Hindi Family Story: सारा जहां अपना- मयंक ने अंजलि को कैसे समझाया

Hindi Family Story: मयंक बेचैनी से कमरे में चहल- कदमी कर रहा था. रात के 10 बज चुके थे. वह सोने जा रहा था कि दीप के स्कूल से आए प्रधानाचार्य के फोन ने उसे परेशान कर दिया. प्रधानाचार्य ने कहा था कि दीप बीमार है और आप को याद कर रहा है.

‘‘उसे हुआ क्या है?’’ घबरा कर मयंक ने पूछा.

‘‘वायरल फीवर है.’’

‘‘कब से?’’

‘‘सुस्त तो वह कल शाम से ही था, पर फीवर आज सुबह हुआ है,’’ प्रधानाचार्य ने बताया.

‘‘क्या बेहूदा मजाक है,’’ मयंक के स्वर में सख्ती घुल गई थी, ‘‘तुरंत आप ने चैकअप क्यों नहीं करवाया? बच्चों की ऐसी ही देखभाल करते हैं आप लोग? मेरे बेटे को कुछ हो गया तो…’’

‘‘आप बेवजह नाराज हो रहे हैं,’’ प्रधानाचार्य ने उस की बात बीच में काट कर विनम्रता से कहा था, ‘‘यहां रहने वाले सभी बच्चों का घर की तरह खयाल रखा जाता है, पर उन्हें जब मांबाप की याद आने लगे तो उदास हो जाते हैं. यद्यपि हम पूरी कोशिश करते हैं कि ऐसा न हो, पर नए बच्चों के साथ अकसर ऐसी समस्या आ जाती है.’’

‘‘दीप अब कैसा है?’’ प्रधानाचार्य की विनम्रता से प्रभावित हो कर मयंक सहजता से बोला था.

‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. डाक्टर के साथ मैं लगातार उस की देखभाल कर रहा हूं. आप सुबह आ कर उस से मिल लें तो बेहतर रहेगा.’’

वह तो इसी वक्त जाना चाहता था पर पिछले 2 घंटे से तेज बारिश हो रही थी. अब तक तो पूरा शहर टापू बन चुका होगा. रास्ते में कहीं स्कूटर फंस गया तो मुसीबत और बढ़ जाएगी. फिलहाल जाने का विचार छोड़ कर वह सोफे पर पसर गया. सामने फे्रम में जड़ी अंजलि की मुसकराती तसवीर रखी थी. उस के बारे में सोच कर उस के मुंह का स्वाद कसैला हो गया.

अंजलि सिर्फ बौस, आफिस और अपने बारे में ही सोचती थी और किसी विषय में सोचनेसमझने का उस के पास समय ही नहीं था. उस पर तो हर पल काम, तरक्की और अधिक से अधिक पैसा कमाने की धुन सवार थी. मशीनी युग में वह मशीन बन गई थी, शायद इसीलिए उस के दिल में बेटे और पति के लिए कोई संवेदना नहीं थी. अब तो मयंक अकेला रहने का अभ्यस्त हो गया था. कभीकभी न चाहते हुए भी समझौता करना पड़ता है. यही तो जिंदगी है.

अचानक बिजली चली गई. कमरा घने अंधकार के आगोश में सिमट गया. वह यों ही निश्चल और निश्चेष्ट बैठा अपने जीवन के बारे में सोचता रहा. अब उस के भीतर और बाहर फैली स्याही में कोई फर्क नहीं था. कुछ देर बाद गरमी से घुटन होने पर वह उठा और दीवार का सहारा लेते हुए खिड़की खोली. ठंडी हवा के झोंकों से उस के तपते दिमाग को राहत मिली.

बाहर बारिश का तेज शोर शांति भंग कर रहा था. सहसा तेज ध्वनि के साथ बिजली चमक कर कहीं दूर गिरी. उसे लगा कि ऐसी ही बिजली उस के आंगन में भी गिरी है, जिस में उस का सुखचैन, अंजलि का प्रेम और दीप का चुलबुला बचपन राख हो चुका है. उस ने तो सहेजने की बहुत कोशिश की पर सबकुछ बिखरता चला गया.

6 साल का दीप पहले कितना शरारती था. उस के साथ घर का हर कोना खिलखिलाता था पर अब तो वह हंसना ही भूल गया था. उस के और अंजलि के बीच आएदिन होने वाले झगड़ों में दीप का मासूम बचपन खो चुका था. विवाद टालने के लिए वह कितना एडजस्ट करता था और अंजलि थी कि छोटी से छोटी बात पर आसमान सिर पर उठा लेती थी. उस का छोटा सा घर, जिसे उस ने बड़े प्यार से सींचा था, ज्वालामुखी बन चुका था, जिस की आंच में अब वह हर पल सुलगता था. मयंक की आंखों में आंसुओं के साथ बीती यादें चुपके से उतर कर तैरने लगीं.

वह अपने आफिस की ओर से जिस मल्टी नेशनल कंपनी में फाइनेंशियल डील के लिए गया था, अंजलि वहां अकाउंटेंट थी. हायहैलो के साथ शुरू हुई औपचारिक मुलाकात रेस्तरां में चाय की चुस्कियों के साथ दिल की गहराई तक जा पहुंची थी. 1 साल के भीतर दोनों विवाह के बंधन में बंध गए. मयंक हनीमून के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाना चाहता था. उस ने आफिस में छुट्टी के लिए अर्जी दे दी थी, पर अंजलि तैयार नहीं हुई.

‘पहले कैरियर सैटल हो जाने दो, हनीमून के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है.’

‘अच्छीखासी तो नौकरी है,’ मयंक ने उसे समझाने का प्रयास किया, ‘मोटी तनख्वाह मिलती है, और क्या चाहिए?‘

‘जो मिल जाए उसी में संतुष्ट रहने से इनसान कभी तरक्की नहीं कर सकता,’ अंजलि ने परोक्ष रूप से उस पर कटाक्ष किया, ‘मिडिल क्लास की सोच सीमित दायरे में सिमटी रहती है, इसीलिए वह हाई सोसायटी में एडजस्ट नहीं हो पाता.’

मयंक तिलमिला कर रह गया.

‘बड़ा आदमी बनने के लिए बड़े ख्वाब देखने पड़ते हैं और उन्हें साकार करने के लिए कड़ी मेहनत,’ अंजलि बोली, ‘अभी स्टेटस सिंबल के नाम पर हमारे पास क्या है? कार, बंगला, ए.सी. और नौकरचाकर कुछ भी तो नहीं. इस खटारा स्कूटर और 2 कमरे के फ्लैट में कब तक खटते रहेंगे?’

‘तुम्हें तो किसी अरबपति से शादी करनी चाहिए थी,’ मयंक कुढ़ कर बोला, ‘मेरे साथ यह सब नहीं मिल सकेगा.’

मयंक को मन मार कर छुट्टी कैंसिल करानी पड़ी. घर की सफाई और खाना बनाने के लिए बाई थी. कई जगह काम करने के कारण वह शाम को कभीकभार लेट हो जाती थी.

मयंक कभी चाय की फरमाइश करता तो अंजलि टीवी प्रोग्राम पर निगाह जमाए बेरुखी से जवाब देती, ‘तुम आफिस से आए हो तो मैं भी घर में नहीं बैठी थी. 2 कप चाय बनाने में थक नहीं जाओगे.’

‘ये तुम्हारा काम है.’‘मेरा क्यों?’ वह चिढ़ जाती, ‘तुम्हारा क्यों नहीं? तुम से पहले आफिस जाती हूं और काम भी तुम से अधिक टिपिकल करती हूं. अकाउंट संभालना हंसीखेल नहीं है.’

इस के बाद तो मयंक के पास 2 ही रास्ते बचते थे, खुद चाय बनाए या बाई के आने का इंतजार करे. दूसरा विकल्प उसे ज्यादा मुफीद लगता था. वह नारीपुरुष समानता का विरोधी नहीं था. पर अंजलि को भी तो उस के बारे में कुछ सोचना चाहिए. जब वह शांत हो जाता तो अंजलि अपने लिए एक कप चाय बना कर टीवी देखने में मशगूल हो जाती और वह अपमान के घूंट पी कर रह जाता था. उस के वैवाहिक जीवन की नौका डोलने लगी थी.

मयंक ने सदा ऐसी पत्नी की कल्पना की थी जो उस के प्रति समर्पित रहे. केवल अहं की तुष्टि के लिए समानता की बात न करे, बल्कि सुखदुख में बराबर की भागीदार रहे. उस के मन को समझे, हृदय की गहराई से प्यार करे और जिस के आंचल की छांव तले वह दो पल सुखशांति से विश्राम कर सके. बाई के बनाए खाने से पेट तो भर जाता था, पर मन भूखा ही रह जाता था. काश, अंजलि कभी अपने हाथ से एक कौर ही खिला देती तो वह तृप्त हो जाता.

एक सुबह अंजलि आफिस के लिए तैयार हो रही थी कि तेज चक्कर आने लगे. मयंक उसे तुरंत अस्पताल ले गया. चैकअप कर के डाक्टर ने बधाई दी कि वह मां बनने वाली है.

‘मैं अभी बच्चा अफोर्ड नहीं कर सकती.’

‘तो पहले से सेफ्टी करनी थी.’

‘आगे से ध्यान रखूंगी,’ उस ने लापरवाही से कंधे उचकाए, ‘फिलहाल तो इस बच्चे का गर्भपात चाहती हूं.’

‘ये खतरनाक हो सकता है,’ डाक्टर गंभीरता से बोली, ‘संभव है आप भविष्य में फिर कभी मां न बन सकें.’

‘अपना भलाबुरा मैं बेहतर समझती हूं. आप अपनी फीस बताइए.’

‘अंजलिजी,’ वह सख्ती से बोली, ‘डाक्टर के लिए मरीज का हित सर्वोपरि होता है. आप के लिए जो उचित था, मैं ने बता दिया. वैसे भी यहां भू्रणहत्या नहीं की जाती है.’

‘आप नहीं करेंगी तो कोई और कर देगा.’

‘बेशक, शहर में ऐसे डाक्टरों की कमी नहीं है जो रुपयों के लालच में इस घिनौने काम को अंजाम दे देंगे, पर मैं ने कइयों को जिद पूरी होने के बाद औलाद के लिए तड़पते देखा है.’

उस दिन घर में तनाव का माहौल रहा. मयंक चाहता था कि आंगन मासूम किलकारियों से गुलजार हो. हो सकता है मां बनने के बाद अंजलि के स्वभाव में परिवर्तन आ जाए, तब गृहस्थी की बगिया महक उठेगी, पर अंजलि तैयार नहीं थी. उस का तर्क था कि यही तो उम्र है कुछ कर गुजरने की. अभी से बालबच्चों के भंवर में उलझ गई तो लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकेगी? सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए टैलेंट के साथ आकर्षक फिगर भी चाहिए, वरना कौन पूछता है.

मयंक बड़ी मुश्किल और मिन्नतों के बाद उसे राजी कर सका.

अंजलि ने ठीक समय पर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. अपने प्रतिरूप को देख मयंक निहाल हो गया. बेटे ने उस का उजड़ा मन प्रकाश से भर दिया था इसलिए बड़े प्यार से उस का नाम दीप रखा. दिन में उस की देखभाल करने के लिए मयंक ने एक अच्छी आया का प्रबंध कर लिया था.

बेटे को जन्म तो अंजलि ने दिया था, पर मां की भूमिका मयंक निभा रहा था. दीप सुबहशाम उस की बांहों के झूले में झूल कर बड़ा होने लगा.

वह 4 साल का हो गया था.

रात के 10 बज चुके थे, अंजलि आफिस से नहीं लौटी थी. मयंक उस के मोबाइल पर कई बार फोन कर चुका था. घंटी जा रही थी, पर वह रिसीव नहीं कर रही थी. उस ने आफिस फोन किया, वहां से भी कोई उत्तर नहीं मिला. वैसे भी इस वक्त वहां किसी को नहीं होना था. दीप को सुला कर वह जागता रहा. अंजलि 12 बजे के बाद आई.

‘कहां थी अब तक?’ मयंक ने सवाल दागा, ‘मैं कितना परेशान हो गया था.’

‘मेरा प्रमोशन बौस की प्राइवेट सेके्रटरी के पद पर हो गया,’ उस की चिंता से बेफिक्र वह मुदित मन से बोली, ‘कंपनी की ओर से शानदार बंगला और ए.सी. गाड़ी मिलेगी. प्रमोशन की खुशी में बौस ने पार्टी दी थी, वहीं बिजी थी.’

‘फोन तो रिसीव कर लेती.’

‘शोरशराबे में आवाज नहीं सुनाई दी.’

‘तुम ने ड्रिंक ली है?’ उस के मुंह से आती महक ने उसे आंदोलित कर दिया.

‘कम आन डियर,’ अंजलि ने लापरवाही से कहा, ‘बौस नहीं माने तो थोड़ी सी लेनी पड़ी. उन्हें नाराज तो नहीं कर सकती न, सब का खयाल रखना पड़ता है.’

‘शर्म आती है तुम्हारी बातें सुन कर. मेरी कभी परवा नहीं की और दूसरों की खुशी के लिए मानमर्यादा ताक पर रख दी.’

‘व्हाट नौनसेंस,’ वह बिफर पड़ी, ‘यू आर मेंटली इल. मेरा कद तुम से ऊंचा हो गया तो जलन होने लगी.’

‘तुम सिर्फ अपने बारे में सोचती हो इसलिए ऐसे घटिया विचार तुम्हारे दिमाग में ही आ सकते हैं.’

‘तुम ने मुझे नीच कहा,’ वह क्रोध से कांपने लगी.

‘अभी तुम होश में नहीं हो,’ मयंक ने विस्फोटक होती स्थिति को संभालने की कोशिश की, ‘सुबह बात करेंगे.’

‘तुम्हारा असली रूप देख कर होश में तो आज आई हूं. मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तुम जैसे संकीर्ण इनसान के साथ मैं ने इतने दिन कैसे गुजार लिए.’

पानी सिर के ऊपर बहने लगा था. मयंक की इच्छा हुई कि उस का नशा हिरन कर दे, पर इस से बात बिगड़ सकती थी.

दीप जाग गया था और मम्मीपापा को चीखतेचिल्लाते देख सहमा सा खड़ा था. मयंक उसे ले कर दूसरे कमरे में चला गया. अंजलि इस के बाद भी काफी देर तक बड़बड़ाती रही.

अब वह अकसर देर रात को लौटती और कभीकभी अगले दिन. मयंक पूछता तो पार्टी या टूर की बात कह कर बेरुखी से टाल देती. अब तो डिं्रक लेना उस के लिए रोजमर्रा की बात हो गई थी. मयंक समझाने की कोशिश करता तो दंगाफसाद शुरू हो जाता था. इस दमघोंटू माहौल में दीप अंतर्मुखी होता जा रहा था. उस का बचपन जैसे उस के भीतर सिमट चुका था. मयंक ने हर संभव कोशिश की पर उस के होंठों पर मुसकान न ला सका. वह घबरा कर उसे मनोचिकित्सक के पास ले गया.

