वसुधा ने अपने आंचल के छोर से आनंद की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछा और मन ही मन कहा, ‘तुम मुझे कमजोर नहीं कर सकते.’
‘‘मानव, तुम जानते हो मैं मौके की तलाश में हूं. आज जब आनंद कौन्फ्रैंस में जाएगा तो मैं पैसे निकाल लूंगी. तुम मुझे बारबार फोन मत करो.’’ वसुधा मानव से फोन पर बात कर रही थी और जल्द से जल्द बात पूरी करना चाह रही थी.
रात को फिर वसुधा के फोन की घंटी बज गई. दूसरी ओर मानव था, ‘‘आनंद मुझे भी कौन्फ्रैंस में ले गया. सो, मुझे न वक्त मिला और न ही मौका,’’ वसुधा ने बताया.
‘‘और कल तुम क्रूज पर जा रही हो? फिर?’’
‘‘तुम्हें यह भी मालूम है?’’ वसुधा चकित थी.
‘‘अंधा हूं, इसलिए मैं ने किराए पर आंखें ली हुई हैं ताकि मेरी आंखें न होने का कोई फायदा न उठा सके. मेरे आदमी तुम्हारे आसपास रहेंगे. मुझे तुम पर विश्वास है तुम मुझे पैसे दे दोगी. वैसे भी आनंद के मरने के बाद सबकुछ हमारा ही होगा. कल शाम को 3 बजे तुम क्रूज के डेक पर पहुंचोगी, वहां आनंद का पैर फिसलेगा और वह समंदर की लहरों में समा जाएगा. उधर आनंद खत्म, इधर करण का काम तमाम. होस्टल की खिड़की से मासूम गिर पड़ेगा और…’’
‘‘यह क्या कह रहे हो तुम,’’ वसुधा लगभग चीखते हुए बोली.
‘‘शांत वसुधा, शांत, तुम्हें तो मेरे दिमाग की दाद देनी चाहिए. आनंद के मरने के बाद करण भी तो आधी दौलत का हिस्सेदार रहेगा और फिर बारबार तुम्हें तुम्हारे अतीत की याद दिलाता रहेगा.’’
‘‘तुम ऐसा नहीं करोगे,’’ वसुधा ने ऊंची आवाज में कहा तो अनायास ही आनंद की आंख खुल गई, ‘‘किस पर गुस्सा कर रही हो?’’
‘‘कोई नहीं, यों ही, होस्टल की वार्डन का फोन था.’’
क्रूज पर ठीक 2 बजे वसुधा के कमरे की घंटी बजी, ‘‘मैडम, हाई टी तैयार है. आप साहब को ले कर डेक पर आ जाएं.’’
‘‘यहां तो बिन मांगे मोती मिल रहे हैं. वसुधा, चलो.’’
‘‘नहीं, हम नहीं जाएगे, मेरे सिर में दर्द है.’’
‘‘तो साहब आप आ जाइए. हम ने आप के लिए ही तो सारा इंतजाम किया है.’’
‘‘नहीं, साहब भी नहीं आएंगे. कह दो जा कर हम नहीं आएंगे, किसी सूरत में भी नहीं.’’
आनंद अचरज से वसुधा को देखने लगा, ‘‘तुम्हें अचानक क्या हो गया? क्यों बेचारे को डांट रही हो?’’ वसुधा को मानो अपनी भूल का एहसास हुआ, ‘‘मेरे सिर में दर्द है और तुम डेक पर ठंडीठंडी हवा खाओगे अकेलेअकेले?’’
वसुधा ने कहा तो आनंद ने वेटर से चले जाने को कहा.
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है मानव, माना कि तुम्हारी आंखों की खराबी के बावजूद तुम आंखें दान दे सकते हो और ये करण की आंखों से मैच भी करती हैं, पर हर काम का एक तरीका होता, नियम होता है. कायदाकानून भी तो कोई चीज होती है. यों हम जीतेजी तुम्हारी आंखें उसे नहीं दे सकते.’’
