कशमकश- भाग 4: क्या बेवफा था मानव

वसुधा ने अपने आंचल के छोर से आनंद की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछा और मन ही मन कहा, ‘तुम मुझे कमजोर नहीं कर सकते.’

‘‘मानव, तुम जानते हो मैं मौके की तलाश में हूं. आज जब आनंद कौन्फ्रैंस में जाएगा तो मैं पैसे निकाल लूंगी. तुम मुझे बारबार फोन मत करो.’’ वसुधा मानव से फोन पर बात कर रही थी और जल्द से जल्द बात पूरी करना चाह रही थी.

रात को फिर वसुधा के फोन की घंटी बज गई. दूसरी ओर मानव था, ‘‘आनंद मुझे भी कौन्फ्रैंस में ले गया. सो, मुझे न वक्त मिला और न ही मौका,’’ वसुधा ने बताया.

‘‘और कल तुम क्रूज पर जा रही हो? फिर?’’

‘‘तुम्हें यह भी मालूम है?’’ वसुधा चकित थी.

‘‘अंधा हूं, इसलिए मैं ने किराए पर आंखें ली हुई हैं ताकि मेरी आंखें न होने का कोई फायदा न उठा सके. मेरे आदमी तुम्हारे आसपास रहेंगे. मुझे तुम पर विश्वास है तुम मुझे पैसे दे दोगी. वैसे भी आनंद के मरने के बाद सबकुछ हमारा ही होगा. कल शाम को 3 बजे तुम क्रूज के डेक पर पहुंचोगी, वहां आनंद का पैर फिसलेगा और वह समंदर की लहरों में समा जाएगा. उधर आनंद खत्म, इधर करण का काम तमाम. होस्टल की खिड़की से मासूम गिर पड़ेगा और…’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम,’’ वसुधा लगभग चीखते हुए बोली.

‘‘शांत वसुधा, शांत, तुम्हें तो मेरे दिमाग की दाद देनी चाहिए. आनंद के मरने के बाद करण भी तो आधी दौलत का हिस्सेदार रहेगा और फिर बारबार तुम्हें तुम्हारे अतीत की याद दिलाता रहेगा.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं करोगे,’’ वसुधा ने ऊंची आवाज में कहा तो अनायास ही आनंद की आंख खुल गई, ‘‘किस पर गुस्सा कर रही हो?’’

‘‘कोई नहीं, यों ही, होस्टल की वार्डन का फोन था.’’

क्रूज पर ठीक 2 बजे वसुधा के कमरे की घंटी बजी, ‘‘मैडम, हाई टी तैयार है. आप साहब को ले कर डेक पर आ जाएं.’’

‘‘यहां तो बिन मांगे मोती मिल रहे हैं. वसुधा, चलो.’’

‘‘नहीं, हम नहीं जाएगे, मेरे सिर में दर्द है.’’

‘‘तो साहब आप आ जाइए. हम ने आप के लिए ही तो सारा इंतजाम किया है.’’

‘‘नहीं, साहब भी नहीं आएंगे. कह दो जा कर हम नहीं आएंगे, किसी सूरत में भी नहीं.’’

आनंद अचरज से वसुधा को देखने लगा, ‘‘तुम्हें अचानक क्या हो गया? क्यों बेचारे को डांट रही हो?’’ वसुधा को मानो अपनी भूल का एहसास हुआ, ‘‘मेरे सिर में दर्द है और तुम डेक पर ठंडीठंडी हवा खाओगे अकेलेअकेले?’’

वसुधा ने कहा तो आनंद ने वेटर से चले जाने को कहा.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है मानव, माना कि तुम्हारी आंखों की खराबी के बावजूद तुम आंखें दान दे सकते हो और ये करण की आंखों से मैच भी करती हैं, पर हर काम का एक तरीका होता, नियम होता है. कायदाकानून भी तो कोई चीज होती है. यों हम जीतेजी तुम्हारी आंखें उसे नहीं दे सकते.’’

‘‘क्यों नहीं दे सकते डाक्टर. मैं तो वैसे भी नहीं देख सकता. मेरी आंखें सिर्फ सजावट के लिए हैं, मेरे लिए बेजान हैं, बेकार हैं, अगर इन से उस नन्हे बच्चे की आंखों की रोशनी मिल सकती है, तो क्यों नहीं?’’

‘‘मुझे कौंसिल में बात करनी पड़ेगी, मानव.’’

‘‘ठीक है डाक्टर. पर कृपया मेरी मदद करो. समझो कि बरसों पहले जो खुशी मैं किसी को देना चाह रहा था, उसे देने का समय अब आया है.’’

कौंसिल ने जल्द ही अपना फैसला सुना दिया. नियम के मुताबिक, किसी जिंदा इंसान की आंखें किसी और को नहीं दी जा सकतीं. सिर्फ मृत्यु के बाद ही ऐसा हो सकता है और यह कानून विश्व के हर देश में लगभग एकजैसा ही है.

मौसम की खराबी और लगातार होती बारिश की वजह से क्रूज अपनी रफ्तार और दिशा दोनों खो बैठा था. संपर्क सूत्र भी न के बराबर थे. इसलिए वसुधा को करण से बात न कर पा सकने का बेहद मलाल था. किनारे पहुंचते ही उस ने सब से पहले करण को फोन साधा. मगर बात न हो पाई. ‘‘शायद क्लास में होगा,’’ आनंद ने कहा तो वसुधा ने हामी भरी.

स्कूल के बाहर ही उन की टैक्सी को रोक लिया गया और आगे पैदल जाने की हिदायत दी गई. आनंद ने सामान उठाया और स्कूल की तरफ चल पड़े. रास्ते में एक शख्स से रास्ता रोकने का कारण पूछा तो पता चला कि कोई हादसा हो गया था. खिड़की से गिर कर किसी की मौत हो गई थी.

वसुधा चिंतित हो गई. आनंद ने पुलिस वाले से तहकीकात की तो उस ने सिर्फ इतना बताया कि जो मरा उस की मरने की उम्र नहीं थी.

भारी कदमों से और आशंकित मन से वसुधा ने स्कूल प्रांगण में प्रवेश किया. एक अजीब सी भयावह खामोशी छाई हुई थी. न बच्चों का शोर, न अफरातफरी, न भागदौड़ का माहौल. बाहर ही रमया नजर आई तो वसुधा भाग के उस तक पहुंची. उसे देख मानो रमया के सब्र का पैमाना छलक गया, ‘‘मैडम, सब खत्म हो गया.’’

‘‘क्या हुआ, करण कहां है, कहां है वह, ठीक तो है न?’’

‘‘मैं यहां हूं मम्मी,’’ वसुधा के कानों में रस भरती आवाज आई तो उस ने उसी दिशा में नजरें घुमा दीं, सामने करण खड़ा मुसकरा रहा था. ‘‘वाह मम्मी, लाल साड़ी में तो आप लालपरी लग रही हैं.’’

‘‘अच्छा ठीक है, मस्का छोड़ और बता, कैसा है तू?’’ वसुधा ने उतावलेपन से पूछा, मगर अगले ही पल ठिठक गई ‘‘तुझे कैसे पता चला कि मैं ने लाल साड़ी पहनी है.’’

‘‘क्योंकि काले चश्मे के अंदर से करण की आंखें देख पा रही हैं. ठीक वैसे ही जैसे आप की और मेरी,’’ यह रमया की आवाज थी. वसुधा को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने कस के करण को भींच लिया. उस की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ‘‘कैसे हुआ यह सब. और यहां हादसा कौन सा हुआ…’’

‘‘सब बताती हूं, मगर पहले करण को वापस अंदर बैड पर जाना होगा. करण

की आंखों पर जोर नहीं पड़ना चाहिए, आंनदजी आप को भी करण के साथ जाना पड़ेगा, कागजी कार्यवाही पूरी करनी है.’’

मानव के कमरे में प्रवेश करते ही वसुधा का कलेजा मानो मुंह तक आ गया. सामने मानव की तसवीर पर हार चढ़ा हुआ था. वसुधा वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. एकटक उस ने उस की तसवीर को निहारा और फिर कहा, ‘‘मैं सब समझ गई. मैं समझ गई कि उस ने कितना बड़ा बलिदान किया मेरी गृहस्थी को बचाने के लिए, शायद इसीलिए उस ने खुद को एक खुदगर्ज प्रेमी के रूप में पेश किया. मगर उस की मौत…’’

‘‘अस्पताल और मैडिकल बोर्ड के कानून के मुताबिक, एक जिंदा इंसान अपनी आंखें दान नहीं कर सकता. उस रात मानव ने मुझे फोन किया, ‘रमया, जो हालात हैं उस में अगर मैं इस दुनिया से चला जाता हूं तो वसुधा, उस की ब्याहता जिंदगी, उस की गृहस्थी बच जाएगी. साथ ही, करण को आंखे मिल जाएंगी, वह देख पाएगा और उस के साथसाथ वसुधा की जिंदगी का भी अंधेरा दूर हो जाएगा. उस की खोई हुई तमाम खुशियां उसे मिल जाएंगी, मेरी मौत उसे उस कशमकश से हमेशा के लिए आजाद कर देगी जिस ने उस का सुख, चैन, मन की शांति सब छीन लिया है. मेरी मौत पूरे परिवार को एक नई जिंदगी दे पाएगी, मेरी जिंदगी तो वैसे भी बेकार है, जीना और न जीना सब बेमानी है. उस का इस से अच्छा इस्तेमाल क्या होगा?’

‘‘‘लेकिन मानव, तुम ऐसा नहीं कर सकते. हम कुछ और रास्ता तलाश करेंगे. प्लीज, अपनी जान देने  के बारे में सोचना भी मत, तुम्हारी जान पर किसी और का भी हक है?

‘‘‘जानता हूं. मगर तुम्हीं ने तो कहा था कि मेरे ओझल हुए बगैर वसुधा को अपना परिवार नजर नहीं आएगा. मुझ पर आखिरी एहसान करना, थोड़ी ही देर में एक जोरों की आवाज आएगी. शायद, उस आवाज में मेरी चीख भी शामिल होगी. तुम बिना समय गंवाए, नीचे लौन में चली जाना, मैं लाश बन कर वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. मेरी जेब में एक पत्र मिलेगा, उस में लिखा होगा कि मेरी आंखें करण को दी जाएं.’

‘‘मैं उस के आगे नहीं सुन पाई और बेहताशा भागती हुई लिफ्ट की ओर पहुंची. मैं चीखती जा रही थी, ‘मानव सर आत्महत्या कर रहे हैं, कोई उन्हें रोको.’ इस के पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक आवाज और हृदयविदारक चीख सुनाई पड़ी और फिर सबकुछ शांत हो गया.

रमया और वसुधा दोनों आंसुओं के सैलाब में फोन की घंटी बजने

तक बहती रहीं. आनंद ने फोन

पर कुछ कहा, जिसे वसुधा मुश्किल से सुन पाई.

अगले दिन दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने के लिए वसुधा, करण और आनंद हवाईअड्डे पर पहुंच चुके थे. रमया ने लिपट कर रोती हुई वसुधा को एक लिफाफा दिया जिस में मानव की तसवीर थी. मानव की इच्छा थी कि यादगार के तौर पर उस की यह तसवीर करण को दी जाए और उस से कहा जाए कि बड़ा हो कर अगर हो सके तो वह एक आंखों का डाक्टर बने और जीवन की आपाधापी में से वक्त निकाल इस अस्पताल में आ कर अंधेरे से लड़ते हुए बच्चों को रोशनी की किरण दिखाए.

