हमसफर: भाग 3- प्रिया रविरंजन से दूर क्यों चली गई

मौसम में बदलाव आया. वसंत विदाई पर था. टेसू के फूलों से प्रकृति सिंदूरी हो गई थी. मैं जब भी रविरंजन को याद करती, दिल में अंगारे दहक जाते. रवि कह के गए थे कि जब भी मेरी जरूरत हो कहना, मैं चला आऊंगा पर आए नहीं थे. गरम हवा के थपेड़े

तन को   झुलसाने लगे थे. मैं ने लंबी छुट्टी पर जाने का मन बना लिया. फोन से मां को सूचित भी कर दिया.

बहुत दिनों बाद मां के पास पहुंची तो मु  झे लगा जैसे मेरा बचपन लौट आया है. अकसर मां की गोद में सिर रख कर लेटी रहती. मां भी दुलार से कहतीं कि बस, तेरी एक नहीं सुनूंगी. कई घरवर देख रखे हैं. अब भी चेत जा. अपना कहने वाला कोई तो होना चाहिए, मैं और कितने दिन की हूं.

उत्तर में मैं ने मां को साफसाफ कह दिया कि मां मेरी जिंदगी में दखल मत दो. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. अभी वर्तमान में जी रही हूं. कल की कल देखी जाएगी. और हां मां, मेरी कुछ कुलीग मसूरी जा रही हैं छुट्टियां मनाने, उन के साथ मैं ने भी जाने का प्रोग्राम बना लिया है. बस 2 दिन बाद ही जाना है.

मसूरी में मैं ने एक कौटेज बुक करा लिया था. दरअसल, मैं अपना मन शांत करने के लिए एकांत में कुछ दिन बिताना चाहती थी. मां से मैं ने   झूठ ही कह दिया था कि मेरी फ्रैंड्स मेरे साथ जा रही हैं. सच तो यह था कि रवि द्वारा दी गई चोट ने मु  झे बड़ी पीड़ा पहुंचाई थी. एकांत शायद मु  झे राहत दे यह सोचा था मैं ने, इसीलिए अकेले मसूरी चली आई थी.

मसूरी में सैलानियों की टोलियां थीं और मैं बिलकुल अकेली अलगथलग घूमती. एक दिन अचानक एक 14-15 साल की किशोरी मेरे सामने आ खड़ी हुई. नमस्ते की और बोली, ‘‘आप शायद अकेली हैं. हमारी कंपनी लेना चाहेंगी? मैं और मेरे पापा हैं, हमें खुशी होगी आप के साथ. वे आ रहे हैं मेरे पापा.’’

फिर हमारा परिचय हुआ और लगभग रोज हमारे प्रोग्राम साथ बनने लगे.

हम अपनेअपने कौटेज से चल कर नियत समय पर, नियत स्थान पर पहुंच जाते. पर एक दिन मेरा मन निकलने को नहीं किया क्योंकि मेरा माथा तप रहा था. मैं अवचेतनावस्था में सोती रही.

शाम गहरा गई थी. ज्वर का जोर कम हुआ तब मैं ने आंखें खोलीं. देखा कि राजीव और उन की बेटी दोनों मेरे पास बैठे हैं. लड़की मेरे सिरहाने बैठी मेरा सिर दबा रही थी.

‘‘यह अचानक आप को क्या हो गया मिस प्रिया? हम तो चिंतित हो उठे थे. अब आप

कैसी हैं? मेरे पास दवा थी मैं ले आया हूं,

नीलू बेटा चाय बनाओ और आंटी को दवा दो,’’ राजीव बोले.

मैं ने बच्ची की ओर देखा. मासूम सा चिंतित चेहरा. मेरे ज्वर ने दोनों को उदास कर दिया था. मैं द्रवित हो उठी.

मैं सोचने लगी कितना अंतर है रवि और राजीव में. एक बरसाती नदी सा चंचल, दूसरा सागर सा शांत. मैं ने सोच पर लगाम लगाई. मैं इस अकेलेपन से डरने क्यों लगी हूं? मैं सदा यही सोचा करती कि रवि के अलावा मेरे जीवन में अब किसी पुरुष की जगह नहीं. पर राजीव… जागजाग कर दवा देना, कभी दूध गरम करना कभी पानी उबालना. ये नहीं होते तो इस अनजान जगह में बीमारी के बीच कौन होता मेरे पास?

मैं बहला रही थी अपनेआप को, भाग रही थी खुद से दूर. शायद सोच में डूब गई थी कि राजीव ने टोका, ‘‘क्या सोच रही हैं प्रियाजी?’’

‘‘आप के विषय में, आप नहीं जानते आप ने मु  झे क्या दिया है. अकेलेपन और अंतर्द्वंद्व के भयावह दौर से गुजर रही हूं मैं.’’

‘‘देखिए प्रियाजी, आप बिलकुल फिक्र न करें. आप के ठीक हो जाने के बाद ही हम यहां से जाएंगे. मेरी बच्ची नीलू को आप ने ममता भरा जो प्यार दिया है, वह उसे इस से पहले नहीं मिला. वह चाह रही है कि आप सदा उस के साथ रहें. जब उस ने अपनी मां को खोया, तब बच्ची थी मात्र 2 साल की. बाकी मेरे विषय में आप जान चुकी हैं और मैं आप के. आप सम  झ रही होंगी, मैं क्या कहना चाह रहा हूं?’’

‘‘मैं सम  झ रही हूं, राजीवजी पर अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं. इत्तफाक से हम दोनों का कार्यस्थल दिल्ली है. मैं बाद में आप से बात करती हूं.’’

छुट्टियां पूरी होने पर मैं मां के पास न लौट कर सीधे दिल्ली पहुंची.

घर इतने दिनों से बंद था. खोला तो लगा कि एक अनजानी रिक्तता हर तरफ पसरी थी. औफिस पहुंची तो वहां सन्नाटे भरी गहमागहमी थी. ज्ञात हुआ कि मिस सुजान की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. सुजान मेरे ही साथ काम करती थी. मैं स्वयं अपनेआप से उबर नहीं पा रही थी फिर भी सुजान को देखने अस्पताल पहुंची.

उस के आसपास अपना कहने वाला कोई नहीं था. मांबाप की मौत के बाद वह बिलकुल अकेली थी. उस की मानसिकता मेरे जैसी ही थी. अपने अहं, अपनी स्वतंत्रता की चाह में उस ने विवाह नहीं किया था. दिल की बातों को वह किसी से शेयर नहीं कर पाती थी और आज उस का परिणाम उस के सामने था. लोग कह रहे थे कि इसी कारण वह डिप्रैशन और मानसिक बीमारी की शिकार हो गई.

शायद मेरी मां इसी कारण मेरी चिंता करती रहती हैं, यह सोच कर मैं ऐसी दुखद और त्रासद स्थिति के लिए भयभीत हो उठी.

आगे का पूरा सप्ताह मैं ने ऊहापोह की स्थिति में गुजारा. मैं दोराहे पर खड़ी थी. कोई फैसला लेना कठिन हो रहा था. जीवन की

नौका अथाह जल में घूमती अपनी दिशा खो बैठी थी. किनारा उस की पहुंच से दूर होता जा रहा था. कभीकभी लगता कि मां का कहना मान लूं. पर क्या मां राजीव जैसे व्यक्ति से शादी करने की आज्ञा देंगी, जिस की एक बेटी है और जो विधुर है?

काफी सोचविचार के उपरांत मैं ने राजीव को फोन लगाया क्योंकि उन का और उन की बेटी का प्रस्ताव ही मु  झे उचित लगा. मैं ने फोन पर बस इतना ही कहा, ‘‘इस अकेलेपन में मु  झे आप की जरूरत है.’’

