पोस्टमैन के जाते ही वसुंधरा ने जैसे ही लिफाफा खोला वह खुशी से उछल पड़ी और जोर से आवाज लगा कर मां को बुलाने लगी.
मां गायत्री ने कमरे में प्रवेश करते हुए घबरा कर पूछा, ‘‘क्यों, क्या
हो गया?’’
‘‘मां, आप की बेटी बैंक में अफसर बन गई. यह देखो, मेरा नियुक्तिपत्र आया है,’’ और इसी के साथ वसुंधरा मां से लिपट गई.
‘‘क्या…’’ कहने के साथ गायत्री का मुंह विस्मय से खुला का खुला रह गया.
‘‘मां, मैं न कहती थी कि मैं एक दिन अपने पैरों पर खड़े हो कर दिखाऊंगी. बस, आप मुझे सहयोग दो. देखो, मां, आज वह दिन आ गया,’’ वसुंधरा भावुक हो कर बोली.
मां की आंखों से खुशी के छलकते आंसू पोंछते हुए उस ने गले में चुन्नी डाली और बैग उठाते हुए बोली, ‘‘मां, मैं ममता मैडम के घर जा रही हूं, उन्हें अपना नियुक्तिपत्र दिखाने. मैडम कालिज से अब वापस आ चुकी होंगी.’’
वसुंधरा का बस चलता तो वह उड़ कर ममता मैडम के पास चली जाती, जो बी.एससी. में पहले साल से ले कर तीसरे साल तक उस को फिजिक्स पढ़ाती रहीं और उस का मार्गदर्शन भी करती रहीं. आज खुशी का यह दिन उन के मार्गदर्शन का ही नतीजा है.
वसुंधरा को याद हैं अतीत के वे दिन जब प्राइमरी स्कूल के अध्यापक और 4 बेटियों के पिता दीनानाथ को अपनी बेटी वसुंधरा का सदैव अपनी कक्षा में प्रथम आना भी कोई तसल्ली नहीं दे पा रहा था. उन्होंने हड़बड़ाहट में उस का विवाह वहां तय कर दिया जहां के बारे में वसुंधरा कभी सोच भी नहीं सकती थी. वह भी उस समय जब वह बी.एससी. द्वितीय वर्ष में थी.
राजू उस की सहेली मंजू की मौसी का लड़का था. मंजू ने उस के बारे में सबकुछ बता दिया था. अपार संपत्ति ने राजू को गैरजिम्मेदार ही नहीं विवेकहीन भी बना दिया था. कोई ऐसा व्यसन न था जिस का वह आदी न हो. बड़ों का सम्मान करना तो वह जानता ही न था.
वसुंधरा को यह जान कर घोर आश्चर्य और दुख हुआ कि राजू के बारे में सबकुछ जानने के बाद भी उस के पिता वहां उस के रिश्ते की बात चला रहे हैं.
‘पिताजी, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती और उस लड़के से तो हरगिज नहीं जिस से आप मेरा रिश्ता करना चाहते हैं,’ वसुंधरा ने पिता से स्पष्ट शब्दों में अपने विचार रखते हुए कहा.
‘तुम कौन होती हो यह फैसला लेने वाली? मैं पिता हूं और यह मेरा अधिकार व जिम्मेदारी है कि मैं तुम्हारा विवाह समय से कर दूं,’ दीनानाथ गरजते हुए बोले.
‘पिताजी, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं, जिंदगी में कुछ बनना चाहती हूं,’ वसुंधरा गिड़गिड़ाते हुए बोली.
‘तुम्हारी 3 बहनें और भी हैं. मुझे उन के बारे में भी सोचना है.’
‘वसु, तू तो हमारी स्थिति जानती है बेटी, वह एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार है, फिर उन्होंने खुद ही तेरा हाथ मांगा है. तू खुद सोच, हम कैसे मना कर दें,’ मां ने वसुंधरा को प्यार से समझाते हुए कहा.
‘अरे, जवानी में थोड़ी नासमझी तो सभी दिखाते हैं लेकिन परिवार की जिम्मेदारी पड़ते ही सब ठीक हो जाते हैं,’ दीनानाथ ने लड़के का बचाव करते हुए कहा.
‘पिताजी, वह खुद अपनी जिम्मे- दारी उठाने के काबिल तो है नहीं, फिर परिवार की जिम्मेदारी क्या उठाएगा?’ वसुंधरा ने आवेश में आ कर कहा.
