आफत हैं लड़ाकू औरतें

लड़ाकू औरतें कैसी होती हैं? ‘क्या ये बाकी महिलाओं से अलग होती हैं? क्या इन्हें लड़ाई झगड़ा करने में मजा आता है? क्या ये अपने घर में भी ऐसे ही लड़ती झगड़ती रहती हैं? इन के घर में सुखशांति का वास होता है या नहीं? लड़ाकू औरतें स्वभाव से कैसी होती हैं? ये सब समझने के लिए सोशल मीडिया पर अपलोड किए वीडियोज पर नजर डालते हैं.

मार्च, 2023 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. यह वीडियो दिल्ली मैट्रो के लेडीज कोच का है. वीडियो में सभी लेडीज अपनीअपनी सीट पर बैठी हुई थीं. तभी ब्लैक जींस और रैड टौप पहनी औरत अपनी सीट से उठती है और सामने में दूसरी सीट पर बैठी औरत पर बुरी तरह चिल्लाने लगती है. उधर दूसरी औरत भी उस पर भड़क जाती है. इस के बाद रैड टौप पहनी औरत ने अपनी चप्पल उतारी और दूसरी औरत को चुनौती दी. वहीं दूसरी औरत ने भी अपनी पानी की बोतल उठा ली.

इस के बाद दोनों के बीच बातों की तकरार हुई. एक ने कहा कि वह पहले हाथ लगा कर दिखाए तो पता चल जाएगा. वहीं दूसरी औरत ने उसे चुनौती दी कि वह फिर बच नहीं पाएगी. हालांकि इस बीच आसपास मौजूद औरतों ने उन्हें चुप रहने और लड़ाई न करने की हिदायत दी.

इस के बाद क्या हुआ यह किसी को नहीं पता क्योंकि वीडियो अपलोड करने वाले ने इतना ही वीडियो बनाया था. उस ने यह औडियंस पर सोचने के लिए छोड़ दिया था कि आगे क्या हुआ होगा.

कहासुनी का वीडियो वायरल

ऐसा ही एक वीडियो मुंबई की जान कहीं जाने वाली लोकल ट्रेन से आया. कुछ समय पहले मुंबई की लोकल ट्रेन के लेडीज कोच की 3 औरतों के बीच कहासुनी का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था. वायरल वीडियो में पैसेंजर से भरे एक डब्बे में 3 औरतें आपस में लड़ती नजर आ रही थीं. वीडियो में वे एकदूसरे के बाल खींच रही थीं.

एक लड़की गुस्से में अधेड़ उम्र की औरत के साथ बदतमीजी कर रही थी. वह उसे घसीट कर मार रही थी. इसी बीच एक तीसरी औरत भी इस लड़ाई में शामिल हो गई और वह लड़की को पीटने लगी.

आए दिन सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से वीडियोज वायरल होते रहते हैं, जिन में औरतें लड़ झगड़ रही होती हैं. सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए ऐसे तमाम वीडियोज में सिर्फ लड़ाई झगड़े को दिखाया जाता है. इन में लड़ाई के बाद क्या हुआ यह नहीं दिखाया जाता है. इस से इन वीडियोज को देखने वाले लोगों को यह जानकारी नहीं मिल पाती कि वीडियोज के अंत में क्या हुआ होगा.

वे इस उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि इस लड़ाई झगड़े का अंत क्या हुआ होगा? क्या पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई होगी? क्या किसी ने इस झगड़े में सलाहकार की भूमिका निभाई होगी? ऐसे कितने ही सवाल उन के मन में होंगे.

लड़ाकू औरतें हर युग में होती हैं. अगर इसे ऐतिहासिक संदर्भ में देखें तो कैकई, द्रौपदी और हिडिंबा का नाम सामने आता है. ये वे औरतें थीं जिन्होंने अपने लड़ाकू स्वभाव के कारण न सिर्फ हत्या करवाई बल्कि युद्ध भी करवा दिया. लड़ाकू औरत का एक उदाहरण रामायण में भी देखने को मिलता है. श्रीराम की सौतेली मां कैकई की बात करें तो उन की दोनों शर्तें, भरत को राजा बनाना और राम को 14 साल का वनवास काटना एक धूर्त चाल थी.

उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि वे अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बना सकें और अपने सौतेले पुत्र राम को अयोध्या से दूर रख सकें. इस के बाद राम ने कैकई की शर्तों को मानते हुए वनवास स्वीकारा.

महाभारत का उदाहरण

यह घटना त्रेतायुग की है. उस समय कैकई ने अपनी जिद और लड़ाकू स्वभाव के कारण महाराज दशरथ से अपनी शर्त मनवा ली. इस घटना से यह साबित होता है कि लड़ाकू औरतें हर युग में रही हैं. सतयुग में भी ये औरतें अपना हित साधने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं. ऐसी औरतों ने हमेशा परिवार को तहसनहस किया.

लड़ाकू औरत का एक दूसरा उदाहरण महाभारत में देखने को मिलता है. पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने कई बार ऐसे कटु वचन कहे जो महाभारत के युद्ध का कारण बनें जैसे द्रौपदी ने इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय दुर्योधन को ‘अंधे का पुत्र भी अंधा’ कहा था. यह बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई थी. इसी वजह से द्य्यूतकीड़ा में उस ने शकुनी के साथ मिल कर युधिष्ठर को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था. द्य्यूतकीड़ा में द्रौपदी को हारने के बाद भरी सभा में उस का चीरहरण हुआ.

अपने चीरहरण के बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि अगर तुम ने दुर्योधन और उस के भाइयों से मेरे अपमान का बदला नहीं लिया तो तुम पर धिक्कार है. द्रौपदी ने खुद भी यह प्रण लिया कि वह अपने बाल तब तक खुला रखेगी जब तक कि वह इन्हें दुर्योधन के खून से धो नहीं लेती.

द्रौपदी की इस बात को सुन कर भीम ने प्रण किया कि मैं दुर्योधन की जांघ को गदा से तोड़ दूंगा और दुशासन की छाती को चीर कर उस का रक्तपान करूंगा. चीरहरण के दौरान जब कर्ण ने द्रौपदी को बचाने की जगह कहा कि जो स्त्री 5 पतियों के साथ रह सकती है, उस का क्या सम्मान. यह बात सुन कर द्रौपदी को बहुत ठेस पहुंची. इस का बदला लेने के लिए द्रौपदी हर समय अर्जुन को कर्ण से युद्ध करने के लिए उकसाती रही.

झगड़ालू औरत कुछ भी करा सकती है

महाभारत के युद्ध में सभी कौरवों और कर्ण की मृत्यु के बाद ही द्रौपदी को चैन मिला. इन सभी बातों को जानने के बाद कहा जा सकता है कि लड़ाकू और ?ागड़ालू औरत कुछ भी करा सकती. फिर चाहे वह युद्ध ही क्यों न हो.

वहीं अगर भीम की राक्षसी पत्नी हिडिंबा की बात करें तो वह भीम से विवाह करना चाहती थी. लेकिन उस का राक्षस भाई हिडंब पांडवों को अपना भोजन बनाना चाहता था. कौरवों की जान बचाने और भीम से विवाह करने के लिए हिडिंबा ने भीम को अपने भाई की हत्या करने के लिए उकसाया, जिस के परिणामस्वरूप भीम ने हिडंबा को मौत के घाट उतार दिया.

हिडिंबा द्वारा अपने फायदे के लिए अपने भाई की हत्या करवाना यह साबित करता है कि एक स्त्री कुछ भी करा सकती. फिर चाहे वह राक्षस हो या एक सामान्य स्त्री.

महाभारत ने हिडिंबा को खलनायिका के रूप में प्रस्तुत नहीं किया क्योंकि उस का पुत्र घटोत्कच पांडवों के काम आया था. लड़ाकू औरतें जगह या समय नहीं देखतीं. वे देखती हैं  झगड़े का विषय. उन के लिए क्या सुबह क्या शाम, क्या दिन, क्या रात.

कार पार्किंग को ले कर लड़ाई

दिन और रात से परे झगड़े का एक ऐसा ही वाकेआ दिल्ली के ममता अपार्टमैंट में देखने को मिला. सुबहसुबह का समय था. बाहर से बहुत शोर आ रहा था. सोसाइटी में जा कर देखा तो जाग्रति राय और साक्षी सिंह लड़ रही थीं. पूछने पर पता चला कि दोनों कार पार्किंग की जगह को ले कर लड़ रही हैं.

साक्षी का कहना था कि इस जगह पर वह रोज अपनी कार पार्क करती है यह जानते हुए भी जाग्रति ने अपनी कार वहां पार्क कर दी,’’ जाग्रति अपनी बात रखते हुए कहती है कि रात को जब मैं अपनी कार पार्क करने आई तो यहां जगह खाली थी. इस के अलावा पूरी पार्किंग में कहीं जगह नहीं थी इसलिए मैं ने यहां कार पार्क कर दी.

सोसाइटी के प्रैसिडैंट ने समझबुझ कर दोनों को शांत कराया और उन्हें अपनीअपनी जगह पर ही कार पार्क करने की इंस्ट्रक्शन दी.

औरतों की इस तरह की हरकत उन के झगड़ालू नेचर को डिफाइन करने के लिए काफी है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि पढ़ीलिखी औरतें भी ऐसी हरकतें कर रही हैं. क्या वे अपने घर और वर्क प्लेस में भी ऐसा ही करती होंगी? यह भी सच है कि इस तरह की औरतों से लोग दूर ही रहना पसंद करते हैं क्योंकि सब को मैंटल पीस चाहिए.

चर्चा का विषय

लड़ाई झगड़े की कई घटनाएं स्कूलकालेजों में भी देखने को मिलती हैं. दिल्ली के संत नगर इलाके के एक स्कूल के बाहर 2 छात्राओं के बीच लड़ाई झगड़े का वीडियो कई दिनों तक सोशल साइट्स पर चर्चा का विषय बना रहा.

