Friendship Day Special: ब्रेकअप के बाद भी कायम है इन बॉलीवुड स्टार्स की दोस्ती

1. रणबीर-दीपिका:

रणबीर और दीपिका की दोस्ती को बौलीवुड सलाम करता है. ब्रेकअप के बाद दोस्ती के रिश्ते को मैंटेन करना सीखना है तो कोई इन से सीखे.

2. अनुष्का शर्मा-रणवीर सिंहः

रणवीर सिंह और अनुष्का शर्मा ने अपनी पहली फिल्म ‘‘बैंड बाजा बारात’’ के बाद से एकदूसरे को डेट करना शुरू कर दिया था. लेकिन इन का यह रिलेशन बहुत समय तक चल नहीं पाया और ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप के बाद ये कुछ समय के लिए एकदूसरे से दूर थे लेकिन फिर दोनों ने दोस्ती मैंटेन कर ली.

3. शिल्पा-अक्षय:

90 के दशक में इन की जोड़ी हिट जोड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद ये अलग हो गए और अक्षय ने ट्विंकल से शादी कर ली और शिल्पा ने राज कुंदरा में प्यार ढूंढ़ लिया. लेकिन आज भी दोनों मिलते हैं तो अच्छे दोस्त की तरह मिलते हैं.

4. ऋषि कपूर-डिंपल कपाड़िया:

रणबीर ने दीपिका से ब्रेकअप के बाद दोस्ती काफी अच्छे से बरकरार रखी. आखिरकार इतने अच्छे से मैनेज करना उन्होंने अपने पापा से सीखा है. ऋषि कपूर ने भी एक जमाने में डिंपल कपाड़िया के साथ दोस्ती मैंटेन की थी.

5. गौरव चोपड़ा-नारायणी शास्त्रीः

गौरव चोपड़ा और नारायणी शास्त्री काफी समय तक साथ थे. लेकिन इन के ब्रेकअप के बाद गौरव ने मोनी राय से रिश्ता जोड़ लिया. इस के बाद भी गौरव और नारायणी के बीच दूरियां नहीं बढ़ीं. आज भी वे अच्छे दोस्त हैं.

6. डीनो मोरिया-बिपाशा बसु:

मौडलिंग के दिनों में ये दोनों साथ रहते थे. 2002 में ‘राज’ फिल्म में एकसाथ परदे पर आए और काफी समय तक चर्चा में रहे. लेकिन इन का ब्रेकअप हो गया और बिपाशा जौन के पास चली गई. कई सालों तक बिपाशा और जौन का रिलेशनशिप रहा, लेकिन फिर इन का रिश्ता टूट गया. इस के बाद बिपाशा ने करण से शादी कर ली और शादी की तसवीरों में बिपाशा और डीनो की दोस्ती को साफ देखा जा सकता है.

फूल सी दोस्ती : विराट की गर्लफ्रैंड क्यों उस रिश्ते का मजाक बनाने लगी?

आजकल मंजरी का मन घर में बिलकुल भी नहीं लग रहा था. उस के पति शिशिर बिजनैस के सिलसिले में ज्यादातर बाहर रहा करते थे और बेटा अतुल एमएस करने अमेरिका गया, तो वहीं का हो कर रह गया. साक्षी से ही वह अपने मन की बातें कर लिया करती थी. साक्षी भी मंजरी को मां नहीं सहेली समझती थी. तभी तो पिछले सप्ताह उसे एअरपोर्ट तक छोड़ते समय मन बहुत उदास हो गया था मंजरी का. हालांकि इस बात से वह बहुत खुश थी कि मिलान से फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के लिए स्कौलरशिप मिली साक्षी को.

शिशिर ने उसे सोसाइटी की महिलाओं का क्लब जौइन करने का सुझाव दिया. पर मंजरी ने सोचा कि पहले की तरह फिर उसे क्लब छोड़ना पड़ गया तो वह सब की आंखों की किरकिरी बन जाएगी. उस की दिलचस्पी औरों की तरह लोगों की कमियां निकालने, गहनों की चर्चा करने और साडि़यों की सेल के बारे में जानने की नहीं थी. किट्टी पार्टी में महंगी क्रौकरी के प्रदर्शन और ड्राइंगरूम में नित नए शो पीसेज से अपना रुतबा बढ़ाचढ़ा कर दिखाने का स्वांग रचना भी नहीं जानती थी वह. उसे कुछ अच्छा लगता था तो बस देर तक प्रकृति की गोद में बैठे रहना या फिर बच्चों के साथ हंसतेखिलखिलाते हुए बचपन को फिर से महसूस करना. उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह 50 वर्ष पार चुकी है.

साक्षी के चले जाने के बाद मंजरी अकसर किसी पार्क में जा कर बैठ जाया करती थी. एक दिन पार्क में बैंच पर बैठी हुई वह व्हाट्सऐप पर मैसेज पढ़ने में तल्लीन थी कि ‘एक्सक्यूज मी’ सुन कर उस का ध्यान भंग हुआ. सामने एक 28-29 वर्षीय लंबा, हैंडसम युवक उसे बैंच पर रखा उस का पर्स हटाने को कह रहा था. मुसकराते हुए उस ने पर्स उठा लिया और वह युवक बैंच पर बैठ गया. लगभग 5 मिनट यों ही बीत गए. युवक बेचैन सा कभी पार्क के गेट की

ओर देखता तो कभी अपने मोबाइल को. ऐसा लग रहा था कि वह किसी की प्रतीक्षा कर रहा है. मंजरी ने पूछ लिया, ‘‘किसी का इंतजार कर रहे हो क्या?’’ लेकिन प्रश्न पूछते ही उसे लगा कि उस से गलती हो गई. एक अजनबी, वह भी नवयुवक….अब जरूर यह खीज उठेगा.

परंतु उस की आशा के विपरीत युवक ने मुसकरा कर उस की ओर देखा और कहा, ‘‘मैं… हां… इतंजार कर रहा हूं… आप… अकेली बैठीं हैं?’’

‘‘हां…जब बोर होती हूं तो यहां आ कर बैठ जाती हूं. मेरे अलावा घर के सब लोग बिजी हैं…लगता है यह बैंच उन लोगों के लिए ही बनी है जो अपनों का साथ पाने को बेचैन हैं,’’ वह निराश, पर थोड़े से मजाकिया लहजे में बोली.

‘‘हां… शायद… मेरी गर्लफ्रैंड… नहीं, हाफ गर्लफ्रैंड भी बिजी रहती है. वह ऐसे बच्चों के हौस्टल में औफिसर इन चार्ज है जो देख नहीं सकते. काफी काम रहता है उसे वहां. शायद इसीलिए टाइम पर नहीं पहुंच पाती मेरे पास.’’ निराशा छिपाते हुए एक सांस में ही नवयुवक ने सब कह डाला.

फिर अपना परिचय देते हुए उस ने मंजरी को अपना नाम बताया, ‘‘जी, मेरा नाम विराट है. और आप?’’

‘‘मैं मंजरी,’’ थोड़ा हिचकिचाते हुए मंजरी ने भी अपना परिचय दिया.

‘‘काम तो अच्छा कर रही हैं आप की साहिबा. नाम क्या है और हाफ गर्लफ्रैंड क्यों?’’

‘‘रिया नाम है मैडम का… हम दोनों मुंबई में 5वीं क्लास तक एकसाथ पढ़ते थे, फिर उस के पापा का ट्रांसफर हो गया और वे लोग दिल्ली आ गए. 3 महीने पहले एक दिन अचानक ही उस से मुलाकात हो गई. उस के बाद से ही हमारा मिलनाजुलना शुरू हो गया. हम दोनों एकदूसरे को पसंद भी बहुत करते हैं. बस…वो ‘3 वर्ड्स’ अभी तक नहीं कह पाए एकदूसरे को,’’ विराट ने शरमाते हुए कहा.

‘‘फिर तो तुम भी हाफ बौयफ्रैंड हुए न उस के,’’ मंजरी ने विराट की बातों में दिलचस्पी लेते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, रिया तो कब की मेरे मन की बात जान चुकी होगी, क्योंकि मेरे वाट्सऐप और फेसबुक के स्टेटस मेरे मन के राज खोल देते हैं. पर रिया…वह तो इस मामले में पूरी साइलैंट मूवी की हीरोइन है,’’ और विराट होंठों पर उंगली रख, चुप्पी का इशारा करते हुए मुसकराने लगा.

और फिर मंजरी के ‘‘ओह…नौटी गर्ल’’ कहते ही दोनों हंस पड़े.