‘खामोश…अपने पिता से बात करने की तमीज भी भूल गई. मैं ने फैसला ले लिया है, तुम्हारा विवाह वहीं होगा,’ दीनानाथ चिल्लाते हुए बोले.
वसुंधरा समझ गई कि उस के विरोध का कोई फायदा नहीं है. वह सोचने लगी कि वादविवाद प्रतियोगिताओं में निर्णायकगण और अपार जन समूह को अपने प्रभावशाली वक्तव्यों से प्रभावित करने वाली लड़की आज अपने विचारों से अपने ही मातापिता को सहमत नहीं करा पा रही है.
घर पर उस के पिताजी ने सगाई की सभी तैयारियां शुरू कर दी थीं. वसुंधरा का मन बहुत बेचैन रहने लगा. किसी भी काम में उस का मन नहीं लग रहा था.
‘वसुंधरा, तुम्हारी फाइल पूरी हो गई?’ ममता मैडम ने ऊंची आवाज में पूछा.
‘मैडम, बस थोड़ा सा काम रह गया है,’ वसुंधरा ने झेंपते हुए कहा.
‘क्या हो गया है तुम्हें आजकल? प्रैक्टिकल की डेट आने वाली है और अभी तक तुम्हारी फाइल पूरी नहीं हुई. अभी फाइल पूरी कर के स्टाफ रूम में ले आना,’ मैडम ने जातेजाते आदेश दिया.
वसुंधरा ने जल्दीजल्दी फाइल पूरी की और सीधे स्टाफरूम की ओर भागी. संयोग से ममता मैडम उस समय वहां पर अकेली बैठी फाइलें चेक कर रही थीं. जैसे ही वसुंधरा ने अपनी फाइल मैडम को दी उन्होंने उस की परेशानी को भांपते हुए कहा, ‘क्या बात है, वसुंधरा, आजकल तुम कुछ परेशान लग रही हो. टेस्ट में भी तुम्हारे नंबर अच्छे नहीं आए. तुम तो बहुत होशियार लड़की हो और हमें तुम से बहुत उम्मीदें हैं.’
मैडम की बातें सुन कर वसुंधरा, जो इतने दिनों से घुट रही थी, फफक कर रो पड़ी. उसे रोते देख कर मैडम ने घबरा कर कहा, ‘क्यों, क्या हुआ? घर पर सब ठीक तो है?’
वसुंधरा ने रोतेरोते सारी बात मैडम को बता दी. उस की बातें सुन कर मैडम स्तब्ध रह गईं. इनसान की मजबूरी उसे कैसेकैसे कदम उठाने पर मजबूर कर देती है. काफी देर तक वह विचार करती रहीं. सहसा उन का मन उस के पिता से मिलने को करने लगा. हालांकि उस के पिता से मिलना उन्हें खुद बड़ा अटपटा लग रहा था लेकिन वसुंधरा को बरबादी से बचाने के लिए उन का मन बेचैन हो उठा.
‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे पिताजी से इस विषय में बात करूंगी. कल रविवार है, उन से कहना कि मैं उन से मिलना चाहती हूं. बस, तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो,’ मैडम ने वसुंधरा की पीठ थपथपाते हुए कहा.
वसुंधरा खुश हो कर सहमति से सिर हिलाते हुए चली गई.
दीनानाथ रविवार के दिन ममता मैडम के घर मिलने आ गए. उन के पति नीरज भी वहां पर मौजूद थे. चाय के बाद उन्होंने वसुंधरा के लिए आए रिश्ते के बारे में बातचीत शुरू की, ‘यह तो हमारा अहोभाग्य है कि ऐसा बड़ा घर हमें अपनी लड़की के लिए मिल रहा है.’
मैडम ने तमक कर कहा, ‘घर तो आप की बेटी के लिए अवश्य अच्छा मिल रहा है लेकिन आप ने वर के बारे में कुछ सोचा कि वह क्या करता है? कितना पढ़ा लिखा है? उस की आदतें कैसी हैं?’
तब वह अति दयनीय स्वर में बोले, ‘मैडम, आप तो हमारे समाज के चलन को जानती हैं. अच्छेअच्छे घरों के रिश्ते भी दहेज के कारण नहीं हो पाते. फिर मैं अभागा 4 बेटियों का बाप कैसे यह दायित्व निभा पाऊंगा? वह परिवार मुझ से कुछ दहेज भी नहीं मांग रहा है. बस, लड़का थोड़ा बिगड़ा हुआ है. पर मुझे भरोसा है कि वसुंधरा उसे संभाल लेगी.’
