Father’s Day Special: कोरा कागज- घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

राहुल औफिस से घर आया तो पत्नी माला की कमेंट्री शुरू हो गई, ‘‘पता है, हमारे पड़ोसी शर्माजी का टिंकू घर से भाग गया.’’

‘‘भाग गया? कहां?’’ राहुल चौंक कर बोला.

‘‘पता नहीं, स्कूल की तो आजकल छुट्टी है. सुबह दोस्त के घर जाने की बात कह कर गया था. तब से घर नहीं आया.’’

‘‘अरे, कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. पुलिस में रिपोर्ट की या नहीं?’’ राहुल डर से कांप उठा.

‘‘हां, पुलिस में रिपोर्ट तो कर दी पर 13-14 साल का नादान बच्चा न जाने कहां घूम रहा होगा. कहीं गलत हाथों में न पड़ जाए. नाराज हो कर गया है. कल रात उस को बहुत डांट पड़ी थी, पढ़ाई के कारण. उस की मां तो बहुत रो रही हैं. आप चाय पी लो. मैं जाती हूं, उन के पास बैठती हूं. पड़ोस की बात है, चाय पी कर आप भी आ जाना,’’ कह कर माला चली गई.

राहुल जड़वत अपनी जगह पर बैठा का बैठा ही रह गया. उस के बचपन की एक घटना भी कुछ ऐसी ही थी, जरा आप भी पढ़ लीजिए :

वर्षों पहले उस दिन बस से उतर कर राहुल नीचे खड़ा हो गया था. ‘अब कहां जाऊं?’ वह सोचने लगा, ‘पिता की डांट से दुखी हो कर मैं ने घर तो छोड़ दिया. आगरा से दिल्ली भी पहुंच गया, लेकिन अब कहां जाऊं? घर तो किसी हालत में नहीं जाऊंगा.’ उस ने अपना इरादा पक्का किया, ‘पता नहीं क्या समझते हैं मांबाप खुद को. हर समय डांट, हर समय टोकाटाकी, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, टीवी मत देखो, दोस्तों से फोन पर बात मत करो, हर समय बस पढ़ो.’

उस की जेब में 500 रुपए थे. उन्हें ही ले कर वह घर से चल दिया था. 13 साल के राहुल के लिए 500 रुपए बहुत थे.

दुनिया घर से बाहर कितनी भयानक और जिंदगी कितनी त्रासदीपूर्ण होती है इस का उसे अंदाजा भी नहीं था. नीली जींस और गुलाबी रंग का स्वैटर पहने स्वस्थ, सुंदर बच्चा अपने पहनावे और चालढाल से ही संपन्न घर का लग रहा था.

बस अड्डे पर बहुत भीड़ थी. राहुल एक तरफ खड़ा हो गया. बसों की रेलमपेल, टिकट खिड़की की लाइन, यात्रियों का रेला, चढ़नाउतरना. टैक्सी व आटो वालों का यात्रियों के पीछे पड़ना. यह सब वह खड़ेखड़े देख रहा था.

उस के मन में तूफान सा भरा था. घर तो जाना ही नहीं है. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचेगा तब सब उसे ढूंढ़ेंगे. मां रोएंगी. पिता चिंता करेंगे. बहन उस के दोस्तों के घर फोन मिलाएगी. खूब परेशान होंगे सब. अब हों परेशान. जब पापा हर समय डांटते रहते हैं, मां हर छोटीछोटी बात पर पापा से उस की शिकायत करती रहती हैं तब वह रोता है तो किसी को नहीं दिखता है.

पापा के घर आते ही जैसे घर में कर्फ्यू लग जाता है. न कोई जोर से बोलेगा, न जोर से हंसेगा, न फोन पर बात करेगा, न टीवी देखेगा. उन्हें तो बस बच्चे पढ़ते हुए नजर आने चाहिए. हर समय पढ़ने के नाम से तो उसे नफरत सी हो गई.

छोटीछोटी बातों पर दोनों झगड़ते भी रहते हैं. छोटेमोटे झगड़े से तो इतना फर्क नहीं पड़ता पर जब पापा के दहाड़ने की और मां के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है तो वह दीदी के पहलू में छिप जाता है. बदन में कंपकंपी होने लगती है. अब कहीं उस का भी नंबर न आ जाए पिटने का, वैसे भी उस के रिपोर्ट कार्ड से पापा हमेशा ही खफा रहते हैं.

अगले कुछ दिनों तक घर का वातावरण दमघोंटू हो जाता है. मां की आंखें हर वक्त आंसुओं से भरी रहती हैं और पापा तनेतने से रहते हैं. उसे संभल कर रहना पड़ता है. दीदी बड़ी हैं, ऊपर से पढ़ने में अच्छी, इसलिए उन को डांट कम पड़ती है.

वह घर के वातावरण के ठीक होने का इंतजार करता है. घर के वातावरण का ठीक होना पापा के मूड पर निर्भर करता है. बड़ी मुश्किल से पापा का मूड ठीक होता है. जब तक सब चैन की सांस लेते हैं तब तक किसी न किसी बात पर उन का मूड फिर खराब हो जाता है. तंग आ गया है वह घर के दमघोंटू वातावरण से.

इस बार तिमाही परीक्षा के रिजल्ट पर मैडम ने पापा को बुलाया. स्कूल से आ कर पापा ने उसे खूब डांटा, मारा. उस का हृदय दुखी हो गया. पापा के शब्द अभी तक उस के कानों में गूंज रहे थे, ‘तेरे जैसी औलाद से तो बेऔलाद होना अच्छा है.’

उस का हृदय तारतार हो गया था. उसे कोई पसंद नहीं करता. उस की समस्या, उस के नजरिए से कोई देखना नहीं चाहता, समझना ही नहीं चाहता. दीदी कहती हैं कि पढ़ाई अच्छी कर ले, सब ठीक हो जाएगा लेकिन उस का मन पढ़ाई में लगता ही नहीं. पढ़ाई उसे पहाड़ जैसी लगती है. उस ने दीदी से कहा भी था कि मैथ्स, साइंस में उस का मन बिलकुल नहीं लगता, उसे समझ ही नहीं आते दोनों विषय, पर पापा कहते हैं साइंस ही पढ़ो. वैसे भी विषय तो वह 10वीं के बाद ही बदल सकता है. राहुल इसी सोच में डूबा था कि एक टैक्सी वाले ने उसे जोर से डांट दिया.

‘अबे ओ लड़के, मरना है क्या? बीचोंबीच खड़ा है, बेवकूफ की औलाद. एक तरफ हट कर खड़ा हो.’

राहुल अचकचा कर एक तरफ खड़ा हो गया. ऐसे गाली दे कर तो कभी किसी ने उस से बात नहीं की थी.

उस की आंखें अनायास ही छलछला आईं पर उस ने खुद को रोक लिया. उसे इस तरह सोचतेसोचते काफी लंबा समय बीत गया था. शाम ढलने को थी. भूख लग आई थी और ठंड भी बढ़ रही थी. उस के बदन पर सिर्फ एक स्वैटर था. उस ने गले का मफलर और कस कर लपेटा और सामने खड़े ठेलीवाले वाले की तरफ बढ़ गया. सोचा पहले कुछ खा ले फिर आगे की सोचेगा. ठेली पर जा कर उस ने कुछ खानेपीने का सामान लिया और एक तरफ बैठ कर खाने लगा.

तभी एक बदमाश किस्म का लड़का उस के चारों तरफ चक्कर काटने लगा. वह बारबार उस की बगल में आ कर खड़ा हो जाता. आखिर राहुल से न रहा गया. वह बोला, ‘क्या बात है, आप इस तरह मेरे चारों तरफ क्यों घूम रहे हैं?’

‘साला, अकड़ किसे दिखा रहा है? तेरे बाप की सड़क है क्या?’ लड़का अपने पीले दांतों को पीसते हुए बोला.

राहुल उस के बोलने के अंदाज से डर गया.

‘मैं तो सिर्फ पूछ रहा था,’ कह कर वह वहां से हट कर थोड़ा अलग जा कर खड़ा हो गया. लड़का थोड़ी देर बाद फिर उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘कहां से आया है बे? अकेला है क्या?’ वह आंखें नचाता हुआ राहुल से पूछने लगा. राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘अबे बोलता क्यों नहीं, कहां से आया है? अकेला है क्या?’

‘आगरा से,’ किसी तरह राहुल बोला.

‘अकेला है क्या?’

राहुल फिर चुप हो गया.

‘अबे लगाऊं एक, साला, बोलता क्यों नहीं?’

‘हां,’ राहुल ने धीरे से कहा.

‘अच्छा, घर से भाग कर आया है,’ उस लड़के के हौसले थोड़े और बुलंद हो गए. तभी वहां उसी की तरह के उस से कुछ बड़े 3 लड़के और आ गए.

‘राजेश, यह कौन है?’ उन लड़कों में से एक बोला.

‘घर से भाग कर आया है. अच्छे घर का लगता है. अपने मतलब का लगता है. उस्ताद खुश हो जाएगा,’ उस ने पूछने वाले के कान में फुसफुसाया.

‘क्यों भागा बे घर से, बाप की डांट खा कर?’ दूसरे लड़के ने राहुल से पूछा.

‘हां,’ राहुल उन चारों को देख कर डर के मारे कांप रहा था.

‘मांबाप साले ऐसे ही होते हैं. बिना बात डांटते रहते हैं. मैं भी घर से भाग गया था, मां के सिर पर थाली मार कर,’ वह उस के गाल सहला कर, उस को पुचकारता हुआ बोला, ‘ठीक किया तू ने, चल, हमारे साथ चल.’

‘मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊंगा,’ राहुल सहमते हुए बोला.

‘अबे चल न, यहां कहां रहेगा? थोड़ी देर में रात हो जाएगी, तब कहां जाएगा?’ वे उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाह रहे थे.

‘नहीं, मुझे अकेला छोड़ दो. मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊंगा,’ डर के मारे राहुल की आंखों से आंसू बहने लगे. वह उन से अनुनय करने लगा, ‘प्लीज, मुझे छोड़ दो.’

‘अरे, ऐसे कैसे छोड़ दें. चलता है हमारे साथ या नहीं? सीधेसीधे चल वरना जबरदस्ती ले जाएंगे.’

इस सारे नजारे को थोड़ी दूर पर बैठे एक सज्जन देख रहे थे. उन्हें लग रहा था शायद बच्चा अपनों से बिछड़ गया है.

उन लड़कों की जबरदस्ती से राहुल घबरा गया और रोने लगा. अंधेरा गहराने लगा था. डर के मारे राहुल को घर की याद भी आने लगी थी. घर वालों को मालूम भी नहीं होगा कि वह इस समय कहां है. वे तो उसे आगरा में ढूंढ़ रहे होंगे.

आखिर एक लड़के ने उस का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती अपने साथ घसीटने लगा. राहुल उस से हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रहा था. दूर बैठे उन सज्जन से अब न रहा गया. उन का नाम सोमेश्वर प्रसाद था, एकाएक वे अपनी जगह से उठ कर उन लड़कों की तरफ बढ़ गए और साधिकार राहुल का हाथ पकड़ कर बोले, ‘अरे, बंटी, तू कहां चला गया था? मैं तुझे कितनी देर से ढूंढ़ रहा हूं. ऐसे कोई जाता है क्या? चल, घर चल जल्दी. बस निकल जाएगी.’

फिर उन लड़कों की तरफ मुखातिब हो कर बोले, ‘क्या कर रहे हो तुम लोग मेरे बेटे के साथ? करूं अभी पुलिस में रिपोर्ट. अकेला बच्चा देखा नहीं कि उस के पीछे पड़ गए.’

सोमेश्वर प्रसाद को एकाएक देख कर लड़के घबरा कर भाग गए. राहुल सोमेश्वर प्रसाद को देख कर चौंक गया. लेकिन परिस्थितियां ऐसी थीं कि उस ने उन के साथ जाने में ही भलाई समझी. उम्रदराज शरीफ लग रहे सज्जन पर उसे भरोसा हो गया.

थोड़ी देर बाद राहुल सोमेश्वर प्रसाद के साथ जयपुर की बस में बैठ कर चल दिया.

सोमेश्वर प्रसाद का स्टील के बरतनों का व्यापार था और वे व्यापार के सिलसिले में ही दिल्ली आए थे. सोमेश्वर प्रसाद ने उस के बारे में जो कुछ पूछा, उस ने सभी बातों का जवाब चुप्पी से ही दिया. हार कर सोमेश्वरजी चुप हो गए और उन्होंने उसे अपने घर ले जाने का निर्णय ले लिया.

घर पहुंचे तो उन की पत्नी उन के साथ एक लड़के को देख कर चौंक गईं. उन्हें अंदर ले जा कर बोलीं, ‘कौन है यह? कहां से ले कर आए हो इसे?’

‘यह लड़का घर से भागा हुआ लगता है. कुछ बदमाश इसे अपने साथ ले जा रहे थे. अच्छे घर का बच्चा लग रहा है. इसलिए इसे अपने साथ ले आया. अभी घबराहट और डर के मारे कुछ बता नहीं रहा है. 2-4 दिन बाद जब इस की घबराहट कुछ कम होगी, तब बातोंबातों में प्यार से सबकुछ पूछ कर इस के घर खबर कर देंगे,’ सोमेश्वर प्रसाद पत्नी से बोले, ‘अभी तो इसे खानावाना खिलाओ, भूखा है और थका भी. कल बात करेंगे.’

सोमेश्वरजी के घर में सब ने उसे प्यार से लिया. धीरेधीरे उस की घबराहट दूर होने लगी. वह उन के परिवार में घुलनेमिलने लगा. रहतेरहते उसे 15 दिन हो गए. राहुल को अब घर की याद सताने लगी. वह अनमना सा रहने लगा. मम्मीपापा की, स्कूल की, संगीसाथियों की याद सताने लगी. महसूस होने लगा कि जिंदगी घर से बाहर इतनी सरल नहीं, ये लोग भी उसे कब तक रखेंगे. किस हैसियत से यहां पर रहेगा? क्या नौकर की हैसियत से? 13-14 साल का लड़का इतना छोटा भी नहीं था कि अपनी स्थिति को नहीं समझता.

और एक दिन उस ने सोमेश्वर प्रसाद को अपने बारे में सबकुछ बता दिया. उस से फोन नंबर ले कर सोमेश्वरजी ने उस के घर फोन किया, जहां बेसब्री से सब उस को ढूंढ़ रहे थे. एकाएक मिली इस खबर पर घर वालों को विश्वास ही नहीं हुआ. जब सोमेश्वरजी ने फोन पर उन की बात राहुल से कराई तो वह फूटफूट कर रो पड़ा.

‘मुझे माफ कर दो पापा, मैं आज से ऐसा कभी नहीं करूंगा, मन लगा कर पढ़ूंगा. मुझे आ कर ले जाओ,’ कहतेकहते उस की हिचकियां बंध गईं. उस की आवाज सुन कर पापा का कंठ भी अवरुद्ध हो गया.

राहुल के घर से भागने के मामले में वे कहीं न कहीं खुद को जिम्मेदार समझ रहे थे. उन की अत्यधिक सख्ती ने उन के बेटे को अपने ही घर में पराया कर दिया था. उसे अपना ही घर बेगाना लगने लगा.

हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है. राहुल की बहन उसी माहौल में रह रही थी. लेकिन वह उस घुटन भरे माहौल में नहीं रह पा रहा था. फिर यों भी लड़कों का स्वभाव अधिक आक्रामक होता है.

जब बेटे को खोने का एहसास हुआ तो अपनी गलतियां महसूस होने लगीं. सभी बच्चों का दिमागी स्तर और सोचनेसमझने का तरीका अलग होता है. अपने बच्चों के स्वभाव को समझना चाहिए. किस के लिए कैसे व्यवहार की जरूरत है, यह मातापिता से अधिक कोई नहीं समझ सकता. किशोरावस्था में बच्चे मातापिता को नहीं समझ सकते, इसलिए मातापिता को ही बच्चों को समझने की कोशिश करनी चाहिए.

खैर, उन के बेटे के साथ कोई अनहोनी होने से बच गई. अब वे बच्चों पर ध्यान देंगे. अब थोड़े समय उन के बच्चों को उन के प्यार, मार्गदर्शन व सहयोग की जरूरत है. हिटलर पिता की जगह एक दोस्त पिता कहलाने की जरूरत है, जिन से वे अपनी परेशानियां शेयर कर सकें.

मन ही मन ऐसे कई प्रण कर के राहुल के मम्मीपापा राहुल को लेने पहुंच गए. राहुल मम्मीपापा से मिल कर फूटफूट कर रोया. उसे भी महसूस हो गया कि वास्तविक जिंदगी कोई फिल्मी कहानी नहीं है. अपने मातापिता से ज्यादा अपना और बड़ा हितैषी इस संसार में कोई नहीं. उन्हें ही अपना समझना चाहिए तो सारा संसार अपना लगता है और उन्हें बेगाना समझ कर सारा संसार पराया हो जाता है.

ये 15 दिन राहुल और राहुल के मातापिता के लिए एक पाठशाला की तरह साबित हुए. दोनों ने ही जिंदगी को एक नए नजरिए से देखना सीखा.

राहुल अभी सोच में ही डूबा था कि तभी दुखी सी सूरत लिए माला बदहवास सी आई. वह अतीत से वर्तमान में लौट आया.

‘‘सुनो, जल्दी चलो जरा. बड़ी अनहोनी घट गई, टिंकू की लाश हाईवे पर सड़क किनारे झाडि़यों में पड़ी मिली है, पता नहीं क्या हुआ उस के साथ.’’

‘‘क्या?’’ सुन कर राहुल बुरी तरह से सिहर गया, ‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘बहुत बुरा हुआ. मातापिता तो बुरी तरह बिलख रहे हैं. संभाले नहीं संभल रहे. इकलौता बेटा था. कैसे संभलेंगे इतने भयंकर दुख से,’’ बोलतेबोलते माला का गला भर आया.

‘‘चलो,’’ राहुल माला के साथ तुरंत चल दिया. चलते समय राहुल सोच रहा था कि टिंकू उस के जैसा भाग्यशाली नहीं निकला. उसे कोई सोमेश्वर प्रसाद नहीं मिला. हजारों टिंकुओं में से शायद ही किसी एक को कोई सोमेश्वर प्रसाद जैसा सज्जन व्यक्ति मिलता है.

बच्चे सोचते हैं कि शायद घर से बाहर जिंदगी फिल्मी स्टाइल की होगी. घर से भाग कर वे जानेअनजाने मातापिता को दुख पहुंचाना चाहते हैं. उन पर अपना आक्रोश जाहिर करना चाहते हैं. पर मातापिता की छत्रछाया से बाहर जिंदगी 3 घंटे की फिल्म नहीं होती, बल्कि बहुत भयानक होती है. बच्चों को इस बात का अनुभव नहीं होता. उन्हें समझने और संभालने के लिए मातापिता को कुछ साल बहुत सहनशक्ति से काम लेना चाहिए. बच्चों का हृदय कोरे कागज जैसा होता है, जिस पर जिस तरह की इबारत लिख गई, जिंदगी की धारा उधर ही मुड़ गई, वही उन का जीवन व भविष्य बन जाता है.

उस दिन अगर उसे सोमेश्वर प्रसाद नहीं मिलते तो पता नहीं उस का भी क्या हश्र होता. सोचते सोचते राहुल माला के साथ तेजी से कदम बढ़ाने लगा.

Father’s day Special: चेहरे की चमक- माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

मेरे लिए गुंजन का रिश्ता मेरी सब से समझदार बूआ ने बताया था. बूआ गुंजन की मामी की सहेली हैं. आज शाम को वे लोग हमारे घर आ रहे हैं.

पापा टैंशन में आ कर खूब शोर मचा रहे थे, ‘‘अब तक बाजार से मिठाई भी नहीं लाई गई…मेरी समझ में नहीं आता कि कई घंटे लगाने के बाद भी तुम लोग वक्त से तैयार क्यों नहीं हो पाते हो…अब बाजार भी मुझ को ही जाना पड़ेगा… ड्राइंगरूम में जो भी फालतू चीजें बिखरी पड़ी हैं, इन्हें कहीं और उठा कर रख देना…पता नहीं तुम लोग वक्त से सारे काम करना कब सीखोगे?’’

पापा के इस तरह के लैक्चर आज दोपहर से राजीव भैया, नीता भाभी और मेरे लिए चल रहे थे. उन के बाजार चले जाने के बाद सचमुच घर में शांति महसूस होने लगी.

राजीव भैया की शादी के कुछ महीने बाद मां की मृत्यु हो गई थी. उन के अभाव ने पापा को बहुत चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना दिया था. उन की कड़वी, तीखी बातें सुन कर नीता भाभी का मुंह आएदिन सूजा रहता था. अब तो वे पापा को जवाब भी दे देती थीं और भैया भी उन का पक्ष लेने लगे थे.

घर में बढ़ते झगड़ों को देख मैं पापा को शांत रहने के लिए बहुत समझाता, पर वे अपने अंदर सुधार लाने को तैयार नहीं थे.

‘घर में गलत काम होते मैं नहीं देख सकता. बदलना तुम लोगों को है, मुझे नहीं,’ पापा उलटा मुझे डांट कर चुप करा देते.

पापा के बाजार से लौटने तक मेहमान आ चुके थे. गुंजन की मम्मी के साथ उन के भैयाभाभी और बड़ी बेटी व दामाद आए थे.

पापा सब का अभिवादन स्वीकार करने के बाद सामान रखने घर के भीतर जाने लगे तो गुंजन की मम्मी ने हैरानी भरी आवाज में उन से पूछा, ‘‘आप राजेंद्र हो न? एसडी कालेज में पढ़े हैं न आप?’’

