Hindi Kahaniyan : तितली रंगबिरंगी: गायत्री का क्या था फैसला

Hindi Kahaniyan : रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मी और पापा के आपसी झगड़ों की कड़वी आवाज़ों से हुई . सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी ,चिकचिक सुनकर उसने चादर सर से ओढ़ ली ,आवाज़ पहले से कम तो हुई पर अब भी कानो से टकरा रही थी .

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गयी थी पास में पड़े मोबाइल को टटोलकर उसमें एयरफोन लगाकर बड्स को कानो में कसकर ठूंस लिया और वॉल्यूम को फुल कर दिया .

अट्ठारह वर्षीय सियाली के लिए ये कोई नयी बात नहीं थी ,उसके माँबाप आये दिन ही झगड़ते रहते थे जिसका सीधा कारण था  उन दोनों के संबंधों में खटास का होना  …..ऐसी खटास जो एक बार जीवन में आ जाये तो आपसी रिश्तों की परिणिति उनका खात्मा ही होती है .

सियाली के माँबाप प्रकाश यादव और निहारिका यादव के संबंधों में ये खटास कोई एक दिन में नहीं आई बल्कि ये तो एक मध्यमवर्गीय परिवार के कामकाजी दम्पत्ति के आपसी सामंजस्य  बिगड़ने के कारण धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी   .

सियाली का पिता अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था उसका शक करना भी एकदम जायज था क्योंकि निहारिका का अपने आफिसकर्मी के साथ संबंध चल रहा था ,पतिपत्नी के हिंसा और शक समानुपाती थे ,जितना शक गहरा हुआ उतना ही प्रकाश की हिंसा बढ़ती गई और जिसका परिणाम परपुरुष के साथ निहारिका का प्रेम बढ़ता गया .

“जब दोनो साथ नहीं रह सकते तो तलाक क्यों नहीं दे देते … एक दूसरे को ”सियाली बिस्तर से उठते हुए झुंझुलाते हुए बोली

सियाली जब अपने कमरे से बाहर आई तो  दोनो काफी हद तक शांत हो चुके थे, शायद वे किसी निर्णय तक पहुच गए थे.

“तो ठीक है मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूँ …..पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?” प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए कहा

“मैं समझती हूं ….सियाली को तुम मुझसे बेहतर सम्भाल सकते हो” निहारिका ने कहा ,उसकी इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया

“हाँ …तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो ताकि तुम अपने उस ऑफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारो तरफ एक गार्ड बनकर घूमता रहूँ ”

प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा कि “मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक माँ की ही होती है ?”

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली

“हाँ …वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है ….एकदो दिन मेरे साथ रहेगी तो मुझे भी ऐतराज़ नहीं होगा ”निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था

सियाली कभी माँ की तरफ देख रही थी तो कभी अपनी पिता की तरफ ,उससे कुछ कहते न बना पर इतना समझ गयी थी कि माँबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उसका अस्तित्व एक पेंडुलम से अधिक नहीं है  जो दोनो के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है  .

माँबाप के बीच इस रोज़रोज़ के झगड़े ने एक अजीब से विषाद से भर दिया था सियाली को  और इस विषाद का अंत शायद तलाक जैसी चीज से ही सम्भव था इसलिए सियाली के मन में कहीं न कहीं चैन की सांस ने प्रवेश किया कि चलो आपस की कहा सुनी अब खत्म हुई और अब सबके रास्ते अलगअलग है .

शाम को कॉलेज से लौटी तो घर में एक अलग सी शांति थी ,पापा भी सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे ,चाय जो उन्होंने खुद ही बनाई थी ,उनके चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की वो शिकन गायब थी ,सियाली को देखकर उन्होंने मुस्कुराने की कोशिश भी करी

“देख ले…. तेरे लिए चाय बची होगी ….ले ले मेरे पास आकर बैठकर पी ”

सियाली पापा के पास आकर बैठी तो पापा ने अपनी सफाई में काफी कुछ कहना शुरू किया. “मैं बुरा आदमी नहीं हूँ पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था उसके कर्म  ही ऐसे थे कि मुझे उसे देखकर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी माँ ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी  ”

पापा की बातें सुनकर सियाली से भी नहीं रहा गया. “मैं नहीं जानती कि आप दोनो में से कौन सही है और कौन गलत पर इतना ज़रूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाये तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है ” दोनो बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुलकर बात करी थी ,पापा की बातों में माँ के प्रति नफरत और द्वेष ही छलक रहा था जिसे चुपचाप सुनती रही थी सियाली .

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर माँ का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना एड्रेस देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को माँ के पास जाने की सूचना भी उसने अपने पापा को दे दी जिस पर पापा को भी कोई ऐतराज नहीं हुआ .

शाम को “शालीमार अपार्टमेंट” में पहुच गई थी सियाली ,पता नहीं क्या सोचकर उसने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था ,फ्लैट नंबर एक सौ ग्यारह में सियाली पहुच गई थी.

कॉलबेल बजाई ,दरवाज़ा माँ ने  खोला था , अब चौकने की बारी सियाली की थी माँ गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी ,माँग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर तिलक की शक्ल में लगाई हुई बिंदी ,सियाली को याद नहीं कि उसने माँ को कब इतनी अच्छी तरह से श्रंगार किये हुए देखा था ,हमेशा सादे वेश में ही रहती थी माँ और टोकने पर दलील देती

“अरे हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो है नहीं जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें ….हम पिछड़ी जाति वालों के लिए सिंपल रहना ही अच्छा है ”

तो फिर आज माँ को ये क्या हो गया ?

उनकी सिम्पलीसिटी आज श्रंगार में कैसे परिवर्तित हो गई थी और क्यों वो जाति की दलीलें देकर सही बात को छुपाना चाह रही थी .

सियाली ने बुके माँ को दे दिये ,माँ ने बहुत उत्साह से बुके ले लिए और कोने की मेज पर सज़ा दिए .

“अरे अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से “माँ के पीछे से आवाज़ आई ,आवाज़ की दिशा में नज़र उठाई तो देखा कि सफेद कुर्ता और पाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था ,सियाली उसे पहचान गई ये माँ का सहकर्मी देशवीर था ,माँ इसे पहले भी घर भी ला चुकी थी .

माँ ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया जिसपर सियाली ने कहा, “जानती हूँ माँ ….पहले भी तुम इनसे मिला चुकी हो मुझे ”

“पर पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे  पर आज मेरे सब कुछ हैं….हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे  ”

मुस्कुराकर रह गयी थी सियाली

सबने एक साथ खाना खाया , डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था ,माँ के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी और ये चमक कृत्रिम या किसी फेशियल की नहीं थी ,उनके मन की खुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी .

सियाली रात में माँ के साथ ही सो गई और सुबह वहीँ से कॉलेज के लिए निकल गयी ,चलते समय माँ ने उसे दो हज़ार रुपये देते हुए कहा

“रख ले…घर जाकर पिज़्ज़ा आर्डर कर देना  ”

कल से लेकर आज तक माँ ने सियाली के सामने एक आदर्श माँ होने के कई उदाहरण प्रस्तुत किये थे पर सियाली को ये सब नहीं भा रहा था और न ही उसे समझ में आ रहा था कि ये माँ का कैसा प्यार है जो उसके पिता से अलग होने के बाद और भी अधिक छलक रहा है.

फिलहाल तो वो अपनी ज़िंदगी खुलकर जीना चाहती थी इसलिए माँ के दिए गए पैसों से सियाली  उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गयी .

“पर सियाली आज तू ये किस खुशी में पार्टी दे रही है ?”महक ने पूछा

“बस यूँ समझो …आज़ादी की ”मुस्कुरा दी थी सियाली.

सच तो ये था कि माँबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलेक्स महसूस कर रही थी ,रोज़रोज़ की टोकाटाकी से अब उसे मुक्ति मिल चुकी थी और सियाली अब अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी इसीलिए उसने अपने दोस्तों से  अपनी एक इच्छा बताई .

“यार मैं एक डांस ट्रूप (नृत्य मंडली ) जॉइन करना चाहती हूं ताकि मैं अपने जज़्बातों को डांस के द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं ”सियाली ने कहा जिसपर उसके दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए जिनसे वो अपने आपको व्यक्त कर सकती थी जैसे ड्राइंग,सिंगिंग,मिट्टी के बर्तन बनाना पर सियाली तो मज़े और मौजमस्ती के लिए डांस ट्रूप जॉइन करना चाहती थी इसलिए उसे  बाकी के ऑप्शन नहीं अच्छे लगे .

अपने शहर के डांस ट्रूप “गूगल” पर खंगाले तो  “डिवाइन डांसर” नामक एक डांस ट्रूप ठीक लगा जिसमे चार मेंबर लड़के  थे और एक लड़की थी  ,सियाली ने तुरंत ही वह ट्रूप जॉइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रेक्टिस के लिए जाने लगी ,सियाली अपना सारा तनाव अब डांस के द्वारा भूलने लगी और इस नई चीज का मज़ा भी लेने लगी .

डिवाइन डांसर नाम के इस ट्रूप को परफॉर्म करने का मौका भी मिलता तो सियाली भी साथ में जाती और स्टेज पर सभी परफॉर्मेंस देते जिसके  बदले सियाली को भी ठीकठाक पैसे मिलने लगे ,इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था ,वह निरंकुश हो चुकी थी न माँबाप का डर और न ही कोई टोकाटोकी करने वाला ,जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था उसके माँबाप  का तलाक क्या हुआ सियाली तो एक आज़ाद चिड़िया हो गई जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आज़ाद थी .

सियाली का फोन बज उठा था ,ये पापा का फोन था .

“सियाली….कई दिन से घर नहीं आई तुम…क्या बात है?…..हो कहां तुम?”

“पापा मैं ठीक हूँ…..और डांस सीख रही हूँ”

“पर तुमने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो ”

“ज़रूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं …..आप लोग अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं इसलिए मैं भी अब अपने हिसांब से ही जियूंगी”

फोन काट दिया था सियाली ने,पर उसका मन एक अजीब सी खटास से भर गया था .

डांस ट्रूप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी पर पराग नाम के लड़के से उसकी कुछ ज्यादा ही पटने लगी .

पराग स्मार्ट भी था और पैसे वाला भी ,वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और ख़िलातापिलाता ,उसकी संगत में सिहाली को भी सुरक्षा का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रेस्तराँ में गए ,पराग ने अपने लिए एक बियर मंगाई

“तुम तो सॉफ्ट ड्रिंक लोगी सियाली ”पराग ने पूछा

“खुद तो बियर पियोगे और मुझे बच्चों वाली ड्रिंक …..मैं भी बियर पियूंगी ”एक अजीब सी शोखी सियाली के चेहरे पर उतर आई थी .

सियाली की इस अदा पर पराग भी बिना मुस्कुराए न रह सका और उसने एक और बियर आर्डर कर दी .

सियाली ने बियर से शुरुआत जरूर करी थी पर उसका ये शौक धीरेधीरे व्हिस्की तक पहुच गया था .

अगले दिन डांस क्लास में जब दोनो मिले तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया

“सियाली मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ”घुटनो को मोड़कर ज़मीन पर बैठते हुए पराग ने कहा  सभी लड़के लड़कियाँ इस बात पर तालियाँ बजाने लगे.

सियाली ने भी मुस्कुराकर गुलाब पराग के हाथों से ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, “लेकिन मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज़ के बंधन में नहीं बढ़ना चाहती …..शादी एक सामाजिक तरीका है दो लोगों को एक दूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए  जीवन बिताने का पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं ?”सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुनकर डांस ट्रूप के लड़केलड़कियाँ शांत से दिख रहे थे.

सियाली ने रुककर कहना शुरू किया, “मैने अपनी माँबाप को उसके  शादीशुदा जीवन में हमेशा ही लड़ते हुए देखा है जिसकी परिणिति तलाक के रूप में हुई और अब मेरी माँ अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रहीं है और पहले से कहीं अधिक खुश है  ”

पराग ये बात सुनकर तपाक से बोला कि वो भी सियाली के साथ लिवइन में रहने को तैयार है अगर सियाली को मंज़ूर हो तो,पराग की बात सुनकर उसके साथ लिवइन के रिश्ते को झट से स्वीकार कर लिया था सियाली ने.

और कुछ दिनों बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे ,जहां पर दोनो जी भरकर अपने जीवन का आनंद ले रहे थे ,पराग के पास आय के स्रोत के रूप में एक बड़ा जिम था, जिससे पैसे की कोई समस्या नहीं आई

पराग और सियाली ने अब भी डांस ट्रूप को जॉइन कर रखा था और लगभग हर दूसरे दिन ही दोनो क्लासेज के लिए जाते और जी भरकर नाचते .

इसी डांस ट्रूप में गायत्री नाम की लड़की थी उसने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया

“सियाली ….तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है ….और इतनी जल्दी किसी के साथ …..आई मीन….लिवइन में रहना ….कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हे ?”

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कुराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए फिर सियाली ने अपने आपको संयत करते हुए कहा

“जब मेरे माँबाप ने सिर्फ अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं करी तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूँ……और…गायत्री  ….ज़िन्दगी मस्ती करने के लिए बनी है इसे न किसी रिश्ते में बांधने की ज़रूरत है और न ही रोरोकर गुज़ारने की ….और मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूँ ….और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ…..  उम्र का तो सोचो ही मत ….इनजॉय योर लाइफ यार…”

सियाली ये कहते हुए वहां से चली गयी थी जबकि गायत्री  अवाक सी खड़ी हुई थी .

तितलियाँ कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठी ,वे कभी एक फूल के पराग पर बैठती है तो कभी दूसरे फूल के पराग पर….और तभी तो इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है तितली …रंगबिरंगी तितली ….जीवन से भरपूर तितली.

