family story in hindi
family story in hindi
आज अस्पताल में भरती नमन से मिलने जब भैयाभाभी आए तो अश्रुधारा ने तीनों की आंखों में चुपके से रास्ता बना लिया. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. बस, सभी धीरे से अपनी आंखों के पोर पोंछते जा रहे थे. तभी नमन की पत्नी गौरी आ गई. सामने जेठजेठानी को अचानक खड़ा देख वह हैरान रह गई. झुक कर नमस्ते किया और बैठने का इशारा किया. फिर खुद को संभालते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए? किस ने बताया कि ये…’’
‘‘तुम नहीं बताओगे तो क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाएंगे?’’ जेठानी मिताली ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘कब से तबीयत खराब है नमन भैया की?’’
‘‘क्या बताऊं, भाभी, ये तो कुछ महीनों से… इन्हें जो भी परहेज बताओ, ये किसी की सुनते ही नहीं,’’ कहते हुए गौरी की आंखें भीग गईं. इतने महीनों का दर्द उमड़ने लगा. देवरानीजेठानी कुछ देर साथ बैठ कर रो लीं. फिर गौरी के आंसू पोंछते हुए मिताली बोली, ‘‘अब हम आ गए हैं न, कोई बदपरहेजी नहीं करने देंगे भैया को. तुम बिलकुल चिंता मत करो. अभी कोई उम्र है अस्पताल में भरती होने की.’’
मिताली और रोहन की जिद पर नमन को अस्पताल से छुट्टी मिलने पर उन्हीं के घर ले जाया गया. बीमारी के कारण नमन ने दफ्तर से लंबी छुट्टी ले रखी थी. हिचकिचाहटभरे कदमों में नमनगौरी ने भैयाभाभी के घर में प्रवेश किया. जब से वे दोनों इस घर से अलग हुए थे, तब से आज पहली बार आए थे. मिताली ने उन के लिए कमरा तैयार कर रखा था. उस में जरूरत की सभी वस्तुओं का इंतजाम पहले से ही था.
‘‘आराम से बैठो,’’ कहते हुए मिताली उन्हें कमरे में छोड़ कर रसोई में चली गई.
रात का खाना सब ने एकसाथ खाया. सभी चुप थे. रिश्तों में लंबा गैप आ जाए तो कोई विषय ही नहीं मिलता बात करने को. खाने के बाद डाक्टर के अनुसार नमन को दवाइयां देने के बाद गौरी कुछ पल बालकनी में खड़ी हो गई. यह वही कमरा था जहां वह ब्याह कर आई थी. इसी कमरे के परदे की रौड पर उस ने अपने कलीरे टांगी थीं. नवविवाहिता गौरी इसी कमरे की डै्रसिंगटेबल के शीशे पर बिंदियों से अपना और नमन का नाम सजाती थी.
मिताली ने उस का पूरे प्यारमनुहार से अपने घर में स्वागत किया था. शुरू में वह उस से कोई काम नहीं करवाती, ‘यही दिन हैं, मौज करो,’ कहती रहती. शादीशुदा जीवन का आनंद गौरी को इसी घर में मिला. जब से अलग हुए, तब से नमन की तबीयत खराब रहने लगी. और आज हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि नमन ठीक से चलफिर भी नहीं पाता है. यह सब सोचते हुए गौरी की आंखों से फिर एक धारा बह निकली. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई.
दरवाजे पर मिताली थी, ‘‘लो, दूध पी लो. तुम्हें सोने से पहले दूध पीने की आदत है न.’’
‘‘आप को याद है, भाभी?’’
‘‘मुझे सब याद है, गौरी,’’ मिताली की आंखों में एक शिकायत उभरी जिसे उस ने जल्दी से काबू कर लिया. आखिर गौरी कई वर्षों बाद इस घर में लौटी थी और उस की मेहमान थी. वह कतई उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी.
अगले दिन से रोहन दफ्तर जाने लगे और मिताली घर संभालने लगी. गौरी अकसर नमन की देखरेख में लगी रहती. कुछ ही दिनों में नमन की हालत में आश्चर्यजनक सुधार होने लगा. शुरू से ही नमन इसी घर में रहा था. शादी के बाद दुखद कारणों से उसे अलग होना पड़ा था और इस का सीधा असर उस की सेहत पर पड़ने लगा था. अब फिर इसी घर में लौट कर वह खुश रहने लगा था. जब हम प्रसन्नचित्त रहते हैं तो बीमारी भी हम से दूर ही रहती है.
‘‘प्रणाम करती हूं बूआजी, कैसी हैं आप? कई दिनों में याद किया अब की बार कैसी रही आप की यात्रा?’’ मिताली फोन पर रोहन की बूआ से बात कर रही थी. बूआजी इस घर की सब से बड़ी थीं. उन का आनाजाना अकसर लगा रहता था. तभी गौरी का वहां आना हुआ और उस ने मिताली से कुछ पूछा.
‘‘पीछे यह गौरी की आवाज है न?’’ गौरी की आवाज बूआजी ने सुन ली.
‘‘जी, बूआजी, वह नमन की तबीयत ठीक नहीं है, तो यहां ले आए हैं.’’
‘‘मिताली बेटा, ऐसा काम तू ही कर सकती है, तेरा ही दिल इतना बड़ा हो सकता है. मुझे तो अब भी गौरी की बात याद आती है तो दिल मुंह को आने लगता है. छी, मैं तुझ से बस इतना ही कहूंगी कि थोड़ा सावधान रहना,’’ बूआजी की बात सुन मिताली ने हामी भरी. उन की बात सुन कर पुरानी कड़वी बातें याद आते ही मिताली का मुंह कसैला हो गया. वह अपने कक्ष में चली गई और दरवाजा भिड़ा कर, आंखें मूंदे आरामकुरसी पर झूलने लगी.
गौरी को भी पता था कि बूआजी का फोन आया है. उस ने मिताली के चेहरे की उड़ती रंगत को भांप लिया था. वह पीछेपीछे मिताली के कमरे तक गई.
‘‘अंदर आ जाऊं, भाभी?’’ कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए गौरी ने पूछा.
‘‘हां,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दिया मिताली ने. उस का मन अब भी पुराने गलियारों के अंधेरे कोनों से टकरा रहा था. जब कोई हमारा मन दुखाता है तो वह पीड़ा समय बीतने के साथ भी नहीं जाती. जब भी मन बीते दिन याद करता है, तो वही पीड़ा उतनी ही तीव्रता से सिर उठाती है.
‘‘भाभी, आज हम यहां हैं तो क्यों न अपने दिलों से बीते दिनों का मलाल साफ कर लें?’’ हिम्मत कर गौरी ने कह डाला. वह इस मौके को गंवाना नहीं चाहती थी.
‘‘जो बीत गई, सो बात गई. छोड़ो उन बातों को, गौरी,’’ पर शायद मिताली गिलेशिकवे दूर करने के पक्ष में नहीं थी. अपनी धारणा पर वह अडिग थी.
‘‘भाभी, प्लीज, बहुत हिम्मत कर आज मैं ने यह बात छेड़ी है. मुझे नहीं पता आप तक मेरी क्या बात, किस रूप में पहुंचाई गई. पर जो मैं ने आप के बारे में सुना, वह तो सुन लीजिए. आखिर हम एक ही परिवार की डोर से बंधे हैं. यदि हम एकदूसरे के हैं, तो इस संसार में कोईर् हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. किंतु यदि हमारे रिश्ते में दरार रही तो इस से केवल दूसरों को फायदा होगा.’’
