Hindi Story Collection : क्यों सरिता को अपना दामाद को बेईमान लगने लगा ?

Hindi Story Collection : बुढ़ापे में बेटाबहू और बेटीदामाद से मानसम्मान, प्यार पा कर शेखर और सरिता को अपनी जिंदगी सुंदर सपने के समान दिख रही थी. लेकिन सपना तो सपना ही होता है. आंख खुलते ही व्यक्ति हकीकत की दुनिया में लौट आता है. बिलकुल ऐसा ही शेखर और सरिता के साथ हुआ.

सु ख क्या होता है इस का एहसास अब प्रौढ़ावस्था में शेखर व सरिता को हो रहा था. जवानी तो संघर्ष करते गुजरी थी. कभी पैसे की किचकिच, कभी बच्चों की समस्याएं.

घर के कामों के बोझ से लदीफदी सरिता को कमर सीधी करने की फुरसत भी बड़ी कठिनाई से मिला करती थी. आमदनी बढ़ाने के लिए शेखर भी ओवरटाइम करता. अपनी जरूरतें कम कर के भविष्य के लिए रुपए जमा करता. सरिता भी घर का सारा काम अपने हाथों से कर के सीमित बजट में गुजारा करती थी.

सेवानिवृत्त होते ही समय जैसे थम गया. सबकुछ शांत हो गया. पतिपत्नी की भागदौड़ समाप्त हो गई. शेखर ने बचत के रुपयों से मनपसंद कोठी बना ली. हरेभरे पेड़पौधे से सजेधजे लान में बैठने का उस का सपना अब जा कर पूरा हुआ था.

बेटा पारस की इंजीनियरिंग की शिक्षा, फिर उस का विवाह सभी कुछ शेखर की नौकरी में रहते हुए ही हो चुका था. पारस अब नैनीताल में पोस्टेड है. बेटी प्रियंका, पति व बच्चों के साथ चेन्नई में रह रही थी. दामाद फैक्टरी का मालिक था.

शेखर ने अपनी कोठी का आधा हिस्सा किराए पर उठा दिया था. किराए की आमदनी, पेंशन व बैंक में जमा रकम के ब्याज से पतिपत्नी का गुजारा आराम से चल रहा था.

घर में सुख- सुविधा के सारे साधन उपलब्ध थे. सरिता पूरे दिन टेलीविजन देखती, आराम करती या ब्यूटी पार्लर जा कर चेहरे की झुर्रियां मिटवाने को फेशियल कराती.

शेखर हंसते, ‘‘तुम्हारे ऊपर बुढ़ापे में निखार आ गया है. पहले से अधिक खूबसूरत लगने लगी हो.’’

शेखर व सरिता सर्दी के मौसम में प्रियंका के घर चेन्नई चले जाते और गरमी का मौसम जा कर पारस के घर नैनीताल में गुजारते.

पुत्रीदामाद, बेटाबहू सभी उन के सम्मान में झुके रहते. दामाद कहता, ‘‘आप मेरे मांबाप के समान हैं, जैसे वे लोग, वैसे ही आप दोनों. बुजर्गों की सेवा नसीब वालों को ही मिला करती हैं.’’

शेखरसरिता अपने दामाद की बातें सुन कर गदगद हो उठते. दामाद उन्हें अपनी गाड़ी में बैठा कर चेन्नई के दर्शनीय स्थलों पर घुमाता, बढि़या भोजन खिलाता. नौकरानी रात को दूध का गिलास दे जाती.

सेवा करने में बहूबेटा भी कम नहीं थे. बहू अपने सासससुर को बिस्तर पर ही भोजन की थाली ला कर देती और धुले कपड़े पहनने को मिलते.

बहूबेटों की बुराइयां करने वाली औरतों पर सरिता व्यंग्य कसती कि तुम्हारे अंदर ही कमी होगी कि तुम लोग बहुओं को सताती होंगी. मेरी बहू को देखो, मैं उसे बेटी मानती हूं तभी तो वह मुझे सुखआराम देती है.

शेखर भी दामाद की प्रशंसा करते न अघाते. सोचते, पता नहीं क्यों लोग दामाद की बुराई करते हैं और उसे यमराज कह कर उस की सूरत से भी भय खाते हैं.

एक दिन प्रियंका का फोन आया. उस की आवाज में घबराहट थी, ‘‘मां गजब हो गया. हमारे घर में, फैक्टरी में सभी जगह आयकर वालों का छापा पड़ गया है और वे हमारे जेवर तक निकाल कर ले गए…’’

तभी शेखर सरिता के हाथ से फोन छीन कर बोले, ‘‘यह सब कैसे हो गया बेटी?’’

‘‘जेठ के कारण. सारी गलती उन्होंने ही की है. सारा हेरफेर वे करते हैं और उन की गलती का नतीजा हमें भोगना पड़ता है,’’ प्रियंका रो पड़ी.

शेखर बेटी को सांत्वना देते रह गए और फोन कट गया.

वह धम्म से कुरसी पर बैठ गए. लगा जैसे शरीर में खड़े रहने की ताकत नहीं रह गई है. और सरिता का तो जैसे मानसिक संतुलन ही खो गया. वह पागलों की भांति अपने सिर के बाल नोचने लगी.

शेखर ने अपनेआप को संभाला. सरिता को पानी पिला कर धैर्य बंधाया कि अवरोध तो आते ही रहते हैं, सब ठीक हो जाएगा.

एक दिन बेटीदामाद उन के घर आ पहुंचे. संकोच छोड़ कर प्रियंका अपनी परेशानी बयान करने लगी, ‘‘पापा, हम लोग जेठजिठानी से अलग हो रहे हैं. इन्हें नए सिरे से काम जमाना पडे़गा. कोठी छोड़ कर किराए के मकान में रहना पडे़गा. काम शुरू करने के लिए लाखों रुपए चाहिए. हमें आप की मदद की सख्त जरूरत है.’’

दामाद हाथ जोड़ कर सासससुर से विनती करने लगा, ‘‘पापा, आप लोगों का ही मुझे सहारा है, आप की मदद न मिली तो मैं बेरोजगार हो जाऊंगा. बच्चों की पढ़ाई रुक जाएगी.’’

शेखर व सरिता अपनी बेटी व दामाद को गरीबी की हालत में कैसे देख सकते थे. दोनों सोचविचार करने बैठ गए. फैसला यह लिया कि बेटीदामाद की सहायता करने में हर्ज ही क्या है? यह लोग सहारा पाने और कहां जाएंगे.

अपने ही काम आते हैं, यह सोच कर शेखर ने बैंक में जमा सारा रुपया निकाल कर दामाद के हाथों में थमा दिया. दामाद ने उन के पैरों पर गिर कर कृतज्ञता जाहिर की और कहा कि वह इस रकम को साल भर के अंदर ही वापस लौटा देगा.
शेखरसरिता को रकम देने का कोई मलाल नहीं था. उन्हें भरोसा था कि दामाद उन की रकम को ले कर जाएगा कहां, कह रहा है तो लौटाएगा अवश्य. फिर उन के पास जो कुछ भी है बच्चों के लिए ही तो है. बच्चों की सहायता करना उन का फर्ज है. दामाद उन्हें मांबाप के समान मानता है तो उन्हें भी उसे बेटे के समान मानना चाहिए.

अपना फर्ज पूरा कर के दंपती राहत का आभास कर रहे थे.बेटे पारस का फोन आया तो मां ने उसे सभी कुछ स्पष्ट रूप से बता दिया.

तीसरे दिन ही बेटाबहू दोनों आकस्मिक रूप से दिल्ली आ धमके. उन्हें इस तरह आया देख कर शेखर व सरिता हतप्रभ रह गए. ‘‘बेटा, सब ठीक है न,’’ शेखर उन के इस तरह अचानक आने का कारण जानने के लिए उतावले हुए जा रहे थे.

‘‘सब ठीक होता तो हमें यहां आने की जरूरत ही क्या थी,’’ तनावग्रस्त चेहरे से पारस ने जवाब दिया.

बहू ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘आप लोगों ने अपने खूनपसीने की कमाई दामाद को दे डाली, यह भी नहीं सोचा कि उन रुपयों पर आप के बेटे का भी हक बनता है.’’

बहू की बातें सुन कर शेखर हक्केबक्के रह गए. वह स्वयं को संयत कर के बोले, ‘‘उन लोगों को रुपया की सख्त जरूरत थी. फिर उन्होंने रुपया उधार ही तो लिया है, ब्याज सहित चुका देंगे.’’

‘‘आप ने रुपए उधार दिए हैं, इस का कोई सुबूत आप के पास है. आप ने उन के साथ कानूनी लिखापढ़ी करा ली है?’’

‘‘वे क्या पराए हैं जो कानूनी लिखापढ़ी कराई जाती व सुबूत रखे जाते.’’

‘‘पापा, आप भूल रहे हैं कि रुपया किसी भी इनसान का ईमान डिगा सकता है.’’

‘‘मेरा दामाद ऐसा इनसान नहीं है.’’ सरिता बोली, ‘‘प्रियंका भी तो है वह क्या दामाद को बेईमानी करने देगी.’’

‘‘यह तो वक्त बताएगा कि वे लोग बेईमान हैं या ईमानदार. पर पापा आप यह मकान मेरे नाम कर दें. कहीं ऐसा न हो कि आप बेटीदामाद के प्रेम में अंधे हो कर मकान भी उन के नाम कर डालें.’’

बेटे की बातें सुन कर शेखर व सरिता सन्न रह गए. हमेशा मानसम्मान करने वाले, सलीके से पेश आने वाले बेटाबहू इस प्रकार का अशोभनीय व्यवहार क्यों कर रहे हैं. यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.

आखिर, बेटाबहू इस शर्त पर शांत हुए कि बेटीदामाद ने अगर रुपए वापस नहीं किए तो उन के ऊपर मुकदमा चलाया जाएगा.

बेटाबहू कई तरह की हिदायतें दे कर नैनीताल चले गए पर शेखर व सरिता के मन पर चिंताओं का बोझ आ पड़ा था. सोचते, उन्होंने बेटीदामाद की सहायता कर के क्या गलती की है. रुपए बेटी के सुख से अधिक कीमती थोड़े ही थे.

