‘‘सुबहसे बारिश लगी है. औफिस जाते हुए मु?ो कार से सत्संग भवन तक छोड़ दो न,’’ अनुरोध के स्वर में एकता ने अपने पति प्रतीक से कहा तो उस के माथे पर बल पड़ गए.
‘‘सत्संग? तुम कब से सत्संग और प्रवचन के लिए जाने लगीं? जिस एकता को मैं 2 साल से जानता हूं वह तो जिम जाती है, सहेलियों के साथ किट्टी पार्टी करती है और मेरे जैसे रूखे
पति की प्रेमिका बन कर उस की सारी थकान दूर कर देती है. सत्संग में कब से रुचि लेने लगीं? घर पर बोर होती हो तो मेरे साथ औफिस चल कर पुराना काम संभाल सकती हो, मु?ो खुशी होगी. इन चक्करों में पड़ना छोड़ दो, यार,’’ एकता के गाल को हौले से खींचते हुए प्रतीक मुसकरा दिया, ‘‘अब मैं चलता हूं. शाम को मसाला चाय के साथ गोभी के पकौड़े खाऊंगा तुम्हारे हाथ के बने,’’ अपने होंठों को गोल कर हवा में चुंबन उछालता हुआ प्रतीक फरती से दरवाजा खोल बाहर निकल गया.
एकता ने मैसेज कर अपनी सहेली रुपाली को बता दिया कि वह आज सत्संग में नहीं आएगी. बु?ो मन से कपड़े बदलकर बैड पर बैठे हुए वह एक पत्रिका के पन्ने उलटने लगी और साथ ही अपने पिछले दिनों को भी. 2 वर्ष पूर्व प्रतीक को पति के रूप में पा कर जैसे उस का कोई स्वप्न साकार हो गया था. प्रतीक गुरुग्राम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था और एकता वहां रिसैप्शनिस्ट. प्रतीक दिखने में साधारण किंतु अपने भीतर असीम प्रतिभा व अनेक गुण समेटे था.
एकता गौर वर्ण की नीली आंखों वाली आकर्षक युवती थी. जब कंपनी की ओर से एकता को प्रतीक का पीए बनाया गया तो दोनों को पहली नजर में इश्क सा कुछ लगा. एकदूसरे को जानने के बाद वे और करीब आ गए. बाद में दोनों के परिवारों की सहमति से विवाह भी हो गया.
प्रतीक जैसे सुल?ो व्यक्ति को पा कर एकता का जीवन सार्थक हो गया था. एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी एकता के पिता की पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर में परचून की दुकान थी. परिवार में एकता के अतिरिक्त मातापिता और भाई व भाभी थे. ग्रैजुएशन के बाद एकता ने औफिस मैनेजमैंट में डिप्लोमा कर गुरुग्राम की कंपनी में काम करना शुरू किया था.
प्रतीक एक मध्यवर्गीय परिवार से जुड़ा था, जिस में एक भाई प्रतीक से बड़ा और एक छोटा था. बहन इकलौती व उम्र में सब से बड़ी थी. प्रतीक का बड़ा भाई शेयर बेचने वाली एक छोटी सी कंपनी में अकाउंटैंट था और छोटा बैंक अधिकारी था. मातापिता अब इस दुनिया में नहीं थे. विवाह से पहले प्रतीक दिल्ली के पटेल नगर में बने अपने पुश्तैनी घर में रहता था. बाद में गुरुग्राम में 2 कमरों का मकान किराए पर ले कर रहने लगा था.
विवाह के बाद स्वयं को एक संपन्न पति की पत्नी के रूप में पा कर एकता जितनी प्रसन्न थी उतनी ही वह प्रतीक के इस गुण के कारण कि वह संबंधों के बीच अपने पद व रुपएपैसों को कभी भी नहीं आने देता. निर्धन हो या धनी सभी का वह समान रूप से सम्मान करता था.
एकता का सोचना था कि प्रतीक विवाह के बाद उसे नौकरी पर जाने के लिए मना कर देगा क्योंकि मैनेजर की पत्नी का उस के अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ काम करना शायद प्रतीक को अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन प्रतीक ने ऐसा नहीं किया. दफ्तर में एकता के प्रति उस का व्यवहार पूर्ववत था.