‘‘भाभी, मेरी डोली इसी घर में उतरी थी. सारे रिश्तेदार यहीं थे. शादी के तुरंत बाद से ही जब कभी मैं अकेली होती. बूआजी मुझे इशारों में सावधान करतीं कि मैं अपने पति का ध्यान रखूं. उन के पूरे काम करूं, और उन की आप पर निर्भरता कम करूं. आप समझ रही हैं न? मतलब, बूआजी का कहना था कि नमन को आप ने अपने मोहपाश में जकड़ रखा है ताकि… समझ रही हैं न आप मेरी बात?’’
गौरी के मुंह से अपने लिए चरित्रसंबंधी लांछन सुन मिताली की आंखें फटी रह गईं, ‘‘यह क्या कह रही हो तुम? बूआजी ऐसा नहीं कह सकतीं मेरे बारे में.’’
‘‘भाभी, हम चारों साथ होंगे तो हमारा परिवार पूरी रिश्तेदारी में अव्वल नंबर होगा, यह बात किसी से छिपी नहीं है. शादी के तुरंत बाद मैं इस परिवार के बारे में कुछ नहीं जानती थी. जब बूआजी जैसी बुजुर्ग महिला के मुंह से मैं ने ऐसी बातें सुनीं, तो मैं उन पर विश्वास करती चली गई. और इसीलिए मैं ने आप की तरफ शुष्क व्यवहार करना आरंभ कर दिया.
‘‘परंतु मेरी आंखें तब खुलीं जब चाचीजी की बेटी रानू दीदी की शादी में चाचीजी ने मुझे बताया कि इन बातों के पीछे बूआजी की मंशा क्या थी. बूआजी चाहती हैं कि जैसे पहले उनका इस घर में आनाजाना बना हुआ था जिस में आप छोटी बहू थीं और उन का एकाधिकार था, वैसे ही मेरी शादी के बाद भी रहे. यदि आप जेठानी की भूमिका अपना लेतीं तो आप में बड़प्पन की भावना घर करने लगती और यदि हमारा रिश्ता मजबूत होता तो हम एकदूसरे की पूरक बन जातीं. ऐसे में बूआजी की भूमिका धुंधली पड़ सकती थी. बूआजी ने मुझे इतना बरगलाया कि मैं ने नमन पर इस घर से अलग होने के लिए बेहद जोर डाला जिस के कारण वे बीमार रहने लगे. आज उन की यह स्थिति मेरे क्लेश का परिणाम है,’’ गौरी की आंखें पश्चात्ताप के आंसुओं से नम थीं.
गौरी की बातें सुन मिताली को नेपथ्य में बूआजी द्वारा कही बातें याद आ रही थीं, ‘क्या हो गया है आजकल की लड़कियों को. सोने जैसी जेठानी को छोड़ गौरी को अकेले गृहस्थी बसाने का शौक चर्राया है, तो जाने दे उसे. जब अकेले सारी गृहस्थी का बोझा पड़ेगा सिर पे, तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी. चार दिन ठोकर खाएगी, तो खुद आएगी तुझ से माफी मांगने. इस वक्त जाने दे उसे. और सुन, तू बड़ी है, तो अपना बड़प्पन भी रखना, कोई जरूरत नहीं है गौरी से उस के अलग होने की वजह पूछने की.’
‘‘भाभी, मुझे माफ कर दीजिए, मेरी गलती थी कि मैं ने बूआजी की कही बातों पर विश्वास कर लिया और तब आप को कुछ भी नहीं बताया.’’
‘‘नहीं, गौरी, गलती मेरी भी थी. मैं भी तो बूआजी की बातों पर उतना ही भरोसा कर बैठी. पर अब मैं तुम्हारा धन्यवाद करना चाहती हूं कि तुम ने आगे बढ़ कर इस गलतफहमी को दूर करने की पहल की,’’ यह कहते हुए मिताली ने अपनी बांहें खोल दीं और गौरी को आलिंगनबद्ध करते हुए सारी गलतफहमी समाप्त कर दी.
कुछ देर बाद मिताली के गले लगी गौरी बुदबुदाई, ‘‘भाभी, जी करता है कि बूआजी के मुंह पर बताऊं कि उन की पोलपट्टी खुल चुकी है. पर कैसे? घर की बड़ीबूढ़ी महिला को आईना दिखाएं तो कैसे, हमारे संस्कार आड़े आ जाते हैं.’’
‘‘तुम ठीक कहती हो, गौरी. परंतु बूआजी को सचाई ज्ञात कराने से भी महत्त्वपूर्ण एक और बात है. वह यह है कि हम आइंदा कभी भी गलतफहमियों का शिकार बन अपने अनमोल रिश्तों का मोल न भुला बैठें.’’
देवरानीजेठानी का आपसी सौहार्द न केवल उस घर की नींव ठोस कर रहा था बल्कि उस परिवार के लिए सुख व प्रगति की राह प्रशस्त भी कर रहा था.
अकसर कोई अपने बढ़ते वजन को ले कर परेशान रहता है तो कोई अपने दुबलेपन के कारण. उन की समझ में नहीं आता कि उन का आहार कैसा हो. अगर आप के समक्ष भी यह परेशानी है तो परेशान न हों. इस संबंध में डाइटीशियन श्रेया कत्याल से की गई बातचीत पर गौर फरमाएं:
आहार का मतलब क्या है?
आहार का मतलब भोजन का स्वस्थ तरीका है, जिस में सभी पोषक तत्त्व मौजूद हों.
अच्छा भोजन व बुरा भोजन क्या है?
भोजन अच्छाबुरा नहीं होता है. हम कैसे, कब, क्या और कितना खाते हैं, वह उसे अच्छा या बुरा बनाता है. इसलिए व्यक्ति को सब कुछ खाना चाहिए, परंतु कम मात्रा में. खानेपीने की इच्छा का दमन करना शरीर से धोखा करना है.
स्वस्थ तरीके से इंसान 1 महीने में कितना वजन कम कर सकता है?
यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है. स्वस्थ तरीके से 1 महीने में औसतन कम से कम 3-4 किलोग्राम तक (1 किलोग्राम प्रति हफ्ते) वजन कम किया जा सकता है और ज्यादा से ज्यादा 8 किलोग्राम तक. वजन में कमी के साथसाथ जीवनशैली में परिवर्तन भी जरूरी होता है.
क्या स्वस्थ आहारशैली छोड़ने के बाद वजन फिर बढ़ जाएगा?
स्वस्थ तरीके से वजन में कमी लाने पर यह स्थिति आहार में परिवर्तन के बाद भी बनी रहती है. बावजूद इस के वजन में कमी तभी बनी रह सकती है, जब आप का ध्येय जीवनशैली में परिवर्तन हो. इसलिए जब आप एक बार आहार प्रबंधन के साथ सकारात्मक तौर पर जीवनशैली में परिवर्तन कर लेते हैं, तो आहारशैली से हटने के बावजूद आप अपनी यथास्थिति बनाए रख सकते हैं.
क्या आप वजन कम करने के लिए किसी खुराक, दवा आदि की सलाह देती हैं?
मैं वजन कम करने के लिए खुराक, दवा या किसी कृत्रिम तरीके पर भरोसा नहीं करती, क्योंकि लंबे अंतराल में इन चीजों के दुष्परिणाम सामने आते हैं.
ब्लड ग्रुप आधारित आहारशैली कितनी प्रभावी है और आप किस आधार पर आहार योजना तैयार करती हैं?
