बच्चों में मधुमेह के लक्षणों को कैसे पहचान सकते है?

सवाल

मेरे बेटे की उम्र 2 साल है. हमारे परिवार में मधुमेह की समस्या है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या मेरे बच्चे को भी यह समस्या हो सकती हैअपने बच्चे में मैं मधुमेह के लक्षणों को कैसे पहचान सकती हूं?

 जवाब

बच्चों में टाइप1 और टाइप 2 डायबिटीज होने के अलगअलग कारण और प्रभाव हो सकते हैं. टाइप 1 डायबिटीज तब होती है जब बच्चे का शरीर इंसुलिन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता है. इंसुलिन एक हारमोन है जो आप के शरीर में ब्लड शुगर लैवल को नियंत्रित करने में मदद करता है. बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज को ‘जुविनाइल डायबिटीज’ या ‘इंसुलिन डिपैंडैंट डायबिटीज’ मेलिटस के रूप में भी जाना जाता था. यह एक ‘औटोइम्यून क्रोनिक कंडीशन’ है.

बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज आप के बच्चे की जीवनशैली और डायबिटीज का पारिवारिक इतिहास (माता या पिता को डायबिटीज होना) के कारण हो सकती है.

सवाल

मेरे बेटे की आंखों में आए दिन कोई न कोई समस्या रहती थी. डाक्टरी जांच करने पर यह पता चला कि उसे डायबिटीज है जिस का असर उस की आंखों पर पड़ रहा है. तो क्या डायबिटीज से ऐसी ही और स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैंयदि हां तो उन का उपचार क्या है?

 जवाब

अगर आप के बच्चे को टाइप 2 डायबिटीज है तो आंखों की समस्याएं (अंधापन सहित) होना इस का एक लक्षण हो सकता है, लेकिन इस के साथ टाइप 2 डायबिटीज से होने वाली कुछ अन्य समस्याएं भी हैं जैसेकि हाई कोलैस्ट्रौल, तंत्रिका क्षति (नर्व डैमेज), गुरदे की बीमारी, स्ट्रोक, हृदय और रक्तवाहिका क्षति (हार्ट ऐंड ब्लड वैसल डैमेज) आदि शामिल हैं. इसलिए इन समस्याओं से बचने के लिए उन के ब्लड शुगर लैवल को निर्धारित सीमा के अंदर रखना जरूरी है.

सवाल

 मैं गर्भावस्था के 7वें महीने में हूं. मैं ने सुना है की इस अवस्था में गैस्टेशनल डायबिटीज होने की बहुत संभावना होती है. मेरा सवाल यह है कि यदि गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे को डायबिटीज हो जाती है तो उस के क्या लक्षण होते हैं?

 जवाब

हर व्यक्ति में डायबिटीज के अलगअलग लक्षण देखे जा सकते हैं. इस कारण हमें टाइप 2 डायबिटीज होने पर अलगअलग समस्या का सामना करना पड़ सकता है. अब अगर बात की जाए बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज की तो उस के कुछ सामान्य लक्षण हैं जैसे धुंधली नजर, का धुंधला होना, भूख बढ़ना, बारबार पेशाब आना, थकान, त्वचा का काला पड़ना, तेजी से वजन घटना आदि.

. -डा. नवनीत अग्रवाल

चीफ क्लीनिकल औफिसर, बीटओ.

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‘साराभाई’ शो की एक्ट्रेस वैभवी उपाध्याय का निधन, सदमे में हैं रुपाली गांगुली

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस और ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ शो की जैस्मिन यानी वैभवी उपाध्याय (Vaibhavi Upadhyaya) की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई है.  वैभवी उपाध्याय की उम्र मात्र 30 साल थी. उनके निधन को लेकर टीवी इंडस्ट्री के सितारे सदमे में है. वहीं उनके फैंस काफी दुखी है. आपको बता दें, यह हादसा हिमाचल प्रदेश में हुआ है. बताया जा रहा है कि एक्ट्रेस अपने मंगेतर के साथ कार ट्रैवल कर रहीं थी. वो तीर्थन घाटी में घूमने जा रही थीं, लेकिन अचानक टर्न पर गाड़ी ने कंट्रोल खो दिया और कार खाई में जा गिरी. इस हादसे में वैभवी की मौके पर ही मौत हो गई वहीं उनके मंगेतर की हालत स्थिर बनी हुई है.

रुपाली गांगुली ने वैभवी के निधन पर रिएक्शन दिया

वैभवी की को-स्टार रुपाली गांगुली ने उनके निधन पर दुख जताया है और उनके निधन पर यकीन नहीं कर पा रही हैं. रुपाली ने इंस्टाग्राम पर स्टोरी साझा कर वैभवी के निधन पर रिएक्शन दिया है. ‘अनुपमा’ (Anupama) एक्ट्रेस ने वैभवी की आखिरी पोस्ट शेयर कर दुख जताया.

एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर वैभवी उपाध्याय की फोटो शेयर की और लिखा, “बहुत जल्दी चली गई वैभवी.” उन्होंने वैभवी की आखिरी पोस्ट भी शेयर की, जिसमें एक्ट्रेस ने एक कोट साझा किया था. वैभवी ने अपनी पोस्ट में लिखा था, “मुझे पता है कि अब मुझे क्या करना है. मैं चीजों को तोड़कर आगे बढ़ूंगी, क्योंकि कल सूरज उगेगा और किसे पता कि कल क्या होगा.” वैभवी की इस पोस्ट को शेयर करते हुए रुपाली गांगुली भावुक हो गईं. उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरी पर लिखा, “अभी भी इस बात पर भरोसा नहीं हो पा रहा है.”

इसके साथ ही आपको बता दें, ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ में वैभवी उपाध्याय और रुपाली गांगुली ने साथ में काम किया था. जहां रुपाली गांगुली मोनिशा के किरदार में थीं तो वहीं वैभवी ने जैस्मिन की भूमिका अदा की थी. इसके अलावा वैभवी उपाध्याय दीपिका पादुकोण के साथ फिल्म ‘छपाक’ में भी काम कर चुकी हैं.

अनुपमा फेम नितेश पांडे का निधन, कार्डियक अरेस्ट से हुई मौत

‘अनुपमा’ में रुपाली गांगुली की दोस्त देविका के पति का किरदार निभाने वाले नितेश पांडे का निधन हो गया है. टीवी इंडस्ट्री से एक बाद एक दुखद खबर आ रही है, हाल ही में वैभवी उपाध्याय की मौत के बाद अब खबर है कि एक्ट्रेस नितेश पांडे का निधन हो गया है. यह खबर सुनकर इंडस्ट्री में शोक की लहर पसर गई हैं. इस खबर पर कोई यकीन नहीं कर पा रहा है.

नहीं रहे अनुपमा फेम नितेश पांडे

बीती रात अनुपमा फेम नितेश पांडे ने कार्डियक अरेस्ट के कारण दम तोड़ दिया. 51 साल की उम्र में अभिनेता ने अलविदा कह दिया. बता दें नितेश पांडे लंबे समय से टीवी इंडस्ट्री का हिस्सा थे और उन्हें आए दिन अनुपमा शो में देखा जाता था. अब इस खबर से न केवल परिवार वाले बल्कि फैंस भी शोक में डूब गए हैं. सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से वायरल हो रही है.

 

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राइटर सिद्धार्थ नागर ने की खबर की पुष्टि

राइटर सिद्धार्थ नागर ने इस खबर पर पुष्टि की. सिद्धार्थ ने फेसबुक पोस्ट के जरिए फैंस को इस बात की जानकारी दी है. इसके बाद में सिद्धार्थ ने एक मीडिया हाउस को दिए एक इंटरव्यू में इस बात की पुष्टि की है. राइटर ने बताया कि नितेश  शूटिंग के लिए इगतपुर गए थे. वहां रात के करीब 1:30 बजे उनको कार्डियक अरेस्ट आया, जिसके बाद पता लगा कि वह हमारे बीच नहीं रहें. इस खबर से नितेश के परिवार को बड़ा झटका लगा.

नितेश पांडे का करियर

7 जनवरी 1973 को जन्मे नितीश पांडे ने  टीवी की दुनिया में अच्छा नाम कमाया था. यही नहीं, अभिनेता फिल्म  ‘ओम शांति ओम’ में बॉलीवुड के किंग खान के साथ भी काम किया है. अनुपमा शो में भी नीतीश के किरदार को दर्शकों की काफी सराहना मिली थी. एक्टर ने ‘बधाई दो’, ‘रंगून’ और ‘मदारी’ जैसी फिल्मों में काम किया था। इसके अलावा नितेश ‘खोसला का घोंसला’ जैसी फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं.

पैसा नहीं बिगाड़ेगा रिश्ता

रिलेशनशिप 2 लोगों के बीच के संबंध को कहते हैं. यह रिलेशनशिप तब और अधिक खास हो जाती है जब यह कपल के बीच में हो. जब एक कपल यह फैसला करता है कि वह एक रिलेशनशिप में रहेगा तो ऐसे बहुत से मुद्दे होते हैं जिन पर दोनों को बात करने की जरूरत होती है. ऐसा ही एक मुद्दा है कि रिलेशनशिप में हैं तो पैसे कौन खर्च करे?

भारत जैसे देश में पुरुषों का लालनपालन इस तरह किया जाता है कि उन्हें आर्थिक कमान अपने हाथों में रखनी है. इस तरह से पुरुषों को यह मानना मुश्किल हो जाता है कि यह कमान उन से कोई छीने. वे यह अधिकार अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं.

गहरी चाल

पुरुषों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि लड़कियां या महिलाएं अपना बिल खुद देंगी तो इस से उन का ईगो हर्ट होगा क्योंकि इस समाज में लड़कियों को उन पर निर्भर रहना सिखाया है. ऐसे में अगर लड़कियां या महिलाएं बिल खुद देने लगेंगी तो इस समाज से पुरुष की धाक खत्म हो जाएगी. दूसरी ओर धर्म ने इस कदर अपना अधिकार जमाया हुआ है कि वह नहीं चाहता कि लड़कियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों.

लड़कियां पुरुषों के अधीन नहीं होना चाहतीं. वे कहती हैं कि हम अपना खर्चा खुद उठा सकती हैं और रिलेशनशिप 2 लोगों के बीच का संबंध है. ऐसे में खर्चा भी 2 लोगों के हिस्से में बंटा होना चाहिए. किसी एक पर इस का बो झ डालना किसी भी तरह सही नहीं है. अगर कोई एक पार्टनर खर्चा उठाता जाए और वहीं दूसरा पार्टनर कुछ भी खर्च न उठाए तो इस से रिश्ते में दरार आ सकती है और रिश्ता टूटने की कगार पर आ सकता है.

लिव इन रिलेशनशिप के सब से ज्यादा मामले मैट्रो सिटीज में देखे गए हैं. बैंगलुरु में रहने वाले अधिकतर युवा लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं.

खर्च कौन करे

लिव इन रिलेशनशिप बिना किसी बंधन के लड़कालड़की को कपल के रूप में रहने की छूट देती है. लिव इन रिलेशनशिप को अपनाने वाले वे लोग हैं जो जौब करते हैं, एक रिसर्च में सामने आया है कि आईटी सैक्टर और बीपीओ से जुड़े लोग सब से ज्यादा लिव इन रिलेशनशिप में  देखे गए हैं. दिल्लीएनसीआर में भी लिव इन रिलेशनशिप में कई कपल रहते हैं. इस में कपल खर्चे को आपस में बांट लेते हैं.

गूगल में जौब करने वाली वाणी बताती है कि जैसेजैसे गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड का रिश्ता आगे बढ़ता जाता है तो पार्टनर्स भी अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाने लगते हैं. फिर चाहे वह पैसे से जुड़ी जिम्मेदारी ही क्यों न हो. किसी भी रिलेशनशिप में अगर एक ही पार्टनर पैसा कमाता है या जरूरतों की जिम्मेदारी उठाता है तो उस के मन में कभी न कभी यह विचार आ ही जाता है कि सिर्फ मैं ही खर्च क्यों करूं. इसी के चलते पार्टनर्स में पैसों को ले कर  झगड़ा होने लगता है.

