फेस्टिवल्स पर आई मेकअप से दिखें ग्लैमरस 

त्योहारों का सीजन हो और सजना सवारना न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि त्योहार जहां मन में उमंग लाते हैं , वहीं त्योहार सजने सवरने का भी मौका देते हैं. खासकर महिलाओं को, क्योंकि मेकअप महिलाओं की खूबसूरती को बढ़ाने का काम जो करता है. ऐसे में त्योहारों पर मेकअप की बात हो और आई मेकअप न किया जाए तो सारे मेकअप पर पानी फिर जाता है. इसलिए इन त्योहारों मेकअप से अपनी आंखों को खूबसूरत बनाकर करें त्योहारों को एंजोय.

कैसे करें अलगअलग तरह के आई मेकअप 

–  सिंपल आई मेकअप 

अगर आपको सिंपल लुक ज्यादा पसंद है और आप अपनी आंखों को ज्यादा तड़कभड़क लुक नहीं देना चाहतीं तो सिर्फ अपनी आंखों को दो चीजों से निखारें. काजल और दूसरा आई लाइनर.  बस आपको अपनी आंखों के नीचे काजल लगाकर अपनी पसंद के अनुसार आंखों के ऊपर पतला या मोटा लाइनर अप्लाई करना होगा. यकीन मानिए मिनटों में आपका लुक चेंज हो जाएगा.

आप चाहें तो इसके लिए मल्टी पर्पस पेंसिल काजल या लाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर जैल फोर्म में भी यूज़ कर सकती हैं . जिसे आप काजल के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती हैं , लाइनर के रूप में भी और बिंदी के लिए भी.  आपको मार्केट में अलगअलग वैरायटी के साथ साथ डिफरेंट कलर्स के लाइनर व काजल मिल जाएंगे, जिन्हें आप अपनी पसंद के अनुसार खरीद कर बढ़ाएं अपनी खूबसूरती को.

2. कैट आई लुक 

कैट आई लुक काफी डिमांड में है, जो न सिर्फ आंखों को खूबसूरत बनाता है बल्कि आपके कोन्फिडेन्स को भी कई गुणा बढ़ाने का काम करता है. वैसे इस लुक को खुद से करना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन एक दो बार प्रैक्टिस करके आप खुद से अपनी आंखों को कैट आई लुक दे सकती हैं.  बस इसके लिए आपको  जैल आई लाइनर, पेंसिल आई लाइनर या वाटरप्रूफ लिक्विड आई लाइनर के साथ  ब्रश की जरूरत होगी, जिससे आप अपनी आंखों को क्लासिक लुक ले पाएंगी.

जब भी आप अपनी आंखों को कैट लुक दें,. तो सबसे पहले ध्यान रखने वाली बात है कि आप ऊपर से व नीचे से विंग की तरह बाहर की तरफ बराबर एक डोट लगा लें, ताकि आपको कैट लुक देने में आसानी हो. फिर ऊपर से बीचोबीच से मोटी लाइन बनाते हुए बाहर की और मिलाएं , फिर नीचे से उसे जोड़े , फिर खाली भाग को डार्क करके बाकी खाली बचे भाग की ओर लाइनर से पतली लाइन बनाएं .  बस आपको स्टेप्स का ध्यान रखना है, मिनटों में  आपको  कैट आई लुक मिल जाएगा. जो आपको खूबसूरत बनाने का काम करेगा.

3. शिमरी आइज़

अगर आप अपने मेकअप को सिंपल रख रही हैं तो आप अपनी आंखों को शिमरी टच देकर ग्लैमरस लुक पा सकती हैं.  क्योंकि ये आपके मेकअप को उभारने का काम करता है. इसके लिए आप सबसे पहले अपनी आंखों के ऊपर तीन एरिया यानि लिड एरिया, क्रीज़ एरिया और ब्रो बोन पर फोकस करके उस पर कंसीलर या फाउंडेशन अप्लाई करें . उसके बाद आप स्किन टोन से मैच करता बेस कोड ब्रश की मदद से लगाएं, ताकि अच्छे से वो ब्लेंड हो सके . अब आप कोई भी मिडटोन लेकर उसे क्रीज़ एरिया पर अच्छे से लगाते हुए फिर लिड एरिया में अच्छे से ब्लेंड करें. अब अपनी आंखों के लोअर लिड एरिया पर कंटूर अप्लाई करें.  फिर इस एरिया पर ग्लिटर ग्लू अप्लाई करें. आखिर में डार्क ग्लिटर लेकर उसे लिड पर आराम से अप्लाई करें.  फिर ब्रश से फिनिशिंग दें. ये आई मेकअप आपकी आंखों के साथसाथ आपके पूरे लुक को मस्त बना देगा.

4. ग्रेडिएंट आइज़ 

इन दिनों ग्रेडिएंट आइज़ काफी चलन में है. तो जब बात फेस्टिवल्स की है तो आप भी इस लुक को अप्लाई कर सकती हैं. इसमें पहले अच्छे से आंखों के ऊपर प्राइमर अप्लाई करके उसे स्पोंज की मदद से ब्लेंड करें. इसके लिए आंखों के शुरू वाले एरिया में लाइट कलर के आईशैडो का इस्तेमाल किया जाता है, उसके बाद बचे एरिया से किनारे तक डार्क आईशैडो का इस्तेमाल करके आंखों को आसानी से  ग्रेडिएंट लुक दिया जा सकता है. इस तरह का लुक पार्टीज में व नाईट मेकअप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.

5. गोल्ड फेस्टिव आइज़ 

ये लुक ब्राउन आंखों वाली लड़कियों व महिलाओं पर खूब जंचता है. साथ ही उन्हें ये यंग लुक देने का काम करता है. इसके लिए आप सबसे पहले ब्राउन आईलाइनर पेंसिल लेकर उससे आंखों के ऊपर क्रीज़ एरिया पर सेमीसर्किल बनाएं. फिर सिर्फ आउटर कार्नर को ही फिल करें. फिर फ्लैट ब्रश की मदद से उसे ब्लेंड करें, ताकि कोई भी हार्श लाइन्स न दिखें. इसके बाद बीच में गोल्डन आईशैडो अप्लाई करके उसे अच्छे से ब्लेंड करें. फिर ऊपर लैशलाइन पर ब्लैक लिक्विड लाइनर से सिंपल विंगड लाइन बनाएं. आखिर में बेहतर रिजल्ट के लिए पलकों पर मस्कारा अप्लाई करें. यकीन मानिए ये लुक आप पर से लोगों की नजरों को हटने नहीं देगा.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 3: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘ओह मां, जब भी घर आती हूं आप यह शादीशादी की रट लगानी शुरू कर देती हो. आगे से मैं आना बंद कर दूंगी. मु झे नहीं करनी शादी. शादी, बच्चे, ससुराल, मायका, मैं ये सब मैनेज नहीं कर सकती. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. मैं बस कमाओ, खाओ, पिओ और मौज करो में यकीन करती हूं और शायद मैं इसी के लिए बनी भी हूं.’

‘पर बेटा, ऐसा नहीं है, शादीब्याह कोई  झं झट नहीं है. शादी तो प्यार का दूसरा नाम है. एकदूसरे के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत होती है. विवाह समाज द्वारा मान्यताप्राप्त है जो आप को एक पार्टनर देता है जिस से एक ओर जहां आप अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करते हो वहीं दुखसुख को बांटते हो और जहां आप अपना सुरक्षित भविष्य प्राप्त करते हो. विवाह करने में ही जीवन का असली सुख है, बेटा,’ मां ने अपना अनुभवयुक्त ज्ञान उसे देने की कोशिश की थी.

‘इन सब दकियानूसी बातों में मु झे यकीन नहीं. यह कहां की तुक है कि एक आदमी को ही पूरी जिंदगी हवाले कर दो.’

मां आगे और भी कुछ बोलना चाहती थीं पर वह उन की बातों को अनसुना कर के कमरे से बाहर चली गई. पहली बार उसे लगा कि वह मां की नजरों का सामना नहीं कर पाई.

सोचतेसोचते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे की घंटी की आवाज से उस की नींद खुली. दरवाजा खोला तो सामने रोनित खड़ा था. कनिका 2 कप कौफी ले आई. और बोली, ‘‘रोनित, अब हम क्या करेंगे?’’

‘‘हां कनु, मु झे भी सम झ नहीं आ रहा. डाक्टर ने प्रैग्नैंसी के साथसाथ और भी तो कितनी बीमारियां बताईं तुम्हें, डायबिटीज, मोटापा, बीपी आदि. और ये बीमारियां तो पूरी जिंदगी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ने वालीं. अब तुम सोच लो, क्या करना है?’’

‘‘क्या करना है, मतलब? जो करना है हम दोनों को करना है,’’ कनिका ने लगभग  झुं झलाते हुए कहा.

‘‘तो क्या करूं, तुम से शादी कर लूं? यह मौजमस्ती तुम ने अपने से की थी. मैं ने तुम्हें फोर्स नहीं किया था. जो तुम मु झ पर अपना गुस्सा निकाल रही हो. जो किया है, अब भुगतो. जिस लड़की ने शादी से पहले ही सबकुछ मु झे सौंपने में तनिक भी संकोच नहीं किया, वह लड़की तो शादी के बाद भी न जाने किसकिस को…’’ कह कर रोनित अपना बैग उठा कर कमरे से बाहर निकल गया. कनिका रोनित के बदले रूप को अचरज से देखती रह गई. निढाल हो कर वह बिस्तर पर गिर गई. उस की आंखों से आंसू बह निकले. तभी फोन की घंटी बजी. उठाया, तो उस की सहेली आयशा थी.

‘‘हैलो कनु, क्या हुआ 2 दिनों से औफिस क्यों नहीं आ रही हो?’’

उस की आवाज सुनते ही कनिका अपनेआप को रोक नहीं सकी और फूटफूट कर रोने लगी. उसे रोता सुन कर आयशा घबरा गई और बोली, ‘‘चल, मैं आधे घंटे में तेरे पास पहुंचती हूं.’’

आधे घंटे में आयशा उस के सामने थी. कनिका के बिखरे बाल, सूजी आंखें और अस्तव्यस्त कपड़े देख कर वह हैरत से बोली, ‘‘क्या हुआ? यह क्या हालत बना रखी है? लग रहा है जैसे महीनों से बीमार है.’’