ऐसा ही एक वीडियो मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में स्थित गवर्नमैंट स्कूल से आया. इस वीडियो में स्कूल ग्राउंड में छात्राएं एकदूसरे को लातघूंसे मार रही थीं. लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उन में से एक छात्रा को हौस्पिटल में एडमिट कराना पड़ा. इस के बाद भी दूसरी छात्रा को चैन नहीं मिला. वह अपने साथियों को ले कर हौस्पिटल पहुंच गई जहां लोगों ने समझ बुझ कर उसे घर भेज दिया.

स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं की ऐसी हरकतें चिंता का विषय हैं. ऐसे में पेरैंट्स को बच्चों के विहेवियर पर ध्यान देने की जरूरत है.

हालांकि लड़ना झगड़ना सही नहीं है, लेकिन क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ये लड़कियां या औरतें लड़ती क्यों हैं? हो सकता है कि ऐसी लड़कियों या औरतों के साथ पहले ऐसी कोई घटना घटी हो जो उन के नेचर को ऐसा बना देती हो.

पास्ट ऐक्सपीरियंस को झगड़ालू नेचर का कारण बताते हुए प्रीति यादव बताती है, ‘‘मैं जब 6 साल की थी तब से मैं अपने मम्मीपापा को झगड़ते हुए देखती आई हूं. मेरे पेरैंट्स के लड़ाईझगड़े से मुझ में भी ये गुण आ गए. अब मैं छोटीछोटी बात पर गुस्सा हो कर सब से लड़ने झगड़ने लगती. मेरे इसी नेचर की वजह से सब धीरेधीरे मुझ से दूर हो गए हैं.’’

ऐसा ही एक किस्सा कानपुर की रहने वाली 19 वर्षीय श्वेता यादव बताती है कि जब वह 4 साल की थी तब से ही उस ने अपनी मां को पापा से पिटते देखा है. मां को इस तरह पिटते देख कर वह सहम जाती थी. लेकिन जब एक दिन मां ने अपने ऊपर हो रही हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई तो उन में भी बोलने की हिम्मत आ गई. आज वह भी कोई गलत बात नहीं सुन सकती.

अगर कोई उस से तेज आवाज में भी बात करता है तो वह उस से बहस करने लगती है. वह कहती है कि हर लड़की के गुस्से और उस के झगड़ालू स्वभाव के पीछे कोई न कोई वजह जरूर होती है. अगर उस वजह को दूर कर दिया जाए तो वह लड़की या औरत अपने नेचर को बदलने का भरसक प्रयास करती है.

आखिर वजह क्या है

औरतों के झगड़ालू स्वभाव के पीछे आखिर वजह क्या है? यह जानने के लिए उन के नेचर को समझना होगा. इसी संदर्भ में कई सर्वे किए गए है:

‘गैलप’ नाम की संस्था हर साल दुनियाभर में एक सर्वे करती है. 2012 से 2021 के बीच एक सर्वे किया गया. इस सर्वे में 150 देशों के 12 लाख लोगों को शामिल किया गया. सर्वे में यह सामने आया कि पिछले 10 सालों में औरतों में गुस्सा ज्यादा बढ़ा है. भारत और पाकिस्तान की औरतों में यह 12% यानी दोगुने स्तर पर पहुंच चुका है. हमारे देश में पुरुषों में गुस्सा जहां 27.8% है वहीं औरतों में यह 40% तक पहुंच चुका है.

झगड़ालू नेचर की सब से बड़ी वजह गुस्सा है. इस सर्वे में यह पता चला कि गुस्सा, उदासी, अवसाद और घबराहट जैसी नैगेटिव फीलिंग्स पुरुषों से ज्यादा औरतों में होती है. इस की वजह से औरतों में फ्रस्ट्रेशन, हाइपरटैंशन और गुस्से की समस्या तेजी से बढ़ी है.

अब दुनिया की ज्यादातर महिलाएं पहले के मुकाबले ज्यादा एजुकेटेड और सैल्फ डिपैंडैंट हुई हैं. महिलाओं में जौब कल्चर बढ़ने से उन में कौंन्फिडैंस पैदा हुआ. अब औरतें गलत चीजों के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं. असल में लड़ाई करने वाली औरतों को पहले बोलने की इजाजत नहीं थी. अब जब वे बोलने लगी हैं तो उन के अंदर भरा गुस्सा उन के ?ागड़े के रूप में बाहर निकल रहा है.

गुस्सा एक फीलिंग है

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले भानु यादव कहते हैं, ‘‘गुस्सा एक फीलिंग है. यह फीलिंग आदमीऔरत दोनों में ही होती है. हां, यह जरूर है कि अब औरतें भी अपनी फीलिंग्स ऐक्सप्रैस करने लगी हैं. इसलिए अब झगड़ालू औरतों की संख्या बढ़ रही है.

यह भी सही है कि लड़ाई झगड़ा अपने मन के भावों को ऐक्सप्रैस देने का एक जरीया है, लेकिन क्या लड़ाकू औरतों से रिश्ता निभाना आसान है? इस का उत्तर है नहीं क्योंकि ऐसी औरतें सिर्फ अपनी सुनती हैं. वे सामने वाले को रत्तीभर भी भाव नहीं देती हैं. ऐसी औरतें लड़ाई?ागड़े के लिए हर वक्त उतावली रहती हैं और दूसरों की शांति भंग करती हैं.

यह भी एक कड़वा सच है कि लड़ाकू लड़कियों का घर जल्दी नहीं बसता है और अगर बस भी जाता है तो यह ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता क्योंकि अपने बिहेवियर के कारण ये वहां भी लड़ाई?ागड़ा चालू कर देंगी.

प्रभावित होती शादीशुदा जिंदगी

शादीशुदा लड़ाकू औरतें अपने नेचर के कारण छोटीछोटी बातों पर भी लड़ने झगड़ने लगती हैं, जिस से उन के हसबैंड उन से इरिटेट होने लगते हैं और फिर वह उन से दूर रहने लगते हैं.

जयपुर की रहने वाली 24 वर्षीय मुक्ता सिंह और 27 वर्षीय जतिन साहू डेढ़ साल से लिव इन रिलेशनशिप में हैं. मुक्ता लड़ाकू स्वभाव की लड़की है. जबकि जतिन इस के उलट शांत स्वभाव का लड़का है. मुक्ता के लड़ाकू नेचर की वजह से उन के बीच आए दिन लड़ाई झगड़ा होता रहता है. मुक्ता को कई बार समझने के बाद भी वह अपनी आदत नहीं बदल रही है. जतिन कहता है कि इस रिलेशनशिप ने उसे मैंटल स्ट्रैस दे दिया है. अगर मुक्ता ने अपने इस नेचर को नहीं बदला तो वह इस रिलेशनशिप को जल्द ही खत्म कर देगा.

अंजलि छाबड़ा दिल्ली के रोहिणी वैस्ट इलाके में रहती है. वह बताती है कि उस का फ्रैंड राहुल मौर्य बचपन से ही लड़ाकू स्वभाव का है. बचपन में भी उस के इक्कादुक्का दोस्त ही थे. आज भी उस के 1-2 दोस्त ही हैं. उन के लड़ाकू स्वभाव के कारण ही उस की वाइफ संजना मौर्य उसे छोड़ कर चली गई.

दूरी बना कर चलें

लड़ाकू नेचर के लड़के या लड़की से शादी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे लोग आप का मैंटल पीस खत्म कर देंगे. अगर आप ने ऐसे लोगों से शादी कर भी ली तो आएदिन होने वाले लड़ाई झगड़ों से आप की शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी. इस से बेहतर है कि आप लड़ाकू लड़केलड़कियों से दूरी बना लें.

झगड़ालू प्रकृति की औरतें किसी के साथ मिल कर नहीं रह सकतीं. ऐसी औरतें हर तरफ से उपेक्षा पाती हैं. उन की इस उपेक्षा का कारण उन का लड़ाकू नेचर है. ऐसी औरतें हमेशा रिश्तेदारों और पड़ोसियों से लड़ती?ागड़ती रहती हैं. ऐसी औरतों के साथ रहने से रिश्तेदारों और पड़ोसियों से रिलेशन खराब हो जाते हैं. इतना ही नहीं लड़ाकू औरतें गुस्सैल नेचर की भी होती हैं.

चूंकि लड़ाकू लड़कियों और औरतों के साथ कोई रहना पसंद नहीं करता है इसलिए उन्हें यह सम?ाना चाहिए कि लड़ाई करना कब उन की आदत बन जाएगी, उन्हें पता भी नहीं चलेगा. अपने इस लड़ाकू स्वभाव की वजह से वे धीरेधीरे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को खो देंगी. उन्हें यह समझना चाहिए कि लड़ाई झगड़े में कुछ नहीं रखा है. इस से सिर्फ उन का समय और ऐनर्जी वेस्ट होगी. इसलिए ऐसे नेचर को बदलना ही सही होगा.

मिक्स वेज की बात ही अलग है

घर में किसी को लंच या डिनर पर इनवाइट किया हो और वह शाकाहारी हो तो सबसे पहले दिमाग में यही आता है कि क्या बनाया जाए. किसी को बैगन नहीं पसंद तो कोई पनीर नहीं खाता. फिर क्या बनाएं कि थाली की शान बढ़ जाए. ऐसे में मिक्स वेज सबसे बढि़या विकल्प होती है.

सीजनल सब्जियों के मिश्रण से बनी यह डिश बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को पसंद आती है. और अब आप इसमें सनराइज़ सब्जी मसाला से स्वाद का जादू भी जगा सकती हैं. इस मसाले के इस्तेमाल से आपको अलग-अलग मसालों का सही संतुलन बनाने के झंझट से मुक्ति तो मिलेगी ही, आप अपनी डिश भी कम समय में तैयार कर सकेंगी. अब किचन के काम से समय बचेगा तो मेहमानों के साथ ज्यादा समय भी बिता पाएंगी.

