना शोर घर के बाहर मच रहा था उतना ही शोर मेरे मन में भी मच रहा था. मुझे आज खुद पर यकीन नहीं हो रहा था. क्या मैं वही आदित्य हूं, जो कल था… कल तक सब ठीक था… फिर आज क्यों मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था… आज मैं अपनी ही नजरों में गुनाहगार हो गया था. किसी ने सही कहा है, ‘आप दूसरे की नजर में दोषी हो कर जी सकते हैं, लेकिन अपनी नजर में गिर कर कभी नहीं जी सकते.’

मुझे आज भी आरोही से उतना ही प्यार था जितना कल था, लेकिन मैं ने फिर भी उस का दिल तोड़ दिया. मैं आज बहुत बड़ी कशमकश में गुजर रहा हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? मैं गलत नहीं हूं, फिर भी खुद को गुनाहगार मान रहा हूं. क्या दिल सचमुच दिमाग पर इतना हावी हो जाता है? प्यार की शुरुआत जितनी खूबसूरत होती है उस का अंत उतना ही डरावना होता है.

मैं आरोही से 2 साल पहले मिला था. क्यों मिला था, इस का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, क्योंकि उस से मिलने की कोई वजह मेरे पास थी ही नहीं, जहां तक सवाल है कैसे मिला था, तो इस का जवाब भी बड़ा अजीब है. मैं एटीएम से पैसे निकाल रहा था, उस के हाथ में पहले से ही इतना सारा सामान था कि उस को पता ही नहीं चला कि कब उस का एक बैग वहीं रह गया. मैं ने फिर उस को ‘ऐक्सक्यूज मी’ कह कर पुकारा और कहा, ‘‘आप का बैग वहीं रह गया था.’’

बस, यहां हुई थी हमारी पहली मुलाकात. अपने बैग को सहीसलामत देख कर वह खुशी से ऐसे उछल पड़ी मानो किसी ने आसमान से चांद भले ही न सही, लेकिन कुछ तारे तोड़ कर ला दिए हों. लड़कियों का खुशी में इस तरह का बरताव करने वाला फंडा मुझ को आज तक समझ नहीं आया. उस की मधुर आवाज में ‘थैंक्यू’ के बदले जब मैं ने ‘इट्स ओके’ कहा तो बदले में जवाब नहीं सवाल आया और वह सवाल था, ‘‘आप का नाम?’’

मैं ने भी थोड़े स्टाइल से, थोड़ी शराफत के साथ अपना नाम बता दिया, ‘‘जी, आदित्य.’’ ‘‘ओह, मेरा नाम आरोही है,’’ उस ने मेरे से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘भैया, कनाटप्लेस चलोगे?’’ मैं ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. यह सवाल उस ने मुझ से नहीं बल्कि साथ खड़े औटो वाले से किया था.

‘‘नहीं मैडमजी, मैं तो यहां एक सवारी को ले कर आया हूं. यहां उन का 5 मिनट का काम है, मैं उन्हीं को ले कर वापस जाऊंगा.’’ ‘‘ओह,’’ मायूसी से आरोही ने कहा.

‘‘अम्म…’’ मैं ने मन में सोचा ‘पूछूं या नहीं, अब जब इनसानियत निभा रहा हूं तो थोड़ी और निभाने में मेरा क्या चला जाएगा?’ ‘‘जी दरअसल, मैं भी कनाटप्लेस ही जा रहा हूं, लेकिन मुझे थोड़ा आगे जाना है. अगर आप कहें तो मैं आप को वहां तक छोड़ सकता हूं,’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा.

उस का जवाब हां में था. यह उस की जबान से पहले उस की आंखों ने कह दिया था. मैं ने उस का बैग कार में रखा और उस के लिए कार का दरवाजा खोला.

रास्ते में हम ने एकदूसरे से काफी बातचीत की. ‘‘ क्या आप यहीं दिल्ली से हैं?’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘नहीं, यहां तो मैं अपने चाचाजी के घर आई हूं. उन की बेटी यानी मेरी दीदी की शादी है इसलिए आज मैं शौपिंग के लिए आई थी,’’ आरोही ने मुसकान के साथ कहा. ‘‘कमाल है, दिल्ली जैसे शहर में अकेले शौपिंग जबकि आप दिल्ली की भी नहीं हैं,’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, नहींनहीं, दिल्ली मेरे लिए बिलकुल भी नया शहर नहीं है. मैं दिल्ली कई बार आ चुकी हूं. मेरी स्कूल की छुट्टियों से ले कर कालेज की छुट्टियां यहीं बीती हैं इसलिए न दिल्ली मेरे लिए नया है और न मैं दिल्ली के लिए.’’ मैं ने और आरोही ने कार में बहुत सारी बातें कीं. वैसे मेरे से ज्यादा उस ने बातें की, बोलना भी उस की हौबी में शामिल है. यह उस के बिना बताए ही मुझे पता चल गया था.

उस के साथ बात करतेकरते पता ही नहीं चला कि कब कनाटप्लेस आ गया. ‘‘थैंक्यू सो मच,’’ आरोही ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘प्लीज यार, मैं ने कोई बड़ा काम नहीं किया है. मैं यहां तक तो आ ही रहा था तो सोचा आप भी वहां तक जा रही हैं तो क्यों न लिफ्ट दे दूं, और आप के साथ तो बात करते हुए रास्ते का पता ही नहीं चला कि कब क्नाटप्लेस आ गया,’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा. ‘‘चलिए, मुझे भी दिल्ली में एक दोस्त मिला,’’ आरोही ने कहा.

‘‘अच्छा, अगर हम अब दोस्त बन ही गए हैं तो मेरी अपनी इस नई दोस्त से कब और कैसे बात हो पाएगी?’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए पूछा. वह कुछ देर के लिए शांत हो गई. उस ने फिर कहा, ‘‘अच्छा, आप मुझे अपना नंबर दो, मैं आप को फोन करूंगी.’’

मैं ने उसे अपना नंबर दे दिया. आरोही ने मेरा नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया और बाय कह कर चली गई.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मैं भी तो आरोही से उस का नंबर ले सकता था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो… ‘चलो, कोई बात नहीं,’ मैं ने स्वयं को सांत्वना दी.

उस दिन मेरे पास जो भी फोन आ रहा था मुझे लग रहा था कि यह आरोही का होगा, लेकिन किसी और की आवाज सुन कर मुझे बहुत झुंझलाहट हो रही थी. मुझे लगा कि आरोही सच में मुझे भूल गई है. वैसे भी किसी अनजान शख्स को कोई क्यों याद रखेगा और अगर उसे सच में मुझ से बात करनी होती तो वह मुझे भी अपना नंबर दे सकती थी.