Tasty Dishes : खाने की हैं शौकीन, तो जरूर बनाएं ये स्वादिष्ट डिशेज

Tasty Dishes :  चटपटी पावभाजी

सामग्री

250 ग्राम लौकी छिली व कटी द्य 2 गाजरें द्य 150 ग्राम फूलगोभी, 6 फ्रैंचबींस द्य 1/4 कप मटर के हरे दाने,  250 ग्राम टमाटर कद्दूकस किया,  1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 1/2 कप प्याज बारीक कटा , 2 बड़े चम्मच पावभाजी मसाला,  2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप, 2 लाल मिर्च,  स्वादानुसार  2 छोटे चम्मच औलिव औयल, थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए

थोड़ा सा पनीर कटा सजावट के लिए द्य 6 पाव द्य 1 छोटा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

गाजरों को छील कर मोटे टुकड़ों में व फूलगोभी को भी मोटे टुकड़ों में काट लें. फ्रैंचबींस को भी 1/2 इंच टुकड़ों में काट लें. अब सभी सब्जियों को 1/2 कप पानी और 1/2 चम्मच नमक के साथ प्रैशरकुकर में पकाएं. 1 सीटी आने के बाद लगभग 7 मिनट धीमी आंच पर और पकाएं. एक नौनस्टिक कड़ाही में औलिव औयल गरम कर प्याज सौते करें. फिर अदरकलहसुन पेस्ट डालें. 2 मिनट बाद टमाटर और पावभाजी मसाला डाल कर भूनें. जब मसाला भुन जाए तब इस में उबली सब्जियां डालें व मैशर से मैश करें. अच्छी तरह पकाएं. इस में टोमैटो कैचअप भी मिला दें. भाजी तैयार हो जाए तो सर्विंग बाउल में निकालें. पनीर के टुकड़ों और धनियापत्ती से सजाएं. एक नौनस्टिक तवे को मक्खन से चिकना कर उस पर पावभाजी मसाला बुरक तुरंत पाव को बीच से काट कर तवे पर डालें. अच्छी तरह सेंक लें. भाजी के साथ सर्व करें.

कौर्न कोन

सामग्री कोन की

1/2 कप मैदा

1 छोटा चम्मच घी

1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

कोन तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल

कोन बनाने का सांचा

नमक स्वादानुसार.

सामग्री कौर्न की

1/2 कप मक्की के दाने उबले

2 बड़े चम्मच हरे मटर उबले

1 बड़ा चम्मच टमाटर बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

1 छोटा चम्मच मक्खन पिघला

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

थोड़े से सलादपत्ते

चाटमसाला, लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदे में घी, अजवाइन और नमक डाल कर पानी से पूरी लायक आटा गूंध लें. 15 मिनट ढक कर रखें फिर मोटीमोटी 2 लोइयां बनाएं और खूब बड़ी बेल लें. कांटे से गोद दें व 4 टुकड़े कर लें. प्रत्येक टुकड़े को कोन पर लपेटें और किनारों को पानी की सहायता से सील कर दें. धीमी आंच पर सारे कोन तल लें. मक्की के दानों में सारी सामग्री मिला लें. सलादपत्तों के छोटे टुकड़े कर लें. प्रत्येक कोन में थोड़ा सा सलादपत्ता लगाएं. फिर मक्की के दाने वाला मिश्रण भरें. स्पाइसी कौर्न इन कोन तैयार है. तुरंत सर्व करें.

‘मंचूरियन डिश को बेबीकौर्न हैल्दी भी बनाते  हैं और टेस्टी भी.’

बेबीकौर्न मंचूरियन

सामग्री

100 ग्राम बेबीकौर्न द्य 1/2 कप कौर्नफ्लोर द्य 1/4 कप मैदा

1 बड़ा चम्मच चावल का आटा द्य 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

तलने के लिए पर्याप्त तेल, नमक स्वादानुसार.

अन्य सामग्री

2 छोटे चम्मच सोया सौस , 2 छोटे चम्मच रैड चिली सौस

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस, 1 छोटा चम्मच व्हाइट सिरका

1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर, 2 बड़े चम्मच प्याज बारीक कटा

1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट द्य थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए, 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल द्य नमक स्वादानुसार.

विधि

कौर्नफ्लोर, मैदा व चावल के आटे को मिक्स कर पकौड़ों लायक घोल तैयार करें. इस में कालीमिर्च चूर्ण और नमक डालें. बेबीकौर्न को 1/2 इंच के टुकड़ों में काट लें. कड़ाही में तेल गरम कर प्रत्येक बेबीकौर्न के टुकड़े को घोल में डिप कर डीप फ्राई कर लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के प्याज सौते करें. अदरकलहसुन पेस्ट डाल कर 30 सैकंड चलाएं. फिर सोया सौस, चिली सौस, टोमैटो सौस और सिरका डालें. 1/2 कप पानी में कौर्नफ्लोर घोल कर डाल दें. इस में फ्राइड बेबीकौर्न डालें और धीमी आंच पर चलाती रहें. जब मिश्रण अच्छी तरह बेबीकौर्न पर लिपट जाए तब आंच बंद कर दें. सर्विंग डिश में पलट धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

लगातार फ्लौप फिल्मों की वजह से Salman Khan को मिली नसीहत

Salman Khan : 100 से भी अधिक फिल्म कर चुके अभिनेता सलमान खान किसी परिचय के मोहताज नहीं, उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अधिकतर सुपरहिट फिल्में दी है, लेकिन पिछले कुछ सालों से अभिनेता सलमान खान की फिल्में लगातार फ्लौप हो रही है. दो साल पहले दिवाली पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म ‘टाइगर 3’ भी अपने बजट के बराबर घरेलू बौक्स औफिस पर कमाई नहीं कर सकी थी. नतीजतन यशराज फिलम्स के स्पाई यूनिवर्स में प्रस्तावित सलमान खान की शाहरुख खान के साथ निर्माणाधीन फिल्म ‘टाइगर वर्सेज पठान’ अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई.

लचर अभिनय

जानकारों की मानें, तो सलमान खान की फिल्में न चलने की मुख्य वजह इन फिल्मों में सलमान खान के लचर अभिनय के साथसाथ फिल्म के तमाम दृश्यों में उनके डुप्लीकेट की मौजूदगी को भी ठहराया जा रहा है. ये बात अब मुंबई फिल्म जगत मे किसी से छुपी नहीं है कि सलमान खान की फिल्मों में बीते कुछ साल से उनकी जगह उनके डुप्लीकेट को लेकर शूटिंग की जा रही है. सलमान इन फिल्मों के दृश्यों में बस वहीं नजर आते हैं, जहां उनका चेहरा दिखना जरूरी हो. कुछ फिल्मों के स्पेशल अपीयरेंस, तो उनके डुप्लीकेट ने ही शूट किए, जबकि फिल्म में नाम सलमान खान का गया. ऐसी एक फिल्म आनंद एल राय की ‘जीरो’ भी बताई जाती है.

अभी की फिल्म सिकंदर का तो बहुत ही बुरा हाल है, जो फिल्म की लागत भी नहीं कमा पा रही है, ओटीटी और सैटेलाइट राइट्स से मेकर्स को कुछ राहत जरूर मिल सकती है,लेकिन उसकी भी कोई गारंटी नहीं है. ऐसे में बौलीवुड के दबंग खान के अभिनय की वो चमक कहां खो कर रह गई है, जिसे दर्शक पिछले कुछ सालों से हर बार इंतजार करते है और बाद में निराश होते है.

हमेशा डटे रहे

हालांकि सलमान की फिल्मी कैरियर में काफी उतारचढ़ाव आए, लेकिन वे हमेशा डटे रहे और आगे बढ़ते रहे. एक बार तो उन्होंने बैक टू बैक 7 फ्लौप फिल्में लव, सूर्यवंशी, जागृति, निश्चय, चंद्रमुखी आदि कई दिए है. साथ ही ये वही अभिनेता है जिन्होंने एक से एक सुपरहिट फिल्में भी दी है, मैंने प्यार किया, साजन, मैंने प्यार क्यों किया, बीवी नंबर 1, टाइगर, करण अर्जुन, बजरंगी भाईजान आदि दर्जनों हिट फिल्में भी दी है, जिसमें सलमान खान के अभिनय को आलोचकों ने बहुत सराहा. उनके सहज अभिनय की वजह से एक अच्छी खासी फैन फौलोइंग है और ये फैंस उनकी हर एक फिल्म का बेसब्री से हर साल इंतजार करते हैं, लेकिन इस बार की फिल्म सिकंदर ने दर्शकों को बहुत मायूस किया और फिल्म बुरी तरह पिट गई.

ओवर द टौप ऐक्टिंग

फिल्म सिकंदर की असफलता के पीछे कई कारण माने जा रहे हैं, फिल्म की कहानी दर्शकों को बे-सिर पैर लगी. एक्शन तो दमदार था, लेकिन कहानी में वो पकड़ नहीं थी, जो दर्शकों को बांध सके. दर्शकों के सोशल मीडिया पर मिली मिक्स्ड रिव्यूज़ का भी असर पड़ा. बहुत से दर्शकों ने फिल्म को ‘ओवर द टौप’ बताया और कहा कि इसमें सलमान खान के स्टारडम का ही सहारा लिया गया है, कंटेंट कमजोर है. इतना ही नहीं उसमें सलमान के रोने के दृश्य देखकर दर्शकों को हंसी आ रही थी यानि ईमोशन में वो बात नहीं थी, जिससे दर्शक फ़ील कर सकें. इसके अलावा, साउथ के निर्देशक और बौलीवुड स्टाइल की मेल न बैठ पाना भी फिल्म की कमजोरी बनी है.

किये संघर्ष

आपको बता दें सलमान फिल्मी बैकग्राउंड से संबंध रखते हैं. उनके पिता सलीम खान एक्टर, फिल्म निर्माता और स्क्रीन राइटर हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाना सलमान खान के लिए बिल्कुल आसान नहीं था और न ही वह एक्टर बनना चाहते थे. पहली फिल्म के लिए भी उन्होंने काफी ठोकरें खाई थी, क्योंकि किसी भी निर्माता, निर्देशक को ये विश्वास नहीं था कि सलमान अच्छी ऐक्टिंग कर सकेंगे.

यही वजह थी कि फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने से लेकर पहली फिल्म मिलने तक सलमान खान का फिल्मी सफर बहुत कठिन था. सलमान ने एक जगह कहा है कि उन्होंने 15 साल की उम्र में मौडलिंग शुरू कर दी थी. शिक्षा पूरी करने के दौरान वे राइटिंग का काम भी कर रहे थे और दो निर्देशकों के अंडर असिस्टेंट के रूप में काम भी कर रहे थे.

16 साल की उम्र में उन्होंने कई फिल्म मेकर के पास स्क्रिप्ट लेकर गए, लेकिन उन्हे एक निर्देशक बनने के लायक उनकी उम्र कम कहा गया और ऐक्टिंग में कोशिश करने की सलाह दी गई. 18 साल तक उनका यही चलता रहा और अंत में उन्होंने ऐक्टिंग के बारें में सोच और औडिशन देने लगे और उन्हे बीवी हो तो ऐसी फिल्म मिली. हालांकि, इस मूवी में उन्होंने सपोर्टिंग रोल निभाया था, पर फिल्म फ्लौप रही.

मिली कामयाबी

अभिनेता सलमान को पहचान वर्ष 1989 में फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से मिली, जिसमें उनके साथ अभिनेत्री भाग्यश्री थी. फिल्म सुपर हिट रही और सलमान को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. राजश्री प्रोडक्शन के प्रेम के किरदार के रूप में वे इतने सफल हुए कि आज भी सलमान को राजश्री के किसी भी फिल्म में प्रेम नाम दिया जाता है. उनके सहज अभिनय की वजह से उन्होंने बहुत जल्दी दर्शकों के दिल में अपनी जगह बना ली थी. आज भी उनका नाम एक सफल एक्टर के रूप में ही लिया जाता है, क्योंकि वह आज बॉलीवुड में सक्रिय हैं. सलमान खान का फिल्मी ग्राफ भले ही ऊपरनीचे होता रहा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने काम से ब्रेक नहीं लिया. उन्होंने अपने कैरियर में कई फ्लौप फिल्में भी दिए, लेकिन इससे उन्होंने अपने हौसले को कभी गिरने नहीं दिया.

गिरते ग्राफ और फ्लॉप फिल्में

पिछले कुछ सालों से अभिनेता सलमान के अभिनय के गिरते ग्राफ और फ्लौप होती फिल्मों की लिस्ट बड़ी होती जा रही है, जिससे देखकर फैन भी मायूस होते जा रहे है है. अभिनेता सलमान खान की फिल्म सिकंदर बौक्स औफिस पर फुस्स साबित हुई है, जिसके बाद से उनके फैंस को उनके कैरियर को लेकर चिंता होने लगी है. इसी को लेकर उनके फैंस ने उनसे मुलाकात की. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फैंस ने सलमान से अनुरोध किया कि वे अपनी पुरानी हिट फिल्मों के डायरेक्टर्स के साथ ही काम करें, जिनके साथ काम करते हुए उन्होंने सफल फिल्में दी है, जिसमें कबीर खान और अली अब्बास जफर का नाम उन्होंने सुझाया है. फैंस का मानना है कि सलमान खान ने कबीर खान के साथ बजरंगी भाईजान जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दी हैं, वहीं अली अब्बास जफर के साथ की गई सुल्तान जैसी फिल्मों ने दर्शकों का दिल जीता था.

देखना यह है कि आने वाले समय में क्या सलमान आने वाली फिल्मों में वाकई दर्शकों के सुझाव को मानकर एक बार फिर से अपनी खोई अभिनय की चमक को बरकरार रख पायेगे या उनके फैंस को फिर से मायूसी मिलेगी.