पूरी बात सुन कर डाक्टर बोले, ‘बच्चों में फूल सी कोमलता और मासूमियत होती है, जिस की खुशबू से घर का उपवन महकता है. वह जिस डाल पर खिलते हैं, उस की जड़ मातापिता होते हैं. जब जड़ को घुन लग जाए तो फूल खिले नहीं रह सकते.’

थोड़ा रुक कर डाक्टर फिर बोले,

‘मि. मयंक आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि बच्चा अपने आसपास के वातावरण को बारीकी से महसूस करता है और उसी के अनुरूप ढलता है. मांबाप के झगड़े में वह स्वयं को भावनात्मक रूप से असुरक्षित महसूस करता है, इस स्थिति में उस के भीतर कुंठा या हिंसा की प्रवृत्ति पनपने लगती है. कभीकभी वह विक्षिप्त अथवा कई तरह के मानसिक रोगों का शिकार भी हो जाता है. पतिपत्नी के ईगो में उस का वर्तमान व भविष्य दोनों अंधकारमय हो जाते हैं. मेरी राय में आप घर में शांति स्थापित करें या दीप को इस माहौल से कहीं दूर ले जाएं.’

मयंक ने अंजलि को सबकुछ बताया पर उस के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. उसे बेटे से अधिक अपने कैरियर से लगाव था. मयंक ने बहुत सोचसमझ कर उसे शहर से दूर आवासीय विद्यालय में एडमिशन दिला दिया था. इस के अलावा और कोई चारा भी तो नहीं था.

सफलता का नशा अंजलि के सिर इस कदर चढ़ कर बोल रहा था कि एक दिन मयंक से नाता तोड़ कर नए बंगले में शिफ्ट हो गई. उस ने मयंक को जीवन के उस मोड़ पर छोड़ दिया था जिस के आगे कोई रास्ता नहीं था. बेवफाई से वह टूट चुका था. वह तो दीप के लिए जी रहा था, वरना उस के मन में कोई चाह शेष नहीं थी.

बिजली आ गई थी. खिड़की बंद कर उस ने गालों पर ढुलक आए आंसू पोंछे और वापस सोफे पर आ कर बैठ गया.

वह सुबह स्कूल पहुंचा. बेटे को सहीसलामत देख कर उस की जान में जान आई. दीप भी उस से ऐसे लिपट गया मानो वर्षों बाद मिला हो.

‘‘पापा,’’ उस ने सुबकते हुए कहा, ‘‘आप भी यहीं आ जाओ. मैं आप के बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘तुझे लेने ही तो आया हूं, सदा के लिए,’’ उसे प्यार कर के वह बोला, ‘‘मेरा बेटा हमेशा पापा के पास रहेगा.’’

‘‘मैं घर नहीं जाऊंगा,’’ दीप की आंखों में आतंक की परछाइयां तैरने लगीं, ‘‘मम्मी से बहुत डर लगता है.’’

‘‘हम दोनों के अलावा वहां कोई नहीं रहेगा. अब सारा जहां अपना है, खूब खेलेंगे, खाएंगे और मस्ती करेंगे. दीप अपनी मर्जी की जिंदगी जिएगा.’’

‘‘सच, पापा,’’ वह खिल गया. मयंक ने उस का माथा चूम लिया. Hindi Family Story

Hindi Story: निष्कलंक चांद- क्या था सीमा की असलियत

Hindi Story: ‘‘मुझे ये लड़की पसंद है.’’

राकेश के ये शब्द सुनते ही पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई. रामस्वरूप को ऐसा भान हुआ जैसे उन के तपते जीवन पर वर्षा की पहली फुहार पड़ गई हो. वह राकेश के दोनों हाथ थाम गदगद कंठ से बोले, ‘‘यकीन रखो बेटा, तुम्हें अपने फैसले पर कभी पछतावा नहीं होगा. मेरी सीमा एक गरीब बाप की बेटी जरूर है लेकिन तन और मन की बड़ी भली है. हम ने खुद आधा पेट खाया है पर उसे इंटर तक पढ़ाया है. घर के सारे कामकाज जानती है. तुम्हारे घर को सुखमय बना देगी.’’

राकेश मुसकरा दिया. वह खुद जानता था कि सीमा का चांदनी सा झरता रूप उस के घर को उजाले से भर देगा. यहां उसे दहेज चाहे न मिल रहा हो लेकिन सोने की मूरत जैसी जीवनसंगिनी तो मिल रही थी.

गरीब घर की बेटी होना राकेश की नजरों में कोई दोष न था. वह जानता था कि गरीब बाप की बेटी खातीपीती ससुराल में पहुंच कर हमेशा सुखी रहेगी. बड़े बाप की घमंडी बेटी के नखरे उठाना उस जैसे स्वाभिमानी युवक के बस के बाहर था. इसीलिए उस ने विवाह के लिए यहां निस्संकोच हां कर दी थी.

इधर विवाह तय हुआ, उधर शहनाई बज उठी. आंखों में सतरंगी सपनों का इंद्रधनुष सजाए सीमा ससुराल पहुंची. ससुराल में सासससुर ने उसे हाथोंहाथ लिया. तीनों ब्याहता ननदें भी उसे देख कर खुशी से फूली न समाईं. आसपड़ोस में धूम मच गई, ‘‘बहू क्या है, चांद का टुकड़ा है. लगता है, कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो.’’

सीमा के कानों तक यह प्रशंसा पहुंची तो वह इठलाते हुए बड़ी ननद से बोली, ‘‘लोग न जाने क्यों मेरे रूप की तारीफ करते हैं. कुछ भी तो खास नहीं है मुझ में. अपने परिवार में सब से गईगुजरी हूं. मेरी मां तक अभी ऐसी खूबसूरत हैं कि हाथ लगाते मैली होती हैं. चारों बहनें ऐसी हैं जिन्हें देख लोग पलक झपकना तक भूल जाते हैं.’’

विस्मय से बड़ी ननद रश्मि की आंखें फैल गईं. रहा न गया तो राकेश से पूछा उस ने, ‘‘क्या सचमुच सीमा का मायका इंद्रलोक की परियों का अखाड़ा है?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’

‘‘वह कहती है कि अपने घर में सब से गईगुजरी वही है. यदि यह सच है तो उस की मां और बहनें कितनी खूबसूरत होंगी, मैं सोच नहीं पा रही हूं.’’

राकेश हंस दिया. अल्हड़ प्रिया की यह अदा उसे बड़ी भायी.

‘पगली कहीं की,’ उस ने सोचा, जानबूझ कर अपनेआप को तुच्छ बता रही है. ऐसा रूप क्या कदमकदम पर बिखरा मिलता है? असाधारण सुंदरी न होती तो क्या मेरे यायावर चित्त को बांध सकती थी? उस घर में ही क्या, पूरे नगर में ऐसा रूप दीया ले कर ढूंढ़ने से नहीं मिलेगा.’

पर 2-4 दिन में ही राकेश समझ गया कि जिसे वह नवेली प्रिया की अल्हड़ अदा समझ रहा था, वह उस का मायके के प्रति अतिशय मोह है. रूप ही क्या, धन, वैभव किसी भी क्षेत्र में वह अपने मायके को छोटा नहीं बताना चाहती थी. लड़कियों में पिता के घर के प्रति कैसा उत्कट मोह होता है, इसे 3 बहनों का भाई राकेश अच्छी तरह जानता था. परंतु इस मोह का यह मतलब तो नहीं कि रात को दिन और स्याह को सफेद घोषित कर दिया जाए?

जल्दी ही सीमा की बढ़चढ़ कर कही जाने वाली बातें उस में खीज उत्पन्न करने लगीं. रिश्तेदारों की भीड़ खत्म होते ही एक दिन वह मां के कहने से सीमा को सिनेमा दिखाने ले गया.

फिल्म अच्छी थी. देख कर पैसे वसूल हो गए. लौटते समय एक रेस्तरां में उस ने सीमा को शीतल पेय भी पिलाया.

उमंग और उत्साह से भरे वे दोनों गली में घुसे ही थे कि पड़ोस की नीता सामने पड़ गई. सजीधजी सीमा को देख, उत्सुक स्वरों में पूछने लगी, ‘‘कहां से आ रही हो, भाभी? शायद सिनेमा देखने गई थीं.’’

उत्तर में स्वीकृति सूचक ‘हां’ कह कर भी काम चलाया जा सकता था लेकिन सीमा बीच रास्ते में ठहर कर कहने लगी, ‘‘सिनेमा देखने ही गए थे, लेकिन भीड़भाड़ में मजा किरकिरा हो गया. हमारे मायके में तो बाबूजी नई फिल्म लगते ही पहले से आरक्षण करवा देते थे. बस, ठाट से गए और फिल्म देख आए. लाइन में लग कर भीड़ के धक्के खाने की कोई मुसीबत नहीं उठानी पड़ती थी.’’

राकेश कोई चुभती बात कहने ही वाला था पर चुप रह गया. इतना ही बोला, ‘‘रास्ते में ही सारी बातें कर लोगी क्या? कुछ घर के लिए भी छोड़ दो.’’

सीमा हंस दी तो स्वर की मधुरता ने राकेश का क्रोध उतार दिया.

पर यह तो रोज की बात बन चुकी थी. दूसरे दिन राकेश दफ्तर जाने की हड़बड़ी में था. वह नहाते ही चीखपुकार मचाने लगा, ‘‘मेरा खाना परोस दो, मां. सवा 9 बज चुके हैं.’’

मां ने रसोई में जा कर खाना बनाती सीमा से पूछा, ‘‘दाल और सब्जी बन चुकी है क्या? तवा चढ़ा कर रोटी सेंक दो.’’

‘‘अभी केवल सब्जी बनी है,’’ सिर उठा कर सीमा ने उत्तर दिया.

मां बाहर निकल कर अपराधी स्वर में बोलीं, ‘‘जाड़े के दिन भी कितने छोटे होते हैं. चायपानी निबटता नहीं कि दफ्तर का समय हो जाता है. इस समय सिर्फ सब्जी तैयार हो पाई है.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ बाल काढ़ते हुए राकेश सहज भाव से बोला.

मां निश्चिंत हो कर थाली लगाने चल दीं. सीमा रोटी बेलतेबेलते हाथ रोक कर कहने लगी, ‘‘हमारे घर में तो कोई एक सब्जी से नहीं खा सकता. जब तक थाली में 4-5 चीजें न हों. खाने वालों के मुंह ही सीधे नहीं होते हैं.’’

राकेश कब आ कर मां के पीछे खड़ा हो गया था, सीमा नहीं जान पाई थी. वह कुछ और बोलने ही जा रही थी कि किंचित रूखे स्वर में राकेश ने डांट दिया, ‘‘तुम्हारे पीहर में छप्पन व्यंजनों का थाल रहता होगा. हम गरीब आदमी एक ही सब्जी से रोटी खा लेते हैं. बातें बंद करो, रोटी सेंको.’’

सीमा संकुचित हो उठी. चुपचाप रोटी बेलने लगी.

पर शाम को दफ्तर से लौटने पर राकेश ने उसे बड़े मनोयोग से बातें करते पाया. वह मां के सिर में तेल डालते हुए बोलती जा रही थी, ‘‘मेरी यह साड़ी ढाई सौ रुपए की है. असल में बाबूजी को साधारण कपड़ा पसंद नहीं आता. घर के कामकाज में भी मां 200 से कम की साड़ी नहीं पहनतीं.’’

‘‘भले ही उस में पचास पैबंद लगे हों,’’ जबान को रोकतेरोकते भी भीतर आते हुए राकेश के मुंह से निकल पड़ा.

सीमा सन्न रह गई. उस की सीप जैसी आंखों में मोती डबडबा आए.

मां ने झिड़का, ‘‘तू कमरे में जा. तुझ से तो कुछ नहीं कह रही है वह. बेकार में सारा दिन बेचारी को रुलाता रहता है.’’

राकेश को भी पछतावा हुआ. सुबह तो डांट कर गया ही था, आते ही फिर ताना दे दिया.

लेकिन मन ने कहा, ‘वह भी इतना झूठ क्यों बोलती है? उसे भी तो सोचसमझ कर बात करनी चाहिए.’

लेकिन सोचसमझ कर बात करना शायद सीमा से हो ही नहीं सकता था. हर बात में वह अपने मायके की श्रेष्ठता सिद्ध करने पर तुल जाती थी. उस की ये बातें राकेश को जहर बुझे तीर जैसी लगती थीं.

उस दिन फिर ऐसा ही मौका उपस्थित हो गया.

मां बेसन के लड्डू बना रही थीं. राकेश को बेसन के लड्डू बड़े पसंद थे, इसलिए मां अकसर इन्हें घर पर बनाती थीं.

सीमा पास बैठी काम में हांथ बंटा रही थी. अचानक मां के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘क्यों बहू, लड्डूओं में घी तो कम नहीं है? तुम्हें लड्डू बांधने में दिक्कत तो नहीं हो रही है?’’

सीमा ने माथे पर बिखर आई एक नटखट लट को पीछे झटकते हुए जवाब दिया, ‘‘नहीं, घी तो ठीक है. वैसे घी खाने का भी कुछ लोगों को बेहद शौक होता है. मेरे पिताजी दाल, साग, रोटी सब में इतना घी इस्तेमाल करते हैं कि खाने के बाद थाली, कटोरी में घी ही घी नजर आता है. असल में यह हर एक आदमी के बस की बात नहीं है. खाने को मिल भी जाए तो पचा कितने पाते हैं?’’

राकेश कब कमरे से निकल कर आंगन में आ गया है और इस बात को सुन रहा है, सीमा जान नहीं पाई थी.

परंतु अचानक भूचाल आ गया.

शायद कई महीनों से सुनतेसुनते सब्र का बांध टूट चुका था. शायद कई बार इशारोंइशारों में रोकने पर भी सीमा नहीं मानी थी. शायद इतना बड़ा झूठ सहन करना राकेश के लिए असंभव था.

अचानक न जाने क्या हुआ, वह गरज कर बोला, ‘‘तुम्हारे पीहर में घीदूध की नदियां बह रही हैं न, इस गरीब आदमी के घर में तुम्हारा गुजारा नहीं हो सकता, जाओ, अपने बाप के घर रहो जा कर.’’

मां घबरा उठीं. सीमा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. उस की आंखें भीग आई थीं. लेकिन क्रोध से कांपते राकेश ने हुक्म दिया, ‘‘अभी और इसी समय तुम्हें अपने मायके जाना है. उठो, अपनी अटैची ले कर मेरे साथ चलो.’’