विवाह के 1 वर्ष बाद जीवन में नए मेहमान के आने की आहट हुई. अभी प्रैगनैंसी को 3 माह ही हुए थे कि एकता का ब्लड प्रैशर हाई रहने लगा. अपने स्वास्थ्य को देखते हुए एकता ने नौकरी छोड़ दी. घर पर काम करने के लिए फुल टाइम मेड थी, इसलिए उस का अधिकतर समय फेसबुक और व्हाट्सऐप पर बीतने लगा. प्रतीक उस की तबीयत में खास सुधार न दिखने पर डाक्टर से संपर्क के लिए जोर डालता रहा, लेकिन एकता किसी व्हाट्सऐप गु्रप में बताए देशी नुसखे आजमाती रही.
जब उस की तबीयत दिनबदिन बिगड़ने लगी तो प्रतीक अस्पताल ले गया. डाक्टर की देखरेख में स्वास्थ्य कुछ सुधरा, लेकिन समय से पहले डिलिवरी हो गई और बच्चे की जान चली गई. प्रतीक उसे अकेलेपन से जू?ाते देख वापस काम पर चलने को कहता लेकिन एकता तैयार न हुई.
पड़ोस में रहने वाली रुपाली ने एकता को सोसायटी की महिलाओं के गु्रप में शामिल कर लिया. वे सभी पढ़ीलिखी थीं. एकदूसरे का बर्थडे मनाने, किट्टी आयोजित करने और घूमनेफिरने के अलावा वे शंभूनाथ नामक पंडितजी के सत्संग में भी सम्मिलित हुआ करती थीं. पुराणों की कथा सुनाते हुए शंभूनाथजी मानसिक शांति की खोज के मार्ग बताते थे. सब से सुविधाजनक रास्ता उन के अनुसार विभिन्न अवसरों पर सुपात्र को दान देने का था. दान देने के इतने लाभ वे गिनवा देते थे कि एकता की तरह अन्य श्रोताओं को भी लगने लगा था कि थोड़ेबहुत रुपएपैसे शंभूनाथजी को दे देने से जीवन सफल हो जाएगा.
एक दिन प्रवचन सुनाते हुए शंभूनाथजी ने अनजाने में होने वाले पापों के दुष्परिणाम की बात की. सुन कर एकता सोच में पड़ गई. अंत में उस ने निष्कर्ष निकाला कि उसके नवजात की मृत्यु का कारण संभवत: उस से अज्ञानतावश हुआ कोई पाप होगा. पंडित शंभूनाथ की कुछ अन्य बातों ने भी उस पर जादू सा असर किया और उन के द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना उसे सही लगने लगा.
आज प्रतीक का शुष्क प्रश्न कि वह कब से सत्संग में जाने लगी, उसे अरुचिकर लग रहा
था. सोच रही थी कि प्रतीक तो उस की प्रत्येक बात का समर्थन करता है, आज न जाने क्यों सत्संग जाने की बात पर वह अन्यमनस्क हो उठा. शाम को प्रतीक के लौटने तक वह इसी उधेड़बुन में रही.
रात का खाना खा कर बिस्तर पर लेटे हुए दोनों विचारमग्न थे कि प्रतीक बोल उठा, ‘‘अलमारी में पुराने कपड़ों का ढेर लग गया है. सोच रहा हूं मेड को दे देंगे.’’
‘‘हां, बहुत से कपड़े खरीद तो लिए हैं मैं ने, लेकिन पहनने का मौका नहीं मिला. नएनए पहन लेती हूं हर जगह. कल ही दे दूंगी. अच्छा सुनो, इस बात से याद आया कि कुछ पैसे चाहिए मु?ो. कल सत्संग भवन में हमारे गु्रप की ओर से दान दिया जाएगा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘पंडितजी ने कहा था कि दान देने से न सिर्फ इस जीवन में बल्कि अगले जन्म में भी कष्ट पास नहीं फटकते.’’
‘‘देखो एकता, तुम अपने पर कितना भी खर्च करो मु?ो ऐतराज नहीं, ऐतराज तो छोड़ो बल्कि मैं तो चाहता हूं कि तुम मौजमस्ती करो और खूब खुश रहो. तुम्हारा यों पंडितजी की बातों में आ कर व्यर्थ पैसे लुटा देना सही नहीं लग रहा मु?ो तो.’’