‘‘आप से एक बात पूछूं?… पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो हमेशा हीरोइन के पीछे भागता दिखाई देता था. क्या सच में ऐसा तब भी होता था? आजकल की लड़कियां तो अपने पीछे भगाभगा कर थका ही देती हैं. अब मुझे ही देख लीजिए,’’ कह विराट ने अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए मंजरी की ओर इस तरह देखा कि उस की मासूमियत पर स्नेह बरस पड़ा मंजरी के मन में.

‘‘विराट, यह जमाने पर नहीं व्यक्ति पर निर्भर करता है. मैं ने तो किसी को अपने पीछे भागने का मौका ही नहीं दिया कभी. शिशिर के लिए प्यार महसूस करते ही बिना समय गंवाए उसे बता दिया था मैं ने तो. जब मिलती थी तब भी पटरपटर बोलती रहती थी. वैसे शिशिर क्या मैं तो किसी के सामने छिपा ही नहीं सकती अपनी फीलिंग्स. चाहे फिर वे मेरे बच्चे हों या दोस्त,’’ थोड़ा भावुक हो कर मंजरी बोली.

‘‘वही तो, मैं भी नहीं रह सका चुप. अपरोक्ष रूप से ही सही बता ही दिया रिया को कि कितना बेताब हूं उस के लिए मैं. अब मैं भी तो सुनना चाहता हूं कि मेरे लिए वह क्या महसूस करती है?’’ बेचैन सा होता हुआ वह बोला.

‘‘मैं ने बहुत कुछ सीखा है अपने बड़बोले स्वभाव से. मैं तुम्हें बता दूंगी कि रिया से कैसे उस के दिल की बात उगलवानी है तुम्हें… ठीक?’’

‘‘डील?’’

‘‘डील.’’

और दोनों ने हंसते हुए एकदूसरे से हाथ मिलाया. मोबाइल नंबरों के आदानप्रदान के बाद मंजरी घर की ओर चल पड़ी.

विराट दिल्ली में स्थित एक इंटरनैशनल कंपनी में वाइस प्रैसिडैंट था. उस के मातापिता मुंबई में रहते थे. यों तो विराट बहुत बातूनी था, पर कम ही लोग उस के दिल को छू पाते थे. मंजरी के अपनेपन और दोस्ताना व्यवहार ने विराट के दिल में जगह बना ली और दोनों के बीच फोन और व्हाट्सऐप के द्वारा बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. कुछ ही दिनों में वे इतना घुलमिल गए कि अपनी रोज की बातें शेयर करने लगे.

विराट जब भी मंजरी से मिलता, अपने मन में हलचल मचा रहे कई सवाल पूछ डालता. मंजरी भी आराम से उस के सवालों का जवाब देती. जब कभी वह मंजरी से अपने और रिया के संबंधों को ले कर कोई सवाल करता तो मंजरी की प्रेम के विषय में इतनी गहरी समझ देख कर हैरान रह जाता.

वह जान गया था कि 60 की उम्र के आसपास पहुंच कर भी प्यार जैसे शब्द बेमानी नहीं होते. यह अलग बात है कि उस सोच में एक परिपक्वता आ जाती है. मंजरी से मिला स्नेह और मार्गदर्शन जहां विराट को बेहद सुखद अनुभूति देता, वहीं मंजरी भी विराट के उत्साह से प्रभावित हो कर एक नई शक्ति महसूस करती. धीरेधीरे वे दोनों एक अनाम से रिश्ते में बंध गए थे.

लगभग एक महीने की बिजनैस टूअर से शिशिर जब घर लौटे तो मंजरी बदलीबदली सी लगी. पहले की तुलना में वह काफी खुश दिख रही थी. लाल कैप्री के साथ क्रीम कलर का लंबा सा कुरता पहन, अपनी फैवरिट परफ्यूम लगाए घर में फुदकती हुई वह 25 साल पुरानी मंजरी लग रही थी.

शिशिर सूटकेस रखने जब अपने कमरे में पहुंचा तो बैड पर अधलेटा विराट

मंजरी के लैपटौप पर कुछ करने में व्यस्त था. इस से पहले कि उन की कुछ बात होती, मंजरी सब के लिए कौफी ले कर आ गई और विराट का अपने दोस्त के रूप में शिशिर से परिचय करवा दिया.

‘‘मंजरीजी मेरी हमउम्र न सही, पर यह रिश्ता मुझे भी दोस्ती जैसा ही लगता है. आप को ऐतराज न हो तो मैं भी इन्हें अपनी दोस्त कह कर बुला सकता हूं?’’ विराट ने शिशिर से बड़ी आत्मीयता से पूछा.

‘‘सिर्फ दोस्त कह कर बुलाओगे? अरे भई, दोस्त समझो इन्हें. लगता है तुम में इन्हें एक ऐसा साथी मिल गया कि हमारी मैडम किट्टी और पड़ोस की सहेलियों से मिलने तक नहीं जा पातीं. अब बाहर जाया करूंगा तो मंजरी की चिंता नहीं होगी मुझे. वैलडन यंग मैन,’’ शिशिर ने विराट की पीठ थपथपा दी.

कौफी की चुसकियों के साथ तीनों की बातचीत का शोर घर में सुनाई देने लगा.

रिया को ले कर विराट का उतावलापन देख मंजरी कभीकभी खूब हंसती. विराट चाहता था कि रिया जल्द से जल्द उसे अपने मन की बात कह दे और यह रिश्ता किसी मंजिल तक पहुंच जाए. मंजरी ने विराट को रिया के सामने थोड़ा सीमित रहने का सुझाव दिया, ताकि रिया स्वयं को टटोलना शुरू करे. मंजरी की बात मान विराट ने अब बारबार रिया को फोन और मैसेज करना बंद कर दिया. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी वह सोचसमझ कर स्टेटस डालने लगा. अपने मन की बात मन ही में रखने से विराट को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, पर इस का परिणाम वैसा ही निकला जैसा वह चाहता था.

उस दिन कौफी शौप में विराट जानबूझ कर रिया को औफिस की बोझिल बातें सुनाने लगा. कुछ देर चुपचाप सुनने के बाद बोर होते हुए रिया बोली, ‘‘बस करो न अब… प्लीज, हमेशा की तरह अपने शौक, अपने बचपन और कालेज की शैतानियों की बात करो न.’’

‘‘क्यों?’’ अनजान बनते हुए विराट ने पूछा.

‘‘क्यों क्या? अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में जानना.’’

‘‘रियली… पर कुछ तो वजह होगी इस की?’’  विराट को मंजिल करीब लग रही थी.

‘‘विराट… बड़े खराब हो तुम…’’

‘‘अरे, मुझ पर गुस्सा? ‘लव यू’ तुम से नहीं बोला जा रहा और नाराजगी मुझ पर.’’

‘‘सब बातें कहने की नहीं होतीं. क्या मैं ने कभी तुम्हें प्यार कबूलने को कहा? तुम्हारे स्टेटस से आइडिया लगा लिया न? और तुम हो कि…’’

‘‘पर तुम तो स्टेटस भी हमेशा अपने मम्मीपप्पा की नन्ही सी गुडि़या बन कर डालती हो, एकदम बच्चों की तरह. कभी इशारा भी दिया कि मैं पसंद हूं तुम्हें?’’

‘‘ओके बाबा… लो…अभी व्हाट्सऐप पर तुम्हारे लिए स्टेटस डालती हूं.’’

और रिया ने तभी सुंदर सी रेशमी डोर की इमेज वाला स्टेटस डाला, जिस पर एक गीत की पंक्ति लिखी थी, ‘‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उलझे…’’

स्टेटस पढ़ते ही विराट की खुशी का ठिकाना न रहा और उस ने रिया का हाथ पकड़ कर चूम लिया. मन ही मन वह मंजरी का धन्यवाद करना भी नहीं भूला. अगला दिन उस ने लोधी गार्डेन में सैलिब्रेशन डे के रूप में मंजरी के साथ मनाने का निश्चय किया.

घर पहुंच कर विराट के कई बार काल करने पर भी जब मंजरी ने फोन नहीं उठाया तो एक छोटा सा मैसेज भेज कर वह सो गया. सुबह होते ही वह फिर मंजरी को फोन करने लगा, पर कोई उत्तर न मिला. व्हाट्सऐप पर भी उस का लास्ट सीन रात का ही था. शिशिर लंदन गए हुए थे, इसलिए मंजरी कहीं दूर भी नहीं गई होगी. विराट बेहद चिंतित था. इसी तरह काफी समय बीत गया. इधर रिया से मिलने का टाइम हो रहा था, उधर मंजरी को ले कर चिंता.

इसी बीच दोपहर के 2 बज गए. कुछ सोचते हुए वह अपनी कार की चाबी ले कर घर से निकला ही था कि मंजरी का फोन आ गया. उस ने बताया कि रात से उसे तेज बुखार है, सुबह से चक्कर भी आ रहे हैं. बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही उस की.