मिक्स वेज

सामग्री

  1. 2 कप सीजनल सब्जियां कटी
  2. 1 प्याज कटा
  3. 1 टमाटर कटा
  4. 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट
  5. 1 बड़ा चम्मच सनराइज़ सब्जी मसाला
  6. नमक स्वादानुसार
  7. तेल जरूरतानुसार
  8. थोड़ी सी धनियापत्ती गार्निश के लिए.

विधि

पैन में तेल गरम कर सब्जियों को हल्का फ्राई कर लें. अब इसी तेल में प्याज भूनें. अदरकलहसुन का पेस्ट भी मिलाएं और चलाते हुए भूनें. अब टमाटर मिक्स करें और टमाटर गलने तक भूनें. फिर सब्जियों को इसमे अच्छी तरह मिक्स करें. अब सनराइज़ सब्जी मसाला मिलाएं और मिक्स करके धीमी आंच पर ढक कर पकाएं. बीच में चलाती रहें ताकि सब्जियां जलें न. सब्जियां पक जाने पर थोड़ी देर चलाते हुए भूनें और फिर सर्विंग डिश में निकाल लें. धनियापत्ती से गार्निश कर परोसें.

प्रतिबद्धता: क्या था पीयूष की अनजाने में हुई गलती का राज?

बारिश शुरू हुई तो उस की पहली फुहार ने पेड़पौधों के पत्तों पर जमी धूल को धो दिया. मिट्टी से सोंधीसोंधी गंध उठने लगी. ठंडी हवा चलने लगी. सारी प्रकृति, जो अब तक गरमी से बेहाल थी बारिश से तृप्त हो जाना चाहती थी. पेड़पौधे ही नहीं, पशुपक्षी भी बारिश का आनंद लेने आ गए. कहीं गड्ढे में जमा पानी में चिडि़यों का झुंड पंख फड़फड़ाता हुआ खेल रहा था, तो कहीं छोटेछोटे बच्चे घरों से कागजों की नावें ला कर उन्हें पानी में तैराते हुए खुद भी भीग रहे थे. छतों पर कुंआरी ननदें और सयानी भाभियां भी भीगने के लोभ से बच न पाईं और बड़ों की आंखें बचा कर फुहारों में अपना आंचल भिगो कर एकदूसरे पर पानी के छींटे उड़ाने लगीं. घरों के बरामदों और गैलरियों में बड़ेबुजुर्गों की कुरसियां लग गईं और वे बैठ कर बारिश का आनंद लेने लगे.

इन सारी खुशियों के बीच खिड़की के कांच से बाहर देखती पलक के चेहरे पर खुशी बिलकुल नहीं थी. उस के चेहरे पर तो उदासी और दुख की घनी बदली छाई हुई थी. वह उदास चेहरा ले कर दुखी मन से बाहर की खुशियों को देख रही थी. सामने चंपा

के पेड़ की पत्तियों से पानी की बूंदें फिसलफिसल कर नीचे गिर रही थीं. पलक निर्विकार भाव से बूंदों का थमथम कर नीचे गिरना देख रही थी.

पलक के मातापिता बरामदे में खड़े ठंडी हवा का मजा ले रहे थे.

‘‘भई, आज तो पकौड़े खाने का मौसम है. प्याज के बढि़या कुरकुरे पकौड़े और गरमगरम चाय हो जाए,’’ पलक के पिता ने कहा.

‘‘मैं अभी बना कर लाती हूं,’’ कह कर पलक की मां रसोईघर में चली गईं. प्याज काट कर उन्होंने पकौड़े तले और चाय भी बना ली. पकौड़े और चाय टेबल पर रख कर उन्होंने पलक को आवाज लगाई.

‘‘तुम ने पलक से बात की?’’ पलक के पिता आनंदजी ने पूछा.

‘‘अभी नहीं की. सोच रही हूं 1-2 दिन में पूछूंगी,’’ अरुणा ने उत्तर दिया.

‘‘जल्दी बात करो. जब से आई है उदास और बुझीबुझी लग रही है. अच्छा नहीं लग रहा,’’ आनंदजी ने चिंतित स्वर में कहा.

तभी पलक के आने की आहट पा कर दोनों चुप हो गए. साल भर पहले ही तो उन्होंने बड़ी धूमधाम से पलक का विवाह किया था. पलक उन की एकलौती बेटी थी, इसलिए पलक का विवाह कहीं दूर करने का उन का मन नहीं था. वे चाहते थे कि पलक का विवाह इसी शहर में हो और इत्तफाक से पिछले साल उन की इच्छा पूरी हो गई.

पलक के लिए इसी शहर से रिश्ता आया. शादी हुई तो पीयूष के रूप में उन्हें दामाद नहीं बेटा मिल गया. उस के मातापिता भी बहुत सुलझे हुए और सरल स्वभाव के थे. पलक को उन्होंने बहू की तरह नहीं, बल्कि बेटी की तरह रखा. पलक भी अपने घर में बहुत प्रसन्न थी. जब भी मायके आती चहकती रहती. उस की हंसी में उस के मन की खुशी छलकती थी.

लेकिन इस बार बात कुछ अलग ही है. एक तो पलक अचानक ही अकेली चली आई है और जब से आई है, तब से दुखी लग रही है. उन दोनों के सामने वह सामान्य और खुश रहने की भरसक कोशिश करती है, लेकिन मातापिता की अनुभवी नजरों ने ताड़ लिया है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

पहले पलक 2 दिन के लिए भी मायके आती थी, तो पीयूष औफिस से सीधे यहीं आ जाता था और रात का खाना खा कर घर जाता था. दिन में भी कई बार पलक के पास उस का फोन आता था.

लेकिन इस बार 5 दिन हो गए पलक को घर आए, एक बार भी पीयूष उस से मिलने नहीं आया. यहां तक कि उस का फोन भी नहीं आया और पलक ने भी एक बार भी पीयूष को फोन नहीं किया. आनंद और अरुणा की चिंता स्वाभाविक थी. एकलौती बेटी का दुख से मुरझाया चेहरा उन से देखा नहीं जा रहा था.

रात का खाना खा कर पलक अपने कमरे में सोने चली गई. वह पलंग पर लेटी थी, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

8 दिन पहले जिंदगी क्या थी और अब कैसी हो गई. कितनी खुश थी वह पीयूष का प्यार पा कर. पूरी तरह उस के प्यार के रंग में रंग गई थी. सिर से पैर तक पीयूष के प्रेमरस में सराबोर थी. लेकिन पीयूष के जीवन के एक राज के खुलते ही उस की तो जैसे दुनिया ही बदल गई. कल तक जो पीयूष अपने दिल का एक टुकड़ा लगता था, अचानक ही इतना बेगाना, इतना अजनबी लगने लगा कि विश्वास ही नहीं होता था कि कभी दोनों की एक जान हुआ करती थी.

पीयूष, उस का पीयूष. कालेज के दिनों में दोस्तों ने एक पार्टी में उसे जबरदस्ती शराब पिला दी तो नशे में चूर हो कर उस ने रात में दोस्त के फार्महाउस पर एक लड़की को अपना एक कण दे दिया. उस का पीयूष पूरा नहीं है, खंडित हो चुका है. पलक को कभी पूरा पीयूष मिला ही नहीं था. उस का एक कण तो उस लड़की ने पहले ही ले लिया था. पलक के सामने सच बोल कर पीयूष ने अपने मन का बोझ हलका कर दिया, लेकिन तब से पलक का मन पीयूष के इस सच के बोझ तले छटपटा रहा है.

पीयूष के इस सच को वह सह नहीं पाई. उस सच ने उसे अचानक ही उस के पास से उठा कर बहुत दूर पटक दिया. पल भर में ही वह इतना पराया लगने लगा, मानो कभी अपना था ही नहीं. दोनों के बीच एक अजनबीपन पसर गया. अजनबी के अजनबीपन को सहना आसान होता है, लेकिन किसी बहुत अपने के अजनबीपन को सहना बहुत मुश्किल होता है. पलक जब अजनबीपन को बरदाश्त नहीं कर पाई तो यहां चली आई.

काश, पीयूष उसे कभी सच बताता ही नहीं. कितना सही कहा है किसी ने, सच अगर कड़वा बहुत है तो मीठे झूठ की छाया में जीना अच्छा लगता है. वह भी पीयूष के झूठ की छाया में सुख से जीवन बिता लेती. कम से कम उस के सच की आंच में जिंदगी यों झुलस तो न जाती.

उधर पीयूष पश्चात्ताप की आग में जल रहा था कि क्यों उस ने अपना यह राज अपने सीने से बाहर निकाला? क्यों नहीं छिपा कर रख पाया? दरअसल पलक का निश्छल प्यार, उस का समर्पण देख कर मन ही मन उसे ग्लानि होती थी. ऐसे में बरसों पहले की गई अपनी गलती को अपने मन में दबाए रखने पर एक अपराधबोध सा सालता रहता था हर समय. इसलिए अपने मन का बोझ उस ने भावुक क्षणों में पलक के सामने रख दिया.

मन में कहीं गहराई तक दृढ़ विश्वास था अपने प्यार पर कि वह उस की गलती को माफ कर देगी. अपने निर्मल और निश्छल प्रेम से उस के मन पर लगे दाग को धो डालेगी. उबार लेगी उसे इस ग्लानि से, जिस में वह बरसों से जल रहा है. क्षमा कर देगी उस अपराध को जो उस से अनजाने में हो गया था.

पीयूष का न तो उस घटना के पहले और न ही बाद में कभी किसी भी लड़की से कोई रिश्ता रहा है और उस लड़की के साथ भी रिश्ता कहां था. रिश्ते तो मन के होते हैं. वहां तो बस नशे की खुमारी में शरीर शामिल हो गए थे. मन से तो वह पूरी तौर पर बस पलक का ही था, है और रहेगा. लेकिन पलक के व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला दिया. क्या वह पलक को अब तक पूरी तरह जान नहीं पाया था? क्या उस के मन की थाह पाना अभी बाकी था?