डौक्यूमेंट्री ‘बौर्न हंग्री’ की निर्माता बनीं Priyanka Chopra और कनाडाई निर्माता निर्देशक बैरी एवरिच से मिलाया हाथ

Priyanka Chopra : ग्लोबल आइकन प्रियंका चोपड़ा बीते दिनों भारत अपने पति और बेटी के साथ आई हुई थी, लेकिन अब घर लौट चुकी हैं और फिर से काम कर रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार 41 साल की दीवा की प्रोडक्शन कंपनी पर्पल पेबल पिक्चर्स और बैरी एवरिच के मेलबार एंटरटेनमेंट ग्रुप की फीचर डौक्यूमेंट्री फिल्म ‘बौर्न हंग्री’ की प्रोडक्शन टीम में शामिल हो गई हैं. यह प्राइम वीडियो और आईट्यून्स पर एक साथ उपलब्ध होगी.

इन दोनों कंपनियों ने मिलकर शक्तिशाली डौक्यूमेंट्री फिल्म ‘बौर्न हंगरी’ का निर्माण किया है. इसकी कहानी सेलिब्रिटी शेफ सैश सिम्पसन के जीवन पर आधारित है, जिसमें उनकी अविश्वसनीय यात्रा को दर्शाया गया है, जो भारत में एक बच्चे के रूप में छोड़े जाने से लेकर कनाडा में एक प्रसिद्ध शेफ बनने तक की कहानी है.

इस डौक्यूमेंट्री के बारें में प्रियंका चोपड़ा ने कहा है कि इस कहानी ने उन्हे तुरंत मोहित कर लिया, क्योंकि यह एक भूलेभटके लड़के की व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने, उनकी यात्रा और अपने परिवार और खुद को खोजने के उनके गहन जुनून को भी दर्शाने का एक शानदार अवसर उन्हे इस कहानी के जरिए मिला है.

बैरी एवरिच द्वारा निर्देशित और निर्मित, बौर्न हंगरी, एक भारतीय लड़के सिम्पसन की दिल दहला देने वाली कहानी को दर्शाती है, जो भारत की विशाल रेलवे प्रणाली में घूमते हुए घर से बेहद दूर चला जाता है और चेन्नई की सड़कों पर कूड़े के डिब्बे से खाना खाकर जीवित रहता हैं. इसके बाद आठ साल की उम्र में उन्हें कनाडा के समाजसेवी संड्रा और लौयड सिम्पसन द्वारा गोद लिया जाता है, जो बाद में एक नामचीन शेफ बन जाते है. इस डॉक्यूमेंट्री में सिम्पसन की भावनात्मक यात्रा का बारीकी से वर्णन किया गया है. कनाडा से जब सिम्पसन भारत लौटते हैं और अपनी बिखरी हुई यादों के साथ वे भारत में अपने मूल परिवार को खोजने के लिए एक भावनात्मक यात्रा पर निकलते है.

फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर 2024 के पाम स्प्रिंग्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ और इसे टोरंटो के हौट डौक्स फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया. फिल्म निर्माताओं के अनुसार, बौर्न हंग्री एक सच्ची और महत्वपूर्ण कहानी है जिसमें एक विशाल दिल है, जो अपनी पहचान और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी हुई है.

सैश सिम्पसन की कहानी फिल्म की आत्मा है, मौन्ट्रियल और टोरंटो के बीच 31 भाई-बहनों के साथ वे बड़े हुए. 14 साल की उम्र में, उन्हें खाने के प्रति अपने जुनून का पता चला. अंत में जानी मानी नौर्थ 44 रेस्तरां में कार्यकारी शेफ बन गए. आज वह टोरंटो के समरहिल पड़ोस में अपना खुद का रेस्तरां- सैश रेस्तरां चलाते हैं. ये फिल्म सिर्फ़ खाने की कहानी नहीं है, बल्कि धैर्य, परिवर्तन, और एक बच्चे की असाधारण यात्रा की कहानी है जिसने विपरीत परिस्थितियों का सामना किया.

ट्रिबेका फिल्म्स के साथ बौर्न हंगरी के जुड़ाव से प्रियंका चोपड़ा बेहद रोमांचित हैं. शक्तिशाली स्वतंत्र कहानियों को वैश्विक दर्शकों तक पहुँचाने के लिए उनका समर्पण इस फिल्म के दिल और आत्मा के साथ पूरी तरह से मेल खाता है.

आपको बता दें प्रियंका चोपड़ा जोनास अपने प्रोडक्शन हाउस के जरिए हर नई और अलग कहानियों को चाहे देश हो या विदेश सभी को आगे बढ़ाने और सांस्कृतिक सीमाओं से परे विविध आवाज़ों को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयत्नशील है.

Long Distance : लौंग डिस्टैंस में शक का घेरा

Long Distance : हाल ही में मुसकान और सौरभ की लवस्टोरी सब की जबान पर है. लौंग डिस्टैंस में उन के बीच इस कदर दूरियां आईं कि मुसकान ने अपने ही पति को मौत के घाट उतार दिया. वजह बहुत सी रही होंगी लेकिन सब से बड़ी वजह है लौंग डिस्टैंस क्योंकि एक पार्टनर के साथ न रहने पर ही नए साथी के लिए जीवन में जगह बनती है. यही लौंग डिस्टैंस यदि गैर शादीशुदा पाटनर्स के बीच आए तो खतरा बस ब्रेकअप का होता है. लेकिन शादी के बाद यह औप्शन सिलेबस में समझ नहीं आता और फिर जो नतीजे सामने आते हैं वे कभी सही नहीं होते.

चाहे मुसकान सौरभ का केस हो या ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से जुड़े और भी कई केस, ये सभी हमारे जीवन और रिश्तों में शक का बीज बोने का काम ही करते हैं.

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप यानी दूर रह कर निभाए जाने वाले रिश्ते अकसर मुश्किलों से भरे होते हैं. जब पतिपत्नी लंबे समय तक अलग रहते हैं, तो विश्वास और पारदर्शिता की परीक्षा होती है. लेकिन कई बार यह दूरी शक को जन्म देती है, खासकर जब पति अपनी पत्नी को अपनी मिल्कियत समझने लगते हैं. वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि पत्नी किस से मिली, किस से बात की, कब और कहां गई वगैरह. इस तरह का संदेह रिश्ते को कमजोर कर सकता है.

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में शक को कैसे दूर किया जाए और रिश्ते को कैसे मजबूत बनाया जाए, आइए जानते हैं :

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में शक क्यों जन्म लेता है

शक के कारण तो बहुत से हो सकते हैं, जिन में सब से बड़ा कारण है कम्यूनिकेशन गैप. जब पतिपत्नी के बीच बातचीत कम हो जाती है, तो संदेह पनपने लगता है. इसलिए जरूरी है कि जब भी आप को समय मिले तो बात करें और आप का पार्टनर क्या कहना चाहता है उसे सुनें.

अतिरिक्त नियंत्रण

● जब पति या पत्नी एकदूसरे पर बहुत अधिक नियंत्रण चाहते हैं, तो इस से घुटन महसूस होती है. आप दूर रह रहे हैं तो यह जरूरी नहीं कि आप अपने पार्टनर की पूरी दिनचर्या का ही पता करें. एकदूसरे पर भरोसा रखें, अगर आप सामने वाले से यह उम्मीद करते हैं कि वह आप को धोखा न दे, तो खुद भी अपनी भावनाओं पर संयम रखें.

● अतीत के अनुभव : यदि पहले किसी ने विश्वासघात का सामना किया हो, तो शक की भावना स्वाभाविक रूप से बढ़ सकती है. लेकिन हर व्यक्ति एकसमान नहीं होता, यह समझें और विश्वास की डोर कायम करें.

● सोशल मीडिया और बाहरी प्रभाव : जब कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय रहता है या किसी दोस्त के साथ ज्यादा समय बिताता है, तो संदेह उत्पन्न हो सकता है. ऐसे में अपनी सोशल लाइफ में कितना सोशल होना है इस बात का खयाल रखें.

पति की मिल्कियत वाली मानसिकता का असर

कई पुरुष शादी के बाद अपनी पत्नी को अपनी संपत्ति की तरह देखने लगते हैं. वे यह मानते हैं कि पत्नी पर उन का पूरा अधिकार है और उसे हर बात की जानकारी देनी चाहिए. यह सोच केवल रिश्ते को नुकसान पहुंचाती है. इस से पत्नी कुछ वक्त भले प्यार में पजैसिव होने की समझे, लेकिन लंबे समय तक इस तरह का व्यवहार पत्नी को घुटन महसूस कराता है और उस के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है. इस से पतिपत्नी के बीच प्यार की जगह डर और झिझक भी जन्म लेती है.

ऐसे में पत्नी सच के बजाए बातों और जानकारी में फिल्टर लगाना शुरू कर देती है जिस से रिश्तों में खटास आ जाती है. ऐसे में जरूरी है कि पति पत्नी को संपत्ति नहीं अपना साथी मान कर चले.

शक के घेरे से बाहर आने के उपाय

● पारदर्शिता बनाए रखें : रिश्ते में पारदर्शिता सब से अहम होती है. अपनी दिनचर्या को एकदूसरे के साथ साझा करें, लेकिन जबरदस्ती न करें. यदि किसी से मिलनाजुलना हो तो पहले से बता दें, ताकि शक की स्थिति न बने. ओपन कम्युनिकेशन को अपनाएं और अपनी भावनाओं को खुल कर साझा करें.

● भरोसा और स्पेस दें : हर व्यक्ति को व्यक्तिगत स्पेस चाहिए होता है.

● शक करने से पहले अपनी सोच को तर्क की कसौटी पर परखें. अपने पार्टनर के संबंध में किसी की कही हुई बात पर विश्वास न करें. उन्हें बैनिफिट औफ डाउट दें और खुद ऐक्सप्लेन करने का मौका भी दें.

● जबरदस्ती हर बात की जानकारी मांगने से बचें. इस से आप का पार्टनर आप से अपनी बात कहने से झिझकता है.

टेक्नोलौजी का सही इस्तेमाल करें

आजकल टेक्नोलौजी की मदद से लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप को मजबूत किया जा सकता है. वीडियो कौल, मैसेज और वौइस नोट्स का सही इस्तेमाल करें. ट्रैकिंग ऐप्स से बचें, क्योंकि वे विश्वास को कमजोर कर सकते हैं.

सोशल लाइफ का सम्मान करें

पत्नी के सामाजिक जीवन को भी महत्त्व देना जरूरी है. हर दोस्ती को संदेह की नजर से न देखें. पार्टनर को सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने दें. जबरदस्ती किसी व्यक्ति से दूर रहने की शर्तें न थोपें.

मानसिकता बदलें : पत्नी कोई संपत्ति नहीं है

पति को यह समझना होगा कि पत्नी उन की संपत्ति नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र व्यक्ति है. रिश्ते में बराबरी की सोच विकसित करें. शादी का मतलब मालिकाना हक नहीं, बल्कि सहयोग और सम्मान है. अगर शक होता है, तो संवाद करें न कि जबरन नियंत्रण करें.

मजबूत रिश्ते के लिए क्या करें

● विश्वास बढ़ाने वाली गतिविधियां करें : नियमित रूप से कौल करें, लेकिन बाध्यता न बनाएं. यह न करें कि अगर एक कौल आप की मिस हो जाए तो बैक टू बैक कौल या मैसेज करते रहें या फिर दूसरों को कौल कर के अपने पार्टनर की जानकारी मांगें. सब्र रखना सीखें. भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करें. इस से रिश्ते में सुरक्षा की भावना बढ़ती है.

प्यार है तो उसे जताएं भी

अकसर लोग प्यार होने के बाद भी उस को अपने ऐक्शन में नहीं दिखाते. प्यार है तो दिखाओ, जताओ. फिजिकल टच हो या न हो, आप की बातें हों. उस में आप के पार्टनर के लिए प्यार झलकना चाहिए.

अगर आप को कौल करने का मौका न मिल रहा हो तो मैसेज भेज दें. कभीकभी सरप्राइज प्लान करें, जैसे अचानक मिलने आना. पूरा गुलदस्ता न सही एक फूल ही खरीद लाएं.

पौजिटिव सोच अपनाएं

● हर चीज में नकारात्मकता न ढूंढ़ें : अगर संदेह हो, तो पहले खुल कर बात करें. ओपन कम्यूनिकेशन से आप की 90% समस्याएं सुलझ सकती हैं. अगर आप के मन में कोई बात है तो उसे थर्ड पर्सन से डिस्कस करने की बजाए पहले दोनों आपस में बात करें. अपने डर और असुरक्षाओं को समझें और उन्हें हल करने की कोशिश करें.

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में शक एक सामान्य समस्या है, लेकिन इसे दूर किया जा सकता है. भरोसा और ट्रांसपेरैंसी बनाए रखें, स्पेस दें, पत्नी को एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में देखने की आदत डालें. रिश्ते का आधार प्रेम, विश्वास और पारस्परिक सम्मान है.

यदि इन 3 चीजों को बनाए रखा जाए, तो लौंग डिस्टैंस भी आप के रिश्ते को कमजोर नहीं कर सकता. दूसरों को अपने रिश्तों के बीच में न आने दें. इस से विश्वास की डोर कमजोर होती है. भरोसे का यह ब्रिज डगमगाता बहुत है लेकिन आप का आप के पार्टनर और उस की लौयल्टी पर लीप औफ फेथ जरूरी है.

Bollywood Celebrities : अमिताभ, शाहरुख, माधुरी : क्या है इन की खूबसूरती और फिट रहने का राज

Bollywood Celebrities :  कहते हैं, जिंदगी जीने का सही अंदाज हो, जीवन में अनुशासन, खुश रहने की भावना, पौजिटिव सोच हो तो उम्र भले ही कितनी ही बढ़ जाएं लेकिन चेहरे और व्यक्तित्व पर उम्र का पता ही नहीं चलता या यों कहिए कि उम्र के साथ अगर व्यक्तित्व में बदलाव आता भी है तो वह कमजोरी नहीं बल्कि स्टाइल बन जाता है.

बौलीवुड के शहंशाह कहलाने वाले अमिताभ बच्चन इस बात के जीतेजागते उदाहरण हैं, जो 80 साल की उम्र में भी प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक नजर आते हैं. ढेर सारी भयानक बीमारियों को झेलने के बावजूद अमिताभ बच्चन आज भी कला के क्षेत्र में, फिर चाहे फिल्मों में ऐक्टिंग हो, विज्ञापन हो, या छोटे परदे पर ‘केबीसी’, हर जगह छाए हुए हैं.