हफ्ते में 2 बार बेटीदामाद का फोन आता तो दोनों पतिपत्नी भावविह्वल हो उठते. दामाद बिलकुल हीरा है, बेटे से बढ़ कर अपना है. बेटा कपूत बनता जा रहा है, बहू के कहने में चलता है. बहू ने ही पारस को उन के खिलाफ भड़काया होगा.

अब शेखर व सरिता उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे, जब दामाद उन का रुपया लौटाने आएगा और वे सारा रुपया उठा कर बेटाबहू के मुंह पर मार कर कहेंगे कि इसी रुपए की खातिर तुम लोग रिश्तों को बदनाम कर रहे थे न, लो रखो इन्हें.

कुछ माह बाद ही बेटीदामाद का फोन आना बंद हो गया तो शेखरसरिता चिंतित हो उठे. वे अपनी तरफ से फोन मिलाने का प्रयास कर रहे थे पर पता नहीं क्यों फोन पर प्रियंका व दामाद से बात नहीं हो पा रही थी.

हर साल की तरह इस साल भी शेखर व सरिता ने चेन्नई जाने की तैयारी कर ली थी और बेटीदामाद के बुलावे की प्रतीक्षा कर रहे थे.

एक दिन प्रियंका का फोन आया तो शेखर ने उस की खैरियत पूछने के लिए प्रश्नों की झड़ी लगा दी पर प्रियंका ने सिर्फ यह कह कर फोन रख दिया कि वे लोग इस बार चेन्नई न आएं क्योंकि नए मकान में अधिक जगह नहीं है.

शेखरसरिता बेटी से ढेरों बातें करना चाहते थे. दामाद के व्यवसाय के बारे में पूछना चाहते थे. अपने रुपयों की बात करना चाहते थे. पर प्रियंका ने कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया.

बेटीदामाद की इस बेरुखी का कारण उन की समझ में नहीं आ रहा था. देखतेदेखते साल पूरा हो गया. एक दिन हिम्मत कर के शेखर ने बेटी से रुपए की बाबत पूछ ही लिया.

प्रियंका जख्मी शेरनी की भांति गुर्रा उठी, ‘‘आप कैसे पिता हैं कि बेटी के सुख से अधिक आप को रुपए प्यारे हैं. अभी तो इन का काम शुरू ही हुआ है, अभी से एकसाथ इतना सारा रुपया निकाल लेंगे तो आगे काम कैसे चलेगा?’’

दामाद चिंघाड़ कर बोला, ‘‘मेरे स्थान पर आप का बेटा होता तो क्या आप उस से भी वापस मांगते? आप के पास रुपए की कमी है क्या? यह रुपया आप के पास बैंक में फालतू पड़ा था, मैं इस रुपए से ऐश नहीं कर रहा हूं, आप की बेटी को ही पाल रहा हूं.’’

पुत्रीदामाद की बातें सुन कर शेखर व सरिता सन्न कर रह गए और रुपए वापस मिलने की तमाम आशाएं निर्मूल साबित हुईं. उलटे वे उन के बुरे बन गए. रुपया तो गया ही साथ में मानसम्मान भी चला गया.

पारस का फोन आया, ‘‘पापा, रुपए मिल गए.’’

शेखर चकरा गए कि क्या उत्तर दें. संभल कर बोले, ‘‘दामाद का काम जम जाएगा तो रुपए भी आ जाएंगे.’’

‘‘पापा, साफ क्यों नहीं कहते कि दामाद ने रुपए देने से इनकार कर दिया. वह बेईमान निकल गया,’’ पारस दहाड़ा.

सरिता की आंखों से आंसू बह निकले, वह रोती हुई बोलीं, ‘‘बेटा, तू ठीक कह रहा है. दामाद सचमुच बेईमान है, रुपए वापस नहीं करना चाहता.’’

‘‘उन लोगों पर धोखाधड़ी करने का मुकदमा दायर करो,’’ जैसे सैकड़ों सुझाव पारस ने फोन पर ही दे डाले थे.

शेखर व सरिता एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. क्या वे बेटीदामाद के खिलाफ यह सब कर सकते थे.

चूंकि वे अपनी शर्त पर कायम नहीं रह सके इसलिए पारस मकान अपने नाम कराने दिल्ली आ धमका. पुत्रीदामाद से तो संबंध टूट ही चुके हैं, बहूबेटा से न टूट जाएं, यह सोच कर दोनों ने कोठी का मुख्तियारनामा व वसीयतनामा सारी कानूनी काररवाई कर के पूरे कागजात बेटे को थमा दिए.

पारस संतुष्ट भाव से चला गया.‘‘बोझ उतर गया,’’ शेखर ने सरिता की तरफ देख कर कहा, ‘‘अब न तो मकान की रंगाईपुताई कराने की चिंता न हाउस टैक्स जमा कराने की. पारस पूरी जिम्मेदारी निबाहेगा.’’

सरिता को न जाने कौन सा सदमा लग गया कि वह दिन पर दिन सूखती जा रही थी. उस की हंसी होंठों से छिन चुकी थी, भूखप्यास सब मर गई. बेटीबेटा, बहूदामाद की तसवीरोें को वह एकटक देखती रहतीं या फिर शून्य में घूरती रह जाती.

शेखर दुखी हो कर बोला, ‘‘तुम ने अपनी हालत मरीज जैसी बना ली. बालों पर मेंहदी लगाना भी बंद कर दिया, बूढ़ी लगने लगी हो.’’

सरिता दुखी मन से कहने लगी,‘‘हमारा कुछ भी नहीं रहा, हम अब बेटाबहू के आश्रित बन चुके हैं.’’

‘‘मेरी पेंशन व मकान का किराया तो है. हमें दूसरों के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ शेखर जैसे अपनेआप को ही समझा रहे थे.

जब किराएदार ने महीने का किराया नहीं दिया तो शेखर ने खुद जा कर शिकायती लहजे में किराएदार से बात की और किराया न देने का कारण पूछा.

किराएदार ने रसीद दिखाते हुए तीखे स्वर में उत्तर दिया कि वह पारस को सही वक्त पर किराए का मनीआर्डर भेज चुका है.

‘‘पारस को क्यों?’’

‘‘क्योंकि मकान का मालिक अब पारस है,’’ किराएदार ने नया किराया- नामा निकाल कर शेखर को दिखा दिया. जिस पर पारस के हस्ताक्षर थे.

शेखर सिर पकड़ कर रह गए कि सिर्फ मामूली सी पेंशन के सहारे अब वह अपना गुजारा कैसे कर पाएंगे.

‘‘बेटे पर मुकदमा करो न,’’ सरिता पागलों की भांति चिल्ला उठी, ‘‘सब बेईमान हैं, रुपयों के भूखे हैं.’’

शेखर कहते, ‘‘हम ने अपनी संतान के प्रति अपना फर्ज पूरा किया है. हमारी मृत्यु के बाद तो उन्हें मिलना ही था, पहले मिल गया. इस से भला क्या फर्क पड़ गया.’’

सरिता बोली, ‘‘बेटीदामाद, बेटा बहू सभी हमारी दौलत के भूखे थे. दौलत के लालच में हमारे साथ प्यारसम्मान का ढोंग करते रहे. दौलत मिल गई तो फोन पर बात करनी भी छोड़ दी.’’

पतिपत्नी दोनों ही मानसिक वेदना से पीडि़त हो चुके थे. घर पराया लगता, अपना खून पराया हो गया तो अपना क्या रह गया.

एक दिन शेखर अलमारी में पड़ी पुरानी पुस्तकों में से होम्योपैथिक चिकित्सा की पुस्तक तलाश कर रहे थे कि अचानक उन की निगाहों के सामने पुस्तकों के बीच में दबा बैग आ गया और उन की आंखें चमक उठीं.

बैग के अंदर उन्होंने सालों पहले इंदिरा विकासपत्र व किसान विकासपत्र पोस्ट आफिस से खरीद कर रखे हुए थे. जिस का पता न बेटाबेटी को था, न सरिता को, यहां तक कि खुद उन्हें भी याद नहीं रहा था.

मुसीबत में यह 90 हजार रुपए की रकम उन्हें 90 लाख के बराबर लग रही थी. उन के अंदर उत्साह उमड़ पड़ा. जैसे फिर से युवा हो उठे हों. हफ्ते भर के अंदर ही उन्होंने लान के कोने में टिन शेड डलवा कर एक प्रिंटिंग प्रेस लगवा ली. कुछ सामान पुराना भी खरीद लाए और नौकर रख लिए.

सरिता भी इसी काम में व्यस्त हो गई. शेखर बाहर के काम सभांलता तो सरिता दफ्तर में बैठती. शेखर हंस कर कहते, ‘‘हम लोग बुढ़ापे का बहाना ले कर निकम्मे हो गए थे. संतान ने हमें बेरोजगार इनसान बना दिया. अब हम दोनों काम के आदमी बन गए हैं.’’

सरिता मुसकराती, ‘‘कभीकभी कुछ भूल जाना भी अच्छा रहता है. तुम्हारे भूले हुए बचत पत्रों ने हमारी दुनिया आबाद कर दी. यह रकम न मिलती तो हमें अपना बाकी का जीवन बेटीदामाद और बेटाबहू की गुलामी करते हुए बिताना पड़ता. अब हमें बेटीदामाद, बेटाबहू सभी को भुला देना ही उचित रहेगा. हम उन्हें इस बात का एहसास दिला देंगे कि उन की सहायता लिए बगैर भी हम जी सकते हैं और अपनी मेहनत की रोटी खा सकते हैं. हमें उन के सामने हाथ फैलाने की कभी जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

सरिता व शेखर के चेहरे आत्म-विश्वास से चमक रहे थे, जैसे उन का खोया सुकून फिर से वापस लौट आया हो.

Hindi Love Story : हाशिया – क्या महेश के प्रेम को नीता समझ पाई ?

Hindi Love Story :  घंटी की आवाज सुन कर मनीषा ने दरवाजा खोला. सामने महेश और नीता को देख कर हैरान रह गई. मुंह से निकल पड़ा, ‘‘अरे, तुम लोग कब आए, कहां रुके हो. बहुत दिनों से कोई समाचार भी नहीं मिला.’’

‘‘दीदी, काफी दिनों से आप से मिली नहीं थी, इन्हें दिल्ली एक सेमिनार में जाना है, आप से मिलने की चाह लिए मैं भी इन के साथ चली आई. ब्रेक जर्नी की है. शाम को 6 बजे ट्रेन पकड़नी है. हालांकि समय कम है पर मिलने की इच्छा तो पूरी हो ही गई,’’ नीता ने मनीषा के पैर छूते हुए कहा.

