गलतफहमियां जब रिश्तों में जगह बनाने लगें

राधा और अनुज की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं. राधा को अपनी नौकरी की वजह से अकसर बाहर जाना पड़ता है. वीकैंड पर जब वह घर पर होती है, तो कुछ वक्त अकेले, पढ़ते हुए या आराम करते हुए गुजारना चाहती है या फिर घर के छोटेमोटे काम करते हुए समय बीत जाता है.

अनुज जो हफ्ते में 5 दिन उसे मिस करता है, चाहता है कि वह उन 2 दिनों में अधिकतम समय उस के साथ बिताए, दोनों साथ आउटिंग पर जाएं, मगर राधा जो ट्रैवलिंग करतेकरते थक गई होती है, बाहर जाने के नाम से ही भड़क उठती है. यहां तक कि फिल्म देखने या रेस्तरां में खाना खाने जाना भी उसे नागवार गुजरता है.

अनुज को राधा का यह व्यवहार धीरेधीरे चुभने लगा. उसे लगने लगा कि राधा उसे अवौइड कर रही है. वह शायद उस का साथ पसंद नहीं करती है जबकि राधा महसूस करने लगी थी कि अनुज को न तो उस की परवाह है और न ही उस की इच्छाओं की. वह बस अपनी नीड्स को उस पर थोपना चाहता है. इस तरह अपनीअपनी तरह से साथी के बारे में अनुमान लगाने से दोनों के बीच गलतफहमी की दीवार खड़ी होती गई.

अनेक विवाह छोटीछोटी गलतफहमियों को न सुलझाए जाने के कारण टूट जाते हैं. छोटी सी गलतफहमी को बड़ा रूप लेते देर नहीं लगती, इसलिए उसे नजरअंदाज न करें. गलतफहमी जहाज में हुए एक छोटे से छेद की तरह होती है. अगर उसे भरा न जाए तो रिश्ते के डूबने में देर नहीं लगती.

भावनाओं को समझ न पाना

गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है और जब वह आप के रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है तो कभी फूल लगने वाला रिश्ता आप को खरोंचें देने लगता है. जो युगल कभी एकदूसरे पर जान छिड़कता था, एकदूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, उसे जब गलतफहमी का नाग डसता है तो रिश्ते की मधुरता और प्यार को नफरत में बदलते देर नहीं लगती. फिर राहें अलगअलग चुनने के सिवा उन के पास कोई विकल्प नहीं बचता.

आमतौर पर गलतफहमी का अर्थ होता है ऐसी स्थिति जब कोई व्यक्ति दूसरे की बात या भावनाओं को समझने में असमर्थ होता है और जब गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं, तो वे झगड़े का आकार ले लेती हैं, जिस का अंत कभीकभी बहुत भयावह होता है.

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रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट अंजना गौड़ के अनुसार, ‘‘साथी को मेरी परवाह नहीं है या वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, इस तरह की गलतफहमी होना युगल के बीच एक आम बात है. अपने पार्टनर की प्राथमिकताओं और सोच को गलत समझना बहुत आसान है, विशेषकर जब बहुत जल्दी वे नाराज या उदास हो जाते हों और कम्यूनिकेट करने के बारे में केवल सोचते ही रह जाते हों.

‘‘असली दिक्कत यह है कि अपनी तरह से साथी की बात का मतलब निकालना या अपनी बात कहने में ईगो का आड़े आना, धीरेधीरे फूलताफलता रहता है और फिर इतना बड़ा हो जाता है कि गलतफहमी झगड़े का रूप ले लेती है.’’

वजहें क्या हैं

स्वार्थी होना: पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने और एकदूसरे पर विश्वास करने के लिए जरूरी होता है कि वे एकदूसरे से कुछ न छिपाएं और हर तरह से एकदूसरे की मदद करें. जब आप के साथी को आप की जरूरत हो तो आप वहां मौजूद हों. गलतफहमी तब बीच में आ खड़ी होती है जब आप सैल्फ सैंटर्ड होते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं. जाहिर है, तब आप का साथी कैसे आप पर विश्वास करेगा कि जरूरत के समय आप उस का साथ देंगे या उस की भावनाओं का मान रखेंगे.

मेरी परवाह नहीं: पति या पत्नी किसी को भी ऐसा महसूस हो सकता है कि उस के साथी को न तो उस की परवाह है और न ही वह उसे प्यार करता है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह लविंग और केयरिंग के आधार पर टिका होता है. जब साथी के अंदर इग्नोर किए जाने या गैरजरूरी होने की फीलिंग आने लगती है तो गलतफहमियों की ऊंचीऊंची दीवारें खड़ी होने लगती हैं.

जिम्मेदारियों को निभाने में त्रुटि होना: जब साथी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने या उठाने से कतराता है, तो गलतफहमी पैदा होने लगती है. ऐसे में तब मन में सवाल उठने स्वाभाविक होते हैं कि क्या वह मुझे प्यार नहीं करता? क्या उसे मेरा खयाल नहीं है? क्या वह मजबूरन मेरे साथ रह रहा है? गलतफहमी बीच में न आए इस के लिए युगल को अपनीअपनी जिम्मेदारियां खुशीखुशी उठानी चाहिए.

वैवाहिक सलाहकार मानते हैं कि रिश्ता जिंदगी भर कायम रहे, इस के लिए 3 मुख्य जिम्मेदारियां अवश्य निभाएं-अपने साथी से प्यार करना, अपने पार्टनर पर गर्व करना और अपने रिश्ते को बचाना.

काम और कमिटमैंट: आजकल जब औरतों का कार्यक्षेत्र घर तक न रह कर विस्तृत हो गया है और वे हाउसवाइफ की परिधि से निकल आई हैं, तो ऐसे में पति के लिए आवश्यक है कि वह उस के काम और कमिटमैंट को समझे और कद्र करे. बदली हुई परिस्थितियों में पत्नी को पूरा सहयोग दे. रिश्ते में आए इस बदलाव को हैंडल करना पति के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि यह बात आज के समय में गलतफहमी की सब से बड़ी वजह बनती जा रही है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे के काम की कमिटमैंट के बारे में डिस्कस कर उस के अनुसार खुद को ढालना होगा.

धोखा: यह सब से आम वजह है. यह तब पैदा होती है जब एक साथी यह मानने लगता है कि उस के साथी का किसी और से संबंध है. ऐसा वह बिना किसी ठोस आधार के भी मान लेता है. हो सकता है कि यह सच भी हो, लेकिन अगर इसे ठीक से संभाला न जाए तो निश्चित तौर पर यह विवाह के टूटने का कारण बन सकता है. अत: आप को जब भी महसूस हो कि आप का साथी किसी उलझन में है और आप को शक भरी नजरों से देख रहा है तो तुरंत सतर्क हो जाएं.

दूसरों का हस्तक्षेप: जब दूसरे लोग चाहे वे आप के ही परिवार के सदस्य हों या मित्र अथवा रिश्तेदार आप की जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं तो गलतफहमियां खड़ी हो जाती हैं. ऐसे लोगों को युगल के बीत झगड़ा करा कर संतोष मिलता है और उन का मतलब पूरा होता है. यह तो सर्वविदित है कि आपसी फूट का फायदा तीसरा व्यक्ति उठाता है. पतिपत्नी का रिश्ता चाहे कितना ही मधुर क्यों न हो, उस में कितना ही प्यार क्यों न हो, पर असहमति या झगड़े तो फिर भी होते हैं और यह अस्वाभाविक भी नहीं है. जब ऐसा हो तो किसी तीसरे को बीच में डालने के बजाय स्वयं उन मुद्दों को सुलझाएं जो आप को परेशान कर रहे हों.

सैक्स को प्राथमिकता दें: सैक्स संबंध शादीशुदा जिंदगी में गलतफहमी की सब से अहम वजह है. पतिपत्नी दोनों ही चाहते हैं कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय करें. जब आप दूरियां बनाने लगते हैं, तो शक और गलतफहमी दोनों ही रिश्ते को खोखला करने लगती हैं. आप का साथी आप से खुश नहीं है या आप से दूर रहना पसंद करता है, तो यह रिश्ते में आई सब से बड़ी गलतफहमी बन सकती है.

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जब बहक जाए पति या बेटा

सरकारी औफिस में अधिकारी के रूप में काम करने वाले प्रदीप कुमार को देर रात तक घर से बाहर रहना पड़ता था. औफिस के काम से छोटेबडे़ शहरों में टूर पर भी जाना होता था. 48 साल के प्रदीप की शादी हो चुकी थी. उन की 2 बेटियां और 1 बेटा था. घर में वे जब भी पत्नी के साथ सैक्स की बात करते तो पत्नी शोभा मना कर देती. शोभा को बडे़ होते बच्चों की फिक्र होने लगती थी. शोभा को यह पता था कि यह प्रदीप के साथ एक तरह का अन्याय है पर बच्चों को संस्कार देने के खयाल में वह पति की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही थी. प्रदीप का काम ऐसा था जिस में कई बड़े ठेकेदार और प्रभावी लोग जुडे़ होते थे. ऐसे में जब वह टूर पर बाहर जाते तो उन को खुश करने वालों की लाइन लगी रहती थी.

प्रदीप स्वभाव से सामान्य व्यक्ति थे. न किसी चीज के प्रति ज्यादाभागते थे और न ही किसी के प्रति उन के मन में कोई वैराग्य भाव ही था. हर हाल में खुश रहने वाला उन का स्वभाव था. एक बार वे आगरा के टूर पर थे. वहां उन को एक खास प्रोजैक्ट पर काम करना था. इस कारण उन को लगातार एक सप्ताह तक वहां रहना था. प्रदीप के लिए सरकारी गैस्ट हाउस में इंतजाम था. वहीं एक दिन कौलगर्ल की चर्चा होने लगी. देर शाम एक ठेकेदार ने लड़की का इंतजाम कर दिया. कुछ नानुकुर करने के बाद प्रदीप ने लड़की के साथ रात गुजार ली. इस के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. कई बार प्रदीप को खुद लगता कि वे गलत कर रहे हैं पर उन को यह सब अच्छा लगने लगा था. अब वे अकसर शहर से बाहर जाने का बहाना बनाने लगे. कुछ दिन तो यह बात छिपी रही पर शोभा को शक होने लगा. शोभा ने बिना कुछ कहे उन पर नजर रखनी शुरू कर दी. शोभा को कई ऐसी जानकारियां मिल गईं जिन से उस का शक यकीन में बदल गया.

शोभा ने सोचा कि अगर वह यह बात पति से करेगी तो आसानी से वे मानेंगे नहीं. लड़ाई झगड़ा अलग से शुरू हो जाएगा. बच्चों के जिन संस्कारों को बचाने के लिए वह प्रयास करती आई है वे भी खाक में मिल जाएंगे. ऐसे में शोभा ने अपने घरेलू डाक्टर से बात की. डाक्टर ने कुछ बातें बताईं. कुछ दिन बीत गए. प्रदीप इस बात से खुश थे कि शोभा को उन के नए शौक के बारे में कुछ पता नहीं चला. अचानक एक दिन प्रदीप को तेज बुखार आ गया. शोभा उन को ले कर डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कुछ ब्लड टैस्ट कराने के लिए कह दिया. दवा दे कर प्रदीप को वापस घर भेज दिया और बैडरैस्ट करने को कहा है. घर पहुंचने के बाद प्रदीप ने बैडरैस्ट तो किया पर बुखार कम हो कर वापस आजा रहा था.

एक दिन के बाद प्रदीप जब डाक्टर के पास जाने लगे तो शोभा भी साथ चली गई. डाक्टर ने ब्लड रिपोर्ट देखी और चिंता में पड़ गया. उस ने शोभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कहा और प्रदीप से बात करने लगा. डाक्टर ने कहा कि रिपोर्ट में तो बुखार आने का कारण एचआईवी का संक्रमण आ रहा है. क्या आप कई औरतों से संबंध रखते हैं? प्रदीप सम झदार व्यक्ति थे, डाक्टर से  झूठ बोलना उचित नहीं सम झा. सारी कहानी डाक्टर को बता दी. इस के बाद डाक्टर ने पतिपत्नी दोनों को ही सामने बैठा कर सम झाया. सैक्स के महत्त्व को सम झाया और बाजारू औरतों से सैक्स संबंध बनाने के खतरे भी बताए. उस रात प्रदीप को नींद नहीं आई. शोभा उन के पास ही थी. प्रदीप ने अपनी गलती मान ली और शोभा से माफी भी मांगी. दूसरी ओर शोभा ने अपनी गलती मान ली. प्रदीप को ज्यादा परेशान देख कर शोभा ने उन को गले लगाते हुए कहा, ‘‘यह सब नाटक था तुम्हारी आंखें खोलने के लिए. हां, बुखार वाली बात तो ठीक थी पर एचआईवी की बात गलत थी. हमें पहले ही पता था कि तुम बाहर जा कर क्या गलती कर बैठे हो.’’

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न करें  झगड़ा

लखनऊ में सैक्स रोगों की काउंसलिंग करने वाले डा. जी सी मक्कड़ कहते हैं, ‘‘सैक्स के लिए बाजारू औरतों से संबंध रखना सेहत के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं होता. इस के लिए केवल पुरुष ही दोषी नहीं हैं, कई बार पत्नियां पतियों को समझ नहीं पातीं. घरपरिवार, बच्चों के चलते उन को समय नहीं मिलता या वे मेनोपौज का शिकार हो कर पति की जरूरतों को पूरा करने से बचने लगती हैं. ऐसे में पति के भटकने का खतरा बढ़ जाता है. कभी वह कोठे पर जाने लगता है तो कभी सैक्स कारोबार करने वाली दूसरी औरतों के चक्कर में पड़ जाता है. इस से बचने के लिए औरतों को बहुत ही धैर्यपूर्वक परेशानी का मुकाबला करना चाहिए.  झगड़ा करने से परिवार के टूटने का खतरा ज्यादा रहता है.’’

समाजसेवी शालिनी कुमार कहती हैं, ‘‘आमतौर पर आदमी के लिए उम्र के 2 पड़ाव बेहद कठिन होते हैं. एक जब वह 17 से 20 साल की उम्र में होता है. और दूसरा 45 साल के करीब. ऐसे में वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजारू औरतों की मदद लेने लगता है. ऐसे में उस का प्रभाव एक औरत को मां या पत्नी के रूप में  झेलना पड़ता है. घरपरिवार को बचाने के लिए बहुत ही समझदारी से काम लेना चाहिए.’’

जब बिगड़ जाए बेटा

25 साल के अनुराग की अच्छी नौकरी लग गई. उस के ऊपर कोई खास जिम्मेदारी भी नहीं थी. अनुराग की गर्लफ्रैंड तो बहुत थीं पर उन से उस के सैक्स संबंध नहींथे. अनुराग को दोस्तों से पता चला कि सैक्स संबंधों के लिए कौलगर्ल बेहतर होती हैं क्योंकि उन से केवल जरूरत भर का साथ होता है. गर्लफ्रैंड तो गले की हड्डी भी बन सकती है. पब और डिस्को में जाने के दौरान उस की मुलाकात ऐसी ही कुछ लड़कियों से होने लगी. सैक्स के लिए टाइमपास करने वाली ये लड़कियां कई बार पार्टटाइम गर्लफ्रैंड भी बन जाती थीं. देखनेसुनने में यह भी सामान्य लड़कियों की ही तरह होती हैं. अनुराग को अपने शहर में ऐसा काम करने से खतरा लगता था. ऐसे में वह लड़की को ले कर दिल्ली, मुंबई और गोआ जाने लगा. वह अकसर वीकएंड पर ऐसे कार्यक्रम बनाने लगा. बाहर जा कर उसे बहुत अच्छा लगने लगा.

अनुराग के इस शौक  ने उसे बदल दिया था. वह घर में कम समय देता था. जब भी उस की शादी की बात चलती वह अनसुना कर देता. एक बार वह ऐसी ही एक लड़की के साथ गोआ गया था. वहां से जिस दिन उसे वापस आना था उस की मां उस को लेने के लिए एअरपोर्ट पहुंच गई. अनुराग को इस बारे में कुछ पता नहीं था. वह लड़की के साथ एअरपोर्ट से बाहर आ कर टैक्सी में बैठने लगा. लड़की पहले ही टैक्सीमें बैठ चुकी थी. इस के पहले कि टैक्सी आगे बढ़ती, अनुराग की मां ने उसे पुकारा, ‘‘बेटा, मैं अपनी गाड़ी ले कर आई थी. इसी में आ जाओ.’’

मां की आवाज सुन कर अनुराग सोच में पड़ गया. उसे साथ वाली लड़की की फिक्र होने लगी. वह मां से कुछ कहता, इस के पहले मां बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, अपनी फ्रैंड को साथ ले आ.’’ अनुराग को कुछ राहत महसूस हुई. गाड़ी में बैठने के बाद अनुराग की मां ने लड़की की बेहद तारीफ करनी शुरू कर दी. घर आतेआते यह भी कह दिया कि वह बहू के रूप में उसे पसंद है. अनुराग उस लड़की को छोड़ कर वापस घर आया तो मां को बहुत प्रसन्न पाया. मां अनुराग और उस लड़की की शादी की बातें करने लगीं. कुछ देर तो अनुराग चुप रहा फिर बोला, ‘‘मां, आप को जिस लड़की के बारे में कुछ पता नहीं उस से मेरी शादी करने जा रही हो?’’

मां बोलीं, ‘‘बेटा, मैं भले ही उस से आज मिली थी पर तू तो उस के साथ घूम कर आया है. तुझे देख कर लगता है कि तू बहुत खुश है उस के साथ. जब तू खुश है तो मुझे और क्या चाहिए?’’

अनुराग परेशान हो गया. उस ने सोचा कि मां को सचाई बतानी ही होगी. रात में ठंडे दिमाग से अनुराग ने मां को पूरी बात बताई और अपनी गलती मान ली. अनुराग की मां बोलीं, ‘‘बेटा, तुझे अपनी गलती समझ आ गई, इस से बड़ी क्या बात हो सकती है. अब अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी हो जानी चाहिए.’’

शादी के बाद अनुराग बदल गया. मां की समझदारी ने अनुराग का जीवन खराब होने से बचा लिया. इस प्रकार ऐसे हालात को संभालने में पत्नी और मांबाप को धैर्य से काम लेना चाहिए. नहीं तो एक खुशहाल परिवार को बिखरने में देर नहीं लगेगी.

बेटे के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

– बेटे के दोस्तों पर निगाह रखें. जिन दोस्तों का स्वभाव अच्छा न लगे उन से दूरी बनाने के लिए बेटे को सम झाएं.

– बेटे की बदलती सैक्स लाइफ पर नजर रखने की कोशिश करें. उस की मुलाकात मनोचिकित्सक से कराएं. जो बातें आप नहीं बता सकतीं वह उस के संबंध में समझा सकता है.

– बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं. ऐसे संबंधों से यौन रोग फैल सकते हैं यह बताएं.

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– कोठे वैसे नहीं होते जैसे फिल्मों में दिखते हैं, यह सम झाएं. वहां होने वाले नुकसान से आगाह कराते रहें. वहां पुलिस का छापा पड़ने से जेल जाने का खतरा रहता है.

– बेटे को समझाने में पति की मदद ले सकती हैं. कई बार वह आप से बात करने में हिचक सकता है. ऐसे में पिता से बात करना सरल होता है.

– उसे लड़कियों से दोस्ती करने से रोकें नहीं. दोस्ती की सीमाओं को बता कर रखें. बेटे को अनापशनाप खर्च करने के लिए पैसे न दें.