‘‘जी, लेकिन मैं ने…’’

‘‘तुम मुझे कैसे पहचान पाओगे? मैं अब मोटी हो गई हूं, बाल सफेद हो चले हैं और आंखों पर चश्मा जो लग गया है. अरे, मैं सीमा हूं…तब सीमा कौशिक होती थी. तुम मेरे नोट्स पढ़ कर ही पास होते थे. अब तो पहचान लो, भई,’’ सीमाजी ने हंसते हुए पापा की यादों को कुरेदा.

दिमाग पर कुछ जोर दे कर पापा ने कहा, ‘‘हां, अब याद आ गया,’’ और अपने हाथ में पकड़ा सामान मुझे देने के बाद वे गुंजन की मम्मी के सामने आ बैठे, ‘‘तुम इतनी ज्यादा भी नहीं बदली हो. तुम्हारी आवाज तो बिलकुल वही है. मुझे पहली नजर में ही पहचान लेना चाहिए था.’’

‘‘जैसे मैं ने पहचाना.’’

‘‘पता नहीं तुम ने कैसे पहचान लिया? मेरी शक्ल तो बिलकुल बदल गई है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे बेटे रवि में तुम्हारी उन दिनों की शक्लसूरत की झलक साफ नजर आती है. शायद इसी समानता ने तुम्हें पहचानने में मेरी मदद की. देखो, क्या गजब का संयोग है. मैं अपनी बेटी का रिश्ता तुम्हारे बेटे के लिए ले कर आई हूं.’’

‘‘मेरी समझ से यह अच्छा ही है क्योंकि कालेज में जैसा आकर्षक व्यक्तित्व तुम्हारा होता था, अगर तुम्हारी बेटी वैसी ही है तो मेरे बेटे रवि की तो समझो लाटरी ही निकल आई,’’ पापा के इस मजाक पर हम सब खूब जोर से हंसे तो सीमा आंटी एकदम शरमा गईं.

अब तक सब के मन की हिचक समाप्त हो गई थी. पापा सीमा आंटी के साथ कालेज के समय की यादों को ताजा करने लगे. उन के भैयाभाभी व बेटीदामाद ने मुझ से मेरे बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. नीता भाभी नाश्ते की तैयारी करने अंदर रसोई में चली गईं. राजीव भैया खामोश रह कर हम सब की बातें सुन रहे थे.

उन लोगों के साथ 2 घंटे का समय कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. पापा तो ऐसे खुश नजर आ रहे थे मानो यह रिश्ता पक्का ही हो गया हो.

सीमा आंटी ने चलने से पहले पापा के सामने हाथ जोड़ दिए और भावुक लहजे में बोलीं, ‘‘राजेंद्र, मेरे पास दहेज में देने को ज्यादा कुछ नहीं है. गुंजन के पापा के बीमे व फंड के पैसों से मैं ने बड़ी बेटी की शादी की है और अब छोटी की करूंगी. तुम्हारी कोई खास मांग हो तो अभी…’’

‘‘मुझे जलील करने वाली बात मत करो, सीमा,’’ पापा ने बीच में टोक कर उन्हें चुप करा दिया, ‘‘रवि को गुंजन पसंद आ जाए…और मुझे विश्वास है कि तुम्हारी बेटी इसे जरूर अच्छी लगेगी, तो यह रिश्ता मेरी तरफ से पक्का हुआ. दहेज में मुझे एक पैसा नहीं चाहिए. तुम दहेज की टैंशन मन से बिलकुल निकाल दो.’’

सीमा आंटी बोलीं, ‘‘राजेंद्र, किन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं? अब आप सब लोग हमारे घर कब आओगे?’’

‘‘अगले संडे की शाम को आते हैं,’’ पापा ने उतावली दिखाते हुए कहा.

‘‘ठीक है. अब हम चलेंगे. तुम से मिल कर मन बहुत खुश है और बड़ी राहत भी महसूस कर रहा है. तुम्हारा बेटा रवि हमें तो बहुत भाया है. मेरी दिली इच्छा है कि इस घर से हमारा रिश्ता जरूर जुड़ जाए.’’

पापा के चेहरे के भाव साफ बता रहे थे कि उन की वही इच्छा है जो सीमा आंटी की है.

उन सब के जाने के बाद राजीव भैया पापा से उलझ गए, ‘‘आप को यह कहने की क्या जरूरत थी कि हमें दहेज में एक पैसा भी नहीं चाहिए? उन्हें इंजीनियर लड़का चाहिए तो शादी अच्छी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘अपनी बेटी की अच्छी शादी तो हर मांबाप करते ही हैं. सीमा से जानपहचान ही ऐसी निकल आई कि अपने मुंह से कुछ मांग बताने पर मैं अपनी ही नजरों में गिर जाता,’’ पापा ने शांत स्वर में भैया को समझाया.

‘‘कालेज के दिनों में आप का उन के साथ कोई प्यार का चक्कर तो नहीं चला था न?’’ राजीव भैया ने उन्हें छेड़ा.

‘‘अरे, नहीं,’’ पापा एकदम से शरमाए तो हम तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े थे.

‘‘आगे से बिलकुल दहेज न लेने की बात मत करना, पापा,’’ ऐसी सलाह दे कर राजीव भैया अपने कमरे में चले गए थे.

पापा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए मुझ से कहा, ‘‘तेरा बड़ा भाई उन लोगों में से है जिन का पेट कभी नहीं भरता. लेकिन तू चिंता न कर बच्चे, अगर सीमा की बेटी सूरत, सीरत से अच्छी हुई तो मैं तेरे भाई की एक न सुनते हुए रिश्ता पक्का कर दूंगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हैं आप, पापा. सीमा आंटी के नोट्स पढ़ कर आप ने जो गे्रजुएशन किया है, अब उस एहसान का बदला चुकाने का वक्त आ गया है. आप गुंजन को देखे बिना भी अगर इस रिश्ते को ‘हां’ करना चाहें तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा.’’

मेरी इस बात को सुन पापा बहुत खुश हुए और दिल खोल कर खूब हंसे भी.

रविवार को हम लोग शाम के 5 बजे के करीब सीमा आंटी के घर पहुंच गए. उन के भैयाभाभी और बेटीदामाद ने हमारा स्वागत किया. कुछ देर बाद गुंजन भी हम सब के बीच आ बैठी थी.

पहली नजर में उस ने मुझे बहुत प्रभावित किया. वह मुझे सुंदर ही नहीं बल्कि स्मार्ट भी लगी. हम सब के साथ खुल कर बातें करने में वह जरा भी नहीं हिचक रही थी.

मेरे बारे में कुछ जानने से ज्यादा उसे पापा से अपनी मम्मी के कालेज के दिनों की बातें सुनने में ज्यादा दिलचस्पी थी. पापा एक बार उन दिनों के बारे में बोलना शुरू हुए तो उन्हें रोकना मुश्किल हो गया. उन के पास सुनाने को बहुत कुछ ऐसा था जिस से हम दोनों भाई भी परिचित नहीं थे. पापा को खूब बोलते देख राजीव भैया मन ही मन कुढ़ रहे थे, यह उन के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था. मुझे तो पापा के चेहरे पर नजर आ रही चमक बड़ी अच्छी लग रही थी. उन के कालेज के दिनों की बातें सुनने में मुझे सचमुच बहुत मजा आ रहा था.

‘‘उन दिनों साथ पढ़ने वाली लड़कियों के साथ लड़कों का बाहर घूमने या फिल्म देखने का सवाल ही नहीं पैदा होता था. लड़कियां कभी कालेज की कैंटीन में चाय पीने को तैयार हो जाती थीं तो लड़के फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘तब अधिकतर एकतरफा प्यार हुआ करता था. कोई हिम्मती लड़का ही गर्लफ्रैंड बना पाता था, नहीं तो अधिकतर अपने दिल की रानी के सपने देखते हुए ही कालेज की पढ़ाई पूरी कर जाते थे,’’ पापा ने बड़े प्रसन्न व उत्साहित लहजे में हम सब को अपने समय की झलक दिखाई थी.

‘‘तब लड़कों के मुंह से प्यार का इजहार करने की हिम्मत तो यकीनन कम होती थी पर वे प्रेमपत्र खूब लिखा करते थे. गुमनाम प्रेमपत्र लिखने की कला में तो राजेंद्र, तुम भी माहिर थे,’’ सीमा आंटी ने अचानक यह भेद खोला तो पापा एकदम से घबरा उठे थे.

‘‘मैं ने किसे गुमनाम प्रेमपत्र लिखा था?’’ पापा ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अनिता तुम्हारे सारे प्रेमपत्र हम सहेलियों को पढ़ाया करती थी.’’

‘‘जब मैं ने किसी पत्र पर अपना नाम लिखा ही नहीं था तो तुम कैसे कह सकती हो कि वे…अरे, यह तो आज मैं ने अपनी पोल खुद ही खोल दी.’’

पापा हम से आंखें मिलाने में शरमा रहे थे. हमारी हंसी बंद होने में नहीं आ रही थी. मुझे शरमातेमुसकराते पापा उस वक्त बहुत ही प्यारे लग रहे थे.

चायनाश्ते के बाद गुंजन और मुझे आपस में खुल कर बातें करने के लिए पास के पार्क में भेज दिया गया. पार्क में पहुंचते ही गुंजन ने साफ शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मेरी बात का बुरा न मानना, मैं तुम से अभी शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘अभी से तुम्हारा क्या मतलब है?’’ मैं ने कुछ चिढ़ कर पूछा.

‘‘मुझे पहले एमबीए करना है और बहुत अच्छे कालेज से करना है. उतनी तैयारी शादी के बाद नहीं हो सकती है.’’

‘‘यह बात तुम ने पहले सब को क्यों नहीं बताई?’’

‘‘मम्मी शादी करने के लिए मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. उन से जान छुड़ाने के लिए मैं 2-3 महीनों में एक लड़के से मिलने का नाटक कर लेती हूं.’’

‘‘और तुम्हें उसे रिजैक्ट करना होता है…जैसे अब मुझे करोगी. वाह, तुम ने अपने मनोरंजन के लिए बढि़या खेल ढूंढ़ा हुआ है.’’

‘‘अगर तुम्हें पूरी तरह से रिजैक्ट करूंगी भी तो आज नहीं, कुछ दिनों के बाद करूंगी.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने चौंक कर उलझन भरे स्वर में पूछा.

‘‘मैं तसल्ली से तुम्हें सब समझाती हूं,’’ उस ने उत्साहित अंदाज में मेरा हाथ पकड़ा और पास में पड़ी बैंच की तरफ बढ़ चली.

उस बैंच पर घंटे भर बैठने के बाद हम दोनों घर लौट आए थे. जब हम ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तब सब की नजरें हम पर टिकी यह सवाल पूछ रही थीं, ‘क्या तुम दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया है?’

गुंजन का इशारा पाने के बाद मैं ने सब को सूचित किया, ‘‘अभी हम दोनों किसी फैसले पर नहीं पहुंच पाए हैं. एकदूसरे को समझने के लिए हमें कुछ और वक्त चाहिए.’’

‘‘रवि वैसे दिल का बहुत अच्छा है पर थोड़ा पुराने खयालों का है. मेरे लिए अपना कैरियर…’’

‘‘जरूरत से कुछ ज्यादा ही अहमियत रखता है,’’ रवि ने मुसकराते हुए गुंजन को टोका, ‘‘इस मसले पर हमारे बीच काफी बहस हुई है, लेकिन वह बहस एकदूसरे को नापसंद करने का कारण नहीं बनी है. अगली कुछ मुलाकातों में अगर हम ने अपने मतभेद सुलझा लिए तो दोनों परिवारों के बीच में रिश्ता जरूर बन जाएगा.’’

‘‘आजकल के बच्चों की बस पूछो मत,’’ पापा ने माथे पर बल डाल कर सीमा आंटी से कहा, ‘‘मेरी समझ से गुंजन बहुत अच्छी लड़की है. मैं घर जा कर रवि से बात करता हूं. इसे मेरी खुशी की चिंता होगी तो जल्दी ही तुम तक खुशखबरी पहुंच जाएगी.’’

पापा के यों हौसला बढ़ाने पर सीमा आंटी मुसकराईं तो पापा का चेहरा भी खिल उठा था.

घर लौटने के बाद से पापा ने सवाल पूछपूछ कर मेरा दिमाग खराब कर दिया. ‘‘क्या कमी नजर आई तुझे गुंजन में? वह सुंदर है, स्मार्ट है, शिक्षित है और अच्छा कमा रही है. और क्या चाहिए तुझे?’’

‘‘वक्त, पापा, वक्त. हम एकदूसरे को और ज्यादा अच्छी तरह से समझना चाहते हैं.’’

‘‘मन में बेकार की उलझन पैदा करने का क्या फायदा है? वह अच्छी लगी है न तुझे?’’

‘‘दिल की तो वह बहुत अच्छी है पर…’’

‘‘बस, शादी के लिए हां करने को यही बात काफी है. बाद में किसी भी शादी को सफल बनाने के लिए पतिपत्नी दोनों को समझौते तो करने ही पड़ते हैं.’’

‘‘आप गुंजन को समझाने के लिए भी कुछ बातें बचा लो, पापा,’’ मैं उन के पास से जान बचा कर भाग खड़ा हुआ था.

गुंजन और मेरी अगली मुलाकात उस के घर में सीमा आंटी के जन्मदिन पर अगले शनिवार को हुई. हमें किसी ने बुलाया नहीं था. मैं ने पापा को जिद कर के तैयार किया और सुंदर सा फूलों का गुलदस्ता ले कर हम उन के घर पहुंच गए. अपने आने की सूचना सिर्फ आधे घंटे पहले मैं ने फोन पर गुंजन को दी थी.

उन लोगों के यहां हमारी खातिर करने की कोई तैयारी नहीं थी. गुंजन की दीदी और जीजाजी देर से डिनर पर आने वाले थे. तब मैं ने बाजार से खानेपीने का सामान लाने की जिम्मेदारी ले ली. गुंजन भी मेरे साथ बाजार चली आई थी. वे लोग नहीं चाहते थे कि खानेपीने की चीजों पर मैं खर्च करूं. हम लोग लौट कर घर आ गए. घर में पार्टी की गहमागहमी थी.

पापा की आवाज अच्छी है. उन्होंने हमारी फरमाइश पर 4 पुराने फिल्मी गाने सुनाए तो पार्टी में समा बंध गया. सीमा आंटी के बनाए सूजी के हलवे की जितनी तारीफ की जाए कम होगी.

वे सचमुच बहुत स्वादिष्ठ खाना बनाती हैं, इस का एहसास हमें डिनर करने के समय हो गया था. हम तो डिनर के लिए रुकना ही नहीं चाहते थे पर गुंजन ने जबरदस्ती रोक लिया था. उस की दीदी व जीजाजी के साथ भी उस रात हमारे संबंध और ज्यादा मधुर हो गए.

 

डिनर के बाद गुंजन और मैं घर के बाहर की सड़क पर घूमने निकल आए. मैं उस की मम्मी की और गुंजन मेरे पापा के व्यक्तित्व व व्यवहार की खूब तारीफ कर रहे थे. अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ा और बगीचे में खुलने वाली खिड़की की तरफ चल पड़ी.

‘‘मैं कुछ देखना और तुम्हें दिखाना चाहती हूं,’’ मैं कुछ पूछूं, उस से पहले ही उस ने मुझे अपने मन की बात बता दी थी.

बैठक में रोशनी होने के कारण हम तो अंदर का दृश्य साफ देख सकते थे पर अंदर बैठे लोगों के लिए हमें देखना संभव नहीं था.

बैठक में गुंजन के जीजाजी किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे. उस की बहन टीवी देख रही थी. सीमा आंटी और पापा आपस में बातें करने में पूरी तरह से मशगूल थे.

अचानक पापा की किसी बात पर सीमा आंटी खिलखिला कर हंस पड़ीं. पापा ने अपनी मजाकिया बात को कहना जारी रखा तो सीमा आंटी के ऊपर हंसी का दौरा सा ही पड़ गया था.

वे बारबार इशारे कर पापा से चुप होने का अनुरोध कर रही थीं पर वे रुकरुक कर कुछ बोलते और सीमा आंटी फिर जोर से हंसने लगतीं.

‘‘मैं ने अपनी मम्मी को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा,’’ गुंजन भावुक हो उठी.

‘‘इस वक्त दोनों के चेहरों पर कितनी चमक है,’’ मैं ने प्रसन्न स्वर में कहा, ‘‘लगता है कि हम ने इन दोनों के बारे में जो सपना देखा है, वह बिलकुल ठीक है.’’

‘‘इस उम्र में ही तो इंसान को एक हमसफर की सब से ज्यादा जरूरत होती है.’’

‘‘मुझे तो लगता है कि ये दोनों एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर ही लेंगे.’’

‘‘जब तक ये ऐसा फैसला नहीं करते, हम अपनी शादी के मामले को लटकाए रख कर इन्हें मिलनेजुलने के मौके देते रहेंगे.’’

‘‘तुम्हारी जैसी समझदार दोस्त को पा कर मुझे बहुत खुशी होगी. इन दोनों की शादी कराने का तुम्हारा आइडिया लाजवाब है, गुंजन.’’

‘‘तुम्हारे भैयाभाभी इस शादी का ज्यादा विरोध तो नहीं करेंगे?’’ गुंजन की आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘भैया को इस बात की चिंता तो जरूर सताएगी कि सीमा आंटी हमारी नई मां बन कर पापा की जायदाद में हिस्सेदार बन जाएंगी.’’

‘‘फिर बात कैसे बनेगी?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब सीमा आंटी और पापा के चेहरे की चमक दे रही है. उन की खुशी और हित को ध्यान में रख मैं अपना हिस्सा भैया के नाम कर दूंगा,’’ इस निर्णय को लेने में मेरे दिल ने रत्ती भर हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी.

‘‘तुसी तो गे्रट हो, दोस्त.’’

‘‘थैंक यू,’’ पापा के सुखद भविष्य की कल्पना कर मैं ने जब अचानक गुंजन को गले से लगाया तब हम दोनों की पलकें नम हो रही थीं.

कहीं मेला कहीं अकेला- संयुक्त परिवार में शादी से क्यों डरती थी तनु?

‘‘यह रिश्ता मुझे हर तरह से ठीक लग रहा है. बस अब तनु आ जाए तो इसे ही फाइनल करेंगे,’’ गिरीश ने अपनी पत्नी सुधा से कहा.

‘‘पहले तनु हां तो करे, परेशान कर रखा है उस ने, अच्छेभले रिश्ते में कमी निकाल देती है…संयुक्त परिवार सुन कर ही भड़क जाती है. अब की बार मैं उस की बिलकुल नहीं सुनूंगी और फिर यह रिश्ता उस की शर्तों पर खरा ही तो उतर रहा है. पता नहीं अचानक क्या जिद चढ़ी है कि बड़े परिवार में विवाह नहीं करेगी, क्या हो गया है इन लड़कियों को,’’ सुधा ने कहा.

‘‘तुम्हें तो पता ही है न, यह सब उस की बैस्ट फ्रैंड रिया का कियाधरा है… ऐसी कहां थी हमारी बेटी पर आजकल के बच्चों पर तो दोस्तों का प्रभाव इतना ज्यादा रहता है कि पूछो मत,’’ गिरीशजी बोले.

दोनों पतिपत्नी चिंतित और गंभीर मुद्रा में बातें कर ही रहे थे कि तनु औफिस से

आ गई. मातापिता का गंभीर चेहरा देख चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘फिर कोई रिश्ता आ गया क्या?’’

उस के कहने के ढंग पर दोनों को हंसी आ गई. पल भर में माहौल हलकाफुलका हो गया. तीनों ने साथ बैठ कर चाय पी. फिर गिरीश का इशारा पा कर सुधा ने कहा, ‘‘इस रिश्ते में कोई कमी नहीं लग रही है, यहीं लखनऊ में ही लड़के के मातापिता अपने बड़े बेटेबहू के साथ रहते हैं. छोटा बेटा मुंबई में ही कार्यरत है, वह दवा की कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है.’’

तनु पल भर सोच कर मुसकराती हुई बोली, ‘‘अच्छा, वहां अकेला रहता है?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर यह तो ठीक है. बस, उस के मातापिता बारबार मुंबई न पहुंच जाएं.’’

‘‘क्या बकवास करती हो तनु,’’ सुधा को गुस्सा आ गया, ‘‘उन का बेटा है, क्या वे वहां नहीं जा सकते? कैसी हो गई हो तुम? ये सब क्या सीख लिया है? हम आज भी तरसते हैं कोई बड़ा हमारे सिर पर होता तो कितना अच्छा होता पर सब का साथ सालों पहले छूट गया और एक तुम हो… क्या ससुराल में बस पति से मतलब होता है? बाकी रिश्ते भी होते हैं, उन की भी एक मिठास होती है.’’

‘‘नहीं मां, मुझे घबराहट होती है, रिया बता रही थी…’’

सुधा गुस्से में  खड़ी हो गईं, ‘‘मुझे उस लड़की की कोई बात नहीं सुननी… उस लड़की ने हमारी अच्छीभली बेटी का दिमाग खराब कर दिया है…हमारे परिवार में हम 3 ही हैं. थोड़े दिन पहले तुम जौइंट फैमिली में हर रिश्ते का आनंद उठाना चाहती थी पर इस रिया ने अपनी नैगेटिव बातों से तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है.’’