कशमकश- भाग 3: क्या बेवफा था मानव

एक शाम मानव ने रमया को बुला भेजा. रमया ने अपने ओवरकोट की जेब से चाबी निकाली और मानव के फ्लैट का दरवाजा खोला, सामने कोने में मानव सोफे पर धंसा हुआ था.

‘‘सर, आप ने याद किया?’’

‘‘आओ रमया, नए स्टूडैंट्स की मैडिकल हिस्ट्री अस्पताल को भेज देना और उन से कहना, डोनर्स की लिस्ट भी अपडेट कर लें.’’

‘‘आप कुछ परेशान लग रहे हैं, सर?’’

‘‘रमया, तुम्हें याद है मैं ने एक बार तुम्हें अपनी कहानी सुनाई थी, उस कहानी में जो लड़की थी…’’

‘‘वो वसुधा है और एक बार फिर उस बेचारी के बुझे हुए अरमानों ने पंख फैलाए हैं.’’

‘‘ओह, तो तुम सब जानती हो. मगर यह गलत है, मुझे उसे रोकना है. मैं नहीं चाहता कि उस का परिवार टूटे. लेकिन मैं यह समझ नहीं पा रहा कि कैसे उसे रोकूं. मुझे डर है कि कहीं वह अपने पति से वो सब न कह दे जो उसे नहीं कहना चाहिए. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि यह कैसे मुमकिन हो पाएगा. लगता है वसुधा बहुत दूर निकल गई है, जहां से उसे उस का परिवार, परिवार वालों की खुशियां, कुछ भी नजर नहीं आ रहीं.’’

‘‘सर, आप जो चाहते हैं वह तभी हो पाएगा जब आप उस की जिंदगी से दूर चले जाएं, ओझल हो जाएं उस की जिंदगी से आप.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो रमया. मुझे उस की जिंदगी से दूर ही नहीं, बहुत दूर जाना पड़ेगा.’’

‘‘सर, अगर आप को मेरी कहीं भी कोई भी जरूरत हो तो मुझे बेझिझक कहिएगा. मैं अगर आप की मदद कर पाई तो मुझे बेहद खुशी महसूस होगी.’’

‘‘रमया, मैं अंधा जरूर हूं लेकिन मैं मन की आंखों से तुम्हारे मन को देख पा रहा हूं. मैं जानता हूं कि तुम्हारी भावनाएं क्या हैं. तुम्हारे ढेरों एहसान हैं मुझ पर. फिर भी मैं ने तुम्हारे एहसासों को अनदेखा किया. जानती हो क्यों, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम अपनी जिंदगी अंधेरे के सहारे गुजारो, जबकि कई जगमगाते सितारे तुम्हारी राह तक रहे होंगे. मेरा साथ तुम्हें सिर्फ दुख और तकलीफों के अलावा कुछ नहीं दे सकता.’’

‘‘रोशनी में जल कर मरने वाले परवानों से पूछिए. मेरा दावा है कि वे रोशनी में तिलतिल कर मरने के बजाय अंधेरे में सुकून से मरना चाहेंगे,’’ रमया की आंखें से आंसू बह निकले.

‘‘तुम रो रही हो रमया, मत रोओ रमया, आंसू बचा कर रखो. मेरा साथ देना है तो ये आने वाले वक्त में काम आएंगे, इन्हें संजो कर रखो.’’

मानव ने वसुधा को फोन करवा के बुलाया. वसुधा मानो आने के लिए तैयार ही थी. ‘‘आओ वसुधा, मैं ने तुम्हारे और अपने रिश्ते के बारे में, भविष्य के बारे में बहुतकुछ सोचा. ईमानदारी से कहूं तो मैं आज तक एक पल के लिए भी तुम्हें भुला नहीं पाया हूं और आज जब तुम मुझे इस हाल में अपनाने को तैयार हो, तो मैं इस मौके को खोना नहीं चाहूंगा, करीब पा कर फिर मैं तुम्हें दूर नहीं कर पाऊंगा.’’

वसुधा को विश्वास ही नहीं हुआ, उसे मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी. ‘‘मैं जानती थी मेरे प्यार में ताकत है, सचाई है. मैं कल ही वकील से…’’

‘‘नहीं वसुधा, अदालत के चक्कर, वकीलों की झंझट, उस से होने वाली रुसवाई और बदनामी की आग में मैं तुम्हें झुलसने नहीं दूंगा. मैं ने कुछ और ही सोचा है. वह तभी हो पाएगा जब तुम्हें साथ देना गवारा हो, तुम्हें सही लगे तो ठीक है वरना मेरी तरफ से तुम आज भी आजाद हो.’’

‘‘क्या सोचा है तुम ने, मैं हर हाल में तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘खून, कत्ल…’’

‘‘खून…आनंद का?’’ वसुधा सकते में आ गई.

‘‘हां वसुधा, और कोई रास्ता भी तो नहीं है. तुम सोच कर जवाब देना, कोई जबरदस्ती नहीं है. मेरे आदमी यह काम बखूबी कर देंगे, किसी पर शक नहीं जाएगा, न तुम पर न मुझ पर. कल भारतीय राजदूतावास में एक कार्यक्रम है जिस में भारत से कई व्यवसायी शिरकत कर रहे हैं, और दल को लीड करने वाला कोई और नहीं, तुम्हारा पति है, तुम्हारे बच्चे करण का पिता. वही आनंद, जिस के साथ तुम ने शादी का बंधन बांधा था और जिसे तुम अब तोड़ने जा रही हो. मैं चाहता हूं कल ही तुम्हारा पति तुम्हारा एक्स पति हो जाए. बस, तुम करीब एक लाख डौलर का इंतजाम कर दो.’’

वसुधा को शांत देख मानव ने आखिरी दाव फेंका, ‘‘आज अगर मैं अंधा न होता तो बढ़ कर तुम्हारे करीब आ जाता, अक्षम हूं, असहाय हूं वरना आनंद को खत्म करने के लिए मेरे दो बाजू ही काफी थे. आनंद को राह से हटा कर हम एक नई जिंदगी शुरू कर देते जहां सिर्फ हम होते, सिर्फ मैं और तुम.’’

‘हम नई जिंदगी जरूर जिएंगे,’ वसुधा ने मन ही मन यह सोच कर निर्णय लेते हुए कहा, ‘‘मैं कुछ न कुछ जरूर करूंगी.’’

अगले रोज आनंद को आते देख, खुशी और परेशानी के मिलेजुले भाव वसुधा के चेहरे पर आजा रहे थे, ‘‘यों अचानक. मुझे इत्तला तो दी होती.’’ वसुधा ने पूछा तो आनंद ने बेफिक्री से जवाब दिया, ‘‘मिलने का मजा तो तब ही हो जब मुलाकात अचानक हो. दरअसल, यहां एक औफिस का काम निकल आया, मैं ने सोचा, क्यों न एक टिकट में 2 काम किए जाएं. कहां है हमारा चश्मेबद्दूर. करण कुमार?’’ आनंद ने इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए पूछा.

‘‘होस्टल में, उसे छुट्टी दिलाना यहां बहुत मुश्किल है.’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सिंगापुर घूमेंगे. यह देखो क्रूज का टिकट. यहां से मलयेशिया, इंडोनेशिया…तब तक वीकैंड आ चुका होगा. तब हम अपने जिगर के टुकड़े के पास होंगे.

‘‘वैसे, करण कैसा है? उम्मीद है वो नर्वस नहीं होगा. हमेशा की तरह खुश. हर हाल में मस्त,’’ आनंद की आंखें नम थीं.

‘‘तुम थक गए होगे, थोड़ा आराम कर लो,’’ वसुधा ने सुनीअनसुनी करते हुए कहा, कमरे में सामान रखते हुए वसुधा मानो मुद्दे की बात करने को बेताब थी, ‘‘मेरे अकाउंट में एक लाख डौलर ट्रांसफर कर दो. कुछ फीस वगैरह देनी है.’’

‘‘जरा मैसेज पढ़ लिया करो मैडम. आप के अकाउंट में कल ही 2 लाख डौलर डाले हैं. वैसे, फीस, होस्टल चार्जेज सब मैं औनलाइन दे चुका हूं. अब एक लाख डौलर से किसी की जान लेने का इरादा है क्या?’’ आनंद एक पल के लिए रुका, फिर हौले से बोला, ‘‘जानती हो, दौलत के बारे में मेरी क्या सोच है? लोगों की दौलत आतीजाती रहती है, मगर मैं ने जो दौलत कमाई है वो मेरे पास से कभी नहीं जाएगी. उसे मुझ से कोई छीन नहीं सकता.’’

‘‘ऐसा कौन सा इन्वैस्टमैंट कर दिया तुम ने जिस पर तुम्हें इतना ऐतबार है?’’

‘‘तुम, वसुधा तुम, मेरी जिंदगी की सब से बड़ी दौलत, सब से बड़ा इन्वैस्टमैंट तुम हो, जो आज भी मेरी है, कल भी रहेगी और मरते दम तक मेरी ही रहेगी.’’ वसुधा को काटो तो खून नहीं.

‘‘बस, अब एक ही चाहत है हमारा करण जल्द ही अपनी आंखों से यह दुनिया देखे. अंधेरों से निकल कर उजाले में आए?’’ आनंद ने कहना जारी रखा.

ज्ञानोद: भाग 3

रिया ने नरमी बनाए रखते हुए कहा, ‘‘कैसे हो भैया? अगले महीने रक्षाबंधन है. मैं राखी भेज रही  हूं, मिलने पर सूचित करना.’’ रोहित ने कहा मैं ने जब मना किया है, तो फिर फोन क्यों करती हो? बंद करो सब नाटक. मुझे राखी भेजने की कोई जरूरत नहीं है. रोहित ने राखी का तो अपमान किया ही मुझे भी उस ने आड़े हाथों लिया. अपने अपमान से ज्यादा रोहित की हमारे प्रति दर्शायी गई बेरुखी ने रिया को आहत कर दिया. बचपन से ही रिया ऐसी थी कि किसी की क्या मजाल जो हमारे खिलाफ कुछ कह दे. रिया उस से झगड़ पड़ती थी. छोटेबड़े तक का लिहाज नहीं करती थी. हमेशा की तरह वह रोहित से झगड़ पड़ी.

रिया ने मुझे बताया, ‘‘मां भैया में थोड़ा भी बदलाव नहीं आया है, आज भी वह आप की पहले की तरह ही कोसता है.’’

फिर उस ने सारी बातें बताईं. सब कुछ सुन कर मैं रिया पर ही बरस पड़ी, ‘‘ठीक है, रोहित ने कड़वी बातें  कहीं, तुम्हें बुरा लगा यह भी जायज है, पर तुम्हें चुपचाप फोन रख देना चाहिए था. तुम ने उसे भलाबुरा क्यों कहा?’’

मैं ने रिया को डांट तो दिया पर सोचने लगी, 1 साल बीत जाने पर भी रोहित का व्यवहार ज्यों का त्यों है. इन सब बातों का असर मेरे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. अब बहुत हो गया. मैं ने रवि से कहा, ‘‘अब वक्त आ गया है कि हमें रोहित के पास जाना ही होगा. आमनेसामने बैठ कर बातें करेंगे तो उस की शिकायतों के भी हम सही जवाब दे पाएंगे.’’

रवि इस के लिए तैयार हो गए तो मैं ने तुरंत रोहित को संदेश भेजा कि हम आ रहे हैं.

