इस प्यार को हो जाने दो

प्यार धर्मजाति की दीवारों से परे पनपता है. अफजल और पूनम इस की गिरफ्त में थे. लेकिन रिश्तेदार व जमाने वाले ऐसे प्यार को धर्म की भट्टी में राख करने को उतारू रहते हैं. यह तो पूनम व अफजल के लिए किसी कड़े इम्तिहान से कम न था, क्या हुआ दोनों का…

कालेज के वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सभी छात्रछात्राएं अपनीअपनी खूबियों के अनुसार कार्यक्रम में भाग ले रहे थे. अफजल को गजलें लिखने का शौक था. उस की गजल का हर शब्द काबिलेतारीफ होता. पूरा कालेज दीवाना था उस की गजलों का. पूनम को गीतसंगीत बहुत पसंद था. बहुत मीठी आवाज थी उस की. पूरा कालेज उसे ‘स्वर कोकिला’ के नाम से जानता था. दोनों हर कार्यक्रम में एकसाथ ही भाग लेते. और न जाने कब दोनों एकदूसरे को चाहने लगे.

वेलैंटाइन डे पास आ रहा था. कालेज व बाजार में उस का माहौल अपना असर दिखा रहा था. कालेज के कई लड़केलड़कियां कार्ड खरीद कर लाए थे और अफजल से कुछ पंक्तियां लिख कर देने को कह रहे थे ताकि वे कार्ड में लिख अपने प्यार का इजहार कर सकें.

वहीं, कुछ लोगों ने वेलैंटाइन डे पर लाल गुलाब का गुलदस्ता बनवाया था. अफजल आज एक लाल गुलाब ले कर पूनम के पास जा पहुंचा और बोला, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं, पूनम. क्या तुम स्वीकारोगी मेरा प्यार?’’ यह कह वह अपने प्यार का इजहार कर बैठा. पूनम अफजल को मन ही मन चाहने लगी थी. सो, उस ने फूल हाथ में ले, शरमाते हुए, झुकी पलकों संग उस के प्यार को स्वीकार कर लिया था.

दोनों का प्यार बादलों के संग उड़ते हुए आजाद परिंदों की तरह परवाज करने लगा था. कालेज के बाद दोनों छिपछिप कर मिलने लगे थे. लेकिन इश्क और मुश्क भला छिपाए छिपे हैं किसी से? कालेज के सभी लोग उन्हें ‘हंसों का जोड़ा’ के नाम से पुकारते. इसी तरह मिलते और प्यार में डूबे 4 वर्ष बीत गए.

कालेज खत्म कर दोनों अपनीअपनी नौकरियों में लग गए. पूनम अपनी पूरी तनख्वाह अपनी मां के हाथ में रखती, हां, कुछ रुपए हर तनख्वाह में से अपने भाइयों के लिए उपहार के लिए रख लेती.

अब पूनम के घर में उस के विवाह के लिए चर्चा होने लगी थी और वह बहुत चिंतित हो गई थी. आज पूनम जब अफजल से मिली, कहने लगी, ‘‘अफजल, मेरे मातापिता मेरी शादी की बात कर रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि वे हमारे प्यार को स्वीकारेंगे.’’

अफजल ने जवाब में कहा, ‘‘पूनम, तुम घबराओ नहीं. तुम अपनी मां को बताओ तो सही या मैं तुम्हारे पिताजी से बात करूं?’’

पूनम कहने लगी, ‘‘अफजल, देखती हूं, आज मैं ही मां को बता देती हूं.’’

जैसे ही मां ने सुना, वे तो बिफर पड़ी और आव देखा न ताव, जा बताया पिताजी को. जैसे ही पूनम के पिताजी ने उस के मुंह से अफजल का नाम सुना, तो वे आगबबूला हो उठे. मां तो कोसने लगी,  ‘‘कहा था लड़की को इतनी छूट मत दो. अब पोत रही है न हमारे मुंह पर कालिख. क्या फायदा इस को पढ़ानेलिखाने का. रातदिन इस की चिंता लगी रही. कभी देर से घर आती तो कलेजा मुंह को आ जाता. किंतु यह दिन दिखाएगी, ऐसा तो सोचा भी न था. मैं सोचती थी पढ़लिख जाए तो अच्छे घर में रिश्ता हो जाएगा. अपने पैरों पर खड़ी होगी तो किसी की मुहताज न होगी. पर हमें तो इस ने कहीं का न छोड़ा, अब क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज में.’’

पिताजी बोले, ‘‘अगर प्रेम ही करना था तो कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था. इन मुसलमानों में ही तुझे ज्यादा प्यार नजर आया? उन के घर में बुर्का पहन कर रहेगी? मांसमछली खाएगी? अपने धर्म की गीता छोड़ 5 वक्त नमाज पढ़ेगी? अरे, समझती क्यों नहीं, नाम भी बदल देंगे तेरा, जो कि तेरी अपनी पहचान है, कहीं की न रहेगी तू?’’

पूनम ने कितनी बार समझाने की कोशिश की थी अपनी मां को. वह कहती, ‘‘मां, अफजल एक नेक इंसान है, 4 साल साथ में गुजारे हैं हम ने और फिर हम एकदूसरे को अच्छे से समझते भी हैं. ऐसे में तुम क्यों खिलाफ हो उस के? उस की जगह किसी हिंदू लड़के से शादी कर लूं और हमारे विचार ही आपस में न मेल खाएं तो उस शादी का क्या फायदा मां? शादी तो 2 इंसानों का मिलन होता है, उस में धर्म की दीवार क्यों मां? क्या तुम पिताजी के साथ खुश हो मां?’’ जैसेतैसे अपनी जिंदगी की गाड़ी घसीट ही तो रहे हैं आप लोग.’’

इतना सुन मां ने उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया, ‘‘बेशर्म, जबान लड़ाती है, इतनी अंधी हो गई है उस मुसलमान के प्यार में?’’

उस के घर में तो धर्म का बोलबाला था, कोई उस की बात समझना तो दूर की बात, सुनने के लिए भी तैयार न था. इसी कारण उन दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया. और कोई चारा भी न था.

शादी के बाद जब वे दोनों पूनम के घर आशीर्वाद लेने आए, उस के पिता कहने लगे, ‘‘हमारी छूट व प्यार का गलत फायदा उठाया है तुम ने. जरा सोचो, तुम्हारे छोटे भाइयों का क्या होगा आगे? कुछ तो लिहाज किया होता. बिरादरी में हमारी नाक क्यों कटवा दी? तुझे पैदा होते ही क्यों न मार डाला हम ने? जाओ, अब जहां रिश्ता जोड़ा है वहीं जा कर रहो. अब तो वे तुम्हारा धर्म भी परिवर्तन कर देंगे. अल्लाहअल्लाह करना रातदिन.’’

पूनम चुपचाप सब सुन रही थी. बीचबीच में कुछ बोलने की कोशिश करती, किंतु पिताजी के गुस्से के सामने चुप हो जाती. थोड़ी सी आस अपने दोनों भाइयों से थी. किंतु जैसे ही उस ने उन से नजरें मिलाने की कोशिश की, एक ने तो मुंह फेर लिया और दूसरे ने उस का हाथ पकड़ दरवाजे का रास्ता दिखा दिया और कहा, ‘‘जाओ दीदी, अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हैं.’’

अफजल दरवाजे के बाहर ही खड़ा सुन रहा था. वह चाहता था कि पूनम के पिताजी से बात करे, किंतु पूनम ने उसे रोक दिया था और वह अफजल से बोली, ‘‘चलो अफजल, घर चलते हैं, पिताजी नहीं मानने वाले.’’