– समय से उस की शादी करा दें. कई बार शादी के बाद सुधार आ जाता है.

पति के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

– पति से बात करने से पहले खुद से जरूरी जानकारियां एकत्र करने की कोशिश करें.

– कुछ ऐसा उपाय करें कि बिना आप के कहे पति को अपनी गलती सम झ में आ जाए.

– अपनी बात रखने के लिए  झगड़ा न करें. ऐसे तर्क न करें जिन से संबंधों में कटुता आए.

– पति के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखें. घरपरिवार की जिम्मेदारी के बीच सैक्स संबंधों को न भूलें.

– एक उम्र के बाद महिलाओं में सैक्स की इच्छा खत्म होने लगती है. ऐसे में महिला रोगों की जानकार डाक्टर से मिलें और उचित इलाज करवाएं.

– पति के साथसाथ अपनी सैक्स परेशानियां मनोचिकित्सक को बताएं.

– पति को बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं.

– ऐसे काम पद और प्रतिष्ठा दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

– पति को पारिवारिक जिम्मेदारी का एहसास कराते रहें. इस से उन का ध्यान इधरउधर नहीं भटकेगा.

– समयसमय पर पति के साथ अकेले बाहर जाने का कार्यक्रम रखें, होटल में रुकें ताकि सैक्स संबंधों को खुल कर जी सकें.

इनके लिए कोरोना बन गया वरदान

2020 के प्रारम्भ में ही चीन के वुहान प्रान्त से निकले कोरोना वायरस ने शनैः शनैः समस्त संसार में तबाही मचा दी. मार्च में जब भारत में यह प्रारम्भिक दौर में ही था तो सरकार ने संक्रमण रोकने की दृष्टि से लॉक डाउन लगा दिया. इस लॉक डाउन में किसी की नौकरी गयी, देश की आर्थिक स्थिति बदहाल हो गयी और कइयों के तो घर ही छूट गए परन्तु कुछ वृद्धों के लिए ये लॉक डाउन वरदान साबित हुआ क्योंकि उन्हें उनका घर परिवार , बेटा बहू और नाती पोते मिल गए. ताउम्र अपने बच्चों के लिए जीने वाले माता पिता को जब उम्र के अंतिम पड़ाव में अपने ही बच्चों का सहारा नहीं मिलता तो उनकी जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है परन्तु कोरोना ने समाज के अनेकों  वृद्धों को उनके परिवार से मिलाकर जीवन जीने की जिजीविषा को पुनः जाग्रत कर दिया. आइये नजर डालते हैं ऐसे ही चंद उदाहरणों पर,

2 बेटों और एक बेटी के पिता भोपाल के 70 वर्षीय मुन्नालाल ने  पारिवारिक विवाद के चलते 6 माह पूर्व घर छोड़ दिया था. पैसों और पिता की देखरेख को लेकर बच्चों में रोज होने वाले विवादों से वे इतने व्यथित हो गए कि जनवरी माह में घर छोड़कर एक वृद्धाश्रम में रहने लगे. वे कहते हैं ,” बच्चों ने कभी सुध लेने का प्रयास तक नहीं किया.” जब मार्च में लॉक डाउन हुआ तो  किसी तरह बेटी ने पिता का पता लगाया और लेने पहुंची और तब से पिता बेटी के साथ उसी के घर में रह रहे हैं. उनकी बेटी अनुराधा कहती है,”कोरोना में जब पूरा परिवार एक साथ था तो पिता की कमी बहुत खली. यह अहसास हुआ कि जीवन का  कोई ठिकाना नहीं है जब तक जिंदा हैं साथ ही रहेंगे”

ऐसी ही कहानी है हरीश चंद्र जी की. जनवरी के अन्त में पत्नी और बेटे से विवाद हो गया. बेटे की कही बातों ने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई तो घर छोड़कर एक वृद्धाश्रम आ गए .जब पत्नी ने भी नहीं रोका तो मन बहुत आहत हुआ. उनका बेटा कहता है” पिता के घर से जाने के बाद बहुत शांति महसूस हुई थी. काम के बीच कभी नहीं लगा कि मैंने कुछ गलत किया है. परन्तु मार्च में जब लॉक डाउन हुआ तो कुछ समय बाद ही मुझे उनके साथ गुजारे बचपन के दिन याद आने लगे..और पिता के बिना जीवन ही अधूरा लगने लगा. लॉक डाउन खुलते ही मैंने उनसे माफी मांगी और ससम्मान घर ले आया. अब जीवन बड़ा खुशमय प्रतीत होता है.

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ऐसा ही कुछ हुआ 68 वर्षीया प्रयागराज निवासी कंचन के साथ वे कहतीं है,”दोनों बेटे मुझे बोझ समझते थे, कोई बात तक नहीं करता था, बहुएं खाना नहीं देतीं थीं. एक दिन घर छोड़कर कुटुम्ब नामक आश्रम आ गईं. पिछले एक वर्ष से यहीं रह रहीं थीं.” उनका बेटा कहता है,”लॉक डाउन में जब हम घर में रहे तो जीवन अधूरा सा लगने लगा. मां हर रोज सपने में आने लगीं. हमें अपनी गल्ती का अहसास हुआ’जिस मां ने हमें इतना बड़ा किया वही आज हमारे होते हुए अनाथ है सोचकर हम अपनी ही नजरों में गिर गए थे.अब मां को ले आये हैं… तब जाकर चैन मिला है”

अमरावती निवासी सुरेश जी की पत्नी का 2 वर्ष पूर्व निधन हो गया. वे कहते हैं” घर में बेटा, बहू बच्चे सभी व्यस्त रहते हैं, मेरे लिए किसी के पास टाइम नहीं है.रोज रोज बेटे बहू के तानों से परेशान था सो यहाँ वृद्ध आश्रम आ गया. लॉक डाउन में बच्चों को जब आत्मचिंतन का अवसर मिला तो लेने आये. अब बच्चों के साथ सुख से रह रहा हूँ”

ये केवल इन चार वृध्दों की नहीं बल्कि भारत के अनेकों बूढों की कहानी है जब घर परिवार के होते हुए भी उन्हें अनाथों जैसा जीवन जीना पड़ता है. अपनी ही सुख सुविधा में खोए उनके बच्चों को अपने ही माता पिता की सुध तक नहीं आती. विचारणीय है कि लॉक डाउन ने उन्हें ऐसा क्या दिया कि उन्हें अपने जन्मदाता की याद आने लगी.

-पर्याप्त समय

वास्तव में कोरोना सारी दुनिया पर कहर बनकर तो टूटा परन्तु लॉक डाउन ने प्रत्येक इंसान को आत्ममंथन के लिए पर्याप्त समय दिया. आज हर इंसान जीवन की भागदौड़ औऱ रोजी रोटी कमाने में इतना अधिक व्यस्त है कि उसके पास अपने अलावा किसी अन्य के बारे में सोचने का समय ही नहीं है. लॉक डाउन में जब घर पर बिना किसी काम के रहने का अवसर मिला तो अपने द्वारा किये सही और गलत का तात्पर्य समझ में आया और माता पिता की अहमियत भी.

-कोरोना का भय

यूँ तो हम सभी जानते हैं कि बीमारी कभी भी अमीर गरीब देखकर नहीं आती परंतु कोरोना ने समस्त संसार को अवगत कराया कि जीवन कितना क्षणभंगुर है. एक छोटे से वायरस ने एक देश या इंसान नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया . लॉक डाउन में घर में रहने के दौरान इंसान को भी अहसास हुआ कि उनका जीवन भी कितने दिन का है नहीं पता इसलिए जब तक हैं पूरे परिवार के साथ सबका आशीष लेकर रहें.

-मददगार बने प्रेरणा

लॉक डाउन के प्रारंभिक चरण के बाद जब लोंगों को आवागमन की छूट दी गयी तो अनेकों मजदूर अपने कार्यस्थल से अपने घरों की ओर लौटने लगे जिनमें से अधिकांश के पास न पैसे थे और न ही भोजन ऐसे में अनेकों स्वयं सेवी संस्थाये, फिल्मी सितारे और आम लोग उनकी मदद को आगे आये….ऐसे लोगों की निस्वार्थ सेवा को देखकर जिनके माता पिता घर छोडकर चले  गए थे वे आत्मग्लानि से भर उठे और उन्हें  अनुभव हुआ कि वे कम से कम अपने जन्मदाता का ध्यान तो रख ही सकते हैं  और इसी आत्मग्लानि के कारण वे अपने माता पिता को वापस अपने साथ ले आये.

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उपरोक्त उदाहरण समाज का सच्चा आईना प्रदर्शित करते हैं. ऐसे उदाहरण हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम चाहे जितनी भी तरक्की कर ले परन्तु उस तरक्की के रास्ते पर बढ़ते समय बड़े बुजुर्गों और जन्मदाता के प्रति अपने कर्त्तव्यों की अवहेलना किसी भी कीमत पर न करें. वे हमारे जीवन और समाज का आधारस्तंभ हैं. वैसे भी इस उम्र में माता पिता को रुपये पैसे की नहीं बल्कि अपने बच्चों से केवल प्यार और तनिक सम्मान की दरकार होती है और जिसे पाने के वे हकदार भी हैं. इसलिए उनकी इस प्रत्याशा पर खरे उतरने की समाज के प्रत्येक युवा को प्रयास करना ही चाहिए.

मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती?