तनु को भी गुस्सा आ गया. वह भी पैर पटकती हुई अपने रूम में चली गई.

गिरीश और सुधा सिर पकड़े बैठे रह गए.

तनु की बैस्ट फ्रैंड रिया का विवाह 6 महीने पहले ही दिल्ली में हुआ था. उस की ससुराल में सासससुर और पति अनुज थे, समृद्ध परिवार था. रिया भी अच्छी जौब में थी. तनु से ही रिया के हालचाल मिलते रहते थे. दिन भर दोनों व्हाट्सऐप पर चैट करती थीं. अकसर छुट्टी वाले दिन दोनों की बातें सुधा के कानों में पड़ती थीं तो वे मन ही मन बेचैन हो उठती थीं. उन्होंने अंदाजा लगा लिया था कि रिया सासससुर की, यहां तक कि अनुज की भी कमियां निकाल कर तनु को किस्से सुनाती रहती है. वह तनु की बैस्ट फ्रैंड थी,  जिस के खिलाफ एक शब्द भी सुनना तनु को मंजूर नहीं था. तनु को हर बात सुधा से भी शेयर करने की आदत थी इसलिए वह कई बातें उन्हें खुद ही बताती रहती थी.

कभी तनु कहती, ‘‘आज रिया का मूड खराब है मम्मी, उसे अनुज ने मौर्निंग वाक के लिए उठा दिया, उसे सोना था, बेचारी अपनी मरजी से सो भी नहीं सकती.’’

एक दिन तनु ने बताया, ‘‘रिया की सास हैल्थ पर बहुत ध्यान देती हैं… उसे वही बोरिंग टिफिन खाना पड़ता है.’’

सुधा ने पूछा, ‘‘उस की सास ही टिफिन बनाती हैं?’’

‘‘हां, रिया औफिस जाती है तो वे ही घर का सारा काम देखती हैं. उन के यहां कुक है पर उस की सास अपनी निगरानी में ही सब खाना तैयार करवाती हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. रिया को खुश होना चाहिए, इस में शिकायत की क्या बात है?’’

क्या खुश होगी बेचारी, उसे वह टिफिन अच्छा नहीं लगता. वह किसी और को खिला देती है. अपने लिए कुछ मनचाहा और्डर करती है बेचारी.

‘‘इस में बेचारी की क्या बात है? उस की सास हैल्दी खाना बनवा कर क्या गलत कर रही है?’’

तनु को गुस्सा आ गया, ‘‘आप उस की परेशानी क्यों नहीं समझतीं?’’

‘‘यह कोई परेशानी नहीं है. बेकार के किस्से सुना कर तुम्हारा टाइम और दिमाग दोनों खराब करती है वह लड़की.’’

2 दिन तो तनु चुप रही, फिर आदतन तीसरे दिन ही शुरू हो गई, ‘‘रिया के सारे रिश्तेदार दिल्ली में ही रहते हैं. कभी किसी के यहां कोई फंक्शन होता है, तो कभी किसी के यहां. पता नहीं  कितने तो रिश्ते के देवर, ननदें हैं, जो छुट्टी वाले दिन टाइमपास के प्रोग्राम बनाते रहते हैं. रिया थक जाती है बेचारी.’’

सुधा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. रिया की बातें सुनसुन कर थक गई थीं. तनु की सोच बिलकुल बदल गई थी. अच्छीखासी स्नेहमयी मानसिकता की जगह नकारात्मकता ने ले ली थी.

कुछ दिन बाद तनु के उसी रिश्ते की बात को आगे बढ़ाया गया. तनु और रजत मिले. दोनों ने एकदूसरे को पसंद किया. सब कुछ सहर्ष तय कर दिया गया. रजत मुंबई में अकेला रह रहा था, इसलिए उस के मातापिता गौतम और राधा को उस के विवाह की जल्दी थी. विवाह अच्छी तरह से संपन्न हो गया था.

रिया भी अनुज के साथ आई थी. वह तनु से कह रही थी, ‘‘तुम्हारी तो मौज हो गई तनु. सब से दूर अकेले पति के साथ रहोगी. काश, मुझे भी यही लाइफ मिलती पर वहां तो मेला ही लगा रहता है.’’

इस बात को सुन कर सुधा को गुस्सा आया था. सब रस्में संपन्न होने के बाद 1 हफ्ते बाद तनु और रजत मुंबई जाने की तैयारी कर रहे थे. तनु के औफिस की ब्रांच मुंबई में भी थी. उस की योग्यता को देखते हुए उस का ट्रांसफर मुंबई ब्रांच में कर दिया गया. रजत के भाई विजय, भाभी रेखा और 3 साल का भतीजा यश और स्नेह लुटाते सासससुर सब के साथ तनु का समय बहुत अच्छा बीता था.

बीचबीच में  रिया भी निर्देश देती रहती थी, ‘‘मुंबई आने के लिए कहने की फौर्मैलिटी में मत पड़ना, नहीं तो वहां सब डट जाएंगे आ कर.’’ भरपूर स्नेह और आशीर्वाद के साथ दोनों परिवार उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़ने आए.

तनु ने मुंबई पहुंच कर रजत के साथ नया जीवन शुरू किया. रजत के साथ ने उस का जीवन खुशियों से भर दिया. दोनों सुबह निकलते रात को आते. वीकैंड में ही दोनों को थोड़ी राहत रहती. सुबह लताबाई आ कर घर का सारा काम कर जाती. तनु फटाफट किचन का काम देखते हुए तैयार होती. 2 जनों का काम ज्यादा नहीं था पर रात को लौट कर किचन में घुसना अखर जाता.

रजत ने कई बार कहा भी था, ‘‘डिनर के लिए भी किसी बाई को रख लेते हैं.’’

‘‘पर हमारा कोई आने का टाइम तय नहीं है न और फिर घर की चाबी देना भी सेफ नहीं रहेगा.’’

‘‘चलो, ठीक है, मिल कर कुछ कर लिया करेंगे.’’ तनु की रिया से अब भी लगातार चैट चलती रहती थी. रिया उस के आजाद जीवन पर आंहें भरती थी. 5 महीने बीत रहे थे. रजत को 1 हफ्ते की ट्रैनिंग के लिए सिंगापुर भेजा जा रहा था. उस ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? लखनऊ से मातापिताजी को बुला लेते हैं…वैसे भी अभी तक घर से कोई नहीं आया.’’

‘‘नहीं, अकेली कहां, रिया का बहुत मन कर रहा है आने का, वह आ जाएगी… मातापिताजी को तुम्हारे लौटने के बाद बुला लेंगे,’’ तनु ने अपनी तरफ से बात टालने की कोशिश की तो रजत मान गया.

तनु ने मौका मिलते ही रिया को फोन किया, ‘‘अपना प्रोग्राम पक्का रखना, कोई बहाना नहीं.’’

‘‘अरे, पक्का है. मैं पहुंच जाऊंगी. मुझे भी इस भीड़ से छुट्टी मिलेगी. तेरे पास शांति से रहूंगी 1 हफ्ता.’’

जिस दिन रजत गया, उसी दिन शाम तक रिया भी मुंबई पहुंच गई. दोनों सहेलियां गले मिलते हुए चहक उठी थीं. बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. देर रात तक रिया के किस्से चलते रहे. सासससुर की बातें, देवरननदों में हंसीमजाक के किस्से, रिश्तेदारों के फंक्शनों के किस्से.

अगले दिन तनु ने छुट्टी ले ली थी. दोनों खूब घूमीं, मूवी देखी, शौपिंग की, रात को ही घर वापस आईं.

रिया ने कहा, ‘‘हाय, ऐसा लग रहा है दूसरी दुनिया में आ गई हूं. तेरे घर में कितनी शांति है तनु, दिल खुश हो गया यहां आ कर.’’

तनु मुसकरा दी, ‘‘अब थक गई हैं, सोती हैं. कल औफिस जाऊंगी, शाम को जल्दी आ जाऊंगी. सुबह मेड आ कर सब काम कर देगी, अपने टिफिन के साथ तेरा खाना भी बना कर रख दूंगी, आराम से उठना कल.’’

अगले दिन सब काम कर के तनु औफिस चली गई. बारह बजे रिया का फोन आया, ‘‘तनु, क्या बताऊं, मजा आ गया अभी सो कर उठी हूं, कितनी शांति है तेरे घर में, कोई आवाज नहीं, कोई शोर नहीं.’’

थोड़ी देर बातें कर रिया ने फोन काट दिया. तनु सुधा को भी रिया के आने का प्रोगाम बता चुकी थी. सुधा ने कहा था, ‘‘कितने अच्छे लोग हैं, बहू को आराम से 1 हफ्ते के लिए फ्रैंड से मिलने भेज रखा है, फिर भी रिया कद्र नहीं करती उन का.’’

रिया ने आराम से फ्रैश हो कर खाना खाया, टीवी देखा, फिर सो गई. शाम को तनु आई तो दोनों ने चाय पीते हुए ढेरों बातें कीं. रिया की बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं.

अचानक रिया ने कहा, ‘‘तू भी तो बता कुछ…कुछ किस्से सुना.’’

‘‘बस, किस की बात बताऊं, हम दोनों ही तो हैं यहां, सुबह जा कर रात को आते हैं, पूरा हफ्ता ऐसे ही भागतेदौड़ते बीत जाता है, वीकैंड पर ही आराम मिलता है. घर में तो कोई बात करने के लिए भी नहीं होता.’’

‘‘हां कितनी शांति है यहां. वहां तो घर में घुसते ही सासूमां चाय, नाश्ता, खाने की पूछताछ करने लगी हैं. मैं तो थक गई हूं वहां. आए दिन कुछ न कुछ चलता रहता है.’’

तनु आज अपने ही मनोभावों पर चौंकी. उस ने दिल में एक उदासी सी महसूस की. उस ने रिया की बातें सुनते हुए डिनर तैयार किया, बीचबीच में रिया के पति और उस के सासससुर फोन पर बातें करते रहे थे.

दोनों जब सोने लेटीं तो दोनों के मन में अलगअलग तरह के भाव उत्पन्न हो रहे थे. रिया सोच रही थी वाह, क्या बढि़या लाइफ जी रही है तनु. घर में कितनी शांति है, न कोई शोरआवाज, न किसी की दखलंदाजी कि क्या खाना है, कहां जाना है, अपनी मरजी से कुछ भी करो. वाह, क्या लाइफ है. उधर तनु सोच रही थी रिया इतने दिनों से ससुराल का रोना रो रही है कि काश, वह अकेली रह पाती पर मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि अकेले रहने में क्या सुख है? यहां तो हम दोनों के अलावा सुबह बस बाई दिखती है जो मशीन की तरह काम कर के चली जाती है. हमारी चिंता करने वाला तो कोई भी नहीं यहां. मायके में भी हम 3 ही थे, कितना शौक था मुझे संयुक्त परिवार की बहू बन कर हर रिश्ते का आनंद उठाने का. यहां हर वीकैंड में किसी मौल में या कोई मूवी देख कर छुट्टी बिता लेते हैं. घर आते हैं तो थके हुए. कोई भी अपना नहीं दिखता. इस अकेले संसार में ऐसा क्या सुख है, जिस के लिए रिया तरसती रहती है. ऐसे अकेलेपन का क्या फायदा जहां न देवर की हंसीठिठोली हो न ननद की छेड़खानी और न सासससुर की डांट और उन का स्नेह भरा संरक्षण.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के जीवन के बारे में सोच रही थीं. पर तनु मन ही मन फैसला कर चुकी थी कि वह कल सुबह ही लखनऊ फोन कर ससुराल से किसी न किसी को आने के लिए जरूर कहेगी. उसे भी जीवन में हर रिश्ते की मिठास को महसूस करना है. अचानक उस की नजर रिया की नजरों से मिली तो दोनों हंस दीं.

रिया ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही थी?’’

‘‘तुम्हारे बारे में और तुम?’’

‘‘तुम्हारे बारे में,’’ और फिर दोनों हंस पड़ीं, पर तनु की हंसी में जो रहस्यभरी खनक थी वह रिया की समझ से परे थी.

खेल खेल में- नीरज के प्रति शिखा का आकर्षण देख क्यों परेशान हुई अनिता?

शिखा के पास उस समय नीरज भी खड़ा था जब अनिता ने उस से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी को फोन कर के उन से इजाजत ले ली है.’’

‘‘किस बात की?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘आज रात तुम मेरे घर पर रुकोगी.

कल रविवार की शाम मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगी.’’

‘‘कोई खास मौका है क्या?’’

‘‘नहीं. बस, बहुत दिनों से किसी के साथ दिल की बातें शेयर नहीं की हैं. तुम्हारे साथ जी भर कर गपशप कर लूंगी, तो मन हलका हो जाएगा. मैं लंच के बाद चली जाऊंगी. तुम शाम को सीधे मेरे घर आ जाना.’’

नीरज ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘अनिता, मैं शिखा को छोड़ दूंगा.’’

‘‘इस बातूनी के चक्कर में फंस कर ज्यादा लेट मत हो जाना,’’ कह कर अनिता अपनी सीट पर चली गई.

औफिस के बंद होने पर शिखा नीरज के साथ उस की मोटरसाइकिल पर अनिता के घर जाने को निकली.

‘‘कल 11 बजे पक्का आ जाना,’’ नीरज ने शिखा को अनिता के घर के बाहर उतारते

हुए कहा.

‘‘ओके,’’ शिखा ने मुसकरा कहा.

अनिता रसोई में व्यस्त थी. शिखा उन किशोर बच्चों राहुल और रिचा के साथ गपशप करने लगी. अनिता के पति दिनेश साहब घर पर उपस्थित नहीं थे. अनिता उसे बाजार ले गई. वहां एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान में घुस गई. अनिता और दुकान का मालिक एकदूसरे को नाम ले कर संबोधित कर रहे थे. इस से शिखा ने अंदाजा लगाया कि दोनों पुराने परिचित हैं.

‘‘दीपक, अपनी इस सहेली को मुझे एक बढि़या टीशर्ट गिफ्ट करनी है. टौप क्वालिटी की जल्दी से दिखा दो,’’ अनिता ने मुसकराते हुए दुकान के मालिक को अपनी इच्छा बताई.

 

शिखा गिफ्ट नहीं लेना चाहती थी, पर अनिता ने उस की एक न सुनी. दीपक खुद अनिता को टीशर्ट पसंद कराने के काम में दिलचस्पी ले रहा था. अंतत: उन्होंने एक लाल रंग की टीशर्ट पसंद कर ली.

शिखा के लिए टीशर्ट के अलावा अनिता ने रिचा और राहुल के लिए भी कपड़े खरीदे फिर पति के लिए नीले रंग की कमीज खरीदी.

दुकान से बाहर आते हुए शिखा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि दीपक टकटकी बांधे उन दोनों को उदास भाव से देख रहा है. शिखा ने अनिता को छेड़ा, ‘‘मुझे तो दाल में काला नजर आया है, मैडम. क्या यह दीपक साहब आप के कभी प्रेमी रहे हैं?’’

‘‘प्रेमी नहीं, कभी अच्छे दोस्त थे… मेरे भी और मेरे पति के भी. इस विषय पर कभी बाद में विस्तार से बताऊंगी. पतिदेव घर पहुंच चुके होंगे.’’

‘‘अच्छा, यह तो बता दीजिए कि आज क्या खास दिन है?’’

‘‘घर पहुंच कर बताऊंगी,’’ कह कर अनिता ने रिकशा किया और घर आ गईं.

वे घर पहुंचीं तो दिनेश साहब उन्हें ड्राइंगरूम में बैठे मिले. शिखा को देख कर उन के होंठों पर उभरी मुसकान अनिता के हाथ में लिफाफों को देख फौरन गायब हो गई.

‘‘तुम दीपक की दुकान में क्यों घुसीं?’’ कह कर उन्होंने अनिता को आग्नेय दृष्टि से देखा.

‘‘मैं शिखा को अच्छी टीशर्ट खरीदवाना चाहती थी. दीपक की दुकान पर सब से

अच्छा सामान…’’

‘‘मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई उस की दुकान में कदम रखने की?’’ पति गुस्से से दहाड़े.

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ अनिता ने मुसकराते हुए अपने हाथ जोड़ दिए, ‘‘आज के दिन तो आप गुस्सा न करो.’’

‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से मनहूस दिन है,’’ कह कर गुस्से से भरे दिनेशजी अपने कमरे में चले गए.

‘‘मैडम, जब आप को मना किया गया था तो आप क्यों गईं दीपक की दुकान पर?’’

आंखों में आंसू भर कर अनिता ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज मैं तुम्हें 10 साल पुरानी घटना बताती हूं जिस ने मेरे विवाहित जीवन की सुखशांति को नष्ट कर डाला. मैं कुसूरवार न होते हुए भी सजा भुगत रही हूं, शिखा.

‘‘दीपक का घर पास में ही है. खूब आनाजाना था हमारा एकदूसरे के यहां. दिनेश साहब जब टूर पर होते, तब मैं अकसर उन के यहां चली जाती थी.

‘‘दीपक मेरे साथ हंसीमजाक कर लेता था. इस का न कभी दिनेश साहब ने बुरा माना, न दीपक की पत्नी ने, क्योंकि हमारे मन में खोट नहीं था.

‘‘एक शाम जब मैं दीपक के घर पहुंची, तो वह घर में अकेला था. पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर पड़ोसी के यहां जन्मदिन समारोह में शामिल होने गई थी.’’

 

अपने गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछने के बाद अनिता ने आगे बताया, ‘‘दीपक अकेले में मजाक करते हुए कभीकभी रोमांटिक हो जाता था. मैं सारी बात को खेल की तरह से लेती क्योंकि मेरे मन में रत्ती भर खोट नहीं था.

‘‘दीपक ने भी कभी सभ्यता और शालीनता की सीमाओं को नहीं तोड़ा था.

‘‘दिनेश साहब टूर पर गए हुए थे. उन्हें अगले दिन लौटना था, पर वे 1 दिन पहले

लौट आए.

‘‘मेरी सास ने जानकारी दी कि मैं दीपक के घर गई हूं. वह तो सारा दिन वहीं पड़ी रहती है. ऐसी झूठी बात कह कर उन्होंने दिनेश साहब के मन में हम दोनों के प्रति शक का बीज बो दिया.

‘‘उस शाम दीपक मुझे पियक्कड़ों की बरात की घटनाएं सुना कर खूब हंसा रहा था. फिर अचानक उस ने मेरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी. वह पहले भी ऐसा कर देता था, पर उस शाम खिड़की के पास खड़े दिनेश साहब ने सारी बातें सुन लीं.

‘‘उस शाम से उन्होंने मुझे चरित्रहीन मान लिया और दीपक से सारे संबंध तोड़ लिए. और… और… मैं अपने माथे पर लगे उस झूठे कलंक के धब्बे को आज तक धो नहीं पाई हूं, शिखा.’’

‘‘यह तो गलत बात है, मैडम. दिनेश साहब को आप की बात सुन कर अपने मन से गलतफहमी निकाल देनी चाहिए थी,’’ शिखा ने हमदर्दी जताई.

‘‘वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं. वे मेरे बड़े हो रहे बच्चों के सामने कभी भी मुझे चरित्रहीन होने का ताना दे कर बुरी तरह शर्मिंदा कर देते हैं.’’

‘‘यह तो उन की बहुत गलत बात है, मैडम.’’

‘‘मैं खुद को कोसती हूं शिखा कि मुझे खेलखेल में भी दीपक को बढ़ावा नहीं देना  चाहिए था. मेरी उस भूल ने मुझे सदा के लिए अपने पति की नजरों से गिरा दिया है.’’

‘‘जब आप को पता था कि दिनेश साहब बहुत गुस्सा होंगे, तब आप दीपक की दुकान पर क्यों गईं?’’

शिखा के इस सवाल के जवाब में अनिता खामोश रह उस की आंखों में अर्थपूर्ण अंदाज में झांकने लगी.

कुछ पल खामोश रहने के बाद शिखा सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘मुझे दिनेश साहब का गुस्सा… उन की नफरत दिखाने के लिए आप जानबूझ कर दीपक की दुकान से खरीदारी कर के लाई हैं न? मेरी आंखें खोलने के लिए आप ने यह सब किया है न?’’

‘‘हां, शिखा,’’ अनिता ने झुक कर शिखा का माथा चूम लिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम नीरज के साथ प्रेम का खतरनाक खेल खेलते हुए मेरी तरह अपने पति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाओ.’’

‘‘मेरे मन में उस के प्रति कोई गलत भाव नहीं है, मैडम.’’

‘‘मैं भी दीपक के लिए ऐसा ही सोचती थी. देखो, तुम्हारा पति भी दिनेश साहब की तरह गलतफहमी का शिकार हो सकता है. तब खेलखेल में तुम भी अपने विवाहित जीवन की खुशियां खो बैठोगी.

‘‘तुम अपने पति से नाराज हो कर मायके में रह रही हो. यों दूर रहने के कारण पति के मन में पत्नी के चरित्र के प्रति शक ज्यादा आसानी से जड़ पकड़ लेता है. पति के प्यार का खतरा उठाने से बेहतर है ससुराल वालों की जलीकटी बातें और गलत व्यवहार सहना. तुम फौरन अपने पति के पास लौट जाओ, शिखा,’’ अत्यधिक भावुक हो जाने से अनिता का गला रुंध गया.

‘‘मैं लौट जाऊंगी,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया.

‘‘तुम्हारा कल नीरज से मिलने का कार्यक्रम है…’’

‘‘हां.’’

‘‘उस का क्या करोगी?’’