ए ब्लड ग्रुप आधारित आहारशैली एक सीमा तक ही सफल है. यह 100% सफल नहीं होती. यह प्रभावी तो है और इस के सकारात्मक परिणाम भी दिखते हैं, परंतु यह सभी लोगों पर पूरी तरह लागू नहीं की जा सकती. लोगों के लिए आहार योजना तैयार करते वक्त मैं उन के ब्लड ग्रुप को ध्यान में तो रखती हूं, परंतु वह पूरी तरह ब्लड ग्रुप पर आधारित नहीं होती. व्यक्ति विशेष की पसंदनापसंद व प्राथमिकता, दिनचर्या, जीवनशैली आदि आहार योजना बनाते वक्त अहम भूमिका निभाते हैं.
आमतौर पर यह कहा जाता है कि परहेज वाली आहारशैली के पश्चात त्वचा निष्प्रभाव हो जाती है. इस में कितनी सचाई है?
आहार योजना का पालन सिर्फ अतिरिक्त कैलोरी को खत्म करने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि आप की संपूर्ण स्वास्थ्य स्थिति को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है. संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्त्वों की सही खुराक लेना सुनिश्चित करने के लिए पूरे दिन के दौरान 5-6 बार भोजन करने की योजना तैयार की जाती है ताकि चयापचय प्रक्रिया मजबूत हो सके और आप ज्यादा ऊर्जावान महसूस कर सकें. स्वस्थ वसा को आप के आहार में शामिल किया जाता है तथा अस्वास्थ्यकर वसा को हटाया जाता है.
वजन कम करने के लिए क्या मिठाई खाना छोड़ना जरूरी है?
मिठाई पसंद करने वालों के लिए मेरा उत्तर न में है. हम एक निश्चित अंतराल के लिए आहार योजना का पालन कर सकते हैं और अपने पसंदीदा व्यंजन को हमेशा के लिए नहीं छोड़ सकते. इसलिए आप को जो पसंद है, खाएं परंतु सही ढंग व सही समय पर खाएं. एक वक्त के आहार के तौर पर मिठाई लें न कि खाना खाने के पश्चात मिठाई खाएं.
क्या रात्रि भोजन 8 बजे से पहले कर लेना चाहिए या फिर बगैर नमक का डिनर लेना चाहिए?
आप ने जितना वजन घटाया है, ऐसा नहीं है कि बगैर नमक का डिनर उसे हमेशा बनाए रखेगा, बल्कि त्याग किए हुए पानी के वजन को ही स्थिर रखेगा. इसलिए मैं नियमित तौर पर बगैर नमक के डिनर के पक्ष में नहीं हूं. इस के अलावा, कोई भी व्यक्ति बहुत लंबे समय तक बगैर नमक के डिनर या 8 बजे से पहले डिनर लेना जारी नहीं रख पाएगा. मैं ऐसी कोई सलाह नहीं देती, जिस पर लंबे समय तक अमल न किया जा सके. इसलिए सही वक्त पर डिनर लें ताकि डिनर व बिस्तर पर जाने के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतराल हो.
क्या आहार योजना के साथ कोई कसरत भी जरूरी है?
वजन में कमी लाने के मामले में 70% तक आहार और 30% तक कसरत की भूमिका मानी जाती है. इस के अलावा चूंकि वजन कम करने के प्रयास के दौरान जीवनशैली में परिवर्तन जरूरी होता है, इसलिए कुछ बुनियादी व्यायाम भी जरूरी हैं, क्योंकि आजकल ज्यादातर लोगों की जीवनशैली श्रमहीन हो चुकी है. व्यायाम हमारी चयापचय की प्रक्रिया को सुदृढ़ करता है तथा वजन कम होने की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है.
श्रेया कत्याल, डाइटीशियन
भेलपुरी किसे पसंद नहीं होता है. आज हम आपको चायनीज भेल बनाने की रेसिपी बताएंगे. मुरमुरे से ना बनने वाला, इस अनोखे चायनीज भेल को तले हुए नूडल्स से बनाकर, रंग-बिरंगी सब्जियों के साथ मिलाकर और करारी हरी प्याज से सजाकर बनाया जाता है.
विभिन्न प्रकार के सॉस की संतुलित मात्रा इस भेल को चटपटे तरह से बांधकर रखने मे मदद करता है. इस नाश्ते को परोसने के तुरंत पहले बनाएं, क्योंकि तले हुए नूडल्स कुछ ही समय में नरम होने लगते हैं.
सामग्री
3 कप तले हुए नूडल्स
1 टेबल-स्पून तेल
2 टी-स्पून बारीक कटा हुआ लहसुन
एक चौथाई कप बारीक कटी हुई हरी प्याज का सफेद भाग और पत्ते आधा कप पतली स्लाईस्ड
शिमला मिर्च आधा कप पतले लंबे कटे
गाजर आधा कप पतली लंबी कटी हुई
पत्तागोभी
एक चौथाई कप सेजवान सॉस
एक चौथाई कप टमॅटो केचप
नमक स्वादानुसार
विधि
एक चौड़े नॉन-स्टिक पैन में तेल गरम करें, लहसुन डालकर तेज आंच पर कुछ सेकन्ड तक भुन लें. हरी प्याज का सफेद भाग और पत्ते, शिमला मिर्च, गाजर और पत्तागोभी डालकर, तेज आंच पर 30 सेकन्ड तक भुन लें.
सेजवान सॉस, टमॅटो केचप और नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें और तेज आंच पर कुछ सेकन्ड तक भुन लें.
आंच से हठाकर एक गहरे बाउल में निकाल लें. तले हुए नूडल्स डालकर हल्के हाथों से मिला लें. हरी प्याज का सफेद भाग और पत्ते से सजाकर तुरंत परोसें.
सवाल-
मुझे अकसर मुंहासे होते हैं. मेरी सहेली ने उन पर टूथपेस्ट लगाने की सलाह दी है. क्या टूथपेस्ट लगाना सुरक्षित है?
जवाब-
नहीं, माना कि टूथपेस्ट में बेकिंग सोडा, हाइड्रोजन पैरोक्साइड, अलकोहल आदि पाए जाते हैं, जो मुंहासों को सुखा कर जल्दी ठीक करने में मदद करते हैं, बावजूद इस के इन से स्किन ऐलर्जी होने का खतरा रहता है. इस से चेहरे की त्वचा पर खुजली और जलन होने की संभावना होती है. बड़े मुंहासों पर टूथपेस्ट लगाने से वे जल्दी सूखने तो लगते हैं, लेकिन इस से स्किन काफी ड्राई हो जाती है. मुंहासों पर टूथपेस्ट लगाने से त्वचा पर गहरा निशान भी पड़ सकता है. अत: मुंहासों पर टूथपेस्ट लगाने से बचें.
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महिला की इनर ब्यूटी के साथ-साथ आउटर ब्यूटी भी बहुत मायने रखती है. क्योंकि सबसे पहले लोग आउटर ब्यूटी से ही रूबरू होते हैं उसके बाद इनर ब्यूटी को जानने का मौका मिलता है. सोचिए अगर आपका चेहरा डल, पिम्पल्स से भरा हुआ होता तो क्या आप कोन्फिडेंस के साथ खुद को दूसरों के सामने पे्रजेंट कर पाती? नहीं न. क्योंकि आप का सारा फोकस आपके चेहरे पर जो होगा कि लोग आपके चेहरे को देख कर क्या
सोच रहे होंगे. ऐसे में स्पावेक आपकी इस मुश्किल को आसान बनाने का काम करेगा, जिससे आपकी स्किन प्रोब्लम फ्री होकर फ्रेश व हैल्दी बनेगी.
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पूरी खबर पढ़ने के लिए- मुंहासे कम आत्मविश्वास ज्यादा
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे… गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
दारोगा बलदेव राज शहर के बाईपास मोड़ पर अपनी ड्यूटी बजा रहे थे. सरकारी अफसर हैं इसलिए जब मन में आता वाहनों को चेक कर लेते नहीं तो मेज पर टांगें पसार कर आराम करते थे.