अगले दिन सुबह मैं औफिस के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया, ‘‘हैलो, आई एम आरोही.’’ मैसेज देख कर मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस ने मुझे मैसेज किया है.

मैं ने तुरंत उसे मैसेज का जवाब दिया, ‘‘तो आखिर आ ही गई याद आप को अपने इस नए दोस्त की.’’ उधर से आरोही का मैसेज आया, ‘‘सौरी, दरअसल, कल मैं काम में बहुत व्यस्त थी और जब फ्री हुई तो बहुत देर हो चुकी थी तो सोचा इस वक्त फोन या मैसेज करना ठीक नहीं है.’’

मैं ने आरोही को मैसेज किया, ‘‘दोस्तों को कभी भी डिस्टर्ब किया जा सकता है.’’ आरोही का जवाब आया, ‘‘ओह, अब याद रहेगा.’’

बस, यहीं से शुरू हुआ हमारी बातों का सिलसिला. जहां मुझे अभी कुछ देर पहले तक लगता था कि अब शायद ही उस से दोबारा मिलना होगा. लेकिन कभीकभी जो आप सोचते हैं उस से थोड़ा अलग होता है. आरोही की बड़ी बहन की शादी मेरे ही औफिस के सहकर्मी से थी. जब औफिस के मेरे दोस्त ने मुझे शादी का कार्ड दिया तो शादी की बिलकुल वही तारीख और जगह को देख कर मैं समझ गया कि हमारी दूसरी मुलाकात का समय आ गया है.

पहले तो शायद मैं शादी में न भी जाता, लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ आरोही से दोबारा मिलने के लिए जा रहा था. मैं ने झट से उसे मैसेज किया, ‘‘मैं भी तुम्हारी दीदी की शादी में आ रहा हूं.’’

आरोही का जवाब में मैसेज आया, ‘‘लेकिन आदित्य, मैं ने तो तुम्हें बुलाया ही नहीं.’’ उस का मैसेज देख कर मुझे बहुत हंसी आई, मैं ने ठिठोली करते हुए लिखा, ‘‘तो?’’

उस का जवाब आया, ‘‘तो क्या… मतलब तुम बिना बुलाए आओगे, किसी ने पूछ लिया तो?’’ मुझे बड़ी हंसी आई, मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए उसे फोन किया, ‘‘हैलो, आरोही,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम बिना बुलाए आओगे शादी में,’’ आरोही ने एक सांस में कहा, ‘‘हां, तो मैं डरता हूं्र्र क्या किसी से, बस, मैं आ रहा हूं,’’ मैं ने थोड़ा उत्साहित हो कर कहा. ‘‘लेकिन किसी ने देख लिया तो,’’ आरोही ने बेचैनी के साथ पूछा.

‘‘मैडम, दिल्ली है दिल वालों की,’’ यह कह कर मैं हंस दिया. लेकिन मेरी हंसी को उस की हंसी का साथ नहीं मिला तो मैं ने सोचा, ‘अब राज पर से परदा हटा देना चाहिए.’ मैं ने कहा, ‘‘अरे बाबा, डरो मत, मैं बिना बुलाए नहीं आ रहा हूं, बाकायदा मुझे निमंत्रण मिला है आने का.’’

‘‘ओह,’’ कह कर आरोही ने गहरी सांस ली. ‘‘तो अब तो खुश हो तुम,’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘हां, बहुत…’’ आरोही की आवाज में उस की खुशी साफ झलक रही थी. उस दिन बरात के साथ जैसे ही मैं मेनगेट पर पहुंचा तो बस मेरी निगाहें एक ही शख्स को ढूंढ़ रही थीं. वहां पर बहुत सारे लोग मौजूद थे, लेकिन आरोही नहीं थी.

काफी देर तक जब इधरउधर देखने के बाद भी मुझे आरोही नहीं दिखाई दी तो मैं ने उस के मोबाइल पर कौल की, ‘‘कहां हो तुम…, मैं कब से तुम को इधरउधर ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने बेचैनी से पूछा. ‘‘ओह, पर क्यों… हम्म…’’ उस ने चिढ़ाते हुए कहा.

मैं ने भी उस को चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘ओह, ठीक है फिर लगता है हमारी वह मुलाकात पहली और आखिरी थी.’’ ‘‘अरे, क्या हुआ, बुरा लग गया क्या, अच्छा बाबा, मैं आ रही हूं,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘लेकिन तुम हो कहां?’’ मैं ने आरोही से पूछा. ‘‘जनाब, पीछे मुड़ कर देखिए,’’ आरोही ने हंसते हुए कहा.

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो बस देखता ही रह गया. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी में एक लड़की मेरे सामने खड़ी थी. हां, वह लड़की आरोही थी. उस के खुले हुए बाल, हाथों में साड़ी की ही मैचिंग गुलाबी चूडि़यां, आज वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. आज मुझे 2 बातों का पता चला, पहला यह कि लोग यह कहावत क्यों कहते हैं कि मानो कोई अप्सरा जमीन पर उतर आई हो, और दूसरी बात यह कि शादी में क्यों लोग दूल्हे की सालियों के दीवाने हो जाते हैं.

मैं ने उसी की तरफ देख कर कहा, ‘‘जी, आप कौन, मैं तो आरोही से मिलने आया हूं, आप ने देखा उस को.’’ उस ने बड़ी बेबाकी से कहा, ‘‘मेरी शक्ल भूल गए क्या, मैं ही तो आरोही हूं.’’

मैं ने उस की तरफ अचरज भरी निगाहों से देख कर कहा, ‘‘जी, आप नहीं, आप झूठ मत बोलिए, वह इतनी खूबसूरत है ही नहीं जितनी आप हैं.’’ आरोही ने गुस्से से घूरते हुए कहा, ‘‘ओह, तो तुम मेरी बुराई कर रहे हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, मैं तो आप की तारीफ कर रहा हूं.’’ वह दिन मेरे लिए बहुत खुशी का दिन था, मैं ने आरोही के साथ बहुत ऐंजौय किया. उस ने मुझे अपने मम्मीपापा और भाईबहन से मिलवाया. पूरी शादी में हम दोनों साथसाथ ही रहे.