शिखा ने पर्स में से अपना मोबाइल निकाल कर उसे बंद कर कहा, ‘‘आज से यह खतरनाक खेल बिलकुल बंद. उस की झूठीसच्ची प्रशंसा अब मुझे गुमराह नहीं कर पाएगी.’’

‘‘मुझे बहुत खुशी है कि जो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी, वह तुम ने समझ लिया,’’ अपनी उदासी को छिपा कर अनिता मुसकरा उठी.

‘‘मुझे समझाने के चक्कर में आप तो परेशानी में फंस गईं?’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

‘‘लेकिन तुम तो बच गईं. चलो, खाना खाएं.’’

‘‘आप को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और कामना करती हूं कि दिनेश साहब की गलतफहमी जल्दी दूर हो और आप उन का प्यार फिर से पा जाएं.’’

‘‘थैंक यू,’’ शिखा की नजरों से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को छिपाने के लिए अनिता रसोई की तरफ चल दी.

शिखा का मन उन के प्रति गहरे धन्यवाद व सहानुभूति के भाव से भर उठा था.

छलना- क्या थी माला की असलियत?

शलभ ने अपने नए मकान के बरामदे में आरामकुरसी डाली और उस पर लेट गया. शरद ऋतु की सुहानी बयार ने थपकी दी तो उस की आंख लग गई. तभी बगल वाले घर से स्त्रीपुरुष के लड़ने की तेज आवाज आने लगी. जब काफी देर तक पड़ोस का महाभारत बंद नहीं हुआ तो उस ने पत्नी को आवाज लगाई.

‘‘रमा, जरा देखो तो यह कैसा हंगामा है…’’

पत्नी के लौटने की प्रतीक्षा करते हुए शलभ सोचने लगा कि अपनी ससुराल के रिश्तेदारों से त्रस्त हो कर शांति और सुकून के लिए वह यहां आया था. बड़ी दौड़धूप करने के बाद दिल्ली से वह मेरठ में ट्रांसफर करवा सका था. उसे दिल्ली में पल भर भी एकांत नहीं मिलता था. रोज ही दफ्तर जाने के पहले व शाम को दफ्तर से लौटने पर कोई न कोई रिश्तेदार उस के घर आ टपकता था.

तनाव के कारण 33 वर्ष की आयु में ही उस के बाल खिचड़ी हो गए थे. अपनी उम्र से 10 वर्ष बड़ा लगता था वह. नौकरी की टैंशन, राजधानी के ट्रैफिक की टैंशन, रोजरोज की भागमभाग, ऊपर से पत्नी के नातेरिश्तेदारों का दखल.

10 मिनट बाद रमा आते ही चहक कर बोली, ‘‘सरप्राइज है, तुम्हारे लिए. सुनोगे तो झूम उठोगे. बगल वाले घर में मेरी मुंहबोली बहन माला है. उस का 2 वर्ष पहले ही विवाह हुआ है.’’

शलभ का चेहरा मुरझा गया. उस के मुंह से अस्पष्ट सी आवाज निकली, ‘‘यहां भी… ’’

रमा आगे बोली, ‘‘नहीं समझे  भई, मां की सहेली अनुभा मौसी की लड़की है यह. इस के विवाह में मैं नहीं जा पाई थी. अपना दीपू पैदा हुआ था न. मैं वहीं से अनुभा मौसी से फोन पर बात कर के आ रही हूं. कह दिया है मैं ने कि माला की जिम्मेदारी मेरी…’’

और सुनने की शक्ति नहीं थी शलभ में. पत्नी की बात काट कर उस ने विषैले स्वर में पूछा, ‘‘तो वही दोनों इतनी बेशर्मी से झगड़

रहे थे… ’’

आग्नेय नेत्रों से पति को घूरते हुए रमा बोली, ‘‘दोनों पैसे की तंगी से परेशान हैं. भलीचंगी नौकरी थी दोनों के पास. माला की कौलसैंटर में और महेश की एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में. माला देर से घर लौटती थी इसलिए महेश ने उस की नौकरी छुड़वा दी. माला के नौकरी छोड़ते ही महेश की कंपनी भी अचानक बंद हो गई. 2 माह से बेचारों को वेतन नहीं मिला है… मैं ने फिलहाल 10 हजार रुपए देने का वादा…’’

चीख पड़ा शलभ बीच में ही, ‘‘बिना मुझ से पूछे किसी भी ऐरेगैरे को…’’

‘‘ऐरीगैरी नहीं, मेरी मौसी की बेटी है वह…’’ रमा दहाड़ी.

‘‘तो तुम्हारी मौसी क्यों नहीं…’’ बोलतेबोलते रुक गया शलभ. सामने गेट के अंदर प्रवेश कर रहा था एक अत्यंत सुंदर, आकर्षक सजाधजा जवान जोड़ा.  दोनों एकदूसरे के लिए बने दिख रहे थे. शलभ ठगा सा उन्हें देखने लगा.

तभी रमा ऊंचे सुर में चिल्लाई, ‘‘आओ, माला, महेश…’’

अपने शांत जीवन में अनाधिकार प्रवेश कर के खलल उत्पन्न करने वाले इस खूबसूरत जोड़े को नापसंद नहीं कर सका शलभ. सौंदर्य निहारना उस की कमजोरी थी. चायपानी के बाद माला धीरे से बोली, ‘‘दीदी… आप ने पैसे…’’

‘‘हांहां,’’ कहते हुए रमा ने रखे 10 हजार रुपए ला कर माला को दे दिए.

रुपए मिलते ही दोनों हंसते हुए गेट से बाहर हो गए और स्कूटर पर फौरन फुर्र हो गए. शाम को दोनों देर से लौटे और आते ही सीधे रमा के पास आ गए.

घर में प्रवेश करते ही माला सोफे पर पसर गई और बोली, ‘‘खाना हम दोनों यहीं खाएंगे. बिलकुल हिम्मत नहीं है कुछ करने की. बहुत थक गई हूं मैं…’’

‘‘कहां थे तुम दोनों अभी तक ’’ उत्सुकता से पूछा रमा ने.

‘‘पूरा समय ब्यूटीपार्लर में निकल गया,’’ चहक उठी माला, ‘‘पैडीक्योर, मैनीक्योर, फेशियल, हेयर कटिंग, सैटिंग व बौडी मसाज…’’

‘‘तुम तो वैसे ही इतनी सुंदर हो. तुम्हें इन सब की क्या जरूरत है  बहुत पैसे खर्च हो गए होंगे…’’ मरी सी आवाज निकली रमा के मुख से.

‘‘कुछ ज्यादा नहीं, बस 15 सौ रुपए ही लगे हैं,’’ लापरवाही से अपने खूबसूरत केशों को झटका देते हुए बोली माला, ‘‘मैंटेन न करो तो अच्छाखासा रूप भी बिगड़ जाता है. अपनी ओर तो तनिक देखो दीदी, क्या हुलिया बना रखा है आप ने  आप के रूप की मिसाल तो मां आज तक देती हैं. ऐसा लगता है कि आप ने कभी पार्लर में झांका तक नहीं है. या तो पैसा बचाओ या रूप… पैसा तो हाथ का मैल है. आज है कल नहीं…’’

शलभ की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस ने कटाक्ष किया, ‘‘क्या महेश भी दिन भर ‘मैंस पार्लर’ में था ’’

‘‘नहींनहीं,’’ बोली माला, ‘‘उसे कहां फुरसत थी. तमाम बिल जो जमा करने थे. घर का किराया, बिजली का बिल, टैलीफोन का बिल…’’

घबरा गई रमा, ‘‘तब तो पूरे 10 हजार…’’

‘‘हां, पूरे खत्म हो गए. अभी दूध वाले का बिल बाकी है. साथ में रोज का जेब खर्च,’’ बेहिचक माला बोली.

शलभ क्रोध से मन ही मन बुदबुदाया, ‘हाथ में फूटी कौड़ी नहीं, अंदाज रईसों के…’

पति का क्रोधित रूप देख कर रमा घबरा कर बोली, ‘‘माला, तुम थकी हो दिन भर की. जा कर आराम करो. मैं आती हूं…’’

माला के जाते ही शलभ के अंदर दबा आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा, ‘‘कहीं नहीं जाओगी तुम. तुम्हारे रिश्तेदारों से बच कर मैं यहां आया था सुकून की जिंदगी की तलाश में. लेकिन आसमान से गिरा खजूर में अटका.’’

पति से नजरें बचा कर रमा चुपके से 1 हजार रुपए और दे आई माला को और साथ में शीघ्रातिशीघ्र नौकरी ढूंढ़ने की हिदायत भी. उसे पता चला कि माला और महेश ने आसपास के कई लोगों से उधार लिया हुआ था. पैसा हाथ में नहीं रहने पर आपस में झगड़ते थे और पैसा हाथ में आते ही दोनों में तुरंत मेल हो जाता और हंसतेखिलखिलाते वे मौजमस्ती करने निकल पड़ते. स्कूटर में ऐसे सट कर बैठते मानो इन के समान कोई प्रेमी जोड़ा नहीं है. ऐसा लगता था कि उस समय झगड़ने वाले ये दोनों नहीं, कोई दूसरे थे. इन दोनों के आपसी झगड़े के कारण पड़ोसी भी 2 खेमों में बंट गए थे. कुछ माला का दोष बताते थे तो कुछ महेश का. इन दोनों का प्रसंग छिड़ते ही दोनों खेमे बहस पर उतारू हो जाते.

धीरेधीरे 6 माह गुजर गए. इस खूबसूरत जोड़े की असलियत जगजाहिर हो चुकी थी, इसलिए सब से कर्ज मिलना बंद हो गया था. अब मकानमालिक भी इन्हें रोज आ कर धमकाने लगा था. 6 माह से उस का किराया जो बाकी था. एक दिन क्रोधित हो कर मकानमालिक ने माला के घर का सामान सड़क पर फेंक दिया और कोर्ट में घसीटने की धमकी देने लगा. पड़ोसियों के बीचबचाव से वह बड़ी मुश्किल से शांत हुआ.

रोज की अशांति और फसाद से शलभ त्रस्त हो गया. उस का मेरठ से और नौकरी से मन उचाट हो गया. न तो वह मेरठ में रहना चाहता था, न ही दिल्ली वापस जाना चाहता था. इन 2 शहरों को छोड़ कर उस की कंपनी की किस अन्य शहर में कोई शाखा नहीं थी. आखिर नौकरी बदलने की इच्छा से शलभ ने मुंबई की एक फर्म में आवेदनपत्र भेज दिया.

एक शाम शलभ दफ्तर से अपने घर लौटा तो अपने गेट के बाहर पुलिया पर अकेली माला को उदास बैठा पाया. रमा अपनी परिचित के यहां लेडीज संगीत में गई हुई थी. देर रात तक चलने वाले कार्यक्रम के कारण वह शीघ्र लौटने वाली नहीं थी. पूछने पर माला ने बताया कि 6 माह से किराया नहीं देने के कारण मकानमालिक ने उस की व महेश की अनुपस्थिति में मकान पर अपना ताला लगा दिया है. महेश उसे यहां बैठा कर मकानमालिक को मनाने गया था.

शुलभ कुछ देर तो दुविधा की स्थिति में खड़ा रहा फिर उस ने माला को अपने घर के अंदर बैठने के लिए कहा. घर के अंदर आते ही माला शलभ के गले लग कर बिलखने लगी. हालांकि शलभ बुरी तरह चिढ़ा हुआ था मालामहेश की हरकतों से पर खूबसूरत माला को रोती देख उस का हृदय पसीज उठा.

माला का गदराया यौवन और आंसू से भीगा अद्वितीय रूप शलभ को पिघलाने लगा. माला के बदन के मादक स्पर्श से शलभ के तनबदन में अद्भुत उत्तेजना की लहर दौड़ गई. माला के बदन की महक व उस के नर्म खूबसूरत केशों की खुशबू उसे रोमांचित करने लगी.

शलभ के कान लाल हो गए, आंखों में गुलाबी चाहत उतर आई और हृदय धौंकनी के समान धड़कने लगा. तीव्र उत्तेजना की झुरझुरी ने उस के बदन को कंपकंपा दिया. पल भर में वह माला के रूप लावण्य के वशीभूत हो चुका था.

अपने को संयमित कर के शलभ ने माला को अपने सीने से अलग किया और धीरे से सोफे पर अपने सामने बैठा कर सांत्वना दी, ‘‘शांत हो जाओ. सब ठीक हो जाएगा…’’

माला ने अश्रुपूरित आंखों से शलभ की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘पैसा नहीं है हमारे पास… कैसे ठीक होगा ’’

‘‘मैं कुछ करता हूं…’’ अस्फुट भर्राया सा स्वर निकला शलभ के गले से.

‘‘आता हूं मैं बस अभी, तब तक तुम यहीं बैठो…’’ कह कर शलभ ने एटीएम कार्ड उठाया और गाड़ी से निकल पड़ा.

लौट कर शलभ ने माला के हाथ में 6 माह के किराए के 9 हजार जैसे ही थमाए उस ने खुशी से किलकारी मारी. शलभ सोफे पर बैठ कर जूते उतारने लगा तो वह अपने स्थान से उठी, खूबसूरत अदा से अपना पल्लू नीचे ढलका दिया और शलभ के एकदम करीब जा कर उस के कान में मादक स्वर में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्यू जीजू, थैंक्यू.’’

माला के उघड़े वक्षस्थल की संगमरमरी गोलाइयों पर नजर पड़ते ही शलभ का चेहरा तमतमा गया और उस के मुख से कोई आवाज नहीं निकली. वह मुग्ध हो उसे देखने लगा. घर में माला महेश के विरुद्ध शलभ के स्वर एकाएक बंद हो गए. पति के रुख में अचानक बदलाव पा कर रमा को आश्चर्य तो हुआ पर वास्तविकता से अनभिज्ञ उस ने राहत की सांस ली. रोजरोज की तकरार से उसे मुक्ति जो मिल गई थी. नहीं चाहते हुए भी शलभ ने पत्नी से माला को 9 हजार रुपए देने की बात गुप्त रखी.

माला को भी इस बात का एहसास हो गया था कि उसे देख कर सदैव भृकुटि तानने वाला शलभ उस के रूप के चुंबकीय आकर्षण में बंध कर मेमना बन गया था. वह उसे अपने मोहपाश में बांधे रखने के लिए उस पर और अधिक डोरे डालने लगी. जब भी रमा किसी काम से बाहर जाती, सहजसरल भाव से वह माला के  ऊपर घर की देखरेख का जिम्मा सौंप देती. इस का भरपूर फायदा उठाती माला.

उस के दोनों हाथों में लड्डू थे. रमा के सामने आंसू बहा कर माला पैसे मांग लेती और शलभ उस पर आसक्त हो कर अब स्वयं ही धन लुटा रहा था. अपने सहज, सरल स्वभाव वाले निष्कपट अनुरागी पति को अपने प्रति दिनप्रतिदिन उदासीन व ऊष्मारहित  होते देख कर रमा का माथा ठनका पर बहुत सोचनेविचारने के बाद भी वह सत्य का पता नहीं लगा पाई.

माला केवल पैसे ऐंठने के लिए शलभ पर डोरे डाल रही थी. उस की तनिक भी रुचि नहीं थी शलभ में. पर एक दिन शलभ अपना संयम खो बैठा और माला के सामने प्रणय निवेदन करने लगा. पहले तो माला घबरा गई फिर उसे विचित्र नजरों से घूरने लगी फिर बोली, ‘‘जीजू फौरन 10 हजार रुपयों का इंतजाम करो, नहीं तो मैं आप का कच्चाचिट्ठा रमा दीदी के सामने खोलती हूं…’’

मरता क्या न करता. रुपए पा का माला प्रसन्न हुई. फिर उस का लोभ बढ़ता गया. उस ने रमा पर भी अपना भावनात्मक दबाव बढ़ा दिया. शीघ्र ही रमा के घर में आर्थिक तंगी शुरू हो गई. त्रस्त हो कर रमा ने अनुभा मौसी को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए शीघ्र ही रुपए भेजने को कहा तो उन्होंने तमक कर उत्तर दिया, ‘‘छोटी बहन मानती हो न उसे. थोड़ी सी सहायता कर दी तो मुझ से पैसे मांगने लगीं तुम.’’

रमा ने फिर सारी बात मां को बताई तो मां ने भी उसे जम कर खरीखोटी सुना दी, ‘‘मुझ से पहले सलाह क्यों नहीं ली  पैसे लुटाने के बाद अब उस का रोना क्यों रो रही हो  अनुभा और उस के परिवार के काले कारनामों से त्रस्त हो कर हम ने सदा के लिए उन्हें त्याग दिया है.’’

रमा के दिलोदिमाग से मायके के रिश्तेदारों का नशा काफूर हो चुका था. उधर शलभ का मन माला की ओर से उचट हो गया था. लेकिन वे न तो पत्नी को सत्य बताने की हिम्मत जुटा पाए थे, न ही माला की रोज बढ़ती मांगों को पूरा कर पा रहे थे. उन की स्थिति चक्की के दो पाटों में फंसे अनाज जैसी थी. जिस की यंत्रणा वे भोग रहे थे. उन की नींद व चैन छिन गए थे. उन के द्वारा मुंबई की एक फर्म में भेजे गए आवेदनपत्र का अभी तक कोई जवाब भी नहीं आया था.

धीरेधीरे माला ने पुन: कौलसैंटर में कार्य करना शुरू कर दिया. महेश ने एक सिविल ठेकेदार के जूनियर सुपरवाइजर के रूप में काम पकड़ लिया. पर आय कम थी, उन के खर्चे अधिक. धीरेधीरे दोनों की जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगी.

तभी अचानक एक दिन माला कौलसैंटर से अचानक गायब हो गई. काम पर गई तो अपने घर नहीं लौटी. पुलिस ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं मिली. पता चला कि वह उस दिन कौलसैंटर पहुंची ही नहीं थी. बदहवास महेश इधरउधर मारामारा फिरता रहा. फिर कुछ दिनों बाद वह भी कहीं चला गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह अपने मातापिता के पास लौट गया होगा. पड़ोस के घर में सन्नाटा पसर गया. इस दंपती का क्या हश्र हुआ होगा, इस के बारे में लोग तरहतरह की अटकलें लगाने लगे. सब को अपना पैसा डूबने का दुख तो था ही, इस खूबसूरत युवा जोड़े का चले जाना भी कम दुखद नहीं था सब के लिए.

तभी अनुभा मौसी ने शलभ और रमा पर इलजाम मढ़ दिया कि इन्हीं दोनों की मिलीभगत ने मेरी बेटी और दामाद को गायब कर दिया है. बड़ी मुश्किल से जानपहचान वालों के हस्तक्षेप से ये दोनों पुलिस के चंगुल में आने से बचे.

अचानक एक दिन मुंबई की फर्म से इंटरव्यू के लिए शलभ को बुलावा आ गया. बच्चों की छुट्टियां थी. इंटरव्यू के साथ घूमना भी हो जाएगा, इस उद्देश्य से शलभ ने रमा और दोनों बच्चों को भी अपने साथ ले लिया.

पहले दिन इंटरव्यू संपन्न होने के बाद अगले दिन के लिए शलभ ने टूरिस्ट बस में चारों के लिए बुकिंग करवा ली. अगले दिन सुबह 10 बजे चारों मुंबई भ्रमण के लिए टूरिस्ट बस में सवार हो कर निकल पड़े. भ्रमण में फिल्म की शूटिंग दिखलाना भी तय था. पास ही के एक गांव में ग्रामीण परिवेश में एक लोकनृत्य का फिल्मांकन हो रहा था. करीब 75 बालाएं रंगबिरंगे आकर्षक ग्रामीण परिधानों में सजी संगीत पर थिरक रही थीं.

अचानक नन्हा दीपू चीख पड़ा, ‘‘मम्मा, वह देखो, सामने माला मौसी…’’

उसे पहचानने में रमा को देर नहीं लगी. वही चिरपरिचित खूबसूरत मासूम चेहरा. वह पति के कान में फुसफुसाई, ‘‘मैं इसे अनुभा मौसी को लौटा कर अपने नाम पर लगा हुआ दाग अवश्य मिटाऊंगी…’’

लताड़ लगाई शलभ ने, ‘‘खबरदार, अब इस पचड़े से दूर रहो. बाज आया मैं तुम्हारे रिश्तेदारों से…’’

लेकिन रमा नहीं मानी. पति की इच्छा के विरुद्ध उस ने टूरिस्ट बस का बकाया भ्रमण कैंसिल कर के टैक्सी किराए पर ले ली और शूटिंग के उपरांत उस का पीछा करते उस के घर जा पहुंची.

शलभ और रमा को एकाएक सामने पा कर माला अनजान बन गई. दोनों को पहचानने से इनकार कर दिया उस ने. सब्र का बांध टूट गया रमा का. क्रोध से चीखी वह, ‘‘तू यहां ऐश कर रही है और तेरी मां ने हम दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया कि तुझे गायब करने में हमारा हाथ है. चल अभी मेरे साथ इसी वक्त. तुझे मैं मौसी के पास ले चलती हूं.’’

माला ने मौन व्रत धारण कर लिया. क्रोध से आपा खो बैठी रमा. उस के केश पकड़ कर चिल्लाई, ‘‘जो अपने पति की नहीं हुई हमारी कैसे होती. तुझे मालूम है तेरे जाने के बाद तेरा महेश बदहवास हालत में लुटालुटा सा तुझे खोजा करता था. पता नहीं कहां है वह बेचारा.’’

