प्यार में क्यों डूबती हैं किशोरियां

किशोरावस्था में विपरीत लिंग से प्यार होने के कारणों में सब से महत्त्वपूर्ण है इस उम्र में हारमोंस का विकास होना. इस बारे में मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि सात तालों में बंद करने के बाद भी इस वर्ग की किशोरियों को किसी के प्यार में पड़ने से नहीं रोका जा सकता. उन के अनुसार, ‘‘इस उम्र में किशोरकिशोरियों का शारीरिक विकास होता है और ऐसे हारमोंस की वृद्धि होती है जिन से मस्तिष्क प्रभावित होता है. इस के अलावा इसी बीच जननांगों का भी विकास होता है.’’

इन्हीं परिवर्तनों के कारण किशोरकिशोरियों में अपने जननांगों के प्रति उत्सुकता जागती है और किशोरियां कल्पनालोक में खोई इस परिवर्तन से आत्ममुग्ध होती रहती हैं. वे अपना अक्स किसी दूसरे में भी देखना चाहती हैं. उन की अपनी प्रशंसा उन्हें सतरंगी ख्वाब दिखाने लगती है. उम्र का यही पड़ाव उन में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण पैदा करता है.

किशोरकिशोरियां इन शारीरिक परिवर्तनों से परस्पर आकर्षित होते हैं. यही झुकाव उन्हें प्यार की मंजिल दिखा देता है. वे दोनों अपना अधिकतर समय छिपछिप कर बातें करने व एकदूसरे की जिज्ञासाएं शांत करने में बिताते हैं. उन का यह सामीप्य उन में एक सुखद अनुभूति पैदा कर देता है, जिस से वे उन्मुक्त हो कर प्यार के बंधन में बंध जाते हैं.

आखिर कुछ किशोरकिशोरियां ही इस मार्ग को क्यों अपनाते हैं? समाजशास्त्रियों का मानना है कि बच्चे के सामाजीकरण में सामाजिक, पारिवारिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है. मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है, ‘‘इस उम्र में किशोरियों की स्थिति गरम लोहे के समान होती है और जब उन का माहौल उन पर चोट करता है तो वह उसी रंग में रंग जाती हैं.’’

  1. पारिवारिक वातावरण का प्रभाव

किशोरियों को घरेलू तनाव, हर वक्त की नोकझोंक से उत्पन्न तनाव प्रभावित करता है, इस से जूझते बच्चे प्यार का सहारा खोजते हैं. ऐसे में दूसरे के प्रति आकर्षित होना सहज है. एक किशोरी ने बताया कि वह कैसे कच्ची उम्र में ही प्यार करने लगी थी. उस की सौतेली मां का व्यवहार अच्छा न था. उस के दिन भर काम करने पर भी उसे प्यार के दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते थे. इसी दौरान एक लड़का उसे विशेष रुचि से निहारता था, कई बार स्कूल जाते समय उस की प्रशंसा करता था, जबकि वह अपने घर के कड़वाहट भरे जीवन से उकता रही थी. इस लड़के से उसे असीम प्यार व सहानुभूति मिली तो वह भी उस से प्यार करने लगी.

2. स्कूल के माहौल का प्रभाव

स्कूल का माहौल भी काफी हद तक प्रभावित करता है. स्कूल में कुछ किशोरियां अपने प्यार के किस्से को बढ़ाचढ़ा कर सुनाती रहती हैं. सहेलियों की संगत उन्हें अपने रंग में रंग लेती है. ऐसे में छात्राओं में प्यार की प्रतिस्पर्धा होती भी देखी गई है. ऐसी परिस्थितियों में मांबाप की लापरवाही आग में घी का काम करती है. इस उम्र में किशोरियों को प्यार, सहानुभूति व उचित शिक्षा की जरूरत होती है. कभीकभी स्कूल जैसी पवित्र संस्था से जुड़े कुछ लोग इन किशोरियों के साथ गलत सलूक करते हैं. चूंकि बच्चे भयग्रस्त होते हैं अत: कुछ कह नहीं पाते. ऐसी परिस्थितियों पर निगाह रखना या जानकारी रखना मांबाप का कर्तव्य है. कच्ची उम्र में भय और भावना दोनों ही खतरनाक होते हैं.

3. मीडिया का प्रभाव

मीडिया भी किशोरियों को इस राह पर पहुंचाने के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है. आज हमारे सशक्त मीडिया दूरदर्शन पर शिक्षा की अपेक्षा मनोरंजन पर अधिक बल दिया जा रहा है, जिस में उत्तेजक दृश्यों की भरमार रहती है. उत्तेजक दृश्यों से उत्पन्न वासना किशोरियों को गुमराह करती है.

4. अश्लील साहित्य का प्रभाव

साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता है लेकिन आज हमारा साहित्य किशोरों की उत्तेजना भड़काने वाला अधिक होता जा रहा है. उस में अश्लील लेखन व चिंत्राकन की भरमार रहती है. रहीसही कसर अब इंटरनैट व मोबाइल ने पूरी कर दी है. इस स्थिति से निबटने के लिए किशोरियों को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है. इस मार्गदर्शन में मां का उत्तरदायित्व सब से अधिक होता है.

5. बचाव के उपाय

पेरैंट्स को चाहिए कि बेटी के साथ मित्रता का भाव रखें. उस की समस्याओं को जान कर उन का निवारण करें. किशोर बेटी के प्रति लापरवाही न बरतें. समयसमय पर मां उस से यह जानकारी लेती रहें कि उसे कोई गुमराह तो नहीं कर रहा तथा उस की कोई समस्या या जिज्ञासा तो नहीं है.

घर की समस्याओं से भी किशोरियों को दूर न रखें, क्योंकि इस से वे अछूती रहती हैं तो उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं हो पाता है. उसे बच्ची कहने मात्र से आप का दायित्व खत्म नहीं होता बल्कि उस पर दायित्व डाल देना ज्यादा बेहतर है. छोटे भाईबहनों को पढ़ाना, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना या घर के कामों में मां का हाथ बंटाना आदि ऐसे ही दायित्व हैं.

किशोरावस्था में किशोरियों को नितांत अकेला न छोडे़ं, क्योंकि एकांत कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर करता है. जहां तक हो सके उन्हें व्यस्त रखें. व्यस्त रखने का मतलब उन से भारी काम लेना नहीं अपितु कुछ रुचिकर काम उन से लिया जा सकता है. खाली समय में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जा सकती है. नाचगाने, पिकनिक, पर्वतारोहण, कंप्यूटर आदि का ज्ञान किशोरकिशोरियों की महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रियाएं हैं.

अगर किसी किशोरी को किसी किशोर से प्यार हो जाता है तो उसे प्यार से समझाएं कि यह वक्त पढ़नेलिखने का है, प्रेम करने का नहीं. उन्हें मारेंपीटें नहीं और न ही जरूरत से ज्यादा पाबंदियां लगाएं. उन का ध्यान किसी क्रिएटिव काम को करने में लगाएं.

Winter Special: सुपरफूड में छिपा है सेहत का राज

स्वास्थ्य का मसला हो या खानेपीने की चीजों की चर्चा, आजकल सुपरफूड शब्द काफी सुनने को मिलता है. आखिर यह सुपरफूड क्या है? क्या यह कोई ऐसा फूड है, जो सभी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उसी तरह हल कर देता है, जैसे किसी फिल्म में सुपरमैन तमाम समस्याओं को हल करता है?

दरअसल, सुपरफूड कोई वैज्ञानिक शब्द नहीं है, लेकिन जैसेजैसे सामान्य भोज्यपदार्थों के विशिष्ट गुण पता लगने लगे हैं, वैसेवैसे कुछ विशेषज्ञ उन्हें सुपर की श्रेणी में रखने लगे हैं. इन पदार्थों को सुपरफूड इसलिए कहा जाने लगा है, क्योंकि जरूरी पोषक तत्त्वों के अलावा उन में ऐंटीऔक्सीडैंट होते हैं, जो हमें जवां बनाए रखते हैं और कैंसर जैसे गंभीर रोगों से बचाते हैं. उन में हैल्दी फैट होते हैं ताकि हृदयरोग से बचाव हो सके. उन में फाइबर होते हैं ताकि डायबिटीज और पेट की गड़बड़ी परेशान न करे. उन में फाइटोकैमिकल्स होते हैं, जो हमें रोग नहीं लगने देते.

यहां प्रस्तुत हैं, कुछ प्रमुख सुपरफूड और उन की विशेषताएं. ये सुपरफूड की ज्यादातर सूचियों में शामिल हैं और हमारे देश में आसानी से उपलब्ध भी हैं.

  1. ब्राउन राइस

ये सफेद चावल का अनरिफाइंड रूप होते हैं. इन में प्रोटीन, थिएमाइन, कैल्सियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम, पोटैशियम और फाइबर पाए जाते हैं. डायबिटीज का खतरा कम करने के लिए ब्राउन राइस बढि़या हैं. इन में ग्लाइसेमिक रेट बहुत कम होता है और ये ब्लडशुगर को नियंत्रण में रखते हैं. इन में मौजूद सेलेनियम कैंसर, हाई कोलैस्ट्रौल दिल और हड्डियों की दिक्कत कम करता है. फाइबर से भरपूर ये चावल देर तक हमारा पेट भरा रखते हैं, जिस से ये वजन घटाने में भी सहायक हैं. आंतों के कैंसर का खतरा कम करते हैं, पथरी में भी फायदेमंद हैं. विशेषज्ञ इन्हें बेर और अन्य फलों के साथ खाने की सलाह देते हैं ताकि इन के ऐंटीऔक्सीडैंट गुणों का शरीर को पूरा फायदा मिल सके.

2. मसूर, मूंग और अन्य दालें

दालों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, फाइबर, फौस्फोरस और अनेक मिनरल्स पाए जाते हैं. अरहर की दाल में विटामिन ए और बी होते हैं और यह खून, कफ और पित्त की गड़बडि़यों को ठीक करती है. उरद की दाल कब्ज दूर करती है और शक्ति भी देती है. इसे पीस कर फोड़ाफुंसी में भी लगाया जाता है. मूंग की दाल में फाइबर होते हैं. यह आसानी से पचती है, इसलिए मरीजों के लिए फायदेमंद होती है. इस का हलवा काफी शक्ति देता है. यह आंखों के लिए भी बढि़या है. राजमा प्रोटीन का भंडार है. इस में आयरन और विटामिन बी-9 विशेष रूप से पाया जाता है. मसूर की दाल रक्त को समृद्ध करती है. यह पेट के लिए भी बहुत सही रहती है. चना हमें कब्ज, डायबिटीज, पीलिया और खून की कमी से नजात दिलाने में सहायक है. चने का आटा बालों और त्वचा के लिए भी लाभकारी है.

3. अलसी का बीज और तेल

यह ओमेगा-3 फैट्स, डाइटरी फाइबर, पोटैशियम और अनेक पोषक तत्त्वों का घर है. ओमेगा-3 फैट्स चूंकि हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के जरूरी तत्त्व होते हैं, इसलिए अलसी का बीज और तेल एक तरह से हमें संपूर्ण स्वास्थ्य देने का काम करता है. पाचनतंत्र को अच्छा करने के साथसाथ यह हाई ब्लडप्रैशर और हाई कोलैस्ट्रौल को भी कम करता है. यह हार्ट अटैक, डायबिटीज और कैंसर का खतरा कम करता है. बालों, त्वचा के दोस्त और आंखों में सूखेपन की समस्या को दूर करता है. यह मेनोपौज में भी राहत पहुंचाता है. शरीर में वसा को जलाता है.

