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Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 1

माहभर बाद जब ग्रीष्मा अपने स्कूल पहुंची तो पता चला कि पुराने प्रिंसिपल सर का तबादला हो गया है और नए प्रिंसिपल ने 2 दिन पहले ही जौइन किया है. जैसे ही उस ने स्टाफरूम में प्रवेश किया सभी सहकर्मी उस के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए बोले, ‘‘ग्रीष्मा अच्छा हुआ जो तुम ने स्कूल जौइन कर लिया. कम से कम उस माहौल से कुछ देर के लिए ही सही दूर रह कर तुम खुद को तनावमुक्त तो रख पाओगी. आज ही प्रिंसिपल सर ने पूरे स्टाफ से मुलाकात हेतु एक मीटिंग रखी है. तुम भी मिल लोगी वरना बाद में तुम्हें अकेले ही मिलने जाना पड़ता.’’ प्रेयर के बाद अपनी कक्षा में जाते समय जब ग्रीष्मा प्रिंसिपल के कक्ष के सामने से गुजरी तो उन की नेमप्लेट पर नजर पड़ी. लिखा था- ‘‘प्रिंसिपल विनय कुमार.’’

शाम की औपचारिक बैठक के बाद घर जाते समय आज इतने दिनों के बाद ग्रीष्मा का मन थोड़ा हलका महसूस कर रहा था वरना वही बातें… सुनसुन कर उस की तो जीने की इच्छा ही समाप्त होने लगी थी. नए सर अपने नाम के अनुकूल शांत और सौम्य हैं. सोचतेसोचते वह कब घर पहुंच गई उसे पता ही न चला. रवींद्र की अचानक हुई मौत के बाद अब जिंदगी धीरेधीरे अपने ढर्रे पर आने लगी थी. रवींद्र के साथ उस का 10 साल का वैवाहिक जीवन किसी सजा से कम न था. अपने मातापिता की इकलौती नाजों से पलीबढ़ी ग्रीष्मा का जब रवींद्र से विवाह हुआ तो सभी लड़कियों की भांति वह भी बहुत खुश थी. परंतु शीघ्र ही रवींद्र का शराबी और बिगड़ैल स्वभाव उस के सामने उजागर हो गया.

रवींद्र का कपड़ों का पुश्तैनी व्यवसाय था. मातापिता की इकलौती बिगड़ैल संतान थी. शराब ही उस की जिंदगी थी. उस के बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था. ग्रीष्मा ने शुरू में बहुत कोशिश की कि रवींद्र की शराब की लत छूट जाए पर बरसों की पड़ी लत उस की जरूरत नहीं जिंदगी बन चुकी थी. अपने तरीके से जीना उस की आदत थी. दुकान बंद कर के देर रात तक यारदोस्तों के साथ मस्ती कर के शराब के नशे में धुत्त हो कर घर लौटना और बिस्तर पर ग्रीष्मा के शरीर के साथ अठखेलियां करना उस का प्रिय शौक था. यदि कभी ग्रीष्मा नानुकुर करती तो मार खानी पड़ती थी.

ऐसे ही 1 माह पूर्व शराब के नशे में एक रात घर लौटते समय रवींद्र की बाइक एक कार से टकरा गई और वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठा. उस की मृत्यु से ग्रीष्मा सहित उस के सासससुर पर जैसे गाज गिर गई. इकलौते बेटे की मृत्यु से उन का खानापीना सब छूट गया. नातेरिश्तेदार अपना शोक जता कर 13 दिनों के बाद 1-1 कर के चले गए. रवींद्र के जाने के बाद ग्रीष्मा ने अपने बिखरे परिवार को संभालने में पूरी ताकत लगा दी. मातापिता के लिए इकलौते बेटे का गम भुलाना आसान नहीं होता. संतान जिस दिन जन्म लेती है मातापिता उसी दिन से उस के साथ रोना, हंसना और जीना सीख लेते हैं और उस के साथ भविष्य के सुनहरे सपने बुनने लगते हैं पर जब जीवन के एक सुखद मोड़ पर अचानक वही संतान साथ छोड़ देती है तो मातापिता तो जीतेजी ही मर जाते हैं.

कहने के लिए तो रवींद्र उस का पति था, परंतु रवींद्र के दुर्व्यवहार के कारण उस के प्रति प्रेम जैसी भावना कभी जन्म ही नहीं ले पाई. रवींद्र से अधिक तो उसे अपने सासससुर से प्यार था. उन्होंने उसे सदैव बहू नहीं, बल्कि एक बेटी सा प्यार दिया. अपने बेटे रवींद्र के आचरण का वे भले ही प्रत्यक्ष विरोध न कर पाते थे, परंतु जानते सब थे और इसीलिए सदैव मन ही मन अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपने प्यार से उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. इसलिए रवींद्र के जाने के बाद अब वे उस की ही जिम्मेदारी थे. बड़ी मुश्किल से पोते कुणाल का वास्ता देदे कर उस ने उन्हें फिर से जीना सिखाया.

रवींद्र की मृत्यु के बाद आज पहली बार वह स्कूल गई थी. सासससुर ने ही उस से कहा, ‘‘बेटा, घर में रहने से काम नहीं चलेगा… जाने वाला तो चला गया अब तू ही हमारा बेटा, बेटी, और बहू है. तू अपनी नौकरी जौइन कर ले. दुकान तो हम दोनों संभाल लेंगे.’’ ग्रीष्मा विवाह से पहले एक स्कूल में पढ़ा रही थी और पति ने उसे रोका नहीं था. किचन का काम समाप्त कर के वह जब बिस्तर पर लेटी तो बारबार मन सुबह की मीटिंग में हुई प्रिंसिपल सर की बातों पर चला गया. न जाने क्या था उन के व्यक्तित्व में कि ग्रीष्मा का मन उन के बारे में सोच कर ही प्रफुल्लित हो उठता.

एक दिन स्कूल से घर के लिए निकली ही थी कि झमाझम बारिश शुरू हो गई. स्कूटी खराब होने के कारण वह उस दिन रिकशे से ही आई थी. बारिश रुकने के इंतजार में वह एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई. तभी विनय सर की गाड़ी उस के पास आ कर रुकी, ‘‘मैडम, आइए मैं आप को घर छोड़ देता हूं,’’ कह कर उन्होंने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोल दिया.

‘‘नहींनहीं सर मैं चली जाऊंगी. आप परेशान न हों,’’ कह कर ग्रीष्मा ने उन्हें टालने की कोशिश की.

मगर वे फिर बोले, ‘‘मान भी जाइए मैडम, बारिश बहुत तेज है. आप भीग कर बीमार हो जाएंगी और फिर कल लीव की ऐप्लिकेशन भेज देंगी.’’ ग्रीष्मा चुपचाप गाड़ी में बैठ गई.

गाड़ी में पसरे मौन को तोड़ते हुए विनय सर ने कहा, ‘‘मैडम, आप कहां रहती हैं? कौनकौन हैं आप के घर में?’’

