एक मुलाकात ऐसी भी- भाग 3: निशि का क्या था फैसला

मेरे स्वभाव से परिचित जज साहब ने इस बात को जरा भी तूल नहीं दिया. सामान्य भाव से बोले, ‘‘अरे, निशि, जिस रास्ते जाना नहीं, उस बारे में क्या सोचना. जब हम मिशिका के लिए लड़का ढूंढ़ने निकलेंगे तो देखना लड़कों की कोई कमी नहीं आएगी. अभी तो हमारी बेटी का इंजीनियरिंग का ही एक साल बचा है फिर उसे एमबीए भी करना है. अभी कई साल हैं उस की शादी में.’’

मैं ने भी सोचा कि जज साहब सही तो कह रहे हैं. अपनी जाति में भी लड़कों की कोई कमी थोड़े ही है. अभी ऐसी जल्दी भी क्या है. अंतरा की तरह मिशिका का किसी गैर जाति में अफेयर थोड़े ही है, जो मैं इस विषय में सोचूं.

देखते ही देखते हफ्ता निकल गया. पार्टी का दिन भी आ गया. लौन में ही पार्टी का इंतजाम किया था. पहली बार मिशिका ने पार्टी का जिम्मा अपने सिर पर लिया था. बोली, ‘‘ममा, अभी परीक्षा की कोई टेंशन नहीं है, इस बार मैं देखूंगी सारा इंतजाम.’’

सुन कर पहली बार एहसास हुआ कि बेटी बड़ी हो गई है. पार्थ का खयाल एक बार फिर दिमाग में आ गया. मगर मेरी मजबूरी थी कि मैं चाह कर भी यह रिश्ता नहीं कर सकती थी. मुझे इस समय अपनी भतीजी के गुस्से में कहे शब्द याद आ रहे थे.

घर में मेहमान आने शुरू हो गए थे. मैं ने अपनी सोच को दरकिनार करने की कोशिश की और मेहमानों की आवभगत में लग गई. जज साहब के कुछ करीबी जल्दी ही आ गए थे. अत: वह उन्हें पीने व पिलाने में व्यस्त हो गए. मैं और मिशिका मेहमानों के स्वागत में लगे थे. बेटी पर बारबार नजरें जा कर ठहर जातीं क्योंकि आज वाकई वह बहुत सुंदर लग रही थी. अचानक दिल में खयाल आया कि अगर आज की पार्टी में पार्थ उसे देख ले और पसंद कर ले या उस की मम्मी ही मिशिका को अपने बेटे के लिए मांग लें तो…

अचानक ही वह परिवार आंखों के सामने आ गया. श्रीमती सक्सेना अपने पति व दोनों बेटों के साथ चेहरे पर मुसकान लिए आती दिखाई दीं. समर्थ को तो उस दिन मौल में ही देख लिया था पर पार्थ तो उस से भी चार कदम आगे था. यह लड़का इतना हैंडसम होगा यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था. उस पर आईएएस भी. मुझे फिर लगा कि मेरी चाहत मेरी सोच पर हावी हो गई है. फिर से मेरी चाहत जोर पकड़ने लगी कि यह लड़का तो बस, मेरा दामाद हो जाए. तभी नजदीक आ कर दोनों भाइयों ने मेरे और जज साहब के पैर छुए. मन कहीं अंदर तक उन्हें अपना मान गया.

सक्सेना दंपती तो हम बड़ों के ग्रुप में शामिल हो गए और दोनों भाई, मिशिका के फें्रड्स गु्रप में.

पार्टी खूब मजेदार चली. खाना खाने के बाद सभी लोग एकएक कर जाने लगे थे. मगर सक्सेना परिवार अभी जमा हुआ था. मुझे भी उन के जाने की कहां जल्दी थी. मिशिका पार्थ के संग खड़ी कितनी अच्छी लग रही थी. मन में सचमुच ही बहुत मलाल था कि वे कायस्थ हैं.

अब तक करीब सभी मेहमान जा चुके थे. रात के 11 बज चुके थे. 30 अक्तूबर की रात, शरीर में ठंडीठंडी हवा की सिहरन सी हो उठी थी कि मिसेज सक्सेना ने, ‘‘एक कप कौफी हो जाए फिर हम भी चलेंगे,’’ कह कर अभी थोड़ा और रुकने का संकेत दिया.

‘‘अरे, क्यों नहीं, क्यों नहीं,’’ कहते हुए वेटर को 4 कप कौफी लाने का आर्डर दे दिया.

मिशिका दोनों भाइयों को अभीअभी अंदर ले गई थी. शायद अपना शानदार कमरा दिखा रही हो. लड़कियों को अपना कमरा दिखाने का बहुत क्रेज होता है.

