पार्टी वाला पनीर बटर मसाला

घर में पार्टी हो तो घर और घरवालों में जान आ जाती है, ठीक इसी तरह पार्टी मेन्यू में पनीर बटर मसाला हो तो दावत में जान आ जाती है. बड़े ही नहीं बच्चे भी पनीर बटर मसाला बड़े चाव से खाते हैं. इसलिए इस डिश को मेन्यू में रखने से पहले दो बार सोचना नहीं पड़ता.

लेकिन कई बार घर में ये डिश बनाने के बाद मन में यह बात जरूर आती है कि बना तो बहुत उम्दा लेकिन वो वाली बात नहीं आ पाई. और ऐसा होता है मसालों का सही संतुलन न होने की वजह से. मगर अब टेंशन लेने की कोई बात नहीं, क्योंकि अब सनराइज़ पनीर बटर मसाला जो है.

सनराइज़ पनीर बटर मसाले की खास बात यह है कि इसे इस्तेमाल करने से न सिर्फ आप झटपट अपनी डिश तैयार कर सकती हैं बल्कि अलगअलग मसालों का सही संतुलन बनाने झटपट से भी मुक्ति मिलती है.

पनीर बटर मसाला

सामग्री

  1. 4-5 मध्यम आकार के प्याज बारीक कटे
  2. 1 बड़ा चम्मच टमाटर का पेस्ट 
  3. 250 ग्राम पनीर क्यूब्स में कटा 
  4. 1/2 चम्मच अदरकलहसुन को पेस्ट 
  5. सनराइज़ पनीर बटर मसाला 
  6. 1 बड़ा चम्मच काजू को पेस्ट
  7. 1/2 कप दूध
  8. 1 चम्मच बटर
  9. क्रीम गार्निशिंग के लिए 
  10. जरूरतानुसार तेल
  11. नमक स्वादनुसार.

विधि

पैन में तेल गरम कर उसमें बटर मिला दें. ध्यान रखें बटर जलना नहीं चाहिए. अब इसमें प्याज और अदरकलहसुन का पेस्ट भूनें. आंच धीमी कर सनराइज़ पनीर बटर मसाला मिलाकर कुछ देर भूनें. अब टमाटर का पेस्ट मिलाकर कुछ देरी चलाते हुए भूनें. जब मिश्रण तेल छोड़ने लगे तो काजू को पेस्ट मिलाकर धीमी आंच पर भूनें. अब पहले दूध फिर पानी इस मिश्रण में डालें. जब ग्रवी अच्छी तरह उबलने लगे तो पनीर और नमक भी मिक्स कर दें. 1 मिनट धीमी आंच पर ढक कर पकने दें. सर्विंग बाउल में निकालकर क्रीम से गार्निश करें और नान या कुल्चे के साथ परोसें.

शादी को 10 साल के बाद भी मां नहीं बन पा रही हूं, मै क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 38 साल है. शादी को 10 साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन मां बनने के सुख से वंचित हूं. डाक्टर ने बताया कि मेरे अंडे कमजोर हैं. इसी वजह से एक बार मेरा 3 माह का गर्भ भी गिर चुका है. बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

इस उम्र में गर्भधारण करना आमतौर पर थोड़ा मुश्किल हो जाता है. आप का 3 माह का गर्भ गिरना भी यही साबित करता है कि आप के अंडे कमजोर हैं. लेकिन आप को निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अगर आप के पति में कोई कमी नहीं है, तो आप एग डोनेशन तकनीक का सहारा ले सकती हैं. किसी अन्य महिला जैसे आप की बहन या भाभी आदि के अंडे आप के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं. इसके लिए आवश्यक है कि उक्त महिला शादीशुदा हो और बच्चे को जन्म दे चुकी हो.

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खानपान, शिफ्ट वाली नौकरी और रहन-सहन में आए बदलाव के कारण जहां एक तरफ लाइफस्टाइल पहले से अधिक बढ़ गया है, वहीं दूसरी तरफ टैकनोलौजी से भी कई हेल्थ प्रौब्लम बढ़ गई हैं. अब बढ़ती उम्र के साथ होने वाले रोग युवावस्था में ही होने लगे हैं. इनमें एक कौमन प्रौब्लम है युवाओं में बढ़ती इन्फर्टिलिटी. दरअसल, युवाओं में इन्फर्टिलिटी की समस्या आधुनिक जीवनशैली में की जाने वाली कुछ आम गलतियों की वजह से बढ़ रही है.

1. खानपान की गलत आदतें

इन्फर्टिलिटी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होती है खानपान की गलत आदतें. समय पर खाना नही, जंक व फास्ट फूड खाने के क्रेज का परिणाम है युवावस्था में इन्फर्टिलिटी की प्रौब्लम. फास्ट फूड और जंक फूड खाने में मौजूद पेस्टीसाइड से शरीर में हारमोन संतुलन बिगड़ जाता है, जिसके कारण इन्फर्टिलिटी हो सकती है. इसलिए अपने खानपान में बदलाव का पौष्टिक आहार का सेवन करें. हरी सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, बींस, दालें आदि ज्यादा से ज्यादा खाएं.

2. टेंशन

आधुनिक जीवनशैली में लगभग हर व्यक्ति टेंशन से ग्रस्त है. काम का दबाव, कंपीटिशन की भावना, ईएमआई का बोझ, लाइफस्टाइल मैंटेन करने के लिए फाइनैंशल बोझ आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो हम ने स्वयं अपने लिए तैयार की हैं. इन सभी के कारण ज्यादातर युवा टेंशन में रहते हैं और इन्फर्टिलिटी का शिकार हो रहे हैं. इससे बचने के लिए ऐसे काम करें कि आप टेंशन न हों. टेंशन के समय घर वालों और दोस्तों की मदद लें.

Father’s day 2023: एफर्ट से बढ़ाएं पिता का कारोबार

24 वर्षीय रोहन ग्रैजुएशन के अंतिम वर्ष का छात्र है. उस के पिता का टूर ऐंड ट्रैवल का बिजनैस है, लेकिन पिछले 2 साल से यह धंधा मंदा चल रहा था. रोहन को जब यह पता चला तो उस ने आगे बढ़ कर बिजनैस को गति देने की सोची. उस ने कंपनी की वैबसाइट बना कर जगहजगह उस का लिंक भेजना शुरू किया. धीरेधीरे बुकिंग शुरू हो गई. आज आलम यह है कि रोहन की कंपनी के पास कस्टमर की डिमांड के मुताबिक गाडि़यां ही नहीं हैं.

