कालिमा: भाग 3- कैसे बेटे-बहू ने समझी अम्मां-बाबूजी की अहमियत

भोजन करने के बाद वह रंजन से मिलने चला गया. 4 माह बीत गए. दोपहर के 12 बज रहे थे. बाबाअम्मां बेहद व्यस्त थे.

तभी बाहर एक रिकशा रुका.

रिकशे में बाबा के बड़े बेटेबहू सुमंत और श्लेषा थे. श्लेषा ने अपनी भेदी नजरें चौराहे से ही घर पर गड़ा दी थीं. रिकशा रुकने के साथ ही उस ने घर का जायजा ले लिया. बाहर ढेर सारे स्कूटर मोटरसाइकिलें, अंदर लोगों की चहलपहल. यदि पहले से उसे यह जानकारी नहीं होती कि बाबा ने ‘ढाबा’ खोल लिया है तो घर पर लोगों की ‘भीड़’ देख वह यही समझती कि सासससुर में से कोई एक ‘खिसक’ गया है.

ईर्ष्या से उस ने दांत पीस लिए. पास बैठा सुमंत भी चोर नजरों से सब ताड़ रहा था. पिछले 4 महीनों में उस ने एक बार भी मातापिता की खोजखबर नहीं ली थी. वह आज भी यहां नहीं झांकता, मगर पिछले हफ्ते एक रिश्तेदार के यहां शादी में किसी परिचित ने उसे जानकारी दी कि उस के बाबा रिटायर्ड लाइफ में भी भरपूर कमाई कर रहे हैं, सर्विस लाइफ से भी ज्यादा.

उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ था. श्लेषा की तो छाती पर सांप लोट गया था. ऐसा कौन सा तीर मारा होगा बुढ़ऊ ने? कहीं मकान बेच कर ऐश तो नहीं कर रहे बुड्ढेबुढि़या? हिस्सा हमारा भी है उस में. श्लेषा ने तुरंत मोबाइल पर अपने मायके बात की और सारी जानकारियां जुटाने को कहा.

4-5 दिन में उस के भैया ने हैरतअंगेज जानकारियां दीं, ‘‘बाबा ने ऊपरी मंजिल पर दर्जन भर लड़कों का छात्रावास बना दिया…नीचे मेस चालू कर दी…इन छात्रों के कारण मेस में बीसियों और छात्र आने लगे. रंजन के परिचय की वजह से बिना परिवार के रहने वाले बैंककर्मी व अन्य लोग भी. ढाबा ही खोल लिया बाबा ने. टिफिन सर्विस भी है. 200 से ज्यादा परमानेंट मेंबर बन गए हैं.’’

‘‘200 मेंबर…?’’ सुमंत की आंखें आश्चर्य से 2 सेंटीमीटर फैल गईं. यदि प्रति मेंबर कमाई 100 रुपए भी हो तो महीने के 20 हजार…

‘‘बाप रे,’’ वह स्वयं महीने के 14 हजार कमाता था. श्लेषा गरदन तान कर रिश्तेदारों में इस का बखान करती थी. मगर बाबा की कमाई तो…इस बुढ़ापे में…हायहाय…

उस के अंगअंग में ईर्ष्या की आग लग गई. उस का युवा पुत्र सलिल साल भर से अपना व्यापार जमाने का यत्न कर रहा था. 2-3 लाइनें बदल ली थीं. सफलता दूरदूर तक नजर नहीं आ रही थी. उलटे 30-35 हजार रुपयों का घाटा हो गया था.

सुमंत के स्वार्थी जेहन में फौरन एक स्कीम आई. क्यों न सलिल को बाबा के साथ फिट कर दिया जाए? वैसे भी बाबा को सहारे की जरूरत होगी. थक जाते होंगे बेचारे.

निर्णय लेने में फिर उस ने एक मिनट की भी देरी नहीं की. श्लेषा को साथ ले कर वह तुरंत यहां आ धमका.

रिकशे से उतर दोनों लोहे के गेट तक आए, अंदर का दृश्य साफ दिख रहा था. बडे़ हाल को बाबा ने भोजनकक्ष बना दिया था. देसी ढंग से नीचे बैठ कर ग्राहक भोजन ग्रहण कर रहे थे. बाबा की आवाज बाहर तक आ रही थी. बाबा पारिवारिक वात्सल्य से आग्रह करकर के ग्राहकों को भोजन करवा रहे थे. वे घूमघूम कर परोसियों (बेयरों) को निर्देश भी दे रहे थे.

तभी एक नौकर की नजर सुमंत और श्लेषा पर पड़ी, अंगोछे से हाथ पोंछता वह इन की ओर लपका.

करीब आ कर उस ने पूछा, ‘‘भोजन करना है?’’ फिर सूटकेस आदि देख उस ने कहा, ‘‘लेकिन साहब, हमारे यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. ठहरने के वास्ते आप को किसी होटल में…’’

‘‘अबे,’’ गुस्से से सुमंत ने दांत पीसे, ‘‘बेवकूफ, हमें पहचानता नहीं. हम यहां के मालिक हैं.’’

‘‘मालिक?’’ होंठों में बुदबुदा कर वह सिर खुजाने लगा. मालिक तो अंदर बैठे हैं, फिर फूलगोभी के कीडे़ की तरह  यह कौन एकाएक प्रगट हो गया.

सुमंत ने गुर्रा कर उसे सामान उठाने का हुक्म दिया. नौकर अनसुना कर के खड़ा रहा.

तभी अंदर से बाबा की आवाज आई, ‘‘फतहचंद? पानी लाना, बेटा.’’

‘‘जी, लाया, बाबा,’’ फतहचंद बिना सामान उठाए अंदर भागा. सुमंत सामान उठाने का निर्देश देता रह गया. इस अपरोक्ष अपमान ने सुमंत का चेहरा लाल कर दिया. इच्छा हुई अभी अंदर जा कर इस फत्तू को तड़ातड़ 2-4 थप्पड़ जमा दे. तभी उसे ध्यान आया कि फिलहाल गरज उस की है और यह नौकर बाबा का है. बाबा के नौकरों को डांटने पर बाबा नाराज हो सकते हैं.

दोनों बरामदे में आ कर ठिठक गए. घर में प्रवेश पहले बडे़ हाल से करते थे. वहां ग्राहक भोजन कर रहे थे इसलिए उधर से जाना उचित नहीं रहेगा. जूतेचप्पल उतार कर वे साइड वाले छोटे कमरे में आए. बाबा ने उसे आफिस बना दिया था. कमरे में कोई नहीं था. इस कमरे में अंदरूनी द्वार से वे गलियारे में आए. तभी बाबाअम्मां ने उन्हें देख लिया.

बाबा और अम्मां से नजरें मिलते ही सुमंत और श्लेषा ने अपने होंठों पर गजभर की मीठीमीठी आत्मीय मुसकान बिखेर ली और बेटे ने आगे बढ़ कर आदरपूर्वक अपने मातापिता के चरण स्पर्श किए. बाबाअम्मां मन ही मन मुसकरा दिए. बहुत मानसम्मान उमड़ रहा है बुड्ढेबुढि़या पर (श्लेषा उन्हें यही संबोधन देती थी).

वैसे उन्होंने सुमंत  और श्लेषा को रिकशे से उतरते ही देख लिया था. जानबूझ कर वे अपनेआप को व्यस्त दिखलाते रहे. उन के प्रणाम करने पर बाबाअम्मां ने भावशून्य चेहरे से आशीर्वाद दिया, फिर कुशलक्षेम की 2-3 बातें पूछ कर औपचारिकता निभाई और अपने काम में व्यस्त हो गए. बाबा हाल में चले गए, अम्मां किचन में.

रह गए सुमंत और श्लेषा. उन्हें सूझ नहीं रहा था कि अपना सामान घर के किस कोने में रखें, स्नानादि कहां करें. अपने ही घर में वे उपेक्षित से खडे़ थे.

अचानक श्लेषा को वे दिन याद आ गए जब बाबाअम्मां उस के घर रहने के लिए आए थे. दोनों बूढे़ इनसान अपने ही पुत्र के घर में किस तरह टुकुरटुकुर…बेबसी से अपनेआप में सिमटेदुबके रहते थे. ‘धरती का बोझ’ बोलता था सुमंत उन्हें.

3-4 मिनट बीत गए. बाबा, अम्मां, नौकर किसी ने भी उन की ओर ध्यान नहीं दिया. आखिरकार सुमंत अम्मां के पास गया, ‘‘अम्मां, तैयार होने के लिए हम ऊपर जाते हैं.’’

‘‘ऊपर तो कालिज के लड़के रहते हैं. अभी उन की परीक्षाएं चल रही हैं.’’

फिर सुमंत ने याचक दृष्टि अपनी जननी पर टिका दी.

अम्मां ने फतहचंद को इशारा किया. फतहचंद उन्हें किचन के बाजू वाले कमरे में ले गया.

4-5 माह पूर्व, जब बाबाअम्मां सुमंत के घर रहने गए थे, श्लेषा किचन में झांकती तक नहीं थी. बेचारी अम्मां अकेली खटती रहतीं. मगर आज अम्मां के घर, श्लेषा को किचन में जाने की बहुत जल्दी हो रही थी. आधे घंटे में नहाधो कर वह किचन में पहुंच गई.

अम्मांजी उस वक्त वहां 2 नौकरों से टिफिन भरवा रही थीं. श्लेषा बिना कहे नौकरों के संग काम में जुट गई. अम्मांजी ने इसरार भी किया कि ‘यहां का काम तुम्हें समझ नहीं आएगा,’ मगर श्लेषा ने उन की बात को अनसुना कर दिया और सुघड़ बहू की तरह सास के काम में हाथ  बंटाती रही. भोजन बनाने वालियों के संग रोटियां बेलने में भी उसे संकोच नहीं हुआ.

अम्मां मन ही मन मुसकरा कर स्टोर रूम की तरफ चली गईं. श्लेषा रसोईवाली बाइयों के संग बतियाते हुए फटाफट हाथ चलाने लगी. तभी अचानक उस के कान खडे़ हो गए. बाहर से अनंत और मेघा की आवाज आ रही थी.

देवरदेवरानी की आवाज सुनते ही वह चौंक पड़ी. तुरंत गरदन उचका कर गलियारे में झांका. अनंत और मेघा बतियाते हुए गलियारे में आ रहे थे. उन को देख श्लेषा सकते में आ गई. ये दोनों भला क्यों आए, कहीं इन की भी कोई प्लानिंग तो नहीं है? इन के अंकित ने इसी वर्ष ग्रेजुएशन किया है.

आशंका से श्लेषा की सांस जहां की तहां थम गई. अनंत और मेघा उसे अपने ‘दुश्मन नंबर वन’ नजर आने लगे. इधर रोटी बेल रही गोमतीबाई ने बतलाया, ‘‘दोनों कल शाम को आए थे. अभी कालोनी में शर्माजी से मिलने गए थे.’’

आगे पढ़ें- अनंत और मेघा बुरी तरह सकपका गए….

कालिमा: भाग 2- कैसे बेटे-बहू ने समझी अम्मां-बाबूजी की अहमियत

सोचसोच कर श्रुति का कलेजा मुंह को आने लगा. श्रुति को बेटी समझ कर रखा था बाबाअम्मां ने. दरअसल, उन की स्वयं की बेटी का नाम श्रुतकीर्ति था. नाम की इस समरूपता ने बाबाअम्मां को कुछ ज्यादा ही जोड़ दिया था श्रुति से. अब ऐसे स्नेहिल मातापिता को छोड़ कर वह कैसे चल दे.

तभी नीचे टाटा सूमो के रुकने की आवाज आई. गांव से उस के सासससुर (मांबाबूजी) आने वाले थे. श्रुति उठी और आंसू पोंछतीपोंछती नीचे आई.

मांबाबूजी ही थे. श्रुति की उड़ी रंगत देख वे घबरा गए. श्रुति ने हाथ के इशारे से चुप रहने का संकेत किया और ऊपर आ कर उन्हें सब हाल कह सुनाया. सुन कर उन्हें गहरा सदमा लगा.

बाबा को अपना बड़ा भाई मानने लगे थे बाबूजी. बाबाअम्मां की आत्मीयता देख मांबाबूजी निश्चिंत रहते थे. गांव में रहते हुए उन्हें अपने बेटेबहू की चिंता करने की कभी जरूरत महसूस नहीं हुई.