‘‘सर यहीं अरेरा कालोनी में अपने सासससुर और एक 10 वर्षीय बेटे के साथ रहती हूं.’’ ‘‘आप के पति?’’

‘‘सर अभी 1 माह पूर्व ही उन का देहांत हो गया,’’ ग्रीष्मा ने दबे स्वर में कहा. यह सुन विनय सर लगभग हड़बड़ाते हुए बोले, ‘‘ओह सौरी… आई एम वैरी सौरी.’’

‘‘अरे नहींनहीं सर इस में सौरी की क्या बात है… आप को तो पता नहीं था न, तो पूछना जायज ही है. सर… आप के परिवार में… कहतेकहते ग्रीष्मा रुक गई.’’ ‘‘मैडम मैं तो अकेला फक्कड़ इंसान हूं. विवाह हुआ नहीं और मातापिता एक दुर्घटना में गुजर गए. बस अब मैं और मेरी तन्हाई,’’ कह कर विनय सर एकदम शांत हो गए.

‘‘जी सर…बसबस सर यहीं उतार दीजिए. वह सामने मेरा घर है,’’ सामने दिख रहे घर की ओर इशारा करते हुए ग्रीष्मा ने कहा.

आगे पढ़ें- एक दिन जैसे ही ग्रीष्मा स्कूल पहुंची, चपरासी…

आदिल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा, राखी ने पति पर लगाए थे गंभीर आरोप

राखी सावंत (rakhi Sawant) ने अपने पति आदिल दुर्रानी (Adil Khan Durrani Arrested) के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी. जिसके बाद पुलिस ने आदिल पर 406 और 420 की धाराएं लगाकर उन्हें गिरफ्तार किया था. आदिल की गिरफ्तारी के बाद राखी ने एक बयान भी जारी किया था, जिसमें कई खुलासे किए थे. अब खबर आ रही है कि अब आदिल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. बीते कुछ समय से राखी सावंत की मुश्किलें धमने का नाम नहीं ले रही है. राखी और पति आदिल खान दुर्रानी के बीच बीते कुछ दिनों से तनातनी चल रही है. हाल ही में राखी ने अपने पति के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने आदिल को हिरासत में लिया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राखी के बयानों को सामने रखते हुए आदिल को अब 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

राखी सावंत ने आदिल दुर्रानी पर लगाए गंभीर आरोप

राखी सावंत ने कुछ दिनों पहले ही आदिल दुर्रानी के साथ शादी की थी। अब राखी सावंत ने अपने पति पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. राखी सावंत का कहना है कि आदिल दुर्रानी पहले ही शादीशुदा है. राखी सावंत ने मंगलवार को आदिल दुर्रानी के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी. पुलिस ने शिकायत पर कार्रवाई करते हुए आदिल दुर्रानी को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी. पुलिस ने बुधवार को आदिल दुर्रानी को अंधेरी कोर्ट में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

 

 

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14 दिन की न्यायिक हिरासत में आदिल दुर्रानी

राखी सावंत की शिकायत के बाद आदिल को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया था. बीते दिन उन्हें अंधेरी कोर्ट में पेश किया गया था. राखी सावंत ने ही आदिल खान दुर्रानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसके बाद पुलिस ने आदिल को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी. आज हुई सुनवाई के बाद आदिल दुर्रानी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

राखी सावंत की मुसीबतें नहीं हो रहीं कम

बताते चलें कि राखी सावंत ने आरोप लगाया था कि आदिल दुर्रानी ने उनके पैसों का दुरुपयोग कर रहे है. राखी सावंत ने ये भी आरोप लगाया था कि आदिल दुर्रानी की वजह से उनकी मां का निधन हुआ है. बता दें कि राखी सावंत की मां जया सावंत का 28 जनवरी को निधन हो गया था. राखी सावंत अपनी मां के निधन से उबर नहीं पाई थीं कि उनके पति आदिल दुर्रानी के साथ रिश्ते खराब हो गए कि उन्हें कोर्ट और पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.

 

 

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राखी सावंत ने जारी किया था बयान

राखी सावंत ने बीते दिन अपनी इंस्टा स्टोरी पर मीडिया स्टेटमेंट जारी किया था. उन्होंने कहा कि वह भी मामले को सुलझाने के लिए स्टेशन पहुंची हैं. उनसे मिलने के लिए घर आने के बाद आदिल को गिरफ्तार किया गया. उन्होंने एक मीडिया बयान भी जारी किया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि ये कोई मीडिया ये नाटक नहीं है. मेरी जिंदगी खराब हो रही है. इसने. मुझे मारा है, मेरा पैसा लूटा है कुरान पे हाथ रख के भी. इसने मेरे साथ धोखा किया है.

अपनी पहली डेट को बनाएं मीठी याद

पहली डेट वो पल होता है जिसे हम अपनी वृद्धावस्था में भी याद करें तो होठों पर मुस्कान छोड़ जाए क्योंकि यही वो पल होता है जिस समय हम अपने जीवन में ऐसे खास व्यक्ति से मिलते है जिसके साथ हम सारी ज़िंदगी बिताने के सपने संजोना चाहते हैं. इस मुलाकात का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि आप अपनी पसंद के लड़के या लड़की से पहली बार मिलने जा रहे है बल्कि यह आपके माता पिता या मैट्रिमोनियल साइट से प्रोफाइल पसंद आए हुए व्यक्ति से भी हो सकती है.  आजकल जब लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तभी अपनी रिलेशनशिप को आगे बढ़ाने की सोचते हैं ऐसे में दोनों के मन में उत्सुकता और उलझन के साथ साथ सवालों की जैसे झरी लगी होती है डेट पर क्या होगा?क्या वो बिलकुल ऐसा होगा या होगी जैसा जीवन साथी मुझे चाहिए ? क्या उसे मैं पसंद आऊगा या आऊंगी? जैसे सवाल आपके मन में हिडोले ले रहे होते हैं, तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर पहली डेट को आप किस प्रकार बिना गलतियां करे बेहद खास और यादगार बना सकते हैं.

कंफर्ट का रखें ध्यान

पहली डेट पर जा रहे हैं तो दोनों का एक दूसरे के साथ कंफर्ट होना बहुत जरूरी है इसके लिए ऐसी जगह जाएं जहां आप एक दूसरे से आराम से बैठ कर बात कर सकें, या अगर कुछ खा पी रहे हैं तो उनकी इच्छाओं को जानें और उनका सम्मान करें। अच्छे से तैयार होकर जाएं.  भड़कीले या ऐसे कपड़े पहन कर ना जाए जिसमें आप कंफर्टेबल महसूस ना करें. औपचारिक न बने , दोस्ताना रवैया रखें जिससे की आप दोनों सहजता पूर्वक बातें कर सकें और एक दूसरे को समझ सके.
घबराहट से बचें- घबराहट और हिचकिचाहट से बचें.  आत्मविश्वास बनाए रखे. बहुत ज्यादा या इधर-उधर की बातें न करते हुए खुद को खुली किताब बनने से बचे क्योंकि धोड़े रहस्यमयी लोगों को जानने की उत्सुकता हमेशा लगी रहती है तो कुछ बातें दूसरी डेट के लिए भी छोड़ देनी चाहिए.  हड़बड़ाहट के बजाय आराम से अपनी भावनाएं व्यक्त करें और पार्टनर की बातों को ध्यान से सुनें और समझें.
परिवार को दे वैल्यू -यदि आप किसी से रिश्ता बनाने जा रहे हैं तो उसके परिवार के बारे में जानना भी बहुत जरूरी है इससे सामने वाले पर अच्छा इम्प्रेशन भी पड़ता है।रिश्ते-नाते आदि से संंबंधित नकारात्मक बातें करने से बचें. सामने वाले को जताएँ की आप परिवार के वैल्यूज को महत्व देते हैं .