माला ने अचानक चुप्पी तोड़ी और चीखने लगी, ‘‘बचाओ, बचाओ…’’

उस की चीखपुकार सुनते ही वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी. घबरा कर रमा ने माला के केश छोड़ दिए. वहां रुकना उचित न समझ कर शलभ ने रमा की बांह पकड़ी और उसे टैक्सी की ओर खींच कर ले चला.

चलतेचलते वह बोला, ‘‘यहां तमाशा खड़ा न कर के हमें चुपचाप मेरठ में इस के तमाम कर्जदारों को इस का अतापता बता देना चाहिए, वही आगे की कार्यवाही करेंगे.’’

‘‘अतापता ’’ इधरउधर देखते हुए दोहराया रमा ने, ‘‘अरे, यह कौन सी जगह है हमें तो मालूम ही नहीं. रुको अभी आती हूं घर का नंबर, गलीमहल्ला सब पता कर के…’’

रमा जैसे ही पलट कर माला के घर के पास पहुंची तो जड़ हो गई. माला ताली पीटपीट कर हंसते हुए पूछ रही थी, ‘‘कहो मां, कैसी थी मेरी ऐक्टिंग  छुट्टी कर दी न मैं ने माला दीदी की  अब इधर आने की दोबारा जुर्रत नहीं करेंगी…’’

अनुभा मौसी ने शाबासी दी बेटी को, ‘‘मान गए भई, तू ने तो टौप हीरोइंस को भी मात कर दिया. क्या ऐक्टिंग थी तेरी. अब तो तू हीरोइन बनेगी…’’

सामने खड़े हीही कर रहे थे महेश व माला के पिता. रमा को काटो तो खून नहीं. उस में कुछ पूछने और सुनने की शक्ति नहीं थी. लौट कर आ बैठी कार में. पति को सारा वृत्तांत सुना कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. सब की मिलीभगत थी. धोखा दे कर पैसा ऐंठने की अपनी सफलता पर जश्न मना रहे थे वे सब. बड़ी ही मासूमियत से सरल हृदयी लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर के छला था माला महेश ने.

आफत- सासूमां के आने से क्यों दुखी हो गई रितु?

औफिस से घर पहुंचते ही मैं ने छेड़ने वाले अंदाज में रितु से कहा, ‘‘हम 2 से 3 होने जा रहे हैं, मैडम.’’

रितु फौरन मेरे गले में बांहों का हार डाल कर बोली, ‘‘ओह, सुमित, मेरी खुशियों को ध्यान में रखते हुए आखिरकार तुम ने उचित फैसला कर ही लिया न. मैं अभी सारी गर्भनिरोधक गोलियां कूड़े की टोकरी के हवाले करती हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी भी न करो, स्वीटहार्ट,’’

मैं ने उस का हाथ पकड़ कर उसे शयनकक्ष में जाने से रोका, ‘‘हम 2 से 3 होने जा रहे हैं, क्योंकि तुम्हारी मम्मी कुछ दिनों के लिए हमारे पास रहने…’’

‘‘ओह नो…’’ रितु ने जोर से अपने माथे पर हाथ मारा.

‘‘अरे, वे तुम्हारी सगी मम्मी हैं, कोई सौतेली मां नहीं… उन के आने की खबर सुन कर जरा मुसकराओ, यार,’’ मैं ने उसे छेड़ना चालू रखा.

‘‘मेरी सगी मां किसी सौतेली मां से ज्यादा बड़ी आफत लगती हैं मुझे, यह तुम अच्छी तरह जानते हो न. उन का आना टालने के लिए कोई बहाना बना देते तो क्या बिगड़ जाता तुम्हारा?’’ यों शिकायत करते हुए वह मुझ से झगड़ने को तैयार हो गई.

‘‘अरे, मैं क्यों कोई झूठा बहाना बनाता? मुझे तो उन के आने की खबर ने खुश कर दिया है, यार.’’

‘‘मुझे पता है कि जब वे मेरी खटिया खड़ी करेंगी तो तुम्हें खुशी ही होगी. मेरी तबीयत वैसे ही ढीली चल रही है और अब ऊपर से नगर निगम की चेयरमैन मेरे घर में पधार रही हैं,’’ वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

‘‘अब ज्यादा नाटक मत करो और एक कप गरमगरम चाय पिला दो.’’

मैं ने हंसते हुए उसे बाजू से पकड़ कर उठाना चाहा तो उस ने मेरा हाथ जोर से झटका और तुनक कर बोली, ‘‘अब अपनी लाड़ली सासूमां के हाथ की बनी चाय ही पीना.’’

‘‘तुम गुस्से में बहुत प्यारी लगती हो,’’ मैं ने आंखें मटकाते हुए उस की तारीफ की तो वह मुंह बनाती हुई रसोई में मेरे लिए चाय बनाने चली गई.

मेरी सासूमां स्कूल टीचर हैं. पिछली गरमियों की छुट्टियों में वे हमारे पास 2 सप्ताह रह कर गई थीं. अब दशहरे की छुट्टियों में उन्होंने फिर से आने का कार्यक्रम बनाया है. मेरे मातापिता नहीं रहे हैं, इसलिए मुझे उन का आना अच्छा लगता है, लेकिन रितु की हालत पतली हो रही है.

‘‘मैं शादीशुदा हूं, पराए घर आ गई हूं पर अभी भी मम्मी के सामने पड़ते ही मन अजीब सा डर व घबराहट का शिकार हो जाता है. कोई गलती नहीं की है, लेकिन ऐसा लगता है कि किसी गलत काम को करने के बाद प्रिंसिपल के सामने पेशी हो रही है. मेरी इस दशा का फायदा उठा कर ही वे मुझ पर हिटलरी अंदाज में हुक्म चला लेती हैं,’’ रितु ने पिछली बार अपनी मम्मी के आने के अपने मनोभावों से मुझे  अवगत कराया.

मेरी सासूमां अनोखे व्यक्तित्व की मालकिन हैं. घर में अधिकतर जीन्स व टौप पहनती  हैं. नियम से ऐरोबिक्स करने की शौकीन हैं और पार्क में कभी भी घूमने जाने के लिए तैयार रहती हैं. उन्हें घर में गंदगी बिलकुल बरदाश्त नहीं. आलसी व लापरवाह इंसान उन्हें दुश्मन नजर आते हैं.

पिछली बार सासूमां आई थीं तो रितु को खूब खींच कर गई थीं. रितु आरामपसंद इंसान है पर अपनी मां के सामने डट कर काम करने को बेचारी मजबूर हो गई थी. उसे मेरी सासूमां ने शनिवारइतवार की छुट्टियों में 1 मिनट भी आराम नहीं करने दिया था.

वे सारे घर का कायापलट करा गई थीं. परदे, सोफे के कवर, चादरें, पंखे, खिड़कियां आदि सब की साफसफाई हुई थी. घर का फर्श सारे समय जगमगाता रहा था. रसोई में हर चीज अपनी जगह पर मिलने लगी थी. धूलमिट्टी ढूंढ़ने पर भी घर में कहीं नजर नहीं आती थी.

यह तो रही घर में आए बदलाव की बात, इस के अलावा उन्होंने आते ही अपनी बेटी को तंदुरुस्त करने की भी मुहिम छेड़ दी थी.

‘‘शादी के बाद अगर तेरा वजन इसी स्पीड से बढ़ता रहा तो तू एकदम बेडौल हो जाएगी, रितु. फिर अगर अमित ने नई गर्लफ्रैंड बना ली तो क्या करेगी? नो, नो, ऐसी लापरवाही बिलकुल नहीं चलेगी. आज से ही अपनी फिटनैस ठीक करने को कमर कस ले,’’ सासूमां की आंखों में सख्ती के ऐसे भाव मौजूद थे कि रितु चूं भी नहीं कर पाई थी.

घर के सफाई अभियान के साथसाथ रितु की सेहत सुधारने का बीड़ा भी सासूमां ने उठा लिया था. रातदिन बेचारी का पसीना बहता रहता था. ऊपर से खाने में से सारी तलीभुनी चीजें भी गायब हो गई थीं. सासूमां खड़ी हो कर अपनी बेटी से सिंपल व पौष्टिक खाना बनवाती थीं.

मैं बहुत खुश था, अपने घर व रितु में आए परिवर्तन को देख कर. सासूमां की प्रशंसा करते हुए मेरी जबान नहीं थकती थी. ऐसे मौकों पर अपनी मां की नजरें बचा कर रितु मुझे यों घूरती थी मानो कच्चा चबा जाएगी, पर अपनी मां के सामने उस बेचारी की मुझ से लड़ने की हिम्मत नहीं होती थी.

अगले दिन रविवार की सुबह सासूमां 9 बजे के करीब हमारे घर आ पहुंचीं. मैं प्रसन्न था जबकि रितु कुछ बुझीबुझी सी नजर आ रही थी.

‘‘तेरी शक्ल पर क्यों 12 बज रहे हैं, गुडि़या?’’ मुझे ढेर सारे आशीर्वाद देने के बाद उन्होंने पहले अपनी बेटी का ऊपर से नीचे तक मुआयना किया और फिर माथे पर बल डाल कर यह सवाल पूछा.

‘‘आप के सुपरविजन में अब इसे जो ढेर सारे घर के काम करने पड़ेंगे, उन के बारे में सोचसोच कर ही इस बेचारी की जान निकल रही है, मम्मी,’’ मैं मजा लेते हुए बोला.

‘‘नहीं, दामादजी, इस बार तो यह मुझे बहुत कमजोर और उदास लग रही है. क्या तुम मेरी बेटी का ठीक से खयाल नहीं रख रहे हो?’’ वे अचानक मुझ से नाखुश नजर आने लगीं तो मैं हड़बड़ा गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है, मम्मी. इस की तलाभुना खाने की आदत इसे स्वस्थ नहीं रहने…’’ मुझे आधी बात बोल कर चुप होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने मुझ पर से ध्यान हटा लिया था.

सासूमां ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और कोमल स्वर में बोलीं, ‘‘अपने मन की हर चिंता को तू मुझे खुल कर बताना, गुडि़या. इन 10 दिन में मैं तेरे चेहरे पर भरपूर रौनक देखना चाहती हूं.’’

‘‘जब ये परदे, सोफे के कवर वगैरह धुल जाएंगे और…’’

‘‘लगता है कि इस बार मुझे घर के बजाय तेरे व्यक्तित्व को निखारने पर ध्यान देना पड़ेगा.’’

‘‘और व्यक्तित्व निखारने के लिए सुबहशाम घूमने जाने से बढि़या तरीका और क्या हो सकता है, मम्मी?’’

‘‘तू थकीथकी सी लग रही है, बेटी. मैं जब तक यहां हूं, तू खूब आराम कर. कुछ दिनों की छुट्टी जरूर ले लेना. हमें अपने मनोरंजन के पक्ष को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘इंसान जितना ज्यादा प्रकृति के साथ रहेगा, उतना ज्यादा स्वस्थ…’’

‘‘जब 2-4 फिल्में देखेंगे, खूब घूमेंगेफिरेंगे, कुछ मनपसंद शौपिंग करेंगे तो देखना, तेरे मन की सारी उदासी छूमंतर हो जाएगी, मेरी गुडि़या.’’

मेरे जोश के गुब्बारे की हवा सासूमां की बातें सुन कर निकलती चली गई तो मैं ने अपना राग अलापना बंद कर दिया. मेरी समझ में बिलकुल नहीं आ रहा था कि वे इस बार ऐसी अजीबोगरीब बातें रितु से क्यों कर रही हैं.

‘‘ओह, मम्मी, यू आर गे्रट,’’ रितु उछल कर अपनी मां के गले लग गई और साथ ही मुझे जीभ चिढ़ाना भी नहीं भूली.

मैं कुछ बुझाबुझा सा हो गया तो सासूमां ने हंस कर कहा, ‘‘दामादजी, चिंता मत करो. हमारे साथ मौजमस्ती करने तुम भी साथ चलोगे. मैं तुम्हें अपनी बेटी से ज्यादा पसंद करती हूं, कम नहीं. लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है जैसे इस बार तुम्हारे घर में मेरा मन नहीं लगेगा.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हैं आप?’’ मैं ने औपचारिकतावश पूछा.

‘‘अब बिना नाती या नातिन के घर सूना सा लगता है.’’

‘‘मम्मी, अभी तो हमारी शादी को साल भर ही हुआ है. जब 3 साल बीत जाएंगे, तब आप की यह इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आजकल की पीढ़ी पहले खूब धन जोड़ना चाहती है, जी भर कर मौजमस्ती करना चाहती है. उन की प्राथमिकताओं की सूची में बड़ा मकान, महंगी कार और तगड़े बैंक बैलैंस के बाद बच्चे पैदा करने का नंबर आता है.’’

‘‘यू आर राइट, मम्मी. जिस बात को आप इतनी आसानी से समझ गईं, उसे मैं रितु को आज तक नहीं समझा पाया हूं.’’

‘‘मम्मी, मैं ने 28 साल की उम्र में शादी की है, 22-23 की उम्र में नहीं. मेरा कहना है कि अगर मैं जितनी ज्यादा बड़ी उम्र में मां बनूंगी, बच्चा स्वस्थ न पैदा होने की संभावना उतनी ज्यादा बढ़ जाएगी. शादी के 3 साल बाद बच्चा पैदा करना चाहिए, ऐसा कोई नियम थोड़े ही है. इंसान के अंदर समझदारी नाम की भी तो कोई चीज होती है,’’ मौका मिलते ही रितु भड़की और मेरे साथ बहस शुरू करने के मूड में आ गई.

‘‘मम्मी, इस मामले में आप इस की तरफदारी मत करना, प्लीज,’’ मैं ने नाराजगी भरे अंदाज में एक बार रितु को घूरा और फिर ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चला आया.

मैं घर में मुंह फुला कर घूम रहा हूं, इस बात की मांबेटी को कोई चिंता ही नहीं हुई. दोनों नाश्ता करने के बाद तैयार हुईं और घूमने निकल गईं. मुझ से 2-3 बार साथ चलने को कहा मगर मैं ने नाराजगी भरे अंदाज में इनकार किया तो दोनों ने खास जोर नहीं डाला था.

लंच के नाम पर मेरे लिए रितु ने आलू के परांठे बना दिए. वे दोनों 12 बजे के करीब घूमने निकलीं और रात को 8 बजे लौटी थीं. इन 8 घंटों में मेरा कितना खून फुंका होगा, इस का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है.

उन के घर में घुसते ही मैं ने 2 बातें नोट की थीं. पहली तो यह कि वे दोनों 7-8 लिफाफे पकड़े घर लौटी थीं और दूसरी यह कि दोनों के चेहरे जरूरत से ज्यादा दमक रहे थे.

कुछ ही देर में मुझे पता लग गया कि उन दोनों ने 8 हजार की खरीदारी एक दिन में कर ही डाली. रही बात चेहरों पर नजर आते नूर की तो खरीदारी करने से पहले दोनों ब्यूटीपार्लर गई थीं. कुल मिला कर 10 हजार का खर्चा मांबेटी ने 1 दिन में ही कर डाला था.

‘‘देखा, दामादजी, इस वक्त रितु कितनी खुश और स्वस्थ दिख रही है. 10 दिन में तो देखना, यह फिल्मी हीरोइनों को मात करने लगेगी,’’ सासूमां अपनी बेटी को प्रशंसा भरी नजरों से निहार रही थीं.

‘‘मम्मी, 10 दिन में 10 हजार रोज के हिसाब से 1 लाख खर्च कर के अगर इस ने फिल्मी हीरोइनों को मात कर भी दिया तो मैं इस की तारीफ करने के लिए जिंदा कहां रहूंगा? सदमे से मेरी जीवनलीला समाप्त हो चुकी होगी न,’’ मैं दुखी अंदाज में मुसकराया तो सासूमां ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

‘‘कभीकभी बड़ा अच्छा मजाक करते हो, दामादजी. अच्छा, तुम दोनों बैठ कर गपशप करो. मैं बढि़या सा पुलाव बनाने रसोई में जाती हूं,’’ सासूमां रसोई में चली गईं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही रितु ने तीखे लहजे में सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘मैं ने तो मम्मी को बहुत मना किया, पर वे तो कुछ भी सुनने का तैयार नहीं थीं. कह रही थीं कि खरीदारी करने के कारण वे आप को नाराज नहीं होने देंगी. अब आप को जो भी कहना हो, उन्हीं से कहना. मैं तो पहले ही कह रही थी कि इन के यहां आने के कार्यक्रम को कोई बहाना बना कर टाल दो. आप ही अपनी लाड़ली सासूमां को बुलाने का भूत सवार था, अब भुगतो.’’

आगे की बहस से बचने के लिए उठ कर वह शयनकक्ष की तरफ चल दी. मैं ने नाराज स्वर में उसे हिदायत दी, ‘‘अब आगे से एक पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मम्मी तो कह रही हैं कि मैं उन के साथ घूमनेफिरने के लिए औफिस से हफ्ते भर की छुट्टियां ले लूं. अब इस बाबत जो कहना हो, आप उन से कहो. आप को पता तो है कि उन के सामने मुंह खोलने की मेरी हिम्मत नहीं होती है,’’ अपनेआप को साफ बचाती हुई रितु मेरी आंखों से ओझल हो गई.

मैं रितु को औफिस से छुट्टियां लेने से नहीं रोक सका. वे दोनों अगले दिन भी शौपिंग करने गईं और इस बार सासूमां ने रितु को 40 हजार की सोने की चेन खरीदवा दी.

‘‘मम्मी, आप क्या इस बार मुझे कंगाल करने का कार्यक्रम बना कर यहां आई हैं?’’ मैं ने दोनों हाथों से सिर थाम कर उन से यह सवाल पूछा तो वे उदास सी हंसी हंस पड़ीं.

‘‘दामादजी, आज सोने की चेन तो सचमुच मैं ने जबरदस्ती रितु को खरीदवाई है. मन सुबह से बड़ा उचाट था. रात को नींद भी अच्छी नहीं आई थी. सच बात तो यह है कि मन की उदासी दूर करने के चक्कर में ही मैं ने 40 हजार खर्च किए हैं. मन लग ही नहीं रहा है इस बार तुम्हारे यहां. अगर खेलने के लिए कोई नातीनातिन होती…’’

‘‘मम्मी, आप फालतू के खर्च को बंद कर मुझे कंगाल होने से बचाइए और मैं आप से वादा करता हूं कि बहुत जल्द ही आप का कोई नातीनातिन घर में नजर आएगा.’’

मेरे मुंह से इन शब्दों का निकलना था कि मांबेटी दोनों ने पहले खुशी से उछलते हुए तालियां बजानी शुरू कर दीं, फिर सासूमां ने उठ कर मुझे छाती से लगा लिया और रितु मेरा हाथ उठा कर उसे बारबार चूमे जा रही थी.

‘‘थैंक यू, दामादजी,’’ खुशी के मारे सासूमां का गला भर आया, ‘‘मुझे तुम ने इतना खुश कर दिया है कि कल और आज का सारा खर्चा मेरे खाते में गया.’’

‘‘सच?’’ मेरे मन की सारी चिंता पल भर में खत्म हो गई.

‘‘तुम ने जो मुझे नानी बनाने का वादा किया है, वह सच है न?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो मैं भी सच बोल रही हूं, दामादजी. अब लगे हाथ जल्दी पापा बनने की पेशगी मुबारकबाद भी कबूल कर लो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सासूमां को रहस्यमय अंदाज में मुसकराते देख मैं चौंक पड़ा.

‘‘जल्द ही इस घर में नन्हेमुन्हे किलकारियां जो गूंजने वाली हैं.’’

‘‘क्या मम्मी सच कह रही हैं?’’ मैं ने रितु से पूछा.

उस ने गरदन ऊपरनीचे हिला कर ‘हां’ कहा  और टैंशन भरी नजरों से मेरे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘रितु तुम्हें यह खुशखबरी सुनाने से डर रही थी, दामादजी. यह बेवकूफ सोचती थी कि तुम 3 साल बाद बच्चा पैदा करने वाली अपनी जिद पर अड़ कर इस के ऊपर गर्भपात कराने के लिए दबाव डालोगे. तब इस की तसल्ली के लिए मुझे 50 हजार खर्च कर तुम्हारे मुंह से यह कहलवाना पड़ा कि तुम पापा बनने को तैयार हो. मेरे लिए तो यह बड़ा फायदेमंद सौदा रहा है. मैं बहुत खुश हूं, दामादजी,’’ सासूमां ने हम दोनों को इस बार एकसाथ गले लगा लिया.

मैं ने रितु की आंखों में प्यार से झांकते हुए भावुक लहजे में कहा, ‘‘रितु, मैं कंजूस हूं. पैसे जोड़ने के लिए बहुत झिकझिक करता हूं, क्योंकि मातापिता के न रहने से मेरा बचपन बहुत अभावों और दुखों से भरा हुआ था. असुरक्षा का एहसास मेरे मन में बहुत गहरे बैठा हुआ है और उसी के चलते मैं पहले अपनी आर्थिक जड़ें मजबूत कर लेना चाहता था. लेकिन मैं ऐसा पत्थरदिल इंसान नहीं हूं कि आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तुम्हारी कोख में पल रहे अपने बच्चे को मारने का फैसला…’’

‘‘मैं ने आप को समझने में भारी भूल की है. मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों में भर आए आंसुओं को देख रितु फफकफफक कर रोने लगी.