जिस वाहन को वे रोकते उस से 100-50 रुपए झटक लेते. नियमों का शतप्रतिशत पालन वाहन चालक करते ही कहां हैं. वैसे इस की जरूरत होती भी नहीं क्योंकि जब चेकपोस्ट पर 100-50 रुपए देने ही पड़ते हैं तो इस चक्कर में पड़ कर समय और पैसा बरबाद करने का फायदा ही क्या है.
पुलिस वाले वाहन चालकों की इस आदत को अच्छी तरह से जानते हैं और वाहन चालक पुलिस का मतलब खूब समझते हैं.
बलदेव राज टैंट के भीतर जा कुरसी पर अधलेटी मुद्रा में पसर गए और अपनी रात भर की थकान उतारने की कोशिश करने लगे.
तभी एक सिपाही ने कहा, ‘‘साहब, ज्यादा थकान लग रही हो तो कमर सीधी कर लो. मैं चाय वाले के यहां से खटिया ला देता हूं.’’
अलसाए स्वर में मना करते हुए वह बोले, ‘‘अरे, नहीं सोमपाल, खटिया रहने ही दे. सो गया तो 2-3 बजे से पहले उठ नहीं पाऊंगा. अभी तो 8 ही बजे हैं और ड्यूटी 10 बजे तक की है. पुलिस वाले को ड्यूटी के समय बिलकुल भी नहीं सोना चाहिए.’’
‘‘क्या फर्क पड़ता है, साहब,’’ सिपाही सोमपाल बोला, ‘‘गाडि़यों को तो इसी तरह चलते रहना है, और फिर जब इस समय किसी को रोकना ही नहीं है तो एक नींद लेने में हर्ज ही क्या है.’’
तभी एक दूसरा सिपाही बड़े ही उत्साह में भरा हुआ टैंट के अंदर आया और बलदेव राज से बोला, ‘‘साहब, बाहर एक टैक्सी वाला खड़ा है. मैं ने तो यों ही उसे रोक लिया था लेकिन उस के पास ड्राइविंग लाइसेंस ही नहीं है. कहता है घर पर भूल आया है.’’
‘‘उस से तुम दोनों जा कर निबट लो. ध्यान रखना, अगर रोज का आनेजाने वाला हो तो हाथ हलका ही रखना,’’ बलदेव राज ने जम्हाई लेते हुए कहा.
सिपाही खुश हो कर बोला, ‘‘साहब, रोज वाला तो नहीं लगता है. गाड़ी भी किसी दूसरे जिले के नंबर की है.’’
‘‘फिर चिंता की क्या बात है,’’ बलदेव राज बोले, ‘‘उस की औकात देख कर जैसा चाहो वैसा कर लो. और हां, सुनो, मेरे लिए अच्छी सी चाय भिजवा देना. चाय वाले से कहना कि दूध में पत्ती डाल दे.’’
‘‘जी, साहब,’’ दोनों सिपाही एक साथ बोले और खुशीखुशी बाहर चले गए.
थोड़ी देर बाद चाय वाला चाय ले आया और बलदेव राज चाय की चुस्की लेने लगे.
लगभग 15 मिनट बाद दोनों सिपाही अंदर आए तो दोनों काफी खुश दिखाई दे रहे थे. बलदेव राज को वे कुछ बताना चाहते थे कि वह खुद ही बोल पड़े, ‘‘मुझे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है. जाओ और जा कर रकम को आपस में बांट लो.’’
सोमपाल गद्गद हो उठा. उस ने बलदेव राज की स्तुति करते हुए कहा, ‘‘आप की इसी दरियादिली के कारण ही तो हर सिपाही आप का गुलाम बन जाता है, साहब. बर्फ की चोटी हो या रेत का मैदान, आप के साथ हर जगह ड्यूटी करने में मजा आ जाता है.’’
‘‘अच्छा, ज्यादा चापलूसी नहीं. मेरा तो सदा से ही जियो और जीने दो का सिद्धांत रहा है. देखो, 8 बज चुके हैं. अब से ले कर रात 8 बजे तक बड़ी गाडि़यों का शहर में घुसना मना है. तुम दोनों बाहर जा कर खड़े हो जाओ. कहीं ऐसा न हो कि कोई ट्रक चालक मौके का फायदा उठा कर ट्रक निकाल ले.’’
दूसरा सिपाही मुंह बना कर कटाक्ष करते हुए बोला, ‘‘सरकार ने भी कैसेकैसे नियम बना रखे हैं. सब जानते हैं कि इन नियमों को खुद बनाने वाले ही इसे तोड़ देते हैं फिर भी…’’
‘‘ये सब बातें तू नहीं समझेगा,’’ सिपाही की बात को बीच में ही काट कर बलदेव राज बोले, ‘‘जनता की मांग पर सरकार नियम नहीं बनाएगी तो कैसे पता चलेगा कि वह कुछ काम कर रही है. वैसे सरकार नियम न भी बनाए तो कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है. सरकार जानती है कि जनता ही नियमकानून बनवाती है और जनता ही उसे तोड़ती है.
‘‘कानून बनाने से कुछ होता तो जेलों में इतनी भीड़ नहीं होती, कोर्टकचहरी में मेले न लगे होते. फिर भी सरकार बनाती है, क्योंकि उसे पता है कि तेरी तनख्वाह इतनी नहीं है कि बीवीबच्चों के शौक पूरे कर सके. अब बता, एक नियम टूटने से तेरी घरवाली के शौक पूरे हो जाते हैं तो इस में बुराई क्या है?’’
सिपाही के बाहर जाते ही बलदेव राज फिर से कुरसी पर पसर गए.
अभी दारोगाजी ठीक से झपकी भी नहीं ले पाए थे कि सोमपाल अंदर आ कर बोला, ‘‘साहब, बाहर एक ट्रक आया है. ऊपर तक बोरियां लदी पड़ी हैं. ड्राइवर कह रहा है कि मुन्ना सेठ का माल है. शहर के अंदर जाना है.’’
‘‘इस मुन्ना सेठ ने तो खून पी रखा है. इस के आदमी जब मरजी तब मुंह उठाए चले आते हैं. बुला के ला तो उस ड्राइवर को.’’
कुरसी पर संभल कर बैठते हुए बलदेव राज ड्राइवर का इंतजार करने लगे. सोमपाल उसे अपने साथ ले आया. बलदेव राज ड्राइवर को देखते ही गुस्से से बोले, ‘‘क्यों बे नंदू, तू कभी सुधरेगा भी या नहीं. जानता है कि 8 बजे के बाद शहर में घुसना मना है. फिर भी सवा 8 बजे यहां पहुंच रहा है.’’
नंदू ने एक सलाम ठोका और दांत दिखाते हुए बोला, ‘‘मुझे पता था कि यहां पर आप ही मिलेंगे, इसलिए आराम से आ रहा था. गाड़ी में लोड भी कुछ ज्यादा ही है.’’
‘‘तो फिर रात 8 बजे तक खड़ा रह आराम से. तेरी आदत गंदी हो गई है. आज तुझे नहीं जाने दूंगा. कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो मैं हर एक को क्या जवाब देता फिरूंगा. सोमपाल, जा, इस का ट्रक किसी ढंग की जगह पर लगवा दे.’’
‘‘जी साहब,’’ सोमपाल ने कहा, मगर वहां से गया नहीं और न ही नंदू को उस ने बाहर चलने के लिए बोला.