जातेजाते वह मुझे बाहर तक छोड़ने आई. मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा सुनो, मैं उस समय मजाक कर रहा था. तुम जितनी मुझे आज अच्छी लगी हो न उतनी ही अच्छी तुम मुझे उस दिन भी लगी थी जब हम पहली बार मिले थे,’’ यह सुन कर वह शरमा गई. अब हम दोनों घंटों फोन पर बातें करते. वह अपनी शरारतभरी बातों से मुझे हंसाती और कभी चिढ़ा दिया करती थी. मैं कभी बहुत तेज हंसता तो कभीकभी मजाक में गुस्सा कर दिया करता. हम दोनों के मन में एकदूसरे के लिए इज्जत और दिल में प्यार था. जिस की वजह से हम दोनों बिना एकदूसरे से सवाल किए बात करते थे. कुछ चीजों के लिए कभीकभी शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ती. आप की निगाहें ही आप के दिल का हाल बयां कर देती हैं. फिर भी वे 3 शब्द कहने से मेरा दिल डरता है.

अब मुझे रोमांटिक फिल्में देखना अच्छा लगता है. उन फिल्मों को देख कर मुझे ऐसा नहीं लगता था कि क्या बेवकूफी है. जहन में आरोही का नाम आते ही चेहरा एक मुसकान अपनेआप ओढ़ लेता था और बहुत अजीब भी लगता था, जब कोई अनजान शख्स मुझे इस तरह मुसकराता देख पागल समझता था. अपनी मुसकान को रोकने की जगह मैं उस जगह से उठ जाना ज्यादा अच्छा समझता था. ‘‘हाय, गुडमौर्निंग,’’ आज यह मैसेज आरोही की तरफ से आया.

हमेशा की तरह आज भी मैं ने आरोही को फोन किया, लेकिन आज पहली बार उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. मैं पूरे दिन उस का नंबर मिलाता रहा, लेकिन उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. आज दीवाली है और आरोही मुझे जरूर फोन करेगी, लेकिन आज भी जब उस का कोई फोन नहीं आया तो मैं ने उस को फिर फोन किया. आज आरोही ने फोन उठा लिया.

‘‘कहां हो आरोही, कल से मैं तुम्हारा फोन मिला रहा हूं, लेकिन तुम फोन ही नहीं उठा रही थी,’’ मैं ने गुस्से में आरोही से कहा. ‘‘यह सब परवा किसलिए आदित्य,’’ आरोही ने रोते हुए पूछा.

‘‘परवा, क्या हो गया तुम्हें, सब ठीक तो है न… और तुम रो क्यों रही हो?’’ मैं ने बेचैनी से आरोही से पूछा. ‘‘प्लीज आदित्य, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कानपुर मेरी शादी की बात चल रही थी इसलिए बुलाया गया था, लेकिन तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम्हें तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा था जब मैं उस दिन रेस्तरां में तुम्हें घर वापस आने की बात कहने आई थी,’’ आरोही एक सांस में बोले जा रही थी. मानो कई दिन से अपने दिल पर रखा हुआ बोझ हलका कर रही हो.

‘‘तुम्हारे लिए मैं कभी कुछ थी ही नहीं आदित्य, शायद यह सब बोलने का कोई हक नहीं है मुझे… और न ही कोई फायदा, शायद अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे, अलविदा…’’ यह कह कर आरोही ने फोन रख दिया. मैं एकटक फोन को देखे जा रहा था, जो आरोही हमेशा खिलखिलाती रहती थी आज वही फूटफूट कर रो रही थी. इसलिए आज मैं खुद को गुनाहगार मान रहा था, लेकिन अब मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं अपनी आरोही को और नहीं रुलाऊंगा, मैं जान चुका हूं कि आरोही भी मुझे उतना ही प्यार करती है जितना कि मैं उसे करता हूं.

मैं ने फैसला कर लिया कि मैं कल सुबह ही टे्रन से कानपुर जाऊंगा. आज की यह रात बस किसी तरह सुबह के इंतजार में गुजर जाए. मैं ने अगली सुबह कानपुर की टे्रन पकड़ी. 10 घंटे का यह सफर मेरे लिए, मेरे जीवन के सब से मुश्किल पल थे. मैं नहीं जानता था कि आरोही मुझे देख कर क्या कहेगी, कैसा महसूस करेगी, इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं, मैं ने जैसे ही आरोही के घर पहुंच कर उस के घर के दरवाजे की घंटी बजाई तो आरोही ने ही दरवाजा खोला. आरोही मुझे देख कर चौंक गई.

मैं ने आरोही को गले लगा लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो आरोही… सारी मेरी ही गलती है. मुझे हमेशा यही लगता था कि अगर मैं तुम से अपने दिल की बात कहूंगा तो तुम को हमेशा के लिए खो दूंगा. मैं भूल गया था कि मैं कह कर नहीं बल्कि खामोश रह कर तुम्हें खो दूंगा.’’ आरोही की आंखों में आंसू थे. उस के घर के सभी लोग वहां मौजूद थे. मैं ने आरोही की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘कल तक मुझ में हिम्मत नहीं थी, लेकिन आज मैं तुम्हारे प्यार की खातिर यहां आया हूं, आई लव यू आरोही, बोलो, तुम दोगी मेरा साथ…’’ मैं ने अपना हाथ आरोही की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

आरोही ने अपना हाथ मेरे हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘आई लव यू टू.’’ आज आरोही और मेरे इस फैसले में उस के परिवार वालों का आशीर्वाद भी शामिल था.

कांटा : क्या शिखा की चाल हुई कामयाब?

रूपापत्रिका ले कर बैठी ही थी कि तभी कालबैल की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने उस की बचपन की सहेली शिखा खड़ी थी. शिखा उस की स्कूल से ले कर कालेज तक की सहेली थी. अब सुजीत के सब से घनिष्ठ मित्र नवीन की पत्नी थी और एक टीवी चैनल में काम करती थी.

रूपा के मन में कुछ देर पहले तक शांति थी. अब उस की जगह खीज ने ले ली थी. फिर भी उसे दरवाजा खोल हंस कर स्वागत करना पड़ा, ‘‘अरे तू? कैसे याद आई? आ जल्दी से अंदर आ.’’

शिखा ने अंदर आ कर पैनी नजरों से पूरे ड्राइंगरूम को देखा. रूपा ने ड्राइंगरूम को ही नहीं, पूरे घर को सुंदर ढंग से सजा रखा था. खुद भी खूब सजीधजी थी. फिर शिखा सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘इधर एक काम से आई थी… सोचा तुम से मिलती चलूं… कैसी है तू?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तू अपनी सुना?’’