मेरे कुछ बोलने से पहले ही सासूमां शुरू हो गईं, ‘‘रितु, कल से घर की सफाई का काम शुरू हो जाएगा. सुमित, तुम परदे उतरवाने में मेरी हैल्प करना. कल से ही पार्क घूमने भी चला करेंगे हम सब. सेहत को ठीक रखना अब तो और ज्यादा जरूरी हो गया है तुम्हारे लिए, रितु. सिर्फ सप्ताह भर ही है मेरे पास और कितने सारे काम…’’

सासूमां अपनी पुरानी फौर्म में लौट आई हैं, यह देख कर रितु ने ऐसा मुंह बनाया मानो कोई बहुत कड़वी चीज मुंह में आ गई हो और फिर हम तीनों एकसाथ ठहाका मार कर हंसने लगे.

दो टकिया दी नौकरी

‘‘हैलो,’’फोन पर विद्या की जानीपहचानी आवाज सुन कर स्नेहा चहक उठी.

‘‘क्या हालचाल हैं… और सुना सब कैसा चल रहा है…’’ कुछ औपचारिक बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने पति की बुराई में लग गईं.

‘‘प्रखर को तो घर की कोई चिंता ही नहीं रहती. कल मैं ने बोला था कि शाम को जल्दी आ जाना. टिंकू के जूते खरीदने हैं. पर इतनी देर में आया कि क्या बताऊं,’’ विद्या बोली.

यह सुन कर स्नेहा भी बोल पड़ी, ‘‘यह रूपेश भी ऐसा ही करता है. जब जल्दी आने को बोलूं तो और भी देर से आता है. शुक्रवार की ही बात ले लो. नई फिल्म देखने का प्लान था हमारा… इतनी देर से आया कि आधी फिल्म छूट गई.’’

दोनों गृहिणियां थीं. दोनों के पति एक ही कंपनी में काम करते थे. बच्चे भी लगभग समान उम्र के थे. दोनों का अपने पति की औफिस की पार्टी के दौरान एकदूसरे से पहली बार मिलना हुआ था. दोनों के पति एक ही औफिस में काम करने के कारण लगभग एक ही तरह की समस्या से गुजरते थे. शुरुआत में दोनों अपनेअपने पति के औफिस के बारे में ही बातें किया करती थीं, लेकिन जल्दी ही उन की बातों का विषय अपनेअपने पति की बुराई करना बन गया.

तभी स्नेहा के घर की घंटी बजी तो वह बोली, ‘‘विद्या, शायद मेरी कामवाली आ गई है. चल, बाद में फोन करती हूं,’’ कह कर स्नेहा ने फोन काट दिया. दरवाजा खोलते ही रमाबाई अंदर आ गई और फिर जल्दीजल्दी काम निबटाने लगी.

‘‘क्या बात है रमा… आज बड़ी जल्दी में लग रही हो?’’ स्नेहा ने पूछा तो वह रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ?’’ स्नेहा ने हैरान होते हुए पूछा.

तब रमा रोतेरोते बोली, ‘‘क्या बताएं बीबीजी, हमारा आदमी एक स्कूल बस के ड्राइवर की नौकरी करता था. कल गलती से स्कूल के एक बच्चे को स्कूल के लिए लेना भूल गया तो नाराज हो कर मालिक ने नौकरी से ही निकाल दिया.’’

‘‘उफ,’’ स्नेहा को सहानुभूति हुई.

फिर रमाबाई अपना काम कर के चली गई. तब स्नेहा को याद आया कि आज तो सब्जी भी नहीं है. लव और कुश भी स्कूल से आते ही होंगे. जल्दीजल्दी सब्जी की दुकान की तरफ चल दी. मन ही मन बड़बड़ा रही थी कि यह रूपेश सब्जी तक नहीं ले कर आता. सारा काम खुद ही करना पड़ता है.

स्नेहा घर आ कर खाना बनाने में जुट गई. बच्चों के स्कूल से आने के बाद उन्हें खाना खिलाना, पार्क ले जाना, होमवर्क करवाना आदि इन्हीं सब में शाम बीत जाती. रात के खाने की तैयारी के दौरान रूपेश भी घर आ जाता. बस खाना खा कर सो जाता. यही उस की दिनचर्या बन गई थी.

कभीकभी स्नेहा इस दिनचर्या से तंग आ जाती तो रूपेश के घर आते ही उस से झगड़ पड़ती, ‘‘तुम मेरे लिए तो छोड़ो, बच्चों तक के लिए समय नहीं देते.’’

जवाब में रूपेश भी गुस्सा करता, ‘‘तुम पूरा दिन घर में रहती हो. तुम्हें क्या पता मुझे दिन भर कितनी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. तुम विद्या से पूछना. प्रखर भी अभी तक रुका हुआ था… कंपनी की हालत ठीक नहीं चल रही है. जब से यह अशोका नामक नई कंपनी खुली है तब से हमारी कंपनी का बिजनैस काफी कम हो गया है.’’

‘‘बसबस, रहने दो. तुम्हारी कंपनी में रोज ही कोई न कोई समस्या होती है. अरे, इतनी ही बुरी हालत है तो कंपनी छोड़ ही क्यों नहीं देते?’’ स्नेहा गुस्से में बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई.

अगले दिन फिर सुबह फोन पर रूपेश और प्रखर की बुराई का सिलसिला चल पड़ता.

विद्या और स्नेहा ने एक रविवार को साथ पिकनिक का प्लान बनाया. हंसीमजाक, मौजमस्ती के बीच में भी प्रखर और रूपेश कंपनी की बातें करते जा रहे थे.

आखिरकार स्नेहा खीज कर बोली, ‘‘तुम लोग यह कंपनी छोड़ कर कोई बिजनैस क्यों नहीं शुरू करते?’’

‘‘बिजनैस?’’ सभी एकसाथ बोल पड़े.

‘‘हां, थोड़ा लोन ले लेंगे, कुछ गहने आदि बेच कर हम शुरुआत के लिए तो रकम जुटा ही लेंगे,’’ स्नेहा बोली.

स्नेहा की बात अच्छी तो सब को लगी, लेकिन बिजनैस करना कोई बच्चों का खेल नहीं. प्रखर ने तो साफ मना कर दिया, ‘‘बिजनैस करना जोखिम से भरा होता है. चले या न चले इस की कोई गारंटी नहीं रहती. न बाबा न, मैं नहीं करने वाला बिजनैस.’’

लेकिन यह बात विद्या को बड़ी पसंद आई. बोली, ‘‘स्नेहा ठीक ही तो कह रही है, बिजनैस करो और मनचाही छुट्टियां कर लो, बौस की नाराजगी का कोई डर नहीं.’’

‘‘बिजनैस करना एक तरह से जुआ खेलने के समान है. सब कुछ दांव पर लगा कर भी जीत सुनिश्चित नहीं होती,’’ प्रखर के कहने पर बात आईगई हो गई.

रूपेश अपने परिवार को प्यार करता था. परिवार को अधिक समय दे पाने की ख्वाहिश उस की भी थी, लेकिन कई बार अपने बौस के गुस्से के डर से अपने घर की जिम्मेदारियां पूरी तरह से नहीं निभा पाता था. वह स्नेहा के सुझाव पर ध्यान से सोचने लगा.

अगले दिन जैसे ही स्नेहा ने विद्या से बात करने के लिए फोन हाथ में उठाया तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. ‘लगता है रमाबाई आ गई,’ मन ही मन सोचते हुए स्नेहा ने दरवाजा खोला, तो सामने रूपेश को देख कर चौंक उठी. बोली, ‘‘आप अभीअभी तो औफिस गए थे. इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘अब मैं औफिस जाऊंगा ही नहीं, नौकरी जो छोड़ आया हूं,’’ रूपेश ने मुसकराते हुए कहा.

स्नेहा सुन कर परेशान हो गई, ‘‘बौस से कहासुनी हो गई क्या? ऐसे कैसे नौकरी छोड़ दी?’’

‘‘अरे बाबा बिजनैस जो करना है.’’

रूपेश के जवाब पर स्नेहा मुसकराई तो जरूर पर मन ही मन घबरा भी गई. उस ने तो यह सोच कर कह दिया था बिजनैस करने को कि प्रखर और रूपेश मिल कर बिजनैस करेंगे. फायदा या नुकसान जो भी हो दोनों मिल कर झेल लेंगे और फिर एक और एक ग्यारह होते हैं. लेकिन जब प्रखर ने मना कर दिया तो उस ने आगे सोचा भी नहीं, पर यह रूपेश तो अपनी जौब ही छोड़ आया. स्नेहा कुछ बोल न पाई. तभी रमाबाई आ गई और स्नेहा घर के काम में लग गई.

‘‘रूपेश, मैं सब्जी ले कर आती हूं,’’ कह स्नेहा जाने लगी तो रूपेश भी उस के साथ हो लिया.

‘‘अरे बाबूजी आप?’’ सब्जी वाला जो

रोज स्नेहा के सब्जी खरीदने की वजह से उस

से काफी परिचित हो चुका था, रूपेश से बोल उठा, ‘‘आइएआइए बाबूजी… आज काम पर नहीं गए क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘क्यों?’’ पूछ सब्जी वाले ने यों देखा जैसे रमाबाई के पति की तरह रूपेश को भी नौकरी से निकाल दिया गया हो.

स्नेहा कुछ बोल न पाई. घर आ कर उस ने जल्दीजल्दी सब्जी बनाई. फिर रूपेश से बोली, ‘‘लवकुश के स्कूल से आने का समय हो गया है. मैं चावल चढ़ा कर जा रही हूं, तुम थोड़ी देर बाद आंच बंद कर देना.’’

‘‘ठहरो, मैं भी चलता हूं. चावल आ कर बना लेना,’’ कह रूपेश भी साथ चल दिया.

बसस्टौप पर बच्चे पापा को देख कर

हैरान थे.

‘‘पापा आज तो बारिश नहीं हुई. फिर आप के औफिस में रेनीडे की छुट्टी क्यों हो गई?’’ नन्हे कुश ने बोला तो सभी हंस पड़े.

घर आने पर जब तक स्नेहा से खाना नहीं बना तब तक बच्चों ने खानाखाना का राग अलाप कर दोनों की नाक में दम कर दिया.

खाना खा कर रूपेश ने स्नेहा से बोला, ‘‘आओ मिल कर बिजनैस की प्लानिंग करते हैं.’’

पर स्नेहा को फुरसत कहां?

‘‘रूपेश तुम बच्चों को होमवर्क करवा दो. तब तक मैं कपड़े धो लेती हूं. फिर आराम से बैठ कर बिजनैस की प्लानिंग करेंगे.’’

बच्चों को होमवर्क करवाना आसान नहीं था. लव ने जब पापा से पूछा कि कद्दू और बैगन में क्या फर्क है, तो रूपेश बोला, ‘‘लिख दो कि कद्दू हरा और बैगन बैगनी होता है,’’ पापा के जवाब पर लव जोरजोर से हंसने लगा तो कुश भी उस के साथ मिल कर तालियां बजाबजा कर हंसने लगा.

शोर सुन कर कपड़े धोना छोड़ कर स्नेहा भागीभागी आई, ‘‘क्या बात है, तुम दोनों पढ़ाई क्यों नहीं कर रहे? तब लव ने वही सवाल स्नेहा से भी पूछ लिया.

‘‘बैगन एक श्रब है और कद्दू क्रीपर.’’

स्नेहा के जवाब पर लव और कुश फिर से पापा को देख कर हंस दिए.

होमवर्क के लिए पापा को तंग न करने का निर्देश दे कर स्नेहा फिर से कपड़े धोने चली गई. रूपेश आंखें बंद कर के चुपचाप लेट गया. थोड़ी देर बाद बच्चों ने फिर से कुछ पूछने की कोशिश की तो रूपेश ने सोने की ऐक्टिंग करने में ही भलाई समझी. थोड़ी देर बाद पापा को सोया देख दोनों खेलने भाग गए. काफी देर बाद आंख खुली तो देखा शाम हो आई है.

स्नेहा लवकुश को डांट रही थी, ‘‘शाम हो गई है और तुम दोनों अपना होमवर्क छोड़ कर खेल में ही लगे हो.’’

तभी रूपेश को जागा देख कर स्नेहा शांत हो कर चाय बनाने चली गई. चाय पी कर स्नेहा बच्चों को होमवर्क कराने लगी.

रूपेश सोच में पड़ गया कि स्नेहा को तो पूरा दिन चैन से बैठने की भी फुरसत नहीं मिली. बिजनैस में मेरा हाथ बंटाने का वक्त कहां से निकालेगी.

‘‘खाने में क्या बनाऊं?’’ तभी स्नेहा की आवाज से रूपेश की तंद्रा टूटी.

अगले दिन रूपेश औफिस नहीं गया. रमाबाई आ कर अपना काम करते हुए आज फिर से रो पड़ी, ‘‘बीबीजी, साहब को बोलो कि मेरे आदमी को अपने लिए ड्राइवर रख लें. जब तक उस की कहीं नौकरी नहीं लग रही तब तक उसे काम पर रख लो. नहीं तो मेरे बच्चों का स्कूल छूट जाएगा.’’

स्नेहा के कहने पर ही रमाबाई ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल के बजाय

प्राइवेट स्कूल में डाला था. स्नेहा कैसे बताती कि खुद उस का पति ही नौकरी छोड़ आया है. वह उस के पति को काम पर कैसे रख सकता है?

स्नेहा अपने गहने निकालना. जरा देखूं तो बिजनैस के लिए कितने पैसों का इंतजाम हो जाएगा.

रूपेश के कहने पर स्नेहा ने अपने गहनों का डब्बा निकाला. कांपते हाथों से उसे रूपेश के हवाले कर के वह कुछ उदास सी हो गई.

तभी विद्या का फोन आ गया, ‘‘आज औफिस में पार्टी है. तू आ रही है न?’’

‘‘देखूंगी,’’ अनमने भाव से कह स्नेहा ने फोन काट दिया. फिर सोचने लगी कि बिना गहनों के अब वह पार्टी में कैसे जाएगी?

अत: रूपेश के पास जा कर बोली, ‘‘सुनो, क्या हम इन गहनों को 1-2 दिन के बाद नहीं बेच सकते?’’

‘‘ठीक है,’’ कह रूपेश ने गहनों का डब्बा वापस कर दिया.

स्नेहा को उन बेजान गहनों पर बेतहाशा प्यार उमड़ आया कि ये कंगन मेरी मां ने बनवाए थे. यह अंगूठी मेरी दीदी ने गिफ्ट की थी, यह सोने की चैन मेरी बूआ की आखिरी निशानी है और यह हार बड़े प्यार से रूपेश ने मेरे लिए बनवाया था. उस की आंखों भीगने लगीं.

1-1 कर वह गहनों को चूमने लगी.

तभी विद्या का फिर फोन आ गया. बोली, ‘‘तू ने बताया ही नहीं स्नेहा कि पार्टी में आ रही है या नहीं?’’

‘‘हांहां,’’ कह स्नेहा कुछ सामान्य हुई, ‘‘पर यह तो बता कि पार्टी है किस बात की?’’

‘‘बौस का जन्मदिन है न, तभी तो 2 दिन की छुट्टी है.’’

‘‘अच्छा ठीक है, मैं बाद में बात करती हूं,’’ कह स्नेहा ने फोन काट दिया. वह सीधे रूपेश के पास पहुंची, ‘‘मुझे बेवकूफ बनाया तुम ने, मुझ से कहा कि मैं नौकरी छोड़ आया हूं जबकि तुम्हारे औफिस में छुट्टी थी.’’

‘‘हां, औफिस में छुट्टी तो थी, लेकिन मैं सचमुच सोच रहा था कि नौकरी छोड़ दूं. आज बौस के जन्मदिन की पार्टी में ही मैं अपना त्यागपत्र देने वाला था. यह देखो मैं ने लिख भी रखा है.’’

2 दिन पहले का लिखा त्यागपत्र देख कर स्नेहा को विश्वास हो गया कि रूपेश सचमुच नौकरी छोड़ने वाला है.

शाम को पार्टी के लिए तैयार होते हुए स्नेहा की आंखें बारबार भीग रही थीं कि इन सारे गहनों को अब वह नहीं पहन पाएगी या फिर शायद 4-5 साल बाद जब उन का बिजनैस चल जाए तो फिर से खरीद लें… पर कम से कम 4-5 साल तो उसे इन के बिना ही रहना पड़ेगा.

पार्टी के लिए गाड़ी से जाते हुए स्नेहा सोच रही थी कि अगर रूपेश नौकरी न छोड़े तो वह रमाबाई के पति को ड्राइवर रख ले.

पूरा दिन स्नेहा कितना काम करती है, अगर वह बिजनैस में हाथ बंटाएगी तो घर और बच्चे कौन संभालेगा?’’ रूपेश भी चिंता में था.

पार्टी जोरशोर से चल रही थी. वहां पहुंचते ही प्रखर और विद्या उन्हें मिल गए. पार्टी के बाद बौस ने सब को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आज की पार्टी मेरे औफिस में काम करने वाले सभी दोस्तों की बीवियों के नाम… अगर वे घर की जिम्मेदारियों से अपने पतियों को मुक्त न रखतीं तो सारे कर्मचारी औफिस में मन लगा कर काम न कर पाते.’’

स्नेहा का दिल जोरों से धड़क रहा था कि अब रूपेश त्यागपत्र दे देगा और ये पार्टियां वगैरह बंद हो जाएंगी.

घर लौटते वक्त रूपेश ने कहा, ‘‘स्नेहा, तुम मेरे और बच्चों के लिए बहुत मेहनत करती हो. बौस ने सच ही कहा कि अगर तुम पूरी जिम्मेदारी से घर संभालती हो तो मैं पूरी जिम्मेदारी से औफिस का काम कर पाता हूं. मैं बेकार में तुम पर गुस्सा करता हूं. सौरी…’’

‘‘रूपेश, तुम्हारा काम भी तो कम महत्त्वपूर्ण नहीं. हमारे पास आज जो कुछ भी है वह तुम्हारी मेहनत का ही तो फल है. दरअसल, मैं इस सब की आदी हो चुकी हूं, इसलिए मैं बेकार की शिकायत करती रहती हूं. लेकिन कभी यह सब खो गया तो पता नहीं मैं कैसे सह पाऊंगी? अच्छा ही हुआ जो तुम ने त्यागपत्र नहीं दिया.’’

होटल ऐवरेस्ट: विजय से क्यों दूर चली गई काम्या?

चित्रा के साथ शादी के 9 सालों का हिसाब कुछ इस तरह है: शुरू के 4 साल तो यह समझने में लग गए कि अब हमारा रिश्ता लिव इन रिलेशन वाले बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड का नहीं है. 1 साल में यह अनुभव हुआ कि शादी का लड्डू हजम नहीं हुआ और बाकी के 4 साल शादी से बाहर निकलने की कोशिशों में लग गए. कुल मिला कर कहा जाए तो मेरे और चित्रा के रिश्ते में लड़ाईझगड़ा जैसा कुछ नहीं था. बस आगे बढ़ने की एक लालसा थी और उसी लालसा ने हमें फिर से अलगअलग जिंदगी की डोर थामे 2 राही बना कर छोड़ दिया. हमारे तलाक के बाद समझौता यह हुआ कि मुझे अदालत से अनुमति मिल गई कि मैं अपने बेटे शिवम को 3 महीने में 1 बार सप्ताह भर के लिए अपने साथ ले जा सकता हूं. तय प्रोग्राम के मुताबिक चित्रा लंदन में अपनी कौन्फ्रैंस में जाने से पहले शिवम को मेरे घर छोड़ गई.

‘‘मम्मी ने कहा है मुझे आप की देखभाल करनी है,’’ नन्हा शिवम बोला. उस की लंबाई से दोगुनी लंबाई का एक बैग भी उस के साथ में था.

‘‘हम दोनों एकदूसरे का ध्यान रखेंगे,’’ मैं ने शरारती अंदाज में उस की ओर आंख मारते हुए कहा. ऐसा नहीं था कि वह पहले मेरे साथ कहीं अकेला नहीं गया था पर उस समय चित्रा और मैं साथसाथ थे. पर आज मुझ में ज्यादा जिम्मेदारी वाली भावना प्रबल हो रही थी. सिंगल पेरैंटिंग के कई फायदे हैं, लेकिन एकल जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता.

मैं ने गोवा में होटल की औनलाइन बुकिंग अपनी सेक्रेटरी से कह कर पहले ही करवा दी थी. होटल में चैकइन करते ही काउंटर पर खड़ी रिसैप्शनिस्ट ने सुइट की चाबियां पकड़ाते हुए दुखी स्वर में कहा, ‘‘सर, अभी आप पूल में नहीं जा पाएंगे. वहां अभी मौडल्स का स्विम सूट में शूट चल रहा है.’’ मन ही मन खुश होते हुए मैं ने नाटकीय असंतोष जताया और पूछा, ‘‘यह शूट कब तक चलेगा?’’

‘‘सर, पूरे वीक चलेगा, लेकिन मौर्निंग में बस 2 घंटे स्विमिंग पूल में जाने की मनाही है.’’

तभी एक मौडल, जिस ने गाउन पहन रखा था मेरी ओर काउंटर पर आई. वह मौडल, जिसे फ्लाइट में मैगजीन के कवर पर देखा हो, साक्षात सामने आ गई तो मुझे आश्चर्य और आनंद की मिलीजुली अनुभूति हुई. कंधे तक लटके बरगंडी रंग के बाल और हलके श्याम वर्ण पर दमकती हुई त्वचा के मिश्रण से वह बहुत सुंदर लग रही थी. उस ने शिवम के सिर पर हाथ फेरा और उसे प्यार से हैलो कहा. शिवम को उस की शोखी बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर सकी. ‘काश मैं भी बच्चा होता’ मैं ने मन ही मन सोचा.

‘‘डैडी, मुझे पूल में जाना है,’’ शिवम बोला.