4. ग्रीन टी

ग्रीन टी कैंसर और त्वचा कैंसर से लड़ने में सक्षम माना जाता है. इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट विटामिन सी और विटामिन ई से भी बहुत ज्यादा बेहतर पाए गए हैं. यह हृदय की कोशिकाओंकी रक्षा करती है और कोलैस्ट्रौल को कम करती है. इस का पौलीफिनोल नाम का ऐंटीऔक्सीडैंट बढ़ती उम्र पर लगाम लगाता है. वजन घटाने और मैटाबोलिक दर को बढ़ाने में सहायक है. पाया गया है कि ग्रीन टी एक दिन में शरीर की 70 कैलोरी कम कर देती है. यह हड्डियों को मजबूत करती है और आर्थ्राइटिस का खतरा कम करती है. ब्लडशुगर के स्तर को बढ़ने से रोक कर यह डायबिटीज में भी बहुत फायदा करती है. यह लिवर से भी नुकसानदायक तत्त्वों को बाहर करती है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह एचआईवी के वायरस को शरीर में फैलने से रोकती है. ग्रीन टी से भीगी रुई को कान में डालने से कान का इन्फैक्शन भी दूर होता है. यह दांतों में मौजूद बैक्टीरिया को भी मारती है यानी 1 कप चाय में गुण ही गुण.

5. ओट्स

ओट्स में मुख्य रूप से जौ, अन्य अनाज और उन के दलिया आते हैं. ओट्स प्रोटीन, फाइबर, मैग्नीशियम, मैगनीज और विटामिन बी से भरपूर होते हैं. ये हड्डियों का विकास करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं. ये बहुत जल्दी हमारा पेट भर देते हैं और इन्हें खा कर काफी देर तक भूख नहीं लगती. ओट्स में सब से ज्यादा घुलनशील फाइबर होते हैं, जिस से ये बुरे कोलैस्ट्रौल को कम करते हैं. इन्हीं फाइबरों की वजह से ओट्स डायबिटीज में भी बहुत राहत देते हैं और पाचनतंत्र को दुरुस्त रखते हैं. ये त्वचा के बहुत अच्छे दोस्त हैं. विभिन्न फेसपैक में इन का इस्तेमाल होता है. ओट्स में मौजूद लिगनेन नामक तत्त्व कैंसर और हृदयरोग का खतरा कम करता है.

6. गेहूं का अंकुर (व्हीट जर्म)

इसे पोषक तत्त्वों का गोदाम भी कहा जाता है. इस में वसा नाममात्र की होती है और कोलैस्ट्रौल होता ही नहीं. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फौलिक ऐसिड, फाइबर, विटामिन और मिनरल की भरमार होती है. यह फौलिक ऐसिड का सर्वश्रेष्ठ भंडार माना जाता है इसलिए गर्भधारण कर रही महिलाओं के लिए बहुत ही लाभकारी है. फौलिक ऐसिड दिल की बीमारी, हड्डी टूटने जैसी दिक्कतों का खतरा भी टालने का काम करता है. यह दिमाग को भी दुरुस्त रखता है. इस में एक विशेष किस्म का ऐंटीऔक्सीडैंट एरगोथियोनिआइन होता है, जो पकाने पर भी नष्ट नहीं होता. यह शरीर को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है.

शाहरूख खान की “पठान” और नेताओं की नौटंकी

शाहरूख खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म पठान आते आते ही बहुचर्चित हो गई है. मगर पठान फिल्म के मद्देनजर देश का माहौल विषाक्त करने का अपराधी कौन है यह जानना समझना जागरूक व्यक्ति के लिए जरूरी है . सच तो यह है कि किसी वस्त्र के रंग पर जिस तरह आलोचना और गरमा गरमी का माहौल देश में बनाया गया है वह कई संदेहों को पैदा करता है और बताता है कि आज भारतीय जनता पार्टी के सत्तासीन होने के बाद स्थितियां किस तरह असहिष्णु होती चली जा रही है. यह भी समझने की बात है कि सैकड़ों सालों से भारत में सभी जाति समुदाय के लोगों, धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं इसीलिए कहा भी गया है कि अनेकता में एकता भारत की विशेषता है. किसी भी सरकार अथवा राजनीतिक पार्टी को इस भावना को मजबूत करने का काम करना चाहिए लोगों में आपसी संबंध में सामंजस्य और शांति सद्भाव का संदेश देना चाहिए.

आज की कुछ एक राजनीतिक पार्टियां और उसकी इकाइयां देश का माहौल बिगाड़ने का काम कर रहे हैं जोकि सीधे-सीधे अवांछित लोगों का काम भी कहा जा सकता है.यहां यह भी सत्य है कि हाल ही में आमिर खान की भी एक फिल्म आई थी और भारतीय जनता पार्टी का दस्ता उसे मटिया मेट करने में लग गया और उनके सौभाग्य से यह फिल्म नहीं चली तो वे अपनी पीठ थपथपाने लगे यहां यह भी एक बड़ा सच है कि अगर पठान फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो जाती है तो ऐसे लोगों के गाल पर एक करारी थप्पड़ कही जा सकती है. इससे यह भी सिद्ध हो सकता है कि हमारे देश में चाहे कुछ लोग कितना ही सामाजिक धार्मिक खाई खोदने का काम करें मगर देश की जनता आवाम आपसी सौहार्द के साथ रहते आई है और आगे भी रहेगी.

दरअसल,पठान फिल्म के गाने में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के भगवा कपड़े पहन एक फिल्मांकन पर नौटंकी की जा रही है . देश की आवाम को यह समझाया जा रहा जा रहा है कि यह सब शाहरुख खान की फिल्में में इसलिए है क्योंकि वह मुसलमान है इस तरह धर्म विशेष के प्रति असहिष्णुता का बीज बोया जा रहा है जो कि भारतीय संस्कृति और ताने-बाने के खिलाफ है.