उस के जातेजाते पिताजी ने कह दिया था, ‘‘यदि वे तुम्हें इस्तेमाल कर तलाक दे कर निकाल दें तो लौट कर न आना वापस.’’ अफजल को भी बहुत बुरा लग रहा था कि पूनम उस से प्यार व निकाह क्या कर बैठी, आशीर्वाद मिलना तो दूर, उस के लिए उस के मातापिता के घर के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद हो गए थे. सो, दोनों अफजल के घर आ पहुंचे.

अफजल की मां ने नई बहू के स्वागत की पूरी तैयारियां कर रखी थीं. अफजल के रिश्तेदार इस विवाह के खिलाफ थे. आखिर हिंदू व मुसलिम एकदूसरे के कट्टर दुश्मन जो बने बैठे हैं. सो, उस की मां अकेली ही स्वागत कर रही थी अपनी बहू का. अफजल की मां ने उसे बेटी सा प्यार दिया. वे कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम मेरे अफजल के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आई हो. अब मैं ही तुम्हारी मांबाप, भाई हूं. इस घर में कोई परेशानी हो तो जरूर कहना.’’

अफजल की मां की बातें पूनम को बहुत सुकून दे रही थीं. कहां तो एक तरफ उस के अपने घर वाले उसे कोस रहे थे और जब से उस की व अफजल की बात उन्हें मालूम हुई, एक दिन भी वह चैन की नींद न सो पाई थी और न ही एक भी निवाला सुकून से खाया था. ऐसा मालूम होता था जैसे बरसों से भूखी हो व थकी हो.

2 दिनों बाद दोनों हनीमून के लिए मसूरी घूमने को गए. वहां की वादियों में दोनों रम जाना चाहते थे. लेकिन वहां भी पूनम को अपने मातापिता की बातें याद आती रहतीं. खैर, 15 दिन पूरे हुए, हनीमून खत्म हुआ. अब अफजल व पूनम दोनों को दफ्तर जाना था. अफजल की मां पूनम को सगी बेटी सा प्यार दे रही थीं. एक ही वर्ष में उस ने चांद सी बेटी को जन्म दिया.

पूनम को लगा शायद उस के

मातापिता अपनी नातिन को देख

कर खुश हो जाएंगे. सो, एक दिन उस ने अपनी मां को फोन मिलाया. पिताजी ने फोन उठाया और उस की आवाज सुन मां को फोन थमा दिया. मां ने तो उस की बात सुने बिना ही कह दिया, ‘‘पूनम, तुम हमारे लिए सदा के लिए मर चुकी हो.’’

उन की बात सुन कर पूनम खूब रोई. उस दिन पूनम ने मन ही मन अपने मातापिता से सदा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

पूनम अपनी सास के साथ पूरी तरह हिलमिल गई थी. कभीकभी छुट्टी के दिन वह अपनी सास के बुटीक में भी जा कर उन का हाथ बंटाती.

पूनम की सास ने किसी भी मसजिदमजार में जाना बंद कर दिया और पूनम मंदिरों में नहीं जाती. वे नया साल, अपनी विवाह की वर्षगांठ, बच्चों के जन्मदिन जम कर मनाते.

ईद के दिन रिश्तेदारों के यहां खाना खाते और दीवालीहोली पर सब को घर पर खाने पर बुलाते. जो मुसलिम रिश्तेदार पहले नाराज थे, धीरेधीरे घुलमिल गए.

ऐसा चलते पूरे 7 वर्ष बीत गए. अब सास का शरीर भी जवाब देने लगा था. सो, बुटीक कम ही संभालती थीं. लेकिन पूनम उन का पूरा सहारा बन गई थी बुटीक को चलाने में. बारबार सास कहतीं, ‘‘अब शरीर तो साथ देता नहीं, लगता है बुटीक बंद ही करना पड़ेगा और वे बहुत दुखी हो जातीं.’’

पूनम उन के दुख को समझती थी. काम के चलते अफजल एक वर्ष के लिए अमेरिका चले गए. तभी अचानक एक दिन पूनम के भाई का फोन आया. पूनम बहुत खुश हो गई और कहने लगी, ‘‘मां कैसी है?’’ उस के भाई ने उस से बहुत प्यार से बात की. पूनम का मीठा रुख देख अगले दिन मां का भी फोन आया. पूनम तो मानो चहक उठी और पूछने लगी, ‘‘कैसी हो मां तुम सब, पिताजी कैसे हैं?’’

मां कहने लगी, ‘‘बेटी पूनम, तुम्हारे पिता तो बूढ़े हो चले हैं, भाई पढ़ाईलिखाई में तो कुछ खास अच्छे निकले नहीं. सो, तुम्हारे पिताजी ने उन्हें एक दुकान खुलवा दी. किंतु दोनों के दोनों एक फूटी कौड़ी घर में नहीं देते हैं, बल्कि कर्जा और हो गया. जिस बैंक से लोन ले कर कारोबार शुरू किया वह भी अब चुका नहीं पा रहे हैं. यदि तुम कुछ रुपयों का इंतजाम कर सको…’’

उसे ठीक तरह बात करते देख मां ने भाइयों के लोन चुकाने के लिए पूनम से रुपए मांग ही लिए.

अब पूनम सब समझ गई थी कि आज भी उन्होंने पूनम से सिर्फ उन की अपनी जरूरत पूरी करवाने के लिए ही फोन किया था. एक वह दिन था जब वह अफजल से निकाह करना चाहती थी, तो उस के परिवार वालों ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था. तब तो उन्हें बेटी से ज्यादा धर्म प्यारा हुआ करता था. और आज, जब पैसों की जरूरत आन पड़ी तो अब वह अपनी हो गई. वरना क्या जैसे अफजल की मां ने हिम्मत कर अकेली हो कर भी गैरधर्म की लड़की को अपना लिया, क्या उस के अपने मांबाप, भाई साथ नहीं दे सकते थे उस का? और उस के निकम्मे भाइयों के लिए मां उस से वापस रिश्ता जोड़ने के लिए राजी हो गई. फिर भी उस ने अपनी मां को मीठा जवाब दे दिया ‘‘हां मां, देखती हूं.’’

और कुछ ही दिनों में जब उस की अपनी सास बीमार हुई और औपरेशन करवाना पड़ा तो पूनम ने अपने बैंक अकाउंट में से पैसे निकलवा कर अपनी सास का दिल का औपरेशन करवाया और उस की सेवा में लग गई. उस के बाद उस ने अपनी नौकरी छोड़ सास का बुटीक भी पूरी तरह से संभाल लिया. सास और बहू अब मांबेटी बन गई थीं. पूनम मन ही मन सोचती रहती, ऐसा धर्म किस काम का जिस की दीवार इतनी बड़ी होती है कि उस के सामने खून के रिश्ते भी बौने हो जाते हैं? और अपने धर्म को निभाने के लिए खून से जुड़े रिश्तों ने उसे छोड़ दिया था. उस ने तो धर्म की वह दीवार ढहा दी थी और वह गुनगुना रही थी –

धर्म, जाति, ऊंचनीच की दीवारों को ढह जाने दो.

इस प्यार को हो जाने दो, इस प्यार को हो जाने दो…

सबक: आखिर कैसे बदल गई निशा?

सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह

और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास

2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया. ‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

अछूत: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

family story in hindi

टेलीफोन: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

crime story in hindi crime story in hindi

अछूत- भाग 3: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

यानी यह डर कि जाति के आधार पर भेदभाव किया तो आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है. पर विवाह संस्था आपराधिक मुकदमों के दायरे से बाहर रही. इसलिए अगर कुछ नहीं बदला तो वह है अंतर्जातीय विवाह पर सामाजिक प्रतिबंध. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तमाम सर्वेक्षणों में जिन लोगों ने अंतर्जातीय विवाह के संबंध में सकारात्मक उत्तर दिए हैं, वे भी समय आने पर अपने जीवन में जातिगत विवाह को ही प्राथमिकता देते हैं. यहां तक कि अमेरिका में लंबे समय से बसे भारतीय भी विवाह अपनी जाति में ही करना पसंद करते हैं.”

