देवयानीको समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? जिस दोराहे पर 25 साल पहले वह खड़ी थी, आज फिर वही स्थिति उस के सामने थी. फर्क सिर्फ यह था कि तब वह खुद खड़ी थी और आज उस बेटी आलिया थी. उस का संयुक्त परिवार होने के बावजूद उसे रास्ता सुझाने वाला कोई नहीं था. पति सुमित तो परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से दबे रहने वाले शख्स थे. उन से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार था. शादी के बाद से आज तक उन्होंने कभी एक अच्छा पति होने का एहसास नहीं कराया था. घंटों कारोबार में डूबे रहना उन की दिनचर्या थी. प्यार के 2 बोल सुनने को तरस गई थी वह. घर के राशन से ले कर अन्य व्यवस्थाओं तक का जिम्मा उस पर था. वह जब भी कोई काम कहती सुमित कहते, ‘‘तुम जानो, रुपए ले लो, मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’

संयुक्त परिवार में देवयानी को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती. भाइयों और परिवार में सुमित के खुद को उच्च आदर्श वाला साबित करने के चक्कर में कई बार देवयानी अपने को कटघरे में खड़ा पाती. तब उस का रोमरोम चीत्कार उठता. 25 वर्षों में उस ने जो झेला, उस में स्थिति तो यही थी कि वह खुद कोई निर्णय ले और अपना फैसला घर वालों को सुनाए. इस वक्त देवयानी के एक तरफ उस का खुद का अतीत था, तो दूसरी तरफ बेटी आलिया का भविष्य. उसे अपना अतीत याद हो गया. वह स्कूल के अंतिम वर्ष में थी कि महल्ले में नएनए आए एक कालेज लैक्चरर के बेटे अविनाश भटनागर से उस की नजरें चार हो गईं. दोनों परिवारों में आनाजाना बढ़ा, तो देवयानी और अविनाश की नजदीकियां बढ़ते लगीं. दोनों का काफी वक्त साथसाथ गुजरने लगा. अत्यंत खूबसूरत देवयानी यौवन की दहलीज पर थी और अविनाश उस की ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित था. वह उस के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता. अत्यंत कुशाग्र अविनाश पढ़ाई में भी देवयानी की मदद करता और जबतब मौका मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट भी देता. वह अविनाश के प्यार में खोई रहने के बावजूद अपनी पढ़ाई में अव्वल आ रही थी. दिन, महीने, साल बीत रहे थे. देवयानी स्कूल से कालेज में आ गई. वह दिनरात अविनाश के ख्वाब देखती. उस के घर वाले इस सब से बेखबर थे. उन्हें लगता था कि अविनाश समझदार लड़का है. वह देवयानी की मदद करता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन उन का यह भ्रम तब टूटा, जब एक रात एक अजीब घटना हो गई. अविनाश ने देवयानी के नाम एक लव लैटर लिखा और एक पत्थर से बांध कर रात में देवयानी के घर की चारदीवारी में फेंका. उसी वक्त देवयानी के पिता वहां बने टौयलेट में जाने के लिए निकले. अचानक पत्थर आ कर गिरने से वे चौंके और देखा तो उस पर कोई कागज लिपटा हुआ था. उन्होंने उसे उठाया और वहीं खड़े हो कर पढ़ने लगे. ज्योंज्यों वे पत्र पढ़ते जा रहे थे. उन की त्योरियां चढ़ती जा रही थीं.

देवयानी के पापा ने गली में इधरउधर देखा, कोई नजर नहीं आया. गली में अंधेरा छाया हुआ था, क्योंकि स्ट्रीट लाइट इन दिनों खराब थी. उस वक्त रात का करीब 1 बज रहा था और घर में सभी सदस्य सो रहे थे. उन्हें अपनी बेटी पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन इतनी रात गए वे कोई हंगामा नहीं करना चाहते थे. वे अपने बैडरूम में आए उन की पत्नी इस सब से बेखबर सो रही थी. वे उस की बगल में लेट गए, लेकिन उन की आंखों में नींद न थी. उन्हें अपनी इस लापरवाही पर अफसोस हो रहा था कि देवयानी की हरकतों और दिनचर्या पर नजर क्यों नहीं रखी? खत में जो कुछ लिखा था, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि देवयानी और अविनाश एकदूसरे के प्यार में डूबे हैं. देवयानी के पापा फिर सो नहीं पाए. रात भर उन्होंने खुद पर नियंत्रण किए रखा, लेकिन जैसे ही देवयानी उठी उन के सब्र का बांध टूट गया. वह अपनी छोटी 2 बहनों और 2 भाइयों के साथ चाय पी रही थी कि उसे पापा का आदेश हुआ कि चाय पी कर मेरे कमरे में आओ. ‘‘ये क्या है देवयानी?’’ उस के आते ही अविनाश का खत उस की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने पूछा.