‘‘अच्छा किया. सच में काफी दिनों से मिले नहीं थे पर कुछ और समय ले कर आते तो और भी अच्छा लगता,’’ मनीषा ने उसे गले लगाते हुए कहा और मन ही मन उस का अपने लिए प्रेम देख कर गद्गद हो उठी.

आवाज सुन कर सुरेंद्र भी बाहर निकल आए. पहचानते ही गर्मजोशी से स्वागत करते हुए बातों में मशगूल हो गए.

नीता तो जब तक रही उस के ही आगेपीछे घूमती रही, मानो उस की छोटी बहन हो. बारबार अपने सुखी जीवन के लिए उसे धन्यवाद देती हुई अनेक बार की तरह ही उस ने अब भी उस से यही कहा था, ‘‘इंसान अपना भविष्य खुद बनाताबिगाड़ता है, बाकी लोग तो सिर्फ जरिया ही होते हैं. यह तुम्हारा बड़प्पन है कि तुम अभी तक उस समय को नहीं भूली हो.’’

‘‘दीदी, बड़प्पन मेरा नहीं आप का है. आप उन लोगों में से हैं जो किसी के लिए बहुत कुछ करने के बाद भूल जाने में विश्वास रखते हैं. असल में आप ही थीं जिन्होंने मेरी टूटी नैया को पार लगाने में मदद की थी, जिन्होंने मुझे जीने की नई राह दिखाई. मेरी जिंदगी को नया आयाम दिया. वरना पता नहीं आज मैं कहां होती…’’

जातेजाते भी महेश और नीता बारबार यही कहते रहे, ‘‘कभी कोई आवश्यकता पड़े तो हमें जरूर याद कीजिएगा.’’ उन्हें इस बात का बहुत अफसोस था कि सुरेंद्र की बीमारी की सूचना उन्हें नहीं दी गई. वैसे सुनील और प्रिया के विवाह में वे आए थे और एक घर के सदस्य की तरह नीता ने पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

उन के जाने के बाद सुरेंद्र तो इंटरनैट खोल कर बैठ गए. शाम को उन की यही दिनचर्या बन गई थी. देशविदेश की खबरों को इंटरनैट के जरिए जानना या विदेश में बसे पुत्र सुनील और पुत्री प्रिया से चैटिंग करना. अगर वह भी नहीं तो कंप्यूटर पर ही घंटों बैठे चैस खेलना. उन्हें सासबहू वाले सीरियल्स में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी.

मनीषा ने टीवी खोला पर उस में भी उस का मन नहीं लगा. टीवी बंद कर के पास पड़ी मैगजीन उठाई. वह भी उस की पढ़ी हुई थी. आंखें बंद कर के सोफे पर ही रिलैक्स होना चाहा पर वह भी संभव नहीं हो पाया. उस के मन में 22 साल पहले की घटनाएं चलचित्र की भांति मंडराने लगीं.

उस समय वे बलिया में थे. पड़ोस में एक एसडीओ महेश रहते थे जो अकसर उन के घर आते रहते थे लेकिन जब भी वह उन से विवाह के लिए कहती तो मुसकरा कर रह जाते.

एक दिन उस ने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति एक बच्चे को ले कर घूम रहे हैं. नौकर से पता चला कि वे साहब के पिताजी हैं जो उन की पत्नी और बच्चे को ले कर आए हैं.

सुन कर अजीब लगा. महेश अकसर उन के घर आते थे लेकिन उन्होंने कभी उन से अपनी पत्नी और बच्चे का जिक्र ही नहीं किया. यहां तक कि उन्हें कुंआरा समझ कर जबजब भी उस ने उन से विवाह की बात की तो वे कुछ कहने के बजाय सिर्फ मुसकरा कर रह गए. यह तो उसे पता था कि वे गांव के हैं, हो सकता है बचपन में विवाह हो गया हो लेकिन अगर वे विवाहित थे तो वे बताना क्यों नहीं चाह रहे थे.

दूसरों के निजी मामलों में दखलंदाजी करना उस के स्वभाव में नहीं था. उन्होंने नहीं बताया तो हो सकता है उन की कोई मजबूरी रही हो, सोच कर दिमाग में चल रही उथलपुथल पर रोक लगाई.

जब तक महेश के पिताजी रहे तब तक तो सब ठीक चलता रहा पर उन के जाते ही दिलों में बंद चिनगारी भड़कने लगी. घरों के बीच की दीवार एक होने के कारण कभीकभी उन के असंतोष की आग का भभका हमारे घर भी आ जाता था. मन करता कि जा कर उन से बात करूंगी. आखिर इस असंतोष का कारण क्या है. हमारे भी बच्चे हैं, उन के झगड़े का असर हमारे ऊपर भी पड़ रहा है पर दूसरों के मामले में दखलंदाजी न करने के अपने स्वभाव के कारण चुप ही रही.

एक दिन महेश के औफिस जाने के बाद उन की पत्नी हमारे घर आई और अपना परिचय देती हुई बोली, ‘दीदी, आप हमें पहचानते नहीं हो, हमारा नाम नीता है. हम आप के पड़ोसी हैं. आप के अलावा हम किसी और को नहीं जानते हैं. इसीलिए आप के पास आए हैं. हम बहुत दुखी हैं, समझ में नहीं आ रहा क्या करब.’

‘क्यों, क्या बात है. हम से जितनी मदद होगी, करेंगे,’ उसे दिलासा देते हुए मैं ने कहा.

‘यह कहत हैं कि हम तोय से तलाक ले लेव, लड़का को तू ले जाना चाह तो ले जाव. तेरे साथ हमारा निबाह नहीं हो सकत. हम दूसर ब्याह करन चाहत हैं,’ कहते हुए उस की आंखों से बड़ेबड़े आंसू बहने लगे थे.

‘ऐसे कैसे दूसरा विवाह कर लेंगे. सरकारी नौकरी में एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह करना संभव ही नहीं है. फिर तलाक लेना इतना आसान थोड़े ही है कि मुंह से निकला नहीं और तलाक मिल गया,’ पानी का गिलास पकड़ा कर उसे समझते हुए मैं ने कहा.

अनजान शहर में किसी के मीठे बोल सुन कर उस का रोना रुक गया. मेरे आग्रह करने पर उस ने पानी पिया. उस के सहज होने पर मैं ने उस से फिर पूछा, ‘लेकिन वे तलाक क्यों लेना चाहते हैं.’

मेरा सवाल सुन कर वह बोली, ‘कहत हैं, तू पढ़ीलिखी नहीं है, हमारी सोसाइटी के लायक नहीं है. दीदी, आज हम उन्हें अच्छा नाही लागत हैं लेकिन जब हम इन के मायबाप के साथ खेतन में काम करत रहे, गांव की गृहस्थी को संभालते रहे तब इन्हें यह सब नाहीं सूझत रहा. आज जब डिप्टी बन गए हैं तब कह रहे हैं कि हम इन के लायक नाहीं. 10 बरस के थे जब हमारा इन से ब्याह हुआ था. गांव के एक स्कूल से ही 4 जमात तक पढ़े हैं. यह तो हमें गांव से ला ही नहीं रहे थे, वह तो इन की आनाकानी देख कर एक दिन ससुरजी खुद ही हमें यहां छोड़ गए. लेकिन यह तो हम से ढंग से बात भी नहीं करत.’ कहते हुए फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी, गले में चांदी की मोटी हंसुली, बालों में रचरच कर लगाया तेल, मोटी गुंथी चोटी में चटक लाल रंग का रिबन तथा वैसी ही चटक रंग की साड़ी. गांव वाले ढीलेढीले ब्लाउज में वह ठेठ गंवार तो लग रही थी लेकिन सांवले रंग में भी एक कशिश थी. बड़ीबड़ी आंखें अनायास ही किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ थीं. इस के अलावा गठीला बदन, ढीलेढाले ब्लाउज से झंकता यौवन किसी को मदहोश करने के लिए काफी था. अगर वह अपने पहननेओढ़ने के ढंग तथा बातचीत करने के तरीके में थोड़ा सुधार ले आए तो निश्चय ही कायाकल्प हो सकती थी.

यह सोच कर मैं ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘अगर तुम उन के दिल में अपनी जगह बनाना चाहती हो तो तुम्हें अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करनी होगी और अपने पहननेओढ़ने तथा बातचीत के लहजे में भी परिवर्तन लाना होगा.’

‘दीदी, आप जैसा कहेंगी हम वैसा करने को तैयार हैं. बस, हमारी जिंदगी संवर जाए,’ उस ने मेरे पैर छूते हुए कहा.

‘अरे, यह क्या कर रही हो. बड़ी हूं इसलिए बस, इतना चाहूंगी कि तुम्हारा जीवन सुखी रहे. मैं तुम्हें सहयोग तो दे सकती हूं पर कोशिश तुम्हें खुद ही करनी होगी. पहले तो यह कि वे चाहे कितना भी गुस्सा हों तुम चुप रहो. वे एक बच्चे के पिता हैं. वे खुद भी अपने बच्चे को अपने से दूर नहीं करना चाहेंगे. इसलिए अगर तुम अपनेआप में परिवर्तन ला पाओ तो कोई कारण नहीं कि वे तुम्हें स्वीकार न करें.’

‘आप ठीक कहत हैं, दीदी. वह अनूप को बेहद चाहत हैं. उन्होंने उस का एक अच्छे स्कूल में नाम भी लिखा दिया है. कल से वह स्कूल भी जाने लगा है. तभी आज हम समय निकाल कर आप के पास आए हैं.’

‘तुम्हें अक्षरज्ञान तो है ही, अब कुछ किताबें मैं तुम्हें दे रही हूं, उन्हें तुम पढ़ो. अगर कुछ समझ में न आए तो इस पैंसिल से वहां निशान बना देना. मैं समझ दूंगी, सुबह 11 से 1 बजे तक खाली रहती हूं. कल आ जाना,’ कुछ पारिवारिक पत्रिकाएं पकड़ाते हुए मैं ने नीता से कहा.

‘दीदी, अब हम चलें. अनूप स्कूल से आने वाला होव’ कहते हुए उस के चेहरे पर संतोष की छाया थी.