उन्होंने फौरन निर्णय लिया, रंजन उस मकान को बेच देगा और यहीं रह कर बाबाअम्मां की सेवा करेगा.

बाबा को जब इस निर्णय की जानकारी हुई, उन्होंने इस का विरोध किया. उन्होंने समझाया, ‘‘गहने और मकान बनवा लिए तो बन जाते हैं, वरना योजनाएं ही बनती रहती हैं, इसलिए भावनाओं में बह कर अब हो रहे कार्य को टालो मत.’’

बाबा की दूरंदेशी भरी सलाह के आगे सब को झुकना पड़ा और रंजन के घर का गृह- प्रवेश हो गया.

रंजन अपने घर चला गया. वह तो 2-3 माह बाद जाना चाहता था, पर  बाबाअम्मां ने समझाया, ‘‘गृहप्रवेश के बाद घर सूना नहीं छोड़ते.’’

बाबा का घर खाली हो गया. उस पर ‘किराए से देना है’ की तख्ती लग गई. पूरे 7-8 वर्षों बाद लगी थी यह तख्ती.

रंजन के जाने के बाद बाबाअम्मां को बेहद सूनापन लगने लगा. एक सहारा था उस से. पता नहीं अब जो किराएदार आएं, उन का स्वभाव कैसा हो?

बाबा रोज अगले किराएदार का इंतजार करते. सुबह से शाम हो जाती पर कई दिन तक एक भी किराएदार नहीं आया. अब उन्हें घबराहट होने लगी. एफ.डी. के ब्याज के बमुश्किल 400 रुपए मिलने वाले थे. यदि कोई किराएदार नहीं आया तब? अगले माह का खर्च कहां से निकलेगा? इस किराए की आमदनी का ही तो सहारा था उन्हें? पास की नकदी अब चुकने लगी थी. बचत  खाते में भी कोई विशेष रकम नहीं थी. तो क्या अगले माह एफ.डी. तुड़वानी पड़ेगी?

सोचसोच कर वे परेशान  हो जाते. उन की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता.  कितनी भारी गलती कर बैठे थे वे? उन के एक सहयोगी मित्र ने समझाया भी था, ‘जमाना बहुत खराब है, बदरीनाथ. मांबाप को अपनी मुट्ठी बंद रखने का दौर आ गया है. सब कुछ बच्चों के नाम मत करो.’

घबरा कर वे ऊपरी मंजिल में आए. खाली कमरे भांयभांय कर रहे थे. उन कमरों में घूमते हुए, उस की दीवारों पर हाथ फेरते हुए उन्हें वे दिन याद आ गए जब वह अपने सपनों के इस घर को बनवा रहे थे. इस की एकएक ईंट उन की जानीपहचानी थी. इसे बनवाते समय कितने रंगीन सपने देखे थे उन्होंने. तीनों बेटे बड़े होंगे. उन की शादियां होंगी. नीचे एक बेटा रहेगा, ऊपर दो. कितना अच्छा लगेगा उस वक्त. पूरा घर गुलजार रहेगा. उन का बुढ़ापा चैन से कट जाएगा.

नंगे फर्श पर बैठ वह फफकफफक कर रो पडे़. बुढ़ापे में ये दिन भी देखने थे.

नीचे किसी कार के रुकने की आवाज आई. आंसू पोंछ वह फुरती से उठे और भाग कर गैलरी में आए. श्रुतकीर्ति और निखिल कार से उतर रहे थे. बेटीदामाद को देखते ही उन का जी हरा हो गया.

उन की बूढ़ी थकी रगों में जान आ गई. जवानों की सी चपलता से वह दौड़ते हुए नीचे आए. पारो तब तक द्वार खोल चुकी थी.

श्रुतकीर्ति अंदर आई. मातापिता की दयनीय हालत देख उस का कलेजा मुंह को आ गया. हाय, 3 माह में ही बेचारे कितने बुढ़ा गए हैं.

श्रुतकीर्ति को अपनी रुलाई रोकना दुश्वार हो गया. उसे तो मालूम ही नहीं था कि बाबाअम्मां यहां आ चुके हैं? कल उन से बात करने के लिए उस ने बडे़ भैया के घर फोन लगाया था, भाभी से मालूम पड़ा, ‘बाबाअम्मां का मन नहीं लग रहा था तो वापस चले गए.’

रोरो कर श्रुतकीर्ति का बुरा हाल हो गया. तो इसलिए ‘मन नहीं लग रहा’ था. वह बारबार उलाहना देती. 3 माह में कम से कम 6 बार उस ने फोन पर बात की थी, बाबाअम्मां ने एक बार भी इशारा नहीं किया.

‘‘करते कैसे, बेटी?’’ बाबा का गला रुंध गया, ‘‘जब रहना उन्हीं के संग था… कैसे करते शिकायत?’’

‘‘यहां आने के बाद तो करते?’

अब कैसे कहें बाबा, कैसे बतलाएं अपनी दुर्दशा. आज महज 1 रुपया खर्च करने से पहले भी कईकई बार सोचना पड़ रहा है उन्हें. दूध तक तो बंद कर दिया है. सब्जी भी कंजूसी से खाते हैं.

कितने आशंकित मन से जी रहे थे वे दोनों. एक ही चिंता खाए जा रही थी, अगले माह एफ.डी. न तुड़वानी पडे़.

निखिल की तो क्रोध से मुट्ठियां भिंच गईं. जेब से मोबाइल निकाल लिया, ‘‘अभी लताड़ता हूं तीनों को.’’

श्रुतकीर्ति ने रोक दिया, ‘‘जाने दो, क्या फायदा ऐसे निठल्लों से कुछ कहने का. मातापिता के प्रति लेशमात्र भी दर्द होता तो क्या इस तरह व्यवहार करते.’’

निखिल कसमसा कर रह गया.

श्रुतकीर्ति रसोईघर में गई. वहां एक सरसरी नजर डालते ही सब ताड़ गई. पलट कर उस ने आंखोंआंखों में निखिल को इशारा किया. निखिल भी समझ गया. वह तुरंत बाहर निकल गया.

बाबाअम्मां कनखियों से यह सब देख रहे थे. बेटीदामाद का मंतव्य भांपते ही वे संकोच में पड़ गए. हाय, उन की रसोई का खर्च एक दिन बेटी उठाएगी, ऐसी बदहाली की कल्पना तो उन्होंने सपने में भी नहीं की थी. बुढ़ापा कैसेकैसे दिन दिखला रहा है. शर्मिंदगी से वह व्याकुल हो उठे.

अलमारी में 400 रुपए पडे़ थे. देने के लिए वह उठ कर दरवाजे की ओर लपके. श्रुतकीर्ति ने हाथ पकड़ कर वापस बैठा दिया, ‘‘कहां भागे जा रहे हो? कहीं रेस लगानी है?’’

‘‘बेटी,’’ बाबा का चेहरा एकदम कातर हो गया, ‘‘दामादजी पैसे ले कर तो गए ही नहीं?’’

‘‘आप भी बाबा,’’ श्रुतकीर्ति ने थोड़ा झुंझला कर कहा, ‘‘क्या निखिल आप के बेटे नहीं हैं?’’

‘‘हैं क्यों नहीं…लेकिन, बेटी…जरा सोच…दामाद से यह सब…अच्छा लगेगा हमें?’’

‘‘और घुटघुट कर मन मार कर रहते हुए अच्छा लग रहा है आप को?’’ श्रुतकीर्ति का गला रुंध गया, ‘‘इन पुराने रिवाजों को छोड़ो, बाबा. 3-3 कमाऊ बेटे जब मुंह मोड़ लें तो क्या बेटीदामाद भी आंखकान बंद कर के बैठ जाएं? छोड़ दें मातापिता को लावारिसों की तरह?’’

चायनाश्ता करवा कर श्रुतकीर्ति रसोई बनाने लगी. निखिल और बाबाअम्मां भी वहीं बैठ कर हाथ बंटाने लगे. निखिल बाबाअम्मां को अपने संग चलने के लिए मनाने लगा. बाबाअम्मां संकोच में पड़ गए. बेटी के घर रहने की कल्पना वह कैसे कर सकते थे. उन्होंने दबे स्वर में अपनी लाचारगी जाहिर की. उन की मनोदशा समझ कर निखिल ने फिर और जिदद् नहीं की. वह एक दूसरी योजना पर विचार करने लगा. यदि यह योजना सफल हो गई तो बाबाअम्मां पूरे मानसम्मान से रह सकेंगे. इस में उसे रंजन का पूरा सहयोग चाहिए था, विशेषकर श्रुति का. श्रुति को ही अधिक समय देना पडे़गा इस में.

आगे पढ़े- रिकशे में बाबा के बड़े बेटेबहू…

Holi 2023: हां सीखा मैं ने जीना- भाग 1

‘हां, सीखा मैं ने जीना… जीना कैसे जीना… हां, सीखा मैं ने जीना मेरे हमदम…’ नवनी एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट में आंकड़े भर रही थी. पास ही रखे मोबाइल में बजते गाने पर उस के पांव भी ताल दे रहे थे. तभी अचानक गाना रुका और व्हाट्सऐप पर कुंतल का मैसेज का आया. लिखा था, ‘लब्बू.’ नवनी के होंठों पर मुसकान तैर गई. ‘लव यू’ को कुंतल ‘लब्बू’ ही लिखता है.

इस शब्द के पीछे भी एक बहुत रोचक घटना जुङी हुई है. हुआ यों कि एक रोज नवनी अपने एनजीओ के संयोजन में चल रहे कुटीर उद्योग में बने चने के स्पैशल पापड़ कुंतल को टैस्ट करवा रही थी. कुंतल चटखारे ले कर पापड़ खा रहा था और हाथ के इशारे से बता रहा था कि लाजवाब लग रहा है. तभी नवनी ने पापड़ का आखिरी टुकड़ा कुंतल के हाथ से छीन कर अपने मुंह में डाल लिया. कुंतल ने मजाकमजाक में उस से कहा था, “इस गुस्ताखी पर आप को सजा मुकर्रर की जाती है… 10 बार फटाफट बोलो… कच्चा पापड़… पक्का पापड़…” उस ने भी कुंतल के चैलेंज को स्वीकार कर के फटाफट “कच्चा पापड़ पक्का पापड़…” बोलना शुरू कर दिया था. 7वीं बार दोहराते समय जब उस के मुंह से “कच्छा पकड़ कच्छा पकड़…” निकलने लगा था तब कुंतल कितना जोर से खिलखिला कर हंसा था.

नवनी ने झूठमूठ मुंह फुलाने का नाटक किया था. कुंतल ने उसे प्यार से मनाते हुआ कहा था, “सौरी बेबी, आई लव यू.”

“ठीक है… तो फिर अब तुम फटाफट 10 बार इसे दोहराओ… “लव यू लव यू…” नवनी ने नाराजगी से मुंह घुमाते हुए कहा.

“लव यू लव यू…” के शब्द 10वीं बार दोहरातेदोहराते “लब्बू-लब्बू..” हो गए थे. अब खिलखिलाने की बारी नवनी की थी.

“शैतान कहीं की,” कुंतल ने मुसकराते हुए उस का नाक खींच दिया था. बस, उस दिन के बाद जब भी कुंतल को उस पर प्यार आता है, वह उसे ‘लब्बू’ लिख कर मैसेज कर देता है.

कुंतल से मिलने के बाद नवनी की जिंदगी सचमुच प्रेम के नए क्षितिज छूने लगी थी. 40 साल की नवनी, जो एक युवा होती बेटी की मां भी है, की जिंदगी में प्रेम नहीं रहा होगा यह कहना जरा मुश्किल है लेकिन प्रेम जैसा जो कुछ भी था वह सही मायने में प्रेम ही था यह तय करना भी आसान नहीं है क्योंकि गणित के सूत्रों की तरह प्रेम की कोई निश्चित परिभाषा तो होती नहीं… यह तो 2 दिलों के बीच की कैमिस्ट्री होती है जो भौतिक परिभाषाओं और बायोलोजिकल गुणसूत्रों को दरकिनार करते हुए धीरेधीरे पूरे वजूद को अपने आगोश में ले लेती है.

प्रेम जब हलकी फुहारों सा बरसता हुआ धीरेधीरे मुसलाधार बारिश में परिवर्तित हो जाता है तब 7 अलगअलग रंग मिल कर धनक का रूप धर लेते हैं और फिर हर ओर उत्सव सा छा जाता है. दिन इमली से चटपटे और रातें अमिया सी रसभरी हो जाती हैं. कुछ इसी तरह की खट्टीमीठी लहरों में आजकल नवनी डूबउतर रही थी.