रोहन जैसे न जाने कितने किशोर हैं जिन्होंने आगे बढ़ कर अपने एफर्ट से पिता के बिजनैस का मेकओवर किया है और घाटे में चल रहे बिजनैस को मुनाफे का सौदा बना दिया. दरअसल, समय के साथ परंपरागत तरीके से बिजनैस के बजाय नए जमाने के हिसाब से चलने में मुनाफा है. नोटबंदी के बाद से तो बिजनैस का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है. कल तक जहां कैश से सारा काम हो सकता था आज औनलाइन पेमैंट और डिजिटल मार्केटिंग का चलन जोरों पर है. ऐसे में यदि किशोर पिता के कारोबार को ऊंचाई देने की सोच रहे हैं तो इस से जुड़ी तमाम बातों की जानकारी हासिल कर लें. प्रस्तुत हैं कुछ बिंदु जो इस राह में आप की मदद कर सकते हैं :

पेरैंट्स को भरोसे में लें

व्यवसाय या परिवार के हित में आप जो भी करना चाहते हैं, सब से पहले आप को अपने पेरैंट्स को भरोसे में लेना होगा. आप उन्हें विस्तार से समझाइए कि किस तरह से उन की कोशिश सफल होगी. इस के लिए आप के पास सौलिड आइडियाज होने के साथसाथ उस के कुछ कागजी सुझाव भी होने चाहिए.

फायदे नुकसान के बारे में जानें

नई दिल्ली स्थित तारा इंस्टिट्यूट के डायरैक्टर सत्येंद्र कुमार का कहना है कि बिजनैस को बढ़ाने अथवा नया कलेवर देने से पहले जरूरी है कि आप उस के फायदे व नुकसान से भलीभांति अवगत हों, आप को यह चिह्नित करना होगा कि आप के साथ कौनकौन सी दिक्कतें आने वाली हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

बाजार की डिमांड समझें

गर्ग ग्रुप, दिल्ली के संरक्षक वी के गर्ग का मानना है कि यह समझना अत्यंत जरूरी है कि हम जिस बिजनैस में हाथ आजमाने जा रहे हैं, मौजूदा समय में उस की बाजार में कितनी और किस रूप में डिमांड है. उसी के अनुरूप अपनी प्लानिंग करें और कदम आगे बढ़ाएं.

संबंधित स्किल सीखना भी जरूरी

बिजनैस से जुड़ा कोई हुनर सीखना जरूरी है तो उस से पीछे न हटें. आप को कई ऐसे रास्ते मिलेंगे जहां से आप नई जानकारी हासिल कर सकते हैं. केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई कौशल विकास योजना के अंतर्गत 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल सिखाया जाना है. इस में बड़ी आबादी युवाओं की होगी, जो कम खर्च में बेहतर स्किल से लैस होंगे.

इंटरनैट से मिलेगी भरपूर मदद

आज युवा पीढ़ी के पास इंटरनैट के रूप में एक ऐसा अस्त्र है जिस की बदौलत वे अपनी हर समस्या का पलभर में समाधान ढूंढ़ सकते हैं. इस के जरिए उपभोक्ताओं तक पहुंच भी आसान हो सकेगी और काम का दायरा किसी सीमा में सीमित न हो कर देशविदेश तक फैल सकता है.

पढ़ाई न होने पाए बाधित

इन सब कोशिशों के बीच यह न भूलें कि आप यदि ग्रैजुएशन के छात्र हैं तो आप की जिम्मेदारी उस परीक्षा को बेहतर अंकों से पास करने की भी है. समय के साथ हर चीज जरूरी होती है. पिता के कारोबार को गति देने में सक्षम साबित हुए हैं तो पढ़ाई के प्लेटफौर्म पर भी आप को खुद को अव्वल साबित करना होगा. शिक्षा से आप का विजन मजबूत होगा.

ये 7 स्किल आएंगे काम

नवीनतम विचार, धैर्य व दृढ़ संकल्प, महत्त्वाकांक्षी, आकलन का कौशल, नई चीज सीखने को तत्पर रहना, निर्णय लेने की क्षमता, प्रतिकूल परिस्थितियों में न डिगना ऐसे स्किल्स हैं जो बिजनैस को गति देने के लिए जरूरी हैं.

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Father’s day 2023: ले बाबुल घर आपनो

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अपने जैसे लोग: भाग 3- नीरज के मन में कैसी शंका थी

हम खुशीखुशी बाहर निकल कर घर के सामने आए ही थे कि देखा पंकज और प्रदीप दोनों साइकिल से खेल रहे हैं. आश्चर्य तो नीरज को तब हुआ जब उस ने देखा कि पंकज तो गद्दी पर बैठा है और प्रदीप उसे धक्का दे रहा है.

‘‘देखो तो सही कैसे बादशाह की तरह गद्दी पर जमा बैठा है और उस से साइकिल खिंचवा रहा है. कहीं मिसेज गांगुली ने देख लिया तो…’’

‘‘वे कितनी ही बार बच्चों को ऐसे खेलता हुआ देख चुकी हैं. कोई भावना उन के मुख पर कभी दिखाई नहीं दी. सब आप के दिल का वहम है,’’ मैं ने उचित अवसर देख कर कहा और वह चुप हो गया. शायद वह अपनी गलती अनुभव करने लगा था.

एक इतवार को दोपहर का शो देखने का प्रोग्राम था. मैं नहा कर जल्दी से कपड़े बदल आई थी और घर में पहनने वाली अपनी साधारण सी धोती को मैं ने बरामदे में ही रस्सी पर डाल दिया. नीरज कुछ देर पीछे वाली कोठियों की ओर बड़े ध्यान से देखता रहा, फिर मेरी धुली धोती को उस ने रस्सी से उतार फेंका और बोला, ‘‘इस बीस रुपल्ली की धोती को इन लोगों के सामने सुखाने मत डाला करो. देखो, वह 6 नंबर वाली देखदेख कर कैसे हंस रही है, यह देख कर कि तुम्हारे पास ऐसी ही सस्ती धोती है पहनने को. क्या कहेंगे ये सब लोग? इसे सुखाना ही था तो उधर बाहर बगीचे में तार पर डाल देतीं.’’

‘‘आप तो बेकार हर समय वहम करते हैं, उलटा ही सोचते हैं. किसी को क्या मतलब है इतनी दूर से यह देखने का कि हमारी घर में पहनी जाने वाली धोती कीमती है या सस्ती? कोई किसी की ओर इतना ध्यान क्यों देगा भला.’’ मैं भी जरा क्रोध में बोलती हुई धोती को उठा कर बाहर डाल आई थी. बहुत दुख हुआ था नीरज के सोचने के ढंग पर. फिल्म देखते हुए भी दिल उखड़ाउखड़ा रहा. परंतु मैं ने भी हिम्मत न हारी.

तीसरे दिन शाम को 6 नंबर वाली रमा हमारे यहां आईं तो मुझे आश्चर्य हुआ. पर वे बड़े प्रेम से अभिवादन कर के बैठते हुए बोलीं, ‘‘शीलाजी, आप कलम चलाने के साथसाथ कढ़ाई में भी अत्यंत निपुण हैं, यह तो हमें अभी सप्ताहभर पहले ही सौदामिनीजी ने बताया है. सच, परसों दोपहर आप ने बरामदे में जो धोती सुखाने के लिए डाल रखी थी, उस पर कढ़े हुए बूटे इतने सुंदर लग रहे थे कि मैं तो उसी समय आने वाली थी लेकिन आप उस दिन फिल्म देखने चली गईं.’’