कौफी आ गई थी. हम चारों हंसी मजाक के साथ कौफी का मजा ले रहे थे कि वह हो गया, जो मेरी सोच में तो निरंतर चल रहा था मगर हकीकत में उस का कोई अनुमान नहीं था.

सक्सेना साहब ने विनम्रता से अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘अगर आप लोग हमें दे सकें तो अपनी मिशिका को हमारे पार्थ के लिए दे दीजिए.’’ उन के कहने के साथ ही मिसेज सक्सेना ने भी अपने दोनों हाथ जोड़ दिए.

मैं तो स्तब्ध, भौचक्की, किंकर्तव्य- विमूढ़ सी रह गई. जज साहब ने मेरी तरफ देखा. दोचार पल यों ही खामोशी में निकल गए फिर जज साहब ने कहा, ‘‘हमें यह रिश्ता मंजूर है. पार्थ हमें भी बहुत पसंद आया है और फिर आप से अच्छा और कौन मिलेगा हमें.’’

जज साहब की हां सुन कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में अब मैं क्या करूं? न हां करने की स्थिति में थी और न ही ना करने की. फिर कुछ सोचती सी बोली, ‘‘अरे, मिशिका से भी तो पूछना होगा न…उस की भी राय जानना जरूरी है. आप को तो पता ही है कि आजकल के बच्चे…’’

मुझे लगा कि चलो, इस बहाने कुछ तो वक्त मिलेगा सोचने का. फिर कुछ सोच कर मना कर देंगे. सही बताऊं तो भैयाभाभी, अंतरा किसी का भी सामना करने की मुझ में हिम्मत नहीं थी.

मेरी इस बात को सुन कर मिसेज सक्सेना के साथ जज साहब और सक्सेना साहब दोनों हंस पड़े. इस के पहले कि मैं कुछ कह पाती, मिसेज सक्सेना अपनी हंसी रोकती हुई बोलीं, ‘‘अच्छा, पहले यह तो बताइए, आप तो राजी हैं न…’’

‘‘मैं…मैं तो…हां, और क्या. मुझे तो बहुत खुशी होगी आप से जुड़ कर,’’ मैं इस के अलावा और क्या कह सकती थी. जब जज साहब ने इस की स्वीकृति दे दी. ‘‘मगर मिशिका…’’ मैं ने फिर इस से बचने की कोशिश की.

‘‘अरे, निशिजी, मुझे तो बस, आप की ही इजाजत चाहिए थी. बाकी सब की इजाजत तो पहले से ही है,’’ इस बार सक्सेना साहब ने जिस अंदाज में कहा, मेरा चौंकना लाजिमी था. असमंजस में पड़ी बोली, ‘‘मतलब?’’

‘‘अरे, निशि, तुम्हारी और मिसेज सक्सेना की मुलाकात मौल में इसीलिए तो कराई थी कि आप दोनों में दोस्ती हो जाए, वरना तो मैं भी जा सकता था उस दिन. मैं ने तो कोर्ट में व्यस्त होने का बहाना किया था. हम लोग काफी दिनों से योजना बना रहे थे कि तुम दोनों को कैसे मिलाया जाए. सो इत्तफाक से मिशिका की गेटटूगेदर निकल आई. हालांकि मौल में मिलवाना मुश्किल था, लेकिन बच्चों ने सब मैनेज कर लिया.’’

जज साहब बोलते जा रहे थे और मैं आंखें फाड़े उन्हें सुने जा रही थी.

‘‘निशि, जब मौल से लौट कर तुम ने पार्थ के बारे में अपनी चाहत बताई तो मुझे लगा कि हमारा तीर निशाने पर लगा है. प्रकट में मैं ने तुम्हारी बात को तूल नहीं दिया था.

‘‘निशि, तुम्हें याद होगा कि 4 साल पहले मैं जब एक सेमिनार में अमेरिका गया था तो वहां उस में सक्सेना साहब भी मिले थे. भारत से जो खास लोग उस सेमिनार में भेजे गए थे, उन को एक ही होटल में ठहराया गया था और सक्सेना साहब का कमरा मेरे बगल में ही था.’’

एक मुलाकात ऐसी भी- भाग 2: निशि का क्या था फैसला

पार्थ के बारे में जान कर मुझे सबकुछ अच्छा लगा था, लेकिन एक अड़चन थी कि वे कायस्थ थे, हमारी तरह ब्राह्मण नहीं थे जो मेरे लिए तो जमीं और आसमान को मिलाने वाली बात थी. अपनी इकलौती बेटी की गैर जाति में शादी करना मेरी सोच में कहीं दूरदूर तक नहीं था. एक तरह से तो मैं इस तरह के विवाह के बिलकुल खिलाफ थी.