नेताओं की तलवारबाजी

पठान फिल्म के आते ही देश के चिर परिचित नेताओं के मानो ज्ञान चक्षु खुल गए हैं और वह इस पर अपनी राय कुछ इस तरह दे रहे हैं मानो नेताजी जो कह देंगे वही अंतिम सत्य है.
दरअसल, ऐसे मसलों पर नेताओं के समाचार जो सुर्खियों में प्रकाशित होते हैं और चर्चा में आ जाते हैं की जगह बौद्धिक विभूतियों के बयान प्रकाशित होने चाहिए ताकि लोगों को एक प्रेरणा मिल सके और देश का माहौल सद्भाव पूर्ण हो जाए. मगर अब नेताओं में जुबानी जंग छिड़ी हुई है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि भगवा रंग त्याग का प्रतीक है. आज उसे बजरंगी गुंडे पहन रहे हैं. बताएं कि उन्होंने क्या त्याग किया है.‌ भुपेश बघेल ने कहा -“पहनना और धारण करना दोनों में अंतर है जब कोई समाज और परिवार को त्याग देता है, उसके बाद वो भगवा या गेरुआ रंग धारण करता है, लेकिन अब वे बताएंगे कि उन्होंने समाज के लिए क्या त्याग किया है .”

दूसरी तरफ हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने भूपेश बघेल को राक्षस तक कह दिया .छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान पर हरियाणा के गृह मंत्री मानो बौखला गए और उन्हें राक्षस प्रकृति का कह दिया. वे बोले हिंदू संस्कृति का अध्ययन करें , हर युग में देवता और राक्षस रहे हैं अनिल विज ने कहा कि मुझे लगता है भूपेश बघेल आज के राक्षस प्रकृति के महानुभाव हैं. दरअसल यह समझने वाली सच्चाई है कि चाहे भूपेश बघेल हो अनिल विज दोनों ही पठान फिल्म की मूवी के संदर्भ में आपस में वाक् युद्ध में लगे हुए हैं और यही स्थिति देशभर में नेताओं के बीच बनी हुई है एक तरफ है भगवा रंग में रंगे भाजपाई और दूसरी तरफ है कांग्रेस और अन्य दल के नेता.

कारा: रमन के लिए किस हद तक गई आभा- भाग 1

आभा ने अपनेआप को इतना भारहीन पहले कभी भी महसूस नहीं किया था. कहना तो यों चाहिए कि अब तक वह अपनी चेतना के ऊपर जो एक दबाव महसूस किया करती थी, आज उस से आजादी पाने का दिन था. आज उस ने रमन को अपना फैसला सुनाने का मन बना लिया था. कंधों पर टनों बोझ लदा हो तो यात्रा करना आसान नहीं होता न? आभा भी अपनी आगे की जीवनयात्रा सुगम करना चाहती थी.

“रमन, कुछ कहना है आप से. समय निकाल कर फोन करना,” आभा ने रमन के मोबाइल पर मैसेज छोड़ा. आशा के अनुकूल 2 दिन बाद रमन का फोन आया,”अरे यार, क्या बताऊं? इन दिनों कुछ ऐसी व्यस्तता चल रही है कि समय ही नहीं मिल रहा. बेटीदामाद आए हुए हैं न. हां, तुम बताओ क्या कहने के लिए मैसेज किया था?” रमन के स्वर में अभी भी एक जल्दबाजी थी. आभा कुछ देर चुप रही मानो खुद को एक बड़े द्वंद्व के लिए तैयार कर रही हो.

“मुझ से अब यह रिश्ता नहीं निभाया जाएगा. मैं थक गई हूं,” आभा एक ही सांस में कह गई.

अब चुप होने की बारी रमन की थी. शायद वह आभा के कहे शब्दों का अर्थ तलाश करने के लिए समय ले रहा था. जैसे ही उसे आभास हुआ कि आभा क्या कहना चाह रही है, वह छटपटा गया,”यह क्या बकवास है? ऐसा क्या हो गया अचानक? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है? मैं ने तुम से पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस से अधिक मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पाऊंगा, फिर आज अचानक यह कैसी जिद है?” रमन ने अपने कथन पर जोर दे कर उसे पुष्ट करते हुए कहा. आभा कुछ नहीं बोली. शायद दर्द की अधिकता से गला अवरूद्ध हो गया था.

रमन समाज का एक प्रतिष्ठित चेहरा है. जिम्मेदार प्रशासनिक पद का आभामंडल उस के चेहरे को दिपदिपाता है. एक अच्छा साहित्यकार होना उस की आभा में और अधिक इजाफा करता है. उस के आभामंडल में आभा भी खिंची चली आई थी. हालांकि दोनों के ही अपनेअपने स्वतंत्र परिवार थे, बावजूद इस के आभा ने रमन को अपने प्रेम का पात्र चुना क्योंकि प्रेम को ले कर उस की अवधारण कुछ अलग थी. उसे लगता था कि इस दुनिया में देह नहीं बल्कि नेह का स्थान सर्वोपरि है लेकिन शायद उस की यह धारणा दुनिया की मान्यताओं से मेल नहीं खाती. रमन भी तो अपने प्रेम को सार्वजनिक रूप से कहां स्वीकार करता है? इसी कारण तो वह इतना बड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर हुई है.