“पापा, बहुसंख्यक वर्ग का कहा सत्य नहीं हो जाता. जाति और विवाह के नियम समाज द्वारा बनाए गए हैं. समाज जिसे बना सकता है, उसे मिटा भी सकता है. पर क्या ऐसा होगा? निकट भविष्य में यह संभव होता नहीं दिखाई देता क्योंकि वर्चस्व की लालसा कोई भी समाज त्यागने को आसानी से तैयार नहीं होता. ऐसे में कथित ऊंची जातियां अपना यह मोह भला क्यों त्यागना चाहेंगी? लेकिन, मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि जातिगत भेदभाव को मिटाने का अचूक उपाय एक ही है और वह है अंतर्जातीय विवाह. मेरे जैसे युवा यह परिवर्तन लाएंगे.”

“तो तुम समाज परिवर्तन करने निकले हो?”

“पापा, मैं कोई विद्यासागर तो हूं नहीं. लेकिन, इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि हर व्यक्ति स्वयं को सुधार ले, तो समाज स्वयं ही सुधर जाएगा!”

“शिशिर, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं, लेकिन यह सुधार का काम तुम मेरे घर से बाहर निकल कर करो. इस शादी के बाद मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा.”

“पापा.”

“सोच लो. अभी समय है तुम्हारे पास. लौकडाउन समाप्त होने तक तो भोपाल नहीं लौट पाओगे.”

समय न तो रुकता है और न किसी के कहे अनुसार चलता है. संसार का यह चक्र कितना नियमित है, कितना समय का पाबंद है. कौन सा पल हमारे लिए क्या ले कर आने वाला है, मनुष्य कहां जानता है? फिर भी झूठे दंभ और स्वार्थ और में लगा रहता है.

उस शाम बलराज क्रोध में घर से निकल आया था. कालिंदी ने समझाया भी था कि शिशिर दवा औनलाइन मंगा देगा. लेकिन क्रोध और अहंकार मनुष्य का विवेक खत्म कर देता है. घर के दरवाजे पर वह उस का अंतिम स्पर्श था. वह घर से निकला तो था अपनी ब्लड प्रैशर की दवा खरीदने, लेकिन साथ ले आया था महामारी.

दवा की दुकान पर उसे पिछली गली में रहने वाले एक जानकार मिल गए थे. उन का बेटा कुछ दिन पहले ही कनाडा से लौटा था. उसके लिए ही सर्दीजुकाम की दवाई खरीदने आए थे. अभी वे बात कर ही रहे थे कि उन के सामने से पुलिस की 3 गाड़ियों के साथ एक ऐंबुलैंस भी गुजरी.

वह उन से कुछ पूछता, उस से पहले ही एक पुलिसकर्मी सामने आ कर बोला,”मनोहर शर्मा आप ही हैं ना?”

घबराहट के मारे परिचित के हाथ से दवा वाला थैला गिर गया था. बलराज को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था.

उस ने पूछा था,”क्या बात है?”

उस के प्रश्न का उत्तर परिचित के स्थान पर पुलिसकर्मी ने दिया,”आप के मोहल्ले में कोरोना वायरस विस्फोट हो सकता है, क्योंकि आप के पड़ोस में एक पढ़ालिखा गैरजिम्मेदार मूर्ख परिवार है.”

उस ने आगे कहा,”इन के बेटे को एअरपोर्ट पर समझाया गया था. लेकिन न तो उस ने सैल्फ आइसोलेशन किया और न ही उस का परिवार घर के अंदर रहा. इन पर कोरोनोवायरस की सलाह की उपेक्षा करने, सुरक्षा जांच से भागने और बहुत कुछ करने के लिए कई आरोप लगाए गए हैं. हम लोग कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए दिनरात एक कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग हैं जो नियमों का पालन नहीं कर रहे और सभी के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं. अब देखिए इन के कारण पूरा मोहल्ला परेशान होगा और आप भी.”

बलराज चौंक पड़ा,”मैं…मैं क्यों?”

उस ने सहानुभूति से उस के कंधे पर हाथ रखा और बोला,”भाई साहब, आप तो डाइरैक्ट कौंटैक्ट में आ गए ना इन के…”

उस के बाद घटनाक्रम तेजी जे बदलता चला गया. वह घर जा नहीं सकते थे, शिशिर और कालिंदी को संक्रमण का खतरा था. शिशिर ही बैग लेकर होस्पिटल आया था. अगले 20 दिन उस ने मृत्यु के पहले मृत्यु को देखा.

लैटिन भाषा में कोरोना का अर्थ ‘मुकुट’ होता है और इस वायरस के कणों के इर्दगिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढांचों से माइक्रोस्कोप में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इस का नाम रखा गया. बलराज तो सदा से स्वयं को राजा माना करता था, तो यह मुकुट तो उस के सिर पर सजना ही था.

उस दौरान बलराज ने जाना कि मृत्यु से अधिक डर मृत्यु के इंतजार में होता है. ब्लड प्रैशर के मरीज के लिए यह बीमारी घातक थी. यह मुकुट वे अपने सिर से कभी उतार ही नहीं पाए और इसे सिर पर धारण किए हुए ही इस संसार को विदा कह दिया. देह भी घर नहीं लौट पाई थी.

ऐंबुलैंस में बलराज की मृत शरीर को को डालषकर शिशिर उसे होस्पिटल से यहां इलैक्ट्रिक क्रिमेटोरियम में ले आया था. नियमों के अनुसार कोरोना पौजिटिव मरीज के शव का संस्कार मुखाग्नि से नहीं किया जा सकता था.

महामारी ने उस की शरीर को अछूत बना दिया था. कोई भी उस के मृत शरीर के अंतिम संस्कार में आने को तैयार नहीं था. यहां तक कि श्मशान के स्टाफ ने भी शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था. पिछले 1 घंटे से शिशिर फोन पर लोगों को समझाने में ही व्यस्त था.

श्मशान वह स्थान है जहा पर मुरदे जलाए जाते हैं, लेकिन श्मशान तो किसी मंदिर अथवा मसजिद से भी अधिक पवित्र स्थान है. यहां मनुष्य को अपनी वास्तविक हैसियत का पता चलता है. देखा जाए तो केवल जन्म के पलों में और मौत के पलों में ही कुछ सार्थक घटित होता है. प्रसूतिगृह और श्मशान घाट ये 2 ही समझदारी भरी जगहें हैं. इन दोनों स्थान पर मनुष्य वास्तविक जीवन को समझता है.

अभीअभी नगर निगम की टीम पहुंच गई. उन के कहने पर सिक्योर बौडी बैग में पैक बलराज के शरीर को बाहर निकाला गया. उस के बेटे को मेरे शव को छूने की भी अनुमति नहीं थी. मोर्चरी स्टाफ ने भी उस के शरीर को छूने से पूर्व पर्सनल प्रोटैक्टिव इक्विपमैंट ले लिया था. उस की अंतिम यात्रा को उस पीपीई स्टाफ ने पूरा कराया, जिस की जाति अज्ञात थी.

उस के शरीर को अंदर डाल कर स्विच औन कर दिया गया. अब उस का शरीर जल कर मिनटों में राख हो जाएगा.

अछूत- भाग 2: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

बलराज शिशिर के मन में भी कटुता के बीज को रोपना चाहता था. लेकिन उस की हर बात का एक मौन के साथ  समर्थन करने वाली उस की पत्नी कालिंदी ने यहां उस की नहीं सुनी. उस ने अपने बेटे के मस्तिष्क की कोमल धरती पर प्रश्न का बीज अंकुरित कर दिया. शिशिर ने प्रश्न करना आरंभ कर दिया और जहां प्रश्न अंकुरित होने लगते हैं, वह धरती बंजर अथवा विषैली नहीं रह जाती.

शिशिर अलग था. जो विशेषाधिकार बलराज को प्रफुल्लित किया करते थे, उन से उस का दम घुटता था.

