Monsoon Special: डिनर के लिए ऐसे बनाएं बेसनी करेला और शिमला मिर्च

रात को डिनर में बनाएं बेसनी करेला और शिमलामिर्च की डिश बच्चे से लेकर बड़े तक बड़े स्वाद से खाएंगे. आज ही घर में जरुर ट्राई करें बेसनी करेला और शिमलामिर्च की डिश. जोकि स्वाद में मजेदार. देखिए पूरी रेसिपी बेसनी करेला और शिमलामिर्च की डिश की.

बेसनी करेला

सामग्री

  1. 250ग्राम करेला
  2. 2 बड़े चम्मच बेसन
  3. कप लच्छों में कटा प्याज
  4. 1 छोटा चम्मच सरसों
  5. 2-3 साबूत लालमिर्च
  6. 1छोटा चम्मच गरममसाला
  7. 1 छोटा चम्मच हलदी
  8. 1 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी
  9. थोड़ा सा तेल तलने के लिए
  10. 1-2हरीमिर्चें
  11. 1टमाटर
  12. नमक स्वादानुसार.

विधि

करेलों को धो कर और छील कर लंबाई में टुकड़े कर लें. एक पैन में पानी डाल उस में थोड़ा सा नमक व हलदी डाल कर करेलों को भिगो दें. एक पैन में 2 चम्मच तेल गरम कर सरसों भूनें. फिर बेसन डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. प्याज के लच्छे डालें और नर्म होने तक पकाएं. टमाटर के टुकड़े काट कर इस में मिला दें. जब टमाटर कुछ गल जाएं तो थोड़ा सा पानी डाल कर कुछ देर के लिए ढक कर पकाएं. एक पैन में तेल गरम कर करेलों को पानी से निकाल कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तलें. तले करेलों को बेसन में डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. सारे मसाले मिक्स करें और कुछ देर ढक कर पकाएं और फिर गरमगरम परोसें.

2. बेसनी शिमलामिर्च

सामग्री

  1. 1/2कप बेसन
  2. 2 प्याज कटे
  3. 2 शिमलामिर्च कटी
  4. 1छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर
  5. 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  6. पकाने के लिए पर्याप्त तेल
  7. थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

विधि

पैन में तेल गरम कर शिमलामिर्च डाल कर चलाते हुए भूनें और निकाल लें. बेसन को अच्छी तरह से छान कर अलग रख दें. कड़ाही में तेल गरम कर प्याज सुनहरा होने तक पका लें. अब इस में सारे मसाले और शिमलामिर्च मिला कर 2 मिनट तक पकाएं. बेसन व थोड़ा पानी मिला कर ढक कर .5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं. धनियापत्ती से गार्निश कर परोसें.

Father’s day 2023: बुढ़ापे में माता-पिता आखिर किस के सहारे जिएं

समाचारपत्र में हर रोज नकारात्मकता और विकृत सच्चाई से रूबरू होना ही होता है. एक सुबह खेल समाचार पढ़ते हुए पन्ने पर एक समाचार मन खराब करने वाला था. अवकाशप्राप्त निर्देशक का शव बेटे की बाट जोहता रह गया.

एक समय महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति, जिस की पत्नी मर चुकी थी, आज वृद्धाश्रम में रह रहा था. उन का एकमात्र बेटा विदेश में जा बसा था. उसे खबर ही एक दिन बाद मिली और उस ने तुरंत आने में असमर्थता जाहिर की. देश में बसे रिश्तेदारों ने भी अंतिम क्रियाकर्म करने से इनकार कर दिया. आश्रम के संरक्षक ने शवदहन किया. एक समय पैसा, पावर और पद के मद में जीता  व्यक्ति अंतिम समय में वृद्धाश्रम में अजनबियों के बीच रहा और अनाथों सा मरा.

आखिर लोग कहां जा रहे हैं? बेटे की निष्ठुरता, रिश्तेदारों की अवहेलना ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर जीवन का गणित कहां गलत हुआ जो अंत ऐसा भयानक रहा. दुनिया में खुद के संतान होने के बावजूद अकेलेपन का अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर होना पड़ा. जवानी तो व्यक्ति अपने शारीरिक बल और व्यस्तता में बिता लेता है पर बुढ़ापे की निर्बलता व अकेलापन उसे किसी सहारे के लिए उत्कंठित करता है.

विदेशों से इतर हमारे देश में सामाजिक संरचना ही कुछ ऐसी है कि परिवार में सब एकदूसरे से गुथे हुए से रहते हैं. मांबाप अपने बच्चों की देखभाल उन के बच्चे हो जाने तक करते हैं. अचानक इस ढांचे में चरमराहट की आहट सुनी जाने लगी है. संस्कार के रूप में चले आने वाले व्यवहार में तबदीलियां आने लगी हैं. बच्चों के लिए संपूर्ण जीवन होम करने वाले जीवन के अंतिम वर्ष क्यों अभिशप्त, अकेलेपन और बेचारगी में जीने को मजबूर हो जाते हैं? इस बात की चर्चा देशभर के अलगअलग प्रांतों की महिलाओं से की गई. सभी ने संतान के व्यवहार पर आश्चर्य व्यक्त किया.

लेखक, संपादक, संवाद, व्हाट्सऐप ग्रुप पर व्यक्त विचार इस समस्या पर गहन विमर्श करते हैं. आप भी रूबरू होइए :

अहमदाबाद की मिनी सिंह ने छूटते ही कहा, ‘‘अच्छा है कि उन के कोई बेटा नहीं है, कम से कम कोई आस तो नहीं रहेगी.’’ पटना की रेनू श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘यदि बेटी होती तो शायद ये दिन देखने को न मिलते. बेटे की तुलना में बेटियां संवेदनशील जो होती हैं.’’ वहीं रानी श्रीवास्तव ने इस बात को नकारते हुए कहा, ‘‘बात लड़का या लड़की की नहीं, बल्कि समस्या परिवेश व परवरिश की है. समस्या की जड़ में भौतिकवाद और स्वार्थीपन है.’’

मुंबई की पूनम अहमद ने माना, ‘‘कुछ बेटियां भी केयरलैस और स्वार्थी होती हैं, जबकि कई बहुएं सास के लिए सब से बढ़ कर होती हैं.’’ अपने अंतर्जातीय विवाह का उदाहरण देते हुए वे कहती हैं, ‘‘उन की सास से उन का रिश्ता बहुत ही खास है. बीमार होने पर उन की सास उन के पास ही रहना पसंद करती हैं.’’ पूनम अहमद के एक ऐक्सिडैंट के बाद उन की सास ने ही सब से ज्यादा उन का ध्यान रखा. उन का कहना है, ‘‘पेरैंट्स को प्यार और सम्मान देना बच्चों का फर्ज है चाहे वे लड़के के हों या फिर लड़की के.’’

कौन है जिम्मेदार

सही बात बेटा या बेटी से हट, सोच के बीजारोपण में है. हम बच्चों को शुरू से जीवन की चूहादौड़ में शामिल होने के लिए यही मंत्र बताते हैं कि जीवन में सफल वही होता है जिस के पास अच्छी पदवी, पावर और पैसा है. हम उन्हें भौतिकवाद की शिक्षा देते हैं. बच्चों पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का इतना दबाव होता है कि वे दुनियावी और व्यावहारिक बातों में पिछड़ जाते हैं. किताबी ज्ञान भले ही बढ़ता जाता है पर रिश्तों की डोर थामे रखने की कला में वे अधकचरे रह जाते हैं.