शाम   झुक आई थी. मैं ने कमरे की खिड़की खोली तो ठंडी हवा के   झोंके के साथ देखा कि राजीव की कार मेरे घर के नीचे आ लगी थी और वे अपनी बेटी के साथ मुख्य द्वार से प्रवेश कर रहे थे. मैं खुशी से झूम उठी. मु  झे लगा कि यही सच है, यही सृष्टि का नियम है. मां को बताना ही होगा, उन्हें मानना ही होगा.

इस फेस्टिव सीजन दिखाएं अपनी क्रिएटिविटी

“आई  तीज बिखेर गई बीज, आई  होली भर लें गई झोली” आप सोच रहें होंगे की इस पंक्ति का क्या अर्थ है तो ठहरिये जरा यह एक कहावत है जो हमारे त्योहारों से जुडी हुई है जी हां जैसे  ही सावन में तीज आती है तो वह अपने साथ ढेर सारे त्योहारों को संग लाती है और होली के त्यौहार तक हिन्दू धर्म में त्योहारों कि जैसे धूम मची रहती है लेकिन होली आती है तब वह अपने साथ सभी त्योहारों को लें जाती है और त्योहारों का यही सिलसिला  चलता रहता है त्यौहार ना सिर्फ हमें ख़ुशी देते है बल्कि एक दूसरे के साथ समय बिताने का मौका भी देते हैं  त्योहारों के आते ही सभी में एक खास उत्साह उमड़ने लगता है ख़ासकर महिलाओं में.

किसी भी त्यौहार से पहले ही उनकी तैयारियां शुरू होने लगती हैं. अब जैसे कि नवरात्रि, करवाचौथ दिवाली जैसे  त्यौहार आने वाले है इन त्योहारों को लेकर जो महिलाओं के मन में उत्साह होता है वह देखते बनता है यानि कि कैसे वो इन त्योहारों पर तैयार होंगी ,क्या वो पहनेगी  ,कैसे वो अपने घर को सजाएंगी, कैसे वो अपना फेस्टिव सीजन सेलिब्रेट करेंगी. तो आज इस लेख में हम आपके लिए लाये है कुछ ऐसे टिप्स जिन से आपकी ड्रेसिंग कि समस्या आपकी पुरानी साड़ी से  ही कम हो सकती है  तो इस फास्टिव सीज़न में अपनाएं ये  ट्रिक्स और और अपनी पुरानी साड़ी  को हैवी या डिजाइनर गोटा वर्क के साथ  दें ये नए लुक.

  1. बनारसी या सिल्क साड़ी

पुरानी बनारसी या सिल्क की साड़ी से आप खूबसूरत लहंगा या फिर इंडो वेस्टर्न स्कर्ट सिलवा सकती है. इस तरह की साड़ी से कलीदार या ए लाइन कट का लहंगा बहुत ही खूबसूरत लगता है इसके साथ में सारी के पल्ले से आप ब्लाउज तैयार करा सकती है या कांट्रेस्ट ब्लाउज भी पहन सकती हैं बनारसी या सिल्क में अक्सर डीप नैक बहुत जचता है आप चाहें तो ट्राई  कर सकती हैं बेहतर होगा की साड़ी के बॉर्डर को पहले कट कर लें व ऊपर से स्टीच कर के लेस के तौर  पर इस्तेमाल करें ऐसा करने से साड़ी वाला लुक बिलकुल खत्म हो जाएगा. साथ  ही आप बनारसी, सिल्क और कांजीवरम जैसी भारी साड़ियों से ओवरकोट बनाएंगी, तो यह और सुंदर दिखेगा और आप इन्हें शादी या किसी इवेंट में भी पहन सकेंगी.

 2. बांधनी साड़ी

वैसे तो यह बहुत पुराने समय से महिलाओं की पसंद बनी रही हैं लेकिन यदि आप अपनी साड़ी से  बोर हो गई हैं तो आप उसमे घेरदार सलवार के साथ सूट या  लॉन्ग सूट तैयार  करा सकती हैं पारंपरिक और वेस्टर्न दोनों तरह के परिधान पर कैरी करने के लिए आप लॉन्ग या शार्ट  जैकेट स्टीच  करा सकती हैं आज कल बँधानी  शर्ट्स, स्कर्ट, सहारा पेंट या लेंहगा भी तैयार कर सकती हैं नवरात्री में डांडिया नाइट्स में यह प्रिंट काफ़ी  चलन में रहता हैं यह  प्रिंट आपको  एक नया लुक देने में मदद करेगा.

 3. प्लेन या शिरफोन साड़ी

आप प्लेन साड़ी  से खूबसूरत लहंगा तैयार करा सकती हैं जिसमे आप हैवी गोटा लेस लगवाएं व इसके साथ कांट्रेस्ट हैवी ब्लाउज बहुत फ़ब्ता हैं दुप्पटा आप चाहें  तो बची हुई साड़ी से ही निकाल  सकती हैं शिरफोन साड़ी के वन  पीस फ्रॉक या घेरदार सूट सिलवा  सकती हैं साथ ही इन दिनों शरारा फिर से ट्रेंड में है. आप साधारण प्लेन या प्रिंटेड किसी भी तरह की साड़ी का शरारा, प्लाजो हैवी या डिजाइनर गोटा वर्क के साथ बनवा सकती हैं. उसके साथ क्राॅप टाॅप, ब्रालेट या कुर्ता पेयर कर सकती हैं. जो आपको इंडो वेस्टर्न लुक देने में मदद करेगा.

 4. साटन की साड़ी

साटन की साडी में  आप मोटा गोटा लगा कर हैवी लेस के साथ स्टीच कराएं व ब्लाउज पर आप थोड़ा वर्क करा सकती हैं या  हैवी कांट्रेस्ट ब्लाउज भी बहुत जचेगा।  साटन साड़ी से आप  लॉन्ग श्रग  तैयार करा सकती हैं जिसे आप सूट,साड़ी,लहंगे, या पेंट के साथ भी डाल सकती हैं यह आपको परफेक्ट इंडो वेस्टर्न लुक देगा. तो आप हैं ना इस फेस्टिव सीजन में पुरानी साड़ीयों को नया लुक देने के लिए तैयार

सत्ताधारी पार्टी की मनमानी

स्कूल  व कालेजों की टैक्स्ट बुक्स में बदलाव की फिराक में भारतीय जनता पार्टी सरकार उस दिन ही जुट गई जिस दिन वह सत्ता में आई थी. यह मामला अब गहरा गया है क्योंकि योगेंद्र यादव व सुहास पलशिकर ने एनसीईआरटी को नोटिस दिया कि उन के नाम टैक्स्ट बुक डैवलपमैंट कमेटी से हटा दिए जाएं क्योंकि इन किताबों को इतना बदल डाला गया है कि उन की असली शक्ल रह ही नहीं गई है. इतना ही नहीं, इन 2 के बाद 33 और विशेषज्ञों ने कह दिया कि सलाहकार समिति से उन के नाम हटा दिए जाएं.

विश्व के कई देशों में वहां की सरकारों ने पाठ्यपुस्तकों को बदल कर झूठा इतिहास और झूठी संस्कृति फैलाई. वर्ष 1917 के बाद सोवियत संघ में लेनिन और स्टालिन ने यह काम रूस में जम कर किया और 1932 में सत्ता में आने के बाद एडोल्फ हिटलर ने जरमनी में किया.