सीमा रो पड़ी. मां की हिम्मत न पड़ी कि बीचबचाव कर सकें.

गुस्से से उफनता राकेश घर से निकला और 10 मिनट में रिकशा ले कर आ पहुंचा, ‘‘तुम उठीं नहीं?’’ आग्नेय दृष्टि से सीमा को घूरते हुए कुछ इस  प्रकार कहा उस ने कि सीमा थरथरा उठी.

यह जलती हुई निगाह तब तक सीमा पर टिकी रही, जब तक वह अटैची में कुछ कपड़े रख कर उस के साथ नहीं चल दी.

6 महीने बीत गए. न राकेश सीमा को लिवाने गया, न उस की खुद आने की हिम्मत पड़ी.

किंतु जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, राकेश उद्विग्न होता जा रहा था. भोली प्रिया की चंपई देह उस की रातों की नींद चुराने लगी थी. उसे अपने क्रोध पर क्रोध आता? क्यों इस तरह वह एकदम उसे मायके छोड़ आया? पिता के बंद दरवाजे पर खड़े हो कर अंतिम बार जिस करुण दृष्टि से सीमा ने देखा था उसे वह चाह कर भी भूल नहीं पा रहा था. किंतु अब खुद ही जा कर सीमा को लिवा लाना भी स्वाभिमान के खिलाफ महसूस हो रहा था.

राकेश की मुश्किल आखिर एक दिन मां ने ही हल कर दी.

उसे हुक्म देते हुए वह बोलीं, ‘‘सुनो, राकेश, आज ही जा कर बहू को लिवा लाओ. बेचारी सारा दिन इतनी मीठीमीठी बातें किया करती थी.’’

राकेश ने ऐसा जतलाया जैसे अनिच्छा होते हुए भी वह केवल मां के आदेश का पालन करने के लिए सीमा को लिवाने जा रहा है. उसे अचानक आया देख कर ससुराल में चहलपहल मच गई. 4 छोटी सालियां इर्दगिर्द मंडराने लगीं. मीठी लाजभरी मुसकान लिए सीमा देहरी पर खड़े हो कर अपने पांव के अंगूठे से धरती कुरेदने लगी.

रामस्वरूप घर पर न थे. सीमा की मां चाय का प्याला ला कर थमाते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी हो गई, बेटा?’’

राकेश ने अबूझ भाव से निगाह उठाई.

सीमा तुरंत बोल पड़ी, ‘‘तुम्हें 6 महीने के लिए टे्रनिंग पर जाना था न इसीलिए तुम मुझे जल्दीजल्दी में यहां छोड़ गए. रुके तक नहीं थे.’’

‘‘अरे, हां, वह हो गई है,’’ राकेश मुसकरा दिया.

सास हाथ का पंखा ले कर पास बैठते हुए बोलीं, ‘‘तुम ने इस लड़की का दिमाग बिगाड़ दिया है, बेटा. यहां हम गरीब आदमी ठहरे. तुम ने इस में कुछ ही महीनों में शहजादियों जैसी नजाकत भर दी है. अब इसे फ्रिज और कूलर के बिना चैन नहीं पड़ता है.’’

‘‘पर कूलर और फ्रिज तो…’’ राकेश ने कहना चाहा कि सीमा बीच में ही बोल  पड़ी, मां और बाबूजी ने गरमियों की मेरी परेशानी का विचार कर के जाड़े में ही फ्रिज और कूलर खरीद लिया था, वही बात मैं ने इन लोगों को बतला दी है.’’

राकेश के मन में अपनी मासूम दुलहन के लिए ढेर सा प्यार उमड़ आया. मायके की तारीफ यह हमें छोटा दिखाने के लिए नहीं करती थी. ससुराल की प्रशंसा में भी जमीनआसमान एक किए रही है.

उसी दिन सीमा को ले कर राकेश लौट आया. रात के एकांत में कमरे में प्रिया के चिबुक को उठाते हुए हंस कर उस ने पूछा, ‘‘क्यों जी, कहां है तुम्हारा कूलर और फ्रिज? मुझे तो इस कमरे में बिजली का पंखा ही नजर आ रहा है.’’

सीमा की कमजोर आंखों में मोती झिलमिला उठे.

राकेश ने लाड़ से उस का सिर अपने कंधे से टिकाते हुए कहा, ‘‘बस, अब बहुत हो चुकी मायके और ससुराल की तारीफ. ठीक है, दोनों जगह की इज्जत रखना तुम्हें अच्छा लगता है पर इतना बढ़चढ़ कर भी न बोलो जो यदि जाहिर हो जाए तो जगहंसाई हो.’’

सीमा की आंखों से आंसू पोंछ दिए उस ने, ‘‘बस, रोना बंद. अब हंस दो.’’

सीमा मुसकराई, उस के गालों के गड्ढे में राकेश का चित्त जा फंसा.

सुबह सासबहू चाय की तैयारी कर रही थीं. राकेश ने मां को कहते सुना, ‘‘आज चाय के साथ कोई नाश्ता नहीं है. खाली चाय सब को कैसे दी जाए?’’

पहले की सीमा होती तो टेप रिकार्डर की तरह बजने लगती, ‘‘हमारे यहां तो…’’

पर आज वह मधुर स्वर में बोल पड़ी, ‘‘रात की रोटियां बची हैं, मां. उन्हें ही महीन कर के कड़ाही में तले देती हूं. नमक मिलाने से बढि़या सी दालमोठ तैयार हो जाएगी. बासी रोटियों का सदुपयोग भी हो जाएगा.’’

राकेश गुसलखाने में मुंह धोते हुए मुसकरा पड़ा. वह मन ही मन बोला, ‘कल तक तुम चांद थीं, आज निष्कलंक चांद हो’. Hindi Story

Motivational Story: स्टैपनी- क्या वह खुद को बदल पाई?

Motivational Story: धुन ने सुबह उठते ही सब से पहले अपने कमरे के परदे हटाए. रविवार की सुबह, भीनीभीनी ठंड और उगता हुआ सूरज, इस से बेहतर और क्या हो सकता हैं?

गुनगुनाते हुए धुन ने चाय का पानी चढ़ाया और घर पर कौल लगाई.

उधर से मम्मी की आवाज आई, ‘‘तू कब आएगी घर पर? दीवाली पर भी बस 2 दिनों के लिए आई थी. 30 की होने वाली है, कब शादी करेगी और कब बच्चे होंगे.’’

अब तो धुन को ऐसा लगता था मानो यह भी हर हफ्ते का एक रिचुअल बन गया हो. मम्मी यह हर हफ्ते कहती मगर परिवार की तरफ से कोई प्रयत्न नहीं होता था. धुन के परिवार की चिंता बस शब्दों में ?ालकती थी.

इस शाब्दिक प्यार के पीछे धुन को मालूम था उस की मम्मी की मजबूरी है. पिता की मृत्यु के बाद बड़े भाई ने आगे बढ़ कर मम्मी की जिम्मेदारी तो अपने कंधों पर ले ली थी, मगर धुन के विवाह के लिए बड़ा भाई उदासीन था.

ऐसा नहीं है कि धुन विवाह के लिए बहुत आतुर थी मगर अपने परिवार की यह शाब्दिक परवाह उसे अंदर से नागवार गुजरती थी.

तभी धुन के मोबाइल पर मनु का नंबर फ्लैश हुआ. मनु धुन की सोसायटी में ही रहता था. मनु विवाहित और 1 बच्चे का पिता था मगर अपनी बीवी भानु से उस की पटरी सही नहीं बैठती थी.

सोसायटी के जिम में ही दोनों की जानपहचान हुई और फिर दोनों में धीरेधीरे दोस्ती हो गई थी.

मनु की साफगोई और बेलौस हंसी ने धुन के जीवन की धुन ही बदल दी थी. मगर यह जरूर था कि धुन को मनु के मूड के अनुसार ही अपनी धुन रखनी पड़ती थी.

धुन मनु से कोई उम्मीद नहीं रखती थी और यही बात थी जो मनु को धुन के प्रति आकर्षित करती थी.

दोनों को जब मौका मिलता तो दोनों मिल लेते थे. शुरूशुरू में तो धुन को सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था मगर थी तो वह हाड़मांस की औरत, बिना किसी उम्मीद के भी धीरेधीरे धुन के दिल में एक छोटा सा दीया जल गया था. यह उम्मीद कि मनु सब के सामने न सही मगर बुरे समय में शायद उस का साथ अवश्य देगा.

धुन को यह धीरेधीरे सम?ा में आ गया था कि मनु के जीवन में धुन तभी जरूरी है जब उस की पत्नी किसी औफिशियल ट्रिप या अपने घर चली जाती है. तब मनु को धुन के दिन और रात दोनों पर अपना अधिकार लगता था मगर जब मनु का परिवार शहर में होता तो मनु बेहद औपचारिक रहता. वे लोग बस जिम में मिलते और कभीकभार बाहर मिल लेते.

‘‘धुन को मनु से ऐसी कोई अपेक्षा भी नहीं थी मगर पत्नी के न रहने पर मनु का यों धौंस जमाना धुन को पसंद नहीं आता था.

आज धुन के औफिस में बहुत इंपौर्टैंट मीटिंग थी लेकिन मनु बारबार फोन कर रहा था. धुन ने बीच में एक बार फोन उठाया और बड़े प्यार से मनु से कहा, ‘‘अभी बिजी हूं, शाम को बात करूंगी.’’

फिर भी मनु एक के बाद एक मैसेज कर रहा था. शाम को औफिस से निकलते हुए धुन

ने मनु को कौल की तो मनु गुस्से में बोला,

‘‘तुम्हें तो बस अपना काम प्यारा है, सुबह से पागलों की तरह तुम्हें फोन कर रहा हूं ताकि तुम्हारे साथ समय बिता सकूं मगर तुम्हें तो फुरसत ही नहीं हैं.’’

धुन बेहद थकी हुई थी मगर मनु के कारण वह सीधे उस के फ्लैट पर चली गई. मनु ने जब थकीहारी धुन को देखा चिढ़ कर बोला, ‘‘तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है प्रेमी से मिलने कैसे आते हैं. यार बीवी और प्रेमिका में कुछ तो फर्क होना चाहिए,’’ और यह कह कर मनु धुन के नजदीक जाने लगा.

धुन मनु को धकेलते हुए बोली, ‘‘मैं तुम से मिलने आई हूं, सैक्स करने नहीं. बेहद थकी हुई हूं और भूख भी लगी हुई है.’’

मनु ने यह सुन कर धुन को एक तरफ कर दिया और कहा, ‘‘मेरा समय क्यों बरबाद किया? क्या मैं ने अपने फ्लैट पर तुम्हें खाना खिलाने बुलाया था?’’

धुन अपमानित सी खड़ी रही और फिर वह जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर जाने लगी मनु ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘अरे चलो आई एम सौरी. तुम जल्दी से नहा लो, मैं खाना और्डर करता हूं.’’

खाना खाने के दौरान धुन के घर से बारबार कौल आ रही थी. मगर मनु बारबार उसे कौल लेने से मना कर रहा था.

‘‘यह समय बस मेरा हैं और वैसे भी तुम्हारे घर वालों को तो किसी काम के कारण ही तुम्हारी याद आती है.’’

खाने के बाद फिर से मनु ने धुन के नजदीक आने की कोशिश करी. धुन थकी हुई थी मगर फिर भी उस ने मनु को कुछ नहीं कहा.

प्रेमक्रीड़ा के पश्चात मनु धुन से बोला, ‘‘अरे तुम तो ठंडी लाश की तरह पड़ी हुई थी. तुम ने तो भानु को भी माफी कर दिया.’’

मनु के इस कथन पर धुन आंखों में पानी भरते हुए बोली, ‘‘तो फिर क्यों आते हो मेरे पास? भानु के साथ ही क्यों नहीं खुश रहते हो?’’

मनु फिर से धुन को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘मर्द का दिल क्या एक ही औरत से भरा है?’’ फिर भानु मेरी बीवी है, बच्चे की मां है.’’

धुन को मनु के शब्दों को सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने पिघलता हुआ सीसा उस के कानों में डाल दिया हो.

धुन को लगा मानो वह एक स्टैपनी हो मनु की जिंदगी में जिस की जरूरत उसे तब ही पड़ती है जब उस की गाड़ीरूपी जिंदगी का मेन टायर नहीं होता है. ऐसा नहीं था कि मनु ने धुन के साथ ऐसा पहली बार किया हो मगर न जाने क्यों आज धुन के अंदर कुछ कीरच गया था.

उस घटना के बाद 2 हफ्ते बीत गए मगर मनु का न कोई फोन आया और न ही मैसेज. धुन सम?ा गई थी कि मनु की बीवी घर पर ही होगी और वह एक खुशहाल जिंदगी बिता रहा होगा. धुन की जरूरत तो मनु को तभी पड़ती है जब उस की खुशी में पंक्चर हो जाता है. धुन अभी इन सब बातों पर मनन कर ही रही थी कि घर से भाभी का फोन आ गया.

‘‘धुन कुछ नहीं सुनूंगी, इस बार तुम भी हमारे साथ घूमने चल रही हो. इतनी गरमी हैं

कुछ दिन तुम भी मनाली की ठंडी हवा में आराम कर लेना.’’

धुन को भी लगा, इस घुटनभरे वातावरण से बाहर निकलना जरूरी है. मन ही मन वह सोच रही थी वह बेकार में अपने परिवार के बारे में उलटासीधा सोच रही थी.

जब धुन घर पहुंची तो सारी पैकिंग हो चुकी थी. धुन परिवार के प्यार में भीगी हुई मन ही मन सोच रही थी कि अपने तो आखिर अपने ही होते हैं. क्या मनु कभी उसे कहीं घुमाने ले जाएगा? कभी नहीं. एक बार धुन ने मनु से कहा भी था तो उस ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘ये सब नखरे उठाने के लिए पहले से मेरे पास एक बीवी है. दूसरी बीवी नहीं चाहिए मु?ो.’’

धुन और उस का परिवार जब दोपहर को मनाली पहुंचा तो भाई की बेटी आराना को बुखार हो गया और मम्मी के पैरों में भी बहुत दर्द हो रहा थे. 2 कमरे थे. 1 कमरे में भाईभाभी और दूसरे में धुन, उस की मम्मी और आराना थी.

शाम को घूमने का प्रोग्राम था, मगर आराना बुखार से तप रही थी. धुन को

भैयाभाभी के लिए बुरा लग रहा था कि कैसे वे लोग घूमफिर पाएंगे?

मगर मम्मी ने ऐलान कर दिया कि धुन मम्मी और आराना के पास रुक जाएगी, भैयाभाभी घूम आएंगे.

भाभी ने हालांकि ऊपरी तौर पर कहा भी, ‘‘अरे मम्मीजी, ये भाईबहन चले जाएंगे, मैं आराना के पास ही रुक जाऊंगी.’’