एक बार फिर उस ने मेरे पैर छू लिए थे. मेरे प्यारभरे वचन सुन कर वह काफी व्यवस्थित हो गई थी पर फिर भी मन में भविष्य के प्रति अनिश्चितता थी. वैसे भी उस के चेहरे पर छिपी व्यथा ने मेरा मन कसैला कर दिया. पहली मुलाकात में महेश हमें काफी भले, हाजिरजवाब और मिलनसार लगे थे पर पत्नी के साथ ऐसा बुरा व्यवहार, यहां तक कि दूसरे विवाह में कोई बाधा उत्पन्न न हो इसलिए अपने पुत्र से भी नजात पाना चाहते हैं. कैसे इंसान हैं वे. सच है, दुलहन वही जो पिया मन भाए पर विवाह कोई खेल तो नहीं. फिर इस में इस मासूम का क्या दोष. अपने छोटे मासूम बच्चे के साथ अकेले वह अपनी जिंदगी कैसे गुजारेगी. आखिर, एक पुरुष यह क्यों नहीं सोच पाता.

कहीं उन का किसी और के साथ चक्कर तो नहीं है, एक आशंका मेरे मन में उमड़ी. नहींनहीं, महेश ऐसे नहीं हो सकते. अगर ऐसा होता तो अनूप का दाखिला यहां नहीं करवाते. शायद अपनी अनपढ़, गंवार बीवी को देख कर वे हीनभावना के शिकार हो गए हैं और इस से उपजी कुंठा उन से वह सब कहलवा देती है जो शायद आमतौर से वे न कहते. लेकिन अगर ऐसा है तो वे खुद कुछ कोशिश कर उस में परिवर्तन ला सकते हैं, उसे पढ़ा सकते हैं. कई अनुत्तरित सवाल लिए मैं किचन में चली गई क्योंकि बच्चों का स्कूल से आने का समय हो रहा था.

दूसरे दिन नीता आई तो काफी उत्साहित थी. उस ने एक कहानी पढ़ी थी. हालांकि वह उसे पूरी तरह समझ नहीं पाई थी पर उस के लिए इतना ही काफी था कि उस ने पढ़ने का प्रयत्न किया. कुछ शब्द या भाव जो वह समझ नहीं पाई थी वहां उस ने मेरे कहे मुताबिक पैंसिल से निशान बना दिए थे. उन्हें मैं ने उसे समझया.

उस के सीखने का उत्साह देख मैं हैरान थी. कुछ ही दिनों में बातचीत में परिवर्तन स्पष्ट नजर आने लगा था. थोड़ा आत्मविश्वास भी उस में झलकने लगा था.

एक दिन उस को साथ ले कर मैं ब्यूटीपार्लर गई. फिर कुछ साडि़यां खरीदवा कर ब्लाउज सिलने दे आई. कुछ आर्टीफिशियल ज्वैलरी भी खरीदवाई. मेकअप का सामान खरीदवाने के साथ उन्हें उपयोग करना बताया. साड़ी बांधने का तरीका बताया. जूड़ा बांधने का तरीका बताते हुए तेल कम लगाने का सुझव दिया. खुशी तो इस बात की थी कि वह मेरे सारे सुझवों को ध्यान से सुनती और उन पर अमल करती. वैसे भी अगर शिष्य को सीखने की इच्छा होती है तो गुरु को भी उसे सिखाने में आनंद आता है.

एक दिन वह आई तो बेहद खुश थी. कारण पूछा तो बोली, ‘दीदी, कल हम आप की खरीदवाई साड़ी पहन कर इन का इंतजार कर रहे थे. अंदर घुसे तो पहली बार ये हमें देखते ही रह गए, फिर पूछा कि इतना परिवर्तन तुम्हारे अंदर कैसे आया. जब आप का नाम बताया तो गद्गद हो उठे. कल इन्होंने हमें प्यार भी किया,’ कहतेकहते वह शरमा उठी थी.

नैननक्श तो कंटीले थे ही, हलके मेकअप तथा सलीके से पहने कपड़ों में उस के व्यक्तित्व में निखार आता जा रहा था. महेश भी उस में आते परिवर्तन से खुश थे. अब वह हर रोज शाम को ढंग से सजसंवर कर उन का इंतजार करती. यही कारण था कि जहां पहले वे उस की ओर ध्यान ही नहीं देते थे, अब उन्होंने उस के लिए अनेक साडि़यां खरीदवा दी थीं. एक बार महेश स्वयं मेरे पास आ कर कृतज्ञता जाहिर करते हुए, मुझे धन्यवाद देते हुए बोले थे, ‘दीदी, मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगा, मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि किसी इंसान में इतना परिवर्तन आ सकता है.’

‘महेश भाई, दरअसल मुझ से ज्यादा धन्यवाद की पात्र नीता है. उस ने यह सब तुम्हें पाने के लिए किया. वह तुम्हें बहुत चाहती है.’

इस के बाद दोनों के बीच की दूरी घटती गई. कभीकभी वे घूमने भी जाने लगे थे. मैं यह सब देख कर बहुत खुश थी.

एक दिन अपने पुत्र अनूप की अंगरेजी की पुस्तक ला कर वह बोली, ‘दीदी, इन से पूछने में शरम आती है. अगर आप ही थोड़ी देर पढ़ा दिया करें.’

मेरे ‘हां’ कहने पर वह प्रसन्नता से पागल हो उठी, बोली, ‘दीदी, आप ने मेरे जीवन में खुशियां ही खुशियां बिखेर दी हैं, न जाने आप की गुरुदक्षिणा कैसे चुका पाऊंगी.’

‘अरी पगली, अगर सचमुच मुझे अपना गुरु मानती है तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा. एक गुरु के लिए यही काफी है कि उस का शिष्य जीवन में सफल रहे.’

सचमुच 6 महीने के अंदर ही उस ने सामान्य बोलचाल के शब्द लिखनापढ़ना सीख लिए थे. कहींकहीं अंगरेजी के शब्दों तथा वाक्यों का प्रयोग भी करने लगी थी. वैसे भी भाषा इस्तेमाल करने से ही सजतीसंवरती और निखरती है.

तभी सुरेंद्र का ट्रांसफर हो गया. पत्रों के माध्यम से संपर्क सदा बना रहा. वह बराबर लिखती रहती थी. अनूप के विवाह में हफ्तेभर पहले आने का आग्रह उस का सदा रहा था. बेटी रिया का कन्यादान भी वह मेरे हाथों से कराना चाहती थी. नीता के पत्रों में छिपी भावनाएं मुझे भी पत्र का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती रही थीं. यही कारण था कि पिछले 10 वर्षों से न मिल पाने पर भी उस के परिवार की एकएक बात मुझे पता थी. आज के युग में लोग अपनों से भी इतनी आत्मीयता, विश्वास की कल्पना नहीं कर सकते, फिर हम तो पराए थे.

‘‘सुनो, कहां हो. सुनील का मैसेज आया है,’’ सुरेंद्र ने मनीषा को पुकारते हुए कहा तो उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सुनील का मैसेज, क्या लिखा है. सब ठीक तो है न.’’ मनीषा ने अंदर जाते हुए पूछा. पिछले 15 दिनों से उस का कोई समाचार न आने के कारण वे चिंतित थे. 1-2 बार फोन किया पर किसी ने भी नहीं उठाया, आंसरिंग मशीन पर मैसेज छोड़ने के बाद भी हफ्तेभर से किसी ने कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की.

‘‘लिखा है, हम कल ही स्विट्जरलैंड से आए हैं. प्रोग्राम अचानक बना, इसलिए सूचित नहीं कर पाए. इस बार भी शायद हमारा इंडिया आना न हो पाए. बारबार छुट्टी नहीं मिल पाएगी. अगर आप लोग आना चाहें तो टिकट भेज दिए जाएं.’’

इस के बाद उस से कुछ भी सुना नहीं गया. ‘सब बहाना है बाहर घूमने के लिए. छुट्टी तो मिल सकती है पर मातापिता से मिलने के लिए नहीं. दरअसल वे यहां आना ही नहीं चाहते हैं. मांबाप के प्यार की उन के लिए कोई कीमत ही नहीं रही है. पिछले 4 वर्षों से कोई न कोई बहाना बना कर आना टाल रहे हैं. उस पर भी एहसान दिखा रहे हैं. अगर आना चाहें तो टिकट भिजवा दूं, एक बार तो जा कर देख ही आए हैं,’ बड़बड़ा उठी थी मनीषा.

पर जल्दी ही उस ने अपने नकारात्मक विचारों को झटका. उस को यह क्या होता जा रहा है. वह पहले तो कभी ऐसी न थी. बच्चों के अवगुणों में गुण ढूंढ़ना ही तो बड़प्पन है. हो सकता है कि सच में उसे छुट्टी न मिल रही हो, वह स्वयं नहीं आ पा रहा तो उन्हें बुला तो रहा है, बात तो एक ही है, मिलजुल कर रहना. अब वहां का जीवन ही इतना व्यस्त है कि लोगों के पास अपने लिए ही समय नहीं है तो उस में उन का क्या दोष.

फिर भी उसे न जाने क्यों लगने लगा था कि सच में कभीकभी कुछ लोग अपने न होते हुए भी बेहद अपने बन जाते हैं और कुछ लोग अपनी व्यस्तता की आड़ में अपनों को ही हाशिए पर खिसका देते हैं, खिसकाने का प्रयास करते हैं. उस ने निश्चय किया, ‘उस ने कभी किसी की हाशिए पर खिसकती जिंदगी को नया आयाम दिया था. चाहे कुछ भी हो जाए वह अपनी जिंदगी को हाशिए पर खिसकने नहीं देगी.’ इस विचार ने उसे तनावमुक्त कर दिया. माथे पर लटक आई लट को झटका, पास पड़ा रिमोट उठाया और टीवी औन कर दिया.

Hindi Fiction Stories : भोर – राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास

Hindi Fiction Stories : उस दिन सवेरे ही राजवी की मम्मी की किट्टी फ्रैंड नीतू उन के घर आईं. उन की कालोनी में उन की छवि मैरिज ब्यूरो की मालकिन की थी. किसी की बेटी तो किसी के बेटे की शादी करवाना उन का मनपसंद टाइमपास था. वे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाने के बाद एक तसवीर पर उंगली रख कर बोलीं, ‘‘देखो मीरा बहन, इस एनआरआई लड़के को सुंदर लड़की की तलाश है. इस की अमेरिका की सिटिजनशिप है और यह अकेला है, इसलिए इस पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं है. इस की सैलरी भी अच्छी है. खुद का घर है, इसलिए दूसरी चिंता भी नहीं है. बस गोरी और सुंदर लड़की की तलाश है इसे.’’

