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कंप्यूटर की वजह से मेरी आंखों में दर्द होने लगता है, मैं ऐसी क्या चीज यूज करूं कि कोई साइड इफैक्ट न पड़े?

सवाल

मैं अकसर कंप्यूटर पर बहुत देर तक काम करती हूं जिस कारण आंखों में दर्द होने लगता है. इस से मुझे अच्छी गहरी नींद भी नहीं आती. मैं ऐसी क्या चीज यूज करूं कि कोई साइड इफैक्ट न पड़े?

जवाब 

गुलाबजल का आंखों पर बहुत अच्छा असर पड़ता है और यह अच्छी नींद लेने में भी मदद करता है. गुलाबजल को आंखों के लिए इस्तेमाल करने का सब से अच्छा तरीका है कि गुलाबजल में रुई भिगोएं और उसे बंद आंखों पर 15 मिनट रखा रखें. इस से बहुत राहत मिलेगी. आंखों के आसपास गुलाबजल लगाने से डार्क सर्कल्स भी दूर होते हैं और आंखों की थकान भी चली जाती है.

आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में गुलाबजल का इस्तेमाल आंखों के इन्फैक्शन और ऐलर्जी को दूर करने के लिए किया जाता है.

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सवाल

बेटी के जन्म के बाद मेरे पेट पर स्ट्रैच मार्क्स के निशान पड़ गए हैं. बताएं उन्हें कैसे दूर करूं?

जवाब 

आप स्ट्रैच मार्क्स के निशानों पर वर्जिन कोकोनट औयल लगाएं, जो स्ट्रैच मार्क्स को कम करने में मदद करता है. यह औयल त्वचा के रंग की चमक बनाए रखने में भी सहायक होता है. इस के इस्तेमाल से त्वचा अधिक चमकदार, मुलायम नजर आने लगेगी. इस के अलावा किसी भी प्रकार के निशान के लिए जैसे कभीकभी हमें किसी चोट का निशान पड़ जाता है या फिर खरोंच के निशान हो जाते हैं, यह उन निशानों को भी मिटाने में फायदेमंद साबित होता है. हर रात चेहरे पर वर्जिन कोकोनट औयल को एक नाइट क्रीम के रूप में इस्तेमाल करें.

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सवाल

 मेरी स्किन औयली है. मैं चेहरे पर क्या लगाऊं जिस से ऐक्सट्रा औयल खत्म हो जाए?

जवाब 

आप के चेहरे के लिए मुलतानी मिट्टी का पेस्ट सब से फायदेमंद रहेगा. सुबह या शाम जब भी समय मिले, इसे करीब 5 मिनट के लिए फेस पर लगा लें. इस से स्किन का औयल खत्म हो जाएगा. मुलतानी मिट्टी में पाए जाने वाले तत्त्व फेस से मुंहासे हटाने में भी मदद करते हैं. दरअसल, इस में मैग्नीशियम क्लोराइड होता है, जो मुंहासों की समस्या या औयली स्किन के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है. मुलतानी मिट्टी स्किन को क्लीन कर मिनटों में शाइनिंग देती है.

सपनों को न छोड़ने को लेकर क्या कहती है, निर्देशक राजश्री ओझा, पढ़े इंटरव्यू

बिना किसी फिल्मी पृष्ठभूमि के हिंदी सिनेमा में आने वालों को जो संघर्ष करना पड़ता है, वैसा ही संघर्ष राजश्री ने भी किया, लेकिन इस दौरान उनका सबसे बड़ा मानसिक सहारा बने उनके पिता प्रमोद ओझा.

यहां तक कि जब उनकी पहली फिल्म ‘चौराहे’के निर्माता ने बीच में ही हाथ खींच लिए, तो उनके पिता ने ही ये फिल्म पूरी कराई.सोनी लिव पर उनकी वेब सीरीज पॉटलॉक काफी लोकप्रिय सीरीज है, जिसे राजश्री ने बड़ी मेहनत और लगन से बनाई है.

होती है कहानी की चुनौती

वेब सीरीज को बनाने की चुनौती के बारें में पूछने पर खूबसूरत, विनम्र, हंसमुख राजश्री ओझा बताती है कि निर्देशक के रूप में मुझे ये देखना पड़ता है कि कहानी से खुद को दर्शक जोड़ सकें. ‘पॉटलॉक’ एकपरिवार की कहानी है, इसमें दर्शकों को सीरीज को देखते हुए लगना चाहिए कि वे अपने आसपास ऐसे कुछ व्यक्ति को देखा या जानते है, जिसे वे सीरीज में देख रहे है. मैने आसपास कई ऐसे चरित्र देखे है, और उसी से प्रेरित हूँ. इसके दूसरे सीजन में चरित्र को आगे आकर अपनी कहानी कहने का मौका मिला है.

 

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मिली प्रेरणा

राजश्री ओझा ने जब इंडस्ट्री में आने का मन बनाया,तो उन्हें यह कहना मुश्किल था कि वह डायरेक्टर बनना चाह रही हैं, क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वे कुछ और बने. राजश्री को फिल्मों में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह कहती है कि मैं कोलकाता से हूँ, वहां मेरा जन्म हुआ है. मेरे परिवार के सभी किताबें पढ़ते और फिल्मे देखते थे. मैं भी फिल्मे देखती थी, कहानियां पढने का मुझे शौक था, इसी से मुझे प्रेरणामिली. इसके अलावा मुझे कोलकाता कल्चर बहुत पसंद है. कक्षा 5 के बाद मैं बैंगलोर चली गई.मेरे कैरियर को लेकर पिता को थोड़ी चिंता थी, क्योंकि उन्हें मैंने कुछ बताया भी नहीं. असल में मुझे बचपन से ही सत्यजीत रे की फिल्में बहुत पसंद थी. मुझे लगता है तभी से मेरे अंदर एक निर्देशक बनने की चाह उत्पन्न हो गई थी, फिर तय किया कि न्यूयॉर्क जाकर फिल्म निर्माण की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. काफी समय से सोच रही थी कि पिता को यह बात बताऊं, लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी.मैं कंप्यूटर विज्ञान पढने अमेरिका गई. स्नातक करने के बाद न्यूयॉर्क जाकर फिल्म में डिप्लोमा करने की बात पिता को बताई, तो उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रखकर जाने की इजाजत दी. मैंने वहां पर थिएटर भी किया, कुछ फिल्मे बनाई और अवार्ड भी जीते.बाद में फिल्म मेकिंग में मास्टर्स किया. इससे पिता को लगा कि मैं कुछ अच्छा कर रही हूँ. असल में मुझे चार्ली चैपलिन की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में और सत्यजीत रे की कॉमेडी फिल्म ‘गुपी गाइन बाघा बाईन’देखने के बाद से ही लगा था कि इसे मैं भी बना सकती हूँ. यही से मेरे अंदर एक पैशन ने जन्म लिया.

मिली संतुष्टि

सीरियल और फिल्म के बीच की कड़ी है वेब सीरीज, आपने फिल्में भी बनाई है, ओटीटी से आपको कितनी संतुष्टि मिली है?पूछने पर राजश्री कहती है कि ओटीटी ने मुझे बहुत संतुष्टि दिया है. ये सही है कि ओटीटी, फिल्म और धारावाहिक के बीच की कड़ी है. मुझे फिल्म और ओटीटी में कोई खास अंतर नहीं दिखा, सिर्फ टाइम का अंतर है. काम वही पसंद होता है, जिसे आप अच्छी तरह से दर्शा सकते है. इसमें समय महत्वपूर्ण होता है, समय मिलने पर किसी चरित्र को अच्छी तरह से प्रेजेंट किया जा सकता है, गानों और कहानी को अच्छी तरह से दिखाया जा सकता है. जबकि फिल्म में समय के हिसाब से और सीरियल्स में चैनल के हिसाब से काम करना पड़ता है. ओटीटी सभी क्रिएटर्स के लिए एक अच्छा समय लेकर आया है. पूरा विश्व इसे घर बैठे देख सकता है. बाहर के वेब सीरीज और देश के वेब सीरीज में अंतर यही है कि वहां का बजट तीन गुना और समय अधिक होता है,जो देश में नहीं मिलता.

 

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होती है मानसिक तनाव

राजश्री आगे कहती है कि महिलाओं को मानसिक तनाव कैरियर में होता है.देखा जाय तो हर क्षेत्र में मानसिक तनाव होता है, घर में बैठे या काम करें, स्ट्रेस बहुत होता है. मैंने अपनी माँ को घर में रहकर भी तनाव लेते हुए देखा है. ये लाइफ का एक पार्ट होता है. हर किसी को होता है. कभी अच्छा तो कभी बुरा दिन सबके लिए होता है. मैं बहुत लकी हूँ कि मुझे मेरी माँ से मानसिक शक्ति मिली है. दरअसल लाइफ कभी आसान नहीं होती.

नहीं है कोई समस्या

राजश्री कहती है कि महिलाओं के लिए निर्देशक बनना चुनौतीपूर्ण होता है. मैं 20 साल से काम कर रही है, काम खुद में चुनौती होती है. ये टफ होता है, कहानी को विजुअल और प्रभावी तरीके से बनाना आसान नहीं होता. इसे मैं समस्या नहीं समझती. मुझे याद है जब दिल्ली में मैं थी, तो मैं कभी-कभी रात में घर आती थी, तो सभी मुझे इतनी रात को बाहर रहने से मना करते थे, लेकिन तब मैं दिल्ली को जानती नहीं थी, क्योंकि मैं बैंगलोर की हूँ.इतनी बाधाएं वहां नहीं थी. महिलाओं के लिए ऐसे कई चुनौतियाँ होती है, जो पुरुषों को नहीं होता.

ड्रीम को न छोड़े अधूरा

निर्देशक हंसती हुई कहती है कि मेरे बहुत सारे ड्रीम है, जिसे मैं आगे करना चाहती हूँ और महिलाओं को मेरा मेसेज है कि अपने ड्रीम को पूरा करें, किसी के लिए इंतज़ार न करें, मलाल न रखे. शादी करें, बच्चों को भी पालें, पर ड्रीम न छोड़े.

मैं ने जरा देर में जाना

‘‘सुबहसे बारिश लगी है. औफिस जाते हुए मु?ो कार से सत्संग भवन तक छोड़ दो न,’’ अनुरोध के स्वर में एकता ने अपने पति प्रतीक से कहा तो उस के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘सत्संग? तुम कब से सत्संग और प्रवचन के लिए जाने लगीं? जिस एकता को मैं 2 साल से जानता हूं वह तो जिम जाती है, सहेलियों के साथ किट्टी पार्टी करती है और मेरे जैसे रूखे

पति की प्रेमिका बन कर उस की सारी थकान दूर कर देती है. सत्संग में कब से रुचि लेने लगीं? घर पर बोर होती हो तो मेरे साथ औफिस चल कर पुराना काम संभाल सकती हो, मु?ो खुशी होगी. इन चक्करों में पड़ना छोड़ दो, यार,’’ एकता के गाल को हौले से खींचते हुए प्रतीक मुसकरा दिया, ‘‘अब मैं चलता हूं. शाम को मसाला चाय के साथ गोभी के पकौड़े खाऊंगा तुम्हारे हाथ के बने,’’ अपने होंठों को गोल कर हवा में चुंबन उछालता हुआ प्रतीक फरती से दरवाजा खोल बाहर निकल गया.