इसी तरह अगर बौलीवुड अभिनेत्री रेखा की बात करें तो वे भी 70 साल पार कर चुकी हैं। फिल्मों में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं हैं, लेकिन अपनी खूबसूरती, क्लासिक ज्वैलरीज, नखरीला स्टाइल और अदाओं को ले कर आज भी कई हीरोइनों को पीछे छोड़ती हैं.

80 और 70 के दशक के बाद अगर 60 की उम्र के कलाकारों की बात करें तो 60 की उम्र तक पहुंचने वाले आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान वगैरह आज भी जवान हीरो को पछाड़ कर सुपरस्टार हीरो की श्रेणी में खड़े हैं. इतना ही नहीं, 60 की उम्र में हाल ही में अपना बर्थडे मनाने वाले आमिर खान ने जब अपनी नई प्रेमिका गौरी को मीडिया से मिलवाया और इशारोंइशारों में तीसरी शादी का ऐलान किया तो हर जगह इस खबर के बाद तहलका मच गया. लेकिन आमिर को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा। वे अपनी मस्ती में हैं और मन ही मन मुसकराते हुए कहते हैं कि मस्त रहो मस्ती में आग लगे बस्ती में।

वहीं सलमान खान अपनी हालिया रिलीज फिल्म ‘सिकंदर’ में अपने से आधी उम्र की हीरोइन के साथ जोड़ी बना कर भले ही ट्रोल हो रहे हैं लेकिन वह भी अपनी मस्ती में हैं। उन को किसी की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता.

इसी तरह 60 पार कर चुके संजय दत्त, अनिल कपूर, सुनील शेट्टी आदि कलाकार उतने ही हैंडसम और खूबसूरत नजर आते हैं जितना कि 20 साल पहले थे.

इसी तरह अगर हीरोइनों की बात करें तो 50 की उम्र की दहलीज पर खड़ी माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, शिल्पा शेट्टी, भाग्यश्री, करीना कपूर आदि हीरोइनें आज भी उतनी ही खूबसूरत और ग्लैमरस लगती हैं जितनी की अपने जवानी के दिनों में लगा करती थीं.

माना कि ये सारे कलाकार खूबसूरत दिखने के लिए काफी सारे जतन करते हैं. लेकिन उस से सिर्फ चेहरा खूबसूरत दिख सकता है, जवानी बरकरार नहीं रह सकती. ऐसा भी नहीं है कि ये कलाकार पूरी तरह से स्वस्थ जीवन गुजार रहे हैं या उन को कोई बीमारी नहीं हुई है. बल्कि ये सारे कलाकार अपने जीवन में न सिर्फ बड़ेबड़े दुखों से गुजरे हैं, बल्कि इन लोगों ने बड़ीबड़ी मुसीबतों का भी सामना किया है और भयानक बीमारी के शिकार भी हुए हैं. बावजूद इस के ये सारे कलाकार शारीरिक तौर पर फिट ऐंड फाइन नजर आते हैं.

अमिताभ बच्चन, सलमान खान, शाहरुख खान इन सभी को भयानक बीमारियों से गुजरना पड़ा लेकिन फिर भी ये सारे कलाकार सिल्वर स्क्रीन पर उतना ही तरोताजा व ऐनर्जेटिक नजर आते हैं जितना की आज से 20 या 25 साल पहले थे.

हर किसी के मन में यह सवाल है कि 80-70-60 उम्र तक पहुंचाने के बावजूद ये सारे कलाकार ज्यादा फिट और फाइन कैसे नजर आते हैं?

लोगों के मन में जिज्ञासा है कि ये खूबसूरत दिखने वाले कलाकार आखिरकार कैसी जिंदगी जीते हैं? इन का खानपान कैसा होता है? इन की सोच कैसी होती है? इन सितारों का जीवन दर्शन क्या है कि बुढ़ापा या बढ़ती उम्र इन पर कोई प्रभाव नहीं डाल पा रही? और आज भी इन सितारों के लाखों करोड़ों फैंस हैं। पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

बड़ी उम्र के कलाकार की सेहत का राज

सादा जीवन उच्च विचार, लिहाजा बौलीवुड के ज्यादातर सितारे घर का बना कम तेल घी वाला खाना ही रोजमर्रा की जिंदगी में खाते हैं. अगर सही शब्दों में कहें तो जवान दिखने वाले कलाकार उतना ही खाते हैं जितना कि उन के शरीर के लिए जरूरी है. कई सारे कलाकार अपने डाइटिशियन के बताए अनुसार ही भोजन ग्रहण करते हैं. गौरतलब है कि दुबलेपतले और स्वस्थ दिखने के लिए डाइटिशियन की डाइट अहम रोल अदा करती है. जैसेकि अभिनेत्री विद्या बालन कई सारे जतन करने के बावजूद पतली नहीं हो रही थीं, लेकिन तभी उन को एक डाइटिशियन ने सही डाइट बताई जो विद्या ने फौलो की। तब कहीं जा कर विद्या बालन का 20 किलोग्राम वजन कम हुआ.

यही वजह है कि बहुत सारे कलाकार पर्सनल डाइटिशियन रखते हैं जो उन को बताते हैं कि उन के शरीर के लिए क्या खाना सही है और क्या खाना गलत है. इस के बाद कलाकारों का न सिर्फ वजन कम रहता है बल्कि शारीरिक तौर पर भी वे स्वस्थ रहते हैं.

सही खानपान की वजह से उन के चेहरे की त्वचा भी खूबसूरत नजर आती है. जैसेकि पिछले दिनों एक इंटरव्यू में सलमान खान ने कहा था कि अगर पतला रहना है तो चावल और रोटी खाना छोड़ दो सिर्फ सब्जी और फल खाओ. इसी तरह अक्षय कुमार और आलिया भट्ट मीठा खाने से परहेज करते हैं। उन के अनुसार मिठाई में बहुत ज्यादा मोटापा होता है और सेहत के लिए हानिकारक भी.

शारीरिक तौर पर फिट रहने के लिए ऐक्सरसाइज और अनुशासन जरूरी

बौलीवुड कलाकार हों या आम इंसान, आज के समय में स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम करना बहुत जरूरी है. उस से भी ज्यादा जरूरी है अनुशासन का पालन करना.

ज्यादातर कलाकार या तो जिम जा कर ऐक्सरसाइज करते हैं या अपने घर में ही या अपनी वैनिटीवैन में जो वे शूटिंग के समय ले जाते हैं, दोनों जगहों पर कलाकारों ने अपना पर्सनल जिम बना रखा है और साथ ही वह अपना पर्सनल ट्रैनर रखते हैं, जो इन कलाकारों को सही वर्जिश करवाते हैं.

इस के अलावा अमिताभ बच्चन से ले कर माधुरी दीक्षित, शिल्पा शेट्टी, करीना कपूर, रेखा नियमित ऐक्सरसाइज करते हैं। इस के अलावा ऐक्सरसाइज के नाम पर कई सारी हीरोइनें डांस के जरीए ऐक्सरसाइज करती हैं क्योंकि डांस एक पैशन है जो आप को सिर्फ ऐनर्जी ही नहीं देता बल्कि खुशी भी प्रदान करता है. यही वजह है कि हेमा मालिनी, माधुरी दीक्षित आदि अदाकारा डांस कर के फिट रहने की कोशिश करती हैं.

जवान दिखने का सब से बड़ा राज

कहावत है कि खाली दिमाग भूतों का डेरा, इस बात का मतलब यह है कि जब हम खाली बैठते हैं तो बुरे खयालों से घिर जाते हैं. कई बार तो हमारे मन में ऐसे खयाल आने लगते हैं जो कभी हुआ ही नहीं. यही वजह है कि अगर स्वस्थ रहना है, कम उम्र का दिखना है तो व्यस्त रहना बहुत जरूरी है क्योंकि खाली बैठने वाला इंसान जवानी में भी बुढ़ापे की तरफ बढ़ जाता है। खाली बैठने की वजह से हमारा लोगों से मिलनाजुलना भी कम होता जाता है। ऐसे में हम अपने ऊपर ध्यान देना छोड़ देते हैं और अच्छी तरह तैयार भी नहीं होते. जो मिलता है वह पहन लेते हैं, अस्तव्यस्त रहने लगते हैं, जिस के बाद जिंदगी जीने का मजा धीरेधीरे कम होने लगता है और हम कई बार जवानी में बुढ़ापे की तरह बढ़ जाते हैं.

बौलीवुड स्टार्स की जवानी का राज यही है कि अति व्यस्तता के चलते उन के पास सोचने के लिए टाइम ही नहीं होता और उम्र कब आगे बढ़ गई उस के बारे में भी ज्यादा नहीं सोचते.

पौजिटिव सोच रखना

बौलीवुड स्टार्स को जितनी टैंशन होती है, परेशानियां होती हैं उस का आधा भी आम इंसान को नहीं झेलना पड़ता. तभी तो कहते हैं कि कामयाबी की कीमत चुकानी पड़ती है। लिहाजा, बौलीवुड स्टार्स को भी बुरे से बुरे समय से गुजरना पड़ता है. लेकिन बावजूद इस के वे पौजिटिव सोच रखते हैं। अपना आत्मविश्वास नहीं डगमगाने देते. चाहे कितनी ही मुश्किलें आ जाएं वे हर मुसीबत का सामना कर के जिंदगी में आगे बढ़ते रहते हैं और यही उन की जवानी का राज है।

मशहूर ऐक्टर राज कपूर ने कहा था कि ‘शो मस्ट गो औन’ लिहाजा बौलीवुड स्टार्स भी बुढ़ापे को मात देते हुए आखिरी दम तक फिल्मों में काम करने का जज्बा रखते हुए आगे बढ़ते रहते हैं और इसी वजह से ये सारे सितारे हमेशा जवान रहते हैं.

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सवाल

मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ सोना चाहता है, पर मुझे पेट से होने का डर लगता है. मुझे उसे मना करना अच्छा नहीं लगता. ऐसे में क्या ठीक है?

जवाब

बौयफ्रैंड को सोने का मौका कतई न दें. आप पेट से हो गईं, तो वह किनारा कर लेगा. सिर्फ बातचीत तक ही सीमित रहें. हमबिस्तरी शादी के बाद ही करें.

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प्यार के बदले सैक्स नहीं

प्यार एक गहरा और खुशनुमा एहसास है. जब किसी से प्यार होने लगता है तो हम शुरुआत में अकसर उस की सकारात्मक चीजें ही देखते हैं. उस समय हमें अपना अच्छाबुरा कुछ समझ नहीं आता और यही वह खुमारी होती है जब हम प्रेमी के प्यार के बदले में उस की हर जायजनाजायज मांग भी पूरी करने लगते हैं. लेकिन कुछ पल ठहर कर एक बार सोच लें कि कहीं आप प्रेमी को प्यार के बदले अपना शरीर तो नहीं सौंप रही हैं. अगर ऐसा है तो संभल जाइए, क्योंकि यह सही नहीं है. यह वक्त सिर्फ प्यार करने का है, सैक्स तो शादी के बाद भी हो सकता है. इस में आखिर इतना उतावलापन और जल्दबाजी क्यों?

प्यार को प्यार ही रहने दें

प्यार एक खूबसूरत एहसास है, इसे दिल से महसूस करें न कि शरीर से. एकदूसरे के साथ समय बिताएं, एकदूसरे को समझें, प्यारभरी बातें करें, भविष्य के सपने बुनें, एकदूसरे की केयर करें, अपनेपन का एहसास साथी के मन में जगाएं, उसे विश्वास दिलाएं कि आप उस के लिए एकदम सही जीवनसाथी साबित होंगे. अपने कैरियर पर ध्यान दें. खुद खुश रहें और साथी को भी खुश रखें. यह वक्त बस यही करने का है बाकी जो भावनाएं हैं उन्हें शादी के बाद के लिए बचा कर रखें.

प्यार में आकर्षण बना रहेगा

अगर आप किसी से प्यार करती हैं और सैक्स नहीं किया है तो सैक्स को ले कर चाह और एक आकर्षण बना रहने के कारण साथी के प्रति खिंचाव हमेशा बना रहेगा, लेकिन एक बार सैक्स हो जाने के बाद कोई नयापन नहीं रहेगा और वह आकर्षण जो आप को एकदूसरे के प्रति खींचता था, खत्म हो जाएगा.

अपराधबोध नहीं होगा

एक बार संभोग करने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता. कई बार बाद में पता चलता है कि प्रेमी आप के लिए सही नहीं है तब वक्त से पहले संबंध बना लेने का अपराधबोध होता है. इसलिए जरूरी है कि जब तक पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाएं तब तक संबंध न बनाएं.

उत्सुकता बनी रहेगी

जब कोई भी काम समय पर करते हैं तो उस का आनंद ही अलग होता है, लेकिन जब आप सैक्स शादी से पहले ही कर लेते हैं तो इसे ले कर कोई उत्सुकता नहीं रहती. यदि सैक्स न करने से आप की उत्सुकता बनी रहती है तो बेहतर है इसे शादी तक न किया जाए.

यौन रोगों से बचे रहेंगे

सैक्स के प्रति लापरवाही यौन रोग होने का खतरा काफी हद तक बढ़ा देती है. उस समय आप की प्राथमिकताएं शारीरिक आकांक्षाओं को पूरा करना होता है, लेकिन सैक्स करते समय किनकिन सावधानियों का खयाल रखना चाहिए यह बात आप सोचते नहीं हैं और गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं.