‘‘आयशा, सब खत्म हो गया. मु झे कुछ सम झ नहीं आ रहा क्या करूं. लग रहा है खुद को ही खत्म कर लूं,’’ कहते हुए कनिका ने रोतेरोते सारी दास्तान आयशा को कह सुनाई.

उस की बातें सुन कर आयशा बोली, ‘‘अच्छा, यह बात है, तभी 2 दिनों से रोनित कुछ अपसैट है और तेरे बारे में पूछने पर भी कुछ नहीं बोला. पर कनु, इस में गलती तो तेरी ही है. मैं ने कितना सम झाया था. पर तु झे तो लिवइन रिलेशनशिप का जनून चढ़ा था. कनु, आजादी और उच्छृंखलता में बहुत बारीक सा अंतर होता है. तू ने तो हमेशा ही आजादी का गलत मतलब निकाल कर मस्ती और ऐयाशी का जीवन जिया है.

‘‘कनु, जिम्मेदारियों से भागना जिंदगी नहीं है. विवाह जिम्मेदारी निभाना नहीं है, बल्कि सम्मानसहित जीवन जीने का नाम है. तू ने चंद जिम्मेदारियों के डर से अपना पूरा जीवन ही दांव पर लगा दिया. अब बता कहां गई तेरी बिंदास और मस्तीभरी जिंदगी और कहां गया लिवइन रिलेशनशिप में साथ देने वाला तेरा वह मस्तीखोर साथी. तेरे साथ दिनरात रहने के बाद भी आज तु झे मुसीबत में छोड़ कर भाग गया न. कनु, कुछ भी हो, अंत में भोगना स्त्री को ही पड़ता है.’’

‘‘आयशा, तू सही कह रही है. आज मु झे इस हालत में छोड़ कर रोनित खुद बड़े आराम से घूम रहा है. फंस तो मैं गई. अब क्या करूं? ऊपर से मु झे ताना दे रहा है कि मैं ने जो किया, अपनी मरजी से किया. ठीक है, मैं ने मरजी से किया, पर क्या इस में रोनित का कोई दोष नहीं?’’ कनिका ने आयशा का हाथ पकड़ कर दर्दभरी नजरों से पूछा.

‘‘कनु, जब हम घर से बाहर आते हैं तो अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे ऊपर स्वयं होती है. भले ही मर्द कितना भी दोषी क्यों न हो, हमारे भारतीय समाज में दोषी स्त्री को ही माना जाता है. अब तेरे पास इस बच्चे को जन्म देने के अलावा चारा भी क्या है. रोनित ने अपने व्यवहार से जता दिया है कि वह अब तु झे पूछेगा भी नहीं,’’ आयशा ने कहा तो कुछ देर तक शांत रहने के बाद कनिका किसी तरह हिम्मत कर के उठी और हाथमुंह धो कर आयशा से बोली, ‘‘तू सही कह रही है. जो मैं ने किया है उसे भोगना तो मु झे पड़ेगा ही. अब इसे जन्म तो देना ही होगा.’’

कनिका ने अगले दिन से औफिस जाना शुरू कर दिया. इस बीच उस ने कई बार रोनित से संपर्क करने का प्रयास किया, परंतु कोई नतीजा नहीं निकला. बाद में उस के साथियों से पता चला कि उस ने दूसरी कंपनी जौइन कर ली है.

9 माह बाद कनिका ने एक खूबसूरत सी बेटी को जन्म दिया. उसे पालने के साथसाथ उस ने एक एनजीओ भी प्रारंभ किया जो अनाथ बच्चों को शिक्षित करने के साथसाथ स्कूल और कालेज जा कर बालिकाओं को उन के कैरियर बनाने की शिक्षा तो देता ही था, साथ ही, महानगरों में रह कर उन्हें कैसे अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है, के प्रति जागरूक भी करता था. वहां वह बालिकाओं को बताती थी कि आजादी का मतलब उच्छृंखलताभरी जिंदगी, अस्तव्यस्त लाइफस्टाइल और ऊलजलूल कपड़े पहनना नहीं, बल्कि अपने विचारों की आजादी है. जिंदगी का असली मजा जीवन में आने वाली चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि उन का सामना करने में है.

फेस्टिवल स्पेशल: जैसा फेस वैसी बिंदी

पहले के समय में हीरोइन तरहतरह के बिंदी लगाया करतीथीं जो किएक ट्रैंड बन जाया करता था.यहां तक की बौलीवुड में कई ऐसे गाने हैं जो सिर्फ बिंदी पर ही फिल्माया गया है. बिंदी की चमक वाकई चेहरे पर चार चांद लगा देती है.आज बिंदी का ट्रैंड फिर से लौट आया है. सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि लड़कियां भी बिंदी की बहुत शौकीन होती है. एथनिक हो या साड़ी दोनों पर ही बिंदी बहुत फबता है.लेकिनआप बिंदी फैशन और चेहरे के शेप के अनुसार लगाएंगी तो आप पर ज्यादा फबेगा. आइएजानते हैं, चेहरे के अनुसार कौन सी बिंदी ज्यादा अच्छी लगेगी.

बिंदी को सिलेक्ट करते वक्त हम सबसे सुंदर बिंदी ही चुनते हैं लेकिन यह सोचना भूल जाते हैंकि वह हमारे चेहरे पर कैसी लगेगी. बिंदी के सुंदर दिखने से ज्यादा जरूरी है आपका चेहरा खूबसूरत दिखे. इसलिए बिंदी हमेशा अपने फेस कट के अनुसार ही लगाएं.

1. जब चेहरा हो गोल

यदि आपका चेहरा गोल है तो गोल बिंदी न लगाएं. गोल चेहरा ज़्यादातर छोटा दिखता है. अगर इस पर आप गोल बिंदी लगाएंगी तो आपका चेहरा और छोटा दिखेगा. कई बार कई महिलाएं चेहरे को बड़ा दिखने के लिए बड़े आकार की गोल बिंदी लगा लेती हैंगोल चेहरे पर लंबी आकार की बिंदी लगा सकती हैं. इससे आपके चेहरे की गोलाई छिप जाएगी और चेहरा लंबा नजर आएगा.

2. ओवल फेस

ओवल फेस शेप में फोरहेड और चिन एक ही अनुपात के होते हैं. इस में गला उभर हुआ होता है.यदि आपका फेस ओवल यानी अंडाकार शेप में है तो आपको ज्यादा सोचनेकी जरूरत नहीं है. ओवल फेस कट वाली महिलाओंपर सभी आकार की बिंदी अच्छी लगती हैं.आप किसी भी फंक्शन या पार्टी में अपनी मनपसंद की बिंदी लगा सकती हैं. ओवल शेप वाली महिलाओं को एक बात ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि अगर आपका माथा चौड़ा है तो आप लंबी बिंदी न लगाएं.

3. जब चेहरा हो हार्ट शेप

चौड़ा माथा, उभरे हुए गाल और नुकीली चीन वाले फेस को हार्ट शेप कहा जाता है.यदि आपका चेहरा हार्ट शेप का है, तो आप छोटी बिंदी लगाएं. छोटी बिंदी आपकी खूबसूरती और बढ़ा देगी.बड़ी बिंदी को अवॉइड करें. इससे माथा बहुत बड़ा दिखाई देगा.

4. जब चेहरा हो त्रिकोण शेप

यदि चिन नुकीली और माथा छोटा हो तो उसे त्रिकोण यानी ट्राएंगल शेप वाला फेस कहते हैं.अगर आपका फेस शेप ट्राएंगल है तो आप पर बिंदी सिलेक्ट करने में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं. आप कोई भी आकार की अपनी मनपसंद बिंदी लगा सकती हैं.

5. जब चेहरा हो स्क्वेयर शेप (चौकोर शेप)

जब माथा, गालों की हड्डियां और जौ लाइन एक बराबर हो तो उसे स्क्वैयर शेप कहते हैं.इसे चौकोर चेहरा भी कहा जाता है.इस चेहरे पर गोल, अंडाकार शेप और वी शेप वाली बिंदी बहुत अच्छी लगती है. बस एक बात का ध्यान रखें कि बिंदी ज्यादा पतली या लंबी न हों.

फेस्टिवल स्पेशल: पहने सिल्क साड़ी और पाए रौयल लुक

राजा-महाराजाओं का समय हो या आज काबदलता फैशन, सिल्क अभी भी लोगो की पहली पसंद है.सिल्क यानी रेशम एक ऐसा रेशा है जिसके बने कपड़े को पहनने के बाद पहनने वाले की खूबसूरती दोगुना निखर जाती है.सदाबाहर फैशन में शामिल सिल्क को महिलाएं हर फंक्शन में पहनना पसंद करती हैं. दरअसल, सिल्क एक ऐसा फेब्रिक है जिसकी खूबसूरती की तुलना  किसी अन्य फेब्रिक से नहीं कर सकते. एक समय था जब सिल्क सिर्फ रईसों के बदन पर ही चमकता था लेकिन 1990 के शुरुआती दौर में सैंडवाश्ड सिल्क के आगमन ने इसे मध्यवर्गीय लोगों तक पहुंचा दिया.इसके बाद सिल्क के क्षेत्र में कई प्रकार के बदलाव देखने को मिलें. सिल्क को अन्य फेब्रिक के साथ मिक्स किया गया, जिससे कृत्रिम फेब्रिक्स को अधिक लोकप्रियता मिलने लगी.

दिलचस्प है इसको बनाने की विधि

सिल्क के परिधानों को तैयार करना बेहद ही दिलचस्प है. इसे रेशम कीट नमक जीव से तैयार किया जाता है. जिसको BombyxMori भी कहा जाता है.यह सिर्फ 1 से 3 दिन तक ही जीवित रहता है.रेशम के कीड़े सिर्फ शहतूत के पत्तेखाते हैं. इन कीडों के भोजन के लिए शहतूत के बाग लगाये जाते हैं. शहतूत के पत्ते तोड़कर कीड़ों को खिलाए जाते हैं. इसे खाने से वे जल्दी बड़े हो जाते हैं. इसे खाते समय इनके मुंह से धागा या रेशा निकलता है जिन्हें यह अपने चारों तरफ लपेट लेते हैं. इस धागे की लम्बाई 1000 से 1300 मीटर तक हो सकती है.इस प्रक्रिया से कीड़ा धागे के गुच्छे में बंद हो जाता है.कीड़े द्वारा धागे से बनाया गया यह गुच्छा ककून कहलाता है .