एकता ने मैसेज कर अपनी सहेली रुपाली को बता दिया कि वह आज सत्संग में नहीं आएगी. बु?ो मन से कपड़े बदलकर बैड पर बैठे हुए वह एक पत्रिका के पन्ने उलटने लगी और साथ ही अपने पिछले दिनों को भी. 2 वर्ष पूर्व प्रतीक को पति के रूप में पा कर जैसे उस का कोई स्वप्न साकार हो गया था. प्रतीक गुरुग्राम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था और एकता वहां रिसैप्शनिस्ट. प्रतीक दिखने में साधारण किंतु अपने भीतर असीम प्रतिभा व अनेक गुण समेटे था.

एकता गौर वर्ण की नीली आंखों वाली आकर्षक युवती थी. जब कंपनी की ओर से एकता को प्रतीक का पीए बनाया गया तो दोनों को पहली नजर में इश्क सा कुछ लगा. एकदूसरे को जानने के बाद वे और करीब आ गए. बाद में दोनों के परिवारों की सहमति से विवाह भी हो गया.

प्रतीक जैसे सुल?ो व्यक्ति को पा कर एकता का जीवन सार्थक हो गया था. एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी एकता के पिता की पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर में परचून की दुकान थी. परिवार में एकता के अतिरिक्त मातापिता और भाई व भाभी थे. ग्रैजुएशन के बाद एकता ने औफिस मैनेजमैंट में डिप्लोमा कर गुरुग्राम की कंपनी में काम करना शुरू किया था.

प्रतीक एक मध्यवर्गीय परिवार से जुड़ा था, जिस में एक भाई प्रतीक से बड़ा और एक छोटा था. बहन इकलौती व उम्र में सब से बड़ी थी. प्रतीक का बड़ा भाई शेयर बेचने वाली एक छोटी सी कंपनी में अकाउंटैंट था और छोटा बैंक अधिकारी था. मातापिता अब इस दुनिया में नहीं थे. विवाह से पहले प्रतीक दिल्ली के पटेल नगर में बने अपने पुश्तैनी घर में रहता था. बाद में गुरुग्राम में 2 कमरों का मकान किराए पर ले कर रहने लगा था.

विवाह के बाद स्वयं को एक संपन्न पति की पत्नी के रूप में पा कर एकता जितनी प्रसन्न थी उतनी ही वह प्रतीक के इस गुण के कारण कि वह संबंधों के बीच अपने पद व रुपएपैसों को कभी भी नहीं आने देता. निर्धन हो या धनी सभी का वह समान रूप से सम्मान करता था.

एकता का सोचना था कि प्रतीक विवाह के बाद उसे नौकरी पर जाने के लिए मना कर देगा क्योंकि मैनेजर की पत्नी का उस के अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ काम करना शायद प्रतीक को अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन प्रतीक ने ऐसा नहीं किया. दफ्तर में एकता के प्रति उस का व्यवहार पूर्ववत था.

विवाह के 1 वर्ष बाद जीवन में नए मेहमान के आने की आहट हुई. अभी प्रैगनैंसी को 3 माह ही हुए थे कि एकता का ब्लड प्रैशर हाई रहने लगा. अपने स्वास्थ्य को देखते हुए एकता ने नौकरी छोड़ दी. घर पर काम करने के लिए फुल टाइम मेड थी, इसलिए उस का अधिकतर समय फेसबुक और व्हाट्सऐप पर बीतने लगा. प्रतीक उस की तबीयत में खास सुधार न दिखने पर डाक्टर से संपर्क के लिए जोर डालता रहा, लेकिन एकता किसी व्हाट्सऐप गु्रप में बताए देशी नुसखे आजमाती रही.

जब उस की तबीयत दिनबदिन बिगड़ने लगी तो प्रतीक अस्पताल ले गया. डाक्टर की देखरेख में स्वास्थ्य कुछ सुधरा, लेकिन समय से पहले डिलिवरी हो गई और बच्चे की जान चली गई. प्रतीक उसे अकेलेपन से जू?ाते देख वापस काम पर चलने को कहता लेकिन एकता तैयार न हुई.

पड़ोस में रहने वाली रुपाली ने एकता को सोसायटी की महिलाओं के गु्रप में शामिल कर लिया. वे सभी पढ़ीलिखी थीं. एकदूसरे का बर्थडे मनाने, किट्टी आयोजित करने और घूमनेफिरने के अलावा वे शंभूनाथ नामक पंडितजी के सत्संग में भी सम्मिलित हुआ करती थीं. पुराणों की कथा सुनाते हुए शंभूनाथजी मानसिक शांति की खोज के मार्ग बताते थे. सब से सुविधाजनक रास्ता उन के अनुसार विभिन्न अवसरों पर सुपात्र को दान देने का था. दान देने के इतने लाभ वे गिनवा देते थे कि एकता की तरह अन्य श्रोताओं को भी लगने लगा था कि थोड़ेबहुत रुपएपैसे शंभूनाथजी को दे देने से जीवन सफल हो जाएगा.

एक दिन प्रवचन सुनाते हुए शंभूनाथजी ने अनजाने में होने वाले पापों के दुष्परिणाम की बात की. सुन कर एकता सोच में पड़ गई. अंत में उस ने निष्कर्ष निकाला कि उसके नवजात की मृत्यु का कारण संभवत: उस से अज्ञानतावश हुआ कोई पाप होगा. पंडित शंभूनाथ की कुछ अन्य बातों ने भी उस पर जादू सा असर किया और उन के द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना उसे सही लगने लगा.

आज प्रतीक का शुष्क प्रश्न कि वह कब से सत्संग में जाने लगी, उसे अरुचिकर लग रहा

था. सोच रही थी कि प्रतीक तो उस की प्रत्येक बात का समर्थन करता है, आज न जाने क्यों सत्संग जाने की बात पर वह अन्यमनस्क हो उठा. शाम को प्रतीक के लौटने तक वह इसी उधेड़बुन में रही.

रात का खाना खा कर बिस्तर पर लेटे हुए दोनों विचारमग्न थे कि प्रतीक बोल उठा, ‘‘अलमारी में पुराने कपड़ों का ढेर लग गया है. सोच रहा हूं मेड को दे देंगे.’’

‘‘हां, बहुत से कपड़े खरीद तो लिए हैं मैं ने, लेकिन पहनने का मौका नहीं मिला. नएनए पहन लेती हूं हर जगह. कल ही दे दूंगी. अच्छा सुनो, इस बात से याद आया कि कुछ पैसे चाहिए मु?ो. कल सत्संग भवन में हमारे गु्रप की ओर से दान दिया जाएगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पंडितजी ने कहा था कि दान देने से न सिर्फ इस जीवन में बल्कि अगले जन्म में भी कष्ट पास नहीं फटकते.’’

‘‘देखो एकता, तुम अपने पर कितना भी खर्च करो मु?ो ऐतराज नहीं, ऐतराज तो छोड़ो बल्कि मैं तो चाहता हूं कि तुम मौजमस्ती करो और खूब खुश रहो. तुम्हारा यों पंडितजी की बातों में आ कर व्यर्थ पैसे लुटा देना सही नहीं लग रहा मु?ो तो.’’

‘‘गु्रप में फ्रैंड्स को क्या जवाब दूंगी?’’ मुंह बनाते हुए एकता ने पूछा.

‘‘मेरे विचार से तुम्हें उन लोगों को भी सही दिशा दिखानी चाहिए.’’

प्रतीक की इस बात को सुन एकता निरुत्तर हो गई.

गु्रप की महिलाएं रुपयेपैसे के अतिरिक्त फल, अनाज व मिठाई भी पंडितजी को दिया

करती थीं, लेकिन एकता मन मसोस कर रह जाती. एकता के बारबार कहने पर भी प्रतीक का दान देने की बात पर नानुकुर करना उसे रास नहीं आ रहा था. आर्थिक स्तर पर अपने से निम्न संबंधियों से प्रतीक का मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना, मेड को पुराने कपड़े, खाना व कंबल आदि देने को कहना तथा ड्राइवर के बेटे की पुस्तकें खरीदना एकता को असमंजस में डाल रहा था. दूसरों की मदद को सदैव तत्पर प्रतीक दानपुण्य के नाम से क्यों बिफर उठता है, इस प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल पा रहा था.

शंभूनाथजी ने वट्सऐप ग्रुप बना लिया था. उस पर वे विभिन्न अवसरों, तीजत्योहारों आदि पर दान देने के मैसेज डालने लगे थे. प्रत्येक मैसेज के साथ दान की महत्ता बताई जाती. सुख, शांति व पापों से मुक्ति इन सभी के लिए दानदक्षिणा को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना बताया जाता.

गु्रप की सभी महिलाओं के बीच होड़ सी लग जाती कि कौन शंभूनाथजी को अधिक से अधिक दान दे कर न केवल स्वयं को बल्कि परिवार को भी पापों से मुक्ति दिलवाने का महान प्रयास कर रहा है? एकता भी इस से अछूती न रही. प्रतीक से किसी न किसी बहाने पैसे मांग कर वह पंडितजी को दे देती थी. मन ही मन इस के लिए वह अपने को दोषी भी नहीं मानती थी क्योंकि उस का विचार था कि इस से प्रतीक पर भी कष्ट नहीं आएंगे. सत्संग में विभिन्न कथाएं सुनकर वह भयभीत हो जाती कि विपरीत भाग्य होने पर किसी व्यक्ति को कैसेकैसे कष्ट ?ोलने पड़ते हैं. मन ही मन वह उन सखियों का धन्यवाद करती जिन के कारण वह पंडितजी के संपर्क में आई थी वरना नर्क में जाने से कौन रोकता उसे.

उस दिन प्रतीक औफिस से लौटा तो चेहरे की आभा देखते ही एकता सम?ा गई कि कोई प्रसन्नता का समाचार सुनने को मिलेगा. यह सच भी था. प्रतीक को कंपनी की ओर से प्रमोशन मिली थी. शाम की चाय पीकर प्रतीक एकता को घर से दूर कुछ दिनों पहले बने एक फाइवस्टार होटल में ले गया.

कैंडल लाइट डिनर में एकदूसरे की उपस्थिति को आत्मसात करते हुए दोनों भविष्य के नए सपने बुन रहे थे. प्रतीक ने बताया कि अब वह एक आलीशान फ्लैट खरीदने का मन बना चुका है.

खुशी से एकता का अंगअंग मुसकराने लगा. खाने के बाद प्रतीक डिजर्ट मंगवाने के लिए मैन्यू देखने लगा तो एकता ने मोबाइल पर मैसेज पढ़ने शुरू कर दिए. सत्संग गु्रप में आज शंभूनाथजी ने जिस विषय पर पोस्ट डाली थी वह था कि किस प्रकार खुशियों को कभीकभी बुरी नजर लग जाती है और काम बनतेबनते बिगड़ने लगते हैं.