स्वाद के लिए न करें दिल से समझौता

प्रिया को अचानक सीने में तेज दर्द हुआ उसे लगा कि शायद गैस की की तकलीफ होगी इसलिए इनो पी लिया पर जब काफी देर तक आराम न पड़ा तो तुरंत हॉस्पिटल जाना पड़ा वहाँ कुछ टेस्ट करने के बाद मालूम हुआ कि प्रिया को माइनर हार्ट अटैक आया है और उसे एंजियोप्लास्टी करवानी होगी मतलब हार्ट में स्टेंट डलवाना होगा ये सुनकर प्रिया के पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि अभी तो उसका बेटा बहुत छोटा है और मात्र 38 साल की उम्र में ये नौबत आखिर ऐसी क्या गलती हुई प्रिया से ?

जो स्थिति प्रिया की हुई आजकल ये हाल किसी का भी हो जाता है जिसके बहुत से कारण हैं पर अगर खान पान में कुछ चीजों को खाने में संयम रखा जाए तो इस स्थिति से बचा जा सकता है. शरीर मे यदि कोलेस्ट्रॉल बढ़ रहा है इसका मतलब है वसा का जमाव हो रहा है इसे हल्के में कतई न लें. कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों से दूरी बना लेना ही श्रेयस्कर होगा. क्योंकि ऐसा न करने पर वासा के जमाव के कारण बंद हुई नसों को खोलने के लिए सर्जरी करके स्टेंट डाला जाता है.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि गंदा कोलेस्ट्रॉल कैसे कम किया जाए? अगर आप चाहते हैं कि आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल कम रहे, तो सबसे पहले इस हानिकारक पदार्थ को बढ़ाने वाले खाद्यपदार्थों से दूरी बना लें क्योंकि, इन खाद्य पदार्थों को खाने से शरीर में एलडीएल (लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) बढ़ने लगता है जो नसों में जम जाता है और उन्हें ब्लॉक कर देता है जिस से कोरोनरी आर्टरी डिजीज हो जाती है जो हार्ट अटैक का कारण बनती है. इन नसों को खोलने के लिए कोरोनरी एंजियोप्लास्टी करके स्टेंट डाला जाता है. यहाँ जिक्र कर रहे हैं कुछ ऐसे पदार्थों का जिनसे दूरी बनाकर आप इस स्थिति से बच सकते हैं.

मक्खन बन सकता है जान का दुश्मन

ब्रेड के उपर मक्खन लगा कर यदि आप चाव से खाते हैं तो ऐसा करना बंद कर दीजिए या कम कर दीजिए क्योंकि ये मक्खन नसों में जम जाता है और ब्लॉकेज का कारण बनता है.

आइसक्रीम को कहिए ना

अगर आप आइसक्रीम खाने के शौकीन हैं और रोज इसे खाना आपकी आदत है, तो संभल जाइए.  क्योंकि USDA के अनुसार 100 ग्राम वनीला आइसक्रीम खाने से 41 एमजी कोलेस्ट्रॉल मिलता है, जो कि आपके हार्ट के लिए बहुत हानिकारक है.

बिस्किट की मात्रा कम रखें

अक़्सर लोग चाय के साथ बिस्किट खाते हैं, जो कि कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा सकता है। बिस्किट एक प्रोसेस्ड फूड है, जिसमें सैचुरेटेड फैट अधिकता में होता है। जो कि आपके हार्ट के लिए खतरनाक हो सकता है.

पकौड़े व फ्राइड चिकन

इस तरह के खाद्य पदार्थ डीप फ्रायड फूड्स में आते हैं। इन खाद्यपदार्थों में वसा का सबसे गंदा प्रकार प्रचुर मात्रा में होता है, जिसे ट्रांस फैट्स कहा जाता है। यह एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है.

बर्गर, पिज्जा, पास्ता

ये सभी जंक फूड हैं। जिन्हें बनाने के लिए मक्खन, क्रीम, चीज़ और अन्य आर्टिफिशियल इंग्रीडिएंट्स मिलाए जाते हैं.  ये सभी चीजें नसों में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ाने का काम करते हैं, इसलिए इनसे समय रहते दूरी बना लें.
यदि खान पान में इतना ध्यान रखेंगे और थोड़ा संयम रखेंगे तो इस तरह की किसी भी बीमारी से दूर रहेंगे और एक स्वस्थ्य जीवन जी सकेंगे.

एक और आकाश: भाग 3- क्या हुआ था ज्योति के साथ

शारीरिक भूख से अधिक महत्त्व- पूर्ण उस के अपने बच्चे प्रकाश का भविष्य था, जिसे संवारने के लिए वह अभी तक कई बार मरमर कर जी थी. अपने को उस सीमा तक व्यस्त कर चुकी थी, जहां उस को कुछ सोचने का अवकाश ही नहीं मिलता था.

ज्योति की कल्पना में अभी स्मृतियों का क्रम टूट नहीं पाया था. वह शाम आंखों में तिर गई थी, जब उस ने मां को सबकुछ साफसाफ कह दिया था. अपने प्रेम को भूल का नाम दे कर रोई थी, क्षमा की भीख मांग कर मां से याचना की थी कि वह गर्भ नष्ट करने के लिए उसे जाने दे.

मां ने उसे गर्भ नष्ट कराने का मौका न दे कर सबकुछ पिता को बता दिया था. फिर पहली बार पिता का वास्तविक रूप उस के सामने आया था. उन्होंने ज्योति को नफरत से देखते हुए दहाड़ कर कहा था, ‘‘खबरदार, जो तू ने मुझे आज के बाद पिता कहा. निकल जा, अभी…इसी वक्त इस घर से. तेरा काला मुंह मैं नहीं देखना चाहता. जाती है या नहीं?’’

अब उन्हीं पिता का पत्र उसे मिला था. क्षण भर के लिए मन तमाम कड़वाहटों से भर आया था. परंतु धीरेधीरे पिता के प्रति उदासीनता का भाव घटने लगा था. वह निर्णय ले चुकी थी कि अगर पिता ने उसे क्षमा नहीं किया तो कोई बात नहीं, वह अपने पिता को अवश्य क्षमा कर देगी.

उस दिन तो पिता की दहाड़ सुन कर कुछ क्षण ज्योति जड़वत खड़ी रही थी. फिर चल पड़ी थी बाहर की ओर. उसे विश्वास हो गया था कि उस का प्रेमी हो या पिता, पुरुष दोनों ही हैं और अपने- अपने स्तर पर दोनों ही समाज के उत्थान में बाधक हैं.