सरिता पंथी पूछती हैं, ‘‘बच्चों को इस दौड़ में कौन धकेलता है? उन के मांबाप ही न, फिर बच्चों का क्या दोष?’’ रेणु श्रीवास्तव सटीक शब्दों में कहती हैं, ‘‘भौतिक सुखों की चाह में मातापिता भी तो बच्चों को अकेलापन देते हैं उन के बचपन में, तो संस्कार भी तो वही रहेगा.’’ वे कटाक्ष करती हैं, ‘‘रोपा पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय.’’ इस पर मुंबई की पूनम अहमद कहती हैं, ‘‘इसी से क्रैच और ओल्डहोम दोनों की संख्या में इजाफा हो रहा है.’’

अजमेर में रहने वाली लीना खत्री कहती हैं, ‘‘हमें अकसर बच्चों की बातें सुनने का वक्त नहीं होता है. यही स्थिति हमारे बूढ़े हो जाने पर होती है जब बच्चे जिंदगी की आपाधापी में उलझ जाते हैं और उन के पास हमारे लिए वक्त नहीं होता है.’’

नीतू मुकुल कहती हैं, ‘‘उक्त घटना हृदयविदारक और चिंतनीय है. मेरे हिसाब से इस समाचार का एक पक्षीय अवलोकन करना सही नहीं. हम बच्चों को पढ़ाने में तो खूब पैसा खर्च करते हैं पर उन के लिए क्या कभी समय खर्च करने की सोचते हैं. केवल अच्छा स्कूल और सुविधाएं देना ही हमारी जिम्मेदारी नहीं है.’’

इंदौर की पूनम पाठक कहती हैं, ‘‘मशीनों के साथ पलता बच्चा मशीन में तबदील हो गया है. उस के पास संवदेनाएं नहीं होती हैं, होता है तो सिर्फ आगे बढ़ने का जनून और पैसा, पावर व सफलता पानी की जिद. इन सब के लिए वह सभी संबंधों की बलि देने को तैयार रहता है.’’

पटना की रेणु अपने चिरपरिचित अंदाज में कहती हैं, ‘‘यह घटना आधुनिक सभ्यता की देन है जहां हृदय संवेदनशून्य हो कर मरुभूमि बनता जा रहा है.’’

ये सभी बातें गौर फरमाने के काबिल हैं. बच्चों के साथ बातें करना, वक्त गुजारना हमें उन के मानस और हृदय से जोड़े रखता है. दिल और मानस को वार्त्तालाप के पुल जोड़ते हैं और उस वक्त हम अपने भावों व संस्कारों को उन में प्रतिरोपित करते हैं. अंधीदौड़ में भागना सिखाने के साथ बच्चों को रिश्तों और जिम्मेदारियों का भी बचपन से ही बोध कराना आवश्यक है. बड़े हो कर वे खुदबखुद सीख जाएंगे, ऐसा सोचना गलत है. पक्के घड़े पर कहीं मिट्टी चढ़ती है भला?

बेरुखी का भाव

बच्चे तो मातापिता के व्यवहार का आईना होते हैं. कई युवा दंपती खुद अपने बुजुर्गों के प्रति बेरुखी का भाव रखते हैं. उन के लिए बुड्ढेबुढि़या या बोझ जैसे अपशब्दों का प्रयोग करते हैं. अपनी पिछली पीढ़ी के प्रति असंवेदनशील और लापरवाह दंपती अपनी संतानों को इसी बेरुखी, संवेदनहीनता और कर्तव्यहीनता की थाती संस्कारों के रूप में सौंपते हैं. फिर जब खुद बुढ़ापे की दहलीज पर आते हैं तो बेचारगी और लाचारी का चोला पहन अपने बच्चों से अपने पालनपोषण के रिटर्न की अपेक्षा करने लगते हैं. हर बूढ़ा व्यक्ति इतना भी दूध का धुला नहीं होता है.

मिनी सिंह पूछती हैं, ‘‘क्या मांबाप अपने बच्चे की परवरिश में भूल कर सकते हैं, तो फिर बच्चों से कैसे भूल हो जाती है?’’

इस पर रायपुर की दीपान्विता राय बनर्जी बिलकुल सही कहती हैं, ‘‘जिंदगी की आपाधापी में निश्चित ही हर बार हम  तराजू में तोल कर बच्चों के सामने खुद को नहीं रख पाते. इंसानी दिमाग गलतियों का पिटारा ज्यादा होता है और सुधारों का गणित कम, एक कारण यह है जो बच्चों को भी अपनी जरूरतों के अनुसार ढलने को मजबूर कर देता है. जो मातापिता जिंदगीभर अपने रिश्तेनातों में स्वार्थ व भौतिकता को तवज्जुह देते हैं, अकसर उन के बच्चों में भी कर्तव्यबोध कम होने के आसार होते हैं.’’

जिम्मेदारी का एहसास

शन्नो श्रीवास्तव ने अपने अनुभवों को सुनाते हुए बताया, ‘‘उन्होंने अपने ससुर की अंतिम समय में अथक सेवा की जिसे डाक्टरों और सभी रिश्तेदारों ने भी सराहा. वे इस की वजह बताती हैं अपने मातापिता द्वारा दी गई शिक्षा व संस्कार और दूसरा, अपने सासससुर से मिला अपनापन.’’

कितना सही है न, जिस घर में बच्चे अपने दादादादी, नानानानी की इज्जत और स्नेहसिंचित होते देखते हैं. कल को हजार व्यस्तताओं के बीच वे अपने बुजुर्गों के प्रति फर्ज और जिम्मेदारियों को अवश्य निभाएंगे, क्योंकि वह बोध हर सांस के साथ उन के भीतर पल्लवित होता है.

पूनम पाठक कहती हैं, ‘‘बात फिर घूमफिर वहीं आती है. उचित शिक्षा और संस्कार बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण तो करते ही हैं, साथ ही उन्हें रिश्तों के महत्त्व से भी परिचित कराते हैं. सो, सही व्यवहार से बेहतर भविष्य व रिश्तों के बीच संवेदनशीलता बनी रहती है.’’

सुधा कसेरा बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहती हैं, ‘‘हमें स्कूली पढ़ाई से अधिक रिश्तों के विद्यालय में उन्हें पढ़ाने में यकीन करना चाहिए. रिश्तों के विद्यालय में यह पढ़ाया जाता है कि बच्चों के लिए उन के मातापिता ही संसार में सब से महान और उन के सब से अच्छे मित्र होते हैं. दरअसल, रिश्तों को ले कर हमें बहुत स्पष्ट होना चाहिए.

‘‘तथाकथित अंगरेजी सीखने पर जोर देने वाले विद्यालय ने बच्चे को सबकुछ पढ़ा दिया, पर रिश्तों का अर्थ वे नहीं पढ़ा पाए. ऐसे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे, विदेश में नौकरी तो पा लेते हैं और वे विदेश में सैटल भी हो जाते हैं, लेकिन भारत में रहने वाले मातापिता के प्रति वे अपने कर्तव्य को अनदेखा करने से नहीं चूकते. रिटायर्ड बाप और मां किस काम के? विदेश की चमकीली जिंदगी में टूटे दांतों वाला बूढ़ा बाप बेटे के लिए डस्टबिन से अधिक कुछ नहीं रह जाता.’’