ककून को गर्म पानी में डाला जाता है जिससे वह धागा या रेशा खुलने योग्य हो जाता है . इसे मशीनों से खोलकर सही तरीके से लपेट लिया जाता है. यह रेशाया धागा ही रेशम सिल्क होता है. इन धागों के इस्तेमाल से रेशम के कपड़े बनाए जाते हैं.आइएजानते हैफैशन डिज़ाइनर रुकसार से सिल्क को सही ढंग से रखने का तरीका, सिल्क की खूबिया और फैशन के बारे में-

तरह-तरह के सिल्क

सिल्क एक ऐसा फेब्रिक है जिसको पाट, पट्टु और रेशम जैसे नामों से भी जाना जाता है.इत्यादि.यह चार प्रकार के होते हैंशहतूत रेशम,तसर सिल्क,मूंगा रेशम,इरी रेशम.

शतूत रेशम का कपड़ा बहुत हल्का और मुलायम होता है. बाजार में अत्यधिक रेशम इसी से तैयार किए जाते हैं. वहीं तसर,मूंगा और इरी जंगलों में पाएं जाते हैं यानी यह वन्य रेशम के श्रेणी में आते हैं.इनके अलावा कई ऐसे सिल्क हैं जो कीटों द्वारा उत्पन्न नहीं होते.

फैशन के मामले में सिल्क का जवाब नहीं

फैशन डिज़ाइनर रुकसार ने बताया- ‘सिल्क हमेशा से ही भारतीय महिलाओं की पसंद रहा है. कोई भी फंक्शन हो महिलाएं साड़ीपहनना ज्यादा पसंद करती हैं. शादी विवाह व अन्य खास अवसर पर सिल्क की साड़ियां खासा मशहूर है और इस खास दिन को यादगार बनाने के लिए महिलाएं सिल्क की साड़ी पहनना पसंद करती हैं.सिल्क की साड़ियां बहुत जल्दी महिलाओं को पसंद आ जाती है. अलग अलग सिल्क में अलग अलग डिज़ाइन आते हैं. कुछ सिल्क की साड़ियां बहुत सिंपल होती है तो कुछ साड़ियां हैवी डिज़ाइन की होती हैं.

कई महिलाओं को पार्टी-फंक्शन में ज्यादा हैवी साड़ी पहनना पसंद नहीं होता. उन महिलाओं के लिए सिल्क की साड़ी सबसे बेस्ट है. सिल्क की साड़ियों के साथ गोल्डन ज्वैलरी बहुत फबती है. यदि साड़ी सिंपल है तो गोल्ड की ज्वैलरी जरूर पहने.सिल्क की साड़ियों में एक नैचुरल चमक होती है जो पहनने वाली की खूबसूरती को और निखार देती है.

लड़कियों के लिए भी बेस्ट है सिल्क

लड़कियां, युवतियां हमेशा कुछ लग दिखना चाहती है. ऐसे में सिल्क की साड़ियां उनके लिए एक बेहतर ऑप्शन है. फ्लावर प्रिंट सिल्क की साड़ी लड़कियों पर बहुत खूबसूरत लगती है. फ्लावर प्रिंट आपको तसर सिल्क में मिल जाएगा. इस लुक को स्टाइलिश बनाने के लिए आप स्लीव लेस ब्लाउज़ ट्राई करें. इसके साथ आप कोई भी हैवी झुमका कैरी कर सकती हैं.

न्यूली मैरेज वुमेन के लिए बेहतर औप्शन

नई शादी शुदा महिलाओं पर सिल्क की साड़ियां चार चाँद लगा देती है. इनके लिए कांचीपुरम, बनारसी सिल्क,भागलपुरी सिल्क बहुत अच्छा औप्शन है. अधिकतर शादियों के समय इन साड़ियों की ख़रीदारी ज्यादा होती है. इन साड़ियों के रंग भी लाल, पीला, हरा, ब्लू शेड के होते है, जो नई दुल्हन पर बहुत सुंदर लगता है.

रोशनी के फेस्टिवल में घोलें सपनों के रंग

आप जब भी किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर में प्रवेश करते हैं, तो सब से पहले आप की नजर उस कमरे की दीवारों पर पड़ती है. और अगर दीवारों का रंग अच्छा लगता है तो उसे ऐप्रिशिएट भी करते हैं.

दरअसल, रंग हमारी आंखों को सब से पहले प्रभावित करते हैं, इसलिए घर में रंगरोगन करवाते वक्त सही रंगों का चुनाव बहुत जरूरी होता है. रंग न सिर्फ व्यक्तित्व को उजागर करते हैं, घर में एक सुकून भरा वातावरण भी बनाते हैं. दिन भर की भागदौड़ के बाद व्यक्ति जब घर लौटता है, तो उसे पूरी तरह से रिलैक्स होना जरूरी होता है ताकि वह अगले दिन के लिए अपनेआप को तैयार कर सके. ऐसे में अगर घर की दीवारों का रंग अच्छा और सुकून देने वाला होता है तो उस से बहुत चैन और आराम मिलता है.

सफेद रंग का क्रेज

मुंबई की नाबार प्रोजैक्ट्स की इंटीरियर डिजाइनर मंजूषा नाबार कहती हैं कि मैं पिछले 24 सालों से इस क्षेत्र में हूं. पहले 90 के दशक में अधिकतर लोग औफ व्हाइट या सफेद रंग ही पसंद करते थे, लेकिन धीरेधीरे लोगों का टेस्ट बदला. उन का ध्यान सफेद से हट कर ब्राइट कलर्स पर ध्यान गया.

रंगों के ट्रैंड में बदलाव पेंट की कंपनियों की वजह से आता है. बड़ीबड़ी कंपनियां हर बार नएनए रंग और उन्हें प्रयोग करने के तरीके बाजार में उतारती हैं, जिन्हें देख कर उपभोक्ता उत्साहित हो कर वैसे ही रंग अपने कमरों में करवाने लगते हैं. लेकिन सफेद रंग का के्रज हमेशा रहा है और रहेगा भी. समयसमय पर कुछ फेरबदल अवश्य होते हैं पर सीलिंग पर सफेद रंग हमेशा सही रहता है.

सफेद रंग से घर बड़ा और खुला दिखता है क्योंकि इस रंग से रोशनी रिफ्लैक्ट होती है. गहरे रंग से तो रोशनी के साथसाथ जगह भी कम दिखती है.

सभी रंगों का महत्त्व

आमतौर पर घरों में रंग उस के क्षेत्र के अनुसार कराए जाते हैं. अगर मुंबई और दिल्ली की हम तुलना करें तो मुंबई के मौसम में नमी अधिक होती है, इसलिए वहां थोड़ा डार्क कलर चलता है, जबकि दिल्ली का मौसम ऐसा नहीं रहता, इसलिए वहां हलके रंग अधिक पसंद किए जाते हैं. लेकिन सभी रंगों का अपना महत्त्व तो होता ही है.

आप अपने घर में रंग करवाते वक्त कुछ बातों पर अवश्य ध्यान दें:

– गहरे रंग डिप्रैशन लाते हैं, इसलिए हमेशा लाइट औरेंज, ग्रीन, सफेद आदि रंगों का प्रयोग करें.

– नई तकनीक के अंतर्गत रिफाइंडमैंट टैक्सचर, वालपेपर, फैब्रिक पेंट, ग्लौसी पेंट और मैट फिनिश आदि अधिक लगाना अच्छा होता है.

– बच्चों के कमरे में प्राइमरी रैड, ग्रीन, यलो और ब्लू कलर अच्छा लगता है, तो बुजुर्गों के कमरे के लिए लाइट पिंक, लाइट ब्लू व लाइट औरेंज कलर अच्छे होते हैं, क्योंकि ये रंग रिलैक्सेशन का एहसास कराते हैं. यंगस्टर्स और नवविवाहितों के लिए वाइब्रैंट कलर अधिक अच्छे रहते हैं. इन में रैड, ग्रीन व औरैंज कलर काफी लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे ऐक्टिव होने का एहसास कराते हैं.

रंगों का चयन

रंगों का चयन तो व्यक्ति के व्यक्तित्व, प्रोफैशन और स्थिति वगैरह को ध्यान में रख कर करना चाहिए, क्योंकि रंगों का व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है.

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कौरपोरेट क्षेत्र के अधिकतर लोग लाइट कलर अधिक पसंद करते हैं तो अध्यापक वर्ग अधिकतर लोग यलो व ग्रीन कलर पसंद करते हैं. व्यवसायी अपने स्टेटस के हिसाब से रंग चुनते हैं, तो अधिकतर फिल्मी लोग सफेद रंग ही पसंद करते हैं. बुद्धिजीवी लोग अधिकतर ‘अर्थ कलर’ करवाते हैं.

रंगों की पसंदनापसंद के अलावा जरूरी बात यह है कि घर को घर के जैसा ही रहने देना चाहिए. उसे आर्टिफिशियल नहीं बनाना चाहिए. घर को हमेशा वैलकमिंग होना चाहिए.

प्रोजैक्ट- भाग 2: कौन आया था शालिनी के घर

अगले दिन सुबह किचन में खटपट की आवाज से शालिनी की आंख खुली, तो चैंक गई. किचन में जा कर देखा तो हमेशा देर से उठने वाला समीर आज नहाधो कर नाश्ता बनाने लगा है.

‘क्यों मैडम पूरे 3 घंटे लेट उठी हो. लगता है, कल रात कुछ ज्यादा ही मेहनत कर ली थी,‘ शालिनी को देख कर समीर बोला.‘मेहनत न करती तो तुम्हारा प्रोजैक्ट कैसे पूरा होता.‘

‘मैं इस मेहनत की नहीं उस मेहनत की बात कर रहा हूं,‘ यह सुन कर शालिनी शरमा कर बाथरूम की ओर चल दी.जब तक वह बाहर निकली, तब तक समीर नाश्ता कर चुका था. और आज शाम थोड़ी देर से आने की कह कर वह औफिस के लिए निकल गया.