वह कहता,”यह ब्राह्मणवादी विशेषाधिकार, मेरे उन विशेषाधिकारों का हनन करती है, जो एक मनुष्य होने के नाते मुझे मिलने चाहिए. जैसे, खुल कर जीने की इच्छा, अपनी उन आदिम व सभी भावनाओं को प्रगट करने की इच्छा, जो मनुष्य होने का प्रमाण है. मगर समाज को इस सब की फिक्र कहां, उसे तो अपनी उस सड़ीगली, बदबूदार व्यवस्था को बचाए रखने की चिंता है, जो सारे सांस्कृतिक विकास पर एक बदनुमा दाग है. आज न तो देश, न सरकार और न ही युवा, ऐसी सड़ीगली व्यवस्था को मानते हैं.”

जब इंजीनियरिंग कालेज में उस ने एक दलित मित्र को अपना रूमपार्टनर बनाया, तब बलराज ने उसे खूब कोसा, फब्तियां कसी, चुटकियां ली, पर वह डटा रहा.

बलराज कुढ़ता रहता, लेकिन शिशिर मुसकराता और कहता,”अस्वीकार्य को अधिक दिनों तक लादा नहीं जा सकता. जाति का जहर मेरे शरीर में हमेशा चुभता रहा है.”

बलराज कहता,”तुम्हारा भाग्य है कि तुम्हें इतने महान कुल में जन्म प्राप्त हुआ है. तनिक सोचो, क्या होता यदि तुम्हारा जन्म एक निम्न जाति में हुआ होता? मनुष्य को जो आसानी से मिल जाता है, वह उस का मूल्य ही नहीं जान पाता.”

“पापा, मैं भी तो यही कह रहा हूं. उस जाति अथवा समाज पर क्या अभिमान करना जिस का प्राप्त होना, महज हेड ऐंड टैल का खेलमात्र हो. ब्राह्मण बन कर जन्म लेने में मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि क्या है? अभिमान के स्थान पर मुझे तो शर्म आती है, जब मात्र मेरी जाति के कारण मुझे सम्मान दिया जाता है. मुझे मेरे व्यक्तित्व के लिए सम्मान चाहिए, न कि किसी विशेष सरनेम के कारण. जन्म के लिए जिस कुल को चुनने पर आप का कोई अधिकार ही नहीं, उस कारण जब आप का अपमान किया जाता है, तो जरा सोचिए कि कितनी पीड़ा होती होगी?”

बलराज अहंकार के साथ कहता,”तो आरक्षण तो मिल गया ना उन्हें. यह उचित है क्या?”

“बिलकुल. वैसे आरक्षण कोई एहसान नहीं, उन का अधिकार है. एक समय था जब उच्च पदों पर तथाकथित उच्च जातियों का आधिपत्य था. आज वहां उन की मोनोपोली कम हो रही है. यह बात दूसरी है कि वर्तमान समय में आरक्षण राजनीतिक पार्टियों का एक हथियार भी बन गई है.”

बलराज कहता,”अरे सभी को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व होता है! सभी स्वयं को अन्य से बेहतर साबित करते हैं. तुम मात्र ब्राह्मणों को दोष नहीं दे सकते.”

शिशिर कहता,”मुझे ब्राह्मणों से नहीं, उस सोच से दिक्कत है, जो स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ आँकती है. ऐसी सोच रखने वाला जिस धर्म, जाति, देश अथवा क्षेत्र से संबंध रखता हो, वह गलत ही है.”

थोड़ी देर विराम ले कर वह फिर कहता,”आप को पता है पापा, मेरी प्रगतिशील दलित मित्रों की मंडली भी ‘ब्राह्मण’ कह कर मेरा उपहास करती है, मानो मैं ब्राह्मणशाही का प्रतिनिधि करता हूं और ब्राह्मण परिवार में पैदा हो जाने के कारण ब्राह्मणशाही का सारा गुनाह मेरे सिर पर है. मैं जानता हूं कि वे मेरे मित्र हैं, और यह उन का मजाक है, मगर यह भी सच है कि आज घृणा और क्रोध दोनों तरफ है. लेकिन हमें इस घृणा का अंत करना है, उसे बढ़ाने का कारण नहीं बनना.”

धीरेधीरे उन के बीच बातचीत कम होती चली गई. शिशिर मेधावी था, अतः जीवन के सोपान पर आगे बढ़ने में उसे अधिक कठिनाई नहीं हुई. मध्य प्रदेश सरकार के बिजली विभाग में अभियंता के पद पर चयनित हो कर शिशिर भोपाल चला गया और दोनों पतिपत्नी इंदौर में अकेले रह गए. मांऔर बेटे की बातचीत लगभग प्रतिदिन हो जाया करती पर बलराज और शिशिर के बीच अबोला बढ़ता ही चला गया.

बलराज यह सोच कर संतोष कर लेता कि समय के साथ उस की सोच बदल जाएगी. वैसे भी वह अपने आसपास यह सब होता हुआ देख रहा था. आजकल की पीढ़ी दोहरी मानसिकता के साथ जी रही थी. सोशल नेटवर्किंग साइट पर जिस प्रथा और मान्यता का विरोध करते, लंबेलंबे आलेख शेयर किया करते, उसी प्रथा का अपने जीवन में निस्संकोच पालन किया करते थे.

इस समाज को अधिक खतरा उन से नहीं है जो गलत सोच रखते हैं, बल्कि उन से हैं जो अच्छी सोच होने का ढोंग करते हैं.

वैसे संख्या में कम, लेकिन सोच में अधिक एक वर्ग ऐसा भी है, जिस की कथनी और करनी अलग नहीं है. उस का बेटा शिशिर भी ऐसा ही था. अपने जीवनकाल में वह यह जान तो पाया, लेकिन समझ नहीं पाया.

शिशिर अपनी एक सहकर्मी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव लेषकर उन के पास आया था. बलराज का संस्कारी मन इस प्रेम विवाह को समय की मांग सोच कर मान भी लेता यदि लड़की किसी उच्च जाति की होती. लेकिन साक्षी एक दलित परिवार की लड़की थी और एक दलित परिवार की लड़की को पुत्रवधू बना कर लाना उसे स्वीकार्य नहीं था. उस दिन वर्षों बाद पितापुत्र के बीच बात हुई थी.

बलराज ने ही बात को शुरू किया,”दलित और मुसलमान छोड़ कर तुम अपनी मरजी से किसी भी जाति में शादी कर सकते हो.”

एक मुसकान के साथ शिशिर बोला,”हम दोनों ने ही कभी यह नहीं सोचा कि हमारी जाति क्या है? हम उस विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं, जहां इंसान जाति और धर्म की पहचान से बहुत ऊपर उठ जाता है. यह भी सच है कि प्रेम इंटरव्यू ले कर नहीं होते.”

उस दिन कालिंदी ने भी शिशिर को समझाया,”बेटा, पापा को भी तो समझो, हम जिस समाज में रहते हैं, वहां एक दलित से विवाह सही नहीं है.”

शिशिर चौंक गया था,”मां, जब दलित से मित्रता सही है, फिर विवाह गलत कैसे हो गया? वैसे भी समाज बदल गया है.”

इस बार बलराज मुसकराया था,”बेटा, सच यही है कि जाति एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में भारत में सिर्फ अपना रूप बदल रही है. जाति की शुद्धता बनाए रखने के लिए समाज में उस की खास जगह, खानपान और सामाजिक व्यवहार पर प्रतिबंध, व्यवसाय के स्वतंत्र चुनाव का अभाव और अंतर्जातीय विवाह पर रोक जरूरी माने गए हैं. आज इन लक्षणों में परिवर्तन आया है, जिस का सब से बड़ा कारण कानूनी बाध्यता है.