‘‘आज खुद मैं आगे पढ़ने के लिए अपने दोनों बच्चों को बाहर भेज रही हूं. अगर उस के बाद मैं यह आस रखूं कि वे मेरी जरूरत के समय वापस भारत आ जाएंगे तो यह मेरी बेवकूफी होगी. हमें उन्हें खुला आकाश देना है तो खुद की सोच में भी परिवर्तन लाना ही होगा,’’ कहना है सरिता पंथी का.

पद्मा अग्रवाल का कहना है, ‘‘मेरे विचार से बच्चों को दोष देने से पहले उन की परिस्थितियों पर भी विचार करना जरूरी है. एक ओर विदेश का लुभावना पैकेज, दूसरी ओर पेरैंट्स के प्रति उन का कर्तव्य, कई बार वे चाहे कर भी कुछ नहीं कर पाते. अपने कैरियर और जिंदगी ले कर भी तो उन की कुछ चाहतें और लक्ष्य होते हैं.’’

‘‘सीमा तय करना हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है. जिस प्रकार मातापिता अपने बच्चे के भविष्यनिर्माण के कारण अपने सुखसंसाधनों का परित्याग करते हैं, उसी प्रकार बच्चों को उन के लिए अपने कैरियर से भी समझौता करना चाहिए. नौकरी विदेश में अधिक पैकेज वाली मिलेगी, तो भारत में थोड़े पैसे कम मिलेंगे, बस इतना ही अंतर है. अधिकतर जो लोग रिश्तों को महत्त्व नहीं देते, वे ही विदेश में बसना पसंद करते हैं. वे यह नहीं सोचते कि उन के बच्चे भी बड़े हो कर उन के साथ नहीं रहेंगे तो उन को कैसा लगेगा,’’ ऐसा मानना है सुधा कसेरा का.

पल्लवी सवाल उठाती हैं, ‘‘क्या हम बच्चे सिर्फ अपनी सुखसुविधाओं के लिए ही पालते हैं? क्या वे हमारे नौकर या औटोमेशन टू बी प्रोग्राम्ड हैं? हर व्यक्ति का नितांत अलग व्यक्तित्व होता है. कोई जीवनभर आप से जुड़ा रहेगा, तो कोई नहीं. क्या पता कल को आप के बच्चे इतना समर्थ ही न हों कि वे आप की देखभाल कर सकें. क्या पता कल को वे किसी बीमारी या मुसीबत के मारे काम ही न कर सकें. कहने का तात्पर्य है कि बच्चों पर निर्भरता की आशा आखिर रखें ही क्यों.’’

पहले संयुक्त परिवार होते थे तो बच्चों का दूर जाना खलता नहीं था. आजकल मांबाप पहले से ही खुद को मानसिक रूप से तैयार करने लगते हैं कि बच्चे अपनी दुनिया में एक दिन अपने भविष्य के लिए जाएंगे ही.

संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों का चलन ने ही इस एकाकीपन को जन्म दिया है. पहले बच्चे भी अधिक होते थे. भाईबहन मिल कर मांबाप के बुढ़ापे को पार लगा लेते थे. एकदो अगर विदेश चले भी गए तो कोई फर्क नहीं पड़ता था. अब जब एक या दो ही बच्चे हैं तो हर बार समीकरण सही नहीं हो पाता है जीवन को सुरक्षित रखने का.

एहसान नहीं, प्यार चाहिए

जोयश्रीजी कहती हैं, ‘‘अगर बच्चों को मनपसंद कैरियर चुनने व जीने का अधिकार है तो सीनियर सिटीजंस को भी इज्जत के साथ जीने व शांतिपूर्वक मरने का हक है. यदि बच्चे देखभाल करने में खुद को असमर्थ पाते हैं तो उन्हें मातापिता से भी किसी तरह की विरासत की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.’’

वास्तविकता के मद्देनजर अगर मातापिता बच्चों को बिना उम्मीद पाले, बिना अपने किए का हिसाब गिनाए कई स्मार्ट विकल्पों पर ध्यान दें, मसलन वृद्धाश्रम या सामाजिक सरोकार वाले आश्रम, तो वे बखूबी अपनी जिंदगी किसी पर थोपने के एहसास से बचा कर अपने ही हमउम्र लोगों के साथ हंसतेमुसकराते कुछ नया करते, सीखते और साझा करते जिंदगी बिता सकते हैं. जब दूसरों को सुधारने की गुंजाइश नहीं रहती है तो खुद को कई बातें सहज स्वीकार करनी होती हैं.

बच्चों को उन के कैरियर और विकास से दूर तो नहीं कर सकते. दूसरी बात, पहले बच्चे अकसर मातापिता के साथ ही रह जाते थे चाहे नौकरी हो या पारिवारिक व्यवसाय. पर अब कैरियर के विकल्प के रूप में पूरा आसमान उन का है. मातापिता कब तक उन के साथ चलें. उन्हें तो थमना ही है एक जगह. बेहतर है कि परिवर्तन को हृदय से स्वीकारें और यह युवा होती पीढ़ी के हम मातापिता अभी से इस के लिए खुद को तैयार कर लें.

Father’s day 2023: अकेले होने का दर्द

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Karan Deol ने लिखवाया मंगेतर का नाम तो पापा सनी देओल ने भी लगाई मेहंदी

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता सनी देओल के बड़े बेटा करण देओल जल्द ही शादी के बंधन में बंधने जा रहे है. करण देओल अपनी मंगेतर द्रिशा के साथ शादी करने जा रहे है. शादी की सारी तैयारी शुरु हो चुकी है. 15 जून को करण की मेहंदी की रस्म आयोजन किया गया था. इस बीच सोशल मीडिया पर उनकी में मेहंदी की तस्वीरें खूब वायरल हो रही है. वायरल तस्वीरों में करण काफी खूबसूरत लग रहे हैं. फैंस को इनकी तस्वीरें काफी पसंद आ रही है.

करण ने अपने हाथ में लिखवाया मंगेतर का नाम

वायरल तस्वीरों में करण अपने हाथ में लगी मेहंदी फ्लॉट करते नजर आ रहे है. करण ने अपने हाथ में मंगेतर द्रिशा का नाम लिखवाया है. बताया जा रहा है इस 18 जून को करण घोड़ी चढ़ेंगे और अपनी दुल्हन के साथ सात फेरे लेंगे. इन दोनों की शादी की रस्मे जोरो-शोरो पर है. करण देओल मेहंदी सेरेमनी में येलो कुर्ता पहनकर पहुंचे. कार में बैठे करण देओल को मीडिया के कैमरे में कैप्चर किए गए हैं. इस दौरान करण देओल के चेहरे पर खुशी देखने लायक रही है.

 

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पापा सनी देओल ने भी लगाई मेहंदी

करण की मेहंदी सेरेमनी की वायरल तस्वीरों में बॉलीवुड के मशहूर दिग्गज अभिनेता सनी देओल करण की मेहंदी में खूब रंग जमाया. खास बात तो यह है कि सनी देओल ने अपने हाथ पर भी मेहंदी लगवाई. उन्होंने बेहद युनीक डिजाइन लगवाया, जो फैंस को भी पसंद आ रहा है. उनके फैंस सनी देओल के महेंदी डिजाइन की काफी पसंद कर रहे है. उनकी मेहंदी में ओम, ओंकार, चांद-तारा और क्रॉस के सिंबल बने थे, जो सभी धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई) के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है.