लेकिन तीर अब कमान से निकल चुका था, जिस ने उस की प्यार भरी जिंदगी को

एक ही पल में बरबाद कर के रख दिया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि पलक के आहत मन को कैसे सांत्वना दे. उसे लगा था कि अपने प्यार से कोई भी बात छिपाना गलत है. लेकिन उस के इस सच से पलक को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचेगी, इस का अंदाजा उसे नहीं था. वह तो उस से बात तक नहीं कर रही. बेगानों जैसा बरताव हो गया है उस का.

इधर 8 दिनों में ही पीयूष वर्षों का बीमार लगने लगा है. उस का न काम में मन लगता है और न ही घर में.

दूसरे दिन अरुणाजी के पास पीयूष की मां का फोन आया, ‘‘अरुणाजी, आप ने पलक से कोई बात की क्या? मुझे तो कोई समझ में नहीं आ रहा है कि बच्चों को अचानक क्या हो गया. पलक बिना कुछ कहे अचानक चली गई. उस का फोन भी औफ है. यहां पीयूष भी गुमसुम सा कमरे में पड़ा रहता है. पूछने पर कुछ बताता ही नहीं है. पलक कैसी है, ठीक तो है न?’’ पीयूष की मां के स्वर में चिंता झलक रही थी.

‘‘पलक जब से आई है, तब से उदास और दुखी लग रही है. मैं ने 1-2 बार पूछना चाहा तो टाल गई, पर कुछ बात तो जरूर है. मैं आज उस से बात करूंगी. आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा,’’ अरुणाजी ने पीयूष की मां को आश्वासन दिया.

‘अब पलक से साफसाफ पूछना ही होगा. यहां पलक उदास है तो वहां पीयूष भी दुखी है. आखिर दोनों के बीच ऐसा क्या हो गया? यदि समय रहते बात को संभाला नहीं गया तो ऐसा न हो जाए कि बात और बिगड़ जाए. अब देर करना ठीक नहीं,’ अरुणाजी न तय किया.

दोपहर को पलक के पिता किसी काम से बाहर गए थे. पलक खाना खा कर अपने कमरे में लेटी थी. अरुणाजी को यही सही मौका लगा उस से बात करने का. अत: वे पलक के पास गईं.

‘‘पलक, क्या बात है बेटा, जब से आई हो परेशान लग रही हो? मुझे बताओ बेटा तुम्हारे और पीयूष के बीच सब ठीक तो है?’’ अरुणाजी ने प्यार से पलक का माथा सहलाते हुए पूछा.

मां का स्नेह भरा स्पर्श पाते ही पलक के अंतर्मन में जमा दुख पिघल कर आंखों के रास्ते बहने लगा. अरुणाजी ने उसे जी भर कर रोने दिया. वे जानती थीं कि रोने से जब मन में जमा दुख हलका हो जाएगा, तभी पलक कुछ बता पाएगी. वे चुपचाप उस की पीठ और केशों पर हाथ फेरती रहीं. जब पलक का मन हलका हुआ, तब उस ने अपनी व्यथा बताई. पीयूष की गलती कांटा बन कर उस के दिल में चुभ रही थी और अब वह यह दर्द बरदाश्त नहीं कर पा रही थी.

अरुणाजी पलक के सिर पर हाथ फेरती स्तब्ध सी बैठी रहीं. वे तो सोच रही थीं कि नई जगह में आपस में अभी पूरी तरह से सामंजस्य स्थापित नहीं हुआ है, तो छोटीमोटी तकरार हुई होगी, जिस के कारण दोनों दुखी होंगे. कुछ दिन में दोनों अपनेआप सामान्य हो जाएंगे. यही सोच कर आज तक उन्होंने पलक से जोर दे कर कुछ नहीं पूछा था. लेकिन यहां मामला थोड़ा पेचीदा है.

पलक के दिल में लगा कांटा निकालना मुश्किल होगा. समय के साथसाथ जब रिश्ते परिपक्व हो जाते हैं, तो उन में प्रगाढ़ता आ जाती है. दोनों के बीच विश्वास की नींव मजबूत हो जाती है, तब अतीत की गलतियों की आंधी रिश्ते को, विश्वास को डिगा नहीं पाती. लेकिन यहां रिश्ता अभी उतना परिपक्व नहीं हो पाया था. पीयूष ने अपने रिश्ते और पलक पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर लिया था. उसे थोड़ा धीरज रखना चाहिए था.

अरुणाजी समझ रही थीं कि इस समय पलक को कुछ भी समझाना व्यर्थ है. पलक का घाव अभी ताजा है. अपने दर्द में डूबी वह अभी अरुणाजी की बात समझ नहीं पाएगी. इसलिए उन्होंने 2 दिन सब्र किया.

मां से अपनी व्यथा कह कर पलक को अब काफी हलका लग रहा था. 2 दिन बाद वह रात में गैलरी में खड़ी थी, तब अरुणाजी उस के पास जा कर खड़ी हुईं.

‘‘तुझे दुख होना स्वाभाविक है पलक, क्योंकि तू पीयूष से प्यार करती है और उसे केवल अपने से जोड़ कर देखती है. इसलिए सच सुन कर तू हिल गई और तेरा भरोसा टूट गया.

‘‘पीयूष ने जो कुछ किया वह भावनाओं और उत्तेजना के क्षणिक आवेग में बह कर किया. उस संबंध का कोई अस्तित्व नहीं है. बरसात में जब पानी अधिक बरसता है तो कई नाले बन जाते हैं, जो नदी से भी अधिक आवेग के साथ बहते हैं, उफनते हैं, लेकिन बरसात खत्म होते ही वे सूख जाते हैं.

उन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. परंतु नदी शाश्वत होती है. वह बरसात के पहले भी होती है और बरसात खत्म होने के बाद भी उस का अस्तित्व कायम रहता है. वासना और सच्चे प्यार में यही अंतर है.

‘‘वासना बरसाती नाले के समान होती है, जो भावनाओं के ज्वार में उफनने लगती है और ज्वार के ठंडा होते ही उस का चिह्न भी जीवन में कहीं बाकी नहीं रहता. लेकिन सच्चा प्यार नदी की तरह शाश्वत होता है वह कभी नहीं सूखता.

सूखे की प्रतिकूल परिस्थिति में भी जिस प्रकार नदी अपनेआप को सूखने नहीं देती, मिटने नहीं देती, ठीक उसी प्रकार सच्चा प्यार भी जीवन से मिटता नहीं है. जीवन भर उस की धारा दिलों में बहती रहती है. तेरे प्रति पीयूष का प्यार उसी नदी के समान है,’’ अरुणाजी ने समझाया.

‘‘लेकिन मां मैं कैसे…’’ पलक कह नहीं पाई कि पीयूष के जिन हाथों ने कभी किसी और लड़की को छुआ है, अब पलक उन्हें अपने शरीर पर कैसे सहे? लेकिन अरुणाजी एक मां ही नहीं एक परिपक्व और सुलझी हुई स्त्री भी थीं. वे पलक के दुख के हर पहलू को समझ रही थीं.

‘‘प्रेम एवं प्रतिबद्धता एकदूसरे से जुड़े हुए जरूर हैं, पर किसी संबंध में पड़ने के पहले उस व्यक्ति का किसी के साथ क्या रिश्ता रहा है, कोई माने नहीं रखता. यदि कोई व्यक्ति पूर्णरूप से किसी के प्रति प्रतिबद्ध हो गया हो, तो उस के लिए पिछले सारे अनुभव शून्य के समान होते हैं.

अब पीयूष पूरी तरह से तेरे प्रति समर्पित है, इसलिए बरसों पहले उस ने एक रात क्या गलती की थी, यह बात आज कोई माने नहीं रखती. माने रखती है यह बात कि तुझ से जुड़ने के बाद वह तेरे प्रति पूर्णरूप से प्रतिबद्ध रहे बस,’’ अरुणाजी ने समझाया तो पलक सोच में पड़ गई. सचमुच साल भर में उसे कभी नहीं लगा कि पीयूष के प्यार में कोई खोट या छल है. वह तो एकदम निर्मलनिश्छल झरने की तरह है.

‘‘पर मां उस का सच मेरी सहनशीलता से बाहर है. मेरी नजर में अचानक ही पीयूष की मूर्ति खंडित हो गई है. मैं प्रेम की टूटी हुई मूर्ति के साथ कैसे रहूं? पीयूष ने

मुझे धोखा दिया है,’’ पलक आंसू पोंछती हुई बोली.

‘‘उस के झूठ पर तुझे एतराज नहीं था. तब तू खुश थी. लेकिन उस की ईमानदारी

को तू धोखा कह रही है. अगर धोखा ही देना होता तो वह उम्र भर यह बात तुझ से

छिपा कर रखता. जरा सोच, वह तुझे हृदय की गहराइयों से प्यार करता है. तुझे पूरे सम्मान से रखता है. तुझे अपने जीवन के सारे अधिकार दे दिए हैं उस ने, पर आज तू एक तुच्छ बात के लिए उस के सारे अच्छे गुणों को नकार रही है.

‘‘जरा सोच, यदि उस ने जीवन में कोई गलती नहीं की होती, लेकिन तुझे प्यार करता, तेरी भावनाओं का सम्मान करता, तुझे तेरे अधिकार देता, तब तू ज्यादा खुश रहती या अब ज्यादा खुश है? जीवन में अहम बात किसी की गलती नहीं, अहम बात है उसका प्यार मिलना. पीयूष अपना एक कण अनजाने में कभी किसी को बांट चुका है,

इस के लिए तू उसे खंडित कह रही है. एक कण के लिए पूरे को ठुकरा कर अपनी और पीयूष की जिंदगी बरबाद मत करो. वह वर्तमान समय में पूरे समर्पण से बस तुझे ही चाहता है. एक छोटी सी घटना पर उम्र भर के लिए किसी के प्यार और रिश्तों को तोड़ देना अक्लमंदी नहीं है,’’ अरुणाजी ने पलक के कंधे पर हाथ रख कर उसे समझाया.