“क्या प्रेम इतना निकृष्ट भाव, कोई बुरी लत या फिर कोई घृणित काम है जिसे सब के सामने स्वीकार किए जाने पर आप की मानहानि हो सकती है? यदि ऐसा है तो फिर प्रेम की उपस्थिति को खारिज किया जाना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे किसी सामाजिक अपराध को. क्यों फिर ये बड़ेबड़े प्रचारक और धर्मगुरु प्रेम के विस्तार की बातें करते हैं? या तो फिर अवश्य ही प्रेमप्रेम में फर्क होता होगा लेकिन प्रेम को तो शाश्वत सत्य कहा जाता है तो फिर फर्क कैसा?” किसी एक दिन बहुत ही प्रेमिल पलों में आभा ने अपने मन की गुत्थियां हैं जो निरंतर उस के मस्तिष्क में बिलोना करती रहती हैं लेकिन आज तक वह किसी नवनीत की प्राप्ति तक नहीं पहुंच पाई, रमन के सामने रखी.

“तुम तो प्रेम करो न, क्यों इस की व्याख्या के पचड़े में पड़ती हो. आम खाने से मतलब है या पेड़ गिनने से,” कहते हुए शब्दों के जादूगर ने उसे बातों के भंवर में गोलगोल घुमा दिया और आभा की गुत्थियां अनसुलझी ही रह गईं.

रमन के प्रेम में पड़ने से पहले आभा के मन मे भी इतनी उलझनें कहां थीं. तब तक तो उसे भी प्रेम की एक ही व्याख्या एक ही विवेचना समझ में आती थी कि कुदरत ने इस सृष्टि को प्रेम करने के लिए ही रचा है. प्रेम ही अंतिम सत्य है और प्रेम करना मनुष्य होने की पहली शर्त है. खुशीखुशी उस ने रमन को अपना प्रेमी चुना था. बिना किसी धर्म, जाति या संप्रदाय की सीमाओं के. और हां, सामाजिक सीमाओं से भी परे. लेकिन रमन शायद उन सीमाओं को बेध नहीं पाया था या फिर शायद प्रेम पर प्रतिष्ठा का पलड़ा भारी पड़ा होगा.

सही ही होगा, आखिर रमन एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है. भरापूरा परिवार है उस का. कैसे वह टुच्चे से प्रेम के लिए अपनी वर्षों से अर्जित प्रतिष्ठा पर दाग लगा सकता है?

“यानी प्रेम तो दागिल ही साबित हुआ न?” आभा की सोच का चक्र जहां से चला था फिर वहीं वापस आ गया.

रमन का उस की जिंदगी में आना मतलब बहुत सी गुलाबी कलियों का एकसाथ खिलना… शुरुआती समय को याद कर के आज भी उस के गाल गुलाबी हो जाते हैं. उस ने रमन की उपस्थिति से कभी अपने पति के सामने भी इनकार नहीं किया था और यही वह रमन से भी चाहती थी कि कम से कम इतना मान तो वह उस के प्रेम का रखे कि समाज के सामने वे दोनों सहजता से साथ खड़े हो सकें लेकिन रमन इतना भी नहीं कर पाया था.

शादी के बाद पति के साथ पहली बार यूं दिखीं देवोलीना, दुल्हन लुक में लगी कमाल

टीवी एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी को शादी के बाद पहली बार अपने पति के साथ पब्लिक में देखा गया. इसकी तस्वीरें सामने आई हैं. एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी ने 14 दिसंबर 2022 को अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड शाहनवाज शेख के साथ कोर्ट मैरिज कर ली थी. शादी के बाद देवोलीना और उनके पति शाहनवाज को पहली बार पब्लिक में स्पॉट किया गया. दोनों एक इवेंट में साथ नजर आए.

आपको बता दें, कि इस इवेंट में देवोलीना भट्टाचार्जी पिंक कलर के सिंपल सूट में भी बेहद खूबसूरत लग रही थीं. उन्होंने सभी एक्सेसरी को छोड़ मंगलसूत्र और सिंदूर को कैरी किया हुआ था.

 

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नई-नवेली दुल्हन देवोलीना भट्टाचार्जी ने खुले बाल किए थे और लाइट मेकअप यूज किया था. वह कम सजी-धजी होने के बावजूद बेहद खूबसूरत लग रही थीं. इस दौरान उनके हसबैंड शाहनवाज शेख लाइट ब्लू कलर के सूट में नजर आए. दोनों ने पैपराजी को ढेर सारे पोज दिए.

जी हां, देवोलीना भट्टाचार्जी और उनके पति शाहनवाज शेख की इन तस्वीरों को उनके चाहने वाले खूब पसंद कर रहे हैं. ये तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.

 

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बात करें देवोलीना और शाहनवाज के अफेयर की तो दोनों एक-दूसरे को करीब 3 सालों से डेट कर रहे हैं. शाहनवाज एक जिम ट्रेनर हैं.

Wedding Special: वेडिंग पार्टी में इन 5 टिप्स से सवारें खुद को

मौका वेडिंग पार्टी का हो और खुद को औरों से बेहतर न दिखाएं भला यह कैसे हो सकता है. यों तो शादीविवाह व किसी खास अवसर पर सजनासंवरना हर महिला चाहती है पर दिन जब सर्दियों के हों तो त्वचा के साथसाथ हेयरस्टाइल पर भी विशेषरूप से ध्यान देना चाहिए. आइए, जानते हैं कि वेडिंग पार्टी में कैसा लुक अपनाएं कि आप औरों से दिखें कुछ खास:

  1. यों दमकाएं त्वचा

– त्वचा में चमक लाने के लिए एक साफ कपड़े में पाउडर दूध, बादाम, चावल का पाउडर और गुलाब की पत्तियां मिला लें. नहाते समय धीरेधीरे इसे त्वचा पर रगड़ें. इस से त्वचा मुलायम, नर्म व आकर्षक लगती है. यह प्राकृतिक रूप से त्वचा को खुशबूदार व ताजा बनाता है.