इतिहास और संस्कृति की झूठी व्याख्या के जरिए आम जनता को बहकाने का काम राजा लोग हमेशा करते रहे हैं. वे अपने को बड़ा, और बड़ा, ईश्वर के निकट दिखाने की कोशिश करते रहे हैं और इजिप्ट में अबू सिंबल के मंदिरों से ले कर राज्य के पिरामिडों तक किया गया. इस में दूसरे डरें या नहीं, देश की अपनी प्रजा जरूर प्रभावित हो व डर जाती है.

इस प्रचार का शासक को सब से बड़ा लाभ यह होता है कि उस के लिए जनता पर टैक्स लगाना आसान हो जाता है और इस संस्कृति व इतिहास की रक्षा के नाम पर विरोध करने वालों को मारने के लिए सेना, पुलिस व देशभर में फैले सरकारी गुंडा तत्त्वों को एक बल मिल जाता है.भारतीय जनता पार्टी को ये सब लाभ मिल रहे हैं. सरकार दनादन टैक्स बढ़ा रही है. बारबार नोटबंदी कर के पैसा लूट रही है.

पंडितों की अच्छी कमाई होने लगी है और देशभर में भव्य मंदिर व पार्टी के विशाल कार्यालय बनने लगे हैं. धर्म, संस्कृति, इतिहास की झूठी कहानियों को सुना कर भक्तों की फौज को कभी कांवड़ यात्रा में धकेला जाता है, कभी कुंभ में लाया जाता है तो कभी तीर्थों के लिए पहाड़ों, जंगलों और मैदानों के मंदिरों में ले जाया जाता है जो हर रोज फैल रहे हैं और जिन में गुप्त कमरों में धर्म है, औरतें हैं और हथियार भी. आम जनता इस ढोल को बजाने से सुखी हो रही है, इस की कोई गारंटी नहीं है.

पिछले साल ही कम से कम 6,500 अरबपति लोगों ने भारत छोड़ कर दूसरे देशों की नागरिकता ले ली. अमेरिका में ऊंचे पदों पर नौकरियों के लिए भारतीय युवा सब से आगे हैं. छोटेछोटे देशों ने इंग्लिश मीडियम के मैडिकल व इंजीनियरिंग कालेज खोल लिए हैं जहां अपनी संस्कृति व इतिहास का झूठा ढोल पीटने वाले हर रोज प्लेन में बैठ कर जा रहे हैं.

यह बदलाव अगर काम का होता तो भारत से बाहर बसे 3 करोड़ से ज्यादा मूल भारतीय भारत लौटते. इस महान इतिहास के बावजूद, भाजपाभक्ति के बावजूद भारतीय भाग रहे हैं तो इसलिए क्योंकि इस झूठ की सचाई सामने जो है.

मेल पार्टनर वर्जिन है या नहीं

आज के समय में लड़का हो या लड़की, अधिकतर शादी से पहले ही सैक्स के बारे में जानने की चाह रखते हुए पोर्न वीडियो देखना पसंद करने लगते हैं. ऐसे में उन्हें थोड़ीबहुत जानकारी हासिल हो जाती है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं की उन्हें सैक्स का अनुभव है.

असल में सैक्स का अनुभव सैक्स करने से ही आता है. अब ऐसे में आप कैसे जान सकती हैं कि आप का मेल पार्टनर वर्जिन है या नहीं. सब से पहले आप यह जान लें की वर्जिनिटी परखने का कोई टैस्ट नहीं है. आमतौर पर लड़कियों के मामले में लोगों की राय बनी होती है कि लड़की का यदि हाइमन टूट जाता है तो इस का मतलब वह लड़की वर्जिन नहीं है. मतलब, वह पहले भी सैक्स कर चुकी है और कई बार ऐसी गलतफहमी के चलते रिश्ते टूट तक जाते हैं.

हालांकि डाक्टर्स के अनुसार हाइमन योनि के पास एक पतले परदे के रूप में होता है. ऐसा भी संभव नहीं है कि यह हर लड़की में हो. कई बार जन्म के समय लगभग 10-15 प्रतिशत लड़कियों के शरीर में हाइमन नहीं होता है. इसलिए हाइमन टूटने से कौमार्य खोने का कोई मतलब ही नहीं बनता है. यहां तक कि यह हाइमन कई बार साइकिलिंग करते समय, अधिक वजन उठाने से या टम्पून बदलते समय भी टूट जाता है.

यदि बात करें लड़कों की वर्जिनिटी की तो इस के लिए कोई शारीरिक या कोई जांच का तरीका नहीं है लेकिन आप कुछ संकेतों के जरिए जान सकती हैं कि आप का पार्टनर आप से पहले भी किसी और के साथ सैक्स कर चुका है. तो चलिए जानते हैं ऐसे संकेतों के बारे में.

घबराहट, एंग्जाइटी और शरमाना

90 फीसदी पुरुषों और महिलाओं को पहली बार सैक्स करने के दौरान परफौर्मेंस एंग्जाइटी होती है जिस का कारण उन का सैक्स के प्रति अतिउत्तेजना है, जो घबराहट को बढ़ाता है. यदि आप का साथी आप के साथ सैक्स तो करना चाहता है लेकिन आप को छूने से भी घबरा रहा है तो यह संकेत है कि यह उस की फर्स्ट टाइम सैक्स अपील है.

कंडोम का इस्तेमाल सही से न कर पाना

जिस पुरुष को कंडोम के इस्तेमाल का कोई ज्ञान न हो और उस का इस्तेमाल कर पाना मुश्किल हो रहा हो तो हो सकता है कि यह उस का पहला चांस हो. इस का मतलब यह नहीं है कि उस ने कभी सैक्स न किया हो. हो सकता है कि उस ने पहले सैक्स के दौरान कंडोम का प्रयोग ही न किया हो.

चुंबन और फोरप्ले की समझ न होना

किसी के बीच संबंध बनाने से पहले सब से पहला कदम ‘किस’ से जुड़ा होता है. वर्जिन लड़का सही तरिके से अपनी पार्टनर को चुंबन कर पाने में भी असहज होता है. जो पहले भी सैक्स कर चुके होते हैं वे स्मूच या सीधे लिपलौक किस करने के लिए उत्तेजित होते हैं.

सैक्स में फोरप्ले का बहुत बड़ा रोल होता है क्योंकि फोरप्ले लड़के व लड़की दोनों को सुखद सैक्स करने के लिए प्रेरित करता है. जिसे सैक्स का अनुभव होगा, वह पहले फोरप्ले जरूर करना चाहेगा. साथ ही, उसे बेहतर सैक्स मूव्स की जानकारी होगी जिस के जरिए वह लड़की को अच्छे से संतुष्ट करने की कोशिश करेगा. वहीं, जो पहली बार सैक्स कर रहा है उसे सही जानकारी नहीं होती है और वह फोरप्ले न कर के सैक्स करने की जल्दी में होता है.

सैक्स में परेशानी व जल्दी डिस्चार्ज होना

पहली बार संबंध बनाने वाले लड़के को बढ़ती हुई कामोत्तेजना के कारण जल्दी डिस्चार्ज होने की संभावना होती है. वहीं इंटरकोर्स करते समय सही जगह पर एंटर करने में उन्हें परेशानी आती है जबकि पहले सैक्स कर चुके लड़के को अनुभव होता है, जिस से उन्हें इंटरकोर्स करने में समस्या नहीं होती.