रोहित का जवाब आया, ‘‘मैं नहीं चाहता कि आप लोग मेरे पास आएं. मैं ने मां के सारे ई मेल पढ़े हैं. आप लोगों ने मेरे साथ जो भी कुछ किया, उस के लिए मैं कभी आप लोगों को माफ नहीं कर पाऊंगा या नहीं, पता नहीं.’’

मैं ने रोहित को लिखा, ‘‘बेटा, तुम्हारे बरताव से हमें बहुत दुख हो रहा है. मेरा स्वास्थ्य भी गिरने लगा है. तुम जानते हो जिंदगी में मैं ने बहुत दुख सहा है. पर मुझे दुख पहुंचाने वाले मेरे अपने नहीं थे. तुम तो मेरे अपने हो, ऐसी कड़वी बातें कहने  लगे तो मै जीते जी मर जाऊंगी. मैं ने सिर्फ अपनी राय दी थी, कोई जोरजबरदस्ती तो नहीं की थी. हम सामने बैठ कर बातें करेंगे. तुम जैसा चाहोगे वैसा ही होगा आगे से. इसलिए हम आना चाहते हैं या फिर तुम यहां आ जाओ,’’

इस के बाद रोहित का जो जवाब आया, उस के आगे कहने को कुछ बचा ही नहीं था. उस ने लिखा था, ‘‘मैं आप लोगों को समझ कर थक गया हूं. मेरे मना करने के बावजूद यदि आप लोग जबरदस्ती यहां आते हैं, तो आप लोगों से सारे बंधन तोडु लूंगा.’’

मैं सेवानिवृत्त हो गई थी. सारा दिन खाली बैठ कर रोहित के बारे में ही सोचा करती थी. एकदिन अपनी सहेली के बताने पर मैं उस के साथ प्रवचन सुनने के लिए चली गई. वक्ता कोई महान व्यक्ति थे. मु?ा में ज्ञानोदय हो गया हो.

उस महान प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हम जीवन में दुखी इसलिए होते हैं कि हम सिर्फ अपने परिवार के बारे में सोचते हैं. यदि हम अपना दायरा बड़ा कर दूसरों के बारे में भी सोचें, दूसरों की जिंदगी को सुधारने में हमारा थोड़ा भी योगदान रहे, तो न सिर्फ हम दूसरों का भला करेंगे, बल्कि इस से हमें जो खुशी मिलगी उस का अनुमान नहीं लगाया जा सकता.’’

मेरे जीवन में जो ज्ञानोदय हुआ था, उस से मैं ने निश्चय कर लिया कि मुझे अपने बिखरते वजूद को समेट कर नए क्षितिज की तलाश में आगे बढ़ना होगा.

मेरी कोशिश रंग लाई और आज मैं बेहद खुश हूं कि मैं ने अपनेआप को उन संस्थाओं से जोड़ लिया है, जो सड़क पर पल रहे जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा दे कर उन्हें जीवन में कुछ बनने की प्रेरणा देते हैं. अपनेआप को व्यस्त रखने का तरीका तो मैं ने ढूंढ लिया था, पर रोहित की याद आते ही दिल में टीस सी उठती थीं. बड़े से बड़े घाव को भी भर देता है.

मुझे विश्वास था एक दिन रोहित भी अपने जख्मों के भरने पर मेरे पास लौट आएगा. रोहित द्वारा दिए गए जख्मों को भरने के लिए मुझे काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी. ऊपर से जख्म तो भर गए थे. लेकिन अंदर का घाव अभी भी हरा था. मैं ने तो कदम बढ़ा कर दोनों  के बीच की दूरी को पाटने की कोशिश की थी, पर रोहित ने मेरी ओर कदम बढ़ाने से इनकार कर दिया था. इसलिए मैं उसे कुछ वक्त देना चाहती थी. अगर रोहित एक कदम भी बढ़ाए तो मैं भाग कर सारा फासला मिटा दूंगी, ऐसा सोच रही थी मैं .

कल मुझे कही जाने की इच्छा नहीं थी. रवि सुबह ही पेंशन लेने बैंक के लिए निकल पड़े थे. एक ही जगह पर बैठेबैठे शून्य में नजर गड़ाए मैं बीते दिनों की यादों में खो गई. यादों के पन्ने पलटते चले गए. याद आया रोहित का बचपन, जब वह मेरा पल्लू पकड़ेपकड़े मेरे पीछेपीछे घूमता रहता था. याद आया लड्डू खाने का शौकीन रोहित, जिस के लिए तिल के लड्डू बना कर मैं उसी के कमरे में छिपा दिया करती थी. याद आता है वह दिन जब भारीभरकम फलों से भरा झेला उठाने में असमर्थ मेरे भारी कदमों को देख, खेल को बीच में छोड़ भाग कर आता रोहित और मुझ से झेला छीन कर घर पर रख आता. विश्वास नहीं हो रहा था कि आज वही मुझ से इतना नाराज है कि बात तक करने को तैयार नहीं. सोचने लगी मुझ से चूक कहां हुई? रवि और मैं ने बच्चों को कितने नाजों से पाला. रिया तो हम पर जान छिड़कती है, फिर रोहित कैसे इतने दिनों रूठा रह सकता है? शुरूशुरू में तो मैं इसे रोहित की नादानी समझ बैठी थी. अब मेरी नाराजगी बढ़तेबढ़ते गुस्से का स्थान लेने लगी. मैं  सोचने लगी क्या हमें इतना भी हक नहीं कि हम बच्चों को अपनी राय से वाकि फ करा सकें.

हर मांबाप अपने बच्चों को सही राय देते हैं और ये उन का हक भी है. मैं ने निश्चय कर लिया, ठीक है अगर वह बात नहीं करना चाहता तो ऐसा ही सही. यदि वह भविष्य में हमें अपने पास बुलाएगा तो मैं कभी नहीं जाऊंगी न कभी उसे किसी बात पर अपनी राय दूंगी.

यह सब सोचतेसोचते मैं इतनी अधिक तनावग्रस्त हो गई कि आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. पानी के लिए मैं ने रवि को पुकारा, पर वे अभी तक लौटे नहीं थे.

जब आंख खुली तो मैं ने अपनेआप को अस्पताल में पाया. रवि मुझे बताया कि जब  वे घर लौटे तो मैं बेहोश पड़ी थी. रवि ने तुरंत अपने मित्र डा. प्रकाश को फोन किया और मुझे ले कर अस्पताल आ गए, प्रारंभिक जांच के बाद डा. प्रकाश ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि कोई गंभीर बात है. लगता है इन्होंने सुबह से कुछ खाया नहीं है. कोई चिंता है, जो इन्हें खाए जा रही है. फिर भी 2-3 दिन अस्पताल में रह कर पूरी जांच कर लेनी चाहिए.’’

मैं ने सचमुच सुबह से कुछ खाया नहीं था और मैं काफी तनावग्रस्त हो गई थी. मैं जानती हूं यही कारण रहा होगा मेरी बेहोशी का पर रवि कहां मानने वाले थे. ऊपर से रिया और राजीव भी पहुंच गए थे. सभी ने काफी भाषण दिया कि मैं व्यर्थ में चिंता करती हूं. अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखती वगैरह.

जांच के दौरान मुझेआराम मिले इसलिए नींद के इंजैक्शन भी दिए जाते थे. अगले दिन इंजैक्शन की वजह से अर्धजाग्रत अवस्था की स्थिति में थी कि रोहित की आवाज सुन कर चौंक कर आंखें खोल दी मैं ने. सामने रोहित को पा कर आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई.

जब उस ने मुझे जागा हुआ देखा तो पूछा, ‘‘कैसी हो मां?’’

इस आवाज को सुनने के लिए ही तो मेरे कान तरस गए थे, रोहित को देखते ही मेरी अपनी सारी नाराजगी भूल गई. दोनों हाथों  से मैं ने रोहित का हाथ कस कर पकड़ लिया, जैसे कि उसे जाने नहीं देना चाहती थी. कोशिश करने पर भी मुंह से कोई बोल नहीं निकल रहा था. आंखों से अश्रुधारा लगातार बहने लगी, मुश्किल से सिर्फ ‘बेटा’ कह पाई. रोहित भी अपनी आंखों के किनारों को पोंछ रहा था. दोनों के दिलों में जो कड़वाहट थी, वह सब आंसुओं की राह बाहर निकल गई थी.

बाद में पता चला कि मेरे बेहोश होते ही रिया और राजीव ने रोहित को खबर कर दी थी. मेरी सारी रिपोर्ट्स आ चुकी थी सब कुछ नौर्मल था. अस्पताल से मुझे उसी दिन छुट्टी मिल गई.

घर आते ही सोचने लगी रोहित के लिए क्या बनाऊं? रोहित मुझे रसोईघर से घसीट लाया. मुझे बिस्तर पर बैठा कर बोला ‘‘मां, तुम आराम करो’’

मैं न कहा, ‘‘रोहित तुम जानते हो, मुझए कोई बीमारी नहीं है.’’

उस ने मुझे पास बैठा लिया. कहने लगा, ‘‘मां, शायद तुम ठीक कहती हो, जो होता है सब अच्छे के लिए ही होता है, रिमैशन की वजह से मुझे ग्रीन कार्ड नहीं मिला, इसलिए मुझे जल्दी भारत लौटना पड़ेगा. मां लिंडा मैक्सिको से है, उस ने अमेरिका वासी से शादी की है इसलिए उसे ग्रीन कार्ड मिल जाएगा. मैं उस से शादी करता तो या तो लिंडा को भारत आ कर रहना पड़ता या मुझे मैक्सिको जाना पड़ता, जो हम दोनों ही नहीं चाहते थे. मां, मेरे लिए तुम्हारी राय बहुत माने रखती है अब मैं समझ गया हूं, चाहे मेरे पास जितनी भी डिग्रियां हो, तुम्हारे अनुभव के सामने सब फीकी हैं. मुझे माफ कर दो मां,’’

मैं ने आगे बढ़ कर रोहित को गले से लगा लिया. इस बार मेरी आंखों में जो आंसू  थे वे खुशी के थे.

मैं नाहक परेशान थी कि अपनी नापसंदगी का इजहार कर के मैं ने रोहित को खो तो नहीं दिया, आज एक और ज्ञानोदय हुआ मेरे जीवन में और मैं ने निश्चय किया कि मैं बच्चों को अपनी राय अवश्य दूंगी और जरूरत पड़ने पर अपनी नापसंदगी का इजहार  भी करूंगी. पर अपना निर्णय उन पर थोपूंगी नहीं.

अगर बच्चे अपना निर्णय खुद लेंगे तो मातापिता पर अपनी नाराजगी तो जाहिर नहीं करेंगे जिंदगी हर पल एक सीख देती है. जरूरत है उसे समझने की और उसे अपनी जिंदगी में उतारने की. आज मैं सचमुच बहुत खुश हूं, सिर्फ इसलिए नहीं कि मेरा रोहित मेरे पास वापस लौट आया, बल्कि इसलिए थोड़े दिनों का दुख मेरी जिंदगी में आया. इस दुख ने ही मुझे जिंदगी का नया पाठ भी पढ़ाया. मेरी जिंदगी में जो ज्ञानोदय हुआ, उस ने मेरे सुख को दोगुना कर दिया.