टेलीफोन- भाग 2: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

यह कहते हुए कृष्णा ने ताला खोला और अंदर चली गई. फिर वाशरूम से आ खिड़की बंद करती है और एक बार आईने में खुद को देख हाथों से अपना बाल ठीक कर सूटकेश उठा बाहर निकल आती है. बाहर आ कर आश्चर्य में पड़ जाती है. यह देख कि गुप्ता मैडम का पति उस से फिर कहता है, ‘‘मैडम आप बात कर लीजिए न आप कल कह रही थीं कि बहुत जरूरी है बात करना.’’

‘‘नहीं इतना जरूरी नहीं है,’’ कहते हुए कृष्णा ताला लगाती है, अब उसे थोड़ा गुस्सा भी आने लगा था. सोचती है यह आदमी तो पीछे ही पड़ गया, कैसे इस से पीछा छुड़ाऊं? ताला लगा कर जब वह पीछे मुड़ी तो उस आदमी को अजीब स्थिति में पाती है जैसे आंखें चढ़ी हों और सांसें बेतरतीब चल रही हो, कृष्णा को अब थोड़ा डर लगा और वह सूटकेश ले कर से तेजी से निकल पड़ती है. गुप्ता का पति अभी भी पीछे से पुकार रहा है.

‘‘मैडम फोन कर लीजिए.’’

कृष्णा ‘नो थैंक्स’ ‘नो थैक्स’ कहते लगभग भागते हुए सड़क तक पहुंची.

रास्ते भर कृष्णा सोच में डूबी रही कि अजीब आदमी है. कल जब फोन करनी थी तो इस ने एक बार भी फोन करने को नहीं कहा और आज पीछे पड़ गया- फोन कर लीजिए, बिलकुल सिरफिरा लगता है. थोड़ी देर में वह औफिस पहुंच गई. जैसे ही वह औफिस पहुंची गुप्ता मैडम से उस का सामना हुआ और वह उस के सूटकेश को देख अजीब नजरों से उसे ताकने लगी फिर पूछा, ‘‘क्या तुम गेस्ट हाउस गई थी’’ और उसे से पीछा छुड़ा यह सोचते हुए कि दोनों ही पतिपत्नी बड़े अजीब हैं, नर्गिस के पास पहुंची.

नर्गिस लंच ले चुकी थी. कृष्णा का बड़बड़ाते देख पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ?’’

कृष्णा ने बताया, ‘‘अरे ये गुप्ता मैडम और उस के पति दोनों बड़े अजीब लोग हैं. अभी मैं सूटकेश लेने गई थी गेस्ट हाउस में तो उस का पति कह रहा था कि मेरे लैंडलाइन से घर पर फोन कर लीजिए. अब मुझे फोन नहीं करना तो नहीं करना उसे क्या पड़ी है,’’ इस पर नर्गिस ने बताया, ‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई कि उस के बारे में बड़े अजीबअजीब से किस्से प्रचलित हैं, जरा बच के रहना उस से.’’ जब कृष्णा ने कोंचा तो उस ने बताया, ‘‘अस्पताल में एक बार इस आदमी ने एक नर्स को छेड़ा था. नर्स ने जब हल्ला किया तो लोग जमा हो गए. कहा जाता है ऐसे ही किसी मामले में एक बार वह सस्पेंड भी हो चुका है. अफवाह तो ऐसी ही थी पता नहीं सच क्या है और झूठ क्या? लेकिन इतना तो तय है कि इस की रैप्यूटेशन अच्छी नहीं है. तरहतरह की अफवाहें उड़ती रही हैं उस के बारे में.’’

‘‘मुझे तुम्हें पहले बताना चाहिए था,’’ कहते हुए कृष्णा के शरीर में एक झुरझुरी सी उठी लेकिन जाने की हड़बड़ी में सब भूल कर जल्दजल्दी काम निबटाने में लग गई. समय से पहले सब काम निबटा बास से छुट्टी ले वह स्टेशन के लिए रवाना हो गई.

स्टेशन पहुंची तो ट्रेन लगी हुई थी, अब फोन करने का समय नहीं था. वह जल्दी में ट्रेन में चढ़ गई. थोड़ी देर में ट्रेन खुल भी गई. खिड़की के बाहर हर पल दृश्य बदल रहा था. सांझ हो आई थी, खेतों के बीच से पशुपखेरू, लोगबाग अपनेअपने घरों को लौट रहे थे. कृष्णा को खयाल आया कि कल इस समय मैं भी अपने परिवार के साथ अपने घर में रहूंगी.

धीरेधीरे रात उतर आई और बाहर कुछ बत्तियों के सिवाय अब कुछ भी दिखाई पड़ना बंद हो गया. कृष्णा खाना खा कर कल के सपने देखती हुई सो गई. सुबहसुबह उस की नींद खुली तो उस का स्टेशन आने वाला था. जल्दीजल्दी उस ने अपना सामान समेटा. सोच रही थी पता नहीं जय स्टेशन आएगा या नहीं. वैसे जय को मालूम तो था कि वह आने वाली है पर 2 दिन से बात नहीं होने के कारण ठीक से प्रोग्राम नहीं बता पाई थी. पर उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उस ने जय को हाथों में फूलों का बुके लिए खड़े देखा. शादी के बाद शायद यह उन की सब से लंबी जुदाई का वक्त रहा था. अत: दोनों मिलने को बेकरार थे. घर आ कर वह घर की सफाई और बच्चों के साथ मिल कर दीवाली की तैयारी में जुट गई. खुशी के 2-3 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

अपने परिवार के साथ मस्ती भरी दीवाली बीत गई. अब उसे कावेरी से मिलना

था. जैसा कि पहले से तय था दोनों कौफी हाउस में मिले और कौफी की चुस्कियों के साथ बातों का सिलसिला चल निकला. दोनों एकदूसरे को अपनी नई पोस्टिंग और नए जगह के बारे में बताने लगे. दोनों पहली बार अपने घरपरिवार से दूर अलग रहने के अनुभव को शेयर करने लगीं. कृष्णा ने बातों ही बातों में यात्रा से तुरंत पहले की वह टेलीफोन वाली बात कावेरी को बताया. कावेरी ने जोर का ठहाका लगाया और अपने बिंदास अंदाज में उस से पूछने लगी, ‘‘तुझे क्या लगता है क्यों वह तुझे फोन करवाने को इतना आतुर था और तुझ पर इतनी मेहरबानी कर रहा था?’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘मुझे तो वह कुछ सिरफिरा लगा, हो सकता है रिटायरमैंट के बाद सठिया गया हो.’’

कावेरी ने उसी बिंदास अंदाज में एक और ठहाका लगाया और कहा, ‘‘अरे बुद्धू तू बालबाल बच गई इंनकार कर के वरना वह तुझे लपेटने वाला था. अगर तू उस के रूम में चली जाती तो वह पीछे से दरवाजा बंद करता और तुझ पर टूट पड़ता. तू खुद कह रही है न कि औफिस का समय था और उस समय कौरिडोर में कोई नहीं था और उस की आवाज भी उखड़ीउखड़ी सी थी.’’

‘‘अरे नहीं, क्या बात करती हो तुम, मैं एक अधेड़ उम्र की महिला वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता था.’’

‘‘तेरे गोरे रंग पर मर मिटा होगा ये बता तुझ से तो बड़ा था न? तू कह रही है रिटायर्ड था तो कम से कम 15 साल तो बड़ा होगा ही तुझ से.’’

‘‘ये तू क्या कह रही है कावेरी मैं ने इस ऐंगल से तो सोचा ही नहीं.’’

‘‘तो सोच, अगर वह सिर्फ तुझ पर मेहरबानी कर रहा था तो शाम में जब तुम सब साथ चाय पी रहे थे और उस की पत्नी साथ थी उस ने तुझे फोन करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘हां, तेरी यह बात भी सही है.’’

