Brother-Sister Relation: शादी के बाद भाईबहनों में क्यों बढ़ जाती हैं दूरियां

Brother-Sister Relation: एक कड़वा सच है कि पैसा, प्रौपर्टी, द्वेष और जलन के चलते खून के रिश्ते में बंधे भाईबहन भी कई बार एकदूसरे के लिए मेहमान और अनजान से हो जाते हैं. बचपन में जो एक ही परिवार में पले, एकदूसरे का हाथ थामे बड़े हो जाते हैं, शादी के बाद अपने खुद के परिवार के चलते कब एकदूसरे के लिए मेहमान बन जाते हैं पता ही नहीं चलता.

बचपन में पूरे हक से अपने प्यारे भाई से रक्षाबंधन पर गिफ्ट लेने के लिए बहन जहां अपने भाई पर हक जताते हुए बिना किसी संकोच के राखी का नेग लेती है, वहीं बड़े होने के बाद अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त यही भाईबहन एकदूसरे के लिए इतने अजनबी हो जाते हैं कि आपस में बात करने से पहले 10 बार सोचते हैं कि कहीं मुंह से कोई गलत बात न निकल जाए और रिश्ते में दरार न पड़ जाए.

बचपन के साथी भाईबहन, जो एकदूसरे का हर राज सीक्रेट रखते थे और अपनी हर बात एकदूसरे से शेयर करते थे, बड़े होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि यही भाईबहन एकदूसरे के लिए अजनबी से बेमानी रिश्ते में बंध जाते हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

कड़वाहट की वजह

भाईबहनों के रिश्ते में कड़वाहट तभी कदम रखती है जब उन के बीच प्यार के बजाय स्वार्थ, द्वेष, अमीरीगरीबी का भेदभाव, बहन या भाई का महंगा शोऔफ वाला लाइफस्टाइल सच्चे दिल से जुड़े रिश्तों के आड़े आ जाता है. ऐसे में बहुत कम भाईबहन ही होते हैं जो इन सब नकली बातों को साइड में रख कर भाईबहन का रिश्ता प्यार से निभाते हैं.

ऐसे प्यार करने वाले भाई या बहन, जिन्हें पक्का यकीन होता है कि यह बंधन प्यार का बंधन है और कभी नहीं टूटेगा, वह किसी भी हाल में अपना रिश्ता निभाते हैं. लेकिन जो भाई या बहन स्वार्थ के चलते सिर्फ मतलब का रिश्ता निभाते हैं उन का रिश्ता कुछ समय के बाद खत्म हो जाता है.

कई बार इस में गलती भाई या बहन की ही नहीं होती बल्कि मांबाप की भी होती है. भाई और बहन से जुड़े अन्य रिश्ते जैसे भाई की पत्नी और बहन का पति की दखलंदाजी भी भाईबहन के रिश्ते को खराब करने में अहम भूमिका निभाती है.

भाईबहन के रिश्ते में दरार डालने वाले रिश्तेदार

भाईबहन का रिश्ता जिस में झगड़े होते हैं लेकिन निबट जाते हैं, नाराजगी होती है लेकिन मना लिए जाते हैं, उस वक्त बेगाने हो जाते हैं जब किसी तीसरे की ऐंट्री होती है.

यों शादी के बाद बहन उतनी पराई नहीं होती जितना कि भाई पराया हो जाता है. जो भाई शादी से पहले बहन को हर बात पर टोकने वाला, रोकटोक करने वाला या दूसरे शब्दों में कहें तो प्रोटैक्ट करने वाला, घर में सब से ज्यादा बहन से प्यार करने वाला होता है, अचानक ही वह उस वक्त पराया हो जाता है, जब उस की जिंदगी में उस की पत्नी की ऐंट्री हो जाती है. ऐसे में अगर उस भाई की पत्नी यानि भाभी ननद की इज्जत करती है, आवभगत करती है, तो भाई भी बहन के साथ अच्छे से पेश आता है. लेकिन अगर कहीं भाभी और ननद में नहीं बनती, तो भाभी को ननद फूटी आंख भी नहीं भाती और फिर भाई बहन से कन्नी काटने लगता है.

वहीं दूसरी तरफ अगर जीजा और साले में नहीं जमती तो इस का भी बुरा असर भाईबहन के रिश्ते पर पड़ता है क्योंकि इस के बाद बहन को ससुराल से मायके आने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

कड़वाहट की वजह

कई बार इस रिश्ते में कड़वाहट की वजह खुद उन के मांबाप भी बन जाते हैं जो कई बार अनजाने में भाईबहन में भेदभाव करते हैं. भाई को ज्यादा प्यार और सम्मान, प्रौपर्टी में पूरा हक दे कर और बहन को गरीबी में ही मरने के लिए छोड़ देने के चलते रिश्ते दरकने लगते हैं.

वहीं, बाहरी रिश्ते खून के रिश्ते को कमजोर कर देते हैं और समझदारी के बजाय घमंड और स्वार्थ के चलते भाईबहन का रिश्ता इतना कमजोर हो जाता है कि रक्षाबंधन पर भी राखी के लिए भाई बहन से मिलने नहीं आता.

समझदारी जरूरी

ऐसे में बहुत जरूरी है कि समझदारी दिखाते हुए कड़वाहट को भूल कर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और बिना किसी लालच के निभाएं और रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहार को हंसीखुशी मिल कर पूरे दिल से सैलिब्रेट करें क्योंकि पैसा, पावर अलग चीज है, लेकिन अच्छा रिश्ता हर समय आप की ताकत बन कर सामने रहेगा. इसलिए भाई और बहन एकदूसरे को अकेला न छोड़ें, बल्कि इस रिश्ते में मजबूती से रहें और किसी के कहने से रिश्ते को टूटने न दें, सिर्फ रक्षाबंधन पर ही नहीं हर समय प्यारभरा साथ रहे. Brother-Sister Relation

Relationship Advice: रिलेशनशिप में पासवर्ड शेयरिंग, रखें इन बातों का ध्यान

Relationship Advice: अलका और धीरेन 2 साल से एकदूसरे को जानते थे. साथ काम करते हुए दोनों में प्यार हो गया तो शादी करने का फैसला कर लिया. दोनों के परिवारों की मरजी से उन की सगाई हो गई और 2 महीने बाद शादी फिक्स हो गई. लेकिन अचानक एक दिन दोनों के रिश्ते में दरार आ गई.

बात दरअसल यह हुई कि धीरेन ने अलका का व्हाट्सऐप मैसेज पढ़ लिया जो उस ने अपने ऐक्स बौयफ्रैंड को भेजा था. बात कुछ खास नहीं लिखी थी. बस ऐसे ही हालचाल पूछा था. लेकिन धीरेन को लगा कि अभी भी दोनों टच में हैं. अलका ने बहुत समझाया कि ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा वह समझ रहा है. लेकिन धीरेन कहां कुछ सुनने वाला था. उसे तो यही लग रहा था कि अलका उस से झठ बोल रही है, धोखा दे रही है और ऐसी धोखेबाज लड़की से अब शादी नहीं करनी. इधर अलका को इस बात का पछतावा होने लगा कि उस ने धीरेन से अपना पासवर्ड शेयर ही क्यों किया? क्यों उस पर विश्वास किया जो उस ने कहा था कि अब हम दोनों एक होने जा रहे हैं तो उन के बीच कोई दुरावछिपाव जैसी बात नहीं रहनी चाहिए.

ऐसा ही एक और मामला जहां एक जरूरी काल के लिए पत्नी ने अपने पति से उस का फोन मांगा तो पति ने फोन अनलौक कर पत्नी को थमा दिया. पत्नी फोन पर बात कर ही रही थी कि उसी समय 2-3 मैसेज आ गए. उन मैसेज से साफ जाहिर था कि उस के पति का किसी दूसरी महिला से अफेयर चल रहा है और यही बात झगड़े की वजह बनी और बात तलाक तक पहुंच गई. कुछ समय पहले न्यूयौर्क टाइम्स में एक खबर छपी थी जिस में पति ने अपनी पत्नी का व्हाट्सऐप चैट पढ़ लिया.

चैट में पत्नी ने अपने दफ्तर के सहकर्मियों के बीच पति का मजाक बनाते हुए उस की कमियों को शेयर किया था. पति यह सब पढ़ कर दुखी तो हुआ ही, गुस्सा भी बहुत आया और फिर यह गुस्सा तलाक पर ही खत्म हुआ. 2016 में ‘कौफी विद करण’ के शो में रणवीर सिंह और रणबीर कपूर से एक सवाल पूछा गया कि क्या वे अपने पार्टनर का फोन चैक करते हैं? इस पर रणवीर सिंह ने कहा था हां जबकि रणबीर कपूर ने कहा था कि उन्हें ऐसा करना पसंद नहीं है. यह मोबाइल और प्राइवेसी के खिलाफ है.

कपल्स को एकदूसरे का फोन चैक करने की आदत होती है. वे अपने पार्टनर की काल रिकौर्ड या व्हाट्सऐप चैक करते हैं. लेकिन यह गुड मैनर्स नहीं है. अगर कपल चाहते हैं कि उन का रिश्ता मधुर बना रहे और उन के बीच मिठास बनी रहे तो एकदूसरे का फोन या ईमेल चैक नहीं करना चाहिए. अगर ऐसा करना ही है तो पहले अपने पार्टनर से पूछ लें. रिलेशनशिप कोच दामिनी ग्रोवर का कहना है कि जिन कपल्स में इनसिक्युरिटी होती है वहां वे एकदूसरे के फोन पर घात लगाए होते हैं. इनसिक्युरिटी रिश्ते में विश्वास की कमी बताती है और यही पासवर्ड की वजह बनती है.

पति की शिकायत

एक पति की शिकायत है कि उस की पत्नी अपने मोबाइल का पासवर्ड गुप्त रखती है और पत्नी का कहना है कि उस का पति उस पर शक करता है इसलिए वह अपना पासवर्ड उसे नहीं बताती. लेकिन पति का कहना है कि जब उस का मन साफ है तो पासवर्ड बताने में क्या हरज है? पतिपत्नी दोनों अपनीअपनी बात पर अडिग हैं. पति को शक है कि उस के बाहर जाते ही उस की पत्नी मोबाइल फोन पर किसी से चैट करती है और जब वह उस का फोन खोलने का प्रयास करता है तो पासवर्ड आड़े आ जाता है.

पति को अपनी पत्नी का पासवर्ड चाहिए ही और पत्नी है कि पासवर्ड देने को हरगिज तैयार नहीं है और इसी बात पर दोनों के बीच रोज झगड़ा होता है. जब पार्टनर पासवर्ड पूछता है और सामने से उसे मना कर दिया जाता है तो कई दिलचस्प रिएक्शन देखने को मिलते हैं. कई लोगों को पार्टनर की ‘न’ सुनने की आदत नहीं होती है और वे गुस्से से आगबबूला हो उठते हैं. वहीं कई लोग इस बात को ले कर इमोशनल अत्याचार शुरू कर देते हैं. कहा जाता है कि तुम्हें अपने प्यार पर भरोसा नहीं है और ऐसा क्या है जो हमारे बीच छिपा है? इस से मजबूर हो कर सामने वाला अपना पासवर्ड शेयर कर देता है जैसे अलका ने किया.

कई बार ऐसा होता है कि एकदूसरे का पासवर्ड जान लेने के बाद रोजाना अपने पार्टनर का मीडिया अकाउंट खंगाला जाने लगता है और यहीं से उन के रिश्ते में अविश्वास पैदा होने लगता है. प्यारभरे रिश्तों में दरारें आने लगती हैं और बात तलाक तक पहुंच जाती है.

पत्नी की शिकायत

एक पत्नी का कहना है कि उस का पासवर्ड उस के पति के पास है लेकिन पति का पासवर्ड उसे नहीं पता क्योंकि वे अपना पासवर्ड उसे नहीं देते हैं. पति का कहना है कि यह उस की निजी संपत्ति है और पत्नी के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे उसे पति से छिपाने की जरूरत पड़े.

यानी पति के कहने का मतलब है कि पत्नी अपना पासवर्ड शेयर कर सकती है, इस में कोई हरज नहीं है. लेकिन पति नहीं करेंगे क्योंकि उन की मरजी नहीं है. पत्नी का कहना है कि पति की बातों ने मुझे उन पर विश्वास न करने को मजबूर कर दिया है और मैं कभी भी खुद को भावनात्मक रूप से उन के करीब महसूस नहीं कर पाती. पतिपत्नी के झगड़े को ले कर कोर्ट में कई ऐसे मामले आए जहां वजह पासवर्ड भी था. वैसे कई कपल्स खर्चा बांटने के लिए पासवर्ड शेयर करते हैं.

ऐक्प्रैस वीपीएन नाम की कंपनी ने एक सर्वे किया. इस में कई कपल्स से पासवर्ड को ले कर उन की राय जानी गई. 44% कपल्स ने कहा कि वे अपने पार्टनर से ओटीटी सर्विस, फूड या ग्रोसरी सर्विस जैसे ऐप का पासवर्ड शेयर करते हैं ताकि दोनों के बीच खर्चा बंटे और पैसे बचें. रिश्ते में पारदर्शिता जरूरी सर्वे में कई कपल्स एकदूसरे के साथ सोशल मीडिया पर पासवर्ड शेयर करने में असहज दिखे. जो कपल पासवर्ड शेयर करने में सहज थे उन का मानना था कि रिश्ते में पारदर्शिता, भरोसा और वफादारी हमेशा बनी रही है. रिश्ते में पारदर्शिता बेहद जरूरी है. लेकिन इंसान की अपनी भी तो एक पर्सनल लाइफ होनी चाहिए.

अगर एक पार्टनर अपना पासवर्ड शेयर न करना चाहे तो उस पर दबाव नहीं बनाना चाहिए. याद रखें कुछ फैसले आप के जरूरी होने चाहिए. अपने पार्टनर को इतना भी हक देना ठीक नहीं है कि आप का हर फैसला वह लेने लगे. पासवर्ड शेयर करने से आप की पर्सनल स्पेस खत्म हो जाती है. बाद में आप महसूस करने लगेंगे कि आप की हर ऐक्टिविटी पर नजर रखी जा रही है. इस के अलावा ब्रेकअप होने जैसी स्थिति में आप के पासवर्ड का गलत इस्तेमाल भी हो सकता है.

पासवर्ड शेयर करना क्या है

आजकल की रिलेशनशिप केवल दिल से ही नहीं जुड़ी है बल्कि डिजिटल दुनिया से भी जुड़ी है. आज के युवा पार्टनर एकदूसरे के सोशल मीडिया अकाउंट्स के पासवर्ड शेयर को रिश्ते में ट्रस्ट और ट्रांसपेरैंसी मानते हैं. लेकिन यह तभी सही है जब दोनों लोगों की सहमति हो. कई पार्टनर शक और इनसिक्युरिटी की वजह से पासवर्ड जानना चाहते हैं. निगरानी रखना चाहते हैं. लेकिन यही निगरानी कभीकभी रिश्ते को खराब करने का काम करने लगती है.

इसलिए अगर आप सोशल मीडिया पासवर्ड शेयर करने की सोच रही हैं तो इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है:

जल्दीबाजी न करें

अगर आप एकदूसरे को सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करते हैं तो हो सकता है आप एकदूसरे के साथ पासवर्ड शेयर करने में जल्दी कर रहे हैं. शुरुआत में अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के पासवर्ड साझ करने के बजाय आप स्ट्रीमिंग साइट्स जैसे हौटस्टार, नैटफिलक्स, अमेजन या फिर एचबीओ के पासवर्ड शेयर कर सकते हैं.