नवनी से कुंतल की मुलाकात अनायास ही नहीं हुई थी. जी हां, यह लव ऐट फर्स्ट साइड यानी कि पहली नजर का प्यार नहीं था. यह सुरूर तो नशे जैसा था जो धीरेधीरे गहराता गया और मजे की बात यह कि खुद उन दोनों को ही इस बात से इनकार था कि वे इस नशे की गिरफ्त में आते जा रहे हैं.

नवनी एक एनजीओ चलाती है और प्रोजैक्ट औफिसर कुंतल पिछले दिनों ही उन के एनजीओ द्वारा संचालित होने वाली योजनाओं के निरीक्षण के लिए आया था. दोनों की पहली औपचारिक मुलाकात वहां के ब्लौक अधिकारी ने करवाई थी. नवनी को कुंतल पहली मुलाकात में काफी मिलनसार लगा था. हालांकि वह देखने में काफी धीरगंभीर लग रहा था लेकिन उस की तिरछी चितवन के पीछे छिपा चंचल स्वभाव उस की चुगली कर रहा था.

“कोई भी संस्था एक परिवार की तरह होती है. आप को काम के साथसाथ महीने में कम से कम 1 बार कोई फन ऐक्टिविटी संस्था में करवानी चाहिए जिस से यहां काम करने वाले लोगों में आपसी जुड़ाव पैदा हो. एक फैमिली बौंडिंग की तरह…” कुंतल ने वहां का माहौल देखने के बाद नवनी से कहा था.

“वाह, इंप्रैसिव… आदमी दिलचस्प लगता है…” नवनी उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी.

“बहुत अच्छा विचार है सर… इस माह मैं एक पिकनिक का आयोजन करती हूं,” नवनी ने कुंतल के प्रस्ताव पर सहमति जताई.

“वैरी नाइस,” कुंतल ने अंगूठा दिखाते हुए उस के प्रस्ताव की सराहना की. नवनी मुसकरा दी.

कुंतल एक युवा और ऐनर्जी से भरपूर औफिसर था. नवनी ने पहली ही मुलाकात में महसूस कर लिया था कि कुंतल आधुनिक तकनीक में विश्वास रखने वाला टैक्नो फ्रैंड व्यक्ति है जो हर बाधा को पार कर आगे बढ़ने की इच्छा शक्ति रखता है.

“सर, महीने के लास्ट संडे पिकनिक का प्रोग्राम रखा है. आप को तो आना ही है, फैमिली भी साथ लाएंगे तो हमें बहुत अच्छा लगेगा,” नवनी ने कुंतल को मैसेज किया.

“मैं खुद के लिए कोशिश कर सकता हूं लेकिन फैमिली की कोई गारंटी नहीं…” 2 स्माइली इमोजी के साथ कुंतल ने रिप्लाई दिया. नवनी ने भी 2 अंगूठे दिखाते हुए चैट को विराम दे दिया.

एक रिश्ता किताब का: भाग 1- क्या सोमेश के लिए शुभ्रा का फैसला सही था

‘‘बीमार हो तुम, इलाज कराओ अपना. तुम तो इनसान ही नहीं लगते हो मुझे…’’

‘‘तो क्या मैं जानवर हूं?’’

‘‘शायद जानवर भी नहीं हो. जानवर को भी अपने मालिक पर कम से कम भरोसा तो होता है…उसे पता होता है कि उस का मालिक उस से प्यार करता है तभी तो खाना देने में देरसवेर हो जाए तो उसे काटने को नहीं दौड़ता, जैसे तुम दौड़ते हो.’’

‘‘मैं काटने को दौड़ता हूं तुम्हें? अरे, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं.’’

‘‘मत करो मुझ से प्यार…मुझे ऐसा प्यार नहीं चाहिए जिसे निभाने में मेरा दम ही घुट जाए. मेरी एकएक सांस पर तुम ने पहरा लगा रखा है. क्या मैं बेजान गुडि़या हूं जिस की अपनी कोई पसंदनापसंद नहीं. तुम हंसो तो मैं हंसू, तुम नाचो तो मैं नाचूं…हद होती है हर चीज की…तुम सामान्य नहीं हो सोमेश, तुम बीमार हो, कृपा कर के तुम किसी समझदार मनोचिकित्सक को दिखाओ.’’

ऐसा लग रहा था मुझे जैसे मेरे पूरे शरीर का रक्त मेरी कनपटियों में समा कर उन्हें फाड़ने जा रहा है. आवेश में मेरे हाथपैर कांपने लगे. मैं जो कह रही थी वह मेरी सहनशक्ति समाप्त हो जाने का ही नतीजा था. कोई इस सीमा तक भी स्वार्थी और आधिपत्य जताने वाला हो सकता है मेरी कल्पना से भी परे था. ऐसा क्या हो गया जो सोमेश ने मेरी पसंद की उस किताब को आग ही लगा दी. वह किताब जिसे मैं पिछले 1 साल से ढूंढ़ रही थी. आज सुबह ही मुझे सोमेश ने बताया था कि शाम 4 बजे वह मुझ से मिलने आएगा. 4 से 5 तक मैं उस का इंतजार करती रही, हार कर पास वाली किताबों की दुकान में चली गई.

समय का पाबंद सोमेश कभी नहीं होता और अपनी जरूरत और इच्छा के अनुसार फैसला बदल लेना या देरसवेर करना उस की आदत है, जिसे पिछले 4 महीने से मैं महसूस भी कर रही हूं और मन ही मन परेशान भी हो रही हूं यह सोच कर कि कैसे इस उलझे हुए व्यक्ति के साथ पूरी उम्र गुजार पाऊंगी.

कुछ समय बीत गया दुकान में और सहसा मुझे वह किताब नजर आ गई जिसे मैं बहुत समय से ढूंढ़ रही थी. किताब खरीद कर मैं बाहर चली आई और उसी कोने में सोमेश को भुनभुनाते हुए पाया. इस से पहले कि मैं किताब मिल जाने की खुशी उस पर जाहिर करूं उस ने किताब मेरे हाथ से छीन ली और जेब से लाइटर निकाल यह कहते हुए उसे आग लगा दी, ‘‘इसी की वजह से मुझे यहां इंतजार करना पड़ा न.’’

10 मिनट इंतजार नहीं कर पाया सोमेश और मैं जो पूरे घंटे भर से यहां खड़ी थी जिसे हर आताजाता घूर रहा था. अपनी वजह से मुझे परेशान करना जो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है और अपनी जरा सी परेशानी का यह आलम कि उस वजह को आग ही लगा दी.

अवाक् रह गया सोमेश मुझे चीखते देख कर जिसे पुन: हर आताजाता रुक कर देख भी रहा था और सुन भी रहा था. मेरा तमाशा बनाने वाला अपना भी तमाशा बनना सह नहीं पाया और झट से मेरी बांह पकड़ अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने का प्रयास करने लगा.

‘‘बस, सोमेश, अब और नहीं,’’ इतना कह कर मैं ने अपना हाथ खींच लिया और मैं ने सामने खड़े रिकशा को इशारा किया.

रिकशा पर बैठ गई मैं. सोमेश के चेहरे के उड़ते रंग और उस के पैरों के पास पड़ी धूधू कर जलती मेरी प्रिय किताब इतना संकेत अवश्य दे गई मुझे कि सोमेश सामान्य नहीं है. उस के साथ नहीं जी पाऊंगी मैं.

पापा के दोस्त का बेटा है सोमेश और उसे मैं इतनी पसंद आ गई थी कि सोमेश के पिता ने हाथ पसार कर मुझे मांग लिया था जबकि सचाई यह थी कि सोमेश की हैसियत हम से कहीं ज्यादा थी. लाखों का दहेज मिल सकता था उसे जो शायद यहां नहीं मिलता क्योंकि मैं हर महीने इतना कमा रही थी कि हर महीने किस्त दर किस्त दहेज उस घर में जाता.

मैं ही दहेज के विरुद्ध थी जिस पर उस के पिता भारी मन से ही राजी हुए थे. बेटे की जिद थी जिस पर उन का लाखों का नुकसान होने वाला था.

‘‘मेरे बेटे में यही तो कमी है, यह जिद्दी बहुत है…और मेरी सब से बड़ी कमजोरी है मेरा बेटा. आज तक इस ने जिस भी चीज पर हाथ रखा मैं ने इनकार नहीं किया…बड़े नाजों से पाला है मैं ने इसे बेटी. तुम इस रिश्ते से इनकार मत करो.’’

दिमाग भन्ना गया मेरा. मैं ने बारीबारी से अपने मांबाप का चेहरा देखा. वे भी परेशान थे मेरे इस निर्णय पर. शादी की सारी तैयारी हो चुकी थी.

‘‘मैं तुम्हारे लिए वे सारी किताबें लाऊंगा शुभा बेटी जो तुम चाहोगी…’’ हाथ जोड़ता हूं मैं. शादी से इनकार हो गया तो मेरा बेटा पागल हो जाएगा.’’

‘‘आप का बेटा पागल ही है चाचाजी, आप समझते क्यों नहीं? सवाल किताबों का नहीं, किताबें तो मैं भी खरीद सकती हूं, सवाल इस बात का है कि सोमेश ने ऐसा किया ही क्यों? क्या उस ने मुझे भी कोई खिलौना ही मान लिया था कि उस ने मांगा और आप ने लाखों का दहेज ठुकरा कर भी मेरा हाथ मांग लिया…सच तो यही है कि उस की हर जायजनाजायज मांग मानमान कर ही आप ने उस की मनोवृत्ति ऐसी स्वार्थी बना दी है कि अपनी खुशी के सामने उसे सब की खुशी बेतुकी लगती है. बेजान चीजें बच्चे की झोली में डाल देना अलग बात है, आज टूट गई कल नई भी आ सकती है. लेकिन माफ कीजिए, मैं बेजान खिलौना नहीं जो आप के बच्चे के लिए शहीद हो जाऊं.

‘‘हाथ क्यों जोड़ते हैं मेरे सामने. क्यों अपने बेटे के जुनून को हवा दे रहे हैं. आप रोकिए उसे और अपनेआप को भी. सोमेश का दिमाग संतुलित नहीं है. कृपया आप इस सत्य को समझने की कोशिश कीजिए…’’

‘‘मैं कुछ भी समझना नहीं चाहता. मुझे तो बस मेरे बच्चे की खुशी चाहिए और तुम ने शादी से इनकार कर दिया तो वह पागल हो जाएगा. वह बहुत प्यार करता है तुम से.’’

मन कांप रहा था मेरा. क्या कहूं मैं इस पिता समान इनसान से? अपनी संतान के मोह में वह इतना अंधा हो चुका है कि पराई संतान का सुखदुख भी उसे नजर नहीं आ रहा.

‘‘अगर शुभा ऐसा चाहती है तो तुम ही क्यों नहीं मान जाते?’’ पापा ने सवाल किया जिस पर सोमेश के पिता तिलमिला से गए.

‘‘तुम भी अपनी बेटी की बोली बोलने लगे हो.’’

‘‘मैं ने भी अपनी बच्ची बड़े लाड़प्यार से पाली है, जगदीश. माना मेरे पास तुम्हारी तरह करोड़ों की विरासत नहीं है, लेकिन इतना भूखा भी नहीं हूं जो अपनी बच्ची को पालपोस कर कुएं में धकेल दूं. शादी की तैयारी में मेरा भी तो लाखों खर्च हो चुका है. अब मैं खर्च का हिसाब तो नहीं करूंगा न…जब बेटी का भविष्य ही प्रश्नचिह्न बन सामने खड़ा होगा…चलो, मैं साथ चलता हूं. सोमेश को किसी मनोचिकित्सक को दिखा लेते हैं.’’

सोमेश के पिता माने नहीं और दनदनाते हुए चले गए.

‘‘कहीं हमारे हाथों किसी का दिल तो नहीं टूट रहा, शुभा? कहीं कोई अन्याय तो नहीं हो रहा?’’ मां ने धीरे से पूछा, ‘‘सोमेश बहुत प्यार करता है तुम से.’’