सुमित 27 वर्षीय एक स्मार्ट लड़का है. वह गुरुग्राम स्थित एक आईआईटी कंपनी में जौब करता है. वहीं उस की 25 वर्षीय पार्टनर प्रियंका एक मेकअप आर्टिस्ट है. दोनों 3 महीने पहले एक क्लब में मिले थे. इस के बाद वे अकसर मिलने और पार्टी करने लगे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों सहमति से रिलेशनशिप में आ गए क्योंकि प्रियंका भी जौब करती थी इसलिए उस ने अपने खर्चे सुमित पर नहीं डाले.

प्रियंका जब कभी शौपिंग करती तो वह अपना बिल खुद पे करती. वे जब कभी बाहर जाते तो खर्चे हाफहाफ बांट लेते. जब कभी लंच, डिनर पर जाते तो कभी सुमित बिल देता तो कभी प्रियंका. इस से किसी एक पर खर्चे का बो झ नहीं पड़ता.

सुमित कहता है कि यंग लड़कों को ऐसी ही लड़कियां पसंद है, जो अपने पैरों पर खड़ी हैं. महंगाई के इस दौर में दोनों पार्टनर का कमाना बहुत जरूरी है. खर्चे दोनों पार्टनर के मिल कर करने से रिश्ते में रोमांस और सम्मान बना रहता है.

वहीं राहुल प्राइवेट बैंक में कैशियर की जौब करता है तो दिव्या एक वैबसाइट के लिए कंटैंट लिखती है. दिव्या और राहुल की रिलेशनशिप को 1 साल हो गया है. 1 साल की इस रिलेशनशिप में खर्चा सिर्फ राहुल ने ही किया है. खर्चे को ले कर उन के बीच कई बार लड़ाई हो चुकी है. राहुल का कहना है कि जब रिश्ता 2 लोगों के बीच है तो खर्चा कोई एक क्यों करें क्योंकि राहुल अपने परिवार का भी खर्चा उठाता है और रिलेशनशिप में भी वही खर्चे का पूरा बो झ उठा रहा है इसलिए वह चिड़चिड़ा रहने लगा. इस से उन के रिश्ते में भी कड़वाहट आ गई और जल्द ही उन का रिश्ता टूट गया.

रिश्ते में दरार

भावनात्मक तौर पर यह कहा जा सकता है कि रिश्ते के बीच पैसों को क्या लाना. लेकिन असल में अकसर आर्थिक  झगड़े ही रिश्ते में दरार आने का सब से बड़ा कारण बनते हैं. किस ने, किस पर, कितना, कैसे, क्या खर्च किया है बहुत माने रखता है.

1 हजार से अधिक लोगों पर किए गए सर्वे के अनुसार एक रिलेशनशिप में लोग लगभग 11 हजार प्रति माह से थोड़ा कम खर्च करते हैं, जबकि विवाहित जोड़े करीब 10 हजार रुपए खर्च करते हैं. एक रैस्टोरैंट के मैनेजर ने बताया कि वहां आने वाले कपल्स में 70% लड़के ही बिल पे करते हैं. वही 30% ऐसी लड़कियां हैं जो बिल पे करती हैं.

लैकमे स्टोर में काम करने वाली 23 वर्षीय रुचि बताती है कि जब कभी भी वह अपने पार्टनर के साथ बाहर डिनर पर जाती है तो कभी वह बिल पे कर देती है तो कभी उस का पार्टनर. इस तरह से खर्चा समान मात्रा में बंट जाता है. वह बताती है कि जब उन्हें ट्रिप पर जाना होता है तो वे पहले से ही प्लानिंग कर लेते हैं. ऐसे में वे एक बजट बना लेते हैं और फिर उसी बजट के अनुसार खर्चा करते हैं.

इस में जो भी खर्चा होता है उसे वे आधाआधा बांट लेते हैं. इस के अलावा जिसे अपने लिए शौपिंग करनी होती है वह उस का बिल खुद देता है. वे एकदूसरे को समयसमय पर गिफ्ट भी देते रहते हैं.

18 वर्षीय अंजलि मध्यवर्ग से है, वहीं सचिन उच्च मध्यवर्ग का 19 वर्षीय लड़का है. एक ही कालेज में होने के कारण दोनों में जानपहचान हुई और फिर वे एकदूसरे को डेट करने लगे. सचिन आर्थिक रूप से अंजलि से थोड़ा स्ट्रौंग था. लेकिन अंजलि इंडिपैंडैंट लड़की थी. ऐसे में वह चाहती थी कि खर्चे में वह भी अपनी भागीदारी दे. इसलिए उस ने राहुल से बात शेयर की. राहुल ने भी इस बात को सम झा.

अब जब कभी भी वे बाहर जाते हैं तो कभी राहुल बिल पे कर देता है तो कभी अंजलि. इस से किसी का ईगो भी हर्ट नहीं होता और रिलेशनशिप भी स्मूथली चलती है.

हीनभावना क्यों

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट नवीन मेहता कहते हैं कि कई बार ऐसा भी होता है कि दोनों पार्टनर का बजट कम होता है तो ऐसे में वे महंगे रैस्टोरैंट न जा कर स्ट्रीट फूड का मजा भी उठा सकते हैं और इस तरह से किसी एक पर खर्चे का अधिक बो झ भी नहीं होगा. ऐसा देखा गया है कि जब कभी कोई एक पार्टनर ही खर्चा करता रहे तो वह रिश्ते को बो झ सम झने लगता है और जल्द से जल्द उस से छुटकारा पाना चाहता है. वहीं दूसरी ओर कई पार्टनर ऐसे होते हैं जो खर्चा करने में असमर्थ होते हैं, इस से उन में हीनभावना आने के चांस बढ़ जाते हैं.

एक रैस्टोरैंट के मैनेजर ने बताया कि वहां आने वाले कपल्स में 70% लड़के ही बिल पे करते हैं. वहीं 30% ऐसी लड़कियां हैं जो बिल पे करती हैं. उन्होंने कहा कि कई बार लड़कियां बिल देना चाहती हैं, लेकिन उन के पार्टनर यह कहते हुए मना कर देते हैं कि मेरे होते हुए तुम बिल क्यों दोगी.

रिलेशनशिप में एकतरफा खर्च का एक उदाहरण चीन के शहर शंघाई में देखने को मिला जहां लंबे समय तक डेटिंग करने के बाद एक कपल अलग हो गया. रिलेशनशिप खत्म होने पर बौयफ्रैंड ने अपनी गर्लफ्रैंड को 7 लाख का लंबाचौड़ा बिल थमा दिया. इस में चिप्स से ले कर पानी का बिल तक था. ऐसी नौबत से बचने के लिए खर्चे को आपस में बांटना ही सही है.

गलत धारणा से ग्रस्त

सुनिधि बताती है कि कई बार रिलेशनशिप टूटने के बाद लड़के अपनी पुरानी पार्टनर को गोल्ड डिगर कहते हैं वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टनर को कई गिफ्ट दिए होते हैं और बदले में उन की साथी पार्टनर उन को गिफ्ट नहीं देती. यही कारण है कि वे उन्हें गोल्ड डिगर कह कर उन का अपमान करते हैं.

फ्लिपकार्ट कंपनी में काम करने वाली सुष्मिता कहती है कि कई लड़कियां रिलेशनशिप में अपने पैसे सेव कर के अपने पार्टनर के पैसे खर्च करवाती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पैसे खर्च करना सिर्फ लड़कों की जिम्मेदारी है. वे अपनी राय देते हुए कहती है कि जहां लड़कियां लड़कों के कंधे से कंधा मिला कर चलने की बात करती हैं तो फिर पैसा खर्च करने में  िझ झकती क्यों हैं? जो लड़कियां ऐसा सोचती हैं वे वह गलत धारणा से ग्रस्त हैं. उन्हें यह सम झना चाहिए कि रिश्ता 2 लोगों के बीच है तो खर्चा भी 2 लोगों में बंटना चाहिए.

बनाए रखें प्यार

रिलेशनशिप में रहने वाले कपल अपना खर्चा बचाने के लिए घर पर ही लंच या डिनर का प्रोग्राम बनाएं. इस से आप का पार्टनर भी इंप्रैस हो जाएगा और आप का खर्चा भी कम होगा. खास बात यह होगी कि जो टाइम आप को किसी रैस्टोरैंट में एकसाथ बिताने को नहीं मिलता वह भी आसानी से मिल जाएगा वह है क्वालिटी टाइम, जिस में आप एकदूसरे से अपनी बातें शेयर कर पाएंगे, एकदूसरे पर ट्रस्ट स्ट्रौंग कर पाएंगे.

इस के अलावा लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल को घर का किराया और खर्चे आपस में बांट लेने चाहिए. उदाहरण के लिए यदि आप को एक अपार्टमैंट मिलता है जिस की कीमत क्व8 हजार प्रति माह है, तो प्रत्येक भागीदार क्व4 हजार का योगदान देगा.

किसी भी रिश्ते में प्यार और सम्मान दोनों की जरूरत होती है और यह प्यार और सम्मान तब और बढ़ जाता है जब इसे जिम्मेदारी के साथ निभाया जाए. इस के लिए जरूरी है कि खर्चे को आधाआधा बांटा जाए. इस का फायदा यह रहेगा कि इस से किसी एक पर सारा खर्चा नहीं आएगा और इस से रिश्ते में प्यार बना रहेगा.

Father’s day 2023: त्रिकोण का चौथा कोण- भाग 3

निरुपमा से पहले अनु की शादी की खबर मिलने के बाद मोहित भी कुछ विचलित हो गया था. अनु की शादी निरुपमा से पहले क्यों करनी पड़ी? निरुपमा को किसी ने पसंद नहीं किया यह तो कभी हो ही नहीं सकता. फिर क्या निरुपमा स्वयं तैयार नहीं है? कुछ दिन दुखी रहने के बाद आम लड़कियों की तरह

ही निरुपमा की भी शादी हो जाएगी, यह तो सोचा था मोहित ने, पर अब निरुपमा के अविवाहित रहने की खबर ने उसे अपराधबोध से ग्रस्त कर दिया.

हिम्मत कर एक दिन मोहित ने निरुपमा के घर फोन मिलाया, ‘‘हैलो… हैलो…’’ उधर से आवाज आई.

दास आंटी की आवाज वह पहचान रहा था. बड़ी मुश्किल से उस ने साहस जुटा कर कहा, ‘‘नमस्ते आंटी, मैं मोहित बोल रहा हूं, कैसे हैं आप लोग?’’

अचानक मोहित के फोन से निरुपमा की मां हड़बड़ा गईं पर अगले ही क्षण स्वयं को संयत कर बोलीं, ‘‘ठीक हैं, फोन कैसे किया?’’

‘‘आंटी, अनु की शादी की खबर मिली तो रहा नहीं गया… निरुपमा से पहले…?’’ आगे कुछ नहीं बोल पाया मोहित, शब्द गले में ही अटक कर रह गए.

‘‘हां, निरुपमा से पहले करनी पड़ी, क्योंकि वह शादी करना ही नहीं चाहती. अब क्यों, यह तो बताना नहीं पड़ेगा तुम्हें,’’ पल भर दोनों ओर से फोन पर चुप्पी छाई रही, फिर वे बोलीं, ‘‘कहती है विवाह तो मन का गठबंधन है, जो जीवन में केवल एक बार होता है, दोबारा कैसे कर लूं…’’

‘‘जी…’’ अस्फुट से शब्द मोहित के गले में ही दब कर रह गए. पूरी रात वह सो नहीं सका. ये क्या पागलपन है निरुपमा का? पिछले 8 वर्षों से मैं उस से बेखबर हो अपने जीवन में मगन हो गया था. मैं ने तो दीप्ति से विवाह के बाद पीछे मुड़ कर एक बार भी नहीं देखा कि आखिर निरुपमा कहां है, किस हाल में है. और वह अब तक मेरे प्यार की लौ में जल रही है, वह भी बिना किसी शिकवेशिकायत के. कैसे काटे होंगे निरुपमा ने ये दिनरात. 8 वर्ष लंबा नहीं, तो छोटा अरसा भी नहीं होता.