पार्टी का सैंटर औफ अट्रैक्शन कैसे बनें

पार्टी कोई भी हो, चाहे शादी की या इंगेजमैंट की, उस के लिए सजनेसंवरने का शौक सभी को होता है. बात जब किसी फंक्शन में जाने की आती है तो हर कोई सुंदर दिखना चाहता है ताकि लोगों की नजरें उस पर टिक जाएं और जब तक किसी की तारीफ न मिले तब तक लगता ही नहीं कि अट्रैक्टिव लग रहे हैं.सही भी है तैयार हों और कोई तारीफ भी न करे तो क्या फायदा इतना तैयार होने का. ऐसे मौके पर आप भी अपने को कुछ खास दिखाना चाहती हैं तो जानिए पार्टी मेकअप और हेयरस्टाइल के कुछ टिप्स जिस से आप लगेंगी खूबसूरत और सब से अलग.

पार्टी में कैसे सुंदर व अट्रैक्टिव दिखें इसे ले कर मेकअप डिजाइनर और हेयरस्टाइलिस्ट ने हम से बात करते हुए टिप्स बताए, जानिए आप भी.

  1. पार्टी मेकअप

सब से पहले चेहरे की क्लींजिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग करें. फिर प्राइमर लगाएं. इस के लिए स्किन टोन से एक शेड फेयर बेस लें और उसे चेहरे पर अच्छी तरह लगाएं. फिर पौलिशिंग ब्रश ले कर चेहरे में बेस को अच्छी तरह मर्ज करें. इस से चेहरे पर शाइनिंग आएगी. फिर पफ से पाउडर लगाएं.

2. आई मेकअप

आई मेकअप करने से पहले आंखों के नीचे पाउडर लगा लें. ऐसा करने से अगर आई मेकअप करते समय शैडो गिरेगा तो पाउडर पर ही गिरेगा. इस से बेस खराब नहीं होता. फिर ड्रैस से मैचिंग का आईशैडो लगाएं. आईब्रोज के नीचे हाईलाइटर लगाएं और आईबौल्स के साइड में ब्राउन शैडो लगाएं. शैडो के ऊपर ही जैल काजल से लाइनर लगाएं. फिर आईलैशेज पर मसकारा लगा कर आंखों को परफैक्ट लुक दें.

3. फेस कंटूरिंग

फेसकट को शार्प दिखाने के लिए कंटूरिंग बहुत जरूरी है. इस से चेहरे का लुक बदल कर खूबसूरत हो जाता है. सब से पहले नोज की कंटूरिंग करें. नोज के दोनों तरफ डार्क शेड शैडो से या डार्क बेस से लगाएं. सैंटर में लाइट शेड्स लगाएं. फिर चीक्स को ब्रश द्वारा उभारें. फिर पिंक कलर का शाइनर चीक्स पर लगाएं. अगर फेस चौड़ा है तो जौ लाइन की बोन पर डार्क बेस लगा कर मर्ज करें.

4. लिप मेकअप

पूरा मेकअप होने के बाद लिप मेकअप करें. पहले लिप्स पर हलका मौइश्चराइजर लगाएं, फिर लिपस्टिक से लिप्स की आउटलाइन बना कर अपनी पसंद की लिपस्टिक को फिल करें और ग्लौस लगाएं.

5. पार्टी हेयरस्टाइल

केशों को कौंब कर के साइड की मांग निकाल कर इयर टू इयर केशों को अलग कर लें. फिर टौप के केशों की रबड़बैंड से एक ऊंची पोनी बना लें. पोनी के केशों में से एक लट ले कर रबड़बैंड को कवर कर दें. अब आगे के केशों की बैककौंबिंग करें. दोनों साइड के केश छोड़ कर उन से पफ बनाते हुए पोनी के पास ही पिन से सैट करें. दोनों साइड के बचे केशों को 2 लटों मेें मिक्स कर के ट्विस्ट करते हुए पफ की तरफ लाएं. ऐसे ही दूसरी तरफ भी करें. फिर पोनी के नीचे के केशों से एक सैक्शन ले कर नौट लगाएं. अब पोनी के केशों की एकएक लट ले कर उन को रोल करते हुए जूड़े जैसा बनाएं. ऐसे ही 6 लटों का रोल बनाएं और उस पर नौट चढ़ा कर स्प्रे डालें. जब यह अच्छी तरह से सैट हो जाए तो इस रोल जूड़े के नीचे ऐक्सैसरीज लगाएं.

6. छोटे केशों का स्टाइल

केशों को अच्छी तरह से कंघी कर के पीछे 3 पोनी बनाएं. एक पोनी सैंटर में और एक अगलबगल. फिर इस पर नैट चढ़ा कर सैट कर दें. अब आर्टिफिशियल केश ले कर चोटी गूंधें और उस पर स्प्रे डालें. इसे पोनी वाले जूड़े में लपेट कर सैट करें और हेयर ऐक्सैसरीज से सजाएं.

वेपिंग का त्वचा पर क्या है असर, जाने स्किन एक्पर्ट डॉ श्वेता राजपूत से

शाम है धुआं – धुआं……., ये धुआं – धुआं सा रहने दो…….., दम मारों दम….. आदि न जाने कितनी ही हिंदी फिल्मों के गाने सालों से पोपुलर है, जिससे हमेशा नई पीढ़ी प्रभावित रही है और इसे ग्लैमर भी समझती रही है, लेकिन इस धुंए के पीछे उनके जीवन में आने वाली शारीरिक और मानसिक परेशानियां कई बार होते है, जिन्हें वे खुद ही सोल्व कर एक हेल्दी लाइफस्टाइल अपना सकते है, जो निम्न है.

दरअसल ट्रेडिशनल स्मोकिंग के हल्के विकल्प के रूप मानने की वजह से वेपिंग (ई-स्मोकिंग) का चलन पिछले कुछ बरसों में तेजी से बढ़ा है. खासकर, जेनरेशन-जेड के बीच इसका प्रचलन बहुत अधिक बढ़ चुका है.

इन्टरनेट की इस भागती दुनिया में आज के जेनरेशन काफी एडवांस हो चुकी है, बहुत कम लोगों को पता है कि जेनरेशन – Z क्या है. असल में ये कोई विदेशी भाषा नहीं, बल्कि आज के जेनरेशन को कहा जाता है. एक अमेरिकी संस्थान के मुताबिक वर्ष 1995 से वर्ष 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को जेनरेशन Z कहा जाता है.

इस बारें में डिश स्किन क्लीनिक के मेडिकल एडवाइजर, डीवीडी, एसोसिएट कंसल्टेंट, डॉ. श्वेता राजपूत कहती है कि आम सिगरेट से की जाने वाली स्मोकिंग में कमी के बावजूद, आंकड़ों से पता चलता है कि वेपिंग और स्मोकिंग  की दोनों आदतों के बीच मजबूत संबंध भी है. वेपिंग से अक्सर युवाओं को स्मोकिंग का रास्ता मिलता है और वेपिंग के शौकीन व्यस्कों में से लगभग आधे स्मोकिंग भी करने लगते हैं.

ये सही है कि स्मोकिंग के साथ सेहत के कई गंभीर खतरे जुड़े होते हैं. इनमें दिल और फेफड़ों की अनेक बीमारियों के अलावा फेफड़ों में होने वाले कैंसर के बारे में ज्यादातर लोगों को पता होता है. दि सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, केवल सिगरेट स्मोकिंग की वजह से ही रोजाना 1300 लोगों की मौत हो जाती है. इन्हें स्मोकिंग की लत न होती, तो इनकी जान भी नहीं जाती.

वेपिंग के भी लंबे समय में दिखाई देने वाले प्रभावों के बारे में रिसर्च जारी है, लेकिन अभी तक की रिसर्च से संकेत मिलता है कि ई-सिगरेट से निकलने वाले जहरीले रसायनों से गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं.

स्मोकिंग और वेपिंग (सेकंडहैंड एक्सपोजर सहित यानि स्मोकिंग न करने पर भी इसके धुएं के संपर्क में आना) का असर केवल फेफड़े पर ही नहीं, त्वचा पर भी पड़ता है.