करण देओल और दिशा रॉय की शादी

पहले खबरें आ रही थीं कि करण और द्रिशा 16 जून 2023 को शादी करने वाले हैं. हालांकि, अब लेटेस्ट मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कपल 18 जून को दिन में शादी के बंधन में बंधेगा और रात को रिसेप्शन पार्टी होगी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, “सभी समारोह ‘ताज लैंड्स एंड’ में आयोजित किए जाएंगे, लेकिन हल्दी की रस्म उनके घर पर रखी गई, क्योंकि वे वेडिंग वाइब के लिए घर पर कुछ फंक्शन चाहते थे.

अनुपमा के खास दिन को बर्बाद करेगी माया, मीडिया के सामने किया बवाल

स्टार प्लस का सबसे पॉपुलर शो अनुपमा’ की टीआरपी लगातार नंबर वन पर बना हुआ है. लोगों के लिए ये शो टीवी का सबसे चहेता शो बना हुआ है. शो में आए दिन नए नए ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिलते रहते है. ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि, जैसे-जैसे अनुपमा के अमेरिका जाने के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही अनुज का प्यार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है जो माया को कतई बर्दाश्त नहीं हो रहा.

बीते दिन भी रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में देखने को मिला कि मीडिया के सामने मालती देवी अनुपमा को उत्तराधिकारी घोषित करती हैं. वहीं दूसरी ओर डिंपल शाह हाउस में बवाल मचाती है.

अनुपमा अनारकली बनकर डांस करेंगी

टीवी सीरियल अनुपमा में देखने को मिलेगा कि मालती देवी खुद अनुपमा को तैयार करेंगी और उसके बाद इवेंट की शुरुआत होगी. शो में पहले मालती देवी डांस करती है उसके बाद अनुपमा स्टेज को संभालेगी. अनुपमा अनारकली के लुक में अनारकली बनकर डांस करेंगी. अनुपमा का डांस देखकर सिर्फ मालती ही नहीं बल्कि हर किसी का दिल जीत लेगा. ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होते है शो में अनुज भी अनुपमा का इवेंट देखने पहुंच जाएगा. पीछे से माया भी वहीं पहुंच जाएगी. जो अनुपमा की खुशी जरा सी भी बर्दाश्त नहीं कर सकती.

अनुपमा का खास दिन बर्बाद हो जाएगा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कि शीशे में अनुपमा को देख माया बौखला जाएगी, फिर क्या माया डंडा लेकर उसे फोड़ देगी. माया को जहां-जहां अनुपमा दिखेगी, वह वहां-वहां तोड़-फोड़ करेगी.

यहां तक कि वह अनुपमा को स्टेज पर देखकर माया वहां भी पहुंच जाएगी और उसपर अनुज को छीनने का आरोप लगाएगी. शो में अनुपमा और अनुज उसे शांत कराने की कोशिश करेंगे, लेकिन माया किसी की नहीं सुनेगी. माया अनुपमा से कहेगी कि तुम इतनी भाग्यशाली क्यों हो? मेरी बेटी भी तुमसे प्यार करती है और अनुज भी तुमपर जान छिड़कते हैं.

Eyes: डार्क सर्कल्स से पाए छुटकारा, इस्तेमाल करें ये 2 चीजें

हर कोई चाहता है उसकी आंखे खूबसूरत और आकर्षक हो. लेकिन आंखो के नीचे मौजूद काले-काले घेरों की वजह से खूबसूरती में ग्रहण लग जाता है. अंडर आई डार्क सर्कल्स को हटाने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. आप डार्क सर्कल्स की समस्या को दूर करने के लिए क्या कुछ इस्तेमाल नहीं करते, महंगे-महंगे स्किन केयर प्रोडक्ट्स से लेकर ट्रीटमेंट्स तक. लेकिन ये काफी महंगे होने के साथ-साथ केमिकल से भरपूर होते हैं जो आपको मनचाहे रिजल्ट नहीं देते हैं. इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए टमाटर अंडर आई मास्क लेकर आए हैं जिसको आजमाकर आप आंखों के नीचे के जिद्दी से जिद्दी काले घेरों का सफाया कर सकते हैं. बता दें, टमाटर में ब्लीचिंग एजेंट मौंजूद होते हैं जो आपकी काली पड़ी स्किन को लाइटन करने में कारगर साबित होते हैं.

टमाटर अंडर आई मास्क साम्रगी

  • टमाटर
  • नींबू

टमाटर अंडर आई मास्क कैसे बनाएं

 टमाटर अंडर आई मास्क बनाने के लिए आप सबसे पहले एक छोटा बाउल लें.
फिर आप इसमें टमाटर का जूस और नींबू का रस डालें.
इसके बाद आप इन दोनों चीजों को अच्छी तरह से मिला लें.
अब आपका टमाटर अंडर आई मास्क बनकर तैयार है.

कैसे टमाटर अंडर आई मास्क का इस्तेमाल करें

आप सबसे पहले पानी से चेहरा धो लें. उसके बाद कॉटन बॉल की मदद से आंखो के नीचे अंडर आई मास्क लगाए, इसके बाद 10 मिनट का इंतजार करें. उसके बाद आप अपना फेस पानी से धो सकते है. बढ़िया रिज्लट के लिए आप टमाटर अंडर आई मास्क का इस्तेमाल 2 टाइम्स कर सकते है आप सुबह और शाम अप्लाई कर सकते है. इसके इस्तेमाल से आप आंखों के नीचे काले घेरे कम होने लगते है.

टमाटर के फायदे

वैसे तो हर चीज के अपने-अपने फायदे होते है. ऐसे ही टमाटर स्किन के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है और टमाटर स्किन बर्न में राहत प्रदान करता है. इतना ही नहीं टमाटर स्किन ड्रायनेस को दूर करके स्किन को नरिश बनाता है.

फुकेट: यहां मस्ती है अनलिमिटेड

जब अचानक मन हुआ कि लौकडाउन में काफी बंद बैठ लिए, अब थोड़ा घूमा जाए, कहीं घूम कर आया जाए तो सौ चीजें सामने थीं. भारत में तो काफी घूमा जा चुका है, अगर बाहर जाते हैं तो इतनी जल्दी वीजा नहीं मिलेगा, क्या किया जाए, यह सोचते हुए सब गूगल छानते रहे, आजकल तो गूगल है ही हर मरज की दवा. हर मुश्किल का हल. फिर वे जगहें देखीं गईं जहां ‘वीजा औन अराइवल’ की सुविधा है और ऐसी जगह भी चाहिए थी जहां की फ्लाइट बहुत लंबी न हो. तो सर्वसम्मति से थाईलैंड फाइनल हुआ.

फौरन एक एजेंसी सब पूछताछ की और उन के माध्यम से ही 10 दिन का पैकेज लिया गया. आजकल इस बात से बहुत आराम हो गया है कि टूर्स ऐंड ट्रैवल्स कंपनीज की सुविधा लेने से यात्राएं आसान हो जाती हैं. नई जगह कहां भटकेंगे, इस बात की चिंता नहीं रहती. फ्लाइट बुक करने से ले कर होटल, टैक्सी, खानापीना सब में आराम हो जाता है.