पलक की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. आंखों  के सामने पीयूष का साल भर का प्यार, उस का सामंजस्य, उस की निश्छलता तैर रही थी.

उस से कोई गलती हो जाने पर वह कभी बुरा नहीं मानता था, उस की जिद पर कभी नाराज नहीं होता था. उस की छोटी से छोटी खुशी का भी कितना ध्यान रखता था. सचमुच मां ठीक कहती हैं. जीवन में बस किसी का सच्चा प्यार और प्रतिबद्धता ही महत्त्वपूर्ण है और कुछ नहीं. आज से वह भी पीयूष के प्रति पूर्णरूप से प्रतिबद्ध रहेगी.

‘‘तेरे चले जाने के बाद पीयूष ने खानापीना छोड़ दिया है. कल तेरे पिताजी उस से मिलने गए थे. वह वर्षों का बीमार लग रहा था. उस की वजह से तुझे जो दुख पहुंचा है उस का पश्चात्ताप है उसे. उसी की सजा दे रहा है वह अपनेआप को. तेरी पीड़ा का एहसास तुझ से भी अधिक उसे है. तेरा दर्द वह तुझ से ज्यादा महसूस कर रहा है. इसीलिए तड़प रहा है. अब भी कहेगी कि उस ने तुझे धोखा दिया है?’’ अरुणाजी ने पूछा तो पलक बिलख पड़ी.

‘‘मैं अभी इसी समय पीयूष के पास जाऊंगी मां, उस से माफी मांगूंगी.’’

‘‘कहीं जाने की जरूरत नहीं है. यहीं है पीयूष. मैं उसे भेजती हूं,’’ कह कर अरुणाजी चली गईं.

2 मिनट में ही पीयूष गैलरी में आ कर खड़ा हो गया. पलक कुछ कहना चाह रही थी पर गला रुंध गया. वह पीयूष के सीने से लग कर फफक पड़ी. उस के आंसुओं ने गलतियों के सारे चिह्न धो दिए. दोनों के दिलों और आंखों में सच्चे प्यार की निर्मल और शाश्वत नदी बह रही थी, एकदूसरे के प्रति अपनी पूरी प्रतिबद्धता के साथ.

प्रेम विवाह: अभिजित ने क्यों लिया तलाक का फैसला?

Raksha Bandhan: ज्योति- सुमित और उसके दोस्तों ने कैसे निभाया प्यारा रिश्ता

दूसरी नौकरी की तलाश में सुबह का निकला रोहन देरशाम ही घर लौट पाता था. उस का दिनभर दफ्तरों के चक्कर लगाने में गुजर जाता. मगर नई नौकरी मिलना आसान नहीं था. कहीं मनमुताबिक तनख्वाह नहीं मिल रही थी तो कहीं काम उस की योग्यता के मुताबिक नहीं था. जिंदगी की कड़वी हकीकत जेब में पड़ी डिगरियों को मुंह चिढ़ा रही थी.

सुमित और मनीष ने रोहन की मदद करने के लिए अपने स्तर पर कोशिश की, मगर बात कहीं बन नहीं पा रही थी.

एक के बाद एक इंटरव्यू देदे कर रोहन का सब्र जवाब देने लगा था. अपने भविष्य की चिंता में उस का शरीर सूख कर कांटा हो चला था. पास में जो कुछ जमा पूंजी थी वह भी कब तक टिकती, 2 महीने से तो वह अपने हिस्से का किराया भी नहीं दे पा रहा था.

सुमित और मनीष उस की स्थिति समझ कर उसे कुछ कहते नहीं थे. मगर यों भी कब तक चलता.

सुबह का भूखाप्यासा रोहन एक दिन शाम को जब घर आया तो सारा बदन तप रहा था. उस के होंठ सूख रहे थे. उसे महसूस हुआ मानो शरीर में जान ही नहीं बची. ज्योति उसे कई दिनों से इस हालत में देख रही थी. इस वक्त वह शाम के खाने की तैयारी में जुटी थी. रोहन सुधबुध भुला कर मय जूते के बिस्तर पर निढाल पड़ गया.

ज्योति ने पास जा कर उस का माथा छुआ. रोहन को बहुत तेज बुखार था. वह पानी ले कर आई. उस ने रोहन को जरा सहारा दे कर उठाया और पानी का गिलास उस के मुंह से लगाया. ‘‘क्या हाल बना लिया है भैया आप ने अपना?’’

‘‘ज्योति, फ्रिज में दवाइयां रखी हैं, जरा मुझे ला कर दे दो,’’ अस्फुट स्वर में रोहन ने कहा.

दवाई खा कर रोहन फिर से लेट गया. सुबह से पेट में कुछ गया नहीं था, उसे उबकाई सी महसूस हुई. ‘‘रोहन भैया, पहले कुछ खा लो, फिर सो जाना,’’ हाथ में एक तश्तरी लिए ज्योति उस के पास आई.

रोहन को तकिए के सहारे बिठा कर ज्योति ने उसे चम्मच से खिचड़ी खिलाई बिलकुल किसी मां की तरह जैसे अपने बच्चों को खिलाती है.

रोहन को अपनी मां की याद आ गई. आज कई दिनों बाद उसी प्यार से किसी ने उसे खिलाया था. दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो उस की तबीयत में सुधार था. बुखार अब उतर चुका था, लेकिन कमजोरी की वजह से उसे चलनेफिरने में दिक्कत हो रही थी. सुमित और मनीष ने उसे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी. साथ ही, हौसला भी बंधाया कि वह अकेला नहीं है.

ज्योति उस के लिए कभी दलिया तो कभी खिचड़ी पकाती और बड़े मनुहार से खिलाती. रोहन उसे अब दीदी बुलाने लगा था.

‘‘दीदी, आप को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं फिलहाल, मगर वादा करता हूं नौकरी लगते ही आप का सारा पैसा चुका दूंगा,’’ रोहन ने ज्योति से कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो रोहन भैया. आप बस, जल्दी से ठीक हो जाओ. मैं आप से पैसे नहीं लूंगी.’’

‘‘लेकिन, मुझे इस तरह मुफ्त का खाने में शर्म आती है,’’ रोहन उदास था.

‘‘भैया, मेरी एक बेटी है 10 साल की, स्कूल जाती है. मेरा सपना है कि मेरी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने. पर मेरे पास इतना वक्त नहीं कि उसे घर पर पढ़ा सकूं और उसे ट्यूशन भेजने की मेरी हैसियत नहीं है. घर का किराया, मुन्नी के स्कूल की फीस और राशनपानी के बाद बचता ही क्या है. अगर आप मेरी बेटी को ट्यूशन पढ़ा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी. आप से मैं खाना बनाने के पैसे नहीं लूंगी, समझ लूंगी वही मेरी पगार है.’’

बात तो ठीक थी. रोहन को भला क्या परेशानी होती. रोज शाम मुन्नी अब अपनी मां के साथ आने लगी. रोहन उसे दिल लगा कर पढ़ाता.

ज्योति कई घरों में काम करती थी. उस ने अपनी जानपहचान के एक बड़े साहब को रोहन का बायोडाटा दिया. रोहन को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. मेहनती और योग्य तो वह था ही, इस बार समय ने भी उस का साथ दिया और उस की नौकरी पक्की हो गई.

सुमित और मनीष भी खुश थे. रोहन सब से ज्यादा एहसानमंद ज्योति का था. जिस निस्वार्थ भाव से ज्योति ने उस की मदद की थी, रोहन के दिल में ज्योति का स्थान अब किसी सगी बहन से कम नहीं था. ज्योति भी रोहन की कामयाबी से खुश थी, साथ ही, उस की बेटी की पढ़ाई को ले कर चिंता भी हट चुकी थी. घर में जिस तरह बड़ी बहन का सम्मान होता है, कुछ ऐसा ही अब ज्योति का सुमित और उस के दोस्तों के घर में था.

ज्योति की उपस्थिति में ही बहुत बार नेहा मनीष से मिलने घर आती थी. शुरूशुरू में मनीष को कुछ झिझक हुई, मगर ज्योति अपने काम से मतलब रखती. वह दूसरी कामवाली बाइयों की तरह इन बातों को चुगली का साधन नहीं बनाती थी.

मनीष और नेहा की एक दिन किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई. ज्योति उस वक्त रसोई में अपना काम कर रही थी. दोनों की बातें उसे साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

मनीष के व्यवहार से आहत, रोती हुई नेहा वहां से चली गई. उस के जाने के बाद मनीष भी गुमसुम बैठ गया.

ज्योति आमतौर पर ऐसे मामले में नहीं पड़ती थी. वह अपने काम से काम रखती थी, मगर नेहा और मनीष को इस तरह लड़ते देख कर उस से रहा नहीं गया. उस ने मनीष से पूछा तो मनीष ने बताया कि कुछ महीनों से शादी की बात को ले कर नेहा के साथ उस की खटपट चल रही है.

‘‘लेकिन भैया, इस में गलत क्या है? कभी न कभी तो आप नेहा दीदी से शादी करेंगे ही.’’

‘‘यह शादी होनी बहुत मुश्किल है ज्योति. तुम नहीं समझोगी, मेरे घर वाले जातपांत पर बहुत यकीन करते हैं और नेहा हमारी जाति की नहीं है.’’

‘‘वैसे तो मुझे आप के मामले में बोलने का कोई हक नहीं है मनीष भैया, मगर एक बात कहना चाहती हूं.’’

मनीष ने प्रश्नात्मक ढंग से उस की तरफ देखा.

‘‘मेरी बात का बुरा मत मानिए मनीष भैया. नेहा दीदी को तो आप बहुत पहले से जानते हैं, मगर जातपांत का खयाल आप को अब आ रहा है. मैं भी एक औरत हूं. मैं समझ सकती हूं कि नेहा दीदी को कैसा लग रहा होगा जब आप ने उन्हें शादी के लिए मना किया होगा. इतना आसान नहीं होता किसी भी लड़की के लिए इतने लंबे अरसे बाद अचानक संबंध तोड़ लेना. यह समाज सिर्फ लड़की पर ही उंगली उठाता है. आप दोनों के रिश्ते की बात जान कर क्या भविष्य में उन की शादी में अड़चन नहीं आएगी? क्या नेहा दीदी और आप एकदूसरे को भूल पाएंगे? जरा इन बातों को सोच कर देखिए.