अगली ही सुबह मोहित ने फिर निरुपमा के घर फोन लगाया, ‘‘आंटी, यदि आप को एतराज न हो तो मुझे निरुपमा का मोबाइल नंबर चाहिए. आंटीजी, निरुपमा के इस एकाकीपन के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं. मैं उस से एक बार बात करना चाहता हूं. मैं खुद उसे तैयार करूंगा शादी के लिए.’’

वर्षों प्रयास कर हार चुकी निरुपमा की मां की आंखें नई आस से चमक उठीं. शायद मोहित ही उस के इरादों को बदल दे.

‘‘हां बेटा, तुम बात कर के देख लो…,’’ कहते हुए उन्होंने झट से निरुपमा का मोबाइल नंबर मोहित को दे दिया.

8 वर्षों से संयम का जो बांध निरुपमा ने अपने मन के इर्दगिर्द बांधा था, वह मोहित की आवाज मात्र से भरभरा कर गिरने लगा. हमदर्दी से पुन: शुरू हुई मुलाकातों में मोहित व निरुपमा की निकटता बढ़ने लगी. इस से भावनाओं के बहाव ने भी गति पकड़ ली. कुछ वर्षों में ढेर सारा पैसा कमा चुके मोहित पर से पैसे का नशा अब धीरेधीरे कम हो चुका था, पर जवानी का सुरूर अभी बाकी था.

युवावस्था में पिता के भाषणों के प्रभाव की वजह से अपने प्रेम से विमुख हुए मोहित को वर्षों बाद निरुपमा के अपने प्रति प्रेम ने अंदर तक पिघला दिया. फिर वही होता

चला गया, जो सामाजिक तौर पर गलत था, अवैध था.

‘अपने सहारे ही जी लूंगी’ वाला निरुपमा का दंभ मोहित की निकटता में कमजोर पड़ गया. इतने वर्षों से एकाकीपन झेलतेझेलते निरुपमा का जीवन नीरस ही नहीं अस्वाभाविक भी हो चला था. न प्रेम जताने को हमसफर, न अधिकार जताने को साथी और न दुख तथा कष्टों में आंसू बहाने के लिए किसी अपने का मजबूत कंधा.

मोहित के आर्थिक सहारे की उसे जरूरत और चाह भी नहीं थी, पर मन का विरह व जीवन में चारों ओर व्याप्त हो रही मानसिक रिक्तता को भरने के लिए एक पुरुष का संग प्रत्यक्ष रूप से नकारते हुए भी वह शिद्दत से महसूस करने लगी थी. ऐसे में मोहित के कुछ क्षण चुराने में उसे झिझक नहीं होती थी, बल्कि खुल कर वह उन्हें जी लेती थी.

निरुपमा से प्रेम करने के बावजूद मोहित उसे पत्नी का स्थान नहीं दे सका था, जिस की हर एक स्त्री समाज में रहने के लिए कामना करती है. न ही निरुपमा को वह घरगृहस्थी, बच्चों का सुख दे पाया था. इस अपराधबोध से उबरने का इस से अच्छा उपाय और क्या हो सकता था मोहित के लिए. उसे कुछ क्षण चाहिए… उस का हक बनता है, इसलिए तो वह निरुपमा के पास जाता है.

अपनी इच्छा से या अपनी जरूरत के लिए वह निरुपमा के पास जाता है, यह सत्य मन ही मन वह नकार देता था. स्वीकारता तो शायद निरुपमा के समक्ष एक नया अपराधबोध जन्म लेता. मोहित खुद अपने हिसाब से गुणाभाग करता. अंत में किसी तरह ‘मैं ठीक ही कर रहा हूं’ के निष्कर्ष तक स्वयं को पहुंचा कर वह निश्चिंत हो जाता.

निरुपमा ने भी उस से अधिक अपेक्षा नहीं रखी. उस के लिए यही काफी था कि मोहित के मन में अब भी उस के लिए एक स्थान सुरक्षित है, फिर भले ही सामाजिक तौर पर वह उस की जीवनसंगिनी नहीं बन पाई हो. अपने इस स्वार्थ के पीछे वह नीतिअनीति को उपेक्षित कर बैठी थी. किसी विवाहिता के अधिकार क्षेत्र में वह घुसपैठ कर रही है, इस ओर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया.

बच्चा गलती कर बैठे तो मांबाप प्यार से समझाते हैं, गलती दोहराने पर हिदायत देते हैं. उस पर भी न माने तो थप्पड़ दिखा कर डराते हैं, धमकाते हैं, सजा देते हैं. पर जब युवावस्था पार कर चुकी 30 वर्ष की बेटी पथभ्रष्ट हो

कर अनैतिकता की ओर बढ़ने पर आमादा हो जाए, तो मांबाप सिर्फ समझा सकते हैं. मानसम्मान व इज्जत का हवाला दे कर विनती ही कर सकते हैं और उस पर भी न माने, तो चुप रहने के लिए विवश हो जाते हैं. बेटी की यह स्थिति ज्यादा दिनों तक नहीं देख, सह पाए निरुपमा के पिताजी और एक दिन हार्टअटैक से चल बसे. अनु अपने पति के साथ विदेश से आई और 10 दिन मां व दीदी के साथ रह कर लौट गई.

घर में शेष रह गईं मां और बेटी. अब तो खुलेतौर पर मोहित उन के घर आनेजाने लगा. बेटी पर पूरी तरह आश्रित आखिर कहां तक उस का विरोध करतीं. सब कुछ जानतेसमझते हुए भी निरुपमा की मां कभी अपनी बेटी को यह नहीं समझा सकीं कि वह जो कुछ भी कर रही है, वह पूरी तरह गलत है. निरुपमा के दुखोंतकलीफों को देखने वाली उस की मां ने बरसों बाद उस के चेहरे पर खुशी की लकीरों को जन्म लेते देखा था. चुपचुप रहने वाली निरुपमा बोलनेबतियाने लगी थी. उम्र के इस पड़ाव पर अब जब कहीं कोई उम्मीद शेष नहीं रही थी निरुपमा के विवाह की. ऐसे में जो थोड़ाबहुत सुख मोहित की वजह से उस की झोली में गिर रहा था, उसे पुत्री प्रेम में स्वार्थी हो कर वे गिरने से रोक न सकी थीं.

दीप्ति को तो मोहित ने स्वयं अपने मुंह से यह सच बता डाला था. ऐसा कड़वा सच, जो किसी भी विवाहिता के लिए जहर के घूंट से भी अधिक जहरीला होता है. वैवाहिक जीवन में कहीं कोई दुरावछिपाव नहीं होना चाहिए का तर्क दे कर स्वयं को पूरी ईमानदारी का हिमायती बना कर उस ने अपने पूर्वप्रेम की दास्तान और निरुपमा के समर्पण का ऐसा बखान कर डाला कि सुन कर भरे गले से दीप्ति केवल इतना भर कह पाई थी, ‘‘जब प्रेम किया था, तो आप को हिम्मत से तभी निभाना चाहिए था. गलती तो आप की ही ही है…’’

पर अपनी विवशताओं को गिनवा कर मोहित ने दीप्ति को अच्छी तरह समझा लिया कि उस वक्त उस ने जो किया वह परिस्थिति के अनुसार ठीक था और अब वह जो कुछ भी कर रहा है, वह भी परिस्थिति की ही मांग है.

वैवाहिक जीवन के इस पड़ाव पर 2 छोटे बच्चों को ले कर घरगृहस्थी में रमी हुई दीप्ति अचानक बगावत करती भी तो किस के दम पर? अपने हिस्से के सुख और दुख भोगने ही पड़ते हैं मान कर जिंदगी से समझौता कर लिया था उस ने. पति उसे भरपूर सुख दे रहा है, इस भ्रमजाल को उस ने स्वयं ही अपने चारों ओर बिछा लिया था.

उस सुख की परिभाषा भी तो मोहित ने स्वयं ही उस के समक्ष गढ़ दी थी- रहने के लिए अच्छा घर है, ऐशोआराम के सारे सामान, समाज में मोहित की पत्नी का सम्मानजनक दर्जा, 2 प्यारे बच्चे, खर्च के लिए दौलत व प्रेम के नाम पर बदलाव के तौर पर ही सही, तुम्हारे साथ बिताए जाने वाले क्षण. कुल मिला कर ये सब कुछ कम नहीं है.

दीप्ति के मानने न मानने का प्रश्न ही नहीं उठा. परिस्थिति की मांग ने उसे सब कुछ यथावत मानने को विवश कर दिया था. दीप्ति केवल पत्नी ही नहीं मां भी थी. पत्नी की हैसियत के लिए तर्कवितर्क कर परिवार से बाहर निकल कर दांपत्य की अवहेलना करना एक मां के लिए असंभव नहीं तो भी कठिन अवश्य था. इस बंधन को कमजोर न पड़ने देना ही एकमात्र विकल्प था दीप्ति के पास.

वह बिलकुल अकेली है, उसे मेरी सख्त जरूरत है, कह कर मोहित बेधड़क दीप्ति के सामने ही निरुपमा के पास जाने के लिए चल देता व जब कभी निरुपमा के लंबे सामीप्य से एकरसता उत्पन्न हो जाती, तो बच्चों की जरूरत का हवाला दे कर बेखौफ दीप्ति के पास वापस लौट आता. दीप्ति और निरुपमा रूपी 2 नावों पर बड़ी सावधानी से सवार हो कर मोहित ने इतने वर्ष गुजार दिए थे.

बड़े होते दोनों बच्चों, अंकित व अपूर्वा में मगन दीप्ति अब उन दुखती रगों को स्वयं ही अनछुआ छोड़ देती थी, क्योंकि जानती थी कि छेड़ने से पुराने घाव ठीक तो होते नहीं बल्कि और अधिक रिसने लगते हैं. रिसने की उस टीस को सहते हुए ही तो इतने वर्ष गुजार दिए थे उस ने. 50 पार कर चुका था मोहित, बालों में जहांतहां सफेदी छा गई थी, फिर भी अच्छाखासा आकर्षण था उस के व्यक्तित्व में. आज उसी आकर्षक व्यक्तित्व के पोरपोर में पीड़ा समा गई थी. टेबल पर रखे फोन की घंटी घनघना उठी, तो मोहित की तंद्रा टूटी.

‘‘हैलो…’’ कहते ही उधर से निरुपमा की आवाज आई.

‘‘हैलो मोहित? अपना सेल फोन क्यों बंद कर रखा है… मैं कब से कोशिश कर रही हूं… बात क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं नीरू… अभी थोड़ा व्यस्त हूं मीटिंग में, बाद में बात करूंगा,’’ साफ झूठ बोल गया मोहित.

मन में छिड़ा द्वंद्व अभी भी ज्यों का त्यों था. किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा था मोहित. वर्षों से दीप्ति व निरुपमा को उस ने अपने दाएंबाएं हाथों की तरह ऐसा संतुलित कर रखा था कि मन ही मन अपने इस संतुलन कौशल पर वह फख्र करता रहा था. अंतर्मन में जबतब ये भाव उठा करते थे कि लोग तो एक को संतुष्ट नहीं कर पाते, मैं ने तो दोदो संभाल रखी हैं वह भी बिना किसी झिकझिक के.