तो बस हम पतिपत्नी सुबह 5 बजे की मुंबई से फुकेट की 4 घंटे 40 मिनट की फ्लाइट पकड़ कर फुकेट पहुंचे, कहने को ही 4:30 घंटे की फ्लाइट थी, इस के लिए हमें रात 12 बजे ही ठाणे यानी घर से निकलना पड़ा था क्योंकि इंटरनैशनल फ्लाइट्स के लिए बाकी औपचारिकताओं के लिए एअरपोर्ट जल्दी पहुंचना होता है.

मस्ती और मजा

फुकेट एअरपोर्ट पर वीजा लेने वालों की लंबी लाइन थी. लाइन में मेरे पीछे पता है कौन था? मुजफ्फरनगर का कोई लड़का अपनी नईनवेली पत्नी के साथ. सोच कर देखिए, थाईलैंड में लाइन में आप के पीछे मायके के शहर का कोई इंसान फोन पर बात कर रहा हो और आप को समझ आ जाए कि लो, भई, यहां पीछे वाले मायके से हैं. मन ही मन मुसकराते हुए मैं ने उन की फोन पर बातें सुनीं. लड़का अपने पेरैंट्स को सारी जानकारी दे रहा था और उस की भाषा और बातों से साफसाफ पता चल चुका था कि हां, मायके की तरफ का ही है.

मैं ने आगे खड़े अपने पति से कहा, ‘‘अपने साले से मिलना है?’’

वे समझ गए कि कोई जोक आ रहा है, हंस कर बोले, ‘‘नहीं, मन नहीं.’’

काम बहुत तेजी से हो रहा था, इतनी तेजी से तो काम होने की उम्मीद नहीं की थी. हैरानी हुई कि किसी ने कोई पेपर नहीं देखा, पता चला आजकल टूरिस्ट्स की बहुत भीड़ है क्योंकि लौकडाउन के बाद अब सब घूमने आ रहे हैं. फौर्म भर कर बस फोटो लगवाया, इमीग्रेशन तो 10 मिनट में हो गया, फिर अपना सामान लिया, डेढ़ घंटे में एअरपोर्ट से बाहर आए. ट्रैवल एजेंसी की लड़की और एक शानदार कार हमारा इंतजार कर रही थी.

घूमतेघूमते जब भूख लगी

उस ने हमें कार में बैठा दिया और हम फिर क्राबी आइलैंड के लिए निकल गए. फुकेट हम लौटते हुए रुकने वाले थे. कार के ड्राइवर को न हिंदी आती थी, न इंग्लिश. इंग्लिश के कुछ ही शब्द वह सम?ा पा रहा था. हमें अब भूख लग रही थी. ड्राइवर को यह सम?ाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी कि कोई रेस्तरां दिखे तो रोक दे. बारबार उसे हंगरीहंगरी कहते हुए पेट पर हाथ रखा तो वह सम?ा गया और हंसने लगा. हम भी हंसते हुए उसे सम?ाते रहे कि ‘वैरी हंगरी’ और वह हंसते हुए कहता रहा कि नो फूड, नो रेस्तरां.

खैर, उस ने एक जगह कार रोक दी और कहा कि फूड कौफी.

हम ने जा कर उस शौप में खाने के बारे में पूछा तो भाषा की वही समस्या. उन्हें इशारे से सम?ाया कि खाना चाहिए तो उस शौप की 2 महिलाओं में से एक ने हमें एक प्लेट में थोड़े राइस और उबली सब्जियां डाल कर पकड़ा दीं जो खाई तो नहीं जा रही थीं पर भूख में तो पत्थर भी पापड़ लगता है तो बस किसी तरह पेट में डाल ही लिया.

जब वापस कार में आए तो ड्राइवर ने अपने पेट पर हाथ रखते हुए मुझ से पूछा कि फूड. ओके?

शायद वह समझ गया था कि भूख से ज्यादा परेशान में ही थी. क्राबी होटल पहुंचे. बहुत बड़ा और सुंदर होटल था. इस ट्रिप में हर जगह होटल की बुकिंग में ब्रेकफास्ट कौंप्लिमैंट्री था, लंच भी कहींकहीं उन्हीं की जिम्मेदारी थी. हां, डिनर अपने हाथ में था. पहली शाम अपनी थी, रूम में जा कर फ्रैश हुए.

स्थानीय बाजार की सैर

थोड़ा आराम किया. शाम को वहां की लोकल मार्केट घूमने और डिनर करने निकले. होटल के पास ही एक लाइन से कई रेस्तरां थे. हमारी इंडियन शक्लें देख कर इंडियन रेस्तरां वालों के वेटर हमें आवाजें लगा रहे थे, ‘‘आ जाओ, भैया, भाभी, दाल तड़का, मटरपनीर, इंडियन खाना है.’’

मुझे मन ही मन भैयाभाभी सुन कर हंसी आई. फिर हम एक इंडियन रेस्तरां में चले ही गए जहां खाना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. सर्विस भी बहुत खराब थी. सोच लिया, अब भैयाभाभी दोबारा इस होटल में तो आने से रहे. कल कहीं और ट्राई किया जाएगा.

फोर आइलैंड

अगले दिन फोर आइलैंड्स का टूर था जहां स्पीड बोट से गए, हाट वाटर स्प्रिंग देखा जहां नैचुरल गरम पानी के झरने थे जहां बहुत सारे विदेशी पर्यटक नहा रहे थे. हमें अभी तक स्पीड बोट में यहीं मुलुंड, मुंबई के युवा पतिपत्नी मिल चुके थे जिन से हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. हम उन के, वे हमारे फोटो लेते रहे. हमारे होटल भी आसपास थे और यह भी समझ आ गया था कि अगले कुछ दिन हमारा साथ रहेगा क्योंकि उन्होंने भी उसी एजेंसी से पैकेज लिया हुआ था.

उसी दिन ‘एमरल्ड पूल’ और ‘ब्लू पूल’ भी गए. इतना सुंदर नैचुरल रंगों का पूल देखने लायक था. बहुत ही सुंदर नीला, हरा सा पानी. वहां की खूबसूरती ऐसी थी जैसे किसी ने पानी में हरा और नीला रंग मिला दिया हो. अद्भुत, दर्शनीय. लौटते हुए फिर पगोड़ा देखा. यह काफी बड़े एरिया में बना हुआ है. कई सीढि़यां चढ़ कर ऊपर एक पौइंट भी है जहां से अच्छा व्यू दिखता है, पर बारिश में इस पर जाना सेफ नहीं है. अद्भुत कलाकारी है. बुद्ध की कई प्रतिमाएं हैं.

फिर आई वह एक शाम जिस की कल्पना मैं मुंबई से कर के चली थी, जिसे जान कर हो सकता है आप हंसें भी. जिस के शौक के कारण ही मुझे थाईलैंड आने का रोमांच था. मैं ने यहां की मसाज के बारे में बहुत सुना था और अब मैं यहां थी तो मुझे यह अनुभव लेना ही था.

शाम को जब हम होटल वापस पहुंचे, हम फ्रैश हो कर मार्केट की तरफ निकले तो मैं ने पति से कहा, ‘‘अब सब से पहले मसाज करवानी है, फिर कुछ और.’’