‘‘क्या है पापा?’’ उस ने कांपती आवाज में पूछा और फोल्ड किए हुए खत को खोल कर देखा, तो उस का कलेजा धक रह गया. अविनाश का खत, पापा के पास. कांप गई वह. गला सूख गया उस का. काटो तो खून नहीं.

‘‘क्या है ये…’’ पापा जोर से चिल्लाए.

‘‘पा…पा…,’’ उस के गले से बस इतना ही निकला. वह समझ गई कि आज घर में तूफान आने वाला है. बुत बनी खड़ी रह गई वह. घबराहट में कुछ बोल नहीं पाई और आंखों से अश्रुधारा बह निकली. ‘‘शर्म नहीं आती तुझे,’’ पापा फिर चिल्लाए तो मां भी कमरे में आ गईं.

‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो सुबहसुबह?’’ मां ने पूछा.

‘‘ये देख अपनी लाडली की करतूत,’’ पापा ने देवयानी के हाथ से खत छीनते हुए कहा.

‘‘क्या है ये?’’

‘‘खुद देख ले ये क्याक्या गुल खिला रही है. परिवार की इज्जत, मानमर्यादा का जरा भी खयाल नहीं है इस को.’’ मां ने खत पढ़ा तो उन का माथा चकरा गया. वे धम्म से बैड पर बैठ गईं.’’ ‘‘यह क्या किया बेटी? तूने बहुत गलत काम किया. तुझे यह सब नहीं करना चाहिए था. तुझे पता है तू घर में सब से बड़ी है. तूने यह नहीं सोचा कि तेरी इस हरकत से कितनी बदनामी होगी. तेरे छोटे भाईबहनों पर क्या असर पड़ेगा. उन के रिश्ते नहीं होंगे,’’ मां ने बैड पर बैठेबैठे शांत स्वर में कहा तो देवयानी खुद को रोक नहीं पाई. वह मां से लिपट कर रो पड़ी. पापा के दुकान पर जाने के बाद मां ने देवयानी को अपने पास बैठाया और बोलीं, ‘‘बेटा, भूल जा उस को. जो हुआ उस पर यहीं मिट्टी डाल दे. मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘नहीं मां, हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं,’’ देवयानी ने हिम्मत जुटा कर मां से कहा.

‘‘नहीं बेटा, इस प्यारव्यार में कुछ नहीं धरा. वह तेरे काबिल नहीं है देवयानी.’’ ‘‘क्यों मां, क्यों नहीं है मेरे काबिल? मैं ने उसे 2 साल करीब से देखा है. वह मेरा बहुत खयाल रखता है. बहुत प्यार करता है वह भी मुझ से.’’ ‘‘बेटा, वे लोग अलग जाति के हैं. उन का खानपान उन के जिंदगी जीने के तरीके हम से बिलकुल अलग है,’’ मां ने देवयानी को समझाने की कोशिश की.

‘‘पर मां, अविनाश मेरे लिए सब कुछ बदलने को तैयार है. उस के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं,’’ देवयानी मां से तर्कवितर्क कर रही थी. ‘‘और तूने सोचा है कि तेरे इस कदम से तेरे छोटेभाई बहनों पर क्या असर पडे़गा? रिश्तेदार, परिवार वाले क्या कहेंगे? नहीं देवयानी, तुम भूल जाओ उस को,’’ मां ने फैसला सुनाया. पापा ने कड़ा फैसला लेते हुए देवयानी की शादी दिल्ली के एक कारोबारी के बेटे सुमित के साथ कर दी. लेकिन वह अविनाश को काफी समय तक भुला नहीं पाई. शादी के बाद वह संयुक्त परिवार में आई तो ननदों, जेठानियों और बच्चों के बड़े परिवार में उस का मन लगता गया. एक बेटी आलिया और एक बेटे अंकुश का जन्म हुआ, तो वह धीरेधीरे अपनी जिम्मेदारियों में खो गई. लेकिन अविनाश अब भी उस के दिल के किसी कोने में बसा हुआ था. उसे कसक थी कि वह अपने प्यार से शादी नहीं कर पाई.