औफिस पहुंच कर जब उस ने मीटिंग में बौस के सामने अपना प्रोजैक्ट पेश किया, तो बौस ने बाहर से आए उन अफसरों के सामने उस प्रोजैक्ट को रखा.

कुछ देर की बातचीत, जांचपरख और नफानुकसान देखने के बाद समीर के उस महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट को सलैक्ट करने का डिसीजन ले लिया गया.

बौस ने उसे अगले ही दिन लखनऊ से नोएडा जाने का टिकट थमाते हुए कहा, ‘2 दिन बाद कंपनी के हैड औफिस नोएडा में एक मीटिंग है, जिस में तुम्हें देशविदेश से आए लोगों के सामने इसी प्रोजैक्ट को एक बार फिर से पेश करना होगा. यह लो टिकट. कल दोपहर 3 बजे की ट्रेन है. अब तो दोदो पार्टियां बनती हैं.‘

‘जी सर जरूर, लौट के आने पर 2 नहीं 4 पार्टियां दे दूंगा एकसाथ,‘ समीर खुशीखुशी बोला.घर पहुंच कर समीर ने शालिनी को यह खुशखबरी दी. इस प्रोजैक्ट में उस ने भी तो अपना सहयोग दिया था. यह सुन कर वह भी बहुत खुश हुई. समीर ने जब बताया कि कल वह 2 दिन के लिए दोपहर 3 बजे की ट्रेन से कंपनी के काम से नोएडा जा रहा है, इसलिए पैकिंग कर देना. तब से शालिनी पैकिंग में जुट गई.

अगले दिन समीर शालिनी को काम खत्म होते ही जल्द लौट आने का वादा कर के निश्चित समय पर स्टेशन की ओर घर से निकल गया.

लेखक-पुखराज सोलंकी

शाम 4 बजे के आसपास शालिनी किचन में चाय बना रही थी कि डोरबेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा, तो वह भौचक्की रह गई. सामने वही 2 अफसर खड़े थे, जो थिएटर में समीर के बौस के साथ मौजूद थे. उन्हें हिलते हुए देख शालिनी को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि वे दोनों शराब के नशे में हैं. वह तो उन्हें बाहर से ही रवाना करने वाली थी, लेकिन वे अंदर आ गए तो उस ने उन्हें अनमने मन से बैठने की कह कर खुद किचन में चली गई.

जब शालिनी चाय ले कर आई, तो उन्हें चाय का कप पकड़ाते हुए पूछा, ‘समीर ने बताया नहीं कि आप आने वाले हो, और आप ने घर कैसे पहचान लिया? आप तो किसी दूसरे शहर ‘दरअसल, उस दिन हम लोग थिएटर से लौटते समय इसी रास्ते से हो कर गए थे, तो बौस ने ही हमें बताया था कि यह समीर का घर है. बस इसीलिए इधर से गुजरते हुए सोचा कि आप को बधाई देते चलें,‘ एक अफसर बोला.

‘वैसे, आप का बहुतबहुत धन्यवाद, जो आप ने समीर के प्रोजैक्ट को सलैक्ट किया. बहुत मेहनत की है उस ने इस पर,‘ शालिनी उन का अहसान जताते हुए बोली.‘अजी सलैक्ट तो उसी दिन कर लिया था जब आप को थिएटर में पहली दफा देखा था,‘ दूसरा अफसर बोला.

‘क्या मतलब…?‘ शालिनी तपाक से बोली‘जी, सच कहा है. जिसे ले कर वह गया है, वह तो कंपनी का प्रोजैक्ट है, लेकिन हमारा प्रोजैक्ट तो आप ही हो न भाभीजी,‘ कहते हुए उस ने शालिनी के हाथ पर झपट्टा मारा.

अब तक शालिनी उन की मंशा अच्छी तरह समझ चुकी थी. उस ने झटक कर अपना हाथ छुड़ाया और सीधे बाहर की ओर भागी. वे लड़खड़ाते हुए दरवाजे तक पहुंचे, तब तक शालिनी ने बाहर की कुंडी लगा कर उन्हें घर में बंद कर दिया.

बाहर निकल कर शालिनी ने मदद के लिए दाएंबाएं देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. मोबाइल भी घर के अंदर छूट गया. तभी उसे सामने से एक आटोरिकशा आता दिखा, वह उस ओर दौड़ी. आटोरिकशा जब उस के पास आ कर रुका, तो वह भौंचक्की रह गई. उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन ये सच था.

उस आटोरिकशा में समीर ही बैठा हुआ था. शालिनी को इस हालत में देख समीर कुछ समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है. शालिनी ने उसे सारी बात बताई और उस के वापस लौट आने की वजह भी पूछी, तो समीर ने कहा, ‘स्टेशन पहुंचने पर मुझे मालूम चला कि गाड़ी 3 घंटे देरी से चल रही है, इसीलिए सोचा कि यहां भीड़भाड़ में रहने से अच्छा है, घर पर ही आराम किया जाए. खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है,‘ कह कर उस ने मोबाइल निकाला और अपने बौस को फोन लगा कर इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया.

‘तुम लोग बाहर ही रुके रहो समीर, मैं जल्दी ही वहां पहुंचता हूं,’ कह कर बौस ने फोन रखा. उधर वे दोनों अफसर भद्दी गालियां देते हुए अंदर से लगातार दरवाजा पीट रहे थे. कुछ देर बाद सामने से बौस की कार आती दिखाई दी. पीछेपीछे पुलिस की जीप भी आ रही थी.

जब कार पास आ कर रुकी, तो बाहर निकल कर बौस ने कहा, ‘घबराओ मत समीर. ऐसे लोगों की अक्ल ठिकाने लगाना मुझे अच्छे से आता है. ये लोग समझते हैं कि अनजान शहर में हम कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों के पर मुझे अच्छे से काटने आते हैं. पुलिस को मैं ने ही फोन किया है.’

पुलिस की जीप आ कर रुकी, तो झट से 4-5 पुलिस वाले बाहर निकले. समीर ने अपने घर की ओर इशारा किया, जिस में से उन दोनों अफसरों की भद्दी गालियों की आवाज आ रही थी. पुलिस ने दरवाजा खोला और उन दोनों को वहीं पर ही दबोच लिया और ले जा कर जीप में बिठाया.

बौस ने समीर से कहा, ‘शालिनी बेटी ने एक काम तो अच्छा किया कि इन्हें घर में बंद कर दिया, वरना आज अगर ये भाग जाते तो इन को पकड़ पाना थोड़ा मुश्किल होता, क्योंकि आज रात 9 बजे की फ्लाइट से ये दोनों मुंबई जाने वाले थे.‘

बौस ने आगे कहा, ‘दरअसल, गलती मेरी ही है, उस दिन थिएटर से लौटते  वक्त हम लोग इधर से गुजर रहे थे, तो मैं ने यों ही इन्हें कह दिया था कि हमारे औफिस में आप के सामने जो अपना प्रोजैक्ट पेश करेगा, उस समीर का घर यही है. लेकिन मुझे क्या पता था कि ये लोग शराब के नशे में अपना विवेक भूल कर ऐसी नीच हरकत कर बैठेंगे. इन्हें सिर्फ पुलिस को सौंपने से कुछ नहीं होगा. जब तक दोनों को नौकरी से न निकलवा दूं, मैं चैन की सांस नहीं लेने वाला. खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है.

‘तुम लोग आओ, मेरी गाड़ी में बैठो. थाने चल कर शालिनी के बयान दर्ज करवाने हैं.‘

कुछ यों मनाएं मैरिड लाइफ का जश्न

पिछले एक विश्व पुस्तक मेले में पोलैंड गैस्ट औफ औनर देश रहा. पोलैंड पैवेलियन पर हिंदी बोलते लोग बहुत आकर्षित कर रहे थे. ऐसा नहीं था कि कुछ शब्द ही उन्होंने याद कर रखे थे, बल्कि वे दिल से धाराप्रवाह हिंदी बोल रहे थे. वहीं की एस कुमारी याहन्ना ने बताया कि भारत की परंपराओं और पारिवारिकता का पोलैंड में बहुत सम्मान है. भारत ने पोलैंड को द्वितीय विश्व युद्ध में इस का परिचय भी दिया. इस विश्व युद्ध में अनाथ हुए 500 बच्चों को भारत ने अपने यहां पाला. इस बात का बहुत सम्मान है. पोलैंडवासी जब भी कभी बलात्कार, भू्रण हत्या, दरकते दांपत्य या ऐसे ही पारिवारिक मूल्य विघटन की भारतीय खबर पढ़तेसुनते या देखते हैं तो उन्हें बहुत दुख होता है.

सुदीर्घ दांपत्य का जश्न

60 के दशक से पोलैंड में वैवाहिक जीवन की स्वर्ण जयंती मनाने वाले जोड़ों को राष्ट्रपति मैडल से सम्मानित किया जाता है. यह आयोजन पोलैंड की राजधानी में होता है परंतु पोलैंड के और भी कई शहरों में इस प्रकार के आयोजन की परंपरा है.

इस अवसर पर पोलैंड की राजधानी में काफी गहमागहमी रहती है. रुपहले रंग के मैडल पर, प्यार के प्रतीक गुलाब के परस्पर लिपटे और गुलाबी रिबन से बंधे फूल होते हैं, जो दंपती के प्यार के प्रतीक होते हैं. रैड कारपेट पर चलते दंपती इस सम्मान को ग्रहण कर के बहुत गौरवान्वित अनुभव करते हैं.

आसान नहीं इतना लंबा साथ

अर्द्ध शताब्दी का साथ कम नहीं होता. इस के लिए स्नेह, सम्मान, स्वस्थता, समर्पण आदि तमाम गुणों की आवश्यकता होती है.

रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना से जब हम ने पूछा कि जोड़ों में तालमेल कैसे आए कि हर जोड़ा इस तरह का सफल दांपत्य जीवन पा सके? तो इस पर उन का कहना था कि बच्चों का पालनपोषण अच्छी पेरैंटिंग से हो. वे बच्चों को होशियार, इंटैलिजैंट बनाने के साथ ही परिपक्व बनाएं. आजकल हर कोई अपने फायदे से रिश्ते बनाता है. पहले यह बात बाहर वालों के लिए थी, परंतु अब निजी, आपसी तथा घरेलू संबंधों में भी यह बहुत घर करती जा रही है. इस से रिश्तों में छोटीछोटी बातों को ले कर तनाव, क्रोध, खीज, टूटन, तलाक आदि बातें कौमन होती जा रही हैं. पहले औरतें दब जाती थीं. पति को परमेश्वर मान लेती थीं पर अब बदलते जीवनमूल्यों में उन्हें दबाना आसान नहीं रहा.

हमारे यहां भी है यह परंपरा

शादी की रजत जयंती एवं स्वर्ण जयंती मनाने का चलन पिछले कुछ वर्षों से काफी जोर पकड़ता जा रहा है. नडियाद, गुजरात के एक दंपती ने बताया कि 52 साल पहले गांव में हमारी शादी हुई. हमें पुराने रीतिरिवाजों का पालन करना पड़ा. परंतु शादी की स्वर्ण जयंती में हम ने अपनी नई हसरतें पूरी कीं. हम शादी के रिसैप्शन में नए जोड़ों की तरह बैठे और खूब फोटो खिंचवाए. एकदूसरे को वरमाला भी पहनाई. दूरदूर के रिश्तेदार तथा मित्रगण आए. हम उत्साह से भर गए. नईपुरानी पीढ़ी के अंतर मिट गए. पर हमारे यहां ऐसे आयोजनों में दिखावा बढ़ रहा है, इस पर लगाम कसनी जरूरी है.

कौरपोरेट हाउस का एक जोड़ा कहता है कि हम ने आपस में ही दोबारा विवाह किया. हम अपनी पहले की तलाक लेने की गलती पर शर्मिंदा हैं. हम ने आपसी सहमति से तलाक ले तो लिया, परंतु दोनों ही बिना शादी लंबे समय तक रहे. एक वक्त ऐसा आया कि एकदूसरे को मिस करना शुरू किया. न हमारे पास पैसे की कमी थी, न घर वालों का दखल और न ही निजी संबंधों की दूरी, फिर भी छोटीछोटी टसल, क्रोध प्रतिशोध जैसी भावनाएं हावी थीं. फिर दोनों सोचते थे जब कमाते हैं किसी पर निर्भर नहीं, तो क्यों झुकें और सहें? इसी में हम भूल गए कि सिर्फ कागजी रुपयों या सुख के साधनों से खुशी नहीं आती. तब हम औपचारिक तौर पर मिले फिर काउंसलिंग ली और दोबारा ब्याह किया. घर वालों ने खूब खरीखोटी सुनाई. हम ने शादी के 26वें साल का फंक्शन किया और उस में अपनेअपने अनुभव सुझाए. इतना ही नहीं हम ने अपनी गलतियां कबूलीं और एकदूसरे की खूबियां भी मन से बखानीं. जोड़ों से अनुभव सुने.

एक कर्नल कहते हैं कि हम ने जीवन में बहुत जोखिम व रिस्क देखे. 2 युद्धों में सीमा पर गया. अत: जीवन में परिवार और खुशियों का मोल बेहतर तरीके से जान सका. मेरी पत्नी ने शुरुआती दौर में मेरे बच्चे अकेले पाले. मैं ने हमेशा उन को सामाजिक फंक्शंस में थैंक्स कहा.

इन की पत्नी कहती हैं कि ये उत्सवप्रिय हैं. मांबाप की शादी की 50वीं सालगिरह में 50 जोड़ों को आमंत्रित किया था. मैं 40 की हुई तो ‘लाइफ बिगिंस आफ्टर पार्टी’ शीर्षक से पार्टी दी. हाल ही में अपने गांव व खेत में इन्होंने गंवई स्टाइल में अपना 60वां जन्मदिन ‘साठा सो पाठा’ शीर्षक से मनाया.

परिपक्वता का दौर

शादी के शुरुआती दिन व्यस्तता, अपरिपक्वता और अलगअलग स्वभाव से भरे होते हैं. पर बाद के दिन काफी सैटलमैंट वाले होते हैं. सिंघल दंपती कहते हैं कि एक समय हम मुंबई में स्टोव पर मां से रैसिपीज पूछपूछ कर खाना बनाते थे. 50वीं सालगिरह तक हमारे सब बच्चे सैटल हो गए तो हम ने पूरे यूरोप का ट्रिप किया. कहां तो कूलर तक के पैसे न थे. हम चादर गीला कर के गरमी की रातें काटते थे. अत: हम ने पुराने दिनों का जश्न जरूरत की चीजें डोनेट कर के भी मनाया. शादी की 50वीं सालगिरह के जश्न ने हमें यह बोध कराया कि असली जीवन क्या है. हम ने जीवन में क्या पाया, क्या खोया. अच्छी मेहनत, प्यार भरा साथ, दुख, संघर्ष, दूरी आदि जीवन को कितना कुछ देते हैं. सच पूछो तो हम ने अपने जीवन की खुशियों का इस फंक्शन के माध्यम से अभिनंदन किया.

तनमनधन का तालमेल जरूरी

दांपत्य जीवन में उम्र के साथ जरूरतें और भावनाएं भी अलग रुख लेती हैं. एक जोड़ा कहता है कि शुरूशुरू में बहुत झगड़ते थे. शायद ही कोई ऐसी बात हो जिस पर बिना लड़ाई हमारी सहमति बन जाती रही हो. एक बार पत्नी गुस्से में 5 दिन तक बच्चे को मेरे पास छोड़ कर चली गई. तब मैं ने बच्चे को पाला तो मेरी हेकड़ी ठिकाने आ गई. मैं ईगो भूल कर इन के घर चला गया तो मैं ने पाया ये भी सब भूल गई हैं. तब से हम ने सोचा हम लड़ेंगे नहीं. वह दिन है और आज का दिन है, मन के प्यार के बिना तन के प्यार का मजा नहीं और धन के बिना दोनों ही स्थितियां अधूरी हैं. अत: मैं ने घर की शांति से बिजनैस भी ढंग से किया. पैसा भी सुखशांति के लिए जरूरी है पर सुखशांति को दांव पर लगा कर कमाया पैसा निरर्थक लगता है. यही बात हम हर जोडे़ को समझाते हैं. छोटीछोटी खुशियां पाना सीखना चाहिए. बड़ी खुशियों का रास्ता बनाने में छोटीछोटी बातों का कारगर योगदान रहता है.

अन्य देशों में भी है ऐसी परंपरा

विवाह संस्था सभ्य समाज की सब से पुरानी संस्था है, जो सम्यक रूप से सृष्टि और दुनिया को चलाती है. आमतौर पर अच्छे दांपत्य संबंधों को हम अपने या एशियाई देशों की धरोहर मानते हैं परंतु अच्छी बात, परंपरा व संस्कारों का पूरी दुनिया खुले मन से स्वागत करती है.

हमारे यहां पाश्चात्य देशों के पारिवारिक मूल कमजोर माने जाते हैं. फ्री सैक्स के चलते समाज को मुक्त एवं उच्छृंखल समाज मान लेते हैं. परंतु वहां ऐसा नहीं है कि उन की पारिवारिक मूल्यों में आस्था न हो. हां, यह जरूर है कि वहां शादी को निभाने का आग्रह, दुराग्रह अथवा थोपन नहीं है, न ही अन्य रिश्तेदारों का इतना दखल कि उन की चाहत, अनचाहत का शादी के चलने, न चलने पर असर पड़े. वहां 7 पुश्तों के लिए धन जोड़ना और अपना पेट काट कर औलाद को मौज उड़ाने देने का रिवाज नहीं है, लेकिन वहां भी अच्छी शादी चलना प्रशंसनीय कार्य माना जाता है. चुनावी उम्मीदवार का पारिवारिक निभाव उस की इमेज बनाता है. जो घर न चला सका वह देश क्या चलाएगा की मान्यता पगपग पर देखी जाती है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा अपनी पत्नी व बच्चों के साथ छुट्टियां बिताते देखे जाते हैं.

अमेरिका में शादी का गोल्डन जुबली मनाने पर जोड़ों को व्हाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से बधाई संदेश भेजा जाता है. इंगलैंड में भी शादी के 60 वर्ष पूरे होने पर महारानी की ओर से बधाई भेजी जाती है.

यदि जरूरी हो

यकीनन विदेशों में राष्ट्र के प्रथम नागरिक और गणमान्यों द्वारा दांपत्य का यह अभिनंदन देखसुन कर हमारी भी इच्छा होती है. कि हमारे देश में भी ऐसा हो. लेकिन यह सब हमारे यहां राष्ट्रपति चाहें तब भी इतना आसान नहीं है, क्योंकि विवाह का पंजीकरण पूरी तरह नहीं होता. कई जोड़े तो ऐसे हैं जिन्हें अपने विवाह तथा जन्म की सही तिथि तक पता नहीं है.

यदि विधिवत पंजीकरण किया जाए तो संबंध विभाग ऐसे जोड़ों का अपनेअपने शहर में अभिनंदन कर सकता है. इसी तरह मृत्यु पंजीकरण भी पुख्ता हो ताकि सही सूचना के अभाव में स्थिति गड्डमड्ड न हो जाए. इसी प्रकार स्वस्थ और चलताफिरता जीवन भी ऐसे मौकों को ज्यादा ऊर्जा व जोश से भरता है, जिस में जीवन बोझिल तथा पीड़ादायक न हो. अन्यथा मजबूरी या सिर्फ दिनों की संख्या उस का उतना तथा वैसा लुत्फ नहीं उठाने देती, जिस के लिए मन मचलता है या उत्साही रहता है.