नीरज उस समय वहीं बैठा था. रमा अपनी बात कह रही थीं और हम एकदूसरे के चेहरों को देख रहे थे. मैं अपनी खुशी को बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थी और नीरज अपनी झेंप को किसी तरह भी छिपाने में समर्थ नहीं हो रहा था. आखिर उठ कर चल दिया. रमा जब चली गईं तो मैं ने उस से कहा, ‘‘अब बताओ कि वे मेरी धोती के सस्तेपन पर हंस रही थीं या उस पर कढ़े हुए बेलबूटों की सराहना कर रही थीं.’’

‘‘हां, भई, चलो तुम्हीं ठीक हो. मान गए हम तुम्हें.’’ पहली बार उस ने अपनी गलती स्वीकारी. उस के बाद एक आत्मसंतोष का भाव उस के चेहरे पर दिखाई देने लगा.

इस कालोनी में रहने का एक बड़ा लाभ मुझे यह हुआ कि मध्यम और उच्च वर्ग, दोनों ही प्रकार के लोगों के जीवन का अध्ययन करने का अवसर मिला. मैं ने अनुभव किया बड़ीबड़ी कोठियों में रहने वाले व धन की अपार राशि के मालिक होते हुए भी अमीर लोग कितनी ही समस्याओं व जटिलताओं से जकड़े हुए हैं. उधर अपने जैसे मध्यम वर्ग के लोगों की भी कुछ अपनी परेशानियां व उलझनें थीं.

मेरे लिए खुशी की बात तो यह थी कि प्रत्येक महिला बड़ी ही आत्मीयता से अपना सुखदुख मेरे सम्मुख कह देती थी क्योंकि मैं समस्याओं के सुझाव मौखिक ही बता देती थी या फिर अपनी लेखनी द्वारा पत्रिकाओं में प्रस्तुत कर देती थी. परिणामस्वरूप, कई परिवारों के जीवन सुधर गए थे.

मेरे घर के द्वार हर समय हरेक के लिए खुले रहते. अकसर महिलाएं हंस कर कहतीं, ‘‘आप का समय बरबाद हो रहा होगा. हम ने तो सुना है कि लेखक लोग किसी से बोलना तक पसंद नहीं करते, एकांत चाहते हैं. इधर हम तो हर समय आप को घेरे रहती हैं…’’

‘‘यह आप का गलत विचार है. लेखक का कर्तव्य जनजीवन से भागने का नहीं होता, बल्कि प्रत्येक के जीवन में स्वयं घुस कर खुली आंखों से देखने का होता है. तभी तो मैं आप के यहां किसी भी समय चली आती हूं.’’ मैं बड़ी नम्रता से उत्तर देती तो महिलाएं हृदय से मेरे निकट होती चली गईं.

धीरेधीरे उन के साथ उन के पति भी हमारे यहां आने लगे. नीरज को भी उन का व्यवहार अच्छा लगा और वह भी मेरे साथ प्रत्येक के यहां जाने लगा. मुझे लगने लगा वास्तव में सभी लोग अपने जैसे हैं…न कोई छोटा न बड़ा है. बस, दिल में स्थान होना चाहिए, फिर छोटे या बड़े निवासस्थान का कोई महत्त्व नहीं रहता.

अभी 3 दिनों पहले ही पंकज का जन्मदिन था. हमारी इच्छा नहीं थी कि धूमधाम से मनाया जाए, परंतु एक बार जरा सी बात मेरे मुंह से निकल गई तो सब पीछे पड़ गए, ‘‘नहीं, भई, एक ही तो बच्चा है, उस का जन्मदिन तो मनाना ही चाहिए.’’

हम दोनों यही सोच रहे थे कि जानपहचान वाले लोग कम से कम डेढ़ सौ तो हो ही जाएंगे. कैसे होगा सब? इतने सारे लोगों को बुलाया जाएगा तो पार्टी भी अच्छी होनी चाहिए.

‘‘इतने बड़े लोगों को मुझे तो अपने यहां बुलाने में भी शर्म आ रही है और ये सब पीछे पड़े हैं. कैसे होगा?’’ नीरज बोला.

‘‘फिर वही बड़ेछोटे की बात कही आप ने. कोई किसी के यहां खाने नहीं आता. यह तो एक प्रेमभाव होता है. मैं सब कर लूंगी.’’ मैं ने अवसर देखते हुए बड़े धैर्य से काम लिया. सुबह ही मैं ने पूरी योजना बना ली.

आशा देवी की आया व कमलाजी के यहां से 2 नौकर बुला लिए. लिस्ट बना कर उन्हें सहकारी बाजार से सामान लाने को भेज दिया और मैं तैयारी में जुट गई. घंटेभर बाद ही सामान आ गया. मैं ने घर में समोसे, पकोड़े, छोले व आलू की टिकिया आदि तैयार कर लीं. मिठाई बाजार से आ गई.

बैठने का इंतजाम बाहर लौन में कर लिया गया. फर्नीचर आसपास की कोठियों से आ गया. सभी बच्चे अत्यंत उत्साह से कार्य कर रहे थे. गांगुली साहब ने अपनी फर्म के बिजली वाले को बुला कर बिजली के नन्हें, रंगबिरंगे बल्बों की फिटिंग पार्क में करवा दी. मैं नहीं समझ पा रही थी कि सब कार्य स्वयं ही कैसे हो गया.

रात के 12 बजे तक जश्न होता रहा. सौदामिनीजी के स्टीरियो की मीठी धुनों से सारा वातावरण आनंदमय हो गया. पंकज तो इतना खुश था जैसे परियों के देश में उतर आया हो. इतने उपहार लोगों ने उसे दिए कि वह देखदेख कर उलझता रहा, गाता रहा. सब से अधिक खुशी की बात तो यह थी कि जिस ने भी उपहार दिया उस ने हार्दिक इच्छा से दिया, भार समझ कर नहीं. मैं यदि इनकार भी करती तो आगे से उत्तर मिलता, ‘‘वाह, पंकज आप का बेटा थोड़े ही है, वह तो हम सब का बेटा है.’’ यह सुन कर मेरा हृदय गदगद हो उठता.

रात के 2 बज गए. बिस्तर पर लेटते ही नीरज बोला, ‘‘आज सचमुच मुझे पता चल गया है कि व्यक्ति के अंदर योग्यता और गुण हों तो वह कहीं भी अपना स्थान बना सकता है. तुम ने तो यहां बिलकुल ऐसा वातावरण बना दिया है जैसे सब लोग अपने जैसे ही नहीं, बल्कि अपने ही हैं, कहीं कोई अंतर ही नहीं, असमानता नहीं.’’

‘‘अब मान गए न मेरी बात?’’ मैं ने विजयी भाव से कहा तो वह प्रसन्नता से बोला, ‘‘हां, भई, मान गए. अब तो सारी आयु भी इन लोगों को छोड़ने का मन में विचार तक नहीं आएगा और छोड़ना भी पड़ा तो अत्यंत दुख होगा.’’