‘‘सच.’’

‘‘अरे, मैं तो आई ही इसलिए हूं. जरा देखा जाए यहां ऐसी क्या बात है जो मुंबई के स्पा में नहीं होती.’’

पति ने कहा, ‘‘ठीक है, कोई साफसुथरी जगह देखते हैं. मैं बाहर बैठा रहूंगा, तुम करवा लेना,’’ फिर हंसे, ‘‘तुम्हारा कोई शौक छूट न जाए.’’

मसाज का आनंद

वहां लाइन से लगातार मसाज पार्लर थे. एक साफसुथरा पार्लर देख कर हम अंदर गए. वहां की मालकिन काफी उम्रदराज थी और वहां काम करने वाली लड़कियां करीब 20 से 25 साल की रही होंगी. रेट्स पता किए, चार्ट लगा ही था, औयल मसाज चार सौ बाथ की थी, थाई मसाज 3 सौ की थी. मैं ने औयल मसाज के लिए बात की. थाई मसाज ड्राई होती है, औयल से नहीं होती. वहां मिले भारतीय लोगों ने बताया था कि वह भी बहुत अच्छी होती है. यह बहुत अच्छा पार्लर था. पति बाहर रखे सोफे पर बैठ कर अपने फोन में व्यस्त हो गए. सच कहूं, मुंबई से कई गुना ज्यादा अच्छी मसाज हुई. ऐसे कायदे से, ऐसी शालीनता से कभी नहीं हुई थी.

मुंबई से उलट पहला फर्क यही था कि सब से पहले शरीर को एक साफ चादर से ढक दिया गया. फिर जिस हाथ या जिस पैर की वह लड़की मालिश करती, उतना ही हिस्सा चादर से बाहर निकालती. सीने और नीचे के हिस्से से कपड़ा एक बार भी हटा ही नहीं. मैं हैरान सोचती रही कि मालिश भी ऐसे सभ्य तरीके से हो सकती है. 1 घंटा लगा, इतना आराम मिला कि यह अनुभव याद रहेगा.

मुंबई के पार्लर्स के मुकाबले यहां के रेट्स मुझे बहुत सस्ते लगे तो मैं ने सोचा कि मुंबई जाने से पहले 1-2 बार और करवाऊंगी. अब फीफी आइलैंड में भी इस का अनुभव लूंगी. यहां की करंसी ‘बाथ’ है, चार सौ बाथ मतलब लगभग यहां का हजार. तो मुंबई में हजार में कहां ऐसी मसाज होती.

3 दिन क्राबी रह कर हम फीफी आइलैंड में फेरी से टोनसाई पिएर उतरे. वहां से बोट से होटल आए. मुलुंड वाले दंपती भी साथ ही थे पर उन का होटल दूसरा था. शाम को बीच घूमे. यह मौसम यहां बारिशों का था. हम बोट पर बैठे. नीचे समुद्र की लहरें, ऊपर से तेज बारिश. बस हर तरफ पानी ही पानी था.

माया बे का जवाब नहीं

दूसरे दिन अपने नए साथियों के साथ छोटी बोट से माया बे गए जो बहुत प्रसिद्ध जगह है. फिर एक लगून गए. वहां उन लोगों ने स्नोर्कलिंग की. हम उन सब के फोटो लेते रहे क्योंकि हम दोनों उस समय पानी में नहीं उतरे थे. शार्क्स साफसाफ दिखाई दे रही थीं. बहुत आनंद के पल थे. वहां से हम उसी नाव से होंग आइलैंड पहुंचे. यहां गाइड ने सिर पर किसी इंजीनियर की तरह पहनने के लिए एक मजबूत टोपी दी.

समुद्र के किनारे घुटनेघुटने पानी में चल कर गुफाओं में होते हुए एक जगह जाना था. बहुत सुंदर जगह थी. यह और काफी एडवैंचर्स ट्रिप. यहां के पानी में मेरी एक चप्पल भी बह गई. बाहर लगी दुकानों से फिर एक जोड़ी चप्पल खरीदी गई.

यहां हमें दिल्ली के एक मिडल ऐज दंपती भी मिल गए जिन में से पत्नी का नाम मैं ने अपने मन में पम्मी आंटी रख लिया था क्योंकि मेरे युवा दोस्त ऐसी आंटियों को पम्मी आंटी कहते हैं जो न कोई मतलब, न कोई रिश्ता होते हुए पूछ लेती हैं कि बेटी की शादी कब करोगे. इन बहुत फैशनेबल, नखरीली सी पम्मी आंटी ने जब देखा कि हम भी इंडियन हैं तो उन्होंने घरपरिवार के बारे में पूछा. मेरे नाम और सरनेम पर तो अच्छेअच्छों को ?ाटका लगता है, सोचिए भारत से इतनी दूर घूमते हुए भी एक इंडियन लेडी को पानी में चलते हुए ये बातें करनी याद आईं, ‘‘आप का क्या नाम है.’’

‘‘पूनम अहमद.’’

‘‘लवमैरिज?’’

‘‘जी.’’

‘‘ओह, बड़ी मुश्किल हुई होगी?’’

‘‘जी.’’

‘‘बच्चे?’’

मैं ने बच्चों के बारे में उन्हें बताते हुए अपना हाथ पकडे़ अपने साथ चलते पति के कान में कहा, ‘‘फिर एक इंटरव्यू.’’

वे बोलीं, ‘‘बेटी की शादी अभी नहीं की?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उस का अभी मूड नहीं.’’

‘‘एक तो मुझे आजकल की लड़कियों की बातें ही नहीं पसंद. भई, अपने पैरों पर जब खड़ी हो गईं तो शादी कर के सैटल हो जाओ.’’

गृहशोभा के दीवाने

मैं बस उन की दाद देना चाहूंगी कि जब सब पानी में इतनी मुश्किल से अपना बैलेंस बनाते हुए गिरपड़ रहे थे, वे इस बात की चिंता कर रही थीं कि हमारी बेटी शादी कब करेगी. हमारे यहां की पम्मी आंटियां कमाल हैं न. हां, पर उन की एक अच्छी बात यह थी कि कभी वे ‘गृहशोभा’ बहुत शौक से पढ़ा करती थीं. अब उन्हें फोन के कारण टाइम नहीं मिल पाता. पर वे अब फिर पढ़ना जल्दी शुरू करेंगी.

उन्हें गृहशोभा हमेशा बहुत अच्छी लगी है. ये दोनों पतिपत्नी कभी भी लड़ते, कभी भी किसी भी बात पर बहस करते. ये पतिपत्नी इतने दिलचस्प कैरेक्टर लगे कि बस इन्हें देखते रहना और इन की बातें सुनते रहना कम रोचक नहीं रहा. ये दोनों अपनेआप में मनोरंजन का एक पूरा पैकेज थे. दुनिया में ऐसे लोगों का होना भी बहुत जरूरी है जिन्हें देखसुन कर ही आप बस मुसकराते रहें.