सवाल-

मैं 25 साल की शादीशुदा महिला हूं. कोरोना वायरस से जहां पूरा विश्व परेशान है और डर का माहौल है, मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती. पति भी फिलहाल बच्चा नहीं चाहते. मगर समस्या मेरी सासूमां को ले कर है. वे चाहती हैं कि उन्हें पोता या पोती हो और घर में किलकारियां गूंजे. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

शादी के बाद फिलहाल बच्चा न हो, इस का निर्णय लेना कि सभी दंपति का अधिकार होता है. अगर आप व आप के पति ऐसा नहीं चाहते तो यही सही है. रही बात कोरोना के सय गर्भधारण व बच्चा जनने की बात तो इस का कोरोना से कोई लेनादेना एक दंपती का अधिकार है. अगर ऐसा कोई डर का माहौल होता तो देश के अस्पतालों में अभी डिलीवरी ही नहीं कराई जाती. अगर इस बात को ले कर मन में किसी तरह का भय है तो इस भय को मन से निकाल दें. फिलहाल आप दोनों बच्चा नहीं चाहते तो इस के लिए सासूमां से बात कर सकती हैं कि आप मानसिक रूप से अभी इस के लिए तैयार नहीं हैं. वे भी एक औरत हैं और कतई नहीं चाहेंगी कि बिना आप की मरजी से आप गर्भधारण करें.

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शादी के बाद कपल्स सारी कोशिश करके भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो इसकी वजह इन्फर्टिलिटी यानी बांझपन को माना जाता है. इसमें बच्चा पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है या फिर पूरी तरह खत्म हो जाती है.

आमतौर पर शादी के एक से डेढ़ साल बाद अगर बिना किसी प्रोटेक्शन के कपल्स रिलेशनशिप बनाने के बाद भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो मेडिकली इन्हें इन्फर्टिलिटी का शिकार माना जाता है. इसमें समस्या महिला और पुरुष दोनों में हो सकती है.

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अकेली पड़ी इकलौती औलाद

किरत अपने मातापिता की इकलौती औलाद है. उस की उम्र करीब 6 साल है. 6 साल पहले सब ठीक था. वह खुश थी अपने मातापिता के साथ. जब जो चाहती वह मिल जाता. भई, सबकुछ उसी का तो है. पिता पेशे से इंजीनियर हैं. मां मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. लिहाजा, कमी का तो कहीं सवाल नहीं था, लेकिन इन दिनों किरत कुछ बुझीबुझी से रहने लगी. चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा. इतवार के दिन मातापिता ने अपने पास बिठाया और पूछा तो किरत फफक पड़ी.

किरत ने बताया कि उस के दोस्त हैं, लेकिन घर पर कोई नहीं है. न भाई न बहन. सब के पास अपने भाईबहन हैं लेकिन वह किस को परेशान करेगी. किस के साथ खाना खाएगी. किस के साथ सोएगी. किरत ने जो बात कही वह छोटी सी थी लेकिन गहरी थी.

ये परेशानी आज सिर्फ किरत की नहीं है, शहरों में रहने वाले अमूमन हर घर में यही परेशानी है. जैसेजैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं वैसेवैसे वे अकेलापन फील करने लगते हैं. मातापिता कामकाजी हैं. बच्चे मेड या फिर दूसरे लोगों के भरोसे बच्चे छोड़ देते हैं. लेकिन बच्चे धीरेधीरे अकेलापन महसूस करने लगते हैं. सवाल कई हैं. क्या हम भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों को अकेला छोड़ रहे हैं? क्या हम बच्चों से अपने रिश्ते छीन रहे हैं? क्या हम बच्चों से उन का बचपन छीन रहे हैं?

पहले से अलग है स्थिति

पिछली पीढ़ी के आसपास काफी बच्चे हुआ करते थे. खुद उन के घर में भाईबहन होते थे. पूरा दिन लड़नेझगड़ने में बीत जाता था. खेलकूद में वक्त का पता नहीं चलता था. कब पूरा दिन निकल गया और कब रात हो जाती थी, होश ही नहीं रहता था. चाचाचाची, ताऊताई, दादादादी कितने रिश्ते थे. हर रिश्ते को बच्चे पहचानते थे लेकिन अब स्थिति एकदम अलग है. अब बच्चे अकेलापन फील करने लगे हैं. न तो उन्हें रिश्ते की समझ है न ही खेलकूद के लिए घर में कोई साथ. स्कूल के बाद ट्यूशन और फिर टीवी बस इन्हीं में बच्चों की दुनिया सिमट कर रह गई है.

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क्या है वजह

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता एक बच्चे से ही खुश हो जाते हैं. अब पहले की तरह भेदभाव नहीं होता. लड़का हो या लड़की, मातापिता दोनों को समान तरीकों से पालतेपोसते हैं. पहले एक सामाजिक व पारिवारिक दबाव था लड़का पैदा करने का, इसलिए काफी बच्चे हो जाते थे. ये तो अच्छी बात है कि समाज धीरेधीरे उस दबाव से निकल रहा है लेकिन इसी ने अब बच्चों को अकेला कर दिया है. दूसरी सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता के पास वक्तकी कमी है.

दरअसल, अब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हैं. इसलिए बच्चा पैदा करना मातापिता झंझट समझते हैं. सोचते हैं कौन पालेगा, टाइम नहीं है, एक बच्चा ही काफी है, महंगाई बहुत है, एजुकेशन काफी ज्यादा महंगी होती जा रही है. और भी कई ऐसी बातें हैं जिस के चलते मातापिता दूसरा बच्चा करने से बचते हैं. महिलाओं को लगता है कि अगर दूसरा बच्चा हो गया तो वे अपने कैरियर को वक्त नहीं दे पाएंगी. लिहाजा, बच्चे अकेले रह जाते हैं. कई बार बच्चे मातापिता से शिकायत तो करते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो जाती है. उम्र बढ़ने लगती है. कई बार बढ़ती उम्र के कारण महिलाएं मां नहीं बन पातीं. कई तरह के जटिलताएं आ जाती हैं.

जरूरी है बच्चों को मिले रिश्ते

बच्चों से उन के रिश्ते मत छीनिए. पहले बच्चे के कुछ साल बाद दूसरा बच्चा करने की कोशिश कीजिए, ताकि बच्चे आपस में खेल सकें. एकदूसरे के साथ बड़े हो कर बातें और चीजें शेयर कर सकें. कई बार इकलौता बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. चीजें शेयर नहीं करता. अपनी चीजों पर एकाधिकार जमाने लगता है जिस के चलते मातापिता परेशान हो जाते हैं. ये स्थिति उन घरों में ज्यादा होती है, जहां बच्चे अकेले होते हैं. अगर एक भाई या बहन हो तो बच्चे शेयर करना आसानी से सीख जाते हैं. बच्चों को रिश्तों की समझ होने लगती है. एकदूसरे की परेशानी समझने लगते हैं.

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अगर आप भी इस तरह की परेशानी से गुजर रही हैं और रहरह कर आप का बच्चा आप से शिकायत करता है तो वक्त रहते संभल जाइए. बच्चों को उन का रिश्ता दीजिए, ताकि वह भी अपना बचपन जी सकें. थोड़ा लड़ सकें, थोड़ा प्यार कर सकें, थोड़ा प्यार पा सकें. अपनी चाहतों के चक्कर में या फिर कैरियर के लिए बच्चों से उन का बचपन न छीनिए वरना कोमल कली खिलने से पहले ही मुरझा जाएगी.

जब घर में अविवाहित देवर या जेठ हों

हाल ही में (22, फरवरी 2020) मध्य प्रदेश के विदिशा में देवरभाभी के प्यार में एक शख्स को अपनी जान गंवानी पड़ गई. दरअसल पति को अपनी पत्नी और अपने भाई के बीच पनप रहे अवैध संबंधों की भनक लग गई थी. उस ने एकदो बार दोनों को रंगे हाथों पकड़ भी लिया था. इस के बाद पतिपत्नी के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. भाभी के प्यार में डूबे देवर को अच्छेबुरे का कुछ भी ख़याल नहीं रहा. उस ने भाभी के साथ मिल कर भाई को रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रच डाला.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के बिजनौर की एक घटना भी रिश्तों को शर्मसार करने वाली है. यहाँ की एक महिला ने अपने साथ हुए अपराध के बारे में पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाई. महिला के मुताबिक़ उसे घर में अकेला देख उस के देवर ने जबरन क्रूरता से उस के साथ दुष्कर्म किया और धमकी दे कर वहां से भाग गया.

ऐसी घटनाएं हमें एक सबक देती हैं. ये हमें बताती हैं कि कुछ बुरा घटित हो उस से पहले ही हमें सावधान रहना चाहिए खासकर कुछ रिश्तों जैसे नई भाभी और साथ रह रहे अविवाहित देवर या जेठ के मामले में सावधानी जरूरी है.

दरअसल जीजासाली की तरह ही देवरभाभी का रिश्ता भी बहुत खूबसूरत पर नाजुक होता है. नई दुल्हन जब नए घर में कदम रखती है तो नए रिश्तों से उस का सामना होता है. हमउम्र ननद और देवर जल्दी ही उस से घुलमिल जाते हैं. जेठ के साथ उसे थोड़ा लिहाज रखना पड़ता है. पर कहीं न कहीं देवर और जेठ के मन में भाभी के लिए सैक्सुअल अट्रैक्शन जरूर होता है. वैसे भी युवावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बहुत सहज प्रक्रिया है. ऐसे में जरूरी है अपने रिश्ते की मर्यादा संभाल कर रखने की ताकि भविष्य में कोई ऐसी घटना न हो जाए जिस से पूरे परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़े.

1. काउंसलिंग

सब से पहले घर के बड़ों का दायित्व है कि शादी से पूर्व ही घर में मौजूद भावी दूल्हे के अविवाहित भाइयों की काउंसलिंग करें. उन्हें समझाएं कि जब घर में नई दुल्हन कदम रखे तो उसे आदर की नजरों से देखें. रिश्ते की गांठ के साथसाथ आने वाली जिम्मेदारियां भी निभाऐं. भाभी का अपना व्यक्तित्व है और अपनी पसंद है इसलिए उस की इज्जत का ध्यान रखें.

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लड़की के मांबाप भी अपनी बेटी को विदा करने से पहले उसे ससुराल में रहने के कायदे सिखाएं. अपनी आंखों में लज्जा और व्यवहार में शालीनता की अनिवार्यता पर बल दें. बातों के साथसाथ अपने कपड़ों पर भी ध्यान देने की बात कहें.