मेरा मानना था कि अपनी जाति, अपने धर्म के लोगों के बीच ही शादीब्याह जैसे रिश्ते करने चाहिए ताकि दोनों एकदूसरे से, परिवारों से, आपसी समझ और तालमेल बैठा सकें और सुखी संसार बसा सकें. मुझे हमेशा से ही यह अनुभव होता था कि इस के विपरीत शादियां कभी सुखद और सफल नहीं होतीं. शुरूशुरू में तो सब ठीकठाक चलता है, पर कुछ समय बाद कहीं तलाक होता है, तो कहीं जबरदस्ती रिश्तों को ढोया जाता है. यहां तक कि अपने परिवारों में होने वाली कई इस तरह की शादियों में मैं ने अपना पूरा विरोध जाहिर किया था.

ऐसा नहीं है कि जातिबिरादरी में शादियां कर के किसी तरह की टेंशन नहीं होती है या इस तरह की शादियां टूटती नहीं हैं, फिर भी काफी हद तक इन झमेलों से बचा जा सकता है और मेरे अनुभवों ने मुझे यही सिखाया है कि जब एक हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं तो यह तो समाज की सोच है जो न कभी एक हुई है और न ही होगी.

इन सभी बातों में जज साहब और मेरे विचार एक से नहीं हैं तो औरों की क्या कहूं. कई बार उन्होंने अपनी बातों से मुझे भी समझाने की कोशिश की है, मगर मैं कभी इतने बड़े दिल की हो नहीं पाई.

पिछले साल मैं ने अपना यह विरोध अपने भैया पर थोप दिया था. जब उन्होंने बताया कि वह अंतरा यानी मेरी भतीजी की शादी एक ईसाई लड़के से तय कर रहे हैं. दोनों एकदूसरे को जहां बहुत चाहते हैं, वहीं लड़का और उस का परिवार सबकुछ बहुत बढि़या है. हम लोगों को बच्चों की खुशी के अलावा और क्या चाहिए.

तब भैया की बात सुन कर मैं ने बवंडर मचा दिया था. ‘आप ने तो भैया हद ही कर दी. बच्चों की जिदें क्या यों ही आंखें मूंद कर पूरी की जाती हैं? ईसाई लड़के से विवाह करोगे अपनी अंतरा का? चार दिन भी नहीं निभा पाएगी वह इस अलग जाति और धर्म के लड़के के संग… और फिर कर लो जो आप की मर्जी हो, मैं तो इस गलत शादी में आने से रही.’ मेरी बातों के आक्रोश ने भैया को भयभीत कर दिया और उन्होंने यह कह कर उस रिश्ते को टाल दिया कि इकलौती छोटी बहन ही शादी में शरीक नहीं होगी तो दुनिया क्या कहेगी?

उस दिन के बाद से अंतरा न अपने पापा से बात कर रही है और न मुझ से. एक दिन गुस्से में आ कर वह अपनी भड़ास निकाल गई थी, ‘‘बूआ, आप ने मेरा प्यार, मेरी जिंदगी मुझ से छीन ली. हम सब ने हमेशा आप को इतना प्यारसम्मान और स्नेह दिया, उस का यह सिला दिया आप ने. कल को आप को अपनी मिशिका की ऐसे ही किसी लड़के से शादी करनी पड़ी तब मैं देखूंगी कि कैसे आप जाति और धर्म का भेदभाव कर उस का दिल तोड़ पाती हैं.’’

उस की आंखों में भरे हुए आंसू और अपने लिए नफरत, आज भी मुझे विचलित कर देते हैं. मुझे इस बात का एहसास बाद में हुआ कि वह उस लड़के के प्यार में इतनी दीवानी है कि उस के बिना किसी और से शादी नहीं करेगी. कभीकभी खुद पर भी बहुत गुस्सा आता है कि मैं ने इस कदर क्यों अपनी इच्छा, अपने विचार भैया पर थोपे, फिर सोचती हूं तो लगता है कि आखिर मैं ने गलत ही क्या किया. वह मेरे अपने थे, अगर अपनों को उन की गलती का एहसास करा दिया तो क्या गलत किया? अंतरा मेरी कोई दुश्मन थोड़े ही थी. खुद भैया को भी पता था कि मैं अंतरा से कितना प्यार करती हूं, पर मुझे उस समय जो सही लगा मैं ने वही किया. अब वही बातें मेरे जेहन में आ रही थीं.