हमसफर: भाग 1- प्रिया रविरंजन से दूर क्यों चली गई

भूली तो कुछ भी नहीं, सब याद है. वह दिन, वह घटना, वह समय जब रविरंजन से पहली मुलाकात हुई थी. चित्र प्रदर्शनियां मु  झे सदा आकर्षित करती रहीं. मैं घंटों आर्ट गैलरी में घूमा करती. कलाकार की मूक तूलिका से उकेरे चित्र बोलते से जीवंत नजर आते. उन चित्रों में जिंदगी के सत्य को खोजती, तलाशती मैं उन्हें निहारती रह जाती. ऐसी ही एक आर्ट गैलरी में एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई कि मेरी जीवनधारा ही बदल गई. वे थे रविरंजन.

राष्ट्रीय कला दीर्घा में नएपुराने नामी चित्रकारों की प्रदर्शनी लगी थी. बिक्री के लिए भी नयनाभिराम चित्र थे. मैं ने एक चित्र पसंद किया, पर कीमत अधिक होने के कारण मु  झे छोड़ना पड़ा. वहीं रविरंजन भी कुछ चित्र खरीद रहे थे. मेरी पसंद का चित्र भी उन्होंने खरीद लिया. फिर पैक करवा कर बोले, ‘‘मैडम, यह मेरी ओर से,’’ तो मैं एकदम अचकचा गई, ‘‘नहींनहीं, हम एकदूसरे को जानतेपहचानते नहीं, फिर यह

किस लिए?’’ और तत्काल पार्क की हुई अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गई. वे भी मेरे पीछेपीछे निकले. मेरे विरोध को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने वह चित्र अपने ड्राइवर से मेरी गाड़ी में रखवा दिया. साथ में उन का कार्ड भी था. उस रात मैं सो न सकी. रहरह कर रविरंजन का प्रभावशाली और सुंदर व्यक्तित्व आंखों के सामने तैर जाता.

दूसरे दिन औफिस में भी मन विचलित सा रहा तो रविरंजन के कार्ड से उन के औफिस नंबर पर ही उन्हें फोन लगाया. सोचा पता नहीं कौन फोन उठाएगा पर फोन उठाया रविरंजन ने ही. मैं ने उन्हें कल वाले चित्र के लिए शुक्रिया कहा तो वे बोले, ‘‘फोन पर शुक्रिया नहीं प्रियाजी. न मैं आप का घर जानता हूं न आप मेरा. देखिए, हम आज शाम पार्क ऐवेन्यू में मिलते हैं,’’ और इस के साथ ही फोन कट गया.

शाम 5 बजे हम कौफी हाउस में मिले. पहली ही मुलाकात में रविरंजन इतने अनौपचारिक हो बैठेंगे, ये मैं ने सोचा ही नहीं था. इस के बाद हमारी मुलाकातें बारबार होने लगीं, बल्कि एक तरह से हम दोनों हर रोज मिलने लगे.

मेरे शांत जीवन में न जाने कैसी हलचल शुरू हो गई. मैं ने अपनेआप को बहुत संभाला,  पर रविरंजन में ऐसा आकर्षण था कि मैं उन की ओर खिंचती चली गई. सारी बंदिशें तोड़ने को दिल मचलने लगा, पर अंकुश था उम्र का. ऐसी चंचलता ऐसी भावुकता शोभा नहीं देगी. फिर ऊंचे पद पर एक जिम्मेदार औफिसर हूं मैं. मेरे लिए जरूरी था संयम और अपनी चाहतों पर काबू रखना.

यह वय:संधि होती बड़ी अजीब है. फिर चाहे किशोरावस्था और युवावस्था के बीच की हो अथवा जवानी और प्रौढावस्था के बीच की. मैं तो सोच रही थी कि उम्र के उफान का समय बीत चुका है. मन ही मन यह तय कर चुकी थी कि अब कोई और राह चुनूंगी पर अब हो तो रहा कुछ और था.

मैं शुरू से ही स्वतंत्र स्वभाव की थी. उम्र होने पर जब मां ने विवाह पर जोर दिया कि पढ़ाई पूरी हुई विवाह कर घर बसा, तो इतनी ही बात पर मैं मां की विरोधी हो गई. सीधे पिता से कहा कि मैं विवाह नहीं करना चाहती, नौकरी करना चाहती हूं. आम औरतों जैसी जिंदगी मैं नहीं जीना चाहती.

पिता ने साथ दिया. वे सम  झ गए कि बेटी इतनी सम  झदार हो चुकी है कि अपना निर्णय वह खुद ले सकती है. उन्होंने सहमति दे दी. तब से मैं दिल्ली में नौकरी कर रही हूं. पर इसे एक संयोग ही कहेंगे कि अपनी विचारधारा के एकदम विपरीत मैं रवि के प्रेमपाश में ऐसी बंधी कि उस से निकलना मेरे लिए मुश्किल हो गया.

‘‘रवि, हम एकदूसरे के बारे में तो कुछ जानते ही नहीं,’’ एक दिन मैं ने कहा.

वे बोले, ‘‘क्या इतना काफी नहीं कि मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम मु  झ से?’’

‘‘फिर भी मैं बता देना चाहती हूं कि मेरी मां और मेरे भाई को मेरा नौकरी करना तक पसंद नहीं. मेरा यहां अकेले रहना भी पसंद नहीं और अब बिना विवाह के तुम्हारे साथ ऐसे संबंधों को तो वे कतई पसंद नहीं करेंगे. पिता की सहमति न होती, उन्होंने मेरा साथ न दिया होता तो आज जहां मैं हूं, नहीं होती. पर अब पिता नहीं रहे तो मां और भाई का प्रतिरोध बढ़ता जा रहा है. वे अब भी विवाह करने पर जोर देते रहते हैं. इसलिए आज मैं सोच रही हूं कि मेरे सपनों का पुरुष मिल गया है. रवि, तुम मिले तो लगा कि स्त्रीपुरुष के संबंधों का यह रिश्ता कितना गरिमामय होता है. मैं तो स्वतंत्र जीवन को बड़ी नियामत सम  झती थी पर लगता है कि जीवन में बंधन भी कम आकर्षक नहीं होते.’’

‘‘प्रिया, मैं बता दूं तुम्हें कि मैं विवाहित हूं. मेरी पत्नी है, बेटा है. फिर भी मेरा अंतर खाली ही रहा. तुम मिलीं तो तुम ने भरा उसे. मैं तुम से दूर नहीं रह पाऊंगा,’’ कहते हुए रवि ने मु  झे अपनी बांहों में समेट लिया. मैं ने तनिक भी विरोध नहीं किया, यह जान कर भी कि वे शादीशुदा हैं. फिर बहुत से पल हम ने एकदूसरे के बाहुपाश में बंधेबंधे गुजार दिए.

फिर होश में आए तो रवि ने गहरी नजरों से मु  झे देखा और बोले, ‘‘अच्छा, अब

चलता हूं मैं,’’

उन्होंने अपना सारा सामान, लाइटर, सिगरेट केस, चश्मा आदि समेटा और ब्रीफकेस में डालते हुए बोले, ‘‘आज बहुत देर हो गई.’’

मैं गाड़ी तक उन्हें छोड़ने आई तो बोली, ‘‘दफ्तर से ही आ रहे थे क्या? क्या घर पहुंचने पर मौका निकालना मुश्किल हो जाता है? तुम्हारी पत्नी तो जानती है कि तुम्हारी शामें कहां गुजरती हैं? तुम्हीं ने तो बताया था कि औफिस के बाद अकसर तुम क्लब चले जाते हो.’’

‘‘हां, लेकिन न जाने कैसे वह हम पर शक करने लगी है. अच्छा है, कभी न कभी तो उसे जानना ही है. कभी तनाव का मौका आया तो मैं उसे सब कुछ बता दूंगा,’’ कह कर रवि ने मेरी ओर देखा और गाड़ी स्टार्ट कर दी.

मैं ने कलाई घड़ी पर नजर डाली और सोचा थोड़ा बाहर चहलकदमी कर आऊं. खुली हवा में माइंड फ्रैश हो जाएगा. बाहर निकली तो देखा पड़ोस के गेट पर 3 महिलाएं खड़ी बतिया रही थीं. अपनी ओर मेरा ध्यान खींच उन में से एक बोली, ‘‘घूमने जा रही हैं बहनजी? आप तो दिखती ही नहीं. आप क्या यहां अकेली रहती हैं?’’

‘‘जी हां कहिए…’’

‘‘आज आप के वो कुछ जल्दी चले गए. हम उन्हें अकसर आप के घर आतेजाते देखती हैं. आप उन से शादी क्यों नहीं कर लेतीं, ये रोज का आनाजाना तो छूट जाता?’’

मेरा चेहरा राख हो गया. कोई जवाब देते नहीं बना. बिना कुछ बोले मैं घर लौट आई. मैं महसूस कर रही थी कि उन महिलाओं की व्यंग्य और परिहास भरी दृष्टि मेरी पीठ पर चिपकी होगी. मैं उन को करारा जवाब भी दे सकती थी, जैसे आप को दूसरों की पर्सनल लाइफ से क्या लेनादेना, पर नहीं दे सकी. मु  झे तो ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते हुए पकड़ लिया हो.

उस के बाद से जब भी मैं घर से निकलती आसपास की व्यंग्य भरी नजरें मु  झे घूरने लगतीं. इसलिए औफिस जातेआते वक्त मैं गाड़ी गैराज से निकालने के पहले उस के शीशे चढ़ा देती. पड़ोसियों को पूछताछ के अवसर ही नहीं देती.

रवि के दिल में मेरे लिए क्या स्थान है? क्या वे मु  झे भी वही मर्यादा देंगे, जो अपनी पत्नी को देते हैं? मैं अकसर सोचती. रवि ने मु  झ से एक बार कहा था कि संबंध केवल साथ रहने से ही नहीं बनता. सच्चा साथ तो मन का होता है. अधिकतर लोग जीवन भर साथ रहते हैं मगर सभी एकदूसरे के नहीं हो पाते. मेरा दांपत्य जीवन वर्षों से इतना कोल्ड है कि पूछो मत. पत्नी को भी इस का एहसास है. पर और दंपतियों की तरह शारीरिक संबंध हमारे बीच है, चाहे मन मिले

चाहे न मिले. प्रिया, अगर तुम मु  झे पहले मिली होतीं तो…’’

‘‘क्यों, क्या मैं अभी तुम्हारी और तुम मेरे नहीं हो?’’

‘‘नहीं, अगर नियति ने तुम्हें ही मेरे लिए बनाया होता तो हमारा इस तरह घड़ी दो घड़ी

का साथ न हो कर जीवन भर का साथ होता.

मुझे मन मार कर तुम से अलग हो जाने की जरूरत न पड़ती.’’

सच कह रहे थे रवि. न चाहते हुए भी रवि को जाने देना, क्या दूसरी औरत की

भूमिका नहीं निभा रही मैं? कभीकभी अपनेआप से बड़ी कोफ्त होती. किस मायाजाल में फंस गई मैं? इतना भी नहीं सोचा कि विवाहित पुरुष पूरा मेरा नहीं होगा. प्यार एक छलावा मात्र बन जाएगा मेरे लिए.

ज्ञानोद: भाग 2

अपने बच्चे को इस तरह आहत देख कर मेरा दिल भी रो उठा. जी चाहा गले से लगा कर उसे प्यार करूं. कितनी मजबूर थी मैं, अमेरिका इतनी दूर है कि जब जी चाहा नहीं जाया जा सकता. एक तो छुट्टी मिलनी मुश्किल है, ऊपर से पैसे भी कितने लगेंगे. मन मार कर फोन और ईमेल से ही समझौता करना पड़ा. दिन में 2 बार फोन कर के मैं रोहित को हिम्मत बंधाती रही. पर दिन और रात का ये फर्क, अमेरिका और भारत के बीच मेरे काम को और मुश्किल कर देता था.