पर आज वर्षों बाद इस सधे त्रिकोण का कोई चौथा कोण इस तरह अंकित के रूप में उभरेगा, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

दीप्ति ने जितना सुख व इज्जत मुझ से पाई उस में संतोष कर लिया. निरुपमा ने इज्जत का हवाला दे कर अपने रिश्ते की वैधता के लिए कभी मुझे विवश नहीं किया. शायद इसलिए मैं यह कभी जान ही नहीं सका कि मेरे कर्तव्य किस के प्रति क्या हैं. आज उसी इज्जत का हवाला दे कर अंकित मेरे सामने प्रश्न बन कर खड़ा हो गया है. उसे तो उत्तर देना ही पड़ेगा.

यह कैसी विडंबना थी कि वर्षों पूर्व जिन पैसों और बिजनैस का हवाला दे कर पिता ने मोहित को अपने प्रेम को भूल जाने के लिए मजबूर कर दिया था, आज उन्हीं पैसों और बिजनैस को छोड़ने की अंकित पूरी तैयारी कर बैठा है. क्या आज पुन: उसे अपने प्रेम से, निरुपमा के साथ अपने अवैध ही सही पर रिश्तों से दोबारा मुंह मोड़ना पड़ेगा? भौतिक और सामाजिक स्तर पर तो निरुपमा अकेली थी, परंतु उम्र के आखिरी पड़ाव पर अपने स्वार्थ की खातिर पुन: उसे अकेला छोड़ देना तो बेमानी होगा.

निरुपमा मेरे जीवन का हिस्सा बन चुकी है. उस के साथ मैं दोबारा धोखाधड़ी नहीं कर सकता और दीप्ति? वह क्या वर्षों से अपने बेटे के सामर्थ्यवान होने की प्रतीक्षा में ही थी? वर्षों मेरे साथ बिना उफ किए जीती आ रही दीप्ति की विवशताओं व दुखों को जानतेबूझते मैं अवहेलना करता आया हूं, यही तो कहा था अंकित ने. उस का एकएक शब्द घनघना कर मेरे मस्तिष्क में बज रहा था. क्या सच इतना कड़वा होता है?

दीप्ति और बच्चों से ही तो मेरी सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसम्मान सब कुछ है. अंकित और दीप्ति का मुझ से अलग होना मेरा समाज से बहिष्कृत होना होगा. वर्षों से समाज में प्राप्त मानप्रतिष्ठा अंत:करण में एक दायित्व का बोध उत्पन्न कर रही थी, जिसे निभाना अत्यंत जरूरी था. अपने लिए न सही पर कम से कम विवाह योग्य हो रही अपनी बेटी अपूर्वा की खातिर तो था ही.

मोहित को लगा जैसे शतरंज की बिसात पर सभी मुहरे एकदूसरे से मारकाट करने पर आमादा हो रहे हैं. अब तक इस बिसात को दोनों ओर से खेलने वाला वह अकेला ही तो खिलाड़ी था. सारी स्थितियां उस की स्वयं की बनाई हुई थीं. विचारों के भंवर में फंसा मोहित लगातार यही सोच रहा था. लेकिन इस जटिल गणित का हल नहीं मिल पा रहा था. क्या करूं, क्या न करूं का द्वंद्व मस्तिष्क में घूम रहा था. मोहित को लगा सिर की नसें अब फट जाएंगी.

मन ही मन स्वयं को बादशाह समझने का दंभ रखने वाला मोहित आज स्वयं को किसी सिंह के मुख में फंसे मेमने की भांति निरीह व बेबस महसूस कर रहा था, जो अपने अंत के लिए प्रतीक्षारत होता है. आंखों में भय, व्याकुलता इस कदर उतर आई थी कि घबराहट के मारे वह टेबल पर रखा पानी का गिलास भी नहीं उठा पा रहा था. अचानक ही शरीर की सारी नसों में तनाव व्याप्त हो गया. पसीने से लथपथ शरीर उसे टनों भारी लगने लगा. थोड़ी ही देर में उस के चारों ओर गहरा अंधकार छा गया. हृदय खट से बंद हो गया. तभी उस के हृदय की गति रुक गई.

मोहित प्रगाढ़ निद्रा में लीन हो गया था. अब उसे अंकित के समक्ष उत्तर नहीं देना पड़ेगा… किसी को भी उत्तर नहीं देना पड़ेगा. मोहित स्वयं अपनेआप में एक प्रश्न बन कर समाज के सामने पड़ा हुआ था.

होटल ऐवरेस्ट: विजय से क्यों दूर चली गई काम्या?

चित्रा के साथ शादी के 9 सालों का हिसाब कुछ इस तरह है: शुरू के 4 साल तो यह समझने में लग गए कि अब हमारा रिश्ता लिव इन रिलेशन वाले बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड का नहीं है. 1 साल में यह अनुभव हुआ कि शादी का लड्डू हजम नहीं हुआ और बाकी के 4 साल शादी से बाहर निकलने की कोशिशों में लग गए. कुल मिला कर कहा जाए तो मेरे और चित्रा के रिश्ते में लड़ाईझगड़ा जैसा कुछ नहीं था. बस आगे बढ़ने की एक लालसा थी और उसी लालसा ने हमें फिर से अलगअलग जिंदगी की डोर थामे 2 राही बना कर छोड़ दिया. हमारे तलाक के बाद समझौता यह हुआ कि मुझे अदालत से अनुमति मिल गई कि मैं अपने बेटे शिवम को 3 महीने में 1 बार सप्ताह भर के लिए अपने साथ ले जा सकता हूं. तय प्रोग्राम के मुताबिक चित्रा लंदन में अपनी कौन्फ्रैंस में जाने से पहले शिवम को मेरे घर छोड़ गई.

‘‘मम्मी ने कहा है मुझे आप की देखभाल करनी है,’’ नन्हा शिवम बोला. उस की लंबाई से दोगुनी लंबाई का एक बैग भी उस के साथ में था.

‘‘हम दोनों एकदूसरे का ध्यान रखेंगे,’’ मैं ने शरारती अंदाज में उस की ओर आंख मारते हुए कहा. ऐसा नहीं था कि वह पहले मेरे साथ कहीं अकेला नहीं गया था पर उस समय चित्रा और मैं साथसाथ थे. पर आज मुझ में ज्यादा जिम्मेदारी वाली भावना प्रबल हो रही थी. सिंगल पेरैंटिंग के कई फायदे हैं, लेकिन एकल जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता.

मैं ने गोवा में होटल की औनलाइन बुकिंग अपनी सेक्रेटरी से कह कर पहले ही करवा दी थी. होटल में चैकइन करते ही काउंटर पर खड़ी रिसैप्शनिस्ट ने सुइट की चाबियां पकड़ाते हुए दुखी स्वर में कहा, ‘‘सर, अभी आप पूल में नहीं जा पाएंगे. वहां अभी मौडल्स का स्विम सूट में शूट चल रहा है.’’ मन ही मन खुश होते हुए मैं ने नाटकीय असंतोष जताया और पूछा, ‘‘यह शूट कब तक चलेगा?’’

‘‘सर, पूरे वीक चलेगा, लेकिन मौर्निंग में बस 2 घंटे स्विमिंग पूल में जाने की मनाही है.’’

तभी एक मौडल, जिस ने गाउन पहन रखा था मेरी ओर काउंटर पर आई. वह मौडल, जिसे फ्लाइट में मैगजीन के कवर पर देखा हो, साक्षात सामने आ गई तो मुझे आश्चर्य और आनंद की मिलीजुली अनुभूति हुई. कंधे तक लटके बरगंडी रंग के बाल और हलके श्याम वर्ण पर दमकती हुई त्वचा के मिश्रण से वह बहुत सुंदर लग रही थी. उस ने शिवम के सिर पर हाथ फेरा और उसे प्यार से हैलो कहा. शिवम को उस की शोखी बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर सकी. ‘काश मैं भी बच्चा होता’ मैं ने मन ही मन सोचा.

‘‘डैडी, मुझे पूल में जाना है,’’ शिवम बोला.

‘‘पूल का पानी बहुत अच्छा है. देखते ही मन करता है कपड़े उतारो और सीधे छलांग लगा दो,’’ मौडल बोली. फिर उस ने काउंटर से अपने रूम की चाबी ली और चल दी. लिफ्ट के पास जा कर उस ने मुझे देख कर एक नौटी स्माइल दी.

थोड़ी देर पूल में व्यतीत करने और डिनर के बाद मैं शिवम के साथ अपने सुइट में आ गया. अगली सुबह शिवम बहुत जल्दी उठ गया. हम जब पूल में तैर रहे थे तो वह तैरते हुए पूरे शरीर की फिरकी ले कर अजीब सी कलाबाजी दिखा रहा था. मेरी आंखों के सामने कितना रहा है फिर भी मैं नहीं जानता कि वह क्याक्या कर सकता है. मुझे अपने बेटे के अजीब तरह के वाटर स्ट्रोक्स पर नाज हो रहा था. नाश्ते में मैं ने मूसली कौंफ्लैक्स व ब्लैक कौफी ली और उस ने चौकलेट सैंडविच लिया. 10 बजतेबजते सभी मौडल्स पूल एरिया के आसपास मंडराने लगीं. मैं ने वीवीआईपी पास ले कर शूट देखने की परमिशन ले ली. फिर जब तक मौडल्स पूल में नहीं उतरीं, तब तक मैं ने तैराकी के अलगअलग स्ट्रोक्स लगा कर उन्हें इंप्रैस करने की खूब कोशिश की. अपने एब्स और बाई सैप्स का भी बेशर्मी के साथ प्रदर्शन किया.

पूल में सारी अदाएं दिखाने के बाद भी आकर्षण का केंद्र शिवम ही रहा. कभी वह पैडल स्विमिंग करता, कभी जोर से पानी को स्प्लैश करता, तो कभी अपनी ईजाद की गई फिरकी दिखाता. नतीजा यह हुआ कि 4-5 खूबसूरत मौडल्स उसे तब तक हमेशा घेरे रहतीं जब तक वह पूल में रहता. वह तो असीमित ऊर्जा और शैतानी का भंडार था और उस की कार्टून कैरेक्टर्स की रहस्यमयी जानकारी ने तो मौडल्स को रोमांचित कर हैरत में डाल दिया. अगले 2 दिनों में मैं छुट्टी के आलस्य में रम गया और शिवम एक छोटे चुबंक की तरह मौडल्स और अन्य लोगों को आकर्षित करता रहा. मुझे भी अब कोई ऐक्शन दिखाना पड़ेगा, इसी सोच के साथ मैं ने मौडल्स से थोड़ीबहुत बातचीत करना शुरू कर दिया. मुझे पता चला कि वह सांवलीसलोनी मौडल, जो पहली बार रिसैप्शनिस्ट के काउंटर पर मिली थी, शिवम की फ्रैंड बन चुकी है और उस का नाम काम्या है. थोड़ी हिम्मत जुटा मैं ने उसे शाम को कौफी के लिए औफर दिया.

‘‘जरूर,’’ उस ने हंसते हुए कहा और अपने बालों में उंगलियां फेरने लगी.

‘‘मुझे भी यहां एक अच्छी कंपनी की जरूरत है,’’ मैं ने कहा.

हम ने शाम को 8 बजे मैन बार में मिलना तय किया. शादी से आजाद होने के बाद मैं  पहली बार किसी कम उम्र की लड़की से दोस्ती कर रहा था, इसलिए मन में रोमांच और हिचक दोनों ही भावों का मिलाजुला असर था. ‘‘बेटा, एक रात तुम्हें अकेले ही सोना है,’’ मैं ने शिवम को समझाते हुए कहा, ‘‘मैं ने होटल से बेबी सिटर की व्यवस्था भी कर दी. वह तुम्हें पूरी कौमिक्स पढ़ कर सुनाएगी,’’ उस के बारे में मैं ने बताया.