‘‘तब इन लोगों की याद हम साथ ले जाएंगे,’’ कह कर मैं निश्चित हो कर बिस्तर पर लेट गई.

प्रेग्नेंसी को लेकर छलका दीपिका कक्कड़ का दुख, देखें वायरल वीडियो

‘ससुराल सिमर का’ धारावाहिक से अपनी पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ अपनी निजी लाइफ को लेकर काफी सुर्खियों में है. बता दें, टीवी एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ इन दिनों मां बनने वाली है. दीपिका अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर काफी चर्चा में है. दीपिका की जल्द ही डिलीवरी होने वाली है. वह अपने फैंस को यूट्यूब व्लॉग के जरिए प्रेग्नेंसी से जुड़ी पल-पल अपडेट्स देती रहती है.

अभी तक वह अपनी प्रेग्नेंसी को काफी एन्जॉय कर रही है. लेकिन अब दीपिका ने खुलासा किया है कि थर्ड ट्राइमेस्टर में उन्हें बहुत तकलीफ हो रही है. खासतौर पर वो सो नहीं पा रही हैं. इसके अलावा एक्ट्रेस ने ये भी बताया कि अब उनकी मम्मी भी उनका ख्याल रखने के लिए मुंबई शिफ्ट हो रही हैं और इस बात से वो बहुत खुश हैं.

प्रेग्नेंट दीपिका कक्कड़ अब सो नहीं पा रही

बता दें, दीपिका कक्कड़ अब प्रेग्नेंसी की थर्ड ट्राइमेस्टर में सोने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. दीपिका ने वीडियो में कहा, ‘मैं इस अजीब चीज से गुजर रही हूं. खासकर अपने तीसरे ट्राइमेस्टर में. पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान मुझे ये समस्या थी, लेकिन अब ये और भी मुश्किल हो गया है. मैं अभी सो नहीं पा रही हूं. यहां तक कि जब मैं टीवी बंद करके रात को सोने की कोशिश करती हूं, लेकिन कुछ भी मदद नहीं करता है. मैं सुबह 5 बजे सो जाती हूं और फिर मैं शोएब के लिए सुबह 7 बजे उठती हूं और मुझे भूख लगती है. मैं बिना चीनी वाली चाय पीती हूं और फिर मैं सुबह 10-11 बजे सो जाती हूं और अपनी नींद पूरी करती हूं.’

दीपिका ने बताया- “बच्चा मारता है किक और याद दिलाता है”

एक्ट्रेस अपने प्रेग्नेंसी के खास पल शेयर करते हुए कहती है ‘जब आप नींद में थोड़ा हिलते हैं, हालांकि आप इसके बारे में सचेत हैं तो बच्चा मुझे किक करता है और याद दिलाता है, ‘मैं अंदर हूं, मुझे धक्का न दें.’ इसलिए मैं इस फेज को इंजॉय कर रही हूं.

मैं अपने नए घर, हमारे बच्चे और हमारे लिए जो कुछ भी हो रहा है, उसके साथ नए बदलाव का एक्सपीरियंस करने के लिए बिल्कुल इंतजार नहीं कर सकती. शोएब और मैं अभी जो अनुभव कर रहे हैं, उसके लिए सपना देखा था और कड़ी मेहनत की थी.’

Anupama: गुरुकुल की जिम्मेदारी मिलने के बाद अनुज के प्यार को ठुकाराएगी अनुपमा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में आए दिन ट्विस्ट और टर्न्स देखने को मिल रहे है. शो के मेकर्स सीरियल को दिलचस्प बनाने के लिए शो में तड़का लगाते रहते है. दर्शकों के बीच ‘अनुपमा’ काफी फेमस है. शो के मेकर्स ने टीआरपी लिस्ट में नंबर वन बनने के लिए हर तरह का पैंतरा अपना लिया है. शो में अनुपमा की उड़ान की तैयारी शुरू हो चुकी है. वहीं दूसरी ओर अनुज को प्यार हो गया है वह अनुपमा के ख्यालों में डूबा रहता है.

गुरु मां अनुपमा में को उत्तराधिकारी बनाएंगी

बीते दिन ‘अनुपमा’ में देखने को मिला कि गुरु मां मीडिया के सामने अनुपमा को स्टार बना देती है. लेकिन अनुपमा में आने वाले ट्विस्ट यहीं खत्म होतें है.

गुरु मां मीडिया के सामने अनुपमा को उत्तराधिकारी बनाएंगी. वह पूजा के समय अनुपमा को अपने घुंघरु देंगी और अनुपमा से कहेंगी आज से कला की जिम्मेदारी तुम्हारी. गुरुकुल अब से तुम्हारा पहला घर होना चाहिए. गुरु मां यह भी बताती हैं कि आज से 6 दिन बाद अनुपमा अमेरिका चली जाएगी. उनकी बातें सुनकर अनुज परेशान हो जाता है.

बरखा माया के जले पर नमक छिड़केगी

‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि बरखा माया के जले पर नमक छिड़केगी. वह उससे कहेगी कि तुम्हें एक दिया था वह भी ढ़ग से नही हुआ. तुम्हे अनुज के दिल से अनुपमा को निकालना है. लेकिन तुम अनुज के दिल से अनुपमा को तो निकाल नहीं पाई अब खुद ही उसका नाम रटती रहती हो. बरखा की बाते सुनकर माया जलकर राख हो जाती है. वह खुद से बातें करते हुए कहेगी कि मैं हार नहीं मान सकती. मैं अनुपमा का सफाया करके रहूंगी. ऐसे में माना जा रहा है कि माया अनुपमा से छुटकारा पाने के लिए गंदा खेल खेलेगी.

पैरों तले अनुज का प्यार कुचलेगी अनुपमा

‘अनुपमा’ में ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होता. शो में आगे देखने को मिलेगा कि अनुज अनुपमा से मिलने जाएगा और उससे कहेगा कि मैंने पछतावे में ही सही, लेकिन माया की जिम्मेदारी लेकर गलती कर दी. इसपर अनुपमा कहेगी कि अब अन सब बातों का कोई फायदा नहीं है. अनुपमा वहां से जाने लगेगी कि अनुज उसे अमेरिका जाने से पहले मिलने के लिए कहेगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुपमा क्या कदम उठाएगी.

जानिए 5 बजट फ्रेंडली ब्रांडेड लिपस्टिक, देंगी परफेक्ट मेकअप लुक

अगर आपको मेकअप करना बेहद पसंद है और आप हमेशा से मेकअप के नए-नए प्रोडक्ट ट्राई करते रहते हैं तो ये लेख आप के लिए है. आमतौर पर महिलाओं को मेकअप करना खूब पसंद होता है, ऐसे में वे  अक्सर मेकअप प्रोडक्ट खरीदती रहती हैं. महिलाओं की रोजमर्रा लाइफ में लिपस्टिक की खास अहमियत है. लिपस्टिक के बिना मेकअप अधूरा है, लिपस्टिक ही मेकअप की जान है.