2. थोड़ी प्राइवेसी भी जरुरी

अक्सर देखा जाता है कि छोटे घरों में भाभी, देवर, जेठ, ननद सब एक ही जगह बैठे हंसीमजाक या बातचीत करते रहते हैं. परिवार के सदस्यों का मिल कर बैठना या बातें करना गलत नहीं है. पर कई दफा देवर या जेठ नहाने के बाद केवल टॉवेल लपेट कर खुले बदन भाभी के आसपास घूमते रहते हैं. बहू को कोई अलग कमरा नहीं दिया जाता है. यह उचित नहीं है.

हमेशा नवल दंपत्ति को एक कमरा दे देना चाहिए ताकि बहू की प्राइवेसी बनी रहे. यदि संभव हो तो दूल्हादुल्हन के लिए छत पर एक कमरा बनवा दिया जाए या ऊपर का पूरा फ्लोर दे दिया जाए और अविवाहित देवर या जेठ मांबाप के साथ नीचे रह जाएं. इस से हर वक्त देवर या जेठ बहू के आसपास नहीं भटकेगें और लाज का पर्दा भी गिरा रहेगा.

3. जरूरत पड़े तो इग्नोर करें

इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक अनुजा कपूर कहती हैं कि यदि आप नईनवेली दुल्हन है और आप को महसूस हो रहा है जैसे अविवाहित देवर या जेठ आप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं तो आप को उन्हें इग्नोर करना सीखना पड़ेगा. भले ही देवर छोटा ही क्यों न हो. मान लीजिए कि आप का देवर मात्र 15 -16 साल का है और आप उसे सामान्य नजरों से देख रही हैैं. पर संभव है कि वह आप को दूसरी ही नजरों से देख रहा हो. याद रखें किशोरावस्था से ही इंसान विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होने लगता है. इसलिए उसे कभी भी बढ़ावा न दें.

दिल्ली में रहने वाली 40 वर्षीया निधि गोस्वामी कहती हैं,” जब मेरी नईनई शादी हुई और मैं ससुराल आई तो मेरा इकलौता देवर मुझ से बहुत जल्दी ही हिलमिल गया. घर में सासससुर भी थे पर दोनों बुजुर्ग होने की वजह से अक्सर अपने कमरे में ही रहते थे. इधर मेरे पति के जाने के बाद मेरा देवर अक्सर कमरे में आ जाता. मैं खाली समय में पेंटिंग बनाने का शौक रखती थी. पेंटिंग देखने के बहाने देवर अक्सर मुझे निहारता रहता या फिर मेरे हाथों को स्पर्श करने का प्रयास करता. पहले तो मैं ने इस बात को तूल नहीं दिया. पर धीरेधीरे मुझे एहसास हुआ कि देवर की इंटेंशन सही नहीं है. बस मैं ने उसे दूर रखने का उपाय सोच लिया. अब मैं जब भी अपने कमरे में आती तो दरवाजा बंद कर लेती. वह एकदो बार दरवाजा खुलवा कर अंदर आया पर मेरे द्वारा इग्नोर किए जाने पर बात उस की समझ में आ गई और वह भी अपनी मर्यादा में रहने लगा.”

इग्नोर किए जाने पर भी यदि आप के जेठ या देवर की हरकते नहीं रुकतीं तो उपाय है कि आप सख्ती से मना करें. इस से उन के आगे आप का नजरिया स्पष्ट हो जाएगा.

4. जब घर वाले दें प्रोत्साहन

प्राचीन काल से ही हमारे समाज में ऐसे रिवाज चलते आ रहे हैं जिस के तहत पति की मौत पर देवर या जेठ के साथ विधवा की शादी कर दी जाती है. इस में महिला की इच्छा जानने का भी प्रयास नहीं किया जाता. यह सर्वथा अव्यावहारिक है. इसी तरह कुछ घरों में ऐसी घटनाएं भी देखने को मिल जाती हैं जब पतिपत्नी की कोई संतान नहीं होती तो घर के किसी बुजुर्ग व्यक्ति की सलाह पर चोरीचुपके देवर या जेठ से बहू के शारीरिक संबंध बनवा दिए जाते हैं ताकि घर में बच्चे का आगमन हो जाए. इस तरह की घटनाएं भी महज शर्मिंदगी के और कुछ नहीं दे सकतीं. रिवाजों के नाम पर रिश्तों की तौहीन करना उचित नहीं.

कई घटनाएं ऐसी भी नजर आती हैं जब पत्नियां जेठ या देवर से अवैध सैक्स सम्बन्ध खुद खुशी खुशी बना लेती हैं. यह भी सर्वथा अनुचित है. क्योंकि इस का नतीजा कभी अच्छा नहीं निकलता. कितने ही घर ऐसे हालातों में बर्बाद हो चुके हैं. कुछ दिन बाद पोल खुल ही जाती है और घर तो टूटते ही हैं, कई जोड़ों में तलाक की नौबत आ सकती है.

5. बात करें

यदि कभी आप को महसूस हो कि देवर या जेठ की नजर सही नहीं और आप में ज्यादा ही इंटरेस्ट ले रहे हैं तो पहले तो खुद उन से दूर रहने का प्रयास करें. मगर यदि उन की कोई हरकत आप को नागवार गुजरे तो घर के किसी सदस्य से इस संदर्भ में बात जरूर करें. बेहतर होगा कि आप पति से बात करें और उन्हें भी सारी परिस्थितियों से अवगत कराएं. आप अपने मांबाप से भी बात कर सकती हैं. सास के साथ कम्फर्टेबल हैं तो उन से बात करें. घर में ननद है तो उस से सारी बातें डिसकस करें. इस से आप का मन भी हल्का जाएगा और सामने वाला आप को समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर सुझाएगा. संभव हो तो आप उस देवर या जेठ से भी इस संदर्भ में बात कर उन्हें समझा सकती हैं और अपना पक्ष स्पष्ट कर सकती हैं.

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6. जब देवर /जेठ को किसी से प्यार हो जाए

मान लीजिये कि आप के देवर को किसी लड़की से प्यार हो जाए. ऐसे में ज्यादातर देवर भाभी से यह सीक्रेट जरूर शेयर करते है. यदि वह बताने में शरमा रहा है तो भी उस के हावभाव से आप को इस बात का अहसास जरूर हो जाएगा. ऐसे समय में आप को एक अभिभावक की तरह उसे सही सलाह देनी चाहिए और कोई भी गलत कदम उठाने से रोकना चाहिए.

कामकाजी सास और घर बैठी बहू, कैसे निभे

कुमकुम भटनागर 55 साल की हैं पर देखने में 45 से अधिक की नहीं लगतीं. वह सरकारी नौकरी में हैं और काफी फिट हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं और आत्मविश्वास के साथ चलती हैं.

करीब 25 साल पहले अपने पति के कहने पर उन्होंने सरकारी टीचर के पद के लिए आवेदन किया. वह ग्रेजुएट थीं और कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. इस वजह से उन्हें जल्द ही नौकरी मिल गई. कुमकुम जी पूरे उत्साह के साथ अपने काम में जुट गईं.

उस वक्त बेटा छोटा था पर सास और पति के सहयोग से सब काम आसान हो गया. समय के साथ उन्हें तरक्की भी मिलती गई

आज कुमकुम खुद एक सास हैं. उन की बहू प्रियांशी पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. कुमकुम ऐसी ही बहू चाहती थीं. उन्होंने जानबूझकर कामकाजी नहीं बल्कि घरेलू लड़की को बहू बनाया क्योंकि उन्हें डर था कि सासबहू दोनों ऑफिस जाएंगी तो घर कौन संभालेगा?

प्रियांशी काफी मिलनसार और सुघड़ बहू साबित हुई. घर के काम बहुत करीने से करती. मगर प्रियांशी के दिल में कहीं न कहीं एक कसक जरूर उठती थी कि उस की सास तो रोज सजधज कर ऑफिस चली जाती है और वह घर की चारदीवारी में कैद है.

वैसे जॉब न करने का इरादा उस का हमेशा से रहा था. पर सास को देख कर एक हीनभावना सी दिल में उतरने लगती थी. कुमकुम अपने रुपए जी खोल कर खुद पर खर्च करतीं. कभीकभी बहूबेटे के लिए भी कुछ उपहार ले आतीं. मगर बहू को हमेशा पैसों के लिए अपने पति की बाट जोहनी पड़ती. धीरेधीरे यह असंतोष प्रियांशी के दिमाग पर हावी होने लगा. उस की सहेलियां भी उसे भड़काने का मजा लेती.

नतीजा यह हुआ कि प्रियांशी चिड़चिड़ी होती गई. खासकर सास की कोई भी बात उसे जल्दी अखरने लगी. घर में झगड़े होने लगे. एक हैप्पी फैमिली जल्द ही शिकायती फैमिली के रूप में तब्दील हो गई.

देखा जाए तो आज लड़कियां ऊँची शिक्षा पा रही हैं. कंपटीशन में लड़कों को मात दे रही हैं. भारत में आजकल ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं कामकाजी ही हैं. खासकर नई जेनेरेशन की लड़कियां घर में बैठना पसंद नहीं करतीं. ऐसे में यदि घर की सास ऑफिस जाए और बहू घर में बैठे तो कई बातें तकरार पैदा कर सकतीं हैं. आवश्यकता है कुछ बातों का ख्याल रखने की———

1. रुपयों का बंटवारा

यदि सास कमा रही है और अपनी मनमर्जी पैसे खर्च कर रही है तो जाहिर है कहीं न कहीं बहू को यह बात चुभेगी जरूर. बहू को रुपयों के लिए अपने पति के आगे हाथ पसारना खटकने लगेगा. यह बहू के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात होगी. वह मन ही मन सास के साथ प्रतियोगिता की भावना रखने लगेगी.