उस दिन ज्योति घर छोड़ कर चल पड़ी थी. किसी ने उस की राह नहीं रोकी थी. किसी की बांहें उस की ओर नहीं बढ़ी थीं. किसी आंचल ने उस के आंसू नहीं पोंछे थे. आंसू पोंछने वाला आंचल तो केवल मां का ही होता है. परंतु साथ ही उसे इस बात का पूरा एहसास था कि पिता के अंकुश तले दबी होंठों के भीतर अपनी सिसकियों को दबाए हुए उस की मां दरवाजे पर खड़ी जरूर थीं, पर उसे पांव आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं थी. वह चली जा रही थी और समझ रही थी मां की विवशता को. आखिर वह भी तो नारी थीं उसी समाज की.

बच्चे को जन्म देने के बाद ज्योति ने उसे प्रकाश नाम दे कर अपने भीतर अभूतपूर्व शक्ति का अनुभव किया था. उसे वह गुलाब के फूल की तरह अनेक कांटों के बीच पालती रही थी.

अब ज्योति की आंखों में केवल एक ही स्वप्न शेष था. किस प्रकार वह समाज में अपना वही स्थान प्राप्त कर ले, जिस पर वह घर से निकाले जाने से पहले प्रतिष्ठित थी.

शायद इन्हीं भावनाओं ने ज्योति को प्रेरित किया था मां के नाम पत्र लिखने के लिए. डब्बे में रोशनी कम थी. फिर भी उस ने अपने पर्स को टटोल कर उस में से कुछ निकाला. आसपास के सारे यात्री सो रहे थे या ऊंघ रहे थे. ज्योति एक बार फिर उस पत्र को पढ़ रही थी जिसे उस ने केवल मां को भेजा था, केवल यह जानने के लिए कि कहीं भावावेश में किसी शब्द के माध्यम से उस का आत्मविश्वास डिग तो नहीं गया था.

‘‘मां, अपनी बेटी का प्रणाम स्वीकार करते हुए तुम्हें यह विश्वास तो हो गया है न कि ज्योति जीवित है.

‘‘मैं जीवन के युद्ध में एक सैनिक की भांति लड़ी हूं और अब तक हमेशा विजयी रही हूं प्रत्येक मोर्चे पर. परंतु मेरी विजय अधूरी रहेगी जब तक अंतिम मोर्चे को भी न जीत लूं. वह मोर्चा है, तुम्हारे समाज के बीच आ कर अपनी प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त कर लेने का. मैं ने उस घर को अपना घर कहने का अधिकार तुम से छीन लेने के बाद भी छोड़ा नहीं. मैं उसी घर में आना चाहती हूं. परंतु मैं तभी आऊंगी जब तुम मुझे बुलाओगी. सचसच कहना, मां, क्या तुम में इतना साहस है कि तुम और पिताजी दोनों अपने समाज के सामने यह बात निसंकोच स्वीकार कर सको कि मैं तुम्हारी बेटी हूं और प्रकाश मेरा पुत्र है.

‘‘मेरी परीक्षा की अवधि बीत चुकी है. अब तुम दोनों की परीक्षा का अवसर है. मैं नहीं चाहती कि आप में से कोई मेरे पास ममतावश आए. मैं चाहूंगी कि आप सब कभी मुझे इस दया का पात्र न बनाएं. मैं छुट्टियों के कुछ दिन आप के पास बिता कर पुन: यहां वापस आ जाऊंगी. मेरे पुत्र या मुझे ले कर आप की प्रतिष्ठा पर जरा भी आंच आए, यह मेरी इच्छा नहीं है. मैं ऐसे में अंतिम श्वास तक आप के लिए उसी तरह मरी बनी रहने में अपनी खुशी समझूंगी जिस तरह अब तक थी. यदि मैं ने आप लोगों को अपनी याद दिला कर कोई गलती की है तो भी क्षमा चाहूंगी. शायद यही सोच कर मैं ने इस पत्र में केवल अपनी याद दिलाई है, अपना पता नहीं दिया.

-ज्योति.’’

ज्योति को यह सोच कर शांति मिली थी कि उस ने ऐसा कुछ नहीं लिखा था जिस से उन के मन में कोई दुर्बलता झांके. उस ने पत्र को पर्स में रखने के साथ दूसरा पत्र निकाला, जो उस के पिता का था. वह पत्र देखते ही उस की आंखें डबडबा आईं और उन आंसुओं में उतने बड़े कागज पर पिता के हाथ के लिखे केवल दो वाक्य तैरते रहे, ‘‘चली आ, बेटी. हम सब पलकें बिछाए हुए हैं तेरे लिए.’’

सुबह का उजाला उसे आह्लादित करने लगा था. अपनी जन्मभूमि का आकर्षण उसे बरबस अपनी ओर खींच रहा था. कल्पना की आंखों से वह सभी परिवारजनों की सूरत देखने लगी थी.

गाड़ी ज्योंज्यों धीमी होती गई, ज्योति की हृदयगति त्योंत्यों तीव्र होती गई. प्रकाश की उंगली थामे हुए वह डब्बे के दरवाजे पर खड़ी हो गई. कल्पना साकार होने लगी. गाड़ी रुकते ही कई गीली आंखें उन दोनों पर टिक गईं. कई बांहों ने एकसाथ उन का स्वागत किया. कई आंचल आंसुओं से भीगे और कई होंठ मुसकराते हुए कह बैठे, ‘‘कैसी हो गई है ज्योति, योगिनी जैसी.’’

ज्योति ने डबडबाई आंखों से भाई की ओर निहारा जो एक ओर चुपचाप खड़ा सहज आंखों से बहन को निहार रहा था. ज्योति ने अपने पर्स से पिछले 11 वर्षों की राखी के धागे निकाले और उस की कलाई पर बांधते हुए पूछा, ‘‘भाभी नहीं आईं, भैया?’’

‘‘नहीं, बेटी. तेरे बिना तेरे भैया ने शादी नहीं की. अब तू आ गई है तो इस की शादी भी होगी,’’ मां बोल उठी थीं.

घर की ओर जातेजाते ज्योति के मन में अपूर्व शांति थी. अपने भाई के प्रति मन स्नेह से भर गया था. उस का संघर्ष सार्थक हुआ था. उस के वियोग का मूल्य भाई ने भी चुकाया था. उस ने ऊपर की ओर ताका. मन के भीतर ही नहीं, ऊपर के आकाश को भी विस्तार मिल रहा था.

Serial Story: कोई अपना – भाग 3

उन के जाने के बाद मेरा क्रोध पति पर उतरा, ‘‘आप ही बांध लेना इसे, मुझे नहीं पहनना इसे.’’ ‘‘अरे बाबा, 2-3 सौ रुपए की साड़ी होगी, किसी बहाने कीमत चुका देंगे. तुम तो बिना वजह अड़ ही जाती हो. इतने प्यार से कोई कुछ दे तो दिल नहीं तोड़ना चाहिए.’’