‘‘गु्रप में फ्रैंड्स को क्या जवाब दूंगी?’’ मुंह बनाते हुए एकता ने पूछा.
‘‘मेरे विचार से तुम्हें उन लोगों को भी सही दिशा दिखानी चाहिए.’’
प्रतीक की इस बात को सुन एकता निरुत्तर हो गई.
गु्रप की महिलाएं रुपयेपैसे के अतिरिक्त फल, अनाज व मिठाई भी पंडितजी को दिया
करती थीं, लेकिन एकता मन मसोस कर रह जाती. एकता के बारबार कहने पर भी प्रतीक का दान देने की बात पर नानुकुर करना उसे रास नहीं आ रहा था. आर्थिक स्तर पर अपने से निम्न संबंधियों से प्रतीक का मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना, मेड को पुराने कपड़े, खाना व कंबल आदि देने को कहना तथा ड्राइवर के बेटे की पुस्तकें खरीदना एकता को असमंजस में डाल रहा था. दूसरों की मदद को सदैव तत्पर प्रतीक दानपुण्य के नाम से क्यों बिफर उठता है, इस प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल पा रहा था.
शंभूनाथजी ने वट्सऐप ग्रुप बना लिया था. उस पर वे विभिन्न अवसरों, तीजत्योहारों आदि पर दान देने के मैसेज डालने लगे थे. प्रत्येक मैसेज के साथ दान की महत्ता बताई जाती. सुख, शांति व पापों से मुक्ति इन सभी के लिए दानदक्षिणा को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना बताया जाता.
गु्रप की सभी महिलाओं के बीच होड़ सी लग जाती कि कौन शंभूनाथजी को अधिक से अधिक दान दे कर न केवल स्वयं को बल्कि परिवार को भी पापों से मुक्ति दिलवाने का महान प्रयास कर रहा है? एकता भी इस से अछूती न रही. प्रतीक से किसी न किसी बहाने पैसे मांग कर वह पंडितजी को दे देती थी. मन ही मन इस के लिए वह अपने को दोषी भी नहीं मानती थी क्योंकि उस का विचार था कि इस से प्रतीक पर भी कष्ट नहीं आएंगे. सत्संग में विभिन्न कथाएं सुनकर वह भयभीत हो जाती कि विपरीत भाग्य होने पर किसी व्यक्ति को कैसेकैसे कष्ट ?ोलने पड़ते हैं. मन ही मन वह उन सखियों का धन्यवाद करती जिन के कारण वह पंडितजी के संपर्क में आई थी वरना नर्क में जाने से कौन रोकता उसे.
उस दिन प्रतीक औफिस से लौटा तो चेहरे की आभा देखते ही एकता सम?ा गई कि कोई प्रसन्नता का समाचार सुनने को मिलेगा. यह सच भी था. प्रतीक को कंपनी की ओर से प्रमोशन मिली थी. शाम की चाय पीकर प्रतीक एकता को घर से दूर कुछ दिनों पहले बने एक फाइवस्टार होटल में ले गया.
कैंडल लाइट डिनर में एकदूसरे की उपस्थिति को आत्मसात करते हुए दोनों भविष्य के नए सपने बुन रहे थे. प्रतीक ने बताया कि अब वह एक आलीशान फ्लैट खरीदने का मन बना चुका है.
खुशी से एकता का अंगअंग मुसकराने लगा. खाने के बाद प्रतीक डिजर्ट मंगवाने के लिए मैन्यू देखने लगा तो एकता ने मोबाइल पर मैसेज पढ़ने शुरू कर दिए. सत्संग गु्रप में आज शंभूनाथजी ने जिस विषय पर पोस्ट डाली थी वह था कि किस प्रकार खुशियों को कभीकभी बुरी नजर लग जाती है और काम बनतेबनते बिगड़ने लगते हैं.
ऐसे में कुछ रुपए या सामान द्वारा नजर उतार कर दान कर देना चाहिए. इस से नजर का बुरा असर उस वस्तु के साथ दानपात्र के पास चला जाता है. गु्रप में कई महिलाओं ने अपने अनुभव बांटे थे कि कैसे जीवन में कुछ अच्छा होते ही अचानक उन के साथ अप्रिय घटना घट गई.