‘‘अब आप को जातपांत का ध्यान आ रहा है, तब क्यों नहीं आया था जब नेहा दीदी के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा?’’ ज्योति कुछ भावुक स्वर में बोली. उसे मन में थोड़ी शंका भी हुई कि कहीं मनीष उस की बातों का बुरा न मान जाए, आखिर वह इस घर में सिर्फ एक खाना पकाने वाली ही थी.

Raksha Bandhan: ज्योति- सुमित और उसके दोस्तों ने कैसे निभाया प्यारा रिश्ता

औरत ने सुमित को महीने की पगार बताई और साथ ही, यह भी कि वह एक पैसा भी कम नहीं लेगी.

दोनों दोस्तों ने सवालिया निगाहों से एकदूसरे की तरफ देखा. पगार थोड़ी ज्यादा थी, मगर और चारा भी क्या था. ‘‘हमें मंजूर है,’’ सुमित ने कहा. आखिरकार खाने की परेशानी तो हल हो जाएगी.

‘‘ठीक है, मैं कल से आ जाऊंगी,’’ कहते हुए वह जाने के लिए उठी.

‘‘आप ने नाम नहीं बताया?’’ सुमित ने उसे पीछे से आवाज दी.

‘‘मेरा नाम ज्योति है,’’ कुछ सकुचा कर उस औरत ने अपना नाम बताया और चली गई.

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही ज्योति आ गई थी. रसोई में जो कुछ भी पड़ा था, उस से उस ने नाश्ता तैयार कर दिया.

आज कई दिनों बाद सुमित और मनीष ने गरम नाश्ता खाया तो उन्हें मजा आ गया. रोहन अभी तक सो रहा था, तो उस का नाश्ता ज्योति ने ढक कर रख दिया था.

‘‘भैयाजी, राशन की कुछ चीजें लानी पड़ेंगी. शाम का खाना कैसे बनेगा? रसोई में कुछ भी नहीं है,’’ ज्योति दुपट्टे से हाथ पोंछते हुए सुमित से बोली.

सुमित ने एक कागज पर वे सारी चीजें लिख लीं जो ज्योति ने बताई थीं. शाम को औफिस से लौटता हुआ वह ले आएगा.

रोहन को अब तक इस सब के बारे में कुछ नहीं पता था. उसे जब पता चला तो उस ने अपने हिस्से के पैसे देने से साफ इनकार कर दिया. ‘‘बहुत ज्यादा पगार मांग रही है वह, इस से कम पैसों में तो हम आराम से बाहर खाना खा सकते हैं.’’

‘‘रोहन, तुम को पता है कि बाहर का खाना खाने से मेरी तबीयत खराब हो जाती है. कुछ पैसे ज्यादा देने भी पड़ रहे तो क्या हुआ, सुविधा भी तो हमें ही होगी.’’

‘‘हां, सुमित ठीक कह रहा है. घर के बने खाने की बात ही कुछ और है,’’ सुबह के नाश्ते का स्वाद अभी तक मनीष की जबान पर था.

लेकिन रोहन पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा. वह जिद पर अड़ा रहा कि वह अपने हिस्से के पैसे नहीं देगा और अपने खाने का इंतजाम खुद कर कर लेगा.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी’’, सुमित बोला, उसे पता था रोहन अपने मन की करता है.

थोड़े ही दिनों में ज्योति ने रसोई की बागडोर संभाल ली थी. ज्योति के हाथों के बने खाने में सुमित को मां के हाथों का स्वाद महसूस होता था.

ज्योति भी उन की पसंदनापसंद का पूरा ध्यान रखती. अपने परिवार से दूर रह रहे इन लड़कों पर उसे एक तरह से ममता हो आती. अन्नपूर्णा की तरह अपने हाथों के जादू से उस ने रसोई की काया ही पलट दी थी.

कई बार औफिस की भागदौड़ से सुमित को फुरसत नहीं मिल पाती तो वह अकसर ज्योति को ही सब्जी वगैरह लाने के पैसे दे देता.

जिन घरों में वह काम करती थी, उन में से अधिकांश घरों की मालकिनें अव्वल दर्जे की कंजूस और शक्की थीं. नापतौल कर हरेक चीज का हिसाब रख कर उसे खाना पकाना होता था. सुमित या मनीष ज्योति से कभी, किसी चीज का हिसाब नहीं पूछते थे. इस बात से उस के दिल में इन लड़कों के लिए एक स्नेह का भाव आ गया था.

अपनी हलकी बीमारी में भी वह उन के लिए खाना पकाने चली आती.

एक शाम औफिस से लौटते वक्त रास्ते में सुमित की बाइक खराब हो गई. किसी तरह घसीटते हुए उस ने बाइक को मोटर गैराज तक पहुंचाया.

‘‘क्या हुआ? फिर से खराब हो गई?,’’ गैराज में काम करने वाला नौजवान शकील ग्रीस से सने हाथ अपनी शर्ट से पोंछता हुआ सुमित के पास आया.

‘‘यार, सुरेश कहां है? यह तो उस के हाथ से ही ठीक होती है, सुरेश को बुलाओ.’’

जब भी उस की बाइक धोखा दे जाती, वह गैराज के सीनियर मेकैनिक सुरेश के ही पास आता और उस के अनुभवी हाथ लगते ही बाइक दुरुस्त चलने लगती.

शकील सुरेश को बुलाने के लिए गैराज के अंदर बने छोटे से केबिन में चला गया. थोड़ी ही देर में मध्यम कदकाठी के हंसमुख चेहरे वाला सुरेश बाहर आया. ‘‘माफ कीजिए सुमित बाबू, हम जरा अपने लिए दोपहर का खाना बना रहे थे.’’

‘‘आप अपना खाना यहां गैराज में बनाते हैं? परिवार से दूर रहते हैं क्या?’’ सुमित ने हैरानी से पूछा. इस गैराज में वह कई सालों से काम कर रहा था. अपने बरसों के अनुभव और कुशलता से आज वह इस गैराज का सीनियर मेकैनिक था. ऐसी कोई गाड़ी नहीं थी जिस का मर्ज उसे न पता हो, इसलिए हर ग्राहक उसे जानता था.

‘‘अब क्या बताएं, 2 साल पहले घरवाली कैंसर की बीमारी से चल बसी. तब से यह गैराज ही हमारा घर है. कोई बालबच्चा हुआ नहीं, तो परिवार के नाम पर हम अकेले हैं. बस, कट रही है किसी तरह. लाइए, देखूं क्या माजरा है?’’

‘‘सुरेश, पिछली बार आप नहीं थे तो राजू ने कुछ पार्ट्स बदल कर बाइक ठीक कर दी थी. अब तो तुम्हें ही अपने हाथों का कमाल दिखाना पड़ेगा,’’ सुमित बोला.

सुरेश ने दाएंबाएं सब चैक किया, इंजन, कार्बोरेटर सब खंगाल डाला. चाबी घुमा कर बाइक स्टार्ट की तो घरर्रर्र की आवाज के साथ बाइक चालू हो गई.

‘‘देखो भाई, ऐसा है सुमित बाबू, अब इस को तो बेच ही डालो. कई बरस चल चुकी है. अब कितना खींचोगे? अभी कुछ पार्ट्स भी बदलने पड़ेंगे. उस में जितना पैसा खर्च करोगे उस से तो अच्छा है नई गाड़ी ले लो.’’

‘‘तुम ही कोई अच्छी सी सैकंडहैंड दिला दो,’’ सुमित बोला.

‘‘अरे यार, पुरानी से अच्छा है नईर् ले लो,’’ सुरेश हंसते हुए बोला.

‘‘बात तो तुम्हारी सही है, मगर थोड़ा बजट का चक्कर है.’’

‘‘हूं,’’ सुरेश कुछ सोचने की मुद्रा में बोला, ‘‘कोई बात नहीं, बजट की चिंता मत करो. मेरा चचेरा भाई एक डीलर के पास काम करता है. उस को बोल कर कुछ डिस्काउंट दिलवा सकता हूं, अगर आप कहो तो.’’

सुमित खिल गया, कब से सोच रहा था नई बाइक लेने के लिए. कुछ डिस्काउंट के साथ नई बाइक मिल जाए, इस से बढि़या क्या हो सकता था. उस ने सुरेश का धन्यवाद किया और नई बाइक लेने का मन बना लिया.

‘‘ठीक है सुरेश, मैं अगले ही महीने ले लूंगा नई गाड़ी. बस, आप जरा डिस्काउंट अच्छा दिलवा देना.’’

‘‘उस की फिक्र मत करो सुमित बाबू, निश्ंिचत रहो.’’

लगभग 45 वर्ष का सुरेश नेकदिल इंसान था. सुमित ने उसे सदा हंसतेमुसकराते ही देखा था. मगर वह अपनी जिंदगी में एकदम अकेला है, इस बात का इल्म उसे आज ही हुआ.

इधर कुछ दिनों से रोहन बहुत परेशान था. औफिस में उस के साथ हो रहे भेदभाव ने उस की नींद उड़ा रखी थी. रोहन के वरिष्ठ मैनेजर ने रोहन के पद पर अपने किसी रिश्तेदार को रख लिया था और रोहन को दूसरा काम दे दिया गया जिस का न तो उसे खास अनुभव था न ही उस का मन उस काम में लग रहा था. अपने साथ हुई इस नाइंसाफी की शिकायत उस ने बड़े अधिकारियों से की, लेकिन उस की बातों को अनसुना कर दिया गया. नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह उस की शिकायतें दब कर रह गई थीं. आखिरकार, तंग आ कर उस ने नौकरी छोड़ दी.