‘‘यह प्यारव्यार सब दिखावा है. आप से कर्ज लिया है न उन्होंने, उसी का बदला उतार रहे होंगे.’’ ‘‘50 हजार रुपए में न बिकने वाला क्या 2-3 सौ रुपए की साड़ी में बिक जाएगा? पगली, मैं ने दुनिया देखी है, प्यार की खुशबू की मुझे पहचान है.’’

मैं निरुत्तर हो गई. परंतु मन में दबा अविश्वास मुझे इस भाव में उबार नहीं पाया कि वास्तव में कोई बिना मतलब भी हम से मिल सकता है. वह साड़ी अटैची में कहीं नीचे रख दी, ताकि न वह मुझे दिखाई दे और न ही मेरा जी जले. समय बीतता रहा और इसी बीच ढेर सारे कड़वे सत्य मेरे स्वभाव पर हावी होते रहे. बेरुखी और सभी को अविश्वास से देखना कभी मेरी प्रकृति में शामिल नहीं था. मगर मेरे आसपास जो घट रहा था, उस से एक तल्खी सी हर समय मेरी जबान पर रहने लगी. मेरे भीतर और बाहर शीतयुद्ध सा चलता रहता. भीतर का संवेदनशील मन बाहर के संवेदनहीन थपेड़ों से सदा ही हार जाता. धीरेधीरे मैं बीमार सी भी रहने लगी, वैसे कोई रोग नहीं था, मगर कुछ तो था, जो दीमक की तरह चेतना को कचोट और चाट रहा था.

एक सुबह जब मेरी आंख अस्पताल में खुली तो हैरान रह गई. घबराए से पति पास बैठे थे. मैं हड़बड़ा कर उठने लगी, मगर शरीर ने साथ ही नहीं दिया.

‘‘शालिनी,’’ पति ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘अब कैसी हो?’’ मुझे ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था. पति की बढ़ी दाढ़ी बता रही थी कि उन्होंने 2-3 दिनों से हजामत नहीं बनाई.

‘‘शालिनी, तुम्हें क्या हो गया था?’’ पति ने हौले से पूछा. मैं खुद हैरान थी कि मुझे क्या हो गया है? बाद में पता चला कि 2 दिन पहले सुबह उठी थी, लेकिन उष्ण रक्तचाप से चकरा कर गिर पड़ी थी.

‘‘बच्चों को तो नहीं बुला लिया?’’ मैं ने पति से पूछा. ‘‘नहीं, उन के इम्तिहान हैं न.’’

‘‘अच्छा किया.’’ ‘‘सुनीलजी, अब आप घर जा कर नहाधो लीजिए, हम भाभीजी के पास बैठेंगे. आप चिंता मत कीजिए, अब खतरे की कोई बात…’’ किसी का स्वर कानों में पड़ा तो मेरी आंखें खुलीं.

‘‘अरे, भाभीजी को होश आ गया,’’ स्वर में एक उल्लास भर आया था, ‘‘भाईसाहब, मैं अभी उर्मि को फोन कर के आता हूं.’’ वह युवक बाहर निकल गया, पर मैं उसे पहचान न सकी.

‘‘तुम ने तो मुझे डरा ही दिया था. ऐसा लग रहा था, इतने बड़े संसार में अकेला हो गया हूं. बच्चों के इम्तिहान चल रहे हैं, उन्हें बुला नहीं सकता था और इस अजनबी शहर में ऐसा कौन था जिस पर भरोसा करता,’’ पति ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. मेरी आंखों के कोर भीग गए थे. ऐसा लगा मेरा अहं किसी कोने से जरा सा संतुष्ट हो गया है. सोचती थी, पति की जिंदगी में मेरी जरूरत ही नहीं रही. जब उन्हें रोते देखा तो लगा, मेरा अस्तित्व इतना भी महत्त्वहीन नहीं है.

मैं 2 दिन और अस्पताल में रही. इस बीच वह युवक लगातार मेरे पति की सहायता को आता रहा.

जब अस्पताल से लौटी तो कल्पना के विपरीत मेरा घर साफसुथरा था. शरीर में कमजोरी थी, मगर मन स्वस्थ था, जिस का सहारा ले कर मैं ने पति से ठिठोली की, ‘‘मुझे नहीं पता था, तुम घर की देखभाल भी कर सकते हो.’’ ‘‘यह सब उर्मि ने किया है. सचमुच अगर वे लोग सहारा न देते तो पता नहीं क्या होता.’’

‘‘उर्मि कौन?’’ ‘‘वही पतिपत्नी जो तुम्हें एक बार साड़ी उपहार में दे गए थे…’’

‘‘क्या?’’ मैं अवाक रह गई. ‘‘पता नहीं, किस ने उन्हें बताया कि तुम अस्पताल में हो. दोनों सीधे वहीं पहुंच गए. तुम्हें खून चढ़ाने की नौबत आ गई थी, उर्मि ने ही अपना खून दिया. मैं उस का ऋण जीवन में कभी नहीं चुका सकता.

‘‘वही हमारे घर को भी संभाले रही. आज सुबह ही अपने घर वापस गई है. शायद, दोपहर को फिर आएगी.’’ ‘‘और उस का बुटीक?’’

‘‘वह तो कब का बंद हो चुका है. उस के ससुर उन दोनों को अपने घर ले गए हैं. बैंक का कर्ज तो उन्होंने कब का वापस दे दिया. वे तो बस प्यार के मारे हमारा हालचाल पूछने आए थे. और हमें हमेशा के लिए अपना ऋणी बना गए.’’ अनायास मैं रो पड़ी और सोचने लगी कि मेरे पति ठीक ही कहते थे कि हमें तो बस अपना काम ईमानदारी से करना है. अच्छे लोग मिलें या बुरे, ईमानदार हों या बेईमान, बस, उन का हमारे चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए. कुछ लोग हमें खरीदना चाहते हैं तो कुछ आदर दे कर मांबाप का दरजा भी तो देते हैं. इस संसार में हर तरह के लोग हैं, फिर हम उन की वजह से अपना स्वभाव क्यों बिगाड़ें, क्यों अपना मन भारी करें?

‘‘तुम्हारे कपड़े निकाल देता हूं, नहाओगी न?’’ पति के प्रश्न ने चौंका दिया. मैं वास्तव में नहाधो कर तरोताजा होना चाहती थी. मैं ने अटैची से वही गुलाबी साड़ी निकाली, जिसे पहले खोल कर भी नहीं देखा था.

दोपहर को उर्मि हमारा दोपहर का भोजन ले कर आई. मैं समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उस का स्वागत करूं. ‘‘अरे, आप कितनी सुंदर लग रही हैं,’’ उस ने समीप आ कर कहा. फिर थोड़ा रुक गई, संभवतया मेरा रूखा व्यवहार उसे याद आ गया होगा.

मैं समझ नहीं पाई कि क्यों रो पड़ी. उस प्यारी सी युवती को मैं ने बांह से पकड़ कर पास खींचा और गले से लगा लिया.