‘‘उफ, कब से आ रहा है बुखार. टेस्ट की रिपोर्ट कब तक मिलेगी,’’ प्रतीक की आवाज कानों में पड़ी तो एकता ने अपना मोबाइल पर्स में रख दिया. प्रतीक के मोबाइल पर बड़ी बहन प्रियंका ने कौल किया था, उस से ही बात हो रही थी प्रतीक की. प्रियंका आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं थी, लेकिन वह या उस का पति मुकेश अपनी स्थिति सुधारने के लिए कोई प्रयास भी करते तो वह केवल परिचितों से पैसे मांगने तक ही सीमित था.
पेशे से इलैक्ट्रिक इंजीनियर मुकेश की कुछ वर्षों पहले नौकरी चली गई थी. वह उस समय बिजली का सामान बेचने का व्यवसाय शुरू करना चाहता था, जिस में प्रतीक ने आर्थिक रूप से मदद कर व्यवसाय शुरू करवा दिया था. कुछ समय तक सब ठीक रहा, लेकिन मुकेश बाद में कहने लगा कि इस बिजनैस में खास कमाई नहीं हो रही और अब एक अंतराल के बाद नौकरी लगना भी मुश्किल है.
ऐसे में प्रियंका बारबार अपने को दयनीय स्थिति में बता कर पैसों की मांग करने लगती थी. प्रतीक के बड़े भाई की आमदनी अधिक नहीं थी और छोटे की तुलना में भी प्रतीक की सैलरी ही अधिक थी तो सारी आशाएं प्रतीक पर आ कर टिक जाती थीं. प्रतीक यथासंभव मदद भी करता रहता था.
आज प्रियंका का फोन आया तो एकता की सांस ठहर गई. वह सम?ा गई थी कि कोई नई मांग की होगी प्रियंका दीदी ने. उसे पंडितजी का मैसेज याद आ रहा था कि खुशियों को कभीकभी बुरी नजर लग जाती है. कुछ देर पहले वह फ्लैट लेने की योजना बनाते हुए कितनी खुश थी. अब प्रियंका की आर्थिक मदद करनी पड़ेगी तो पता नहीं प्रतीक फ्लैट लेने की बात कब तक के लिए टाल देगा.
उस ने घर पहुंच कर नजर उतार कुछ रुपए शंभूनाथजी को देने का मन बना लिया क्योंकि भोगविलास से दूर भक्ति में लीन साधारण जीवन जीने वाला उन जैसा व्यक्ति ही ऐसे दान का पात्र हो सकता है. शंभूनाथजी दान का पैसा कल्याण में ही लगा रहे होंगे इस बात पर पूरा भरोसा था उसे. प्रतीक को प्रियंका से बात करते देख एकता ने प्रतीक की पसंदीदा पान फ्लेवर की आइसक्रीम मंगवा ली.
‘‘दीदी ने की थी कौल?’’ आइसक्रीम का स्पून मुंह में रखते हुए एकता ने पूछा.
‘‘हां, घर चल कर बात करेंगे,’’ प्रतीक जैसे किसी निर्णय पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था.
आइसक्रीम के स्वाद और विचारों में डूबे हुए अचानक एकता का ध्यान सामने वाली टेबल पर चला गया. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वहां शंभूनाथजी विभिन्न व्यंजनों का आनंद ले रहे थे. सत्संग के दौरान दिखने वाले रूप से विपरीत वे धोतीकुरते के स्थान पर जींस और टीशर्ट पहने थे, चेहरे पर प्रवचन देते समय खिली हुई मंदमंद मुसकान जोरदार ठहाकों में बदली हुई थी. अपने को संयासी बताने वाले शंभूनाथजी के पास वाली कुरसी पर एक महिला उन से सट कर बैठी थी.
तभी वेटर ने महिला के सामने प्लेट में सजा केक रख दिया. शंभूनाथजी ने महिला का हाथ पकड़ कर केक कटवाया और हौले से ‘हैप्पी बर्थडे’ जैसा कुछ कहा. जब अपने हाथ से केक का टुकड़ा उठा कर शंभूनाथजी ने महिला के मुंह में डाला तो एकता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उत्साह और अनुराग शंभूनाथ व महिला पर तारी था.