सामने स्टैंड पर रूपा के बेटे का फ्र्रेम में लगा फोटो रखा था. उसे देखते ही शिखा ने कहा, ‘‘तेरा बेटा तो बड़ा हो गया.’’

‘‘हां, मगर बहुत शैतान है. सारा दिन परेशान किए रहता है.’’

शिखा ने देखा कि यह कहते हुए रूपा के उजले मुख पर गर्व छलक आया है.

‘‘घर तो बहुत अच्छी तरह सजा रखा है… लगता है बहुत सुघड़ गृहिणी बन गई है.’’

‘‘क्या करूं, काम कुछ है नहीं तो घर सजाना ही सही.’’

‘‘अब तो बेटा बड़ा हो गया है. नौकरी कर सकती हो.’’

‘‘मामूली ग्रैजुएशन डिग्री है मेरी. मु झे कौन नौकरी देगा? फिर सब से बड़ी यह कि इन को मेरा नौकरी करना पसंद नहीं.’’

‘‘तू सुजीत से डरती है?’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है? पतिपत्नी को एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल तो रखना ही पड़ता है.’’

शिखा हंसी, ‘‘अगर दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर हो तो?

यह सुन कर रूपा  झुं झला गई तो वह शिखा से बोली, ‘‘अच्छा तू यह बता कि छोटा नवीन कब ला रही है?’’

शिखा ने कंधे  झटकते हुए कहा, ‘‘मैं तेरी तरह घर में आराम का

जीवन नहीं काट रही. टीवी चैनल का काम आसान नहीं. भरपूर पैसा देते हैं तो दम भी निकाल लेते हैं.’’

शिखा की यह बात रूपा को अच्छी नहीं लगी. फिर भी चुप रही, क्योंकि शिखा की बातों में ऐसी ही नीरसता होती थी. रूपा की शादी मात्र 20 वर्ष की आयु में हो गई थी. लड़का उस के पापा का सब से प्रिय स्टूडैंट था और उन के अधीन ही पी.एचडी. करते ही एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव लग गया था. मोटी तनख्वाह के साथसाथ दूसरी पूरी सुविधाएं भी और देशविदेश के दौरे भी.

लड़के के स्वभाव और परिवार की अच्छी तरह जांच कर के ही पापा ने उसे अपनी इकलौती बेटी के लिए चुना था. हां, मां को थोड़ी आपत्ति थी लेकिन सम झने पर वे मान गई थीं. पापा मशहूर अर्थशास्त्री थे. देशविदेश में नाम था.

रूपा अपने वैवाहिक जीवन से बेहद खुश थी. होती भी क्यों नहीं, इतना हैंडसम और संपन्न पति मिला था. और विवाह के कुछ अरसा बाद ही उस की गोद में एक प्यारा सा बेटा भी आ गया था. शादी को 8 वर्ष हो गए थे. कभी कोई शिकायत नहीं रही. वह भी तो बेहद सुंदर थी. उस पर कई सहपाठी मरते थे, पर उस का पहला प्यार पति सुजीत ही थे.

बेटी को सुखी देख कर उस के मातापिता भी बहुत खुश थे.

बात बदलते हुए रूपा ने कहा, ‘‘छोड़ इन बातों को… इतने दिनों बाद मिली है… चल सहेलियों की बातें करती हैं.’’

शिखा थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू भी तो कभी मेरी खबर लेने नहीं आती.’’

‘‘देख  झगड़े की बात नहीं… सचाई बता रही हूं… कितनी बार हम लोगों ने तु झे और नवीन भैया को बुलाया. भैया तो एकाध बार आए भी पर तू नहीं… फिर तू ने तो कभी हमें बुलाया ही नहीं.. अच्छा यह सब छोड़. बोल क्या लेगी चाय या ठंडा? गरम सूप भी है.’’

‘‘सूप ही ला… घर का बना सूप बहुत दिनों से नहीं पीया.’’

थोड़ी ही देर में रूपा 2 कप गरम सूप ले आई. फिर 1 शिखा को पकड़ा और दूसरा स्वयं पकड़ कर शिखा के सामने बैठ गई. बोली, ‘‘बता कैसी चल रही है तेरी गृहस्थी?’’

जब रूपा सूप लेने गई थी तब शिखा ने घर के चारों ओर नजर डाली थी. वह सम झ गई थी कि रूपा बहुत सुखी और संतुष्ट जीवन जी रही है. उस का स्वभाव ईर्ष्यालु था ही. अत: सहेली का सुख उसे अच्छा नहीं लगा. वह रूपा का दमकता नहीं मलिन व दुखी चेहरा देखना चाहती थी.

शिखा यह भी सम झ गई थी कि उस के सुख की जड़ बहुत मजबूत है. सहज उखाड़ना संभव नहीं. आज तक वह उसे हर बात में पछाड़ती आई है. पढ़ाई, लेखन प्रतियोगिता, खेल, अभिनय, नृत्य व संगीत सब में वह आगे रहती आई है. रूपा है तो साधारण स्तर की लड़की पर कालेज का श्रेष्ठ हीरा लड़का उस के आंचल में आ गया था. फिर समय पर वह मां भी बन गई. पति प्रेम, संतान स्नेह से भरी है वह. ऊपर से मातापिता का भरपूर प्यार, संरक्षण भी है उस के पास. संपन्नता अलग से.

यह सब सोच शिखा बेचैन हो उठी कि जीवन की हर बाजी उस से जीत कर यह अंतिम बाजी उस से हार जाएगी… पर करे भी तो क्या? कैसे उस की जीत को हार में बदले? कुछ तो करना ही पड़ेगा… पर क्या करे? सोचना होगा, हां कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही होगा. रूपा में बुद्धि कम है. उसे बहकाना आसान है, तो कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा… जरूर कुछ सोचेगी वह.

मां से फोन पर बातें करते हुए रूपा ने शिखा के अचानक आने की बात कही तो वे शंकित

हो उठीं, ‘‘बहुत दिनों से उसे देखा नहीं… अचानक तेरे घर कैसे आ गई?’’

रूपा बेटे को दूध पिलाते हुए सहज भाव से बोली, ‘‘नवीन भैया तो आते रहते हैं… वही नहीं आती थी… उन से दूर की रिश्तेदारी भी है. सुजीत के भाई लगते हैं और दोस्त तो हैं ही. पर आज बता रही थी कि पास ही चैनल के किसी काम से आई थी तो…’’

‘‘मु झे उस पर जरा भी विश्वास नहीं. मु झे तो लगता है तेरा घर देखने आई थी,’’ मां रूपा की बात बीच ही में काटते हुए बोली.