– मुलतानी मिट्टी त्वचा को साफ करने व चमकदार बनाने के लिए एक बेहतरीन विकल्प है. तैलीय त्वचा के लिए मुलतानी मिट्टी में गुलाबजल मिला कर पेस्ट तैयार कर लें और चेहरे पर लगाएं. आंखों के आसपास व होंठों पर लगाने से बचें. सूखने पर चेहरा धो लें. मिलीजुली त्वचा के लिए त्वचा की तैलीय जगह पर मास्क लगाएं. मुंहासों व दानों के लिए इस में चंदन पाउडर, गुलाबजल और नीम की पत्तियों का पाउडर मिला कर पेस्ट बना लें. फिर चेहरे पर लगाएं और सूखने पर धो लें.

2. बालों की देखभाल

– 1 अंडा या 1 छोटा चम्मच बादाम तेल में 1 चम्मच सिरका मिलाएं. इस से बालों की मालिश करें. फिर बालों में गरम तौलिया लपेट लें. 1 घंटे बाद बालों को धो लें. इस से बाल मुलायम व चमकदार होते हैं.

– रूखे व घुंघराले बालों को मुलायम करने के लिए क्रीम युक्त हेयर कंडीशनर में कुछ पानी मिलाएं और स्प्रे बोतल में भर कर रख लें. बालों में इस मिश्रण को लगाएं. उस के बाद कंघी करें ताकि यह पूरे बालों में लग जाए.

3. मेकअप

  • फाउंडेशन: उत्सवों के समय चमकदार रोशनी होती है. रात के समय आप के मेकअप के लिए आप को चमकीले रंगों की जरूरत होती है, नहीं तो आप का चेहरा पीला लगेगा. पहले चेहरे को अच्छी तरह धो लें और मौइश्चराइजर लगाएं. तैलीय त्वचा के लिए रूई से ऐस्ट्रिजैंट लोशन लगाएं. कुछ मिनट रूकें.
  • ब्लशर: गालों पर ब्लशर लगाएं. ऊपर से बाहर की ओर जाते हुए गाल पर लगाएं. उस के बाद गालों पर हलका रंगीन हाइलाइटर लगाएं. अच्छी तरह से मिलाएं. रात के लिए ब्लशर के रंग को होंठों के रंग से मिलाने की जरूरत नहीं होती, लेकिन समान कलर टोन होनी चाहिए.
  • आई मेकअप: आंख की ऊपरी पलक पर हलका भूरा आईशैडो लगाएं और नीचे की ओर गहरा भूरा आईशैडो लगाएं. आई पैंसिल या आई लाइनर से आंखों की आउटलाइन करें. स्मज के लिए, गहरा आईशैडो लैशेज बंद कर ऊपरी परत पर लगाएं. इसे थोड़ा ऊपर की ओर आंखों के बाहरी कोने से थोड़ा सा आगे बढ़ाएं. स्पंज टिप ऐप्लीकेटर से ही स्मजिंग करनी चाहिए. आई लाइनर या गहरा आईशैडो निचली परत पर भी लगा सकती हैं. इस के बाद स्मज करें. सुनहरे, आइवरी या हलके रंग के आईशैडो से आइब्रो को उभारें. फिर मसकारा लगाएं.

रोल औन मसकारा आसानी से लगता है. ऊपर से लैशेज पर मसकारा लगाएं. मोटा दिखने के लिए ऊपर व नीचे दोनों ओर लगाएं. नीचे की लैशेज पर भी लगाएं. कुछ मिनट रूकें और दोबारा लगाएं. छोटे आईलैश ब्रश की सहायता से लैशिश कर ब्रश फिराएं. लैशिश को मोटा दिखाने के लिए मसकारा के 2 कोटों के बीच पाउडर लगाएं.

4. होंठों के लिए: होंठों के लिए लिप ग्लौस फैशन में है. अपनी लिपस्टिक के रंग का लिप लाइनर लगाएं. लिपिस्टिक लगाने के बाद लिप ग्लौस लगाएं. अपनी पसंद अनुसार रंग के लिए 2 लिपस्टिक को मिला कर लगाया जा सकता है.

5. फैशन में फ्रिंज: साइड स्टेप फ्रिंज प्रचलन में है. आप बीच में से भी फ्रिंज कर सकती हैं. ओवल और लंबे आकार वाले चेहरे पर फ्रिंज अच्छा लुक देता हैं. परतदार फ्रिंज से लंबा या गोल चेहरा पतला दिखाईर् देता है. छोटे चेहरे पर छोटी फ्रिंज अच्छी लगती है. एक चोटी और साइड ब्रैड्स भी फैशन में हैं.

सुंदरता के कई पहलू होते हैं, लेकिन उसे दर्शाना माने रखता है. सुंदरता के प्रत्येक पहलू ही देखभाल जरूरी है जैसे त्वचा, बाल, कपड़े, मेकअप आदि. लेकिन सभी को एकसाथ आकर्षक बनाना महत्त्वपूर्ण है. यह तैयार होने की कला है और सभी पहलुओं को एकसाथ लाने में मदद करती है.