‘‘आप को दीदी कह सकती हूं न?’’ उस ने हौले से पूछा. ‘‘अवश्य, अब तो खून का रिश्ता भी है न,’’ मेरे मन से एक भारी बोझ उतर गया था. ऐसा लगा, वास्तव में कोई अपना मिल गया है. सस्नेह मैं ने उस का माथा चूम लिया.

फिर उस ने मुझे और मेरे पति को खाना परोसा. ‘‘तुम्हारी ससुराल वाले कैसे हैं?’’ मैं ने धीरे से पूछा तो वह उदास सी हो गई.

‘‘संसार में सब को सबकुछ तो नहीं मिल जाता न, दीदी. सासससुर तो बहुत अच्छे हैं, परंतु मेरे मांबाप आज तक नाराज हैं. मैं तरस जाती हूं किसी ऐसे घर के लिए जिसे अपना मायका कह सकूं.’’ ‘‘मैं…मैं हूं न, इसी घर को अपना मायका मान लो, मुझे बहुत प्रसन्नता होगी.’’

सहसा उर्मि मेरी गोद में सिर रख कर रो पड़ी. मेरे पति पास खड़े मुसकरा रहे थे. उस के बाद उर्मि हमारी अपनी हो गई. उस घटना को 8 साल बीत गए हैं. हमारा स्थानांतरण 2 जगह और हुआ. फिर से अच्छेबुरे लोगों से पाला पड़ा, परंतु मेरा मन किसी से बंधा नहीं. उर्मि आज भी मेरी है, मेरी अपनी है. मैं अकसर यह सोच कर स्नेह और प्रसन्नता से सराबोर हो जाती हूं कि निकट संबंधियों के अलावा इस संसार में मेरा कोई अपना भी है.

अभिनेत्री अनन्या खरे किताबें कम पढने को लेकर क्यों है उदास, पढ़े इंटरव्यू

दूरदर्शन की प्रसिद्ध धारावाहिक ‘हमलोग’ और ‘देख भाई देख’ से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाली अभिनेत्री अनन्या खरे से कोई अपरिचित नहीं. उन्होंने कई पोपुलर शो में काम किया, जिसमे ‘आहट’, ‘पुनर्विवाह’, ‘रंग रसिया’आदि है. अनन्या ने सिर्फ टीवी शो ही नहीं फिल्मों में भी जबरदस्त भूमिका निभाई है, जिसमे ‘चांदनी बार’ फिल्म की दीपा से ‘देवदास’ फिल्म की कुमुद है. कई शानदार किरदारों से इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाने वाली अभिनेत्री अनन्या खरे ने पर्दे पर कुछ नकारात्मक और सकारात्मक भूमिका निभाये है और हिंदी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में उन्होंने दर्शकों का प्यार हमेशा पाया है. टेलीविजन हो या हिंदी फिल्में उन्होंने अपने अभिनय से सबको मोहित किया है.

क्रिएटिव माहौल में जन्मी अनन्या के पिता विष्णु खरे एक पत्रकार हुआ करते थे,उनके दादा संगीतज्ञ थे. हालाँकि अनन्या ने कभी अभिनय के बारें में सोचा नहीं था, लेकिन क्रिएटिव फील्ड उन्हें पसंद था और यही वजह थी कि वह मुंबई आई और अभिनय की शुरुआत की. काम के दौरान उन्होंने 10 साल का ब्रेक लिया और पति डेविड के साथ रहने विदेश चली गयी, लेकिन बाद में वह फिर आकर इंडस्ट्री से जुड़ गयी. वह स्पष्टभाषी है और समय के साथ चलना जानती है.

अनन्या स्क्रीन पर निगेटिव किरदार निभाकर अधिक प्रसिद्ध हुई और इस चरित्र में उन्हें काफी पसंद भी किया गया. फिल्म ‘देवदास’ के बाद उन्हें नकारात्मक किरदार के लिए पहचाना गया और उनकी एक अलग पहचान बनी. उनके लिए हर भूमिका को निभाना एक चुनौती होती है. जी टीवी पर उनकी शो ‘मैत्री’ आने वाली है, जिसमे उन्होंने एक देसी पर बुद्धिमान सास की भूमिका निभाई है, जो किसी बात को आज की परिवेश के हिसाब से मानती है और इस भूमिका को लेकर बहुत उत्साहित है. अनन्या ने अपनी इस सफल जर्नी के बारें में गृहशोभा के साथ शेयर की. वह इस पत्रिका के प्रोग्रेसिव विचार से बहुत प्रभावित है और चाहती है कि इसमें महिलाओं के लिए कैरियर आप्शन पर लगातार कुछ लेख दिए जाय, ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अधिक अग्रसर हो. इसे वे खुद ही नहीं, बल्कि उनकी दादी को भी पढ़ते हुए देखा है.

सही मित्र का होना जरुरी

इस शो में काम करने की उत्सुकता के बारें में पूछे जाने पर वह कहती है कि मुझे फॅमिली शो करना पसंद है, जिसे दर्शक पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकें. मैत्री एक ऐसा कांसेप्ट है, जो हर किसी उम्र या वर्ग के लिए अहम होता है. हर किसी को एक अच्छी दोस्ती और दोस्त की जरुरत होती है. विषय काफी रोचक है, इसमें काफी उतार-चढ़ाव है, तीन दोस्त कैसे अपनी दोस्ती को परिवार के साथ बनाये रखने में सफल होते है, उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. मेरी भूमिका इसमें देसी सासूमाँ की है. पढ़ी-लिखी नहीं है और देहाती चरित्र है, जो मूर्ख नहीं, प्रैक्टिकल, आत्मविश्वासी, समझदार और चुनौती लेने वाली है. इसके अलावा वह स्ट्रोंग हेडेड भी है.

 

 

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आवश्यकता है सही लिखावट की

देसीपन को पर्दे पर लाने के लिए अनन्या ने काफी तैयारी की है, लेकिन इस चरित्र को लिखने वाले ने काफी मेहनत से इसे लिखा है, जिससे उन्हें अधिक तैयारी नहीं करनी पड़ी. इसके अलावा वह दिल्ली की है, जहाँ हर तरह की भाषा बोलने वाले लोग साथ रहते है.

 

 

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बदला है जमाना

सासूमाँ की कल्पना पहले से आज काफी बदल चुकी है और इस बदलाव को अनन्या जरुरी भी मानती है. वह कहती है कि मैंने अपने आसपास जो चाची और मामियां है, वे काफी रिलेक्स रहती है. बहू का अपनी मर्जी से काम करना, बच्चों को पालना, जॉब करना आदि को बहुत ही साधारण तरीके से लेती है, किसी में दखलंदाजी नहीं करती. सामंजस्य बनाये रखती है. पहले की सास की तरह कम पढ़ी-लिखी नहीं, आज की सास कॉलेज तक जा चुकी है.