Vanraj पहुंचा Anupama से मदद मांगने, अनु ने किया इनकार

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ सीरियल में आए दिन हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिलता है. इधर सीरियल में अंकुश के नाजायस बच्चे की एंट्री हो गई. वहीं शो में वनराज के सामने काव्या के बच्चे का राज खुल गया है. ‘अनुपमा’ के बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि वनराज काव्या के सच जानने के बाद उसे कुछ नहीं कहता वनराज की यही चुप्पी काव्या से काव्या को डर रहा है.

वहीं रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि वनराज काव्या से मिले धोखे के बाद दर्द में कपाड़िया हाउस पहुंच जाएगा. वहां पर अनुपमा के सामने अपने दिल को हल्का करने की कोशिश करेगा.

 

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अनुज से भड़ास निकालेगी अनुपमा

सीरियल ‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कि अनुज अनुपमा को अंकुश के नाजायस बच्चे के बारे में सब कुछ बता देता है. उस दौरान अनुपमा हैरान रह जाती है और कहती है कि ये किस समाज के लोग हैं. इन लोगों को घर, परिवार और समाज कुछ नहीं देखते.

ये लोग अपने फायदे और सुख के लिए सब कुछ पीछे छोड़ देते हैं. इस दौरान अनुज उसे शांत करवाता है और सोने की सलाह देता है. उसी समय अनुपमा काव्या को फोन करती है और अनुपमा को पता चलता है कि वनराज घर पर नहीं है ऐसे में अनुपमा काव्या से कहती है कि वह जल्द से जल्द सब कुछ ठीक करें.

वनराज को अपनी गलती का एहसास होगा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ सीरियल में आगे देखने को मिलेगा कि वनराज कपाड़िया हाउस के बाहर अनुपमा से मिलेगा. अनुपमा उसे समझाती है कि उसे काव्या से बात करनी चाहिए. इस पर वनराज कहता है कि मैं उसका नाम भी नहीं सुन पा रहा हूं. बात करना तो दूर की बात है. मैं वनराज शाह हूं तो हमेशा मैं ही गलत हूं. क्या मैं कभी विक्टिम नहीं हो सकता.

इस दौरान वनराज अनुपमा से पूछता है कि तुमने मेरा धोखा कैसे बर्दाश्त किया? मैंने तो बहुत सारे बहाने बनाए थे. अनुपमा वनराज के इस सवाल का जवाब नहीं देती और बोलती है कि आप अपने आज पर ध्यान दें. ऐसे में वनराज मर्दों पर समाज के दबाव का जिक्र करता है.

Naagin 7: प्रियंका चाहर चौधरी और प्रतीक सहजपाल की बनेगी जोड़ी!

टीवी का सबसे पॉपुलर शो ‘नागिन 7’ का फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. अब तक के 6 सीजन को दर्शकों ने ढ़ेर सारा प्यार दिया है. वहीं अब सीजन 7 में लीड स्टार्स कौन होंगे इसकी चर्चा भी जोरों पर हैं. नागिन सीजन 6 को दर्शकों से खूब प्यार मिला था. दर्शक हमेशा एक सीजन खत्म होने के बाद दूसरे सीजन का इंतजार करते है. वहीं नागिन सीजन 6 में तेजस्वी प्रकाश लीड भूमिका में नजर आई थी. अब एकता कपूर ने नागिन 7 सीजन तैयारी शुरु कर दी है.

नागिन 7 में में नजर आएंगे प्रतीक सहजपाल

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एकता कपूर अपने हिट सुपरनैचुरल शो के सातवें सीजन की तैयारी कर रही हैं.’ नागिन 7’ कभी भी टेलीकस्ट हो सकता है. दूसरी ओर मेकर्स ने शो के लिए लीड स्टार्स को चयन कर लिया है. ‘बिग बॉस 16’ फेम प्रियंका चाहर चौधरी का नाम काफी समय से चर्चा में है और ऐसा कहा जा रहा है कि एक्ट्रेस ‘नागिन 7’ में लीड रोल निभा सकती हैं और अब रिपोर्ट के मुताबिक ‘नागिन 6’ के मेल लीड एक्टर प्रतीक सहजपाल को सातवें सीजन में भी मुख्य भूमिका निभाने के लिए फाइनल कर लिया गया है.

आपको बता दें, प्रतीक सहजपाल नागिन 6 में रूद्र रायचंद्र की भूमिका में नजर आए थे. उनके परफॉर्मेंस को जनता ने खूब सराहा था. इसी वजह से शो के मेकर्स नागिन के इस सीजन में प्रतीक के किरदार को पुनर्जीवित कर रहे है.

 

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क्या नागिन 7 में नजर आएंगी प्रियंका चाहर चौधरी?

एकता कपूर के बिग बॉस में जाने से प्रियंका चाहर चौधरी के नाम की अटकलें तेज होने लगी थी. हालांकि, प्रियंका ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि “मैं अभी कुछ भी कंफर्म नहीं कर सकती. “खैर, अगर प्रियंका और प्रतीक नागिन सीजन 7 के लिए कन्फर्म हो जाते हैं तो दर्शकों को स्क्रीन पर एक फ्रेश जोड़ी देखने को मिलेगी. अब ये देखना होगा कि प्रियंका और प्रतीक दर्शकों के दिलों में अच्छी जगह बना पाते हैं क्या?

खूंटियों पर लटके हुए: भाग -3

आज तक पढ़ी जासूसी कहानियां याद आने लगीं. एक दिन दफ्तर में देर से पहुंच जाएंगे, उस ने सोचा. फिर सोचने लगा कि यह देश बड़ा पिछड़ा हुआ है. विदेशों की तरह यहां पर भी यदि जासूसी एजेंसी होती तो कुछ रुपए खर्च कर के वह पत्नी की गतिविधियों की साप्ताहिक रिपोर्ट लेता रहता. तत्काल सारी बातें साफ हो जातीं. पहचाने जाने का भय भी न रहता.

पत्नी सीधी सामान्य चाल से चलती रही. प्रतिक्षण वह कल्पना करता रहा, अब वह किसी दूसरी राह या गली में मुड़ेगी या कोई आदमी उस से राह में बाइक या कार में मिलेगा. कितु सभी अनुमान गलत साबित करती हुई वह सीधे स्कूल पहुंची. दरबान ने द्वार खोला, वह भीतर चली गई.

वह भी स्कूल पहुंचा. गार्ड ने बड़े रूखे शब्दों में पूछा, ‘‘व्हाट कैन आई डू फौर यू?’’

‘‘जरा एक काम था, एक टीचर से.’’

‘‘किस से?’’ गार्ड की आंखों में सतर्कता का भाव आ गया.

उस ने लापरवाही दिखाते हुए अपनी अक्षरा का ही नाम बताया और कहा, ‘‘इन्हें तो जानते

ही होंगे, उन से मिलने तो रोज कोई न कोई आता ही होगा.’’

‘‘कोई नहीं आता साहब,’’ गार्ड ने बताया, ‘‘आप को धोखा हुआ है. दूसरी टीचर्स से

मिलने वाले तो आते रहते हैं, पर उन से मिलने तो आज तक कोई नहीं आया यहां. कहें तो

बुला दूं?’’

‘‘नहीं, जरूर नाम में कुछ धोखा हो रहा है. मैं बाद में ठीक पता कर के आऊंगा.’’

वह दफ्तर चला गया. राह में और दफ्तर में भी दिमागी उलझन बनी रही.

दोपहर में एक कौफी शौप में कौफी पीते वक्त उस के दिमाग में एक नई बात कौंधी. वह दफ्तर से 6 बजे तक घर लौटता है. पत्नी स्कूल से 3 बजे तक लौट आती है. बीच के 2 घंटे.

इस बीच कोई आता होगा? नौकरानी 3 बजे तक काम कर के चली जाती है. घर में वही अकेली रहती है.

इस शंका ने उसे इतना उद्विग्न कर दिया कि चाय पीते हुए वह एक निश्चिय पर पहुंचा. उस ने सड़क पर एक दवा की दुकान पर जा कर लैंड लाइन से यूनिवर्सल गैराज को फोन किया. सुरेश वहीं काम करता है. फोन रिसैप्शनिस्ट ने उठाया. उस ने अपना नाम बताए बिना अपनी पत्नी का नाम ले कर कहा कि

सुरेश को इन्होंने 3 बजे घर बुलाया है और फोन रख दिया. खुद वह सिरदर्द के बहाने छुट्टी ले कर ढाई बजे ही घर लौट आया. सावधानी से इधरउधर देख कर अपने पास की चाबी से ताला खोला और भीतर जा कर पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चक्कर लगा कर बाहरी द्वार पर पहुंचा. ताला बाहर से पूर्ववत लगा कर फिर पिछवाड़े से भीतर आ पहुंचा. दरवाजा भीतर से बंद कर सोचने लगा कहां छिप कर बैठे. पलंग के नीचे. यह ठीक न रहेगा. वहां लंबे समय तक छिपे रहना पड़ सकता है.

अंत में सोचविचार कर कपड़ों के बड़े से रैक के पीछे जा खड़ा हुआ. यहां सोने के कमरे की ?ांकी भी मिलती है और रैक पर पड़े कपड़ों, परदों के भारी ढेर में से उसे बाहर से कोई देख भी नहीं सकेगा.

खड़ेखड़े थकने के बाद भी वह वहीं खड़ा रहा. धीरेधीरे 3 बजे, फिर 3 बज गए.

3-25 पर बाहरी ताले के खटकने की आवाज आई. उस की तमाम नसें तन गईं. दम साधे वह खड़ा रहा. पद्चाप सुनाई दी और पत्नी अक्षरा सीधी बैठक में आई और दरवाजा भीतर से बंद कर लिया.

उसे आश्चर्य हुआ कि सुरेश अभी तक क्यों नहीं पहुंचा. अक्षरा ने साड़ी खोल कर रैक पर उछाल दी.