मम्मी बोली, ‘‘अरे तुम लोगों ने ही सारा प्रोग्राम बनाया था और अब तुम ही लोग नहीं घुमोगे तो क्या अच्छा लगेगा? वैसे भी तुम्हें तो घर, दफ्तर और मेरी और आराना की देखभाल से फुरसत कहां मिलती है?’’

भैयाभाभी के निकलते ही धुन अपनी मम्मी पर बरस पड़ी, ‘‘क्या मैं यहां पर आप की और आराना की केयर टेकर बन कर आई हूं?’’

मम्मी फुसफुसाते स्वर में बोली, ‘‘बेटे के साथ रहती हूं तो बहू को कैसे नाराज कर सकती हूं. फिर अगर आराना का बुखार तेज हो जाता तो मैं अकेले कैसे संभालती?’’

धुन मन मसोस कर रह गई और रिजोर्ट के इधरउधर घूमने लगी. रिजोर्ट की पूरी

परिक्रमा करने के बाद धुन ने देखा, एक युवक किताब पढ़ने में डूबा हुआ है. आधा घंटे पहले भी वह यहीं बैठा था. तभी उस के मोबाइल पर मम्मी का फोन आया कि भैयाभाभी वापस आ गए हैं.

अगले दिन आराना का बुखार ठीक थामगर मम्मी को तेज सर्दीजुकामहो गया था. भैयाभाभी थोड़े शर्मिंदा होते हुए बोले, ‘‘धुन आज तू घूमने चली जा, हम मम्मी के पास रुक जाते हैं.’’

धुन थोड़े चिढ़े स्वर में बोली, ‘‘मैं अकेली कहां जाऊंगी?’’

फिर जब मम्मी सो गई तो धुन फिर से रिजोर्ट की परिक्रमा करने लगी. आज फिर से

वह युवक वहीं बैठा था और आज भी एक किताब में डूबा था.

धुन उस के करीब जा कर बोली, ‘‘आप यहां घूमने आए हैं या किताब पढ़ने?’’

युवक ने पहली बार किताब से चेहरा हटा कर धुन की तरफ देखा और बोला, ‘‘अगर मैं कहूं आप यहां घूमने आई हैं या लोगों की खोजखबर करने तो? वैसे मु?ो गीत कहते हैं, लिखता हूं, थोड़ा पढ़ता हूं, जिंदगी के अनुभवों को अपने शब्दों में पिरोता हूं.’’

धुन बैठते हुए बोली, ‘‘तो फिर ये सब तो तुम अपने घर पर भी कर सकते थे, यहां घूमने के बजाय इधर क्यों बैठे हो?’’

गीत हंसते हुए बोला, ‘‘यात्रा जरूरी नहीं देशविदेश की करी जाए, विचारों की यात्रा के लिए शांत जगह चाहिए और लेखक को देशविदेश की नहीं अपने अंदर के विचारों के साथ ही शांति में भ्रमण करना होता है.’’

धुन बोली, ‘‘काश मैं भी तुम्हारे जैसा सोच पाती और लिख पाती. यहां आई थी घूमनेफिरने मगर लोगों की सेवा में लगी हुई हूं.’’

तभी बारबार धुन के मोबाइल पर मनु का कौल आने लगी.जब चौथी बार मनु का नंबर फ्लैश हुआ तो

गीत बोला, ‘‘अरे फोन तो उठा लो, कोई तुम से बात करने के लिए इतना बेकरार है. मैं तो तुम्हें यहीं बैठे हुए फिर मिल जाऊंगा.’’

धुन फोन काटते हुए बोली, ‘‘मैं इस शख्स की जिंदगी में स्टैपनी का रोल करती हूं.’’

गीत धुन को गहरी नजरों से देखते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे पति हैं?’’

धुन सोचते हुए बोली, ‘‘मै शादीशुदा नहीं हूं और ये पति जरूर हैं मगर किसी और के.’’

गीत बोला, ‘‘तो फिर यह स्टैपनी का रोल किस ने दिया है तुम्हें?’’

धुन ने कहा, ‘‘जिन लड़कियों की शादी नहीं होती है न वो स्टैपनी ही बन जाती हैं.’’

गीत हंसते हुए बोला, ‘‘यह विक्टिम कार्ड मत खेलो यार, तुम्हें कोई फोर्स नहीं कर सकता है जब तक तुम खुद राजी न हो. तुम चाहो तो किसी के साथ टायर भी बन सकती हो. पढ़ीलिखी लगती है, खुशशक्ल भी दिखती हो, अपने पर तरस क्यों खाती हो.’’

धुन और गीत काफी देर तक अपनीअपनी जिंदगी के नगमे सुनाते रहे. धुन की तंद्रा तब टूटी जब मम्मी का फोन आया.

आज धुन न जाने क्यों अंदर से अच्छा महसूस कर रही थी. मम्मी अगले दिन पहले से बेहतर महसूस कर रही थी और वह आज खुद चाह रही थी कि धुन भैया, भाभी के साथ चली जाए.

मगर धुन को बाहर घूमने से ज्यादा गीत के साथ बातें करने का मन था. कल गीत के

साथ बात करते हुए धुन को ऐसा महसूस हो रहा था मानो वह खुद से ही रूबरू हो रही हो.

आज धुन बिना किसी शिकायत के खुद ही रुक गई. मम्मी को नाश्ता और दवाई देने के बाद उस के कदम फिर से उस दिशा की ओर बढ़ गए जहां पर गीत बैठा रहता था.

धुन इस अजनबी के साथ सबकुछ सा?ा करना चाहती थी. धुन को पता था कि गीत उसे कभी जज नहीं करेगा.

धुन की पूरी कहानी सुनने के बाद गीत बोला, ‘‘प्यार की उम्मीद करना कोई बुरी बात नहीं है मगर एक शादीशुदा आदमी से ऐसी उम्मीद रखना बेवकूफी है. देखो धुन, मनु के साथ तुम अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी कर सकती हो मगर भावनात्मक जरूरतें मनु जैसा अधूरा इंसान कैसे पूरा कर पाएगा.

‘‘तुम क्यों उस के जीवन में स्टैपनी बनती हो. बल्कि मनु जैसे कितने अधूरे इंसान तुम्हारी जिंदगी में स्टैपनी बन सकते हैं. तुम पढ़ीलिखी हो, नौकरीपेशा हो, क्या दिक्कत है? धुन यह तुम पर निर्भर है कि तुम्हें अपनी जिंदगी की गाड़ी का ड्राइवर बनना है या फिर स्टैपनी बन कर जिंदगीभर रोना है.

‘‘कौन कहता है कि घूमने के लिए परिवार, बौयफ्रैंड या पति चाहिए. घूमने के लिए प्लानिंग, पैसा और सेहत चाहिए. तुम्हारी इच्छा थी कि तुम फ्री में अपने भाई के साथ घूम लो, इसलिए तुम आई थी और क्योंकि भाई ने पैसे लगाए थे, इसलिए तुम्हारी मम्मी ने उन्हें वरीयता दी थी.

‘‘मनु को पता है कि उस की एक तारीफ पर तुम बिछ जाओगी, इसलिए वह तुम्हें भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करता है. तुम चाहो तो यही पैतरा उस के साथ अपना सकती हो. मनु के पास औप्शंस की कमी हो सकती है, तुम्हारे पास नहीं. मगर चुनाव तुम्हें खुद ही करना होगा. इस के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है.

धुन ने तो ऐसा कभी सोचा ही नहीं था.

उसे तो अब तक यही लगता था कि जिंदगीभर उसे स्टैपनी बन कर रहना होगा चाहे वह किसी पुरुष के साथ रिश्ता हो या फिर परिवार के साथ.

धुन और गीत ने एकदूसरे के नंबर ले लिए मगर गीत ने कभी धुन को न तो मैसेज किया और न ही कौल. गीत को पता था कि धुन अकेली है मगर फिर भी उस ने कभी फायदा उठाने की कोशिश नहीं करी है. हां, जब कभी मन करता धुन महीने में एक बार गीत से बात कर लेती.

मनाली से लौटने के बाद धुन की जिंदगी की धुन सुरीली हो गई. अब उस ने अपनी जिंदगी का फोकस बस खुद पर कर लिया था.

मनु से अब वह तब ही मिलती जब उस का मन होता. खुद पर दया करने के बजाय धुन ने खुद पर काम करना शुरू कर दिया. अब धीरेधीरे वह अपनी जिंदगी की गाड़ी का एक मजबूत पहिया बनने की दिशा में अग्रसर थी और इस पहिए को कोई भी स्टैपनी में नहीं बदल सकता  है. Motivational Story

Parivarik Kahani: स्वीकृति- नीरा ने कैसे संभाला घर

Parivarik Kahani: मोबाइल पर नीरा से विभू ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें लेने आ रहा हूं.’’ बिना किसी पूर्व सूचना के कैसे आ रहे हैं? जरूर कोई खास बात होगी. यह सोच कर नीरा ने डा. स्वाति को अपने केबिन में बुला कर बाकी मरीजों को उस के हवाले किया और खुद नीचे कारिडोर में पहुंच गई. विभू नीचे गाड़ी में बैठे उस की प्रतीक्षा कर रहे थे.

‘‘भैया का फोन आया था अस्पताल से, अम्मां को हार्ट अटैक हुआ है. तुरंत पहुंचने को कहा है,’’ वह बोले.

विभू की आवाज के भारीपन से ही नीरा ने अंदाजा लगाया कि अपने घर से अलगाव के 3 सालों के लंबे अंतराल से मन में दबी उन की भावनाएं इस पल  जीवंत हो उठी हैं.

पति के बगल में बैठी नीरा की आंखों की पलकें बारबार गीली होने लगीं. पलकों की ओट में दुबकी तमाम यादें उभर आईं.

आंखों के सामने वह मंजर सजीव  हो उठा, जब शादी के अगले ही दिन अपने खानदानी पलंग पर परिजनों के बीच बैठी अम्मां ने नीरा के पीहर से आए दहेज की बेहूदा नुमाइश की थी.

बड़ी भाभी के पिता का सूरत में  कपड़े का बड़ा व्यापार था. दहेज में हीरेजवाहरात के साथ लाखों की नगदी  भी लाई थीं.

‘दानदहेज चाहे न देते, बरात की आवभागत तो सही तरीके से करते,’ मझली भाभी अपने पीहर का गुणगान ऊंचे स्वर में करने लगी थीं.

विभू ने उसे बताया था कि मझली भाभी इकलौती बेटी हैं, सिरचढ़ी भी हैं. आजकल अपने भाई के साथ साझेदारी में मझले भैया को ठेकेदारी का काम खुलवाने की फिराक में हैं.

‘बेशक शिक्षा और स्वास्थ्य के आधार पर भैया का चयन अच्छा है. बस, डर इस बात का है कि पढ़ीलिखी ज्यादा है. ऊपर से है भी छोटे घर की. पता  नहीं, हमारे घर से तालमेल बना पाएगी या नहीं,’ उमा दीदी ने लंबी सांस खींचते हुए कहा था.

इस घर के तीनों बेटों में से विभू ही ऐसे थे जिन्होंने इंजीनियरिंग तक शिक्षा प्राप्त की थी. दोनों बड़े भाइयों ने जैसेतैसे ग्रेजुएशन किया. पापा ने उन्हें गद्दी पर बिठा दिया और धनाढ्य परिवारों की 8वीं और 10वीं पास लड़कियों से छोटी उम्र में उन का ब्याह  भी करवा दिया.

दोनों बहुओं के यहां से अम्मां को दानदहेज मिलता रहता. लेकिन जब तीसरी के समय उन की उम्मीदों पर पानी फिरा तो अलाव सी वह सुलग उठी थीं.

अम्मां ने ढेरों उदाहरण पेश किए तो विभू भी अपना आपा खो बैठे थे.

‘अम्मां, नीरा के पिता सरकारी दफ्तर में अफसर हैं. सीमित आमदनी में से नीरा को डाक्टर बनाया. फिर भी जो कुछ उन से बन पड़ा, दिया तो है. खाली हाथ तो विदा किया नहीं है.’

‘जुम्माजुम्मा 2 दिन की पहचान नहीं और लगा बीवी की तरफदारी करने. थोड़े दिनों बाद तेरे ही सिर पर चढ़ कर बोलेगी.’

अम्मांजी की गंभीर आवाज और अभिजात दर्प से भरे व्यक्तित्व की छाप नीरा आज तक कहां मिटा पाई?

सुहागरात को फूलों से महक रहे कमरे में रेशमी, मखमली चादर पर पति के आगोश में लेटी नीरा गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही थी. यह सच है कि विभू ने नीरा से और नीरा ने विभू से प्रेम किया था, पर विवाह का प्रस्ताव विभू की ओर से ही आया था.

बड़ी ही विचित्र परिस्थिति में दोनों की भेंट हुई थी. नीरा उन दिनों सरदार पटेल अस्पताल में इंटर्नशिप कर  रही थी. विभू को इसी अस्पताल में मेंटेनेंस का चार्ज मिला हुआ था. दोनों की भेंट कौफी हाउस में ही होती थी.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए और कब प्रेम का पौधा  अंकुरित हुआ, पुष्पित हुआ, पता ही नहीं चला.

अम्मां को जिस दिन इस प्रेम कहानी के बारे में पता चला, उन्होंने हंगामा ही खड़ा कर दिया था. शानशौकत, धनदौलत, मोटरगाड़ी के रंग में रंगी अम्मां को नीरा जरा नहीं भाई थी. एक तो विजातीय, दूसरे, डाक्टर और घराना भी कोई खास नहीं.

नीरा भी बारबार विभू से यही दोहराती रही थी, ‘मैं, एक मध्यवर्गीय  परिवार की साधारण सी कन्या हूं. तुम्हारे संभ्रांत परिवार की कसौटी पर, कहीं भी खरी नहीं उतरती.’

पर विभू हर बार यही कहते, ‘‘तुम से लगाव मानसिक स्तर पर है. दानदहेज, रुपएपैसे तो हाथ का मैल है, नीरा. मैं ने तुम्हारे रूपलावण्य से नहीं, शिक्षा, संस्कार और गुणों से प्रेम किया है. तुम सही मानों में मेरी जीवनसंगिनी साबित होगी, ऐसा मेरा विश्वास है.’

अम्मां ने लाख पटकनी दी पर विभू टस से मस नहीं हुए थे. नीरा से विवाह नहीं तो आजन्म कुंआरे रहने की बात उन्होंने जैसे ही मां से कही, अम्मां ने बेमन से हथियार डाल दिए थे.

ब्याह का दूसरा दिन था. फेरा डालने की रस्म पूरी करने के लिए भाई रोहित उसे लेने आया. अम्मां ने एक नजर फल और मिठाई के टोकरों पर डाल कर मुंह दूसरी ओर फेर लिया था.