‘‘मैं अभी आता हूं,’’ कह विराट मंजरी के घर की ओर निकल पड़ा. रिया को फोन कर उस ने बता दिया कि आज वह नहीं आ पाएगा क्योंकि एक फ्रैंड की तबीयत ठीक नहीं है, वह उस के घर जा रहा है.

मंजरी के घर पहुंचते ही विराट उसे ले कर हौस्पिटल गया. वहां मंजरी को दवा दी गई. घर वापस आ कर भी विराट तब तक मंजरी के पास बैठा रहा जब तक उस का बुखार कम नहीं हो गया.

घर लौटते ही उस ने रिया को फोन कर मंजरी के बारे में बताना शुरू किया. सुन कर रिया बोली, ‘‘तुम ने तो कहा था कि एक फ्रैंड की तबीयत खराब है.’’

‘‘हां, मंजरीजी फ्रैंड हैं मेरी.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब तुम भी यही सोचती हो कि एक मेल और फीमेल कभी फ्रैंड नहीं हो सकते?’’

‘‘मैं क्या उस जमाने की लगती हूं तुम्हें? पर 50 की उम्र के पार की आंटी से फ्रैंडशिप? हाहाहा… आई कांट बिलीव इट.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ विराट गुस्से से बोला. जवाब में रिया ने फोन काट दिया.

रात होतेहोते मंजरी की तबीयत में काफी सुधार आ गया. विराट को थैंक्स बोलने के लिए जब उस ने फोन किया तो ‘हैलो’ के साथ ही विराट की निराशा और गुस्से में भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘आई हेट रिया.’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’ चिंतित सी मंजरी इतना ही बोल पाई. और विराट ने पूरी घटना उसे सुना दी.

‘‘विराट, इस में रिया की कोई गलती नहीं. हमें संस्कार ही ऐसे दिए जाते हैं कि हम भावनाओं को जीना जानते ही नहीं. अपनी संकीर्ण सोच से कुछ लोगों द्वारा बनाए गए

नियमों के इर्दगिर्द ही घूमती रहती है हमारी पूरी जिंदगी. रिया को बस थोड़ा समझाने की जरूरत है. तुम परेशान मत होना, प्लीज…मैं देखती हूं अब क्या करना है.’’ मंजरी के कहने से विराट आश्वस्त हुआ और दोनों की बात वहीं समाप्त हो गई.

अगले दिन मंजरी ने बहुत सी चौकलेट्स खरीदीं और नेत्रहीन बच्चों के छात्रावास की ओर चल दी. वहां जा कर उस ने वे चौकलेट्स बच्चों में बांटने की इच्छा व्यक्त की. जैसा कि वह उम्मीद कर रही थी, उसे वहां की इंचार्ज यानी रिया के पास भेज दिया गया.

गोरे रंग की लंबी, स्लिम बौडी की खूबसूरत रिया का फोटो भी विराट ने उसे अभी तक नहीं दिखाया था, क्योंकि वह दोनों को आमनेसामने मिलवाना चाहता था. मंजरी ने रिया को अपना नाम नहीं बताया. वह जानती थी कि चेहरे से रिया उसे नहीं पहचानती होगी.

रिया के साथ वह ग्राउंड में खेल रहे बच्चों के पास पहुंच गई. उन सब की उम्र लगभग 5-10 वर्ष के बीच थी. रिया ने बताया कि उसे इन बच्चों से बहुत लगाव है. यहां इन के पढ़ने, रहने, खानेपीने और कपड़ों आदि का प्रबंध एक एनजीओ की मदद से होता है.

‘‘इन बच्चों का साथ मुझे हिम्मत, हौसला और जीने की नई ताकत देता है,’’ कह कर रिया मुसकराने लगी.

बच्चों के प्रति रिया का समर्पण मंजरी को बहुत अच्छा लगा. दोनों की बातचीत

चल ही रही थी एक मासूम सा बच्चा मंजरी द्वारा दी गई चौकलेट रिया के पास ले कर आया और बोला, ‘‘आधी आप खाओ न मैम.’’ रिया ने थोड़ी सी चौकलेट तोड़ी और उस के गाल चूम कर उसे खेलने भेज दिया.

‘‘यह साहिल है. इस के मातापिता एक बम विस्फोट में मारे गए थे. साहिल भी उसी दुर्घटना के कारण अपनी आंखें गंवा बैठा. मुझे बहुत अच्छा लगता है साहिल. मैं इसे दुखी नहीं देख सकती और यह भी मुझे छू कर ही मेरा दुख समझ लेता है. जब कभी मैं उदास होती हूं तो मुझे खुश करने की कोशिश करता है.’’

‘‘ओहो… बहुत दुखभरी है साहिल की कहानी. पर अच्छा हुआ कि उसे तुम्हारे जैसी दोस्त मिल गई.’’ मंजरी ने कहा.

‘‘आप इन भावनाओं को कितना समझती हैं… साहिल और मैं सचमुच एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. वह मेरा प्यारा सा दोस्त है और मैं उस की,’’ मंजरी से सहमति जताती हुई रिया चहक उठी.

‘‘तो क्या तुम नहीं चाहोगी कि ये दोस्ती आज से 20-25 साल बाद भी ऐसी ही रहे? क्या तब तुम इसे इसलिए दोस्त नहीं कहोगी कि तुम 50 के पार हो जाओगी? क्या एक उम्र के बाद भावनाओं को दबा देना चाहिए? अगर उस समय साहिल आज की तरह ही तुम से लगाव महसूस करे तो क्या तब उम्र के अंतर को ध्यान में रखते हुए उसे तुम्हारे प्रति अपने प्यार को कम कर लेना होगा? या फिर तब रिश्ते का नाम दोस्ती से बदल कर कुछ और रखोगी? क्या नाम होगा उस रिश्ते का? शायद कोई नाम नहीं. तब क्या होगा रिया, बता सकती हो तुम?’’ रिया की ओर देख कर मंजरी लगातार मुसकराने की कोशिश कर रही थी.

‘‘प्यार तो ऐसा ही होगा शायद दोनों में. और नाम… नाम तो दोस्ती ही होगा रिश्ते का. अब भी. और तब भी…’’ सोचती हुई सी रिया बोली.

‘‘अगर साहिल और तुम्हारे रिश्ते को दोस्ती का नाम दिया जा सकता है, तो विराट और मंजरी के रिश्ते को क्यों नहीं…?’’ मंजरी के सब्र का बांध टूट गया और आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

रिया जैसे सोते से जागी हो, ‘‘आप मंजरीजी हैं न?’’ कह कर वह मंजरी से लिपट गई. उस की आंखों से भी आंसू निकल पड़े.

कुछ देर तक दोनों चुपचाप बैठी रहीं. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मंजरी बोली, ‘‘अब मैं चलती हूं रिया. कल तुम मेरे घर आना. विराट को भी वहीं बुला लूंगी. खूब बातें करनी हैं मुझे तुम दोनों से.’’

रिया हामी में सिर हिला कर मुसकरा दी.

आज रिश्तों का नया पाठ पढ़ा था रिया ने. सच ही तो है कि लगाव, परवाह, त्याग और प्यार जैसे शब्द मन की कोमल भावनाओं के नाम हैं और जब ये एकसाथ मिल जाएं तो बन जाती है दोस्ती. तो फिर दोस्ती का रिश्ता पूरी तरह मन का हुआ. और मन तो सदा एक सा ही रहता है… तो फिर दोस्ती क्यों हो उम्र की मुहताज?

अपने मन की बात विराट तक पहुंचाने के लिए रिया ने उसे व्हाट्सऐप पर मैसेज किया ‘‘विराट… रिश्तों की गहराई को मैं समझ नहीं पाई थीं. अपनेपन की सुगंध से भरे किसी भी रिश्ते को उम्र के अंतिम पड़ाव तक भी मुरझाना नहीं चाहिए. मेरी ख्वाहिश है कि तुम्हारी और मंजरीजी की दोस्ती हमेशा महकती रहे. सचमुच बहुत सुंदर है ये फूल सी दोस्ती.’’

Friendship Day Special: दोस्तों के साथ जरूर जायें इन 9 जगह

कॉलेज के दिन यानी कि जेब में पैसे कम, पर आंखों में बड़े-बड़े सपने. पर मैनजमेंट भी तो तभी सही होती थी कम पैसों के साथ भी. और अब पैसें हैं तो अपने सपनों को पूरा करने के लिए ऑफीस के काम से छुट्टी नहीं.