चलिए आज हम आपको इस लेख के जरिए 5 बजट फ्रेंडली ब्रांडेड लिपस्टिक के बारे में बताएंगे, जो ई-कॉमर्स साइट और स्टोर पर आसानी से मिल जाएंगी.

  1. Lakeme कुशन मैट लिपस्टिक

Lakme इंडिया का जाना-माना मेकअप ब्रांड है. इसकी खासियत यह है कि ये लॉन्ग लास्टिंग लिपस्टिक है. Lakeme कुशन मैट लिपस्टिक में कई सारे शेड में उपलब्ध जिसे आप ऑफिस से लेकर पार्टी, हर अवसर पर इस्तेमाल कर सकते है. Lakme ब्रांड की लिपस्टिक हर इंडियन स्किन स्टोन के लिए उपलब्ध है और यह लंबे समय तक होंठों पर टिकी रहती है. साथ ही यह लाइटवेट फॉर्मूला के साथ आती है.

2. Sugar Mini Lipstick

सुगर कॉस्मेटिक की यह लिपस्टिक विटामिन्स से भरपूर है और यह 12 घंटे तक टिकी रहती है. यह वाटरप्रूफ, ट्रांसफर प्रूफ है. यह लिक्विड फॉर्म में आती है. सुगर मिनी लिपस्टिक के कई सारे शेड उपलब्ध है. इसे आप कई अवसर पर इस्तेमाल कर सकते है. ऑनलाइन शॉपिंग एप पर इसके कई सारे शेड मौजूद है जिसे आप खरीद सकते है.

3. Maybelline मैट लिपस्टिक

Maybelline लिपस्टिक मखमली, हाइड्रेटिंग मैट लिपस्टिक है जो हर रोज इस्तेमाल के लिए सबसे बेस्ट है. ये लिपस्टिक चिकनी, मलाईदार बनावट प्रदान करती है जो बिल्कुल भी सूखती नहीं है. अमेजन पर इसके कई सारे शेड मौजूद है जिसे आप खरीद सकते है. Maybelline मैट लिपस्टिक एक बोल्ड, इंटेंस रंग देता है जो लंबे समय तक टिकता है और स्मूद मैट फ़िनिश देता है. ये लिपस्टिक हर इंडियन स्किन टोन पर सूट करती है.

4. MARS क्रिमी मैट लिपस्टिक

MARS क्रिमी मैट लिपस्टिक जो होंठों को मैट फिनिश स्मूद लुक देता है और ये  लिपस्टिक आपके लिए डेली बेसिस पर अप्लाई करना आसान बनाता है  ये  बेहद मलाईदार लिपस्टिक है इसी वजह से यह लिपस्टिक मक्खन की तरह चमकती है. इसमें एक स्वाइप पिग्मेंटेशन है. ये खासतौर पर इंडियन स्किन टोन के लिए बनीं है.

5. Insight नॉन ट्रांसफर लिपस्टिक

यह लिपस्टिक स्मूद मैट फिनिश देती है और लंबे समय तक रहती है. यह इंटेंस कलर देती है और यह नॉन-ट्रांसफरेबल और वाटर प्रूफ है. केवल एक बार लगाने पर पिगमेंट से भरपूर रंग प्रदान करती है. यह लिपस्टिक पैराबेन्स से मुक्त है. पार्टी से लेकर दफ्तर तक आप इस लिपस्टिक का इस्तेमाल कर सकते है. ये लिपस्टिक इंडियन स्किन टोन के लिए बनीं है.

Father’s day 2023: कृष्णिमा- बाबूजी को किस बात का शक था

‘‘आखिर इस में बुराई क्या है बाबूजी?’’ केदार ने विनीत भाव से बात को आगे बढ़ाया.

‘‘पूछते हो बुराई क्या है? अरे, तुम्हारा तो यह फैसला ही बेहूदा है. अस्पतालों के दरवाजे क्या बंद हो गए हैं जो तुम ने अनाथालय का रुख कर लिया? और मैं तो कहता हूं कि यदि इलाज करने से डाक्टर हार जाएं तब भी अनाथालय से बच्चा गोद लेना किसी भी नजरिए से जायज नहीं है. न जाने किसकिस के पापों के नतीजे पलते हैं वहां पर जिन की न जाति का पता न कुल का…’’

‘‘बाबूजी, यह आप कह रहे हैं. आप ने तो हमेशा मुझे दया का पाठ पढ़ाया, परोपकार की सीख दी और फिर बच्चे किसी के पाप में भागीदार भी तो नहीं होते…इस संसार में जन्म लेना किसी जीव के हाथों में है? आप ही तो कहते हैं कि जीवनमरण सब विधि के हाथों होता है, यह इनसान के वश की बात नहीं तो फिर वह मासूम किस दशा में पापी हुए? इस संसार में आना तो उन का दोष नहीं?’’

‘‘अब नीति की बातें तुम मुझे सिखाओगे?’’ सोमेश्वर ने माथे पर बल डाल कर प्रश्न किया, ‘‘माना वे बच्चे निष्पाप हैं पर उन के वंश और कुल के बारे में तुम क्या जानते हो? जवानी में जब बच्चे के खून का रंग सिर चढ़ कर बोलेगा तब क्या करोगे? रक्त में बसे गुणसूत्र क्या अपना असर नहीं दिखाएंगे? बच्चे का अनाथालय में पहुंचना ही उन के मांबाप की अनैतिक करतूतों का सुबूत है. ऐसी संतान से तुम किस भविष्य की कामना कर रहे हो?’’

‘‘बाबूजी, आप का भय व संदेह जायज है पर बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में केवल खून के गुण ही नहीं बल्कि पारिवारिक संस्कार ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं,’’ केदार बाबूजी को समझाने का भरसक प्रयास कर रहा था और बगल में खामोश बैठी केतकी निराशा के गर्त में डूबती जा रही थी.

केतकी को संतान होने के बारे में डाक्टरों को उम्मीद थी कि वह आधुनिक तकनीक से बच्चा प्राप्त कर सकती है और केदार काफी सोचविचार के बाद इस नतीजे पर पहुंचा था कि लाखों रुपए क्या केवल इसलिए खर्च किए जाएं कि हम अपने जने बच्चे के मांबाप कहला सकें. यह तो केवल आत्मसंतुष्टि तक सोचने वाली बात होगी. इस से बेहतर है कि किसी अनाथ बच्चे को अपना कर यह पैसा उस के भविष्य पर लगा दें. इस से मांबाप बनने का गौरव भी प्राप्त होगा व रुपए का सार्थक प्रयोग भी होगा.

‘केतकी, बस जरूरत केवल बच्चे को पूरे मन से अपनाने की है. फर्क वास्तव में खून का नहीं बल्कि अपनी नजरों का होता है,’ केदार ने जिस दिन यह कह कर केतकी को अपने मन के भावों से परिचित कराया था वह बेहद खुश हुई थी और खुशी के मारे उस की आंखों से आंसू बह निकले थे पर अगले ही क्षण मां और बाबूजी का खयाल आते ही वह चुप हो गई थी.