होटल की बेबी सिटर एक 16 साल की लड़की निकली और वह इस जौब से बहुत रोमांचित जान पड़ी, क्योंकि उसे रात में कार्टून्स देखने और कौमिक्स पढ़ने के क्व5 हजार जो मिल रहे थे. इसलिए जितना मैं काम्या से मिलने के लिए लालायित था उस से ज्यादा बेबी सिटर को शिवम के साथ धमाल मचाने की खुशी थी. मैं ने जाते वक्त शिवम की ओर देखा तो उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘बाय डैडी, जल्दी आना.’’ उस मासूम को अकेला छोड़ने में मुझे दुख हो रहा था. अपनी जिम्मेदारी दिखाते हुए मैं ने बेबी सिटर को एक बार फिर से निर्देश दिए और सुइट से बाहर आ गया.

रैस्टोरैंट तक पहुंचतेपहुंचते मुझे साढ़े 8 बज गए. काम्या रैस्टोरैंट में बाहर की ओर निकले लाउंज में एक कुरसी पर बैठी आसमान में निकले चांद को देख रही थी. समुद्र की ओर से आने वाली हवा से उस के बाल धीरेधीरे उड़ रहे थे. शायद अनचाहे ही वह गिलास में बची पैप्सी को लगातार हिला रही थी. वह एक शानदार पोज दे रही थी और मेरा मन किया कि जाते ही मैं उसे बांहों में भर लूं. मैं आहिस्ता से उस के पास गया और बोला, ‘‘सौरी, आई एम लेट.’’

मेरी आवाज सुन वह चौंक गई और बोली, ‘‘नोनो ईट्स फाइन. मैं तो बस नजारों का मजा ले रही थी. देखो वह समुद्र में क्या फिशिंग बोट है,’’ उस ने उंगली से इशारा करते हुए कहा. बोट हो या हवाईजहाज मेरी बला से, फिर भी मैं ने अनुमान लगाने का नाटक किया. तभी वेटर हमारा और्डर लेने आ गया.

‘‘तुम एक और पैप्सी लोगी?’’ मैं उस के गिलास की ओर देखते हुए बोला.

‘‘वर्जिन मोजितो,’’ उस ने कहा.

मैं ने वेटर को 2 जूस और वर्जिन मोजितो लाने के को कहा.

‘‘शिवम कहां है, सो गया?’’ मेरी ओर देखते हुए काम्या ने पूछा.

‘‘सौरी, उसी वजह से मैं लेट हो गया. उसे अकेले रहना पसंद नहीं है. वैसे वह बिलकुल अकेला भी नहीं है. एक बेबी सिटर है उस के पास. मैं ने पूरी कोशिश की कि वह मुझे कहीं से भी एक गैरजिम्मेदार पिता नहीं समझे.’’

‘‘क्या वह उस के लिए कौमिक्स पढ़ रही है? कहीं वह उसे परेशान तो नहीं कर रही होगी? आप कहें तो हम एक बार जा कर देख सकते हैं.’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने जल्दी से मना किया, ‘‘मेरा मतलब है अब तक वह सो गया होगा? तुम परेशान मत हो.’’ फिर मैं ने बात पलटी, ‘‘और तुम्हारा शूट कैसा रहा है?’’

‘‘लगता है अब उन्हें मनचाही फोटोज मिल गई हैं. आज का दिन बड़ा बोरिंग था, मैं ने पूरी किताब पढ़ ली,’’ काम्या के हाथ में शेक्सपियर का हेमलेट था. एक मौडल के हाथ में कोर लिट्रेचर की किताब देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ.

‘‘मैं औनर्स फाइनल इयर की स्टूडैंट भी हूं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा. तभी वेटर हमारी ड्रिंक्स ले आया. वह आगे बोली, ‘‘मैं केवल छुट्टियों में मौडलिंग करती हूं.’’

मैं कुछ कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगा. फिर बोला, ‘‘मुझे लगा कि तुम एक फुल टाइम मौडल होगी.’’

‘‘मैं खाली समय कुछ न कुछ करती रहती हूं,’’ उस ने एक घूंट जूस गले से नीचे उतारा और कहा, ‘‘कुछ समय मैं ने थिएटर भी किया फिर जरमनी में नर्सरी के बच्चों को पढ़ाया.’’

‘‘तभी तुम्हारी पर्सनैलिटी इतनी लाजवाब है,’’ मैं ने उस की खुशामद करने के अदांज में कहा. उस ने हंसते हुए अपना गिलास खत्म किया और पूछने लगी, ‘‘और आप क्या करते हो, आई मीन वर्क?’’

‘‘मैं बैंकर हूं. बैंकिंग सैक्टर को मुनाफा कमाने के तरीके बताता हूं.’’

‘‘इंटरैस्टिंग,’’ वह थोड़ा मेरी ओर झुकी और बोली, ‘‘मुझे इकोनौमिक्स में बहुत इंटरैस्ट था.’’

मुझे तो अभी उस की बायोलौजी लुभा रही थी. शाम को वह और भी दिलकश लग रही थी. उस के होंठ मेरे होंठों से केवल एक हाथ की दूरी पर थे और उस के परफ्यूम की हलकीहलकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी.

अचानक उस ने बोला, ‘‘क्या आप को भूख लगी है?’’

मैं ने सी फूड और्डर किया और डिनर के बाद ठंडी रेत पर चलने का प्रस्ताव रखा. हम दोनों ने अपनेअपने सैंडल्स और स्लीपर्स हाथ में ले लिए और मुलायम रेत पर चलने लगे. उस ने एक हाथ से मेरे कंधे का सहारा ले लिया. रेत हलकी गरम थी और समुद्र का ठंडा पानी बीच में हमारे पैरों से टकराता और चला जाता. हम दोनों ऐसे ही चुपचाप चलते रहे और बहुत दूर तक निकल आए. होटल की चमकती रोशनी बहुत मद्धम पड़ गई. सामने एक बड़ी सी चट्टान मानो इशारा कर रही थी कि बस इस से आगे मत जाओ. मैं चाहता था कि ऐसे ही चलता चलूं, रात भर. मैं ने काम्या के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसे चूम लिया. उस ने मेरा हाथ पकड़ा और चट्टान के और पास ले गई. हम ने एकदूसरे को फिर चूमा और काम्या मेरी कमर धीरे से सहलाने लगी. थोड़ी देर बाद वह अचानक रुकी और बोली, ‘‘मुझे शिवम की चिंता हो रही है.’’ मैं उस पर झुका हुआ था, वह मेरे सिर को पीछे धकेलने लगी. मैं ने उस के हाथ को अपने हाथ में लिया और चूमा. वह जवाब में हंसने लगी.

‘‘सौरी’’ काम्या बोली, ‘‘मुझे चूमते वक्त आप का चेहरा बिलकुल शिवम जैसा बन गया था. कुछकुछ वैसा जब वह ध्यान से पानी में फिरकी लेता है.’’

प्यार करते वक्त अपने बेटे के बारे में सोचने से मेरी कामुकता हवा हो गई. मैं दोनों चीजों को एकसाथ नहीं मिला सकता.

‘‘विजय, क्या आप परेशान हैं?’’ वह मेरे कंधे पर अपना सिर रखते हुए बोली, ‘‘मुझे लगा कि हम यहां मजे कर रहे हैं और मासूम शिवम कमरे में अकेला होगा, इसलिए मुझे थोड़ी चिंता हो गई.’’

‘‘हां, पर उस के लिए बेबी सिटर है.’’

‘‘पर आप ने कहा था न कि उसे अकेला रहना पसंद नहीं,’’ काम्या होंठों को काटते हुए बोली, ‘‘क्या हम एक बार उसे देख आएं?’’

‘‘बेबी सिटर उस की देखभाल कर रही होगी और कोई परेशानी हुई तो वह मुझे रिंग कर देगी. मेरा मोबाइल नंबर है उस के पास,’’ कहते हुए मैं ने जेब में हाथ डाला तो पाया कि मोबाइल मेरी जेब में नहीं था. या तो रेत में कहीं गिर गया था या मैं उसे सुइट में भूल आया था.

‘‘चलो, चल कर देखते हैं,’’ काम्या बोली. वक्त मेरा साथ नहीं दे रहा था. एक तरफ एक खूबसूरत मौडल बांहें पसारे रेत पर लेटी थी और दूसरी ओर मेरा बेटा होटल के सुइट में आराम कर रहा था. उस पर परेशानी यह कि मौडल को मेरे बेटे की चिंता ज्यादा थी. अब तो चलना ही पड़ेगा.

‘‘चलो चलते हैं,’’ कहते हुए मैं उठा. हम दोनों जब होटल पहुंचे तो मैं ने उसे लाउंज में इंतजार करने को कहा और बेटे को देखने कमरे में चला गया. शिवम मस्ती से सो रहा था और बेबी सिटर टैलीविजन को म्यूट कर के कोई मूवी देख रही थी.

‘‘सब ठीकठाक है? मेरा मोबाइल यहां रह गया था, इसलिए मैं आया,’’ मैं ने दरवाजे को खोलते हुए कहा.

बेबी सिटर ने स्टडी टेबल पर रखा मोबाइल मुझे पकड़ाया तो मैं जल्दी से लिफ्ट की ओर लपका. लाउंज में बैठी काम्या फिर आसमान में देख रही थी. वह बहुत सुंदर लग रही थी पर थोड़ी थकी हुई जान पड़ी. उस ने कहा कि वह थकी है और सोने जाना चाहती थी. यह सुन कर मेरा मुंह लटक गया, ‘‘मुझे आज रात का अफसोस है,’’ मैं ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो बस चाहता था कि…’’ मैं कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगा.

‘‘मुझ से प्यार करना?’’ वह मेरी आंखों में देखते हुए बोली.

‘‘नहीं, वह…’’ मैं हकलाने लगा.

‘‘शेक्सपियर का हेमलेट डिस्कस करना?’’ वह हंसते हुए बोली. ठंडी हवाओं की मस्ती अब शोर लग रही थी. ‘‘मुश्किल होता है जब बेटा साथ हो तो प्यार करना और आप एक अच्छे पिता हो,’’ वह बोली.

‘‘नहींनहीं मैं नहीं हूं,’’ मैं ने उखड़ते हुए स्वर में कहा.

‘‘आज जो हुआ उस के लिए आप परेशान न हों. आप जिस तरह से शिवम के साथ पूल में खेल रहे थे और उस के साथ जो हंसीमजाक करते हो वह हर पिता अपने बच्चे से नहीं कर पाता. आप वैसे पिता नहीं हो कि बेटे के लिए महंगे गिफ्ट ले लिए और बात खत्म. आप दोनों में एक स्पैशल बौंडिंग है,’’ काम्या बोली.

‘‘मैं आज रात तुम्हारे साथ बिताना चाहता था.’’

‘‘मुझे भी आप की कंपनी अच्छी लग रही थी पर मैं पितापुत्र के बीच नहीं आना चाहती.’’

‘‘पर तुम…’’ मैं ने कुछ कहने की कोशिश की पर काम्या ने मेरे होंठों पर उंगली रख दी और बोली, ‘‘कल मैं जा रही हूं, पर लंच तक यहीं हूं.’’

‘‘मैं और शिवम तुम से कल मिलने आएंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप लकी हैं कि शिवम जैसा बेटा आप को मिला,’’ काम्या बोली.

जवाब में मैं ने केवल अपना सिर हिलाया और फिर अपने सुइट में लौट आया.

सूनी आंखें: जब महामारी ने कर दिया पति पत्नी को अलग

सुबह के समय अरुण ने पत्नी सीमा से कहा,”आज मुझे दफ्तर जरा जल्दी जाना है. मैं जब तक तैयार होता हूं तुम तब तक लंच बना दो ब्रेकफास्ट भी तैयार कर दो, खा कर जाऊंगा.”

बिस्तर छोड़ते हुए सीमा तुनक कर बोली,”आरर… आज ऐसा कौन सा काम है जो इतनी जल्दी मचा रहे हैं.”अरुण ने कहा,”आज सुबह 11 बजे  जरूरी मीटिंग है. सभी को समय पर बुलाया है.”