जब रोहित मुश्किल के इस दौर से गुजर रहा था, फोन करने के लिए भारत में 5 बजने का इंतजार करता रहता था. कई दिन मेरे नित्यकर्मों से निबटने के पहले उस का फोन आ जाता था. उस वक्त उस के मित्रों ने भी उस से किनारा करना शुरू कर दिया था.

दूसरों के सुख में तो सभी सहभागी होते हैं, पर दूसरों के दुख को कोई अपना ही बांटता है. सेवानिवृत्त होने मेरे सिर्फ 2 महीने ही बचे थे. ऐसे में मेरा जाना नामुमकिन था. इन सब मामलों से रवि ने अपने को दूर ही रखा. वैसे भी शादीब्याह का मामला हो या बच्चों की पढ़ाई का मैं ही सब कुछ संभालती थी. हां अंत में ये अपनी मुहर जरूर लगा देते.  मुझ से कहते, ‘‘तुम ही संभालो उसे, वह तुम्हारे ज्यादा करीब है.’’

इस में रोहित ने मेरी मदद की. उस ने मुझे अक्षरश: समझ दिया कि मुझे लिंडा से क्या कहना है. मैं ने लिंडा को फोन कर के कहा, ‘‘मुझे तुम दोनों की शादी से कोई एतराज नहीं है, अगर तुम हां कहो तो मेरे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा,’’

लिंडा ने तेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘अगर चाहो तो थोड़ा वक्त ले सकती हो, हम तुम्हारे जवाब का इंतजार करेंगे, हम तुम्हारे बच्चे को भी अपनाने को तैयार हैं.’’

इस पर लिंडा ने मुझे धन्यवाद कहा, इस के बाद भी रोहित ने कहा कि लिंडा उस से  कभीकभार ही बात करती है.

मैं ने रोहित को इतना मायूस पहले कभी नहीं देखा था. अपने बेटे की इस हालत पर मैं भी बहुत दुखी थी. मैं उसे विश्वास दिलाती रही कि वह चिंता न करे सब कुछ ठीक हो जाएगा.

एक दिन रोहित को लिंडा का संदेश मिला, लिंडा ने लिखा था, ‘‘मैं अपने नए साथी से शादी कर रही हूं, अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है.’’

लिंडा के इस संदेश से रोहित की रहीसही आशा भी टूट गई. खबर पढ़ते ही उस ने मु?ो फोन किया. उस वक्त अमेरिका में तो दिन था, पर यहां रात के करीब 3 बज रहे थे. मैं फोन के बजने की आवाज सुन कर गहरी नींद से चौंक कर उठी, रोहित का ही फोन था, बेहद कमजोर आवाज में कहा, ‘‘मां, सब कुछ खत्म हो गया. लिंडा मुझे छोड़ कर जा चुकी है,’’

रोहित मुझे हमेशा की तरह फोन करता रहा. पर कभी उस ने मुझ से नाराजगी नहीं दर्शायी. मैं भी यही सोचती रही कि वह लिंडो को भूल गया है. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक दिन अचानक दिन में रोहित का फोन आया. मैं ने सोचा कि इस वक्त तो अमेरिका में आधी रात होगी.

रोहित ने इस वक्त क्यों फोन किया? शायद वह उलझन में होगा और उसे नींद नहीं आ रही होगी. मुझ से कहने लगा, ‘‘मां, मैं लिंडा को भुला नहीं पा रही हूं. उस के बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता, अब मैं उस के विरुद्ध आप से या पापा से कुछ नहीं सुनना चाहता. मुझे सिर्फ और सिर्फ लिंडा से ही शादी करनी है, यह मैं तय कर चुका हूं.’’

रोहित का दृढ़ निश्चय जान कर मैं ने भी हथियार डाल दिए. मैं ने कहा, ‘‘यदि तुम निश्चय कर ही चुके हो तो जैसी तुम्हारी मर्जी’’

दूसरे दिन फिर रोहित का फोन आया. इस बार उस की आवाज में काफी नाराजगी थी. कहने लगा, ‘‘मां, लिंडा मुझ से कितनी मिन्नतें करती रहीं, पर आप ने मेरे दिमाग में लिंडा के खिलाफ जहर घोला जिस की वजह से मैं ने उसे ठुकराया.

अब वह कहती है कि उस ने किसी से दोस्ती कर ली है. इस से पहले कि उस की दोस्ती प्यार में बदले, मे आप ही को उसे मनाना होगा मां. मैं ने उस से कहा था कि मैं मातापिता की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकता, इसलिए उसे मेरी बातों पर विश्वास नहीं रहा. मां, तुम्हें उसे विश्वास दिलाना होगा कि बहू के रूप में स्वीकार करने में तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है वरना मैं उसे खो दूंगा.’’

मुझे इस तरह रोहित की तरफ से लिंडा से बात करना बहुत अटपटा लग रहा था. मेरे लिए उस के अंगरेजी उच्चारण को सम?ाना टेढ़ी खीर थी. समझ में नहीं आ रहा था कि लिंडा से क्या कहूं?

धीरेधीरे रोहित का फोन आना कम होता गया. फिर उस ने फोन करना बिलकुल बंद कर दिया. मेरे बारबार फोन करने पर भी फोन नहीं उठाता था. एक दिन उस ने फोन उठाया, पर मुझे काफी भलाबुरा कहने लगा, ‘‘मां, आप लोगों की  वजह से मैं न लिंडा को खोया. यह तो मेरी जिंदगी की बात थी.

फिर मैं ने आप लोगों की बात मानी ही क्यों? हमेशा से ही आप लोग मेरी जिंदगी में दखल देते आए हो. अब तो आप खुश हो न मां कि आप को किसी से कहना नहीं पड़ेगा कि तुम्हारे बेटे ने, तलाकशुदा व बच्चे की मां से शादी की. तुम्हें मेरी खुशी की परवाह नहीं है, लोग क्या कहेंगे इस की ज्यादा परवाह है.’’

रोहित ने कितने इलजाम लगाए थे मुझ पर. यहां तक कि मेरी परवरिश पर भी उस ने प्रश्नचिह्न लगाया था. सुन कर मुझे इतनी पीड़ा हुई कि आंसुओं का सैलाब सा उमड़ पड़ा फिर जल्द ही अपने को संभाल कर मैं ने रोहित से कहा, ‘‘मुझ पर इस तरह इलजाम मत लगाओ बेटा, तुम हम से इतनी दूर रहते हो…भला हम कैसे तुम्हारी जिंदगी में दखल दे सकते हैं? जो कुछ भी हुआ उसे बदला तो नहीं जा सकता? उस से सीख जरूर ली जा सकती है…लिंडा जिस तरह जिंदगी में आगे बढ़ चुकी है, तुम्हें भी आगे बढ़ना चाहिए,’’

इस पर रोहित और भड़क गया, कहने लगा, ‘‘मां बस करो, यह दर्शाना छोड़ दो कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं. एक हीरे को कांच समझ कर मैं ने ठुकरा दिया और इस की वजह सिर्फ आप और आप हो. मेरे लाख कहने पर भी कि लिंडा मुझे पसंद है, आप लोग समझते रहे कि पश्चिम कि लड़कियां अच्छी नहीं.’’

आप लोग कितना जानते हो उन की सभ्यता और संस्कृति के बारे में? इतने दिनों में मैं ने  उन्हें जितने करीब से जाना है, दिनप्रतिदिन मेरा उन से लगाव बढ़ ही रहा है. वे आप लोगों की तरह दकियानूसी नहीं है.’’ रोहित के इन इलजामों से मैं काफी आहत हो गई थी? मैं ने हमेशा ही बच्चों का भला चाहा था. रोहित के जिद पकड़ने पर क्या मैं ने उस का साथ नहीं दिया था? मैं ने उसे फिर से समझने की कोशिश की.

कांता मौसी का उदाहरण दिया. कांता मौसी का बेटा करण बिना मांबाप को बताए विदेशी लड़की से शादी कर के उसे घर ले आया. कांता मौसी ने जब दरवाजा खोला तो करण ने उन की बहू का परिचय उन से कराया. बेहोश हो कर गिर पड़ी थीं मौसी. फिर बाद में मौसी ने बहू को अपना लिया था. उन के 3 बच्चे भी हुए काफी साल बाद. बच्चों में से 2 तो किशोरावस्था तक पहुंच चुके थे, तीसरा अभी छोटा था.

तभी अचानक एक दिन उन की बहू घर छोड़ कर अपने देश लौट गई. बाद में पता

चला उस ने वहीं दूसरी शादी कर ली. मेरे ऐसे उदाहरणों का रोहित पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे उस ने मुझे दोषी ठहराया कि मैं चुनचुन कर ऐसे उदाहरण उस के सामने पेश करती हूं.

रोहित ने मुझे फोन करना बिलकुल बंद कर दिया, न ही मेरे फोन का जवाब देता था. कुछ दिन बाद मैं ने उसे संदेश भेजा, ‘‘बेटा, अगर तुम्हें लगता है कि जो कुछ तुम्हारी जिंदगी में घटित हुआ, उस की जिम्मेदार मैं हूं तो मैं तुम से माफी मांगती हूं. विश्वास करो, आगे से मैं तुम्हें कोई राय नहीं दूंगी. तुम अपने जीवनसाथी का चुनाव करने में स्वतंत्र हो. मैं तुम्हारी हर शर्त को मानने को तैयार हूं. मुझे मेरा पुराना हंसताखेलता रोहित वापस कर दो. पहले की तरह मुझे फोन किया करो.’’ मगर मेरी किसी भी दलील या मिन्नत का रोहित पर कोई असर नहीं हुआ.

मेरी दुखों की साथी मेरी बेटी रिया है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘बेटी सचसच बताओ, क्या मैं अच्छी मां नहीं हूं? मु?ा से कहां चूक हो गई कि रोहित आज मुझ से घृणा करने लगा है?’’

तब रिया ने कहा, ‘‘मां अपने आप को दोषी समझना बंद करो. आप ने कोई गलती नहीं की है.’’

जिस रिया को मैं ऊंचनीच समझाया करती थी वह मुझे समझने लगी, ‘‘मां, आप चिंता न करो. अभी रोहित बहक गया है. जिस दिन उस की अक्ल ठिकाने आएगी, उसे अपने कहे पर पछतावा होगा. जब आप ने कुछ गलत किया ही नहीं है, तो दुखी क्यों होती हो?’’

मुझे दुखी देख कर रिया ने रोहित से संपर्क साधने की कोशिश की. 1-2 बार उस ने रिया के फोन का जवाब भी दिया. पर जब भी रोहित उस से हमारे खिलाफ कुछ कहता, रिया के लिए वह बरदाश्त से बाहर हो जाता. दोनों की बातों का अंत झगड़े के रूप में होता रोहित के इस बरताव से मुझे बेहद दुख पहुंचा था. जब तब उस के बारे में सोचसोच कर मेरी आंखें भर आती थीं.

एक दिन मैं ने रवि से पूछा, ‘‘मैं हमेशा बकबक करती रहती हूं. आप पर इन सब बातों का असर नहीं होता?’’

तब रवि ने कहा, ‘‘रोहित के बरताव से दुख मुझे भी हुआ है. बच्चों के प्रति मैं ने अपना फर्ज ठीक तरह से पूरा किया है. इस के बावजूद रोहित मुझे गलत समझता है, तो ऐसा ही सही, मैं क्यों सोचसोच कर परेशान होऊं?’’