केदार का अनाथालय से बच्चा गोद लेने का फैसला उसे बारबार आशंकित कर रहा था क्योंकि मांबाबूजी की सहमति की उसे उम्मीद नहीं थी और उन्हें नाराज कर के वह कोई कार्य करना नहीं चाहती थी. केतकी ने केदार से कहा था, ‘बाबूजी से पहले सलाह कर लो उस के बाद ही हम इस कार्य को करेंगे.’

लेकिन केदार नहीं माना और कहने लगा, ‘अभी तो अनाथालय की कई औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी, अभी से बात क्यों छेड़ी जाए. उचित समय आने पर मांबाबूजी को बता देंगे.’

केदार और केतकी ने आखिर अनाथालय जा कर बच्चे के लिए आवेदनपत्र भर दिया था.

लगभग 2 माह के बाद आज केदार ने शाम को आफिस से लौट कर केतकी को यह खुशखबरी दी कि अनाथालय से बच्चे के मिलने की पूर्ण सहमति प्राप्त हो चुकी है. अब कभी भी जा कर हम अपना बच्चा अपने साथ घर ला सकते हैं.

भावविभोर केतकी की आंखें मारे खुशी के बारबार डबडबाती और वह आंचल से उन्हें पोंछ लेती. उसे लगा कि लंबी प्रतीक्षा के बाद उस के ममत्व की धारा में एक नन्ही जान की नौका प्रवाहित हुई है जिसे तूफान के हर थपेडे़ से बचा कर पार लगाएगी. उस नन्ही जान को अपने स्नेह और वात्सल्य की छांव में सहेजेगी….संवारेगी.

केदार की धड़कनें भी तो यही कह रही हैं कि इस सुकोमल कोंपल को फूलनेफलने में वह तनिक भी कमी नहीं आने देगा. आने वाली सुखद घड़ी की कल्पना में खोए केतकी व केदार ने सुनहरे सपनों के अनेक तानेबाने बुन लिए थे.

आज बाबूजी के हाथ से एक तार खिंचते ही सपनों का वह तानाबाना कितना उलझ गया.

केतकी अनिश्चितता के भंवर में उलझी यही सोच रही थी कि मांजी को मुझ से कितना स्नेह है. क्या वह नहीं समझ सकतीं मेरे हृदय की पीड़ा? आज बाबूजी की बातों पर मां का इस तरह से चुप्पी साधे रहना केतकी के दिल को तीर की तरह बेध रहा था.

केदार लगातार बाबूजी से जिरह कर रहा था, ‘‘बाबूजी, क्या आप भूल गए, जब मैं बचपन में निमोनिया होने से बहुत बीमार पड़ा था और मेरी जान पर बन आई थी, डाक्टरों ने तुरंत खून चढ़ाने के लिए कहा था पर मेरा खून न आप के खून से मेल खा रहा था न मां से, ऐसे में मुझे बचाने के लिए आप को ब्लड बैंक से खून लेना पड़ा था. यह सब आप ने ही तो मुझे बताया था. यदि आप तब भी अपनी इस जातिवंश की जिद पर अड़ जाते तो मुझे खो देते न?

‘‘शायद मेरे प्रति आप के पुत्रवत प्रेम ने आप को तब तर्कवितर्क का मौका ही नहीं दिया होगा. तभी तो आप ने हर शर्त पर मुझे बचा लिया.’’

‘‘केदार, जिरह करना और बात है और हकीकत की कठोर धरा पर कदम जमा कर चलना और बात. ज्यादा दूर की बात नहीं, केवल 4 मकान पार की ही बात है जिसे तुम भी जानते हो. त्रिवेदी साहब का क्या हश्र हुआ? बेटा लिया था न गोद. पालापोसा, बड़ा किया और 20 साल बाद बेटे को अपने असली मांबाप पर प्यार उमड़ आया तो चला गया न. बेचारा, त्रिवेदी. वह तो कहीं का नहीं रहा.’’

केदार बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘बाबूजी, हम सब यही तो गलती करते हैं, गोद ही लेना है तो उन्हें क्यों न लिया जाए जिन के सिर पर मांबाप का साया नहीं है कुलवंश, जातबिरादरी के चक्कर में हम इतने संकुचित हो जाते हैं कि अपने सीमित दायरे में ही सबकुछ पा लेना चाहते हैं. संसार में ऐसे बहुत कम त्यागी हैं जो कुछ दे कर भूल जाएं. अकसर लोग कुछ देने पर कुछ प्रतिदान पा लेने की अपेक्षाएं भी मन में पाल लेते हैं फिर चाहे उपहार की बात हो या दान की और फिर बच्चा तो बहुत बड़ी बात होती है. कोई किसी को अपना जाया बच्चा देदे और भूल जाए, ऐसा संभव ही नहीं है.

‘‘माना अनाथालय में पल रहे बच्चों के कुल व जात का हमें पता नहीं पर सब से पहले तो हम इनसान हैं न बाबूजी. यह बात तो आप ही ने हमें बचपन में सिखाई थी कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है. अब आप जैसी सोच के लोग ही अपनी बात भुला बैठेंगे तब इस समाज का क्या होगा?

‘‘आज मैं अमेरिका की आकर्षक नौकरी और वहां की लकदक करती जिंदगी छोड़ कर यहां आप के पास रहना चाहता हूं और आप दोनों की सेवा करना चाहता हूं तो यह क्या केवल मेरे रक्त के गुण हैं? नहीं बाबूजी, यह तो आप की सीख और संस्कार हैं. मैं ने बचपन में आप को व मांजी को जो करते देखा है वही आत्मसात किया है. आप ने दादादादी की अंतिम क्षणों तक सेवा की है. आप के सेवाभाव स्वत: मेरे अंदर रचबस गए, इस में रक्त की कोई भूमिका नहीं है और ऐसे उदाहरणों की क्या कमी है जहां अटूट रक्त संबंधों में पनपी कड़वाहट आखिर में इतनी विषाक्त हो गई कि भाई भाई की जान के दुश्मन बन गए.’’

‘‘देखो, मुझे तुम्हारे तर्कों में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सोमेश्वर बोले, ‘‘मैं ने एक बार जो कह दिया सो कह दिया, बेवजह बहस से क्या लाभ? और हां, एक बात और कान खोल कर सुन लो, यदि तुम्हें अपनी अमेरिका की नौकरी पर लात मारने का अफसोस है तो आज भी तुम जा सकते हो. मैं ने तुम्हें न तब रोका था न अब रोक रहा हूं, समझे? पर अपने इस त्याग के एहसान को भुनाने की फिराक में हो तो तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हो.’’

इतना कह कर सोमेश्वर अपनी धोती संभालते हुए तेज कदमों से अपने कमरे में चले गए. मांजी भी चुपचाप आदर्श भारतीय पत्नी की तरह मुंह पर ताला लगाए बाबूजी के पीछेपीछे कमरे में चली गईं.