समय के साथसाथ

अगर आप को सही लगे तो अपनी लोकेशन वगैरह एकदूसरे के साथ शेयर कर सकते हैं. लेकिन अपने बैंक अकाउंट का पासवर्ड या सोशल मीडिया प्रोफाइल का पासवर्ड किसी को तभी शेयर करें, जब आप को लगे कि आप का रिश्ता गहरा और गंभीर है और आप का पार्टनर आप को समझता है.

पार्टनर को परखें

आप का पार्टनर अपने खर्चे कैसे संभालता है, रिजैक्शन को कैसे हैंडल करता है और अगर रिलेशनशिप खत्म हो जाए तो उस का क्या रिएक्शन होगा, यह सब सोचनेसमझने के बाद ही अपना पासवर्ड शेयर करना चाहिए. अपना पासवर्ड तभी शेयर करें जब आप कंफर्टेबल हों, जोरजबरदस्ती या भावना में बह कर नहीं.

कदम बढ़ा कर पीछे खींचना मुश्किल

प्यार के रिश्ते जब बहुत गहरे हो जाते हैं तो एकदूसरे से पासवर्ड शेयर करने जैसी बातें बहुत छोटी लगती हैं कि अरे, पासवर्ड ही तो मांगा है. हरज ही क्या है देने में यह सोच कर हम पार्टनर को अपना पासवर्ड शेयर कर देते हैं. लेकिन जैसेजैसे रिलेशनशिप में समय आगे बढ़ता जाता है तो यह फैक्ट है कि आप का पार्टनर आप के हर मैसेज या सोशल मीडिया ऐक्टिविटी को देखने का इच्छुक हो उठता है और न चाहते हुए भी वह आप के सारे मैसेज देखता है. लेकिन जब आप ने अपना पासवर्ड शेयर कर ही दिया है तो फिर पीछे नहीं हट सकते हैं. इसलिए अपना पासवर्ड बहुत ही सोचसमझ कर शेयर करें.

आईडैंटिटी प्रोटैक्ट करना जरूरी

सोशल मीडिया से हट कर गूगल या आइक्लाउड के पासवर्ड पार्टनर से शेयर न करने में ही समझदारी है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये पासवर्ड आप के और कई अकाउंट्स के पासवर्ड लिए होते हैं और इन पासवर्ड को ऐक्सैस कर कोई आप के किसी भी अकाउंट को लौगइन कर सकता है. ऐसे में अपनी आईडैंटिटी को प्रोटैक्ट करना जरूरी है. वहीं अगर कभी रिश्ता खत्म होता है तो पासवर्ड बड़े रिस्क फैक्टर्स साबित हो सकते हैं.

सोचसमझ कर करें विश्वास

आजकल यूथ सोशल मीडिया पर ज्यादा ऐक्टिव रहते हैं. यहां वे नएनए दोस्त बनाते हैं. कुछ से इन की अच्छी बौडिंग हो जाती है. सोशल मीडिया के साथ ही जिंदगी में आजकल कई पासवर्ड हो गए हैं जैसे ईमेल, एटीएम, सिस्टम, लैपटौप, मोबाइल आदि. आप की मरजी के बिना कोई आप का डिवाइस यूज न कर सके, इस के लिए ही पासवर्ड सैट किया जाता है.  Relationship Advice

Plum Cake Recipe: बारिश के मौसम में बनाएं ये डेजर्ट, खुशी से नाचेंगे बच्चे

Plum Cake Recipe

सामग्री मैरिनेशन की

– 10 ग्राम ब्लैक करंट

– 10 ग्राम गोल्डन करंट

– 2 खजूर कटे

– थोड़े से काजू

– 15 ग्राम अखरोट कटे

– चुटकीभर लौंग का पाउडर

– 3 ग्राम अदरक पाउडर

– 3 ग्राम इलायची पाउडर

– चुटकीभर जायफल पाउडर

– चुटकीभर हरी इलायची पाउडर.

सामग्री केक बनाने की

– 150 ग्राम मैदा

– 100 ग्राम चीनी

– 70 ग्राम ब्राउन शुगर

– 150 ग्राम पिघला मक्खन

– 3 अंडे

– 100 ग्राम मैरिनेटेड नट्स

– 80 ग्राम केक फ्रूट

– 5 चैरीज कटी

– 1 बड़ा चम्मच मैदा

– चुटकीभर लैमन जेस्ट

– चुटकीभर औरेंज जेस्ट

– 3 ग्राम बेकिंग पाउडर

– चुटकीभर अदरक पाउडर

– चुटकीभर इलायची पाउडर

– चुटकीभर जायफल

– थोड़ा सा लौंग पाउडर

– 2-3 बूंदें वैनिला ऐसेंस

– 2-3 बूंदें औरेंज ऐसेंस

– 2-3 बूंदें लैमन ऐसेंस

– नमक स्वादानुसार.

विधि

ओवन को 1500 सैंटीग्रेड पर गरम करें. फिर मैरिनेटेड नट्स व केक फ्रूट्स को अच्छी तरह मिलाएं. इस में 1 बड़ा चम्मच मैदा डाल कर अच्छी तरह मिला कर एक तरफ रख दें. अब एक अन्य बाउल में मैदा छान कर उस में नमक और बेकिंग पाउडर डालें. फिर अदरक, इलायची, जायफल व लौंग पाउडर को मिला कर एक तरफ रख दें.

अब चीनी और मक्खन को मिला कर तब तक चलाती रहें जब तक क्रीमी टैक्स्चर न बन जाए. फिर इस में अंडा मिला कर फेंटें. इस में मैदा, लैमन व औरेंज जेस्ट मिला कर अच्छी तरह फेंटें. अब सारे ऐसेंस मिलाएं. फिर मैरिनेटेड नट्स के मिक्स्चर को मिला कर अच्छी तरह चलाएं. अब चिकनाई लगे मोल्ड में मिक्स्चर डालें. बेक करने से पहले मोल्ड को 5 मिनट के लिए एक तरफ रख दें. फिर 1500 सैंटीग्रेड पर 25-30 मिनट बेक कर सर्व करें. Plum Cake Recipe

जैनजी की पसंद बनती जा रही है Denim Saree, जानिए इस की कुछ खासियतें

Denim Saree: जींस और डैनिम दोनों को हमेशा से एकदूसरे का पर्याय माना जाता रहा है क्योंकि जींस को डैनिम फैब्रिक से ही बनाया जाता है. जींस के अलावा डैनिम स्कर्ट, शौर्ट्स और टौप भी फैशन जगत का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. बच्चे और बड़े सभी डैनिम फैब्रिक से बने आउटफिट से अपने लुक को फैशनेबल और स्टाइलिश बनाते हैं परंतु आजकल फैशन जगत में डैनिम साड़ी का जादू  युवतियों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. आजकल उन की पहली पसंद बन चुकी है डैनिम साड़ी. खासतौर पर जैन जी पारंपरिक साड़ी के अलावा इस मौडर्न लुक वाली डैनिम साड़ी को बहुत पसंद कर रही है.

आइए जानते हैं डैनिम साड़ी की कुछ खासीयतें जो इसे आम साड़ी की अपेक्षा खास बनातीं हैं:

रैडी टू वियर: साड़ी हर व्यक्तित्व को खास बना देती है. आजकल की जैन जी भी साड़ी पहनने का शौक रखती है परंतु चूंकि नौर्मल साड़ी को पहनना काफी मुश्किल और टाइम टेकिंग होता है इसलिए वह इसे पहनने से कतराती है. डैनिम साड़ी मूलतया रैडी टू वियर होती है जिसे पहनना काफी आसान तो होता ही, साथ ही टाइम टेकिंग भी नहीं होता.

परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण: डैनिम जैसे आधुनिक फैब्रिक पर पारंपरिक कढ़ाई, ब्लौक प्रिंट, कलमकारी, बांधनी जैसे पारंपरिक प्रिंट से पैच वर्क से डैकोरेट किए जाने के कारण ये साडि़यां पारंपरिक और आधुनिकता का परफैक्ट मिश्रण होती हैं और इन का यही सम्मिश्रण नई पीढ़ी को लुभाता है क्योंकि इस से वह खुद को मौडर्न और ट्रैडिशनल दोनों लुक दे पाती है.

फैब्रिक की खासीयत: पारंपरिक साडि़यां बहुत नाजुक होती हैं जिस से उन्हें अतिरिक्त केयर की जरूरत होती है. कई बार तो शिफौन, बनारसी जैसे फैब्रिक की साडि़यां जरा सी लापरवाही से खराब हो जाती हैं. वहीं डैनिम साडि़यां रफटफ फैब्रिक की होती हैं और इन्हें विशेष देखभाल की भी जरूरत नहीं होती है. डैनिम एक सस्टेनेबल, लौंग लास्टिंग, रिसाइकल होने वाला और आधुनिकता का प्रतिनिधित्व करने वाला फैब्रिक जिस से यह नई पीढ़ी को आकर्षित करता है.

पर्सनैलिटी को दें नया लुक: ये साडि़यां रफटफ फैब्रिक से बनी होती हैं. इस से इन्हें पहनने वालों को स्ट्रीट फ्रैंडली, स्टाइलिश और यूनीक लुक मिलता है जिस से भीड़ में भी वे अपनी अलग पहचान बना पाते हैं.

पेयरिंग है आसान: डैनिम साडि़यों को स्नीकर्स, शूज, बूट्स जैसे फुटवियर और क्रौप टौप, ब्लाउज और जैकेट्स के साथ बड़े आराम से पेयर किया जा सकता है. पारंपरिक सोने की ज्वैलरी की जगह जैन जी डायमंड और औक्सीडाइज्ड जैसी हलकीफुलकी ज्वैलरी पसंद करती है जिसे डैनिम साड़ी पर आराम से पहना जा सकता है.

रखें इन बातों का भी ध्यान

– मोटी बुनाई वाले फैब्रिक की अपेक्षा

पतली बुनाई वाले फैब्रिक की साड़ी खरीदें क्योंकि मोटी बुनाई वाला डैनिम वजन में

भारी और पतली बुनाई वाला डैनिम वजन में हलका होता है जिस से इसे केरी करना आसान होता है.

– यदि आप रैडी टू वियर साड़ी खरीद रही हैं तो ब्लाउज की फिटिंग का विशेष ध्यान रखें क्योंकि पर्सनैलिटी के आकर्षक लुक के लिए साड़ी जितनी ही ब्लाउज की फिटिंग भी महत्त्वपूर्ण होती है.

– गहरे रंग में आप पतली और हलके रंग में आप मोटी दिखेंगी इसलिए साड़ी खरीदते समय अपने व्यक्तित्व का ध्यान अवश्य रखें.

– आजकल बाजार में पारंपरिक कढ़ाई या पैच वर्क वाली, क्लासिक, बांबर और वैस्टर्न साडि़यां उपलब्ध हैं. आप अपनी पसंद के अनुसार कोई भी साड़ी खरीद सकती हैं.

– चूंकि इन साडि़यों का फैब्रिक मोटा होता है जो आप को एक हैवी लुक देता है इसलिए इस पर कोई भी हैवी ऐक्सैसरीज पहनने से बचें.

– हाई हील, बूट्स और पैंसिल हील वाला फुटवियर आप को डैनिम साड़ी के साथ बहुत स्टाइलिश लुक दे सकता है.

– इन्हें एक बार पहनने के बाद साफ सूती कपड़े से पोंछ कर हैंगर पर टांग कर रखें और यदि अधिक गंदी हो गई है तो ड्राईक्लीन कराएं. चूंकि यह रफटफ फैब्रिक वाली होती है इसलिए हर प्रयोग के बाद ड्राईक्लीन कराने की जरूरत नहीं रहती. Denim Saree

Fire Safety: फैस्टिवल में बढ़ते हैं आग लगने के मामले, जानिए बचाव के उपाय

Fire Safety: त्योहारों का मौसम आते ही हर घर में खुशियों की लहर दौड़ जाती है. रोशनी, सजावट, स्वादिष्ठ पकवान और पटाखों के साथ जश्न का माहौल बनता है. लेकिन इन खुशी के पलों में छोटी सी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है. हर साल दीवाली, क्रिसमस, नववर्ष और अन्य त्योहारों के दौरान देशभर में आग लगने की अनेक घटनाएं सामने आती हैं, जिन का सब से बड़ा कारण जागरूकता की कमी होती है.

इसलिए यह अब बेसिक नीड हो गई है कि हर घर, हर सोसायटी और हर व्यक्ति को फायर सैफ्टी की जानकारी हो. बेसिक नौलेज से  मतलब फायर ऐक्सटिंग्विशर का बस नाम ही न पता हो बल्कि उस का इस्तेमाल करना भी आना चाहिए. अगर आग काबू से बाहर चली जाए तो इवैक्यूएशन के नियम सब को पता हों.

हर उम्र के लिए जरूरी है फायर सैफ्टी की ट्रैनिंग

फायर सैफ्टी सिर्फ औफिस या फैक्टरी की बात नहीं है. अगर घर में 6 साल का बच्चा है या 80 साल के बुजुर्ग, हर किसी को फायर से जुड़ी बेसिक बातें पता होनी चाहिए. जैसे कि बच्चों को सिखाएं कि दीए या मोमबत्तियों से दूर रहें और पटाखे केवल बड़ों की निगरानी में जलाएं.

बुजुर्गों को बताएं कि अगर घर में आग लगे तो क्या करें, किस तरह जल्दी बाहर निकलें और क्या साथ ले कर जाएं. टीनऐजर्स व युवाओं को फायर ऐक्सटिंग्विशर का उपयोग करना सिखाएं.

फैस्टिव सीजन में बढ़ते हैं आग लगने के मामले

दीयों और मोमबत्तियों की अधिकता :  कागज, परदों और प्लास्टिक की सजावट के पास रखे दीए हादसे की वजह बन सकते हैं. इसलिए सजावट के वक्त यह खास ध्यान रखें कि जो वस्तु जल्दी आग पकड़ सकती है उस के पास इलैक्ट्रिक दीए लगाएं या मार्केट में उपलब्ध पानी वाले दीए लगाएं. आप चाहें तो फेयरी लाइट से भी डैकोर कर सकते हैं.

पटाखों की लापरवाही : बिना सैफ्टी पटाखे जलाना, सूखे पत्तों या कपड़ों के पास पटाखे चलाना आग लगने की बड़ी वजह बनता है. पटाखे एक निश्चित जगह पर ही जलाएं और ध्यान रखें कि पटाखे जलाते समय आप ने ज्यादा ज्वलनशील कपड़े जैसे सिल्क न पहना हो. ज्यादा लूज कपड़े जैसे साड़ी या दुप्पटा पहन कर भी आप पटाखों के संपर्क में न आएं. कौटन पहनें और सैफ्टी का ध्यान रखें.

ओवरलोडेड इलैक्ट्रिक डैकोरेशन : एक ही सौकेट में कई लाइट्स लगाना शौर्ट सर्किट का कारण बनता है.

किचन की लापरवाही :  पकवान बनाते समय तेल का अधिक गरम होना और असावधानी से आग पकड़ लेना, यह अकसर घरों में देखा जाता है. कई बार तेल बच्चों और बड़ों पर गिर भी जाता है. ऐसे में कोशिश करें कि किचन का काम ध्यान से करें और गरम तेल के काम के वक्त बच्चों को भी निगरानी में रखें.