Winter Special: बदलते दौर में मील रिप्लेसमेंट

बदलते दौर में जब महिलाएं घरगृहस्थी के दायरे से निकल कर हाईटेक समाज में जगह बना रही हैं, तो ऐसे में खुद के लिए वक्त निकाल पाना कठिन होता जा रहा है. वक्त के साथसाथ समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है. चुस्तदुरुस्त और फिट दिखना अब बेहद जरूरी है. स्वस्थ तनमन, खूबसूरत काया, स्लिम फिगर, आकर्षक बनावट को बनाए रखने के लिए प्रोटीन, फाइबर, विटामिंस, मिनरल्स, कार्बोहाइडे्रट व फैट को परफेक्ट और नियंत्रित मात्रा में लेने की जरूरत है. इस के लिए प्रतिदिन 3 वक्त के खाने के लिए पूरा दिन खाने का सामान जुटाने में बिताना होगा जो संभव नहीं. ऐसे में महिलाओं को लेना होगा एक ऐसा विकल्प, जो बिना ज्यादा वक्त लिए उन की खूबसूरती और अच्छे स्वास्थ्य को बरकरार रख सके. प्रोटीन, विटामिन आदि पदार्थों का सही मात्रा में सेवन गोलियों, ड्रिंक्स, पाउडर आदि के रूप में होता है. इंस्टेंट एनर्जी देने वाले मील रिप्लेसमेंट आइटम्स ज्यादा महंगे नहीं होते हैं. धीरेधीरे ये और सस्ते होते जाएंगे. न खाना पकाने का झंझट, न टेबल तैयार करने की चिंता, न ही बैठ कर खाते हुए कहीं जाने में देर हो जाने की फिक्र और पोषण का पूरा वादा.

  1. टाइनी टेबलेट्स

ये भूख का एक ‘मैजिक सोल्यूशन’ हैं. छोटीछोटी गोलियों के रूप में ये टेबलेट्स कमाल की पोषक तत्त्व होती हैं. भूख लगने पर ये टेबलेट्स आहार में लिए जाने वाले सभी महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों के साथ पेट भरती हैं. जी हां, ये पिल्स मील रिप्लेसमेंट हैं यानी भोजन के विकल्प के रूप में ली जाने वाली गोलियां. एक पोषक डाइट की तरह इन में प्रोटीन, मिनरल, मल्टीविटामिन व अन्य पोषक पदार्थों के साथ केवल जरूरत के अनुसार कार्बोहाइडे्रट और बिलकुल नाम मात्र का फैट मौजूद होता है. इस में अनुमानित कैलोरी करीब 1,200 होती है, हालांकि इस की मात्रा कंपनी पर निर्भर करती है. तीनों वक्त केवल मील रिप्लेसमेंट पिल्स पर निर्भर रहना भी सेहत के हित में नहीं है. मील रिप्लेसमेंट टेबलेट डाइट पिल्स का पर्याय नहीं हैं.

2. पावर पाउडर

पावर पाउडर उन लोगों के लिए है, जो व्यस्त रहने के कारण ठीक प्रकार से अपने खानपान पर ध्यान नहीं दे पाते. चुस्तदुरुस्त, आकर्षक शरीर की चाहत पूरी करने हेतु एक वक्त के भोजन के बदले लिया जाने वाला मील रिप्लेसमेंट पाउडर जूस, दूध या पानी के साथ लिया जा सकता है. इस पाउडर में प्रोटीन की काफी बढ़ी हुई मात्रा लगभग 20 से 25 ग्राम तक, कम कार्बोहाइडे्रट, कम फैट और प्रचुर मात्रा में विभिन्न मिनरल व विटामिन होते हैं. आमतौर पर इस के एक बार के सेवन से 200 से 600 कैलोरी मिलती है. यह कई फ्लेवर्स में उपलब्ध है.

3. सेहतमंद शेक

रेडी टू ड्रिंक पेय पदार्थ केवल पैकेट से खोल कर पीए जा सकते हैं, जैसे कोल्ड ड्रिंक्स, पैक्ड जूस या पानी की बोतल. इन की गुणवत्ता कम नहीं होती. बौडी बिल्डर या नियमित जिम जाने वालों के लिए तो अभी भी अलग तरह के न्यूट्रिशियस शेक आते हैं, जो मील रिप्लेसमेंट नहीं होते हैं, बल्कि भोजन के साथ लिए जाने वाले सप्लीमेंट होते हैं. इन में शुगर की मात्रा ज्यादा होने की वजह से कैलोरी काफी ज्यादा होती है.

4. फूड बार

मील रिप्लेसमेंट फूड बार के रूप में भी खाने की जगह पर लिए जाते हैं. इन में 200 से 400 कैलोरी, 15 से 30 ग्राम प्रोटीन, 25 से 40 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और थोड़ी सी वसा हो सकती है. इन में विटामिन और मिनरल्स के सही मिश्रण के साथ होल ग्रेन, फाइबर और लो शुगर होता है. बाजार में उपलब्ध कई प्रकार के न्यूट्रिशियस फूड बार्स में स्वाद के लिए कई कंपनियां सैचुरेटेड फैट की मिलावट कर देती हैं, जो शरीर में अन्य पदार्थों के साथ घुलता नहीं है और जमा हो कर नुकसान पहुंचाता है. इसलिए अनसैचुरेटेड फैट वाले फूड बार ही लें. ध्यान रहे कि ये पोषक बार भोजन का विकल्प हैं, इन्हें भोजन का सप्लीमेंट समझ कर इस्तेमाल न करें. 

Anupamaa: पाखी-अधिक के बीच दरार डालेंगी बरखा, अनुपमा की बेटी की हालत होगी खराब

टीवी का धमाकेदार शो ‘अनुपमा’ इन दिनों काफी चर्चा में है. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ टीआरपी लिस्ट में भी नंबर वन पर चल रहा है. लेकिन एक बार फिर से शो की पूरी कहानी अनुपमा की बेटी पाखी और अधिक के इर्द-गिर्द घूम रही है. बीते दिन भी ‘अनुपमा’ (Anupama) में दिखाया गया कि अधिक पाखी को उसके हाल पर छोड़कर जाने लगता है. लेकिन पाखी उसके पैरों में गिरकर माफी मांगती है, साथ ही सारा दोष अपने मां-बाप और बा पर ले लेती है. लेकिन रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) के ‘अनुपमा’ में आने वाले मोड़ यहीं पर खत्म नहीं होते हैं.