‘तो यह है कल्याणकारी काम जिस पर शंभूनाथजी दान का रूपयापैसा खर्च करते हैं.’ सोच कर एकता सकते में आ गई.
घर लौटने पर प्रतीक ने फोन के बारे में बताया. एकता का संदेह सच
निकला. प्रियंका ने इस बार बताया था कि मुकेश की अस्वस्थता के कारण वे मकान का किराया नहीं दे सके. मकान मालिक परेशान कर रहा है, माह का सारा वेतन दवाई में खर्च हो गया.
‘‘तो कितने पैसे भेजने पड़ेंगे उन लोगों को?’’ एकता न रानी सूरत बना कर पूछा.
‘‘बहुत हुआ बस. अब नहीं,’’ प्रतीक छूटते ही बोला.
‘‘मतलब इस बार आप कुछ पैसे नहीं…’’
‘‘हां, बहुत मदद की है मैंने दीदी, जीजाजी की. ये लोग स्वयं पर बेचारे का ठप्पा लगवा कर उस का फायदा उठा रहे हैं,’’ एकता की बात पूरी होने से पहले ही प्रतीक बोल उठा, ‘‘बुरे वक्त में किसी से मदद मांगना अलग बात है, लेकिन दूसरों की कमाई पर नजर रख अपने को असहाय दिखाते हुए दूसरों से पैसे ऐंठना और बात. पता है तुम्हें पिछले साल जब मैं औफिशियल टूर पर अहमदाबाद गया तो था प्रियंका के घर रुका था 1 दिन के लिए.’’
‘‘हां, याद है.’’ छोटा सा उत्तर दे कर एकता आगे की बात जानने के लिए टकटकी लगाए प्रतीक को देख रही थी.
‘‘मेरे वहां जाने से कुछ दिन पहले ही अपने बेटे कार्तिक की फीस और बुक्स खरीदने के बहाने पैसे मांगे थे मु?ा से उन लोगों ने, वहां जा कर देखा तो कार्तिक के लिए एक नामी ब्रैंड का महंगा मोबाइल फोन खरीदा हुआ था. मैं ने ऐतराज जताया तो प्रियंका दीदी बोलीं कि यह तो इसे गाने की एक प्रतियोगिता जीतने पर मिला है. मुकेश जीजाजी ने कार भी तभी खरीदी थी. क्या जरूरत थी कार लेने की जब फीस तक देने को पैसे नहीं थे उन के पास? मन ही मन मु?ो बहुत गुस्सा आया. मैं सम?ा गया कि इन्हें अपने सुखद जीवन के लिए जो पैसा चाहिए उसे ये दोनों इमोशनल ब्लैकमेल कर हासिल कर रहे हैं. उसी दिन मैं ने फैसला कर लिया कि रिश्तों को केवल सम्मान दूंगा भविष्य में.’’
‘‘आप ने यह मु?ो पहले क्यों नहीं बताया?’’
‘‘मैं सही समय की प्रतीक्षा में था.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘देखो एकता मैं कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम सत्संग में जाती हो. मैं जानता हूं कि वहां धर्म, कर्म के नाम से डराया जाता है. समयसमय पर दान का महत्त्व बता रुपएपैसे ऐंठने का चक्रव्यूह रचा जाता है. खूनपसीने की कमाई क्या निठल्ले लोगों पर उड़ानी चाहिए? फिर वह चाहे मेरी बहन हो या कोई साधू बाबा.’’
प्रतीक की बात सुन एकता किसी अपराधी की तरह स्पष्टीकरण देते हुए बोली, ‘‘मैं तो इसलिए दान देने की बात कहा करती थी कि सुना था इस से भला होता है.’’
‘‘कैसा भला? क्या उसी डर से दूर कर देना भला कहा जाएगा है जो डर जबरदस्ती पहले मन में बैठाया जाता है.’’
एकता सब ध्यान से सुन रही थी.