कहां तो मैं बच्चों की मुसीबत में पाल बन कर खड़ी रहती थी और आज कितनी असहाय और कमजोर पड़ गई हूं.

एक साल बीत गया रोहित का कोई फोन नहीं आया. एक रिया ही थी जो मेरा दुख सम?ाती थी. एक दिन रिया ने मुझे उदास देख कर चुटकी ली, ‘‘मां, भैया के इस बरताव का सब से ज्यादा फायदा किसे हुआ है जानती हो? मुझे हुआ है. तुम मेरे पास हो वरना 6 महीने तो तुम बेटे के पास ही रहतीं.’’

रक्षाबंधन का त्योहार आने वाला था. इसी बहाने रिया ने सोचा भैया को राखी भेज कर उस से संबंध सुधारने की कोशिश करेगी. रिया ने 1 महीने पहले ही राखी खरीद ली ताकि समय पर उसे मिल सके. रिया ने रोहित को फोन किया तो उसी कठोरता से रोहित ने पूछा, ‘‘क्या है? क्यों फोन किया?’’

कशमकश- भाग 2: क्या बेवफा था मानव

अगले दिन वसुधा ने मानव को दफ्तर की तरफ जाते देखा तो वह भी पीछेपीछे पहुंच गई. मानव अपनी कुरसी पर बैठ ही रहा था कि एक बरसों से अनजान मगर सदियों से परिचित खुशबू ने उसे पलभर के लिए चौंका दिया, संयत हो कर मानव ने धीरे से कहा, ‘‘आओ वसुधा, सबकुछ हो गया न, कोई दिक्कत तो नहीं हुई? करण कहां है?’’

सबकुछ ठीक हो गया मगर ठीक कुछ भी नहीं है. मैं समंदर में गोते लगाती एक ऐसी नैया हूं जिस का न कोई किनारा है न साहिल. नियति एक के बाद एक मेरी परीक्षाएं लेती आ रही है और यह सिलसिला चलता जा रहा है, थमने का नाम ही नहीं ले रहा. कभी नहीं सोचा था कि तुम से यों अचानक मुलाकात हो जाएगी. जो कुछ कालेज में हुआ उस के बाद तो मैं तुम से नजर ही नहीं मिला सकती, कितने बड़े अपराधबोध में जी रही हूं मैं.’’

‘‘तुम्हें एक अपराधबोध से तो मैं

ने बिना कहे ही मुक्त कर

दिया. जब मेरी आंखें ही नहीं तो नजर मिलाने का तो प्रश्न ही नहीं,’’ मानव ने एक फीकी मुसकान फेंकते हुए कहा.

‘‘मगर, तुम्हारी आंखें?’’ वसुधा ने रुंधे गले से पूछा.

‘‘लंबी कहानी है. मगर सार यही है कि पहली बार एहसास हुआ कि जातपांत के सदियों पुराने बंधन से हमारा समाज पूरी तरह से मुक्त नहीं हुआ है. जातिवाद के जहर को देश से निकलने में अभी कुछ वक्त और लगेगा. जब तुम्हारे रिश्तेदारों ने हमें बीकानेर फोर्ट की दीवार पर देखा तो वे अपना आपा खोने लगे. तुम्हारी बेवफाई ने आग में घी का काम किया. तुम ने तो बड़ी आसानी से यह कह कर दामन छुड़ा लिया कि मैं ने तुम्हें मजबूर किया मिलने के लिए और तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं, मगर मुझ से वे बड़ी बेरहमी से पेश आए.’’

‘‘मैं डर गई थी. मेरे पिता और भाई जातपांत को नहीं मानते, लेकिन आसपास के गांव और दूर के रिश्तेदार उन पर हावी हो गए थे. मुझ से उन्होंने कहा कि अगर मैं यह कह दूं कि तुम मुझे जबरदस्ती मिलने को मजबूर कर रहे हो तो उस से बिरादरी में उन की इज्जत बच जाएगी और इस के एवज में वे तुम्हें छोड़ देंगे, वरना वे तुम्हारी जान लेने को आमादा थे. जब सारी बात का मेरे पिता और भाइयों को पता चला तो वे बहुत शर्मिंदा भी हुए और उन्होंने अपने तमाम रिश्तेदारों से रिश्ता तक तोड़ दिया. उन्हें सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया. मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. तुम वहां से जा चुके थे. तुम्हें ढूंढ़ने की हमारी सारी कोशिशें नाकाम साबित हुईं.’’

‘‘तुम्हारे सामने तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया मगर तुम्हारे ओझल होते ही उन की हैवानियत परवान चढ़ गईर् और वह खेल तब तक चलता रहा जब तक कि मेरी सांसें न उखड़ गईं. मरा जान कर छोड़ गए वे मुझे. डाक्टरों ने किसी तरह से मुझे बचा लिया, मगर मेरी आंखें न बचा पाए. फिर उस के बाद जिंदगी ने करवट बदली. अंधा होने के बाद मैं ने पढ़ाई जारी रखी और आज ब्रेल लिपि के जरिए हासिल की गई मेरी उपलब्धियों ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया.’’

वसुधा की आंखों से आंसुओं की बरसात जारी थी, ‘‘शायद नियति ने मुझ से बदला लिया. तुम्हारी आंखों की रोशनी छीनने के अपराध में मुझे यह सजा दी कि मेरे करण की भी आंखें छीन ली. मुझे सिर्फ एक ही शिकायत है. गलती मेरी थी मगर सजा उस मासूम को क्यों मिली. अपराध मेरा था तो अंधेरों के तहखाने में मुझे डाला जाना चाहिए था, कुसूर मेरा था तो सजा की हकदार मैं थी, करण नहीं.’’

‘‘दिल छोटा न करो वसुधा और खुद को गुनाहगार मत समझो. करण के साथ जो हुआ वह एक हादसा था. मुझे यकीन है वह देख पाएगा. मैं ने उस की मैडिकल हिस्ट्री पढ़ी है. तुम्हे धैर्य रखना होगा. विश्वास के दामन को मत छोड़ो. देखना, एक सुबह ऐसी भी आएगी जब करण उगते हुए सूरज की लालिमा को खुद देखेगा,’’ मानव ने पूरे यकीन के साथ कहा.

‘‘और तुम? तुम कब देख पाओगे अपनी वसुधा को?’’ वसुधा ने ‘अपनी वसुधा’ शब्द पर जोर दे कर कहा.

‘‘वसुधा,’’ मानव की आवाज में कंपन था, ‘‘ऐसा सोचना भी मत. तुम एक ब्याहता स्त्री हो. तुम्हारा अपना एक परिवार है. आनंद जैसा अच्छे व्यक्तित्व का पति है. मैं जानता हूं वह तुम्हें बहुत चाहता है. किसी और के बारे में सोचना भी तुम्हारे लिए एक अपराध है.’’

‘‘मैं इनकार नहीं कर रही, मगर सचाई यह भी है कि मैं ने सिर्फ तुम्हें चाहा है. तुम्हें देखते ही मेरे सोए जज्बात फिर जाग उठे हैं. बुझे हुए अरमानों ने फिर से अंगड़ाइयां ली हैं,’’ वसुधा एक पल को रुकी, फिर मानो फैसला सुनाते हुए बोली, ‘‘अब मेरेतुम्हारे बीच में कोई नहीं आ सकता. तुम्हारा अंधापन भी नहीं. अगर आज मुझे यह मौका मिल रहा है तो मैं क्यों न फिर से अपनी खोई हुई खुशियों से अपने दामन को भरूं. आखिर, क्या गुनाह किया है मैं ने?’’

‘‘ऐसा सोचना भी हर नजरिए से गलत होगा,’’ मानव ने कुछ कहना चाहा.

‘‘क्या गलत है इस में?’’ क्या औरत को इतना हक नहीं कि वो अपना जीवन वहां गुजारे जहां उस का मन चाहे, उस शख्स के साथ गुजारे जिस की तसवीर उस ने बरसों से संजो रखी थी. क्या मैं दोबारा अपनी चाहत का गला घोट दूं?’’

‘‘तुम दोबारा बेवफाई भी नहीं कर सकती. पहली बार किया गुनाह, गलती हो सकती है, दोबारा किया गुनाह एक सोचासमझा जुर्म होता है और मेरा प्यार इतना गिरा हुआ नहीं है कि तुम्हें गुनाहगार बना दे.’’

अगले दिन फिर वसुधा मानव के आने से पहले ही उस के दफ्तर में पहुंच गई, साफसफाई करवाई, मेज पर ताजे फूलों का गुलदस्ता रखा और मानव का इंतजार करने लगी. इंतजार करतेकरते दोपहर हो गई. लंचटाइम में रमया जब दफ्तर में आई तो वसुधा को वहां पा कर चकित रह गई. ‘‘सर तो आज दफ्तर नहीं आएंगे, किसी कौन्फ्रैंस में गए हैं,’’ रमया ने यह कहा तो वसुधा ने एक ठंडी सांस ली, मायूसी से अपना बैग उठाया और अपने कमरे की ओर चल पड़ी.

शाम को रमया ने मानव को सारी बात बताई तो मानव चिंतित हो गया. उसे वसुधा से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा न थी. आखिर क्यों वसुधा उम्र के इस पड़ाव में ऐसी नादानी कर रही है? उस ने तो वसुधा की याद को मौत आने तक अपने सीने में दफन कर लिया था. क्यों वसुधा पुराने जख्मों को हरा कर रही है? क्यों नहीं सोच रही कि उस की गृहस्थी है. पति है, बच्चा है…अगले दिन जब उस ने फिर वसुधा को पाया तो उस की परेशानी और बढ़ गई. ‘‘तुम चाहो तो वापस दिल्ली लौट सकती हो, यहां करण…’’

‘‘जानती हूं, यहां करण की देखभाल होती रहेगी और वक्त आने पर आंखों के बारे में भी कुछ अच्छी खबर मिल जाएगी, मगर मैं दिल्ली तुम्हारे बगैर नहीं जाऊंगी. वहां जा कर आनंद से तलाक…’’ वसुधा कुछ कहना चाह रही थी मगर रमया को आते देख ठिठक गई.

वसुधा के आने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. रमया के हिस्से का काम भी वह बड़ी मुस्तैदी से करती. काम के बीच वह कई बार खुद के और मानव के रिश्ते के बारे में जिक्र छेड़ देती जिसे वह किसी तरह से टाल देता.

फेसबुक फ्रैंडशिप: भाग 3- वर्चुअल दुनिया में सचाई कहां है

लड़का कौफीहाउस में काफी देर इंतजार करता रहा. तभी उसे सामने आती एक मोटी सी औरत दिखी जिस का पेट काफी बाहर लटक रहा था. हद से ज्यादा मोटी, काली, दांत बाहर निकले हुए थे. मेकअप की गंध उसे दूर से आने लगी थी. ऐसा लगता था कि जैसे कोई मटका लुढ़कता हुआ आ रहा हो. वह औरत उसी की तरफ बढ़ रही थी.

अचानक लड़के का दिल धड़कने लगा इस बार घबराहट से, भय से उसे  कुछ शंका सी होने लगी. वह भागने की फिराक में था लेकिन तब तक वह भारीभरकम काया उस के पास पहुंच गई.