‘‘पूल का पानी बहुत अच्छा है. देखते ही मन करता है कपड़े उतारो और सीधे छलांग लगा दो,’’ मौडल बोली. फिर उस ने काउंटर से अपने रूम की चाबी ली और चल दी. लिफ्ट के पास जा कर उस ने मुझे देख कर एक नौटी स्माइल दी.

थोड़ी देर पूल में व्यतीत करने और डिनर के बाद मैं शिवम के साथ अपने सुइट में आ गया. अगली सुबह शिवम बहुत जल्दी उठ गया. हम जब पूल में तैर रहे थे तो वह तैरते हुए पूरे शरीर की फिरकी ले कर अजीब सी कलाबाजी दिखा रहा था. मेरी आंखों के सामने कितना रहा है फिर भी मैं नहीं जानता कि वह क्याक्या कर सकता है. मुझे अपने बेटे के अजीब तरह के वाटर स्ट्रोक्स पर नाज हो रहा था. नाश्ते में मैं ने मूसली कौंफ्लैक्स व ब्लैक कौफी ली और उस ने चौकलेट सैंडविच लिया. 10 बजतेबजते सभी मौडल्स पूल एरिया के आसपास मंडराने लगीं. मैं ने वीवीआईपी पास ले कर शूट देखने की परमिशन ले ली. फिर जब तक मौडल्स पूल में नहीं उतरीं, तब तक मैं ने तैराकी के अलगअलग स्ट्रोक्स लगा कर उन्हें इंप्रैस करने की खूब कोशिश की. अपने एब्स और बाई सैप्स का भी बेशर्मी के साथ प्रदर्शन किया.

पूल में सारी अदाएं दिखाने के बाद भी आकर्षण का केंद्र शिवम ही रहा. कभी वह पैडल स्विमिंग करता, कभी जोर से पानी को स्प्लैश करता, तो कभी अपनी ईजाद की गई फिरकी दिखाता. नतीजा यह हुआ कि 4-5 खूबसूरत मौडल्स उसे तब तक हमेशा घेरे रहतीं जब तक वह पूल में रहता. वह तो असीमित ऊर्जा और शैतानी का भंडार था और उस की कार्टून कैरेक्टर्स की रहस्यमयी जानकारी ने तो मौडल्स को रोमांचित कर हैरत में डाल दिया. अगले 2 दिनों में मैं छुट्टी के आलस्य में रम गया और शिवम एक छोटे चुबंक की तरह मौडल्स और अन्य लोगों को आकर्षित करता रहा. मुझे भी अब कोई ऐक्शन दिखाना पड़ेगा, इसी सोच के साथ मैं ने मौडल्स से थोड़ीबहुत बातचीत करना शुरू कर दिया. मुझे पता चला कि वह सांवलीसलोनी मौडल, जो पहली बार रिसैप्शनिस्ट के काउंटर पर मिली थी, शिवम की फ्रैंड बन चुकी है और उस का नाम काम्या है. थोड़ी हिम्मत जुटा मैं ने उसे शाम को कौफी के लिए औफर दिया.

‘‘जरूर,’’ उस ने हंसते हुए कहा और अपने बालों में उंगलियां फेरने लगी.

‘‘मुझे भी यहां एक अच्छी कंपनी की जरूरत है,’’ मैं ने कहा.

हम ने शाम को 8 बजे मैन बार में मिलना तय किया. शादी से आजाद होने के बाद मैं  पहली बार किसी कम उम्र की लड़की से दोस्ती कर रहा था, इसलिए मन में रोमांच और हिचक दोनों ही भावों का मिलाजुला असर था. ‘‘बेटा, एक रात तुम्हें अकेले ही सोना है,’’ मैं ने शिवम को समझाते हुए कहा, ‘‘मैं ने होटल से बेबी सिटर की व्यवस्था भी कर दी. वह तुम्हें पूरी कौमिक्स पढ़ कर सुनाएगी,’’ उस के बारे में मैं ने बताया.

होटल की बेबी सिटर एक 16 साल की लड़की निकली और वह इस जौब से बहुत रोमांचित जान पड़ी, क्योंकि उसे रात में कार्टून्स देखने और कौमिक्स पढ़ने के क्व5 हजार जो मिल रहे थे. इसलिए जितना मैं काम्या से मिलने के लिए लालायित था उस से ज्यादा बेबी सिटर को शिवम के साथ धमाल मचाने की खुशी थी. मैं ने जाते वक्त शिवम की ओर देखा तो उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘बाय डैडी, जल्दी आना.’’ उस मासूम को अकेला छोड़ने में मुझे दुख हो रहा था. अपनी जिम्मेदारी दिखाते हुए मैं ने बेबी सिटर को एक बार फिर से निर्देश दिए और सुइट से बाहर आ गया.

रैस्टोरैंट तक पहुंचतेपहुंचते मुझे साढ़े 8 बज गए. काम्या रैस्टोरैंट में बाहर की ओर निकले लाउंज में एक कुरसी पर बैठी आसमान में निकले चांद को देख रही थी. समुद्र की ओर से आने वाली हवा से उस के बाल धीरेधीरे उड़ रहे थे. शायद अनचाहे ही वह गिलास में बची पैप्सी को लगातार हिला रही थी. वह एक शानदार पोज दे रही थी और मेरा मन किया कि जाते ही मैं उसे बांहों में भर लूं. मैं आहिस्ता से उस के पास गया और बोला, ‘‘सौरी, आई एम लेट.’’

मेरी आवाज सुन वह चौंक गई और बोली, ‘‘नोनो ईट्स फाइन. मैं तो बस नजारों का मजा ले रही थी. देखो वह समुद्र में क्या फिशिंग बोट है,’’ उस ने उंगली से इशारा करते हुए कहा. बोट हो या हवाईजहाज मेरी बला से, फिर भी मैं ने अनुमान लगाने का नाटक किया. तभी वेटर हमारा और्डर लेने आ गया.

‘‘तुम एक और पैप्सी लोगी?’’ मैं उस के गिलास की ओर देखते हुए बोला.

‘‘वर्जिन मोजितो,’’ उस ने कहा.

मैं ने वेटर को 2 जूस और वर्जिन मोजितो लाने के को कहा.

‘‘शिवम कहां है, सो गया?’’ मेरी ओर देखते हुए काम्या ने पूछा.

‘‘सौरी, उसी वजह से मैं लेट हो गया. उसे अकेले रहना पसंद नहीं है. वैसे वह बिलकुल अकेला भी नहीं है. एक बेबी सिटर है उस के पास. मैं ने पूरी कोशिश की कि वह मुझे कहीं से भी एक गैरजिम्मेदार पिता नहीं समझे.’’

‘‘क्या वह उस के लिए कौमिक्स पढ़ रही है? कहीं वह उसे परेशान तो नहीं कर रही होगी? आप कहें तो हम एक बार जा कर देख सकते हैं.’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने जल्दी से मना किया, ‘‘मेरा मतलब है अब तक वह सो गया होगा? तुम परेशान मत हो.’’ फिर मैं ने बात पलटी, ‘‘और तुम्हारा शूट कैसा रहा है?’’

‘‘लगता है अब उन्हें मनचाही फोटोज मिल गई हैं. आज का दिन बड़ा बोरिंग था, मैं ने पूरी किताब पढ़ ली,’’ काम्या के हाथ में शेक्सपियर का हेमलेट था. एक मौडल के हाथ में कोर लिट्रेचर की किताब देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ.

‘‘मैं औनर्स फाइनल इयर की स्टूडैंट भी हूं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा. तभी वेटर हमारी ड्रिंक्स ले आया. वह आगे बोली, ‘‘मैं केवल छुट्टियों में मौडलिंग करती हूं.’’

मैं कुछ कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगा. फिर बोला, ‘‘मुझे लगा कि तुम एक फुल टाइम मौडल होगी.’’

‘‘मैं खाली समय कुछ न कुछ करती रहती हूं,’’ उस ने एक घूंट जूस गले से नीचे उतारा और कहा, ‘‘कुछ समय मैं ने थिएटर भी किया फिर जरमनी में नर्सरी के बच्चों को पढ़ाया.’’

‘‘तभी तुम्हारी पर्सनैलिटी इतनी लाजवाब है,’’ मैं ने उस की खुशामद करने के अदांज में कहा. उस ने हंसते हुए अपना गिलास खत्म किया और पूछने लगी, ‘‘और आप क्या करते हो, आई मीन वर्क?’’

‘‘मैं बैंकर हूं. बैंकिंग सैक्टर को मुनाफा कमाने के तरीके बताता हूं.’’

‘‘इंटरैस्टिंग,’’ वह थोड़ा मेरी ओर झुकी और बोली, ‘‘मुझे इकोनौमिक्स में बहुत इंटरैस्ट था.’’

मुझे तो अभी उस की बायोलौजी लुभा रही थी. शाम को वह और भी दिलकश लग रही थी. उस के होंठ मेरे होंठों से केवल एक हाथ की दूरी पर थे और उस के परफ्यूम की हलकीहलकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी.

अचानक उस ने बोला, ‘‘क्या आप को भूख लगी है?’’

मैं ने सी फूड और्डर किया और डिनर के बाद ठंडी रेत पर चलने का प्रस्ताव रखा. हम दोनों ने अपनेअपने सैंडल्स और स्लीपर्स हाथ में ले लिए और मुलायम रेत पर चलने लगे. उस ने एक हाथ से मेरे कंधे का सहारा ले लिया. रेत हलकी गरम थी और समुद्र का ठंडा पानी बीच में हमारे पैरों से टकराता और चला जाता. हम दोनों ऐसे ही चुपचाप चलते रहे और बहुत दूर तक निकल आए. होटल की चमकती रोशनी बहुत मद्धम पड़ गई. सामने एक बड़ी सी चट्टान मानो इशारा कर रही थी कि बस इस से आगे मत जाओ. मैं चाहता था कि ऐसे ही चलता चलूं, रात भर. मैं ने काम्या के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसे चूम लिया. उस ने मेरा हाथ पकड़ा और चट्टान के और पास ले गई. हम ने एकदूसरे को फिर चूमा और काम्या मेरी कमर धीरे से सहलाने लगी. थोड़ी देर बाद वह अचानक रुकी और बोली, ‘‘मुझे शिवम की चिंता हो रही है.’’ मैं उस पर झुका हुआ था, वह मेरे सिर को पीछे धकेलने लगी. मैं ने उस के हाथ को अपने हाथ में लिया और चूमा. वह जवाब में हंसने लगी.

‘‘सौरी’’ काम्या बोली, ‘‘मुझे चूमते वक्त आप का चेहरा बिलकुल शिवम जैसा बन गया था. कुछकुछ वैसा जब वह ध्यान से पानी में फिरकी लेता है.’’

प्यार करते वक्त अपने बेटे के बारे में सोचने से मेरी कामुकता हवा हो गई. मैं दोनों चीजों को एकसाथ नहीं मिला सकता.

‘‘विजय, क्या आप परेशान हैं?’’ वह मेरे कंधे पर अपना सिर रखते हुए बोली, ‘‘मुझे लगा कि हम यहां मजे कर रहे हैं और मासूम शिवम कमरे में अकेला होगा, इसलिए मुझे थोड़ी चिंता हो गई.’’

‘‘हां, पर उस के लिए बेबी सिटर है.’’

‘‘पर आप ने कहा था न कि उसे अकेला रहना पसंद नहीं,’’ काम्या होंठों को काटते हुए बोली, ‘‘क्या हम एक बार उसे देख आएं?’’

‘‘बेबी सिटर उस की देखभाल कर रही होगी और कोई परेशानी हुई तो वह मुझे रिंग कर देगी. मेरा मोबाइल नंबर है उस के पास,’’ कहते हुए मैं ने जेब में हाथ डाला तो पाया कि मोबाइल मेरी जेब में नहीं था. या तो रेत में कहीं गिर गया था या मैं उसे सुइट में भूल आया था.

‘‘चलो, चल कर देखते हैं,’’ काम्या बोली. वक्त मेरा साथ नहीं दे रहा था. एक तरफ एक खूबसूरत मौडल बांहें पसारे रेत पर लेटी थी और दूसरी ओर मेरा बेटा होटल के सुइट में आराम कर रहा था. उस पर परेशानी यह कि मौडल को मेरे बेटे की चिंता ज्यादा थी. अब तो चलना ही पड़ेगा.

‘‘चलो चलते हैं,’’ कहते हुए मैं उठा. हम दोनों जब होटल पहुंचे तो मैं ने उसे लाउंज में इंतजार करने को कहा और बेटे को देखने कमरे में चला गया. शिवम मस्ती से सो रहा था और बेबी सिटर टैलीविजन को म्यूट कर के कोई मूवी देख रही थी.

‘‘सब ठीकठाक है? मेरा मोबाइल यहां रह गया था, इसलिए मैं आया,’’ मैं ने दरवाजे को खोलते हुए कहा.

बेबी सिटर ने स्टडी टेबल पर रखा मोबाइल मुझे पकड़ाया तो मैं जल्दी से लिफ्ट की ओर लपका. लाउंज में बैठी काम्या फिर आसमान में देख रही थी. वह बहुत सुंदर लग रही थी पर थोड़ी थकी हुई जान पड़ी. उस ने कहा कि वह थकी है और सोने जाना चाहती थी. यह सुन कर मेरा मुंह लटक गया, ‘‘मुझे आज रात का अफसोस है,’’ मैं ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो बस चाहता था कि…’’ मैं कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगा.

‘‘मुझ से प्यार करना?’’ वह मेरी आंखों में देखते हुए बोली.

‘‘नहीं, वह…’’ मैं हकलाने लगा.

‘‘शेक्सपियर का हेमलेट डिस्कस करना?’’ वह हंसते हुए बोली. ठंडी हवाओं की मस्ती अब शोर लग रही थी. ‘‘मुश्किल होता है जब बेटा साथ हो तो प्यार करना और आप एक अच्छे पिता हो,’’ वह बोली.

‘‘नहींनहीं मैं नहीं हूं,’’ मैं ने उखड़ते हुए स्वर में कहा.

‘‘आज जो हुआ उस के लिए आप परेशान न हों. आप जिस तरह से शिवम के साथ पूल में खेल रहे थे और उस के साथ जो हंसीमजाक करते हो वह हर पिता अपने बच्चे से नहीं कर पाता. आप वैसे पिता नहीं हो कि बेटे के लिए महंगे गिफ्ट ले लिए और बात खत्म. आप दोनों में एक स्पैशल बौंडिंग है,’’ काम्या बोली.

‘‘मैं आज रात तुम्हारे साथ बिताना चाहता था.’’

‘‘मुझे भी आप की कंपनी अच्छी लग रही थी पर मैं पितापुत्र के बीच नहीं आना चाहती.’’

‘‘पर तुम…’’ मैं ने कुछ कहने की कोशिश की पर काम्या ने मेरे होंठों पर उंगली रख दी और बोली, ‘‘कल मैं जा रही हूं, पर लंच तक यहीं हूं.’’

‘‘मैं और शिवम तुम से कल मिलने आएंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप लकी हैं कि शिवम जैसा बेटा आप को मिला,’’ काम्या बोली.

जवाब में मैं ने केवल अपना सिर हिलाया और फिर अपने सुइट में लौट आया.

सूनी आंखें: जब महामारी ने कर दिया पति पत्नी को अलग

सुबह के समय अरुण ने पत्नी सीमा से कहा,”आज मुझे दफ्तर जरा जल्दी जाना है. मैं जब तक तैयार होता हूं तुम तब तक लंच बना दो ब्रेकफास्ट भी तैयार कर दो, खा कर जाऊंगा.”

बिस्तर छोड़ते हुए सीमा तुनक कर बोली,”आरर… आज ऐसा कौन सा काम है जो इतनी जल्दी मचा रहे हैं.”अरुण ने कहा,”आज सुबह 11 बजे  जरूरी मीटिंग है. सभी को समय पर बुलाया है.”

“ठीक है जी, तुम तैयार हो जाओ. मैं किचन देखती हूं,” सीमा मुस्कान बिखेरते हुए बोली.अरुण नहाधो कर तैयार हो गया और ब्रेकफास्ट मांगने लगा, क्योंकि उस के दफ्तर जाने का समय हो चुका था, इसलिए वह जल्दबाजी कर रहा था.

गैराज से कार निकाली और सड़क पर फर्राटा भर अरुण  समय पर दफ्तर पहुंच गया. दफ्तर के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से कुरसी पर बैठा था, तभी दफ्तर के दरवाजे पर एक अनजान औरत खड़ी अजीब नजरों से चारों ओर देख रही थी.

चपरासी दीपू के पूछने पर उस औरत ने बताया कि वह अरुण साहब से मिलना चाहती है. उस औरत को वहां रखे सोफे पर बिठा कर चपरासी दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.‘‘मैं नहीं जानता साहब,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.चपरासी दीपू उस औरत को अरुण के केबिन तक ले गया.केबिन खोलने के साथ ही उस अजनबी औरत ने अंदर आने की इजाजत मांगी.

अरुण के हां कहने पर वह औरत अरुण के सामने खड़ी हो गई. अरुण ने उस औरत को बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बताइए, मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?”

“सर, मेरा नाम संगीता है. मेरे पति सुरेश आप के दफ्तर में काम करते हैं.” अरुण बोला,”जी, ऑफिस के बहुत से काम वे देखते हैं. उन के बिना कई काम रुके हुए हैं.”

अरुण ने चपरासी दीपू को बुला कर चाय लाने को कहा.चपरासी दीपू टेबल पर पानी रख गया और चाय लेने चला गया.कुछ देर बाद ही चपरासी दीपू चाय ले आया.

चाय की चुस्की लेते हुए अरुण पूछने लगा, ” कहो, कैसे आना हुआ?’’‘‘मैं बताने आई थी कि मेरे पति सुरेश की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है, इसलिए वे कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ सकेंगे.”

“क्या हुआ सुरेश को,” हैरान होते हुए अरुण बोला”डाक्टर उन्हें अजीब सी बीमारी बता रहे हैं. अस्पताल से उन्हें आने ही नहीं दे रहे,”संगीता रोने वाले अंदाज में बोली.

संगीता को रोता हुआ देख कर अरुण बोला, “रोइए नहीं. पूरी बात बताइए कि उन को यह बीमारी कैसे लगी?””कुछ दिनों से ये लगातार गले में दर्द बता रहे थे, फिर तेज बुखार आया. पहले तो पास के डाक्टर से इलाज कराया, पर जब कोई फायदा न हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए.

“सरकारी अस्पताल में डाक्टर को दिखाया तो देखते ही उन्हें भर्ती कर लिया गया. “ये तो समझ ही नहींपाए कि इन के साथ हो क्या गया है?””जब अस्पताल से इन का फोन आया तो मैं भी सुन कर हैरान रह गई,” संगीता ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

“अभी वे अस्पताल में ही हैं,” संगीता से अरुण ने पूछा.”जी,” संगीता ने जवाब दिया.अरुण यह सुन कर परेशान हो गया. सुरेश का काम किसी और को देने के लिए चपरासी दीपू से कहा.

अरुण ने सुरेश की पत्नी संगीता को समझाते हुए कहा कि तुम अब बिलकुल चिंता न करो. घर जाओ और बेफिक्र रहो, उन्हें कुछ नहीं होगा.संगीता अरुण से आश्वस्त हो कर घर आ गई और उसे भी घर आने के लिए कहा. अरुण ने भी जल्द समय निकाल कर घर आने के लिए कहा.

“सर, कुछ कहना चाहती हूं,” कुर्सी से उठते समय संगीता ने झिझकते हुए पूछा.”हां, हां, कहिए, क्या कहना चाहती हैं आप,” अरुण ने संगीता की ओर देखते हुए कहा.”जी, मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. इन की तनख्वाह मिलने पर काट लेना,” संगीता ने सकुचाते हुए कहा.

“बताइए, कितने पैसे चाहिए?” अरुण ने पूछा.”जी, 20 हजार रुपए चाहिए थे…” संगीता संकोच करते हुए बोली.”अभी तो इतने पैसे नहीं है, आप कलपरसों में आ कर ले जाना,” अरुण ने कहा. “ठीक है,” यह सुन कर संगीता का   उदास चेहरा हो गया.

“आप जरा भी परेशान न होइए. मैं आप को पैसे दे दूंगा,” संगीता के उदास चेहरे को देख कर कहा.अरुण के दफ्तर से निकलने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता भी अपने घर लौट आई.

अगले दिन दफ्तर के काम जल्द निबटा कर अरुण कुछ सोच में डूबा था, तभी उस के मन में अचानक ही सुरेश की पत्नी संगीता की पैसों वाली बात याद आ गई.2 दिन बाद ही संगीता अरुण के दफ्तर पहुंची. चपरासी दीपू ने चायपानी ला कर दी.

अरुण ने सुरेश की तबीयत के बारे में जानना चाहा. संगीता आंखों में आंसू लाते हुए बोली,”वहां तो अभी वे ठीक नहीं हैं. मैं अस्पताल गई थी, पर वहां किसी को मिलने नहीं दे रहे.”

“क्या…” अरुण हैरानी से बोला.”अस्पताल वाले कहते हैं, जब वे ठीक हो जाएंगे तो खुद ही घर आ जाएंगे.”यह जान कर अरुण हैरान हो गया कि अस्पताल वाले किसी से मिलने नहीं दे रहे. वह आज शाम को उस से मिलने जाने वाला था.

अरुण ने संगीता को 20 हजार के बजाय 30 हजार रुपए दिए और कहा कि और भी पैसे की जरूरत हो तो बताना.संगीता पैसे ले कर घर लौट आई. 21 मार्च की शाम जब अरुण हाथपैर धो कर बिस्तर पर बैठा, तभी उस की पत्नी सीमा चाय ले आई और बताने लगी कि रात 8 बजे रास्ट्र के नाम संदेश आएगा.