‘उसे जब उस के मातापिता नहीं संभाल पाए तो एक 20 साल की लड़की कैसे संभाल लेगी?’ अचानक मैडम कड़क आवाज में बोलीं, ‘आप वसुंधरा की शादी हरगिज वहां नहीं करेंगे. वह उसे दुख के सिवा और कुछ नहीं दे सकता. आप उस परिवार की ऊपरी चमकदमक पर मत जाएं.’
वह लाचारी से खामोश बैठे रहे. मैडम अपने स्वर को संयत करते हुए उन्हें समझाने लगीं, ‘वसुंधरा एक मेधावी छात्रा है. उम्र भी कम है. शादी एक आवश्यकता है मगर मंजिल तो नहीं. उसे पढ़ने दीजिए. प्रतियोगिताओं में बैठने का अवसर दीजिए. एक अच्छी नौकरी लगते ही रिश्तों की कोई कमी उस के जैसी सुंदर लड़की के लिए न रह जाएगी. नौकरी न केवल उसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगी वरन उस के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को भी बढ़ाएगी.’
मैडम की बातों से सहमत हुए बगैर वसुंधरा के पिता एकाएक उठ गए और रुखाई से बोले, ‘चलता हूं, मैडमजी, देर हो रही है. वसुंधरा की सगाई की तैयारी करनी है.’
वसुंधरा बेताबी से पिता के लौटने का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा विश्वास था कि मैडम ने जरूर पिताजी को सही फैसला लेने के लिए मना लिया होगा. जैसे ही दीनानाथ ने घर में प्रवेश किया वसुंधरा चौकन्नी हो गई.
‘सुनती हो, तुम्हारी बेटी घर की बातें अपनी मैडमों को बताने लगी है,’ पिताजी ने गरजते हुए घर में प्रवेश किया.
‘क्या हुआ? क्यों गुस्सा हो रहे हो?’ मां रसोईघर से निकलते हुए बोलीं.
‘अपनी बेटी से पूछो. साथ ही यह भी पूछना कि क्या उस की मैडम आएगी यहां इन चारों का विवाह करने?’ पिता पूरी ताकत से चिल्लाते हुए बोले.
वसुंधरा सहम कर पढ़ाई करने लगी. तीनों बहनें भी पिताजी का गुस्सा देख कर घबरा गईं.
वसुंधरा को यह साफ दिखाई देने लगा था कि पिताजी को समझा पाना बेहद मुश्किल है. उसे खुद ही कोई कदम उठाना पड़ेगा. उस ने फैसला ले लिया कि वह किसी भी कीमत पर राजू से विवाह नहीं करेगी. भले ही इस के लिए उसे मातापिता के कितने भी खिलाफ क्यों न जाना पड़े.
मैडम की बातों से वसुंधरा उस समय एक नए जोश से भर गई जब दूसरे दिन कालिज में उन्होंने कहा, ‘यह लड़ाई तुम्हें स्वयं लड़नी होगी, वसुंधरा. बिना किसी दबाव में आए शादी करने के लिए एकदम मना कर दो. तुम्हारी योग्यता, तुम्हारी मंजिल के हर रास्ते को खोलेगी. मैं तुम्हें वचन देती हूं कि मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगी.’
उस ने सारी बातों को एक तरफ झटक कर अपनेआप को पूरी तरह अपनी आने वाली परीक्षा की तैयारी में डुबा दिया.
‘बेटी, आज कालिज मत जाना. लड़के वाले आने वाले हैं. पसंद तू सब को है, बस, वह सब तुम से मिलना चाहते हैं. साथ ही अंगूठी का नाप भी लेना चाहते हैं,’ मां ने अनुरोध करते हुए कहा.
‘मां, मैं पहले भी कह चुकी हूं कि मैं यह विवाह नहीं करूंगी,’ वसुंधरा ने किताबें समेटते हुए कहा.
‘क्या कह रही है? हम जबान दे चुके हैं और सगाई की तैयारी भी कर चुके हैं. अब तो मना करने का प्रश्न ही नहीं उठता,’ मां ने वसुंधरा को समझाने की कोशिश करते हए कहा, ‘फिर मुझे पूरा विश्वास है कि तू उसे अवश्य अपने अनुसार ढाल लेगी.’