यह सुन रूपा अवाक रह गई. बोली, ‘‘मेरे घर में ऐसा क्या है, जो देखने आएगी?’’

‘‘जो उस के घर में नहीं है. देख रूपा,

वह बहुत धूर्त, ईर्ष्यालु है… बिना स्वार्थ के वह एक कदम भी नहीं उठाती… तू उसे ज्यादा गले मत लगाना.’’

‘‘मां वह आती ही कहां है? वर्षों बाद तो मिली है.’’

‘‘यही तो चिंता है. वर्षों बाद अचानक तेरे घर क्यों आई?’’

रूपा हंसी, ‘‘ओह मां, तुम भी कुछ कम शंकालु नहीं हो… अरे, बचपन की सहेली से मिलने को मन किया होगा… क्या बिगाड़ेगी मेरा?’’

‘‘मैं यह नहीं जानती कि वह क्या करेगी पर वह कुछ भी कर सकती है. मु झे लग रहा है वह फिर आएगी… ज्यादा घुलना नहीं, जल्दी विदा कर देना… बातें भी सावधानी से करना.’’

अब रूपा भी घबराई, ‘‘ठीक है मां.’’ मां की आशंका सच हुई. एक दिन फिर आ धमकी शिखा. रूपा थोड़ी शंकित तो हुई पर उस का आना बुरा नहीं लगा. अच्छा लगने का कारण यह था कि सुजीत औफिस के काम से भुवनेश्वर गए थे और बेटा स्कूल… बहुत अकेलापन लग रहा था. उस ने शिखा का स्वागत किया. आज वह कुछ शांत सी लगी.

इधरउधर की बातों के बाद अचानक बोली, ‘‘तेरे पास तो बहुत सारा खाली समय होता है… क्या करती है तब?’’

रूपा हंसी, ‘‘तु झे लगता है खाली समय होता है पर होता है नहीं… बापबेटे दोनों की फरमाइशों के मारे मेरी नाक में दम रहता है.’’

‘‘जब सुजीत बाहर रहता है तब?’’

‘‘हां तब थोड़ा समय मिलता है. जैसे आज वे भुवनेश्वर गए हैं तो काम नहीं है. उस समय मैं किताबें पढ़ती हूं. तु झे तो पता है मु झे पढ़ने का कितना शौक है.’’

‘‘पढ़ तो रात में भी सकती है?’’

रूपा सतर्क हुई, ‘‘क्यों पूछ रही है?’’

‘‘देख रूपा, तू इतनी सुंदर है कि 20-22 से ज्यादा की नहीं लगती… अभिनय, डांस भी आता है. हमारे चैनल में अपने सीरियल बनते हैं. एक नया सीरियल बनना है जिस के लिए नायिका की खोज चल रही है. सुंदर, भोली सी कालेज स्टूडैंट का रोल है. तु झे तो दौड़ कर ले लेंगे. कहे तो बात करूं?’’

रूपा हंसने लगी, ‘‘तू पागल तो नहीं हो

गई है?’’

‘‘क्यों इस में पागल होने की क्या बात है?’’

‘‘कालेज, स्कूल की बात और है सीरियल की बात और. न बाबा न, मु झे घर से ही फुरसत नहीं. फिर मैं टीवी पर काम करूं यह कोई पसंद नहीं करेगा.’’

‘‘अरे पैसों की बरसात होगी. तू क्या सुजीत से डरती है?’’

‘‘उन की छोड़. उन से पहले मांपापा ही डांटेंगे. फिर अब तो बेटा भी बोलने लग गया है. मु झे पैसों का लालच नहीं है. पैसों की कोई कमी नहीं है. सुजीत हैं, पापा हैं.’’

शिखा सम झ गई कि रास्ता बदलना पड़ेगा. अत: फिर सामान्य बातें करतेकरते अचानक बोली, ‘‘तू सुजीत पर बहुत भरोसा करती है न?’’

यह सुन रूपा अवाक रह गई, बोली, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है? वे मेरे पति हैं. मेरा उन पर भरोसा नहीं होगा तो किस पर करूंगी?’’

‘‘तु झे पूरा भरोसा है कि भुवनेश्वर ही गए हैं काम से?’’

‘‘अरे, मैं ने खुद उन का टूअर प्रोग्राम देखा है. मैं उस होटल को भी जानती हं जिस में वे ठहरते हैं. मैं भी तो कितनी बार साथ में गई हूं. इस बार भी जा रही थी पर बेटे की परीक्षा में हफ्ता भर है, इसलिए नहीं जा पाई. फिर वे अकेले नहीं गए हैं. साथ में पी.ए. और क्लर्क रामबाबू भी हैं. दिन में 2-3 बार फोन भी करते हैं.’’

‘‘तू सच में जरूरत से ज्यादा मूर्ख है. तू मर्दों की जात को नहीं पहचानती. बाहरी जीवन में वे क्या करते हैं, कोई नहीं जानता.’’

रूपा अंदर ही अंदर कांप गई. शिखा की उपस्थिति उसे अखरने लगी थी. मम्मी

की बातें बारबार याद आने लगीं. पर घर से धक्के मार उसे निकाल तो नहीं सकती थी. उस ने सोचा कि इस समय खुद पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है… शिखा की नीयत पर उसे भरोसा नहीं था.

‘‘मैं घर और बच्चे को छोड़ कर सुजीत के पीछे ही पड़ी रहूं तो हो गया काम… फिर उन पर मु झे पूरा विश्वास है. दिन में कई बार फोन करते हैं… उन के साथ जो गए हैं उन्हें भी मैं अच्छी तरह जानती हूं.’’

‘‘बाप रे, तू तो सीता को भी मात देती लगती है.’’

इस बार शिखा हंसहंसते लोटपोट हो गई.

‘‘फोन वे करते हैं. तु झे क्या पता कि भुवनेश्वर से कर रहे हैं या मनाली की खूबसूरत वादियों में किसी और लड़की के साथ घूमने…’’

हिल गई रूपा, ‘‘यह क्या बक रही है? मेरे पति ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘सभी मर्द एकजैसे होते हैं.’’

‘‘नवीन भैया भी ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं बताती हूं कैसे परखेगी… जब वे टूअर से लौटें तो उन के कपड़े चैक करना… किसी महिला के केश, मेकअप के कोई दाग, फीमेल इत्र की गंध है या नहीं… 2-4 बार अचानक औफिस पहुंच जा.’’