हर घर में जरूर होने चाहिए ये फायर सैफ्टी इक्विपमैंट्स

लोग फैस्टिव सीजन में कपड़ों, मिठाइयां, डैकोर और पटाखों की शौपिंग लिस्ट में कोई कटौती नहीं करते. इस लिस्ट में फायर सैफ्टी से जुड़े कुछ उपकरण जरूर होने चाहिए, बल्कि फैस्टिवल शौपिंग से पहले इन्हें खरीदें, भले ही आप को डैकोर, पटाखों या कपड़ों में कुछ कमी क्यों न करनी पड़ जाए.

  • फायर ऐक्सटिंग्विशर (Fire Extinguisher) : आग पर शुरुआती चरण में ही काबू पाने के लिए यह जरूरी है. हालांकि यह भी कई तरह के होते हैं :
  • ड्राई पाउडर (ABC टाइप) : फायर ऐक्सटिंग्विशर, जो घरों और औफिसों के लिए सब से बेहतर माने जाते हैं, लकड़ी, कागज, कपड़ा, गैस और इलैक्ट्रिक उपकरणों से लगी आग के लिए असरदार होते हैं.
  • CO₂ (कार्बन डाइऔक्साइड) फायर ऐक्सटिंग्विशर : खासतौर पर इलैक्ट्रिक आग के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह बिना कोई अवशेष छोड़े आग को बुझा देता है और इलेक्ट्रौनिक उपकरणों को नुकसान नहीं पहुंचाता.
  • फायर ब्लैंकेट : किचन या व्यक्ति के कपड़ों में आग लगने पर तुरंत उसे कवर करने के लिए. इस से कपड़ों पर लगी आग जल्दी बुझ जाती है.
  • हैंड ग्लव्स और मास्क : काबू से बाहर अगर आग निकल जाए तो उस स्थिति में सुरक्षित बाहर निकलने के लिए यह जरूरी है. यह आग के दौरान धुएं और जहरीली गैसों से बचने और सुरक्षित बाहर निकलने में काम आता है.
  • टौर्च और इमरजैंसी लाइट : बिजली बंद हो जाने की स्थिति में बाहर निकलने के लिए के लिए जरूरी है.

हर घर में कम से कम एक फायर ऐक्सटिंग्विशर जरूर होना चाहिए, खासकर रसोई, इलैक्ट्रिक मीटर के पास. साथ ही, परिवार के सभी सदस्यों को इस का उपयोग करना भी आना चाहिए. इस का वजन अधिक नहीं होता और इसे आसानी से दीवार पर लगाया जा सकता है. साल में 1 बार इस की सर्विसिंग कराना न भूलें ताकि इमरजैंसी के वक्त यह पूरी तरह काम करे.

जरूरी है प्री फैस्टिवल फायर सैफ्टी ड्रिल

फैस्टिवल शुरू होने से पहले परिवार या सोसायटी में कम से कम एक बार फायर सैफ्टी सेशन जरूर करें. इस में सिखाएं :

  • फायर अलार्म कैसे बजाएं?
  • आग लगने पर सब से पहले क्या करें?
  • बच्चों और बुजुर्गों को कैसे सुरक्षित निकालें?
  • कौन किस दिशा से बाहर निकलना है? यदि आप की सोसायटी यह सेशन आयोजित नहीं करती, तो खुद परिवार के स्तर पर यह पहल करें.

पानी की बाल्टी नहीं है आग का इलाज

आग लगने पर सब के दिमाग में सब से पहले आता है कि पानी की बाल्टी लो आग पर उड़ेल दो. लेकिन यह तरीका बिलकुल ठीक नहीं है. जानकारी के अभाव में लोग शौर्ट सर्किट से लगी आग पर घबराहट में पानी डाल देते हैं लेकिन यह खतरनाक हो सकता है. इलैक्ट्रिक आग पर पानी डालने से करंट लगने का खतरा होता है और आग और ज्यादा फैल सकती है. ऐसे मामलों में सब से पहले बिजली का मेन स्विच बंद करें और CO₂ आधारित फायर ऐक्सटिंग्विशर का इस्तेमाल करें.

इसी तरह, किचन में जब तेल अत्यधिक गरम हो कर आग पकड़ लेता है, तो कई बार हम घबरा कर उस में पानी डाल देते हैं. यह सब से बड़ी गलती होती है, क्योंकि पानी से तेल की आग और ज्यादा भड़क जाती है और छींटों से जलने का खतरा होता है. ऐसी स्थिति में गैस बंद करें और आग को फायर ब्लैंकेट या किसी मैटल के ढक्कन से ढंक दें. मैटल के ढक्कन से ढंकने से जब औक्सीजन सप्लाई कटौफ होगी तो तेल पर लगी आग खुदबखुद बंद हो जाएगी.

आग अगर कंट्रोल से बाहर है तो तुरंत जगह को खाली करना ही सही होता है. जरूरी है कि भागते समय नाक और मुंह को गीले कपड़े से ढंकें ताकि धुएं से दम घुटने का खतरा कम हो. धुएं में कार्बन मोनोऔक्साइड और अन्य जहरीली गैसें होती हैं, जो सांस के जरीए शरीर में जा कर जानलेवा साबित हो सकती हैं.

पटाखों से जुड़े सावधानियां

  • खुले इलाके में ही जलाएं, जलाने के बाद तुरंत पीछे हटें.
  • सूती व टाइट कपड़े पहनें. लूज और नायलोन के कपड़े आग पकड़ सकते हैं.
  • पानी की बाल्टी और बाल्टी में रेत पास में रखें.
  • पटाखे जलाते समय बच्चों पर नजर रखें, माचिस या लाइटर उन के हाथ न दें.

अगर आग लग ही जाए, तो क्या करें

  • बिजली का मेन स्विच बंद करें.
  • CO₂ या ड्राई पाउडर ऐक्सटिंग्विशर का उपयोग करें.
  • अगर किचन में तेल में आग लगी है तो पानी न डालें, फायर ब्लैंकेट या धातु का ढक्कन रखें.
  • धुएं से बचने के लिए नाकमुंह को गीले कपड़े से ढंकें.
  • बिल्डिंग में लिफ्ट का प्रयोग न करें, सीढ़ियों से निकलें.
  • 112 या फायर ब्रिगेड को तुरंत कौल करें.
  • जरूरत पड़ने पर प्राथमिक उपचार (First Aid) दें, जैसे जली त्वचा पर ठंडा पानी डालें, पर बर्फ या टूथपेस्ट नहीं लगाएं.

बच्चों को फायर सैफ्टी कैसे सिखाएं

  • बच्चों को ‘स्टौप, ड्रौप ऐंड रोल’ तकनीक सिखाएं.
  • अगर कपड़ों में आग लग जाए तो दौड़ें नहीं, वहीं रुकें, जमीन पर लेट कर रोल करें.
  • उन्हें खेलखेल में सिखाएं कि जब धुआं दिखे तो जमीन के नजदीक झुक कर चलें. आग के बारे में आप को हफ्ते में कई बार बच्चों से बात करनी चाहिए और खेलखेल में कैसे रोल करना है, कैसे घर से बाहर जाना है सिखाएं.
  • स्मोक अलार्म की आवाज पहचानना सिखाएं.
  • सोसायटी स्तर पर क्या करना चाहिए
  • फैस्टिवल से 1 हफ्ते पहले ‘फायर सैफ्टी अवेयरनैस वर्कशौप’ आयोजित करना अनिवार्य कर देना चाहिए.
  • सभी टावरों में फायर ऐक्सटिंग्विशर, बाल्टी, रेत की व्यवस्था हो.
  • बिल्डिंग के हर फ्लोर पर एवेक्यूएशन प्लान डिस्प्ले करें.
  • बच्चों के लिए अलग से डैमो सेशन रखें.

त्योहार का असली आनंद तभी है जब वह सुरक्षित हो. रोशनी, सजावट और पकवानों के बीच अगर थोड़ी सी सजगता बरती जाए, तो न केवल हादसे टाले जा सकते हैं बल्कि दूसरों को भी जागरूक किया जा सकता है.

हर घर, हर व्यक्ति और हर बच्चे को अगर फायर सैफ्टी की जानकारी हो, तो न कोई जान जाएगी, न त्योहार की रौनक फीकी पड़ेगी.

अब अगर फायर सैफ्टी पर चर्चा हो तो हमारा कर्तव्य बनता है कि घरों में आग लगने से मरने वाली महिलाओं के बारे में भी जरूर बात की जाए. हम यहां महिलाओं पर फोकस इसलिए कर रहे हैं क्योंकि एनसीआरबी की रिपोर्ट की ही मानें तो हर साल घरेलू आग से मरने वालों की लिस्ट में 60-65% महिलाएं होती हैं. हर साल औसतन आग से मरने वालों में 15,000 से ज्यादा महिलाएं और करीब 7,000 पुरुष हैं.

अब इस का कारण जो भी हो, भले ही हादसा हो या साजिश लेकिन महिलाओं की मौत का यह नंबर चिंताजनक है. द लांसेट की मानें तो गुप्त घरेलू हिंसा या आत्मदाह जैसी स्थितियों में आग लगने की घटनाएं ‘दुर्घटना’ कह कर दर्ज की जाती हैं, जिस से आंकड़े और भी कम दिखते हैं.

एक और न्यूज एजेंसी के अनुसार, 15–34 वर्ष की उम्र की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले आग से मरने की लगभग 3 गुना अधिक संभावना रखती हैं. ऐसे में जरूरी है कि सभी को फायर सैफ्टी के बारे में पता हो ताकि ऐसी घटनाओं पर भी जल्द काबू पाया जा सके और जान बचाई जा सके.

लोग जल रहे व्यक्ति पर पानी डाल कर या कंबल डाल कर बचाने की कोशिश करते हैं जिस से उन की यह कोशिश कुछ हद तक तो काम करती है लेकिन इस से बहुत से मामलों में लोगों को बचाया नहीं जा सका है. सही उपकरणों के इस्तेमाल से ही आग पर जल्दी काबू पाया जा सकता है. Fire Safety

Hindi Story Online : हाई सोसायटी

Hindi Story Online : ‘‘ए कदम गंवार, जाहिल और मूर्ख. सच पूछो तो तुम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए हो ही नहीं. मैं ने क्या सोचा था और क्या हो गया? रघु क्या सोचता होगा? मैं भी कैसा मूर्ख था कि तुम्हारा बाहरी रंगरूप देख कर भावना में बह गया. सोचा था कि  कच्ची मिट्टी को ढाल कर अपने मन के अनुरूप बना लूंगा. पर नहीं, तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया जा सकता. पूजा, सोशल ऐटिकेट तो घुट्टी में पिलाए जाते हैं. बाद में उन्हें ग्लूकोस के इंजैक्शन की तरह खून में नहीं मिलाया जा सकता,’’

मनीष ने क्रोध में चुनचुन कर कठोर विशेषण प्रयुक्त किए.

पूजा एक क्षण को हत्प्रभ बैठी रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मनीष ने इतनी जलीकटी सुना डाली. इतना इंटैलिजैंट जना व्यक्ति और ऐसा गुस्सा. वह पढ़ीलिखी एक  छोटे कसबे से नहीं थी, पर जो व्यक्ति इतना क्रोधी हो उस की इंटैलिजैंस का क्या लाभ? उस ने मन ही मन सोचा पर बोलने से कोई फल नहीं निकलने वाला था. अत: चुपचाप बैठी रही.

‘‘अब क्या मूर्खों की तरह शून्य में ताकती बैठी रहोगी? मेरी बात का रिप्लाई क्यों नहीं देती?’’

‘‘किस बात का रिप्लाई?’’ पूजा इतने धीमे स्वर में बोली कि मनीष उस के होंठों के हिलने से ही उस की बात समझ सका.

‘‘कल रघु आया था?’’

‘‘कौन रघु?’’

‘‘मेरा मित्र राघवेंद्र. कितना बड़ा स्कौलर है वह? तुम उसे क्या जानो? अपने विषय का सुपर मास्टर है. बड़ेबड़े व्यक्ति उस की राह में पलकें बिछाने को तैयार रहते हैं.’’

‘‘हां, कल एक व्यक्ति आया तो था पर वेशभूषा व चालढाल से वह सामान्य बुद्धि वाला भी नहीं प्रतीत हो रहा था. भड़कीले कपड़े पहने, गले में सोने की कई चेनें, सिर पर अजीब ढंग से फूले बाल और धूप का चश्मा, कुल मिला कर वह किसी होटल में नाचने वाला लगता था.’’

‘‘तुम ठहरी गंवार, फैशन के संबंध में क्या जानो. कसबे में तो कुरतापजामा पहन कर, सिर में ढेर सा तेल थोप कर बाल संवारना ही सब से बड़ा फैशन होता है.’’

‘‘जो भी होता हो पर जहां तक मैं सोचती हूं? हमारी बहस का विषय फैशन तो नहीं था.’’

‘‘पूजा, बहुत आरगू करने लगी हो तुम. पर ध्यान से सुन लो, ये सब बातें मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘तर्कवितर्क करना भी तो मुझे आप ने ही सिखाया है. नहीं तो मैं कसबे की सीधीसादी सरकारी स्कूल की लड़की. ठीक से बातें करना भी कहां आता था मुझे?’’

‘‘हां तो कल मेरा मित्र राघवेंद्र आया था?’’ मनीष ने प्राइमरी टीचर की भांति पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘उस ने मेरे संबंध में पूछा था?’’

‘‘हां.’’

‘‘और तुम ने बैठने तक को नहीं कहा?’’

‘‘आप घर पर नहीं थे. अत: उसे बैठने के लिए कहने का प्रश्न ही कहां उठता था?’’

‘‘उस ने बताया था न कि वह मेरा मित्र है. उसे बैठा कर कम से कम एक कोल्ड ड्रिंक के लिए तो तुम पूछ सकती थीं पर इतने दिनों का सिखायापढ़ाया सब बेकार कर दिया तुम ने? आज सेमिनार में जब रघु ने सब के सामने तुम्हारे संबंध में बताया तो मैं शर्म से सिकुड़ कर रह गया. सब लोग मुझे देख कर हंस रहे थे?’’

‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने जो सब आप को ही देख कर हंस रहे थे? आप भी तो मुझे मैसेज कर सकते थे कि वह आने वाला है?’’

‘‘मौडर्न सोसायटी में तुम्हारे जैसे फूल्स ही ऐसे काम करते हैं,’’ तीखे स्वर में बोल कर मनीष अपने पढ़ने के कमरे में घुस गया.

पूजा देर तक बैठी आंसू बहाती रही. आंसुओं के साथ ही यादों की न जाने कितनी आकृतियां बनतीबिगड़ती रहीं…

मनीष से उस का विवाह पक्का कर उस के पिता ऐसे गदगद हो उठे थे मानो कोई खजाना पा लिया हो.

‘‘एक बहुत पढ़ेलिखे जने से पूजा का विवाह हो रहा है,’’ वे प्रसन्नता से मां से बोले थे.

‘‘वह तो ठीक है पर हमारी पूजा तो केवल कसबे के कालेज से हिंदी में एमए पास है और वह इतना एमबीए, एमटैक पढ़ालिखा. मैं ने चाहा था कोई हमारे स्तर का वर मिल जाता, जहां पूजा सुखी रहती,’’ मां ने उत्तर दिया.

‘‘क्या कहना चाह रही हो तुम? क्या मनीष पूजा को सुखी नहीं रखेगा?’’

सुन कर मां चुप रह गईं.

‘‘एमए हिंदी में है तो क्या? हमारी पूजा लाखों में एक है. दूरदूर तक रिश्तेदारी में क्या ऐसी लड़की देखी है तुम ने? बड़े शहरों में क्या लड़कियों की कमी है? पर यहां कसबे में आ कर उन्होंने हमारी पूजा को पसंद किया तो कुछ तो कारण रहा होगा.’’