‘‘जी हां, मैं हमेशा सही ही कहती हूं. दिन में जब गेस्ट हाउस में निश्चय ही सारे

लोग औफिस जा चुके थे और कारिडोर

बिलकुल सूना पड़ा था तभी वह दरियादिल क्यों बन गया था और तभी उस ने तुझ से फोन करने को क्यों कहा? इस के पीछे कुछ तो वजह रही होगी.’’

‘‘हां, यह बात भी सही है कि उस समय पूरे कौरिडोर में कोई नहीं था.’’

‘‘यस और नर्गिस ने तुझे बताया भी कि उस का रिकौर्ड ठीक नहीं.’’

‘‘हां, पर उस ने पहले नहीं बताया न.’’

‘‘अगर नर्गिस ने पहले बताया होता तो तुम्हें उसी समय माजरा समझ में आ गया होता.’’

‘‘अच्छा ये बता उस की पत्नी ने औफिस में मुझ से क्यों पूछा कि तुम गेस्ट हाउस गई थी क्या?’’

‘‘वह इसलिए कि इसे अपने पति का चालचलन मालूम था और उसे हमेशा अपने पति पर संदेह रहता होगा कि वह फिर से कोई करामात कर सकता है.’’

टेलीफोन- भाग 3: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

अब कृष्णा के मुंह से निकला.

‘‘औफ…’’

‘‘तू बालबाल बच गई कृष्णा, लगता है वह बुड्ढा कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज था.’’

‘‘कावेरी तुझे लगता है कि अगर वह बूड्ढा मेरे साथ जबरदस्ती करता तो मैं उसे छोड़ देती, कस के एक झापड़ नहीं रसीद करती उस के गाल पे. ऊंह, ये मुंह और मसूर की दाल.’’

‘‘कृष्णा तू जो भी करती पर एक कांड तो हो जाता न?’’ अब तो तू मान ले कि मैं जो कहती थी वो 100% सही था कि पुरुषों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए भले ही वे बूढ़े ही क्यों न हों.’’

‘‘नहीं सारे पुरुष एक से नहीं होते मेरे पति तो मुझे छोड़ किसी की तरफ ताकते तक नहीं.’’

‘‘कृष्णा तेरी बात सही है कि सारे पुरुष एक से नहीं होते पर कुछ मर्द तो ऐसे होते ही हैं जो अकेली औरत देखी नहीं कि बस लगे लार टपकाने. उन के लिए औरत की उम्र भी कोई माने नहीं रखती. ऐसे मर्दों से हमेशा सावधान रहना चाहिए.’’

‘‘कावेरी तेरी बात मानने को दिल तो नहीं करता पर तू ने इस घटना का विश्लेषण इस तरह किया है कि तेरी बातों में दम नजर आने लगा है. अब तो मुझे भी लगने लगा है कि उस दिन एक हादसा होतेहोते रह गया. पर मुझे अब भी बड़ा अजीब लग रहा है कि मेरे साथ भी इस उम्र में ऐसा कुछ कैसे हो सकता है.’’

‘‘कृष्णा चल अब मैं तुझे अपनी बात बताती हूं. इस बार दीवाली छुट्टी के लिए जब मैं आ रही थी स्टेशन पर मेरे साथ भी एक मजेदार वाकेआ हुआ. मैं स्टेशन समय से पहुंच गई थी पर ट्रेन

2 घंटे लेट हो गई थी. जिस प्लेटफार्म पर ट्रेन आने वाली थी मैं वहीं एक बेंच पर बैठ ट्रेन का इंतजार कर रही थी. मन नहीं लग रहा था अकेले और तू तो जानती ही है मैं अधिक देर चुप नहीं रह सकती. अत: पास बैठे आदमी से बात करने लगी. वह 30-35 साल का सांवले रंग का दुबलापतला सा, औसत कद का आदमी था जो बारबार अपना मोबाइल फोन निकाल कर कुछ बटन दबा रहा था. ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी से उस पर बात करना उस का मकसद नहीं वरन उस मोबाइल को लोगों को दिखाना ही उस का मुख्य मकसद हो. मैं ने सोचा अभी ट्रेन आने में देर है तब तक क्यों न इस नमूने से ही बात की जाए. उस की हिंदी अच्छी नहीं थी शायद दक्षिण भारतीय था और उसी शहर में किसी फैक्टरी में नौकरी करता था.

‘‘टूटीफूटी हिंदी और इंग्लिश में वह बातें करने लगा. बात ट्रेन से शुरू हो कर डैस्टिनेशन पर खत्म हो जानी थी पर मुझे समय पास करना था. अत: मैं ने उस के मोबाइल के बारे में पूछा कि कहां से खरीदी, कितने में खरीदी? वह खुशीखुशी मुझे बताने लगा जैसे उसे दिखाते हुए उसे गर्व महसूस हो रहा हो. वैसे भी आज के समय में मोबाइल एक नई चीज तो है ही. वह बता रहा कि मैं ने इसे खरीद तो लिया पर अधिकतर समय इस पर बात नहीं हो पाती क्योंकि टावर नहीं रहता हर जगह. फिर वह मेरे बारे में पूछने लगा कि कहां रहती हैं, कहां जा रही हैं? फिर मैं ने देखा कि जैसे ही उसे पता चला कि मैं इस शहर में अकेली रहती हूं वह मुझे से बात करने में रुचि लेने लगा.

‘‘उस ने बताया कि वह उसी शहर में किसी फैक्टरी में नौकरी करता है और अकेले रहता है. वह मुझे कहने लगा कि आप मेरा फोन नंबर ले लीजिए. मैं ने कहा मेरे पास मोबाइल है नहीं मैं नंबर ले कर क्या करूंगी. पर वह बारबार मुझे नंबर रख लेने के लिए यह कह कर जिद करने लगा कि शायद मैं कभी आप के काम आ सकूं. अब उस से पीछा छुड़ाने के लिए मैं ने मैगजीन खरीदने के बहाने वहां से उठना ही ठीक समझा. मैगजीन खरीद कर मैं दूसरे बेंच पर बैठ गई.

‘‘थोड़ी देर में वह इंसान फिर वहां पहुंच गया और एक बार फिर से मुझ से अनुरोध करने लगा कि मेरा नंबर ले लीजिए. अब मुझे उस पर गुस्सा आने लगा था. शायद मैं उसे झिड़क देती लेकिन तभी ट्रेन आ गई और मेरे जान में जान आई. उस व्यक्ति ने मेरे मना करने के बावजूद मेरा सामान उठा लिया और मेरे सीट तक गया मुझे पहुंचाने के लिए. जब मैं बैठ गई तो उस ने अपना नंबर लिख कर एक बार फिर मुझे देने की कोशिश की. अब मैं ने सोचा इस से पीछा छुड़ाने का सब से अच्छा रास्ता यही है कि नंबर रख लूं ताकि वह चला जाए.

‘‘मैं ने नंबर ले लिया और कहा कि आप के टे्रन का समय हो रहा है आप जाइए वरना आप की ट्रेन छूट जाएगी. आखिर में वह ट्रेन से उतरा पर फिर खिड़की के पास आ कर कहने लगा कि मैडम फोन करोगी न? प्लीज जरूर फोन कीजिएगा. अब मेरा धैर्य जवाब देने लगा था पर ट्रेन ने सीटी दे दी थी और मैं कोई सीन क्रिएट नहीं करना चाहिए थी. अत: उस से जान छुड़ाने के लिए कह दिया कि करूंगी. उस के जाते ही मैं ने वह कागज का टुकड़ा फाड़ कर फेंक दिया.’’

कृष्णा के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘यानी वह तुम से मिलने का ख्वाब

देखने लगा था?’’

‘‘हां, कृष्णा मैं समझ रही थी और मेरा अगला कदम उसे डपट कर ट्रेन से उतारने का था लेकिन वह खुद चला गया.’’

‘‘यानी टेलीफोन के चक्कर में तू भी पड़ी थी.’’