‘‘छि:… छि:… कितनी गंदगी है तेरी सोच. मु झे अब नवीन भैया पर तरस आ रहा है. अपना घर, नवीन भैया का जीवन बिगाड़ चैन नहीं… अब मेरा घर बरबाद करने आई है. तू जा… मेरे सिर में दर्द हो रहा है. मैं सोऊंगी.’’

शिखा का काम हो गया था. अत: वह हंस कर खड़ी हो गई. बोली, ‘‘जी भर कर सो ले. मैं जा रही हूं.’’

शिखा तो हंसती हुई चली गई, पर रूपा खूब रोई. जब बेटा स्कूल से आया तो उसे ले कर सीधे मां के पास चली गई.

मां ने उसे आते देख सम झ गईं कि जरूर कोई बात है. पर उस समय कोई बात नहीं की. बेटे और उसे खाना खाने बैठाया फिर बेटे को सुलाने के बाद वे बेटी के पास बैठीं, ‘‘अब बोल, क्या बात है.’’

रूपा चुप रही.

‘‘क्या आज भी शिखा आई थी?’’

उस ने हां में सिर हिलाया.

‘‘मैं ने तु झे पहले ही सावधान किया था. वह अच्छी लड़की नहीं है. वह जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है. हां, उस की मां सौतेली हैं यह ठीक है पर वे उस की सगी मां से भी अच्छी हैं. जब तक वहां रही एक दिन उसे चैन से नहीं रहने दिया. बाप से  झूठी शिकायतें कर घर को तोड़ने की कोशिश करती रही. पर उस के पापा सम झदार थे. बेटी की आदत को जानते थे और अपनी पत्नी पर पूरा विश्वास था, इसलिए शिखा अपने मकसद में कामयाब न हुई. अब जब से शादी हुई है तो बेचारे नवीन के जीवन को नरक बना रखा है… उस से भी मन नहीं भरा तो अब तेरे घर को बरबाद करने चली है… तू क्यों बैठाती है उसे?’’

‘‘अब घर आए को कैसे भगाऊं?’’

‘‘एक कप चाय पिला कर विदा कर दिया कर… बैठा कर बात मत किया कर. आज क्या ऐसा कहा जो तू इतनी परेशान है?’’

रूपा ने पूरी बात बताई तो वे शंकित हुईं और गुस्सा भी आया. वे अपनी बेटी को जानती थी कि उसे चालाकी नहीं आती है… उस के घर को तोड़ना बहुत आसान है. फिर बोली, ‘‘क्या तू यही मानती है कि सुजीत भुवनेश्वर नहीं गया है?’’

‘‘नहीं, मु झे उन पर पूरा विश्वास है. रामबाबू भी तो साथ हैं. यह तो शिखा कह रही थी.’’

‘‘फिर भी तू विचलित है, क्योंकि संदेह का कांटा वह तेरे मन में गहरे उतार गई है. देख संदेह एक बीमारी है. अंतर इतना है कि इस का कोई इलाज नहीं है. दूसरी बीमारियों की दवा है, उन का इलाज किया जा सकता है पर संदेह का नहीं. शिखा ने यह बीमारी तु झे लगाई है. अब अगर तु झ से सुजीत को लगे और वह तु झ पर शक करने लगे तब क्या करेगी?’’

कांप गई रूपा, ‘‘मु झ पर?’’

‘‘क्यों नहीं? उस के पीछे तू क्या करती है, उसे क्या पता. हफ्ताहफ्ता बाहर रहता है… तब तू एकदम आजाद होती है. जब तू उस पर शक करेगी तो वह भला क्यों नहीं कर सकता?’’

रूपा को काटो तो खून नहीं.

‘‘देख पागल मत बन… दूसरे की नहीं अपने मन की आवाज सुन कर चल. तू उस जैसी नहीं है. तेरे साथ तेरा बच्चा है, तू साधारण स्तर की पढ़ीलिखी है, बाहरी समाज का तु झे कोई अंदाजा नहीं है. अगर वह खाईखेली लड़की नवीन से तलाक भी ले ले तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पर तू क्या करेगी? हम हैं ठीक है पर पापा को जानती है न कितने न्यायप्रिय हैं… तू गलत हुई तो यहां से तु झे तिनके का सहारा भी नहीं मिलने वाला. मैं कुछ भी नहीं कर सकती.’’

मां की बात सुन कर स्तब्ध रह गई रूपा कि मां ने जो कहा स्पष्ट कहा, उचित बात कही. उस के मन में शिखा कांटा बोना चाहे और वह बोने दे तो अपना ही सर्वनाश करेगी.

मां ने नवीन से भी इस विषय पर बात की, यह सोच कर कि भले ही बेटी को सम झाया हो उन्होंने पर उस के मन का कांटा जड़ से अभी नहीं उखड़ा होगा.

नवीन ने उस दिन अचानक फोन कर के रूपा से कहा, ‘‘रूपा, बहुत दिन से तुम ने कुछ खिलाया नहीं. आज रात डिनर करने आऊंगा.’’

रूपा खुश हुई, ‘‘ठीक है भैया… मैं आप की पसंद का खाना बनाऊंगी.’’

शाम को नवीन सुजीत के साथ ही आया.

रूपा ने चाय के साथ पकौड़े बनाए.

नवीन ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘रात को क्या खिला रही हो?’’

‘‘आप की पसंद के हिसाब से पालकपनीर, सूखी गोभी, बूंदी का रायता और लच्छा परांठे… और कुछ चाहें तो…’’

‘‘नहींनहीं, बहुत बढि़या मेनू है. तुम बैठो. हां, सुजीत तू एक काम कर. रबड़ी ले आ.’’

सुजीत रबड़ी लेने चला गया तो नवीन ने कहा, ‘‘रूपा, आराम से बैठ कर बताओ पूरी बात क्या है?’’

रूपा चौंकी, ‘‘क्या भैया?’’

‘‘सुजीत को लग रहा है तुम पहले जैसी सहज नहीं हो… उसे तुम्हारे व्यवहार से कोई शिकायत नहीं है पर उसे लगता है तुम पहले जैसी खुश नहीं हो… लगता है कुछ है तुम्हारे मन में.’’

रूपा चुप रही.

‘‘रूपा तुम चुप रहोगी रही तो तुम्हारी समस्या बढ़ती ही जाएगी. बात क्या है? क्या सुजीत के किसी व्यवहार ने तुम्हें आहत किया है?’’

‘‘नहीं, वे तो कभी तीखी बात करते ही नहीं.’’

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता बहुत सहज होते हुए भी बहुत नाजुक होता है. इस में कभीकभी बुद्धि को नजरअंदाज कर के मन की बात काम करने लगती है. तुम्हारे मन में कौन सा कांटा चुभा है मु झे बताओ?’’

रूपा ने कहा, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘रूपा, पतिपत्नी का रिश्ता एकदूसरे के प्रति विश्वास पर टिका होता है. मु झे लगता है सुजीत के प्रति तुम्हारे विश्वास की नींव को धक्का लगा है. पर क्यों? सुजीत ने कुछ कहा है क्या?’’

शिखा ने जो संदेह का कांटा उस के मन में डाला था उस की चुभन की अवहेलना नहीं कर पा रही थी वह. इसी उल झन में उस की मानसिक शांति भंग हो गई थी. अब वह पहले जैसी खिलीखिली नहीं रहती थी और सुजीत से भी अंतरंग नहीं हो पा रही थी. उस की मानसिक उधेड़बुन उस के चेहरे पर मलिनता लाई ही, व्यवहार में भी फर्क आ गया था.

उस ने सिर  झुका कर जवाब दिया, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है भैया.’’

‘‘नहीं रूपा, तुम्हारे मन की उथलपुथल तुम्हारे मुख पर अपनी छाप डाल रही है. ज्यादा परेशान हो तो तलाक ले लो. सुजीत तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार है.’’

रूपा चौंकी उस की आंखें फैल गईं, ‘‘तलाक?’’

‘‘क्यों नहीं? तुम सुजीत के साथ खुश

नहीं हो.’’

‘‘भैया, मैं बहुत खुश हूं. सुजीत के बिना अपना जीवन सोच भी नहीं सकती. दोबारा तलाक की बात न करना,’’ और वह रो पड़ी.

‘‘तो फिर पहले जैसा भरोसा, विश्वास क्यों नहीं कर पा रही हो उस पर? उसे कभीकभी तुम्हारी आंखों में संदेह क्यों दिखाई देता है?’’

‘‘मैं सम झ रही हूं पर…’’

‘‘अपने मन से कांटा नहीं निकाल पा रही हो न? यह कांटा शिखा ने बोया है?’’

वह फिर चौंकी. नवीन को उस ने असहाय नजरों से देखा.

‘‘रूपा, कोईकोई मुरगी अंडा देने योग्य नहीं होती और वह दूसरी मुरगी का अंडा देना भी सहन नहीं कर पाती. कुछ औरतें भी ऐसी ही होती हैं, जो न तो अपने घर को बसा पाती हैं और न ही दूसरे के बसे घरों को सहन कर पाती हैं. उन्हें उन घरों को तोड़ने में ही सुख मिलता है. शिखा उन में से एक है और तुम उस की शिकार हो. उस ने चंद्रा का घर भी तोड़ने के कगार पर ला खड़ा किया था. मुश्किल से संभाला था उसे. अब उस के लिए वहां के दरवाजे बंद हैं तो तुम्हारे घर में घुस गई. तुम ही बताओ पहले कभी आती थी? अब बारबार क्यों आ रही है?’’

सिहर उठी रूपा. यह क्या भयानक भूल हो

गई है उस से… अपने सुखी जीवन में अपने हाथों ही आग लगाने चली थी. सुजीत जैसे पति पर संदेह. वह भी कब तक सहेंगे. उसे पापा, मां तो उसे एकदम सहारा नहीं देंगे…

फिर बोली, ‘‘भैया, शिखा तो बीमार है.’’

‘‘हां मानसिक रोगी तो है ही. पर तुम अपने को और अपने घर को बचाना चाहती हो तो अभी भी समय है संभल जाओ. सुजीत को अपने से उकताने पर मजबूर मत करो. जितना नुकसान हुआ है जल्दी उस की भरपाई कर लो.’’

‘‘वह मैं कर लूंगी पर आप…’’

‘‘मेरा तो दांपत्य जीवन कुछ है ही नहीं. घर भी नौकर के भरोसे चलता है और चलता रहेगा.’’

‘‘भैया, मैं कुछ करूं?’’

नवीन हंसा, ‘‘क्या करोगी? पहले अपना घर ठीक करो.’’

‘‘कर लूंगी पर आप के लिए भी सोचती हूं.’’

‘‘लो, सुजीत रबड़ी ले आया,’’ नवीन बोला.

शांति, प्यार, लगाव जो रूपा के हाथ से निकल रहे थे अब उस ने फिर उन्हें कस कर पकड़ लिया. मन ही मन शपथ ली कि अब सुजीत पर कोई संदेह नहीं करेगी. फिर सब से पहला काम उस ने जो किया वह था सुजीत को सब खुल कर बताना, वह सम झ गई थी कि लुकाछिपी करने से लाभ नहीं… जिस बात को छिपाया जाता है वह मन में कांटा बन कर चुभती है. और कोई भी बात हो एक न एक दिन खुलेगी ही. तब संबंधों में फिर से दरार पड़ेगी. इसलिए अपने मन में जन्मे विकार तक को साफसाफ बता दिया.

सारी बात ध्यान से सुन कर सुजीत हंसा,

‘‘मुझे पता था कि बेमौसम के बादल आकाश में ज्यादा देर नहीं टिकते. हवा का  झोंका आते ही उड़ जाते हैं. इसलिए तुम्हारे बदले व्यवहार से मैं आहत तो हुआ पर विचलित नहीं, क्योंकि मु झे पता था कि एक दिन तुम्हें अपनी भूल पर जरूर पछतावा होगा और तब सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘हमारा तो सब ठीक हो गया, पर नवीन भैया उन का क्या होगा?’’

‘‘शिखा के स्वभाव में परिवर्तन लाना नामुमकिन है.’’

‘‘नहीं, हमें कोशिश करनी चाहिए. नवीन भैया कितने अच्छे हैं.’’

‘‘बिगड़े संबंध को ठीक करने के लिए दोनों के स्वभाव में नमनीयता होनी चाहिए, जो शिखा में एकदम नहीं है.’’

‘‘फिर भी हमें प्रयास तो करना ही चाहिए,’’ रूपा ने कहा तो सुजीत चुप रहे.

फिर 3-4 दिन बाद रूपा ने दोनों को डिनर पर बुलाया. दोनों ही आए पर अलगअलग. रूपा फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. शिखा को बोलने का मौका न दे कर स्वयं ही हंसे, बोले जा रही थी. जरा सी भी बात बिगड़ती देखती तो अपने बेटे को आगे कर देती. उस की मासूम बातें सब को मोह लेतीं. पूरा वातावरण खुशनुमा रहा. वैसे भी रूपा की आंखों से सुख, प्यार  झलक रहा था.