पर अगर आप अभी अपने जीवन के इस खूबसूरत सफ़र से गुज़र रहें हैं, तो तैयार हो जाइए अपने ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत सफ़र में कुछ यादगार पलों को जोड़ने के लिए. कॉलेज के दिनों में ही युवाओं में सबसे ज़्यादा उत्साह होता है, रोमांचक क्रियाओं का, रहस्यमय चीज़ों के बारे में जानने का, अपने खिलते हुए प्यार को और गहरा करने का. आज हम आपके इसी खूबसूरत सफ़र को यादगार बनाने के लिए, आपको लिए चलते हैं भारत के इन खूबसूरत जगहों पर जहां आप अपने पॉकेट की चिंता किए बिना अपने ज़िंदगी के सबसे बेहतरीन पलों को जी पाएंगे.

तो बैग पैक करिए और तैयार हो जाइए ज़िंदगी के सबसे खुबसूरत सफ़र के लिए.

1. मसूरी

हिमालय के उंचें-उंचें पहाड़ों को उंचाई से ही देखना कितना अद्भुत होगा ना? मसूरी में रस्सी से लटकी केबल कार से हिमालय की पर्वतों का सुरम्य दृश्य आपको मंत्रमुगध कर देगा. थोड़े देर के लिए आप पूरी दुनिया से दूर आकाश की सैर पर जा दुनिया के सबसे खूबसूरत अनुभव को क़ैद करिए अपने सबसे खूबसूरत दोस्तों के साथ.

2. चेल, शिमला

शिमला से लगभग 44 किलोमीटर दूर और सोलन से लगभग 45 किलोमीटर दूर चेल के सफ़र में आप प्रकृति की गोद में समा जाइए. प्रकृति के बीच पैदल यात्रा आपके ज़िंदगी का सबसे लुभावना पल होगा. अपने साथीयों के साथ खूब सारी बातें, प्रकृति की खूबसूरती और बस आपका खूबसूरत अनुभव,और क्या चाहिए ज़िंदगी से.

3. ऋषिकेश

कॉलेज के दिनों में किसी खतरनाक और रोमांचक कार्य को करने का उत्साह सबसे ज़्यादा होता है. अपने इसी उत्साह को पूरा करने के लिए चले चलिए ऋषिकेश की जलयात्रा में, रिवर राफ्टिंग करने और कैमरे में कैद करिए अपने साहस भरे इन खूबसूरत पलों को.

4. भरतपुर

पक्षियों से प्रेम किसे नहीं होता? हर बार जी चाहता है कि काश हमारे भी उनकी तरह पंख होते जिन्हें फैला जहां मर्जी होती, जब मर्जी होती उड़ चलते. पक्षियों के अपने इस प्रेम को और निखारने के लिए जाना ना भूलें राजस्थान के भरतपुर, पक्षी अभ्यारण्य में. उनके खूबसूरत पलों को अपने कैमरे में कैद कर अपने फोटोग्राफी के शौक को भी पूरा करिए.

5. रणथम्बोर वन्यजीव अभ्यारण्य

जंगल के राजा के सामने से दर्शन करने का सपना यहां आकर आपके लिए सपना नहीं रहेगा. अपने इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए निकल पड़िए राजस्थान के माधोपुर जिले के रणथम्बोर वन्यजीव अभ्यारण्य में.

6. चकराता

अपने कॉलेज के रोज की वही बोरिंग क्लासेस से अगर आप बोर हो चुके हैं और कहीं ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां बस आप और आपकी शांति और आपके दोस्तों के साथ कुछ सुहाने पल हों तो देर मत करिए, अभी ही निकल पड़िए चकराता की यात्रा के लिए. दुनिया भर के चहल पहल से दूर कम आबादी वाले इस क्षेत्र में जी भर के मज़े करिए दोस्तों संग.

7. जयपुर

जयपुर के रॉयल सफ़ारी में सफ़र कर अपने बचपन के सपने ‘एक राजसी ठाठ का अनुभव लेना हाथी की सवारी में’ को पूरा करिए और उनमें रंग भारिए. राजा महाराजाओं के बड़े-बड़े किलों में हाथी की सवारी करना आपके लिए शानदार राजसी अनुभव होगा.

8. रानीखेत

दोस्तों के साथ कैंम्पिंग करना कॉलेज के दिनों के विशलिस्ट में सबसे पहली विश होती है. इसी विश को पूरा करने के लिए रानीखेत से अच्छी जगह क्या हो सकती है. रानीखेत अपने जादुई नज़ारों और कैंमपिंग के लिए ही सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है.

9. प्रतापगढ़ फार्म्स

कॉलेज के दिनों में हर किसी का एक ग्रूप होता है. अपने इसी ग्रूप के साथ योजना बनाइए और निकल पड़िए प्रतापगढ़ फार्म्स की ओर जो दिल्ली से सिर्फ़ दो घंटे की दूरी पर है. हरे-हरे लहलहाते खेतों का नज़ारा, खेतों में काम करने का अनुभव, बचपन के देशी खेल जैसे खो-खो, कबड्डी, पिठ्ठू आदि के मज़े ले अपने बचपन के खूबसूरत पलों को फिर से वापस ले आइए.

दोस्त ही भले: प्रतिभा ने शादी के लिए क्यूं मना किया

‘‘तुम गंभीरतापूर्वक हमारे रिलेशन के बारे में नहीं सोच रहे,’’ प्रतिभा ने सोहन से बड़े नाजोअंदाज से कहा.

‘‘तुम किसी बात को गंभीरतापूर्वक लेती हो क्या?’’ सोहन ने भी हंस कर जवाब दिया.

दोनों ने आज छुट्टी के दिन साथ बिताने का निर्णय लिया था और अभी कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. दोनों कई दिनों से दोस्त थे और बड़े अच्छे दोस्त थे.

‘‘लेती क्यों नहीं, जो बात गंभीरतापूर्वक लेने की हो. तुम मेरे सब से प्यारे दोस्त हो, मैं तुम से प्यार करती हूं, तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूं. यह बात बिलकुल गंभीरतापूर्वक बोल रही हूं और चाहती हूं कि तुम भी गंभीर हो जाओ,’’ प्रतिभा ने आंखें नचाते हुए जवाब दिया. सोहन को उस की हर अदा बड़ी प्यारी लगती थी और इस अदा ने भी उस के दिल पर जादू कर दिया पर उस ने एक बात नोट की थी प्रतिभा के बारे में कि उस ने कई पुरुष मित्रों से मित्रता की थी पर किसी से उस की मित्रता ज्यादा दिनों तक टिकी

नहीं थी.

‘‘देखो प्रतिभा, जहां तक दोस्ती का सवाल है तो तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो. तुम्हारे साथ समय बिताना मुझे बहुत पसंद है. इसीलिए मैं तुम से समय बिताने के लिए अनुरोध करता हूं और जब कभी तुम साथ में समय बिताने का कार्यक्रम बनाती हो तो झट से तैयार हो जाता हूं. पर शादी अलग चीज है. दोस्त कोई जरूरी नहीं पतिपत्नी बनें ही. मेरी कई महिलाएं दोस्त हैं. तुम्हारे भी कई पुरुष दोस्त हैं. सभी से शादी तो नहीं हो सकती. हम दोस्त ही भले हैं,’’ सोहन ने समझया.

‘‘देखो, शादी तो किसी से करनी ही है, तो क्यों न उस से करें जिस से सब से ज्यादा विचार मिलते हों. मुझे लगता है कि इस मामले में हमारी सब से अच्छी जोड़ी है,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया.

‘‘प्रतिभा, मैं तुम्हें वर्षों से जानता हूं और यह भी जानता हूं कि कई पुरुषों से तुम्हारी दोस्ती हुई है पर किसी के साथ तुम्हारी बहुत दिनों तक नहीं निभी. फिर मु?ा से कैसे निभा पाओगी? शायद कुछ दिनों बाद तुम्हारा दिल किसी और पर आ जाए. फिर तुम्हारी गंभीरता धरी की धरी रह जाएगी,’’ सोहन ने हंसते हुए कहा.

‘‘ऐसा नहीं होगा. दूसरों की बात और है, तुम्हारी बात और है. मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं. अन्य लोगों से बस परिचय है, दोस्ती है,’’ प्रतिभा ने गंभीरतापूर्वक कहा.

‘‘थोड़ा समय दो मुझे सोचने के लिए. और हां, तुम भी गंभीरतापूर्वक सोचो. शादी एक गंभीर मसला है और इसे गंभीरतापूर्वक ही सोचना चाहिए,’’ सोहन ने कौफी का अंतिम घूंट लिया और कप रखते हुए खड़ा हो गया. प्रतिभा पहले ही अपनी कौफी खत्म कर चुकी थी.

‘‘चलो, पार्क में टहलते हैं,’’ सोह

Raksha Bandhan: ज्योति- सुमित और उसके दोस्तों ने कैसे निभाया प्यारा रिश्ता

‘‘हां मां, खाना खा लिया था औफिस की कैंटीन में. तुम बेकार ही इतनी चिंता करती हो मेरी. मैं अपना खयाल रखता हूं,’’ एक हाथ से औफिस की मोटीमोटी फाइलें संभालते हुए और दूसरे हाथ में मोबाइल कान से लगाए सुमित मां को समझाने की कोशिश में जुटा हुआ था.