‘यह सब क्यों भिजवा दिया समधिनजी ने?’ वह उफनती हुई बोलीं, और फिर उसी टोकरी में से कुछ फल, थोड़ी सी मिठाई और एक सस्ती सी कमीज अलमारी में से निकाल कर उन्होंंने रोहित की गोद में रखी. तभी रसोई के दरवाजे पर खड़ी मझली भाभी की कुटिल हंसी में डूबी आवाज आई, ‘बहन की ससुराल से मिली चीज का चाव तो होता ही है, भाई को. कहीं आनाजाना हो तो पहनना.’

संभ्रांत परिवार से आई इन औरतों का दर्प, कहीं भीतर तक नीरा को साल गया था. अपमान की यह पहली किरच थी. फिर तो दिनरात, जानेअनजाने, कई किरचें छलनी करती गई थीं उसे.

ब्याह को कुछ ही दिन हुए थे. विभू और नीरा देर रात गए हनीमून से लौटे थे. सफर की थकान और एकदूसरे के प्रेम में पगे जोड़े की सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला. दूर किसी मिल का भोंपू चीखा तो नीरा की नींद भंग हुई. अस्तव्यस्त सी उठी तो किसी ने जोर से दरवाजा खटखटा दिया. सामने अम्मां खड़ी थीं. उन की आंखें क्रोध बरसा रही थीं. कमरे में आते ही विभू पर बरसीं.

‘पूरा दिन बहू की ही गोद में बैठा रहेगा. अब यह यहीं रहेगी, कहीं नहीं जाएगी. जब जी चाहे इस की गोद में बैठ लेना. पर इस से यह कह कि थोड़ाबहुत घरगृहस्थी का भी बोझ संभाले.’

अम्मां आंधी की तरह आई थीं, तूफान की तरह निकल गईं. नीरा संकोच से घिर गई. इस घर की सभी महिलाएं 8 बजे से पहले उठती ही कब हैं?

पत्नी की उदासी पोंछने का प्रयास करते हुए विभू बोले, ‘कई बार एक बात की चिढ़ दूसरी बात पर निकलती है. देखना, देरसबेर तुम्हें अम्मां जरूर अपना लेंगी. मां का दिल है, कोई संकरी गली नहीं.’

सुबहसुबह नीरा चौके में चली तो  गई, पर कभी दूध का गिलास, कभी फू्रट जूस, कभी शहदबादाम कटोरी में लिए उस के आगेपीछे घूमती अपनी मां का चेहरा आंखों के सामने घूम गया था. कोई सब्जी कटवाने भी पास नहीं फटका था. विभू ने उसे पहले ही बता दिया था  कि बहाने बनाने में दोनों भाभियों को महारत हासिल है.

नीरा ने पूरी टेबिल पकवानों से सजा दी थी.

शाम को घर लौटते समय उमा दीदी के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘नीरा, बहुत अच्छा पकाती हो. पहली बार  पीहर में छक कर खाया. दोनों भाभियों ने तो कभी पानी का गिलास भी ढंग से नहीं दिया.’

उस पल नीरा ने कनखियों से अम्मां के चेहरे के उतरतेचढ़ते भावों को पढ़ने का प्रयास किया. शायद प्रशंसा के दो बोल उन के मुंह से भी फूटें पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.

एक दिन फोन पर पापा बोले, ‘नीरा, बेटी, कब से ज्वाइन कर रही हो? कल ही डा. अस्थाना मिली थीं. तुम्हारे बारे में पूछ रही थीं.’

‘सोच रही हूं पा…पा…’ उस ने धीरे से कहा. बाकी के शब्द उस के गले में ही अटक कर रह गए थे.

‘डाक्टर हो. इस तरह घर बैठने से प्रैक्टिस छूट जाएगी,’ इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया था. इतने में विभू  कमरे में आ गए थे. साथ में बड़े भैया भी थे. बोले, ‘किस का फोन था?’

‘समधीजी का,’ अम्मां बोलीं, ‘बेटी को नौकरी पर जाने के लिए भड़का रहे थे.’

नीरा सोचती रह गई थी कि इन्हें कैसे पता चला पापा का फोन था?

‘वैसे विभू की बहू को नौकरी करने की क्या सूझी?’ बड़े भैया ने अम्मां से ऐसे पूछा मानों कोई अनहोनी होने जा रही हो.

‘बेटा, मध्यवर्गीय परिवार की बेटी है. समधीजी की आमदनी से तो घर भर ही चलता होगा. अगर परिवार के सभी सदस्य न कमाएं तो गुजारा कैसे हो? जिन्हें घर से बाहर निकलने की आदत होती है, उन्हें घर तो काटने को दौड़ेगा ही.’

रात को खाने की मेज पर नीरा की पेशी हुई. परिवार के सभी सदस्यों के बीच सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया कि नीरा नौकरी कर सकती है पर घर की व्यवस्था चरमरानी नहीं चाहिए.

उस दिन विभू को घर में अपना कद छोटा दिखाई दिया था. इस घर के सभी लोग क्यों उस की पत्नी को नीचा दिखाने पर तुले हैं. महज इसलिए क्योंकि वह पढ़ीलिखी है और दहेज में तगड़ी रकम नहीं लाई है? और फिर कौन सी व्यवस्था की बात की जा रही है? सुबह देर से उठना, देर रात तक जागना, 24 घंटे टीवी पर बेसिरपैर के चैनल बदलना, अंगरेजी धुन पर बच्चों का नाचना और घर से बाहर निकल कर ट्यूशन पढ़ना, चौका महाराजिन के सुपुर्द कर गहने बनवाना, गहने तुड़वाना, क्या यही सब?

उस के बाद पाबंदियों की लंबीचौड़ी फेहरिस्त पकड़ा दी गई.

अगली सुबह 5 बजे उठ कर नीरा  ने दौड़भाग कर काम निबटाया. सासजी रक्तचाप और आर्थराइटिस की मरीज थीं. ऐसे समय में काम वाली की भी छुट्टी  कर दी जाएगी यह उम्मीद नहीं थी उसे.

शाम को पसीने से तरबतर वह जैसे ही अस्पताल से घर में घुसी, चाय का पानी चढ़ा कर सीधे अम्मां के कमरे में पहुंची. अस्पताल में क्याक्या हुआ, वह खुद ही हंसहंस कर बताती रही. पर अम्मां ने उस की बातों में किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं ली.

मानव स्वभाव ही ऐसा है कि वह प्यार के बदले प्यार और आदर के बदले आदर चाहता है. नीरा भी घरबाहर, दोनों जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थी. फिर भी घर के सभी सदस्य उस से दूरी बनाए हुए थे.

एक बरस में वह गर्भवती हो चुकी थी. उन्हीं दिनों, डाक्टरों की कानफे्रंस में सुबह 8 से शाम 5 बजे तक उपस्थित रह कर जब लौटती तो थकावट से उस का बुरा हाल हो जाता. धीरेधीरे उस का स्वास्थ्य गिरने लगा. आंखों के नीचे काले गड्ढे पड़ने लगे.

एक दिन विभू ने अम्मां से काम वाली के बारे में पूछताछ की तो वह बोलीं, ‘वह तो गांव लौट गई. क्यों?’

असल में अम्मां, इतनी मीनमेख निकालती थीं कि कोई कामवाली 2-3 महीनों से ज्यादा उन के घर टिकती ही नहीं थी. और जब से नीरा ने चौका संभाला है तब से तो वह पूरी तरह से बेपरवाह हो गई थीं. Parivarik Kahani

Romantic Story: राजकुमार लाओगी न- चेष्टा को राजकुमार मिला या नहीं

Romantic Story: ‘‘चेष्टा, पापा के लिए चाय बना देना. हो सके तो सैंडविच भी बना देना? मैं जा रही हूं, मुझे योगा के लिए देर हो रही है,’’ कहती हुई योगिताजी स्कूटी स्टार्ट कर चली गईं. उन्होंने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, न उन्होंने चेष्टा के उत्तर की प्रतीक्षा की. योगिताजी मध्यम- वर्गीय सांवले रंग की महिला हैं. पति योगेश बैंक में क्लर्क हैं, अच्छीखासी तनख्वाह है. उन का एक बेटा है. उस का नाम युग है. घर में किसी चीज की कमी नहीं है.

जैसा कि सामान्य परिवारों में होता है घर पर योगिताजी का राज था. योगेशजी उन्हीं के इशारों पर नाचने वाले थे. बेटा युग भी बैंक में अधिकारी हो गया था. बेटी चेष्टा एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका बन गई थी. कालेज के दिनों में ही युग की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाली उत्तरा से हो गई. उत्तरा साधारण परिवार से थी. उस के पिता बैंक में चपरासी थे, इसलिए जीवन स्तर सामान्य था. उत्तरा की मां छोटेछोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के साथ ही कुछ सिलाई का काम कर के पैसे कमा लेती थीं.

उत्तरा के मातापिता ईमानदार और चरित्रवान थे इसलिए वह भी गुणवती थी. पढ़ने में काफी तेज थी. उत्तरा का व्यक्तित्व आकर्षक था. दुबलीपतली, सांवली उत्तरा सदा हंसती रहती थी. वह गाती भी अच्छा थी. कालेज के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उद्घोषणा का कार्य वही करती थी. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों में गजब का आकर्षण था. उस की हंसी में युग ऐसा बंधा कि उस की मां के तमाम विरोध के आगे उस के पैर नहीं डगमगाए और वह उत्तरा के प्यार में मांबाप को भी छोड़ने को तैयार हो गया. योगिताजी को मजबूरी में युग को शादी की इजाजत देनी पड़ी. कोर्टमैरिज कर चुके युग और उत्तरा के विवाह को समाज की स्वीकृति दिलाने के लिए योगिताजी ने एक भव्य पार्टी का आयोजन किया. समाज को दिखाने के लिए बेटे की जिद के आगे योगिताजी झुक तो गईं लेकिन दिल में बड़ी गांठ थी कि उत्तरा एक चपरासी की बेटी है.

दहेज में मिलने वाली नोटों की भारी गड्डियां और ट्रक भरे सामान के अरमान मन में ही रह गए. अपनी कुंठा के कारण वे उत्तरा को तरहतरह से सतातीं. उस के मातापिता के बारे में उलटासीधा बोलती रहतीं. उत्तरा के हर काम में मीनमेख निकालना उन का नित्य का काम था. उत्तरा भी बैंक में नौकरी करती थी. सुबह पापा की चायब्रेड, फिर दोबारा मम्मी की चाय, फिर युग और चेष्टा को नाश्ता देने के बाद वह सब का लंच बना कर अलगअलग पैक करती. मम्मी का खाना डाइनिंग टेबल पर रखने के बाद ही वह घर से बाहर निकलती थी. इस भागदौड़ में उसे अपने मुंह में अन्न का दाना भी डालने को समय न मिलता था.

यद्यपि युग उस से अकसर कहता कि क्यों तुम इतना काम करती हो, लेकिन वह हमेशा हंस कर कहती, ‘‘काम ही कितना है, काम करने से मैं फिट रहती हूं.’’ योगिताजी के अलावा सभी लोग उत्तरा से बहुत खुश थे. योगेशजी तो उत्तरा की तारीफ करते नहीं अघाते. सभी से कहते, ‘‘बहू हो तो उत्तरा जैसी. मेरे बेटे युग ने बहुत अच्छी लड़की चुनी है. हमारे तो भाग्य ही जग गए जो उत्तरा जैसी लड़की हमारे घर आई है.’’

चेष्टा भी अपनी भाभी से घुलमिल गई थी. वह और उत्तरा अकसर खुसरफुसर करती रहती थीं. दोनों एकदूसरे से घंटों बातें करती रहतीं. सुबह उत्तरा को अकेले काम करते देख चेष्टा उस की मदद करने पहुंच जाती. उत्तरा को बहुत अच्छा लगता, ननदभावज दोनों मिल कर सब काम जल्दी निबटा लेतीं. उत्तरा बैंक चली जाती और चेष्टा स्कूल.

योगिताजी बेटी को बहू के साथ हंसहंस कर काम करते देखतीं तो कुढ़ कर रह जातीं…फौरन चेष्टा को आवाज दे कर बुला लेतीं. यही नहीं, बेटी को तरहतरह से भाभी के प्रति भड़कातीं और उलटीसीधी पट्टी पढ़ातीं. उत्तरा की दृष्टि से कुछ छिपा नहीं था लेकिन वह सोचती थी कि कुछ दिन बाद सब सामान्य हो जाएगा. कभी तो मम्मीजी के मन में मेरे प्रति प्यार का पौधा पनपेगा. वह यथासंभव अच्छी तरह

कार्य करने का प्रयास करती, लेकिन योगिताजी को खुश करना बहुत कठिन था. रोज किसी न किसी बात पर उन का नाराज होना आवश्यक था. कभी सब्जी में मसाला तेज तो कभी रोटी कड़ी, कभी दाल में घी ज्यादा तो कभी चाय ठंडी है, दूसरी ला आदि. युग इन बातों से अनजान नहीं था. वह मां के हर अत्याचार को नित्य देखता रहता था. पर उत्तरा की जिद थी कि मैं मम्मीजी का प्यार पाने में एक न एक दिन अवश्य सफल हो जाऊंगी. और वे उसे अपना लेंगी.

योगिताजी को घर के कामों से कोई मतलब नहीं रह गया था, क्योंकि उत्तरा ने पूरे काम को संभाल लिया था, इसलिए वह कई सभासंगठनों से जुड़ कर समाजसेवा के नाम पर यहांवहां घूमती रहती थीं. योगिताजी चेष्टा की शादी को ले कर परेशान रहती थीं, लेकिन उन के ख्वाब बहुत ऊंचे थे. कोई भी लड़का उन्हें अपने स्तर का नहीं लगता था. उन्होंने कई जगह शादी के लिए प्रयास किए लेकिन कहीं चेष्टा का सांवला रंग, कहीं दहेज का मामला…बात नहीं बन पाई.

योगिताजी के ऊंचेऊंचे सपने चेष्टा की शादी में आड़े आ रहे थे. धीरेधीरे चेष्टा के मन में कुंठा जन्म लेने लगी. उत्तरा और युग को हंसते देख कर उसे ईर्ष्या होने लगी थी. चेष्टा अकसर झुंझला उठती. उस के मन में भी अपनी शादी की इच्छा उठती थी. उस को भी सजनेसंवरने की इच्छा होती थी. चेष्टा के तैयार होते ही योगिताजी की आंखें टेढ़ी होने लगतीं. कहतीं, ‘‘शादी के बाद सजना. कुंआरी लड़कियों का सजना- धजना ठीक नहीं.’’ चेष्टा यह सुन कर क्रोध से उबल पड़ती लेकिन कुछ बोल न पाती. योगिताजी के कड़े अनुशासन की जंजीरों में जकड़ी रहती. योगिताजी उस के पलपल का हिसाब रखतीं. पूछतीं, ‘‘स्कूल से आने में देर क्यों हुई? कहां गई थी और किस से मिली थी?’’