‘‘हां कृष्णा मैं भी, अब बता पुरुष को क्या कहोगी? वह उम्र में मुझ से काफी छोटा लग रहा फिर भी पीछे पड़ गया फोन के बहाने. पता नहीं उस के आगे क्या मंसूबे थे?’’

‘‘ओए कावेरी, कहने का अर्थ यह हुआ कि पुरुष किसी भी उम्र का हो उस से सावधान रहो और दूसरी बात यह भी अभी हम बूढ़े नहीं हुए हैं,’’ इतना कह कर कृष्णा ने एक जोरदार ठहाका लगाया. दोनों गले मिले, अगली बार फिर मिलने का वादा किया और एकदूसरे को सावधान रहने की हिदायत दे कर विदा हो गए.

कृष्णा छुट्टी खत्म कर के वापस गई तो सब से पहले उस ने औफिस में क्वार्टर के लिए आवेदन किया और अपने पति को बता दिया कि उस की बेटी आराधना जब तक यहां आएगी तब तक उसे क्वार्टर अलाट हो जाएगा.

टेलीफोन- भाग 1: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

ये उन दिनों की बात है जब मोबाइल फोन नहीं आया था और लोग लैंडलाइन से ही काम चलाते थे. 21वीं सदी की बस शुरुआत ही हुई थी. कृष्णा और कावेरी दोनों एक ही औफिस में काम करती थीं और दोनों में दांत काटी रोटी वाली दोस्ती थी. दोनों साथ लंच लेतीं, अपना खाली समय साथ बितातीं और अपने जीवन की हर छोटीबड़ी घटना एकदूसरे से शेयर करतीं. औफिस में दोनों की दोस्ती की चर्चा थी और दोनों ट्वीन फ्रैंड्स के नाम से जानी जाती थीं. दोनों अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती थीं, दोनों के पति भी उच्च पद पर थे और दोनों के बच्चे बड़े हो चुके थे. दोनों की उम्र 40-45 साल के करीब थी. कृष्णा गोरीचिट्टी, सुंदर सुंदर चेहरे वाली, मृदु स्वभाव की महिला थी. अधिक बात करना उस के स्वभाव में नहीं था.

वहीं कावेरी बेहद बातूनी, बिंदास और काफी बोल्ड महिला थी. सुंदर वह भी कम नहीं थी बस रंग थोड़ा कम था. दोनों अकसर बहस करतीं राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक मुद्दों के अलावे एक मुद्दा यह भी होता कि आजकल महिलाएं अधिक असुरक्षित हो गई हैं और उन के प्रति होन वाले अपराध बढ़ गए हैं. कृष्णा कहती कि अधिकतर अपराध करने वाले कम उम्र के नौजवान ही होते हैं और इस तरह के अपराध करने वाले कम उम्र के नौजवान ही होते हैं और इस तरह एकदूसरे की बातों को काटने के लिए कई उदाहरण दिया करते और एकदूसरे को यह सलाह भी कि हमारी तो कट गई पर अपनी बच्चियों की हिफाजत हमारी जिम्मेदारी है. अत: उस की सुरक्षा में कोई चूक नहीं होनी चाहिए.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक एक ऐसी खबर आई जो किसी विस्फोट से कम नहीं थी. दोनों का तबादला अलगअलग शहरों में हो गया था और अब दोनों के बिछड़ने का समय आ गया था. इस तबादले के कारण दोनों अपने घरपरिवार से तो दूर हो ही रहे थे साथ ही एकदूसरे से भी. अत: बेहद दुखी थीं लेकिन नौकरी का सवाल था तो जाना तो था ही. अंतत: दोनों ने दीवाली की छुट्टियों में मिलने का वादा कर एकदूसरे से विदा ली.

कृष्णा को नए शहर में तुरंत क्वार्टर नहीं मिला. अत: वह उस गेस्ट हाउस में ठहर गई जो उस के औफिस का ही था और जिस में औफिस की 4 और महिलाएं भी रहती थीं. उसे बताया गया कि जब तक उसे क्वार्टर अलाट नहीं हो जाता वह आराम से यहां रह सकती है. धीरेधीरे समय बीतने लगा. औफिस से आने के बाद और खाना खाने के बाद वह टहलते हुए उस चौराहे तक जाती जहां टेलीफोन बूथ था और अपने बच्चों और पति से बातें करती. कभीकभी वहां अच्छीखासी भीड़ होती. अत: बात करने के लिए उसे काफी देर तक इंतजार करना पड़ता. उसे सब से अधिक चिंता अपनी बेटी के लिए होती जो 14-15 साल की हो चुकी थी. बीच सेशन में उस का स्कूल छुड़वा कर अपने साथ लाना उचित नहीं समझ कृष्णा उसे भाई और पिता के पास ही छोड़ कर आई थी और यह तय किया था कि जैसे ही उस की वार्षिक परीक्षा हो जाएगी वह उसे अपने साथ ले आएगी. फिर जब तक उस की पोस्टिंग दोबारा अपने शहर में नहीं हो जाती उसे अपने साथ ही रखेगी.

कावेरी की भी हालत कमोवेश ऐसी ही थी. उस का बेटा 12वीं में था और बेटी 8वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस ने उन की देखभाल के लिए अपनी मां को बुला लिया था. अत: वह थोड़ी निश्चिंत थी पर फिर भी जब भी वह अखबारों में लड़कियों के साथ हुए छेड़छाड़ से संबंधित किसी समाचार को पढ़ती तो वह डर जाती. वह और उस के पति जीतोड़ कोशिश में लगे थे कि किसी तरह कावेरी का तबादला दोबारा उसी शहर में हो जाए.

दीवाली नजदीक आ रही थी अत: दोनों ने अपनाअपना टिकट बुक करवा लिया. जल्द ही मिलने का प्लान बनाते हुए एकदूसरे को पत्र लिखा और दीवाली के बाद कौफी हाउस में मिलने का समय तय कर लिया.

कृष्णा छुट्टियों को ले कर बहुत उत्साहित थी और शाम को गेस्ट हाउस के लौन में बैठ अपनी औफिस की सहकर्मी नर्गिस से बातें कर रही थी. नर्गिस काफी मिलनसार और अच्छे स्वभाव की महिला था और काफी दिनों से वहां रह रही थी. कृष्णा की उस से अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों लौन में बैठ कर बातें कर ही रहे थे कि एक टैक्सी आ कर रुकी और उस से 2 बुजुर्ग दंपति उतरे. नर्गिस ने कृष्णा का उन से परिचय करवाया कि यह गुप्ता मैडम हैं. बीमारी की वजह से कई महीने की छुट्टियों के बाद अपने पति के साथ वापस लौटी थीं, कल वे औफिस जौइन करेंगी ऐसा उस ने बताया. गुप्ता मैडम के पति डाक्टर थे और उसी औफिस के अस्पताल में पहले कार्यरत थे. लगभग 3 साल पहले रिटायर हो चुके थे. अभी तत्काल दोनों उसी गेस्ट हाउस में ठीक कृष्णा के सामने वाले रूम में ठहरे थे.

बाहर बेमौसम की बरसात शुरू हो गई थी इसलिए कृष्णा और नर्गिस लान से उठ कर टैरेस में आ गए. थोड़ी देर में फ्रैश हो कर वह बुजुर्ग दंपति भी वहीं आ कर बैठ गया. नर्गिस ने कबाब बनाया था. अत: उन्हें भी औफर किया, कबाब की खूब तारीफ हुई.