नंदू भी शायद जानता था कि साहब का गुस्सा बनावटी है. वह लगातार हंसे ही जा रहा था और हंसते हुए ही कहने लगा, ‘‘आप भी कमाल की बात करते हैं साहब. मैं तो हमेशा आप की कही हुई बात याद रखता हूं. आप ही तो कहते हैं
कि ये नियमकानून सब ढकोसलेबाजी है. कुछ होना न होना तो ऊपर वाले के ही हाथ में है. जो होना है वह तो हो ही जाता है. बाजार में ट्रक के घुसने से क्या फर्क पड़ता है.’’
‘‘वाह बेटा, मैं ने एक बार कह दिया तो तू जीवन भर इसी तरह से मंत्र ही जपता रहेगा क्या? और यह भूल गया कि मैं ने यह भी तो कहा था कि नियम अच्छा हो या बुरा, उसे तोड़ना ठीक नहीं होता.’’
नंदू और जोर से हंसा और जेब से 200 रुपए निकाल कर मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘आप का नियम कौन तोड़ रहा है, साहब, अब मैं जाऊं?’’
‘‘बड़ा समझदार हो गया है, और यह क्या 200 रुपए की भीख दे रहा है? मैं क्या जानता नहीं कि दिन भर यहां खड़ा रहेगा तो तेरा कितना नुकसान होगा.’’
नंदू खुशामदी स्वर में बोला, ‘‘रोज का मिलनाजुलना है, साहब, इतना लिहाज तो चलता है. आपसी संबंध भी तो कोई चीज होती है.’’
‘‘तू मानेगा नहीं,’’ बलदेव राज गहरी सांस ले कर बोले, ‘‘ठीक है जा, मुन्ना सेठ से कहना ज्यादा लालच न किया करे. और सुन, कोई पूछे तो कहना चेकपोस्ट से 8 बजे से पहले ही निकल आया था.’’
‘‘यह भी कोई कहने की बात है, साहब,’’ नंदू ने कहा और सलाम ठोंक कर चला गया.
‘‘चल भई, सोमपाल, थोड़ी देर अब बाहर ही चल कर बैठते हैं. 10 बजे घर जा कर तो सोना ही है,’’ बलदेव राज ने कहा और बाहर आ गए.
सिपाहियों से गपशप करते बलदेव राज को अभी 20 मिनट ही हुए थे कि अचानक शहर से आ रही एक गाड़ी के चालक ने खबर दी कि मुन्ना सेठ का बोरियों से भरा ट्रक शहर में एक टैंपो से टकराने के बाद उलट गया है.
‘‘क्या?’’ बलदेव राज का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘कोई मरा तो नहीं?’’ उन्होंने पूछा.
‘‘मरा तो शायद कोई नहीं, साहब, लेकिन कुछ बच्चों को चोटें आई हैं. टैंपो बच्चों को स्कूल छोड़ने जा रहा था.’’
बलदेव राज थोड़ा परेशान से हो गए. अपने साहब की परेशानी देख कर सोमपाल बोला, ‘‘मुझे तो पहले ही शक हो रहा था कि कहीं आज वह कोई गड़बड़ न कर दे. लोड बहुत ही ज्यादा कर रखा था उस ने.’’
बलदेव राज थोड़ा उत्तेजित स्वर में बोले, ‘‘अहमक ने टक्कर मारी भी तो स्कूल जाते टेंपों को. अब बच्चों के मांबाप तो आसमान सिर पर उठा ही लेंगे.’’
‘‘हां जी, साहब, जांच तो जरूर होगी कि ‘नो एंट्री’ टाइम में ट्रक शहर में कैसे घुस आया,’’ सोमपाल ने चिंता जताई.
बलदेव राज तुरंत बोले, ‘‘देखो, कोई कितना भी कुरेदे, दोनों यही कहना कि ट्रक यहां से 8 बजे से पहले ही निकल गया था.’’
दोनों सिपाहियों ने सहमति में गरदन हिला दी.
तभी फोन की घंटी घनघना उठी. बलदेव राज ने फोन उठाया. दूसरी ओर से उन की पत्नी का रोताबिलखता स्वर आया, ‘‘आप जल्दी से आ जाइए, जगदेव के टैंपो को स्कूल जाते समय किसी ट्रक वाले ने टक्कर मार दी है. सीधे अस्पताल आ जाइए, मैं वहीं से बोल रही हूं.’’
‘‘क्या?’’ बलदेव राज के हाथों से रिसीवर छूटतेछूटते बचा. वह घबराए स्वर में बोले, ‘‘मैं आता हूं, 5 मिनट में पहुंचता हूं. तुम घबराना मत.’’
रिसीवर रख कर वह मोटरसाइकिल की ओर बढ़ते हुए बोले, ‘‘मैं जा रहा हूं, सोमपाल, जिन बच्चों को चोटें आई हैं उन में मेरा बच्चा भी है.’’
रास्ते में बलदेव राज के मन में तरहतरह के विचार आते रहे. यदि जगदेव को कुछ हो गया तो वे कैसे अपनी पत्नी से आंखें मिला सकेंगे. जगदेव ही क्यों, दूसरे बच्चे भी तो अपने मातापिता के दुलारे हैं. उन में से किसी को भी कुछ हो गया तो वे कैसे अपनेआप को माफ कर सकेंगे.
कितना गलत सोचते थे वह कि नियमकानून बेवजह बनाए गए हैं. आज पता चल गया था कि हर नियम और कानून का इस समाज के लिए बड़ा ही महत्त्व है. खुद उन के लिए भी महत्त्व है. वह भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं.
कुछ ही देर बाद बलदेव राज अस्पताल में पहुंच गए. वहां काफी भीड़ लगी हुई थी. डाक्टर लोग बच्चों का उपचार करने में जुटे हुए थे और उन के मातापिता के आंसू थामे नहीं थम रहे थे.
उन्हीं में उन की पत्नी भी शामिल थी. जगदेव सहित बाकी बच्चों का शरीर पट्टियों से ढका हुआ था और वे लगातार कराहे जा रहे थे. इस करुणामय दृश्य ने उन के कठोर दिल को भी पिघला कर रख दिया था.
अचानक एक बिस्तर पर घायल नंदू भी उन्हें दिखाई दे गया. वह पुलिस के संरक्षण में था. गुस्से की एक तेज लहर उन के शरीर में कौंधी और वे उस ओर बढ़े भी किंतु फौरन ही रुक गए. मन के किसी कोने से आवाज आई थी, ‘क्या अकेला नंदू ही दोषी है?’
बाहर कुछ लोग कह रहे थे, ‘‘ट्रक ड्राइवर का दोष है और उसे सजा मिल भी जाएगी मगर चेकपोस्ट पर पुलिस वाले सोए हुए थे क्या, जो इतने खतरनाक ढंग से लदे ट्रक को नहीं देख सके. टैंपो वाला समझदारी न दिखाता तो इन बेकुसूरों में से कोई भी नहीं बच पाता.’’
‘‘पुलिस वालों को इस से क्या सरोकार, उन्होंने तो 100-50 का नोट देख कर अपनी आंखें बंद कर ली होंगी.’’
इसी तरह की और भी बहुत सी बातें, तीर बन कर बलदेव राज के दिल को भेदने लगीं.
वह पत्नी के पास आ कर खड़े हो गए. पत्नी की आंसुओं से भीगी आंखों में जब उन्होंने अपने प्रति एक सवाल तैरते देखा तो असीम अपराध बोध से उन का चेहरा खुद ही झुकता चला गया और पश्चात्ताप आंसू बन कर आंखों से बाहर छलकने लगा.
सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में 8 साल के लीप के बाद दर्शकों को सई और विराट की कहानी पसंद आ रही हैं. हालांकि पाखी के विराट की जिंदगी में आने से फैंस काफी परेशान हैं. हालांकि जल्द ही सई, विराट और पाखी का आमना-सामना होने वाला है, जिसके बाद इन तीनों की जिंदगी बदल जाएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin Written Update In Hindi)…
शो का नया प्रोमो आया सामने
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हाल ही में जहां सई और विराट अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए हैं तो वहीं मेकर्स ने अब दोनों को आमने सामने लाने का फैसला कर लिया है, जिसके चलते नया प्रोमो शेयर किया है, जिसमें सई जहां विनायक के साथ दिख रही है तो वहीं सवी, विराट और पाखी के साथ नजर आ रहे हैं. दरअसल, प्रोमो में सवि, पाखी और विराट को उसकी मां से मिलवाने ले जा रही है तो वहीं विनायक भी अपने पापा से सई को मिलवाने ले जाता दिख रहा है. शो का नया प्रोमो देखकर फैंस काफी एक्साइटेड नजर आ रहे हैं.
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पाखी को पत्नी का दर्जा देगा विराट
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दूसरी तरफ मेकर्स ने एक और अपकमिंग प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें सई की यादों से निकलकर विराट, पाखी के साथ नए रिश्ते की शुरुआत करता दिख रहा है. दरअसल, प्रोमो में विराट पाखी से मिलकर अपने रिश्ते के बारे में बात करता है और कहता है कि उसने उसे अपनी पत्नी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया, जबकि वह उसके लिए हर फर्ज निभाती है. साथ ही पाखी से अपनी अज्ञानता के लिए माफी मांगता है और उसे भरोसा दिलाता है कि सई को भूलकर पाखी के साथ एक नई शुरुआत करेगा. जबकि सई, उषा से कहती दिख रही है कि विराट ने उसे कभी ढूंढने की कोशिश नहीं की. हालांकि उषा सवाल करती है कि अगर वह उसके सामने आ गया तो वह क्या करेगी?
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विनायक का सच आया सामने
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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अश्विनी, विनायक के गोद लेने का सच पाखी से बोलेगी और ये भी कहेगी कि सई और विनायक की मौत के बाद विराट की जिम्मेदारी उसने संभाली है और अब उसे विराट का दिल जीतना होगा. दूसरी तरफ, भवानी, विराट से दूसरे बच्चे की प्लानिंग के लिए कहती दिखेगी.
सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों खुशियों का माहौल देखने को मिल रहा है. हालांकि इन दिनों किंजल यानी एक्ट्रेस निधि शाह के शो छोड़ने की खबरें जोरों पर हैं. लेकिन अभी तक मेकर्स ने इस खबर पर कोई रिएक्शन नहीं दिया है. वहीं खबरों के बीच सीरियल में नए ट्विस्ट का प्रोमो फैंस के साथ जरुर शेयर कर दिया है, जिसके चलते शाह फैमिली में बवाल देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Update In Hindi)…
अनुज को भड़काएगी बरखा
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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अंकुश और बरखा, अनुपमा के शाह परिवार के साथ होने का फायदा उठाएंगे और अनुज को भड़काने की कोशिश करेंगे. दरअसल, अनुज, किंजल की बेटी होने की खबर अंकुश और बरखा को देगा. जहां अंकुश, बरखा के कहने पर एक बार फिर अनुज से माफी मांगेगा और उसका शुक्रिया करेगा. इसी के साथ अनुपमा पर ताना कसते हुए बरखा कहेगी कि अनुपमा के ना होने पर उसे खाना और दवाई कौन देगा. हालांकि अनुज जवाब देगा कि अनुपमा कुछ नहीं भूलती और उन्हें उसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहिए, जिसे सुनकर दोनों चुप हो जाएंगे.
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राखी दवे को आएगा गुस्सा
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इसके अलावा आप देखेंगे कि किंजल की मां राखी दवे अपने पोते से मिलने पहुंचेगी. जहां वह उसे पकड़कर इमोशनल हो जाएगी और तोषु के बारे में सवाल करेगी. वहीं अनुपमा, राखी दवे का गुस्सा समझ जाएगी और उससे तोषु पर गुस्से की वजह पूछेगी और राखी दवे उसे सच बताने की कोशिश करेगी. हालांकि खबरों की मानें तो राखी दवे, अनुपमा को तोषू के अफेयर की जानकारी देगी, जिसके बाद अनुपमा का गुस्सा बढ़ जाएगा.
किंजल की हुई बेटी
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अब तक आपने देखा कि किंजल की बेटी होने की खबर से पूरा शाह परिवार खुश होता है. वहीं अनुपमा, अनुज को बेटी होने की खबर सुनाती हुई दिखती है. हालांकि वनराज के साथ देख अनुज को जलन महसूस होती है. लेकिन वह कुछ नहीं कहता. दूसरी तरफ, लाख कोशिशों के बावजूद तोशू का फोन नहीं लगता. दूसरी तरफ बा परदादी बनने की खुश जाहिर करती दिखती है.
नवेली ने जैसे ही फोन नीचे रखा, उस का दिल धकधक कर रहा था. मोहित की हर बात उसे दूसरी दुनिया की तरफ खींच रही थी. नवेली को विश्वास नहीं हो रहा था कि मोहित जैसा हैंडसम और इतना अच्छा लड़का उस के लिए दीवाना हो सकता है.
नवेली खुशी में गुनगुना रही थी कि तभी उस के पापा अनिल बोले, “नवी, क्या बात हुई?”
नवेली इतराते हुए बोली, “कुछ खास नहीं. बस यों ही.”
तभी नवेली की मम्मी राशि बोली, “अरे नवी, अपनी आदत के अनुसार अपना तन, मन और धन मत न्यौछावर कर देना. थोड़ा सोचसमझ कर फैसला लेना.”
नवेली झुंझलाते हुए बोली, “मम्मी, मोहित से आप की पसंद से ही शादी कर रही हूं. अब भी दिक्कत है?”
राशि साड़ी का पल्ला ठीक करते हुए बोली, “नवी, तुम्हें कोई दिक्कत ना हो, इसलिए बोलती हूं.”
नवेली 22 वर्ष की सुंदर युवती थी. अपने मातापिता की वह इकलौती बेटी है. नवेली के मम्मीपापा बहुत ही लिबरल विचारों के हैं. उन्होंने अपनी बेटी पर कभी कोई रोकाटोकी नहीं की थी. नवेली के मम्मीपापा
अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त थे. नवेली के छोटे कपड़ों पर उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी और ना ही उन्हें नवेली के बोयफ्रैंड्स पर कोई एतराज होता था. नवेली को अपने मम्मीपापा, मम्मीपापा कम फ्रैंड्स ज्यादा लगते थे.
नवेली को अंदर से खालीपन लगता था. नवेली को एक भरापूरा परिवार चाहिए था, पर उस की जिंदगी में थी ढेर सारी फ्रीडम और अकेलापन. एक के बाद एक बोयफ्रैंड्स नवेली की जिंदगी में आते गए, मगर हर लड़के को नवेली के विचार बेहद बचकाने और भावुक लगते थे. उस के सभी बोयफ्रैंड्स नवेली की तरफ आकर्षित थे. मगर प्यार से उन्हें कोई सरोकार न था. आज की युवा पीढ़ी की तरह उन के लिए भी प्यार का मतलब था घूमनाफिरना, पार्टी और सैक्स करना. हर लड़का कमिटमेंट से दूर भागता था.
नवेली की जिंदगी में सबकुछ था, पर नहीं था तो बस एक ठहराव.