योगिताजी के मन में हर क्षण संशय का कांटा चुभता रहता था. उस कुंठा को जाहिर करते हुए वे उत्तरा को अनापशनाप बकने लग जाती थीं. उन की चीख- चिल्लाहट से घर गुलजार रहता. वे हर क्षण उत्तरा पर यही लांछन लगातीं कि यदि तू अपने साथ दहेज लाती तो में वही दहेज दे कर बेटी के लिए अच्छा सा घरवर ढूंढ़ सकती थी. योगिताजी के 2 चेहरे थे. घर में उन का व्यक्तित्व अलग था लेकिन समाज में वह अत्यंत मृदुभाषी थीं. सब के सुखदुख में खड़ी होती थीं. यदि कोई बेटीबहू के बारे में पूछता था तो बिलकुल चुप हो जाती थीं. इसलिए उन की पारिवारिक स्थिति के बारे में कोई नहीं जानता था. योगिताजी के बारे में समाज में लोगों की अलगअलग धारणा थी. कोई उन्हें सहृदय तो कोई घाघ कहता.

एक दिन योगिताजी शाम को अपने चिरपरिचित अंदाज में उत्तरा पर नाराज हो रही थीं, उसे चपरासी की बेटी कह कर अपमानित कर रही थीं तभी युग क्रोधित हो उठा, ‘‘चलो उत्तरा, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकता.’’

घर में कोहराम मच गया. चेष्टा रोए जा रही थी. योगेशजी बेटे को समझाने का प्रयास कर रहे थे. परंतु युग रोजरोज की चिकचिक से तंग हो चुका था. उस ने किसी की न सुनी. दोचार कपड़े अटैची में डाले और उत्तरा का हाथ पकड़ कर घर से निकल गया. योगिताजी के तो हाथों के तोते उड़ गए. वे स्तब्ध रह गईं…कुछ कहनेसुनने को बचा ही नहीं था. युग उत्तरा को ले कर जा चुका था. योगेशजी पत्नी की ओर देख कर बोले, ‘‘अच्छा हुआ, उन्हें इस नरक से छुटकारा तो मिला.’’

योगिताजी अनर्गल प्रलाप करती रहीं. सब रोतेधोते सो गए. सुबह हुई. योगेशजी ने खुद चाय बनाई, बेटी और पत्नी को देने के बाद घर से निकल गए. चेष्टा ने जैसेतैसे अपना लंच बाक्स बंद किया और दौड़तीभागती स्कूल पहुंची.

घर में सन्नाटा पसर गया था. आपस में सभी एकदूसरे से मुंह चुराते. चेष्टा सुबहशाम रसोई में लगी रहती. घर के कामों का मोर्चा उस ने संभाल लिया था, इसलिए योगिताजी की दिनचर्या में कोई खास असर नहीं पड़ा था. वे वैसे भी सामाजिक कार्यों में ज्यादा व्यस्त रहती थीं. घर की परवा ही उन्हें कहां थी. योगेशजी से जब भी योगिताजी की बातचीत होती चेष्टा की शादी के बारे में बहस हो जाती. उन का मापदंड था कि मेरी एक ही बेटी है, इसलिए दामाद इंजीनियर, डाक्टर या सी.ए. हो. उस का बड़ा सा घर हो. लड़का राजकुमार सा सुंदर हो, परिवार छोटा हो आदि, पर तमाम शर्तें पूरी होती नहीं दिखती थीं.

चेष्टा की उम्र 30 से ऊपर हो चुकी थी. उस का सांवला रंग अब काला पड़ता जा रहा था. तनाव के कारण चेहरे पर अजीब सा रूखापन झलकने लगा था. चिड़चिड़ेपन के कारण उम्र भी ज्यादा दिखने लगी थी. उत्तरा के जाने के बाद चेष्टा गुमसुम हो गई थी. घर में उस से कोई बात करने वाला नहीं था. कभीकभी टेलीविजन देखती थी लेकिन मन ही मन मां के प्रति क्रोध की आग में झुलसती रहती थी. तभी उस को चैतन्य मिला जिस की स्कूल के पास ही एक किताबकापी की दुकान थी. आतेजाते चेष्टा और उस की आंखें चार होती थीं. चेष्टा के कदम अनायास ही वहां थम से जाते. कभी वहां वह मोबाइल रिचार्ज करवाती तो कभी पेन खरीदती. उस की और चैतन्य की दोस्ती बढ़ने लगी. आंखोंआंखों में प्यार पनपने लगा. वह मन ही मन चैतन्य के लिए सपने बुनने लगी थी. दोनों चुपकेचुपके मिलने लगे. कभीकभी शाम भी साथ ही गुजारते. चेष्टा चैतन्य के प्यार में खो गई. यद्यपि चैतन्य भी चेष्टा को प्यार करता था परंतु उस में इतनी हिम्मत न थी कि वह अपने प्यार का इजहार कर सके.

चेष्टा मां से कुछ बताती इस के पहले ही योगिताजी को चेष्टा और चैतन्य के बीच प्यार होने का समाचार नमकमिर्च के साथ मिल गया. योगिताजी तिलमिला उठीं. अपनी बहू उत्तरा के कारण पहले ही उन की बहुत हेठी हो चुकी थी, अब बेटी भी एक छोटे दुकानदार के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. यह सुनते ही वे अपना आपा खो बैठीं और चेष्टा पर लातघूंसों की बौछार कर दी.

क्रोध से तड़प कर चेष्टा बोली, ‘‘आप कुछ भी करो, मैं तो चैतन्य से मिलूंगी और जो मेरा मन होगा वही करूंगी.’’ योगिताजी ने मामला बिगड़ता देख कूटनीति से काम लिया. वे बेटी से प्यार से बोलीं, ‘‘मैं तो तेरे लिए राजकुमार ढूंढ़ रही थी. ठीक है, तुझे वह पसंद है तो मैं उस से मिलूंगी.’’

चेष्टा मां के बदले रुख से पहले तो हैरान हुई फिर मन ही मन अपनी जीत पर खुश हो गई. चेष्टा योगिताजी के छल को नहीं समझ पाई. अगले दिन योगिताजी चैतन्य के पास गईं और उस को धमकी दी, ‘‘यदि तुम ने मेरी बेटी चेष्टा की ओर दोबारा देखा तो तुम्हारी व तुम्हारे परिवार की जो दशा होगी, उस के बारे में तुम कभी सोच भी नहीं सकते.’’

इस धमकी से सीधासादा चैतन्य डर गया. वह चेष्टा से नजरें चुराने लगा. चेष्टा के बारबार पूछने पर भी उस ने कुछ नहीं बताया बल्कि यह बोला कि तुम्हारी जैसी लड़कियों का क्या ठिकाना, आज मुझ में रुचि है कल किसी और में होगी. चेष्टा समझ नहीं पाई कि आखिर चैतन्य को क्या हो गया. वह क्यों बदल गया है. चैतन्य ने तो सीधा उस के चरित्र पर ही लांछन लगाया है. वह टूट गई. घंटों रोती रही. अकेलेपन के कारण विक्षिप्त सी रहने लगी. इस मानसिक आघात से वह उबर नहीं पा रही थी. मन ही मन अकेले प्रलाप करती रहती थी. चैतन्य से सामना न हो, इस कारण स्कूल जाना भी बंद कर दिया.

योगिताजी बेटी की दशा देख कर चिंतित हुईं. उस को समझाती हुई बोलीं कि मैं अपनी बेटी के लिए राजकुमार लाऊंगी. फिर उसे डाक्टर के पास ले गईं. डाक्टर बोला, ‘‘आप की लड़की डिप्रेशन की मरीज है,’’ डाक्टर ने कुछ दवाएं दीं और कहा, ‘‘मैडमजी, इस का खास ध्यान रखें. अकेला न छोड़ें. हो सके तो विवाह कर दें.’’

थोड़े दिनों तक तो योगिताजी बेटी के खानेपीने का ध्यान रखती रहीं. चेष्टा जैसे ही थोड़ी ठीक हुई योगिताजी अपनी दुनिया में मस्त हो गईं. जीवन से निराश चेष्टा मन ही मन घुटती रही. एक दिन उस पर डिप्रेशन का दौरा पड़ा, उस ने अपने कमरे का सब सामान तोड़ डाला. योगिताजी ने कमरे की दशा देखी तो आव देखा न ताव, चेष्टा को पकड़ कर थप्पड़ जड़ती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ…चैतन्य ने मना किया है तो क्या हुआ, मैं तुम्हारे लिए राजकुमार जैसा वर लाऊंगी.’’ यह सुनते ही चेष्टा समझ गई कि यह सब इन्हीं का कियाधरा है. कुंठा, तनाव, क्रोध और प्रतिशोध में जलती हुई चेष्टा में जाने कहां की ताकत आ गई. योगिताजी को तो अनुमान ही न था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है. चेष्टा ने योगिताजी की गरदन पकड़ ली और उसे दबाती हुई बोली, ‘‘अच्छा…आप ने ही चैतन्य को भड़काया है…’’

उसे खुद नहीं पता था कि वह क्या कर रही है. उस के क्रोध ने अनहोनी कर दी. योगिताजी की आंखें आकाश में टंग गईं. चेष्टा विक्षिप्त हो कर चिल्लाती जा रही थी, ‘‘मेरे लिए राजकुमार लाओगी न…’’ Romantic Story

Hindi Fictional Story: बाबा का भूत- क्या था बाबा की मौत का रहस्य

Hindi Fictional Story: परदा उठता है. मंच पर अंधेरा है. दाएं पार्श्व पर धीमी रोशनी गिरती है. वहां 2 कुरसियां रखी हैं. एक अधेड़ सा व्यक्ति जोगिया कपड़ों में और एक युवक वहां बैठा है.

परदे के पीछे से आवाजें आती हैं :

‘‘बाबा बीमार है, अब तो चलाचली है, बैंड वालों को बता दिया है. विमान निकलेगा. आसपास के संतों को भी सूचना दी जा चुकी है. उदयपुर से भाई साहब रवाना हो चुके हैं. महामंडलेश्वर श्यामपुरीजी भी आने वाले हैं, पर बाबाओं में झगड़ा है, रामानंदी मंजूनाथ कह रहे हैं, अंतिम संस्कार हमारे ही अखाड़े के तरीके से होगा.’’

आवाजें धीरेधीरे शोर में बढ़ती जाती हैं फिर अचानक परदे के पीछे की आवाजें धीमी पड़ती जाती हैं.

शास्त्रीजी- भैया, अपना आश्रम तो बन गया है, अब पिंकीजी आगे का प्रबंध आप को करना है.

पिंकी- जी वह, बिजली का बिल.

शास्त्रीजी-(इशारा करते हुए) आश्रम का लगा दो.

पिंकी- पर वह तो बाबा के नाम है.

शास्त्रीजी- तो क्या हुआ, अभी तो पूरा आश्रम एक ही है.

पिंकी- यह आश्रम तो अलग बना है.

शास्त्रीजी- (हंसता है) पर बाबा का कोई भरोसा नहीं. मेरा पूरा जीवन यहां निकल गया. (दांत भींचता है) आज क्या कह रहा है, कल क्या कहेगा, मरता भी नहीं है, और मर गया तो ट्रस्ट वाले अलग ऊधम मचाएंगे. जहां गुड़ होता है, हजार चींटे चले आते हैं.

पिंकी- पर आप तो ट्रस्टी हैं और महामंत्री भी.

शास्त्रीजी- अरे, यह तो बाबाओं का मामला है. मैं ने तो बाबा से वसीयत पर दस्तखत भी ले रखे हैं. बात अपने तक रखना…पर वह शिवा है न, बाबा की चेली. सुना है, उस के पास भी वसीयत है. पता नहीं, इस बाबा ने क्याक्या कर रखा है. वह चेली चालाक है, ऊधम मचा देगी.

पिंकी- महाराज, आप तो वर्षों से यहां हैं?

(तभी मोबाइल की घंटी बजती है.)

शास्त्रीजी- हांहां, मैं बोल रहा हूं. क्या खबर है?

उधर से आवाज- हालत गंभीर है.

शास्त्रीजी- (बनावटी) अरे, बहुत बुरी खबर है. मैं कामेसर से कहता हूं, वह प्रेस रिलीज बना देगा, महाराज हमारे पूज्य हैं.

(तभी फोन कट जाता है.)

(पिंकी अवाक् शास्त्रीजी की ओर देख रहा है.)

शास्त्रीजी- यार, तुम भी क्या सुन रहे हो, अपना काम करो. लाइटें लगवा दो. पैसे की फिक्र नहीं. ऐडवांस चैक दे देता हूं. बाद में खातों पर पाबंदी लग सकती है. अभी मैं सचिव हूं. ए.सी., गीजर, फैन सब लगवा लो. फिर दूसरे खर्चे आएंगे. 13 दिन तक धमाका होगा. सारे बिल आज की तारीख में काट दो. यह बाबा… (दांत भींचता है.)

(तभी जानकी का प्रवेश, वह एक प्रौढ़ सुंदर महिला है, बड़ी सी बिंदी लगा रखी है, वह घबराई सी आती है और शास्त्रीजी के पास पिंकी को बैठा देख कर जाने लगती है.)

शास्त्रीजी- तुम कहां चलीं?

जानकी- (रोते हुए) आप ने सुना नहीं, बाबा की तबीयत बहुत खराब है… जा रहे हैं.

शास्त्रीजी- बाबा जा रहे हैं तो तुझे क्या उन के साथ सती होना है?

जानकी- क्या? (उस की त्योरियां चढ़ जाती हैं, वह पिंकी की ओर देखती है. पिंकी घबरा कर चल देता है. उस के जाते ही वह गुर्रा कर कहती है,) वे दिन भूल गए जब तुम भूखे मर रहे थे. टके का तीन कोई पूछता ही नहीं था. मुझे भी क्या काम सौंपा था. यजमानों को ठंडा पानी पिलाना. यहां ठाट किए, मकान बन गए. शास्त्रीजी कहलाते हो. (हंसती है)

शास्त्रीजी- जा, चली जा, उस की आंखें तेरे लिए तरस रही होंगी. उस ढोंगी बाबा के प्राण भी नहीं निकलते.

जानकी- बहुरूपिए तो तुम पूरे हो. बाबा के सामने आए तो ढोक लगाते हो, चमचे की तरह आगेपीछे घूमते हो, पीठ पीछे गाली.

शास्त्रीजी- तुझे क्यों आग लग गई?

जानकी- आग क्यों लगेगी, तुम तो लगा नहीं पाए, सुनोगे, बस तुम क्या सुनोगे? बरसाने की हूं, लट्ठमार होली खेली है.