‘‘क्यों नहीं दे सकते डाक्टर. मैं तो वैसे भी नहीं देख सकता. मेरी आंखें सिर्फ सजावट के लिए हैं, मेरे लिए बेजान हैं, बेकार हैं, अगर इन से उस नन्हे बच्चे की आंखों की रोशनी मिल सकती है, तो क्यों नहीं?’’
‘‘मुझे कौंसिल में बात करनी पड़ेगी, मानव.’’
‘‘ठीक है डाक्टर. पर कृपया मेरी मदद करो. समझो कि बरसों पहले जो खुशी मैं किसी को देना चाह रहा था, उसे देने का समय अब आया है.’’
कौंसिल ने जल्द ही अपना फैसला सुना दिया. नियम के मुताबिक, किसी जिंदा इंसान की आंखें किसी और को नहीं दी जा सकतीं. सिर्फ मृत्यु के बाद ही ऐसा हो सकता है और यह कानून विश्व के हर देश में लगभग एकजैसा ही है.
मौसम की खराबी और लगातार होती बारिश की वजह से क्रूज अपनी रफ्तार और दिशा दोनों खो बैठा था. संपर्क सूत्र भी न के बराबर थे. इसलिए वसुधा को करण से बात न कर पा सकने का बेहद मलाल था. किनारे पहुंचते ही उस ने सब से पहले करण को फोन साधा. मगर बात न हो पाई. ‘‘शायद क्लास में होगा,’’ आनंद ने कहा तो वसुधा ने हामी भरी.
स्कूल के बाहर ही उन की टैक्सी को रोक लिया गया और आगे पैदल जाने की हिदायत दी गई. आनंद ने सामान उठाया और स्कूल की तरफ चल पड़े. रास्ते में एक शख्स से रास्ता रोकने का कारण पूछा तो पता चला कि कोई हादसा हो गया था. खिड़की से गिर कर किसी की मौत हो गई थी.
वसुधा चिंतित हो गई. आनंद ने पुलिस वाले से तहकीकात की तो उस ने सिर्फ इतना बताया कि जो मरा उस की मरने की उम्र नहीं थी.
भारी कदमों से और आशंकित मन से वसुधा ने स्कूल प्रांगण में प्रवेश किया. एक अजीब सी भयावह खामोशी छाई हुई थी. न बच्चों का शोर, न अफरातफरी, न भागदौड़ का माहौल. बाहर ही रमया नजर आई तो वसुधा भाग के उस तक पहुंची. उसे देख मानो रमया के सब्र का पैमाना छलक गया, ‘‘मैडम, सब खत्म हो गया.’’
‘‘क्या हुआ, करण कहां है, कहां है वह, ठीक तो है न?’’
‘‘मैं यहां हूं मम्मी,’’ वसुधा के कानों में रस भरती आवाज आई तो उस ने उसी दिशा में नजरें घुमा दीं, सामने करण खड़ा मुसकरा रहा था. ‘‘वाह मम्मी, लाल साड़ी में तो आप लालपरी लग रही हैं.’’
‘‘अच्छा ठीक है, मस्का छोड़ और बता, कैसा है तू?’’ वसुधा ने उतावलेपन से पूछा, मगर अगले ही पल ठिठक गई ‘‘तुझे कैसे पता चला कि मैं ने लाल साड़ी पहनी है.’’
‘‘क्योंकि काले चश्मे के अंदर से करण की आंखें देख पा रही हैं. ठीक वैसे ही जैसे आप की और मेरी,’’ यह रमया की आवाज थी. वसुधा को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने कस के करण को भींच लिया. उस की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ‘‘कैसे हुआ यह सब. और यहां हादसा कौन सा हुआ…’’
‘‘सब बताती हूं, मगर पहले करण को वापस अंदर बैड पर जाना होगा. करण
की आंखों पर जोर नहीं पड़ना चाहिए, आंनदजी आप को भी करण के साथ जाना पड़ेगा, कागजी कार्यवाही पूरी करनी है.’’