शिखा के मन में क्या चल रहा है, पता नहीं पर वह सामान्य थी. 2-4 बार मामूली मजाक भी किया. खाने के बाद सब गरम कौफी के कप ले कर ड्राइंगरूम में जा बैठे. बेटा सो चुका था.

बात सुजीत ने ही शुरू की, ‘‘यार काम, दफ्तर और घर इस से तो जीवन ही नीरस बन गया है. कुछ करना चाहिए.’’

नवीन ने पूछा, ‘‘क्या करेगा?’’

‘‘चल, कहीं घूम आएं. हनीमून में बस शिमला गए थे. फिर कहीं निकले ही नहीं.’’

‘‘हम भी शिमला ही गए थे. पर अब

कहां चलें?’’

रूपा ने कहा, ‘‘यह हम शिखा पर छोड़ते हैं. बोल कहां चलेगी?’’

शिखा ने कौफी का प्याला रखते हुए कहा, ‘‘शिमला तो हो ही आए हैं. गोवा चलते हैं?’’

रूपा उछल पड़ी, ‘‘अरे वाह, देखा मेरी सहेली की पसंद. हम तो सोचते ही रह जाते.’’

‘‘वहां जाने के लिए समय चाहिए, क्योंकि टिकट, ठहरने की जगह बुक करानी पड़ेगी. इस समय सीजन है… आसानी से कुछ भी नहीं मिलेगा और वह भी 2 परिवारों का एकसाथ,’’ नवीन बोला.

सुजीत ने समर्थन किया, ‘‘यह बात एकदम ठीक है. तो फिर?’’

‘‘एक काम करते हैं. मेरे दोस्त का एक फार्महाउस है. ज्यादा दूर नहीं. यहां से

20 किलोमीटर है. वहां आम का बाग, सब्जी की खेती, मुरगी और मछली पालन का काम होता है. बहुत सुंदर घर भी बना है और एकदम यमुना नदी के किनारे है. ऐसा करते हैं वहां पूरा दिन पिकनिक मनाते हैं. सुबह जल्दी निकल कर शाम देर रात लौट आएंगे.’’

रूपा उत्साहित हो उठी, ‘‘ठीक है, मैं ढेर सारा खानेपीने का सामान तैयार कर लेती हूं.’’

‘‘कुछ नहीं करना… वहां का केयरटेकर बढि़या कुक है.’’

शनिवार सुबह ही वे निकल पड़े. आगेपीछे 2 कारें फार्महाउस के

गेट पर रुकीं. चारों ओर हरियाली के बीच एक सुंदर कौटेज थी. पीछे यमुना नदी बह रही थी. बेटा तो गाड़ी से उतरते ही पके लाल टमाटर तोड़ने दौड़ा.

थोड़ी ही देर में गरम चाय आ गई. सुबह की कुनकुनी धूप सेंकते सब चाय पीने लगे. बेटे के लिए गरम दूध आ गया था.

रूपा ने कहा, ‘‘भैया, इतने दिनों तक हमें इतनी सुंदर जगह से वंचित रखा. यह तो अन्याय है.’’

नवीन हंसा, ‘‘मैं ने सोचा था ये सब फूलपौधे, नदी, हरियाली, कुनकुनी धूप हम मोटे दिमाग वालों के लिए हैं बुद्धिमानों के लिए नहीं.’’

‘‘ऐसे खुले वातावरण में सब के साथ आ कर शिखा भी खुश हो गई थी. उस के मन की खुंदक समाप्त हो गई थी. अत: वह हंस कर बोली, ‘‘तू सम झी कुछ? यह व्यंग्य मेरे लिए है.’’

सुजीत बोला, ‘‘तेरा दिमाग भी तो मोटा है… तू कितना आता है यहां?’’

‘‘जब भी मौका मिलता है यहां चला आता हूं. ध्यान से देखेगा तो मेरे लैंडस्केपों में तु झे यहां की  झलक जरूर दिखेगी… देख न यहां काम करने वाले सब मु झे जानते हैं.’’

शिखा चौंकी, ‘‘तो क्या कभीकभी जो देर रात लौटते हो तो क्या यहां आते हो?’’

‘‘हां. यहां आ कर फिर दिल्ली के हंगामे में लौटने को मन नहीं करता. बड़ी शांति है यहां.’’

‘‘तो तेरी कविताएं भी क्या यहीं की

उपज हैं?’’

‘‘सब नहीं, अधिकतर.’’

शिखा की आंखें फैल गईं, ‘‘क्या तुम कविताएं भी लिखते हो? मु झे तो पता ही नहीं था.’’

‘‘3 काव्य संग्रह निकल चुके हैं… एक पर पुरस्कार भी मिला है. तु झे पता इसलिए नहीं है, क्योंकि तू ने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की कि हीरा तेरे आंचल से बंधा है. तेरी सौत कोई हाड़मांस की महिला नहीं यह कविता और चित्रकला है. इन के बाल नोच सके तो नोच. भैया ही कवि परिजात हैं, जिस की तू दीवानी है.’’

‘‘कवि परिजात?’’ प्याला छूट गया, उस

के हाथों से और फिर दोनों हाथों से मुंह छिपा कर रो पड़ी.

रूपा कुछ सम झाने जा रही थी मगर सुजीत ने रोक दिया. कान में कहा, ‘‘रोने दो… बहुत दिनों का बो झ है मन पर… अब हलका होने दो. तभी नौर्मल होगी.’’

थोड़ी देर में स्वयं ही शांत हो कर शिखा ने रूपा की तरफ देखा, ‘‘देख ले कितने धोखेबाज हैं.’’

रूपा यह सुन कर हंस पड़ी.

‘‘कितनी भी अकड़ दिखाओ शिखा पर प्यार तुम नवीन को करती ही हो… ये सारी हरकतें तुम्हारी नवीन को खोने के डर से ही थीं… पर उन्हें आप ने आंचल से बांधे रखने का रास्ता तुम ने गलत चुना था,’’ सुजीत बोला.

नवीन बोला, ‘‘छोड़ यार, अब हम

दूसरा हनीमून गोवा चल कर ही मनाते हैं…

जब भी टिकट और होटल में जगह मिलेगी तभी चल देंगे.’’

रूपासुजीत दोनों एकसाथ बोले,‘‘जय हो.’’

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