सच्चे प्यार में सैक्स का कोई मतलब नहीं

सच्चा प्यार किसी को देखते ही नहीं हो जाता, यह एकदूसरे को जानने और समझने के बाद होता है. सच्चे प्यार में कोई जल्दबाजी नहीं होती, इस में ठहराव होता है. एकदूसरे की आपसी अंडरस्टैंडिंग होती है, एकदूसरे पर भरोसा होता है, एकदूसरे की कद्र होती है. सच्चा प्यार हमेशा के लिए होता है. इस में प्रेमी एकदूसरे से दिल की गहराइयों से जुड़े होते हैं. एकदूसरे के प्रति अपनीअपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है इसलिए उन्हें पता होता है कि सैक्स का सही समय शादी के बाद ही है और ऐसा करने के लिए वे एकदूसरे पर जोर भी नहीं डालते, क्योंकि इस के लिए इंतजार करना भी उन के इसी सच्चे प्यार का एक अहम हिस्सा होता है.

प्रेमी की पहचान करने का सही वक्त

यदि प्रेमी बारबार आप से शारीरिक संबंध बनाने पर जोर दे रहा है तो इस का मतलब उसे आप से ज्यादा इंट्रस्ट संबंध बनाने में है. उसे आप की भावनाओं का खयाल रखते हुए शादी तक इस चीज के लिए सब्र रखना चाहिए, लेकिन अगर वह ऐसा नहीं कर पा रहा है तो या तो उस की नीयत में खोट है या फिर वह आप का साथ निभाने के काबिल ही नहीं है.

सैक्स के नुकसान

बोरियत हो जाएगी

कुछ लोगों के लिए सैक्स ही सबकुछ होता है और जब उन्हें उस की पूर्ति हो जाती है तो उन की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और फिर उन्हें प्रेमिका में कोई रुचि नहीं रहती. उन्हें उस के साथ समय बिताने, घूमने, हंसीमजाक करने में बोरियत लगने लगती है. ऐसे में रिश्ते का लंबे समय तक खिंच पाना मुश्किल हो जाता है.

प्रैग्नैंट हो गईं तो मुश्किल

बाजार में कई तरह के गर्भनिरोधक उपलब्ध हैं, लेकिन कई बार वे भी पूरी तरह से सक्षम नहीं होते. कई बार आप को पता भी नहीं चलता कि आप गर्भवती हैं और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इस के बाद मानसिक परेशानी का ऐसा दौर शुरू होता है जो आप को अंदर तक तोड़ कर रख देता है.

शादी न हुई तो दिक्कत

आज सारी परिस्थितियां आप के पक्ष में हैं और आप को लग रहा है कि आप के प्रेमी से ही आप की शादी होगी, लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती, हो सकता है कल परिस्थितियां कुछ और हों. आप दोनों की किन्हीं कारणों से शादी न हो पाए, तो फिर क्या करेंगी?

जिस के साथ आप की शादी होगी अगर उस को आप के शादी से पहले के संबंधों के बारे में पता चल गया तो जिंदगी दूभर हो जाएगी या फिर हमेशा आप डरती रहेंगी कि कहीं यह बात खुल गई तो? ऐसे में आप शादी के बाद के खूबसूरत पलों को ढंग से ऐंजौय नहीं कर पाएंगी.

रिश्ते से बाहर आना मुश्किल

अगर आप अपने बौयफ्रैंड के साथ बिना संबंध बनाए डेट कर रहे हैं और आप को लगता है कि आप दोनों इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में सहमत नहीं हैं तो रिश्ता खत्म करना आप के लिए काफी आसान होता है, लेकिन एक बार शारीरिक संबंध बन जाने के बाद उस रिश्ते से बाहर आना भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर बहुत कठिन हो जाता है.

मलाल न हो

आप जिस व्यक्ति के साथ संबंध बना रही हैं वह आप के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होना चाहिए. केवल शारीरिक जरूरतें पूरी करने के लिए संबंध बनाना सही नहीं है.

ब्लैकमेलिंग का शिकार न हों

कई बार देखने में आता है कि जिस पर हम सब से ज्यादा भरोसा करते हैं वही हमारा विश्वास तोड़ता है. आएदिन अखबार ऐसी सुर्खियों से भरे रहते हैं कि प्यार करने के बाद सैक्स किया, फिर धोखा दिया. अकसर प्रेमी इस तरह की वारदात को अंजाम देते हैं इसलिए अगर बौयफ्रैंड धोखेबाज निकला और उस ने आप का कोई वीडियो बना लिया और फिर इस के जरिए आप को ब्लैकमेल करने लगा तो फिर क्या होगा?

माना कि आप का बौयफ्रैंड ऐसा नहीं है पर यह काम उस का कोई दोस्त या कोई अनजान भी तो कर सकता है, तब क्या करेंगी? किस से मदद मांगेंगी? इसलिए ऐसा काम करना ही क्यों, जिसे करने के बाद परेशानी भुगतनी पड़े. इसलिए तमाम बातों को ध्यान में रख कर ही आगे कदम बढ़ाएं अन्यथा ताउम्र इस का दंश झेलना पड़ेगा.      

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Latest Hindi Stories : आहटें

Latest Hindi Stories : पड़ोस के घर की घंटी की आवाज सुनते ही शिखा लगभग दौड़ती हुई दरवाजे के पास गई और फिर परदे की ओट कर बाहर झांकने लगी. अपने हिसाबकिताब में व्यस्त सुधीर को शिखा की यह हरकत बड़ी शर्मनाक लगी. वह पहले भी कई बार शिखा को उस की इसी आदत पर टोक चुका है, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आती.  ज्यों ही आसपास के किसी के घर की घंटी बजती शिखा के कान खड़े हो जाते. कौन किस से मिलजुल रहा है, किस पतिपत्नी में कैसा बरताव चल रहा है, इस की पूरी जानकारी रखने का मानो शिखा ने ठेका ले रखा हो.

सुधीर ने कभी ऐसी मनोवृत्ति वाली पत्नी की कामना नहीं की थी. अपना दर्द किस से कहे वह… कभी प्रेम से, कभी तलखी से झिड़कता जरूर है, ‘‘क्या शिखा, तुम भी हमेशा पासपड़ोसियों के घरों की आहटें लेने में लगी रहती हो… अपने घर में दिलचस्पी रखो जरा ताकि घर घर जैसा लगे…’’  सुधीर की लाई तमाम पत्रपत्रिकाएं मेज पर पड़ी शिखा का मुंह ताकती रहतीं.. शिखा अपनी आंखें ताकझांक में ही गड़ाए रखती.

मगर आज तो सुधीर शिखा की इस हरकत पर आगबबूला हो उठा और फिर परदा इतनी जोर से खींचा कि रौड सहित गिर गया.  ‘‘लो, अब ज्यादा साफ नजर आएगा,’’ सुधीर गुस्से से बोला.

शिखा अचकचा कर द्वार से हट गई. देखना तो दूर वह तो अनुमान भी न लगा पाई कि जतिन के घर कौन आया और क्योंकर आया.  सुधीर के क्रोध से कुछ सहमी जरूर, पर झेंप मिटाने हेतु मुसकराने लगी. सुधीर का मूड उखड़ चुका था. उस ने अपने कागज समेट कर अलमारी में रखे और तैयार होने लगा.

शिखा उसे तैयार होते देख चुप न रह सकी. पूछा, ‘‘अब इस वक्त कहां जा रहे हो? शाम को मूवी देखने चलना है या नहीं?’’

‘‘तुम तैयार रहना… मैं आ जाऊंगा वक्त पर,’’ कह कर सुधीर कहां जा रहा है, बताए बिना गाड़ी स्टार्ट कर निकल गया.

गुस्से से भरा कुछ देर तो सुधीर यों ही सड़क पर गाड़ी दौड़ाता रहा. वह मानता है कि थोड़ीबहुत ताकझांक की आदत प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में होती है पर शिखा ने तो हद कर रखी है. 1-2 बार उसे ताना भी मारा कि इतनी मुस्तैदी से अगर किसी अखबार में न्यूज देती तो प्रतिष्ठित संवाददाता बन जाती. लेकिन शिखा पर किसी शिक्षा का असर ही नहीं पड़ता था.  पिछले हफ्ते की ही बात है. वह शाम को औफिस से काफी देर से लौटा था. वह ज्यों ही घर में घुसा कि कुछ देर में ही शिखा का रिकौर्ड शुरू हो गया. बच्चों को पुलाव खिला कर सुला चुकी थी. उस के सामने भी दही, अचार, पुलाव रख शुरू कर दिया राग, ‘‘आजकल अमनजी औफिस से 1-2 घंटे पहले ही घर आ जाते हैं. मेरा ध्यान तो काफी पहले चला गया था इस बात पर… इधर उन की माताजी प्रवचन सुनने गईं और उधर से उन की गाड़ी गेट में घुसती. दोनों लड़कियां तो स्कूल से सीधे कोचिंग चली जाती हैं और 7 बजे तक लौटती हैं… अमनजी के घर में घुसते ही दरवाजेखिड़कियां बंद…’’

‘‘अरे बाबा मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है दूसरों के दरवाजों में… तुम पापड़ तल कर दे सको तो दे दो.’’  सुधीर की नाराजगी देख शिखा को चुप हो जाना पड़ा वरना वह आगे भी बोलती.

खाना खा कर सुधीर टीवी देखने लगा. शिखा रसोई निबटा कर उस के पास आ कर बैठी तो सुधीर को बड़ा सुखकर लगा. छोटी सी गृहस्थी जोड़ ली है उस ने… शिखा भी पढ़ीलिखी है. अगर यह भी अपने समय का सदुपयोग करना शुरू कर दे तो घर में अतिरिक्त आय तो होगी ही खाली समय में इधरउधर ताकनेझांकने की आदत भी छूट जाएगी.  ‘धीरेधीरे स्वयं समझ जाएगी,’ सोचते हुए सुधीर भावुकता में शिखा को गले लगाने के लिए उठा ही था कि शिखा चहक उठी, ‘‘अरे यार, वह अमनजी का किस्सा तो अधूरा ही रह गया… मैं समझ तो गई थी पर आज पूरा राज खुल गया… खुद उन की पत्नी आशा ने बताया नेहा को कि लड़कियां बड़ी हो गई हैं… तो एकांत पाने का यह उपाय खोजा है अमनजी ने…’’ कह कर शिखा ने ऐसी विजयी मुसकान फेंकी मानो किला जीत लिया हो.

किंतु सुन कर सुधीर ने तो सिर थाम लिया अपना. उस ने ऐसी पत्नी की भी कल्पना नहीं की थी. वह तो आज भी यही चाहता है उस की शिखा परिवार के प्रति समर्पण भाव रखते हुए पासपड़ोसियों का भी खयाल रखे, उन के सुखदुख में शामिल हो. पर यह नामुमकिन था.  नामुमकिन शब्द सुधीर को हथौड़े सा लगा. ‘भरपूर प्रयास करने  पर तो हर समस्या का हल निकल आता है,’ सोच कर सुधीर को कुछ राहत मिली. उस ने घड़ी देखी. शो का वक्त हो चुका था, मगर आज शिखा के नाम से चिढ़ा था…  सुधीर घर न जा कर एक महंगे रेस्तरां में अकेला जा बैठा. रविवार होने की वजह से ज्यादातर लोग बीवीबच्चों के संग थे… उसे अपना अकेलापन कांटे सा चुभा… बैठे या निकल ले सोच ही रहा था कि नजरें कोने की टेबल पर पड़ते ही सकपका गया. उस के पड़ोसी दस्तूर अपनी पत्नी और बेटी के संग बैठे खानेपीने में मशगूल थे. सुधीर तृषित नजरों से क्षण भर उस परिवार को देखता रह गया.

सुधीर और दस्तूर एक ही संस्थान में तो हैं, साथ में पड़ोसी होने की वजह से बातचीत, आनाजाना भी है. मगर शिखा को दस्तूर परिवार फूटी आंख नहीं सुहाता है. दस्तूर की पत्नी अर्चना से तो ढेरों शिकायतें हैं उसे कि क्या पता दिन भर घर में घुसेघुसे क्या करती रहती है… औरतों से भी मिलेगी तब भी एकदम औपचारिक… मजाल उस के अंतरंग क्षणों का एक भी किस्सा कोई उगलवा सके… ऐसी बातों पर एकदम चुप.

इस के विपरीत सुधीर अर्चना का काफी सम्मान करता है. विवाह से पूर्व वे शिक्षिका थीं और आज एक सफल गृहिणी हैं. लेकिन शिखा ने उन्हें भी नहीं छोड़ा. शिखा के खाली और शैतानी दिमाग से सुधीर भीतर ही भीतर कुंठित हो चला था. इसीलिए दस्तूर दंपती से नजरें चुराता वह रेस्तरां से बाहर निकल आया. रात के 9 बज रहे थे पर उस का मन घर जाने को नहीं कर रहा था. करीब 11 बजे घर पहुंचा ही था कि घंटी बजाते ही शिखा ने द्वार खोल प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

सुधीर आज कुछ तय कर के ही लौटा था. अत: चुपचाप कपड़े बदलता रहा. शिखा परेशान सी उस के आगेपीछे घूम रही थी, ‘‘जब कोई और प्रोग्राम था तो मुझे क्यों बहलाया कि शाम को पिक्चर चलेंगे… किस के साथ थे पूरी शाम?’’

‘‘बस यों समझ लो कि अर्चनाजी के संग था पूरी शाम.’’

शिखा उसे अवाक देखती रह गई. सुधीर भी देख रहा था. वह अभी तक सजीसंवरी कीमती साड़ी में ही थी. सुधीर को अच्छा लगा उसे यों तैयार देख कर, पर स्वयं पर नियंत्रण रख वह सोफे पर बैठा रहा.