‘‘हैलो.’’‘‘आप कौन?’’ लड़के ने अपनी सांस रोकते हुए कहा.‘‘तुम्हारी फेसबुक…’’‘‘लेकिन तुम तो वह नहीं हो. उस पर तो किसी और की फोटो थी और मैं उसी की प्रतीक्षा में था,’’ लड़के ने हिम्मत कर के कह दिया. हालांकि वह सम?ा गया था कि वह बुरी तरह फंस चुका है.‘‘मैं वही हूं. बस, वह चेहरा भर नहीं है. मैं वही हूं जिससे इतने दिनों से मोबाइल पर तुम्हारी बात होती रही.

प्यार का इजहार और मिलने की बातें होती रहीं. तुम नंबर लगाओ जो तुम्हें दिया था. मेरा ही नंबर है. अभी साफ हो जाएगा. कहो तो फेसबुक खोल कर दिखाऊं?’’‘‘कितनी उम्र है तुम्हारी?’’ लड़के ने गुस्से से कहा. लड़के ने उस के बालों की तरफ देखा. जिन में भरपूर मेहंदी लगी होने के बाद भी कई सफेद बाल स्पष्ट नजर आ रहे थे.

‘‘प्यार में उम्र कोई माने नहीं रखती, मैं ने यह पूछा था तो तुम ने हां कहा था.’’‘‘फिर भी कितनी उम्र है तुम्हारी?’’‘‘40 साल,’’ सामने बैठी औरत ने कुछ कम कर के ही बताया.‘‘और मेरी 20 साल,’’ लड़के ने कहा.‘‘मुझे मालूम है,’’ महिला ने कहा.‘‘आप ने सबकुछ झूठ लिखा अपनी फेसबुक पर. उम्र भी गलत. चेहरा भी गलत?’’‘‘प्यार में चेहरे, उम्र का क्या लेनादेना?’’‘‘क्यों नहीं लेनादेना?’’ लड़के ने अब सच कहा. अधेड़ उम्र की सामने बैठी बेडौल स्त्री कुछ उदास सी हो गई.‘‘अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’‘‘की तो थी, लेकिन तलाक हो गया. एक बेटा है, वह होस्टल में पढ़ता है.’’‘‘क्या?’’ लड़के ने कहा,

‘‘आप मेरी उम्र देखिए? इस उम्र में लड़के सुरक्षित भविष्य नहीं, सुंदर, जवान लड़की देखते हैं. उम्र थोड़ीबहुत भले ज्यादा हो लेकिन बाकी चीजें तो अनुकूल होनी चाहिए. मैं ने जब अपनी फैंटेसी में श्रद्धा कपूर बताया, तभी तुम्हें समझ जाना चाहिए था.’’‘‘तुम सपनों की दुनिया से बाहर निकलो और हकीकत का सामना करो? मेरे साथ तुम्हें कोई आर्थिक समस्या नहीं होगी. पैसों से ही जीवन चलता है और तुम मुझे यहां तक ला कर छोड़ नहीं सकते.’’लड़के को उस अधेड़ स्त्री की बातों में लोभ के साथ कुछ धमकी भी नजर आई.‘‘मैं अभी आई, जाना नहीं.’’

अपने भारीभरकम शरीर के साथ स्त्री उठी और लेडीज टौयलेट की तरफ बढ़ गई. लड़के की दृष्टि उस के पृष्ठभाग पर पड़ी. काफी उठा और बेढंगे तरीके से फैला हुआ था. लड़का इमेजिन करने लगा जैसा कि फैंटेसी करता था वह रात में.लटकती, बड़ीबड़ी छातियों और लंबे उदर के बीच में वह फंस सा गया था और निकलने की कोशिश में छटपटाने लगा. कहां उस की वह सुंदर सपनीली दुनिया और कहां यह अधेड़ स्त्री. उस के होंठों की तरफ बढ़ा जहां बाहर निकले बड़बड़े दांतों को देख कर उसे उबकाई सी आने लगी.

अपने सुंदर 20 वर्ष के बेटे को देख कर मां अकसर कहती थी, मेरा चांद सा बेटा. अपने कृष्णकन्हैया के लिए कोई सुंदर सी कन्या लाऊंगी, आसमान की परी. इस अधेड़ स्त्री को मां बहू के रूप में देखे तो बेहोश ही हो जाए? लड़के को लगा फिर एक आंधी चल रही है और अधेड़ स्त्री के शरीर में वह धंसता जा रहा है. अधेड़ के शरीर पर लटकता हुआ मांस का पहाड़ थरथर्राते हुए उसे निगलने का प्रयास कर रहा है.

उसे कुछ कसैलाविषैला सा लगने लगा. इस से पहले कि वह अधेड़ अपने भारीभरकम शरीर के साथ टौयलेट से बाहर आती, लड़का उठा और तेजी से बाहर निकल गया. उस की विशालता की विकरालता से वह भाग जाना चाहता था. उसे डर नहीं था किसी बात का, बस, वह अब और बरदाश्त नहीं कर सकता था.

बाहर निकल कर वह स्टेशन की तरफ तेज कदमों से गया. उस के शहर जाने वाली ट्रेन निकलने को थी. वह बिना टिकट लिए तेजी से उस में सवार हो गया. सब से पहले उस ने इंटरनैट की दुनिया से अपनेआप को अलग किया. अपनी फेसबुक को दफन किया.

अपना मेल अकाउंट डिलीट किया. अपने मोबाइल की सिम निकाल कर तोड़ दी. जिस से वह उस खूबसूरत लड़की से बातें किया करता था जो असल में थी ही नहीं. झूठफरेब की आभासी दुनिया से उस ने खुद को मुक्त किया.

अब उसे घर पहुंचने की जल्दी थी, बहुत जल्दी. वह उन सब के पास पहुंचना चाहता था, उन सब से मिलना चाहता था, जिन से वह दूर होता गया था अपनी सोशल साइट, अपनी फेसबुक और ऐसी ही कई साइट्स के चलते. वह उस स्त्री के बारे में बिलकुल नहीं सोचना चाहता था.

उसे नहीं पता था कि लेडीज टौयलेट से निकल कर उस ने क्या सोचा होगा. क्या किया होगा? बिलकुल नहीं. लेकिन सुंदर लड़की बनी अधेड़ स्त्री तो जानती होगी कि जिस के साथ वह प्रेम की पींगे बढ़ा रही है, वह 20 वर्ष का नौजवान है और आमनासामना होते ही सारी बात खत्म हो जाएगी.

सोचा तो होगा उस ने. सोचा होता तो शायद वह बाद में स्थिति स्पष्ट कर देती या महज उस के लिए यह एक एडवैंचर था या मजाक था. कही ऐसा तो नहीं कि उस ने अपनी किसी सहेली से शर्त लगाई हो कि देखो, इस स्थिति में भी जवान लड़के मुझ पर मरते हैं. यह भी हो सकता है कि उसे लड़के की बेरोजगारी और अपनी सरकारी नौकरी के चलते कोई गलतफहमी हो गई हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह केवल शारीरिक सुख के लिए जुड़ रही हो, कुछ रातों के लिए.

हां, इधर लडके को याद आया कि उस ने तो शादी की बात की ही नहीं थी. वह तो केवल होटल में मिलने की बात कर रही थी. शादी की बात तो मैं ने शुरू की थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि अधेड़ स्त्री अपने अकेलेपन से निबटने के लिए भावुक हो कर बह निकली हो.

अगर ऐसा है, तब भी मेरे लिए संभव नहीं था. बात एक रात की भी होती तब भी मेरे शरीर में कोई हलचल न होती उस के साथ. उसे सोचना चाहिए था. मिलने से पहले सबकुछ स्पष्ट करना चाहिए था.

वह तो अपने ही शहर में थी, मैं ने ही बेवकूफों की तरह फेसबुक पर दिल दे बैठा और घर से झूठ बोल कर निकल पड़ा. गलती मेरी भी है. कहीं ऐसा तो नहीं…सोचतेसोचते लड़का जब किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा तो फिर उस के दिमाग में अचानक यह खयाल आया कि पिताजी के पूछने पर वह क्या बहाना बनाएगा और वह बहाने के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने लगा.

घर में झटपट से बनाएं साबूदाना फ्रूट बाउल

सुबह के ब्रेकफास्ट से लेकर रात के डिनर तक हर गृहिणी की एक ही समस्या होती है कि आज क्या बनाया जाए. लौकी, तोरई, कद्दू, पालक जैसी हरी सब्जियां औऱ बहुत तली भुनी, मिर्च मसाले वाली सब्जियों को भी रोज नहीं खाया जा सकता. ऐसे में बच्चों की डिमांड होती है टेस्टी खाना की. टेस्टी फूड हेल्दी नहीं होते ऐसे में माएं परेशान रहती है घर में टेस्टी और हेल्दी क्या बनाएं और बच्चे बड़े ही प्यार से खाएं हेल्दी डिश. तो लेड़ीज बिलकुल चिंता ना करें. घर में झटपट से बनाएं साबूदाना फ्रूट बाउल  और स्वीट पोटैटो सूप. ये रही रेसिपी, बच्चों से लेकर बड़े भी बड़े प्यार से खाएंगे.

  1. साबूदाना फ्रूट बाउल

सामग्री

1.   1/2 कप साबूदाना

2. 1/2 कप नारियल का दूध

 3. 3 बड़े चम्मच कंडैंस्ड मिल्क

 4.   थोड़े काजूबादाम के टुकड़े

5.   थोड़े से कटे फल सेब, अनार, संतरा, पाइनऐप्पल.

विधि

साबूदाने को पानी में भिगो कर उबाल लें. छलनी में डाल कर ठंडे पानी से धो लें. एक कड़ाही में कंडैंस्ड मिल्क और नारियल का दूध डाल कर गरम करें. फिर साबूदाना डाल कर 1-2 मिनट तक चला लें. फिर कटे फल और काजूबादाम डाल कर परोसें.

 2. स्वीट पोटैटो सूप

सामग्री

1.  2 शकरकंदी

 2.   1 बड़ा चम्मच हरी शिमलामिर्च कटी

 3.  1 बड़ा चम्मच लाल शिमलामिर्च कटी

 4.  1 बड़ा चम्मच पीली शिमलामिर्च कटी

 5.  1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर 

 6. 1 बड़ा चम्मच मक्खन

 7.   1/2 छोटा चम्मच चीनी

 8.   5-6 छोटेछोटे टुकड़े पनीर के

 9.  1 चुटकी दालचीनी पाउडर

10.   नमक स्वादानुसार.

विधि

1 शकरकंदी को छील कर पतलेपतले स्लाइस में काट लें. 1 शकरकंदी को उबाल कर छिलका निकाल कर मैश कर लें. कड़ाही में मक्खनगरम कर सभी शिमलामिर्च और शकरकंदी के स्लाइस डाल कर भूनें. नमक, कालीमिर्च और1 कप पानी डालें. शकरकंदी के पकने पर पनीर के टुकड़े, चीनी और मैश शकरकंदी डालें.ऊपर से 1 चुटकी दालचीनी पाउडर डाल कर गरमगरम परोसें.