‘‘देख, झूठ मत बोल मुझ से. कितना दुबला गया है तू. तेरी फोटो दिखाती रहती है छुटकी फेसबुक पर. अरे, इतना भी क्या काम होता है कि खानेपीने की सुध नहीं रहती तुझे.’’ घर से दूर रह रहे बेटे के लिए मां का चिंतित होना स्वाभाविक ही था, ‘‘देख, मेरी बात मान, छुटकी को बुला ले अपने पास, बहन के आने से तेरे खानेपीने की सब चिंता मिट जाएगी. वैसे भी 12वीं पास कर लेगी इस साल, तो वहीं किसी कालेज में दाखिला मिल जाएगा,’’ मां उत्साहित होते हुए बोलीं.

जिस बात से सुमित को सब से ज्यादा कोफ्त होती थी वह यही बात थी. पता नहीं मां क्यों नहीं समझतीं कि छुटकी के आने से उस की चिंताएं मिटेंगी नहीं, उलटे, बहन के आने से सुमित के ऊपर जिम्मेदारी का एक और बोझ आ पड़ेगा.

अभी तो वह परिवार से दूर अपने दोस्तों के साथ आजाद पंछी की तरह बेफिक्र जिंदगी का आनंद ले रहा था. उस के औफिस में ही काम करने वाले रोहन और मनीष के साथ मिल कर उस ने एक किराए पर फ्लैट ले लिया था. महीने का सारा खर्च तीनों तयशुदा हिसाब से बांट लेते थे. अविवाहित लड़कों को घरगृहस्थी का कोई ज्ञान तो था नहीं, मनमौजी में दिन गुजर रहे थे. जो जी में आता करते, किसी तरह की बंदिश, कोई रोकटोक नहीं थी उन की जिंदगी में. कपड़े धुले तो धुले, वरना यों ही पहन लिए. हफ्ते में एक बार मन हुआ तो घर की सफाई हो जाती थी, वरना वह भी नहीं.

सुमित से जब भी उस की मां छोटी बहन को साथ रखने की बात कहती, वह घोड़े सा बिदक जाता. छुटकी रहने आएगी तो सुमित को दोस्तों से अलग कमरा ले कर रहना पड़ेगा और ऊपर से उस की आजादी में खलल भी पड़ेगा. यही वजह थी कि वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता.

‘‘मां, अभी बहुत काम है औफिस में, मैं बाद में फोन करता हूं,’’ कह कर सुमित ने फोन रख दिया.

वह सोच रहा था, कहीं मां सचमुच छुटकी को न भेज दें.

तीनों दोस्तों को यों तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन खाना पकाने के मामले में तीनों ही अनाड़ी थे, ब्रैड, अंडा, दूध पर गुजारा करने वाले. रोजरोज एक ही तरह का खाना खा कर सुमित उकता गया था. बाहर का खाना अकसर उस का हाजमा खराब कर देता था. परिवार से दूर रहने का असर सचमुच उस की सेहत पर पड़ रहा था. मां का इस तरह चिंता करना वाजिब भी था. इस समस्या का कोई स्थायी हल निकालना पड़ेगा, वह मन ही मन सोचने लगा. फिलहाल तो 4 बजे उस की एक मीटिंग थी. खाने की चिंता से ध्यान हटा, वह एक बार फिर से फाइलों के ढेर में गुम हो गया.

सुमित के अलावा रोहन और मनीष की भी यही समस्या थी. उन के घर वाले भी अपने लाड़लों की सेहत की फिक्र में घुले जाते थे.

शाम को थकहार कर सुमित जब घर आया तो बड़ी देर तक घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला. एक तो दिनभर औफिस में माथापच्ची करने के बाद वह बुरी तरह थक गया था, उस पर घर की चाबी ले जाना आज वह भूल गया था. फ्लैट की एकएक चाबी तीनों दोस्तों के पास रहती थी, जिस से किसी को असुविधा न हो.

थकान से बुरी तरह झल्लाए सुमित ने एक बार फिर बड़ी जोर से घंटी पर हाथ दे मारा.

थोड़ी ही देर में इंचभर दरवाजे की आड़ से मनीष का चेहरा नजर आया. सुमित को देख कर उस ने हड़बड़ा कर दरवाजा पूरा खोल दिया.

‘‘क्यों? इतना टाइम लगता है क्या? बहरा हो गया था क्या जो घंटी सुनाई नहीं दी?’’ अंदर घुसते ही सुमित ने उसे आड़ेहाथों लिया.

गले में बंधी नैकटाई को ढीला कर सुमित बाथरूम की तरफ जा ही रहा था कि मनीष ने उसे टोक दिया, ‘‘यार, अभी रुक जा कुछ देर.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ सुमित ने पूछा, फिर मनीष को बगले झांकते देख कर वह सबकुछ समझ गया, ‘‘कोई है क्या, वहां?’’

‘‘हां यार, वह नेहा आई है. वही है बाथरूम में.’’

‘अरे, तो ऐसा बोल न,’’ सुमित ने फ्रिज खोल कर पानी की ठंडी बोतल निकाल ली.

मनीष की प्रेमिका नेहा नौकरी करती थी और एक वुमेन होस्टल में रह रही थी. जब भी सुमित और रोहन घर पर नहीं होते, मनीष नेहा को मिलने के लिए बुला लेता.

सुमित को इस बात से कोई एतराज नहीं था, मगर रोहन को यह बात पसंद नहीं आती थी. उस का मानना था कि मालिकमकान कभी भी इस बात को ले कर उन्हें घर खाली करने को कह सकता है.

जब कभी नेहा को ले कर मनीष और रोहन के बीच में तकरार होती, सुमित बीचबचाव से मामला शांत करवा लेता.

‘‘यार, बड़ी भूख लगी है, खाने को कुछ है क्या?’’ सुमित ने फ्रिज में झांका.

‘‘देख लो, सुबह की ब्रैड पड़ी होगी,’’ नेहा के जाने के बाद मनीष आराम से सोफे पर पसरा टीवी देख रहा था.

सुमित को जोरों की भूख लगी थी.

इस वक्त उसे मां के हाथ का

बना गरमागरम खाना याद आने लगा. वह जब भी कालेज से भूखाप्यासा घर आता था, मां उस की पसंद का खाना बना कर बड़े लाड़ से उसे खिलाती थीं. ‘काश, मां यहां होतीं,’ मन ही मन वह सोचने लगा.

‘‘बहुत हुआ, अब कुछ सोचना पड़ेगा. ऐसे काम नहीं चलने वाला,’’ सुमित ने कहा तो मनीष बोला, ‘‘मतलब?’’

‘‘यार, खानेपीने की दिक्कत हो रही है, मैं ने सोच लिया है किसी खाना बनाने वाले को रखते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘और उस को पगार भी तो देनी पड़ेगी?’’ मनीष ने कहा.

‘‘हां, तो दे देंगे न, आखिर कमा किसलिए रहे हैं.’’

‘‘लेकिन, हमें मिलेगा कहां कोई खाना बनाने वाला,’’ मनीष ने कहा.

‘‘मैं पता लगाता हूं,’’ सुमित ने जवाब दिया.

दूसरे दिन सुबह जब सुमित काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा, किसी ने दरवाजा खटखटाया. करीब 30-32 साल की मझोले कद की एक औरत दरवाजे पर खड़ी थी.

सुमित के कुछ पूछने से पहले ही वह औरत बोल पड़ी, ‘‘मुझे चौकीदार ने भेजा है, खाना बनाने का काम करती हूं.’’

‘‘ओ हां, मैं ने ही चौकीदार से बोला था.’’

‘‘अंदर आ जाइए,’’ सुमित उसे रास्ता देते हुए बोला और कमरे में रखी कुरसी की तरफ बैठने का इशारा किया.

कुछ झिझकते हुए वह औरत अंदर आई. गेहुंए रंग की गठीले बदन वाली वह औरत नजरें चारों तरफ घुमा कर उस अस्तव्यस्त कमरे का बारीकी से मुआयना करने लगी. बेतरतीब पड़ी बिस्तर की चादर, कुरसी की पीठ पर लटका गीला तौलिया, फर्श पर उलटीसीधी पड़ी चप्पलें.

‘‘हमें सुबह का नाश्ता और रात का खाना चाहिए. दिन में हम लोग औफिस में होते हैं, तो बाहर ही खा लेते हैं,’’ सुमित ने उस का ध्यान खींचा.

मनीष भी सुमित के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘कितने लोगों का खाना बनेगा?’’ औरत ने सुमित से पूछा.