‘‘शिखा, तुम ने ही तो अर्चना के बारे में इतनी बातें बताईं कि उन्हें पास से देखने का… यानी तुम्हारे मुताबिक उन के लटकेझटके देखने का कई दिनों से बड़ा मन होने लगा था… आज मौका मिल गया तो क्यों छोड़ता. वे सब भी उसी रेस्तरां में थे… वाकई मैं तो उन की सुखी व शालीनता भरी आंखों में खो गया… इतनी देर मैं उन्हीं के सामने की मेज पर बैठा रहा, पर उन्हें अपने पति व बेटी से फुरसत ही नहीं मिली, अगलबगल ताकनेझांकने की… मुझे ही क्या उन्होंने तो किसी को भी नजर उठा कर नहीं देखा… अपने में ही मस्तव्यस्त… मुझे तो बड़ा अजीब लगा. अरे, कम से कम मुझे अकेला बैठा देख पूछतीं तो कि मैं अकेला क्यों? पर मेरी तरफ ध्यान ही नहीं… पर मैं ने खूब ध्यान से देखा उन्हें… अर्चना साड़ी बड़ी खूबसूरती से बांधती हैं… और साड़ी में लग भी बहुत अच्छी रही थीं.’’

सुधीर की बातें सुन शिखा का मन रोने को हो आया. वह दूसरे कमरे में जाने लगी तो सुधीर भी चल पड़ा, ‘‘अब एकाध दिन आशा… शैली… नेहा… इन सब को भी नजदीक से देखना है.’’ जब शिखा की बरदाश्त से बाहर हो गया तो उस ने रोना शुरू कर दिया. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि नितांत एकांत क्षणों में उस के साथ होने के बावजूद सुधीर पराई स्त्रियों के रूपशृंगार की बात कर सकता है. दूसरों के घरों की आहटें लेने में वह इतनी तल्लीन थी कि उसे खयाल ही नहीं रहा कि उस की इस हरकत पर कभी उस के ही घर में इतना बड़ा धमाका हो सकता है. आहटों से अनुमान लगाने में माहिर शिखा फूटफूट कर रो रही थी.

‘‘अब रोगा कर क्या पासपड़ोस को इकट्ठा करोगी… अर्चना से कुछ सबक लो…

उन्हें तो उस रात दस्तूर ने कई चांटे मारे थे फिर भी उफ न की थी उन्होंने,’’ सुधीर ने शिखा को मनाने के बजाय उसी का सुनाया किस्सा उसे याद दिला दिया.

उस रोज तो वह बिस्तर में ही था कि शिखा ने उसे यह खबर दी थी गुड मौर्निंग न्यूज की भांति. सुधीर जानता था कि आज भी दस्तूर को डीजल शेड नाइट इंसपैक्शन जाना है, मगर शिखा यों बता रही थी जैसे वही सब कुछ जानती हो, ‘‘तुम सोते रहो… पता भी है कल रात को क्या हुआ? दस्तूर साहब इंसपैक्शन कर के करीब 2 बजे रात को लौटे. मेरी नींद तो उन की गाड़ी रुकते ही खुल गई… बेचारे खूब हौर्न बजाते रहे… मगर घर में सन्नाटा. फिर देर तक घंटी बजाते रहे… मुझे तो लगता है मेरी क्या पूरे महल्ले की नींद खुल गई होगी, पर तुम्हारी अर्चना पता नहीं कितनी गहरी नींद में थी… क्या कर रही थी? बड़ी देर बाद दरवाजा खोला… मैं ने दरार में से झांक कर देखा था. दस्तूर साहब दरवाजे में ही खूब नाराज हो रहे थे. फिर जब कुछ देर बाद मैं ने अपने बैडरूम की खिड़की से उन के बैडरूम की आहट ली तो दस्तूर साहब के जोरजोर से बड़बड़ाने की आवाजें आ रही थीं और फिर चाटें मारने की आवाजें भी आईं…’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो सुबहसुबह…’’

सुधीर की बात काटते हुए शिखा और ढिठाई से बोली, ‘‘मैं ने खुद अपने कानों से चांटे की स्पष्ट आवाजें सुनी हैं… खुल गई न पोल तुम्हारी अर्चना की… बड़े फिदा हो न उस के सलीके, सुघड़ता और शालीनता पर…’’

सुधीर उस रोज वाकई स्तब्ध रह गया था. यों वह शिखा की बातें कभी गंभीरता से नहीं लेता था पर उस रोज मामला दस्तूर दंपती का था. दस्तूर दंपती जिन्हें वह काफी मानसम्मान देता है उन लोगों के बीच हाथापाई हो जाए चौंकाने वाली बात है. कोई भी सुसंस्कृत, सभ्य पुरुष अपनी पत्नी पर हाथ उठाए… ऐसा कभी हो सकता है और फिर दस्तूर साहब तो अपनी पत्नी व बेटी पर निछावर हैं. उस रोज इसी खलबली में औफिस पहुंचते ही मौका पा कर सुधीर दस्तूरजी के पास जा बैठा. चूंकि एकदम व्यक्तिगत प्रश्न तो किया नहीं जा सकता था, इसलिए औफिस… मौसम आदि की बातें करते हुए गरमी की परेशानी का जिक्र निकाल भेद लेने का पहला प्रयास किया, ‘‘एक बात है दस्तूर साहब… गरमी में नाइट ड्यूटी बढि़या रहती है… मस्त ठंडक… कूलकूल.’’

‘‘नाइट ड्यूटी… अरे नहीं भाई खुद की नींद खराब… फैमिली की नींद हराम… कल रात घर पहुंचा… परेशान हो गया.’’

दस्तूर की बात सुनते ही सुधीर उछल पड़ा, ‘‘क्यों क्या भाभीजी ने घर में नहीं घुसने दिया?’’

‘‘ऐसा होता तो मुझे मंजूर था पर वह भलीमानस एकडेढ़ बजे रात तक मेरा इंतजार करते पढ़ती रही. थक कर उस की झपकी लगी ही होगी कि मैं पहुंचा. दरवाजा देर से खुला तो घबरा ही गया था, क्योंकि बीपी की वजह से आजकल ज्यादा ही परेशान है. उसे सहीसलामत देख कर जान में जान आई.

‘‘खुशीखुशी बैडरूम में पहुंचा तो वहां का नजारा देख बहुत गुस्सा आया मांबेटी पर… बगैर मच्छरदानी लगाए दोनों सोतेजागते मेरी राह देख रही थीं. 10 मिनट तो कमरे में मच्छर मारने पड़े चटाचट… भई बीवीबच्चों को मच्छर काटें… ऐसी ठंडक में काम करने से तो गरमीउमस ही भली…’’

दस्तूर साहब की बातें सुन सुधीर पर घड़ों पानी पड़ गया. शिखा की सोच और अनुमान के आधार पर गढ़े किस्से पर उसे शर्मिंदगी महसूस होनी ही थी. शिखा से वह इतना विरक्त हो चला था कि औफिस से आ कर उस ने बताई तक नहीं यह बात… पर आज बताना ही पड़ा उस चटाचट का रहस्य.

सुन कर शिखा हतप्रभ सी सुधीर को देखती रह गई. वह क्या जवाब देती और किस मुंह से देती? सुधीर एक ही प्रश्न बारबार दोहराए जा रहा था, ‘‘अरे, जो आदमी अपनी पत्नी और बिटिया को मच्छर का काटना बरदाश्त नहीं कर सकता वह अपने हाथों से उन्हें चांटे मारेगा? बोलो शिखा मार सकता है?’’

शिखा अवाक थी. पूरे वातावरण में सन्नाटा पसर गया. दूरदूर तक उसे कोई  आहट सुनाई नहीं दे रही थी. उसे पति द्वारा दिखाए गए आईने में अपनी छवि देख वास्तव में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. उस ने मन ही मन ठान लिया कि अब वह पासपड़ोस की ताकझांक छोड़ कर अपने घर की साजसंभाल पर ही ध्यान देगी.  कुछ दिन तक तो शिखा अपने मन को मारने में कामयाब रही, पर फिर पुन: उसी राह पर चल पड़ी. ज्यों ही पति एवं बच्चे घर से निकलते, वह उन्हें गेट तक छोड़ने जाने के बहाने एक सरसरी निगाह कालोनी के छोर तक डाल ही लेती.

उस की ताकझांक की आदत को इस दीवाली पर एक और सुविधा भी मिल गई. दीवाली पर इस बार उन्हें दोगुना बोनस मिलने से खरीदारी का जोश भी ज्यादा था.  सुधीर और शिखा दोनों ने जम कर खरीदारी की. ड्राइंगरूम की सजावट पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया. सोफा कवर, कुशन, बैडशीट्स तो नए खरीदे ही, शिखा ने स्टोर पर जैसे ही नैट के परदे देखे वह लुभावने परदों पर मर मिटी और परदों का पूरा सैट ले आई. दीवाली पर जिस ने उस के घर की सजावट देखी, तारीफ की. शिखा तो तारीफ सुन कर 7वें आसमान पर थी. एक खासीयत यह थी कि अब शिखा को सड़क का नजारा या पड़ोसियों के गेट की आहट लेने के लिए दरवाजेखिड़की की आड़ में छिपछिप कर उचकउचक कर देखने की मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी, क्योंकि अब खिड़कीदरवाजों पर जालीदार परदे जो डले थे. इन परदों के पीछे खड़े हो कर वह आराम से बाहर देख सकती थी, किंतु बाहर के व्यक्ति को भनक भी नहीं मिल पाती कि परदे की आड़ में खड़ा कोई उन पर निगरानी कर रहा है.

हां, शिखा को इन परदों से रात को थोड़ी असुविधा होती थी, क्योंकि शाम को लाइट जलते ही बाहर से उस के घर के अंदर का दृश्य स्पष्ट हो जाता था. इसीलिए शाम होते ही वह लाइनिंग के परदे भी सरका लेती.  शाम को उसे ताकझांक की फुरसत कम ही मिल पाती. खाना पकाना, बच्चे और सुधीर उसे पूरी तरह व्यस्त कर देते. मगर सुबह होते ही वही दिनचर्या. घर के काम को ब्रेक दे कर कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, सारी जानकारी से अपडेट रहती.  कल ही शिखा मेथी साफ करने के बहाने खिड़की के सामने रखी कुरसी पर बैठी बाहर भी नजर डालती जा रही थी. तभी उस का ध्यान एक कर्कश से हौर्न से भंग हुआ. चौकन्नी तो वह तब हुई जब उसे अनंत साहब के घर का गेट खुलने की आवाज आई.

शिखा तुरंत खड़ी हो कर झांकने लगी कि इतनी दुपहरी में ऐसी खटारा मोटरसाइकिल से कौन आया है?  शिखा ने देखा 3 नवयुवक गेट खुला छोड़ कर बजाय कालबैल बजाने के अनंत साहब के कमरे की खुली खिड़की की तरफ आए और देखते ही देखते खिड़की पर चढ़े और अंदर कमरे में कूद गए.  दृश्य देख कर शिखा के हाथपैर फूल गए. पल भर में अखबार, टीवी में पढ़ीदेखी लूट की सैकड़ों वारदातें उस के दिमाग में घूम गईं.  शिखा अच्छी तरह जानती थी कि इस वक्त रुचि घर में बिलकुल अकेली होती है. अनंत साहब तो बैंक से प्राय: लेट आते हैं. दोनों बेटे होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. ये सब सोचने में शिखा को क्षण भर लगा.  अगले ही पल अगलबगल 2-4 घरों में मोबाइल पर जानकारी देते हुए दरवाजे पर ताला मार वह अनंत साहब के घर की ओर दौड़ी.

शिखा का अनुमान सच निकला. रुचि के चीखने की आवाजें बाहर तक आ रही थीं. शिखा ने उन के द्वार पर लगी कालबैल लगातार बजानी शुरू कर दी. तब तक पासपड़ोस के काफी लोग जमा हो चुके थे.  किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी थी. मगर पुलिस के आने से पूर्व ही लोगों ने खिड़की फांद कर भागते चोरों को धर दबोचा. भीड़ ने उन की मोटरसाइकिल भी गिरा दी और उस पर कब्जा कर लिया.   रुचि ने दरवाजा खोला. तीनों लड़के उन से चाबियां  मांगते हुए जान से मारने की धमकी दे रहे थे. तीनों के पास चाकू थे और उन्हें घर के बारे में पूरी जानकारी थी.

‘‘शिखा, आज तुम ने मेरा घर लुटने से बचा लिया. ये लुटेरे तो मुझे मार ही डालते,’’ कहते हुए रुचि फूटफूट कर रोने लगी.

पूरी कालोनी के लोग शिखा की प्रशंसा कर रहे थे. आहट से अनुमान लगाने की जिस आदत पर वह कई बार सुधीर से डांट खा कर अपमानित हो चुकी थी, आज उस की इसी आदत ने अनंत साहब का परिवार बचा लिया था.  महिला इंस्पैक्टर ने भी शिखा को शाबाशी देते हुए सभी महिलाओं से अपील की, ‘‘यह बहुत अच्छी बात है कि महिलाएं जागरूक रह कर न सिर्फ अपने घर का, बल्कि अपने पासपड़ोस का भी खयाल रखें और जब भी किसी संदिग्ध व्यक्ति को देखें, उस पर कड़ी नजर रख कर उचित कदम उठाने से न घबराएं. एकदूसरे को जानकारी जरूर दें.’’  शाम को घर आने से पूर्व ही सुधीर को बाहर ही शिखा की बहादुरी एवं समझबूझ का किस्सा सुनने को मिल गया.

सुधीर मुसकराते हुए घर में आया और आते ही शिखा को गले से गा लिया, ‘‘शिखा, आहटों से अनुमान लगाने की तुम्हारी इस विशेषता का तो आज मैं भी कायल हो गया.’’

सुन कर शिखा छिटक गई. रोंआसी हो कर बोली, ‘‘आज भी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं न?’’

‘‘नहीं, आज मुझे वाकई तुम्हारी इस आदत से खुशी मिली. लेकिन भविष्य की सोच कर चिंतित हूं कि अब तो तुम रोज ही नया किस्सा सुनाओगी तो भी मैं उफ नहीं कर सकूंगा. अब तुम्हारी विशेषता की धाक जो जम गई है,’’ कहते हुए सुधीर ने शिखा को फिर से गले लगा लिया.

शिखा के होंठों पर भी मुसकान खिल उठी.

Hindi Fiction Stories : पीला गुलाब

Hindi Fiction Stories :  ‘यार, हौट लड़कियां देखते ही मुझे कुछ होने लगता है.’