‘मां, मैं अपनी जिंदगी और शक्ति एक बिगड़े लड़के को सुधारने में बरबाद नहीं करूंगी,’ वसुंधरा ने दृढ़ता से कहा. फिर मां की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘आप के सामने तो घर में ही एक उदाहरण हैं चाचीजी, क्या चाचाजी को सुधार पाईं? चाचाजी रोज रात को नशे में धुत हो कर घर लौटते हैं और चाचीजी अपनी तकदीर को कोसती हुई रोती रहती हैं. उन के तीनों बच्चे सहमे से एक कोने में दुबक जाते हैं.
‘मैं न तो अपने भाग्य को कोसना चाहती हूं न उस पर रोना चाहती हूं. मैं उस का निर्माण करना चाहती हूं,’ वसुंधरा ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘फिर मां, मैं आज वैसे भी नहीं रुक सकती. आज मेरा प्रवेशपत्र मिलने वाला है.’
‘2 बजे तक आ जाना. लड़के वाले 3 बजे तक आ जाएंगे.’
मां की बात को अनसुना कर वसुंधरा घर से निकल गई.
अपने देवर के बारे में सोच गायत्री भी विचलित हो गईं और अपनी बेटी का एक संपन्न परिवार में रिश्ता कराने का उन का नशा धीरेधीरे उतरने लगा.
‘कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं अपनी वसु के साथ,’ गायत्री देवी ने शंका जाहिर करते हुए पति से कहा.
‘मैं उसका पिता हूं, कोई दुश्मन नहीं. मुझे पता है, क्या सही और क्या गलत है. तुम बेकार की बातें छोड़ो और उन के स्वागत की तैयारी करो,’ दीनानाथ ने आदेश देते हुए कहा.
वसुंधरा ने कालिज से अपना प्रवेशपत्र लिया और उसे बैग में डाल कर सोचने लगी, कहां जाए. घर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था. सहसा उस के कदम मैडम के घर की ओर मुड़ गए.
‘अरे, तुम,’ वसुंधरा को देख मैडम चौंकते हुए बोलीं, ‘आओआओ, इस समय घर पर मेरे सिवा कोई नहीं है,’ वसुंधरा को संकोच करते देख मैडम ने कहा.
लक्ष्मी को पानी लाने का आदेश दे वह सोफे पर बैठते हुए बोलीं, ‘कहो, कैसी चल रही है, पढ़ाई?’
‘मैडम, आज लड़के वाले आ रहे हैं,’ वसुंधरा ने बिना मैडम की बात सुने खोएखोए से स्वर में कहा.
मैडम ने ध्यान से वसुंधरा को देखा. बिखरे बाल, सूखे होंठ, सुंदर सा चेहरा मुरझाया हुआ था. उसे देख कर उन्हें एकाएक बहुत दया आई. जहां आजकल मातापिता अपने बच्चों के कैरियर को ले कर इतने सजग हैं वहां इतनी प्रतिभावान लड़की किस प्रकार की उलझनों में फंसी हुई है.
‘तुम ने कुछ खाया भी है?’ सहसा मैडम ने पूछा और तुरंत लक्ष्मी को खाना लगाने को कहा.
खाना खाने के बाद वसुंधरा थोड़ा सामान्य हुई.
‘तुम्हारी कोई समस्या हो तो पूछ सकती हो,’ मैडम ने उस का ध्यान बंटाने के लिए कहा.
‘जी, मैडम, है.’
वसुंधरा के ऐसा कहते ही मैडम उस के प्रश्नों के हल बताने लगीं और फिर उन्हें समय का पता ही न चला. अचानक घड़ी पर नजर पड़ी तो पौने 6 बज रहे थे. हड़बड़ाते हुए वसुंधरा ने अपना बैग उठाया और बोली, ‘मैडम, चलती हूं.’
‘घबराना मत, सब ठीक हो जाएगा,’ मैडम ने आश्वासन देते हुए कहा.
दीनानाथ चिंता से चहलकदमी कर रहे थे. वसुंधरा को देख गुस्से में पांव पटकते हुए अंदर चले गए. आज वसुंधरा को न कोई डर था और न ही कोई अफसोस था अपने मातापिता की आज्ञा की अवहेलना करने का.