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ऐसे में सास को चाहिए कि अपनी और बेटे की कमाई एक जगह रखें और इस धन को कायदे से चार भागों में बांटें. एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करें. एक हिस्सा घर के खर्चों के लिए रखें. एक हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और किराया आदि के लिए रख दें. अब बाकी बचे एक हिस्से के रूपए बहू, बेटे और अपने बीच बराबर बराबर बाँट लें. इस तरह घर में रुपयों को ले कर कोई झगड़े नहीं होंगे और बहू को भी इंपोर्टेंस मिल जाएगी.

2. काम का बंटवारा

सास रोज ऑफिस जाएगी तो जाहिर है कि बहू का पूरा दिन घर के कामों में गुजरेगा. उसे कहीं न कहीं यह चिढ़न रहेगी कि वह अकेली ही खटती रहती है. उधर सास भी पूरे दिन ऑफिस का काम कर के जब थक कर लौटेगी तो फिर घर के कामों में हाथ बंटाना उस के लिए मुमकिन नहीं होगा. उस की बहू से यही अपेक्षा रहेगी कि वह गरमागरम खाना बना कर खिलाए.

इस समस्या का समाधान कहीं न कहीं एकदूसरे का दर्द समझने में छिपा हुआ है. सास को समझना पड़ेगा कि कभी न कभी बहू को भी काम से छुट्टी मिलनी चाहिए. उधर बहू को भी सास की उम्र और दिन भर की थकान महसूस करनी पड़ेगी.

जहां तक घर के कामों की बात है तो सैटरडे, संडे को सास घर के कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर बहू को आराम दे सकती है. वह बहू को बेटे के साथ कहीं घूमने भेज सकती है या फिर बाहर से खाना ऑर्डर कर बहू को स्पेशल फील करवा सकती है. इस तरह एकदूसरे की भावनाएं समझ कर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.

3. फैशन का चक्कर

कामकाजी सास की बहू को कहीं न कहीं यह जरूर खटकता है कि उस के देखे सास ज्यादा फैशन कर रही है. वह खुद तो सुबह से शाम तक घरगृहस्थी में फंसी पड़ी है और सास रोज नए कपड़े पहन कर और बनसंवर कर बाहर जा रही है. ऑफिस जाने वाली महिलाओं का सर्कल भी बड़ा हो जाता है. सास की सहेलियां और पॉपुलैरिटी बहू के अंदर एक चुभन पैदा कर सकती है.

ऐसे में सास का कर्तव्य है कि फैशन के मामले में वह बहू को साथ ले कर चले. बात कपड़ों की हो या मेकअप प्रोडक्ट्स की, सलून जाने की हो या फिर किटी पार्टी में जाने की, बहू के साथ टीम अप करने से सास की ख़ुशी और लोकप्रियता बढ़ेगी और बहु भी खुशी महसूस करेगी.

वैसे भी आजकल महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, टिपटॉप और स्मार्ट बन कर रहना समय की मांग है. हर पति यही चाहता है कि जब वह घर लौटे तो पत्नी का मुस्कुराता चेहरा सामने मिले. पत्नी स्मार्ट और खूबसूरत होगी तो घर का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा.

4. प्रोत्साहन जरूरी

यह आवश्यक नहीं कि कोई महिला तभी कामकाजी कहलाती है जब वह ऑफिस जाती है. आजकल घर से काम करने के भी बहुत सारे ऑप्शन हैं. आप की बहू घर से काम कर सकती है. वह किसी ऑफिस से जुड़ सकती है या फिर अपना काम कर सकती है. हर इंसान को प्रकृति ने कोई न कोई हुनर जरुर दिया है. जरूरत है उसे पहचानने की.

यदि आप की बहु के पास भी कोई हुनर है तो उसे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करें. वह कई तरह के काम कर सकती है जैसे पेंटिंग, डांस या म्यूजिक टीचर, राइटर, इवेंट मैनेजर, फोटोग्राफर, ट्रांसलेटर, कुकिंग एक्सपर्ट या फिर कुछ और. इन के जरिए एक महिला अच्छाखासा कमाई भी कर सकती है और समाज में रुतबा भी हासिल कर सकती है.

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5. घर में सास का रुतबा

पैसे के साथ इंसान का रुतबा बढ़ता है. बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी. जाहिर है जब पत्नी घरेलू हो और मां कमाऊ तो पति भी अपनी मां को ही ज्यादा भाव देगा. घर के हर फैसले पर मां की रजामंदी मांगी जाएगी. पत्नी को कोने में कर दिया जाएगा. इस से युवा पत्नी का कुढ़ना लाजमी है.

ऐसे में पति को चाहिए कि वह मां के साथसाथ पत्नी को भी महत्व दे. पत्नी युवा है, नई सोच और बेहतर समझ वाली है. वैसे भी पतिपत्नी गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए हैं. पत्नी को इग्नोर कर वह अपना ही नुकसान करेगा.

उधर मां भी उम्रदराज हैं और वर्किंग हैं. उन के पास अनुभवों की कमी नहीं. ऐसे में मां के विचारों का सम्मान करना भी उस का दायित्व है.

जरूरत है दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने की. घर की खुशहाली में घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है. इस बात को समझ कर समस्या को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है.

क्योंकि रिश्ते अनमोल होते हैं…

क्या कभी आपने सोचा है कि जो लोग हर मुश्किल घड़ी में हमारा साथ देते हैं हम उन्हें कितना समय दे पाते हैं. क्या अपने जीवन में हम उनकी अहमियत को समझते हैं अगर हां तो कितना…हमें शायद ये लगता है कि ये तो हमारे अपने हैं कहां जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे वो कब और कैसे हमसे दूर होते जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता. हमें ऐसा लगता है कि हम इनके लिए ही तो दिन रात मेहनत करते हैं काम करते हैं. शायद इसी बहाने के साथ हम एक ऐसी दुनिया की तरफ भागने लगते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं.

हम क्यों भाग रहे हैं किसके लिए भाग रहे हैं कभी गौर से सोचते भी नहीं. रोज सुबह के बाद दिन, महीने और फिर साल…बस यूं ही गुजरते रहते हैं. जबकि असल में जिंदगी का मतलब भीड़ में भागना नहीं है. हां ये सच है कि हमारे लिए काम और सक्सेस दोनों जरूरी. इसके लिए हेल्दी कंपटीशन की भावना हमारे अंदर होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम हमेशा काम को प्राथमिकता दें और परिवार को भूल जाएं. भई, जीवन में सब कुछ जरूरी है इसलिए काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. आखिर, काम के नाम पर हमेशा आपके अपनों को ही कंप्रमाइज क्यों करना पड़े.

लॉकडाउन ने दी सबक

लॉकडाउन ने सबको परिवार की अहमियत हो सिखा ही दी. साथ ही हम सभी को यह सबक भी दिया कि जिंदगी में भले एक दोस्त हो लेकिन वह सच्चा हो. सिर्फ दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ बढ़ाने वाले रिश्तों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि रियल लाइफ में कितने लोग आपका साथ देते हैं इससे फर्क पड़ता है.

रिलेशनशिप बॉन्डिंग क्यों जरूरी है

डॉक्टर नेहा गुप्ता (मेदांता हॉस्पिटल गुड़गांव) का कहना है कि, अगर अपने लोगों से बॉडिंग स्ट्रांग होती है तो हम मेंटली फिट रहते हैं और हमारी इम्यूनिटी भी स्ट्रांग होती है. आज के समय में रिश्ते लाइक और कमेंट में उलझ कर रह गए हैं. ऐसे में हमारे अहम रिश्ते दम तोड़ते जा रहे हैं और हम वर्चुअल दुनिया में ही खुशियां मना रहे हैं, जबकि यह झूठी और बनावटी दुनिया है.

बाद में पछताने से बेहतर है कि कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने अनमोल रिश्तों को जीवन भर के लिए अपना बना लें. फिर चाहे वे आपके परिवार के सदस्य हों, दोस्त हों या ऑफिस के सहकर्मी. याद रखिए रिश्ते तोड़ना आसान हैं लेकिन इसके बाद के परिणामों का भुगतना मुश्किल होता है.

रिश्तों को मजबूत बनाने के टिप्स

माफी मांगने या माफ करने में न हिचकिचाएं

एक-दूसरे पर विश्‍वास करना सीखें

खुलकर बात करें चाहे वे माता-पिता हों या बच्चे

नोक-झोंक प्यार का हिस्सा हैं इन्हें दिल पर न लें

रिश्ते तोड़ने का ख्याल मन से निकाल दें

सहकर्मी के साथ मजबूत रिश्ते बनाने के टिप्स

खुद पहल करते हुए बातचीत शुरू करें और काम के अलावा भी एक-दूसरे को जानने की कोशिश करें.
अगर ऑफिस में कोई आपसे रिश्ता न रखना चाहे तो नकारात्मक राय न बनाएं और सिर्फ ऑफिस संबंधी कामों में ही उसकी मदद करें.

सहकर्मियों में कॉमन इंट्रेस्ट तलाशें इससे दोस्ती करने में काफी आसानी होती है.

कलीग्स से रिलेशन स्ट्रांग करने के लिए अपनी बड़े या छोटे पद को भूलकर सबसे एक समान फ्रेंडली व्यवहार करें.

जब भी किसी सहकर्मी को आपकी जरूरत पड़े तो बिना हिचकिचाए उसकी मदद करें.

पर्सलन और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना है जरूरी

परिवार के सदस्यों, दोस्तों की अक्सर यही शिकायत रहती है कि हम उन्हें समय नहीं देते. जबकि हमें जब भी उनकी जरूरत होती है वे हमारे साथ होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम घर और काम को बैलेंस करके नहीं चलते हैं.