इत्तफाक था अभिनय करना

अपनी सफल जर्नी के बारें में अनन्या का कहना है कि अभिनय मेरे लिए एक इत्तफाक था, क्योंकि मैं इस प्रोफेशन में आना नहीं चाहती थी. मुझे टीचर या आई ए एस बनना था. उसके बाद मैंने ट्रांसलेशन करने की इच्छा रखती थी. मैंने जर्मनी भाषा में मास्टर किया है, मैंने उस दिशा में बहुत कोशिश की, लेकिन कोई ढंग का काम नहीं मिला. इसके बाद मैंने इंडस्ट्री की ओर रुख किया और धीरे-धीरे आगे बढती गई. मैंने अपने काम को लेकर कभी कोई रिग्रेट नहीं किया है. जो नहीं मिला, उसकी कोई वजह होगी, इसे मैंने हमेशा माना है, इसलिए मलाल नहीं हुआ. खास समय पर खास जगह पर होना मेरे लिए जरुरी होता है और मैं वहां पहुँच जाती हूँ.

एक्टर डायरेक्टर की

अनन्या खुद को डायरेक्टर की एक्टर मानती है, वह कहती है कि फिल्म और कैमरा, राइटर और डायरेक्टर का ही माध्यम है. एक्टर एक टूल है, जिससे पॉलिश किया जा सकता है. इसलिए एक एक्टर जितना खुद को पॉलिश करेगा, डायरेक्टर उसका उतना ही अच्छे से प्रयोग कर सकेगा.

बदलाव हमेशा अच्छी हो जरुरी नहीं

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की कहानियों में परिवर्तन के बारें में पूछे जाने पर वह कहती है कि आज कल इंटररिलेशनशिप पर अधिक फिल्में बन रही है. आज परिवारों के अकार छोटे होते जा रहे है. वही चीजे फिल्मों और टीवी शोज में देखे जा रहे है. बड़े परिवार और गांव के शोज कम है, जबकि शहरों से सम्बंधित शो अधिक दिखाए जाते है. मैन स्ट्रीम में शहरों पर आधारित शो को अधिक महत्व दिया जाता है. इन्ही शो को वे डबिंग करवाकर बाहर के देशों में भी रिलीज़ करते है, इसलिए कहानियों के बीच अधिक गैप नहीं रख पाते. पहले डीडी मेट्रो के जो शोज थे, उनका दौर काफी अलग था. उपन्यासों पर शोज बनते थे, जो अब नहीं बनते, क्योंकि पढने की आदत बच्चों में कम हो गयी है, वे किताबे नहीं पढ़ते वे सिर्फ देखते है. इसके अलावा इंटरनेशनल लेवल पर किसी चीज को ले जाने के लिए कहानियां वैसी ही होनी चाहिए, ताकि सभी इससे जुड़ सकें. समाज में बदलाव जरुरी है, लेकिन ये बदलाव हमेशा अच्छाई के लिए हो, जरुरी नहीं.

किताबों का पढना है जरुरी

वह आगे कहती है कि पढने का कल्चर मेन्टेन रहना चाहिए, किताबों का जो कल्चर चला गया है वह ठीक नहीं. अब लोग सिर्फ मोबाइल पर सब देखते है. ऐसे में लेखक और उन्हें छापने वालों का क्या होगा? ये मस्तिष्क को एकाग्र रखने का एक अच्छा माध्यम है. किताब खोलकर पढने का चाव है, उसका मजा अलग है. मोबाइल पर खोलकर पढने से उसकी स्पिरिट खोती हुई दिखाई पड़ती है. साथ ही आज के बच्चे बाहर जाकर खेलते नहीं समय नहीं होता, हर जगह एक प्रतियोगिता है, हर जगह पर काम के लिए मारधाड़ लगी हुई है. बच्चे को भी उसी रेस में जाना पड़ेगा. मैं इसे अच्छा और पॉजिटिव विकास नहीं मानती.

सीखा है सबसे

हर अभिनय में सहजता लाने के बारें में अनन्या का कहना है कि मैंने एक्टिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. मैंने कोई कोर्स भी नहीं किया है, जितना मैंने काम किया है, उतना ही मैंने सीखा है, इसमें मैंने छोटे-बड़े जैसी किसी को नहीं देखा , सभी से कुछ सीखने को मिलता है. इसके अलावा मेरे पिता काफी टैलेंटेड थे. वे पत्रकार थे, उन्होंने हिंदी और मराठी में बहुत लिखा है. उनकी क्रिएटिविटी मुझे किसी रूप में आई है. मेरे दादा भी सितार बजाते थे.

YRKKH: अक्षरा ने किया उदयपुर जानें का फैसला, क्या अकेला रह जाएगा अभिनव!

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है 14 सालों से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा है. इस सीरियल में रोज नया इमोशनल ड्रामा देखने को मिलता है, जिसे दर्शक भी काफी पसंद करते हैं. अब तक कहानी में कई बार स्टार कास्ट में बदलाव हुआ है और इन दिनों सीरियल में प्रणाली राठौड़ (Pranali Rathod) और हर्षद चोपड़ा (Harshad Chopda) लीड रोल में नजर आ रहे हैं. सीरियल में अक्षरा और अभिमन्यु का ट्रैक चल रहा है. दोनों अलग हो चुके हैं लेकिन तकदीर ने उन्हें फिर आमने-सामने खड़ा कर दिया. बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि आरोही अब तक अस्पताल में भर्ती है और उसे होश नहीं आ रहा. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में एक बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. शो में अक्षरा अपनी पुरानी जिंदगी में लौटने का सोचेगी.

 

रूही के लिए जैम बनाएगी अक्षरा

ये रिश्ता क्या कहलाता है (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के बीते एपिसोड में यह भी देखने को मिला था कि आरोही की खराब तबीयत के बारे में जानकर अक्षरा काफी परेशान है और अभिमन्यु उसे फोन करके रूही के लिए जैम बनाने के लिए कहता है. वहीं, अपकमिंग एपिसोड में अक्षरा बुखार में भी रूही के लिए जैम बनाती है. इस बार उसे अभिनव भी नहीं रोकता. इसी बीच, वह अपने बेटे अबीर को रूही और आरोही के बारे में बताती है, जिसे वह बड़े ध्यान से सुनता है.

 

उदयपुर जाने के लिए पैकिंग करेगी अक्षरा

वहीं, सीरियल में आगे यह भी देखने को मिलेगा कि अक्षरा आरोही के लिए काफी परेशान हो रही होती है और तब वह यह फैसला नहीं ले पाती कि उसे उदयपुर जाना चाहिए या नहीं. ऐसे मौके पर अभिनव उसे एक गैम के जरिए फैसला लेने के लिए कहता है और तब नतीजा यह आता है कि वह उदयपुर जा रही है. इसके बाद अक्षरा अपनी पेकिंग करती है और उदयपुर जाने के लिए फ्लाइट की टिकट बुक करती है.

 

अभिमन्यु से सवाल करेगा कायरव

दूसरी तरफ कहानी में कायरव का ट्रैक भी शुरू हो गया है, जो काफी समय से दिख नहीं रहा था. कायरव को अब अभिमन्यु पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. ऐसे में वह अपनी बहन को गोयनका हाउस में ले जाने की बात करता है. इसी बीच वह अपनी बहन के लिए स्पेशल डॉक्टर भी अस्पताल भेजता है, जिसे आरोही से मिलने नहीं दिया जाता है. इसी वजह से वजह अभिमन्यु से बात करने पहुंचता है। इस मौके पर अभि उसे बोलता है कि उसे बिरला हाउस पर विश्वास करना होगा.