ऐसे में कुछ रुपए या सामान द्वारा नजर उतार कर दान कर देना चाहिए. इस से नजर का बुरा असर उस वस्तु के साथ दानपात्र के पास चला जाता है. गु्रप में कई महिलाओं ने अपने अनुभव बांटे थे कि कैसे जीवन में कुछ अच्छा होते ही अचानक उन के साथ अप्रिय घटना घट गई.

‘‘उफ, कब से आ रहा है बुखार. टेस्ट की रिपोर्ट कब तक मिलेगी,’’ प्रतीक की आवाज कानों में पड़ी तो एकता ने अपना मोबाइल पर्स में रख दिया. प्रतीक के मोबाइल पर बड़ी बहन प्रियंका ने कौल किया था, उस से ही बात हो रही थी प्रतीक की. प्रियंका आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं थी, लेकिन वह या उस का पति मुकेश अपनी स्थिति सुधारने के लिए कोई प्रयास भी करते तो वह केवल परिचितों से पैसे मांगने तक ही सीमित था.

पेशे से इलैक्ट्रिक इंजीनियर मुकेश की कुछ वर्षों पहले नौकरी चली गई थी. वह उस समय बिजली का सामान बेचने का व्यवसाय शुरू करना चाहता था, जिस में प्रतीक ने आर्थिक रूप से मदद कर व्यवसाय शुरू करवा दिया था. कुछ समय तक सब ठीक रहा, लेकिन मुकेश बाद में कहने लगा कि इस बिजनैस में खास कमाई नहीं हो रही और अब एक अंतराल के बाद नौकरी लगना भी मुश्किल है.

ऐसे में प्रियंका बारबार अपने को दयनीय स्थिति में बता कर पैसों की मांग करने लगती थी. प्रतीक के बड़े भाई की आमदनी अधिक नहीं थी और छोटे की तुलना में भी प्रतीक की सैलरी ही अधिक थी तो सारी आशाएं प्रतीक पर आ कर टिक जाती थीं. प्रतीक यथासंभव मदद भी करता रहता था.

आज प्रियंका का फोन आया तो एकता की सांस ठहर गई. वह सम?ा गई थी कि कोई नई मांग की होगी प्रियंका दीदी ने. उसे पंडितजी का मैसेज याद आ रहा था कि खुशियों को कभीकभी बुरी नजर लग जाती है. कुछ देर पहले वह फ्लैट लेने की योजना बनाते हुए कितनी खुश थी. अब प्रियंका की आर्थिक मदद करनी पड़ेगी तो पता नहीं प्रतीक फ्लैट लेने की बात कब तक के लिए टाल देगा.

उस ने घर पहुंच कर नजर उतार कुछ रुपए शंभूनाथजी को देने का मन बना लिया क्योंकि भोगविलास से दूर भक्ति में लीन साधारण जीवन जीने वाला उन जैसा व्यक्ति ही ऐसे दान का पात्र हो सकता है. शंभूनाथजी दान का पैसा कल्याण में ही लगा रहे होंगे इस बात पर पूरा भरोसा था उसे. प्रतीक को प्रियंका से बात करते देख एकता ने प्रतीक की पसंदीदा पान फ्लेवर की आइसक्रीम मंगवा ली.

‘‘दीदी ने की थी कौल?’’ आइसक्रीम का स्पून मुंह में रखते हुए एकता ने पूछा.

‘‘हां, घर चल कर बात करेंगे,’’ प्रतीक जैसे किसी निर्णय पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था.

आइसक्रीम के स्वाद और विचारों में डूबे हुए अचानक एकता का ध्यान सामने वाली टेबल पर चला गया. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वहां शंभूनाथजी विभिन्न व्यंजनों का आनंद ले रहे थे. सत्संग के दौरान दिखने वाले रूप से विपरीत वे धोतीकुरते के स्थान पर जींस और टीशर्ट पहने थे, चेहरे पर प्रवचन देते समय खिली हुई मंदमंद मुसकान जोरदार ठहाकों में बदली हुई थी. अपने को संयासी बताने वाले शंभूनाथजी के पास वाली कुरसी पर एक महिला उन से सट कर बैठी थी.

तभी वेटर ने महिला के सामने प्लेट में सजा केक रख दिया. शंभूनाथजी ने महिला का हाथ पकड़ कर केक कटवाया और हौले से ‘हैप्पी बर्थडे’ जैसा कुछ कहा. जब अपने हाथ से केक का टुकड़ा उठा कर शंभूनाथजी ने महिला के मुंह में डाला तो एकता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उत्साह और अनुराग शंभूनाथ व महिला पर तारी था.

‘तो यह है कल्याणकारी काम जिस पर शंभूनाथजी दान का रूपयापैसा खर्च करते हैं.’ सोच कर एकता सकते में आ गई.

 

घर लौटने पर प्रतीक ने फोन के बारे में बताया. एकता का संदेह सच

निकला. प्रियंका ने इस बार बताया था कि मुकेश की अस्वस्थता के कारण वे मकान का किराया नहीं दे सके. मकान मालिक परेशान कर रहा है, माह का सारा वेतन दवाई में खर्च हो गया.

‘‘तो कितने पैसे भेजने पड़ेंगे उन लोगों को?’’ एकता न रानी सूरत बना कर पूछा.

‘‘बहुत हुआ बस. अब नहीं,’’ प्रतीक छूटते ही बोला.

‘‘मतलब इस बार आप कुछ पैसे नहीं…’’

‘‘हां, बहुत मदद की है मैंने दीदी, जीजाजी की. ये लोग स्वयं पर बेचारे का ठप्पा लगवा कर उस का फायदा उठा रहे हैं,’’ एकता की बात पूरी होने से पहले ही प्रतीक बोल उठा, ‘‘बुरे वक्त में किसी से मदद मांगना अलग बात है, लेकिन दूसरों की कमाई पर नजर रख अपने को असहाय दिखाते हुए दूसरों से पैसे ऐंठना और बात. पता है तुम्हें पिछले साल जब मैं औफिशियल टूर पर अहमदाबाद गया तो था प्रियंका के घर रुका था 1 दिन के लिए.’’

‘‘हां, याद है.’’ छोटा सा उत्तर दे कर एकता आगे की बात जानने के लिए टकटकी लगाए प्रतीक को देख रही थी.

‘‘मेरे वहां जाने से कुछ दिन पहले ही अपने बेटे कार्तिक की फीस और बुक्स खरीदने के बहाने पैसे मांगे थे मु?ा से उन लोगों ने, वहां जा कर देखा तो कार्तिक के लिए एक नामी ब्रैंड का महंगा मोबाइल फोन खरीदा हुआ था. मैं ने ऐतराज जताया तो प्रियंका दीदी बोलीं कि यह तो इसे गाने की एक प्रतियोगिता जीतने पर मिला है. मुकेश जीजाजी ने कार भी तभी खरीदी थी. क्या जरूरत थी कार लेने की जब फीस तक देने को पैसे नहीं थे उन के पास? मन ही मन मु?ो बहुत गुस्सा आया. मैं सम?ा गया कि इन्हें अपने सुखद जीवन के लिए जो पैसा चाहिए उसे ये दोनों इमोशनल ब्लैकमेल कर हासिल कर रहे हैं. उसी दिन मैं ने फैसला कर लिया कि रिश्तों को केवल सम्मान दूंगा भविष्य में.’’

‘‘आप ने यह मु?ो पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं सही समय की प्रतीक्षा में था.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘देखो एकता मैं कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम सत्संग में जाती हो. मैं जानता हूं कि वहां धर्म, कर्म के नाम से डराया जाता है. समयसमय पर दान का महत्त्व बता रुपएपैसे ऐंठने का चक्रव्यूह रचा जाता है. खूनपसीने की कमाई क्या निठल्ले लोगों पर उड़ानी चाहिए? फिर वह चाहे मेरी बहन हो या कोई साधू बाबा.’’

प्रतीक की बात सुन एकता किसी अपराधी की तरह स्पष्टीकरण देते हुए बोली, ‘‘मैं तो इसलिए दान देने की बात कहा करती थी कि सुना था इस से भला होता है.’’

‘‘कैसा भला? क्या उसी डर से दूर कर देना भला कहा जाएगा है जो डर जबरदस्ती पहले मन में बैठाया जाता है.’’

एकता सब ध्यान से सुन रही थी.

‘‘सोनेचांदी की वस्तुओं के दान से पाप धुल जाते हैं, रुपएपैसे व अन्य सामान का समयसमय पर दान किया जाए तो स्वर्ग मिलता है, ग्रहण लगे तो दान करो ताकि उस के बुरे प्रभावों से बचा जा सके, परिवार में जन्म हो तो भविष्य में सुख के लिए और मृत्यु हो तो अगले जन्म में शांति व समृद्धि के लिए दान पर खर्च करो. सत्संग में ऐसा ही कुछ बताया जाता होगा न,’’ प्रतीक ने पूछा तो एकता ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘तो बताओ किसने देखा है स्वर्ग. क्या ऐसा नहीं लगता कि स्वर्गनर्क की अवधारणा ही व्यक्तिको डराए रखने के लिए की गई है, अगले जन्म की कल्पना कर के सुख पाने की इच्छा से इस जन्म की गाढ़ी कमाई लुटा देना कहां की सम?ादारी है? ग्रह, नक्षत्रों, सूर्य और चंद्रग्रहण का बुरा प्रभाव कैसे होगा जबकि ये केवल खगोलीय घटनाएं है? ये बेमतलब के डर मन में बैठाये गए हैं कि नहीं? तुम से एक और सवाल करता हूं कि यदि दान देने से पाप दूर हो जाते हैं तो इस का मतलब यह हुआ कि जितना जी चाहे बुरे कर्म करते रहो और पाप से बचने के लिए दान देते रहो, यह क्या सही तरीका है जीने का?’’

‘‘नहीं, यह रास्ता तो अनाचार को बढ़ा कर व्यक्ति को गलत दिशा में ले जा सकता है,’’ एकता के सामने सच की परतें खुल रही थीं.

‘‘मैं देखता हूं कि लोग पटरी पर धूप और ठंड में सामान बेचने वालों से पैसेपैसे का मोलभाव करते हैं, नौकरों को मेहनत के बदले तनख्वाह देने से पहले सौ बार सोचते हैं कि कहीं ज्यादा तो नहीं दे रहे. पसीने से लथपथ रिकशे वाले से छोटी सी रकम का सौदा करते हैं और वही लोग दानपुण्य संबंधी लच्छेदार बातों में फंस कर बेवजह धन लुटा देते हैं.’’

शंभूनाथ का होटल में बदला हुआ रूप देख कर एकता का मन पहले ही खिन्न था. इन सब बातों को सम?ाते हुए वह बोल उठी, ‘‘विलासिता का जीवन जीने की चाह में दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं कुछ लोग. दान देना तो सचमुच निठल्लेपन को बढ़ाना ही है. किसी हृष्टपुष्ट को बिना मेहनत के क्यों दिया जाए? इस से हमारा तो नहीं बल्कि उस का जीवन सुखद हो जाएगा. देना ही है तो किसी शरीर से लाचार को, अनाथाश्रम या गरीब के बच्चे की पढ़ाई के लिए देना चाहिए और मैं ऐसा ही करूंगी अब.’’