अरुण टीवी खोल कर तय समय पर बैठ गया. मोदी का संदेश सुनने के बाद अरुण ने पत्नी सीमा को अगले दिन रविवार को जनता कर्फ्यू के बारे में बताया कि घर से किसी को बाहर नहीं निकलना है. साथ ही, यह भी बताया कि शाम 5 बजे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर थाली या बरतन, कुछ भी बजाएं.

उस दिन शाम को जब पड़ोसी ने घर से बाहर निकल थाली बजाई तो अरुण भी शोर सुन कर बाहर आया. पत्नी सीमा भी खुश होते हुए थाली हाथ में लिए बाहर जोरजोर से बजाने लगी. उसे देख अरुण भी खुश हुआ.

सोमवार 23 मार्च को अरुण किसी जरूरी काम के निकल आने की वजह से ऑफिस नहीं गया.उसी दिनशाम को फिर से रास्ट्र के नाम संदेश आया. 21 दिनों के लॉक डाउन की खबर से वह भी हैरत में पड़ गया.

अगले दिन किसी तरह अरुण ऑफिस गया और जल्दी से सारे काम निबटा कर घर आ गया.घर पर अरुण ने सीमा को ऑफिस में साथ काम करने वाले सुरेश के बारे में बताया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है.

अगले दिन सड़क पर सख्ती होने से अरुण दफ्तर न जा सका. लॉक डाउन होने की वजह से अरुण घर में रहने को विवश था.इधर जब सुरेश को कोरोना होने की तसदीक हो गई तो संगीता के घर को क्वारन्टीन कर दिया. अब वह घर से जरा भी बाहर नहीं निकल सकती थी.

उधर क्वारन्टीन होने के कुछ दिन बाद ही अस्पताल से सुरेश के मरने की खबर आई तो क्वारन्टीन होने की वजह से वह घर से निकल नहीं सकती थी.

संगीता को अस्पताल वालों ने फोन पर ही सुरेश की लाश न देने की वजह बताई. वजह यह कि ऐसे मरीजों को वही लोग जलाते हैं ताकि किसी और को यह बीमारी न लगे.

यह सुन कर संगीता घर में ही दहाड़े मारते हुए गश खा कर गिर पड़ी. ऑफिस में भी सुरेश के मरने की खबर भिजवाई गई, पर ऑफिस बंद होने से किसी ने फोन नहीं उठाया.जब लॉक डाउन हटा तो अरुण यों ही संगीता के दिए पते पर घर पहुंच गया.

अरुण ने सुरेश के घर का दरवाजा खटखटाया तो संगीता ने ही खोला.संगीता को देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला, “कैसे हैं सुरेश? उस की तबीयत पूछने चला आया.”संगीता ने अंदर आने के लिए कहा, तो वह संगीता के पीछेपीछे चल दिया.

कमरे में अरुण को बिठा कर संगीता चाय बनाने किचन में चली गई. कमरे का नजारा देख अरुण  हैरत में पड़ गया क्योंकि सुरेश की तसवीर पर फूल चढ़े हुए थे, अरुण समझ गया कि सुरेश अब नहीं रहा.

संगीता जब चाय लाई तो अरुण ने हैरानी से संगीता से पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि ये तो 30 मार्च को ही चल बसे थे. अस्पताल से खबर आई थी. मुझे तो क्वारन्टीन कर दिया गया. फोन पर ही अस्पताल वालों ने लाश देने से मना कर दिया.

क्या करती,घर में फूटफूट कर रोने के सिवा.अरुण ने गौर किया कि सुरेश की फोटो के पास ही पैसे रखे थे, जो उस ने संगीता को दिए थे.संगीता ने उन पैसों की ओर देखा और अरुण ने संगीता की इन सूनी आंखों में  देखा. थके कदमों से अरुण वहां से लौट आया.इन सूनी आंखों में अरुण को जाते देख  संगीता की आंखों में आंसू आ गए.

Mother’s Day Special: और प्यार जीत गया

देवयानीको समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? जिस दोराहे पर 25 साल पहले वह खड़ी थी, आज फिर वही स्थिति उस के सामने थी. फर्क सिर्फ यह था कि तब वह खुद खड़ी थी और आज उस बेटी आलिया थी. उस का संयुक्त परिवार होने के बावजूद उसे रास्ता सुझाने वाला कोई नहीं था. पति सुमित तो परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से दबे रहने वाले शख्स थे. उन से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार था. शादी के बाद से आज तक उन्होंने कभी एक अच्छा पति होने का एहसास नहीं कराया था. घंटों कारोबार में डूबे रहना उन की दिनचर्या थी. प्यार के 2 बोल सुनने को तरस गई थी वह. घर के राशन से ले कर अन्य व्यवस्थाओं तक का जिम्मा उस पर था. वह जब भी कोई काम कहती सुमित कहते, ‘‘तुम जानो, रुपए ले लो, मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’

संयुक्त परिवार में देवयानी को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती. भाइयों और परिवार में सुमित के खुद को उच्च आदर्श वाला साबित करने के चक्कर में कई बार देवयानी अपने को कटघरे में खड़ा पाती. तब उस का रोमरोम चीत्कार उठता. 25 वर्षों में उस ने जो झेला, उस में स्थिति तो यही थी कि वह खुद कोई निर्णय ले और अपना फैसला घर वालों को सुनाए. इस वक्त देवयानी के एक तरफ उस का खुद का अतीत था, तो दूसरी तरफ बेटी आलिया का भविष्य. उसे अपना अतीत याद हो गया. वह स्कूल के अंतिम वर्ष में थी कि महल्ले में नएनए आए एक कालेज लैक्चरर के बेटे अविनाश भटनागर से उस की नजरें चार हो गईं. दोनों परिवारों में आनाजाना बढ़ा, तो देवयानी और अविनाश की नजदीकियां बढ़ते लगीं. दोनों का काफी वक्त साथसाथ गुजरने लगा. अत्यंत खूबसूरत देवयानी यौवन की दहलीज पर थी और अविनाश उस की ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित था. वह उस के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता. अत्यंत कुशाग्र अविनाश पढ़ाई में भी देवयानी की मदद करता और जबतब मौका मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट भी देता. वह अविनाश के प्यार में खोई रहने के बावजूद अपनी पढ़ाई में अव्वल आ रही थी. दिन, महीने, साल बीत रहे थे. देवयानी स्कूल से कालेज में आ गई. वह दिनरात अविनाश के ख्वाब देखती. उस के घर वाले इस सब से बेखबर थे. उन्हें लगता था कि अविनाश समझदार लड़का है. वह देवयानी की मदद करता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन उन का यह भ्रम तब टूटा, जब एक रात एक अजीब घटना हो गई. अविनाश ने देवयानी के नाम एक लव लैटर लिखा और एक पत्थर से बांध कर रात में देवयानी के घर की चारदीवारी में फेंका. उसी वक्त देवयानी के पिता वहां बने टौयलेट में जाने के लिए निकले. अचानक पत्थर आ कर गिरने से वे चौंके और देखा तो उस पर कोई कागज लिपटा हुआ था. उन्होंने उसे उठाया और वहीं खड़े हो कर पढ़ने लगे. ज्योंज्यों वे पत्र पढ़ते जा रहे थे. उन की त्योरियां चढ़ती जा रही थीं.

देवयानी के पापा ने गली में इधरउधर देखा, कोई नजर नहीं आया. गली में अंधेरा छाया हुआ था, क्योंकि स्ट्रीट लाइट इन दिनों खराब थी. उस वक्त रात का करीब 1 बज रहा था और घर में सभी सदस्य सो रहे थे. उन्हें अपनी बेटी पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन इतनी रात गए वे कोई हंगामा नहीं करना चाहते थे. वे अपने बैडरूम में आए उन की पत्नी इस सब से बेखबर सो रही थी. वे उस की बगल में लेट गए, लेकिन उन की आंखों में नींद न थी. उन्हें अपनी इस लापरवाही पर अफसोस हो रहा था कि देवयानी की हरकतों और दिनचर्या पर नजर क्यों नहीं रखी? खत में जो कुछ लिखा था, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि देवयानी और अविनाश एकदूसरे के प्यार में डूबे हैं. देवयानी के पापा फिर सो नहीं पाए. रात भर उन्होंने खुद पर नियंत्रण किए रखा, लेकिन जैसे ही देवयानी उठी उन के सब्र का बांध टूट गया. वह अपनी छोटी 2 बहनों और 2 भाइयों के साथ चाय पी रही थी कि उसे पापा का आदेश हुआ कि चाय पी कर मेरे कमरे में आओ. ‘‘ये क्या है देवयानी?’’ उस के आते ही अविनाश का खत उस की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने पूछा.

‘‘क्या है पापा?’’ उस ने कांपती आवाज में पूछा और फोल्ड किए हुए खत को खोल कर देखा, तो उस का कलेजा धक रह गया. अविनाश का खत, पापा के पास. कांप गई वह. गला सूख गया उस का. काटो तो खून नहीं.

‘‘क्या है ये…’’ पापा जोर से चिल्लाए.

‘‘पा…पा…,’’ उस के गले से बस इतना ही निकला. वह समझ गई कि आज घर में तूफान आने वाला है. बुत बनी खड़ी रह गई वह. घबराहट में कुछ बोल नहीं पाई और आंखों से अश्रुधारा बह निकली. ‘‘शर्म नहीं आती तुझे,’’ पापा फिर चिल्लाए तो मां भी कमरे में आ गईं.

‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो सुबहसुबह?’’ मां ने पूछा.

‘‘ये देख अपनी लाडली की करतूत,’’ पापा ने देवयानी के हाथ से खत छीनते हुए कहा.

‘‘क्या है ये?’’

‘‘खुद देख ले ये क्याक्या गुल खिला रही है. परिवार की इज्जत, मानमर्यादा का जरा भी खयाल नहीं है इस को.’’ मां ने खत पढ़ा तो उन का माथा चकरा गया. वे धम्म से बैड पर बैठ गईं.’’ ‘‘यह क्या किया बेटी? तूने बहुत गलत काम किया. तुझे यह सब नहीं करना चाहिए था. तुझे पता है तू घर में सब से बड़ी है. तूने यह नहीं सोचा कि तेरी इस हरकत से कितनी बदनामी होगी. तेरे छोटे भाईबहनों पर क्या असर पड़ेगा. उन के रिश्ते नहीं होंगे,’’ मां ने बैड पर बैठेबैठे शांत स्वर में कहा तो देवयानी खुद को रोक नहीं पाई. वह मां से लिपट कर रो पड़ी. पापा के दुकान पर जाने के बाद मां ने देवयानी को अपने पास बैठाया और बोलीं, ‘‘बेटा, भूल जा उस को. जो हुआ उस पर यहीं मिट्टी डाल दे. मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘नहीं मां, हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं,’’ देवयानी ने हिम्मत जुटा कर मां से कहा.

‘‘नहीं बेटा, इस प्यारव्यार में कुछ नहीं धरा. वह तेरे काबिल नहीं है देवयानी.’’ ‘‘क्यों मां, क्यों नहीं है मेरे काबिल? मैं ने उसे 2 साल करीब से देखा है. वह मेरा बहुत खयाल रखता है. बहुत प्यार करता है वह भी मुझ से.’’ ‘‘बेटा, वे लोग अलग जाति के हैं. उन का खानपान उन के जिंदगी जीने के तरीके हम से बिलकुल अलग है,’’ मां ने देवयानी को समझाने की कोशिश की.

‘‘पर मां, अविनाश मेरे लिए सब कुछ बदलने को तैयार है. उस के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं,’’ देवयानी मां से तर्कवितर्क कर रही थी. ‘‘और तूने सोचा है कि तेरे इस कदम से तेरे छोटेभाई बहनों पर क्या असर पडे़गा? रिश्तेदार, परिवार वाले क्या कहेंगे? नहीं देवयानी, तुम भूल जाओ उस को,’’ मां ने फैसला सुनाया. पापा ने कड़ा फैसला लेते हुए देवयानी की शादी दिल्ली के एक कारोबारी के बेटे सुमित के साथ कर दी. लेकिन वह अविनाश को काफी समय तक भुला नहीं पाई. शादी के बाद वह संयुक्त परिवार में आई तो ननदों, जेठानियों और बच्चों के बड़े परिवार में उस का मन लगता गया. एक बेटी आलिया और एक बेटे अंकुश का जन्म हुआ, तो वह धीरेधीरे अपनी जिम्मेदारियों में खो गई. लेकिन अविनाश अब भी उस के दिल के किसी कोने में बसा हुआ था. उसे कसक थी कि वह अपने प्यार से शादी नहीं कर पाई.

देवयानी अपने अतीत और वर्तमान में झूल रही थी. उस की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने घड़ी में टाइम देखा. 3 बज रहे थे. पौ फटने वाली थी. उस के बगल में पति सुमित सो रहे थे. आलिया और अंकुश अपने रूम में थे.देवयानी को आलिया और तरुण के बीच चल रहे प्यार का एहसास कुछ दिन पूर्व ही हुआ था, आलिया के सहपाठी तरुण का वैसे तो उन के घर आनाजाना था, लेकिन देवयानी ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से वास्ता रखता था. उस के पापा एक बैंक में मैनेजर थे. हैसियत के हिसाब से देखा जाए, तो उस का परिवार देवयानी के परिवार के सामने कुछ भी नहीं था. लेकिन आजकल स्कूलकालेज में पढ़ने वाले बच्चे जातपांत और गरीबीअमीरी से ऊपर उठ कर स्वस्थ सोच रखते हैं. तरुण ने आलिया के साथ ही बीकौम किया और एक यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक विभाग में नौकरी लग गया था. जबकि आलिया अभी और आगे पढ़ना चाहती थी.

उस दिन आलिया बाथरूम में गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. देवयानी ने देखा मोबाइल स्क्रीन पर तरुण का नाम आ रहा था. उस ने काल को औन कर मोबाइल को कान पर लगाया ही था कि उधर से तरुण की चहकती हुई आवाज आई, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार कब से काल कर रहा हूं, कहां थीं?’’

देवयानी को समझ में नहीं आया कि वह क्या बोले तो बस सुनती रही. तरुण बोले जा रहा था. ‘‘क्या हुआ जान, बोल क्यों नहीं रहीं, अभी भी नाराज हो? अरे यार, इस तरह के वीडियो चलते हैं आजकल. मेरे पास आया, तो मैं ने तुझे भेज दिया. मुझे पता है तुम्हें ये सब पसंद नहीं, सो सौरी यार.’’

‘‘हैलो तरुण, मैं आलिया की मम्मी बोल रही हूं. वह बाथरूम में है.’’

‘‘ओह सौरी आंटी, वैरी सौरी. मैं ने सोचा. आलिया होगी.’’ ‘‘बाथरूम से आती है, तो कह दूंगी,’’ कहते हुए देवयानी ने काल डिसकनैक्ट कर दी. लेकिन उस के मन में तरुण की काल ने उथलपुथल मचा दी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आलिया के माबोइल में वाट्सएप को खोल लिया. तो वह आलिया के बाथरूम से निकलने से पहले इसे पढ़ लेना चाहती थी. दोनों ने खूब प्यार भरी बातें लिख रही थीं और आलिया ने तरुण के साथ हुई एकएक बात को लंबे समय से सहेज कर रखा हुआ था. दोनों बहुत आगे बढ़ चुके थे. देवयानी को 25 साल पहले का वह दिन याद हो आया, जब उस के पापा ने अविनाश का लिखा लव लैटर पकड़ा था. सब कुछ वही था, जो उस के और अविनाश के बीच था. प्यार करने वालों की फीलिंग शायद कभी नहीं बदलती, जमाना चाहे कितना बदल जाए. एक फर्क यह था कि पहले कागज पर दिल की भावनाएं शब्दों के रूप में आकार लेती थीं, अब मोबाइल स्क्रीन पर. तब लव लैटर पहुंचाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे, अब कितना आसान हो गया है.

देवयानी कई दिनों से देख रही थी कि आलिया के खानेपीने, सोनेउठने की दिनचर्या बदल गई थी. अब उसे समझ आ रहा था कि आलिया और तरुण के बीच जो पक रहा था, उस की वजह से ही यह सब हो रहा था. देवयानी ने फैसला किया कि वह अपनी बेटी की खुशियों के लिए कुछ भी करेगी. उस ने आलिया से उसी दिन पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे और तरुण के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या चल रहा है मौम?’’ आलिया ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘मेरा मतलब प्यारव्यार.’’

‘‘नहीं मौम, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलना. मैं तुम्हारी मां हूं. मैं ने तुम्हारे मोबाइल में सब कुछ पढ़ लिया है.’’

‘‘क्या पढ़ा, कब पढ़ा? यह क्या तरीका है मौम?’’

‘‘देखो बेटा, मैं तुम्हारी मां हूं, इसलिए तुम्हारी शुभचिंतक भी हूं. मुझे मां के साथसाथ अपनी फै्रंड भी समझो.’’

‘‘ओके,’’ आलिया ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘‘मैं तरुण से प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? तरुण तो मुश्किल से 20-25 हजार रुपए महीना कमाता होगा. क्या होगा इतने से.’’

‘‘मौम आप टैंशन मत लें. हम दोनों ऐडजस्ट कर लेंगे. शादी के बाद मैं भी जौब करूंगी,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तुम्हें पता है जौब क्या होती है, पैसे कहा से, कैसे आते हैं?’’

‘‘हां मौम, आप सही कह रही हैं. मुझे अब तक नहीं पता था, लेकिन अब सीख रही हूं. तरुण भी मुझे सब बताता है.’’

‘‘हम कोई मदद करना चाहें उस की… उस को अच्छा सा कोई बिजनैस करा दें तो…?’’

‘‘नहीं मौम, तरुण ऐसा लड़का नहीं है. वह कभी अपने ससुराल से कोई मदद नहीं लेगा. वह बहुत खुद्दार किस्म का लड़का है. मैं ने गहराई से उसे देखासमझा है.’’

‘‘पर बेटा परिवार में सब को मनाना एकएक बात बताना बहुत मुश्किल हो जाएगा. कैसे होगा यह सब…?’’ मां ने आलिया के समक्ष असमर्थता जताते हुए कहा.

‘‘मुझे कोई जल्दी नहीं है मां… मैं वेट करूंगी.’’ देवयानी के समक्ष अजीब दुविधा थी. वह बेटी को उस का प्यार कैसे सौंपे? पहली अड़चन पति सुमित ही थे. फिर उन के भाई यानी आलिया के चाचाताऊ कैसे मानेंगे? तरुण व आलिया परिवारों के स्टेटस में दिनरात जैसा अंतर था. फिर भी देवयानी ठान चुकी थी कि यह शादी करवा कर रहेगी. उस ने अपने स्तर पर भी तरुण और उस के परिवार के बारे में पता लगाया. सब ठीक था. सब अच्छे व नेकदिल इंसान और उच्च शिक्षित थे. कमी थी तो बस एक ही कि धनदौलत, कोठीबंगला नहीं था. एक रात मौका देख कर देवयानी ने सुमित के समक्ष आलिया की शादी की बात रखी, ‘‘वह शादी लायक हो गई है, आप ने कभी ध्यान दिया? उस की फैं्रड्स की शादियां हो रही हैं.’’

‘‘क्या जल्दी है, 1-2 साल बाद भी कर सकते हैं. अभी तो 24 की ही हुई है.’’

‘‘24 की उम्र कम नहीं होती सुमित.’’

‘‘तो ठीक है, लेकिन अब रात को ही शादी कराएंगी क्या उस की? मेरी जेब में लड़का है क्या, जो निकाल कर उस की शादी करवा दूंगा?’’

‘‘लड़का तो है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘तरुण, आलिया का फ्रैंड. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. अच्छी अंडरस्टैंडिंग है दोनों में.’’

‘‘वह बैंक मैनेजर का बेटा,’’ सुमित उखड़ गए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या देवयानी?’’

‘‘बिलकुल नहीं हुआ है. जो कह रही हूं बहुत सोचसमझ कर दोनों के हित के लिए कह रही हूं. वह आलिया को खुश रखेगा, बस इतना कह सकती हूृं.’’ देवयानी ने उस रात अपने पति सुमित को तकवितर्क और नए जमाने की आधुनिक सोच का हवाला दे कर अपने पक्ष में कर लिया. उसे लगा एक बड़ी बाधा उस ने पार कर ली है. अब बारी थी परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष दीवार बन कर खड़ा होने की. उस ने अपनी  सास, देवर और जेठानियों के समक्ष अपना मजबूत पक्ष रखा. उस ने यह भी कहा कि अगर आप तैयार न हुए, तो वह घर से भाग कर शादी कर लेगी तो क्या करोगे? फिर तो चुप ही रहना पड़ेगा. और अगर दोनों बच्चों ने कुछ कर लिया तो क्या करोगे? जीवन भर पछताओगे. इस से तो अच्छा है कि हम अपनी सहमति से दोनों की शादी कर दें. और एक एक दिन वह आ गया जब आलिया और तरुण की शादी पक्की हो गई. शादी वाले दिन जब आलिया अग्नि के समक्ष तरुण के साथ फेरे ले रही थी अग्नि से उठते धुएं ने देवयानी की आंखों से अश्रुधारा बहा दी. इस अश्रुधारा में उसे अपने पुराने ख्वाब पूरे होते हुए नजर आए. उसे लगा कि 25 साल बाद उस का प्यार जीत रहा है.

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