देवयानी अपने अतीत और वर्तमान में झूल रही थी. उस की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने घड़ी में टाइम देखा. 3 बज रहे थे. पौ फटने वाली थी. उस के बगल में पति सुमित सो रहे थे. आलिया और अंकुश अपने रूम में थे.देवयानी को आलिया और तरुण के बीच चल रहे प्यार का एहसास कुछ दिन पूर्व ही हुआ था, आलिया के सहपाठी तरुण का वैसे तो उन के घर आनाजाना था, लेकिन देवयानी ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से वास्ता रखता था. उस के पापा एक बैंक में मैनेजर थे. हैसियत के हिसाब से देखा जाए, तो उस का परिवार देवयानी के परिवार के सामने कुछ भी नहीं था. लेकिन आजकल स्कूलकालेज में पढ़ने वाले बच्चे जातपांत और गरीबीअमीरी से ऊपर उठ कर स्वस्थ सोच रखते हैं. तरुण ने आलिया के साथ ही बीकौम किया और एक यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक विभाग में नौकरी लग गया था. जबकि आलिया अभी और आगे पढ़ना चाहती थी.

उस दिन आलिया बाथरूम में गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. देवयानी ने देखा मोबाइल स्क्रीन पर तरुण का नाम आ रहा था. उस ने काल को औन कर मोबाइल को कान पर लगाया ही था कि उधर से तरुण की चहकती हुई आवाज आई, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार कब से काल कर रहा हूं, कहां थीं?’’

देवयानी को समझ में नहीं आया कि वह क्या बोले तो बस सुनती रही. तरुण बोले जा रहा था. ‘‘क्या हुआ जान, बोल क्यों नहीं रहीं, अभी भी नाराज हो? अरे यार, इस तरह के वीडियो चलते हैं आजकल. मेरे पास आया, तो मैं ने तुझे भेज दिया. मुझे पता है तुम्हें ये सब पसंद नहीं, सो सौरी यार.’’

‘‘हैलो तरुण, मैं आलिया की मम्मी बोल रही हूं. वह बाथरूम में है.’’

‘‘ओह सौरी आंटी, वैरी सौरी. मैं ने सोचा. आलिया होगी.’’ ‘‘बाथरूम से आती है, तो कह दूंगी,’’ कहते हुए देवयानी ने काल डिसकनैक्ट कर दी. लेकिन उस के मन में तरुण की काल ने उथलपुथल मचा दी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आलिया के माबोइल में वाट्सएप को खोल लिया. तो वह आलिया के बाथरूम से निकलने से पहले इसे पढ़ लेना चाहती थी. दोनों ने खूब प्यार भरी बातें लिख रही थीं और आलिया ने तरुण के साथ हुई एकएक बात को लंबे समय से सहेज कर रखा हुआ था. दोनों बहुत आगे बढ़ चुके थे. देवयानी को 25 साल पहले का वह दिन याद हो आया, जब उस के पापा ने अविनाश का लिखा लव लैटर पकड़ा था. सब कुछ वही था, जो उस के और अविनाश के बीच था. प्यार करने वालों की फीलिंग शायद कभी नहीं बदलती, जमाना चाहे कितना बदल जाए. एक फर्क यह था कि पहले कागज पर दिल की भावनाएं शब्दों के रूप में आकार लेती थीं, अब मोबाइल स्क्रीन पर. तब लव लैटर पहुंचाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे, अब कितना आसान हो गया है.

देवयानी कई दिनों से देख रही थी कि आलिया के खानेपीने, सोनेउठने की दिनचर्या बदल गई थी. अब उसे समझ आ रहा था कि आलिया और तरुण के बीच जो पक रहा था, उस की वजह से ही यह सब हो रहा था. देवयानी ने फैसला किया कि वह अपनी बेटी की खुशियों के लिए कुछ भी करेगी. उस ने आलिया से उसी दिन पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे और तरुण के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या चल रहा है मौम?’’ आलिया ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘मेरा मतलब प्यारव्यार.’’

‘‘नहीं मौम, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलना. मैं तुम्हारी मां हूं. मैं ने तुम्हारे मोबाइल में सब कुछ पढ़ लिया है.’’

‘‘क्या पढ़ा, कब पढ़ा? यह क्या तरीका है मौम?’’

‘‘देखो बेटा, मैं तुम्हारी मां हूं, इसलिए तुम्हारी शुभचिंतक भी हूं. मुझे मां के साथसाथ अपनी फै्रंड भी समझो.’’

‘‘ओके,’’ आलिया ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘‘मैं तरुण से प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? तरुण तो मुश्किल से 20-25 हजार रुपए महीना कमाता होगा. क्या होगा इतने से.’’