प्रतीक मुसकरा उठा, ‘‘वाह, तुम कितनी जल्दी सम?ाती हो कि मैं कहना क्या चाह रहा हूं, इसलिए ही तो इतना प्यार करता हूं तुम्हें. जो अभी तुम ने कहा वही तो दीदी, जीजाजी को अब पैसे न भेजने का कारण है. जब वे लोग मुश्किल में थे मैं ने हर तरह से सहायता की. अब उन को गुजारे के लिए नहीं अपनी जिंदगी मजे से बिताने के लिए पैसे चाहिए. जहां धर्म में डर का जाल बिछा कर पैसे निकलवाए जाते हैं, वहां दीदी, जीजाजी अपनी बेचारगी का बहाना बना मु?ो बेवकूफ बना रहे हैं. मैं दान या मदद के नाम पर निकम्मेपन को बढ़ावा नहीं दूंगा, कभी नहीं.’’

‘‘सोच रही हूं व्हाट्सऐप के सत्संग गु्रप में जो फ्रैड्स हैं आज उन सब से बात करूं ताकि वे भी उस सचाई को जान सकें जिसे मैं ने जरा देर में जाना है,’’ प्रतीक की ओर मुसकरा कर देखने के बाद एकता अपना मोबाइल ले कर सखियों को कौल करने चल दी.

फेस मिस्ट मिनटों में लाएं चेहरे पर ग्लो

गरमी के मौसम में आप अपनी स्किन को कूल व रिफ्रैश फील देने की कोशिश करती हैं क्योंकि चिलचिलाती गरमी के कारण स्किन की रंगत फीकी पड़ जाती है, स्किन ड्राईनैस की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. ऐसे में फेस मिस्ट स्किन को हाइड्रेट, कूल व फ्रैश रखती है.

तो आइए जानते हैं कि आप किस तरह से फेस मिस्ट का चयन करें ताकि आप की स्किन को उस का फायदा मिले:

फेस मिस्ट है क्या

असल में फेस मिस्ट एक तरह का स्प्रे होता है जो ऐंटीऔक्सीडैंट्स, विटामिंस, एक्सट्रैक्ट्स व ऐसैंशियल औयल्स में रिच होने के कारण स्किन को ढेरों फायदे पहुंचाने का काम करता है. यह स्किन को पूरा दिन हाइड्रेट रख कर आप को फील गुड करवाता है. लेकिन इस का पूरा लाभ लेने के लिए फेस मिस्ट को हमेशा क्लीनिंग और मौइस्चराइजिंग स्टैप के बीच में इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि साबुन, फेसवाश ऐल्कलाइन होते हैं. ऐसे में फेस मिस्ट स्किन के पीएच लैवल को रीबैलेंस करने में मदद करता है.

ब्यूटी लवर्स की पसंद बना फेस मिस्ट

फेस मिस्ट में स्किन को मिनटों में तरोताजा करने वाली प्रौपर्टीज तो होती ही हैं, साथ ही इजी टू यूज के साथ इसे आसानी से कैरी भी किया जा सकता है. यह स्किन की थकान को दूर करने के साथसाथ स्किन को मेकअप के लिए भी तैयार करने का काम करता है और अगर स्किन ड्राईनैस की प्रौब्लम है तब तो यह स्किन पर मैजिक का काम करता है क्योंकि इस में स्किन को हाइड्रेट करने वाली प्रौपर्टीज जो होती है.

तभी तो आज ब्यूटी लवर्स की पसंद बन गया है फेस मिस्ट. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि आप अपनी स्किन की जरूरत के हिसाब से फेस मिस्ट का चयन करें.

तो आइए जानते हैं इस संबंध में:

ड्राईनैस से फाइट करे

अगर आप की स्किन ड्राई है तो आप किसी भी तरह के फेस मिस्ट का चयन न करें क्योंकि यह ड्राई स्किन की प्रौब्लम को और बढ़ा सकता है. ऐसे में आप के लिए जरूरी है कि ऐसे फेस मिस्ट का चयन करें, जिस में ह्यालूरोनिक ऐसिड व स्क्वालेन जैसे इनग्रीडिऐंट्स हों क्योंकि ये स्किन सैल्स को प्लंप करने के साथसाथ स्किन को हाइड्रेट करने में मदद करते हैं, साथ ही ये डैमेज स्किन को हील करने का भी काम करते हैं.

बैस्ट फेस मिस्ट

– बनिला को डिअर हाइड्रेशन फेशियल मिस्ट, जिस में है बैंबू, लोटस वाटर व नीम लीफ ऐक्सट्रेक्ट. ये स्किन के हाइड्रेशन लैवल को बूस्ट करने का काम करते हैं.

– पाई सैंचुरी फ्लौवर लोटस ऐंड औरेंज ब्लौसम सूथिंग टौनिक न्यूट्रिएंट रिच वाटर स्किन टोन

व टैक्स्चर को इंप्रूव करने के साथसाथ स्किन को रिफ्रैश व सुपर सौफ्ट बनाने का भी काम करता है.

स्ट्रैस स्किन से रिलीफ दे समर्स में ज्यादा सन ऐक्सपोजर, हीट, प्रदूषण व पसीने की वजह से स्किन पर स्ट्रैस की समस्या साफ देखने को मिलती है, जो स्किन को डल, बेजान व उस के नूर को कम करने का काम करती है और स्किन की सैंसिटिविटी से ले कर ऐजिंग का भी कारण बनती है.

ऐसे में स्किन के स्ट्रैस को दूर करने के लिए ऐसे फेस मिस्ट का चयन करें, जिस में कैमोमाइन, जोजोबा औयल, ऐसैंशियल औयल, लैवेंडर औयल व रोज वाटर की खूबियां हों क्योंकि ये स्किन को डीस्ट्रेस करने के साथसाथ स्किन सैल्स को हैल्दी बनाने का भी काम करते हैं.

बैस्ट फेस मिस्ट

– बौडी हर्बल स्ट्रैस रिलीफ लैवेंडर फेशियल मिस्ट स्किन टोन को इंप्रूव करने के साथसाथ ऐजिंग प्रोसैस को भी धीमा करने में मदद करता है.

– रोज वाटर मिस्ट स्किन को रैडनैस व पफीनैस को दूर करता है.

ऐक्ने प्रोन स्किन का ट्रीटमैंट

समर्स में खासकर औयली स्किन वालों को पोर्स के बंद होने के कारण ऐक्ने की प्रौब्लम सब से ज्यादा होती है. जो ऐक्ने के कारण स्किन रूखी व डल लगने लगती है. ऐसे में ऐक्ने प्रोन स्किन के लिए फेस मिस्ट किसी मैजिक से कम नहीं है क्योंकि यह औयल्स व सिलिकौन फ्री जो होता है.

बस इस बात का ध्यान रखें कि ऐसी स्किन के लिए फेस मिस्ट में रोज वाटर, ऐलोवेरा, ग्रीन टी जैसे इनग्रीडिऐंट्स हों क्योंकि इन में ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज होने के कारण ये स्किन को ठंडक पहुंचाने का काम करते हैं. डल स्किन में भी नई जान डालने का काम करते हैं.

बैस्ट फेस मिस्ट

– इन्नीसफ्री ग्रीन टी मिस्ट लाइटवेट होने के साथसाथ ग्रीन टी की खूबियों से भरपूर है जो हाइड्रेशन, हैल्दी स्किन टोन व ग्लोइंग स्किन देने का काम करता है, साथ ही स्किन के ऐक्सैस औयल को भी कंट्रोल करने में मदद करता है.

– इन्नीसफ्री ऐलो रीवाइटल स्किन मिस्ट ड्राई व पीलिंग स्किन के लिए बैस्ट ब्यूटी ट्रीटमैंट है.

– द ब्यूटी कंपनी ऐलोवेरा मिस्ट अलकोहल फ्री होने के कारण स्किन को सुपर हाइड्रेट करने में मदद करता है.

4 फाइट विद ऐजिंग

हर महिला चाहती है कि उस की स्किन हमेशा यंग रहे, लेकिन कई बार स्किन की केयर नहीं करने, गलत व कैमिकल्स वाले स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने की वजह से समय से पहले स्किन पर ऐजिंग की समस्या दिखने लगती है, जो किसी को भी गवारा नहीं होती. ऐसे में लेटैस्ट ब्यूटी ट्रैंड में चल रहे फेस मिस्ट ऐजिंग से फाइट करने में कारगर साबित हो रहे हैं.

इसलिए ऐजिंग के लिए जिस भी फेस मिस्ट का चयन करें तो देखें कि उस में टी ऐक्सट्रैक्ट, विटामिन सी, ई, पोमेग्रेंट ऐक्सट्रैक्ट, अल्फा ऐंड बीटा हाइड्रौक्सी ऐसिड, ग्रेपफूड ऐक्सट्रैक्ट आदि जरूर हों क्योंकि ये औक्सिडेशन स्ट्रैस को कम करने का काम करते हैं, जो ऐजिंग के लिए जिम्मेदार होता है.

बैस्ट फेस मिस्ट

– एसटी बोटेनिका नूट्रिटिवा पोमेग्रेंट फेस मिस्ट, जो ऐंटीऔक्सीडैंट्स का पावरहाउस होने के कारण यह एजिंग को रोकने का काम करता है.

– द बौडी शौप का विटामिन सी फेशियल मिस्ट आप की स्किन को ग्लोइंग बनाने व ऐजिंग से फाइट करने का काम करता हैं क्योंकि इस में है ऐंटीऔक्सीडैंट्स प्रौपर्टीज, जो स्किन सैल्स में कोलोजन का उत्पादन कर के ऐजिंग के प्रोसैस को स्लो करने का काम करती हैं.

ब्लू लाइट प्रोटैक्शन मिस्ट

आजकल अधिकांश समय गैजेट्स के सामने ही बीतता है जैसे लैपटौप, स्मार्टफोन, टीवी आदि. ये स्किन प्रौब्लम्स का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं क्योंकि इन डिवाइस से ब्लू लाइट के कारण निकलने वाली फ्री रैडिकल्स स्किन को डैमेज भी कर सकती हैं. ऐसे में ब्लू लाइट से स्किन को प्रोटैक्ट करने के लिए फेशियल मिस्ट बनाए गए हैं ताकि स्किन को प्रोटैक्शन व ग्लो दोनों मिल सकें.

बैस्ट फेस मिस्ट

– आईएलआईए ब्लू लाइट प्रोटैक्शन मिस्ट स्किन को हाइड्रेट करने, मेकअप को सैट करने तथा स्किन को हार्मफुल ब्लू लाइट व प्रदूषण से बचाने का काम करता है.

पोर्स मिनिमाइज फेशियल मिस्ट

एक स्टडी के अनुसार, बड़े पोर्स का मुख्य कारण अत्यधिक सीरम होता है. यह तब होता है जब किसी महिला की वसामय ग्रंथि अधिक तेल का उत्पादन करना शुरू कर देती है, जिस से त्वचा औयली हो जाती है, जो स्किन की कोमलता को भी चुराने का काम करती है. ऐसे में पोर्स को मिनिमाइज करने के लिए पावरफुल ऐंटीऔक्सीडैंट्स रिच फेस मिस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए.