कसक- भाग 1: क्या प्रीति अलग दुनिया बसा पाई

‘‘मैंअपनी कार से जैसे ही घर के आंगन में घुसा मेरी नजर बोगनवेलिया पर पड़ी. सच कितना मनमोहक रंग था. उस का खिलाखिला सा चटक रानी कलर, कितना खूबसूरसूत लग रहा था. फिर एक ठंडी हवा का झंका प्रीति की याद दिला गया…

लाख कोशिश करने पर भी उसे भुला पाना आसान नहीं. उस ने बौटनी विषय (वनस्पति शास्त्र) में एमएससी की थी. तभी तो उसे पेड़पौधों का बहुत ज्ञान था. हर पौधे के बारे में वह बताती रहती थी कि आरुकेरिया लगाना हो तो जोड़े में लगाना चाहिए.

लेकिन एक पौधा ही उस का बहुत महंगा आता था. मैं ने कहा था कि यदि शौक पूरा करना है तो एक ही ला कर लगा लो. उस ने सामने लान में कई रंगों के गुलाब ला कर लगा ये थे जो उस घर में आज भी उस की शोभा बढ़ा रहे थे. उस के बाद उस ने बहुत ही खूबसूरसूत और दुलर्भ पौधे मंगवा कर लगवा ये जिन के बारे में मैं जानता भी नहीं था.

वह कहती थी, ‘‘युक्लिपटिस तो घर में कभी भूल कर भी मत लगा न… उस की जड़ें जमीन का सारा पानी सोख जाती हैं और उसे देखने के लिए गरदन पूरी ऊपर करनी पड़ती है,’’ और वह अपनी गरदन पूरी ऊपर कर के बताती.

प्रीति की उस अदा पर हंसी आ जाती थी. मैं मन ही मन सोचता कि कब तक उसे याद कर के पलपल मरता रहूंगा? मुझे उसे भूल जाना चाहिए. मगर दूसरे ही पल मन ही मन सोचता कि उसे भूल जाना इतना आसान नहीं है.

घर में घुसने से पहले ही मन उदास हो  गया. घर के बाहर जो मेरी नेम प्लेट लगी थी, वह भी उसी ने बनवाई थी और उसे देख कर कहा था कि वाह मोहित सिंहजी आप तो बड़े रोबदार लग रहे हो.

उस दिन रविवार था. किताबों की अलमारी साफ किए बहुत समय हो गया था. सो मैं ने यह निश्चय किया कि बहादुर को कह दूंगा, उसे जब समय मिलेगा, वह अपने हिसाब से इस की सफाई कर देगा. लेकिन बहादुर इस की सफाई करे उस के पहले कुछ बेकार किताबों  को रद्दी में निकालने के लिए उन्हें एक बार देख लेना चाहिए, यह सोच कर मैं ने किताबों की अलमारी खोली और किताबें निकालने लगा.

2 पुरानी किताबों के बीच में से एक खूबसूरत सा कार्ड निकला, जिस पर लिखा था ‘मोहित वैड्स प्रीति.’ यह कार्ड भी उस ने ही पसंद किया था. कहने लगी थी कि अगर तुम्हें भी पसंद हो तो इस में हम लाल रंग की जगह हलका गुलाबी और सुनहरी रंग करवा दें.

आज भी वह शादी का कार्ड ज्यों का त्यों था और मुंह चिड़ा रहा था कि तुम जो इतना अपनी मुहब्बत का दम  भरते थे, उस का क्या हुआ.

सच, वह प्रेम विवाह था या पारंपरिक विवाह, कोई कह नहीं सकता था. मैं ने प्रीति को देखा, वह मुझे इतनी पसंद आ गई कि यह चाहत प्रेम में कब बदल गई पता ही नहीं चला. फिर भी यह कहना गलत होगा कि यह प्रेम विवाह था. मैं ने घर वालों की रजामंदी से सभी रिश्तेदारों के बीच हिंदू संस्कारों को पूरा करते हुए पारंपरिक तरीके से यह विवाह किया था.

प्रीति दुलहन के रूप में घर आई. इतनी खूबसूरसूत बहू पा कर सभी खुश थे. प्रीति को जैसे कुदरत ने स्वयं अपने हाथों से बनाया हो. जो भी उसे देखता मुग्ध हुए बिना नहीं रहता था. बोलती तो जैसे वातावरण में मधुर संगीत बज उठता, चलती तो जैसेजैसे धरतीआसमान मंत्रमुग्ध हो देखने लगते. रूप ऐसा कि हाथ रख दो तो मैली हो जाए. गुणों की खान थी वह. ऊपर से सुरुचिपूर्ण रहनसहन उस की सुदरता में चार चांद लगा देता था.

वह कालेज में व्याख्या के पद पर 2 साल से कार्यरत थी. मुझे तो लगता था जैसे मुझे मनमांगी मुराद मिल गई हो. शादी से पहले मैं ने न जाने कितनी लड़कियां देखी थीं, परंतु हर बार यह कह कर टाल दिया कि इसे देख कर मन के शिवालय में घंटी नहीं बजी. जब प्रीति को देखा तो मेरे मनमंदिर में मधुर घंटियां बज उठी थी. कितनी लड़कियों की तसवीरें देखी, लेकिन कोई मन के अलबम में फिर नहीं हुई, लेकिन प्रीति मन में ऐसी बसी कि फिर किसी लड़की की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा.

मुझे आज भी याद है वह शादी का दिन, उस के साथ बीते वे मधुर क्षण, कितनी कोमल, कितनी प्यारी, कितनी अच्छी थी प्रीति. शादी के कुछ महीने मुहब्बत की बातें करते, घूमतेघूमते पलक झपकते ही निकल गए. उन दिनों प्रीति के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था. मैं ही नहीं सारे घर वाले खासकर के मम्मीपापा भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. ऐसा कुछ विशेष था उस में जो हर किसी को दीवाना बना देता था.

मुझे भी मेरे सभी दोस्त छेड़ते थे कहते कि देखो इस ने तो भाभी पर मोहित हो कर अपना नाम सार्थक कर लिया.

शादी के बाद मुश्किल से 6 महीने बीते होंगे कि मेरी पोस्टिंग देहरादून हो गई. मैं प्रीति को ले कर देहरादून आ गया. उस ने अपनी नौकरी से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली. मैं ने तब भी बहुत समझया था, ‘‘मेरी तो जगहजगह पोस्टिंग होती रहेगी? तुम छुट्टी कब तक लेती रहोगी. यह नौकरी छोड़ दो और आराम से मेरे साथ चल कर रहो.’’

मगर उस समय वह मेरी बात टाल गई. बात आईगई हो गई और हम वहां पहुंच गए. वहां मुझे बंगला मिल गया. हम दोनों ने अपने घर को मनचाहे रूप में सजाया. कई प्लान बनाए. ऐसे करेंगे, वैसे करेंगे, यह होगा, वह होगा और न जाने क्याक्या सोचते रहते थे. हंसतेखिलखिलाते, हाथों में हाथ डाले जीवन के वे सुहाने पल पंख लगा कर उड़ गए.

उस समय मैं अपनेआप को दुनिया का सब से खुशहाल इंसान समझने लगा था. यहां आने के बाद मैं उसे अपने से दूर भेजना नहीं चाहता था. मैं चाहता था वह सदा मेरी बांहों के घेरे में रहे. हर पल मेरे घर को महकाती रहे. तो इस में मैं ने क्या गलत चाहा था.

हर पति अपनी पत्नी को इसी तरह चाहता है. मैं ने उस से कहा भी था कि मेरी इतनी अच्छी नौकरी है, सब सुखसुविधाएं हैं, तुम अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर यहीं रहो या यहां के कालेज में जौब कर लो.

मुझे लगा वह मान गई. फिर मैं निश्चिंत हो गया. मैं तो यही सोचता था कि लड़कियां तभी नौकरी करती हैं जब वे जीवनयापन के लिए मजबूर हो जाती हैं.

प्रीति ने मुझ से झठ बोला. उस ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया बल्कि अपनी छुट्टियां बढ़ा ली थीं. मुझे लगता था कि वह मेरे साथ खुश है. उस ने यहां आ कर जाना कि यहां जिंदगी कितनी अलग है. यहां एक औफिस क्लब था, जिस का मैं भी सदस्य था. वहां पार्टियां होती रहती थीं. उसे पार्टियों में जाना अच्छा लगता था.

सिरफिरे आशिक के पागलपन की शिकार मासूम अंकिता

झारखंड के दुमका में रह रही अंकिता 12 वीं कक्षा की छात्रा थी. अंकिता का लक्ष्य पुलिस अधिकारी बनना था. उसकी उम्मीदें उस दुर्भाग्यपूर्ण रात में धराशायी हो गईं जब 23 अगस्त को उसके कथित शिकारी, जिसे शाहरुख के रूप में पहचाना गया है, ने उसे आग लगा कर मारने की कोशिश की. इसी के कारण घायल ने रविवार, 28 अगस्त को दम तोड़ दिया.

उन्नीस वर्षीय अंकिता एक गर्ल्स स्कूल की छात्रा थी. बचपन में कैंसर के कारण अपनी मां को खोने के बाद, अंकिता के परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. सूत्रों ने पुष्टि की कि उसके पिता की आय प्रति दिन २०० रुपये थी और इस स्थिति के कारण, अंकिता छात्रों को ट्यूशन भी पढ़ाती थीं.

आखिर ऐसा क्या हुआ अंकिता के साथ की उसको ये सब सहना पड़ा?

अंकिता ने अपनी मौत के कुछ घंटे पहले पुलिस को बताया कि आरोपी शाहरुख ने करीब 10 दिन पहले उसको फोन किया था और उसे अपना दोस्त बनने के लिए उकसाया था.

“उसने मुझे सोमवार (22 अगस्त) को रात 8 बजे फिर से फोन किया और मुझसे कहा कि अगर मैंने उससे बात नहीं की तो वह मुझे मार डालेगा. मैंने अपने पिता को धमकी के बारे में बताया, जिसके बाद पिताजी ने मुझे आश्वासन दिया कि वह उस लड़के से अगले दिन सुबह बात करेंगे”

“रात का खाना खाने के बाद, हम सो गए. मैं दूसरे कमरे में सो रहा थी. मंगलवार की सुबह, मुझे अपनी पीठ में दर्द महसूस हुआ और कुछ जलने की गंध आ रही थी. जब मैंने अपनी आँखें खोली तो मैंने उसे भागते हुए देखा. मैं दर्द से चिल्लाई और मेरे पिताजी के कमरे में चली गई. मेरे पिता ने आग बुझाई और मुझे अस्पताल ले आए.”