कहते हैं दृढ़ निश्चय हो, बुलंद इरादे हों और सच्ची लगन हो तो मंजिल के रास्ते खुद ब खुद खुलते चलते जाते हैं. ऐसा ही वसुंधरा के साथ हुआ. मैडम की सहेली के पति एक कोचिंग इंस्टीट्यूट चला रहे थे. वहां पर मैडम ने वसुंधरा को बैंक की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए निशुल्क प्रवेश दिलवाया. मैडम ने उन से कहा कि भले ही उन्हें वसुंधरा से फीस न मिले लेकिन वह उन के कोचिंग सेंटर का नाम जरूर रोशन करेगी. यह बात वसुंधरा के उत्कृष्ट एकेडमिक रिकार्ड से स्पष्ट थी.
समय अपनी रफ्तार से बीत रहा था. बी.एससी. में वसुंधरा ने कालिज में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए और आगे की पढ़ाई के लिए गणित में एम.एससी. में एडमिशन ले लिया. कोचिंग लगातार जारी रही. मैडम पगपग पर उस के साथ थीं. वसुंधरा को इतनी मेहनत करते देख दीनानाथ, जिन की नाराजगी पूरी तरह से गई नहीं थी, पिघलने लगे. 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद जब वसुंधरा स्टेट बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में बैठी तो पहले लिखित परीक्षा फिर साक्षात्कार आदि प्रत्येक चरण को निर्बाध रूप से पार करती चली गई.
वसुंधरा श्रद्धा से मैडम के सामने नतमस्तक हो गई. बैग से नियुक्तिपत्र निकाल कर मैडम के हाथों में दे दिया. नियुक्तिपत्र देख कर मैडम मारे खुशी के धम से सोफे पर बैठ गईं.
‘‘तू ने मेरे शब्दों को सार्थक किया,’’ बोलतेबोलते वह भावविह्वल हो गईं. उन्हें लगा मानो उन्होंने स्वयं कोई मंजिल पा ली है.
‘‘मैडम, यह सब आप की ही वजह से संभव हो पाया है. अगर आप मेरा मार्गदर्शन नहीं करतीं तो मैं इस मुकाम पर न पहुंच पाती,’’ कहतेकहते उस की सुंदर आंखों से आंसू ढुलक पड़े.
‘‘अरे, यह तो तेरी प्रतिभा व मेहनत का नतीजा है. मैं ने तो बस, एक दिशा दी,’’ मैडम ने खुशी से ओतप्रोत हो उसे थपथपाते हुए कहा.
वसुंधरा फिर उत्साहित होते हुए मैडम को बताने लगी कि उस की पहले मुंबई में टे्रेनिंग चलेगी उस के बाद 2 साल का प्रोबेशन पीरियड फिर स्थायी रूप से आफिसर के रूप में बैंक की किसी शाखा में नियुक्ति होगी. मैडम प्यार से उस के खुशी से दमकते चेहरे को देखती रह गईं.
उस शाम मैडम को तब बेहद खुशी हुई जब दीनानाथ मिठाई का डब्बा ले कर अपनी खुशी बांटने उन के पास आए. उन्होंने और उन के पति ने आदर के साथ उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया.
दीनानाथ गर्व से बोले, ‘‘मेरी बेटी बैंक में आफिसर बन गई,’’ फिर भावुक हो कर कहने लगे, ‘‘यह सब आप की वजह से हुआ है. मैं तो बेटी होने का अर्थ सिर्फ विवाह व दहेज ही समझता था. आप ने मेरा दृष्टिकोण ही बदल डाला. मैं व मेरा परिवार हमेशा आप का आभारी रहेगा.’’
ममता विनम्र स्वर में दीनानाथ से बोलीं, ‘‘मैं ने तो मात्र मार्गदर्शन किया है. यह तो आप की बेटी की प्रतिभा और मेहनत का नतीजा है.’’
‘‘जिस प्रतिभा को मैं दायित्वों के बोझ तले एक पिता हो कर न पहचान पाया, न उस का मोल समझ पाया, उसी प्रतिभा का सही मूल्यांकन आप ने किया,’’ बोलतेबोलते दीनानाथ का गला रुंध गया.
‘‘यह जरूरी नहीं कि सिर्फ पढ़ाई में होशियार बच्चा ही जीवन में सफल हो सकता है. प्रत्येक बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है. हमें उसी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उसे उसी ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’’
दीनानाथ उत्साहित होते हुए बोले, ‘‘मेरी दूसरी बेटी आर्मी में जाना चाहती है. मैं अपनी सभी बेटियों को पढ़ाऊंगा, आत्मनिर्भर बनाऊंगा, तब जा कर उन के विवाह के बारे में सोचूंगा. मैं तो भाग्यशाली हूं जो मुझे ऐसी प्रतिभावान बेटियां मिली है.