‘‘कुल मिला कर 3 लोगों का, हमारा एक और दोस्त है, वह अभी घर पर नहीं है.’’

खूंटियों पर लटके हुए: भाग -2

अपनी पत्नी को उस ने समझया भी कि सुरेश जरा घटिया आदमी है. उस से अधिक हंसनाबोलना अच्छा नहीं. पर उस की अक्षरा उसी को बेवकूफ कहने लगी, ‘‘वह जो भी हो, मेरा क्या ले लेता है. तुम्हारा ही तो दोस्त है, हमारा परिवार तो वही है. घर में और कौन है, जिस से हंसूंबोलूं? देवर से जरा बात कर लेती हूं तो जलने लगे हो.’’

वह अक्षरा पर किसी बात के लिए दबाव या जोर डालना पसंद नहीं करता. केवल सलाह दे देता. यह सुन कर वह चुप ही रहा.

आज सुरेश 10 बजे ही आ टपका. आते ही फरमाइश की, ‘‘भाभी, आज केक खाने का मूड है.’’

भाभी ने झट ओवन चलाया और केक बनाना शुरू कर दिया. छोटी कड़ाही चढ़ाई और हलवे की तैयारी शुरू हो गई. वह अपने कमरे में बैठा देवरभाभी के संवाद सुन कर गुस्से से भुन रहा था कि यही देवीजी हैं, उस दिन कहा कि आज जरा कटलेट तो तलना तो तुरंत नाकभौं चढ़ा कर कहने लगीं कि अभी स्कूल की कौपियां जांचनी हैं. कल उन्हें वापस करना है. पर यह लफंगा सुरेश उस से अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया.

केक को ले कर अपनी नाराजगी प्रकट करने के लिए वह एक नई पत्रिका उठा कर रसोई की तरफ चला. एक बालटी को उलटा कर रसोई में ही जमे बैठे सुरेश को अनदेखा करता वह पत्नी से बोला, ‘‘लो, इस की पहली कहानी बहुत अच्छी है, जरा पढ़ कर देखना. अरे, यह क्या बना रही हो?’’

पत्नी ने केक पर ध्यान लगाए हुए कहा, ‘‘केक खाने का मूड है सुरेश देवरजी का.’’

‘‘केक भारी होता है बहुत फैट होता है इस में, वैसे भी आज मेरा पेट ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम मत खाना, भई. तुम्हें कौन कह रहा है. इस मैगजीन को मेरे पलंग पर रख देना. बाद में पढ़ लूंगी.’’

पत्रिका लिए वह तनतनाता लौट गया. अपने कमरे में आ कर डायरी खोली और उस में लाल स्याही से स्पष्ट अक्षरों में लिखा कि आज की तारीख से मेरा अक्षर के साथ कोई संबंध नहीं. उस के बाद वह पार्क  में चला आया.

सामने से एक गाय चरती हुई उधर ही आने लगी. उस ने घड़ी देखी, 3 बज रहे थे. अब चलना चाहिए, भूखी बैठी होगी.

घर आने पर महरी ने दरवाजा खोला. वह रसोई में बरतन साफ कर रही थी. उस ने अपना भोजन खाने की मेज पर ढका रखा देखा. कमरे में झंका, पत्नी पलंग पर लेटी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘यह बात है,’ कड़वाहट के साथ उस ने सोचा, ‘खुद मजे से खा लिया, मेरा खाना ढका रखा है.’

उसे याद आया. विवाह के बाद शुरू के वर्षों में खुद उसी ने कई बार पत्नी को सम?ाया था कि उसे जब बहुत देर हो जाया करे तो वह भोजन कर लिया करे. बेकार की रस्मों का वह कायल नहीं है कि  पति को खिला कर ही पत्नी खाए. उस की पत्नी ने तो उस की आज्ञा का पालन ही किया है.

उसे थोड़ा संतोष हुआ. भोजन कर वह चुपके से बैठक में जा कर सोफे पर पड़ गया. एक बात खटकती रही कि कम से कम उठ कर खाना तो परोस देती, पानी दे देती.

सुरेश के रहने तक घर में अक्षरा की खिलखिलाहट गूंजती रही. अब कैसा सन्नाटा है. वह टीवी रिमोट से चैनल बदलते हुए सोचने लगा, ऐसी स्त्री के साथ अब वह जीवन बरबाद नहीं कर सकता. बीचबीच में इस पर न जाने क्या भूत चढ़ता है कि हफ्तों के लिए घर में ही अपरिचित सी हो जाती है. पर दूसरे के सामने कैसी चहकती है.

वह कितना चाहता है कि कभी फुरसत में उस की अक्षरा उस के साथ बैठे, प्यार की बातें करे. वह उस के बालों को सहलाता हुआ कहे कि तुम तो आज भी पहले दिन की तरह ही सुंदर एवं नईनवेली हो.

मगर लगता है कि अक्षरा को इन बातों को सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही है. क्या कारण हो सकता है? संसार में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता. उसे अकस्मात संदेह हुआ कि कोई ऐसीवैसी बात तो नहीं है. इन औरतों को समझ पाना वैसे ही टेढ़ी खीर है. उस पर नौकरीपेशा स्त्रियां तो खूब मौका पाती हैं. स्कूल में ही कितने मेल टीचर हैं. फिर शास्त्रों

में यो ही नहीं कहा गया है, ‘‘स्त्रियांश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं…’’

जरूर कोई ऐसी ही बात है, तभी आजकल उस की पत्नी को उस की जरूरत नहीं रही है. इस निश्चय पर पहुंच कर जैसे उस का मन हलका हुआ. आखिर कारण तो मिला. अब वह सावधानी से इस बात का पता लगाएगा.

अगर कोई बात पकड़ में आएगी तो वह तत्काल उसे तलाक दे देगा, किंतु हिंदू तलाक कानून तो बड़ा जटिल और झंझट वाला है. वह उठ कर किताबों की अलमारी से एक किताब निकाल लाया. ‘तलाक का कानूनी ज्ञान.’ इसे उस ने एक दिन एक बुक शौप में 400 रुपए में खरीदा था. तलाक पर लंबी व्याख्या है इस में.

वह बाहर बरामदे में बैठ कर पढ़ने लगा. इतनी बात समझ में आई कि तलाक से पहले प्राय: सालभर अलग रहने की व्यवस्था है. इस बीच में यदि दंपती का मूड बदले और मेल हो जाए तो कोई बात नहीं वरना तलाक मिल सकता है. अब डोमैस्टिक वायलैंस और संपत्ति में हिस्से की बात भी बहुत ज्यादा होने लगी है. जेल जाने की नौबत मिनटों में आ सकती है.

उस ने सोचा मान लो यह अक्षरा सुरेश या किसी ऐसे ही लोफर के साथ चल देती है तो ही छुटकारा मिलेगा. एक दिन उसे लौट कर यहीं आना पड़ेगा. तब वह क्या करेगा?

उसी वक्त लात मार कर निकाल देगा. फिर उस ने शहीदों के भाव से सोचा कि जब वह आ कर मेरे कदमों पर गिरेगी तो सारी भूल क्षमा कर मैं उसे उठा कर गले से लगा लूंगा.

तब वह समझेगी, मेरा दिल कितना बड़ा है. तब तो हर बात में मेरा मुंह देखेगी, जो कहूंगा तुरंत मानेगी. तब घर में वास्तविक सुखशांति छा जाएगी.

लोग क्या कहेंगे, उस ने फिर सोचा. वह लोगों के कहने पर ध्यान न देगा. वह समाज का गुलाम नहीं है. न अब हुक्कापानी, नाई, धोबी बंद करने का जमाना है. नई पीढ़ी उसे कितनी श्रद्धा से देखेगी. वह उस का आदर्श बन जाएगा. संभव है, अखबारों में भी चर्चा हो, देश के बड़े लोग उसे आशीर्वाद देंगे.

रसोई में खटपट की आवाज आ रही थी. उस ने घड़ी देखी, 4 बज रहे थे. तभी परदा हटा कर उस की पत्नी ने बैठक में प्रवेश किया. उस ने उस की तरफ स्नेह, ममता एवं क्षमाभाव से देखा. पर पत्नी का चेहरा तो वैसे ही खिंचा रहा. वह सामने की तिपाई कर चाय का कप रख कर लौट गई.

उस ने सोचा कि ये औरतें नाक के नीचे के हीरे को न पहचान कर दूर की कौड़ी के चक्कर में खुद तो तबाह होती ही हैं, दूसरों को भी तनाव में रखती हैं.