समय को बर्बाद न करें

काम के समय को पर्सनल चीजों में न गवाएं वरना ऑफिस का काम आपके लिए बोझ बन जाएगा और तय समय में पूरा भी नहीं हो पाएगा. अगर ऑफिस के समय ही काम खत्म हो जाएगा तभी आप बिना किसी टेंशन के अपनी दूसरी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे.

जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ेगा भारी

अगर आपको अपनी क्षमता पता है और संकोच के कारण काम के लिए मना नहीं कर पा रहे हैं तो इस आदत को बदल दीजिए. आप अपने सीनियर्स से विनम्रता के साथ कह सकते हैं कि पहले आप जो काम कर रहे हैं उसे खत्म करने के बाद नए काम को पूरा कर पाएंगे.

महत्त्व के हिसाब से प्राथमिकता तय करें

अगर आप अपनी वर्क लाइफ को बैलेंस करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी प्राथमिकता तय करें. आपको रोज बहुत से काम करने होते हैं लेकिन आपको यह पता होता है कि कौन सा काम ज्यादा जरूरी है और किस काम को थोड़े समय के लिए टाला जा सकता है. इससे आपका दिमाग शांत रहेगा और काम भी हो जाएगा.

पति को निर्भर बनाएं अपने ऊपर

‘नाम मानसी मल्होत्रा, उम्र 30 वर्ष, विवाहित, शिक्षा बी.ए., एम.ए. घरेलू कार्यों में सुघड़. पति का गारमेंट्स का अच्छा व्यापार, छोटा परिवार, 2 बच्चे, 8 वर्षीय बेटी, 5 वर्षीय बेटा. दिल्ली के पौश इलाके में अपना घर, घर में नौकरचाकर, गाड़ी, सुखसुविधाओं की कोई कमी नहीं.’ फिर भी मानसी परेशान रहती है. आप हैरान हो गए न, अरे भई, सुखी जीवन के लिए और क्या चाहिए, इतना सब कुछ होते हुए भी कोई कैसे परेशान रह सकता है? लेकिन मानसी खुश नहीं है. घरपरिवार, प्यार करने वाला पति, बच्चे, आर्थिक संपन्नता सब कुछ होते हुए भी मानसी तनावग्रस्त रहती है. उसे लगता है कि उस की पढ़ाईलिखाई सब व्यर्थ हो गई. उस का सदुपयोग नहीं हो रहा है. वह बच्चों को तैयार कर के, लंच पैक कर के स्कूल भेजने, नौकरों पर हुक्म चलाने, शौपिंग करने, फोन पर गप्पें लड़ाने के अलावा और कुछ नहीं करती.

क्या ये सब करने के लिए उस के मातापिता ने उसे उच्च शिक्षा दिलाई थी? सब उसे एक हाउस वाइफ का दर्जा देते हैं. पति की कमाई पर ऐश करना मानसी को खुशी नहीं देता. वह चाहती है कि अपने दम पर कुछ करे, पति के काम में सहयोगी बने, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करे  क्या घर से बाहर जा कर नौकरी करना ही शिक्षा का सदुपयोग है? क्या यही नारीमुक्ति व नारी की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, नहीं यह केवल स्वैच्छिक सुख है, जिस के जरिए महिलाएं आर्थिक आत्मनिर्भरता का दम भरती हैं और घर में महायुद्ध मचता है. क्या किसी महिला के नौकरी भर कर लेने से उसे सुकून और शांति मिल सकती है? इस का जवाब आप सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक बसों में धक्के खा कर, भागतेभागते घर की जिम्मेदारियों को निबटा कर नौकरी करने वाली महिलाओं से पूछिए.

28 वर्षीय आंचल अग्रवाल पीतमपुरा में रहती हैं, जनकपुरी में नौकरी करती हैं. सुबह 10 बजे के आफिस के लिए उन्हें 9 बजे घर से निकलना पड़ता है. रात को 7 बजे बसों में धक्के खा कर घर पहुंचती हैं. घर पहुंचते ही घर का काम उन का स्वागत करता है. अपनी सेहत, स्वास्थ्य, परिवार के लिए उन के पास कोई समय नहीं है. नौकरी की आधी कमाई तो आनेजाने व कपड़ों पर खर्च हो जाती है, ऊपर से तनाव अलग होता है. जब पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तब इस बात पर बहस होती है कि यह काम मेरा नहीं, तुम्हारा है. जबकि अगर पति घर से बाहर कमाता है और पत्नी घर में रह कर घर और बच्चे संभालती है तो काम का दायरा बंट जाता है और गृहक्लेश की संभावना कम हो जाती है. घर पर रह कर महिलाएं न केवल पति की मदद कर सकती हैं बल्कि उन्हें पूरी तरह अपने पर निर्भर बना कर पंगु बना सकती हैं. उस स्थिति में आप के पति आप की मदद के बिना एक कदम भी नहीं चल पाएंगे. कैसे, खुद ही जानिए :

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घर की मेंटेनेंस में योगदान

एक पढ़ीलिखी गृहिणी घर की टूटफूट मसलन, प्लंबिंग, इलेक्ट्रिसिटी वर्क, घर के पेंट पौलिश बिना पति की मदद के बखूबी करा सकती है. कुछ महिलाएं चाहे घर के नल से पानी बह रहा हो, बिजली का फ्यूज उड़ जाए, दीवारों से पेंट उखड़ रहा हो, वे चुपचाप बैठी रहती हैं, पति की छुट्टी का इंतजार करती हैं कि कब वे घर पर होंगे और घर की मेंटेनेंस कराएंगे. वे घर की इन टूटफूट के कामों के लिए पति की जिम्मेदारी मानती हैं. बेचारे पति एक छुट्टी में इन सभी कामों में लगे रहते हैं और झुंझलाते रहते हैं, ‘‘क्या ये काम तुम घर पर रह कर करा नहीं सकती हो?’’

स्वाति घर पर ही रहती है. पढ़ीलिखी है. वह घर की इन छोटीमोटी जरूरतों का खुद ध्यान रखती है. जब भी कोई परेशानी हुई, मिस्त्री को फोन कर के बुलाती है और स्वयं अपनी निगरानी में ये सभी काम कराती है. स्वाति के इस नजरिए से उस के पति मेहुल बहुत खुश रहते हैं.

बच्चों की शिक्षा में मदद

अगर आप पढ़ीलिखी हैं और हाउस वाइफ हैं तो बच्चों की शिक्षा में आप अपनी पढ़ाईलिखाई का सदुपयोग कर सकती हैं. बच्चों को घर से बाहर ट्यूशन पढ़ाने भेजने के बजाय आप स्वयं अपने बच्चों को पढ़ा सकती हैं. इस से व्यर्थ के खर्च में तो बचत होगी ही, साथ ही बच्चे पढ़ाई में कैसा कर रहे हैं, आप की उन पर नजर भी रहेगी. बच्चों की स्कूली गतिविधियों में आप भाग ले सकती हैं. मेहुल अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई उन की पी.टी.एम., उन की फीस जमा कराना इन सभी के लिए स्वाति पर निर्भर रहता है, क्योंकि उसे तो आफिस से समय मिलता नहीं और उस की गैरहाजिरी में स्वाति इन सभी कार्यों को बखूबी निभाती है. इस से स्वाति के समय का तो सदुपयोग होता ही है, साथ ही उसे संतुष्टि भी होती है कि उस की शिक्षा का सही माने में उपयोग हो रहा है. बच्चों का अच्छा परीक्षा परिणाम देख कर मेहुल स्वाति की तारीफ करते नहीं थकता. बच्चों की शिक्षा को ले कर वह पूरी तरह से स्वाति पर निर्भर है.

परिवार की सेहत में मददगार

एक पढ़ीलिखी गृहिणी घर के स्वास्थ्य व सेहत के मसले पर भी पति को बेफिक्र कर सकती है. अभी पिछले दिनों की बात है, स्वाति की सास को अचानक दिल का दौरा पड़ा, तब मेहुल की आफिस में कोई महत्त्वपूर्ण मीटिंग चल रही थी. वह आफिस छोड़ कर आ नहीं सकता था, तब स्वाति ने ही पहले डाक्टर को घर पर बुलाया और जब डाक्टर ने कहा कि इन्हें फौरन अस्पताल ले जाइए, तब स्वाति एक पल का भी इंतजार किए बिना सास को स्वयं ड्राइव कर के अस्पताल ले कर गई. वहां अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के सास को अस्पताल में दाखिल कराया.

डाक्टरों से सारी बातचीत, उन का इलाज, सारी भागदौड़ स्वयं स्वाति ने पूरी जिम्मेदारी से निभाई. इसी का परिणाम है कि आज स्वाति की सास पूरी तरह ठीक हो कर घर पर हैं. अगर उस दिन स्वाति ने फुर्ती व सजगता न दिखाई होती तो कुछ भी हो सकता था. मेहुल की अनुपस्थिति में उस ने अपनी शिक्षा व आत्मविश्वास का पूरा सदुपयोग और मेहुल के दिल में हमेशा के लिए जगह बना ली. जब पति घर से बाहर होते हैं और पत्नी घर पर होती है तो वह बच्चों, घरपरिवार की सेहत का पूरा ध्यान रख सकती है और पति को बेफिक्र कर के अपने ऊपर निर्भर बना सकती है.

हर क्षेत्र में भागीदार

पढ़ीलिखी पत्नियां घर पर रह क र पति की गैरहाजिरी में घर की सारी जिम्मेदारियां निभा कर पति को पंगु बना सकती हैं. घर के जरूरी सामानों की खरीदारी, घर की साफसफाई, बच्चों की शिक्षा, सेहत, घर का आर्थिक मैनेजमेंट, कानूनी दांवपेच, घर की मेंटेनेंस, गाड़ी की सर्विसिंग ये सभी काम, जिन के लिए अधिकांश पत्नियां पतियों के खाली समय होने का इंतजार करती हैं और कामकाजी पति के समयाभाव के कारण जरूरी कार्य टलते रहते हैं और घर में क्लेश होता है.