थकेहारे केदार व केतकी अपने कमरे में बिस्तर पर निढाल पड़ गए.

‘‘अब क्या होगा?’’ केतकी ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘होगा क्या, जो तय है वही होगा. सुबह हमें अपने बच्चे को लेने जाना है, और मैं नहीं चाहता कि इस तरह दुखी और उदास मन से हम उसे लेने जाएं,’’ अपने निश्चय पर अटल केदार ने कहा.

‘‘पर मांबाबूजी की इच्छा के खिलाफ हम बच्चे को घर लाएंगे तो क्या उन की उपेक्षा बच्चे को प्रभावित नहीं करेगी? कल को जब वह बड़ा व समझदार होगा तब क्या घर का माहौल सामान्य रह पाएगा?’’

अपने मन में उठ रही इन आशंकाओं को केतकी ने केदार के सामने रखा तो वह बोला, ‘‘सुनो, हमें जो कल करना है फिलहाल तुम केवल उस के बारे में ही सोचो.’’

सुबह केतकी की आंख जल्दी खुल गई और चाय बनाने के बाद ट्रे में रख कर मांबाबूजी को देने के लिए बाहर लौन में गई, मगर दोनों ही वहां रोज की तरह बैठे नहीं मिले. खाली कुरसियां देख केतकी ने सोचा शायद कल रात की बहसबाजी के बाद मां और बाबूजी आज सैर पर न गए हों लेकिन उन का कमरा भी खाली था. हो सकता है आज लंबी सैर पर निकल गए हों तभी देर हो गई. मन में यह सोचते हुए केतकी नहाने चली गई.

घंटे भर में दोनों तैयार हो गए पर अब तक मांबाबूजी का पता नहीं था. केदार और केतकी दोनों चिंतित थे कि आखिर वे बिना बताए गए तो कहां गए?

सहसा केतकी को मांजी की बात याद आई. पिछले ही महीने महल्ले में एक बच्चे के जन्मदिन के समय अपनी हमउम्र महिलाओं के बीच मांजी ने हंसी में ही सही पर कहा जरूर था कि जिस दिन हमारा इस सांसारिक जीवन से जी उचट जाएगा तो उसी दिन हम दोनों ही किसी छोटे शहर में चले जाएंगे और वहीं बुढ़ापा काट देंगे.

सशंकित केतकी ने केदार को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘नहीं, नहीं, केतकी, बाबूजी को मैं अच्छी तरह से जानता हूं. वे मुझ पर क्रोधित हो सकते हैं पर इतने गैरजिम्मेदार कभी नहीं हो सकते कि बिना बताए कहीं चले जाएं. हो सकता है सैर पर कोई परिचित मिल गया हो तो बैठ गए होंगे कहीं. थोड़ी देर में आ जाएंगे. चलो, हम चलते हैं.’’

दोनों कार में बैठ कर नन्हे मेहमान को लेने चल दिए. रास्ते भर केतकी का मन बच्चा और मांबाबूजी के बीच में उलझा रहा. लेकिन केदार के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. उमंग और उत्साह से भरपूर केदार के होंठों पर सीटी की गुनगुनाहट ही बता रही थी कि उसे अपने निर्णय पर जरा भी दुविधा नहीं है.

केतकी का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह बोला, ‘‘यार, क्या मुंह लटकाए बैठी हो? चलो, मुसकराओ, तुम हंसोगी तभी तो तुम्हें देख कर हमारा नन्हा मेहमान भी हंसना सीखेगा.’’

नन्ही जान को आंचल में छिपाए केतकी व केदार दोनों ही कार से उतरे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था पर बाहर ताला न देख वे समझ गए कि मां और बाबूजी घर के अंदर हैं. केदार ने ही दरवाजे की घंटी बजाई तो इसी के साथ केतकी की धड़कनें भी तेज हो गई थीं. नन्ही जान को सीने से चिपटाए वह केदार को ढाल बना कर उस के पीछे हो गई.

दरवाजा खुला तो सामने मांजी और बाबूजी खडे़ थे. पूरा घर रंगबिरंगी पताकों, गुब्बारों तथा फूलों से सजा हुआ था. यह सबकुछ देख कर केदार और केतकी दोनों विस्मित रह गए.

‘‘आओ बहू, अंदर आओ, रुक क्यों गईं?’’ कहते हुए मांजी ने बडे़ प्रेम से नन्हे मेहमान को तिलक लगाया. बाबूजी ने आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में लिया.

‘‘अब तो दादादादी का बुढ़ापा इस नन्हे सांवलेसलौने बालकृष्ण की बाल लीलाओं को देखदेख कर सुकून से कटेगा, क्यों सौदामिनी?’’ कहते हुए बाबूजी ने बच्चे के माथे पर वात्सल्य चिह्न अंकित कर दिया.

बाबूजी के मुख से ‘बालकृष्ण’ शब्द सुनते ही केदार और केतकी ने एक दूसरे को प्रश्न भरी नजरों से देखा और अगले ही पल केतकी ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘लेकिन बाबूजी, यह बेटा नहीं बेटी है.’’

‘‘तो क्या हुआ? कृष्ण न सही कृष्णिमा ही सही. बच्चे तो प्रसाद की तरह हैं फिर प्रसाद चाहे लड्डू के रूप में मिले चाहे पेडे़ के, होगा तो मीठा ही न,’’ और इसी के साथ एक जोरदार ठहाका सोमेश्वर ने लगाया.

केदार अब भी आश्चर्यचकित सा बाबूजी के इस बदलाव के बारे में सोच रहा था कि तभी वह बोले, ‘‘क्यों बेटा, क्या सोच रहे हो? यही न कि कल राह का रोड़ा बने बाबूजी आज अचानक गाड़ी का पेट्रोल कैसे बन गए?’’

‘‘हां बाबूजी, सोच तो मैं यही रहा हूं,’’ केदार ने हंसते हुए कहा.

‘‘बेटा, सच कहूं तो आज मैं ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. मुझे तुझ पर गर्व है. यदि आज तुम अपने निश्चय से हिल जाते तो मैं टूट जाता. मैं तुम्हारे फैसले की दृढ़ता को परखना चाहता था और ठोकपीट कर उस की अटलता को निश्चित करना चाहता था क्योंकि ऐसे फैसले लेने वालों को सामाजिक जीवन में कई अग्नि परीक्षाएं देनी पड़ती हैं.’’

‘‘समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं न. यदि 4 लोग तुम्हारे कार्य को सराहेंगे तो 8 टांग खींचने वाले भी मिलेंगे. तुम्हारे फैसले की तनिक भी कमजोरी भविष्य में तुम्हें पछतावे के दलदल में पटक सकती थी और तुम्हारे कदमों का डगमगाना केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि आने वाली नन्ही जान के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता था. बस, केवल इसीलिए मैं तुम्हें जांच रहा था.’’