फिर तिरछी नजरों से राजवी की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘उस की इच्छा तो यहां हमारी राजवी को देख कर ही पूरी हो जाएगी. हमारी राजवी जैसी सुंदर लड़की तो उसे कहीं भी ढूंढ़ने से नहीं मिलेगी.’’ यह सब सुन रही राजवी का चेहरा अभिमान से चमक उठा. उसे अपने सौंदर्य का एहसास और गुमान तो शुरू से ही था. वह जानती थी कि वह दूसरी लड़कियों से कुछ हट कर है.

चमकीले साफ चेहरे पर हिरनी जैसी आंखें और गुलाबी होंठ उस के चेहरे का खास आकर्षण थे. और जब वह हंसती थी तब उस के गालों में डिंपल्स पड़ जाते थे. और उस की फिगर व उस की आकर्षक देहरचना तो किसी भी हीरोइन को चैलेंज कर सकती थी. इस से अपने सौंदर्य को ले कर उस के मन में खुशी तो थी ही, साथ में जानेअनजाने में एक गुमान भी था. मीरा ने जब उस एनआरआई लड़के की तसवीर हाथ में ली तो उसे देखते ही उन की भौंहें तन गईं. तभी नीतू बोल पड़ीं, ‘‘बस यह लड़का यानी अक्षय थोड़ा सांवला है और चश्मा लगाता है.’’

‘लग गई न सोने की थाली में लोहे की कील,’ मीरा मन में ही भुनभुनाईं. उन्हें लगा कि मेरी राजवी शायद इसे पसंद नहीं करेगी. पर प्लस पौइंट इस लड़के में यह था कि यह नीतू के दूर के किसी रिश्तेदार का लड़का था, इसलिए एनआरआई लड़के के साथ जुड़ी हुई मुसीबतें व जोखिम इस केस में नहीं था. जानापहचाना लड़का था और नीतू एक जिम्मेदार के तौर पर बीच में थीं ही.

फिर कुछ सोच कर मीरा बोलीं, ‘‘ओह, बस इतनी सी बात है. आजकल ये सब देखता कौन है और चश्मा तो किसी को भी लग सकता है. और इंडियन है तो रंग तो सांवला होगा ही. बाकी जैसा तुम कहती हो लड़का स्मार्ट भी है, समझदार भी. फिर क्या चाहिए हमें… क्यों राजवी?’’

अपने ही खयालों में खोई, नेल पेंट कर रही राजवी ने कहा, ‘‘हूं… यह बात तो सही है.’’

तब नीतू ने कहा, ‘‘तुम भी एक बार फोटो देख लो तो कुछ बात बने.’’

‘‘बाद में देख लूंगी आंटी. अभी तो मुझे देर हो रही है,’’ पर तसवीर देखने की चाहत तो उसे भी हो गई थी.

मीरा ने नीतू को इशारे में ही समझा दिया कि आप बात आगे बढ़ाओ, बाकी बात मैं संभाल लूंगी. मीरा और राजवी के पापा दोनों की इच्छा यह थी कि राजवी जैसी आजाद खयाल और बिंदास लड़की को ऐसा पति मिले, जो उसे संभाल सके और समझ सके. साथ में उसे अपनी मनपसंद लाइफ भी जीने को मिले. उस की ये सभी इच्छाएं अक्षय के साथ पूरी हो सकती थीं.

नीतू ने जातेजाते कहा, ‘‘राजवी, तुम जल्दी बताना, क्योंकि मेरे पास ऐसी बहुत सी लड़कियों की लिस्ट है, जो परदेशी दूल्हे को झपट लेने की ख्वाहिश रखती हैं.’’

नीतू के जाने के बाद मीरा ने राजवी के हाथ में तसवीर थमा दी, ‘‘देख ले बेटा, लड़का ऐसा है कि तेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी. हमारी तो हां ही समझ ले, तू भी जरा अच्छे से सोच लेना.’’

पर राजवी तसवीर देखते ही सोच में डूब गई. तभी उस की सहेली कविता का फोन आया. राजवी ने अपने मन की उलझन उस से शेयर की, तो पूरे उत्साह से कविता कहने लगी, ‘‘अरे, इस में क्या है. शादी के बाद भी तो तू अपना एक ग्रुप बना सकती है और सब के साथ अपने पति को भी शामिल कर के तू और भी मजे से लाइफ ऐंजौय कर सकती है. फिर वह तो फौरेन कल्चर में पलाबढ़ा लड़का है. उस की थिंकिंग तो मौडर्न होगी ही. अब तू दूसरा कुछ सोचने के बजाय उस से शादी कर लेने के बारे में ही सोचना शुरू कर दे…’’

कविता की बात राजवी समझ गई तो उस ने हां कह दिया. इस के बाद सब कुछ जल्दीजल्दी होता गया. 2 महीने बाद नीतू का दूर का वह भतीजा लड़कियों की एक लिस्ट ले कर इंडिया पहुंच गया. उसे सुंदर लड़की तो चाहिए ही थी, पर साथ में वह भारतीय संस्कारों से रंगी भी होनी चाहिए थी. ऐसी जो उसे भारतीय भोजन बना कर प्यार से खिलाए. साथ ही वह मौडर्न सोच और लाइफस्टाइल वाली हो ताकि उस के साथ ऐडजस्ट हो सके. पर उस की लिस्ट की सभी मुलाकात के बाद एकएक कर के रिजैक्ट होती गईं. तब एक दिन सुबह राजवी के पास नीतू का फोन आया, ‘‘शाम को 7 बजे तक रेडी हो जाना. अक्षय के साथ मुलाकात करनी है. और हां, मीरा से कहना कि वे तुझे अच्छी सी साड़ी पहनाएं.’’

‘‘साड़ी, पर क्यों? मुझ पर जींस ज्यादा सूट करती है,’’ कहते हुए राजवी बेचैन हो गई.

‘‘वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. तुम साड़ी यही समझ कर पहनना कि उसी में तुम ज्यादा सुंदर और अटै्रक्टिव लगती हो.’’

नीतू आंटी की बात पर गर्व से हंस पड़ी राजवी, ‘‘हां, वह तो है.’’

और उस दिन शाम को वह जब आकर्षक लाल रंग की डिजाइनर साड़ी पहन कर होटल शालिग्राम की सीढि़यां चढ़ रही थी, उस की अदा देखने लायक थी. होटल के मीटिंग हौल में राजवी को दाखिल होता देख सोफे पर बैठा अक्षय उसे देखता ही रह गया. नीतू ने जानबूझ कर उसे राजवी का फोटो नहीं भेजा था, ताकि मिलने के बाद ही अक्षय उसे ठीक से जान ले, परख ले. नीतू को वहीं छोड़ कर दोनों होटल के कौफी शौप में चले गए.

‘‘प्लीज…’’ कह कर अक्षय ने उसे चेयर दी. राजवी उस की सोच से भी अधिक सुंदर थी. हलके से मेकअप में भी उस के चेहरे में गजब का निखार था. जैसा नाम वैसा ही रूप सोचता हुआ अक्षय मन ही मन में खुश था. फिर भी थोड़ी झिझक थी उस के मन में कि क्या उसे वह पसंद करेगी?

ऐसा भी न था कि अक्षय में कोई दमखम न था और अब तो कंपनी उसे प्रमोशन दे कर उस की आमदनी भी दोगुनी करने वाली थी. फिर भी वह सोच रहा था कि अगर राजवी उसे पसंद कर लेती है तो वह उस के साथ मैच होने के लिए अपना मेकओवर भी करवा लेगा. मन ही मन यह सब सोचते हुए अक्षय ने राजवी के सामने वाली चेयर ली. अक्षय के बोलने का स्मार्ट तरीका, उस के चेहरे पर स्वाभिमान की चमक और उस का धीरगंभीर स्वभाव राजवी को प्रभावित कर गया. उस की बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कुल मिला कर राजवी को अक्षय का ऐटिट्यूड अपील कर गया.

Interesting Hindi Stories : चाय – गायत्री की क्या इच्छा थी?

Interesting Hindi Stories :  गायत्री को अभी तक होश नहीं आया था. वैसे रविकांत गायत्री के लिए कभी परेशान ही नहीं हुए थे. उस की ओर उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था. बस, घर सुचारु रूप से चलता आ रहा था. घर से भी ज्यादा उन के अपने कार्यक्रम तयशुदा समय से होते आ रहे थे. सुबह वे सैर को निकल जाते थे, शाम को टैनिस जरूर खेलते, रात को टीवी देखते हुए डिनर लेते और फिर कोई पत्रिका पढ़तेपढ़ते सो जाते. उन की अपनी दुनिया थी, जिसे उन्होंने अपने इर्दगिर्द बुन कर अपनेआप को एक कठघरे में कैद कर लिया था. उन का शरीर कसा हुआ और स्वस्थ था.

रविकांत ने कभी सोचने की कोशिश ही नहीं की कि गायत्री की दिनचर्चा क्या है.? दिनचर्या तो बहुत दूर की बात, उन्हें तो उस का पुराना चेहरा ही याद था, जो उन्होंने विवाह के समय और उस के बाद के कुछ अरसे तक देखा था. सामने अस्पताल के पलंग पर बेहोश पड़ी गायत्री उन्हें एक अनजान औरत लग रही थी.

रविकांत को लगा कि अगर वे कहीं बाहर मिलते तो शायद गायत्री को पहचान ही न पाते. क्या गायत्री भी उन्हें पहचान नहीं पाती? अधिक सोचना नहीं पड़ा. गायत्री तो उन के पद्चाप, कहीं से आने पर उन के तन की महक और आवाज आदि से ही उन्हें पहचान लेती थी. कितनी ही बार उन्हें अपनी ही रखी हुई चीज न मिलती और वे झल्लाते रहते. पर गायत्री चुटकी बजाते ही उस चीज को उन के सामने पेश कर देती.