टोनसाई मार्केट में बर्गर किंग में बर्गर खाया. एक अलग तरह की कोकोनट आइसक्रीम खाई जो यहां की विशेषता है. फिर बोट से वापस होटल आ गए. नावों में इतना बैठ चुके थे कि अब जमीन पर चलते तो लगता कि सबकुछ हिल रहा है, वाशबेसिन पर सुबह ब्रश करते तो सिर ऐसे घूमता कि एक बार तो मैं ने वाशबेसिन पकड़ा, खूब सिर घूमता, फिर तैयार हो कर अगले आइलैंड के लिए नाव पर जा बैठते. यहां हम 2 रात थे, नैशनल पार्क देखा. यहां वाइट सैंड है, वहां से फेरी से फुकेट आए, होटल पौना घंटा दूर था.

अगले दिन सुबह जेम्स बांड आइलैंड गए, फिर एक जगह फ्लोटिंग रेस्तरां में लंच किया. फिर एक बीच पर स्विमिंग की और फिर होटल वापस. अगली सुबह टाइगर किंगडम गए, पशुपक्षी मु?ो विशेषरूप से प्रिय हैं और जब बात शेर देखने की, उस की पूंछ पकड़ कर उसे छू कर देखने की हो तो भला कौन मना करेगा. टाइगर किंगडम में टाइगर्स को दूर से देखते हुए भी आनंद लिया जा सकता है और एक तय राशि दे कर प्रोफैशनल फोटोग्राफर को हायर कर के एक विशेष केज में बौडीगार्ड्स और उन के केयर टेकर्स के साथ अंदर जा सकते हैं.

हम ने यही किया. इस में जो टाइगर्स थे, वे ट्रेंड थे. हमें निर्देश दिया गया कि उन्हें पीछे से हग कर सकते हैं, उन के आगे खड़ा नहीं होना है, इस फोटोग्राफर ने हमारे टाइगर्स के साथ अलगअलग पोज में 50 फोटो लिए मजा आ गया. यह जीवन का यादगार दिन था.

गजब का रोमांच

टाइगर्स इतने ट्रेंड हैं कि उन्होंने चूं तक नहीं की. आराम से बैठे हुए टाइगर्स के गले में हाथ डालडाल कर फोटो खिंचवाने में गजब का रोमांच रहा. फिर दिल में आया कि कहीं इन टाइगर्स को कोई ड्रग्स दे कर तो ऐसे नहीं रखा जाता. इस बारे में पूछ नहीं पा रहे थे क्योंकि भाषा की समस्या थी पर एक बोर्ड पर इंग्लिश में लिखा था कि इन टाइगर्स को ये केयर टेकर्स बचपन से ही ट्रेनिंग देते हैं इसलिए वे इन्हें देख कर कंफर्टेबल रहते हैं और इन्हें कोई ड्रग नहीं दिया जाता है. टाइगर्स कई घंटे सोते हैं.

फिर लंच कर के बिग बुद्धा गए. बुद्धा की एक बहुत बड़ी प्रतिमा के साथसाथ यहां और भी कई तरह की मूर्तियां हैं जो काफी सुंदर बनाई गई हैं. आसपास का वातावरण भी बहुत सुंदर था. प्राकृतिक दृश्यों की छटा देखते ही बनती है. साफसफाई बहुत है. फिर शाम को मार्केट, अगले दिन वापस.

अब तक थकान हो चुकी थी. अब

अच्छे पार्लर्स दिख नहीं रहे थे. दोबारा मसाज न करवा पाने का मौका न मिल पाने का मलाल

और मन में कई सुखद यादें, कई रोमांचक अनुभव लिए अगले दिन भारत लौट आए. यह सच है कि यात्राएं बहुत जरूरी होती हैं, नए अनुभव मिलते हैं, नए उत्साह से भर कर स्फूर्ति मिलती है. जीवन के सफर में सफर करते रहना जीवन को संवारता है, सफर की थकान को, मुश्किलों को नजरअंदाज करते हुए नईनई जगहें देखने के मौके तलाशते रहें. जीवन संवरता रहता है, आप बहुत कुछ सीख कर, जान कर वापस लौटते हैं.

उन का तो काम गंद फैलाना है

एक बड़ा सा विज्ञापन देकर देश की 10 प्लास्टिक का सामान बनाने वाली ऐसीसिएशनों ने सरकार से अपील की है कि माइक्रो व स्मौज प्लास्टिक प्रोड्यूसर्स को सरकार के क्रूर इंस्पैक्टर राज वाले एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पौंसिविलिटी रेगूलेशनों से मुक्ति दिलाई जाए. कहने को तो यह दुहाई ऋषि विश्वामित्र के राजा दशरथ के दरबार में राक्षसों से आश्रम बचानें जैसी है पर यह भूल गए कि दशरथ के साथ भेजने से राक्षस (जो भी लोग वे इस कथा में थे) खत्म नहीं हुए.

रामलक्ष्मण द्वारा राक्षसों को विश्वामित्र को भगा देने के बाद भी लंका सोने की बनी रही और रावण के मरने के बाद भी वह समाप्त नहीं हुई विभीषण के हाथ में गई और फलीफूली. इसलिए प्रधानमंत्री से बड़ा विज्ञापन दे कर इंस्पैक्टर राज के क्रूर हाथों से मुक्ति मिलेगी, यह प्लास्टिक प्रोड्यूसर भूल जाएं.

बड़ी बात है कि देश में प्लास्टिक से प्रदूषण के लिए प्रोड्यूसर नहीं हमारी वह धाॢमक संस्कृति है जो कचरा फैलाने को हर रोज प्रोत्साहित करती है. प्लास्टिक को जो उपयोग करते हैं, वे समझते हैं कि धर्म ने सफाई करने की जिम्मेदारी किसी और पर डाल रखी है और उन का काम गंद फैलाना है. चाहे प्लास्टिक की हो या कागज की या पत्तों व मिट्टी के पक्के बरतनों से.

प्लास्टिक उद्योग ने देश की जनता का बड़ा भला किया है. करोड़ों टन खाना आज प्लास्टिक के कारण बरबाद नहीं होता क्योंकि उसे प्लास्टिक में लाया ले जाया जाता है और घर व फ्रिजों में रखा जाता है. एक छोटी सी थैली ले कर बड़ेबड़े टैंक तक प्लास्टिक के बन रहे हैं जिन्होंने जीवन को सरल व सस्ता बनाया है. प्लास्टिक का इस्तेमाल आज इतनी जगह हो रहा है कि गिनाना संभव नहीं है.

प्लास्टिक का इस्तेमाल करने वालों की नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी है कि वे खुद अपने फैलाए गंद को साफ करें, यह काम और कोई नहीं करने आएगा. गाय का कुत्तों का मल सडक़ों पर है तो उन के मालिकों या संरक्षकों का काम है कि वे उसे साफ करें.

पर जैसे गोबर व गौमूत्र का गुणगान करना सिखा दिया गया है और उसे सहने की और सडऩे पर बदबू की आदत धर्म ने देश की जनता को डाल दी है, वही आदत प्लास्टिक के इस्तेमाल में डली हुई है. अच्छे से अच्छा जमा प्लास्टिक की थैलियों से ले कर खराब हो गए डब्बे, ड्रम सडक़ों पर डाल देता है. रिसाइकल वाले ले जाते हैं पर जिस को रिसाइकल न किया जा सके वह पड़ा रह जाता है. सालभर में देश की 30-35 लाख टन प्लास्टिक की वेस्ट अगर सडक़ों पर पड़ी रहती है तो जिम्मेदारी बनाने वाली की नहीं, इस्तेमाल करने वालों की है.