बैस्ट फेस मिस्ट

– रैडियंस मिस्ट पोर्स को मिनिमाइज करने के साथसाथ बिना स्किन को इरिटेट किए उसे ऐक्सफौलिएट करने का काम करता है.

संकल्प: क्या था कविता का प्लान

उसशनिवार की शाम मुंबई में रहने वाली मेरी पुरानी सहेली शिखा अचानक मेरे घर आई, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. अपनी सास की बीमारी के चलते वह मेरी शादी में शामिल होने दिल्ली नहीं आ सकी थी. इस कारण मेरे पति मोहित उस दिन पहली बार शिखा से मिले.

जब तक मैं चायनाश्ता तैयार कर के लाई, तब तक वे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए थे. मोहित के चेहरे पर छाई खुशी व पसंदगी के भाव बता रहे थे कि वे शिखा के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हैं.

मैं ने नोट किया कि पिछले 6 सालों में वह काफी बदल गई है. वार्त्तालाप करते हुए वह बारबार अच्छी अंगरेजी बोल रही थी. उस के कीमती सैट की महक से मेरा ड्राइंगरूम भर गया था. 2 बेटों की मम्मी होने के बावजूद वह नीली जींस और लाल टौप में सैक्सी और स्मार्ट लग रही थी.

मेरे 5 साल के बेटे मयंक के लिए शिखा रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कार लाईर् थी. अपनी शिखा मौसी के गाल पर आभार प्रकट करने वाली बहुत सारी पुच्चियां कर वह कार से खेलने में मस्त हो गया.

मेरे बनाए पकौड़ों के स्वाद की तारीफ करने के बाद शिखा बोली, ‘‘मेरे घर में 3 नौकर काम करते हैं. जो थोड़ाबहुत किचन का काम मैं शादी होने से पहले करना जानती थी अब वह भी भूल गई हूं.’’

‘‘जब नौकर घर में हैं तो तुझे काम करने की जरूरत ही क्या है? तू तो खूब ऐश कर,’’ मैं ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘ऐश तो मैं वाकई बहुत कर रही हूं, कविता. किसी चीज की कोई कमी नहीं है मेरी जिंदगी में. आधी से ज्यादा दुनिया घूम चुकी हूं और अगले महीने हम चीन घूमने जा रहे हैं.’’

‘‘अमीर होने का मेरी नजरों में सब से बड़ा फायदा यही है कि बंदा जब चाहे देशविदेश भ्रमण करने निकल सकता है. कहांकहां घूम आए हो तुम दोनों?’’ मैं ने उत्साहित लहजे में पूछा.

‘‘अपने देश के लगभग सारे हिल स्टेशन हम ने देख लिए हैं. यूरोप घूमने 3 साल पहले गए थे. उस से पिछले साल केन्या में सफारी का मजा लिया था.’’

मेरा कोई सपना है तो वह देशविदेश में खूब घूमने का. तभी पूरी दिलचस्पी दिखाते हुए उस के देशविदेश भ्रमण के अनुभव मैं ने काफी देर तक सुने.

‘‘मुझे यह तो बता कि तुम दोनों कहांकहां घूमे हो?’’ काफी देर तक अपनी सुनाने के बाद शिखा को हमारे बारे में कुछ पूछने का खयाल आया.

समस्या यह पैदा हुई कि हमारे पास बताने को ज्यादा कुछ नहीं था और इस बात ने मेरे अंदर अजीब सी बेचैनी पैदा कर दी.

‘‘हम हनीमून मनाने शिमला गए थे. उस शानदार और यादगार ट्रिप के बाद कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम चाह कर भी नहीं बना सके हैं,’’ मैं ने यों तो मुसकराते हुए जवाब दिया, पर न चाहते हुए भी मेरी आवाज में उदासी के भाव उभर आए थे.

‘‘अरे, उस हनीमून ट्रिप के अलावा पिछले 6 सालोें में क्या तुम सचमुच कहीं और घूम कर नहीं आए हो?’’ शिखा हैरान हो उठी.

‘‘नहीं यार,’’ मैं ने गहरी सांस खींच कर सफाई दी, ‘‘शादी के बाद से कोई न कोई बड़ा खर्चा हमारे सिर पर हमेशा खड़ा रहा है. पहले ननद की शादी की. छोटे देवर की इंजीनियरिंग की पढ़ाई इसी साल पूरी हुई है. पिछले 2 सालों से इस फ्लैट की किस्त हर महीने चुकानी पड़ती है. यों तो हम दोनों कमा रहे हैं, पर कहीं घूमने जाने के लिए बचत हो ही नहीं पाती है.’’

मुझे हर साल कहीं न कहीं घुमा कर लाने के लिए शिखा मोहित को प्रेरित करने लगी, पर मैं ने अपने मन को दुखी न करने के इरादे से वार्त्तालाप में हिस्सा लेना बंद कर दिया.

शिखा के साथ हंसनाबोलना मोहित को खूब अच्छा लगा. वह करीब 2 घंटे हमारे साथ रही और फिर लौटते हुए शिखा मुझ से बोली, ‘‘जब भी मौका लगेगा, मैं अपने पति को मोहित से मिलाने जरूर लाऊंगी. सच कविता तेरी शादी बहुत हंसमुख और दिल के अच्छे इंसान के साथ हुईर् है.’’

मोहित को छेड़ने के लिए मैं ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया, ‘‘तेरा साथ इन्हें कुछ ज्यादा ही पसंद आया है, वरना ये इतने ज्यादा हंसमुख नहीं हैं. ये अपनी छोटी साली के साथ भी इतना ज्यादा समय नहीं गुजारते हैं जितना तेरे साथ गुजारा है.’’

‘‘मैं छोटी नहीं बल्कि बड़ी साली हूं, इसलिए मुझे पूरा सम्मान देते हुए मेरा ज्यादा खयाल रखा है. मेरे साथ खूब मजेदार गपशप करने के लिए थैंकयू, मोहित,’’ शिखा ने मुड़

कर पीछे आ रहे मोहित से बड़ी गर्मजोशी से

हाथ मिलाया.

न जाने क्यों शिखा की ‘बड़ी साली’ वाली बात मेरे मन को चुभ गई. वह मुझ से साल भर बड़ी है, पर अब मैं उस से काफी ज्यादा बड़ी लगने लगी हूं, इस एहसास ने मेरा मन एकाएक खिन्न कर दिया.

अपनी कार के पास पहुंच कर शिखा संजीदा लहजे में बोली, ‘‘कविता, तू कुछ ज्यादा मोटी हो गई है. मैं जानती हूं कि तुझे चौकलेट और आइसक्रीम बहुत पसंद हैं, पर अब कुछ समय के लिए उन्हें खाना बंद कर दे.’’

‘‘यार, इन दोनों चीजों को खाना कम तो कर सकती हूं, पर बिलकुल बंद करना मुश्किल है,’’ मैं ने नकली हंसी हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘देख, अगर तू ऐसे ही फूलती चली गई, तो मोहित की जिंदगी में कोई दूसरी औरत आ जाएगी.’’

‘‘मैं कितनी भी मोटी हो जाऊं, पर ये मुझे छोड़ कर किसी की तरफ कभी नहीं देखेंगे,’’ मैं ने प्यार से मोहित का हाथ पकड़ कर कुछ तीखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘सहेली, यों आंखें मूंद कर जीना बंद कर,’’ शिखा गंभीर हो कर मुझे समझने लगी, ‘‘पत्नियों के लिए अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाए रखने में लापरवाही करना उन के सुखी दांपत्य जीवन के लिए खतरा बन सकता है. मेरी तरह सुंदर और फिट दिखने की कोशिश तुझे भी दिल से करनी चाहिए.’’

‘‘कमर में दर्द रहने की वजह से इस का वजन कुछ बढ़ गया है, पर यह ‘मोटो’ मुझे अभी भी बहुत सुंदर लगती है,’’ मोहित ने मेरी तरफदारी करने की कोशिश जरूर करी, पर उन का मेरे लिए ‘मोटो’ शब्द का प्रयोग करना मुझे अच्छा नहीं लगा.

‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार और दिल

के अच्छे इंसान हो,’’ मोहित की फिर से तारीफ करने के बाद वह मुझ से गले मिली और कार में बैठ गई.

शिखा के जाने के बाद मैं ने मोहित को बुझ हुआ सा देखा. मेरे लिए उन के  मनोभावों को समझना मुश्किल नहीं था. शिखा ने जातेजाते मेरी तुलना अपने साथ कर के मोहित का मूड खराब कर दिया था.

डिनर करते हुए भी हमारे बीच अजीब सी दूरी और खिंचाव बना रहा. मैं ने उन की सुखसुविधा का खयाल रखने में कभी कोई कमी नहीं रखी, पर आज उन का मुंह फुला कर घूमना मुझे मेरी अपनी नजरों में गिराने की कोशिश करने जैसा था. यह बात मेरे मन को बहुत दुखी कर रही थी.

उस रात मेरे मन में मोहित के साथ अपने दांपत्य संबंधों की मजबूती को ले कर असुरक्षा का भाव पहली बार उठा. हमारे यौन संबंधों में अब पहले जैसा जोश नहीं रहा है, यह एहसास मेरे मन को और ज्यादा परेशान कर रहा था.

वे सोने से पहले नहाने के लिए जब बाथरूम में जा रहे थे, तो मैं ने उन्हें रोक कर भावुक लहजे से पूछ ही लिया, ‘‘आज बहुत देर से यों उदास हो कर क्यों घूम रहे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं,’’ मुझ से नजरें चुराते हुए उन्होंने बुझे से लहजे में जवाब दिया.

‘‘क्या अपने मन की बात मुझ से नहीं कहोगे?’’ मैं एकदम से रोंआसी हो उठी.

‘‘हम अमीर न होने के कारण अभावों से भरी जिंदगी जी रहे हैं, इस कारण क्या तुम मन ही मन दुखी रहती हो?’’ उन की आवाज में मौजूद पीड़ा के भाव मुझे अंदर तक हिला गए.

‘‘ऐसा अजीब सवाल क्यों पूछ रहे हो?’’ मैं ने उन से उलटा सवाल किया.

‘‘शिखा जब अपनी देशविदेश की यात्राओं के विवरण तुम्हें सुना रही थी, तब मैं ने तुम्हारी आंखों में गहरे अफसोस के भाव साफ देखे थे. अपने खूब घूमने के सपनों को पूरा न कर पाने का तुम्हें क्या बहुत दुख है?’’

‘‘बच्चों जैसी बात मत करो,’’ मैं ने उन्हें प्यार से डपट दिया, ‘‘मैं पहले तुम्हारी सारी जिम्मेदारियों को पूरा करने के महत्त्व को समझती हूं और अपने हालात से पूरी तरह सुखी और संतुष्ट हूं, माई डियर हस्बैंड.’’

‘‘तुम सच बोल रही हो?’’ उन की आंखों में कुछ राहत के भाव उभरे.