मगर पूजा पिछले 1 वर्ष के वैवाहिक जीवन में समझ नहीं सकी थी कि वह सुखी है अथवा दुखी. यों उसे कोई दुख नहीं था. पर मनीष के मुख से जो भी निकलता था, उसे हर हालत में उसे मानना पड़ता था. ऊपर से दिन भर गंवार, जाहिल होने के ताने मिलते थे. वह हिंदी एमए थी जिस की इस समाज में कोई बड़ी कीमत नहीं थी. उसे कोई नौकरी नहीं मिल सकती थी क्योंकि हर नौकरी में अच्छी इंग्लिश आना जरूरी है चाहे काम सिर्फ रिसैप्शनिस्ट का क्यों न हो.

उस ने स्वयं को बदलने का कितना यत्न किया था? वह जिस दिन अपने लंबेलंबे बाल पार्लर कटवा कर आई थी तो देर तक रोती रही थी. कसबे भर में ऐसे सुंदर बाल किसी लड़की के नहीं थे. 3-4 दिन तक तो उसे बाहर निकलने में भी शर्म आती रही थी. इसी वेशभूषा के कारण तो मनीष ने उसे पसंद किया था जब वह एक पौलिटिकल रैली में एक कैंडीडेट के साथ उस के कसबे में आया था.

क्या यही आधुनिकता है? वह कड़वाकसैला पेय पीना, जिसे उस के परिवार  में पीना तो दूर, कोई छूता भी नहीं है. यदि उस के पिता को पता चल जाए कि मनीष ने कई

बार उसे उस कसैलीनशीली शराब पीने के लिए फोर्स किया है तो वे क्या सोचेंगे? पर मनीष तो कहते हैं कि आधुनिक होने के लिए यह सब करना जरूरी है. ऊपर से बड़ी अदा से छल्ले बनाना, सोचते हुए उस के आंसू कब के सूख गए थे.

अपनी ओर से उस ने सभी प्रयत्न किए थे क्योंकि मां ने कहा था कि घर को बनाने का दायित्व पत्नी पर अधिक होता है. पर वह कहां तक समझौते करती रहे. कल की घटना में क्या उस का दोष इतना बड़ा था कि मनीष मुंह फुला कर बैठ जाए.

‘‘इस बार माफ कर दो, आगे से कभी ऐसा नहीं होगा,’’ ट्रे मेज पर रख कर वह किसी प्रकार बोली थी. पर क्षोभ व अपमान से उस की आंखें भर आई थीं.

मनीष ने अपने नेत्र ऊपर उठाए थे. सदा की भांति अपनी सफलता पर वह मन ही मन मुसकराया था. आखिर पूजा कच्ची मिट्टी ही तो है, सोसायटी के लायक सांचे में ढालने में कुछ समय तो लगेगा ही.

‘‘आओ, इधर बैठो, पूजा. तुम नहीं जानती कि तुम ने कितने बड़े स्कौलर का अपमान किया है,’’ कौफी का कप उठाते हुए मनीष बोला.

‘‘क्या बहुत गुणवान है आप का मित्र?’’ अपना कम उठाते हुए पूजा ने प्रश्न किया.

‘‘स्कौलर तो वह है ही, पर लाइफ को सही ढंग से जीना भी जानता

है. खाओपीओ और मौज करो लिविंग ऐग्जैंपल. यह समझ लो कि वह मेरे जीवन का मौडल है. मालूम है उस ने अभी तक मैरिज नहीं की है.’’

‘‘अच्छा, क्या ऐज होगी आप के मित्र की?’’

‘‘30 साल होगी.’’

‘‘कब तक विवाह करने का इरादा है उस का?’’

‘‘मैरिज के नाम से ही उस का मूड खराब हो जाता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहता है कि यह भी कोई जीवन है, खूंटे से बंधी गाय जैसा. वह मानता है कि विवाह से पूर्व कितना भी लव क्यों न हो, विवाह के बाद सब छूमंतर हो जाता है. इसीलिए वह फ्री लव में विश्वास करता है.’’

‘‘आप का तो वह मौडल है. फिर आप ने विवाह क्यों किया?’’

‘‘मैरिज की है तो क्या? मैं भी उसी की तरह फ्री लव में विश्वास करता हूं.’’

‘‘यानी घर में पत्नी होते हुए भी दूसरों से प्रेम का नाटक करना?’’

‘‘नाटक नहीं, ऐक्चुअल लव करना. प्रेम तो एक जीतीजागती फीलिंग है, जिसे पत्नीरूपी पिंजरे में कैद नहीं किया जा सकता, डियर.’’

‘‘तो क्या उसे पतिरूपी पिंजरे में कैद किया जा सकता है?’’

मनीष हंस कर बोला, ‘‘अच्छा प्रश्न पूछा तुम ने. मेरी ओर से तुम भी किसी से भी लव करने के लिए फ्री हो. मैं तो सदा से फीमेल फ्रीडम में विश्वास करता हूं. जो बंधन में अपने लिए ऐक्सैप्ट नहीं कर सकता, तुम्हारे ऊपर कैसे लगा सकता हूं?’’

‘‘सचमुच बड़े ऊंचे विचार हैं आप के,’’ कौफी का आखिरी घूंट पी कर उस ने कप रखा. उस का मन अचानक बहुत अस्थिर हो गया था. बहुत सी भूलीबिसरी बातें मन के आकाश में बादलों की भांति उमड़घुमड़ रही थीं.

‘‘अरे कहां जा रही हो?’’ पूजा ट्रे उठा कर जाने लगी तो मनीष ने उसे बैठा लिया.

‘‘तुम्हें रघु के संबंध में बताऊंगा, तभी तुम्हें पता चलेगा कि वह कितना इंटरैस्टिंग पर्सनैलिटी है. जहां जाता है लोगों का मन मोह लेता है. न जाने कितनी लड़कियों से उस की फ्रैंडशिप है. वह जिसे भी अपनी फ्रैंड बनाना चाहता है, बना कर ही छोड़ता है.

अपने देश की फेमस डांसर है अवंतिका देवी. कहते हैं कि  वह बेहद अच्छे कैरेक्टर वाली है. शास्त्रीय नृत्य के अतिरिक्त औरकोई नृत्य करना पसंद नहीं करती. एक बार हम दोनों एक समारोह में भाग लेने मुंबई गए थे. शाम को हम लोग उस का डांस देखने गए. पूरे कार्यक्रम के दौरान रघु मंत्रमुग्ध सा बैठा रहा. प्रोग्राम के बाद उस ने अवंतिका से मिलने का प्रयत्न किया तो पता चला कि वह तो किसी से मिलतीजुलती नहीं है.’’

‘‘अच्छा हुआ,’’ पूजा प्रसन्न हो कर ताली बजाने लगी.

‘‘चुप रहो, बीच में टोक दिया न. पूरी बात सुने बिना ही बकबक करने लगती

हो,’’ मनीष का कटु स्वर सुन कर पूजा का चेहरा पीला पड़ गया कि क्या उसे पूरा जीवन ऐसे ही सिरफिरे व्यक्ति के साथ बिताना होगा? ऐसी समझ से क्या फायदा? उस का मन हुआ कि उस का पति कोई सीधासादा व्यक्ति होता जो उस के आत्मसम्मान का भी उतना ही खयाल रखता, जितना अपने का.

‘‘हां, तो उस दिन रातभर रघु अवंतिका के डांस पर लेख लिखता रहा. दूसरे दिन वह समारोह छोड़ कर समाचारपत्रों के कार्यालयों में चक्कर लगाता रहा. अगले ही दिन अधिकांश समाचारपत्रों में अवंतिका के डांस की प्रेज में उस के लेख छप गए.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पूजा ऊबने लगी थी.

‘‘होना क्या था? अवंतिका ने इन लेखों में अपनी प्र्रेज पढ़ी तो गदगद हो उठी. कलाकार को अपनी प्रेज से अधिक अपनी कला की प्रेज की चाह होती है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या? दोनों मित्र बन गए और यह फ्रैंडशिप रिलेशन अब तक चली आ रही है.’’

‘‘एक बात पूछूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘कब तक रघुजी अवंतिका देवी के मित्र बने रहेंगे?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘हो सकता है कि अवंतिका मैरिज करना चाहें तो क्या उन के होने वाले पति रघु की फ्रैंडशिप को स्वीकार कर लेंगे?’’

‘‘हाईक्लास वर्ग में ऐसी फ्रैंडशिप बुरी नहीं मानी जाती.’’

‘‘जब यह अवंतिका के इतने फैन हैं तो उन से विवाह क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘मैरिज नाम की इंस्टिट्यूशन में उस का विश्वास ही नहीं है. पर तुम्हारी अक्ल तो इन सड़ेगले रीतिरिवाजों से परे जा ही नहीं सकती.’’

‘‘हां, वह तो है, मेरी एक बात मानेंगे आप?’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं भी आगे पढ़ना चाहती हूं.’’

मनीष ठहाका मार कर हंसा, ‘‘यह अचानक पढ़ाईलिखाई में तुम्हारी रुचि कैसे जाग पड़ी? पहले तो तुम यही कहती थी कि और ज्यादा पढ़लिख कर तुम्हें कौन सी नौकरी करनी है. हिंदी में एमए हिंदी तो हू.’’

कुछ देर बाद उस ने कहा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियसली बातें करते तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं?’’

‘‘बात कुछ नहीं है, पर कल को मैरिज इंस्टिट्यूशन पर से आप का विश्वास भी उठ गया तो मैं किस के कंधे पर सिर टिका कर रोऊंगी.’’

‘‘कैसी फूल्स वाली बातें कर रही हो? जाओ, मुझे काम करने दो. आज ही यह लेख पूरा कर के एक ब्लौग में अपलोड करना है.’’

तभी घंटी की आवाज सुन कर पूजा डोर पर आई.

‘‘मैं हूं राघवेंद्र, मनीष घर पर है क्या?’’

‘‘अरे, राघवेंद्र. आइए, अंदर आइए, ड्राइंगरूम खोल देती हूं.’’

‘‘मैं तो मनीष के बारे में पूछने आया था. क्या वह घर पर नहीं है? मैं ने उसे मैसेज किया था पर उस ने रिप्लाई नहीं किया.’’

‘‘नहीं. ठीक है, फिर मैं चलता हूं. वह आए तो बता दीजिएगा कि राघवेंद्र आया था.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? उस दिन आप इसी तरह बाहर के बाहर चले गए थे तो मनीष कितने नाराज हो गए थे. आज तो मैं आप को इस तरह नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘मेरे पास समय कम है, पूजा. 4-5 दिनों

में ढेरों काम करने हैं. आज परमिशन दीजिए, अगली बार जब आऊंगा तो आप के घर पर ही डेरा लगाऊंगा.’’

‘‘न बाबा न, समय हो या न हो, आप यह तो नहीं चाहेंगे कि आप के कारण मेरी शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ जाए.’’

‘‘पर मैं ने ऐसा क्या किया है जो आप की शादी खतरे में पड़ जाएगी?’’ राघवेंद्र आश्चर्यचकित हो उठा.

‘‘आप नहीं समझेंगे, राघवेंद्र. ठीक भी है, समझेंगे कैसे? हां, मेरे स्थान पर आप होते तो अवश्य समझ जाते. आइए न, प्लीज अंदर

आइए न?’’

राघवेंद्र कुछ देर हत्प्रभ खड़ा सोचने लगा कि अच्छा आया वह मनीष को बुलाने, इस से तो सीधा ही चला जाता.

पर पूजा की बातों से उस का कुतूहल जाग उठा था. फिर पूजा के आग्रह को टाल कर जाना क्या आसान कार्य था? उस ने मोबाइल निकाल कर मनीष को काल करना चाहा तो पूजा ने उसे रोक दिया कि अब क्या आप उस से परमिशन लोगे.

‘चलो, कुछ देर बैठ जाते हैं. शायद तब तक मनीष आ जाए,’ उस ने सोचा.

‘‘आप बैठिए, रघुजी. मैं तब तक चाय या कौफी बना लाती हूं,’’ कहती हुई पूजा रसोईघर में व्यस्त हो गई.

रघु पत्रिका के पृष्ठ पलट रहा था कि पूजा चाय की ट्रे थामे आ गई.

‘‘हां, तो क्या अपराध हो गया मु?ा से पूजा जो आप की गृहस्थी खतरे में पड़ जाएगी?’’

‘‘आप को सचमुच कुछ नहीं मालूम? आप ही ने तो मेरे मनीष से शिकायत की थी कि आप यहां आए और मैं ने पानी तक के लिए नहीं पूछा.’’

‘‘मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा, पूजाजी. मैं ने तो सिर्फ यह कहा था कि मैं तुम्हारे घर गया था. फिर उसी ने पूछा कि आप ने चायकौफी पिलाई या नहीं?’’

‘‘हां, मैं ठहरी सीधीसादी गंवार. किसी का स्वागत करना क्या जानूं?’’ न चाहते हुए भी पूजा के नेत्र छलछला आए.

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने तो बिलकुल बुरा नहीं माना. मनीष मेरा मित्र अवश्य है, पर आप ने तो मुझे कभी देखा ही नहीं था. अत: स्वागतसत्कार का प्रश्न ही कहां उठता था?’’

‘‘अच्छा छोडि़ए इन बातों को लीजिए चाय पीजिए,’’ कहते हुए पूजा ने चाय पकड़ा दी.

‘‘एक बात पूछूं पूजा?’’ उस ने अचानक पूछा.

‘‘आप मनीष के साथ खुश हैं न?’’

‘‘मुझे यहां क्या दुख है, रघु? पर क्या करूं मैं ही उन के योग्य नहीं हूं,’’ पूजा बोली.

‘‘यह आप क्या कह रही है पूजाजी. आप जैसी अनुपम सौंदर्य क्या आसानी से देखने को मिलता है? मुझे तो आप में कोई कमी नजर नहीं आती.’’

‘‘पर मनीष कहते हैं कि गुणों के बिना रूप का महत्त्व क्या है? मैं दिल्ली की मौडर्न सोसायटी समाज का रहनसहन, तौरतरीके कुछ भी तो नहीं जानती. अंगरेजी नहीं बोल सकती. आजकल मैं अंगरेजी लिखना व बोलना सीख रही हूं. इंग्लिश क्लासे ले रही हूं.’’

‘‘क्या अंगरेजी बोलना ही सब से बड़ा गुण होता है? इन सब आडंबरों में पड़ने की आप को कोई आवश्यकता है? किसी भी भाषा को सीखना बुरा नहीं है, पर हमें कोई विशेष भाषा नहीं आती इस को ले कर कुंठित होना अवश्य बुरा है.’’

‘‘हाय रघु, कितनी देर हुई तुम्हें आए?’’ तभी मनीष का चहकता स्वर सुन कर

रघु ने गरदन घुमाई.

‘‘आओ मनीष, कहां रह गए थे तुम?’’ मैं तो जा रहा था पर पूजा ने इतना आग्रह किया कि बैठना ही पड़ा.’’

‘‘मैं यूनिवर्सिटी से निकला ही था कि रीतेश मिल गया. छोड़ ही नहीं रहा था. बड़ी कठिनाई से जान छुड़ा कर आया हूं. तुम्हारी मिस्डकाल देखी थी पर फिर सोचा घर जा कर आराम से

बात करूंगा.’’