त्वचा पर वेपिंग का असर

डॉ. श्वेता आगे कहती है कि वेपिंग के दौरान, केमिकल की कुछ मात्रा शरीर में पहुंचती है, जो फेफड़ों के नाजुक टिश्यू की नमी को आसानी से सोख लेते हैं. अगर धुआं लंबे समय तक शरीर के अंदर जाए, तो अनेक जहरीले तत्वों की मात्रा तेजी से बढ़ सकती है.

इसमें धुएं के साथ शरीर के अंदर इसका काफी समय तक रहना और किस तरह का वेप प्रयोग किया गया है आदि से तय होता है कि कश कितनी देर लिया गया और इसकी मशीन को कितनी बार प्रयोग किया गया. धुएं में मौजूद कुछ संभावित रसायनों में फॉर्मेल्डिहाइड, निकोटिन और इसके यौगिक, प्रोपलीन ग्लाइकोल, टॉल्युईन, एसिटैल्डहाइड के अलावा कैडमियम, निकल और लेड जैसे ट्रेस मेटल भी हो सकते हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक होते है.

इस तरह के जहरीले तत्वों को सांस से अंदर लेने का त्वचा पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. त्वचा को शरीर का एक खजाना माना जाता है, जिसमे शरीर के लिए जरूरी तत्व जमा होते रहते है, ऐसे में जहरीले तत्व भी त्वचा की परतों में जमा हो जाते हैं. इनकी मात्रा बहुत अधिक होने पर ये त्वचा की कोशिकाओं के सामान्य रूप से काम करने की क्षमता कम कर देते हैं, जिसमें स्किन – बैरियर की रिपेयरिंग का जरूरी काम भी शामिल होता है.

इसका सबसे अधिक प्रभाव यह देखने को मिलता है कि समय से पहले बुढ़ापे के लक्षण दिखने लग सकते हैं. इनके लक्षणों में ड्राईनेस, त्वचा पर छेदों का बड़ा हो जाना, त्वचा का लटकना, झुर्रियां, हाइपरपिग्मेंटेशन और त्वचा की असमान संरचना आदि होते है. सिगरेट और इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (ई-सिगरेट) दोनों में पाए जाने वाले निकोटिन के असर से खून की नलियां तक सिकुड़ सकती हैं, इससे त्वचा को खून मिलना कम हो जाता है और त्वचा की सेहत बिगड़ने लगती है. कम उम्र में झुर्रियां पैदा होने लगती है. यह असर मात्र चेहरे की झुर्रियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे शरीर पर दिखाई देता है.

‘एक्सपेरिमेंटल डर्मेटोलॉजी’ में प्रकाशित स्टडी से पता चला है कि निकोटिन का संबंध घाव भरने में देरी और त्वचा पर समय से पहले बुढ़ापे के लक्षणों में तेजी से होना होता है. ‘साइंस न्यूज’ ने भी इस बारे में बताया है कि निकोटिन से कोशिकाओं की गतिविधियां असामान्य हो जाती हैं, जिससे त्वचा लटकने लगती है और उस पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. निकोटिन के अलावा, वेपिंग के दौरान चेहरे पर आने वाले भाव, जिसमे खासतौर पर मुंह और आंखों का मूवमेंट भी चेहरे पर झुर्रियां पैदा करने में योगदान देते हैं.

स्किन कैंसर का भी खतरा   

डॉक्टर कहती है कि नॉन-स्मोकर्स की तुलना में स्मोकर्स को स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा का दोगुना खतरा होता है और मेलानोमा होने का खतरा भी बढ़ जाता है. ये दोनों ही स्किन-कैंसर के सामान्य प्रकार हैं. ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, ई-सिगरेट में फॉर्मेल्डिहाइड का स्तर आम सिगरेट्स के मुकाबले 15 गुना तक ज्यादा हो सकता है. ये भी सही है कि  फॉर्मेल्डिहाइड कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक है.

वेपिंग छोड़ने से त्वचा की हालत में सुधार दिखाई देता है. इससे खून का बहाव तेज हो जाता है और कॉर्बन मोनोऑक्साइड का स्तर कम होता है. साथ ही, ऑक्सीजन, एंटीऑक्सीडेंट्स और त्वचा की नई कोशिकाएं बनने की प्रक्रिया सामान्य हो जाती है. वेपिंग बंद करने से त्वचा को आगे भी किसी नुकसान का डर नहीं रहता.

त्वचा में जल्दी सुधार लाने के टिप्स निम्न है,

  • त्वचा की देखभाल के विशेष तरीके अपनाने की जरुरत होती है.
  • दिन के समय एंटीऑक्सीडेंट विटामिन-सी सीरम और उसके बाद सनस्क्रीन लगाने से भी त्वचा को अधिक नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है.
  • रात के समय विटामिन-ए सीरम का प्रयोग करने से कोलेजन का फिर से उत्पादन बढ़ता है, पिग्मेंटेशन कम होता है, स्किन-टेक्सचर की कमियां दूर होती हैं और तेल का नियंत्रण होता है.
  • जिन लोगों में वेपिंग की वजह से झुर्रियां और त्वचा लटकने का असर दिखाई देने लगा है, उन्हें वेपिंग छोड़ने पर सुधार की केवल ऐसी उम्मीद ही रखनी चाहिए, जो संभव हो. त्वचा की देखभाल के तमाम प्रयासों के बावजूद, इससे होने वाले नुकसान को पूरी तरह दूर करना अधिक संभव नहीं होता. ऐसे में स्किन स्पेशलिस्ट की सलाह लेना आवश्यक होता है.

इस प्रकार त्वचा को जवां रखने का सबसे अच्छा तरीका स्मोकिंग और वेपिंग से दूर रहना है. यह साबित भी हो चुका है कि इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स से झुर्रियां, समय से पहले बुढ़ापे और सेहत से जुड़ी कई परेशानियों के होने का खतरा रहता है.

चटपटे चिकन की बात ही अलग है

बड़े हों या बच्चे, चिकन करी सभी की पसंदीदा डिश है. वीकेंड में मिले वो फुर्सत के पल और भी खुशनुमा हो जाते हैं जब किचन से चिकन बनने की सोंधी खुशबू आ रही होती है. बड़े अपने बचपन में चले जाते हैं कि जब मां चिकन करी बनाती थी तो उसकी खुशबू कैसे भूख को और बढ़ाती जाती थी. बार-बार किचन में जा कर पूछते थे कि मां, कब मिलेगा खाना.

लेकिन वीकेंड तो अपनों के साथ समय बिताने का जरीया भी होता है. ऐसे में अगर चिकन करी बनाने के लिए मसालों के संतुलन की उधेड़बुन में ज्यादा समय किचन में ही निकल जाएगा तो अपनों के साथ बिताने वाले पल मिस कर देंगी. नहीं अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि अब आपके पास है सनराइज़ चिकन करी मसाला. इसके सही मसालों का मिश्रण आपकी चिकन करी के स्वाद को बनाएगा लाजवाब.

चिकन करी

सामग्री

1. 1 किलोग्राम चिकन

 2. 4 प्याज बारीक कटे

 3. 1 चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

 4. 1 साबुत लहसुन

 5. 2 हरीमिर्चें कटी

 6. 2 चम्मच सनराइज़ चिकन करी मसाला

 7. जरूरतानुसार तेल

 8. नमक स्वादानुसार.