‘‘मैं बिलकुल सच बोल रही हूं. आई एम वैरी हैप्पी विद यू,’’ मैं भावविभोर हो उन से लिपट गई.

‘‘मैं वादा करता हूं कि तुम्हें एक बार पूरे यूरोप की सैर जरूर कराऊंगा,’’ उन्होंने मेरे माथे को चूमा और फिर जोशीली आवाज में बोले, ‘‘हम कल ही बैंक में एक अकाउंट खोलेंगे. उस में जो रकम जमा होगी, वह सिर्फ तुम्हारे घूमने के शौक को पूरा करने के काम आएगी.’’

‘‘तुम सचमुच बहुत अच्छे हो,’’ उन के गाल पर प्यार भरा चुंबन अंकित करने के बाद मैं ने उन्हें बाथरूम में जाने की इजाजत दे दी.

पलंग पर लेट कर मैं अपने मानोभावों को समझने की कोशिश में लग गई.  मोहित शिखा के साथ मेरे रंगरूप की तुलना कर के शाम से दुखी हो रहे हैं, मेरा यह अंदाजा पूरी तरह से गलत निकला था.

सुंदर स्त्री का साथ सब पुरुष चाहते हैं और मैं ने मोहित की आंखों में भी आज खूबसूरत और स्मार्ट शिखा के लिए प्रशंसा के भाव कई बार साफ देखे थे. मेरी जिम्मेदारी बनती थी कि मोहित को एक खूबसूरत व आकर्षक जीवनसाथी का साथ हमेशा मिले.

मयंक के होने के बाद से अपने रंगरूप व फिगर का ढंग से रखरखाव न कर पाने के लिए मैं ने खुद को दोषी माना और फौरन इस कमी को दूर करने का फैसला मन ही मन कर लिया.

मैं जिंदगी की चुनौतियों के सामने हार मानने वालों में से नहीं हूं. अपने जीवन में कई महत्त्वपूर्ण कार्यों को मैं ने अकेले अपने बलबूते पर पूरा किया था.

मैं ने अपनी एमए की पढ़ाई बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर पूरी करी थी. अपने लिए मोहित का रिश्ता मैरिज साइट पर जा कर खुद ढूंढ़ा था. शादी के बाद मुझे जल्दी समझ में आ गया था कि अगर मैं ने नौकरी नहीं करी तो हमें हमेशा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा. घर के कामकाज में उलझे रह कर पढ़ाई करना कठिन था, पर मैं ने लगन और मेहनत के बल पर बीएड की डिगरी हासिल करी थी.

उसी जोशीले जलबे के साथ अपने दांपत्य संबंधों में जोश और खुशियां भरने का संकल्प मैं ने उसी पल कर लिया. हम शिखा की तरह अमीर नहीं थे, पर हमें आपस में साथ रहने को बहुत समय मिलता था. मैं ने फैसला किया कि अपने दांपत्य जीवन में हंसीखुशी और मौजमस्ती बढ़ाने के लिए मैं अब से इस समय का सदुपयोग बखूबी करूंगी.

मोहित ने मेरी खुशियों की खातिर नया अकाउंट खोलने का फैसला किया. इसी तर्ज पर 3 महीने बाद आ रही शादी की सालगिरह पर मैं ने खुद को ज्यादा फिट, आकर्षक और सुंदर बना कर उन्हें खास उपहार देने का पक्का मन बना लिया.

मैं ने उसी वक्त उठ कर सुबह 5 बजे का अलार्म लगाया. सुबह जल्दी उठ कर पार्क में घूमने जाने का मेरा पक्का इरादा था. मेरी कमर का दर्द अब मेरा वजन कम करने में कोई रुकावट खड़ी नहीं कर सकेगा. वैसे डाक्टर का कहना भी यही था कि नियमित रूप से व्यायाम करने से ही दर्द जड़ से जाएगा.

वे नहा कर बाहर आए तो खुल कर मुसकरा रहे थे. मुझे उन की आंखों में जी भर कर प्यार करने वाले भाव दिखे, तो मेरे दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ गईं.

मुझे लगा कि स्मार्ट और सैक्सी शिखा के साथ गुजारा वक्त टौनिक की तरह काम करते हुए मोहित को रोमांटिक बना रहा है, पर यह विचार मुझे परेशान नहीं कर सका. जल्द ही मैं खुद उन्हें ऐसा टौनिक भरपूर मात्रा में पिलाया करूंगी, अपने इस संकल्प को फिर से दोहरा कर मैं उन की मजबूत बांहों के घेरे में कैद हो गई. मन में एक डर था कि कहीं शिखा की बात सही न निकले. कोई मोहित को ले न उड़े.

3 माह बाद शिखा अचानक पहले की तरह बिना बताए आ धमकी. इन दिनों में मैं ने अपना वजन 3 किलोग्राम कम कर लिया था. बदन चुस्त हो गया था. मार्क्स ऐंड स्पैंसर से सेल में कुछ अपने लायक ड्रैसें भी ले आई थी जो लेटैस्ट डिजाइन की तो न थीं पर पहले वाले बहनजी रूप से मुझे बदलने लायक तो थी हीं. मेरा बेटा मयंक अब गंभीर हो कर पढ़ने लगा था और मोहित का रुख और ज्यादा प्यारा हो गया था. जब वह आई तो मैं ने देखा कि वह पहले की तरह चुस्त तो थी पर चेहरे पर उदासी की परत बिखरी थी.

बनावटी ठहाके से उस ने मोहित को पुकारा. ‘‘हाय जीजू कहां हो… देखो तो बड़ी साली आई है.’’

मोहित तुरंत कमरे से निकले पर इस बार वह गर्भजोशी नहीं थी जो पिछली बार शिखा के साथ 2 घंटे बाद हुई थी. उन्होंने हंस कर स्वागत किया और कहा, ‘‘सालीजी, यह क्या हुआ? इतने दिनों से कोई मैसेज नहीं, कोई हाय नहीं, कोई तुम्हारी सलोनी तसवीर नहीं.’’

मैं ने पूछा, ‘‘चीन कैसा रहा? रोज कोविड की वजह से चीन के बंद होने की खबरें आ रही थीं.’’

शिखा ने कहा, ‘‘अरे कहां का चीन? हम जा ही नहीं पाए. मेरे पति तो  आजकल भाइयों के विवाह में बुरी तरह फंस गए हैं. कहीं आनाजाना हो ही नहीं पा रहा. मैं दिल्ली उन्हीं के साथ आई हूं, एनसीएलएटी में इन की अपील है. अकेले आने की सोच रहे थे पर 3 वकीलों से कौंन्फ्रैंस तय हो गई.

‘‘उन के मन पर हरदम बोझ रहता है. वजन बढ़ने लगा है. बहुत टैंस रहते हैं. अब कंपनी के कामों के सिलसिले में बाहर जाना बंद सा हो गया है. जब हालत सुधरेंगे तब देखेंगे. मेरी छोड़ अपनी सुना कविता. स्मार्ट लग रही है. वजन भी कम हो गया है. लगता है जीजू कुछ ज्यादा खयाल रख रहे हैं.’’

वह 2 घंटे रुकी पर पिछली बार की तरह ठहाके नहीं लगा पा रही थी. चलते हुए बोली, ‘‘जो हाथ में है उसी को ऐंजौय कर कविता. मेरी अपनी फिलौसफी इन के मुकदमों ने बदल दी है,’’ फिर मयंक के लिए चौकलेट का डब्बा देते हुए बोली, ‘‘मयंक ट्यूशन से आए तो देना न भूलना.’’

उस के जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी खुश हूं. बेकार में कंपीटिशन करने लगी थी. हरेक के जीवन में उतारचढ़ाव आते हैं. दूसरों को ऊंचे जाते देख अपनी हार नहीं माननी चाहिए, अपना काम अपनी गति से करते रहना चाहिए वरना दुख कब पिछले दरवाजे से घुस जाए. पता नहीं.

अब मेरा डर गायब हो गया था. मैं ने मोहित की एक जोर की पप्पी ली और बरतन समेटने लगी. मोहित सोच रहे थे कि अचानक यह बारिश क्यों और कैसे हुई?

घर पर लीजिए कटहल की दम बिरयानी का मजा

बिरयानी खाना किसे पसंद नहीं, लेकिन वेजिटेरियन लोगों के लिए बिरयानी के ऑप्शन बेहद कम होते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने वाले हैं कटहल की बिरयानी के बारे में, जिसका स्वाद आप भूल नहीं पाएंगे. तो फिर देर किस बात की चलिए जानते हैं इसकी विधि.

सामग्री

  • 200 ग्राम कटहल के छिले व कटे डेढ़ इंच के टुकड़े
  • 1 कप चावल
  • 3 लौंग
  • 2 छोटी इलायची
  • 1 इंच टुकड़ा दालचीनी
  • 1 बड़ी इलायची
  • 1 तेजपत्ता
  • 2 छोटे चम्मच तेल
  • नमक स्वादानुसार.

सामग्री कटहल को मैरीनेट करने की

  • 2 बड़े चम्मच प्याज का पेस्ट
  • 2 छोटे चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट
  • 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  • 1 छोटा चम्मच देगी मिर्च पाउडर
  • 1 बड़ा चम्मच मोटा बेसन
  • 1 छोटा चम्मच रिफाइंड औयल
  • कटहल तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल
  • नमक स्वादानुसार.

अन्य सामग्री

  • 1/2 कप लंबे कतलों में कटा व भुना प्याज
  • 1/4 कप दही
  • 2 बड़े चम्मच प्याज का पेस्ट
  • 1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट
  • 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  • 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला
  • 2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर
  • 1 छोटा चम्मच देगी मिर्च पाउडर
  • 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर
  • 5-6 केसर के धागे 1 चम्मच केवड़ा में भिगोए हुए
  • 1/4 कप टोमैटो प्यूरी
  • 2 तेजपत्ते
  • 2 बड़े चम्मच पुदीनापत्ती कटी
  • 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी
  • 2 हरीमिर्चें लंबाई में चीरी हुईं
  • 1 बड़ा चम्मच अदरक के बारीक कतरे लच्छे
  • 1 छोटा चम्मच जीरा
  • 3 बड़े चम्मच तेल
  • 3 बड़े चम्मच देशी घी
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

चावलों को साफ कर के 20 मिनट पानी में भिगाए रखें. कटहल के टुकड़ों को 20 मिनट मैरिनेट कर के अलग रखें. 6 कप पानी उबालें और उस में खड़े मसाले, नमक, तेल डालें और फिर चावल डाल कर उन के 80% गलने तक पकाएं और फिर मांड़ पसा दें. मैरिनेट किए कटहल के टुकड़ों को गरम तेल में सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें. एक अन्य बरतन में तेल गरम कर के प्याज, अदरक व लहसुन भूनें. फिर दही, सूखे मसाले व नमक डाल कर भूनें. फिर टोमैटो प्यूरी डालें. जब मसाला तेल छोड़ने लगे तो उस में 11/2 कप पानी व कटहल के टुकड़े डाल कर 2 मिनट तेज आंच पर पकाएं. अब एक भारी पैंदे के बरतन में नीचे 2 बड़े चम्मच देशी घी डाल कर तेजपत्ता लगाएं. फिर आधे चावलों की तह लगा दें. उन पर पूरा कटहल फैला दें. साथ ही भुना प्याज आधा. अब पुन: थोड़े से चावल फैलाएं और उन पर भुना प्याज, अदरक, हरीमिर्च, धनिया व पुदीनापत्ती फैला दें. बचे चावलों की तह लगाएं. ऊपर से केसर घोट कर फैला दें और फिर बचा देशी घी. ढक्कन लगाएं और बिलकुल धीमी आंच पर 10 मिनट दम कर के सर्व करें.