“ठीक है जी, तुम तैयार हो जाओ. मैं किचन देखती हूं,” सीमा मुस्कान बिखेरते हुए बोली.अरुण नहाधो कर तैयार हो गया और ब्रेकफास्ट मांगने लगा, क्योंकि उस के दफ्तर जाने का समय हो चुका था, इसलिए वह जल्दबाजी कर रहा था.

गैराज से कार निकाली और सड़क पर फर्राटा भर अरुण  समय पर दफ्तर पहुंच गया. दफ्तर के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से कुरसी पर बैठा था, तभी दफ्तर के दरवाजे पर एक अनजान औरत खड़ी अजीब नजरों से चारों ओर देख रही थी.

चपरासी दीपू के पूछने पर उस औरत ने बताया कि वह अरुण साहब से मिलना चाहती है. उस औरत को वहां रखे सोफे पर बिठा कर चपरासी दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.‘‘मैं नहीं जानता साहब,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.चपरासी दीपू उस औरत को अरुण के केबिन तक ले गया.केबिन खोलने के साथ ही उस अजनबी औरत ने अंदर आने की इजाजत मांगी.

अरुण के हां कहने पर वह औरत अरुण के सामने खड़ी हो गई. अरुण ने उस औरत को बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बताइए, मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?”

“सर, मेरा नाम संगीता है. मेरे पति सुरेश आप के दफ्तर में काम करते हैं.” अरुण बोला,”जी, ऑफिस के बहुत से काम वे देखते हैं. उन के बिना कई काम रुके हुए हैं.”

अरुण ने चपरासी दीपू को बुला कर चाय लाने को कहा.चपरासी दीपू टेबल पर पानी रख गया और चाय लेने चला गया.कुछ देर बाद ही चपरासी दीपू चाय ले आया.

चाय की चुस्की लेते हुए अरुण पूछने लगा, ” कहो, कैसे आना हुआ?’’‘‘मैं बताने आई थी कि मेरे पति सुरेश की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है, इसलिए वे कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ सकेंगे.”

“क्या हुआ सुरेश को,” हैरान होते हुए अरुण बोला”डाक्टर उन्हें अजीब सी बीमारी बता रहे हैं. अस्पताल से उन्हें आने ही नहीं दे रहे,”संगीता रोने वाले अंदाज में बोली.

संगीता को रोता हुआ देख कर अरुण बोला, “रोइए नहीं. पूरी बात बताइए कि उन को यह बीमारी कैसे लगी?””कुछ दिनों से ये लगातार गले में दर्द बता रहे थे, फिर तेज बुखार आया. पहले तो पास के डाक्टर से इलाज कराया, पर जब कोई फायदा न हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए.

“सरकारी अस्पताल में डाक्टर को दिखाया तो देखते ही उन्हें भर्ती कर लिया गया. “ये तो समझ ही नहींपाए कि इन के साथ हो क्या गया है?””जब अस्पताल से इन का फोन आया तो मैं भी सुन कर हैरान रह गई,” संगीता ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

“अभी वे अस्पताल में ही हैं,” संगीता से अरुण ने पूछा.”जी,” संगीता ने जवाब दिया.अरुण यह सुन कर परेशान हो गया. सुरेश का काम किसी और को देने के लिए चपरासी दीपू से कहा.

अरुण ने सुरेश की पत्नी संगीता को समझाते हुए कहा कि तुम अब बिलकुल चिंता न करो. घर जाओ और बेफिक्र रहो, उन्हें कुछ नहीं होगा.संगीता अरुण से आश्वस्त हो कर घर आ गई और उसे भी घर आने के लिए कहा. अरुण ने भी जल्द समय निकाल कर घर आने के लिए कहा.

“सर, कुछ कहना चाहती हूं,” कुर्सी से उठते समय संगीता ने झिझकते हुए पूछा.”हां, हां, कहिए, क्या कहना चाहती हैं आप,” अरुण ने संगीता की ओर देखते हुए कहा.”जी, मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. इन की तनख्वाह मिलने पर काट लेना,” संगीता ने सकुचाते हुए कहा.

“बताइए, कितने पैसे चाहिए?” अरुण ने पूछा.”जी, 20 हजार रुपए चाहिए थे…” संगीता संकोच करते हुए बोली.”अभी तो इतने पैसे नहीं है, आप कलपरसों में आ कर ले जाना,” अरुण ने कहा. “ठीक है,” यह सुन कर संगीता का   उदास चेहरा हो गया.

“आप जरा भी परेशान न होइए. मैं आप को पैसे दे दूंगा,” संगीता के उदास चेहरे को देख कर कहा.अरुण के दफ्तर से निकलने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता भी अपने घर लौट आई.

अगले दिन दफ्तर के काम जल्द निबटा कर अरुण कुछ सोच में डूबा था, तभी उस के मन में अचानक ही सुरेश की पत्नी संगीता की पैसों वाली बात याद आ गई.2 दिन बाद ही संगीता अरुण के दफ्तर पहुंची. चपरासी दीपू ने चायपानी ला कर दी.

अरुण ने सुरेश की तबीयत के बारे में जानना चाहा. संगीता आंखों में आंसू लाते हुए बोली,”वहां तो अभी वे ठीक नहीं हैं. मैं अस्पताल गई थी, पर वहां किसी को मिलने नहीं दे रहे.”

“क्या…” अरुण हैरानी से बोला.”अस्पताल वाले कहते हैं, जब वे ठीक हो जाएंगे तो खुद ही घर आ जाएंगे.”यह जान कर अरुण हैरान हो गया कि अस्पताल वाले किसी से मिलने नहीं दे रहे. वह आज शाम को उस से मिलने जाने वाला था.

अरुण ने संगीता को 20 हजार के बजाय 30 हजार रुपए दिए और कहा कि और भी पैसे की जरूरत हो तो बताना.संगीता पैसे ले कर घर लौट आई. 21 मार्च की शाम जब अरुण हाथपैर धो कर बिस्तर पर बैठा, तभी उस की पत्नी सीमा चाय ले आई और बताने लगी कि रात 8 बजे रास्ट्र के नाम संदेश आएगा.

अरुण टीवी खोल कर तय समय पर बैठ गया. मोदी का संदेश सुनने के बाद अरुण ने पत्नी सीमा को अगले दिन रविवार को जनता कर्फ्यू के बारे में बताया कि घर से किसी को बाहर नहीं निकलना है. साथ ही, यह भी बताया कि शाम 5 बजे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर थाली या बरतन, कुछ भी बजाएं.

उस दिन शाम को जब पड़ोसी ने घर से बाहर निकल थाली बजाई तो अरुण भी शोर सुन कर बाहर आया. पत्नी सीमा भी खुश होते हुए थाली हाथ में लिए बाहर जोरजोर से बजाने लगी. उसे देख अरुण भी खुश हुआ.

सोमवार 23 मार्च को अरुण किसी जरूरी काम के निकल आने की वजह से ऑफिस नहीं गया.उसी दिनशाम को फिर से रास्ट्र के नाम संदेश आया. 21 दिनों के लॉक डाउन की खबर से वह भी हैरत में पड़ गया.

अगले दिन किसी तरह अरुण ऑफिस गया और जल्दी से सारे काम निबटा कर घर आ गया.घर पर अरुण ने सीमा को ऑफिस में साथ काम करने वाले सुरेश के बारे में बताया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है.

अगले दिन सड़क पर सख्ती होने से अरुण दफ्तर न जा सका. लॉक डाउन होने की वजह से अरुण घर में रहने को विवश था.इधर जब सुरेश को कोरोना होने की तसदीक हो गई तो संगीता के घर को क्वारन्टीन कर दिया. अब वह घर से जरा भी बाहर नहीं निकल सकती थी.

उधर क्वारन्टीन होने के कुछ दिन बाद ही अस्पताल से सुरेश के मरने की खबर आई तो क्वारन्टीन होने की वजह से वह घर से निकल नहीं सकती थी.

संगीता को अस्पताल वालों ने फोन पर ही सुरेश की लाश न देने की वजह बताई. वजह यह कि ऐसे मरीजों को वही लोग जलाते हैं ताकि किसी और को यह बीमारी न लगे.

यह सुन कर संगीता घर में ही दहाड़े मारते हुए गश खा कर गिर पड़ी. ऑफिस में भी सुरेश के मरने की खबर भिजवाई गई, पर ऑफिस बंद होने से किसी ने फोन नहीं उठाया.जब लॉक डाउन हटा तो अरुण यों ही संगीता के दिए पते पर घर पहुंच गया.

अरुण ने सुरेश के घर का दरवाजा खटखटाया तो संगीता ने ही खोला.संगीता को देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला, “कैसे हैं सुरेश? उस की तबीयत पूछने चला आया.”संगीता ने अंदर आने के लिए कहा, तो वह संगीता के पीछेपीछे चल दिया.

कमरे में अरुण को बिठा कर संगीता चाय बनाने किचन में चली गई. कमरे का नजारा देख अरुण  हैरत में पड़ गया क्योंकि सुरेश की तसवीर पर फूल चढ़े हुए थे, अरुण समझ गया कि सुरेश अब नहीं रहा.

संगीता जब चाय लाई तो अरुण ने हैरानी से संगीता से पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि ये तो 30 मार्च को ही चल बसे थे. अस्पताल से खबर आई थी. मुझे तो क्वारन्टीन कर दिया गया. फोन पर ही अस्पताल वालों ने लाश देने से मना कर दिया.

क्या करती,घर में फूटफूट कर रोने के सिवा.अरुण ने गौर किया कि सुरेश की फोटो के पास ही पैसे रखे थे, जो उस ने संगीता को दिए थे.संगीता ने उन पैसों की ओर देखा और अरुण ने संगीता की इन सूनी आंखों में  देखा. थके कदमों से अरुण वहां से लौट आया.इन सूनी आंखों में अरुण को जाते देख  संगीता की आंखों में आंसू आ गए.

Father’s day 2023: त्रिकोण का चौथा कोण- भाग 2

एक तरफ निरुपमा उस की प्रेमिका, उस के सुखदुख की सच्ची साथी, हमदर्द, जिस ने उस के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और बदले में कुछ नहीं चाहा था. समाज भले ही उसे मोहित की रखैल कह कर पुकारे पर मोहित स्वयं जानता था कि यह सत्य से परे है. रखैल शब्द में तो कई अधिकार निहित होते हैं. उसे रखने के लिए तो एक संपूर्ण व्यवस्था की आवश्यकता होती है. रोटी, कपड़ा, मकान सभी कुछ जुटाना होता है. बस एक वैधता का सर्टिफिकेट ही तो नहीं होता, लेकिन क्या इतना आसान होता है रखैल रखना?

पर मोहित के लिए आसान था सब कुछ. उस के पास धनदौलत की कमी नहीं थी. वह चाहता तो निरुपमा जैसी 10 रख सकता था. पर निरुपमा स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर स्त्री थी. वह स्वयं के बलबूते पर जीवनयापन करने का माद्दा रखती थी. वर्षों से सिंचित इस संबंध को एक ही झटके में नकारना मोहित के लिए आसान नहीं था.

दूसरी तरफ थी दीप्ति, जो विधिविधान से मोहित की पत्नी बन उस के जीवन में आई थी. पति के सुख में सुख और दुख में दुख मानने वाली दीप्ति ने कभी अपने ‘स्व’ को अस्तित्व में लाने की कोशिश ही नहीं की. जब परस्त्री की पीड़ा दीप्ति के चेहरे पर आंसुओं के रूप में हावी हो जाती, तो मोहित तमाम ऊंचीनीची विवशताओं का हवाला दे कर उसे शांत कर देता.

वर्षों से निरुपमा और दीप्ति के बीच खुद को रख दोनों में बखूबी संतुलन कायम किया था मोहित ने. स्वयं को दोनों की साझी संपत्ति साबित कर दोनों का विश्वास हासिल करने में सफल रहा था वह. नीति को हाशिए पर रख नियति का हवाला दे कर मोहित स्वयं के अपराधबोध को भी मन ही मन साफ करता रहा था.