विधि

कड़ाही में तेल गरम कर प्याज और हरीमिर्चें मिलाकर अच्छी तरह भूनें. अब अदरकलहसुन का पेस्ट भी मिला दें और मिश्रण को अच्छी तरह भून लें. चिकन को मिश्रण में मिलाकर अच्छी तरह मिक्स करें फिर सनराइज़ चिकन करी मसाला मिला दें. आंच धीमी कर चलाते हुए चिकन भूनें. अच्छी तरह भुन जाने के बाद जरूरतानुसार पानी और नमक मिलाएं. साबुत लहसुन डालकर ढक कर चिकन पका लें. तैयार चिकन करी को धनियापत्ती से गार्निश कर रोटी या राइस के साथ सर्व करें.

थोड़ा दूर थोड़ा पास- भाग 3 : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

शुरूशुरू में तन्वी कुछ नाराजगी, कुछ डर के कारण नहीं गई. फिर धीरेधीरे उस ने भी जाना शुरू कर दिया. विजित के साथ छुट्टी के दिन या रविवार को वह भी मांपापा के पास चली जाती. ससुरजी का मूड तो कुछकुछ दिखाने के लिए सही हो गया पर सास का मूड उसे देख कर उखड़ा ही रहता. अभी उन्हें घर से अलग हुए 2 महीने भी नहीं हुए थे कि दिन वे सुबह औफिस जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि विजित का मोबाइल बज उठा. पापा का फोन था. वे घबराए स्वर में बोल रहे थे. पापा बोल रहे थे कि मां का ऐक्सीडैंट हो गया है. जल्दी से घर आ जाओ.

‘‘हम अभी आते हैं पापा…’’ कह कर दोनों घबराए हुए दोनों जैसेतैसे घर की तरफ दौड़े… मां को उठा कर अस्पताल ले गए.

उन का ऐक्सरे हुआ तो पता चला पैर मुड़ने से पैर के बल गिरने से पैर में फ्रैक्चर हो गया है. प्लस्तर चढ़ गया. 45 दिन का प्लस्तर था. डाक्टर ने शुरू में तो पूर्ण आराम की सलाह दी थी. यहां तक कि बाथरूम तक भी व्हीलचेयर से ही ले जाना.

सबकुछ करा कर जब मां को ले कर विजित और तन्वी घर पहुंचे तो काफी देर हो गई थी.

तन्वी ने ही सब के लिए थकने के बावजूद जैसेतैसे खाना बनाया. उस रात दोनों वहीं रुक गए. रात को दोनों सोच में पड़ गए अब…?’’ पिता के बस का नहीं था मां की देखभाल करना,

‘‘मैं तो एकदम से छुट्टी भी नहीं ले सकता… कल से रिव्यू है… दिल्ली से बौस लोग आ रहे हैं… अलगे कुछ दिन मैं बहुत व्यस्त रहूंगा… इतने दिन से तैयारी कर रहा था…’’ विजित लाचारी और उल झन में बोला.

‘‘ऐसा करते हैं विजित…’’ विजित को सोच व उल झन में पड़े देख कर तन्वी बोली, ‘‘मेरी काफी छुट्टियां बाकी हैं… कल से मैं फिलहाल 15 दिन की छुट्टी ले लेती हूं… तब तक तुम्हारे रिव्यू खत्म हो जाएंगे. तब तुम छुट्टी लेने की कोशिश करना… उस के बाद दीदी को पूछ लो… यदि हफ्ते भर के लिए वे आ सकती हैं तो… फिर मैं दोबारा कोशिश करूंगी छुट्टी लेने की…’’

विजित ने चौंक कर तन्वी की तरफ देखा. उस के चेहरे पर मां की परेशानी  से उपजे चिंता के भाव थे. वह मुग्ध भाव से तन्वी को देखता रह गया कि पता नहीं मां तन्वी को क्यों नहीं सम झ पातीं. मां तन्वी की पीढ़ी की बहुओं को भी अपने जमाने की सासों के चश्मे से देखती हैं और उन की तुलना अपने जमाने की बहुओं से करती हैं. लेकिन तब से अब तक जमाने में, समाज में, शिक्षा में, लड़कियों के पालनपोषण में बहुत परिवर्तन आ चुका है, इस बात पर बिलकुल विचार करना नहीं चाहतीं.

इस घोर परेशानी व उल झन के समय में तन्वी के सहयोग से उस का दिल भर आया था, मां ने क्या कुछ नहीं कहा तन्वी को… पर प्रत्यक्ष में बोला, ‘‘ठीक है, पर तुम्हें छुट्टी लेने में दिक्कत तो नहीं होगी…’’

‘‘नहीं, मिल जाएगी… जरूरत पर नहीं मिलेंगी तो किस काम की ये छुट्टियां…’’

रात में वह निश्चिंत हो कर सो पाया. तन्वी ने छुट्टियां ले कर पूर्ण तनमन से मां की देखभाल की. चूंकि यह शुरू का समय था, इसलिए ज्यादा कष्टपूर्ण व नाजुक था. देखभाल की ज्यादा जरूरत थी. तन्वी की निश्छल देखभाल से मां का मन बारबार पिघलने को होता. हालांकि वे उन विचारों की अधिक थीं जिन में वे बहू का प्यार कम उस का फर्ज ज्यादा सम झती थीं.

15 दिन बाद तन्वी औफिस चली गई और विजित ने छुट्टियां ले ली. विजित की छुट्टियां खत्म हुईं तो 1 हफ्ते के लिए दीदी मां की देखभाल के लिए आ गई. दीदी गई तो तन्वी ने कुछ दिन की छुट्टियां दोबारा ले लीं.

मां अब काफी ठीक हो गई थीं. सहारे से बाथरूम जाने लगी थीं. तन्वी पूरी देखभाल  कर रही थी. धीरेधीरे मां पूरी तरह ठीक हो गईं.

विजित कृतज्ञ हो रहा था तन्वी के प्रति. उस ने इस परेशानी के समय मां के प्रति सभी पूर्वाग्रह भुला कर मन से उन की देखभाल व सेवा की थी और वह देख रहा था, कहीं न कहीं मां के मन को भी तन्वी की सेवा बांध गई थी.

तन्वी की जरूरतों पर कभी ध्यान न देने वाली मां उस से अब जबतब पूछ लेतीं कि उस ने खाना खा लिया या नहीं. चाय पी ली या फिर थोड़ी देर आराम कर ले तन्वी, थक गई होगी. विजित को खुशी होती यह देख कर.

कल से तन्वी की छुट्टियां भी खत्म हो रही थीं. कल से उसे औफिस जाना था. मां अब पूरी तरह से ठीक थीं. रात का खाना खिला कर खाना खाने के बाद वे अपने घर जाने के लिए तैयार हो गए. तन्वी कमरे में जा कर मां से मिल कर बाहर आ गई.

विजित भी मां से मिलने कमरे में चला गया. बोला, ‘‘अच्छा मां चलते हैं… अब आप बिलकुल ठीक हैं… अपना ध्यान रखना… हम आतेजाते रहेंगे… तन्वी की भी काफी छुट्टियां हो गई हैं, कल से वह भी औफिस जाएगी…’’

‘‘हां बेटा, बहुत सेवा की तन्वी ने मेरी…’’ मां का स्वर कुछकुछ पश्चात्ताप से भरा था, ‘‘तन्वी को सम झाने में शायद भूल कर दी मैं ने…’’

‘‘कोई बात नहीं मां…’’ वह संतुष्ट होता हुआ बोला, ‘‘आप सम झ गईं, हमारे लिए यही काफी है और मातापिता की सेवा व देखभाल करना तो हमारा फर्ज है… आप को जब भी जरूरत होगी, हम आप के पास होंगे मां…’’ वह भीगे स्वर में बोला. मां की आंखों में भी नमी तैर गई.