पिछले कई दिनों से रविकांत, बस, सोचविचार में ही डूबे हुए थे. बेटे ने उन से कहा था, ‘‘पिताजी, आप घर जा कर आराम कीजिए, मां जब भी होश में आएंगी, आप को फोन कर दूंगा.’’

बहू ने भी बहुतेरा कहा, पर वे माने नहीं. रविकांत का चिंतित, थकाहारा और निराश चेहरा शायद पहले किसी ने भी नहीं देखा था. हमेशा उन में गर्व और आत्मविश्वास भरा रहता. यह भाव उन की बातों में भी झलकता था. वे अपने दोस्तों की हंसी उड़ाते थे कि बीवी के गुलाम हैं. पत्नी की मदद करने को वे चापलूसी समझते.

रविकांत सोच रहे थे कि गायत्री से हंस कर बातचीत किए कितना समय बीत चुका है. बेचारी मशीन की तरह काम करती रहती थी. उन्हें कभी ऐसा क्यों नहीं महसूस हुआ कि उसे भी बदलाव चाहिए?

एक शाम जब वे क्लब से खेल कर लौटे, तो देखा कि घर के बाहर एंबुलैंस खड़ी है और स्ट्रैचर पर लेटी हुई गायत्री को उस में चढ़ाया जा रहा है. उस समय भी तो अपने खास गर्वीले अंदाज में ही उन्होंने पूछा था, ‘एंबुलैंस आने लायक क्या हो गया?’

फिर बेटेबहू का उतरा चेहरा और पोते की छलछलाती आंखों ने उन्हें एहसास दिलाया कि बात गंभीर है. बहू ने हौले से बताया, ‘मांजी बैठेबैठे अचानक बेहोश हो गईं. डाक्टर ने नर्सिंगहोम में भरती कराने को कहा है.’

तब भी उन्हें चिंता के बजाय गुस्सा ही आया, ‘जरूर व्रतउपवास से ऐसा हुआ होगा या बाहर से समोसे वगैरह खाए होंगे.’

यह सुन कर बेटा पहली बार उन से नाराज हुआ, ‘पिताजी, कुछ तो खयाल कीजिए, मां की हालत चिंताजनक है, अगर उन्हें कुछ हो गया तो…?’

13 वर्षीय पोता मनु अपने पिता को सांत्वना देते हुए बोल रहा था, ‘नहीं पिताजी, दादी को कुछ नहीं होगा,’ फिर वह अपने दादा की ओर मुड़ कर बोला, ‘आप को यह भी नहीं पता कि दादी बाजार का कुछ खाती नहीं.’

उस समय उन्होंने पोते के चेहरे पर खुद के लिए अवज्ञा व अनादर की झलक सी देखी. उस के बाद कुछ भी बोलने का रविकांत का साहस न हुआ. उन का भय बढ़ता जा रहा था. डाक्टर जांच कर रहे थे. एकदम ठीकठीक कुछ भी कहने की स्थिति में वे भी नहीं थे कि गायत्री की बेहोशी कब टूटेगी. इस प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं था.

कुछ बरस पहले गायत्री के घुटनों में सूजन आने लगी थी. वह गठिया रोग से परेशान रहने लगी थी. दोपहर 3 बजे उसे चाय की तलब होती. वह सोचती कि कोई चाय पिला दे तो फिर उठ कर कुछ और काम कर ले. बहू दफ्तर से शाम तक ही आती. एक दिन असहनीय दर्द में गायत्री ने रविकांत से कहा, ‘मुझे अच्छी सी चाय बना कर पिलाइए न, अपने ही हाथ की पीपी कर थक गई हूं.’

रविकांत झल्लाते हुए बोले, ‘और भेजो बहू को दफ्तर. वह अगर घर संभालती तो तुम्हें भी आराम होता.’

हालांकि रविकांत अच्छी तरह जानते थे कि अब महिलाओं को केवल घर से बांध कर रखने का जमाना नहीं रहा, पर अपनी गलत बात को भी सही साबित करने से ही तो उन के अहं की पुष्टि होती थी.

कुछ माह पूर्व रात को सब साथ बैठ कर खाना खा रहे थे. रविकांत हमेशा की तरह अपना खाना जल्दीजल्दी खत्म कर हाथ धो कर वहीं दूसरी कुरसी पर बैठ गए और टीवी देखने लगे. अचानक मनु ने पूछा, ‘दादाजी, क्या आप दादीजी में कुछ फर्क देख रहे हैं?’

रविकांत ने टीवी पर से आंखें हटाए बिना पूछा, ‘कैसा फर्क?’

‘पहले दादीजी को देखिए न, तब तो पता चलेगा.’

बेचारी गायत्री अपने में ही सिमटी जा रही थी. रविकांत ने एक उड़ती नजर उस पर डाली और बोले, ‘नहीं, मुझे तो कोई फर्क नहीं लग रहा है.’

‘आप ठीक से देख ही कहां रहे हैं, फर्क कैसे महसूस होगा?’ मनु निराशा से बोला. इस बीच बहूबेटा मुसकराते रहे.

‘पिताजी, बोलिए न, दादाजी को बता दूं?’ मनु ने लाड़ से पूछा.

फिर वह गंभीर स्वर में बोला, ‘दादाजी, दादी को दोपहर की चाय कौन बना कर पिलाता है, बता सकते हैं?’

दादाजी कुछ बोलें, उस से पहले ही छाती तानते हुए वह बोला, ‘और कौन, सिवा मास्टर मनु के…’

‘तू चाय बना कर पिलाता है?’ रविकांत अविश्वास से हंसते हुए बोले.

‘क्यों, मैं क्या अब छोटा बच्चा हूं? दादीजी से पूछिए, उन की पसंद की कितनी बढि़या चाय बनाता हूं.’

उस समय रविकांत को लगा था कि पोते ने उन्हें मात दे दी. उन के बेटे ने उन से कभी खुल कर बात नहीं की थी. उन का स्वाभिमान, भले ही वह झूठा हो, उन्हें बाध्य कर रहा था कि मनु के बारे में वही खयाल बनाएं जो अन्य पुरुषों के बारे में थे. उन्हें लगा, मनु भी बस अपनी बीवी की मदद करते हुए ही जिंदगी बिता देगा. ऐसे लोगों के प्रति उन की राय कभी भी अच्छी नहीं रही.

अस्पताल में बैठेबैठे न जाने क्यों उन्हें ऐसा लग रहा था कि अब चाय बनाना सीख ही लें. गायत्री को होश आते ही अपने हाथ की बनी चाय पिलाएं तो उसे कितना अच्छा लगेगा. अपनी सोच में आए इस क्रांतिकारी परिवर्तन से वे खुद भी आश्चर्य से भर गए.

एक दिन रविकांत मनु से बोले, ‘‘आज जब भी तू चाय बनाए तो मुझे बताना कि कितना पानी, कितनी चीनी और दूध वगैरह कब डालना है. सब बताएगा न?’’

‘‘ठीक है, जब बनाऊंगा, आप खुद ही देख लीजिएगा. आजकल तो केवल आप के लिए बनती है. वैसे दादी की और मेरी चाय में दूध और चीनी कुछ ज्यादा होती है.’’

‘‘तुम नहीं पियोगे?’’

‘‘जब से दादी अस्पताल गई हैं, मैं ने चाय पीनी छोड़ दी है,’’ कहतेकहते मनु की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘आज से हम दोनों साथसाथ चाय पिएंगे. आज मैं बनाना सीख लूंगा तो कल से खुद बनाऊंगा.’’

मनु सुबकसुबक कर रोने लगा, ‘‘नहीं दादाजी, जब तक दादीजी ठीक नहीं हो जाएंगी, मैं चाय नहीं पिऊंगा.’’

रविकांत को पहली बार लगा कि गायत्री की घर में कोई हैसियत है, बल्कि हलकी सी ईर्ष्या भी हुई कि उस ने बहू व पोते पर जादू सा कर दिया है. मनु को गले लगाते हुए वे बोले, ‘‘तुम अपनी दादी को बहुत चाहते हो न?’’

‘‘क्यों नहीं चाहूंगा, मेरे कितने दोस्तों की दादियां दिनभर ‘चिड़चिड़’ करती रहती हैं. घर में सब को डांटती रहती हैं, पर मेरी दादी तो सभी को केवल प्यार करती हैं और मुझे अच्छीअच्छी कहानियां सुनाती हैं. मालूम है, मुझे उन्होंने ही कैरम व शतरंज खेलना सिखाया. मां भी हमेशा दादी की तारीफ करती हैं. बिना दादीजी के तो हम लोग उन के प्यार को तरस जाएंगे.’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसा मत बोल. तेरी दादी को जल्दी ही होश आ जाएगा. फिर हम तीनों साथसाथ चाय पिएंगे,’’ पहली बार रविकांत को अपनी आवाज में कंपन महसूस हुआ.

उस दिन उन्होंने चाय बनानी सीख ही ली. मनु को खुश करने को उन्हें अचानक एक तरकीब सूझी, ‘‘क्यों न ऐसा करें, हम रोज दोपहर की चाय बना कर अस्पताल ले जाएं, किसी दिन तो तुम्हारी दादी होश में आएंगी, फिर तीनों साथसाथ चाय पिएंगे.’’

मनु उन की बात से बहुत उत्साहित तो नहीं हुआ, पर न जाने क्यों दिल उन की बात मानने को तैयार हो रहा था.

अगले दिन दोपहर को अस्पताल से फोन आया, बहू बोल रही थी, ‘‘पिताजी, मांजी होश में आ गई हैं, आप मनु को ले कर तुरंत आ जाइए.’’

रविकांत बच्चों की तरह उत्साह से भर उठे. जल्दीजल्दी चाय बना कर थर्मस में भर कर साथ ले गए. वहां गायत्री पलंग पर लेटी जरूर थी, पर डाक्टरों, नर्सों और दूसरे कर्मचारियों के खड़े रहने से दिख नहीं पा रही थी. मनु किसी तरह पलंग के पास पहुंच कर दादी की नजर पड़ने का इंतजार करने लगा.

रविकांत के मन में बस एक ही बात थी कि थर्मस में से अपने हाथ की बनी चाय पिला कर गायत्री को चकित कर दें, उन्होंने यह भी नहीं देखा कि वह वास्तव में होश में आ गई है या नहीं और डाक्टर क्या कह रहे हैं? बस, कप में चाय भर कर गायत्री के पास खड़े हो गए. गायत्री मनु को देख रही थी और मनु उस के हाथ को सहला रहा था.