मेरे पतिदेव थे. फोन पर शायद अपने किसी दोस्त से बातें कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने फोन रखा, मैं ने अपनी नाराजगी जताई, ‘‘अब आप शादीशुदा हैं. कुछ तो शर्म कीजए.’’

‘‘यार, यह तो मर्द के ‘जिंस’ में होता है. तुम इस को कैसे बदल दोगी? फिर मैं तो केवल खूबसूरती की तारीफ ही करता हूं. पर डार्लिंग, प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं,’’ यह कहते हुए उन्होंने मुझे चूम लिया और मैं कमजोर पड़ गई.

एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी, लेकिन लड़कियों के मामले में इन की ऐसी बातें मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं. पर ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते. हर खूबसूरत लड़की के प्रति ये खिंच जाते हैं. इन की आंखों में जैसे वासना की भूख जाग जाती है.

यहां तक कि हर रोज सुबह के अखबार में छपी हीरोइनों की रंगीन, अधनंगी तसवीरों पर ये अपनी भूखी निगाहें टिका लेते और शुरू हो जाते, ‘क्या ‘हौट फिगर’ है?’, ‘क्या ‘ऐसैट्स’ हैं?’ यार, आजकल लड़कियां ऐसे बदनउघाड़ू कपड़े पहनती हैं, इतना ज्यादा ऐक्सपोज करती हैं कि आदमी बेकाबू हो जाए.’

कभी ये कहते, ‘मुझे तो हरी मिर्च जैसी लड़कियां पसंद हैं. काटो तो मुंह ‘सीसी’ करने लगे.’ कभीकभी ये बोलते, ‘जिस लड़की में सैक्स अपील नहीं, वह ‘बहनजी’ टाइप है. मुझे तो नमकीन लड़कियां पसंद हैं…’

राह चलती लड़कियां देख कर ये कहते, ‘क्या मस्त चीज है.’

कभी किसी लड़की को ‘पटाखा’ कहते, तो कभी किसी को फुलझड़ी. आंखों ही आंखों में लड़कियों को नापतेतोलते रहते. इन की इन्हीं हरकतों की वजह से मैं कई बार गुस्से से भर कर इन्हें झिड़क देती.

मैं यहां तक कह देती, ‘सुधर जाओ, नहीं तो तलाक दे दूंगी.’

इस पर इन का एक ही जवाब होता, ‘डार्लिंग, मैं तो मजाक कर रहा था. तुम भी कितना शक करती हो. थोड़ी तो मुझे खुली हवा में सांस लेने दो, नहीं तो दम घुट जाएगा मेरा.’

एक बार हम कार से डिफैंस कौलोनी के फ्लाईओवर के पास से गुजर रहे थे. वहां एक खूबसूरत लड़की को देख पतिदेव शुरू हो गए, ‘‘दिल्ली की सड़कों पर, जगहजगह मेरे मजार हैं. क्योंकि मैं जहां खूबसूरत लड़कियां देखता हूं, वहीं मर जाता हूं.’’

मेरी तनी भौंहें देखे बिना ही इन्होंने आगे कहा, ‘‘कई साल पहले भी मैं जब यहां से गुजर रहा था, तो एक कमाल की लड़की देखी थी. यह जगह इसीलिए आज तक याद है.’’

मैं ने नाराजगी जताई, तो ये कार का गियर बदल कर मुझ से प्यारमुहब्बत का इजहार करने लगे और मेरा गुस्सा एक बार फिर कमजोर पड़ गया.

लेकिन, हर लड़की पर फिदा हो जाने की इन की आदत से मुझे कोफ्त होने लगी थी. पर हद तो तब पार होने लगी, जब एक बार मैं ने इन्हें हमारी जवान पड़ोसन से फ्लर्ट करते देख लिया. जब मैं ने इन्हें डांटा, तो इन्होंने फिर वही मानमनौव्वल और प्यारमुहब्बत का इजहार कर के मुझे मनाना चाहा, पर मेरा मन इन के प्रति रोजाना खट्टा होता जा रहा था.

धीरेधीरे हालात मेरे लिए सहन नहीं हो रहे थे. हालांकि हमारी शादी को अभी डेढ़दो महीने ही हुए थे, लेकिन पिछले 10-15 दिनों से इन्होंने मेरी देह को छुआ भी नहीं था. पर मेरी शादीशुदा सहेलियां बतातीं कि शादी के शुरू के महीने तक तो मियांबीवी तकरीबन हर रोज ही… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या थी. इन की अनदेखी मेरा दिल तोड़ रही थी. मैं तिलमिलाती रहती थी.

एक बार आधी रात में मेरी नींद टूट गई, तो इन्हें देख कर मुझे धक्का लगा. ये आईपैड पर पौर्न साइट्स खोल कर बैठे थे और…

‘‘जब मैं यहां मौजूद हूं, तो तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या मुझ में कोई कमी है? क्या मैं ने तुम्हें कभी ‘न’ कहा है?’’ मैं ने दुखी हो कर पूछा.

‘‘सौरी डार्लिंग, ऐसी बात नहीं है. क्या है कि मैं तुम्हें नींद में डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था. एक टैलीविजन प्रोग्राम देख कर बेकाबू हो गया, तो भीतर से इच्छा होने लगी.’’

‘‘अगर मैं भी तुम्हारी तरह इंटरनैट पर पौर्न साइट्स देख कर यह सब करूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?’’

‘‘अरे यार, तुम तो छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही हो,’’ ये बोले.

‘‘लेकिन, क्या यह बात इतनी छोटी सी थी?’’

कभीकभी मैं आईने के सामने खड़ी हो कर अपनी देह को हर कोण से देखती. आखिर क्या कमी थी मुझ में कि ये इधरउधर मुंह मारते फिरते थे?

क्या मैं खूबसूरत नहीं थी? मैं अपने सोने से बदन को देखती. अपने हर कटाव और उभार को निहारती. ये तीखे नैननक्श. यह छरहरी काया. ये उठे हुए उभार. केले के नए पत्ते सी यह चिकनी पीठ. डांसरों जैसी यह पतली काया. भंवर जैसी नाभि. इन सब के बावजूद मेरी यह जिंदगी किसी सूखे फव्वारे सी क्यों होती जा रही थी. एक रविवार को मैं घर का सामान खरीदने बाजार गई. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए मैं जरा जल्दी घर लौट आई. घर का बाहरी दरवाजा खुला हुआ था. ड्राइंगरूम में घुसी तो सन्न रह गई. इन्होंने मेरी एक सहेली को अपनी गोद में बैठाया हुआ था.

मुझे देखते ही ये घबरा कर ‘सौरीसौरी’ करने लगे. मेरी आंखें गुस्से और बेइज्जती के आंसुओं से जलने लगीं. मैं चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी. पति नाम के इस प्राणी का मुंह नोच लेना चाहती थी. इसे थप्पड़ मारना चाहती थी. मैं कड़कती बिजली बन कर इस पर गिर जाना चाहती थी. मैं गहराता समुद्र बन कर इसे डुबो देना चाहती थी. मैं धधकती आग बन कर इसे जला देना चाहती थी. मैं हिचकियां लेले कर रोना चाहती थी. मैं पति नाम के इस जीव से बदला लेना चाहती थी. मुझे याद आया, अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके बिल क्लिंटन भी अपनी पत्नी हिलेरी क्लिंटन को धोखा दे कर मोनिका लेविंस्की के साथ मौजमस्ती करते रहे थे, गुलछर्रे उड़ाते रहे थे. क्या सभी मर्द एकजैसे बेवफा होते हैं? क्या पत्नियां छले जाने के लिए ही बनी हैं. मैं सोचती.

रील से निकल आया उलझा धागा बन गई थी मेरी जिंदगी. पति की ओछी हरकतों ने मेरे मन को छलनी कर दिया था. हालांकि इन्होंने इस घटना के लिए माफी भी मांगी थी, फिर मेरे भीतर सब्र का बांध टूट चुका था. मैं इन से बदला लेना चाहती थी और ऐसे समय में राज मेरी जिंदगी में आया. राज पड़ोस में किराएदार था. 6 फुट का गोराचिट्टा नौजवान. जब वह अपनी बांहें मोड़ता था, तो उस के बाजू में मछलियां बनती थीं. नहा कर जब मैं छत पर बाल सुखाने जाती, तो वह मुझे ऐसी निगाहों से ताकता कि मेरे भीतर गुदगुदी होने लगती. धीरेधीरे हमारी बातचीत होने लगी. बातों ही बातों में पता चला कि राज प्रोफैशनल फोटोग्राफर था.

‘‘आप का चेहरा बड़ा फोटोजैनिक है. मौडलिंग क्यों नहीं करती हैं आप?’’ राज मुझे देख कर मुसकराता हुआ कहता.

शुरूशुरू में तो मुझे यह सब अटपटा लगता था, लेकिन देखते ही देखते मैं ने खुद को इस नदी की धारा में बह जाने दिया. पति जब दफ्तर चले जाते, तो मैं राज के साथ उस के स्टूडियो चली जाती. वहां राज ने मेरा पोर्टफोलियो भी बनाया. उस ने बताया कि अच्छी मौडलिंग असाइनमैंट्स लेने के लिए अच्छा पोर्टफोलियो जरूरी था. लेकिन मेरी दिलचस्पी शायद कहीं और ही थी.

‘‘बहुत अच्छे आते हैं आप के फोटोग्राफ्स,’’ उस ने कहा था और मेरे कानों में यह प्यारा सा फिल्मी गीत बजने लगा था :

‘अभी मुझ में कहीं, बाकी थोड़ी सी है जिंदगी…’

मैं कब राज को चाहने लगी, मुझे पता ही नहीं चला. मुझ में उस की बांहों में सो जाने की इच्छा जाग गई. जब मैं उस के करीब होती, तो उस की देहगंध मुझे मदहोश करने लगती. मेरा मन बेकाबू होने लगता. मेरे भीतर हसरतें मचलने लगी थीं. ऐसी हालत में जब उस ने मुझे न्यूड मौडलिंग का औफर दिया, तो मैं ने बिना झिझके हां कह दिया. उस दिन मैं नहाधो कर तैयार हुई. मैं ने खुशबूदार इत्र लगाया. फेसियल, मैनिक्योर, पैडिक्योर, ब्लीचिंग वगैरह मैं एक दिन पहले ही एक अच्छे ब्यूटीपार्लर से करवा चुकी थी. मैं ने अपने सब से सुंदर पर्ल ईयररिंग्स और डायमंड नैकलैस पहना. कलाई में महंगी घड़ी पहनी और सजधज कर मैं राज के स्टूडियो पहुंच गई.

उस दिन राज बला का हैंडसम लग रहा था. गुलाबी कमीज और काली पैंट में वह मानो कहर ढा रहा था.

‘‘हे, यू आर लुकिंग गे्रट,’’ मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोला. यह सुन कर मेरे भीतर मानो सैकड़ों सूरजमुखी खिल उठे.

फोटो सैशन अच्छा रहा. राज के सामने टौपलेस होने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ. मेरी देह को वह एक कलाकार सा निहार रहा था. किंतु मुझे तो कुछ और की ही चाहत थी. फोटो सैशन खत्म होते ही मैं उस की ओर ऐसी खिंची चली गई, जैसे लोहा चुंबक से चिपकता है. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘नहीं नेहा, यह ठीक नहीं. मैं ने तुम्हें कभी उस निगाह से देखा ही नहीं. हमारा रिलेशन प्रोफैशनल है,’’ राज का एकएक शब्द मेरे तनमन पर चाबुक सा पड़ा.

‘…पर मुझे लगा, तुम भी मुझे चाहते हो…’ मैं बुदबुदाई.

‘‘नेहा, मुझे गलत मत समझो. तुम बहुत खूबसूरत हो. पर तुम्हारा मन भी उतना ही खूबसूरत है, लेकिन मेरे लिए तुम केवल एक खूबसूरत मौडल हो. मैं किसी और रिश्ते के लिए तैयार नहीं और फिर पहले से ही मेरी एक गर्लफ्रैंड है, जिस से मैं जल्दी ही शादी करने वाला हूं,’’ राज कह रहा था.

तो क्या वह सिर्फ एकतरफा खिंचाव था या पति से बदला लेने की इच्छा का नतीजा था?

कपड़े पहन कर मैं चलने लगी, तो राज ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया. उस ने स्टूडियो में रखे गुलदान में से एक पीला गुलाब निकाल लिया था. वह पीला गुलाब मेरे बालों में लगाते हुए बोला, ‘‘नेहा, पीला गुलाब दोस्ती का प्रतीक होता है. हम अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं.’’

राज की यह बात सुन कर मैं सिहर उठी थी. वह पीला गुलाब बालों में लगाए मैं वापस लौट आई अपनी पुरानी दुनिया में…

उस रात कई महीनों के बाद जब पतिदेव ने मुझे प्यार से चूमा और सुधरने का वादा किया, तो मैं पिघल कर उन के आगोश में समा गई. खिड़की के बाहर रात का आकाश न जाने कैसेकैसे रंग बदल रहा था. ठंडी हवा के झोंके खिड़की में से भीतर कमरे में आ रहे थे. मेरी पूरी देह एक मीठे जोश से भरने लगी. पतिदेव प्यार से मेरा अंगअंग चूम रहे थे. मैं जैसे बहती हुई पहाड़ी नदी बन गई थी. एक मीठी गुदगुदी मुझ में सुख भर रही थी. फिर… केवल खुमारी थी. और उन की छाती के बालों में उंगलियां फेरते हुए मैं कह रही थी, ‘‘मुझे कभी धोखा मत देना.’’ कमरे के कोने में एक मकड़ी अपना टूटा हुआ जाला फिर से बुन रही थी.

इस घटना को बीते कई साल हो गए हैं. इस घटना के कुछ महीने बाद राज भी पड़ोस के किराए का मकान छोड़ कर कहीं और चला गया. मैं राज से उस दिन के बाद फिर कभी नहीं मिली. लेकिन अब भी मैं जब कहीं पीला गुलाब देखती हूं, तो सिहर उठती हूं. एक बार हिम्मत कर के पीला गुलाब अपने जूड़े में लगाना चाहा था, तो मेरे हाथ बुरी तरह कांपने लगे थे.

