कार पार्क कर के प्रियांक तेज कदमों से इधरउधर कुछ ढूंढ़ता हुआ औफिस की लिफ्ट की तरफ बढ़ गया.  कहीं वह लाल फ्रेम के चश्मे वाली स्मार्ट सुंदरी पहले चली तो नहीं गई. लिफ्ट का दरवाजा खुला मिल गया, वह सोच ही रहा था कि अंदर घुसूं या नहीं, तभी चिरपरिचित सुगंध के झोंके के साथ वह युवती लिफ्ट में प्रवेश कर गई तो वह भी यंत्रवत अंदर चला आया. अब तो रोज ही का कुछ ऐसा किस्सा था. नजरें मिलतीं, फिर दोनों दूसरी ओर देखने लगते. धीरेधीरे वे एकदूसरे को पहचानने लगे तो देख कर अब स्माइल भी करने लगे. युवती 10वीं मंजिल पर जाती तो 11वीं मंजिल पर उतर कर उस के साथ के खुशनुमा एहसासों को समेटे ऊर्जावान हुआ प्रियांक दोगुने उत्साह से सीढि़यां उतरता तीसरी मंजिल पर स्थित अपने औफिस में गुनगुनाते हुए पहुंच जाता.

‘ला ल ला हूम् हूम् ल ला...चलो, अच्छा हुआ उसे आज भी नहीं पता चला कि मैं सिर्फ उस का साथ पाने के लिए ही 11वीं मंजिल तक जाता हूं. उस के लाल फ्रेम ने तो मेरे दिल को ही फ्रेम कर लिया है...’ अपनी धुन में सोचता प्रियांक फिसलतेफिसलते बचा.

‘‘अरे भाई, संभल के, प्रियांक, क्या बात है, बड़ा खुश नजर आ रहा है. कहीं किसी से प्यार तो नहीं हो गया.... और यह बता ऊपर से कहां से आ रहा है? कई बार पहले भी तुम्हें ऊपर सीढि़यों से आते देखा, लेकिन पूछना भूल जाता हूं.’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो प्यारे,’’ प्रियांक ने मस्ती में जवाब दिया.

‘‘वाह भई वाह, मुबारक हो, मुबारक हो...अब कौन है, क्या नाम है ये भी तो बता दो प्यारे.’’

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