‘‘विजित, तन्वी अब वापस आ जाए बेटा… क्यों अलग जा रहे हो रहने… जहां दो बरतन होंगे तो थोड़ेबहुत तो बजेंगे ही… पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं तुम लोगों को प्यार नहीं करती… बड़ों की बातों का इतना भी क्या बुरा मानना…’’ मां का स्वर कातर हो गया था.

‘‘ओह, मां…’’ वह मां को गले लगाता हुआ बोला, ‘‘आप इतनी भावुक क्यों हो रही हैं… आप के ही तो बच्चे हैं हम… दूर थोड़े ही न हो गए हैं आप से… जरा सी दूरी पर ही तो हैं…’’ वह धीरेधीरे मां की पीठ सहलाने लगा.

‘‘मां, एक घर में एक छत के नीचे रह रहे थे… पास थे आप के, पर आप के दिल से दूर थे… जब थोड़ा दूर हैं तो दिल के पास हैं… पास रह कर दूर रहने से, दूर रह कर पास रहना ज्यादा अच्छा है मां… मु झे उम्मीद है आप मेरी बात सम झ रही होंगी…’’ वह मां से अलग होता हुआ बोला.

‘‘साथ रह कर थोड़े दिन बाद फिर वही सब शुरू हो, वही दमघोंटू वातावरण, वही रिश्तों की खींचतान, बहुत मुश्किल होती है मां मु झे… तन्वी के लिए भी ये सब मुश्किल है नौकरी के साथ  झेलना… मैं अब तन्वी के ऊपर अपनी कोई सोच लादना नहीं चाहता… अपने और तन्वी के रिश्ते को थोड़ा और समय दो… हो जाने दो इस रिश्ते को परिपक्व… बदल जाने दो अपने खुद के विचारों को आप… जैसे आप को तन्वी पर विश्वास हो गया, वैसे ही तन्वी का विश्वास भी हो जाने दो आप पर…

‘‘जब तक तन्वी मु झे स्वयं घर लौटने के लिए नहीं कहेगी, तब तक मैं यह कदम नहीं उठाऊंगा… और तब तक आप भी इंतजार करो. मैं जानता हूं तन्वी को, जिस दिन उसे अपने और आप के रिश्ते पर विश्वास हो जाएगा वह खुद ही वापस आ जाएगी…

‘‘मेरे लिए तो दोनों रिश्ते प्रिय हैं मां… मैं तो चाहूंगा ही कि आप और तन्वी के बीच प्यार और प्यारभरा रिश्ता विकसित हो…जैसे तन्वी ने आप का दिल जीता. आप का उस पर विश्वास लौटा… वैसे ही तन्वी का विश्वास भी लौट आएगा आप पर… मु झे पूरा भरोसा है… तभी साथ रहने का मजा है मां…’’ कह कर वह उठ खड़ा हुआ.

विजित पीछे मुड़ा तो पापा खड़े थे. आज पहली बार उसे पापा के चेहरे पर  अपनी कही बात पर सहमति के भाव नजर आए. उन्होंने बेहद अपनेपन व बेहद भरोसे से उस का कंधा थपथपा दिया. बाहर आया तो तन्वी उस का इंतजार कर रही थी. वह जानता था, मां अभीअभी मुश्किल दौर से निकली हैं, इसलिए इतनी बदली हुई हैं. वर्षों की आदतें और विचार 4 दिन में नहीं बदलते.

जब फिर से साथ रहना शुरू करेंगे तो फिर से उन्हें अपनी वाणी और विचारों पर अकुंश रखना मुश्किल होगा. अभी और समय देना होगा उन्हें तन्वी को सम झाने का… और उन फालतू बातों से अधिक अपने बच्चों की जरूरत अपनी जिंदगी में महसूस करने का. तब तक तन्वी भी कुछ मां के नजदीक आ जाएगी तो फिर शायद उसे उन की बात इतनी बुरी न लगे, जितनी अभी लगती है.

जैसे मातापिता की देखभाल और सेवा करना उस का फर्ज है वैसे ही तन्वी भी उस से ही बंधी हुई इस घर में आई है, उस की जिंदगी में आई है. उसे एक सुंदर, स्वच्छ, अच्छी, संतुलित जिंदगी देना भी उस का कर्तव्य है. सोचता हुआ वह तन्वी के साथ घर से बाहर निकल गया.

थोड़ा दूर थोड़ा पास- भाग 2 : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

अकसर चुप रहने वाली तन्वी अब उस से कभीकभी प्रतिवाद करने लगी  थी. तर्क करने लगी थी और एक दिन उस की सहनशक्ति जवाब दे गई.

‘‘यह रोजरोज की चखचख मु झ से बरदाश्त नहीं होती विजित… औफिस से थक कर आओ और घर में आ कर ये सब सुनो… किचन में मां की मदद के लिए जाना चाहती हूं तो उन के रुख से भी डर लगता है… मैं भी कब तक चुप रहूं… एक ही काम तो नहीं है मेरा… एक छुट्टी के दिन भी न शरीर को आराम, न दिलदिमाग को… या तो तुम मां को सम झाओ या फिर अलग रहने की व्यवस्था करो…’’

‘‘सम झाता तो हूं मां को तन्वी… पर क्या करूं. वे मां हैं, बुरी तो नहीं हो सकतीं हमारे लिए… बस थोड़ा पुराने विचारों की हैं… तुम उन की बातों पर ध्यान मत दिया करो…’’

‘‘कितने दिन ध्यान न दो विजित… आखिर बातें जब कानों में पड़ती हैं तो दिल में भी उतरती ही हैं… दिमाग में बसती भी हैं… कितनी बार नजरअंदाज करूं… थकामांदा दिमाग भन्ना जाता है मेरा… ऐसे घुटनभरे वातावरण में कितने दिन रह पाऊंगी…

‘‘माना कि मां हैं… दिल की बुरी नहीं होंगी… हमें प्यार भी करती होंगी… पर वाणी भी कोई चीज होती है विजित… रोजरोज ताने नहीं सुने जाते… वाणी पर अकुंश रखना भी तो जरूरी है… यह उन का स्वभाव है… इंसान अपनी आदतें बदल सकता है पर अपना स्वभाव नहीं बदल सकता… उन के साथ मेरा निर्वाह नहीं हो पाएगा… मैं नहीं रह पाऊंगी उन के साथ…’’ तन्वी फैसला सा करते हुए बोली.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो तन्वी… मैं ने तुम्हें पहले ही इस बारे में स्पष्ट बता दिया था कि मैं इकलौता बेटा हूं… मैं मांबाप से अलग नहींजा पाऊंगा.’’

‘‘तब तुम ने यह नहीं बताया था कि उन का बोलना इतना बुरा है… दूसरी बातों के साथ, आदतों के साथ, दिनचर्या के साथ सामंजस्य बैठाया जा सकता है… पर बुरा बोलने वाले के साथ सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल है विजित… प्यार के दो मीठे बोल, प्रसंशा के दो शब्द नहीं हैं उन के पास… हर समय कोई बुरा ही कैसे सुनता रहे, तुम्हीं बताओ… ऐसा क्या बुरा करती हूं मैं उन के साथ…’’ कहतेकहते तन्वी का स्वर भर्रा गया.

विजित मानसिक उल झन का शिकार होता जा रहा था. मां किसी भी तरह से अपने स्वभाव से बाज नहीं आती थीं और तन्वी जबतब उस पर अपनी भड़ास निकाल देती.