Sidharth-Kiara Wedding: Karan Johar ने कपल के लिए लिखा इमोशनल नोट, बताया गजब की प्रेम कहानी

सिद्धार्थ मल्होत्रा (Sidharth Malhotra) और कियारा आडवाणी (Kiara Advani) ने 7 फरवरी को जैसलमेर के सूर्यगढ़ पैलेस में सात फेरे लेकर अपनी लाइफ की एक नई शुरूआत की. फिल्म शेरशाह में नजर आने वाली इस जोड़ी को रील लाइफ के बाद रियल लाइफ में ही एक होते देखने का फैंस का सपना पूरा हो गया. इन दोनों जब शादी की तस्वीरें इंस्टाग्राम पर शेयर की, तब से सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी को लेकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है. इन दोनों की तस्वीरों को फैंस खूब जमकर शेयर कर रहे हैं. फैंस के अलावा बॉलीवुड स्टार्स भी इन दोनों को बधाई देते हुए नजर आए. लेकिन सबका ध्यान करण जौहर की पोस्ट ने अपनी तरफ खींच लिया.

 

 

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 करण जौहर ने लिखी ये बात

सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी को शादी के बाद सोशल मीडिया पर फैंस से लेकर बॉलीवुड स्टार्स तक बधाई देते हुए नजर आ रहे है. हर कोई अपने अंदाज में इस क्यूट कपल को मुबारकबाद दे रहा है. लेकिन सबसा ध्यान करण जौहर की पोस्ट ने अपनी तरफ खींच लिया. करण जौहर ने सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की शादी की तस्वीर के साथ इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर किया. इस पोस्ट में करण जौहर ने सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी से हुई पहली मुलाकात के बारे में लिखा, साथ ही साथ इन दोनों को एक जैसा बताया. करण ने लिखा, सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी दोनों ही शांत, मजबूत और काफी सेंसिटिव है. इसके अलावा करण जौहर ने इन दोनों की खूब तारीफ भी और भविष्य के लिए शुभकामनाएं भी दीं.

 

 

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शादी में पहुंचे थे करण जौहर

कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा की शादी में कई बॉलीवुड स्टार्स नजर आए थे. शाहिद कपूर अपनी पत्नी मीरा राजपूत के साथ पहुंचे थे. तो वहीं करण जौहर इस शादी में शामिल होने के लिए जैसलमेर के सूर्यगढ़ पैलेस आए थे. इतना ही नहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक करण जौहर ने इस शादी में जमकर डांस भी किया था

टेबल टेनिस का सितारा हैं मनिका बत्रा

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं. इस कहावत को चरितार्थ करते हुए मनिका बत्रा ने अपने भाई बहन को टेबल टेनिस खेलते हुए देखा और उसे ऐसे आत्मसात कर लिया कि आज मनिका बत्रा ओलंपिक खेलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है, वहीं विश्व में भारत का लगातार प्रतिनिधित्व करके हार जीत की मजे लेते हुए खेल की दुनिया में एक ऐसा सितारा बन गई है जो बड़ी दूर से आभा फैला रहा है.

यह सच है कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश के अनेक खिलाड़ी अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से खेलों के नक्शे पर भारत का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहे हैं. इधर भारतीय महिला खिलाड़ियों ने  खास तौर से देश का परचम दुनिया में लहराया है. एक महत्वपूर्ण  भारतीय महिला खिलाड़ियों में गिने जाने वाली मनिका बत्रा ने  अब एक और ऊंचाई हासिल करते  हुए एशियाई कप टेबल टेनिस में कांस्य पदक हासिल किया है और खास बात यह है कि आप ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं.

मनिका बत्रा ने अपने सधे हुए खेल से खेल प्रेमियों का कई दफा दिल जीता है. यही कारण है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 में देश के सबसे बड़े खेल सम्मान  “मेजर ध्यान चंद खेल रत्न” पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यहां रेखांकित करने वाली बात यह है कि मनिका बत्रा ने बैंकाक, थाईलैंड में खेली गई इस प्रतियोगिता में महिला सिंगल्स का सेमीफाइनल मुकाबला हारने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में जापान की हीना हयाता को हरा कर  तीसरा स्थान हासिल कर लिया . इस तरह  इतिहास में कोई भी मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी मनिका बत्रा बन गई.

शिखर पर है मनिका

स्मरण रहे कि एशियाई कप टेबल टेनिस प्रतियोगिता के पुरुष वर्ग में भारत को देश के  खिलाड़ी चेतन बबूर ने पदक दिलाया था. बबूर वर्ष 1997 में पुरुष सिंगल्स के फाइनल तक पहुंच गए और उन्होंने रजत पदक हासिल किया था. , तत्पश्चात वर्ष 2000 में चेतन बबूर ने एक बार फिर कांस्य पदक जीतकर भारत के पदकों की संख्या में वृद्धि कर दिखाई .

टेबल टेनिस में देश में आज एक सितारे का रूतबा हासिल कर चुकी मनिका बत्रा का जन्म पंद्रह जून 1995 को देश की राजधानी दिल्ली में हुआ. मनिका परिवार में  तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. बड़ी बहन आंचल और भाई साहिल टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे और उन्हीं की प्रेरणा से नन्हीं मनिका ने भी पांच साल की उम्र से ही टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया.

और आगे परिवार ने उनका समर्पण देख कर , भविष्य की एक प्रतिभावान खिलाड़ी की छवि देखकर मनिका को बहुत कम उम्र में ही टेबल टेनिस का बाकायदा प्रशिक्षण दिलाने का फैसला किया . खास बात यह है कि मनिका को किशोरावस्था में ही माडलिंग के कई प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने जीवन में हमेशा टेबल टेनिस को महत्व दिया  और यहां तक कि उन्हें खेल पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी . यही समर्पण है कि आज मनिका बत्रा खेल की दुनिया में महत्वपूर्ण मुकाम रखती है और भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया.

मनिका के खाते में एक और उपलब्धि  दर्ज है, वह अपने हमवतन खिलाड़ी एस ज्ञानशेखरन के साथ मिश्रित युगल विश्व वरीयता क्रम में नंबर पांच पर पहुंचीं और किसी भारतीय जोड़ी के लिए टेबल टेनिस विश्व रैंकिंग में यह अब तक की शीर्ष वरीयता है.

मनिका बत्रा ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. 27 साल की मनिका बत्रा विश्व में 44 वें नंबर की खिलाड़ी हैं और उन्हें टेबल टेनिस के खेल में देश की अब तक की सबसे प्रतिभा पूर्ण तथा सफलतम महिला खिलाड़ी माना जाता है. देश को मनिका से और भी बहुत ज्यादा आशाएं हैं और अभी उनके पास भविष्य में समय भी है कि वे अपना और बेहतर प्रदर्शन दिखा सकें.

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