उसी प्यार भरे ठहराव की तलाश में जब नवेली ने 22 वर्ष की उम्र में ही शादी करने की इच्छा जताई, तो
पहले तो राशि और अनिल ने ध्यान ही नहीं दिया था. मगर जब एक रोज नवेली ने खुले शब्दों में अपने मम्मीपापा से यह बात कही, तो अनिल ने शादी की वैबसाइट पर नवेली का प्रोफाइल डाल दिया था. एक हफ्ते में ही नवेली के प्रोफाइल पर 10 से भी अधिक प्रपोजल आ गए थे. हमेशा की तरह फैसला नवेली के हाथों में था.
नवेली सभी प्रोफाइल्स को चेक कर रही थी. कहीं पर हाइट कम थी, तो कहीं पर परिवार ही अधूरा था. तभी नवेली की निगाह एक प्रोफाइल पर रुक गई. खिलता हुआ गोरा रंग, ऊंचा लंबा कद, एथेलेटिक बदन, गहरी काली आंखें और बेहद प्यारी मुसकान. नाम था मोहित और वह दिल्ली में रहता था. एनुअल इनकम 70 लाख रुपए के आसपास थी.
नवेली ने अपने पापा को मोहित के बारे में बताया और फिर दोनों परिवार ने एकदूसरे के बारे में जानकारी एकत्रित कर ली थी.
नवेली के पापा की संपन्नता और नवेली का भोलापन मोहित के परिवार को भा गया था, तो वहीं मोहित की
इनकम, पढ़ाई और उस का भरापूरा परिवार नवेली को पसंद आ गया था.
मोहित के परिवार में उस के मम्मीपापा के अलावा उस की छोटी बहन शिप्रा भी थी. मगर मोहित के सभी
रिश्तेदार आसपास ही रहते थे, पूरा परिवार एक गुलदस्ते की तरह एकसाथ प्यार में बंधा हुआ था.
मोहित की बातों से नवेली को लगता, शायद उस की तलाश खत्म हो गई है. मोहित को सैक्स से अधिक वैल्यूज में इंटरैस्ट था. दोनों की फोन पर घंटों बातें होती थीं.
मोहित का परिवार जुलाई की एक अलसायी हुई दोपहर में नवेली से मिलने आया था. मोहित के पापा नवेली को बेहद सुलझे हुए लगे, तो उस की मम्मी कल्पना भी उसे बेहद ममतामयी लगी.
नवेली ने अपनी मम्मी को कभी अस्तपस्त नहीं देखा था. वह हमेशा टिपटौप रहती थीं, वही हाल उस के पापा अनिल का भी था. अकसर लोग नवेली को उन की बेटी नहीं छोटी बहन मानते थे. इस कारण नवेली को अंदर से बेहद कोफ्त होती थी. उसे मम्मीपापा जैसे दिखने वाले मम्मीपापा चाहिए थे. आज नवेली को लग रहा था कि उस का सपना शायद पूरा हो जाएगा.
नवेली ने बेहद सोचसमझ कर सफेट कुरता और पलाजो पहना था, सफेद जमीन पर लाल और हरे फूल उस कुरते के साथसाथ नवेली को भी ताजगी दे रहे थे. अपने सुनहले घुंघराले बाल उस ने यों ही खुले छोड़ दिए थे. चांदी के झुमके, आंखों में काजल और होंठों पर न्यूड लिपस्टिक सबकुछ बेहद ही मनोरम प्रतीत हो रहा था. वहीं मोहित नीली शर्ट और काली पैंट में बहुत हैंडसम लग रहा था. मोहित ने शायद आज शेव भी नहीं की थी. छोटीछोटी दाढ़ी के बाल नवेली को अपनी तरफ खींच रहे थे.
मोहित नवेली को अपने काम के बारे में बता रहा था. मोहित कह रहा था, “नवेली, मैं चाहता हूं कि तुम रानियों की तरह रहो. पैसा कमा कर लाने की जिम्मेदारी मेरी है और घरपरिवार को मैनेज करना तुम्हारी.”
नवेली आंखें बड़ीबड़ी करते हुए बोली, “तुम्हें क्या हाउसवाइफ चाहिए?”
मोहित शरारत से मुसकराते हुए बोला, “मुझे बस तुम चाहिए. तुम को मैं एक नए सांचे में ढाल लूंगा.
“मेरे विचार थोड़े पिताजी जैसे जरूर हैं, पर तुम्हें बेहद सिक्योर रखूंगा.”
नवेली की आंखों में आश्चर्य था. वह कभी भी मोहित जैसे लड़के से नहीं मिली थी.
मोहित आगे बोला, “मुझे तुम जैसी सभ्य लड़कियां पसंद हैं. मैं उन लड़कियों को नापसंद करता हूं, जो छोटेछोटे कपड़े पहन कर दूसरे लोगों को सैक्सुअली एक्साइट करती हैं.”
नवेली बोली, “मोहित, मैं तो शॉर्ट पहनती हूं.”
मोहित बोला, “बाद में भी पहनना, मगर बस मेरे लिए.”
नवेली को लगा कि मोहित उस को ले कर कितना संजीदा है… और लड़कों की तरह नहीं है वो.
नवेली को मोहित कुछ अलग सा लगा, मगर इस से पहले वो कुछ और समझ पाती, उस की और मोहित की मंगनी हो गई थी.
जैसे कि आमतौर पर होता है, मंगनी के बाद दिन सोना और रात चांदी हो जाती है, मगर मोहित आम लड़कों की तरह रातदिन फोन नहीं करता था. जब भी मोहित फोन करता, वो तब नवेली को दूसरी ही दुनिया में ले जाता था.
मोहित कुछ बातों में बेहद रिजिड था, इसलिए नवेली चाह कर भी मोहित से अपने अतीत की कोई भी बात नहीं बता पाती थी. मन ही मन नवेली को लगने लगा था कि वो हर स्तर पर मोहित से उन्नीस ही है. रंग, रूप, आचार, व्यवहार, हर स्तर पर मोहित उस से बीस ही है.
दोस्ती होना तो लाजिमी ही था न. देखो, तुम्हारी और मिसेज सक्सेना की दोस्ती तो चंद घंटों में ही हो गई, जबकि हम तो पूरे 15 दिन साथ रहे थे. इसी दौरान एक बार मेरी तबीयत भी बिगड़ गई थी तो सक्सेना साहब ने ही मुझे संभाला था और वे सारी बातें यहां आने पर मैं ने तुम को बताई थीं.
‘‘हांहां, मुझे सब याद है,’’ मैं कुछ खोईखोई सी बोली.
‘‘उन्हीं दिनों हम दोनों, एकदूसरे के बेहद करीब आ गए थे. दोस्ती के उन्हीं लम्हों में हम ने आपस में एक वचन लिया कि समय आने पर मिशिका और पार्थ की शादी कर देंगे. आज पार्थ आई.ए.एस. हो गया है. मगर दोस्ती में किए गए वादे में कहीं कोई कमी नहीं आई है. सक्सेनाजी के पास तो अब कितने अच्छेअच्छे आफर आ रहे होंगे जबकि यह जानते हैं कि मैं ने तो जिंदगी भर शोहरत और इज्जत के अलावा कुछ नहीं कमाया. मेरे पास अपनी मिशिका को उन्हें सौंपने के अलावा और कुछ देने को नहीं है.’’
सक्सेना साहब ने जज साहब का हाथ अपने हाथों में ले लिया था और भावविह्वल हो कर बोले, ‘‘ऐसीवैसी कोई बात मत कीजिए जज साहब, नहीं तो मैं उठ कर चला जाऊंगा. जिंदगी में सबकुछ मिल जाता है, मगर दोस्ती, अच्छे लोग, अच्छा परिवार बहुत कम लोगों को मिल पाता है और हम लोग उन्हीं में से एक हैं कि हमें आप मिले हैं.’’