‘‘देखा केतकी, मैं ने कहा था न तुम से कि बाबूजी ऐसे तो नहीं हैं. मेरा विश्वास गलत नहीं था,’’ केदार ने कहा.

‘‘बेटा, तुम लोगों की खुशी में ही तो हमारी खुशी है. वह तो मैं तुम्हारे बाबूजी के कहने पर चुप्पी साधे बैठी रही, इन्हें परीक्षा जो लेनी थी तुम्हारी. मैं समझ सकती हूं कि कल रात तुम लोगों ने किस तरह काटी होगी,’’ इतना कह कर सौदामिनी ने पास बैठी केतकी को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘वह तो ठीक है मांजी, पर यह तो बताइए कि सुबह आप लोग कहां चले गए थे. मैं तो डर रही थी कि कहीं आप हरिद्वार….’’

‘‘अरे, पगली, हम दोनों तो कृष्णिमा के स्वागत की तैयारी करने गए थे,’’ केतकी की बातों को बीच में काटते हुए सौदामिनी बोली, ‘‘और अब तो हमारे चारों धाम यहीं हैं कृष्णिमा के आसपास.’’

सचमुच कृष्णिमा की किलकारियों में चारों धाम सिमट आए थे, जिस की धुन में पूरा परिवार मगन हो गया था.

कपल्स के बीच ट्रेंड कर रहा ‘स्लीप डिवोर्स’, अच्छी नींद के लिए क्यों जरूरी?

शादी के रिश्ते में सबसे जरूरी बात क्या हैं ये पूछने पर कई तरह के जवाब मिलते है? जैसे एक दूसरे को समझना चाहिए, एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए और बाकी अलग-अलग तरह की और भी कई चीजें. लेकिन जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण चीज है नींद इसके बारे में कोई बात नहीं करता.

हाल ही नए जेनरेशन के शादी-शुदा कपल के बीच एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है. जो ट्विटर पर  के नाम से ‘स्लीप डिवोर्स’ काफी ट्रेंड हो रहा है. अब आप ये जानना चाहेंगे की आखिर ये ‘स्लीप डिवोर्स’ क्या है? तो चलिए आज हम आपको इसके हर एक पहलू से रूबरू करवाते हैं.

क्या है ‘स्लीप डिवोर्स’?

स्‍लीप डिवोर्स तब होता है, जब अच्छी और बेहतर नींद के लिए कपल अलग-अलग कमरे, अलग बिस्तर या फिर  या अलग-अलग समय पर सोते हैं तो इसे हम स्लीप डिवोर्स कहते हैं. इसके ट्रेंड में आने का कारण है कपल्स का नींद ना पूरा हो पाना. स्‍लीप डिवोर्स ठीक से नींद न ले पाने वाले लोगों के लिए बड़ा समाधान है. स्‍लीप डिवोर्स वो है जिसमें पार्टनर्स रात को साथ में न सोकर अपनी सुविधानुसार अलग-अलग सोते हैं. इसके चलते कपल्स की नींद भी पूरी हो जाती है और वो अगली सुबह पूरी एनर्जी के साथ उठते हैं.

स्लीप डिवोर्स का ट्रेंड

स्लीप डिवोर्स  सुनने में नया लग रहा है. लेकिन इसका चलन बेहद पुराना है. साल 1850 में ये ट्रेंड ट्विन-शेयरिंग बेड के नाम से फेमस हुआ. तब के समय में पति-पत्नी एक कमरे तो होते थे, लेकिन होटलों की तर्ज पर ट्विन-शेयरिंग बेड की तरह एक रूम में ही 2 अलग-अलग बिस्तर पर सोया करते थे. ये इसलिए शुरू हुआ ताकि पति-पत्नी एक रूम में साथ होकर भी बिना एक-दूसरे को डिस्टर्ब किए आराम से नींद पूरी कर सकें. लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हिलेरी हिंड्स ने इस पर कल्चरल हिस्ट्री ऑफ ट्विन बेड्स के नाम से एक किताब भी लिखी है. बुक के अनुसार उस समय में डॉक्टर नींद ना पूरी होने पर मानसिक नुकसान मानते थे.

नींद ना पूरा होने के कारण

नींद पूरा ना हो पाने के कई कारण हो सकते है. जैसे दिनभर की भागदौड़ के बाद सोने के समय में देरी होना. पार्टनर के सोने की खराब आदतें या खर्राटे, पार्टनर का देर तक काम में लगे रहना. इस तरह की कई चीजें हो सकती है जिसके कारण दूसरे पार्टनर की नींद पूरी नहीं हो पाती.

नींद के कारण रिश्तों में दरार

नींद की कमी का सीधा-सीधा असर रिश्ते पर होता है. नींद की कमी से जूझते जोड़े छोटी-मोटी बातों पर भी उलझ पड़ते हैं. नींद पूरी ना होने का कारण चिड़चिड़ापन होता है और ये कारण  भी झगड़े का मुख्य कारण बन जाता है.

स्लीप डिवोर्स के फायदे

आज के समय पूरे दिन की भागदौड़ के बाद रात में अच्छी नींद ना मिलने के कारण आपका अगला पूरा दिन खराब जा सकता है. इसलिए समय-समय पर स्लीप डिवोर्स से आपकी नींद पूरी होती है और नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है. इसके अलावा एक साथ होने के बाद हर किसी का अपना एक पर्सनल स्पेस होता है. जो हर व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी है. और इसके कारण आपको एक पर्सनल स्पेश मिलता है. कई लोग सोने से पहले किताबें पढ़ना चाहते है, कई लोगों को मेडिटेशन के बाद सोने की आदत होती है. तो इस समय में आप अपनी चीजों के लिए समय निकाल सकते है.

क्या स्लीप डिवॉर्स रिश्तों में दूरियों के लिए वजह बन सकता है?

कई लोगों का मानना है की स्लीप डिवोर्स के कारण रिश्तों में दूरियां आ सकती है.  अलग सोना आपकी अपनी मर्जी है. आपसी सहमति के साथ कपल्स एक दूसरे की जरूरतों का सम्मान करते हुए एक-दूसरे को समय देते है. गौरतलब है की स्लीप डिवोर्स रिश्तों को बिगाड़ने के लिए नहीं बल्कि रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है. ताकि आपकी नींद पूरी होने के कारण आप चिड़-चिड़ा फील नहीं करोगे तो एक-दूसरे को ज्यादा समय दे पाओगे.

55 प्रतिशत लोग 8 घंटे से कम नींद लेते है

ग्रेट इंडियन स्लीफ ( GISS) 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 55 प्रतिशत लोग रात में 11 बजे के बाद सोते है. जिसके कारण 8 घंटे से कम नींद ले पाते है. साथ ही हेल्थ टेक्नोलॉजी कंपनी फिलिप्स इंडिया के 2019 के रिपोर्ट के अनुसार लगभग 93 प्रतिशत भारतीय पूरी नींद नहीं ले पाते. और इनमें से करीब 58 प्रतिशत लोग 7 घंटे से कम नींद ले पाते है.

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