‘‘सोनेचांदी की वस्तुओं के दान से पाप धुल जाते हैं, रुपएपैसे व अन्य सामान का समयसमय पर दान किया जाए तो स्वर्ग मिलता है, ग्रहण लगे तो दान करो ताकि उस के बुरे प्रभावों से बचा जा सके, परिवार में जन्म हो तो भविष्य में सुख के लिए और मृत्यु हो तो अगले जन्म में शांति व समृद्धि के लिए दान पर खर्च करो. सत्संग में ऐसा ही कुछ बताया जाता होगा न,’’ प्रतीक ने पूछा तो एकता ने हां में सिर हिला दिया.
‘‘तो बताओ किसने देखा है स्वर्ग. क्या ऐसा नहीं लगता कि स्वर्गनर्क की अवधारणा ही व्यक्तिको डराए रखने के लिए की गई है, अगले जन्म की कल्पना कर के सुख पाने की इच्छा से इस जन्म की गाढ़ी कमाई लुटा देना कहां की सम?ादारी है? ग्रह, नक्षत्रों, सूर्य और चंद्रग्रहण का बुरा प्रभाव कैसे होगा जबकि ये केवल खगोलीय घटनाएं है? ये बेमतलब के डर मन में बैठाये गए हैं कि नहीं? तुम से एक और सवाल करता हूं कि यदि दान देने से पाप दूर हो जाते हैं तो इस का मतलब यह हुआ कि जितना जी चाहे बुरे कर्म करते रहो और पाप से बचने के लिए दान देते रहो, यह क्या सही तरीका है जीने का?’’
‘‘नहीं, यह रास्ता तो अनाचार को बढ़ा कर व्यक्ति को गलत दिशा में ले जा सकता है,’’ एकता के सामने सच की परतें खुल रही थीं.
‘‘मैं देखता हूं कि लोग पटरी पर धूप और ठंड में सामान बेचने वालों से पैसेपैसे का मोलभाव करते हैं, नौकरों को मेहनत के बदले तनख्वाह देने से पहले सौ बार सोचते हैं कि कहीं ज्यादा तो नहीं दे रहे. पसीने से लथपथ रिकशे वाले से छोटी सी रकम का सौदा करते हैं और वही लोग दानपुण्य संबंधी लच्छेदार बातों में फंस कर बेवजह धन लुटा देते हैं.’’
शंभूनाथ का होटल में बदला हुआ रूप देख कर एकता का मन पहले ही खिन्न था. इन सब बातों को सम?ाते हुए वह बोल उठी, ‘‘विलासिता का जीवन जीने की चाह में दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं कुछ लोग. दान देना तो सचमुच निठल्लेपन को बढ़ाना ही है. किसी हृष्टपुष्ट को बिना मेहनत के क्यों दिया जाए? इस से हमारा तो नहीं बल्कि उस का जीवन सुखद हो जाएगा. देना ही है तो किसी शरीर से लाचार को, अनाथाश्रम या गरीब के बच्चे की पढ़ाई के लिए देना चाहिए और मैं ऐसा ही करूंगी अब.’’
प्रतीक मुसकरा उठा, ‘‘वाह, तुम कितनी जल्दी सम?ाती हो कि मैं कहना क्या चाह रहा हूं, इसलिए ही तो इतना प्यार करता हूं तुम्हें. जो अभी तुम ने कहा वही तो दीदी, जीजाजी को अब पैसे न भेजने का कारण है. जब वे लोग मुश्किल में थे मैं ने हर तरह से सहायता की. अब उन को गुजारे के लिए नहीं अपनी जिंदगी मजे से बिताने के लिए पैसे चाहिए. जहां धर्म में डर का जाल बिछा कर पैसे निकलवाए जाते हैं, वहां दीदी, जीजाजी अपनी बेचारगी का बहाना बना मु?ो बेवकूफ बना रहे हैं. मैं दान या मदद के नाम पर निकम्मेपन को बढ़ावा नहीं दूंगा, कभी नहीं.’’
‘‘सोच रही हूं व्हाट्सऐप के सत्संग गु्रप में जो फ्रैड्स हैं आज उन सब से बात करूं ताकि वे भी उस सचाई को जान सकें जिसे मैं ने जरा देर में जाना है,’’ प्रतीक की ओर मुसकरा कर देखने के बाद एकता अपना मोबाइल ले कर सखियों को कौल करने चल दी.