इस वक्त मोहित औफिस की चेयर पर आगे की ओर फिसल कर, पैर पसारे, आंखें मूंदे विचारों में खोया था… काश ऐसा होता… काश वैसा होता.

कालेज में पढ़ने वाला उत्साही, जोशीला, गठीला, सजीला मोहित सब को अपनी ओर आकर्षित करने का सामर्थ्य रखता था. उन दिनों बरसात का मौसम था. कालेज की शुरुआत के दिन थे वे, जब कालेज में पढ़ाई कम मस्ती ज्यादा होती है. एक दिन मोहित अपने मित्र रोहन के साथ कालेज से दोपहर 2 बजे निकला, तो बारिश की तेज झड़ी शुरू हो गई. अपनी मोटरसाइकिल को किसी पेड़ की ओट के नीचे रोकने से पहले ही मोहित और उस का मित्र दोनों ही पूरी तरह भीग गए. अब रुकने से क्या फायदा, हम भीग तो चुके हैं सोच कर मोहित ने रोहन को उस के स्टौप पर छोड़ा व अपने घर का रुख किया.

वह अगले बस स्टौप से ज्योंही आगे निकला. अचानक उस की नजरें बस स्टौप पर खड़ी एक छुईमुई सी लड़की पर पड़ीं. उसे लगा, जैसे इसे कहीं देखा है. उस ने तुरंत ब्रेक लगा कर मोटरसाइकिल मोड़ी व पलट कर बस स्टौप तक आ गया. छुईमुई सी लड़की घबरा कर उसे ही देख रही थी. पुराने टूटे बस स्टाप से टपकते पानी और हवा के झोंकों के कारण पानी की बौछारें उसे बुरी तरह भिगो चुकी थीं. तेज बारिश और बस स्टौप का सन्नाटा उस के अंदर भय पैदा कर रहा था. अपने पर्स को

दोनों हाथों से सीने से चिपकाए वह सहमी हुई खड़ी थी.

मोहित ने पास आते ही पहचान लिया कि यह लड़की तो उसी के कालेज की है. 2-4 दिन से उस ने यह नया चेहरा कालेज में देखा था.

‘‘ऐक्सक्यूज मी… मे आई हैल्प यू?’’ मोहित ने अदब से पूछा.

पर सहमी सी आवाज में प्रत्युत्तर मिला, ‘‘नो थैंक्स… मेरी 12 नंबर की बस आने ही वाली है…’’

नए शहर में अनजान व्यक्ति से दूर रहने की मम्मी की हिदायतें उसे याद आ गईं. फिर ये तो लड़का है, पता नहीं इस के मन में क्या हो. आजकल चेहरे से तो सभी शरीफ नजर आते हैं… मन ही मन वह सोचने लगी.

‘‘12 नंबर बस यानी संचार नगर? मैं

वहीं जा रहा हूं… चलिए, आप को छोड़ दूं… इतनी बारिश में अकेली कब तक खड़ी

रहेंगी आप?’’

मोहित का उद्देश्य केवल मदद करने का ही था, पर शायद अब भी विश्वास नहीं जम पाया तो लड़की ‘न’ में गरदन हिला कर दूसरी ओर देखने लगी.

लड़की की मासूमियत पर मोहित को तरस आ रहा था और हंसी भी. मैं क्या इतना लोफर, आवारा नजर आता हूं… उस ने मन ही मन सोचा और मुसकरा कर अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी व स्वयं भी बस स्टौप के नीचे खड़ा हो गया.

लड़की को संशय भरी निगाहों से अपनी ओर देखते ही वह बोल पड़ा, ‘‘12 नंबर बस आने तक तो खड़ा हो सकता हूं? पूरी सड़क सुनसान है, आप मुसीबत में पड़

सकती हैं यहां पर. चिल्लाने पर एक परिंदा भी नहीं आएगा.’’

सुन कर लड़की ने कोई भाव व्यक्त नहीं किया व चुप्पी साधे बस आने की दिशा की ओर टकटकी लगाए देखती रही. ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी उसे. 5 मिनट में ही 12 नंबर बस आ गई और वह बस में चढ़ गई. बस में चढ़ते ही उस ने पलट कर मुसकरा कर धन्यवाद भरे भाव से मोहित की ओर ऐसे देखा, जैसे क्षण भर पूर्व मोहित के साथ शुष्क व्यवहार के लिए माफी चाहती हो. बस के गति पकड़ते ही मोहित ने भी प्रत्युत्तर में अविलंब अपना हाथ लहरा दिया.

यही थी मोहित और निरुपमा की पहली भेंट, जिस में दोनों एकदूसरे का नाम भी नहीं जान पाए थे. 2 दिन बाद ही अपार्टमैंट के छठे माले से मोहित लिफ्ट से जैसे ही नीचे उतरा, तो सामने की सीढि़यों से नीचे उतरती उस अनजान लड़की को देख कर सुखद आश्चर्य से भर गया.

‘‘अरे, आप यहां?’’ लड़की ने मुसकरा कर पूछा. आज उस के चेहरे पर उस दिन वाले डर और असुरक्षा के भाव नहीं थे.

‘‘हां, मैं इसी अपार्टमैंट के छठवें माले पर रहता हूं. मेरा नाम मोहित है… मोहित साहनी. मैं बी.कौम. फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं आप के ही कालेज में. पर आप यहां कैसे?’’

‘‘मैं भी इसी अपार्टमैंट के दूसरे माले पर रहती हूं… निरुपमा दास… बी.एससी. प्रथम वर्ष में इसी साल प्रवेश लिया है. दरअसल, हमें यहां आए अभी 2 ही हफ्ते हुए हैं.’’

‘‘ओह… मतलब इस शहर में आप लोग नए हैं. उस दिन ठीक से पहुंच गई थीं आप?’’ मोहित ने पूछा तो निरुपमा ने मुसकरा कर हामी भर दी.

‘‘दरअसल, उस दिन आप अपरिचित थे… फिर नए शहर में अनजान व्यक्ति पर इतनी जल्दी भरोसा नहीं किया जा सकता न…’’ निरुपमा ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘हां ये तो है… वैसे अब तो हम अपरिचित नहीं हैं… आप यदि कालेज जा रही हैं, तो मेरे साथ चल सकती हैं.’’

‘‘आज तो नहीं, बस स्टौप पर मेरी सहेली मेरा इंतजार कर रही होगी,’’ निरुपमा ने घड़ी देखते हुए मुसकरा कर कहा और निकल गई.

अपार्टमैंट में होने वाले कार्यक्रमों के दौरान मोहित और निरुपमा का परिवार निकट आ गया. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी शुरू हो गया. मोहित और निरुपमा की मित्रता धीरेधीरे तब और अधिक परवान चढ़ी, जब दोनों के पिताओं में दोस्ती प्रगाढ़ हो गई. दरअसल, दोनों के पिताओं के बीच एक कौमन फैक्टर था शतरंज, जो दोनों को निकट ले आया था. अकसर किसी न किसी एक के घर शतरंज की बाजी लग जाती थी और एकसाथ मिलबैठ कर खातेपीते और मौजमस्ती करते.

दास दंपती की 2 बेटियां थीं, निरुपमा और उस से 5 वर्ष छोटी अनुपमा. मोहित अपने मांबाप का इकलौता बेटा था. दोनों परिवार के बीच संबंध गहराते जा रहे थे. पारिवारिक निकटता, उम्र का प्रभाव, अधिक सान्निध्य जैसी परिस्थितियां अनुकूल थीं. नतीजतन मोहित और निरुपमा के बीच प्रेमांकुर तो फूटने ही थे. दोनों परिवारों के बीच के ये संबंध तब अचानक टूट गए, जब मोहित के पिता ने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया.

निरुपमा ने सुना तो वह चुप हो गई, पर उसे विश्वास था मोहित पर कि वह इस रिश्ते से इनकार कर देगा. मोहित ने भरसक प्रयास किया पर पिताजी अड़े रहे.

‘‘मैं मेहराजी से वादा कर चुका हूं. इसी भरोसे पर वे अपना अगला कौंट्रैक्ट अपनी कंपनी को सौंप चुके हैं. अब बिना वजह मना नहीं किया जा सकता. मेहराजी की बेटी दीप्ति पढ़ीलिखी, सुंदर और समझदार लड़की है. फिर मना करने के लिए कोई जायज वजह भी तो हो.’’

निरुपमा वजह तो थी पर मोहित के पिता के लिए विशेष वजह नहीं बन सकी.

‘‘प्यारव्यार इस उम्र में उठने वाला ज्वारभाटा है. यह जीवन का आधार नहीं बन सकता. प्यार तुम्हारा पेट नहीं भरेगा मोहित. थोड़ा व्यावहारिक बन कर सोचना और जीना सीखो. तुम्हें मेरे साथ काम शुरू किए अभी केवल 6 माह हुए हैं. बिजनैस के गुर अभी तुम ने सीखे ही कितने हैं? मेहरा से मिला कौंट्रैक्ट कोई ऐसावैसा नहीं है, बल्कि लाखों का प्रोजैक्ट है. तुम खुद सोचो इस बारे में. निरुपमा से शादी करोगे तो तुम्हें मेरे बिजनैस में से एक कौड़ी भी नहीं मिलेगी. तुम्हें मुझ से अलग हो कर कमानाखाना और जीना होगा. अगर दम है तो अपना रास्ता नाप सकते हो और यदि समझदार हो तो मेरे खयाल से अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने का काम नहीं करोगे.’’

न जाने मोहित पर पिताजी की उन बातों का क्या प्रभाव रहा कि उस ने उसी दिन से निरुपमा से कन्नी काट ली.

निरुपमा के लिए यह सदमा बरदाश्त से बाहर था. रोरो कर बेहाल हो गई वह. बेटी की खुशियों की खातिर दास दंपती अपने स्वाभिमान को ताक पर रख कर मोहित के घर अपनी झोली फैलाए पर सिवा दुख और जिल्लत के उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ.

निरुपमा ने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया. बाहर आनाजाना, मिलनाजुलना, हंसनाबोलना सब बंद. कुछ दिनों में दुख से उबर जाएगी, यही सोचा था दास दंपती ने. पर दुख और सदमे से निरुपमा अपना मानसिक संतुलन खो बैठी फिर शुरू हुआ मानसिक चिकित्सालयों के चक्कर काटने का सिलसिला. पूरे 2 साल बाद निरुपमा की दिमागी हालत में सुधार हो पाया था. धीरेधीरे सामान्य स्थिति की ओर लौट रही थी वह. उस के होंठों पर लगी चुप्पी धीरेधीरे खुलने लगी और उस ने पुन: स्वयं को कालेज की गतिविधियों में व्यस्त कर लिया.

दास दंपती ने चैन की सांस ली. बेटी दुख से उबर गई, यही उन के लिए बहुत था. अब जल्द से जल्द वे निरुपमा का विवाह कर देना चाहते थे. पर इस संबंध में चर्चा छिड़ते ही फिर से घर में कर्फ्यू जैसा लग गया. निरुपमा ने एलान कर दिया कि वह विवाह नहीं करेगी, सारी उम्र कुंआरी रहेगी. आत्मनिर्भर बनेगी, कमाएगी और मांबाप का सहारा बनेगी.

मां ने सुना तो वे बौखला गईं, ‘‘पागल मत बनो नीरू, ऐसा भी कहीं होता है. शादी तो करनी होगी बेटी. फिर जब तक तुम्हारी शादी नहीं होती, तब तक हम अनु की शादी के बारे में भी नहीं सोच सकेंगे. आखिर उस की भी तो शादी करनी है हमें.’’

‘‘तो मैं कहां रोक रही हूं? बेहतर होगा कि आप लोग मेरे भविष्य के बारे में सोचना छोड़ दें. अनु की शादी कर दें…’’ निरुपमा क्रोध और तनाव से तमतमा उठी.