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब 

प्रदूषित हवा में ऐसिड अधिक होने की वजह से स्किन रूखी हो जाती है और प्रदूषण के कण उन के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजाऐसा क्लींजर यूज करें जो स्किन से नमी निकाले बिना उसे मौइस्चराइज करे. स्किन पर मौइस्चराइजर लगाने के बजाय फेशियल औयल यूज करें. यह हानिकारक तत्वों को स्किन में प्रवेश करने से रोकता है. स्किन में मौजूद औयल प्रदूषण के हानिकारक कण और धूलमिट्टी को हटाने में टोनर मदद करता है.

इसलिए मौइस्चराइजर के बाद टोनर लगाएं. समयसमय पर स्किन की स्क्रबिंग करना भी जरूरी हैलेकिन हलके हाथों से ताकि स्किन धूलमिट्टी और औयल से पूरी तरह फ्री हो जाए. आप चाहें तो फेशियल की जगह हलदी वाला या फिर आलू वाला फेस मास्क भी लगा सकती हैं. यह भी स्किन पर प्रदूषण के असर को कम करने में मदद करेगा.

प्यार को प्यार से जीत लो: शालिनी ने मां को कैसे मनाया

सुबह की हलकी धूप में बैठी मित्रा  नई आई पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं कि तभी शालिनी की तेज आवाज ने उन्हें चौंका दिया.

‘‘ममा…ममा…आप कहां हो?’’

‘‘ऊपर छत पर हूं. यहीं आ जाओ.’’

सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’

शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.

‘‘बोलो, तुम्हें कहना क्या है?’’

पता नहीं क्या हुआ कि शालिनी एकदम चुप हो गई. उस के स्वभाव के विपरीत उस का आचरण देख सुमित्रा अचंभित थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि कौन सी ऐसी बात है जिसे बोलने के लिए इस वाचाल लड़की को हिम्मत जुटानी पड़ रही है. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शालिनी ने खुद ही बातें शुरू कीं.

‘‘ममा, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लेकिन क्या करूं… आप को धोखे में भी नहीं रख सकती. इसलिए आप को बता रही हूं कि मैं ने और अतुल ने इसी महीने शादी करने का फैसला कर लिया है.’’

बेटी की बातें सुन कर सुमित्रा बुरी तरह चौंक गईं, मानो अचानक ही कोई दहकता अंगारा उन के पांव तले आ गया हो.

‘‘क्या…क्या कह रही हो तुम. यह कैसा मजाक है?’’

‘‘नहीं ममा…आई एम नौट जोकिंग. आई एम सीरियस.’’

‘‘शादीब्याह को क्या तुम ने गुड्डेगुडि़यों का खेल समझ रखा है जिस से चाहोगी जब चाहोगी झट से जयमाला डलवा दूंगी. सच पूछो तो इस में तुम्हारी भी क्या गलती है. समीर ने मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हर गलतसही मांगों को पूरा कर के तुम्हें इतना स्वार्थी और उद्दंड बना दिया है कि आज तुम्हेें मातापिता की भावनाओं का भी खयाल नहीं रहा.’’

‘‘ममा, हर बात के लिए आप पापा को दोष मत दीजिए. यह मेरा और अतुल का फैसला है. कंपनी अतुल को अगले महीने अमेरिका की अपनी एक शाखा में नियुक्त कर रही है. उस ने मेरे पासपोर्ट और दूसरे कागजात की भी व्यवस्था कर रखी है, इसीलिए हम दोनों इस महीने में शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘जब तुम ने सारे फैसले खुद ही कर रखे हैं तो अब पूछना कैसा?’’ गुस्से से तिलमिला कर सुमित्रा बोलीं, ‘‘सूचना देने के लिए धन्यवाद. जाओ, जो दिल चाहे वही करो.’’

सुमित्रा एकटक अपनी जाती हुई बेटी को देखती रहीं. उस की परवरिश में कहां कमी रह गई कि उस की इकलौती संतान, उस की अपनी ही बेटी ने अपने जीवन के इतने अहम फैसले में अपने मातापिता से सलाह तक लेने की जरूरत नहीं समझी. शालिनी की शादी उन के जीवन का सब से बड़ा सपना था. पर आज जब शादी होने का समय आया तो वे एक मूकदर्शक मात्र बन कर रह गई थीं.

बेटी से मिली अवहेलना की दारुण पीड़ा को झेलना उन के लिए दुष्कर था.

ऐसा नहीं था कि सुमित्रा को अतुल पसंद नहीं था. वह कई बार शालिनी के साथ घर आया था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रहा था. संस्कारी और सौम्य स्वभाव का लड़का था. विजातीय होते हुए भी अतुल, सुमित्रा को दिल से स्वीकार होता, अगर मातापिता की उपेक्षा न कर के शालिनी अपनी शादी का फैसला उन्हें अपने विश्वास में ले कर करती.

शाम को आफिस से लौटने के बाद समीर को जब सारी बातें मालूम हुईं तो बेटी के इस अप्रत्याशित फैसले ने उन्हें भी थोड़ी देर के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया. पर हमेशा की तरह थोड़ी देर बाद ही बेटी की गलती सुधारने में जुट गए.

समीर ने शालिनी को बुला कर उस से पूछताछ शुरू कर दी.

‘‘इस शादी के लिए क्या अतुल के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘नहीं, पापा, वे दोनों पूरी तरह हमारी शादी के खिलाफ हैं. हफ्ते भर से अतुल उन्हें मनाने में जुटा है फिर भी उस के मातापिता तैयार नहीं हो रहे हैं. उन का कहना है कि उन्हें अपने बेटे के लिए एक विजातीय डाक्टर बहू नहीं, एक सजातीय सीधीसादी घरेलू लड़की चाहिए.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं शीघ्र ही अतुल के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर तुम दोनों की शादी करवाने की पूरी कोशिश करता हूं.’’

‘‘नहीं, पापा, आप बात नहीं करेंगे. मेरे कारण वे आप के सम्मान को ठेस पहुंचाएं, यह मुझे मंजूर नहीं होगा.’’

‘‘वे अतुल के मातापिता हैं, उन का इस शादी के लिए तैयार होना बहुत जरूरी है, वरना तुम दोनों सारी जिंदगी सुकून से नहीं जी पाओगे.’’

‘‘माई फुट, वे मानें या न मानें… शादी तो हर हाल में अतुल मुझ से ही करेगा. वे मानेंगे तो ठीक, वरना हम दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे.’’

‘‘बेटा, थोड़ा सब्र से काम लो. अतुल उन की इकलौती संतान है, वह उन्हें मना ही लेगा.’’

‘‘नहीं…पापा…मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तो आज ही अतुल से शादी पक्की करने के लिए बात करूंगी.’’

‘‘जिंदगी के फैसले इस तरह जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. इस शादी से सिर्फ तुम्हारा और अतुल का रिश्ता ही नहीं जुड़ेगा, तुम्हारे न चाहने पर भी, ढेर सारे रिश्ते खुद ब खुद तुम से आ जुड़ेंगे… जिन से तुम इनकार नहीं कर सकतीं.’’

‘‘पापा, कौन मुझे इंडिया में रहना है जो इन रिश्तेनातों को निभाने के लिए परेशान रहूं.’’

‘‘अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है, जब दूर जाओगी तो अपनों की और रिश्तेनातों की अहमियत समझ में आएगी. एक बात और समझ लो कि तुम्हारे इस तीखे तेवर से उन के इस विश्वास को और भी बल मिलेगा कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की उन लोगों का सम्मान नहीं करेगी. उन के इस भ्रम को तोड़ने के लिए तुम्हें झुकना होगा. बड़ों के सामने झुकने में तुम्हारी तौहीन नहीं होगी, बल्कि खुद झुक कर ही तुम उन्हें झुका सकती हो. उन का प्यार और सम्मान पा सकती हो.’’

बिना कोई जवाब दिए चुपचाप शालिनी वहां से उठ कर बाहर आ गई और अपनी कार ले डा. सुधा वर्मा के घर की तरफ चल दी. डा. सुधा वर्मा उस की सीनियर और गाइड ही नहीं, अंतरंग सहेली जैसी थीं. जब वह सुधा वर्मा के पास पहुंची तब और दिनों की अपेक्षा ज्यादा आपरेशन होने के कारण वे काफी व्यस्त थीं. शालिनी पर नजर पड़ते ही काफी खुश हो गईं.

‘‘अच्छा हुआ जो तुम आ गईं. तुम जरा वार्ड नं. 13 में 113 नंबर बैड पर ऐडमिट डिप्रैशन के एक मरीज की जांच कर लो. सुबह जब मैं राउंड पर गई थी तब तो ठीक थी, अभी थोड़ी देर पहले से उस की परेशानी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है.’’

शालिनी वार्ड नं. 13 की तरफ चल पड़ी. उस वार्ड में एक प्रौढ़ महिला ऐडमिट थी. भरेभरे शरीर और बड़ीबड़ी आंखों वाली उस आकर्षक महिला के चेहरे पर गहरी विषाद की लकीरें छाई हुई थीं, जैसे कोई गहरी वेदना उसे साल रही थी. उस संभ्रांत महिला के साथ आई महिला ने बताया कि 2 दिन से उन की यही स्थिति है. इन 2 दिनों में इन्होंने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है.’’

‘‘इस तरह की स्थिति क्या इन की पहले भी कभी हुई है?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं…डाक्टरनी साहिबा. पहले इन की इस तरह की स्थिति कभी नहीं हुई. वह तो 4 दिन पहले इन की अपने इकलौते बेटे से किसी बात पर जम कर बहस हुई और वह इन्हें छोड़ कर मुंबई चला गया. 2 दिन तक तो इन्होंने किसी तरह अपने को संभाला, लेकिन जब बेटे का कोई फोन नहीं आया तो इन की स्थिति बिगड़ने लगी और हमें यहां लाना पड़ा.’’

शालिनी ने पहले नर्स को जरूरी इंजेक्शन तैयार करने की हिदायत दी फिर खुद भी उस महिला की नब्ज देखने लगी. महिला बेहोशी जैसी स्थिति में भी कुछ बड़बड़ाए जा रही थी, ‘मैं ने पालपोस कर बड़ा किया, इतना प्यार दिया और तू है कि मुझे ही जलाए दे रहा है. क्या तेरा सारा फर्ज उस कल आई लड़की के लिए ही है. बूढ़े मातापिता के प्रति तेरा कोई फर्ज नहीं है…और ऊपर से जलीकटी सुनाता है. जा, चला जा मेरी नजरों के सामने से. इस बीमार मां को जितना दुख दिया है उस से दोगुना दुख तू पाएगा. मैं यह सोचूंगी कि मैं ने अपना दूध अपने बेटे को नहीं एक संपोले को पिलाया है.’