उस से बड़ी जिम्मेदारी सरकारी विभागों की है जो प्लास्टिक वेस्ट को उठाने, उसे सही ढंग से डिस्पोजबल करने के तरीके नहीं ईजाद कर रहे या लागू कर रहे. नगर निकायों से ले कर केंद्रीय सचिवालय तक प्लास्टिक कचरा निबटान पर कोई सोच नहीं है. सिर्फ बैन कर देना समस्या का हल नहीं है.

आज हर तरह की तकनीक मिल रही है. प्लास्टिक दिखने वाला प्रदूषण न फैलाए इस के लिए तो हर घर में मशीनें लगाई जा सकती हैं जो प्लास्टिक को कंप्रैस कर दें. नगर निकाय इन को तुरंत उठा कर रिसाइकल प्लांटों को दे सकते हैं. इन्हें जलाने की जगह इन्हें हाई प्रेस कर के भराव के काम में आसानी से लाया जा सकता है जहां आज मिट्टी पत्थर का इस्तेमाल होता है. यह समस्या इतनी विकराल नहीं है जितनी हम ने बना रखी है.

दिक्कत यही है कि हम जैसे अपनी गरीबी, बीमारी, संकटों के लिए पंडितों की बनाई बात कि यह पिछले जन्मों के पापों का फल है, मान लेते हैं. प्लास्टिक पोल्यूशन के लिए प्लास्टिक प्रोड्यूसर्स को दोषी मान रहे हैं. यह टके सेर यानी, टके फेर खाजा, अंधी प्रजा काना राजा वाली कहानी को दोहराता है.

पार्टी वाला पनीर बटर मसाला

घर में पार्टी हो तो घर और घरवालों में जान आ जाती है, ठीक इसी तरह पार्टी मेन्यू में पनीर बटर मसाला हो तो दावत में जान आ जाती है. बड़े ही नहीं बच्चे भी पनीर बटर मसाला बड़े चाव से खाते हैं. इसलिए इस डिश को मेन्यू में रखने से पहले दो बार सोचना नहीं पड़ता.

लेकिन कई बार घर में ये डिश बनाने के बाद मन में यह बात जरूर आती है कि बना तो बहुत उम्दा लेकिन वो वाली बात नहीं आ पाई. और ऐसा होता है मसालों का सही संतुलन न होने की वजह से. मगर अब टेंशन लेने की कोई बात नहीं, क्योंकि अब सनराइज़ पनीर बटर मसाला जो है.

सनराइज़ पनीर बटर मसाले की खास बात यह है कि इसे इस्तेमाल करने से न सिर्फ आप झटपट अपनी डिश तैयार कर सकती हैं बल्कि अलगअलग मसालों का सही संतुलन बनाने झटपट से भी मुक्ति मिलती है.

पनीर बटर मसाला

सामग्री

  1. 4-5 मध्यम आकार के प्याज बारीक कटे
  2. 1 बड़ा चम्मच टमाटर का पेस्ट 
  3. 250 ग्राम पनीर क्यूब्स में कटा 
  4. 1/2 चम्मच अदरकलहसुन को पेस्ट 
  5. सनराइज़ पनीर बटर मसाला 
  6. 1 बड़ा चम्मच काजू को पेस्ट
  7. 1/2 कप दूध
  8. 1 चम्मच बटर
  9. क्रीम गार्निशिंग के लिए 
  10. जरूरतानुसार तेल
  11. नमक स्वादनुसार.

विधि

पैन में तेल गरम कर उसमें बटर मिला दें. ध्यान रखें बटर जलना नहीं चाहिए. अब इसमें प्याज और अदरकलहसुन का पेस्ट भूनें. आंच धीमी कर सनराइज़ पनीर बटर मसाला मिलाकर कुछ देर भूनें. अब टमाटर का पेस्ट मिलाकर कुछ देरी चलाते हुए भूनें. जब मिश्रण तेल छोड़ने लगे तो काजू को पेस्ट मिलाकर धीमी आंच पर भूनें. अब पहले दूध फिर पानी इस मिश्रण में डालें. जब ग्रवी अच्छी तरह उबलने लगे तो पनीर और नमक भी मिक्स कर दें. 1 मिनट धीमी आंच पर ढक कर पकने दें. सर्विंग बाउल में निकालकर क्रीम से गार्निश करें और नान या कुल्चे के साथ परोसें.

शादी को 10 साल के बाद भी मां नहीं बन पा रही हूं, मै क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 38 साल है. शादी को 10 साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन मां बनने के सुख से वंचित हूं. डाक्टर ने बताया कि मेरे अंडे कमजोर हैं. इसी वजह से एक बार मेरा 3 माह का गर्भ भी गिर चुका है. बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

इस उम्र में गर्भधारण करना आमतौर पर थोड़ा मुश्किल हो जाता है. आप का 3 माह का गर्भ गिरना भी यही साबित करता है कि आप के अंडे कमजोर हैं. लेकिन आप को निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अगर आप के पति में कोई कमी नहीं है, तो आप एग डोनेशन तकनीक का सहारा ले सकती हैं. किसी अन्य महिला जैसे आप की बहन या भाभी आदि के अंडे आप के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं. इसके लिए आवश्यक है कि उक्त महिला शादीशुदा हो और बच्चे को जन्म दे चुकी हो.

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खानपान, शिफ्ट वाली नौकरी और रहन-सहन में आए बदलाव के कारण जहां एक तरफ लाइफस्टाइल पहले से अधिक बढ़ गया है, वहीं दूसरी तरफ टैकनोलौजी से भी कई हेल्थ प्रौब्लम बढ़ गई हैं. अब बढ़ती उम्र के साथ होने वाले रोग युवावस्था में ही होने लगे हैं. इनमें एक कौमन प्रौब्लम है युवाओं में बढ़ती इन्फर्टिलिटी. दरअसल, युवाओं में इन्फर्टिलिटी की समस्या आधुनिक जीवनशैली में की जाने वाली कुछ आम गलतियों की वजह से बढ़ रही है.

1. खानपान की गलत आदतें

इन्फर्टिलिटी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होती है खानपान की गलत आदतें. समय पर खाना नही, जंक व फास्ट फूड खाने के क्रेज का परिणाम है युवावस्था में इन्फर्टिलिटी की प्रौब्लम. फास्ट फूड और जंक फूड खाने में मौजूद पेस्टीसाइड से शरीर में हारमोन संतुलन बिगड़ जाता है, जिसके कारण इन्फर्टिलिटी हो सकती है. इसलिए अपने खानपान में बदलाव का पौष्टिक आहार का सेवन करें. हरी सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, बींस, दालें आदि ज्यादा से ज्यादा खाएं.

2. टेंशन

आधुनिक जीवनशैली में लगभग हर व्यक्ति टेंशन से ग्रस्त है. काम का दबाव, कंपीटिशन की भावना, ईएमआई का बोझ, लाइफस्टाइल मैंटेन करने के लिए फाइनैंशल बोझ आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो हम ने स्वयं अपने लिए तैयार की हैं. इन सभी के कारण ज्यादातर युवा टेंशन में रहते हैं और इन्फर्टिलिटी का शिकार हो रहे हैं. इससे बचने के लिए ऐसे काम करें कि आप टेंशन न हों. टेंशन के समय घर वालों और दोस्तों की मदद लें.

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