पीछे से वह उस के सिर पर भी पड़ी, पर बिना हिलेडुले वहीं खड़ा रहा. दरार में से देखता रहा. ब्लाउज उतरा, ब्रा हटी. उस की पत्नी का यौवन पूर्ववत बरकरार था. ऐसी आकर्षक लगती है और कैसे कहे कि वह… पेटीकोट खोल कर उस की पत्नी ने रैक पर डाल दिया और स्नानगृह में जा घुसी.

वह अपनी उखड़ी तेज सांसों को व्यवस्थित करने लगा. पत्नी को यों चोरी से सर्वथा नग्न देख कर उसे ऐसा लगा कि जैसे पहली बार देख रहा हो. वह उसे बहुत दूर की अप्राप्य वस्तु लगी. वह भूल गया कि वह उस की पत्नी ही है.

जब वह नहा कर निकली तो उस के शीशे की तरह चमकते शरीर पर पानी की मोती जैसी बूंदें बड़ी भली लग रही थीं. उस ने एक बड़ा तौलिया ले कर शरीर सुखाया, बाल यथावत जूड़े में बंधे थे, उस ने उन्हें भिगोया नहीं था. वह दूसरे कपड़े पहनने लगी. ब्रा एवं टीशर्ट और पैंट पहन कर बाहर निकली. उस ने मन में खैर मनाई कि वह हिंदी फिल्मों की तरह कपड़ों की अलमारी में नहीं छिपा.

थोड़ी देर बाद बाहर से घंटी बजने की आवाज आई तो उस की धड़कनें तेज होने लगीं. उसे पत्नी की पद्चाप बैठक की ओर जाती सुनाई दी और उस की आवाज भी, ‘‘कौन है?’’

‘‘भाभी, मैं हूं, सुरेश,’’ उस की आवाज आई.

उस का मन उछल पड़ा. आखिर प्रतीक्षा रंग लाई. अब देखेगा वह उन्हें.

उस ने दरवाजा खुलने की आहट सुनी और पत्नी की तेज आवाज भी, ‘‘सुरेश, आज इस वक्त कैसे आए?’’

‘‘तुम्हीं ने तो फोन किया था 3 बजे के बाद आने के लिए.’’

‘‘फोन किया था मैं ने? तुम्हें कोई गलतफहमी हो रही है. मैं क्यों तुम्हें इस वक्त बुलाऊंगी?’’

‘‘वाह भाभी, पहले तो बुला लिया, अब ऐसा कह रही हो. भीतर तो आने दो जरा…’’

‘‘देखो भई, इस वक्त तुम जाओ. शाम को महेश के रहने पर आना तो बातें होंगी. मैं ने सचमुच कोई फोन नहीं किया है. उन की अनुपस्थिति में तुम्हारा यहां आना ठीक नहीं.

अभी तो मुझे स्कूल का बहुत काम करना है. जाओ शाम को आना.’’

पत्नी की आखिरी बात में कड़ाई थी. सुरेश के अच्छा कह कर लौटने की आहट उस ने स्पष्ट सुनी. द्वार फिर बंद हो गया और पत्नी वापस शयनकक्ष में लौट आई.

उसे जरा निराशा सी हुई पर मन में एक अजीब सा सुकून भी आने लगा. दिलदिमाग में खोखलेपन की जगह कैसे कुछ ठोस सा भर उठा. उस ने जरा झंक कर देखा वह पलंग पर लेटी खिड़की से आती धूप में तकिए पर बाल फैलाए उसी की लाई पत्रिका पढ़ रही थी.

मन हुआ जा कर उसे अपने से लिपटा ले पर उस का खिंचा बेरुखा सा चेहरा. वह दबे पांव स्नानगृह में गया, वहां से पीछे के दरवाजे से बाहर निकला और मुख्यद्वार पर आ कर घंटी बजा दी.

पत्नी ने आ कर दरवाजा खोला. उस के सख्त चेहरे से आंखें चुराता वह सफाईर् देने लगा, ‘‘क्या करूं, जरा सिरदर्द करने लगा तो जल्दी चल आया.’’

वह द्वार बंद कर चुपचाप चली आई. उस ने खुद चाय बना कर पी और कपड़े बदलने लगा.

अगले दिन शाम को उस ने हलके मूड में सोचा, आज पत्नी के लिए जरूर कोई उपहार देगा. बहुत दिनों से कुछ नहीं लिया है उस के लिए. मन में क्या कह रही होगी.

उस ने बाजार से एक अच्छा महंगा विदेशी परफ्यूम कौस्मैटिक बौक्स खरीदा. महीनों से खरीदना चाहता था, आज स्वयं को रोक न पाया. इस से उस की जेब लगभग खाली हो गई, पर उस ने परवाह न की. दूसरे दिन वेतन मिलेगा ही.

पैकेट में लपेटे वह उसे छिपा कर घर लाया और पत्नी की नजर बचा कर उसे शृंगारमेज के पास की खिड़की पर यों रख दिया कि सीधे नजर न पड़े.

वह मन में परेशान था कि कैसे यह उपहार देगा. बैठा ही था कि अक्षरा भीतर आई. उस ने आश्चर्य से देखा, वह बहुत प्रसन्न है. आंखें जैसे मधु में डूबी हों. आते ही वह बोली, ‘‘जरा, इधर तो आना.’’

वह मंत्रमुग्ध सा उस के पीछे चला. सोने के कमरे में आ कर पत्नी ने मुसकराते हुए

एक पैकेट खोल कर गहरे नीले रंग का एक पुलोवर निकाला और कहा, ‘‘देखो तो इसे पहन कर.’’

वह हैरान रह गया. नेवी ब्लू रंग का पुलोवर खरीदने की उस की बहुत दिनों से इच्छा थी.

मगर वह अपने टालू स्वभाव के कारण टालता जा रहा था.

उस ने पूछा, ‘‘यह क्यों ले आई?’’

‘‘आज स्कूल से तनख्वाह मिली है न. इसे पहनो तो,’’ उस ने प्यार से आदेश दिया और फिर स्वयं पहनाने लगी. पहना कर उसे शृंगारमेज के सामने लाई, ‘‘कैसा जंच रहा है?’’

उस ने मुग्ध भाव से खुद को शीशे में देखा. वह बड़ा चुस्त लग रहा था. उस ने पत्नी को बाहुपाश में लपेट कर एक चुंबन लिया. तभी कुछ याद कर के बोला, ‘‘एक मिनट को तुम आंखें तो मूंदो.’’

हैरान सी अक्षरा ने आंखें मूंद लीं. होंठ जरा खुले से मुसकराते ही रहे. उस ने झट खिड़की पर से परफ्यूम बौक्स निकाल कर उस के आगे किया और उल्लास से बोला, ‘‘आंखें खोलो.’’

आंखें खुलीं, प्रसन्नता की एक लहर के साथ उस की पत्नी उस से लिपट गई. परफ्यूम और उसे दोनों को संभाले वह पलंग तक आया. पत्नी पलंग पर बैठ कर परफ्यूम की पैकिंग उतारने लगी. वह चुपके से अपने कमरे में आ गया और मेज की दराज से डायरी निकाल कर लाल स्याही से लिखी वह पंक्ति कलम से घिसघिस कर काटने लगा. बीचबीच में पीछे मुड़ कर देख लेता कि कहीं अक्षरा तो नहीं आ रही है.

ओवर एंबीशियस होना गलत है क्या?

फिल्मों में भव्य सैटों के पीछे बड़ी मेहनत होती है और हर फिल्म में आर्ट डायरेक्टर का बड़ा काम होता है. नीतिन देसाई ने  ‘1942 ए लव स्टोरी’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘लगान’, ‘देवदास’, ‘जोधा अकबर’ जैसी फिल्मों के सैट बना कर और फिल्म इंडस्ट्री में उस का बड़ा नाम था. पर सफलता जब सिर पर चढऩे लगती है तो अक्सर अच्छे भले नाक से आगे देखना बंद कर देते है.

नीतिन देसाई ने 2005 में क्र्जन में मुंबई के पास 52 एकड़ जगह में एक भव्य स्टूडियों बनाया और सोचा कि वह जल्दी ही मालामाल हो जाएगा. बहुत सी फिल्मों और टीवी धारावाहियों की शूङ्क्षटग वहां हुई थी पर हर सफलता के लिए एक व्यावहारिक व व्यावसायिक बुद्धि चाहिए होती है. जिन के सपने ऊंचे होते हैं और कुछ सफलताओं के सॢटफिकेट हाथ में होते हैं वे अक्सर अपनी सीमाएं भूल जाते हैं. नीतिन देसाई भी उन्हीं में से एक था.

58 साल के नीतिन देसाई पर 252 करोड़ का कर्ज चढ़ गया और उसे यह साफ हो गया कि सब कुछ बेचने के बाद भी यह कर्ज चुकाया नहीं जा सकता. इसलिए इस मेधावी, इन्लेवेटिव आर्ट डायरेक्टर ने तकाजदारों की जिद के कारण अपने को फांसी लगा कर जीवन लीला समाप्त कर दी.

सफलता पर गर्व करना जरूरी है पर उस में अंधा हो जाना भी गलत है. नीतिन देसाई जैसे लोग कागजों पर वैसे ही सपनों के पहल बना लेते है जैसे वे कच्ची लकड़ी, प्लाई बोर्ड और प्लास्टर और पेरिस के महल बनाते हैं. कर्ज लेते समय उन्हें सफलता का पूरा अंदाजा होता है. व्यावहारिक बुद्धि काल्पनिक सैंटों में खो जाती है.

यह हर देश प्रदेश में होता है. सैंकडों लोग केवल ओवर एंबीशियस में फिसल जाते हैं. देश के औद्योगिक क्षेत्र आज मरघटों की तरह लगते हैं तो इसलिए कि नीतिन देसाई जैसों की कमी नहीं हैं. बैंक कर्जा दे तो देते हैं पर तब तक बसूली के पीछे पड़े रहते है. जब तक कर्ज लेेने वाला कंगाल और कंकाल न बन जाए.

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