शास्त्रीजी- चुप कर…जैसा समझाया है, वैसा करना. बाबा के दस्तखत तो कामेसर की जमीन के लिए ले ले. उधर की जमीन तो बाबा शिवा को दे चुका है. वह वहां अपना योग केंद्र बना रही है. इधरउधर के स्वामी उस के ही साथ हैं, कामेसर से कहना…

जानकी- क्या?

शास्त्रीजी- रहने दे, वहां जाने की जरूरत ही नहीं है, मरता है, मरने दे.

(जानकी अवाक् सी शास्त्री की ओर देखती है. तभी मोबाइल की घंटी बजती है.)

शास्त्रीजी- हैलो, हैलो बोल रहा हूं.

उधर से आवाज- बाबा की हालत गंभीर है. स्वामी शिवपुरी उन से मिलना चाहते हैं.

शास्त्रीजी- क्या कहा… आईसीयू में, नहीं, उन से मना कर दो. आप किस लिए वहां हैं, वहां चिडि़या भी न जाने पाए, ध्यान रखो.

(फोन कट जाता है)

(तभी शिवा का प्रवेश, तेजतर्रार साध्वी, माथे पर लंबा टीका है, आंखों में आंसू हैं.)

शिवा- (रोते हुए) शास्त्रीजी.

शास्त्रीजी- क्या हुआ?

शिवा- बाबा जा रहे हैं, मैं गई थी. आईसीयू में. अंदर जाने नहीं दिया. यही कहा जाता रहा, वे समाधि में हैं.

शास्त्रीजी- हां, (सुबकता है. धोती के छोर से आंसू पोंछता है.) शिवा, अब सारी जिम्मेदारी तुम पर है.

शिवा- नहीं शास्त्रीजी, आप महंत हैं, यह आश्रम आप ने ही अपने खूनपसीने की कमाई से सींचा है.

(फिर इधरउधर देखती है. घूमती है, कोने में रखे बोर्ड को देख कर चौंक जाती

है – ‘पुनीत आश्रम.’)

शिवा- यह क्या, शास्त्रीजी. क्या कोई नया पुनीत आश्रम इधर आ गया है?

शास्त्रीजी- नया नहीं पुराना ही है.

शिवा- (चौंकती है) क्या आप अपना नया आश्रम बनवा रहे हैं. अभी तो बाबा जीवित हैं फिर भी…

शास्त्रीजी- हां, तो क्या हुआ? तू ने भी तो अपना हिस्सा ले कर पंचवटी बनवा ली है. क्या वह अलग आश्रम नहीं है? कल की लड़की क्या सारा ही हड़प जाएगी?

शिवा- बाबा के साथ यह धोखा.

शास्त्रीजी (कड़वाहट से)- बाबा से तेरा बहुत पे्रम है.

शिवा (दांत भींचती है)- और तेरा.

शास्त्रीजी- सब के सामने तू मेरे पांव पर पड़ती है, गुरुजी कहती है, और यहां…

शिवा- जाजा. कम से कम अतिक्रमण कर के तो मैं ने कोई काम नहीं किया. सब हटवा दूंगी… (हंसती है) 10-15 दिन की बात है. सारे स्वामी मेरे साथ हैं.

(वह तेजी से चली जाती है. शास्त्री अवाक् उसे जाते देखता है.)

(मंच पर अंधेरा है. सारंगी बजती है. करुण संगीत की धुन. मंच पर प्रकाश, पलंग बिछा है. वहां बाबा सोए हुए हैं. अस्पताल का कोई कमरा. 2 व्यक्ति डाक्टर की वेशभूषा में खड़े हैं.)

पहला- इस की हालत गंभीर है.

दूसरा- पर है कड़कू.

पहला- इस के आश्रम में नेता बहुत आते हैं.

दूसरा- हां, मेरा तबादला इसी ने करवाया था.

पहला- पर यार, इस का सचिव तो…

दूसरा- मुझे भी पता है.

पहला- बात सही है.

दूसरा- यह तो गलत है.

पहला- पर वह 1 लाख रुपए देने को राजी है.

दूसरा- उस की चेली.

पहला- वह भी राजी है, वह भी आई थी.

दूसरा- क्या वह भी यही चाहती है?

पहला- बाबा को अपनी मौत मरने दो, हम क्यों मारें.

दूसरा- चलें.

(तभी दूसरे कोने से कामेसर का प्रवेश. सीधासादा लड़का है. बाबा के प्रति अत्यधिक आदर रखता है.)

कामेसर- (रोता हुआ) बाबा सा, बाबा सा.

बाबा- (कोई आवाज नहीं. कामेसर बाबा को हिलाता है, फिर चिकोटी काटता है.) हाय. (धीमी आवाज आती है.)

कामेसर- बाबा, कैसे हैं?

बाबा- कौन, कामेसर?

कामेसर- हां.

बाबा- कामेसर, मुझे ले चल. ये यहां मुझे जरूर मार डालेंगे, मरूं तो वहीं मरूं, यहां नहीं.

कामेसर- बाबा कैसे? मैं तो यहां आईसीयू में ही बड़ी मुश्किल से आया हूं. 2 डाक्टर वहां बैठे हैं. अंदर आने नहीं देते हैं. वे पास वाले मौलाना बहुत गंभीर हैं. उन से लोग मिलने आए थे. मैं साथ हो लिया.

बाबा- कुछ कर कामेसर. पता नहीं कौन सी दवा दी है, नींद ही नींद आती है.

कामेसर- वहां सब यही कहते हैं कि आप समाधि मेें हैं, वहां तो विमान की तैयारी की जा रही है. बैंड वालों को भी बुक कर लिया गया है.

बाबा- (कुछ सोचता है) हूं, जानकी मिली?

कामेसर- कौन, मां? वे तो आई थीं, पर बापू ने ही रोक लिया.

बाबा- (गंभीर स्वर में) ठीक ही किया.

(बाबा की आंखें मुंदने लगती हैं और वे लुढ़क जाते हैं.)

(पास के कमरे से रोने की आवाज. कामेसर उधर जाता है. 2 व्यक्ति स्ट्रैचर लिए हुए, जिस पर सफेद कपड़े से ढका कोई शव है, उधर से जा रहे हैं.)

कामेसर- रुको यार.

पहला व दूसरा- क्या बात है?

कामेसर- इसे कहां ले जा रहे हो?

पहला व दूसरा- यह लावारिस है, इसे शवगृह ले जा रहे हैं.

कामेसर- कौन था यह?

पहला- कोई फकीर था, भीख मांगता होगा, मर गया.

कामेसर- वहां क्या होगा?

दूसरा- वहां रख देंगे, और क्या. लावारिस है.

(कामेसर पहले वाले के कान में धीरेधीरे फुसफुसा कर कुछ कहता है.)

पहला- नहीं.

दूसरा- क्या?

(पहला दूसरे के कान में फुसफुसाता है. सौदा 50 में तय होता है. वे दोनों रुक जाते हैं, बाबा को स्ट्रैचर पर लिटा कर उस व्यक्ति को बाबा के बिस्तर पर लिटा कर उसे चादर से ढक देते हैं. कामेसर दूसरे दरवाजे से बाबा को ले कर बाहर हो जाता है.)

(मंच पर अंधेरा, पार्श्व संगीत में सितार बज रहा है. अचानक प्रकाश, मोबाइल की घंटी बज रही है.)

शास्त्रीजी- हां, हां क्या खबर है?

उधर से आवाज आ रही है- पंडितजी, बाबा नहीं रहे, कब गए पता नहीं, पर उन के बिस्तर पर बाबा का शरीर सफेद चादर से ढका हुआ है, उन की ड्यूटी पर आया हूं, कुछ कह नहीं सकता. बाबा कब शांत हुए, पर बाबा अब नहीं रहे.

(इधरउधर से लोग दौड़ रहे हैं, मंच पर कुछ लोग शास्त्री के पास ठहर जाते हैं. शिवा रोती हुई आती है और मंच पर धड़ाम से गिर जाती है.)

शिवा- बाबा नहीं रहे, मुझे भी साथ ले जाते. (करुण विलाप)

शास्त्रीजी- (रोते हुए) जानकी… बाबा नहीं रहे.

(रोती हुई जानकी आती है. मंच पर अफरातफरी मच गई है.)

शास्त्रीजी- हांहां, तैयारी करो, कामेसर कहां है? प्रेस वालों को बुलाओ, विमान निकलेगा, बैंड बाजे बुलाओ, सभी अखाड़े वालों को फोन करो, बाबा नहीं रहे, चादर तो संप्रदाय वाले ही पहनाएंगे.

(स्वामी चेतनपुरी, जो कोने में खड़ा है, आगे बढ़ता है.)

चेतनपुरी- क्या कहा? बाबा पुरी थे. हमारे दशनामी संप्रदाय के थे. सारी रस्में उसी तरह से होंगी. दशनामी अखाड़े को मैं ने खबर दे दी है. श्यामपुरीजी आने वाले हैं. जब तक वे नहीं आते, आप यहां की किसी चीज को हाथ न लगावें. यह आश्रम हमारे पुरी अखाड़े का है.

शिवा- (दहाड़ती है) तू कौन है मालिक बनने वाला?

चेतनपुरी- (गुर्राता है) जबान संभाल कर बात कर. इतने दिनों तक हम ने मुंह नहीं खोला, इस का यह मतलब नहीं कि हम कायर हैं. हम तुझ जैसी गंदी औरत के मुंह नहीं लगते.

शिवा- (गरजती है) तू यहां हमारा अपमान करता है अधर्मी, तेरा खून पी जाऊंगी.

शास्त्रीजी- आप संन्यासी हैं, आप लडि़ए मत, यह दुख की घड़ी है, लोग क्या कहेंगे?

चेतनपुरी- (हंसता है) लोग क्या कहेंगे…तू ने अपने परिवार का घर भर लिया. यहां की सारी संपत्ति लील गया. क्या हमें नहीं पता. बरसाने में कथा बांचने वाला यहां का मठाधीश बन गया.

शास्त्री- चुप कर, नहीं तो…

(मंच पर तेज शोर मच जाता है. धीरेधीरे अंधेरा हलका होता है. दाएं पार्श्व से किसी का चेहरा मंच पर झांकता हुआ दिखाई पड़ता है. दूसरी तरफ धीमी रोशनी हो रही है.)

(शिवा डरते हुए, तेज आवाज में हनुमान चालीसा गाती है. सब लोग उस के साथ धीरेधीरे गाते हैं.)

शास्त्रीजी- कोई था.

चेतनपुरी- हां, एक चेहरा तो मैं ने भी देखा था.

शास्त्रीजी- कितना डरावना चेहरा था.

(पीछे से थपथपथप की आवाज आ रही है जैसे कोई चल रहा हो…कोई इधर ही आ रहा है. मंच पर फिर अंधेरा हो जाता है, दाएं पार्श्व में बाबा का प्रवेश. थका हुआ, धीरेधीरे चल रहा है.)

बाबा- क्या हो गया यहां? पहले कैसी खुशहाली थी. सब उजड़ गया. अरे, सब चुप क्यों हैं?

नेपथ्य से आवाजें आ रही हैं –

‘शास्त्रीजी, बैंड वाले आ गए हैं.’

‘अभी विमान भी आ गया है.’ (पोंपोंपों वाहनों की आवाजें.)

‘बाबा श्यामपुरी पधारे हैं.’

बाबा- इतने लोग यहां आए हैं. यहां क्या हो रहा है?

शास्त्रीजी- (उठ कर खड़ा हो जाता है… घबराते हुए) आप… आप, आप…

बाबा- नहीं पहचाना, शास्त्री, मैं बाबा हूं, बाबा.

शास्त्रीजी- बाबा…बाबा (उस का गला भर्रा जाता है, वह बेहोश हो कर नीचे गिर जाता है.)

(शिवा खड़ी होती है, बाबा को देखती है और चीखती हुई भाग जाती है.)

बाबा- अरे, सब डर गए. मैं बाबा हूं, बाबा.

(तभी कामेसर का प्रवेश)

कामेसर- बाबा, आप आ गए, मैं तो वहां आप की तलाश कर रहा था. वे सफाई वाले आ गए हैं, उन्हें 50 हजार रुपए देने हैं.

शास्त्रीजी- कामेसर.

बाबा- शास्त्री, मैं मर कर भूत हो गया हूं. मुझ से डरो…डरो…डरो…डरो.

कामेसर- बाबा, आप बैठ जाओ, गिर पड़ोगे. (और वह दौड़ कर कुरसी लाता है.)

बाबा- मैं भूत हूं… डरो मुझ से. भूत मर कर भी जिंदा है. (बाबा जोर से हंसता है.) बजाओ, बैंड बजाओ, नाचो. कामेसर, मिठाई बांट, देख तेरा बाबा मर कर भूत बन गया है. भूत, भूत.. Hindi Fictional Story

Rakhi : शरारती झगड़े और भावुक पलों को शेयर करते सोनी सब टीवी के कलाकार

Rakhi : हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही सावन का महीना ख़तम हो जाता है और भाद्रपद का महीना शुरू हो जाता है। इस साल रक्षाबंधन का फेस्टिवल 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जा रहा है।
यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर रोली टीका और चावल लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते है, बहने ये राखी बांधकर ही अपने भाई के उज्जवल भविष्य की कामना भी करती है। इसके साथ ही भाई भी बहनों को गिफ्ट देने के साथ उनकी प्रोटेक्शन और सेफ्टी का प्रॉमिस करते हैं।

यादों को सजोते सोनी टीवी के कलाकार

यह दिलों को जोड़ने, यादों को संजोने और भाई-बहन के रिश्ते की अनकही मजबूती को मनाने का अवसर है। जब देश इस पारंपरिक पर्व को एकजुट होकर मना रहा है, तब सोनी सब के पॉपुलर चेहरे शब्बीर आह्लूवालिया, आशी सिंह, आन तिवारी और गरिमा परिहार अपने बचपन के रक्षाबंधन की रस्मों, शरारती झगड़ों और भावुक पलों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इस त्योहार को उनके लिए खास बना दिया। उनकी बातों में इस पर्व की मिठास झलकती है, जो स्क्रीन पर उनके नेचुरल इमोशनल कनेक्शन को और ऑथेंटिक बनाती है।