‘‘मौम आप टैंशन मत लें. हम दोनों ऐडजस्ट कर लेंगे. शादी के बाद मैं भी जौब करूंगी,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तुम्हें पता है जौब क्या होती है, पैसे कहा से, कैसे आते हैं?’’

‘‘हां मौम, आप सही कह रही हैं. मुझे अब तक नहीं पता था, लेकिन अब सीख रही हूं. तरुण भी मुझे सब बताता है.’’

‘‘हम कोई मदद करना चाहें उस की… उस को अच्छा सा कोई बिजनैस करा दें तो…?’’

‘‘नहीं मौम, तरुण ऐसा लड़का नहीं है. वह कभी अपने ससुराल से कोई मदद नहीं लेगा. वह बहुत खुद्दार किस्म का लड़का है. मैं ने गहराई से उसे देखासमझा है.’’

‘‘पर बेटा परिवार में सब को मनाना एकएक बात बताना बहुत मुश्किल हो जाएगा. कैसे होगा यह सब…?’’ मां ने आलिया के समक्ष असमर्थता जताते हुए कहा.

‘‘मुझे कोई जल्दी नहीं है मां… मैं वेट करूंगी.’’ देवयानी के समक्ष अजीब दुविधा थी. वह बेटी को उस का प्यार कैसे सौंपे? पहली अड़चन पति सुमित ही थे. फिर उन के भाई यानी आलिया के चाचाताऊ कैसे मानेंगे? तरुण व आलिया परिवारों के स्टेटस में दिनरात जैसा अंतर था. फिर भी देवयानी ठान चुकी थी कि यह शादी करवा कर रहेगी. उस ने अपने स्तर पर भी तरुण और उस के परिवार के बारे में पता लगाया. सब ठीक था. सब अच्छे व नेकदिल इंसान और उच्च शिक्षित थे. कमी थी तो बस एक ही कि धनदौलत, कोठीबंगला नहीं था. एक रात मौका देख कर देवयानी ने सुमित के समक्ष आलिया की शादी की बात रखी, ‘‘वह शादी लायक हो गई है, आप ने कभी ध्यान दिया? उस की फैं्रड्स की शादियां हो रही हैं.’’

‘‘क्या जल्दी है, 1-2 साल बाद भी कर सकते हैं. अभी तो 24 की ही हुई है.’’

‘‘24 की उम्र कम नहीं होती सुमित.’’

‘‘तो ठीक है, लेकिन अब रात को ही शादी कराएंगी क्या उस की? मेरी जेब में लड़का है क्या, जो निकाल कर उस की शादी करवा दूंगा?’’

‘‘लड़का तो है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘तरुण, आलिया का फ्रैंड. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. अच्छी अंडरस्टैंडिंग है दोनों में.’’

‘‘वह बैंक मैनेजर का बेटा,’’ सुमित उखड़ गए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या देवयानी?’’

‘‘बिलकुल नहीं हुआ है. जो कह रही हूं बहुत सोचसमझ कर दोनों के हित के लिए कह रही हूं. वह आलिया को खुश रखेगा, बस इतना कह सकती हूृं.’’ देवयानी ने उस रात अपने पति सुमित को तकवितर्क और नए जमाने की आधुनिक सोच का हवाला दे कर अपने पक्ष में कर लिया. उसे लगा एक बड़ी बाधा उस ने पार कर ली है. अब बारी थी परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष दीवार बन कर खड़ा होने की. उस ने अपनी  सास, देवर और जेठानियों के समक्ष अपना मजबूत पक्ष रखा. उस ने यह भी कहा कि अगर आप तैयार न हुए, तो वह घर से भाग कर शादी कर लेगी तो क्या करोगे? फिर तो चुप ही रहना पड़ेगा. और अगर दोनों बच्चों ने कुछ कर लिया तो क्या करोगे? जीवन भर पछताओगे. इस से तो अच्छा है कि हम अपनी सहमति से दोनों की शादी कर दें. और एक एक दिन वह आ गया जब आलिया और तरुण की शादी पक्की हो गई. शादी वाले दिन जब आलिया अग्नि के समक्ष तरुण के साथ फेरे ले रही थी अग्नि से उठते धुएं ने देवयानी की आंखों से अश्रुधारा बहा दी. इस अश्रुधारा में उसे अपने पुराने ख्वाब पूरे होते हुए नजर आए. उसे लगा कि 25 साल बाद उस का प्यार जीत रहा है.

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