‘‘बैठिए, 1 कप कौफी और बना लाती हूं,’’ पूजा उठ कर अंदर चली गई.

‘‘मान गए, भई तुम्हारे विवाह में तो मैं आ नहीं सका था, अब बधाई स्वीकार करो. लाखों में एक है तुम्हारी पत्नी.’’

‘‘यों समझ लो कि अनगढ़ हीरा उठा लाया हूं. तराश कर नया ही रंगरूप निखारना है.’’

‘‘हीरा कितना ही मूल्यवान हो मित्र, जीतेजागते मनुष्य की बराबरी में कहीं नहीं ठहरता,’’ रघु हंस कर बोला.

तब तक पूजा चाय बना लाई थी. अत: बात वहीं समाप्त हो गई.

दूसरे दिन सुबहसुबह राघवेंद्र आ धमका, ‘‘मनीष व पूजा भाभी ध्यान से सुनिए, मैं क्या कहने जा रहा हूं,’’ वह नाटकीय स्वर में बोला.

‘‘कल मैं जा रहा हूं. आज का पूरा दिन आप लोगों के साथ बिताने का इरादा है. मेरा नाश्ता यहीं होगा. फिर चाइनीज रेस्तरां में मेरी ओर से खाना. उस के बाद घूमेफिरेंगे. कोई अच्छी फिल्म मौल में लगी होगी तो वह भी देख लेंगे,’’ रघु बेहद उत्साहित स्वर में बोला.

तभी मनीष का फोन घनघना उठा. फोन कालेज से था कि स्टाफ यूनियन को शिक्षा मंत्री से कुछ विषयों पर बात करने के लिए बुलाया है. अभी आना जरूरी है. मनीष स्टाफ यूनियन का अस्सिटैंट सैक्रेटरी था तो जाना जरूरी था. अत: उस ने कहा, ‘‘रघु चलो चाइनीज फिर खाएंगे. मुझे मंत्री के यहां जाना है.’’

पूजा उठने को हुई पर रघु ने पूजा का हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोला, ‘‘तुम्हारे मंत्रीजी ने तो सारे उत्साह पर पानी फेर दिया, पर हमारा कार्यक्रम नहीं बदलने वाला. पहले यहां नाश्ता करेंगे. फिर चाइनीज खाना खाएंगे. तुम जाओ विश्वविद्यालय, पूजा मेरा साथ देगी.’’

एक क्षण को मनीशा हत्प्रभ रह गया पर एकदम से मना करने का साहस भी नहीं हुआ.

‘‘ठीक है, पूजा चली जाएगी तुम्हारे साथ,’’  मनीष किसी प्रकार बुझे स्वर में बोला.

पूजा नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई और मनीष व रघु बात करने में. पर मनीष का मन बारबार उचट जाता, ‘इस मंत्री को भी आज

आना था,’ वह मन ही मन बड़बड़ाया और उसे जाना पड़ा.

मनीष घर 3 बजे लौट आया. डोर पर अब भी बड़ा सा ताला लटक रहा था. दूसरी चाबी से ताला खोल कर वह घर में घुसा और पूजा की वेट करने लगा. वह कुरसी पर बैठेबैठे ही सो गया. जब अचानक नींद खुली तो 6 बज रहे थे. हलका अंधकार छाने लगा था. पर पूजा और रघु का कहीं पता नहीं था.

लगभग आधे घंटे बाद दोनों ने घर में प्रवेश किया.

‘‘अरे मनीष, कितनी देर हुई तुम्हें आए? माफ करना भाई, थोड़ी देर हो गई. वहीं चाइनीज रेस्तरां में एक और मित्र कपल मिल गया. घूमतेफिरते कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला. अच्छा अब मुझे आज्ञा दो,’’ रघु ने विदा लेते हुए कहा.

‘‘एक अवसर क्या मिला घूमनेफिरने का कि पूरा दिन बाहर ही बिता दिया तुम ने,’’ रघु के जाते ही मनीष क्रोधित स्वर में बोला.

‘‘मैं तो आप की आज्ञा का पालन कर

रही थी. आप ही ने तो कहा था जाने को. अब क्यों लालपीले हो रहे हो?’’ पूजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘इस पैकेट में क्या है?’’

‘‘एक ड्रैस है. जारा के शोरूम से ली है. रघु ने उपहार में दी है. वे कर रहे थे कि आप के विवाह में आ नहीं सके थे, इसलिए अब उपहार दिया है.’’

‘‘और तुम ने स्वीकार कर ली? उस के मुंह पर दे मारनी चाहिए थी तुम्हें. मैं ने रघु की कितनी ही महिला मित्रों के संबंध में बताया था… अवंतिका की कहानी सुनाई थी, पर तुम्हारी आंखें नहीं खुलीं.’’

‘‘कितने उदार व आधुनिक विचार हैं आप के, पर एक बात ध्यान से सुन लीजिए, मैं अवंतिका देवी नहीं हूं. एक तो क्या सैकड़ों रघु भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते यह आप के मित्र का दिया उपहार सामने रखा है. कल जब आप उन्हें छोड़ने जाएंगे तो स्वयं ही उन के मुंह पर दे मारना,’’ जलती आंखों से मनीष को घूरती हुई पूजा दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘मुझे क्षमा कर दो पूजा,’’ कुछ देर बाद मनीष भी वहीं पहुंच कर बुझे स्वर में बोला, ‘‘आगे से कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा. हमारी दशा तो 2 नावों के सवार जैसी है.’’

‘‘एक अजनबी व्यक्ति के साथ पूरा दिन मूर्खों की तरह भटकते रहना कितना ट्रैजिक होता है, आप क्या सम?ोंगे. मैं बचपन से लड़कों को अबौइड करती रही क्योंकि हमारे कसबे में तो एक कौपी या किताब उधार लेने या फेसबुक पर फ्रैंडशिप ऐक्सैप्ट करने पर हंगामा मच जाता है. यहां तुम ही बड़ीबड़ी बातें कर रहे हो. खैर, जो भी तुम समझे, आज का दिन गुजरा बड़ा अच्छा. रघु की कंपनी वाकई बहुत ऐंजौएबल है,’’ पूजा ने बड़ी शोखी से कहा. मनीष चुपचाप बैठा शून्य में देखे जा रहा था.

Hindi Love Stories : यादों के आंसू

Hindi Love Stories : सांझ ढलते ही थिरकने लगते थे उस के कदम. मचने लगता था शोर, ‘डौली… डौली… डौली…’ उस के एकएक ठुमके पर बरसने लगते थे नोट. फिर गड़ जाती थीं सब की ललचाई नजरें उस के मचलते अंगों पर. लोग उसे चारों ओर घेर कर अपने अंदर का उबाल जाहिर करते थे.

…और 7 साल बाद वह फिर दिख गई. मेरी उम्मीद के बिलकुल उलट. सोचा था कि जब अगली बार मुलाकात होगी, तो वह जरूर मराठी धोती पहने होगी और बालों का जूड़ा बांध कर उन में लगा दिए होंगे चमेली के फूल या पहले की तरह जींसटीशर्ट में, मेरी राह ताकती, उतनी ही हसीन… उतनी ही कमसिन… लेकिन आज नजारा बदला हुआ था. यह क्या… मेरे बचपन की डौल यहां आ कर डौली बन गई थी.

लकड़ी की मेज, जिस पर जरमन फूलदान में रंगबिरंगे डैने सजे हुए थे, से सटे हुए गद्देदार सोफे पर हम बैठे हुए थे. अचानक मेरी नजरें उस पर ठहर गई थीं.

वह मेरी उम्र की थी. बचपन में मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे अपने साथ स्कूल ले कर जाती थी. उन दिनों मेरा परिवार एशिया की सब से बड़ी झोंपड़पट्टी में शुमार धारावी इलाके में रहता था. हम ने वहां की तंग गलियों में बचपन बिताया था. वह मराठी परिवार से थी और मैं राजस्थानी ब्राह्मण परिवार का. उस के पिता आटोरिकशा चलाते थे और उस की मां रेलवे स्टेशन पर अंकुरित अनाज बेचती थी.

हर शुक्रवार को उस के घर में मछली बनती थी, इसलिए मेरी माताजी मुझे उस दिन उस के घर नहीं जाने देती थीं.

बड़ीबड़ी गगनचुंबी इमारतों के बीच धारावी की झोंपड़पट्टी में गुजरे लमहे आज भी मुझे याद आते हैं. उगते हुए सूरज की रोशनी पहले बड़ीबड़ी इमारतों में पहुंचती थी, फिर धारावी के बाशिंदों के पास. धारावी की झोंपड़पट्टी को ‘खोली’ के नाम से जाना जाता है. उन खोलियों की छतें टिन की चादरों से ढकी रहती हैं.

जब कभी वह मेरे घर आती, तो वापस अपने घर जाने का नाम ही नहीं लेती थी. वह अकसर मेरी माताजी के साथ रसोईघर में काम करने बैठ जाती थी. काम भी क्या… छीलतेछीलते आधा किलो मटर तो वह खुद खा जाती थी. माताजी को वह मेरे लिए बहुत पसंद थी, इसलिए वे उस से बहुत स्नेह रखती थीं.

हम कल्याण के बिड़ला कालेज में थर्ड ईयर तक साथ पढे़ थे. हम ने लोकल ट्रेनों में खूब धक्के खाए थे. कभीकभार हम कालेज से बंक मार कर खंडाला तक घूम आते थे. हर शुक्रवार को सिनेमाघर जाना हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था. इसी बीच उस की मां की मौत हो गई. कुछ दिनों बाद उस के पिता उस के लिए एक नई मां ले आए थे.

ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं और पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चला गया था. कई दिनों तक उस के बगैर मेरा मन नहीं लगा था. जैसेतैसे 7 साल निकल गए. एक दिन माताजी की चिट्ठी आई. उन्होंने बताया कि उस के घर वाले धारावी से मुंबई में कहीं और चले गए हैं.

7 साल बाद जब मैं लौट कर आया, तो अब उसे इतने बड़े महानगर में कहां ढूंढ़ता? मेरे पास उस का कोई पताठिकाना भी तो नहीं था. मेरे जाने के बाद उस ने माताजी के पास आना भी बंद कर दिया था. जब वह थी… ऐसा लगता था कि शायद वह मेरे लिए ही बनी हो. और जिंदगी इस कदर खुशगवार थी कि उसे बयां करना मुमकिन नहीं.

मेरा उस से रोज झगड़ा होता था. गुस्से के मारे मैं कई दिनों तक उस से बात ही नहीं करता था, तो वह रोरो कर अपना बुरा हाल कर लेती थी. खानापीना छोड़ देती थी. फिर बीमार पड़ जाती थी और जब डाक्टरों के इलाज से ठीक हो कर लौटती थी, तब मुझ से कहती थी, ‘तुम कितने मतलबी हो. एक बार भी आ कर पूछा नहीं कि तुम कैसी हो?’ जब वह ऐसा कहती, तब मैं एक बार हंस भी देता था और आंखों से आंसू भी टपक पड़ते थे.

मैं उसे कई बार समझाता कि ऐसी बात मत किया कर, जिस से हमारे बीच लड़ाई हो और फिर तुम बीमार पड़ जाओ. लेकिन उस की आदत तो जंगल जलेबी की तरह थी, जो मुझे भी गोलमाल कर देती थी. कुछ भी हो, पर मैं बहुत खुश था, सिवा पिताजी के जो हमेशा अपने ब्राह्मण होने का घमंड दिखाया करते थे.

एक दिन मेरे दोस्त नवीन ने मुझ से कहा, ‘‘यार पृथ्वी… अंधेरी वैस्ट में ‘रैडक्रौस’ नाम का बहुत शानदार बीयर बार है. वहां पर ‘डौली’ नाम की डांसर गजब का डांस करती है. तुम देखने चलोगे क्या? एकाध घूंट बीयर के भी मार लेना. मजा आ जाएगा.’’

बीयर बार के अंदर के हालात से मैं वाकिफ था. मेरा मन भी कच्चा हो रहा था कि अगर पुलिस ने रेड कर दी, तो पता नहीं क्या होगा… फिर भी मैं उस के साथ हो लिया. रात गहराने के साथ बीयर बार में रोशनी की चमक बढ़ने लगी थी. नकली धुआं उड़ने लगा था. धमाधम तेज म्यूजिक बजने लगा था.

अब इंतजार था डौली के डांस का. अगला नजारा मुझे चौंकाने वाला था. मैं गया तो डौली का डांस देखने था, पर साथ ले आया चिंता की रेखाएं. उसे देखते ही बार के माहौल में रूखापन दौड़ गया. इतने सालों बाद दिखी तो इस रूप में. उसे वहां देख कर मेरे अंदर आग फूट रही थी. मेरे अंदर का उबाल तो इतना ज्यादा था कि आंखें लाल हो आई थीं. आज वह मुझे अनजान सी आंखों से देख रही थी. इस से बड़ा दर्द मेरे लिए और क्या हो सकता था? उसे देखते ही, उस के साथ बिताई यादों के झरोखे खुल गए थे.

मुझे याद हो आया कि जब तक उस की मां जिंदा थीं, तब तक सब ठीक था. उन के मर जाने के बाद सब धुंधला सा गया था. उस की अल्हड़ हंसी पर आज ताले जड़े हुए थे. उस के होंठों पर दिखावे की मुसकान थी.

वह अपनेआप को इस कदर पेश कर रही थी, जैसे मुझे कुछ मालूम ही नहीं. वह रात को यहां डांसर का काम किया करती थी और रात की आखिरी लोकल ट्रेन से अपने घर चली जाती थी. उस का गाना खत्म होने तक बीयर की पूरी 2 बोतलें मेरे अंदर समा गई थीं.

मेरा सिर घूमने लगा था. मन तो हुआ उस पर हाथ उठाने का… पर एकाएक उस का बचपन का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने तैर आया. मेरा बीयर बार में मन नहीं लग रहा था. आंखों में यादों के आंसू बह रहे थे. मैं उठ कर बाहर चला गया. नवीन तो नशे में चूर हो कर वहीं लुढ़क गया था.

मैं ने रात के 2 बजे तक रेलवे स्टेशन पर उस के आने का इंतजार किया. वह आई, तो उस का हाथ पकड़ कर मैं ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है?’’ ‘‘तुम इतने दूर चले गए. पढ़ाई छूट गई. पापी पेट के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम तो करना ही था. मैं क्या करती?

‘‘सौतेली मां के ताने सुनने से तो बेहतर था… मैं यहां आ गई. फिर क्या अच्छा, क्या बुरा…’’ उस ने कहा. ‘‘एक बार माताजी से आ कर मिल तो सकती थीं तुम?’’

‘‘हां… तुम्हारे साथ जीने की चाहत मन में लिए मैं गई थी तुम्हारी देहरी पर… लेकिन तुम्हारे दर पर मुझे ठोकर खानी पड़ी. ‘‘इस के बाद मन में ही दफना दिए अनगिनत सपने. खुशियों का सैलाब, जो मन में उमड़ रहा था, तुम्हारे पिता ने शांत कर दिया और मैं बैरंग लौट आई.’’

‘‘तुम्हें एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. कुछ और काम भी तो कर सकती थीं?’’ मैं ने कहा. ‘‘कहां जाती? जहां भी गई, सभी ने जिस्म की नुमाइश की मांग रखी. अब तुम ही बताओ, मैं क्या करती?’’

‘‘मैं जानता हूं कि तुम्हारा मन मैला नहीं है. कल से तुम यहां नहीं आओगी. किसी को कुछ कहनेसमझाने की जरूरत नहीं है. हम दोनों कल ही दिल्ली चले जाएंगे.’’ ‘‘अरे बाबू, क्यों मेरे लिए अपनी जिंदगी खराब कर रहे हो?’’