गरिमा परिहार

एक्ट्रेस गरिमा का कहना है, “मुझमे और मेरे भाई में 10 साल का अंतर है, लेकिन हमारा रिलेशनशिप परिपक्वता और शरारत (maturity and mischief)का परफेक्ट बैलेंस है। हर रक्षाबंधन मुझे इसी स्पेशल बांड की याद दिलाता है। हम बड़े हो गए हैं, लेकिन आज भी जो राखी मैं उनकी कलाई पर बांधती हूं, उसमें वही चाइल्डहुड वाला लव, सिक्योरिटी और मेमोरीज बसती हैं। वो मेरे लिए सेकंड फादर जैसे हैं. हमेशा प्रोटेक्टिव और सपोर्ट बनने वाले। उन्हें बस मुझे देखकर ही पता चल जाता है कि मैं ठीक हूं या नहीं। अब जब वो खुद पिता बन गए हैं, तो उनके छोटे बेटे को हमारे रक्षाबंधन के रीति-रिवाजों में शामिल होते देखना बहुत सुखद लगता है। हम आज भी एक-दूसरे की खिंचाई करते हैं, लेकिन दिन के अंत में हम सुनिश्चित करते हैं कि घर मुस्कानों से भरा रहे। रक्षाबंधन केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि उनके उस सुकून भरे साथ का जश्न है, जो मेरी जिंदगी में हमेशा रहा है।”

आशी सिंह

एक्ट्रेस आशी सिंह का कहना है, “रक्षाबंधन हमेशा से मेरे लिए बहुत खास रहा है, सिर्फ मेरे भाई की वजह से ही नहीं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मेरी तीन शानदार बहनें भी हैं! हमारे घर में इस दिन का माहौल पूरी तरह जश्न में बदल जाता है ढेर सारी खिंचाई, सजना-संवरना और चार भाई-बहनों के होने की वजह से होने वाला हंगामा! मेरा भाई इकलौता लड़का है, इसलिए उसे बराबर से दुलार और छेड़छाड़ दोनों मिलती है! इस साल मैंने पहले ही कह दिया है कि मुझे उससे खास गिफ्ट चाहिए कोई बहाना नहीं चलेगा! हम बचपन से चॉकलेट से लेकर राज़ तक सबकुछ शेयर करते आए हैं, और रक्षाबंधन वह दिन है जब प्यार और खिंचाई दोनों कई गुना बढ़ जाते हैं। चाहे जिंदगी कितनी भी बिजी हो जाए, यह दिन हम सबको एक साथ लाता है और यही मुझे सबसे ज्यादा प्रिय है।”

शब्बीर अहलुवालिया

एक्टर शब्बीर का कहना है, “रक्षाबंधन हमेशा मेरे दिल के करीब रहा है क्योंकि यह केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के लिए मौजूद रहने का वादा है। मेरी बहन शेफाली और मैं भले ही अब अलग-अलग शहरों में रहते हों, लेकिन हमारा रिश्ता उतना ही मजबूत है, शायद पहले से भी ज्यादा। हम बचपन से एक-दूसरे के सबसे बड़े सपोर्टर रहे हैं और दूरी ने इसे बदला नहीं है। इस साल मैं उसे एक खास गिफ्ट से सरप्राइज करने की योजना बना रहा हूं, जो उसके चेहरे पर मुस्कान लाए क्योंकि वह इसकी हकदार है। भले ही हम रक्षाबंधन पर एक साथ न हों, लेकिन हमारे बीच का प्यार और जुड़ाव राखी से कहीं ज्यादा गहरा है।”

आन तिवारी

एक्टर आन तिवारी का कहना है, “साची दीदी और मेरा रिश्ता प्यार, हंसी आन तिवारी और ढेर सारे राज़ों से भरा है! मैं खुद को बहुत लकी मानता हूं कि वह मेरी जिंदगी में हैं। वह मेरे लिए दूसरी मां जैसी हैं हमेशा मार्गदर्शन करने वाली, सहारा देने वाली और सही रास्ता दिखाने वाली। और मैं? मैं उनका सबसे बड़ा चीयरलीडर और रक्षक हूं उनके सामने कोई कुछ कह नहीं सकता! जब वह उदास होती हैं, तो मैं उन्हें सबसे बड़ा हग देता हूं और उन्हें हंसाने के लिए कुछ भी करता हूं। मेरे लिए यही रक्षाबंधन है उस अटूट, बिना शर्त वाले प्यार का जश्न।”

इन टीवी कलाकारों की तरह हर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन सभी के लिए खास होता है। ये फेस्टिवल हर साल ये एहसास दिलाने आता है कि एक रिश्ता ऐसा भी है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता है। सिर्फ चाइल्डहुड वाला लव, सिक्योरिटी,प्रोटेक्शन और मेमोरीज बसती है! Rakhi

Rakhi : बॉलीवुड स्टार्स और उनके राखी भाई और बहन

Rakhi :  रिश्ता कोई भी हो उसमें मिलावट नहीं होनी चाहिए, रिश्ता भाई बहन का हो या दोस्ती, और प्यार का लेकिन उसमें अगर स्वार्थ छल कपट, पैसा और प्रापर्टी का लालच आ गया तो वह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिकता , फिर चाहे वह रिश्ता खून का रिश्ता ही क्यों ना हो, आज के आधुनिक युग में जहां हर कोई अपने-अपने जिंदगी में व्यस्त है , पैसा कमाने और अच्छी जिंदगी जीने के लिए परिवार से दूर है. ऐसे में यह सारे रिश्ते खून के रिश्ते होने के बावजूद लॉन्ग डिस्टेंस के चलते उस वक्त काम नहीं आते जब हमें उनकी सख्त जरूरत होती है.

उस दौरान हमारे साथ कुछ ऐसे रिश्ते जुड़े होते हैं जो खून के रिश्ते तो नहीं होते, लेकिन बुरे वक्त में साथ देने वाले जरूर होते हैं. क्योंकि इनसे हमारा दिल का और सच्चा रिश्ता होता है.
जैसे कि रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर हर किसी की तमन्ना होती है कि वह इस त्यौहार को खुशी खुशी और पूरे धूमधाम से मनाए और अपने भाई बहन के साथ राखी बांधकर इस त्यौहार को एंजॉय करें. लेकिन वक्त और हालात के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाता , क्योंकि हम अपने काम धंधे और करियर को संवारने के चक्कर में अपने परिवार से कोसों दूर होते हैं, ऐसे मौके पर हमारे राखी भाई और बहन जो दिल से जुड़े होते हैं और हमेशा हमारे साथ और हमारे काम आते हैं.
ऐसे राखी भाई बहन के रिश्ते में ना तो कोई दिखावा होता है , और ना हीं कोई फॉर्मेलिटी होती है, इस रिश्ते के पीछे ना कोई स्वार्थ होता है, ना ही कोई लालच होता है लेकिन इस रिश्ते में विश्वास , सम्मान, प्यार, अपनापन, जरूर होता है. जो आपको मुसीबत में देखकर बिना कुछ कहे सुने आपकी मदद के लिए आ जाता है . राखी के बंधन से बंधे ये प्यारे भाई बहन आपकी चिंता करते हैं, आपसे प्यार करते हैं और इस राखी भाई बहन वाले रिश्ते को पूरे दिल से निभाते है . बॉलीवुड सेलिब्रिटीज भी इससे अछूते नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई हीरो हीरोइन रक्षाबंधन पर अपने राखी भाई बहन के साथ इस त्योहार को पूरे जोश के साथ मनाते हैं. सो पेश है खून के रिश्ते नहीं बल्कि दिल से जुड़े फिल्मी कलाकारों के राखी भाई बहनों पर एक नजर….

बॉलीवुड स्टार्स और उनके राखी भाई बहन….
रक्षाबंधन का त्यौहार अटूट प्यार की मिसाल होता है लेकिन इस खास दिन पर वह लोग जरूर मायूस हो जाते हैं जिनका कोई भाई बहन यह त्यौहार मनाने के लिए उनके साथ नहीं होता, फिल्म इंडस्ट्री के गलियारे में कई ऐसे एक्टर है जो राखी बहन या भाई के साथ रक्षाबंधन के त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं. ना सिर्फ साथ निभाने का वादा करते हैं, बल्कि हर मुश्किल में साथ निभाते भी है,
एक जमाने के प्रसिद्ध एक्टर और शो मैन कहलाने वाले राज कपूर साहब अभिनेत्री निम्मी को अपनी राखी बहन मानते थे . राज कपूर और निम्मी का भाई बहन का रिश्ता फिल्म बरसात के समय शुरू हुआ था . जिसमें निम्मी ने राज कपूर की बहन का किरदार निभाया था. बॉलीवुड की हॉट एंड सेक्सी हीरोइन कैटरीना कैफ अर्जुन कपूर को अपना राखी भाई मानती हैं. और डायरेक्टर कबीर के साथ भी कैटरीना का राखी भाई वाला रिश्ता है. ऐश्वर्या राय सोनू सूद को अपना राखी भाई मानती हैं, और हर साल सोनू को बिना भूले राखी बांधती है . ऐश्वर्या और सोनू सूद का राखी भाई बहन का रिश्ता, आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर की शूटिंग से शुरू हुआ था, जो आज तक बरकरार है. बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान एक्टर पुलकित सम्राट की पत्नी श्वेता रोहिरा से हर साल राखी बंधवाते है , श्वेता से सलमान का राखी बहन का रिश्ता काफी पुराना है. प्राप्त सूत्रों के अनुसार सलमान ने श्वेता की पुलकित से शादी के दौरान कन्यादान भी किया था.
बॉलीवुड की सेक्सी हीरोइन बिपाशा बसु जॉन अब्राहम के मेकअप आर्टिस्ट वेंकी को राखी बांधती है, बिपाशा और वेंकी का भाई बहन का रिश्ता बहुत पक्का रिश्ता है जिसके तहत दोनों ही हर साल रक्षा बंधन एक साथ मानना नहीं भूलते. एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया जो हिंदी और साउथ फिल्मों में अपने अभिनय और डांस का झंडा फहरा रही है, वह साजिद नाडियाडवाला को अपना राखी भाई मानती है. साजिद की फिल्म हमशकल के दौरान तमन्ना भाटिया और साजिद के इस प्यार भरे रिश्ते राखी भाई बहन की शुरुवात हुई थी. आज की प्रसिद्ध अभिनेत्री आलिया भट्ट करण जौहर के बेटे यश जौहर को हर साल राखी बांधती है, क्योंकि आलिया निर्माता निर्देशक करण जौहर को अपना पिता समान मानती है, इसलिए करण जौहर के बेटे यश को अपना राखी भाई मानती है. दीपिका पादुकोण अपने बॉडीगार्ड जलाल को अपना राखी भाई मानती है . Rakhi

फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ को मिला नैशनल अवार्ड, सोनम बाजवा ने कही ये बात

Godday Godday Chaa: सोनम बाजवा की सुपरहिट पंजाबी फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’, जिस में वे लीड रोल में नजर आई थीं, को मिला है सर्वश्रेष्ठ पंजाबी भाषा की फिल्म का नैशनल अवार्ड.

कमर्शियल फिल्मों की क्वीन और दमदार फीमेल कैरेक्टर्स की चैंपियन सोनम कहती हैं कि फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ के लिए बैस्ट पंजाबी फिल्म का नैशनल अवार्ड मिलना बेहद खास एहसास है. फिल्म को बौक्स औफिस पर जबरदस्त प्यार मिला था और अब इसे नैशनल लेवल पर पहचान मिली है.”

कुछ हट कर करने की ख्वाहिश

सोनम की यह दूसरी पंजाबी फिल्म है जिसे नैशनल अवार्ड मिला है. उन की पहली फिल्म थी ‘पंजाब 1984’, जिसे डाइरैक्ट किया था अनुराग सिंह ने, जो फिल्म ‘केसरी’ और अपकमिंग फिल्म ‘बार्डर 2’ के भी डाइरैक्टर हैं.

सोनम कहती हैं, “मैं पंजाबी और हिंदी दोनों भाषाओं में कमर्शियल और हट कर सिनेमा करती रहूंगी. असली मजा तो तब है जब फिल्म की कहानी मनोरंजक हो, जो दिलों को छू जाएं, और नैशनल लेवल पर सराही भी जाए.

हिंदी फिल्मों में भी कामयाबी

सोनम बाजवा हिंदी फिल्मों में भी अपने अभिनय का डंका बजवा चुकी हैं। फिल्म ‘हाउसफुल 5’ से बौलीवुड में ऐंट्री करने के बाद वे फिल्म ‘बागी 4’, ‘दीवानियत‘ और ‘बौर्डर 2’ में भी नजर आने वाली हैं. Godday Godday Chaa

जब ऐक्ट्रैस Rashami Desai की मां ने औडिशन लेने वाले को जड़ दिए थे थप्पड़

Rashami Desai: ग्लैमर वर्ल्ड में अच्छे लोग कम और बुरे लोगों की तादाद ज्यादा है, जो छोटे शहरों और गांवों से आने वाले लड़केलड़कियों की मजबूरियों और भोलेपन का फायदा उठा कर उन के साथ गलत व्यवहार करते हैं. इन के साथ न सिर्फ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करते हैं, काम देने के बहाने समझौता करने को बोलते हैं.

इन्हीं सब बातों की वजह से पहले की नामचीन हीरोइनें अपने साथ अपनी मां को रखती थीं ताकि उन पर कोई आंच न आए. बौलीवुड में लड़कियां ही नहीं लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं.

क्या हुआ था उस दिन

ऐसा ही एक हादसा टीवी ऐक्ट्रैस रश्मि देसाई ने अपने एक इंटरव्यू में साझा किया. रश्मि देसाई के अनुसार, जब वे 16 साल की थीं तो टीवी सीरियलों और फिल्मों में काम के लिए औडिशंस दिया करती थीं.

रश्मि ने मीडिया से बात करते हुए बताया,”मुझे एक औडिशन के लिए बुलाया गया था. जब मैं वहां गई तो औडिशन लेने वाले आदमी ने मुझे बेहोश करने की कोशिश की, लेकिन असहज महसूस होने पर किसी तरह मैं वहां से बाहर निकलने में सफल हो गई और उसी दिन घर जा कर मैं ने अपनी मां को सारी बात बता दी.”

हार नहीं मानी

रश्मि कहती हैं कि इस घटना के बाद भी मैं ने हार नहीं मानी और दूसरे ही दिन मैं अपनी मां के साथ उसी जगह औडिशन देने के लिए पहुंच गई. वह आदमी मुझे वहां फिर से देख कर चकित रह गया और मेरे साथ मेरी मां को देख कर घबरा उठा.

उन्होंने बताया कि उस को देखने के बाद मेरी मां का गुस्सा कंट्रोल में नहीं रहा और उस औडिशन लेने वाले व्यक्ति को मां ने जोरदार थप्पड़ जड़ दिए. इस घटना के बाद हम वहां से चले आए.

कड़वा सच

रश्मि देसाई के अनुसार, कास्टिंग काउच ग्लैमर वर्ल्ड का कड़वा सच है लेकिन संयोग रहा कि मुझे अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला और मेरे अनुभव भी अच्छे रहे.

कहने का मतलब यह कि ग्लैमर वर्ल्ड हो या कोई और फील्ड, हर जगह अच्छे और बुरे दोनों लोग होते हैं, ऐसे में चौकन्ना रहने की जरूरत है, ताकि कोई आप का फायदा न उठा सके. Rashami Desai

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