दूसरे दिन वह ठीक 10 बजे दफ्तर के लिए निकला तो चौराहे पर रेस्तरां के सामने बाइक रोकी. भीतर जा कर एक चाय मंगवा कर यों बैठा कि सामने की सड़क पर छिपी दृष्टि डालता रहे. उस की पत्नी स्कूल के लिए 10 बजे चलती है. पैदल ही जाती है, अधिक दूर नहीं है स्कूल. तभी वह सामने सड़क पर दिख पड़ी.

हाथ में कौपियों का एक बंडल और कंधे पर बैग संभाले. वह बिल चुका कर उठ खड़ा हुआ. काफी दूर से बाइक हाथ में संभाले पीछा करते हुए उसे जासूसी का मजा आ रहा था.

Beauty Tips: महिलाओं के लिए ये 7 ग्रूमिंग टिप्स, जो खूबसूरती में लगाएंगे चार चांद

आज के ट्रेंडिंग दौर में हर कोई खूबसूरत और आकर्षित दिखना चाहता है. घर हो, ऑफिस हो या फिर खुद के लिए सुंदर दिखने की ख्वाहिश हो, आजकल प्रेजेंटेबल और बेहतर ढंग से तैयार होने का महत्व काफी बढ़ गया है. पर्सनल ग्रूमिंग से न सिर्फ आप अच्छी नजर आती,बल्कि आपका आत्मविश्वास भी बढ़ता है और आपकी पर्सनालिटी भी बढ़ती है. आज हम आपको इस लेख के जरिए कुछ खास पर्सनल ग्रूमिंग टिप्स बताने जा रहे है.

  1. त्वचा की देखभाल जरूरी है

सबसे पहले इस बात का ध्यान जरुर रखे कि आपकी आपकी स्किन कैसी है उसी के अनुसार अपनी स्किन की देखभाल करें. आपकी स्किन किस प्रकार की है, उसे जानकर ही मेकअप और स्किन केयर रूटीन को फॉलो करें. बेहतर है कि आप त्वचा को हेल्दी और ग्लोइंग बनाने के लिए किसी एक्सपर्ट की राय ले लें, क्योंकि जब आपकी त्वचा ग्लो करेगी, तो पूरी पर्सनैलिटी बेहतर लगेगी. आप केमिकल युक्त ब्यूटी केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कम करें। डेली स्किन केयर रूटीन बनाएं.

2. महीने में एक बार जरूर जाएं ब्यूटी पार्लर

स्किन और हेयर्स अगर स्वस्थ नजर आते है, तो आपकी पर्सनैलिटी आकर्षण नजर आती है. बाल, त्वचा, हाथों-पैरों की देखभाल अच्छी तरह से करना बेहद आवश्यक है. आप चाहे एक महीने में एक बार पार्लर ज़रूर जाएं. अच्छी तरह से दिखने के लिए थ्रेडिंग और अप्पर लिप के बालों को हटाना भी बहुत ज़रूरी है. Hand , Legs की वैक्सिंग नियमित रूप से कराएं.

3. लाइट मेकअप करें

हर दिन हेवी मेकअप करके ऑफिस या कहीं बाहर जाना अच्छा नहीं होता. साथ ही मेकअप बिल्कुल भी ना करना भी ठीक नहीं. ऐसे में आप लाइट मेकअप करें. मेकअप दिन और रात के अनुसार ही करें. काजल, कॉम्पैक्ट पाउडर, हल्के रंग की लिपस्टिक लगा सकती हैं. यह सिंपल मेकअप लुक आपको प्रेजेंटेबल और अच्छी तरह से तैयार दिखने में काफी मदद करता है.

 

4. बाल कटवाती रहें

हर समय एक हेयर स्टाइल रखने आपकी पेर्सोनैलिटी पर इफ़ेक्ट पड़ता है.  साल में या हर 6 महीने हेयर कट जरूर करवाएं इससे आपको परफेक्ट लुक मिलेगा. आप अलग-अलग हेयर कट ट्राई कर सकते है. खुले, बिखरे, डल और बेजान बालों से आपका व्यक्तित्व खराब नजर आता है. बता दें कि, अपने चेहरे के आकार के अनुसार हेयर कट करवाएं. इसके साथ ही आप स्प्लिट एंड्स से छुटकारा पाने के लिए हेयर ट्रिम करवा सकते है.

5. बॉडी ओडोर का जरूर ध्यान दें

कुछ लोगों के पसीने से अधिक दुर्गंध आती है. ये दुर्गंध भीड़ में आपको शर्मिंदा कर सकती है. बॉडी ओडोर व्यक्ति के आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है, इसलिए अपने लिए अच्छी क्वालिटी का परफ्यूम, डियो चुनें. अत्यधिक पसीना आता है, तो डिओडोरेंट्स का भी उपयोग कर सकती हैं.

6. कपड़े का चयन सोच-समझकर करें

अब हर बॉडी शेप पर सभी कपड़े सूट नही करते. ऐसे में कपड़ों का चुनाव अपनी बॉडी टाइप के अनुसार ही करना चाहिए. कपड़े शरीर में अच्छी तरह से फिट हों, आप पर सूट करें. वैसी ही ड्रेस खरीदें, जिसमें आप कंफर्टेबल महसूस करे. आपका ड्रेसिंग सेंस, पहनावे का तरीका भी आत्मविश्वास को बढ़ाता है. इसके अलावा, ऑफिस में भी फॉर्मल और शालीन कपड़े ही पहनें.

7. हेल्थी डाइट लें

इन सभी टिप्स के साथ फिजिकली फिट रहना भी बहुत जरूरी है. इसलिए फिट रहने के लिए हेल्थी डाइट लेना बेहद महत्वपूर्ण है. बैलेंस्ड डाइट से ना सिर्फ आप अपना वजन कम कर सकती हैं, बल्कि यह मेटाबॉलिज्म को भी दुरुस्त रखता है. आप शारीरिक और मानसिक रूप से अच्छा महसूस करेंगी, तो सभी कार्य भी बेहतर तरीके से पूरा कर सकेंगी.

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  1. त्वचा की देखभाल जरूरी है

सबसे पहले इस बात का ध्यान जरुर रखे कि आपकी आपकी स्किन कैसी है उसी के अनुसार अपनी स्किन की देखभाल करें. आपकी स्किन किस प्रकार की है, उसे जानकर ही मेकअप और स्किन केयर रूटीन को फॉलो करें. बेहतर है कि आप त्वचा को हेल्दी और ग्लोइंग बनाने के लिए किसी एक्सपर्ट की राय ले लें, क्योंकि जब आपकी त्वचा ग्लो करेगी, तो पूरी पर्सनैलिटी बेहतर लगेगी. आप केमिकल युक्त ब्यूटी केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कम करें। डेली स्किन केयर रूटीन बनाएं.

2. महीने में एक बार जरूर जाएं ब्यूटी पार्लर

स्किन और हेयर्स अगर स्वस्थ नजर आते है, तो आपकी पर्सनैलिटी आकर्षण नजर आती है. बाल, त्वचा, हाथों-पैरों की देखभाल अच्छी तरह से करना बेहद आवश्यक है. आप चाहे एक महीने में एक बार पार्लर ज़रूर जाएं. अच्छी तरह से दिखने के लिए थ्रेडिंग और अप्पर लिप के बालों को हटाना भी बहुत ज़रूरी है. Hand , Legs की वैक्सिंग नियमित रूप से कराएं.

3. लाइट मेकअप करें

हर दिन हेवी मेकअप करके ऑफिस या कहीं बाहर जाना अच्छा नहीं होता. साथ ही मेकअप बिल्कुल भी ना करना भी ठीक नहीं. ऐसे में आप लाइट मेकअप करें. मेकअप दिन और रात के अनुसार ही करें. काजल, कॉम्पैक्ट पाउडर, हल्के रंग की लिपस्टिक लगा सकती हैं. यह सिंपल मेकअप लुक आपको प्रेजेंटेबल और अच्छी तरह से तैयार दिखने में काफी मदद करता है.

 

4. बाल कटवाती रहें

हर समय एक हेयर स्टाइल रखने आपकी पेर्सोनैलिटी पर इफ़ेक्ट पड़ता है.  साल में या हर 6 महीने हेयर कट जरूर करवाएं इससे आपको परफेक्ट लुक मिलेगा. आप अलग-अलग हेयर कट ट्राई कर सकते है. खुले, बिखरे, डल और बेजान बालों से आपका व्यक्तित्व खराब नजर आता है. बता दें कि, अपने चेहरे के आकार के अनुसार हेयर कट करवाएं. इसके साथ ही आप स्प्लिट एंड्स से छुटकारा पाने के लिए हेयर ट्रिम करवा सकते है.

5. बॉडी ओडोर का जरूर ध्यान दें

कुछ लोगों के पसीने से अधिक दुर्गंध आती है. ये दुर्गंध भीड़ में आपको शर्मिंदा कर सकती है. बॉडी ओडोर व्यक्ति के आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है, इसलिए अपने लिए अच्छी क्वालिटी का परफ्यूम, डियो चुनें. अत्यधिक पसीना आता है, तो डिओडोरेंट्स का भी उपयोग कर सकती हैं.