‘‘मां, पहली नजर में ही उसे मुझ से प्यार हो गया, समझ नहीं पाई थी मैं. न पहले देखा था कभी और न ही मेरे बारे में कुछ जानता था…चलो, माना… हो गया. अब क्या वह मेरी सोच का भी मालिक हो गया? मां, इतना समय मैं चुप रही तो इसलिए कि मैं भी यही मानती रही, यह उस का प्यार ही है जो कोई मुझे देख रहा हो तो उसे सहन ही नहीं होता. एक दिन रेस्तरां में मेरे एक सहयोगी मिल गए तो उन्हीं के बारे में हजार सवाल करने लगा और फिर न मुझे खाने दिया न खुद खाया. वजह सिर्फ यह कि उन्होंने मुझ से बात ही क्यों की. उस में समझदारी नाम की कोई चीज ही नहीं है मां. अपनी जरा सी इच्छा का मान रखने के लिए वह मुझे चरित्रहीन भी समझने लगता है…मेरी नजरों पर पहरा, मैं ने उधर क्यों देखा, मैं ने पीछे क्यों देखा, कभीकभी तो मुझे अपने बारे में भी शक होने लगता है कि क्या सच में मैं अच्छी लड़की नहीं हूं…’’

आगे पढ़ें- हाथ जोड़ कर जगदीश चाचा से…

Women’s Day 2023: मां का घर- भाग 1

पूजा तेजी से सीढि़यां चढ़ कर लगभग हांफती हुई सुप्रिया के घर की कालबेल दबाने लगी. दोपहर का समय था, उस पर चिलचिलाती धूप. वह जब घर से निकली थी तो बादल घिर आए थे. सुप्रिया ने दरवाजा खोला तो पूजा हांफती हुई अंदर आ कर सोफे पर पसर गई. आने से पहले पूजा ने सुप्रिया को बता दिया था कि वह मां को ले कर बहुत चिंतित है. कल शाम से वह फोन कर रही है, पर मां का मोबाइल स्विच औफ जा रहा है और घर का नंबर बस बजता ही जा रहा है.

सुप्रिया ने फौरन उस के सामने ठंडे पानी का गिलास रखा तो पूजा एक सांस में उसे गटक गई. फिर रुक कर बोली, ‘‘सुप्रिया, मैं ने धीरा आंटी को कल रात फोन किया था और सुबह वे मां के घर गई थीं. वे कह रही थीं कि वहां ताला लगा हुआ है. अब क्या करूं? कहां ढूंढूं उन्हें?’’ रोंआसी पूजा के पास जा कर सुप्रिया बैठ गई और उस के कंधे पर हाथ रख धीरे से पूछा, ‘‘तेरी कब बात हुई थी उन से?’’

‘‘एक सप्ताह पहले, मेरे जन्मदिन के दिन. मां ने सुबहसुबह फोन कर के मुझे बधाई दी थीं.’’ पूजा रुक कर फिर बोलने लगी, ‘‘मैं चाहती थी कि मां यहां आ कर कुछ दिन मेरे पास रहें. मां ने हंस कर कहा कि तेरी नईनई गृहस्थी है, मैं तुम दोनों के बीच क्या करूंगी? देर तक मैं मनाती रही मां को, उन से कहती रही कि 2 दिन के लिए ही सही, आ जाओ मेरे पास. 5 महीने हो गए उन्हें देखे, होली पर घर गई थी, तभी मिली थी.’’

पूजा ने अपनी आंखों से उमड़ आए आंसुओं को रुमाल से पोंछा. सुप्रिया चुप बैठी रही. कल शाम जब पूजा ने उसे फोन पर बताया था कि उस की मां फोन नहीं उठा रहीं तो वह खुद परेशान हो गई थी. पूजा की शादी के बाद मां मुंबई में अकेली रह गई थीं. सुप्रिया और पूजा मुंबई में एकसाथ स्कूलकालेज में पढ़ी थीं. सुप्रिया उस समय भी पूजा के साथ थी जब उस के पापा का एक्सीडेंट से देहांत हो गया था. उस समय वे दोनों 8वीं में पढ़ती थीं.

पूजा की मां अनुराधा बैंक में काम करती थीं. उन्होंने पूजा की पढ़ाई और परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. पूजा ने स्नातक की पढ़ाई के बाद एमबीए किया और नौकरी करने लगी. 2 साल पहले सुप्रिया शादी कर दिल्ली आ गई. पिछले साल पूजा ने जब उसे बताया कि उस का मंगेतर सुवीर भी दिल्ली में काम करता है, तो सुप्रिया खुशी से उछल गई. कितना मजा आएगा, दोनों सहेलियां एक ही शहर में रहेंगी. पूजा की मां ने बेटी की शादी बहुत धूमधाम से की. हालांकि पूजा और सुवीर लगातार कहते रहे कि बिलकुल सादा समारोह होना चाहिए. पूजा नहीं चाहती थी कि मां अपनी सारी जमापूंजी उस पर खर्च कर दें, लेकिन मां थीं कि बेटी पर सबकुछ लुटाने को आतुर. पूजा के मना करने पर मां ने प्यार से कहा, ‘यही तो मौका है पूजा, मुझे अपने अरमान पूरे कर लेने दे. पता नहीं कल ऐसा मौका आए न आए.’

आज पूजा को न जाने क्यों मां की कही वे बातें याद आ रही हैं. ऐसा क्यों कहा था मां ने? सुप्रिया ने रोती हुई पूजा को ढाढ़स बंधाया और अपना फोन उठा लाई. उस ने मुंबई अपने भाई को फोन लगाया और बोली, ‘‘अजय भैया, आप से एक जरूरी काम है. मेरी सहेली पूजा को तो आप जानते ही हैं. अरे, वही जो कांदिवली में अपने पुराने घर के पास रहती थी? उस की मां अनुराधाजी कल शाम से पता नहीं कहां चली गईं. प्लीज, भैया, पता कर के बताओ तो. वे बोरिवली के कामर्स बैंक में काम करती हैं. मैं उन का पूरा पता आप को एसएमएस कर देती हूं. भैया, जल्द से जल्द बताइए. पूजा बहुत परेशान है, रो रही है. अच्छा, फोन रखती हूं.’’

सुप्रिया ने अजय भैया को बैंक और घर का पता एसएमएस कर दिया और पूजा के पास आ कर बैठ गई.

‘‘पूजा, भैया सब पता कर बताएंगे, तू चिंता मत कर.’’ पूजा ने सिर उठाया, ‘‘पूरे 24 घंटे हो गए हैं, सुप्रिया. धीरा आंटी बता रही थीं कि पिछले 3 दिन से घर बंद है. पड़ोस के फ्लैट में रहने वाली अमीना आंटी ने 4 दिन पहले मां को बाजार में देखा था. इस के बाद से मां की कोई खबर नहीं है. घर के बाहर न अखबार पड़े हैं न दूध की थैली. इस का मतलब है मां बता कर गई हैं अखबार और दूध वाले को.’’

सुप्रिया ने सिर हिलाया और बोली, ‘‘पूजा, हो सकता है मां कहीं जल्दी में निकल गई हों. पिछले दिनों उन्होंने तुम से कुछ कहा क्या? या कोई बात हुई हो?’’ पूजा कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘सुप्रिया, मैं ने अपने जन्मदिन के बारे में तुम को बताया था न कि उस दिन मां ने मुझ से कहा कि वे मुझे जन्मदिन पर कुछ देना चाहती हैं…इस के लिए उन्होंने मेरा बैंक अकाउंट नंबर मांगा था. कल मैं बैंक गई थी. मां ने मेरे नाम 5 लाख रुपए भेजे हैं. यह बात थोड़ी अजीब लगी मुझे, अभीअभी तो मेरी शादी पर इतना खर्च किया था मां ने और…मैं इसी सिलसिले में मां से बात करना चाहती थी तभी तो लगातार फोन पर फोन मिलाती रही, पर…’’

सुप्रिया के चेहरे का भाव बदलने लगा, ‘‘5 लाख रुपए? यह तो बहुत ज्यादा हैं. कहां से आए उन के पास इतने रुपए? अभी तुम्हें देने का क्या मतलब है?’’ पूजा चुप रही. उसे भी अजीब लगा था. मां को इस समय उसे पैसे देने की क्या जरूरत? सुप्रिया दोनों के लिए चाय बना लाई. चाय की चुस्कियों के बीच चुप्पी छाई रही. पूजा पता नहीं क्या सोचने लगी. सुप्रिया को पता था कि पूजा अपनी मां से बेहद जुड़ी हुई है. वह तो चाहती थी कि शादी के बाद मां उस के साथ रहें लेकिन अनुराधाजी इस के खिलाफ थीं. पूजा बड़ी मुश्किल से शादी के लिए राजी हुई थी. उसे हमेशा लगता था कि उस के जाने के बाद मां कैसे जी पाएंगी?

अनुराधा ने उस से बहुत कहा कि 12वीं के बाद वह पढ़ाई करने बाहर जाए, किसी अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग या एमबीए करे, लेकिन पूजा मुंबई छोड़ने को तैयार ही नहीं थी. उस ने एक ही रट लगा रखी थी, ‘मैं आप को अकेला नहीं छोड़ सकती. यहीं रहूंगी आप के साथ.’ अनुराधा जब कभी दफ्तर के काम से या अपने किसी रिश्तेदार से मिलने 2 दिन भी शहर से बाहर जातीं, पूजा बेचैन हो जाती. साल में 2 बार अनुराधा अपने किसी गुरु से मिलने जाती थीं. पूजा ने कई बार कहा था कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी उन के पास लेकिन मां यह कह कर मना कर देतीं, ‘पूजा, जब मुझे लगेगा कि तुम इस लायक हो गई हो तो मैं खुद तुम्हें ले जाऊंगी.’

आगे पढें- सुप्रिया सोफे पर ढह गई. उस ने आंखें बंद…

फैमिली के लिए बनाएं पापड़ी चाट

फेस्टिव सीजन में अगर आप मीठा खाकर परेशान हो गए हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं पापड़ी चाट की रेसिपी. इस रेसिपी को आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को खिलाकर तारीफ पा सकते हैं.

सामग्री

–  1 कप सफेद मटर उबले

–  1/4 कप कटा खीरा

–  1/4 कप गाजर कसी

–  1/4 कप प्याज बारीक कटा

–  थोड़े से चुकंदर के लच्छे

–  थोड़े से अदरक के लच्छे

–  10-15 पीस पापड़ी

–  1 छोटा चम्मच चाटमसाला

–  1 छोटा चम्मच रायता मसाला

–  1 छोटा चम्मच जीरा भुना

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

–  2 बड़े चम्मच सोंठ चटनी

–  2 बड़े चम्मच हरी चटनी

–  2 बड़े चम्मच बारीक सेव

–  1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

उबले मटरों में चाटमसाला, जीरा, रायता मसाला व नमक मिला लें. फिर नीबू का रस मिलाएं. अब खीरा, गाजर व प्याज मिलाएं. थोड़ी सी हरी चटनी मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. ट्रे में पापड़ी लाइन से सजाएं. हर पापड़ी पर चम्मच से तैयार मटरा थोड़ाथोड़ा लगा दें. धनियापत्ती, चुकंदर व अदरक के लच्छे से सजाएं. ऊपर लाल व हरी चटनी डालें. सेव बुरक कर तुरंत परोसें.

लिवइन रिलेशनशिप: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

एक महिला मेरे पीछे पड़ गई है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 23 साल का हूं. मेरे रिश्ते की दादी 35 साल की हैं. उन के 4 बच्चे हैं और पति 4 साल पहले गुजर चुके हैं. मैं ने उन के साथ लगातार एक महीने तक हमबिस्तरी की है, उस से कुछ होगा क्या? वे मुझे फोन कर के बारबार बुलाती हैं?

जवाब

आप ने महीनेभर मौज की. इस से वे पेट से भी हो सकती हैं. तब आप फंस सकते हैं. बेहतर होगा कि उन के पास न जाएं.

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इज्जत : भाभी ने दिए दोनों लड़कों को मजे

बात उन दिनों की है, जब मेरे बीटैक के फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान होने वाला था और मैं इसी की तैयारी में मसरूफ था. अपनी सुविधा और आजादी के लिए होस्टल में रहने के बजाय मैं ने शहर में एक कमरा किराए पर ले कर रहने का फैसला किया था. शहर में अकेला रहना बोरिंग हो सकता है. यही सोच कर मैं ने अपने साथी रंजीत को अपना रूममेट बना लिया था.

फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान सिर पर था, इसलिए मैं इसी में बिजी रहता था, पर रंजीत को इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पिछले हफ्ते अपने घर से आया था और अब उसे फिर वहां जाने की धुन सवार हो गई थी.