 

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अनुपमा’ में आगे दिखाया जाएगा कि अधिक पाखी को वहीं छोड़कर कपाड़िया हाउस चला जाएगा. वहीं वनराज को भी अनुपमा की बातों का एहसास होगा और वह कहेगा कि अनुपमा ठीक थी, मैं ही गलत था जो बार-बार अपनी बेटी का साथ देता था.वह पाखी के किसी भी मामले में पड़ने से पीछे हट जाता है. साथ ही जब पाखी कहती है कि उसे शाह हाउस आना ही नहीं चाहिए था तो भी वह जवाब देता है, “तुझे जहां जाना है जा.”

पाखी-अधिक का तलाक कराएंगी बरखा

अधिक के कपाड़िया हाउस वापस लौटने के बाद बरखा उसके और पाखी के तलाक के बारे में बात करने लगती है.वह अनुपमा से कहती है कि जैसी पाखी की मानसिक हालत है, उसके साथ रहना ठीक नहीं है. इसलिए देर किये बिना दोनों का तलाक करा देना चाहिए.

 

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शो यही खत्म नहीं होता है शो में आगे दिखाया जाएगा कि बाप का साथ छूटने के बाद पाखी दर-दर भटकने लगती है.समर भी अपनी मां को फोन करके बताता है कि पाखी कहीं नहीं मिल रही है. ऐसे में अनुपमा और अनुज उसे ढूंढने के लिए निकलते हैं. तभी अनुपमा देखती है कि पाखी बेकार हालत में सड़क के किनारे पड़ी हुई है.

सिद्धार्थ की वापसी: सुमित और तृप्ति शादी के बाद भी खुश क्यों नहीं थें

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चुनावों की रेस में कौन रहा है सबसे आगे

2 राज्यों, नगर निगम, कुछ विधानसभाओं व एक लोकसभा का उपचुनाव हुआ. 1 जगह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा जीती, जम कर जीती, 2 जगह हारी. कुछ उपचुनाव पुरानी पाॢटयों से मिले कुछ पर नई पाॢटयां आईं. मुंह सब के लटके हुए थे पर सब चेहरे पर खुशियां दिखा रहे थे क्योंकि सत्ता की रेवडिय़ां बंटी पर किसी को सारी की सारी न मिली. इन सब में भारत की आम औरत, आम गृहिणी, आम आदमी, आम युवा, आम लडक़ी को क्या मिला, सिवाए बाएं हाथ की इंडैक्स ङ्क्षफगर पर काले निशान के.

ये चुनाव पहले के राजाओं के युद्धों की तरह थे जिस में एक जीतता राज करने लगता. या फिर कोई नहीं जीतता और राज पहले की तरह चलता रहता. कहीं भी चुनाव जनता के लिए, जनता द्वारा, उस के सुखों के लिए नहीं थे.

नरेंद्र मोदी ने गुजरात में 30 सभाएं की पर कहीं नहीं कहा कि वह पहले से ज्यादा और अवसर गृहिणियों, युवाओं, लड़कियों को दिलाएंगे. उन्होंने कहीं नहीं कहा कि टैक्स सही होंगे, लोगों के घरों में पैसे बरसेंगे, नौकरियां आएं ऐसी नीतियां बनेंगी. इसलिए नहीं कहा कि वे तो गुजरात में 27 सालों से हैं और जो करना था कर चुके होते.

क्या गुजराती ज्यादा खुश हैं. क्या गुजरात इन 27 सालों में स्वीटजरलैंड या ङ्क्षसगापुर की छोडि़ए, केरल जैसा भी बन पाया. न सवाल उन से पूछा गया, न उन्होंने अपनी ओर से वायदा करने की कोशिश की. अपस्टार्ट अरङ्क्षवद केजरीबाल ने बड़ेबड़े वादे किए क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें जीतता तो है नहीं. वे तो कांग्रेस का खेल बिगाडऩे आए थे.

इन चुनावों या आम चुनावों में जनता की रूचि केवल उंगली पर निशान लगाने तक रह गई है क्योंकि 75 सालों में सरकारों ने जो भी किया वह आम जनता का पैसा खींच कर अपने मतलब के कामों में लगाता रहा हैं. सरकारों ने देश की जनता की भलाई के लिए काम किया, जनता को जो मिला वह तकनीक के कारण मिला.

अमेरिका में आम लोगों की मेहनत करने की प्रेरणा सरकारें देतीं हैं. मिथेल ओबामा ने 2012 में बराक ओबामा के दूसरे 4 सालों के चुनावों में यह नहीं कहा कि उन के पति की सरकार प्लेट पर रख कर कुछ देगी. यह कहा कि वह ऐसी सरकार देना चाहते हैं जिस में नौकरियां न जाएं, लोग सुरक्षा महसूस करें, घरों के दीवाले न पिटें, मेहनत का सही मुआवजा मिले.

हमारे किसी भी चुनाव में यह मुद्दा होता ही नहीं है. राम मंदिर बनाएंगे या समाजवाद लाएंगे या पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे जैसे महान वाक्य होते हैं जिन का एक घरवाली, उस के पति, उस के छोटे या बड़े बच्चों का दूर से भी लेनादेना नहीं होता. हां उन्हें डरा दिया जाता है कि  वोट हमें ही देना वरना तुम पर कोई पड़ोसी हमला कर देगा, कोई तुम से ज्यादा हो जाएगा, कोई अपने पूजा घर तुम्हारे मोहल्ले में बना होगा.

अफसोस यह है कि देश की औरतों को सोच कर चुनावी बूथों तक ले जाया जाता है पर उस के आगे वे शून्य, जीरो हो जाती हैं. उन्हें मिलता है बस एक निशान जो 2-3 महीने में रंग खो देता है. यही वजह है कि वोङ्क्षटग बूथों की लाइनों में मुरझाए, थके हारे चेहरे दिखते हैं. जीते कोई भी, 75 सालों से जनता अपनी हार का जश्न मनाते देखती रहती हैं.

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