6. कपड़े का चयन सोच-समझकर करें

अब हर बॉडी शेप पर सभी कपड़े सूट नही करते. ऐसे में कपड़ों का चुनाव अपनी बॉडी टाइप के अनुसार ही करना चाहिए. कपड़े शरीर में अच्छी तरह से फिट हों, आप पर सूट करें. वैसी ही ड्रेस खरीदें, जिसमें आप कंफर्टेबल महसूस करे. आपका ड्रेसिंग सेंस, पहनावे का तरीका भी आत्मविश्वास को बढ़ाता है. इसके अलावा, ऑफिस में भी फॉर्मल और शालीन कपड़े ही पहनें.

7. हेल्थी डाइट लें

इन सभी टिप्स के साथ फिजिकली फिट रहना भी बहुत जरूरी है. इसलिए फिट रहने के लिए हेल्थी डाइट लेना बेहद महत्वपूर्ण है. बैलेंस्ड डाइट से ना सिर्फ आप अपना वजन कम कर सकती हैं, बल्कि यह मेटाबॉलिज्म को भी दुरुस्त रखता है. आप शारीरिक और मानसिक रूप से अच्छा महसूस करेंगी, तो सभी कार्य भी बेहतर तरीके से पूरा कर सकेंगी.

सीख: भाग 2- आखिर वंदना ने कौन-सी योजना बनाई

अगले दिन सुबह वंदना को यह देख कर सचमुच आश्चर्य हुआ कि कविता का भाई उसे मायके ले जाने के लिए आया हुआ है.

विकास के हावभाव से उस की नाराजगी साफ झलक रही थी. इस कारण घर में कोई ज्यादा बोल भी नहीं रहा था.

कविता ने जब विदा ली तब वंदना उसे यह सुनाने से चूकी नहीं, ‘‘भाभी, मुझे मालूम है कि आप मेरे यहां आ कर रहने से खुश नहीं हो. मेरे विदा होते ही आप का कमर दर्द भी ठीक हो जाएगा और यहां वापसी भी आ जाओगी.’’

कविता की आंखों में जो आंसू उभरे उन्हें नाटक बता कर वंदना ने खारिज कर दिया. कविता के न रहने पर वंदना ने घर के कामकाज में अपनी मां का हाथ बंटाना खुशीखुशी किया. विकास उस से नाराज बना रहा. कमला भी चुपचुप रहती. अपने पिता में भी उस ने बदलाव महसूस किया. वे भी गंभीर और सोच में डूबे नजर आते.

मायके आ कर वंदना इस बार न ज्यादा आराम कर सकी न मौजमस्ती. लौटने वाले दिन उसे एक और झटका लगा.

कमला ने उसे अपने पास बैठा कर चिंतित लहजे में जानकारी दी, ‘‘वंदना,

तुम्हारे भाई और पिता दोनों को बिजनैस में अचानक तगड़ा नुकसान हुआ है. कर्जा लेने की नौबत आ गई है.’’

‘‘उफ, यह तो बड़ी बुरी खबर है मां,’’ वंदना की आंखों में फौरन चिंता के भाव उभरे.

‘‘इस बार मनोज से तुम हमारी तरफ से हाथ जोड़ कर माफी मांग लेना.’’

‘‘माफी किस बात के लिए?’’

‘‘हम अपनी मजबूरी के चलते तुम्हारे साथ न कोई सामान भेज पाएंगे, न ही रुपए दे पाएंगे.’’

‘‘इस बात की तुम सब फिक्र न करो.

पहले क्या तुम लोगों ने उन्हें इतना सारा नहीं दे रखा है…’’ सब जल्दी ठीक हो जाएगा और उन सब की अगर कोई शिकायत हुई तो वह दूर हो जाएगी.’’

‘‘जब तक बिजनैस संभल नहीं जाता हम तुम से मिलने भी नहीं आ पाएंगे. तुम अपना

ध्यान रखना बेटी,’’ कमला की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘मेरी फिक्र मत करो मां. मुझे अपने घर में कोई दिक्कत न कभी हुई है न आगे होगी.’’

इसी तरह के आश्वासन अपने पिता व भाई को देते हुए वंदना ने उन दोनों की भी चिंता दूर करने की कोशिश दिल से करी.

वंदना उन के सामने खूब मुसकराती रही, पर वापस घर में कदम रखते हुए उस का मन भी अजीब सी बेचैनी से भर उठा.

यह पहला अवसर था जब वंदना के सामान में सासससुर, ननद व पति को देने के लिए कई सारे उपहार मौजूद नहीं थे. सब को उम्मीद रहती थी कि घर में एसी लगवाने को वह रुपए साथ लाई होगी, पर उस का पर्स खाली था. मनोज के पिता का फोन मनोज के पास आया कि उस के पास कुछ पैसे हों तो वह एक नया सोफा खरीद ले.

‘‘बिजनैस में ज्यादा नुकसान हो जाने के कारण इस बार मैं ने पापा और भैया को अपने ऊपर खर्चा करने से बिलकुल रोक दिया. आप यह बुरी खबर सब को बता देना,’’ मनोज को यह बताते हुए वंदना ने खुद को शर्मिंदा होते महसूस किया, तो उसे अपने ऊपर तेज गुस्सा आया. वह अकेले मनोज के साथ तो रहती थी पर मनोज के मातापिता, भाई और बहन वंदना के लाए सामान को बड़े हक से इस्तेमाल करते थे.

मनोज ने वंदना से कुछ कहा तो नहीं, पर वंदना ने उस की आंखों की चमक को साफ बुझते देखा.

उस रात जब दोनों ड्राइंगरूम में बैठे थे तो वंदना ने बताया कि खाली हाथ आने के प्रति बाकी लोगों की प्रतिक्रिया भी उस के प्रति बड़ी खराब रही.

‘‘आजकल सैंसैक्स उछाल मार कर आसमान छू रहा है और समधीजी का बिजनैस घाटे में चला गया. अपनी समझ में यह बात बिलकुल नहीं आई,’’ मनोज ने अपने पिता की बात दोहराई.

‘‘देखोजी, इस बात का जिक्र करना बंद करो कि खाली हाथ मायके से आई है. यों दोनों घरों की बाहर वालों के सामने बेइज्जती कराने से क्या फायदा है,’’ उस की सास की नाखुशी उन की आवाज की चुभन में साफ झलक रही थी.

‘‘बढ़ती गरमी में इस साल भी सड़ना पड़ेगा,’’ कह मनोज ने उसे यों गुस्से से घूरा जैसे एसी न लगवा कर वंदना ने कोई जुर्म किया हो.

किसी बाहर वाले के सामने वंदना के मायके से खालीहाथ आने का जिक्र नहीं करेंगे, इस बात को कई बार उस के सामने दोहराने के बावजूद किसी ने भी इस पर अमल नहीं किया.

हर रिश्तेदार, पड़ोसी व परिचित के सामने यह बात कह दी गई कि बहू के मायके से मिलने वाली चीजों का दुनिया को लालच हो, पर हमें बिलकुल नहीं है. हमारी वंदना इस बार मायके से खाली हाथ आई है, पर हम मैं से किसी के माथे पर न कोई शिकन है, न मुंह पर शिकायत का एक शब्द.

वंदना ने 2 दिन बाद रात को मनोज से शिकायत करी, ‘‘आप के घर वालों ने यह क्या तमाशा बना रखा है. मुंह से वे कुछ भी कहें,

पर मन लालची हैं सब के और यह बात मेरी समझ में अब अच्छी तरह से आ गई है. यह देख कर मेरे मन को गहरा सदमा लगा है कि उन सब का मेरे प्रति प्यार, उन के व्यवहार की मिठास मेरे मायके से आने वाले सामान और रुपए के कारण ही थी.’’

‘‘मेरे घर वाले लालची नहीं हैं. उन्हें अफसोस इस बात का है कि तुम्हारे मम्मीपापा ने रीतिरिवाज न निभाते हुए तुम्हें यों खाली हाथ भेज दिया. इस कारण हमारी भी बेइज्जती हुई है,’’ मनोज के इस कठोर जवाब को सुन कर वंदना रोंआसी सी हो गई.

कड़वी, चुभने वाली बातें उसे और भी कईर् मामलों में सुनने को मिलने लगीं. उसे नौवल पढ़ने का शौक था. इस बार से पहले मायके जाने से पहले उसे अपने इस शौक को पूरा करने का खूब मौका खुशीखुशी दे देते थे. घर का बहुत सा काम कर देते थे. मनोज की मां भी आए दिन खाना बना देती थी. एक वाई भी आती थी.

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