जब रंजीत अपने घर जाने के लिए निकल गया, तो मैं भी अपनी पढ़ाई में मस्त हो गया.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता होगा कि रंजीत लौट कर मुझ से बोला, ‘‘भाई, यह बता कि अगर किसी को मदद की जरूरत हो, तो उस की मदद करनी चाहिए या नहीं?’’

रंजीत और मदद… मुझे हैरत हो रही थी, क्योंकि किसी की मदद करना उस के स्वभाव के बिलकुल उलट था, पर पहली बार उस के मुंह से मदद शब्द सुन कर अच्छा लगा.

मैं ने कहा, ‘‘बिलकुल. इनसान ही इनसान के काम आता है. जरूरतमंद की मदद करने से बेहतर और क्या हो सकता है. पर आज तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो? तुम्हारे घर जाने का क्या हुआ?’’

‘‘यार, बात यह है कि मैं घर जाने के लिए टिकट खरीद कर जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो देखा कि एक औरत अपने 2 बच्चों के साथ बैठी रो रही थी. मुझ से रहा न गया और पूछ बैठा, ‘आप क्यों रो रही हैं?’

‘‘उस औरत ने जवाब दिया, ‘मुझे जहानाबाद जाना है. इस समय वहां जाने वाली कोई गाड़ी नहीं है. अगली गाड़ी के लिए मुझे कल सुबह तक यहां इंतजार करना होगा.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘तो इस में रोने वाली क्या बात थी?’’’

रंजीत ने उस औरत की बात को और आगे बढ़ाया. वह बोली थी, ‘रात के 8 बज चुके हैं. मैं जानती हूं कि 9 बजे के बाद यह स्टेशन सुनसान हो जाता है. मेरे साथ 2 बच्चे भी हैं. कोई अनहोनी न हो जाए, यही सोचसोच कर मुझे रोना आ रहा है. मैं इस स्टेशन पर रात कैसे गुजारूंगी?’

‘‘मैं सोच में पड़ गया कि मुझे उस औरत की मदद करनी चाहिए या नहीं. यही सोच कर तुम से पूछने आ गया,’’ रंजीत मेरी ओर देखते हुए बोला.

‘‘देखो भाई रंजीत, हम लोग यहां बैचलर हैं. किसी की मदद करना तो ठीक है, पर किसी अनजान औरत को अपने कमरे पर लाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. मकान मालकिन पता नहीं हम लोगों के बारे में क्या सोचेगी?’’

मुझे उस समय पता नहीं क्यों उस अनजान औरत को कमरे पर लाने का खयाल अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए अपने मन की बात उसे बता दी.

‘‘मकान मालकिन पूछेगी, तो बता देंगे कि रामध्यान की भाभी है, यहां डाक्टर के पास आई है. वैसे भी हम लोगों के गांव से अकसर कोई न कोई मिलने तो आता ही रहता है,’’ रंजीत ने एक उपाय सुझाया.

आप को बताते चलें कि जिस बिल्डिंग में हम लोग रहते थे, उस की दूसरी मंजिल पर रामध्यान भी किराए पर रह रहा था. वह वैसे तो हमारे ही कालेज का एक शरीफ छात्र था, पर हम लोगों से जूनियर था, इसलिए न केवल हमारी बातें मानता था, बल्कि हमें इज्जत भी देता था.

‘‘ठीक है. अब अगर तुम उस औरत की मदद करना ही चाहते हो, तो मुझे क्या दिक्कत है. रामध्यान को सारी बातें समझा दो.’’

रंजीत तेजी से सीढि़यां चढ़ता हुआ रामध्यान के पास गया और उसे सारी बातें बता दीं. उसे कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उस औरत के रातभर रहने के लिए वह अपना कमरा देने को भी तैयार था. वह उसी समय अपनी कुछ किताबें ले कर हमारे कमरे में रहने चला आया.

‘‘अब तुम जाओ रंजीत. उसे ले आओ. और हां, उसे यह भी समझा देना कि अगर कोई पूछे, तो खुद को रामध्यान की भाभी बताए.’’

‘‘नहीं, तुम भी मेरे साथ चलो,’’ वह मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहता था.

‘‘मुझे पढ़ने दो यार, इम्तिहान सिर पर हैं. मैं अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता,’’ मैं बहाना करते हुए बोला.

‘‘अच्छा, किसी की मदद करना समय बरबाद करना होता है. तुम्हारा अगर नहीं जाने का मन है, तो साफसाफ कहो. वैसे भी एक दिन में तुम्हारी कितनी तैयारी हो जाएगी? एक दिन किसी की मदद के लिए तो कुरबान किया ही जा सकता है,’’ रंजीत किसी तरह मुझे ले ही जाना चाहता था.

‘‘ठीक है भाई, जैसी तुम्हारी मरजी. आज की शाम किसी की मदद के नाम,’’ मैं मजबूर हो कर बोला. थोड़ी देर में मैं भी तैयार हो कर उस के साथ निकल पड़ा.

रंजीत आगेआगे और मैं पीछेपीछे. वह मुझे स्टेशन के सब से आखिरी प्लेटफार्म के एक छोर पर ले गया, जहां वह औरत अपने दोनों बच्चों के साथ बैठी थी. वह हमें देख कर मुसकराने लगी. न जाने क्यों, उस का इस तरह मुसकराना मुझे अच्छा नहीं लगा.

मैं सोचने लगा कि न जाने कैसी औरत है, पर उस समय मुझ से कुछ बोलते नहीं बना.

स्टेशन से बाहर आ कर मैं ने 2 रिकशे वाले बुलाए. मुझे टोकते हुए वह औरत बोली, ‘‘2 रिकशों की क्या जरूरत है. एक ही में एडजस्ट कर चलेंगे न. बेकार में ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं.’’

‘‘पर हम एक ही रिकशे में कैसे चलेंगे?’’ मैं ने सवाल किया.

वह बोली, ‘‘देखिए, ऐसे चलेंगे…’’ कह कर वह रिकशे की सीट पर ठीक बीच में बैठ गई और दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठा लिया, ‘‘आप दोनों मेरे दोनों ओर बैठ जाइए,’’ वह हम दोनों को देख कर मुसकराते हुए बोली.

मुझे इस तरह बैठना अच्छा नहीं लग रहा था, पर उस दौर में पैसों की बड़ी किल्लत थी. अगर उस समय इस तरह से कुछ पैसे बच रहे थे, तो क्या बुरा था. आखिरकार हम दोनों उस के दोनों ओर बैठ गए.

हमारे बैठते ही अपने एकएक बच्चे को उस ने हम दोनों को थमा दिया. मैं अब भीतर ही भीतर कुढ़ने लगा था. हमारी अजीब हालत थी. हम उस की मदद कर रहे थे या वह हम से जबरदस्ती मदद ले रही थी.

रिकशे की रफ्तार तेज होती जा रही थी और मेरे सोचने की रफ्तार भी तेज होने लगी थी. मैं कहां हूं, किस हालत में हूं, यह भूल कर मैं अपनी सोच में ही डूबने लगा था. न जाने क्यों मुझे बारबार यह खयाल आ रहा था कि कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं.

कमरे पर पहुंचतेपहुंचते रात के 8 बज चुके थे. रंजीत ने उसे सारी बात समझा कर रामध्यान के कमरे में ठहरा दिया.

मैं ने रंजीत से कहा, ‘‘भाई, जब यह हमारे यहां आ गई है, तो इस के खानेपीने का इंतजाम भी तो हमें ही करना पड़ेगा. जाओ, होटल से कुछ ले आओ.’’

रंजीत खुशीखुशी होटल की ओर चल पड़ा. मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि रंजीत को आज क्या हो गया है, पर मैं चुप था. वह जितनी तेजी से गया था, उतनी ही तेजी से और बहुत जल्दी खानेपीने का सामान ले कर लौटा था.

‘‘जाओ, उसे खाना दे आओ. हम दोनों रामध्यान के साथ यहीं खा लेंगे,’’ मैं ने रंजीत से कहा.

रंजीत खाना देने ऊपर के कमरे  गया और तकरीबन आधा घंटे बाद लौटा. मुझे भूख लगी थी, लेकिन मैं उस का इंतजार कर रहा था. सोच रहा था कि उस के आने के बाद साथ बैठ कर खाएंगे.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘भाई, उस के कहने पर मैं ने भी उसी के साथ खाना खा लिया,’’ रंजीत धीरे से बोला.

‘‘कोई बात नहीं… आओ रामध्यान, हम दोनों खाना खा लें. हम तो इसी का इंतजार कर रहे थे और यह तुम्हारी भाभी के साथ खाना खा आया,’’ मैं ने मजाक करते हुए कहा.

रामध्यान को भी हंसी आ गई. वह हंसते हुए खाने की थाली सजाने लगा.

रात को खाना खाने के बाद अकसर हम लोग बाहर टहलने के लिए निकला करते थे, इसलिए खाने के बाद मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो गया और रंजीत को भी तैयार होने के लिए कहा.

‘‘आज मेरा जाने का मन नहीं है,’’ रंजीत टालमटोल करने लगा.

आखिरकार मैं और रामध्यान टहलने के लिए निकले. तकरीबन आधा घंटे के बाद लौटे. वापस आने पर देखा कि हमारे कमरे पर ताला लगा हुआ था.

रामध्यान ने हंसते हुए कहा, ‘‘भैया, हो सकता है रंजीत भैया भाभी के पास गए हों.’’

‘‘हो सकता है. जा कर दे,’’ मैं ने रामध्यान से कहा.

‘‘थोड़ी देर बाद रामध्यान और रंजीत हंसतेमुसकराते सीढि़यों से नीचे आ रहे थे.

‘‘भाभीजी तो बहुत मजाकिया हैं भाई. सच में मजा आ गया,’’ उतरते ही रंजीत ने कहा.

‘‘अब हंसना छोड़ो और जल्दी कमरा खोलो,’’ वे दोनों हंस रहे थे, पर मुझे गुस्सा आ रहा था.

मैं ने चुपचाप कमरे में जा कर अपने कपड़े बदले और बैड पर सोने चला गया. थोड़ी देर तक बैड पर लेटेलेटे मैं ने पढ़ाई की और उस के बाद मुझे नींद आ गई.

देर रात को रंजीत और रामध्यान की बातों से मेरी नींद टूटी. उन दोनों को देख कर लग रहा था कि वे दोनों अभीअभी कहीं से लौटे हैं.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘तुम दोनों कहां गए थे और अभी तक सोए क्यों नहीं?’’

‘कहीं… कहीं नहीं. बस अभी सोने ही वाले हैं,’ दोनों ने एकसुर में कहा.

थोड़ी देर बाद रंजीत ने मुझे जगाते हुए कहा, ‘‘भाई, तुम्हें एक बात कहनी है.’’

‘‘इतनी रात को… बोलो, क्या बात कहनी है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘अगर बुरा मानने वाली बात नहीं होगी, तो बुरा क्यों मानूंगा?’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम चाहो तो भाभीजी के मजे ले सकते हो,’’ रंजीत थोड़ा संकोच करते हुए बोला.

‘‘क्या बक रहे हो रंजीत? तुम्हें क्या हो गया है?’’ मैं ने हैरानी और गुस्से में उस से पूछा.

‘‘भाई, अच्छा मौका है. चाहो तो हाथ साफ कर लो,’’ रंजीत के चेहरे पर इस समय एक कुटिल मुसकान थी. वह अपनी इसी मुसकान से मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हम ने उसे सहारा दिया है. वह हमारी मेहमान है. तुम ऐसा कैसे

सोच सकते हो?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘इस तरह भी हम उस की मदद कर सकते हैं. मैं ने उस से बात कर ली है. एक बार के लिए 2 सौ रुपए में सौदा पक्का हुआ है,’’ वह मुझे ऐसे बता रहा था, जैसे कोई बड़ा उपहार भेंट करने जा रहा हो.

‘‘मुझे तुम्हारी सोच से घिन आती है रंजीत. आखिर तुम अपने असली रूप में आ ही गए. मुझे हैरत हो रही थी कि तुम भला किसी की मदद कैसे कर सकते हो. अब तुम्हारी असलियत सामने आई.

‘‘मुझे पहले से ही शक हो रहा था, पर मैं यह सोच कर चुप था कि चलो, एक अच्छा काम कर रहे हैं. अच्छा क्या खाक कर रहे हैं,’’ मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था, पर इस समय उसे समझाने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था.

रंजीत कुछ नहीं बोला. वह सिर झुकाए बैठा था.थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे. रामध्यान अब तक सो चुका था. थोड़ी देर बाद रंजीत बोला, ‘‘ठीक है भाई, सो जाओ. मैं भी सोता हूं.’’ सुबह जब मैं उठा, तब तक 7 बज चुके थे. रामध्यान की तथाकथित भाभी इस समय हमारे कमरे में बैठी थी. रामध्यान और रंजीत भी उस के पास ही बैठे थे.

‘‘मैं आप के ही उठने का इंतजार कर रही थी,’’ मुझे देखते हुए वह बोली.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हुआ कुछ नहीं. मैं जा रही हूं. कुछ बख्शीश तो दे दीजिए,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘बख्शीश किस बात की?’’ मुझे हैरानी हुई.

‘‘देखो मिस्टर, आप के इस दोस्त ने 2 सौ रुपए में एक बार की बात कर मेरी इज्जत का सौदा किया था. इन दोनों ने 2-2 बार मेरी इज्जत को तारतार किया. इस तरह पूरे 8 सौ रुपए बनते हैं. और ये हैं कि मुझे केवल 4 सौ रुपए दे कर टरकाना चाहते हैं. मैं भी अड़ चुकी हूं. बंद कमरे में मेरी इज्जत जाते हुए किसी ने नहीं देखा. अब अगर मैं यहां चिल्ला कर बताने लगी कि तुम लोग मुझे यहां क्यों लाए थे, तो तुम लोगों की इज्जत गई समझो,’’ वह बड़े ही तीखे अंदाज में बोले जा रही थी.

मैं ने रंजीत और रामध्यान की ओर देखा. वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप बैठे थे. मुझ से कोई भी नजरें नहीं मिला रहा था. मैं सारी बात समझ चुका था. यह भी जानता था कि रंजीत और रामध्यान के पास और पैसे नहीं होंगे. ऐसे में मुझे ही अपनी जेब ढीली करनी होगी. मैं ने अपना पर्स निकाला और उसे 4 सौ रुपए देते हुए बोला, ‘‘लीजिए अपने पैसे.’’

पैसे मिलते ही वह खुश हो गई और अपने रास्ते चल पड़ी. मैं सोच रहा था कि इज्जत आखिर है क्या? कल उस की इज्जत बचाने के लिए हम ने उसे सहारा दिया था और आज अपनी इज्जत बचाने के लिए हमें उसे पैसे देने पड़े.

इस तरह कहने को तो दुनिया की नजरों में हम सभी की इज्जत जातेजाते बची है. वह औरत बाइज्जत अपने रास्ते गई और हम अपने घर में. आज भी जब मैं उस घटना को याद करता हूं, तो सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि क्या वाकई उस औरत के साथसाथ हम सभी ने अपनीअपनी इज्जत बचा ली थी? ‘इज्जत’ हमारे हैवानियत से भरे कामों के ऊपर पड़ा परदा है. इसी परदे को तारतार होने से बचाने के लिए हम ने उस औरत को पैसे दिए. यह परदा दुनिया से तो हमारी हिफाजत करता नजर आ रहा है, पर हम सभी ने एकदूसरे को बिना इस परदे के देख लिया है. दुनियाभर के लिए हम भले ही इज्जतदार हों, पर अपनी सचाई का हमें पता है.

एक्स बौयफ्रेंड न बन जाए मुसीबत

नेहा की शादी बड़ी धूम-धाम से हुई थी. पति के नये घर-परिवार में नेहा को स्पेशल ट्रीटमेेंट मिल रहा था. अक्षय अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, ऐसे में उसकी पत्नी नेहा की आव-भगत भला क्यों न होती? तीन महीने हो गये थे, सास ने उसे रसोई में घुसने भी नहीं दिया था. नेहा 15 दिन के हनीमून के बाद लौटी, तो जरूरत की हर चीज उसके कमरे में ही पहुंच जाती थी. घर के तीनों नौकर हर वक्त उसकी खिदमत में हाजिर रहते थे. किट्टी पार्टी, रिश्तेदारों और मोहल्ले भर में उसकी सास उसकी खूबसूरती और व्यवहार के कसीदे काढ़ते घूमती थी. शाम को नेहा अक्सर सजधज कर हसबैंड के साथ घूमने निकल जाती. दोनों फिल्म देखते, रेस्ट्रां में खाना खाते, शॉपिंग करते. जिन्दगी मस्त बीत रही थी. मगर अचानक एक दिन नेहा के सुखी वैवाहिक जीवन का महल भरभरा कर गिर पड़ा.

उस दिन उसकी सास पड़ोसी के वहां बैठी थी, जब पड़ोसी के बेटे ने अपने कम्प्यूटर पर नेहा के अश्लील चित्र उसकी सास को दिखाये. ये चित्र उसने नेहा के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड किये थे, जहां वह अपनी अर्द्धनग्न तस्वीरें पोस्ट करके सेक्स के लिए युवकों को आमंत्रित करती थी. शर्म, अपमान और दुख से भरी नेहा की सास ने बेटे को फोन करके तुरंत घर बुलाया. पड़ोसी के कम्प्यूटर पर बैठ कर नेहा का फेसबुक अकाउंट चेक किया गया तो अक्षय के भी पैरों तले धरती डोल गयी. तस्वीरें देखकर इस बात से इनकार ही नहीं किया जा सकता था कि यह नेहा नहीं थी और इस अकाउंट से यह साफ था कि वह एक प्रॉस्टीट्यूट थी. उसने वहां पर बकायदा घंटे के हिसाब से अपने रेट डाल रखे थे. अपनी अश्लील कहानियां तस्वीरों के साथ डाल रखी थीं. बड़ा हंगामा खड़ा हो गया. नेहा के परिवार वालों को बुलाया गया. खूब कहा-सुनी हुई. नेहा मानने को ही तैयार नहीं थी कि वह फेसबुक अकाउंट उसका था, मगर जो तस्वीरें सामने थीं वह उसी की थीं. नेहा के माता-पिता भी हैरान थे.

नेहा का कहना था कि वह फेसबुक पर कभी थी ही नहीं. उसने लाख मिन्नतें कीं, लाख सफाईयां दीं, लाख कहा कि ये फर्जी अकाउंट है, मगर सब बेकार. उसको उसी दिन उसके माता-पिता के साथ मायके वापस जाना पड़ा. उसके ससुराल वाले ऐसी बहू को एक पल के लिए भी अपने घर में नहीं रखना चाहते थे, जिसके चरित्र के बारे में मोहल्ले वालों को भी पता चल चुका था. अक्षय के परिवार के लिए यह घटना शर्म से डूब मरने जैसी थी. जैसे उनके मुंह पर भरे बाजार किसी ने कालिख पोत दी थी. इस परिवार का मोहल्ले में बड़ा आदर-सम्मान था.
उधर नेहा का रो-रोकर बुरा हाल था. मायके लौटते वक्त उसे बार-बार अपने एक्स बौयफ्रैंड नितिन का ख्याल आ रहा था. हो न हो, यह काम उसी का हो सकता है. उसी ने बदला लेने के लिए उसकी ऐसी तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड की हैं. मगर यह तस्वीरें उसने कब और कैसे खींचीं, यह बात नेहा को परेशान कर रही थी. नितिन के साथ वह तीन साल प्रेम में रही. कॉलेज खत्म होने के बाद उसने पाया कि नितिन शादी या अपने फ्यूचर को लेकर बिल्कुल चिन्तित नहीं है. न तो वह जौब ढूंढ रहा था, न किसी कौम्पटिशन की तैयारी कर रहा था. वह बस सैर-सपाटा, मौज-मस्ती में ही जी रहा था. ज्यादातर समय उसकी जेब खाली होती थी. यहां तक कि जब वे घूमने जाते या फिल्म देखने जाते तो सारा खर्चा नेहा ही करती थी क्योंकि उसको कॉलेज खत्म करते ही जॉब मिल गयी थी.

एक साल तक तो नेहा ने नितिन के इस लापरवाह व्यवहार को बर्दाश्त किया मगर फिर उसने फ्यूचर प्लैनिंग को लेकर उससे सवाल पूछने शुरू कर दिये. आखिर उसकी भी जिन्दगी का सवाल था. उसके सवालों से नितिन खीज उठता. उससे लड़ने लगता. नेहा को अहसास हो गया कि नितिन पति लायक मिटीरियल नहीं है. वह घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहता है. जबकि नेहा अब सेटेल होना चाहती थी. नेहा के माता-पिता को उसकी शादी की जल्दी थी. एक से एक रिश्ते आ रहे थे. अच्छे पढ़े-लिखे और बढ़िया जॉब वाले हैंडसम पुरुषों के रिश्ते थे. जिन्हें नजरअंदाज करना बेवकूफी थी.
आखिरकार तंग आकर नेहा ने नितिन के साथ अपने रिश्ते को खत्म करने का फैसला कर लिया. नितिन को उसका दूर होना काफी अखरा था.

ब्रेकअप की बात पर वह उससे काफी लड़ा-झगड़ा भी. मगर, कब नौकरी करोगे? कब शादी करोगे? कब अपने मां-बाप से मिलवाओगे? नेहा के ऐसे सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं था. नितिन से अलग होने के साल भर के अन्दर ही नेहा की शादी अक्षय से हो गयी. इस बीच वह न तो नितिन से मिली और न ही उससे फोन पर कोई बात हुई. इतना वक्त गुजरने के बाद नितिन इस तरह नेहा के नाम से फर्जी फेसबुक अकाउंट बनाकर बदला लेगा, उसे बदनाम करने की कोशिश करेगा, ऐसा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था.
नेहा के कहने पर उसके माता-पिता ने पुलिस के साइबर सेल में नितिन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया, मगर पुलिस की लेट-लतीफी के चलते छह महीने बीत चुके हैं, नितिन अभी तक उनके हत्थे नहीं चढ़ा है. इधर अक्षय के वकील की ओर से नेहा को तलाक का नोटिस मिल चुका है. एक्स बौयफ्रैंड की जलन और बदले की भावना ने नेहा की अच्छी-भली खुशहाल जिन्दगी खत्म कर दी है.

मेरठ की रागिनी भी अपने एक्स बौयफ्रैंड की हरकतों से परेशान है. पेशे से टीचर रागिनी को उसका एक्स बौयफ्रैंड मधुर आये दिन रास्ते में रोक कर डराने-धमकाने की कोशिश करता है. रागिनी पांच साल तक मधुर के साथ रिलेशनशिप में थी. मधुर की मोहक छवि ने रागिनी के दिलो-दिमाग पर जैसे कब्जा कर लिया था. वह अपनी आधी से ज्यादा सैलरी उस पर लुटाने लगी थी. मगर शादी की बात पर मधुर भी चुप लगा जाता था. रागिनी के माता-पिता ने भी कई बार मधुर से शादी के बारे में पूछा, मगर उसने कोई पक्का जवाब नहीं दिया. आखिरकार तंग आकर रागिनी ने उससे सम्बन्ध तोड़ लिये. कोलकाता के एक बड़े बिजनेसमैन प्रकाश के साथ जबसे रागिनी का रिश्ता तय हुआ है, वह खुश तो बहुत है, मगर दिल में मधुर का भय भरा हुआ है. यह डर इतना हावी है कि वह न तो शादी की खरीदारी के लिए घर से बाहर निकल रही है, न किसी से अपने रिश्ते की बात शेयर कर रही है. उसे और उसके माता-पिता को डर है कि जैसे ही मधुर को पता चलेगा कि उसकी शादी तय हो गयी है, वह जरूर कोई न कोई गलत हरकत करेगा. हो सकता है वह उसके होने वाले पति की जानकारी प्राप्त करके वहां कोई ऐसी बात पहुंचा दे, जिससे यह रिश्ता टूट जाएगा. हो सकता है वह रागिनी के साथ मारपीट करे या उसे शारीरिक नुकसान पहुंचाये. यह तमाम बुरे ख्याल रागिनी की खुशियों पर ग्रहण की तरह चस्पा हो गये हैं.

इस डर से रागिनी ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट भी डिलीट कर दिये हैं, अपना मोबाइल फोन का नम्बर भी बदल दिया है, मगर डर है कि जाता ही नहीं है. मधुर के कारण ही रागिनी के माता-पिता बेटी की शादी कोलकाता जाकर कर रहे हैं. लड़के वालों को पहले तो यह बात अटपटी लगी थी, मगर इसमें उन्हें ही सहूलियत नजर आयी कि चलो, भारी-भरकम बारात लेकर मेरठ नहीं जाना पड़ेगा. काफी खर्चा बच जाएगा, यह सोच कर वे राजी भी हो गये. मेरठ में रागिनी के माता-पिता ने बेटी की शादी की बात बहुत नजदीकी रिश्तेदारों को बतायी है. कुछ गिने-चुने लोग ही शादी अटेंड करने के लिए कोलकाता जा रहे हैं. सबकुछ बेहद गुपचुप तरीके से प्लान हो रहा है. एक्स बौयफ्रैंड रागिनी के लिए ऐसा हौव्वा बन गया है कि वह अपनी खुशियां तक इन्जौय नहीं कर पा रही है.

‘प्यार’, ये शब्द किसी के भी मन में उमंग जगा देता है. दो लोग जब प्यार में होते हैं, तो उनके लिए एक-दूसरे की खुशी सबसे ज्यादा जरूरी होती है. लेकिन हर लव स्टोरी सक्सेसफुल हो, ऐसा होता नहीं है. रिश्ते टूटते भी हैं, और यहीं से पैदा होती है – ‘नफरत’. जरूरी नहीं कि हर केस में ऐसा हो, लेकिन ज्यादातर में ऐसा होता है. ब्रेकअप होने पर कुछ लोग अपनी जिन्दगी में मस्त हो जाते हैं या दूसरा साथी ढूंढ लेते हैं, वहीं कुछ लोग बदला लेने की ठान लेते हैं. सोचते हैं कि वो मेरी नहीं हुई तो किसी और की कैसे हो सकती है?
शाहरुख खान की फिल्म ‘डर’ आपको याद होगी. ‘क…क….क… किरण’ वाली. ये भी दिल टूटे आशिक की कहानी है, जो ऐसा ही सोचता कि तू मेरी न हुई तो तुझे किसी और का होने न दूंगा. खैर, वो तो फिल्म थी, जिसमें जूही चावला एक पगलाये आशिक से बच जाती हैं, मगर नेहा और रागिनी की जिन्दगी कोई फिल्म नहीं है, हकीकत है. जिसमें वे अपने एक्स बौयफ्रैंड की गलत हरकतों, साजिश और बदले का शिकार बन गयी हैं.

रिश्ता तोड़ते वक्त रखें सावधानी

एक मशहूर गीत के बोल हैं – वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा…. किसी के साथ रिश्ते में होना बेहद खूबसूरत अहसास है, मगर यह सुन्दर सपना जब टूटता है तो बड़ी चोट पहुंचती है. प्रेम सम्बन्ध टूटने की कुछ वजहें होती हैं – जैसे दोनों में से किसी एक का शादी के लिए राजी न होना, घरवालों का दबाव होना, धर्म-जाति का अलग-अलग होना, लड़के का नौकरी न करना, कोई फ्यूचर प्लैनिंग न होना वगैरह, वगैरह. जब आपको लगे कि आपका रिश्ता किसी मन्जिल तक नहीं पहुंच सकता तो ठीक-ठीक वजहें सामने रखकर अलग-अलग राह चुनने के लिए अपने पार्टनर से खुल कर बात करें. अगर वह आपसे सचमुच प्यार करता है तो वह आपकी बात को जरूर समझेगा.

ऐसे में आप आपसी समझौते के साथ एक दूसरे से खुशी-खुशी अलग हो सकते हैं. यदि आपका बौयफ्रैंड आपसे किसी मतलब से जुड़ा हुआ है तो वह आपको धमकी देने की या डराने की कोशिश करेगा. हो सकता है वह आपको ब्लैकमेल भी करे. ऐसे में तुरंत अपने माता-पिता को उसके बारे में बताएं और उसकी पुलिस कम्प्लेंट करें. ऐसे लोगों से डरने की कतई जरूरत नहीं है. डरने से इनके हौंसले बुलंद होते हैं और आप ठगी और ब्लैकमेलिंग का शिकार बन सकती हैं.
इसके अलावा ब्रेकअप के वक्त और उसके बाद कुछ बातें आपको ध्यान में रखनी चाहिएं ताकि भविष्य में जिससे भी आपकी शादी हो, उसके साथ आप खुश रह सकें और कभी अपने एक्स बौयफ्रैंड की किसी साजिश का शिकार न बनें.

बौयफ्रैंड से धीरे-धीरे दूरीं बनाएं

अगर आपकी शादी तय हो गयी है, तो जरूरी नहीं कि आप एक झटके में अपने प्रेमी से रिश्ता तोड़ दें. जब रिश्ता बनने में वक्त लगता है, तो उसे खत्म करने में भी लगेगा. इसलिए दूरी धीरे-धीरे बनाएं. उसे उन बातों का अहसास दिलाएं कि वह क्या मजबूरियां हैं, जिनके कारण आप उनसे दूर हो रही हैं. आप उनको इस बात के लिए तैयार करें कि वह उन मजबूरियों को समझे और अपनी उन कमियों को माने जिसके कारण आप उनसे दूर हो रही हैं. खुल कर सारी बात करें. अपनी परेशानी और अपनी इच्छाएं बताएं. एक पल में सबकुछ खत्म करने की कोशिश न करें, क्योंकि हो सकता है कि सामने वाला अचानक हुए खालीपन को बर्दाश्त न कर पाए. उसे समय दें और धीरे-धीरे सारे कॉन्टैक्ट खत्म करें. अगर आपके फोटोज या अन्य चीजें उसके पास हों तो वह वापस लेने की कोशिश करें.

बौयफ्रैंड के दिये गिफ्ट नष्ट कर दें

जब हम किसी के साथ रिलेशनशिप में होते हैं तो हमारे बीच तमाम चीजों का आदान-प्रदान होता है. हम बर्थडे, वैलेंटाइन डे या अन्य कई मौकों पर अपने प्रिय को गिफ्ट देते-लेते हैं. आपके बौयफ्रैंड ने भी आपको गिफ्ट, कार्ड या कपड़े इत्यादि दिये होंगे. इन्हें आप जितनी जल्दी खुद से दूर कर देंगी, उतनी जल्दी आप उसकी यादों से मुक्त हो पाएंगी. बौयफ्रैंड के दिये गिफ्ट को संभाल कर रखना कोई समझदारी नहीं है और इन्हें अपने साथ अपने पति के घर ले जाना तो महाबेवकूफी कहलाएगी. इसलिए इन तमाम चीजों को या तो लौटा दें या नष्ट कर दें. कोशिश करें कि आपने भी उन्हें जो गिफ्ट या कार्ड्स वगैरह दिये हैं, वो सब उससे वापिस मिल जाए. इन चीजों को भी नष्ट कर दें. नये जीवन में पुरानी चीजों की छाया नहीं पड़नी चाहिए.

ब्रेकअप के बाद खुद को समय दें

ब्रेकअप के बाद अक्सर यह अहसास होता है कि यह कुछ वक्त की दूरी है, हम फिर एक हो जाएंगे. इस अहसास से निकलना आसान नहीं होता है. ज्यादातर लोग ब्रेकअप के बाद उत्पन्न हुए खालीपन को भरने के लिए तुरंत कोई दूसरा दोस्त ढूंढ लेते हैं, या शादी के लिए तैयार हो जाते हैं, यह ठीक नहीं है. बौयफ्रैंड के साथ बिताये पलों को भूलने के लिए और सच्चाई को पूरी तरह स्वीकार करने के लिए खुद को समय दें. चिन्तन करें और अपने आपको समझाएं कि आपने जो कदम उठाया है, वह बिल्कुल ठीक है. नया दोस्त या जीवनसाथी चुनने में हड़बड़ी न करें. ठंडे दिमाग से, अच्छे भविष्य की आशा संजो कर, ठोंक-बजा कर नये रिश्ते में जाएं ताकि दोबारा आपको जुदाई का दर्द न सहना पड़े. इसके लिए अगर ब्रेकअप के बाद आपको साल-दो साल का वक्त लेना पड़े, तो गलत नहीं है. इस बीच आप अपनी पसंदीदा चीजें करें. ध्यान, व्यायाम, खानपान आदि पर ध्यान दें. चाहें तो कहीं फुल टाइम या शॉर्ट टाइम नौकरी कर लें. इससे आपको पुरानी बातें भूल कर भविष्य की योजनाएं बनाने में आसानी होगी.

शादी में बौयफ्रैंड को भूलकर भी न बुलाएं

भले आप आपसी समझौते के तहत अपने बौयफ्रैंड से अलग हुई हों और हो सकता है आप शादी के बाद भी अपने लवर को दोस्त की हैसियत से अपने करीब रखना चाहें, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है, लेकिन कोशिश करें कि आप उन्हें अपनी शादी पर न बुलाएं, क्योंकि उस हालात में एक दूसरे का सामना करना मुश्किल होगा और आप खुद उनकी मौजूदगी में किसी और से शादी करने में असहज महसूस करेंगी. वहीं आपका एक्स बौयफ्रैंड उस व्यक्ति से जलन महसूस करेगा, जिसके गले में आप वरमाला डाल रही हैं. यह जलन कब बदले की भावना में बदल जाए, कहा नहीं जा सकता है. अपनी शादी की फोटोज भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर न डालें, न दोस्तों को वॉट्सेप वगैरह करें. इन फोटोज के सामने आने पर आपके एक्स के मन में जलन पैदा होगी, जो भविष्य में आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.

पैसों का हिसाब-किताब खत्म करें

ऐसे कई प्रेमी जोड़े होते हैं, जो ज्वॉइन्ट अकाउंट, इंश्योरेंस पॉलिसी, प्रॉपर्टी इंवेस्टमेंट मिलकर करते हैं. शायद ये सोचकर कि उन दोनों को रिश्ते को साथ आगे लेकर जाना है. लेकिन अगर ब्रेकअप हो रहा है, तो ये सुनिश्चित कर लें कि आप पैसे-प्रॉपर्टी से जुड़े सारे हिसाब-किताब निपटा लें ताकि अन्य व्यक्ति से आपकी शादी के बाद कोई परेशानी पैदा न हो.

हसबैंड को ‘सबकुछ’ न बताएं

ये गलत होगा कि आप अपने जीवनसाथी से अपने पिछले रिश्ते की बात छुपाएं, लेकिन जरूरी ये भी नहीं कि अपने अतीत के बारे में ‘सबकुछ’ बताया जाए. आजकल स्कूल-कॉलेज में बौयफ्रैंड-गर्लफ्रेंड बनना आम बात है. इसको लेकर अक्सर पति अपनी पत्नी से सवाल नहीं करते हैं. जवानी में औपोज़िट सेक्स के प्रति आकर्षण होना एक स्वाभाविक क्रिया है. लोग यह मानने को तैयार ही नहीं होते कि स्कूल-कौलेज में आपका कोई प्रेमी या प्रेमिका नहीं रहा होगा. यह आम चलन है. इसलिए पति से यह बताना कि हां, आपका प्रेमी था, कोई गजब ढाने वाली बात नहीं होगी. हां, अगर आप अपने प्रेमी के बेहद करीब थीं, और उससे आपके शारीरिक सम्बन्ध थे, या आप उससे कभी प्रेगनेंट हुईं या आपका अबॉर्शन हुआ, तो जरूरी नहीं कि आप अपने पति को यह सारी बातें बताएं, क्योंकि यह कन्फेशन आपके रिश्ते में कड़वाहट भर देगा. इसलिए भावुकता में बह कर अतीत को पति के सामने खोल कर रख देना कोई समझदारी नहीं होगी. कोई भी पुरुष भले खुद को बेहद आधुनिक या खुले विचारों का बताये मगर यह बात कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसकी पत्नी पहले किसी के साथ सो चुकी है.

शादी दूसरे शहर में करें

बौयफ्रैंड से ब्रेकअप के बाद जब आप नये रिश्ते में नया जीवन शुरू करें तो कोशिश करें कि किसी नये शहर में करें. अपने शहर में वही जगहें, वही पिक्चर हॉल, वही बाजार, वही पार्क जहां आप अपने बौयफ्रैंड की बाहों में बाहें डाले घूमा करती थीं. जहां आपने अपने जीवन के सबसे सुखद पल बिताये थे. ऐसे में पुरानी यादें हर वक्त आपके दिल पर तारी रहेंगी और आपको अपने नये जीवनसाथी के रंग में कभी रंगने नहीं देंगी. जब आप पति के साथ उन्हीं जगहों पर होंगी, तो मन ही मन पति की तुलना अपने बौयफ्रैंड से भी करती रहेंगी. बौयफ्रैंड की हर हरकत आपको याद आएगी. दिल में टीस उठेगी और आप अपने पति के साथ अपना वैवाहिक जीवन कभी एन्जॉय नहीं कर पाएंगी. इसलिए कोशिश करें कि शादी के लिए किसी अन्य शहर में रहने वाले पुरुष को चुनें. यदि ऐसा सम्भव न हो और शादी अपने ही शहर के लड़के से हो जाए तो अन्य शहर में नौकरी करने के लिए उन्हें प्रेरित करें. पुरानी जगह छोड़ने पर पुरानी यादें भी पीछे छूट जाती हैं और आने वाला वक्त हर घाव भर देता है.