‘‘पर नीरू ऐसे कब तक चलेगा… हमारे बाद कोई सहारा तो होना चाहिए न…’’

‘‘नहीं मां, मुझे नहीं चाहिए किसी का सहारा. मैं अकेली ही काफी हूं खुद के लिए…’’

निरुपमा जिद पर अड़ी रही. पूरे 6 वर्षों तक मांबाप उसे मनाने का भरसक प्रयास

करते रहे पर उस ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अंतत: अनु की शादी निरुपमा से पहले ही कर देनी पड़ी.

लाल मिर्च के क्या है फायदे, जाने यहां

हाय हाय मिर्ची उफ़ उफ़ मिर्ची…….., मिर्ची रे मिर्ची……., मिर्ची की तीखेपन के साथ हिरोइन की खूबसूरती और उनके तीखेपन के अंदाज को जोड़कर गाने बनाए गए और ये गाने हिट साबित हुए. असल में व्यंजनों का जायका बढ़ाने और इनमें इच्छानुसार तीखापन लाने के लिए लाल मिर्च की अहम भूमिका होती है. लाल मिर्च का सुर्ख लाल रंग किसी भी जायके को अधिक खूबसूरत दिखने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी बनाता है.

इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की क्लिनिकल डायटीशियन नियती नाईक कहती है कि लाल मिर्च का वैज्ञानिक नाम कैप्सिकम एनम (Capsicum annuum) है, यह सोलेनेसी (Solanaceae) परिवार से संबंध रखती है और विटामिन, खनिज और फ्लेवोनोइड के साथ-साथ फेनोलिक, कैरोटीनॉयड और अल्कलॉइड जैसे कार्यात्मक खाद्य घटकों जैसे बहुत सारे स्वास्थ्य के लिए सहायक पोषक तत्वों का एक बड़ा स्रोत भी है. इसलिए अगर सही रूप में इसका सेवन किया जाए, तो लाल मिर्च के स्वास्थ्य के लिए काफी गुणकारी साबित हो सकती है. भारत के गर्म क्षेत्रों में खासकर राजस्थान में अधिक मिर्च खाने की परम्परा है, इसमें विज्ञान से भी ज़्यादा सांस्कृतिक प्रथाएं जुड़ी हुई हैं. मिर्च में एंटीमाइक्रोबायल गुण होता है, जिसकी वजह से गर्म मौसम में भी तीखे मिर्च से बने भोजन जल्दी ख़राब नहीं हो पाते. इसके अलावा खान-पान की आदतें पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही हैं, आज आधुनिकीकरण की वजह से भले ही भोजन खराब होने की समस्या नहीं है, लेकिन ज़्यादा मिर्च खाने की सांस्कृतिक आदतें जारी है. मिर्च आमतौर पर गर्म और शुष्क जलवायु में पैदा होता है इसलिए गर्म क्षेत्रों में यह अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है, मिर्च ज़्यादा खाने का इसे भी एक संभावित कारण समझा जा सकता है. यह स्वाद में तीखी तो होती ही है, साथ ही इसकी तासीर को गर्म माना जाता है. इसके फायदे निम्न है,

  • मिर्च में कैप्सिनोइड्स और कैप्सैसिनोइड्स जैसे एक्टिव कम्पाउंड्स होते हैं जो शरीर में सूजन को कम करने में मदद करते हैं.
  • इसके अल्कलॉइड दर्द से राहत देने में मदद करते हैं, इस वजह से ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी बिमारियों के मरीज़ों के लिए लाल मिर्च मददगार हो सकती है.
  • मिर्च का तीखापन और मसाला शरीर में चयापचय को बढ़ावा देता है और इसलिए यह मोटापे के मरीज़ों के लिए अच्छी हो सकती है. लाल मिर्च के यह फायदे तब मिलता है, जब उसका सेवन नियंत्रित तरीके से किया जाए.

इसके आगे डायटीशियन नियति कहती है कि लाल मिर्च वैसे तो फायदेमंद होते है, लेकिन कुछ लोग इसका अधिक से अधिक सेवन करने लगते है, इससे उसका असर कई बार गलत भी हो सकता है और कई स्वास्थ्य समस्याएं और परेशानी भी हो जाती है. इसलिए लाल मिर्च का प्रयोग से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, जो निम्न है,

  • लाल मिर्च का स्वाद बहुत तेज़ होता है, उन्हें ज़्यादा खाने से पहले से मौजूद अगर कोई बीमारी है, मसलन मुँह और पेट के अल्सर, मल में जलन, सूजन और गैस्ट्रिक की परेशानी, अत्यधिक पसीना आना, होठों में जलन, आँखों और नाक में पानी आने आदि समस्या अधिक बढ़ सकती है.

लाल मिर्च से जुड़े कुछ मिथ्स

  • कई लोग मानते हैं कि लाल मिर्च ज़्यादा खाने से टेस्ट बड्स नष्ट हो जाते हैं, लेकिन सच यह है कि लाल मिर्च आपके तालु को कुछ समय के लिए सुन्न कर देती है, जो बाद में ठीक हो जाता है.
  • लाल मिर्च के बीजों में सबसे अधिक गर्मी होती है, लेकिन वास्तव में बीज जिससे जुड़े होते हैं, उस मज्जे में सबसे अधिक गर्मी होती है.

कुछ का ये भी मानना है कि अधिक मिर्च खाने से गर्भवती महिलाओं में प्रसव पीड़ा हो सकती है, लेकिन यह सच नहीं है और इसके समर्थन में कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है.

डायटीशियन का आगे कहना है कि लाल मिर्च किसे खाना है, किसे नहीं, इसकी कोई मापदंड नहीं है, इसे हर कोई खा सकता है. उससे भी महत्वपूर्ण बात है कि आप कितनी मात्रा में लाल मिर्च खा रहे हैं. चीज़ कितनी भी अच्छी हो, उसे अधिक मात्रा में खाने से शरीर का नुकसान ही होता है. लाल मिर्च न खाने पर बात करें तो पाते है गैस्ट्रिक या अल्सर, बवासीर, आईबीएस, दस्त, उल्टी, जीईआरडी, आंत में सूजन और मौखिक अल्सर से पीड़ित लोगों के लिए लाल मिर्च से दूर ही रहना ही बेहतर होता है.

एजुकेशन लोन लेने से पहले जरूर ध्यान रखें ये 7 बातें

ऐजुकेशन लोन को देश में या विदेश में पढ़ाई की लागत को कवर करने का सब से अच्छा तरीका माना जाता है. अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए कई बैंक देश में या विदेश में पढ़ाई के लिए सस्ती दर पर भी लोन मुहैया करा देते हैं.

अपने बच्चे की हायर ऐजुकेशन के लिए पेरैंट्स म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. कुछ लोग फिक्स्ड डिपौजिट तो कुछ यूलिप का सहारा भी लेते हैं. इन सब के बाद भी यदि पढ़ाई के लिए रकम कम पड़ती है तो ऐसे में ऐजुकेशन लोन से काफी मदद मिल जाती है. यह लोन जरूरत और उपलब्ध रकम के बीच की खाई को भरता है.

एक अध्ययन के अनुसार हिंदुस्तान में पढ़ाई का खर्च सालाना 15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इस समय अगर पढ़ाई का खर्च 2.5 लाख रुपये है तो 15 साल बाद एमबीए करने में 20 लाख रुपये खर्च होंगे. अगर पेरैंट्स अभी से 15 सालों तक हर महीने 2000 रुपये का निवेश करते हैं और इस पर औसत रिटर्न 12 फीसदी मान लें तो वे करीब 9.5 लाख रुपये ही जोड़ पाएंगे.

ऐजुकेशन लोन में क्या कवर होता है

इस में कोर्स की बेसिक फीस और कालेज के दूसरे खर्च जैसे रहने, ऐग्जाम और अन्य खर्चे कवर होते हैं. पढ़ाई करने वाला छात्र मेन उधारकर्ता होता है. उस के पेरैंट्स या भाईबहन कोबौरोअर हो सकते हैं. भारत में पढ़ाई या उच्च शिक्षा के लिए अथवा विदेश जाने वाले छात्र लोन ले सकते हैं. दोनों जगह पढ़ाई के लिए लोन की रकम अलग हो सकती है और यह बैंक पर भी निर्भर करता है.

लोन के तहत किस तरह के कोर्स

लोन ले कर फुलटाइम, पार्टटाइम या वोकेशनल कोर्स किए जा सकते हैं. इस के अलावा इंजीनियरिंग, मैनेजमैंट, मैडिकल, होटल मैनेजमैंट और आर्किटैक्चर आदि में ग्रैजुएशन या पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई के लिए लोन लिया जा सकता है.

योग्यता और कागजी जरूरत

लोन के लिए आवेदन करने वाले का भारतीय नागरिक होना जरूरी है. इस के साथ ही भारत या विदेश में किसी वैध संस्था से मान्यताप्राप्त कालेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन तय हो चुका हो तभी लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं. आवेदक का 12वीं कक्षा की परीक्षा पास कर चुका होना जरूरी है.

कुछ बैंक हालांकि एडमिशन तय होने से पहले भी लोन दे देते हैं. रिजर्व बैंक के मुताबिक ऐजुकेशन लोन के लिए उम्र की अधिकतम सीमा नहीं है, लेकिन कुछ बैंकों ने सीमा तय कर रखी है.

बैंक इस के लिए हालांकि आवेदक से संस्थान का एडमिशन लैटर, फीस स्ट्रक्चर, 10वीं, 12वीं और ग्रैजुएशन की मार्कशीट मांग सकते हैं. इस के अलावा कोऐप्लिकैंट की सैलरी स्लिप या आयकर रिटर्न (आईटीआर) की कौपी मांगी जा सकती है.

लोन की फाइनैंसिंग

लोन की जरूरत के हिसाब से बैंक 100 फीसदी तक फाइनैंस कर सकते हैं. अभी क्व4 लाख तक के लोन के लिए किसी मार्जिन मनी की जरूरत नहीं है. भारत में पढ़ाई करने के लिए लोन की रकम का 5 फीसदी और विदेश में पढ़ाई के लिए 15 फीसदी मार्जिन मनी की जरूरत होती है.

7.5 लाख रुपये से अधिक के लोन के लिए बैंक कुछ गिरवी रखने के लिए बोल सकते हैं. एक बार लोन ऐप्लिकेशन स्वीकार हो जाने पर बैंक सीधे कालेज/यूनिवर्सिटी को फीस स्ट्रक्चर के हिसाब से पेमैंट कर देते हैं.

ब्याज दर

बैंक इस समय लोन पर एमसीएलआर और अतिरिक्त स्प्रैड के हिसाब से ब्याज वसूलते हैं. एडिशनल स्प्रैड इस समय 1.35 फीसदी से ले कर 3 फीसदी तक हो सकता है.

रीपेमैंट

लोन को छात्र चुकाता है. आमतौर पर कोर्स खत्म होने के 6 महीने बाद रीपेमैंट शुरू हो जाती है. कई बार बैंक 6 महीने की मोहलत भी देते हैं. यह मोहलत जौब पाने के 6 महीने भी हो सकती है या कोर्स खत्म होने के बाद एक साल की हो सकती है.

5 से 7 साल में यह लोन चुकाना होता है. कई बार बैंक इसे आगे बढ़ा सकते हैं. कोर्स की अवधि के दौरान लोन पर ब्याज सामान्य ही होता है और ईएमआई के रूप में यह ब्याज चुकाना होता है ताकि कोर्स पूरा होने के बाद छात्र पर ज्यादा बोझ न पड़े.

इनकम टैक्स में छूट

आयकर कानून की धारा 80-ई के तहत लोन के ब्याज के रूप में चुकाई गई रकम पर छूट मिलती है. यह छूट किसी व्यक्ति को खुद, बच्चों या कानूनी मातापिता द्वारा बच्चे की शिक्षा के लिए लिए गए लोन के चुकाए गए ब्याज पर मिलती है. लोन के कुल ब्याज को आप अपनी कर योग्य आय में से घटा सकते हैं. यह छूट 8 सालों तक ली जा सकती है.

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