मानव के कमरे में प्रवेश करते ही वसुधा का कलेजा मानो मुंह तक आ गया. सामने मानव की तसवीर पर हार चढ़ा हुआ था. वसुधा वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. एकटक उस ने उस की तसवीर को निहारा और फिर कहा, ‘‘मैं सब समझ गई. मैं समझ गई कि उस ने कितना बड़ा बलिदान किया मेरी गृहस्थी को बचाने के लिए, शायद इसीलिए उस ने खुद को एक खुदगर्ज प्रेमी के रूप में पेश किया. मगर उस की मौत…’’
‘‘अस्पताल और मैडिकल बोर्ड के कानून के मुताबिक, एक जिंदा इंसान अपनी आंखें दान नहीं कर सकता. उस रात मानव ने मुझे फोन किया, ‘रमया, जो हालात हैं उस में अगर मैं इस दुनिया से चला जाता हूं तो वसुधा, उस की ब्याहता जिंदगी, उस की गृहस्थी बच जाएगी. साथ ही, करण को आंखे मिल जाएंगी, वह देख पाएगा और उस के साथसाथ वसुधा की जिंदगी का भी अंधेरा दूर हो जाएगा. उस की खोई हुई तमाम खुशियां उसे मिल जाएंगी, मेरी मौत उसे उस कशमकश से हमेशा के लिए आजाद कर देगी जिस ने उस का सुख, चैन, मन की शांति सब छीन लिया है. मेरी मौत पूरे परिवार को एक नई जिंदगी दे पाएगी, मेरी जिंदगी तो वैसे भी बेकार है, जीना और न जीना सब बेमानी है. उस का इस से अच्छा इस्तेमाल क्या होगा?’
‘‘‘लेकिन मानव, तुम ऐसा नहीं कर सकते. हम कुछ और रास्ता तलाश करेंगे. प्लीज, अपनी जान देने के बारे में सोचना भी मत, तुम्हारी जान पर किसी और का भी हक है?
‘‘‘जानता हूं. मगर तुम्हीं ने तो कहा था कि मेरे ओझल हुए बगैर वसुधा को अपना परिवार नजर नहीं आएगा. मुझ पर आखिरी एहसान करना, थोड़ी ही देर में एक जोरों की आवाज आएगी. शायद, उस आवाज में मेरी चीख भी शामिल होगी. तुम बिना समय गंवाए, नीचे लौन में चली जाना, मैं लाश बन कर वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. मेरी जेब में एक पत्र मिलेगा, उस में लिखा होगा कि मेरी आंखें करण को दी जाएं.’
‘‘मैं उस के आगे नहीं सुन पाई और बेहताशा भागती हुई लिफ्ट की ओर पहुंची. मैं चीखती जा रही थी, ‘मानव सर आत्महत्या कर रहे हैं, कोई उन्हें रोको.’ इस के पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक आवाज और हृदयविदारक चीख सुनाई पड़ी और फिर सबकुछ शांत हो गया.
रमया और वसुधा दोनों आंसुओं के सैलाब में फोन की घंटी बजने
तक बहती रहीं. आनंद ने फोन
पर कुछ कहा, जिसे वसुधा मुश्किल से सुन पाई.
अगले दिन दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने के लिए वसुधा, करण और आनंद हवाईअड्डे पर पहुंच चुके थे. रमया ने लिपट कर रोती हुई वसुधा को एक लिफाफा दिया जिस में मानव की तसवीर थी. मानव की इच्छा थी कि यादगार के तौर पर उस की यह तसवीर करण को दी जाए और उस से कहा जाए कि बड़ा हो कर अगर हो सके तो वह एक आंखों का डाक्टर बने और जीवन की आपाधापी में से वक्त निकाल इस अस्पताल में आ कर अंधेरे से लड़ते हुए बच्चों को रोशनी की किरण दिखाए.