‘‘खबरदार जो आगे कुछ बोली. बस, कल मेरे घर आ जाना.’’ इतना कह कर मैं घर चला आया और वह अपने घर चली गई. रात सुबह होने के इंतजार में कटी. सुबह उठा, तो अखबार ने मेरे होश उड़ा दिए. एक खबर छपी थी, ‘रैडक्रौस बार की मशहूर डांसर डौली की नींद की ज्यादा गोलियां खाने से मौत.’

मेरा रोमरोम कांप उठा. मेरी खुशी का खजाना आज लुट गया और टूट गया प्यार का धागा. ‘‘शादी करने के लिए कहा था, मरने के लिए नहीं. मुझे इतना पराया समझ लिया, जो मुझे अकेला छोड़ कर चली गई? क्या मैं तुम्हारा बोझ उठाने लायक नहीं था? तुम्हें लाल साड़ी में देखने

की मेरी इच्छा को तुम ने क्यों दफना दिया?’’ मैं चिल्लाया और अपने कानों पर हथेलियां रखते हुए मैं ने आंखें भींच लीं.

बाहर से उड़ कर कुछ टूटे हुए डैने मेरे पास आ कर गिर गए थे. हवा से अखबार के पन्ने भी इधरउधर उड़ने लगे थे. माहौल में फिर सन्नाटा था. रूखापन था. गम से भरी उगती हुई सुबह थी वह.

Story In Hindi : तोहफा

Story In Hindi : सारे काम निबटा कर नीता ने एक बार फिर घर पर नजर डाली. पूरा घर भीनीभीनी खुशबू से महक रहा था. विशेषरूप से उस का एवं उस के पति राजन का कमरा तो फूलों की अनगिनत लडि़यों से महक रहा था. उस ने घड़ी की तरफ देखा, अभी शाम के 5 भी नहीं बजे थे.

राजन की प्रतीक्षा में नीता ऊपर बरामदे में आ कर खड़ी हो गई. आज उस की शादी की दूसरी वर्षगांठ थी. इस खुशी के अवसर पर वह राजन को एक तोहफा देना चाहती थी. उस कृति के शीघ्र निर्माण का तोहफा, जिसे प्राप्त कर हर नारी पूर्ण हो जाती है.

आज सुबह ही तो उसे पता चला था. कपड़े धो कर ज्यों ही वह उठी थी, चकरा कर गिरने लगी थी. वह तो कामवाली ने उसे संभाल लिया. पूरा घर उसे घूमता हुआ सा लग रहा था.

कामवाली ने ही बताया, ‘‘मैडमजी, तुम्हें बच्चा होने वाला है. अपनी सासूमां को बुला लो अब.’’

नीता चुप रह गई. क्या कहती? उस के जीवन में तो सासससुर का प्यार ही नहीं था, अम्मां और बाबूजी भी तीर्थ पर जा चुके थे.

कुहनियों को बालकनी की रेलिंग पर टिका कर ऊपर आकाश की तरफ नीता ने बड़ीबड़ी आंखें टिका दीं. डूबते सूरज के चारों तरफ कितने ही छोटेबड़े बादल के टुकड़े तैर रहे थे. सूरज की लालिमा उसे पीछे अतीत में लौटा ले गई…

उन दिनों नीता 12वीं कक्षा में पढ़ती थी. यह संयोग ही था कि उस के पड़ोस की कोई लड़की उस स्कूल में नहीं पढ़ती थी. वह स्कूटी से अकेली ही जाती थी. उस के पिता मातादीन बाबू की पासपड़ोस में काफी प्रतिष्ठा थी. नीता गंभीर स्वभाव की कही जाती थी, मांबाप की इकलौती संतान होने के बावजूद उस के स्वभाव में जिद्दीपन नहीं था.

एक दिन स्कूल जाते समय रास्ते में 2 गुंडे किस्म के युवकों ने उसे रोक लिया. वह अपनी स्कूटी बचा कर किनारे से निकल जाना चाहा. तभी बाइक पर सवार 2 में से एक लड़के ने उस की स्कूटी का हैंडल पकड़ कर उसे रोक दिया.

‘‘कहां जाती हो, रानी, जरा ठहरो न,’’ बड़ी ही भद्दी मुसकराहट से एक ने कहा तो अचानक नीता में जाने कहां की ताकत आ गई. उस ने अपने दाहिने पांव की ठोकर युवक की कमर के नीचे खींच कर मारी. बाइक का बैलेंस बिगड़ गया और उस पर सवार ज्यों ही बिलबिला कर पीछे हटा, दूसरा उसे संभालने के लिए बढ़ गया. इतना अवसर नीता के लिए बढ़ गया. वह तेजी से स्कूटी भगा कर ले गई.

स्कूल पहुंचने पर एक और जो घटना उसे सुनाई दी वह अचंभित कर देने वाली थी. एक लड़की अपनी 2 सहेलियों के साथ एक सिंगल स्क्रीन पिक्चर देखने गई थी. इंटरवल से पूर्व उसे पेशाब आया. दूसरी सहेली पिक्चर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हुई. अंत में उसे अकेले ही जाना पड़ा. वहां पहले से 2 लड़के छिपे हुए थे, जिन्होंने उसे घुसते ही दबोच लिया. जब उस लड़की को होश आया तो सारी बातें सामने आईं, पर बयान देने के बाद ही वह लड़की दिए गए घावों के कारण मर गई. इसी शोक में उस दिन स्कूल बंद कर दिया था. लड़कियों में बड़े रोश की लहर थी. उस घटना को जान कर उस ने अपने साथ घटी घटना का वर्णन किसी से नहीं किया. नीता की मां कमजोर दिल की थीं.

नीता ने सोचा कि मां को पता चलेगा तो उस का स्कूल जाना भी छूट जाएगा. सावधानी के तौर पर वह कुछ लड़कियों का साथ पाने के लिए दूसरे रास्ते से आने लगी.

घटना के काफी दिन बाद की बात है. एक शाम नीता घर में अकेली थी. बाबूजी दुकान पर थे और मां कहीं गई थीं.

जातेजाते मां उसे दरवाजा बंद करने के लिए कई गई थीं. वह उस समय रोटी बना रही थी. तभी पड़ोस की एक लड़की दूध मांगने आ गई. उस ने उस से कहा कि वह जातेजाते दरवाजा बंद कर दे.

लड़की के जाने के थोड़ी देर बाद बाहर दस्तक हुई, ‘‘नीताजी… नीताजी…’’

नीता बाहर गई तो उस ने देखा, दरवाजे पर एक युवक खड़ा है, ‘‘कहिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उधर बाबूजी खड़े हैं, देखिए.’’

नीता ने एक पल के लिए अपना चेहरा दाहिनी तरफ घुमाया ही था कि उस लड़के ने उस की नाक पर न जाने क्या रखा दिया कि वह अचेत हो गई.

जब नीता को होश आया तो उस ने अपनेआप को एक खंडहर में पाया. नजरें घुमा कर उस ने अपने आसपास देखा, 2 युवक थोड़ी दूर पर बैठे उस के होश में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. युवकों के चेहरे पर नजर पड़ते ही वह चीख पड़ी. ये दोनों वही युवक थे, जिन्होंने रास्ते में उसे रोका था. तो ये अपने अपमान का बदला लेने लाए हैं उस से. उस ने उठ कर ज्यों ही भागना चाहा, उस ने महसूस किया कि उस के पांव बंधे हुए हैं. अपनी बेबसी पर वह रो पड़ी. दोनों युवक उस की तरफ बढ़ रहे थे, पर वह अपनी अस्मत बचा सकने में असमर्थ थी. उस की चीखपुकार उस खंडहर में सुनने वाला कोई न था.

जब नीता को पुन: होश आया तो सुबह का धुंधलका फैलने लगा था. एक खंडहर में वह अस्तव्यस्त अवस्था में पड़ी थी. उस ने अपने बदन को टटोला तो पाया कुछ खरोंचों के अलावा उस के साथ कुछ बुरा नहीं हुआ है. शायद दोनों ने ज्यादा पी रखी थी और इसीलिए वे उस के कपड़े उतार कर आगे नहीं बढ़ पाए. वहां पड़ी 4-5 बोतलें गवाह थीं कि उसे उठा लाने के जश्न में उन्होंने ज्यादा पी ली थी. अपनी स्थिति पर वह बिलखबिलख कर रो पड़ी. उन दोनों युवकों का कहीं पता न था. उस समय उस के मन में आया, वह आत्महत्या कर ले. अपवित्र शरीर ले कर वह क्या करेगी. मांबाप को कौन सा मुंह दिखाएगी? सहेलियों का सामना कैसे करेगी. पड़ोसियों को क्या जवाब देगी कि  वह रात भर कहां थी?

आत्महत्या… उस की मौत के बाद क्या यह बात छिपी रह सकेगी? लाश की चीरफाड़ होगी, तब खुल कर यह बात सामने आ जाएगी कि मृत्यु से पूर्व उस के साथ बलात्कार किया गया है. तब बाबूजी एवं मां क्या आत्महत्या नहीं कर लेंगे?

अंत में विवेक की जीत हुई. शाम के ?ारमुट में नीता घर लौट आई. मां और बाबूजी इज्जत बचाने के चक्कर में किसी के घर पूछने भी नहीं गए थे. सारी घटना सुन कर मां बेहोश हो गईं. मातादीन बाबू ने पुलिस में रिपोर्ट करनी चाही, पर फिर रुक गए. उन दोनों की शनाख्त कैसे होगी? फिर कौन सी अदालत उन्हें फांसी पर चढ़ा देगी? ऐसे गुंडे किस्म के युवक इसी से तो शह पाते हैं. लड़की के घर वाले इज्जत बचाने के चक्कर में पुलिस में नहीं जाते और ये उन की इज्जत से खेलते हैं.

नीता उन दोनों को पहचानने लगी थी. उस ने ध्यान से चलना शुरू कर दिया. अपना हुलिया थोड़ा बदल लिया था, उस के पर्स में अब 1 बिग, एक चुनरी, चाकू और पैपर स्प्रे हमेशा रहता था. एक दिन उसे एक कोने में उन 2 में से एक लड़का खड़ा दिखाई दिया. शायद नशे में था. स्कूटी रोक कर वह उस के आसपास की भीड़ कम होने का इंतजार करने लगी. जैसे ही भीड़ कुछ कम हुई, वह उस के पास बिग लगा कर पहुंची और पता पूछने के बहाने एक कागज उसे दिखाने का नाटक करने लगी. फिर मौका पा कर उस का काम तमाम कर दिया.

मातादीन ने गुंडों द्वारा बेटी को उठा ले जाने की बात को बहुत छिपाने की कोशिश की पर धीरेधीरे यह बात फैल ही गई. नीता रातदिन सोचती रहती. मां ने बाहर निकलना बंद कर दिया. तब मातादीन ने यही सोचा कि नीता का विवाह कर दिया जाए.

नीता के लिए वर की खोज शुरू हुई तो कोई न कोई भेद खोल आता. अंत में राजन से विवाह तय हुआ. राजन स्टेट बैंक में क्लर्क था. जब तक बरात नहीं आ गई, मातादीन का दिल घबराता रहता कि कहीं किसी ने कुछ कह दिया तब? यही हाल नीता का था. कैसे छिपाएगी वह यह बात राजन से? क्या देगी उसे पहली रात को? पर कुछ भी हो इस बात को छिपाना ही होगा.

मंडप में राजन एवं नीता बैठ चुके थे. पंडितजी के श्लोक गूंज रहे थे. फेरे होने ही वाले थे कि अचानक बरातियों में भगदड़ मच गई. किसी ने राजन के पिता को नीता के साथ घटी घटना की सूचना दे दी. वे क्रोध में गरजते हुए आए, ‘‘बंद करो यह शादी, पंडितजी. उठिए, यह शादी नहीं होगी.’’

सभी आश्चर्य से एकदूसरे का मुंह देखने लगे. नीता का दिल धड़क उठा.

‘‘क्या कह रहे हैं समधीजी? आखिर हम से कौन सी भूल हो गई है?’’ मातादीन का स्वर कांपने लगा. मन में वे समझ गए कि क्या होने वाला है.

‘‘कैसा समधी? किस का समधी? हम किसी भागी हुई लड़की को बहू नहीं बना सकते.’’

सारे बराती अचंभित रह गए. जो जानते थे वे खामोश रहे, बाकी में खुसुरफुसुर शुरू हो गई.

‘‘नीता भागी नहीं थी समधीजी… यह बेचारी तो निर्दोष है.’’

‘‘तो इस निर्दोष को अपने ही घर रखे रहो. हमें नहीं ले जानी यह गंदगी अपने घर.’’

‘‘बात क्या हो गई है बाबूजी?’’ राजन हैरान था.

‘‘इस समय कुछ मत पूछ. बस खड़ा हो जा. बरात वापस जाएगी.’’

‘‘नहीं बाबूजी, पहले आप बताइए तो सही.’’

‘‘मैं बताता हूं, बेटा,’’ मातादीन रोते हुए बोले, ‘‘2 साल पूर्व इस बेचारी को कुछ गुंडे उठा ले गए थे पर वे इस का कुछ कर नहीं पाए थे,’’ फिर उन्होंने रोतेरोते सबकुछ बता दिया.

उधर नीता एवं उस की मां दोनों ही बेहोश हो गईं. नीता को औरतों ने संभाल लिया. नीता का निर्दोष चेहर आंसुओं में डूबा हुआ था.

‘‘सुन लिया? उन गुंडोें ने क्या इसे अछूती छोड़ दिया होगा? हमें धोखा दिया गया है. चल उठ,’’ रामधारी बाबू गरजते जा रहे थे.

‘‘नहीं, समधीजी नहीं,’’ अपनी पगड़ी रामधारी बाबू के पैरों पर रखते हुए मातादीन बाबू बोले, ‘‘यदि बरात लौट गई तो हम तीनों मर जाएंगे. नीता आप की बहू है. हमारी इज्जत आप के हाथ में है समधीजी.’’

रामधारी बाबू ने पैर की एक ठोकर मारी और पगड़ी लुढ़कती हुई मंडप के बीच जल रही आग में जा गिरी. पगड़ी धूधू कर जल उठी.

‘‘बस करिए बाबूजी किसी की इज्जत यों नीलाम मत करिए,’’  राजन ने अपना क्रोध जब्त करते हुए कहा.

‘‘क्या बकता है तू? चलता है या नहीं?’’

‘‘जाऊंगा, बाबूजी पर नीता को ब्याह कर,’’ राजन के दृढ़ स्वर पर लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई.

‘‘कमबख्त, क्या इसीलिए तुझे पढ़ाया था कि मेरी इज्जत यों सरेआम नीलाम कर दे? तू जाएगा और बरात भी जाएगी.’’

‘‘बाबूजी हम पढ़ते हैं इसलिए कि ज्ञान प्राप्त करें. दूसरों की जिंदगी में उजाला भर दें, न कि अंधेरा. सोचिए, यदि आज बरात लौट गई तो क्या फिर कोई इस दरवाजे पर बरात ले कर आने का साहस कर सकेगा? आप क्या चाहते हैं कि यह परिवार आत्महत्या कर ले या नीता किसी कोठे पर जा कर बैठ जाए?’’

इसी मध्य नीता को होश आ गया था. वह रोती हुई पितापुत्र का वार्त्तालाप सुन रही थी.