लेखक- सुशांत सुप्रिय

Interesting Hindi Stories : ख्वाहिश – क्या हट पाया शोभा का ‘बांझ’ होने का ठप्पा

Interesting Hindi Stories :  ट्रिंग… ट्रिंग… फोन की घंटी बज रही थी. घड़ी में देखा, तो रात के साढ़े 12 बजे थे. इतनी रात में किस का फोन हो सकता है. किसी बुरी आशंका से मन कांप उठा. रिसीवर उठाया तो दूसरी ओर से अशोक की भर्राई हुई आवाज थी, “दीदी शोभा शांत हो गई. वह हम सब को छोड़ कर दिव्यलोक को चली गई.”

कुछ पल को मैं ठगी सी बैठी रही. फोन की आवाज से मेरे पति सुनील भी जाग गए थे. मैं ने उन्हें स्थिति से अवगत कराया. हम ने आपस में सलाह की और फिर मैं ने अशोक को फोन मिलाया, “अशोक, हम जल्दी ही सुबह जयपुर पहुंच जाएंगे, हमारा इंतजार करना.”

सुबह 5 बजे हम दोनों अपनी गाड़ी से जयपुर के लिए रवाना हो गए. दिल्ली से जयपुर पहुंचने में 5 घंटे लगते हैं. वैसे भी सुबहसुबह सड़कें खाली थीं. अत: 4 घंटे में ही पहुंच जाने की आशा थी. रास्तेभर शोभा का खयाल आता रहा.

अतीत की यादें चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूमने लगीं.

शोभा मेरे छोटे भाई अशोक की पत्नी थी. वह बहुत मृदुभाषी, कार्यकुशल और खुशमिजाज की थी. याद हो आया वह दिन, जब विवाह के बाद वरवधू का स्वागत करने के लिए मां ने पूजा का थाल मेरे हाथ में पकड़ा दिया. वैसे, बड़ी भाभी का हक बनता था वरवधू को गृहप्रवेश करवाने का. किंतु बड़ी भाभी की तबियत ठीक नहीं थी, वह पेट से थीं और डाक्टर ने उन्हें बेडरेस्ट के लिए कहा हुआ था. अत: आरती का थाल सजा कर मैं ने ही वरवधू को गृहप्रवेश कराया था. बनारसी साड़ी में लिपटी हुई सिमटी सी संकुचित सी खड़ी थी.

अशोक ने उसे मेरा परिचय देते हुए कहा, “ये मेरी बड़ी दीदी हैं, मुझ से 10 साल बड़ी हैं, मेरे लिए मां समान हैं.”

दोनों ने मेरे पैर छुए. मैं ने भी दोनों को प्यार से गले लगा लिया. विवाह के बाद की प्रथाएं संपन्न करवा कर मैं वापस दिल्ली लौट आई.
2 महीने बाद भाभी की जुड़वा बच्चियों हुईं, जिन का नाम सिया और जिया रखा गया.

प्रसव के बाद भाभी बहुत कमजोर हो गई थीं. अत: घर का सारा कार्यभार शोभा ने संभाल लिया. उसे बच्चों से बहुत प्यार था. वह बच्चों का खयाल बहुत उत्साहित हो कर रखती थी.

मां सारी रिपोर्ट विस्तार से मुझे फोन पर बतलाया करती थीं. बच्चों के प्रति शोभा का अपनत्व देख कर भाभी को बहुत अच्छा लगता था.

जब सिया और जिया का नर्सरी स्कूल में दाखिला हुआ तो शोभा उन्हें तैयार करने से ले कर उन के जूते पौलिश करती, उन्हें नाश्ता करवा के टिफिन पैक कर के उन के स्कूल बैग में रख देती और टिफिन पूरा खत्म करना है, यह भी हिदायत दे देती थी. कभीकभी उन को होमवर्क करने में भी वह मदद करती थी. घर में सब सुचारू रूप से चल रहा था.
शोभा के विवाह को 4 वर्ष हो गए थे. मां जब भी मुझे फोन करती थीं, उन की बातों में कुछ बेचैनी का आभास होता था. वे दिल की मरीज थीं. मैं ने जोर दे कर उन की बेचैनी का कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया, “अब अशोक की शादी को 4 साल हो गए हैं. अगर उस को एक बेटा हो जाता तो मैं पोते का मुंह देख कर दुनिया से जाती.

“न जाने कब मुझे बुला लें,” मैं उन्हें सांत्वना देती रहती थी कि धैर्य रखो. सब ठीक हो जाएगा.

मैं ने मां की इच्छा शोभा तक पहुंचा दी तो वह हंस कर बोली, “दीदी आजकल पोता और पोती में कोई फर्क नहीं होता. सिया और जिया भी तो अपनी हैं. वही मेरे बच्चे हैं,” बच्चों के प्रति उस की आत्मीयता मुझे बहुत अच्छी लगी.

जिस बात का डर था, वही हुआ. अचानक मां को दिल का दौरा पड़ा और पोते की चाहत लिए हुए वे इस दुनिया से चल बसीं.

शोभा के विवाह को 6 वर्ष हो चुके थे. मैं ने लक्ष्य किया कि अब उस के मन में संतान की चाह प्रबल हो रही थी. अशोक ने कई डाक्टरों से संपर्क किया. कुछ डाक्टरी जांच भी हुई, किंतु नतीजा संतोषप्रद नहीं था. मेरे आग्रह पर दोनों दिल्ली भी आए. मेरी जानकार डाक्टर ने रिपोर्ट देख कर यही निष्कर्ष निकाला कि शोभा मां नहीं बन सकती.

अशोक ने सब तरह के उपचार किए, चाहे आयुर्वेदिक हो या होमियोपैथी. यहां तक कि कुछ रिश्तेदारों के कहने पर झाड़फूंक का भी सहारा लिया, किंतु निराश ही होना पड़ा. इस का असर शोभा के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा.
शोभा प्राय: फोन कर के मुझे इधरउधर की बहुत सी खबरें देती रहती थी. उस ने एक घटना का जिक्र किया कि कुछ दिन पहले उस के किसी दूर के रिश्तेदार के यहां पुत्र जन्म का उत्सव था. वहां अशोक और शोभा के साथसाथ बड़े भैयाभाभी भी आमंत्रित थे. वहां पहुंच कर जब शोभा ने नवागत शिशु को पालने में झूलते देखा तो वह अपने को रोक ना पाई और आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में उठा लिया. तभी पीछे से बच्चे की दादी ने उस के हाथ से बच्चे को छीन लिया और अपनी बहू को डांटते हुए कहा, “तेरा ध्यान कहां है? देख नहीं रही बच्चे को बांझ ने उठा लिया है.”

शोभा ने बताया कि बड़ी भाभी भी वहीं खड़ी थीं. यह बात बतलाते समय शोभा की आवाज में पीड़ा झलक रही थी. मेरा मन संवेदना से भर उठा.

आशोभा ने बतलाया कि अब सिया और जिया उस के पास नहीं आती हैं. या यों कहिए कि भाभी उन बच्चों को शोभा के पास नहीं आने देतीं. इस का कारण भी वह समझ गई थी.

बांझपन का एहसास शोभा को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा था. मैं अपनी गृहस्थी में बहुत व्यस्त हो गई थी. मेरे दोनों बच्चे विवाह योग्य थे. अगले वर्ष मेरे पति रिटायर होने वाले थे. अतः हम भविष्य की योजनाओं में व्यस्त हो गए थे. कभीकभी मैं शोभा को फोन कर के उन की कुशलक्षेम जान लेती थी.
फिर एक दिन अशोक का फोन आया. बातचीत से लगा कि वह बहुत परेशान है. मैं ने 3-4 दिन के लिए जयपुर का प्रोग्राम बना लिया. फीकी मुसकराहट से शोभा ने स्वागत किया. वह बहुत कमजोर हो गई थी. अशोक उस की स्थिति से बहुत चिंतित हो गया था. मुझे लगा कि ‘बांझ’ शब्द ने उस को भीतर तक आहत कर दिया है. वह बोली, “अब तो सिया और जिया भी मेरे पास नहीं आती.”

मैं ने प्यार से शोभा को अपने पास बैठाया और कहा, “मेरी बात ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करो. मैं चाहती हूं कि तुम किसी नवजात शिशु को गोद ले लो या कुछ अच्छी संस्थाएं हैं, जहां से बच्चे को लिया जा सकता है. ऐसा करने से एक बच्चे का भला हो जाएगा. उसे एक प्यारी मां मिल जाएगी और तुम्हें एक प्यारा बच्चा मिल जाएगा. यह एक नेक कार्य होगा. एक बच्चे का जीवन अच्छा बन जाएगा. तुम चाहो तो इस में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं.”

लेकिन शोभा ने गंभीरता से उत्तर दिया, “दीदी, मैं अपनी तकदीर तो बदल नहीं सकती. यदि मेरी तकदीर में संतान का सुख लिखा ही नहीं है तो गोद ले कर भी मैं सुखी नहीं रह पाऊंगी,” कुछ रुक कर वह फिर बोली, “दीदी, मैं अपनी कोख से जन्मा बच्चा चाहती हूं, गोद लिया हुआ नहीं.”

वह अपने फैसले पर अडिग थी और मैं उस के फैसले के आगे निरुतर हो गई.

15 दिन बाद अशोक का फोन आया, वह आवाज से बहुत परेशान लग रहा था. उस ने बताया कि शोभा अब अकसर बीमार रहती है. उसे भूख नहीं लगती है और जबरदस्ती कुछ खाती है तो हजम नहीं होता उलटी हो जाती है. मैं ने सलाह दी कि तुरंत डाक्टरी जांच करवाओ. शोभा की तरफ से मुझे चिंता हो गई. अत: अशोक को सहारा देने के मकसद से मैं ने 3-4 दिन का जयपुर जाने का कार्यक्रम बना लिया.

अशोक ने शोभा के सारे टेस्ट करवा लिए थे. मेरे पहुंचने के अगले दिन वह अस्पताल से रिपोर्ट ले आया. वह बहुत उदास था. मेरे पूछने पर उस ने बताया कि शोभा की किडनी में कैंसर है, जो बहुत फैल गया है. अगर एक महीने पहले जांच करवा लेते तो शायद आपरेशन द्वारा किडनी निकाल देते, लेकिन अब तो कैंसर किडनी के बाहर तक फैल गया है. एक और विशेष बात जो डाक्टर ने बतलाई, वह यह कि शोभा प्रेग्नेंट भी है. प्रेगनेंसी की अभी शुरुआत ही है. एक हफ्ते बाद निश्चित तौर पर पता चल पाएगा. अचरज से मेरा मुंह खुला रह गया. समझ नहीं आया कि दुखी होऊं या खुशी मनाऊं.

शोभा ने मेरी और अशोक की बातें सुन ली थीं. वह मुसकराते हुए बोली, “दीदी, अशोक तो यों ही घबरा जाते हैं. मैं सहज में इन का पीछा छोड़ने वाली नहीं हूं और अब तो मुझे जीना ही है. उस की बातें आज भी मेरे कानों में गूंज रही हैं.
बाद में अशोक ने मुझे बतला दिया था कि डाक्टरों के अनुसार गर्भ को गिरा देने में ही बेहतरी है, क्योंकि कैंसर किडनी से बाहर निकल कर फैल रहा है, अगर तुरंत आपरेशन कर के किडनी निकाल भी दें, फिर भी शोभा का जीवन एक वर्ष से अधिक नहीं होगा और अगर गर्भपात नहीं करवाया तो कैंसर के आपरेशन के बाद की थेरेपी से बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है. या तो वह बचेगा ही नहीं और अगर बच भी जाए तो एब्नार्मल भी हो सकता है. अत: डाक्टर की राय में गर्भपात ही उचित होगा.

शोभा ने सबकुछ सुन लिया था. वह खुश नजर आ रही थी. वह बोली, ”दीदी, मुझे यही खुशी है कि अब मुझे कोई बांझ नहीं कहेगा. डाक्टरों का निर्णय ठीक ही है. मेरे जीवन का सूर्य अस्त हो रहा है. मैं बच्चे को देख पाऊंगी या नहीं, पता नहीं. अगर बच्चा बच भी गया और विकलांग हो गया तो और भी दुःख होगा. तसल्ली यही है कि अब मेरे ऊपर से ‘बांझ’ होने का लांछन हट गया. अब मैं शांतिपूर्वक मर सकूंगी.”

सहसा कार एक झटके के साथ रुक गई. सुनील ने ब्रेक मारा था, क्योंकि सामने एक बड़ा सा गड्ढा आ गया था. मेरी विचार श्रृंखला टूट गई. अब हम जयपुर की सीमा में पहुंच गए थे. बाजार के बीच से गुजरते हुए याद आया कि यहां कई बार शोभा के साथ चाट खाने आती थी, फिर खूब शौपिंग कर के हम दोनों शाम तक घर पहुंचते थे. अब तो केवल याद ही बाकी है.

ठीक साढ़े 9 बजे हम घर पहुंच गए. गाड़ी की आवाज सुन कर अशोक बाहर आ गया. सहारा दे कर उस ने गाड़ी से उतारा और मेरे गले से लग कर जोर से रो पड़ा. अंदर पहुंच कर देखा, शोभा का शव भूमि पर रखा था, बड़ी शांत मुख मुद्रा थी जैसे कुछ कहना चाहती हो. मैं अपने को ना रोक सकी और फफक कर रो पड़ी.
वह समाप्त हो गई. 2 दिन बाद बहुत बोझिल मन से हम दोनों वापस लौट आए. रास्तेभर सोचती रही कि समाज के उलाहनों ने शोभा को बहुत चोट पहुंचाई, लेकिन मरने से पहले उसे यह खुशी थी कि वह बांझ नहीं थी, पर बच्चे की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई.

लेखिका- पुष्पा गोयल

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