उसे सम झ नहीं आता क्या करे, क्या न करे. समस्या का कोई समाधान उसे न दिखता. अलग घर भी लेता है तो क्या कहेंगे नातेरिश्तेदार, समाज कि विजित उन्हीं बेटों में से एक निकला, जो विवाह के बाद बीवी की बातों में आ कर मांबाप को छोड़ कर अलग हो गया, पर वे यहां आ कर उस की रात दिन की उल झन को नहीं सम झ सकते कि उस की मां… उस के जीवन का सब से प्यारा व अहम रिश्ता… उस के जीवन, उस के दिल का एक अभिन्न अंग कैसे अपने स्वभाव, अपनी कर्कश वाणी से उस के जीवन को छिन्नभिन्न करने पर तुली है. बीवी बुरी हो तो इंसान तलाक दे दे, पर मां का क्या करे, सोचसोच कर वह भन्ना जाता.

अपने जीवन की उल झनों ने उसे सम झा दिया था  कि रिश्तों को बनाने के लिए सिर्फ एक की कोशिश काफी नहीं होती जब तक सभी कोशिश न करें. धीरेधीरे उस के और तन्वी के बीच में भी  झगड़े होने लगे.

वह अपनी खीज और उल झन कभीकभी तन्वी पर भी उतार देता और ऐसे ही एक दिन के  झगड़े और मनमुटाव के बाद तन्वी घर छोड़ कर मायके चली गई. वह जब औफिस से घर आया और उसे तन्वी के जाने का पता चला तो उस ने तन्वी को फोन किया.

तब तन्वी ने साफ ऐलान कर दिया कि अगर उसे उस के साथ जिंदगी बितानी है तो अलग रहने की व्यवस्था करे… वह उस के मातापिता के साथ नहीं रह पाएगी. उस ने कई बार कई तरह से मनाने की कोशिश की तन्वी को. कई तरह से सम झाया पर तन्वी टश से मश नहीं हुई. वह बस अलग रहने की शर्त पर आने को तैयार थी.

तब से एक साल होने को आया था और अब तो तन्वी कहने लगी थी कि उस के लिए अगर ये सब इतना मुश्किल है तो वह चाहे तो वे दोनों अब अपना रास्ता बदल सकते हैं. सुन कर वह सन्न रह गया था. इतना बड़ा फैसला कैसे कर सकती है तन्वी इतनी छोटीछोटी बातों पर…

गुस्से के मारे कुछ समय तक उस ने तन्वी को फोन ही नहीं किया. आज उस ने बहुत दिनों बाद जब उस का दिमाग कुछ शांत हुआ तो नए सिरे से सम झाने के लिए फोन किया था पर तन्वी का जवाब जैसे का तैसा था.

छोटीछोटी बातों ने उस के जीवन में इतनी बड़ी उल झन पैदा कर  दी थी कि उसे समस्या का कोई समाधान नहीं सू झ रहा था. कैसे अपना वैवाहिक जीवन बचाए वह. खिन्न मन से वह उठा. औफिस से बाहर निकला पर घर जाने का मन नहीं किया. कुछ सोच कर अपने दोस्त शिवम के घर चला गया. शिवम उस की उल झनों को अच्छी तरह से सम झता था.

‘‘हूं… मतलब कि तन्वी अलग रहने के सिवा किसी भी सूरत में वापस आने को तैयार नहीं है…’’ चाय का कप मेज पर रखता हुआ शिवम बोला.

‘‘आएगी भी कैसे शिवम… मां का रवैया वही है… वे कुछ भी सम झाने को तैयार नहीं हैं… समस्याएं वही हैं… कुछ भी तो नहीं बदला… फिर से सबकुछ वही होगा… मां के ताने… मां का बोलना, मां का स्वभाव, अपनी वाणी पर जरा भी अकुंश नहीं रख पाती हैं वे… मां के विचारों से पार पाना तन्वी के लिए आसान नहीं…’’

‘‘एक बात कहूं विजित…’’

‘‘हूं…’’ विजित ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टी उस के चेहरे पर तान दी.

‘‘तू फिलहाल तन्वी की बात मान क्यों नहीं लेता… ज्यादा दूर मत जा… बस जहां तक तन्वी को मां के ताने सुनाई न दें…’’ वह हंसता हुआ बोला, ‘‘इतनी दूरी पर किराए का घर देख ले… फिलहाल अपना घर तो बचा… तू और तन्वी साथ रहोगे, पास रहोगे, तो एकदूसरे के प्यार व आकर्षण में बंध कर समस्या का हल भी निकाल लोगे…

‘‘यों दूर रह कर तो समस्या और भी विकराल हो जाएगी. दूर रह कर तो तुम दोनों के रिश्ते भी नकारात्मक हो रहे हैं… और वैसे भी तुम जबरदस्ती तो तन्वी को साथ में रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते… ये सब अपनी मरजी से हो और उन दोनों के रिश्ते खुद सुधरें… तभी साथ रहने में शांति है विजित… नहीं तो क्या फायदा है ऐसे साथ रहने से…’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे शिवम… रिश्तेदार, समाज… मातापिता दुखी होंगे, सो अलग…’’ विजित उल झन में बोला.

‘‘तू भी वही बात करने लगा… तु झे सब की चिंता है या अपना घर बचाने की… पहले एक सीढ़ी तो चढ़… अगली सीढ़ी की बाद में सोचना… तू मातापिता को कोई छोड़ थोड़े ही न रहा है, बस उन से थोड़ी दूरी पर रहेगा… उन की एक पुकार पर उन के पास पहुंच जाएगा…’’

बात कुछकुछ विजित की सम झ में आ गई. दूसरे दिन वह तन्वी से मिलने उस के औफिस में चला गया. तन्वी को इस बात पर क्या एतराज हो सकता था. विजित ने थोड़ी दूरी पर किराए का घर देखा और ऐडवांस दे दिया. अब बात मांबाप को बताने की थी.

जैसेकि उम्मीद थी. सुनते ही मां ने तूफान मचा दिया, ‘‘मैं क्या सम झ नहीं रही थी, उस के शुरू से ही लक्षण ऐसे दिख रहे थे… बड़ों की बातें सम झने और मनाने के बजाय बुरा मान कर मायके जा बैठी… वह तो मैं सम झ ही रही थी कि बेटे को मांबाप से अलग कर के ही मानेगी पागल कही की… और तू भी कुपूत निकला, जो बीवी की बातों में आ कर मांबाप को छोड़ने पर राजी हो गया… तु झे शर्म नहीं आई ये सब कहने में… इसीलिए औलाद को बड़ा करते हैं मांबाप…’’

मां के मुंह में जो आ रहा था वह बोल रही थीं. विजित के दिल में भी बहुत कुछ आ रहा था पर इस समय मां के साथ तर्क करना व्यर्थ था और वह चाहता भी नहीं था. वह जानता था उस के मातापिता का दिल उस के इस निर्णय से बहुत दुखी हुआ होगा, पर इस के पीछे उन्हें अपनी खामियां नजर नहीं आई होंगी.

पिता ने इस बार भी कुछ न बोल कर भी अपने हावभाव से अपनी पूरी नाराजगी जाहिर कर दी. किसी तरह मन मजबूत कर वह अपने इरादे पर कायम रहा और तन्वी को ले कर अलग गृहस्थी बसा ली. घर से वह कोई सामान ले कर नहीं गया. थोड़ाबहुत सामान बाजार से खरीदा. कुछ फर्नीचर मकानमालिक का था.

कुल मिला कर उन की गृहस्थी सुचारु रूप से चलने लगी. उस की रोज की दिनचर्या थी वह औफिस से आ कर पहले रोज मांपापा केपास जाता. वहां चाय पीता. फिर अपने घर चला जाता.

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