‘‘तो इस गंदगी के ढेर से तू शादी करेगा कमीने?’’ रामधारी बाबू गला फाड़ कर चीखे.

‘‘गंदगी का ढेर नीता नहीं है बाबूजी, वे गुंडे हैं जिन्होंने अपने इस कृत्य से कोठों को जन्म दिया है.’’

‘‘तो तू नहीं मानेगा?’’

राजन मौन रहा. उस के मौन ने आग में घी का काम किया. रामधारी का क्रोध आसमान छूने लगा, ‘‘ठीक है, आज से तू मेरा बेटा नहीं रहा. इस गंदगी के साथ ब्याह कर और जीवनभर मेरे सामने मत पड़ना.’’

पिता के साथ ही काफी लोग चले गए पर राजन के मित्र वहीं रह गए. पिता का अपमान करने का राजन का उद्देश्य न था. पर एक लड़की ही नहीं, पूरे परिवार की जान एवं इज्जत का प्रश्न था.

शादी हो गई. उस के मित्रों ने उन के लिए

2 कमरों के मकान का प्रबंध कर दिया.

पहली रात को ज्यों ही राजन ने नीता का घूंघट उठाया, वह उस के कंधे से लग कर बिलख उठी.

‘‘मत रो, नीता,’’ राजन उस के बाल सहलाते हुए बोला, ‘‘आज से तुम्हारा नया जन्म हुआ है. अतीत को भूल जाओ, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’

नीता ने राजन को पूरी बात बताई. उस ने यह भी बताया कि वह गाइनोक्लौजिस्ट के पास भी चैक कराने गई थी जिस ने पुष्टि की थी कि रेप तो नहीं हुआ पर उस जगह छेड़छाड़ के निशान थे. यह बात उस ने किसी को नहीं बताईं क्योंकि कोई मानता नहीं. नीता ने एक गुंडे की हत्या करने की कहानी भी बता दी.

राजन ने भी कहा कि कोई नहीं मानेगा कि नीता जैसी लड़की किसी की हत्या कर सकती है.

छोटे से घर को नीता ने स्वर्ग बना कर रख दिया. राजन नीता के बिना स्वयं को अधूरा महसूस करता. एक  ही बात नीता को खटकती कि उस के कारण राजन बेघर हो गया है. उस के पिता ने भी कई बार रामधारी बाबू को मनाने की कोशिश की पर उन्हें अपमानित होना पड़ा. नीता ने अपनी सास को भी कई पत्र भेजे पर उधर से मौन बना रहा.

स्कूटर की आवाज पर नीता की तंद्रा भंग हुई. घर के बाहर राजन अपना स्कूटर खड़ा कर रहा था. नीता को देख कर वह मुसकरा दिया.

नीता के दरवाजा खोलते ही राजन ने नीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘अरे…रे…क्या करते हो? छोड़ो भी…’’ नीता बोली.

‘‘नहीं छोडूंगा. पता है, आज मैं बहुत खुश हूं,’’ राजन ने उसे बांहों में लिए अंदर आते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या बात हो गई? अभी तो मैं ने वह खुशखबरी भी नहीं सुनाई है,’’ होंठों को हलके से दबा कर नीता ने कहा.

‘‘अच्छा, क्या आज दोनों के पास खुशखबरी है? चलो, पहले तुम ही बता दो. अरे, वाह,’’ कमरे में चारों तरफ देखते हुए राजन ने कहा, ‘‘बड़ी सजावट है, क्या खूब तैयारी की है?’’

‘‘चलो हटो. पहले अपनी खुशखबरी सुनाओ,’’ उस के बंधन से निकल कर पलंग पर बैठते हुए नीता ने कहा.

‘‘पहले तुम, बाद में मैं अपना तोहफा तुम्हें दूंगा खुशखबरी के रूप में.’’

‘‘तो सुनो, तुम शीघ्र ही बाप…’’ आगे की बात अधूरी छोड़ शरमा कर नीता ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

‘‘सच कह रही हो, नीता? आज हम एकदूसरे को जीवन का सब से बड़ा तोहफा दे रहे हैं,’’ नीता का हाथ प्यार से हटाते हुए राजन ने कहा, ‘‘आज का मेरा तोहफा भी खुशी से सराबोर है.’’

नीता ने अपनी प्रश्नसूचक नजर ऊपर उठाई.

‘‘आज डैडमौम आए थे. उन्होंने हमें अपना लिया है, नीता.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’ नीता का स्वर भीग गया.

‘‘हां नीता, उन्होंने हमें माफ कर दिया है,’’ राजन का स्वर खुशी में कांपने लगा, ‘‘उठो, तैयारी करो. आज अपनी दूसरी सुहागरात हम अपने वास्तविक घर में मनाएंगे. मैं ने उन्हें सारी बात बताई. तब उन्होंने कहा कि उन्हें बेटे के लिए आज सुघड़ साथी चाहिए और उस के पिछले हाल से उन्हें कोई मतलब नहीं. उस समय 2-4 रिश्तेदारों के कहने पर वे आपा खो बैठे थे.’’

नीता ने बाहर नजर डाली, दूर चांद निकल आया था. आज की रात कितना सुंदर तोहफा ले कर आई थी उन दोनों के लिए.

राइटर-   साधना सर्वप्रिय

Famous Hindi Stories : कायाकल्प – आखिर सुरेश और नैना के बीच क्या हुआ?

Famous Hindi Stories : ‘‘ नै ना, सुरेश तुम से जिस तरह से बात करता है, तुम कैसे सहन करती हो? कितना उद्दंड हो कर बात करता रहता है तुम से?’’ ऋतु ने कहा.

‘‘अरे, यह उस के बात करने का स्टाइल है, कोई उद्दंडता नहीं करता है वह,’’ नैना ने जवाब दिया.

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‘‘ऐसा भी क्या स्टाइल जो असभ्य लगे? सभ्य समाज में इसे स्टाइल नहीं गंवारपन का उदाहरण माना जाएगा,’’ नैना ने कहा.

नैना चुप रह गई. क्या कहती वह? ऋतु ही नहीं उस के घरपरिवार वालों को, मित्रोंपरिचितों को भी यह शिकायत थी कि सुरेश के बात करने का लहजा सही नहीं है, उस के व्यवहार में असभ्यता की बू आती है.

मगर नैना को ऐसा नहीं लगता था. वह सुरेश के साथ डेटिंग कर रही थी. वैसे वह बहुत नम्र नहीं था, साथ ही उस के जितना शिक्षित भी नहीं था. ज्यादा शिक्षित नहीं होने के उस के परिवार की परिस्थितियां जिम्मेदार थीं. पिता की असामयिक मौत के कारण कुछ दिनों तक उस की मां जैसेतैसे परिवार का गुजारा करती थी. बड़ा होने पर सुरेश ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली थी. वह नैना के साथ तूतड़ाक कर के बातें करता था और इस कारण नैना के नजदीकी लोगों को लगता था कि वह नैना के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करता है. पर उस के घर और समाज के माहौल के कारण ही उस का ऐसा व्यवहार है, ऐसा नैना का विचार था. निश्चित रूप से वह इसे उस के व्यक्तित्व में कमी मानती थी लेकिन उस के व्यक्तित्व में कई अच्छाइयां भी थीं. वह काफी सहयोगात्मक रवैए वाला व्यक्ति था. उस की सहायता करने के लिए तो वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहता था. उसी की क्यों वह सब की सहायता करने के लिए तत्पर रहता था. नैना को लगता था कि क्यों नहीं उस की अच्छाइयों पर ध्यान दिया जाए बजाए उस की कमियों के.

1 साल से नैना सुरेश के साथ थी. कभीकभी उसे भी उस का व्यवहार नहीं जंचता था पर वह सुरेश से प्यार करती थी और चाहती थी कि उस के साथ संबंध को बनाए रखे. मगर इतना तय था कि घरपरिवार वालों का बहुत विरोध होगा यदि वह उस से शादी करने का निर्णय उन्हें बताएगी. कई बार उस ने इस बारे में सोचा था परंतु अंत में उस का दिल यही कहता था कि वही उस के जीवनसाथी के रूप में उपयुक्त है. पर घरपरिवार, मित्ररिश्तेदार किसी का जरा सा भी समर्थन न होने से क्या यह निर्णय सही होगा, वह इसी उधेड़बुन में थी.

आखिर यह जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय था. इस निर्णय का जीवन पर बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ना था. निश्चित रूप से इस के लिए हर पहलू पर विचार कर के ही किसी निर्णय पर पहुंचा जाना चाहिए. इस में कोई दो मत नहीं मुझ से बेहतर मेरे घरपरिवार वाले, मेरे मित्र रिश्तेदार, सुरेश को नहीं जान सकते. लेकिन थोड़े धीरज के साथ काम करना ही ठीक रहेगा. उस ने सोचा इस बारे में क्यों न एक बार सुरेश से भी बात कर ली जाए. निश्चित रूप से अगली बार सुरेश से मिलने पर मैं इस बात को उठाऊंगी, उस ने सोचा.

और अगली बार जब सुरेश से मुलाकात हुई तो मौका देख कर सिया ने बात छेड़ दी, ‘‘सुरेश, मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं पर मेरे घरपरिवार वालों, मित्रोंरिश्तेदारों का कहना है कि तुम थोड़े उद्दंड हो और मेरा खयाल नहीं रखते हो.’’

‘‘किस की हिम्मत हुई ऐसा कहने की और किस आधार पर कोई ऐसा कह सकता है फिर तू मु?ा से शादी करेगी या तेरे घरपरिवार वाले? तेरे मित्र, रिश्तेदार?’’ सुरेश बिफर पड़ा.

‘‘यही गलती है तुम में. इसी बात को प्यार से भी तो कह सकते थे कि ऐसा कुछ नहीं है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारा खूब खयाल रखूंगा,’’ नैना नाराज हो कर बोली.

‘‘अरे, यह तो मेरा स्टाइल है. देख, बिहार और पूर्वी यूपी में कोई किसी को तुम कहता है तो बुरा मान जाता है पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में तुम बोलना बिलकुल सामान्य है. मैं जिस माहौल में रहा हूं उस का असर तो रहेगा न मेरे ऊपर?’’ सुरेश ने कहा.

‘‘तुम्हारा कहना ठीक है पर शादी से सिर्फ 2 व्यक्ति ही नहीं जुड़ते 2 परिवार भी जुड़ते हैं. फिर हम समाज में रहते हैं तो अपने से जुड़े

सभी लोगों का खयाल रखना पड़ता है. अगर मैं तुम्हारी मां से बदतमीजी से बात करूं और कहूं कि यह मेरा स्टाइल है तो तुम्हें अच्छा लगेगा?’’ नैना ने कहा.

‘‘ऐसे कैसे बदतमीजी करेगी तू मेरी मां से?’’ सुरेश एकदम से गुस्सा हो गया.

‘‘यही तेवर लोगों को ठीक नहीं लगते हैं. क्या तुम इसे सुधार नहीं कर सकते? तुम शांत हो कर यह भी तो कह सकते थे कि बड़ों से बदतमीजी नहीं की जाती. उन का सम्मान किया जाता है,’’ नैना ने कहा.

‘‘मैं क्यों सुधार करूं? मैं जैसा हूं वैसा तुम्हें पसंद हूं तो ठीक वरना अपना रास्ता नाप. बहुत मिलेंगे तेरे जैसे,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘तो मैं अपना रास्ता नापती हूं. तुम्हें जो मिले उस के साथ रहना,’’ नैना ने कहा और चल दी.

‘‘अरे सुन तो…’’ सुरेश ने आवाज दी पर नैना चलती रही.

‘‘अजी सुनिए तो प्राणेश्वरी, हृदयेश्वरी…’’ बोलते हुए सुरेश ने उस के करीब आ कर उस का रास्ता रोक लिया.

प्राणेश्वरी, हृदयेश्वरी संबोधन सुन कर नैना को हंसी आ गई और वह रुक गई.

‘‘देख, थोड़ा समय तो दे सुधार करने का,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘इसी बात को थोड़ा सभ्य हो कर कहो,’’ नैना ने कहा.

‘‘मैडमजी, मुझे कुछ महीनों की मोहलत दीजिए. मैं खुद को सुधार लूंगा. तुम्हारे बिना मेरे जीवन का कोई महत्त्व नहीं है. तुम मेरी जिंदगी हो, तुम मेरी बंदगी हो…’’ सुरेश ने हाथ जोड़ते हुए मजाक किया.

नैना खुश हो गई. प्यार से सम?ाते हुए बोली, ‘‘इतने प्यार से बात कर सकते हो तो फिर करते क्यों नहीं? गाने के बोल भी सही चुनते हो. फिर भी हर बात में तूतड़ाक करते रहते हो?’’

इस के बाद दोनों काफी देर तक एकदूसरे के साथ रहे. सुरेश ने वादा किया कि वह अपने व्यवहार को सुधारेगा. निश्चित रूप से इस में समय लगेगा पर वह कामयाब जरूर होगा और उस ने सुधार करना शुरू भी कर दिया. पर उस का लापरवाह व्यवहार बीचबीच में सामने आ ही जाता. जब नैना उसे उस के व्यवहार की ओर इशारा करती तो वह माफी भी मांग लेता.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिस से नैना की बात को सुरेश सही तरीके से सम?ा गया. हुआ यों कि अपनी जमीन से संबंधित काम के लिए उसे अंचल कार्यालय में काफी भागदौड़ करनी पड़ी. शायद उसे ऊपरी कमाई के लिए परेशान किया जा रहा था. एक दिन वह अंचल कार्यालय गया और अधिकारी से उलझ पड़ा. उस के व्यवहार से नाराज हो कर उस ने थाने में शिकायत कर दी. थाना बिलकुल नजदीक था. थाना इंचार्ज एक महिला थी. उस के साथ भी सुरेश ने तूतड़ाक की भाषा में बात की. नाराज हो कर उस ने उसे हवालात में बंद कर दिया.

नैना को यह बात पता चली तो वह थाने पहुंची. थाना इंचार्ज से मिल कर उस ने सुरेश के बारे में पूछा.

थाना इंचार्ज ने पूछा, ‘‘कौन है वह तुम्हारा?’’

नैना बोली, ‘‘जी मेरा दोस्त है.’’

थाना इंचार्ज उसे ध्यान से देखते हुए बोली, ‘‘तुम तो पढ़ीलिखी सभ्य लग रही हो. इस गंवार से कैसे दोस्ती है तुम्हारी?’’

नैना को यह बात अपमानजनक तो लगी पर मौके की नजाकत को सम?ाते हुए बोली, ‘‘मैडम, वह गंवार नहीं है. हां बोलने का लहजा जरूर थोड़ा ठीक नहीं है. मैं उसे सम?ा दूंगी. आप उसे छोड़ दीजिए प्लीज.’’

थाना इंचार्ज बोली, ‘‘ठीक है, छोड़ देती हूं पर एक सलाह है तुम्हारे लिए. यह प्यारव्यार के चक्कर में लड़कियां बहुत धोखा खाती हैं. संभल कर रहना.’’

नैना बिलकुल बहस के मूड में नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘जी मैडम.’’

थाना इंचार्ज ने सिपाही से सुरेश को हवालात से बाहर लाने के लिए कहा. सुरेश

बाहर आया तो उस का चेहरा गुस्से से लाल था. वह थाना इंचार्ज को घूर कर देख रहा था. नैना ने उसे इशारा कर के शांत रहने के लिए बोला. दोनों बाहर आए. बाहर आ कर नैना उसे ले कर एक रैस्टोरैंट में गई. उस ने स्नैक्स और चाय का और्डर दिया.