बाहर बरसात तेज हो गई थी. नर्गिस ने कहा, ‘‘एक कप गरमगरम चाय हो जाए तो मजा आ जाए,’’ अब बारी कृष्णा की थी. उस ने कहा, ‘‘मैं चाय बना लाती हूं,’’ सब मौसम का आनंद लेते हुए चाय पीते रहे. इधरउधर की बातें होती रही. कृष्णा भी सब से खुल गई थी लेकिन वर्षा रुकते न देख चिंतित हो रही थी क्योंकि वह समय उस का टेलिफोन बूथ पर जाने का था. उसे अगले दिन गाड़ी पकड़नी थी इसलिए वह अपने पति से बात कर उन्हें स्टेशन रिसीव करने के लिए आने को कहना चाहती थी पर झिझक बस कृष्णा ने उन से नहीं कहा. सोचती रही न होगा तो स्टेशन से ही बात कर लेगी. न ही गुप्ता मैडम ने औफर किया कि जरूरी है तो आप मेरे फोन से बात कर लीजिए न उस के पति ने. खैर थोड़ी देर में सभी विसर्जित हुईं और अगले दिन की तैयारी कर कृष्णा सो गई. सुबह उठ औफिस के लिए तैयार हुई अपना सूटकेश तैयार कर साइड में रख दिया. यह सोचते हुए कि लंच टाइम में आ कर ले जाऊंगी. अभी से कहां इसे ले कर जाऊं और औफिस के लिए निकल गई.

औफिस पहुंच घर जाने की खुशी में जल्दीजल्दी अपना काम निबटाने लगी. जैसे ही काम से थोड़ी फुरसत मिली डब्बा उठा कर लंच कर लिया क्योंकि लंच टाइम में उसे गेस्ट हाउस जा कर सूटकेश लाना था. 5 मिनट का रास्ता था औफिस से गेस्ट हाउस का. रास्ते भर सोचती रही कि औफिस लौट कर बौस को स्टेशन लीव का एप्लीकेशन देगी और ट्रेन का हवाला दे कर औफिस से थोड़ा जल्दी निकलने की कोशिश करेगी.

गेस्ट हाउस में पहुंच जैसे ही वह अपने कमरे का ताला खोलती है गुप्ता मैडम का पति आवाज सुन बाहर निकल आता है और कहता है, ‘‘मैडम आप आज ही जा रही हैं क्या?’’

कृष्णा हां में सर को हिलाती है?’’

‘‘कितने बजे की ट्रेन है?’’

‘‘5 बजे की.’’

‘‘आप को फोन करना था न आप हमारे फोन से कर लीजिए.’’

‘‘नहीं अब देर हो जाएगी, मैं बस अपना सूटकेश लेने आई थी. सूटकेश ले कर मैं निकल जाऊंगी.’’

करवा चौथ 2022: करवाचौथ- पति अनुज ने क्यों दी व्रत न रखने की सलाह?

‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें इन सब झमेलों से दूर रहने को? तुम्हारी समझ में नहीं आता है क्या?’’ अनुज ने गुस्से से कहा.

‘‘गुस्सा क्यों करते हो? तुम्हारी लंबी उम्र के लिए ही तो रखती हूं यह व्रत. इस में मेरा कौन सा स्वार्थ है?’’ निशा बोली.

‘‘मां भी तो रखती थीं न यह व्रत हर साल. फिर पापा की अचानक क्यों मौत हो गई थी? क्यों नहीं व्रत का प्रभाव उन्हें बचा पाया? मैं ने तो उन्हें अपना खून तक दिया था,’’ अनुज ने अपनी बात समझानी चाही.

‘‘तुम्हें तो हर वक्त झगड़ने का बहाना चाहिए. ऐसा इनसान नहीं देखा जो परंपराएं निभाना भी नहीं जानता,’’ निशा बड़बड़ाती रही.

अनुज ने निशा की आंखों में आंखें डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे भूखा रहने से ही मेरी उम्र बढ़ेगी, ऐसा ग्रंथों में लिखा है तो क्या सच ही है? ग्रंथों में तो न जाने क्या अनापशनाप लिखा हुआ है. सब मानोगी तो मुंह दिखाने लायक न रहोगी.’’ निशा बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘‘आप तो बस रहने दो. आप को तो बस मौका चाहिए मुझ पर किसी न किसी बात को ले कर उंगली उठाने का… मौका मिला नहीं तो जाएंगे शुरू सुनाने के लिए.’’

‘‘बात मौके की नहीं अंधविश्वास पर टिकी आस्था की है. ब्राह्मणों द्वारा विभिन्न प्रकार की धार्मिक रूढियों के जरीए स्त्री को ब्राह्मणवादी पित्रसत्ता के अधीन बनाए रखने की है.’’

‘‘बसबस आप तो चुप ही करो. क्यों किसी के लिए अपशब्द कहते हो. इस में ब्राह्मणों का क्या कुसुर… बचपन से सभी औरतों को यह व्रत करते हुए देख रही हूं. हमारे घर में मेरी मां भी यह व्रत करती हैं… यह तो पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है.’’

अनुज अपने गुस्से को काबू करते हुए बोला, ‘‘व्रत, पूजापाठ ये सब ब्राह्मणों ने ही बनाए ताकि ज्यादा से ज्यादा आम लोगों को ईश्वर और भाग्य का भय दिखा कर अपना उल्लू सीधा कर सकें. उन्हें शारीरिक बल से कमजोर कर उन पर पूरी तरह से कंट्रोल कर के मानसिक बेडि़यां पहनाई जा सकें. तुम तो नहीं मानती थीं ये सब… क्या हो गया शादी के बाद तुम्हारी मानसिकता को? इतना पढ़ने के बाद भी इन दकियानूसी बातों पर विश्वास?’’ यह आस्था, अंधविश्वास सिर्फ इसलिए ही तो है ताकि आस्था में कैद महिलाओं को किसी भी अनहोनी का भय दिखा कर ये ब्राह्मण, ये समाज के ठेकेदार हजारों वर्षों तक इन्हीं रीतिरिवाजों के जरीए गुलाम बनाए रख सकें. यही तो कहती थीं न तुम?’’

‘‘मैं ने करवाचौथ का व्रत आप से प्रेम की वजह से रखा है… आप की लंबी आयु के लिए.’’

‘‘तुम मेरे जीवन में मेरे संग हो यही काफी है. तुम्हें अपना प्यार साबित करने की कोई जरूरत नहीं. हम हमेशा हर तकलीफ में साथ हैं. यह एक दिन का उपवास कुछ साबित नहीं करेगा. वैसे भी तुम्हारे लिए भूखा रहना सही नहीं.’’

मुझे आप से कोई बहस नहीं करनी. हम  जिस समाज में रहते हैं उस के सब कायदेकानून मानने होते हैं. आप जल में रह कर मगर से बैर करने के लिए मत कहो… कल को कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. आप चुपचाप घर जल्दी आ जाओ… मैं एक दिन भूखी रहने से मरने वाली नहीं हूं,’’ निशा रोंआसे स्वर में बोली.

पत्नी की जिद्द और करवाचौथ के दिन को महाभारत में बदल जाने की विकट स्थिति के बीच अनुज ने चुप हो जाना ही बेहतर समझा. तभी मां ने आवाज लगाई, ‘‘क्यों बेकार की बहस कर रहा है निशा से… औफिस जा.’’

‘‘अनुज नाराजगी से चला गया. उसे निशा से ऐसी बेवकूफी की आशा नहीं थी पर उस से भी ज्यादा गुस्सा उसे अपनी मां पर आ रहा था, जो इस बेवकूफी में निशा का साथ दे रही थीं. कम से कम उन्हें तो यह समझना चाहिए था. वे खुद 32 साल की उम्र से वैधव्य का जीवन जी रही हैं. सिर्फ 2 साल का ही तो था जब अचानक बाप का साया सिर से उठ गया.

अनुज को आज महसूस हो रहा था कि स्त्री मुक्ति पर कही, लिखी जाने वाली बातों का तब तक कोई औचित्य नहीं जब तक कि वे खुद इस आस्था और अंधविश्वास के मायाजाल से न निकलें. सही कह रहा था संचित (दोस्त) कि शुरुआत अपने घर से करो. गर एक की भी सोच बदल सको तो समझ लेना बदलाव है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें