स्नैक्स में परोसें पालक ओट्स वड़ा

वड़ा की कई रेसिपी आपने ट्राय की होगी, लेकिन क्या आपने हेल्दी और टेस्टी पालक ओट्स वड़ा की रेसिपी ट्राय की है. ये हेल्दी और टेस्ट रेसिपी आप आसानी से फैस्टिव सीजन में अपनी फैमिली और फ्रैंड्स के लिए बना सकती हैं.

सामग्री

– 100 ग्राम पालक के मुलायम पत्ते

– 3/4 कप ओट्स

– 1/4 कप मूंग दाल पाउडर

– 1/4 कप ब्रैडक्रंब्स

– 1 छोटा चम्मच अदरक व हरीमिर्च पेस्ट

– 1/2 कप आलू उबले व मैश किए

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– 1 बड़ा चम्मच दही, डीप फ्राई करने के लिए रिफाइंड औयल, लालमिर्च पाउडर, अमचूर पाउडर, चाटमसाला

– नमक स्वादानुसार

विधि

  • ओट्स को तवे पर हलका सा भूनें और ठंडा कर के मिक्सी में पीस लें. पालक के पत्तों को धो कर बारीक काटे लें.
  • फिर बाकी सारी सामग्री मिलाएं. नीबू के बराबर थोड़ाथोड़ा मिश्रण ले कर गोल करें.
  • फिर हाथ से थोड़ा चपटा करें और उंगली से बीच में छेद कर लें.
  • गरम तेल में धीमी आंच पर ओट्स बड़ा सुनहरा होने तक फ्राई कर लें. चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

व्यंजन सहयोग : नीरा कुमार, शैफ आनंद, शैफ रनवीर बरार

एक रिश्ता किताब का: भाग 3- क्या सोमेश के लिए शुभ्रा का फैसला सही था

निरंतर रो रहे थे जगदीश चाचा. पापा भी रो रहे थे. शायद हम सब भी. इस कथा का अंत इस तरह होगा किस ने सोचा था. जगदीश चाचा सब रिश्तों को खो कर इतना तो समझ ही गए थे कि अकेला इनसान कितना असहाय, कितना असुरक्षित होता है. सब गंवा कर दोस्ती का रिश्ता बचाना सीख लिया यही बहुत था, एक शुरुआत की न जगदीश चाचा ने. पापा ने माफ कर दिया जगदीश चाचा को. सिर से भारी बोझ हट गया, एक रिश्ता तोड़ एक रिश्ता बचा लिया, सौदा महंगा नहीं रहा.

तूफान के बाद की शांति घर भर में पैर पसारे थी. दोपहर का समय था जब मेरे एक सहयोगी ने दरवाजा खटखटाया. कंधे पर बैग और हाथ में शादी का तोहफा लिए मामा ने उन्हें अंदर बिठाया. मैं मिलने गई तो विजय को देख कर सहसा हैरान हो गई.

‘‘अरे, शादी वाला घर नहीं लग रहा आप का…आप भी मेहंदी से लिपीपुती नहीं हैं…पंजाबी दुलहन के हाथ में तो लंबेलंबे कलीरे होते हैं न. मुझे तो लगा था कि पहुंच ही नहीं पाऊंगा. सीधा स्टेशन से आ रहा हूं. आप पहले यह तोहफा ले लीजिए. अभी फुरसत है न. रात को तो आप बहुत व्यस्त होंगी. जरा खोल कर देखिए न, आप की पसंद का है कुछ.’’

एक ही सांस में विजय सब कह गए. उन के चेहरे पर मंदमंद मुसकान थी, जो सदा ही रहती है. आफिस के काम से उन को मद्रास में नियुक्त किया गया था. अच्छे इनसान हैं. मेरी शादी के लिए ही इतनी दूर से आए थे. आसपास भी देख रहे थे.

‘‘क्या बात है शुभाजी, घर में शादी की चहलपहल नहीं है. क्या शादी का प्रबंध कहीं और किया गया है? आप जरा खोल कर देखिए न इसे…माफ कीजिएगा, मुझे रात ही वापस लौटना होगा. आप को तो पता है कि छुट्टी मिलना कितना मुश्किल है…मैं तो किसी तरह जरा सा समय खींच पाया हूं. आप को दुलहन के रूप में देखना चाहता था. आप के हाथों में वह सब कैसा लगता वह सब देखने का लोभ मैं छोड़ ही नहीं पाया.’’

विजय के शब्दों की बेलगाम दौड़ कभी मेरे हाथ में दिए गए तोहफे पर रुकती और कभी आसपास के चुप माहौल पर. इतनी दूर से मुझे बस दुलहन के रूप में देखने आए थे. चाहते थे तोहफा अभी खोल कर देख लूं.

‘‘आप बहुत अच्छी हैं शुभाजी, सोेमेशजी बहुत किस्मत वाले हैं जो आप उन्हें मिलने वाली हैं. आप सदा सुखी रहें. मेरी यह दिली ख्वाहिश है.’’

सहसा उन का हाथ मेरे सिर पर आया. सिहर गया था मेरा पूरा का पूरा अस्तित्व. नजरें उठा कर देखा कुछ तैर रहा था आंखों में.

‘‘क्या बात है, शुभाजी, सब ठीक तो है न…घबराहट हो रही है क्या?’’

क्या कहूं मैं सोेमेश के बारे में, और विजय को भी क्या समझूं. विजय तो आज भी वहीं खड़े हैं जहां तब खड़े थे जब मेरी सोमेश के साथ सगाई हुई थी. एक मीठा सा भाव रहता था सदा विजय की आंखों में. कुछ छू जाता था मुझे. इस से पहले मैं कुछ समझ पाती सोमेश से मेरी सगाई हो गई और जितना समय सगाई को हुआ उतने ही समय से विजय की नियुक्ति भी मद्रास में है, जिस वजह से यह प्रकरण पुन: कभी उठा ही नहीं था. भूल ही गई थी मैं विजय को.

तभी पापा भीतर चले आए और मैं तोहफा वहीं मेज पर टिका कर भीतर चली आई. अपने कमरे में दुबक सुबक- सुबक कर रो पड़ी. जाहिर सा था पापा ने सारी की सारी कहानी विजय को सुना दी होगी. कुछ समय बीत गया…फिर ऐसा लगा बहुत पास आ कर बैठ गया है कोई. कान में एक मीठा सा स्वर भी पड़ा, ‘‘आप ने अभी तक मेरा तोहफा खोल कर नहीं देखा शुभाजी. जरा देखिए तो, क्या यह वही किताब है जिसे सोमेश ने जला दिया था…देखिए न शुभाजी, क्या इसी किताब को आप पिछले साल भर से ढूंढ़ रही थीं. देखिए तो…

‘‘शुभा, आप मेरी बात सुन रही हैं न. जो हो गया उसे तो होना ही था क्योंकि सोमेश इतनी अच्छी तकदीर का मालिक नहीं था और जिस रिश्ते की शुरुआत ही धोखे और खराब नीयत से हो उस का अंत कैसा होता है. सभी जानते हैं न. आप कमरे में दुबक कर क्यों रो रही हैं. आप ने तो किसी को धोखा नहीं दिया, तो फिर दुखी होने की क्या जरूरत. इधर देखिए न…’’

मेरा हाथ जबरदस्ती अपनी तरफ खींचा विजय ने. स्तब्ध थी मैं कि इतना अधिकार विजय को किस ने दिया? दोनों हाथों से मेरा चेहरा सामने कर आंसू पोंछे.

‘‘इतनी दूर से मैं आप के आंसू देखने तो नहीं आया था. आप बहुत अच्छी लगती थीं मुझे…अच्छे लोग सदा मन के किसी न किसी कोने में छिपे रहते हैं न. यह अलग बात है कि आप ने मन का कोई कोना नहीं पूरा मन ही बांध रखा था… आप का हाथ मांगना चाहता था. जरा सी देर हो गई थी मुझ से. आप की सगाई हो गई और मैं जानबूझ कर आप से दूर चला गया. सदा आप का सुख मांगा है…प्रकृति से यही मांगता रहा कि आप को कभी गरम हवा छू भी न जाए.

‘‘आप की एक नन्ही सी इच्छा का पता चला था.

‘‘याद है एक शाम आप बुक शाप में यह किताब ढूंढ़ती मिल गई थीं. आप से पता चला था कि आप इसे लंबे समय से ढूंढ़ रही हैं. मैं ने भी इसे मद्रास में ढूंढ़ा… मिल गई मुझे. सोचा शादी में इस से अच्छा तोहफा और क्या होगा…इसे पा कर आप के चेहरे पर जो चमक आएगी उसी में मैं भी सुखी हो लूंगा इसीलिए तो बारबार इसे खोल कर देख लेने की जल्दी मचा रहा था मैं.’’

पहली बार नजरें मिलाने की हिम्मत की मैं ने. आकंठ डूब गई मैं विजय के शब्दों में. मेरी नन्ही सी इच्छा का इतना सम्मान किया विजय ने और इसी इच्छा का दाहसंस्कार सोमेश के पागलपन को दर्शा गया जिस पर इतना बड़ा झूठ तारतार कर बिखर गया.

‘‘आप को दुलहन के रूप में देखना चाहता था, तभी तो इतनी दूर से आया हूं. आज का दिन आप की शादी का दिन है न. तो शादी हो जानी चाहिए. आप के पापा और मां ने पूछने को भेजा है. क्या आप मेरा हाथ पकड़ना पसंद करेंगी?’’

क्या कहती मैं? विजय ने कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया. झट से एक प्रगाढ़ चुंबन मेरे गाल पर जड़ा और सर थपक दिया. शायद कुछ था जो सदा से हमें जोड़े था. बिना कुछ कहे बिना कुछ सुने. कुछ ऐसा जिसे सोमेश के साथ कभी महसूस नहीं किया था.

विजय बाहर चले गए. पापा और मां से क्याक्या बातें करते रहे मैं ने सुना नहीं. ऐसा लगा एक सुरक्षा कवच घिर आया है आसपास. मेरी एक नन्ही सी इच्छा मेरी वह प्रिय किताब मेरे हाथों में चली आई. समझ नहीं पा रही हूं कैसे सोमेश का धन्यवाद करूं?

GHKKPM: साई के लिए फूट-फूटकर रोया विराट, देखा साथ जीने का सपना

स्टार प्लस का धमाकेदार सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों कई ट्विस्ट और टर्न्स से गुजर रहा है. नील भट्ट और आयशा सिंह के ‘गुम है किसी के प्यार में’ की पूरी कहानी विनायक की ओर घुमा दी गई है. जहां एक तरफ सई अपना बच्चा वापिस चाहती है तो वहीं विराट ने एक बार फिर से रंग बदलकर सई की जगह पत्रलेखा का साथ दिया. बीते दिन भी आयशा सिंह (Ayesha Singh) के गुम है किसी के प्यार में (Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein) दिखाया गया कि विराट फिर से पत्रलेखा का साथ देता है और सई के सामने उसे विनायक की मां साबित करता है. वहीं सई को खाली हाथ घर लौटना पड़ता है. लेकिन नील भट्ट और आयशा सिंह के ‘गुम है किसी के प्यार में’ में आने वाले मोड़ यहीं खत्म नहीं होते हैं.

 

 

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पत्रलेखा को बुरी नजर कहकर ताना मारेंगी भवानी काकू

‘गुम है किसी के प्यार में’ में दिखाया जाएगा कि जहां एक तरफ खाली हाथ लौटने पर सई सवि के गले लगकर रोती है. वहीं विनायक को देख पूरे चव्हाण निवास में खुशी की लहर दौड़ पड़ती है. अश्विनी पत्रलेखा को उसके किए के लिए चिल्लाने की कोशिश करती है, लेकिन विराट उसे रोक देता है. वहीं भवानी काकू विनायक की नजर उतारती हैं और पत्रलेखा की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, “कभी-कभी लोगों की बुरी नजर लग जाती है और वो बुरे लोग अपने ही होते हैं.”

 

अपने किये पर फूट-फूटकर रोएगा विराट

आयशा सिंह के ‘गुम है किसी के प्यार में’ में दिखाया जाएगा कि विराट को अपने किये पर पछतावा होता है. वह किसी सूनसान जगह पर जाता है और जोर-जोर से चिल्लाकर अपने मन की भड़ास निकालता है. विराट रोते-रोते कहता है कि मुझे माफ करना सई कि मैंने कल तुम्हारा साथ नहीं दिया. क्योंकि अगर मैं कल तुम्हारा साथ देता तो पत्रलेखा अपनी जान ले लेती.

 

वकील के पास से भी खाली हाथ लौटेगी सई

टीवी शो ‘गुम है किसी के प्यार में’ में एंटरटेनमेंट का डोज यहीं पर खत्म नहीं होता है. शो में सई विनायक की कस्टडी के लिए वकील के पास जाती है. वकील के पूछने पर वह बताती है कि उसने अपनी मर्जी से पति को छोड़ा था और उसके पति ने विनायक को गोद लिया था. वकील सई को समझाता है कि वह कस्टडी केस फाइल नहीं कर सकती है, क्योंकि जिस वक्त विराट ने वीनू को गोद लिया, उन्हें पता नहीं था कि वह उन्हीं का बेटा है. वकील सई को समझाता है कि गोद लेने के बाद बच्चे पर उसके असली मां-बाप का हक खत्म हो जाता है. यह सुनकर सई की आंख में आंसू आ जाते हैं.

Urfi Javed ने कहीं ऐसी अटपटी बात,‘आज मैंने नहीं मेरे Iphone ने कपड़े उतारे…’

सोशल मीडिया पर आए दिन अजीबोगरीब आउटफिट में दिखाई देने वाली उर्फी जावेद ने लोगों को फिर चौंका दिया है. उर्फी ने इस बार डेनिम जींस को टॉप की तरह शोल्डर तक पहना है. उर्फी का यह लुक देख कुछ लोग कह रहे हैं कि लगता है फैशन के लिए अब उर्फी के पास बजट नहीं बचा है.

उर्फी जावेद की तस्वीरों के फिर हो रहे चर्चे

बिग बॉस फेम टीवी एक्ट्रेस उर्फी जावेद के फैशन के चर्चे ना हों ऐसा नहीं हो सकता है. वह अपने फैशन को लेकर अक्सर चर्चा का विषय बन जाती हैं. उर्फी जावेद के फैशन और ड्रेसिंग सेंस को लेकर लोगों का कहना होता है कि इतना प्रयोग कैसे कर लेती हैं. उर्फी जावेद की कुछ नई तस्वीरें सामने आई हैं जिन पर भी सोशल मीडिया यूजर्स जमकर कमेंट कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि उर्फी जावेद ने एक बार फिर अपनी ड्रेस से लोगो को हैरान कर दिया है. यहां पर उर्फी जावेद की नई तस्वीरें देख सकते हैं.

 

 

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उर्फी ने किया नया एक्सपेरिमेंट

उर्फी जावेद आए दिन अपने कपड़ों से एक्सपेरिमेंट करती रहती हैं. वह हर बार अपने फैंस के लिए कुछ ऐसा करती हैं कि लोग यकीं नहीं कर पाते हैं. बोल्डनेस की हर हद पार करके कई बार टॉपलेस होने वाली उर्फी जावेद ऐसी कपड़े पहनती हैं कि देखने वालों की सांसें अटक जाती हैं. कई बार तो उनके कपड़े देखकर लगता है कि जरा सा सरक गए तो वह माल फंक्शन शिकार हो सकती हैं.   उर्फी जावेद टीवी शोज और मूवीज में काम से नहीं बल्कि अपने बोल्ड अवतारों से सोशल मीडिया की दुनिया में धमाल मचाती रहती हैं. वह अपने हर अंदाज से इंटरनेट पर सनसनी मचाती रहती हैं. उर्फी जावेद अपनी बोल्डनेस से हॉलीवुड हीरोइनों से भी कई कदम आगे निकल चुकी हैं.

 

लोग रह गए दंग

उर्फी जावेद ऐसे-ऐसे कपड़े पहनती हैं कि कई बार देखने वाले भी शर्म से अपनी आंखें बंद कर लेते हैं. प्राइवेट पार्ट के अलावा कोई भी अंग शायद ही उर्फी का तन ढका होता है. कई बार तो वह ट्रांसपैरेंट कपड़े ही पहनकर सबके सामने आ जाती हैं. बेबाक बयानों के चलते कई बार उर्फी जावेद पर एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है. उनके पहनावे और बयानों के चलते ट्रोलर्स उन्हें अक्सर ही निशाने पर लिए रहते हैं.

‘बिग बॉस ओटीटी’ के घर से निकलकर लाइमलाइट में आने वाली उर्फी जावेद का एक वीडियो एक बार फिर से इंटरनेट पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह महज एक डोरी पर टिका टॉप पहनकर स्नूकर खेलती नजर आ रही हैं. ऑरेंज कलर के फ्रंट पर डोरी पर टिके टॉप में उर्फी जावेद को स्नूकर खेलते देख उनके फैंस के दिल धड़क उठे. इस वीडियो में गेमिंग का हुनर दिखाते हुए उर्फी जावेद ग्लैमर और बोल्डनेस का तड़का लगा रही हैं. उर्फी जावेद इस वीडियो में बहुत हॉट लग रही हैं.

Winter Special: Chinese Food के हैं शौकीन तो घर पर बनाएं वेज स्प्रिंग रोल

अक्सर लोग बाहर की चीजें खाना पसंद करते है जिनमें चाइनिज फूड सबसे ज्यादा लोग पसंद करते हैं, जिसें खाने के लिए वे रेस्टोरेंट और होटल में जाते हैं. पर अगर हम वही चाइनिज फूड घर पर बनाएं तो आपको बाहर के खाने की तरह हेल्थ की चिंता नहीं होगी क्योंकि वह खाना आप अपने तरीके से बनाएंगे. आज हम आपको रेसिपी बताएंगें स्प्रिंग रोल की. जिसे आप शाम के नाश्ते में अपने बच्चों को सर्व कर सकती हैं.

सामग्री

मैदा – 100 ग्राम,

पत्ता गोभी – 200 ग्राम,

पनीर – 100 ग्राम (मैश किया हुआ),

हरी मिर्च – 1 (बारीक कटी),

अदरक – एक छोटा टुकड़ा (कद्दूकस किया हुआ)

सोया सौस – 1 छोटा चम्मच,

लाल मिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच,

काली मिर्च पाउडर– 1/4 छोटा चम्मच,

अजीनोमोटो – 1/4 छोटा चम्मच,

तेल – स्प्रिंग रोल तलने के लिये,

नमक – स्वादानुसार

स्प्रिंग रोल बनाने का तरीका

– सबसे पहले मैदे को छान लें, फिर उसमें मैदा के आयतन का डेढ़ गुना पानी (एक कप मैदा के लिए लगभग डेढ़ कप पानी) डालकर पतला और चिकना घोल बना लें. अब घोल को एक घंटे के लिये ढ़ककर रख दें, जिससे मैदा अच्छी तरह से फूल जाए।

-अब एक कढ़ाई को गैस पर गर्म करें. कढ़ाई गर्म होने पर उसमें एक छोटा चम्मच तेल डालें और उसे गर्म करें. तेल गर्म होने पर उसमें कटा हुआ पत्ता गोभी, पनीर, हरी मिर्च और अदरक डालें और मध्यम आंच पर दो मिनट तक भून लें.

-इसके बाद लाल मिर्च, काली मिर्च, अजीनोमोटो, सोया सौस और नमक डालें और अच्छी तरह से मिला लें. अब गैस बंद कर दें.

-अब स्प्रिंग रोल को कवर करने वाले रैपर को बनाने की बारी है. इसके लिए एक नौनस्टिक तवा को गरम करें और उसपर थोड़ा सा तेल डालकर उसे पूरे तवा पर फैला दें. उसके बाद एक चम्मच में घोल लें और उसे तवे पर डालकर चम्मच की सहायता से दोसा की तरह पूरे तवे पर फैला दें.

-गैस की आंच धीमी रखें और रैपर को सिंकने दें. जब रैपर के ऊपरी सतह कलर बदलने लगे और उसके किनारे तवे को छोड़ने लगें, तब उसे तवा से उठा लें और एक तेल लगी प्लेट पर रख दें.

-रैपर तैयार होने के बाद उसके ऊपर दो बड़े चम्मच भरावन रखें और उसे बीच के हिस्से में आगे से पीछे की ओर फैला दें. अब रैपर के दायें और बायें दोंनो सिरों को अंदर की ओर थोड़ा-थोड़ा मोड़ दें और फिर उसे ऊपर की ओर से मोड़ते हुये रोल बना लें.

-ऐसे ही जब सारे रोल तैयार हो जाएं, तो एक कढाई में एक बड़ा चम्मच तेल डालें और उसे गरम करें. तेल गरम होने पर उसमें दो स्प्रिंग रोल डालें और उलट-पलट कर गोल्डेन ब्राउन होने तक सेंक लें. यदि आप चाहें, तो इन्हें पकौ‍डों की तरह डीप फ्राई भी कर सकते हैं.

Washing Machine में कपड़ों के अलावा धो सकते हैं ये 6 चीजें, पढ़ें खबर

आप रोजाना कितने काम करती हैं. सुबह सबसे पहले उठती हैं और रात को सबको सुलाकर ही सोती हैं. सारा दिन दूसरों की जिन्दगी को आसान बनाने और संवारने में बिता देती हैं. जब भी खुद की बात आए तो कोई न कोई बहाना और फिर दोबारा बस दूसरों के लिए ही जीना. आपके रोजमर्रा के कामकाज को आसान करने के लिए बहुत सारी मशीनें हैं. वाशिंग मशीन से पूरे घर के कपड़ों को धोना काफी आसान हो जाता है. पर क्या आप जानती हैं कि वाशिंग मशीन में कपड़ों के अलावा भी बहुत कुछ धोया जा सकता है.

इन चीजों को भी धो सकते हैं वाशिंग मशीन में-

1. स्नीकर्स

स्नीकर्स पहनने में आरामदायक होने के साथ ही ट्रेंडी लुक भी देते हैं. रनिंग शूज तो हमारी जिन्दगी का जरूरी हिस्सा हैं. पर स्नीकर्स और रनिंग शूज को साफ करने में काफी मेहनत लगती है. अगर स्नीकर्स व्हाइट हो तो डबल मेहनत लगती है. पर आप अपने स्नीकर्स और रनिंग शूज को वाशिंग मशीन में भी धो सकती हैं. स्नीकर्स और शूज के लेस और सोल को हटा दें. अब इन्हें, टावल और रैग्स के साथ वाशिंग मशीन में डाल दें. स्नीकर्स को ड्रायर में नहीं बल्कि हवा में ही सुखाएं.

2. लंच बॉक्स

लंच बॉक्स को आप हाथों से या फिर डिशवाशर में धोती होंगी. लंच बॉक्स पर रोजाना क्या कुछ नहीं बीतता. पर आप वाशिंग मशीन में भी इन्हें आसानी से धो सकती हैं. लंच बॉक्स को टावल के साथ ही कोल्ड वाटर साइकल में डालें. लंच बॉक्स को भी ड्रायर में न सुखाएं.

3. योगा मैट्स

गंदे पड़े योगा मैट से आपको स्वास्थ्य लाभ कभी नहीं होगा. योगा मैट को भी आप वाशिंग मशीन में बड़ी आसानी से धो सकती हैं. ध्यान रहे योगा मैट को अकेले न धोयें. बेडशीट्स, टावल के साथ ही योगा मैट को भी कोल्ड वाटर साइकल में डालें. योगा मैट को हवा में सुखाएं और अगली बार फ्रेश मैट पर ही योगा और ऐक्सरसाइज करें.

4. कैप

बच्चे हो या बड़े कैप या टोपी तो सभी लगाते हैं. चाहे धूप से बचना हो या अपने गंजे सर को छिपाना हो, कैप का इस्तेमाल सभी करते हैं. पर कैप की सफाई में मशक्कत आप ही को करनी पड़ती है. आप कैप को भी वाशिंग मशीन में धो सकती हैं. कोल्ड वाटर के एक जेंटल साइकल से आपका काम हो जाएगा. समय और मेहनत दोनों बच जाएंगे.

5. स्टफ्ड टोय

बच्चों की सबसे चहेती चीजों में से एक है उनके स्टफ्ड टोय. जाहिर सी बात है आपके बच्चे जिसके साथ जितना वक्त बिताएंगे, वे चीजें उतनी ही गंदी होगी. आप स्टफ्ड टोय को भी वाशिंग मशीन में धो सकती हैं. पर खिलौनों पर लिखे निर्देशों का पालन करें. अगर मशीन वाश करने से मना किया गया है तो गल्ती से भी टोय को मशीन में न धोयें.

6. तकिए

तकिए के खोल ही नहीं. आप तकिए को भी वाशिंग मशीन में धो सकते हैं. अब आप कहेंगी कि तकिए तो बहुत सॉफ्ट होते हैं और मशीन में धोने से खराब हो जाएंगे. पर ऐसा नहीं है. एक साथ 2 तकियों को मशीन में डालें और उन्हें वार्म जेंटल वाश दें. तेज धूप में सुखाएं.

तो अगली बार अपने कंधों का जरा सा भार अपने वाशिंग मशीन पर डाल दें.

मैरिड लाइफ से जुड़ी प्रौब्लम के बारे में बताएं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय अविवाहिता युवती हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या प्रथम बार सैक्स करते समय ब्लीडिंग होनी जरूरी है और क्या उस समय दर्द भी होता है? मेरे मन में इस बात को ले कर अनेक डर व शंकाएं हैं. कृपया समाधान करें.

जवाब

पहली बार इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग हो यह जरूरी नहीं और न ही इसे वर्जिनिटी के साथ जोड़ें. कुछ लड़कियों को पहली बार सैक्स करते समय स्पौटिंग होती है, कुछ को कुछ घंटों तक ब्लीडिंग होती है तो कुछ को मासिकधर्म की तरह होती है. दरअसल, ब्लीडिंग होने का कारण सैक्स करते समय हाइमन का ब्रेक होना होता है. कई बार लड़कियों में हाइमन घुड़सवारी, मैस्ट्रूबेरेशन या टैंपून के प्रयोग से भी ब्रेक हो जाता है. सो, उन लड़कियों को फर्स्ट इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग नहीं होती. जहां तक पहली बार सैक्स के समय दर्द का सवाल है, वह भी तब होता है जब महिला शारीरिक व भावनात्मक रूप से पूरी तरह से तैयार न हो. अगर सैक्स से पहले फोरप्ले किया जाए और युवती इमोशनली और फिजिकली कंफर्टेबल हो तो दर्द नहीं होता. आप चाहें तो अपनी समस्या के लिए किसी गाइनीकोलौजिस्ट से भी संपर्क कर सकती हैं.

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कई दिनों से निशा की बढ़ती व्यस्तता नितिन की बेचैनी बढ़ा रही थी. जब भी नितिन सेक्स के मूड में होता वह उस की व्यस्तता के कारण यौनसुख प्राप्त नहीं कर पाता. यह नहीं कि निशा को इस की जरूरत महसूस नहीं होती, पर वह अपने काम को अपनी इस जरूरत से अधिक महत्त्व देती. इस से नितिन की यौन भावनाएं आहत होतीं.  धीरेधीरे वह यौन कुंठा का शिकार हो गया. अकसर व्यस्त दंपती अपनी सेक्सलाइफ का पूर्णरूप से आनंद नहीं उठा पाते, क्योंकि अगर वे सेक्स करते भी हैं तो किसी कार्य को निबटाने की तरह. न तो उन्हें एकदूसरे से रोमांटिक बातें करने की फुरसत होती, न ही वे परस्पर छेड़छाड़ का मजा ले पाते. सेक्स विशेषज्ञों का मानना है कि सेक्स में चरमसुख की प्राप्ति तभी हो पाती है जब पतिपत्नी दोनों पूरी तरह उत्तेजित हों और यह उत्तेजना उन में तभी आ सकती है, जब वे सेक्स से पहले आवश्यक क्रियाएं जैसे परस्पर छेड़छाड़, एकदूसरे के गुप्त अंगों को सहलाना, होंठ चूमना, आलिंगनबद्ध होना इत्यादि करें. इन क्रियाओं से सेक्सग्रंथियां तेजी से काम करना शुरू कर देती हैं व पतिपत्नी में अत्यधिक उत्तेजना पैदा हो जाती है, जो उन्हें चरमसुख प्रदान करने में सहायक होती है. पर जो दंपती अपने काम को सेक्स से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानते हैं, वे ऐसा कदापि नहीं कर पाते.

घातक स्थिति है यह

राघव की जौब ऐसी है कि वह रात को 11 बजे से पहले घर नहीं लौट पाता. उस की पत्नी ट्विंकल भी नौकरी करती है. दोनों इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें एकदूसरे से ढंग से बात  करने तक की फुरसत नहीं मिलती. सेक्स को भी दोनों अपने जौबवर्क की तरह ही निबटाते हैं. नतीजा यह होता है कि वे कई सप्ताह तक शारीरिक तौर पर एकदूसरे के साथ जुड़ते ही नहीं, क्योंकि सेक्स में उन्हें बिलकुल भी आनंद नहीं आता और इसी कारण उन की इस में रुचि घटती जा रही है. अधिक व्यस्त रहने के कारण पतिपत्नी लगातार अपनी यौनइच्छाओं को दबाते रहते हैं, क्योंकि कई बार ऐसी स्थिति भी आती है कि उन में से एक जल्दी फ्री हो जाता है व दूसरे के साथ अपना समय गुजारना चाहता है, शारीरिक सुख प्राप्त करना चाहता है परंतु उस की यह चाहत पूरी नहीं हो पाती, क्योंकि उस का साथी बिजी है. ऐसे में पतिपत्नी न तो कभी अपनी यौन भावनाओं को एकदूसरे से शेयर कर पाते हैं, न ही सेक्स के विषय पर एकदूसरे से खुल कर बातचीत करते हैं. या तो वे लगातार सेक्स को नजरअंदाज करते हैं या इसे सिर्फ निबटाते हैं. ऐसी स्थिति में उन के सेक्स संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ता है. धीरेधीरे सेक्स उन्हें बोर करने लगता है.

एक और आकाश: भाग 1- क्या हुआ था ज्योति के साथ

उस गली में बहुत से मकान थे. उन तमाम मकानों में उस एक मकान का अस्तित्व सब से अलग था, जिस में वह रहती थी. उस के छोटे से घर का अपना इतिहास था. अपने जीवन के कितने उतारचढ़ाव उस ने उसी घर में देखे थे. सुख की तरह दुख की घडि़यों को भी हंस कर गले लगाने की प्रेरणा भी उसे उसी घर ने दी थी.

कम बोलना और तटस्थ रहते हुए जीवन जीना उस का स्वभाव था. फिर भी दिन हो या रात, दूसरों की मुसीबत में काम आने के लिए वह अवश्य पहुंच जाती थी. लोगों को आश्चर्य था कि अपने को विधवा बताने वाली उस शांति मूर्ति ने स्वयं के लिए कभी किसी से कोई सहायता नहीं चाही थी.

अपने एकमात्र पुत्र के साथ उस घर की छोटी सी दुनिया में खोए रह कर वह अपने संबंधों द्वारा अपने नाम को भी सार्थक करती रहती थी. उस का नाम ज्योति था और उस के बेटे का नाम प्रकाश था. ज्योति जो बुझने वाली ही थी कि उस में अंतर्निहित प्रकाश ने उसे नई जगमगाहट के साथ जलते रहने की प्रेरणा दे कर बुझने से बचा लिया था.

तब से वह ज्योति अपने प्रकाश के साथ आलोकित थी. जीवन के एकाकी- पन की भयावहता को वह अपने साहस और अपनी व्यस्तता के क्षणों में डुबो चुकी थी. प्यार, कर्तव्य और ममता के आंचल तले अपने बेटे के जीवन की रिक्तताओं को पूर्णता में बदलते रहना ही उस का एकमात्र उद्देश्य था.

उस दिन ज्योति के बच्चे की 12वीं वर्षगांठ थी. पिछली सारी रात उस की बंद आंखों में गुजरे 11 वर्षों का पूरा जीवन चित्रपट की तरह आताजाता रहा था. उन आवाजों, तानों, व्यंग्यों, कटाक्षों और विषम झंझावातों के क्षण मन में कोलाहल भरते रहे थे, जिन के पुल वह पार कर चुकी थी. उस जैसी युवतियों को समाज जो कुछ युगों से देता आया था, वह उस ने भी पाया था. अंतर केवल इतना था कि उस ने समाज से पाया हुआ कोई उपहार स्वीकार नहीं किया था. वह चलती रही थी अपने ही बनाए हुए रास्ते पर. उस के मन में समाज की परंपरागत घिनौनी तसवीर न थी, उसे तलाश थी उस साफ- सुथरे समाज की, जिस का आधार प्रतिशोध नहीं, मानवीय हो, उदार हो, न्यायप्रिय और स्वार्थरहित हो.

अपनी जिंदगी याद करतेकरते अनायास ज्योति का मन कहीं पीछे क्यों लौट चला था, वह स्वयं नहीं जान पाई थी. मन जहां जा कर ठहरा, वहां सब से पहला चित्र उस की अपनी मां का उभरा था. उसे बच्चे की वर्षगांठ मनाने की परंपरा और संस्कार उसी मां ने दिए थे. वह स्वयं उस का और उस के भाई का जन्मदिन एक त्योहार की तरह मनाती थीं. याद करतेकरते मन में कुछ ऐसी भी कसक उठी जो आंखों के द्वारों से आंसू बन कर बहने के लिए आतुर हो उठी. उस ने आंखें पोंछ डालीं. यादों का सिलसिला चलता रहा…

काश, कहीं मां मिल जातीं. केवल उस दिन के लिए ही मिल जातीं. मां प्रकाश को भी उसी तरह आशीष देतीं जैसे उसे दिया करती थीं. उसे विश्वास था कि बड़ेबूढ़ों के आशीर्वाद में कोई अदृश्य शक्ति होती है. भले ही उस की मां के आशीर्वाद उस के अपने जीवन में फलदायक न हो सके हों, परंतु वह अब जो कुछ भी थी, उस में मां के आशीर्वाद के प्रभाव का अंश, बचपन में मां से मिले संस्कारों का असर अवश्य रहा होगा.

मन रुक न सका. सुबह होतेहोते ज्योति कागजकलम ले कर बैठ गई थी. भावनाओं के मोती शब्दों के रूप में कागज पर बिखरने लगे थे. 11 वर्ष की लंबी अवधि में मां के नाम ज्योति का यह पहला पत्र था. उसे भरोसा था कि वह उस पत्र को लिखने के बाद पोस्ट अवश्य करेगी. हमेशा की तरह वह पत्र टुकड़ों में बदल जाए, अब वह ऐसा नहीं होने देगी.

वह लिखे जा रही थी और आंखें पोंछती जा रही थी. कैसी विडंबना थी कि आज उसे उस घर की धुंधली पड़ गई छवि को नए रूप में याद करना पड़ रहा था जो कभी उस का अपना घर भी था. उस में वह 16 वर्ष की आयु तक पलीबढ़ी, पढ़ीलिखी थी. उस की बनाई हुई पेंटिंगों से उस घर की बैठक की दीवारों की शोभा बढ़ी थी. उस घर के आंगन में उस के नन्हेनन्हे हाथों ने एक नन्हा सा आम का पौधा लगाया था.

वह कल्पना में अपना अतीत स्पष्ट देख रही थी. पत्र को अधूरा छोड़ कर होंठों के बीच कलम दबाए हुए आंसू भरी आंखों के साथ सोच रही थी. मां बहुत बूढ़ी हो चली थीं, शायद अपनी उम्र से अधिक. पिता के चेहरे पर कुछ रेखाएं बढ़ जाने के बावजूद उन की आवाज में अब भी वही रोब था, शान थी और अपने ऊंचे खानदान में होने का अहंकार था. वह अपने समाज और खानदान में वयोवृद्ध सदस्य की तरह आदर पा रहे थे. भाई के सिर के बाल सफेद होने लगे थे. भाभी  आ गई थीं. घर के आंगन में नन्हेमुन्ने भतीजेभतीजी खेल रहे थे.

सोच रही थी ज्योति. बैठक की दीवार पर लगी पेंटिंगें हटाई नहीं गई थीं. शायद इसलिए कि घर वालों की दृष्टि में वह भले ही मर चुकी हो, लेकिन उन पेंटिंगों के बहाने उस की याद जिंदा रही. नित्य उन की धूलगर्द झाड़तेपोंछते समय उसे जरूर याद किया जाता होगा. कभी आंगन में लगाया गया आम का पौधा बढ़तेबढ़ते आज वृक्ष का रूप ले चुका था. उस में फल आने लगे थे और प्रत्येक फल की मिठास में एक विशेष मिठास थी, उस की याद की, उस घर की बेटी की यादों की.

इस तरह वह पत्र पूरा हो चला था, जगहजगह आंखों से टपके आंसू की मुहरों के साथ. उस पत्र में ज्योति ने अपने अब तक के जीवन की पुस्तक का एकएक पृष्ठ खोल कर रख दिया था, कहीं कोई दाग न था. वह पत्र मात्र पत्र न था, कुछ सिद्धांतों का दस्तावेज था. उस के अपने आत्मविश्वास की प्रतिछवि था वह. उस में आह्वान था एक नए आकार का, जिस के तले नई सुबहें होती हों, नई रातें आती हों. उस के तले जीने वाला जीवन, जीवन कहे जाने योग्य हो. ऐसा जीवन, जो केवल अपने लिए न हो कर दूसरों के लिए भी हो.

ज्योति ने उस पत्र की प्रतिलिपि को अपने पास सहेज कर एक हितैषी द्वारा दूसरे शहर के डाकघर से भिजवा दिया था.

7 दिन बीत चुके थे. इस बीच ज्योति के मन के भीतर विचित्र अंतर्द्वंद्व चलता रहा था. कौन जाने उस के पत्र की प्रतिक्रिया घर वालों पर क्या हुई होगी. पत्र अब तक तो पहुंच चुका होगा. 33 किलोमीटर दूर स्थित दूसरे शहर के डाकघर से पत्र भेजने का अभिप्राय केवल इतना था कि वह पत्र का उत्तर आए बिना, अपना असली पता नहीं देना चाहती थी. जवाब के लिए भी उस ने दूसरे शहर में रहने वाले एक ऐसे सज्जन महेंद्र का पता दिया था जो उसे असली पते पर पत्र भेज देते.

ज्योति एकएक दिन उंगलियों पर गिनती रही थी. अब तक तो पत्रोत्तर आ जाना चाहिए था. क्यों नहीं आया था? उस के पत्र ने घर की शांति तो नहीं भंग कर दी थी? नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. निश्चय ही उस के हाथ की लिखावट देखते ही उस की मां ने पत्र को चूम लिया होगा. फिर खूब रोई होंगी. पिता को भलाबुरा सुनाया होगा. खुशामद की होगी कि जा कर बेटी को लिवा लाएं. पिता ने कहा होगा कि बेटी ने सौगंध दी है कि उसे केवल पत्रोत्तर चाहिए. उत्तर के स्थान पर कोई उसे लिवाने न आए. यहां आना या न आना, उस का अपना निर्णय होगा.

फिर भी पिता के मन में छटपटाहट जागी होगी कि चल कर देखें अपनी बेटी को. अनायास पिता का भूलाबिसरा वास्तविक रूप उस को याद आ गया था. नहीं, नहीं, पिता मुझ तक आएं यह उन की शान के विरुद्ध होगा. पत्र पढ़ कर जब मां रोई होंगी तब पिता की दबंग आवाज ने मां को डांट दिया होगा. परंतु वह खुद भी भावुक होने से न बच पाए होंगे.

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Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 1

आज रोहित ने मु झ से वह कह दिया जिसे शायद मैं शायद सुनना भी चाहती थी और शायद नहीं भी. दिल तो कह रहा था कि उसी क्षण उस के साथ हो ले, पर हमेशा की तरह दिमाग ने उसे फिर जकड़ लिया, और हमेशा की तरह दिल हार गया. हालांकि वह उदास हो गया पर उदास होना तो इस दिल की नियति ही थी. जब भी मेरे दिल ने उन्मुक्त आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरना चाही, जब भी मेरे दिल ने गुब्बारे की तरह हलका हो कर बिना कुछ सोचे, बिना कुछ सम झे हवा के वेग के साथ अपने को खुले आसमान में छोड़ना चाहा या जब भी मेरे दिल ने रोहित की बांहों में छिप कर जीभर कर रो लेना चाहा, हर बार इस दिमाग ने मेरे मन की भावनाओं को इतना जकड़ लिया कि मन बेचारा मन मार कर ही रह गया. मैं आखिर ऐसी क्यों हूं? मात्र 23 वर्ष की तो हुई हूं. मेरी उम्र की लड़कियां जिंदगी को कितना खुल कर जीती हैं, उठती लहरों की तरह लापरवाह, सुबह की पहली किरण की तरह उम्मीदों से भरी, पलपल को खुल कर जीती हैं. आखिर यह सब मेरी नियति में क्यों नहीं? परंतु मैं नियति को दोष क्यों दूं?

आखिर किस ने मु झे रोका है? आखिर किस को मेरी चिंता है? पापा, जिन से एक छत के नीचे रहते हुए भी शायद ही कभी मुलाकात होती है, या छोटी मां जिन्होंने न ही मु झे कभी रोका है, न ही कभी किसी बात के लिए टोका है. हम तीनों कहने को तो एक ही घर में रहते थे पर परिवार जैसा कुछ नहीं हमारे बीच, बिलकुल पटरियों की तरह जो एकसाथ रह कर भी कभी नहीं मिलतीं.

अपने कमरे में बैठी मैं आज जब अपने मन के डर को कुरेदना चाहती थी, उस से जीतना चाहती थी, तब अनायास ही मेरी नजर मां की तसवीर पर पड़ी. कितना प्यार करती थीं मु झ से, मेरी पसंद का भोजन बनाने से ले कर मु झे पार्क में ले कर जाना, मेरे साथ खेलना, मु झे पढ़ाना, मानो उन की दुनिया मु झ से शुरू हो कर मु झ पर ही खत्म होती थी. पापा तो हो कर भी कभी नहीं होते थे. मैं ने कई बार मां को पापा के इंतजार में आंसू बहाते देखा. कई बार मैं उन से कहती, ‘मां, आप पापा के लिए क्यों रोती हैं? क्यों हमेशा मेरे जन्मदिन का केक काटने से पहले उन से बारबार घर आने की गुहार लगाती हैं, जबकि पापा कभी नहीं आते और कभी घर आते भी हैं तो अपने कमरे बंद रहते हैं. मां, आप पापा को छोड़ क्यों नहीं देतीं?’

मेरे ऐसा कहने पर मां मु झे प्यार से सम झातीं, ‘बेटी, मैं ने तुम्हारे पिता को अपना सबकुछ माना है. उन की महत्त्वाकांक्षाओं ने उन के रिश्तों की जगह ले ली है. मु झे उस दिन का इंतजार करना है जब उन का यह भ्रम टूटे कि वे अपने पैसों से सबकुछ खरीद सकते हैं. यदि हम लोग उन्हें छोड़ कर चले जाएंगे तो कल जब उन का यह भ्रम टूटेगा, वे अकेले पड़ जाएंगे. तब उन के साथ कौन होगा? और यह मैं नहीं देख सकती. मु झे अपने प्यार और समर्पण पर पूर्ण विश्वास है, वह दिन जरूर आएगा.’

11 वर्ष की आयु में मां की ये दलीलें मु झे बिलकुल सम झ में नहीं आतीं. आज याद करती हूं तो लगता है, इतना प्यार और इतना समर्पण, इतना निश्छल प्रेम और उस प्रेम को पाने के लिए इतना धैर्य, कैसे कर पातीं थीं मां ये सब? और आखिर क्यों करती थीं? क्यों उन्होंने उस इंसान के साथ अपनी जिंदगी खराब कर ली जिस की नजरों में मां की कोई इज्जत नहीं थी. जिस की नजरों में मां के लिए कोई प्यार नहीं था और न ही प्यार था अपनी बेटी के लिए.

वह इंसान तो केवल पैसों की मशीन बन कर रह गया था जिस के भीतर भावनाओं ने शायद पनपना भी बंद कर दिया था. और एक दिन अचानक कार ऐक्सिडैंट में मु झ से वह ममता की निर्मल छाया भी छिन गई. मात्र 12 वर्ष की थी मैं, खूब रोई, चिल्लाई पर मेरी पीड़ा सुनने वाला कौन था. जितनी मु झे पीड़ा थी उतना क्रोध भी था. क्रोध उस पिता पर जिन्होंने मेरी मां को आखिरी बार भी देखना उचित नहीं सम झा. विदेश गए थे वे, जब यह दुर्घटना घटी. मैं ने पापा से रोरो कर जल्दी से जल्दी आने की अपील की परंतु वे मु झे टालते रहे और अंत में नानाजी ने मां की अंत्येष्टि की. याद है मु झे कितना बिलखबिलख कर रोए थे नानाजी.

बारबार अपनी बेटी के मृत शरीर को देख कर माफी मांगते ही रहे कि कैसे उन्होंने अपनी फूल सी कोमल बेटी की शादी इस इंसान के साथ कर दी. उस के बाद नानाजी मु झे अपने साथ ले गए. परंतु कुछ ही वक्त बाद पश्चात्ताप में वे भी इस कदर जले कि यह प्यारभरा साया भी मु झ से छिन गया. तब कहीं जा कर पापा आए और मु झे अपने साथ घर ले गए. मैं अपने पापा से लिपट कर खूब रोई थी. तब पहली बार पापा ने मु झ से कहा था, ‘मां चली गईं तो क्या हुआ? तुम्हारे पापा हैं तुम्हारे पास. सब ठीक हो जाएगा, बेटा. हम जल्दी ही बंगले में शिफ्ट हो रहे हैं. वहां हमारा अपना बागान होगा. तुम वहां खूब खेलना.’

पापा आज पहली बार मु झ से प्यार से बोले थे. मु झे लगा कि शायद मां की तपस्या रंग ला रही है. शायद सच में पापा बदल गए हैं. शायद मां के जाने के बाद उन्हें अपनी गलती महसूस हुई. लेकिन, कुछ ही वक्त के बाद मैं यह सम झ गई कि ऐसा कुछ नहीं था.

पापा जैसे थे वैसे ही हैं. उन्होंने मु झे आश्रय जरूर दिया परंतु कभी मु झे स्नेह नहीं दिया. हमेशा की तरह फिर उन के पास समय नहीं था. धीरेधीरे अकेले रहने की मेरी आदत ही पड़ती गई. घर से स्कूल और स्कूल से घर. पापा शायद ही कभी मेरे स्कूल आए होंगे. न कभी अच्छे अंक लाने से मेरी पीठ थपथपाई गई, न ही कभी बुरे अंक लाने पर डांटा. हां, स्कूल में अन्य बच्चों के मातापिता को देखती तो बहुत तकलीफ होती. मां तो नहीं थीं पर पिता थे मेरे, जो हो कर भी नहीं थे.

कई बार टीचर ने मु झ से कहा, ‘प्रीति, तुम अपने पिता से कहना कि वे पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आएं, सभी आते हैं.’ मैं चुप ही रहती. मानो मैं मन से हार चुकी थी. कौन पिता? कैसे पिता? धीरेधीरे ये सब खत्म हो गया. अब कोई मु झ से कुछ नहीं कहता. स्कूल वालों को टाइम पर फीस मिल रही थी और अब मेरे पिता शहर के जानेमाने रईस थे. उन्हें कोई क्या सिखाता. इसी बीच मेरी आया ने मु झे बताया कि पापा फिर शादी करने वाले हैं.

मेरा किशोरमन अपनी मां की जगह किसी और को कैसे दे सकता था. पापा से तो मैं ने कुछ नहीं कहा. परंतु मन ही मन ठान लिया कि वो औरत जो भी हो, पापा की पत्नी तो बन सकती है परंतु मेरी मां नहीं. मैं अपनी मां की जगह किसी और को कभी नहीं दूंगी. पापा ने मां की मृत्यु से 9 महीने बाद ही दूसरी शादी कर ली. वह कौन थी? कैसी थी? न तो मैं जानती थी और न ही जानना चाहती थी. मेरे स्कूल में कई लोग मु झ से पूछते लेकिन मैं चुप रहती. फिर उन्होंने पूछना भी बंद कर दिया. मैं कहीं न कहीं हीनभावना से ग्रस्त रहने लगी. मैं लोगों की भीड़ से बस भाग जाना चाहती थी. अकेलापन ही धीरेधीरे मु झे अपना सा लगने लगा. खैर, पापा ने छोटी मां से मेरा परिचय करवाया. ‘प्रीति, इन से मिलो. इन का नाम आशा है और आज से यही तुम्हारी मां हैं.’ मैं चुप रही. एक नजर भी उठा कर उस आशा को नहीं देखा. मैं अब घर में और कैद रहने लगी. स्कूल से आते ही अपने कमरे में चली जाती. बस, कभीकभार आशा आया से कुछ बात कर लेती. छोटी मां ने कभी मु झ से कुछ बात करने की कोशिश नहीं की. और समय गुजरता गया. पापा अब भी नहीं बदले. कई बार वे छोटी मां पर चिल्लाते. लगता था कि फिर वही सब दोहराया जा रहा है.

आगे पढें  छोटी मां को कभी मैं ने पापा की कमाई पर ऐशोआराम…

Serial Story: लाइफ कोच – भाग 1

आज औफिस का काम जल्दी निबट गया, तो नकुल होटल न जा कर जुहू बीच आ गया. बहुत नाम सुन रखा था उस ने मुंबई जुहू बीच का. यहां आते ही उसे एक अजीब सी शांति महसूस हुई. लोगों की भीड़भाड़ से दूर वह एक तरफ जा कर बैठ गया और आतीजाती लहरों को देखने लगा. कितना सुकून, कितनी शांति मिल रही थी उसे बता नहीं सकता था.

सब से बड़ी बात यह कि यहां उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था और न ही कोई सिर पर सवार रहने वाला. यहां तो बस वह था और उस की तनहाई. उस का मन कर रहा था यहां कुछ दिन और ठहर जाए या पूरी उम्र यहीं गुजार दे तो भी कोई हरज नहीं है. अच्छा ही है न, कम से कम ऐसे इंसान से तो छुटकारा मिल जाएगा जो हरदम उस के पीछे पड़ा रहता है. लेकिन यह संभव कहां था.

खैर, एक गहरी सांस लेते हुए नकुल आतेजाते लोगों को, भेलपूरी, पानीपूरी, सैंडविच का मजा लेते देखने लगा. अच्छा लग रहा था उसे. वहीं उधर एक जोड़ा दीनदुनिया से बेखबर अपने में ही मस्त नारियल पानी का मजा ले रहा था. वे जिस तरह से एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले एक ही स्ट्रो से नारियल पानी शिप कर रहे थे, उस से तो यही लग रहा था दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं. आंखों ही आंखों में दोनों जाने क्या बातें करते और फिर हंस पड़ते थे.

अच्छा है न, लोगों को पता भी नहीं चलता और 2 प्यार करने वाले आंखों ही आंखों में अपनी बातें कह देते हैं. मुसकराते हुए नकुल ने मन ही मन कहा, ‘चेहरा झठ बोल सकता है पर आंखें नहीं. यदि किसी व्यक्ति की बातों का सही और गहराई से अर्थ जानना हो तो उस के चेहरे को विशेष तौर पर आंखों को पढ़ना चाहिए. यदि 2 प्यार करने वाले आपस में एकदूसरे को अच्छी तरह समझते हैं तो उन्हें बोलने की कुछ भी जरूरत नहीं पड़ती.

कवि बिहारी अपनी कविता में ऐसे ही नहीं बोल गए हैं कि कहत, नटत, रीझत, खिजत, मिलत, खिलत, लजियात… भरे मौन में कहत हैं  नैनन ही सौ बात. हम भी तो कभी इसी तरह न्यू कपल थे. हम भी तो कभी इसी तरह एकदूसरे की आंखों को पढ़ा करते थे. लेकिन किरण ने अब मेरी आंखों को पढ़ना छोड़ दिया है, नहीं

तो क्या उसे नहीं पता चलता कि आज भी मैं उस से कितना प्यार करता हूं? सच कहूं तो वह मुझे मेरी पत्नी कम और हिटलर ज्यादा लगती है. डर लगता है मुझे उस से कि जाने कब, किस बात पर उखड़ जाए और फिर मेरा जीना हराम कर दे. छोटीछोटी बातों को बड़ा बना कर इतना ज्यादा बोलने लगती है कि मेरे कान सनसनाने लगते हैं.

नकुल अपनी सोच में डूबा हुआ था, तभी अचानक एक बौल उस से आ टकराई.

‘‘अंकल, प्लीज, थ्रो द बौल,’’ दूर खड़े उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा, तो नकुल ने अपने पैर से उस बौल को ऐसा उछाला कि वह सीधे जा कर उस बच्चे के पास पहुंच गई.

ताली बजाते हुए उस बच्चे ने कहा, ‘‘अंकल यू आर द ग्रेट,’’ सुन कर नकुल हंस पड़ा.

‘‘अंकल, जौइन मी,’’ उस 10 साल के बच्चे ने नकुल की तरफ बौल फेंकते हुए बोला तो नकुल भी जोश में आ गया और उस के साथ खेलने लगा. देखतेदेखते कुछ और लोग भी उन के साथ जुड़ गए और सब ऐसे जोश में खेलने लगे कि पूछो मत.

‘‘अंकल, यू आर सच ए ग्रेट पर्सन,’’ कह कर उस बच्चे ने ताली बजाई तो बाकी लोग भी तालियां बजाने लगे.

अपनी एक छोटी सी जीत पर आज नकुल इसलिए खुशी से झम उठा, क्योंकि

उस की काबिलीयत की तारीफ हो रही थी और यहां कोई यह बोलने वाला नहीं था कि नकुल को यह जीत तो उस की वजह से मिली है. अपने हाथ उठा कर सब को बाय कह कर नकुल आगे बढ़ गया.

‘किसी को शायद नहीं पता, पर कालेज के समय में मैं बढि़या फुटबौल प्लेयर हुआ करता था. अपने कालेज का मैं लीडर था. कालेज के ज्यादातर लड़केलड़कियां मुझ से राय लिया करते थे. पढ़ाई में भी मैं अव्वल था, इसलिए तो कालेज के प्रिंसिपल का भी मैं फैवरिट हुआ करता था. लेकिन समय के साथ सब पर धूल चढ़ गई. आज वही पुराना वाला जोश पा कर बता नहीं सकता कि अपनेआप में मैं कितना स्फूर्ति महसूस कर रहा हूं. लेकिन मैं ये सब कैसे भूल गया कि मैं एक बेहतर खिलाड़ी के साथसाथ एक आजाद सोच वाला इंसान भी हुआ करता था,’ एक गहरी सांस लेते हुए नकुल इधरउधर देखने लगा. लोग जाने लगे, पर वह वहां कुछ देर और ठहरना चाहता था, क्योंकि उसे यहां अपार शांति महसूस हो रही थी.

समुद्र किनारे रेत पर बैठ कर अपनी उंगलियों से आढ़ीतिरछी लकीरें खींचते हुए नकुल सोचने लगा कि पहले उन के बीच कितना प्यार था. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे दोनों. लेकिन आज कितना कुछ बदल गया है. आज किरण की नजरों में वह एक बेवकूफ इंसान है. कोई सलीका नहीं है उस में. कोई काम का आदमी नहीं रहा वह. ‘काश, मैं और किरण एक न हुए होते तो आज मैं वह न बन गया होता लोगों की नजरों में, जो मैं हूं ही नहीं,’ मन ही मन बोल नकुल आसमान की तरफ देखने लगा.

किरण और नकुल दोनों एक ही कंपनी में जौब करते थे. जब नकुल ने पहली बार किरण को कंपनी मीटिंग में देखा, तो उसे देखता ही रह गया. गोरी, लंबी कदकाठी, बड़ीबड़ी आंखें, खुले बाल और उस पर उस के बात करने के अंदाज से तो नकुल की आंखें ही चौंधिया गई थीं.

किरण भी नकुल का गठीला बदन, घुंघराले बाल और उस के बात करने के अंदाज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई थी. कुछ ही महीनों में दोनों की मुलाकात बढ़तेबढ़ते ऐसे मुकाम पर पहुंच गई जहां अब एक दिन भी बिना मिले उन्हें चैन नहीं पड़ता था. औफिस के बाद वे घंटों व्हाट्सऐप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करते. साथसाथ घूमनाफिरना, फिल्म देखना, शौपिंग करने जाना और छुट्टियों में किसी हिल स्टेशन पर एकदूसरे में खो जाना उन की आदतें बन चुकी थी. अकसर नकुल किरण को महंगेमहंगे गिफ्ट देता तो किरण भी उस के पसंद का उपहार लाना नहीं भूलती थी.

दीनदुनिया से बेखबर दोनों एकदूसरे की कंपनी खूब ऐंजौय करते थे. ऐसा लगता था कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं और जन्मजन्मांतर तक वे कभी एकदूसरे से अलग नहीं होंगे. दोनों इतने अच्छे और प्यारे जीवनसाथी बनेंगे कि उन का पूरा जीवन खुशनुमा हो जाएगा. किरण बड़े हक से नकुल पर और्डर पर और्डर झड़ती, तो नकुल भी हंसतेहंसते उस के सारे नखरे उठाता था.

‘‘नहीं नकुल, मुझे तो शाहरुख खान की ही फिल्म देखनी है. सोच लो, नहीं तो मैं नहीं जाऊंगी, तुम अकेले ही जाओ फिल्म देखने,’’ नाक सिकोड़ते किरण बोली.

‘‘अरे यार, तुम लड़कियां भी न… फिल्म अच्छी हो या बुरी पर देखने जाना ही है, क्योंकि उस में शाहरुख खान जो है. देखो मेरी तरफ, क्या मैं शाहरुख खान से कोई कम हूं मेरी क… क… किरण…’’ बोल कर नकुल जोर से हंसने लगा था.

उस के डायलौग पर किरण भी खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘बस… बस… बस… तुम से नहीं हो पाएगा मेरे शाहरुख… तुम तो रहने ही दो,’’

इस पर किरण को बांहों में भरते हुए नकुल बोला था कि कोई बात नहीं जो उस ने डायलौग कैसा भी मारा हो, पर किरण के लिए उस का प्यार तो सच्चा है न.

‘‘हूं… बात में दम है बौस,’’ कह कर किरण ने उस के सीने पर प्यार का एक घूंसा बरसाया.

नकुल ने खींच कर उसे अपनी मजबूत बांहों में भरते हुए चूम लिया.

सिनेमाहौल से बाहर निकलते हुए नकुल ने मुंह बनाते हुए कहा था, ‘‘मुझे फिल्म जरा भी पसंद नहीं आई.

‘‘वह तो मुझे भी नहीं आई, पर उस में शाहरुख खान तो था न,’’ बोल कर जब किरण हंसी तो नकुल उसे देखते रह गया.

आगे पढ़ें- हंसते वक्त किरण के बायां गाल पर…

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