डाक्टर ने रविकांत को देखा, ‘‘यह आप कप में क्या लाए हैं?’’

‘‘जी, इन्हें पिलाने के लिए चाय लाया हूं,’’ रविकांत की इच्छा हो रही थी कि कहें, ‘अपने हाथ की बनी,’ पर संकोच आड़े आ रहा था.

‘‘नहीं, अब आप को इन का बहुत खयाल रखना पड़ेगा. मैं पूरा डाइट चार्ट बना कर देता हूं. उसी हिसाब और समय से इन्हें वही चीजें दें, जो मैं लिख कर दूं. चीनी, चावल, आलू, घी, वसा सब एकदम बंद. शक्कर वाली चाय तो इन के पास भी मत लाइए.’’

रविकांत चाय का प्याला हाथ में लिए बुत की तरह खड़े रहे. मनु नर्स द्वारा लाया गया सूप छोटे से चम्मच से बड़े जतन से दादी के मुंह में डाल रहा था.

अपने प्रयासों से ब्रैंड को और आगे बढ़ाया : सुपर्णा मित्रा

Suparna Mitra : टाइटन कंपनी लिमिटेड की चीफ ऐग्जीक्यूटिव औफिसर (वाचेस ऐंड वियरेबल डिवीजन) सुमित्रा मित्रा किसी परिचय की मुहताज नहीं. अपनी काबिलीयत और दूरदर्शिता के बल पर उन्होंने इस कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उन के चेहरे पर आत्मविश्वास और दृढ़ता के भाव स्वाभाविक रूप से झलकते हैं और यह उन के कामों में भी नजर आता है.

सुपर्णा जादवपुर विश्वविद्यालय से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हैं और आईआईएम, कोलकाता से एमबीए किया है. उन के पास बिजनैस का गहरा अनुभव है. उन्होंने हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड में मैनेजमैंट ट्रेनी के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की. इस के बाद वे टाइटन में शामिल हुईं जहां उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू दोनों मार्केटिंग में कई भूमिकाओं में काम किया. उन का अगला कार्यकाल तालिस्मा कौर्प में प्रोडक्ट मार्केटिंग के निदेशक के रूप में था. बाद में 2006 में उन्होंने फिर से टाइटन में शामिल हो कर टाइटन के ग्लोबल मार्केटिंग हैड के रूप में कार्य किया जहां उन के पास भारत और अंतर्राष्ट्रीय मार्केट्स में सभी मार्केटिंग कार्यों की जिम्मेदारी थी. फिलहाल वे सीईओ के रूप में कंपनी को संभाल रही हैं.

नेतृत्व और उपलब्धियां

उन के नेतृत्व में टाइटन ने कई इनोवेशन किए हैं जैसे कार्बन फाइबर और सिरैमिक जैसे उन्नत सामग्री का उपयोग. 2024 में टाइटन ने अपनी 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर सीमित संस्करण कलैक्शन पेश किया जिस में फ्लाइंग टूरबिलान वाच शामिल थी जो भारत में निर्मित पहली टूरबिलान घड़ी थी.

सुपर्णा के नेतृत्व के दौरान टाइटन ने बहुत ज्यादा फाइनैंशियल ग्रोथ की. सुपर्णा मित्रा के नेतृत्व में टाइटन की घडि़यों और पहनने योग्य उपकरण विभाग ने एफवाई 22 की अप्रैलजून तिमाही में 280त्न वर्ष दर वर्ष वृद्धि का प्रदर्शन किया जिस में राजस्व लगभग दोगुना हो कर क्व292 करोड़ हो गया.

सुमित्रा ने अपने प्रयासों से ब्रैंड के विकास को काफी बढ़ावा दिया और कंपनी को वैश्विक मान्यता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

2022 में बिजनैस स्टैंडर्ड वार्षिक पुरस्कारों द्वारा ‘कंपनी औफ द ईयर’ के रूप में टाइटन को मान्यता मिली.

सुपर्णा वर्तमान में स्विगी की स्वतंत्र निदेशक भी हैं  जहां वे अपनी मार्केटिंग और ब्रैंड मैनेजमैंट के अनुभव का उपयोग करते हुए कंपनी की विकास रणनीतियों में मार्गदर्शन प्रदान करती हैं.

नेतृत्व शैली

सुपर्णा मित्रा एक दृढ़, लक्ष्य केंद्रित और इनोवेशन को बढ़ावा देने वाली नेता के रूप में पहचानी जाती हैं. उन्होंने अपनी रणनीतियों में हमेशा ग्राहकों की बदलती प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए टाइटन को एक नई दिशा दी.

इस प्रकार सुपर्णा मित्रा का कैरियर और उन की उपलब्धियां न केवल उन के व्यक्तिगत कौशल और मेहनत का परिचायक हैं बल्कि भारतीय व्यापारिक दुनिया में एक आदर्श भी स्थापित करती हैं. उन्हें

‘मोस्ट पावरफुल वूमन इन बिजनैस’ (2021) का अवार्ड मिला. इंडस्ट्री में उन के सराहनीय नेतृत्व और प्रभाव के लिए वे फौर्च्यून इंडिया की सूची में शामिल हैं.

सुपर्णा के अचीवमैंट्स उन के कुछ कर गुजरने के जनून को दिखाते हैं. अपनी फील्ड में उन्होंने न सिर्फ अपने टैलेंट से लोगों को प्रभावित किया बल्कि जिस ब्रैंड के साथ वे जुड़ीं उस में भी नए आयाम जोड़े. यह सब महिलाओं के लिए प्रेरणा नहीं तो और क्या है. महिलाएं अगर ठान लें तो शिखर पर पहुंचना उन के लिए जरा भी मुश्किल नहीं..

Reader’s Recipe : ऐसे बनाएं शाही टुकड़ा, स्वाद होगा लाजवाब

Reader’s Recipe : शाही टुकड़ा

सामग्री

टुकड़ा बनाने के लिए :-

ब्रेड के स्लाइस 16 नग
देशी घी तलने के लिए

रबड़ी बनाने के लिए :-

दूध 1 लीटर फुल क्रीम
चीनी 4 बड़े चम्मच
इलाइची पाउडर 1 बड़ा चम्मच
कटे हुए बादाम 1 बड़ा चम्मच
कटे हुए पिस्ते 1 बड़ा चम्मच
गुलाब जल 1 बड़ा चम्मच
केसर 1 बड़ा चम्मच

reader's recipe

चाशनी:-

चीनी 1 कप
इलाइची पाउडर 1 छोटा चम्मच
सर्व करने के लिए :-
कटे हुए पिस्ते
गुलाब की पत्ती

बनाने की विधि:-

सबसे पहले रबड़ी बनाएं क्योंकि इसमें सबसे अधिक समय लगता है.

इसके लिए आप दूध के भरी तले के बर्तन में चढ़ा दें और चलाते हुए पकाएं.

आप देखेंगे इसके ऊपर मलाई की पार्ट बनने लग जाएगी जिसे चम्मच की सहायता से किनारे से निकालते हुए दूध में मिला दें.

दूध को गाढ़ा होने में कम से कम 10  मिनट लग जाएगा, जब दूध उबलने लगे  तब इसमें चीनी, इलाइची पाउडर, केसर और कटी मेवा डालकर चलाते हुए 4 मिनट या फिर जब तक दूध आधा न रह जाये पका कर गैस बंद कर दें.

गुलाब जल डालकर मिला लें और अलग रख दें.

चाशनी

चीनी को 1/2 कप पानी के साथ उबलने को चढ़ा के और लगातार चलाते हुए इसे एक तार की हो जाने तक पका लें.

गैस बंद करें, इलाइची पाउडर डालकर मिला लें.

ब्रेड के लिए:

ब्रेड के किनारों को चाकू की मदद से निकाल कर तिरछे आकार में या अपनी पसंद के आकार में काट लें. ‘घी को गरम करें और धीमी आंच पर ब्रेड को दोनों तरफ से सुनहरा और कुरकुरा हो जाने तक फ्राई कर लें.

अब इन तले हुए पीसेज को चाशनी में डूबा दें और 3 से 4 मिनट में निकाल कर एक प्लेट में रखें.

सर्व करने के लिए:

एक प्लेट में ब्रेड के पीस रखें ऊपर से रबड़ी डालें, पिस्ते और गुलाब पटती से सजा कर गर्म या ठंडा परोसें.
आप इसे नास्ते में, दोपहर के खाने में किसी पार्टी में कभी भी सर्व कर सकते है

पाठक का नाम : हेमलता श्रीवास्तव (नई दिल्ली)

Relationship : मेरे पिताजी पति को खरीखोटी सुनाते रहते हैं… मैं क्या करूं?

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. 2 वर्ष पहले मेरे पिता मेरे लिए एक विवाह प्रस्ताव लाए थे. लड़का पढ़ा लिखा और काफी योग्य था, पर परले दर्जे का घमंडी था. मैं ने उस के लिए मना कर दिया. फिर मेरे चाचा ने एक लड़का तलाशा. लड़का हर तरह से ठीक था. अकसर हमारे यहां आता जाता था.

मैं उस से प्यार करने लगी. इसी बीच हम से गलती हो गई. हम ने संबंध बना लिया और मैं गर्भवती हो गई. घर में कोई बताने वाला नहीं था. क्या करें, क्या न करें सोचते सोचते 3 महीने बीत गए. हमें कुछ समझ नहीं आया, तो हम घर से भाग गए.

वहीं मैं ने एक बेटे को जन्म दिया. खबर मिलने पर पिता आ कर बच्चे का नामकरण वगैरह कर के हमें घर ले आए. अब वे बात बात पर मुझे और मेरे पति को खरीखोटी सुनाते रहते हैं. हम माफी भी मांग चुके हैं. बताएं क्या करें?

जवाब

माता पिता अपने बच्चों का हमेशा भला चाहते हैं. इसीलिए आप के द्वारा 2 बार गलती पहली विवाहपूर्व गर्भधारण करना और दूसरी घर से भाग जाने की करने पर भी वे आप को आप के बच्चे सहित घर ले आए. हमेशा सामने देख कर पिता यदि गुस्से में कभी कड़वी बात कह देते हैं, तो आप को उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए.