पति की तुलना बौयफ्रैंड से न करें

हर शख्स की अपनी पर्सनेलिटी, आदतें, चाहतें और काम करने के तरीके होते हैं. हमारी दोस्ती किसी व्यक्ति से तब होती है, जब उसकी बातें, आदतें, पसन्द-नापसन्द हमसे मिलती-जुलती होती है. आपके बौयफ्रैंड की बहुत सी बातें शायद आपसे मिलती होंगी, तभी आपकी दोस्ती हुई और हो सकता है जिस व्यक्ति से आपकी शादी हुई है, उसकी आदतें आपसे कतई न मिलती हों. उस हालत में आपको अपने बौयफ्रैंड का ख्याल आ सकता है. सुमन को गाने का शौक था. उसका बौयफ्रैंड भी गाता था. इस हॉबी के चलते ही दोनों एक दूसरे के करीब आये थे. मगर किसी कारणवश दोनों शादी नहीं कर पाये. सुमन की शादी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से हुई है, जो गीत-संगीत में जरा भी रुचि नहीं रखता. ऐसे में सुमन को हर वक्त अपने बौयफ्रैंड की याद आती है और वह अक्सर अपने रूखे पति की तुलना उससे करती है. यही वजह है कि उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है.

वह हर वक्त अनमनी सी रहती है. हालांकि उसके पति में और कई खूबियां हैं, मगर सुमन ने उन खूबियों की ओर अब तक नजर नहीं डाली है. याद रखें कि आपने जिस व्यक्ति से शादी की है वह आपके एक्स से बहुत बेहतर है, क्योंकि उसने आपको स्थायित्व दिया है, आपको आर्थिक सुरक्षा दी है, समाज के सामने आपको अपना बनाया है, आप पर विश्वास किया है और अपना घर आपके हवाले किया है. क्या आपका बौयफ्रैंड आपको कभी इतना सब दे सकता था? शायद नहीं. तो इसलिए कभी भी अपने पति की तुलना उस व्यक्ति से न करें जो बेहद कमजोर था, जिसके अन्दर आपको अपनाने की ताकत नहीं थी, जिसने आपको प्रेम में धोखा दिया, आपके भोले मन को छला और आपको पीड़ा पहुंचायी.

एक रिश्ता किताब का: भाग 2- क्या सोमेश के लिए शुभ्रा का फैसला सही था

पापा मेरी बातें सुन कर अवाक् थे. इतने दिन मैं ने यह सब उन से क्यों नहीं कहा इसी बात पर नाराज होने लगे.

‘‘तुम अच्छी लड़की हो बेटा, तुम तो मेरा अभिमान हो…लोग कहते थे मैं ने एक ही बेटी पर अपना परिवार क्यों रोक लिया तो मैं यही कहता था कि मेरी बेटी ही मेरा बेटा है. लाखों रुपए लगा कर तुम्हें पढ़ायालिखाया, एक समझदार इनसान बनाया. वह इसलिए तो नहीं कि तुम्हें एक मानसिक रोगी के साथ बांध दूं. 4 महीने से तुम दोनों मिल रहे हो, इतना डांवांडोल चरित्र है सोमेश का तो तुम ने हम से कहा क्यों नहीं?’’

‘‘मैं खुद भी समझ नहीं पा रही थी पापा, एक दिशा नहीं दे पा रही थी अपने निर्णय को…लेकिन यह सच है कि सोमेश के साथ रहने से दम घुटता है.’’

रिश्ता तोड़ दिया पापा ने. हाथ जोड़ कर जगदीश चाचा से क्षमा मांग ली. बदहवासी में क्याक्या बोलने लगे जगदीश चाचा. मेरे मामा और ताऊजी भी पापा के साथ गए थे. घर वापस आए तो काफी उदास भी थे और चिंतित भी. मामा अपनी बात समझाने लगे, ‘‘उस का गुस्सा जायज है लेकिन वह हमारा ही शक दूर करने के लिए मान क्यों नहीं जाता. क्यों नहीं हमारे साथ सोमेश को डाक्टर के पास भेज देता.

शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा, एक ही रट मेरे तो गले से नीचे नहीं उतरती. शादी क्या कोई दवा की गोली है जिस के होते ही मर्ज चला जाएगा. मुझे तो लगता है बापबेटा दोनों ही जिद्दी हैं. जरूर कुछ छिपा रहे हैं वरना सांच को आंच क्या. क्या डर है जगदीश को जो डाक्टर के पास ले जाना ही नहीं चाहता,’’ ताऊजी ने भी अपने मन की शंका सामने रखी.

‘‘बेटियां क्या इतनी सस्ती होती हैं जो किसी के भी हाथ दे दी जाएं. कोई मुझ से पूछे बेटी की कीमत…प्रकृति ने मुझे तो बेटी भी नहीं दी…अगर मेरी भी बेटी होती तो क्या मैं उसे पढ़ालिखा कर, सोचनेसमझने की अक्ल दिला कर किसी कुंए में धकेल देता?’’ रो पड़े थे ताऊजी.

मैं दरवाजे की ओट में खड़ी थी. उधर सोमेश लगातार मुझे फोन कर रहा था, मना रहा था मुझे…गिड़गिड़ा रहा था. क्या उस के पास आत्मसम्मान नाम की कोई चीज नहीं है. मैं सोचने लगी कि इतने अपमान के बाद कोई भी विवेकी पुरुष होता तो मेरी तरफ देखता तक नहीं. कैसा है यह प्यार? प्यार तो एहसास से होता है न. जिस प्यार का दावा सोमेश पहले दिन से कर रहा है वह जरा सा छू भर नहीं गया मुझे. कोई एक पल भी कभी ऐसा नहीं आया जब मुझे लगा हो कोई ऐसा धागा है जो मुझे सोमेश से बांधता है. हर पल यही लगा कि उस के अधिकार में चली गई हूं.

‘‘मैं बदनाम कर दूंगा तुम्हें शुभा, तेजाब डाल दूंगा तुम्हारे चेहरे पर, तुम मेरे सिवा किसी और की नहीं हो सकतीं…’’

मेरे कार्यालय में आ कर जोरजोर से चीखने लगा सोमेश. शादी टूट जाने की जो बात मैं ने अभी किसी से भी नहीं कही थी, उस ने चौराहे का मजाक बना दी. अपना पागलपन स्वयं ही सब को दिखा दिया. हमारे प्रबंधक महोदय ने पुलिस बुला ली और तेजाब की धमकी देने पर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया सोमेश को.

उधर जगदीश चाचा भी दुश्मनी पर उतर आए थे. वह कुछ भी करने को तैयार थे, लेकिन अपनी और अपने बेटे की असंतुलित मनोस्थिति को स्वीकारना नहीं चाहते थे. हमारा परिवार परेशान तो था लेकिन डरा हुआ नहीं था. शादी की तारीख धीरेधीरे पास आ रही थी जिस के गुजर जाने का इंतजार तो सभी को था लेकिन उस के पास आने का चाव समाप्त हो चुका था.

शादी की तारीख आई तो मां ने रोक लिया, ‘‘आज घर पर ही रह शुभा, पता नहीं सोमेश क्या कर बैठे.’’

मान गई मैं. अफसोस हो रहा था मुझे, क्या चैन से जीना मेरा अधिकार नहीं है? दोष क्या है मेरा? यही न कि एक जनून की भेंट चढ़ना नहीं चाहती. क्यों अपना जीवन नरक बना लूं जब जानती हूं सामने जलती लपटों के सिवा कुछ नहीं.

मेरे ममेरे भाई और ताऊजी सुबह ही हमारे घर पर चले आए.

‘‘बूआ, आप चिंता क्यों कर रही हैं…हम हैं न. अब डरडर कर भी तो नहीं न जिआ जा सकता. सहीगलत की समझ जब आ गई है तो सही का ही चुनाव करेंगे न हम. जानबूझ कर जहर भी तो नहीं न पिआ जा सकता.’’

मां को सांत्वना दी उन्होंने. अजीब सा तनाव था घर में. कब क्या हो बस इसी आशंका में जरा सी आहट पर भी हम चौंक जाते थे. लगभग 8 बजे एक नई ही करवट बदल ली हालात ने.

जगदीश चाचा चुपचाप खड़े थे हमारे दरवाजे पर. आशंकित थे हम. कैसी विडंबना है न, जिन से जीवन भर का नाता बांधने जा रहे थे वही जान के दुश्मन नजर आने लगे थे.

पापा ने हाथ पकड़ कर भीतर बुलाया. हम ने कब उन से दुश्मनी चाही थी. जोरजोर से रोने लगे जगदीश चाचा. पता चला, सोमेश सचमुच पागलखाने में है. बेडि़यों से बंधा पड़ा है सोमेश. पता चला वह पूरे घर को आग लगाने वाला था. हम सब यह सुन कर अवाक् रह गए.

‘‘मुझे माफ कर दो बेटी. तुम सही थीं. मेरा बेटा वास्तव में संतुलित दिमाग का मालिक नहीं है. मेरा बच्चा पागल है. वह बचपन से ही ऐसा है जब से उस की मां चली गई.’’

सोमेश की मां तभी उन्हें छोड़ कर चली गई थी जब वह मात्र 4 साल का था. यह बात मुझे पापा ने बताई थी. पतिपत्नी में निभ नहीं पाई थी और इस रिश्ते का अंत तलाक में हुआ था.

‘‘…मैं क्या करता. मांबाप दोनों की कमी पूरी करताकरता यह भूल ही गया कि बच्चे को ना सुनने की आदत भी डालनी चाहिए. मैं ने ना सुनना नहीं न सिखाया, आज तुम ने सिखा दिया. दुनिया भी सिखाएगी उसे कि जिस चीज पर भी वह हाथ रखे, जरूरी नहीं उसे मिल ही जाए,’’ रो रहे थे जगदीश चाचा, ‘‘सारा दोष मेरा है. मैं ने अपनी शादी से भी कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं कर ली थीं जो पूरी नहीं उतरीं. जिम्मेदारी न समझ मजाक ही समझा. मेरी पत्नी की और मेरी निभ नहीं पाई जिस में मेरा दोष ज्यादा था. मेरे ही कर्मों का फल है जो आज मेरा बच्चा बेडि़यों में बंधा है…मुझे माफ कर दो बेटी और सदा सुखी रहो… हमारी वजह से बहुत परेशानी उठानी पड़ी तुम्हें.’’

हम सब एकदूसरे का मुंह देख रहे थे. जगदीश चाचा का एकाएक बदल जाना गले के नीचे नहीं उतर रहा था. कहीं कोई छलावा तो नहीं है न उन का यह व्यवहार. कल तक मुझे बरबाद कर देने की कसमें खा रहे थे, आज अपनी ही बरबादी की कथा सुना कर उस की जिम्मेदारी भी खुद पर ले रहे थे.

‘‘बेटी, मैं ने सच में औरों से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगाई हैं. सदा लेने को हाथ बढ़ाया है देने को नहीं. सदा यही चाहा कि सामने वाला मेरे अनुसार अपने को ढाले, कभी मैं भी वह करूं जो सामने वाले को अच्छा लगे, ऐसा नहीं सोचा. जैसा मैं था वैसा ही सोमेश को भी बनाता गया…बेहद जिद्दी और सब पर अपना ही अधिकार समझने वाला…ऐसा इनसान जीवन में कभी सफल नहीं होता बेटी. न मेरी शादी सफल हुई न मेरी परवरिश. न मैं अच्छा पति बना न अच्छा पिता. अच्छा किया जो तुम ने शादी से मना कर दिया. कम से कम तुम्हारे इनकार से मेरी इस जिद पर एक पूर्णविराम तो लगा.’’

आगे पढ़ें- तूफान के बाद की शांति घर भर में…

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