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एक सुघड़ पत्नी अपने गुणों से पति को अपने काबू में कर सकती है. अगर आप घर की ए टू जेड जिम्मेदारियां संभाल लेंगी तो पति स्वयंमेव आप के बस में हो जाएंगे, वे आप के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाएंगे. नौकरी से केवल आप पति की आर्थिकमददगार बनती हैं लेकिन घर संभाल कर आप उन के हर क्षेत्र में भागीदार बनती हैं. जब पत्नियां पति की सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं तो पति भी उस से खुश रहते हैं, उन की हर संभव मदद करते हैं न कि जिम्मेदारियों को ले कर तूतू मैंमैं करते हैं. सलिए अगर पति के दिल पर राज करना है, अपने खाली समय का सदुपयोग करना है, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करना है, व्यर्थ के तनाव से बचना है तो घर की हर जिम्मेदारी संभालिए. स्वयं को पूरी तरह व्यस्त कर लीजिए. पति को पूरी तरह अपने ऊपर निर्भर बना दीजिए. अगर वह घर पर हों तो बिना आप की मदद के कुछ भी न कर सकें, इतना अपने ऊपर निर्भर बना दीजिए उन को. फिर देखिए, वे कैसे दिनरात आप के नाम की माला जपेंगे और घर में हर तरफ खुशियों की बहार आ जाएगी.

ऐसे सिखाएं बच्चों को तहजीब, ताकि वह बन सके एक बेहतर इंसान

चलती ट्रेन में ठीक मेरे सामने एक जोड़ा अपने 2 बच्चे के साथ बैठा था. बड़ी बेटी करीब 8-10 साल की और छोटा बेटा करीब 5-6 साल का. भावों व पहनावे से वे लोग बहुत पढ़ेलिखे व संभ्रांत दिख रहे थे. कुछ ही देर में बेटी और बेटे के बीच मोबाइल के लिए छीनाझपटी होने लगी. बहन ने भाई को एक थप्पड़ रसीद किया तो भाई ने बहन के बाल खींच लिए. यह देख मुझे भी अपना बचपन याद आ गया.

रिजर्वेशन वाला डब्बा था. उन के अलावा कंपार्टमैंट में सभी बड़े बैठे थे. अंत: मेरा पूरा ध्यान उन दोनों की लड़ाई पर ही केंद्रित था.

उन की मां कुछ इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल करती हुई उन्हें लड़ने से रोक रही थी, ‘‘नो बेटा, ऐसा नहीं करते. यू आर अ गुड बौय न.’’

‘‘नो मौम यू कांट से दैट. आई एम ए बैड बौय, यू नो,’’ बेटे ने बड़े स्टाइल से आंखें भटकाते हुए कहा.

‘‘बहुत शैतान है, कौन्वैंट में पढ़ता है न,’’ मां ने फिर उस की तारीफ की. बेटी मोबाइल में बिजी हो गई थी.

‘‘यार मौम मोबाइल दिला दो वरना मैं इस की ऐसी की तैसी कर दूंगा.’’

‘‘ऐसे नहीं कहते बेटा, गंदी बात,’’ मौम ने जबरन मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्लीज मौम डौंट टीच मी लाइक ए टीचर.’’

अब तक चुप्पी साधे बैठे पापा ने उसे समझाना चाहा, ‘‘मम्मा से ऐसे बात करते हैं•’’

‘‘यार पापा आप तो बीच में बोल कर मेरा दिमाग खराब न करो,’’ कह बेटे ने खाई हुई चौकलेट का रैपर डब्बे में फेंक दिया.

‘‘यह तुम्हारी परवरिश का असर है,’’ बच्चे द्वारा की गई बदतमीजी के लिए पापा ने मां को जिम्मेदार ठहराया.

‘‘झूठ क्यों बोलते हो. तुम्हीं ने इसे इतनी छूट दे रखी है, लड़का है कह कर.’’

अब तक वह बच्चा जो कर रहा था और ऐसा क्यों कर रहा था, इस का जवाब वहां बैठे सभी लोगों को मिल चुका था.

दरअसल, हम छोटे बच्चों के सामने बिना सोचेसमझे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोलते चले जाते हैं, बगैर यह सोचे कि वह खेलखेल में ही हमारी बातों को सीख रहा है. हम तो बड़े हैं. दूसरों के सामने आते ही अपने चेहरे पर फौरन दूसरा मुखौटा लगा देते हैं, पर वे बच्चे हैं, उन के अंदरबाहर एक ही बात होती है. वे उतनी आसानी से अपने अंदर परिवर्तन नहीं ला पाते. लिहाजा उन बातों को भी बोल जाते हैं, जो हमारी शर्मिंदगी का कारण बनती हैं.

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आज के इस व्यस्ततम दौर में अकसर बच्चों में बिहेवियर संबंधी यही समस्याएं देखने को मिलती हैं. जैसे मनमानी, क्रोध, जिद, शैतानी, अधिकतर पेरैंट्स की यह परेशानी है कि कैसे वे अपने बच्चों के बिहेवियर को नौर्मल करें ताकि सब के सामने उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. बच्चे का गलत बरताव देख कर हमारे मुंह से ज्यादातर यही निकलता है कि अभी उस का मूड सही नहीं है. परंतु साइकोलौजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट का कहना है कि यह मात्र उस का मूड नहीं, बल्कि अपने मनोवेग पर उस का नियंत्रण न रख पाना है.

इस बारे में बाल मनोविज्ञान के जानकार डा. स्वतंत्र जैन आरंभ से ही बच्चों को स्वविवेक की शिक्षा दिए जाने के पक्ष में हैं ताकि बच्चा अच्छेबुरे में फर्क करने योग्य बन सके. अपने विचारों को बच्चों पर थोपना भी एक तरह से बाल कू्ररता है और यह उन्हें उद्वेलित करती है.

क्या करें

  • बच्चों के सामने आपस में संवाद करते वक्त बेहद सावधानी बरतें. आप का लहजा, शब्द बच्चे सभी कुछ आसानी से कौपी कर लेते हैं.
  • बच्चों को किसी न किसी क्रिएटिव कार्य में उलझाए रखें. ताकि वे बोर भी न हों और उन में सीखने की जिज्ञासा भी बनी रहे.
  • अपने बीच की बहस या झगड़े को उन के सामने टाल दें. बच्चों के सामने किसी भी बहस से बचें.
  • बच्चों को खूब प्यार दें. मगर साथ ही जीवन के मूल्यों से भी उन का परिचय कराते चलें. खेलखेल में उन्हें अच्छी बातें छोटीछोटी कहानियों के माध्यम से सिखाई जा सकती हैं. इस काम में बच्चों के लिए कहानियां प्रकाशित होने वाली पत्रिका चंपक उन के लिए बेहद मनोरंजक व ज्ञानवर्धक साबित हो सकती है.
  • रिश्तों के माने और महत्त्व जानना बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उतना ही जरूरी है, जितना एक स्वस्थ पेड़ के लिए सही खादपानी का होना.
  • समयसमय पर अपने बच्चों के साथ क्वालिटी वक्त बिताएं. इस से आप को उन के मन में क्या चल रहा है, यह पता चल सकेगा और समय पर उन की गलतियों को भी सुधारा जा सकेगा.
  • बच्चों के हिंसक होने पर उन्हें मारनेपीटने के बजाय उन्हें उन की मनपसंद ऐक्टिविटी से दूर कर दें. जैसे आप उन्हें रोज की कहानियां सुनाना बंद कर सकते हैं. उन से उन का मनपसंद खिलौना ले कर कह सकते हैं कि अगर उन्होंने जिद की या गलत काम किए तो उन्हें खिलौना नहीं मिलेगा.

क्या करें

  • बच्चों को बच्चा समझने की भूल हरगिज न करें. माना कि आप की बातचीत के समय वे अपने खेल या पढ़ाई में व्यस्त हैं. पर इस दौरान भी वे आप की बातों पर गौर कर सकते हैं. समझने की जरूरत है कि बच्चों को दिमाग हम से अधिक शक्तिशाली व तेज होता है.
  • बच्चों पर अपनी बात कभी न थोपें, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें अच्छी बातें भी बोझ लगती हैं, लिहाजा बच्चे निराश हो सकते हैं. सकारात्मक पहल कर उन्हें किसी भी काम के फायदे व नुकसान से बड़े प्यार से अवगत कराएं.
  • बच्चों की कही किसी भी बात को वक्त निकाल कर ध्यान से सुनें. उसे इग्नोर न करें.
  • बच्चों की तुलना घर या बाहर के किसी दूसरे बच्चे से हरगिज न करें. ऐसा कर आप उन के मन में दूसरे के प्रति नफरत बो रहे हैं. याद रहे कि हर बच्चा अपनेआप में यूनीक और खास होता है.
  • आज के अत्याधुनिक युग में हर मांबाप अपने बच्चों को स्मार्ट और इंटैलिजैंट देखना चाहते हैं. अत: बच्चों के बेहतर विकास के लिए उन्हें स्मार्ट अवश्य बनाएं. पर समय से पूर्व मैच्योर न होने दें.

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  • बच्चों को अपने सपने पूरा करने का जरीया न समझें, बल्कि उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दें. मसलन, जिंदगी में आप क्या करना चाहते थे, क्या नहीं कर पाए. उस पर अपनी हसरतें न लादें, बल्कि उन्हें अपने सपने पूरा करने का अवसर व हौसला दें ताकि बिना किसी पूर्वाग्रह के वे अपनी पसंद चुनें और सफल हों.
  • विशेषज्ञों की राय अनुसार बच्चों से बाबा, भूतप्रेत आदि का डर दिखा कर कोई काम करवाना बिलकुल सही नहीं है. ऐसा करने से बच्चे काल्पनिक परिस्थितियों से डरने लगते हैं. इस से उन का मानसिक विकास अवरुद्ध होता है और वे न चाहते हुए भी गलतियां करने लगते हैं.
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