यदि आप से सहन नहीं होता, तो आप को पति के साथ रहने की कहीं और व्यवस्था कर लेनी चाहिए. दूर होने से मन की कड़वाहट कम हो जाती है और संबंधों में मधुरता लौट आती है.

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प्यार का चसका

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz . सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दशकों से कैंसर देखभाल के क्षेत्र में काम कर रही हैं : विजी वैंकटेश

Viji Venkatesh : कैंसर की देखभाल से ले कर सिनेमा तक विजी वैंकटेश ने इस बात का उदाहरण दिया है कि बदलाव लाते हुए नए सपनों का पीछा करने में कभी देर नहीं होती. इस बात में कोई दोराय नहीं कि गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 में न्यू बिगिनिंग्स कैटेगरी के लिए विजी वैंकटेश ही उस की असली हकदार थीं. 71 साल की उम्र में विजी वैंकटेश न केवल बाधाओं को तोड़ रही हैं बल्कि नौनस्टौप माइलस्टोन अचीव भी कर रही हैं.

विजी वैंकटेश हैल्थकेयर ऐडवोकेट होने के साथसाथ ऐक्ट्रैस भी हैं. आज भी उन के कौन्फिडैंस को देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे 71 साल की हैं. जोश से भरी, आंखों में चमक और हर तरह की चुनौती से लड़ने को तैयार विजी वैंकटेश की कहानी पर एक नजर:

71 साल की उम्र में वैंकटेश एक पावरहाउस हैं

विजी वैंकटेश 37 सालों से अधिक समय से रोगी सहायता और वकालत में सब से आगे रही हैं. ‘द मैक्स फाउंडेशन’ में भारत और दक्षिण एशिया के रीजन हैड के रूप में उन्होंने दुनियाभर में लोअर और मिडिल इनकम वाले देशों में कैंसर पेशैंट्स के लिए जीवनरक्षक दवाओं तक पहुंच प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई है. उन के इस काम ने अनगिनत परिवारों को केंसर के इलाज की चुनौतियों से निबटने में मदद की है.

वैंकटेश की कैंसर देखभाल की यात्रा

1987 में शुरू हुई. घरघर जा कर फंड जुटाने का उन का काम उन्हें नरीमन पौइंट के आलीशान औफिस से ले कर कलवा और बेलापुर की मिलों तक ले गया जहां 1200 रुपए के सैलरी पर काम करने वाले कर्मचारी 25 रुपए दान करते थे. उन की उदारता के बदले में कुछ करने के लिए शुरुआती दौर में उन्होंने ब्रिटिश काउंसिल लाइब्रेरी से कैंसर शोध की किताबें पढ़ीं और वर्कर्स के लिए तंबाकू जागरूकता अभियान और उन की पत्नियों के लिए ब्रैस्ट सैल्फ ऐग्जामिनेशन वर्कशौप्स शुरू कीं जो कैंसर का एक अहम कारण माना जाता है. तब से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

पूरे साउथ एशिया में 60 हजार से भी ज्यादा कैंसर मरीजों के लिए विजी ने लाइफ सेविंग थेरैपीज की फैसिलिटी दिलाई. वहीं 30 हजार से ज्यादा क्रोनिक माइलायड ल्यूकेमिया के पेशैंट्स को ट्रीटमैंट दिलवाने में सफल रहीं.

गौरतलब है कि विजी के पास कैंसर का अपना कोई पर्सनल ऐक्सपीरियंस नहीं था. इस के बावजूद उन्हें इस काम में योगदान देने, फंड जुटाने और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई.

विजी के लिए ऐज इज जस्ट ए नंबर

साढ़े 3 दशकों से कैंसर देखभाल के क्षेत्र में काम कर रहीं विजी वैंकटेश अब ऐक्टिंग के क्षेत्र में भी अपने कदम रख चुकी हैं. वैंकटेश ने हाल ही में अखिल सत्यन के डाइरैक्शन में ऐक्टर फहद फासिल के साथ ‘पाचुवुम अल्बुथाविलक्कम’ (जिस का अर्थ है पाचू और द मैजिक लैंप) से सिनेमाई शुरुआत की.

गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स में बातचीत में उन से पूछा गया कि आप बदलते दौर में महिलाओं को क्या मैसेज देना चाहेंगी तो इस के जवाब में उन्होंने सभी महिलाओं को बताया कि अपने दिल की सुनो. वही करो जो तुम्हारा मन कहता है. निडर बनो. आप में खुश करने या मदद करने की शक्ति है- उस शक्ति को अपने पास रखो और जब अवसर तुम्हारे पास आए तो तुम्हें डरना नहीं चाहिए उस मौके का फायदा उठाओ.

विजी कहती हैं कि ऐसे अवार्ड्स इवेंट्स महिलाओं को कुछ अच्छा और बड़ा करने के लिए प्रेरित करते हैं. अगर ऐसे इवेंट्स होते रहें जो महिलाओं की अचीवमैंट को दुनिया के सामने पेश करते हों, तो उन्हें समाज में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है.

अचीवमैंट

ग्लोबल हैल्थ आर्गेनाईजेशन द्वारा लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड.

दक्षिण एशिया में कैंसर देखभाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रोनिक माइलौयड ल्यूकेमिया फाउंडेशन (आईसीएमएलएफ) द्वारा सम्मानित.

वाइन मेकिंग में एक अलग पहचान बनाई : टैगे रीता

Tgae Rita : टैगे रीता ताखे का जन्म अरुणाचल प्रदेश की जीरो घाटी में हुआ था. अपातानी जनजाति से आने वाली टैगे रीता ने ‘नौर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टिट्यूट औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी,’ निरजुली, अरुणाचल प्रदेश से कृषि इंजीनियर की डिगरी हासिल की है. कैरियर की शुरुआत एक कृषि इंजीनियर के रूप में करने वाली टैगे रीता जल्द ही बहुत बड़ी उद्यमी बन गईं.

टैगे रीता भारत की पहली जैविक कीवी वाइन ब्रैंड ‘नारा आबा’ की संस्थापक हैं. अक्तूबर, 2017 में उन्होंने अपने दिवंगत ससुर के नाम पर नारा आबा वाइन कंपनी की शुरुआत की जो अरुणाचल प्रदेश में जीरो कंपनी हांग गांव में स्थित एक भारतीय निजी कंपनी है. यह कंपनी देश की पहली और्गेनिक कीवी वाइन बनाने के लिए प्रसिद्ध है.

दुनियाभर में मशहूर

जीरो घाटी जो अपनी उपजाऊ मिट्टी और सुरम्य दृश्यों के लिए जानी जाती है, रीता ने वहां कृषि के प्रति अपने जनून को वाइन उद्योग में  लगा कर इसे एक अग्रणी व्यवसाय में बदल दिया. जीरो घाटी में कीवी बहुतायत में पैदा होता है. लिहाजा, कीवी वाइन के लिए बाहर से कुछ लाने की जरूरत रीता को नहीं पड़ी और जल्द ही उन की बनाई कीवी वाइन दुनियाभर में मशहूर हो गई.

इस वाइन की सही प्रक्रिया और सही मिश्रण तैयार करने में टैगे रीता ने 6 साल शोध किया और योजनाबद्ध तरीके से काम की शुरुआत की. वाइन की दुनिया में एक महिला का होना और वह भी इतना सफल होना वाकई आश्चर्यजनक था. प्रारंभ में 20 हजार लिटर की क्षमता वाली उन की वाइनरी ने अब 60,000 लिटर वाइन का उत्पादन करने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है, जिस से अपने उद्घाटन वर्ष में 300 किसानों को सहायता मिल रही है.

इस वाइन का स्वाद 6 से 8 डिगरी सैल्सियस के बीच सब से अच्छा लगता है तथा इसे पीसने से ले कर बोतलबंद करने तक 4 महीने का समय लगता है. रीता की उपलब्धियां वाइन उत्पादन के क्षेत्र से भी आगे निकल चुकी हैं.

उल्लेखनीय सफलता

टैगे की उल्लेखनीय सफलता की कहानी ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए हैं, जिन में संयुक्त राष्ट्र और नीति आयोग द्वारा 2018 में ‘महिला भारत परिवर्तन पुरस्कार’ और 2022 में प्रतिष्ठित ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ शामिल हैं.

टैगे रीता की कंपनी एक महत्त्वपूर्ण नियोक्ता के रूप में भी उभरी है जो 25 नियमित कर्मचारियों के अलावा 100 मौसमी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराती है. नारा आबा ब्रैंड की वित्तीय सफलता जो 12 करोड़ रुपए का राजस्व उत्पन्न करती है, रीता की उद्यमशीलता कौशल का प्रमाण है. उन का प्रभाव न केवल व्यापार जगत में बल्कि महत्त्वाकांक्षी उद्यमियों के लिए प्रेरणा के रूप में भी गूंज रहा है तथा वे इस क्षेत्र में टिकाऊ कृषि के लिए एक प्रकाश स्तंभ हैं.

महिलाएं अपनी ताकत पहचानें

रीता गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड की बिजनैस लीडरशिप अचीवर कैटेगरी की विजेता बन कर काफी उत्साहित हैं. उन का मानना है कि यह अवार्ड उन्हें आगे बढ़ने के लिए इंस्पायर करता रहेगा. रीता ने अपने काम से यह साबित कर दिया कि काम की ऐसी कोई फील्ड नहीं जहां महिलाएं पुरुषों की बराबरी के काम नहीं कर सकतीं. महिलाओं को अपनी ताकत को पहचानना है और सामाजिक बंधनों को तोड़ना है फिर दुनिया की कोई ताकत उन्हें उन की मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकती.

Hindi Moral Tales : गलतफहमी – शिखा ने बदला लेने के लिए आलोक को दिया धोखा

Hindi Moral Tales : औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.

‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा.

आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई.

उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं ’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू ’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे ले कर तुम्हारी नीयत खराब है क्या ’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है ’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम  की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी ’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’’

शिखा बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाईझगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे ’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों ’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो ’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा ’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया.

‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने कहा.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए.’’

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’

‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो ’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो ’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को  यह तीसरा कौन होगा ’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है.

2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं ’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी ’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी.

‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी ’’ वंदना ने उत्सुकता जताई.

‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी ’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब 8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी ’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मुझ से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम ’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मुझ से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों ’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझाया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझी में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में  मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे.

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