सैलिब्रिटी आशियाना जो बना खास

आजकल होम इंटीरियर डैकोर यानी ऐथनिक लुक और कौंटैंपरेरी स्टाइल का ट्रैंड है. इस के लिए महंगे साजोसामान या फर्नीचर की आवश्यकता नहीं होती. अपनी रुचि, कलात्मकता, प्रबंधकीय दक्षता, नई सोच और जीवनशैली के आधार पर घर को मन मुताबिक बनाया जा सकता है. घर के इंटीरियर को देख कर व्यक्ति के व्यक्तित्व का कुछ हद तक अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि इंटीरियर व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होता हैआज इंटीरियर डिजाइनिंग में मिनिमलिस्ट, पेस्टल क्लर्स का जमाना है. कियारा अडवानी ने अपने घर में आइवरी रंग चूज किया है. जौन अब्राहम और जैक्लीन फर्नांडीस ने भी अपने घर में सफेद रंग कराया है और कई मौडर्न डिजाइन के फ्लौवर पौट्स और ग्रीन प्लांट्स से रंग का टच दिया है.अब शीशे की बड़ी खिड़कियों में पतले शीयर परदों का जमाना है, हैवी रंगीन परदों का नहीं. स्क्रीन के कलाकार भी दिनभर ग्रीनरूम में समय बिताने के बाद जब घर आते हैं तो उन का सुंदर घर उन्हें सुकून देता है. ये पल उन के अपने होते हैं. जहां न तो संवाद और न ही किसी दृश्य की शूटिंग के चर्चे होते हैं.

  1. रंगों की भूमिका

बिना इंटीरियर के घर आश्रम जैसा प्रतीत होता है. इंटीरियर से पता चलता है कि आप की जीवनशैली किस प्रकार की है ऐसे में यह जरूरी है कि आप अपने घर के कमरों की सजावट पर खास ध्यान दें. रंगों की भूमिका इंटीरियर करते वक्त सब से खास होती है. रंग ऐसे हों कि आंखों को चुभें नहीं.आज हलके रंग जो आंखों को आराम दें खास पसंद हैं. इन में सफेद औफ व्हाइट प्रमुख है.

इन के अलावा फूल बहुत पसंद किए जा रहे हैं. घर में हर तरफ  लटकने वाले फूलों के गमलों से काफी सजावट की जाती है. फूल आदि के पौधे हमेशा तरोताजा रखते हैं इन्हें आगेपीछे कर आप सजावट में नवीनता ला सकती हैं.घर हर व्यक्ति का सपना होता है फिर घर चाहे छोटा हो या बड़ा, उस में व्यक्ति 2 घंटे रहे या 4 घंटे, उसे जो शांति वहां मिलती है.

उसे बयां करना मुश्किल है. सैलिब्रिटीज अपने घर को फैलाने के लिए रंग औफ व्हाइट रखते हैं जिस में हलके हरे रंग का टच होता है. बैडरूम को थोड़ा ब्राइट रंग देते हैं जिस में एक दीवार पर कोई रंग होता है, पेंट किया होता है. इस के अलावा बैडरूम के ऊपर छत में चांदतारे सजाते हैं ताकि अगर रात में लाइट बंद कर दी जाए तो ऐसा लगे कि खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं.

2. क्लासिक लुक

इस के अलावा युवा सैलिब्रिटीज हर जगह सौफ्ट टौएज बहुत रखते हैं चाहे टीवी के ऊपर हों या ड्राइंगरूम में. हर तरह के सौफ्ट टौएज से सजाए परदों का रंग दीवारों से मैच करता होता है, जो मस्टर्ड रंग के होते हैं.हलके रंग का प्रयोग करने से सैलिब्रिटीज घर को स्पेशियस बनाते हैं. रंग का टच देने के लिए गोल्डन और लाल रंगों का भी प्रयोग करा जा सकता है. घर का फर्नीचर ब्राउन और लाइट कलर का हो. घर के लैंप शेडों के क्लासिक लुक पर आधारित हो सकते हैं.रंगों के साथसाथ रोशनी की भी सही व्यवस्था हर कमरे में की जानी जरूरी है. घर को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए क्रिस्टल कलैक्शन कर सकते हैं. इन की साफसफाई घर वालों को खुद ही करनी चाहिए. सजावट में बीचबीच में कुछ न कुछ बदलाव अवश्य करते रहें.

3. सपनों सा बनाएं

घरकलाकारों को सिर्फ अभिनय का शौक ही नहीं होता है बल्कि उन्हें घर को सजाने में भी आनंद आता है. उन्हें घर में हर चीज को देख कर खुशी मिलती है जिसे शब्दों में बताना मुश्किल है. हर सैलिब्रिटी अभिनेत्री हाउस मेकर भी होती है. घर में नौर्मल फील हो. पार्टी में चीजें टूटें नहीं, यह खयाल रखें.कई सैलिब्रिटीज को इंटीरियर करना सब से अधिक पसंद होता है. पूरे दिन की थकान के बाद जब वे घर आते हैं तो वे अपने घर का माहौल ऐसा चाहते हैं जहां उन्हें हर वस्तु को देख कर सुकून और खुशी मिले और अपना खुद का योगदान दिखे.

बेटी की पिता बनने की खुशी को अभिनेता मोहित रैना ने कैसे शेयर किया, पढ़ें इंटरव्यू

मोहित रैना एक मॉडल और अभिनेता है. उन्होंने कई टीवी धारावाहिकों, फिल्मों और वेब सीरीज में काम किया है. वे हर अभिनय को चुनौतीपूर्ण समझते है और उसे सजीव करने के लिए कड़ी मेहनत करते है. वर्ष 2002 मे वह मॉडलिंग से कैरियर की शुरुआत करने के लिए मुंबई आए, क्योंकि उन्हें लगता था कि मॉडलिंग उन्हें अभिनय में काम दिलाएगी और उन्होंने इसके लिए अपने 107 किलोग्राम के वजन को 29 किलोग्राम घटाया, ताकि वह साल 2005 ग्रासिम मिस्टर इंडिया मॉडलिंग प्रतियोगिता में भाग ले सकें. उन्होंने उस प्रतियोगिता भाग लिया और उसमें टॉप पांच प्रतियोगिता में रहे, जिससे उन्हें इंडस्ट्री में पहचान मिली.

मोहित का अभिनय कैरियर साल 2004 में साइंस फिक्शन टीवी धारावाहिक ‘अंतरिक्ष’ से शुरू हुआ. इसके बाद उन्हें कई धारावाहिकों में काम करने का अवसर मिला और उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई. सीरियल ‘चक्रवर्ती अशोक सम्राट’ में भी उन्होंने वयस्क सम्राट अशोक की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया था. हिंदी फिल्म द सर्जिकल स्ट्राईक में भी उन्होंने कर्नल करण कश्यप की भूमिका निभाई, जो काफी लोकप्रिय रही. मोहित रैना की कई वेब सीरीज को दर्शकों ने खास पसंद किया है, जिसमे  ‘काफिर’, ‘भौकाल’, ‘मुंबई डायरीज 26/11’ आदि शामिल हैं.

वर्ष 2022 को उन्होंने गर्लफ्रेंड अदिति शर्मा से शादी की, जिसकी जानकारी मोहित रैना ने खुद सोशल मीडिया अकाउंट पर तस्वीरें शेयर कर दिया था. साल 2023 में वे बेटी के पिता बने है और खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे है. सूत्रों की माने तो इससे पहले मोहित रैना का अफेयर मौनी रॉय के साथ था, लेकिन किसी वजह के चलते दोनों का ब्रेकअप हो गया.

मोहित रैना की वेब सीरीज ‘द फ्रीलांसर’, डिजनी + हॉट स्टार पर रिलीज हो चुकी है, जिसमे उनके अभिनय सभी को पसंद कर रहे है. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की, पेश है कुछ अंश.

इस वेब सीरीज में काम करने की उत्सुकता के बारें में मोहित का कहना है कि मेरे लिए ये बहुत अधिक उत्साह बढ़ने वाला रहा है, क्योंकि मैंने इससे पहले कभी ऐसी भूमिका नहीं निभाई है. ये जीरो टू हीरो की भूमिका है, जिसमें मैं महाराष्ट्र की एक पुलिस की भूमिका निभा रहा हूँ, जिसके जीवन में कुछ ऐसे हादसे होते है, जिसकी वजह से वह जीवन के एक डार्क फेज में चला जाता है, जहाँ उसकी मुलाकात अनुपम खेर, एक मेंटर से होती है और वे उस फेज से उन्हें निकालते है. ये कहानी जीवन की कई भावनाओं से गुजरता है, ये चुनौतीपूर्ण कहानी है, जिसे करने में अच्छा लगा. इस चरित्र से मैंने बहुत कुछ सीखा हूँ, हर किसी को कभी न कभी किसी डार्क फेज से गुजरने के लिए तैयार रहना पड़ता है. मेरे लिए भी चरित्र को समझना कठिन था.

 संघर्ष

मोहित कहते है कि मेरे रियल लाइफ में भी कई बार डार्क फेज आये जब लगा था कि एक्टिंग में  कुछ नहीं होगा, लेकिन समय के साथ – साथ मैंने धीरज रखा और मैं आगे बढ़ा. शुरू में मैं मनोरंजन की दुनिया में काम करना चाहता था और मॉडलिंग से मैंने काम शुरू किया, लेकिन बहुत जल्दी समझ में आया कि लोगों तक पहुँचने के लिए मुझे कुछ अच्छा अभिनय करना पड़ेगा, जो मुझे मिला.

बेटी की पिता बनने का अनुभव

मोहित अब बेटी के पिता बन चुके है और अपने अनुभव को शेयर करते हुए कहते है कि बेटी की पिता बनने का अनुभव बेहतरीन है, इसे रोज सुबह और शाम को जीता हूँ. इससे मैं अपने पेरेंट्स की मेहनत को समझ पाता हूँ. ये सही है कि जब तक कोई उस दौर से नहीं गुजरता, पेरेंट्स की बातें समझ नहीं सकता. मेरा वही दौर चल रहा है, आज लगता है कि पेरेंट्स की डांट-फटकार के पीछे भी कई सारी अच्छी बातें होती है, जिसकी वजह से मैं आज एक अच्छा इंसान बन पाया. मैं भी एक अच्छा पिता बनने की कोशिश में हूँ और बेटी की डायपर भी बदल रहा हूँ. मैं बच्चे के सारे काम करता हूँ और उसके साथ समय बिताता हूँ.

मेकर्स की है जिम्मेदारी

वेब सीरीज की कहानी में बदलाव बनाए रखना कितना जरुरी है? पूछने पर वे कहते है कि मेरे हिसाब से हर प्लेटफॉर्म पर हर तरह की कहानियों का समावेश होता है. ये सभी प्लेटफॉर्म फोलो करते है, जिसमें थ्रिलर, रोमांस, कॉमेडी आदि सब जरुरी होता है. इसे सभी जेनरेशन के देखने लायक बनाना प्रोड्यूसर और डायरेक्टर चाहते है, लेकिन कभी – कभी मेकर्स से गलती हो जाती है. देखा जाय तो कोशिश हमेशा अच्छी कहानियों के कहने की ही होती है.

किसी को भी उस पर शक नहीं करना चाहिए, क्योंकि मेकर्स बहुत जिम्मेदार होते है. डिजिटल मीडिया इतना स्ट्रोंग होने की वजह से उन्हें ये मौका मिला है कि किताबों में बंद कहानियों को ओटीटी पर दिखाया जाने लगा है. इसे ‘फॉर ग्रांटेड’ नहीं लेना है. कहानियों को कहने में गलतियाँ करने पर दर्शक उसे रिजेक्ट कर देते है और इन गलतियों से मेकर्स को सीख भी मिलती है. जिसे सुधार कर आगे बढ़ना है. दर्शक सबसे बड़ी आलोचक है, उनके हिसाब से ही एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री चलती है, क्योंकि वे सब्सक्रिप्शन, पैसे देकर लेते है, समय निकालकर हमें देखते है. उनके पैसों की वैल्यू देना हर मेकर्स की जिम्मेदारी होती है.

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