शाहरुख को झारखंड पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और हैरानी की बात तो यह है कि सामने आईं कुछ तस्वीरों में शाहरुख पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद मुस्कुराता हुआ नज़र आ रहा है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो को देखकर ऐसा लग रहा है कि कातिल को अपनी हरकत पर कोई पछतावा नहीं है. उसके चेहरे पर न तो कोई शिकन है और न ही अफसोस.

आरोपी की यह हरकत यही दर्शाती है कि वह कितना असंवेदनशील है और पुरुष महिलाओं के प्रति कितने असंवेदनशील रहे हैं. गहरे पक्ष में, ऋग्वेद के समय से ही हमारे देश में पितृसत्तात्मक व्यवस्था जारी है‌ जहां पुरुषों द्वारा पुरुषों के पक्ष में रीति-रिवाज और मूल्य बनाए गए थे. महिलाएं तो बस इस भेदभाव को चुपचाप सहती रहीं हैं और ऐसी परिस्थितियों में शिकार बनती रही हैं.

फातिमा बीबी: 10 साल बाद भी क्यों नहीं भुला पाई वह

राजपूताना राइफल्स के मुख्यालय में अपने केबिन में बैठे कर्नल अमरीक सिंह सरकारी डाक देख रहे थे. एक पत्र उन की नजरों में ऐसा आया जो सरकारी नहीं था. वह एक विदेशी और प्राइवेट पत्र था. पत्र पर लगे डाक टिकट से उन्होंने अनुमान लगाया कि या तो यह पत्र किसी गल्फ देश से है या पड़ोसी देश पाकिस्तान से. उर्दू में लिखे शब्दों से यही लगता था. उन्हें इन देशों से पत्र कौन लिख सकता है, अपने दिमाग पर जोर देने पर भी उन्हें दूरदूर तक ऐसा कोई अपना याद नहीं आया, जो विदेश में जा कर बस गया हो.

पत्र खोला तो वह भी उर्दू में था. वे जब पहली क्लास में स्कूल गए थे तो पंजाब के स्कूलों ने उर्दू पढ़ाना बंद कर दिया था. पत्र में क्या लिखा है, वे कैसे जान पाएंगे. दिमाग पर जोर दिया कि उन की रैजिमैंट में ऐसा कौन है जो उर्दू पढ़नालिखना जानता हो. अरे, हां, कैप्टन नूर मुहम्मद, वह अवश्य उर्दू जानता होगा. मुसलमान होने के साथसाथ वह लखनऊ का रहने वाला है जहां उर्दू खासतौर पर पढ़ी और लिखी जाती है.

उन्होंने घंटी बजाई. केबिन के बाहर खड़ा जवान आदेश के लिए तुरंत हाजिर हुआ.

‘‘कैप्टन नूर मुहम्मद से कहिए, मैं ने उन को याद किया है.’’

जवान आदेश ले कर चला गया. थोड़ी देर बाद कैप्टन नूर मुहम्मद ने कर्नल साहब को सैल्यूट किया और सामने की कुरसी पर बैठ गए.

कर्नल साहब ने उन की ओर देखा और पत्र आगे बढ़ा दिया.

‘‘आप तो उर्दू जानते होंगे? आप इसे पढ़ कर बताएं कि पत्र कहां से आया है और किस ने लिखा है?’’

‘‘जी, जरूर. यह पत्र लाहौर, पाकिस्तान से आया है और लिखने वाली हैं कोई बीबी फातिमा.’’

‘‘ओह.’’

‘‘सर, आप तो पाकिस्तान कभी गए नहीं, फिर फातिमा बीबी को आप कैसे जानते हैं?’’

‘‘सब बताऊंगा, पहले पढ़ो कि लिखा क्या है.’’

‘‘जी, जरूर. लिखा है, कर्नल अमरीक सिंह साहब को फातिमा बीबी का सलाम. यहां सब खैरियत है, उम्मीद करती हूं, सारे परिवार के साथ आप भी खैरियत से होंगे. परिवार से मेरी मुराद रैजिमैंट के अफसरों, जूनियर अफसरों और जवानों से है.

‘‘मुझे सब याद है, मैं आप सब को कभी भूल ही नहीं पाई. वह खूनी खेल, चारों तरफ खून ही खून, लाशें ही लाशें, लाशें अपनों की, लाशें बेगानों की, बूढ़े मां, बाप, भाइयों की लाशें, टुकड़ों में बिखरी पड़ी थीं. मैं बहुत डरी हुई थी जब आप के जवानों की टुकड़ी ने मुझे रिकवर किया था. आप ने जिस तरह मेरी हिफाजत की थी, तब से मेरा आप के परिवार से संबंध बन गया था. मैं इस संबंध को कभी भूल नहीं पाई. इस बात को 10 साल होने जा रहे हैं. आज मैं हर तरह से खुश हूं. मेरी खुशहाल जिंदगी है, जो आप की देन है, मैं इसे कभी भूल नहीं पाई और कभी भूल भी नहीं पाऊंगी.

‘‘जब आप को मेरा यह खत मिलेगा, मैं दिल्ली के लिए रवाना हो चुकी होऊंगी. वहां मेरी खाला (मौसी) रहती हैं जिन का पता भी लिख रही हूं. मुझे पता नहीं, आप हिंदुस्तान में कहां हैं पर मैं जानती हूं, आप कुछ ऐसा जरूर करेंगे कि मैं आप से और आप के परिवार से मिल सकूं.

‘‘आप की खैरियत चाहने वाली.

फातिमा.’’

कैप्टन नूर मुहम्मद ने देखा, शेर सा दिल रखने वाले कर्नल साहब, जिन्हें भारत सरकार ने उन की बहादुरी के लिए ‘महावीर चक्र’ से नवाजा है, यह छोटा सा पत्र सुन कर पिघल गए, आंखें नम हो गईं. यह आश्चर्य ही था कि विकट से विकट परिस्थितियों में चट्टान की तरह खड़ा रहने वाला व्यक्ति इस प्रकार भावनाओं में बह जाएगा.

‘‘सर, आप की आंखों में आंसू? और यह फातिमा कौन है?’’

‘‘क्यों भई, मैं भी इंसान हूं. मेरी आंखों में भी आंसू आ सकते हैं. फातिमा की एक लंबी कहानी है. आप रैजिमैंट में 65 की लड़ाई के बाद आए.

‘‘65 की लड़ाई का अभी सीजफायर हुआ ही था. 22 दिन यह लड़ाई चली थी. हमारी रैजिमैंट पाक के सियालकोट सैक्टर के ‘अल्लड़’ गांव में थी. ‘अल्लड़’ रेलवे स्टेशन हमारे कब्जे में था. वही रैजिमैंट का मुख्यालय भी था. सियालकोट से डेराबाबा नानक तक पाकिस्तान की मिलिटरी सप्लाई बिलकुल रोक दी गई थी. रैजिमैंट मोरचाबंदी मजबूत करने और छिपे हुए दुश्मनों को सफाया करने में व्यस्त थी. गांव के एक घर से अस्तव्यस्त और क्षतविक्षत अवस्था में यह फातिमा हमारी एक पैट्रोलिंग पार्टी को मिली जिस की कमांड मेजर रंजीत सिंह के हाथ में थी. फातिमा के परिवार के सारे लोग लड़ाई में मारे गए थे. पाक के फौजी फातिमा के पीछे पड़े हुए थे. शायद उस की इज्जत लूटने के बाद मार देते. पर हमारी टुकड़ी से उन की भिड़ंत हो गई. कुछ मारे गए, कुछ भाग गए. डरी, सहमी और जख्मी फातिमा को रिकवर कर लिया गया. जब उसे मेरे सामने पेश किया गया तो वह डर के मारे थरथर कांप रही थी. कपड़े जगहजगह से फटे हुए थे, शरीर पर जख्म थे जिन से खून बह रहा था. उस की आंखों से भी झलक रहा था कि वह अपने फौजियों से बड़ी मुश्किल से बची है, अब तो वह दुश्मन के खेमे में है.

‘‘उस के डर को मैं बखूबी समझ रहा था. वह एकदम पत्थर हो गई थी. मैं ने मेजर रंजीत से कहा, तुरंत डाक्टर को भेजो और इस के शरीर को कंबल से ढंकने का प्रबंध करो. आदेश का पालन हुआ, कंबल से जब उस ने शरीर को ढक लिया तो अनायास ही मेरे मुख से निकला, ‘माफ करना, बहन, इस समय हमारे पास इस से अधिक कुछ नहीं है. लड़ाई के मैदान में जनाना कपड़े नहीं मिलेंगे.’ पहली बार उस ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मेरी ओर देखा. पहली बार मैं ने भी उसे गौर से देखा. गोरा रंग, सुंदर व कजरारी आंखें. सांचे में ढला शरीर, ऐसी सुंदरता मैं ने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी थी.

‘‘वह थोड़ी देर मुझे देखती रही फिर उस की आंखें छलछला आईं. उस की सीमा का बांध टूट गया था. परिवार को खोने का दुख, दुश्मनों के हाथों पड़ने का गम. भविष्य की अनिश्चितता. जीवन में अंधेरा ही अंधेरा था. उस का रोना जायज था. मैं उसे चुप नहीं कराना चाहता था. रोने से मन हलका हो जाता है. मैं ने मेजर रंजीत को पानी देने को कहा. उस ने पानी लिया. कुछ पीया, कुछ से अपना मुंह धो लिया. मैं ने मुंह पोंछने के लिए अपना रूमाल आगे किया. उस ने फिर एक बार मेरी ओर देखा. मैं बोला, ‘ले लो, गंदा नहीं है. बस, थोड़ी नाक पोंछी थी,’ और मुसकराया. मैं ने माहौल को हलका करने का भरसक प्रयत्न किया परंतु उस के चेहरे का दुख कम नहीं हुआ. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘बाथरूम जाना है.’ मैं ने अपने लिए निश्चित बाथरूम की ओर इशारा किया. वह अंदर गई.

‘‘‘सर, एक सुझाव है.’

‘‘‘यस, मेजर रंजीत.’