‘‘देख लिया अपने स्टाइल का नतीजा?’’ नैना बोली, ‘‘बस मेरी ही गलती दिख रही है तु?ो. वह अंचल अधिकारी मेरे दोस्त को कितना परेशान कर रहा था.’’

‘‘मानती हूं तुम्हारी बात को पर यदि सही तरीके से बात नहीं करोगे तो इस तरह की

समस्या में पड़ते रहोगे. वे लोग तुम्हें सरकारी काम में बाधा डालने के इलजाम में जेल में डाल सकते थे. किसी भी समस्या का समाधान कानूनी तरीके से ढूंढ़ो और कुछ भी करो पर बात तो थोड़ा संभल कर किया करो,’’ नैना सम?ाती हुई बोली.

सुरेश सोच में पड़ गया. यह सही था कि उस के व्यवहार से लोग काफी आहत होते थे. बाद में पता चलता था कि उस के दिल में कोई खोट नहीं है बस बात करने का तरीका ऐसा है तो लोगों से उस की मित्रता हो जाती थी. सुधार करने की आवश्यकता है, उस ने सोचा.

कुछ ही महीनों के बाद सुरेश का व्यवहार काफी बदल चुका था बल्कि कहें कि कायाकल्प हो चुका था तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. वैसे नैना के करीबी आज भी सुरेश को उस के लायक नहीं समझते थे पर अब नैना को इतना विश्वास हो गया था कि वह सुरेश के साथ शादी करेगी और शीघ्र ही सभी उसे अपना लेंगे.

Top 20 Hindi Kahaniya: टॉप 20 हिन्दी कहानियां

Top 20 Best Hindi kahaniyan: प्रेरक कहानियाँ (kahani) पढ़ना आपको जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखा सकता है. ये कहानियाँ (kahaniya) अक्सर काल्पनिक होती हैं, लेकिन फिर भी ये आपको महत्वपूर्ण सबक सिखा सकती हैं. लेकिन उन सभी का एक ही लक्ष्य है: आपको सीखने और बढ़ने में मदद करना. इसलिए, चाहे आप बच्चे हों या वयस्क, इनमें से जितनी चाहें उतनी हिन्दी कहानियाँ (Hindi Kahaniyan) पढ़ें!

इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की top 20 Hindi kahani collection.

1-श्यामा आंटी: सुगंधा की चापलूसी क्यूं काम नहीं आई?

एक दिन हमारे मालिक दुकान से आ रहे थे कि तभी उन की साइकिल में मोटर साइकिल वाले ने टक्कर मार दी और उन की सांस छूट गई. बस फिर तो सब की नजरें बदल गईं. ‘‘हम तो नौकरानी बन के भी खुश रहे, लेकिन एक रात हमारे ससुर रात को कमरे में आ गए. हम मुश्किल से अपनी इज्जत बचा पाए. अगले दिन 10 बरस की बिटिया का हाथ पकड़ कर घर से निकल आए. कुछ दिनों तक तो मायके में रही, लेकिन माताजी आप तो जानती हो कि जब अपना कोई नहीं तो सपना क्यों?’’

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2- संकल्प: शादी के बाद कैसे बदली कविता की जिंदगी

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मेरी सहेली कविता की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाने के लिए रवि का देर से घर पहुंचना मेरा मूड बहुत खराब कर गया था. घर में कदम रखते ही उन्होंने सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘बौस ने अचानक मीटिंग बुला ली थी और उस गुस्सैल से जल्दी जाने की रिक्वैस्ट करने का मेरा दिल नहीं किया. आईएम सौरी डार्लिंग.’’ ‘‘मैं कुछ कह रही हूं क्या जो माफी मांग रहे हो?’’ मैं नाराजगी भरे अंदाज में उठ कर रसोई की तरफ चल दी. उन्होंने सामने आ कर मु?ो रोका और मनाने वाले लहजे में बोले, ‘‘अब गुस्सा थूक कर मुसकरा भी दो, स्वीटहार्ट. मैं फटाफट तैयार होता हूं और हम 15 मिनट में निकल चलेंगे.’’

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3- अमेरिकन बहू: समाज को भाने लगी विदेशी मीरा

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अपनेगोरेचिट्टे हाथों को जोड़ कर, बिल्लोरी आंखों में मुसकान का जादू भर कर, सुनहरी पलकों को हौले से ?ाका कर जब उस ने कहा, ‘‘नैमेस्टे मम्मीजी,’’ तो सुजाता का मन बल्लियों उछलने लगा. उन के दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं कि वह क्षण भर के लिए भूल गई कि वह अनुपम सुंदरी केवल लैपटौप के स्काइप के चमत्कार से प्रगट होने वाली एक छवि भर थी जिस से वे अपने बेटे राहुल से बहुत अनुनयविनय करने और अपने पति कुमार साहब के बहुत सम?ानेबु?ाने पर बात करने को तैयार हुई थीं. पर उस की एक शरमाती हुई ‘नैमस्टे’ ने उन का सारा संताप, सारे गिलेशिकवे धो कर रख दिए.

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4- पछतावा- क्यूं परेशान थी सुधा

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फ़ोन पर सुधा ने तन्वी से बात की और बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गई. तन्वी सुधा की छोटी बहन है. उस ने फ़ोन पर सुधा से कहा कि वह कुछ दिनों के लिए उस के घर आ रही है. उस का आना सुधा को जरा भी पसंद नहीं आ रहा था. इसी फ्रस्ट्रेशन में वह सामान उठाउठा कर इधरउधर पटक रही थी. उस को जब भी गुस्सा आता है, वह डस्टिंग करते समय इतनी जोरजोर से फटका मारती है कि पड़ोस के लोगों के घरों तक आवाज जाती है. फिर मोटा डंडा लाती है और गद्दों को पीटना शुरू करती है यानी की धूल झाड़ती है.

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5- धुंध- घर में मीनाक्षी को अपना अस्तित्व क्यों खत्म होने का एहसास हुआ?

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‘अरे, अब बस भी करो रघु की मां, क्या बहू को पूरी दुकान ही भेज देने का इरादा है?’’ ‘‘मेरा बस चले तो भेज ही दूं, पर अब अपने हाथों में इतना दम तो है नहीं. अरे, कमिश्नर की बेटी है कितना तो दिया है शादी में बेटी को. थोड़ा सा शगुन भेज कर हमें अपनी जगहंसाई करानी है क्या? मीनाक्षी, जरा गुझिया में खोया ज्यादा भरना वरना रघु की ससुराल वाले कहेंगे कि हमें गुझिया बनानी ही नहीं आती.’’

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6- अकेली लड़की- कैसी थी महक की कहानी

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” बेटे आप दोनों को गिफ्ट में क्या चाहिए? ” मुंबई जा रहे लोकनाथ ने अपनी बच्चियों पलक और महक से पूछा. 12 साल की पलक बोली,” पापा आप मेरे लिए एक दुपट्टे वाला सूट लाना.” ” मुझे किताबें पढ़नी हैं पापा. आप मेरे लिए फोटो वाली किताब लाना,” 7 साल की महक ने भी अपनी फरमाइश रखी. “अच्छा ले आऊंगा. अब बताओ मेरे पीछे में मम्मी को परेशान तो नहीं करोगे ?” “नहीं पापा मैं तो काम में मम्मी की हैल्प करूंगी.”

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7- चोरी का फल- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

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शिखा पर पहली नजर पड़ते ही मेरे मन ने कहा, क्या शानदार व्यक्तित्व है. उस के सुंदर चेहरे पर आंखों का विशेष स्थान था. उस की बड़ीबड़ी आंखों में ऐसी चमक थी कि सामने वाले के दिल को छू ले. वह एक दिन रविवार की सुबह मेरे छोटे भाई की पत्नी रेखा के साथ मेरे घर आई. शनिवार को शिखा हमारी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दे कर आई थी. रेखा के पिता उस के पिता के अच्छे दोस्त थे. मेरी सिफारिश पर उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी, ऐसा आश्वासन दे कर रेखा उसे मेरे पास लाई थी.

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8- दोस्त ही भले: प्रतिभा ने शादी के लिए क्यूं मना किया

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तुम गंभीरतापूर्वक हमारे रिलेशन के बारे में नहीं सोच रहे,’’ प्रतिभा ने सोहन से बड़े नाजोअंदाज से कहा. ‘‘तुम किसी बात को गंभीरतापूर्वक लेती हो क्या?’’ सोहन ने भी हंस कर जवाब दिया. दोनों ने आज छुट्टी के दिन साथ बिताने का निर्णय लिया था और अभी कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. दोनों कई दिनों से दोस्त थे और बड़े अच्छे दोस्त थे. ‘‘लेती क्यों नहीं, जो बात गंभीरतापूर्वक लेने की हो. तुम मेरे सब से प्यारे दोस्त हो, मैं तुम से प्यार करती हूं, तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूं. यह बात बिलकुल गंभीरतापूर्वक बोल रही हूं और चाहती हूं कि तुम भी गंभीर हो जाओ,’’ प्रतिभा ने आंखें नचाते हुए जवाब दिया.

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9- इतना बहुत है

घर के कामों से फारिग होने के बाद आराम से बैठ कर मैं ने नई पत्रिका के कुछ पन्ने ही पलटे थे कि मन सुखद आश्चर्य से पुलकित हो उठा. दरअसल, मेरी कहानी छपी थी. अब तक मेरी कई कहानियां  छप चुकी थीं, लेकिन आज भी पत्रिका में अपना नाम और कहानी देख कर मन उतना ही खुश होता है जितना पहली  रचना के छपने पर हुआ था.

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10- पलाश- अर्पिता ने क्यों किया शलभ को अपनी जिंदगी से दूर?

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रखैल…बदचलन… आवारा… अपने लिए ऐसे अलंकरण सुन कर अर्पिता कुछ देर के लिए अवाक रह गई. उस की इच्छा हुई कि बस धरती फट जाए और वह उस में समा जाए… ऐसी जगह जा कर छिपे जहां उसे कोई देख न पाए. रिश्तेदार तो कानाफूसी कर ही रहे थे, पर क्या शलभ की पत्नी भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकती है? वह तो उस की अच्छी दोस्त बन गई थी. फिर वह ऐसा कैसे बोल सकती है?

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11- आशियाना- अनामिका ने किसे चुना कहानी

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बहू कुछ दिनों के लिए रश्मि आ रही है. तुम्हें भी मायके गए कितने दिन हो गए, तुम भी शायद तब की ही गई हुई हो, जब पिछली दफा रश्मि आई थी. वैसे भी इस छोटे से घर में सब एकसाथ रहेंगे भी तो कैसे? “तुम तो जानती हो न उस के शरारती बच्चों को…क्यों न कुछ दिन तुम भी अपने मायके हो आओ,” सासूमां बोलीं. लेकिन गरीब परिवार में पलीबङी अनामिका के लिए यह स्थिति एक तरफ कुआं, तो दूसरी तरफ खाई जैसी ही होती. उसे न चाहते हुए भी अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता.

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12- एक और आकाश- क्या हुआ था ज्योति के साथ कहानी

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उस गली में बहुत से मकान थे. उन तमाम मकानों में उस एक मकान का अस्तित्व सब से अलग था, जिस में वह रहती थी. उस के छोटे से घर का अपना इतिहास था. अपने जीवन के कितने उतारचढ़ाव उस ने उसी घर में देखे थे. सुख की तरह दुख की घडि़यों को भी हंस कर गले लगाने की प्रेरणा भी उसे उसी घर ने दी थी.

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13-अधूरी तसवीरें: आखिर रमला ने क्या फैसला लिया?

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क्याकरे रमला? गैरजिम्मेदार ही सही लेकिन है तो आखिर बाप ही न, कैसे बेसहारा छोड़ दे. माना कि पिता को घर लाने का सीधासीधा अर्थ खुद अपनी खुशियों में सेंध लगाना ही है, लेकिन इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं. जब पति राघव ने पिता को अपने साथ रखने के प्रस्ताव पर चर्चा की है तब से ही रमला बेचैन है. ऐसा नहीं है कि रमला को अपने जन्मदाता से प्रेम नहीं, है. बहुत है, लेकिन वह कंठहार ही क्या जो गले का फंदा बन जाए.

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14- हनीमून- रश्मि और शेफाली के साथ क्या हुआ

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ऊंचाई पर मौसम के तेवर कुछ और थे. घाटियों में धुंध की चादरें बिछी थीं. जब भी गाड़ी बादलों के गुबार के बीच से गुजरती तो मुन्नू की रोमांचभरी किलकारी छूट जाती. ऊंची खड़ी चढ़ाई पर डब्बे खींचते इंजन का दम फूल जाता, रफ्तार बिलकुल रेंगती सी रह जाती. छुकछुक की ध्वनि भकभक में बदल जाती, तो मुन्नू बेचैन हो जाता और कहता, ‘‘मां, गाड़ी थक गई क्या?’’

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15- प्यार को प्यार से जीत लो: शालिनी ने मां को कैसे मनाया कहानी

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सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’ शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.

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16- संस्कार: आखिर माँ संस्कारी बहु से क्या चाहती थी

नई मारुति दरवाजे के सामने आ कर खड़ी हो गई थी. शायद भैया के ससुराल वाले आए थे. बाबूजी चुपचाप दरवाजे की ओट में हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और मां, जो पीछे आंगन में झाडू दे रही थीं, भाभी के आवाज लगाते ही हड़बड़ी में अस्तव्यस्त साड़ी में ही बाहर दौड़ी आईं.

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17. मुझे नहीं जाना- क्या वापस ससुराल गई अलका

शादी के कुछ दिनों बाद ही अलका को ससुराल का माहौल खटकने लगा और वह राजीव से अलग घर ले कर रहने की जिद में मायके जा कर रहने लगी. उस की इसी जिद से परेशान उस के ससुर व पिता ने ऐसी क्या चाल चली कि अलका के सारे मनसूबे धरे के धरे रह गए…

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18. छुटकारा- बेटे-बहू के होते हुए भी क्यों अकेली थी सावित्री

सावित्री आंखों की जांच कराने दीपक आई सैंटर पर पहुंचीं. वहां मरीजों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी. अपनी बारी का इंतजार करतेकरते 2 घंटे से भी ज्यादा हो गए. तभी एक आदमी तेजी से आया और बोला, ‘‘शहर में दंगा हो गया है, जल्दी से अपनेअपने घर पहुंच जाओ.’’

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 19. अनोखा रिश्ता

‘‘बायमां, मैं निकल रही हूं… और हां भूलना मत,दोपहर के खाने से पहले दवा जरूर खा लेना,’’ कह पल्लवी औफिस जाने लगी. तभी ललिता ने उसे रोक कहा, ‘‘यह पकड़ो टिफिन. रोज भूल जाती हो और हां, पहुंचते ही फोन जरूर कर देना.’’

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20. मन की थाह- रामलाल का क्या हुआ शादी के बाद

रामलाल बहुत हंसोड़ किस्म का शख्स था. वह अपने साथियों को चुटकुले वगैरह सुनाता रहता था. वह अकसर कहा करता था, ‘‘एक बार मैं कुत्ते के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया. वहां आदमियों का वजन तोलने के लिए बड़ी मशीन रखी थी. मैं ने एक रुपया दे कर उस पर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया. मशीन में से एक कार्ड निकला जिस पर वजन लिखा था 35 किलो और साथ में एक वाक्य भी लिखा था कि आप महान कवि बनेंगे.’’ यह सुनते ही सारे दोस्त हंसने लगते थे. hindi kahaniya

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