शालिनी को यह समझने में देर नहीं लगी कि बेटे के किसी आचरण ने मां को गहरा सदमा दिया था. जब उस औरत की स्थिति थोड़ी सामान्य हुई और वह सो गई, तो शालिनी ने सुधा दीदी के पास जा कर उन्हें अब तक की स्थिति की रिपोर्ट थमा दी और सीधे आ कर कार में बैठ गई. कार में बैठने के साथ ही उस औरत का अशांत और पीडि़त चेहरा शालिनी की आंखों के सामने बारबार घूम रहा था. बेटे के कठोर आघात ने मां के दिल में कैसी कटुता भर दी थी कि बेहोशी की हालत में भी उसे कोस रही थी. शालिनी को एक ही बात बारबार दंश दे रही थी कि क्या वह खुद भी अतुल के साथ मिल कर कुछकुछ वैसा ही अपराध नहीं कर बैठी थी.

पहली बार शालिनी को अपने पापा की बातों की गहराई समझ में आई थी. अपने सुनहरे भविष्य की अटारी पर बैठी अपने जिस सपने को वह मुग्धभाव से निहार रही थी अचानक ही वह जमीन पर गिर कर चकनाचूर हो गया. अपनी स्वार्थी सोच पर लगाम देने के लिए शालिनी ने अतुल के घर की तरफ अपनी कार मोड़ ली.

वहां पहुंच कर बड़े ही आत्मविश्वास के साथ वह अंदर आ गई. सामने ही अतुल की मम्मी गायत्री देवी पाइप से पौधों को पानी दे रही थीं. उसे गेट खोल कर अंदर आते देख हाथ का पाइप एक तरफ रखते हुए बोलीं, ‘‘तुम…तुम यहां क्या करने आई हो? तुम्हें मालूम नहीं कि अतुल घर पर नहीं है. वह एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ है.’’

‘‘मुझे मालूम है आंटी, पर मैं अतुल से नहीं आप से बात करने आई हूं.’’

‘‘आई हो तो मुझ से उम्मीद मत रखना. मैं आसानी से अपने फैसले नहीं बदलती. मेरा एक ही जवाब है, अगर अतुल तुम से शादी करेगा तो अपने मातापिता को खो देगा.’’

‘‘आप निश्ंिचत रहिए आंटी, मैं आप को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर करने नहीं आई हूं. अगर आप सोचती हैं कि मेरे साथ अतुल की शादी होने से आप का नाम खराब होगा तो कहीं न कहीं आप की सोच सही ही होगी. आप हमारी बड़ी हैं, अतुल की मां हैं, सच मानिए आंटी, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप का अतुल पर पहला हक है. मैं उसे आप से कभी अलग करने की बात सोच भी नहीं सकती. जब तक आप नहीं चाहेंगी, आप आशीर्वाद नहीं देंगी, तब तक हम दोनों कभी शादी नहीं करेंगे, यह आप से मेरा वादा है.’’

‘‘और मेरा आशीर्वाद तुम्हें कभी मिलेगा नहीं.’’

‘‘तो ठीक है, आंटी. आज और अभी से मैं अपने सारे संबंध अतुल के साथ तोड़ती हूं.’’

इतना बोल वह तेजी से मुड़ कर अपनी कार में आ बैठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी के साथ इतनी झुक कर बातें की थीं, फिर भी उसे अपना मन काफी हलका लग रहा था, जैसे किसी अपराधबोध का बोझ उतर गया हो.

यह सत्य है कि अतुल के बिना जीना शालिनी के लिए आसान नहीं था, फिर भी अपने भौतिक सुखों के लिए किसी से उस की प्रिय वस्तु छीन लेने के बदले बिना किसी अपेक्षा के अपनी सब से प्रिय वस्तु किसी को समर्पित कर देने में उसे बेहद सुख और संतोष का अनुभव हो रहा था. घर आ कर जैसे ही उस ने अपना फैसला मां को बताया, शालिनी का उदास और क्लांत चेहरा देख उन का सारा गुस्सा फौरन तिरोहित हो गया.

‘‘अरे, वे लोग मेरी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? तू चिंता मत कर, मैं गायत्री से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, ममा…आप कोई बात नहीं करेंगी.’’

‘‘अरे, कैसे नहीं करूंगी, मां हूं. लोग अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते…’’

‘‘ममा, प्लीज,’’ वह मां की बात बीच में ही काट कर अपने कमरे में चली गई.

अपने वादे के अनुसार उस दिन से शालिनी ने न अतुल से कोई बात की और न ही उस का कोई फोन रिसीव किया.

करीब एक हफ्ते बाद…एक दिन जब शालिनी अस्पताल से लौटी तो मां ने झट से उस के सामने एक गुलाबी रंग की जरी की बार्डर वाली साड़ी ला कर रख दी और बोलीं, ‘‘जल्दी से तैयार हो जा. एक जगह सगाई में जाना है.’’

‘‘नहीं, ममा, मेरा मन नहीं है.’’

‘‘कभी तो अपनी ममा का दिल रख लिया कर.’’

अपनी मां के प्यार भरे अनुरोध को शालिनी टाल न सकी. मन न होते हुए भी साड़ी ले कर तैयार होने लगी. जल्दी ही तैयार हो कर ड्राइंगरूम में आ बैठी. उस की ममा अभी तैयार नहीं हुई थीं. वह यों ही बैठेबैठे टीवी के चैनल बदलने लगी. तभी दरवाजे पर घंटी बजी शालिनी ने बढ़ कर दरवाजा खोला तो भौचक रह गई. दरवाजे पर कई अजनबी चेहरों के साथ अतुल की मां गायत्री देवी खड़ी थीं. उसे भौचक और घबराई हुई देख कर वे बोलीं, ‘‘अंदर आने के लिए भी नहीं कहोगी.’’

‘‘हां, आइए न,’’ कह कर वह दरवाजे से हट कर खड़ी हो गई.

‘‘तुम्हारी ममा कहां हैं, उन्हें बुलाओ.’’

‘‘प्लीज आंटी, आप मेरी ममा से कुछ मत कहिए. वे पहले से ही मेरे कारण बहुत परेशान हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं…मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी. बुलाओ अपनी ममा को.’’

तभी शालिनी को अपने पीछे से अपनी मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, गायत्री बहन, आप आ गईं पर अतुल को कहां छोड़ आईं.’’

‘‘भला अपनी ही सगाई में वह खुद कैसे नहीं आएगा. अपनी पसंद की अंगूठी लेने गया है.’’

फिर शालिनी की तरफ मुखातिब हो कर गायत्रीजी बोलीं, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो बेटा, तुम्हें अपने बड़ों की खुशियों का खयाल है तो क्या बड़े अपने बच्चों की खुशियों का खयाल नहीं रखेंगे. उस दिन तुम्हारी सौम्यता, मेरे प्रति तुम्हारा निस्वार्थ प्रेम और उस से भी बढ़ कर तुम्हारे द्वारा झुक कर सम्मान का भाव प्रकट करने से मुझे लगा, तुम से अच्छी बहू मुझे नहीं मिल सकती. जब तुम्हारी मां ने पहल की तो मैं ने भी देर नहीं की. पहले चाहे मैं ने तुम्हें कितना भी भलाबुरा कहा हो पर आज सच्चे और साफ दिल से कहती हूं, तुम मुझे दिल से पसंद हो. मेरे बेटे की पसंद खराब हो ही नहीं सकती.’’

शालिनी शरमा कर उन के पैरों पर झुक आई तो उसे बीच में ही थाम कर गायत्रीजी ने उसे गले से लगा लिया.

अगर आप भी हेडफोन लगाती हैं तो सावधान हो जाइए

आज के समय में मोबाइल एक ऐसी जरूरत बन चुकr है, जिसके बिना आज के जीवन की कल्पना जैसे मुश्किल सी हो गई है. आप भी मोबाइल के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकते हैं. मोबाइल फोन्स आज हमारी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं. आज के समय के सभी लोग चाहे वह युवा वर्ग हो, बच्चे हों या बुजुर्ग, मोबाइल के शौकीन हैं. पर देखा गया है कि लोग मोबाइल का न सही इस्तेमाल करते हैं और न ही सही ढंग से करते हैं, जिस कारण ये हमारे लिए खतरा साबित होता है.

हम आपको बताना चाहते हैं कि जब भी आप बस या ट्रेन से सफर कर रहे होते हैं या बाहर घूमते वक्त भी, यहां तक की रात को सोते वक्त भी मोबाइल की लीड या हेडफोन लगाकर बात करते हैं या फिर गाने सुनते रहते हैं. यूं हर वक्त कान में हेडफोन लगाकर गाने सुनना या बात करना आपके लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है.

आपने शायद कई बार सोचा तो होगा कि हेडफोन लगाना आपके लिए खतरनाक हो सकता है पर फिर आप इस बात को भूल गए होंगे. तो हम आपको बता दें कि हेडफोन लगाकर गाने सुनने और लगातार फोन पर हेडफोन लगाकर बातें करने से आपको क्या-क्या गंभीर नुकसान हो सकते हैं..

1. जब भी आप अपनी गाड़ी चलाते हैं और कानों में लीड लगाकर रखते हैं, तो जाहिर है कि आपको अन्य गाड़ियों के हार्न का आवाज नहीं सुनाई देगी और ऐसे में हमें दुर्घटना होने का खतरा हरदम बना रहता है. इससे बचने का केवल यही उपाय है कि आप गाड़ी चलाते समय कानों में लीड लगाकर गाने न सुने. गाड़ी पर रहते हुए फोन भी नहीं उठाना चाहिए.

2. सुनने में अजीब तो लग सकता है पर ये सच है कि अधिक समय तक कानों में लीड लगाने से आप बहरे भी हो सकते हैं. साथ ही कान खराब होने की संभावनाऐं तो कई फीसदी बढ़ती ही हैं.

3. रात को सोते समय कानों में लीड लगाकर सो जाने से आपके कान की नसें कमजोर होने लगती हैं और एक बार कान की नसें कमजोर हो जाएं, तो वे जीवन भर आपको परेशान करती हैं.

4. इसके अलावा हेडफोन के ऐसे इस्तेमाल से कान में दर्द, सूजन, इन्फेक्शन और मानसिक तनाव भी पैदा होता है. ये बात आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है.

5. जब आप हेडफोन लगाकर गाने सुनते हैं, तो इससे आपके दिमाग के डैमेज या क्षतिग्रस्त होने का खतरा होता है. कई बार इससे सरदर्द की समस्या भी सामने आती है. आपके दिमाग को कई अंदरूनी समस्याओं का भी सामना कर पड़ सकता है, जो आपके जीवन के लिए वाकई एक गंभीर समस्या बन सकती है.

पथरीली मुस्कान: क्या गौरी की जिंदगी में लौटी खुशी

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