‘‘‘सर, अल्लड़ गांव में बहुत सा सामान पड़ा है जिसे हमारे जवानों ने छुआ तक नहीं. जैसे किचन का सामान, कपड़ों के टं्रक आदि. उन में इस लड़की के नाप के कपड़े मिल जाएंगे.’

‘‘‘गुड आइडिया.’

‘‘‘सर, वह लड़की.’

‘‘‘हमें पता ही नहीं चला, वह कब बाथरूम से निकल कर हमारे पीछे आ कर खड़ी हो गई थी. हम ने सोचा, उस ने हमारी बातें सुन ली थीं. ‘इस के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है,’ मैं ने कहा, ‘हमें आप का नाम नहीं पता, नहीं तो हम आप को नाम से पुकारते.’

‘‘कुछ देर वह चुप रही, फिर उस के मुख से निकला, ‘फातिमा सिद्दीकी’. पहली बार हम जान पाए कि उस का नाम फातिमा है. उस की आंखें फिर छलछला आईं. वह रोने भी लगी.

‘‘‘अब आप क्यों रो रही हैं? आप यहां बिलकुल महफूज हैं. मैं कर्नल अमरीक सिंह, राजपूताना राइफल्स का कमांडिंग अफसर, इस बात का यकीन दिलाता हूं.’

‘‘‘एक सवाल मुझे बारबार  साल रहा है. मैं अपनी  पाकिस्तान की फौज के रहते महफूज नहीं थी तो यहां दुश्मन की फौज में कैसे महफूज हूं?’

‘‘‘यह हिंदुस्तान की फौज है जो दुश्मनों के साथ दुश्मनी निभाती है और इंसानों के साथ इंसानियत,’ थोड़ी देर बाद मैं ने फिर कहा, ‘यह बताओ, आप के परिवार वालों को किस ने मारा?’

‘‘‘पाकिस्तान की फौज ने, घर की औरतों की इज्जत लूटने के लिए वे बहुत सी औरतों को अपने साथ भी ले गए. मैं आप की टुकड़ी की वजह से बच गई.’

‘‘‘इतने समय में आप को हिंदुस्तान और पाकिस्तान की फौज में अंतर नजर नहीं आया?’

‘‘‘जी.’

‘‘‘मैं ने आप को बहन कहा है. मेरी पूरी रैजिमैंट मेरा परिवार है. इस नाते आप भी इस परिवार की सदस्य हैं. हमारे देश में जिस को भी बहन कह दिया जाता है उस की रक्षा फिर अपनी जान दे कर भी की जाती है. यही हमारे देश और हमारी फौज की रिवायत है, परंपरा है.’

‘‘इतने में एक जवान ट्रंक ले कर हाजिर हुआ. मैं ने फातिमा को अपने लिए कपड़े चुनने के लिए कहा, ‘मुझे दुख है, मैं आप के लिए इस से अच्छा इंतजाम नहीं कर सका.’

‘‘मैं बाहर जाने लगा कि फातिमा अपने लिए कपड़े निकाल कर पहन सके. उसी समय मेजर रंजीत ने आ कर बताया कि मोरचाबंदी पूरी हो चुकी है और अल्लड़ गांव क्लियर कर दिया गया है.

‘‘‘अच्छी बात है, पर सभी को आगाह कर दिया जाए कि पूरी चौकसी बरती जाए. दीपक जब बुझने लगता है तो उस की लौ और बढ़ जाती है. सांप घायल हो कर और खतरनाक हो जाता है, इसलिए सावधान रहा जाए.’

‘‘‘यस सर.’

‘‘‘देखो, अभी तक डाक्टर क्यों नहीं आया.’

‘‘‘सर, मैं हाजिर हूं. कुछ घायल जवानों को संभालना जरूरी था, इसलिए थोड़ी देर हो गई.’

‘‘‘ओके फाइन. ड्रैसिंग के साथ आप यह भी जांच करें कि कोई सीरियस चोट तो नहीं है. इस के बाद हमें इसे तुरंत पीछे कैंप में भेजना होगा. तब तक इस की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है.’

‘‘‘जी सर. अगर आप इजाजत दें तो मैं इलाज के लिए इसे एमआई रूम में ले जाऊं, वहां इस की अच्छी देखभाल हो सकेगी.’

‘‘‘ले जाओ पर ध्यान रहे, इस की जान को कुछ नहीं होना चाहिए. इस की सुरक्षा हमें अपनी जान से भी प्यारी है. पूरी रैजिमैंट की इज्जत का सवाल है.’

‘‘‘मैं समझता हूं, सर. जान चली जाएगी पर इस को कुछ नहीं होने दिया जाएगा,’ डाक्टर ने कहा.

‘‘‘इसे कुछ खिलापिला देना, सुबह से कुछ नहीं खाया.’

‘‘‘यस सर.’

‘‘‘एडयूटैंट साहब से बोलो, इस के बारे में सारी जानकारी हासिल करें और ब्रिगेड हैडक्वार्टर को इन्फौर्म करें,’ आदेश दे कर मैं अपने कमरे में आ गया.

‘‘थोड़ी देर बाद एडयूटैंट मेजर राम सिंह मेरे सामने थे.

‘‘‘सर, यह लड़की इसी गांव अल्लड़ की रहने वाली है. इस के साथ बहुत बुरा हुआ. सारा परिवार पाकिस्तानी फौजों के हाथों मारा गया. घर की जवान औरतों को वे साथ ले गए और बूढ़ी औरतों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. इस भयानक दृश्य को इस ने अपनी आंखों से देखा है. यह किसी बड़े ट्रंक के पीछे छिपी रह गई और बच गई. पाक फौज इसे ढूंढ़ ही रही थी कि हमारी टुकड़ी से टक्कर हो गई. कुछ मारे गए, कुछ भाग गए. यह सियालकोट के जिन्ना कालेज के फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट है. रावलपिंडी में इस का मामू रहता है जिस का उस ने पता दिया है.’

‘‘‘यह सब ब्रिगेड हैडक्वार्टर को लिख दो और आदेश का इंतजार करो.’

‘‘‘यस सर,’ कह कर एडयूटैंट साहब चले गए.

‘‘युद्ध के बाद चारों ओर भयानक शांति थी, श्मशान सी शांति. दूसरे रोज फातिमा के लिए आदेश आया कि 2 रोज के बाद पाकिस्तान के मिलिटरी कमांडरों के साथ कई मुद्दों को ले कर सियालकोट के पास मीटिंग है. उस में फातिमा के बारे में भी बताया जाएगा. यदि उन के कमांडर रावलपिंडी से उस के मामू को बुला कर वापस लेने के लिए तैयार हो गए तो ठीक है, नहीं तो वह पीछे कैंप में भेजी जाएगी, तब तक वह आप की रैजिमैंट में रहेगी, मेहमान बन कर. हमें ऐसे आदेश की आशा नहीं थी. सारी रैजिमैंट समझ नहीं पा रही थी कि ब्रिगेड ने ऐसा आदेश क्यों दिया.

‘‘हमारे अगले 2 दिन बड़े व्यस्त थे. मोरचाबंदी के साथसाथ घायल सैनिकों को पीछे बड़े अस्पताल में भेजना था. शहीद सैनिकों के शव भी पीछे भिजवाने थे. सब से महत्त्वपूर्ण था, लिस्ट बना कर पाकिस्तान के शहीद सैनिकों को दफनाना. उन की बेकद्री किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं की जा सकती थी. इस में पूरे 2 दिन लग गए. हम जान ही नहीं पाए कि फातिमा कैसी है और किस हाल में है.

‘‘जब याद आया तो मेरे पांव खुद ही एमआई रूम की ओर उठ चले. जब वहां पहुंचा तो फातिमा नाश्ता कर रही थी. मुझे देखते ही उठ खड़ी हुई.

‘‘‘बैठोबैठो, नाश्ता करो. माफ करना, फातिमा, 2 दिन तक हम आप की सुध नहीं ले पाए. आप को कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’

‘‘‘नहीं सर, कोई तकलीफ नहीं हुई, बल्कि सभी ने इतनी खिदमत की कि मैं अपने गमों को भूलने लगी,’ फिर प्रश्न किया, ‘आप सभी दुश्मनों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं?’

‘‘‘यह हिंदुस्तानी फौज की रिवायत है, परंपरा है कि हमारी फौज अपने दुश्मनों के साथ भी मानवीय व्यवहार करने के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है.’

‘‘फिर मैं ने ब्रिगेड के आदेश और 2 दिन बाद कमांडरों की मीटिंग के बारे में बताया कि यदि उन्होंने मान लिया तो बहुत जल्दी वह अपने मामू के पास भेज दी जाएगी.

‘‘‘सर, यदि ऐसा हो गया तो मरते दम तक मैं आप को, आप के पूरे परिवार को यानी आप की रैजिमैंट को, उन जांबाज जवानों को जिन्होंने

अपनी जान पर खेल कर पाक फौजी दरिंदों से मुझे बचाया था, कभी भूल नहीं पाऊंगी.’

‘‘‘हमारी फौज की यही परंपरा है कि जब कोई हम से विदा ले तो वह उम्रभर हमें भूल कर भी भूल न पाए.’

‘‘एक सप्ताह के भीतर फातिमा को हमारे और पाक कमांडरों की देखरेख में सियालकोट के पास उस के मामू के हवाले कर दिया गया.’’

कर्नल अमरीक सिंह पूरी कहानी सुना कर फिर भावुक हो उठे. उन की आंखें फिर नम हो गईं.

कैप्टन नूर मुहम्मद ने कहा, ‘‘सर, मेरे लिए क्या आदेश है? क्या फातिमा को आने के लिए लिखा जाए?’’

‘‘नहीं, कैप्टन साहब, फातिमा को उन की मीठी यादों के सहारे जीने दो. किसी भी मुल्क के सिविलियन को मिलिटरी यूनिट विजिट करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. हां, उस के लिए हमारी ओर से तोहफा ले कर आप अवश्य जाएंगे, बिना किसी अंतर्विरोध के. उस का देश हमारे देश में आतंकवाद फैलाता है, लाइन औफ कंट्रोल पर जवानों के गले काटता है, 26/11 जैसे हमले करता है, सूसाइड बौंबर भेजता है.’’

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