‘‘सुन रही हो निशि. तुम जाति- बिरादरी की बातें करती रहती हो, क्या इन से अच्छा तुम्हें मिशिका के लिए कुछ मिल पाएगा. अच्छे लोग, अच्छे रिश्ते, अच्छे परिवार इन सब से बढ़ कर न धर्म है न जाति है और न ही कुछ और. आज मैं ने बिना तुम्हारी इच्छा जाने इस रिश्ते को हां कर दी है क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं सही काम कर रहा हूं और अदालत में आएदिन परिवारों के टूटनेबिखरने के मामले मैं ने सुने और निबटाए हैं, उन में रिश्ते टूटने की वजह यह शायद ही हो कि उन की जाति अलग थी या धर्म. मुझे माफ करना निशि, तुम्हारी बेसिरपैर की बातों के लिए मैं इतना अच्छा रिश्ता नहीं ठुकरा सकता. अच्छा लड़का सोच कर ही पार्थ से मिशिका की शादी की बात खुद तुम्हारे दिमाग में आए इस के लिए ही वह मुलाकात करवाई गई और अब यह पार्टी भी रखी गई ताकि इस ड्रामे का सुखद अंत कर दिया जाए.’’
पत्नी को काफी कुछ कह कर अंत में जज साहब ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मेरे खयाल से अब तुम्हें भी समझ जाना चाहिए कि तुम्हारी सोच बहुत संकीर्ण थी. वक्त और जमाने से हट कर थी. तुम्हारे भैया तुम्हारी बात सुन कर अपनी बेटी का जीवन बिगाड़ सकते हैं, पर मैं नहीं.’’
सभी अपनीअपनी बात कह चुके थे. मिशिका और पार्थ भी अपनी स्वीकृति दे चुके थे. अब मेरी बारी थी सो मैं ने भी हाथ जोड़ कर इस रिश्ते को अपनी स्वीकृति दे दी. मिसेज सक्सेना ने उठ कर मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बधाई हो निशिजी. सबकुछ कितनी जल्दी हो गया न. अभीअभी तो हम दोस्त बने थे और अभीअभी समधिनें. उन्होंने अपने गले में पहना एक जड़ाऊ हार उतार कर तुरंत मिशिका को पहनाते हुए कहा, ‘‘आज से तुम्हारी एक नहीं, दोदो मांएं हैं.’’
सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था मगर दिल में कहीं एक डर और चिंता थी, जो मुझे खुल कर खुश नहीं होने दे रही थी. क्या करूंगी, कैसे जाऊंगी भैयाभाभी के सामने. यह सोचसोच कर ही मेरी जान सूखी जा रही थी. सभी थक कर सो गए थे, मगर मेरे मन का डर और अपराधभाव मुझे सोने ही नहीं दे रहा था.
अगली सुबह काफी देर से आंखें खुल पाईं. पता नहीं कितने बजे नींद आई थी. घड़ी पर नजर पड़ी तो पूरे 10 बज रहे थे. जज साहब के कोर्ट जाने की बात दिमाग में आते ही मैं तेजी से उठी कि भाभी ने चाय के प्याले के साथ कमरे में प्रवेश किया और हंसती हुई बोलीं, ‘‘क्या निशि, इतनी बड़ी खुशखबरी है और तुम सो रही हो अब तक?’’
जिस बात के लिए मैं अब तक इतनी परेशान थी, वह इतनी आसानी से सुलझ जाएगी, मैं ने सोचा भी न था. मुझे तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.
मुझे हैरान देख भाभी बोलीं, ‘‘सुबहसुबह ही ननदोईजी का फोन आ गया और फोन पर उन्होंने जब रिश्ता तय होने की बात बताई तो हम से रहा नहीं गया और आप की खुशी में खुशी मनाने चले आए. अपने जीजाजी को देखने के लिए अंतरा भी बेचैन हो रही है, शाम को वह भी यहीं आएगी. सक्सेना परिवार को भी बुला लिया है, आज का डिनर मामामामी की तरफ से शहर के सब से अच्छे होटल में…’’ भाभी बोले जा रही थीं.
मैं हैरत में पड़ी भाभी का चेहरा पढ़ने में लगी थी. मगर वहां स्नेह व प्यार के अलावा और कुछ भी नहीं था. मेरे इतना बड़ा दुख देने के बावजूद भाभी का यह व्यवहार…कुछ समझ में नहीं आया तो मैं भाभी से लिपट कर जोरजोर से रो पड़ी.
‘‘भाभी, मैं इस लायक कहां कि आप मुझे इतना प्यार दें. मैं ने आप लोगों को अपनी गलत सोच की वजह से इतना दुख पहुंचाया, मैं तो आप को अपना मुंह भी दिखाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. मैं कितनी बुरी हूं भाभी, कितनी बुरी…’’ मेरा रुदन तेज हुआ जा रहा था और भाभी मेरी पीठ सहलाए जा रही थीं.
‘‘मत रो निशि, मत रो. अब वह भी तुम्हारा हम से अगाध प्रेम ही तो था, वरना किसी को क्या पड़ी है, अच्छा हो या बुरा हो. तुम्हें गलत लगा, इसीलिए तुम ने रोका और हमें तुम्हारी बात सही लगी इसीलिए हम ने उसे मान लिया.’’
‘‘तुम्हारी भाभी बिलकुल सही कह रही हैं निशि. जो हो गया उसे भूल जा, और दिल खोल कर आने वाली खुशियों का इंतजार कर.’’ तभी कमरे में जज साहब के संग भैया आतेआते बोले, ‘‘मेरे मन का बोझ इतनी सहजता से उतर जाएगा, सोचा नहीं था,’’ मैं ने कृतज्ञता से जज साहब को देखा जिन्होंने अपनी समझदारी से इतनी बड़ी खुशी मुझे दे दी थी. उन्होंने मेरी आंखें पढ़ लीं और मुसकरा दिए.
‘‘मगर अभी तो अंतरा का दुख है मेरे सामने. वह तो बहुत नाराज है अपनी बूआ से. उसे कैसे वापस पा सकूंगी मैं?’’
‘‘अरे, अपने बच्चे छोटेछोटे हैं. ज्यादा देर तक अपने बड़ों से नाराज नहीं रहते. मैं ने उसे समझाया है निशि, उस के मन में तुम्हारे लिए कोई गुस्सा नहीं है.’’ भैया बोले तो साथसाथ भाभी भी बोल पड़ीं, ‘‘और अभी सुबहसुबह ही तो फूफाजी से उस की ढेरों बातें हुई हैं और फूफाजी ने उस से वादा किया है कि अब चाहे उस की बूआ कुछ भी कहें, वह अपनी अंतरा की शादी उसी के संग कराएंगे जिसे वह पसंद करती है. पहले चर्च में अंतरा की उस ईसाई लड़के से शादी होगी, फिर मिशिका की मंडप के नीचे. बच्चे जितनी जल्दी गुस्सा हो जाते हैं, उतनी ही जल्दी मान भी जाते हैं निशि.’’
भाभी अपनी बात कह चुकीं तो मैं ने खुश हो कर तुरंत कहा, ‘‘और अब सब से पहले तैयार हो कर हम लोग वहां चलेंगे. मुझे भी तो अपने दूसरे दामाद को शाम के डिनर के लिए आमंत्रित करना है. उन से भी तो माफी मांगनी है, इस बुरी बूआ को.’’