मैकडोनाल्ड की उस मुलाकात ने थोड़े ही समय में दोनों मांओं के बीच एक दोस्ती का सा रिश्ता बना दिया था. अपने- अपने मोबाइल नंबर और अतेपते दे कर हम ने विदा ली थी.

रास्ते भर मैं मिशिका से अपनी इस नई बनी दोस्त की बातें करती रही और वह भी अपनी तरहतरह की बातें मुझे बताती रही. उस के दोस्त की मम्मी के संग मैं आज सारे दिन रही और बोर नहीं हुई, इस से मेरी बेटी बहुत संतुष्ट थी. बोली, ‘‘ममा, आज आप बोर नहीं हुईं. नहीं तो पिछली बार की तरह मुझे सारे रास्ते आप के भाषण सुनने पड़ते. चलो, आगे से जब भी ऐसी कोई पार्टी होगी तो मैं आंटी से कहूंगी कि वह भी आप को कंपनी देने आ जाएं. तब तो ठीक रहेगा न मम्मी. मुझे भी टेंशन नहीं रहेगी कि ममा इतनी देर क्या करेंगी.’’ उस की बात सुन कर मैं मुसकरा पड़ी थी.

घर आने के बाद तरोताजा हो कर मैं बैठी ही थी कि मेरा मोबाइल बज उठा. नंबर देखा तो आज की बनी फें्रड मिसेज सक्सेना का ही था. तुरंत रिसीव किया. ‘‘आप घर पहुंच गईं क्या, मुझे तो आप की बड़ी याद आ रही है. सोच रही हूं कि जल्दी ही किसी रोज गाजियाबाद आ कर आप से मिलूं. आप से मिल कर बातें कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘हां, मैं भी बस, आप के बारे में ही सोच रही थी. कभीकभी किसी से अचानक मिलने पर भी ऐसा नहीं लगता कि हम जिंदगी में पहली बार मिले हैं.’’ मैं ने भी उन की बात का जवाब उन्हीं के अंदाज में दे दिया.

थोड़ी देर तक इसी तरह इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ कि उन्हें अपने घर अगले सप्ताह होने वाली पार्टी के लिए आमंत्रित कर दिया. मौल में श्रीमती सक्सेना से इसीलिए पार्टी में आने को नहीं कहा था कि जज साहब से पूछ कर कहूंगी पर अब जब उन्होंने यह बताया कि मसूरी से इस रविवार को 5 दिन के लिए पार्थ भी आ रहा है, तो बस, उसे देखने की इच्छा दिल में जाग उठी और बोल बैठी, ‘‘अरे, तो आप सब लोग इस रविवार को हमारे घर आइए न. एक छोटी सी पार्टी रखी है. जज साहब को अच्छा लगेगा.’’

वह भी तुरंत तैयार हो गईं. जैसे आने के लिए बिलकुल तैयार बैठी हों.

शाम को जज साहब कोर्ट से लौटे तो चाय के दौरान मैं ने सबकुछ उन्हें बता दिया और अपने दिल की चाहत भी कह बैठी, ‘‘इतना अच्छा लड़का है. आईएएस है. परिवार भी समझदार और हैसियत वाला है. कायस्थ हैं, क्या ही अच्छा होता कि हमारी तरह वह भी ब्राह्मण होते तो हाथ जोड़ कर उन से मिशिका के लिए उन का पार्थ मांग लेती.’’

बच्चे के कल को दें आर्थिक सुरक्षा

एक आकलन के मुताबिक देश में आधे बच्चे या तो स्कूल नहीं जा पाते या फिर कुछ ही सालों में पढ़ाई अधूरी छोड़ देते हैं. ऐसे में देश का भावी युवा कितना साक्षर होगा, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. देश में बढ़ती महंगाई के कारण अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा मुहैया कराना सब से मुश्किल काम है. अच्छी शिक्षा से मतलब उसे सिर्फ स्कूल भेजना मात्र नहीं है, बल्कि उस की प्राइमरी ऐजुकेशन से ले कर उच्च शिक्षा तक इस तरह से कराना है कि उस की पढ़ाई व कैरियर निर्माण के दौरान कभी आर्थिक अड़चन न आए और वह अपने मनमुताबिक कैरियर चुन सके.अमूमन हम बच्चों की शिक्षा के खर्च में स्कूल, कालेज और स्नातकोत्तर तक की शिक्षा पर होने वाले खर्च को ही शामिल करते हैं, जबकि आजकल बच्चे की स्कूली शिक्षा में स्कूल की फीस के साथसाथ ट्रांसपोर्टेशन, अन्य रचनात्मक गतिविधियां, दाखिला, ट्यूशन फीस, ड्रैस, स्कूल बैग, स्टेशनरी और उच्च शिक्षा हेतु विदेश जाने से ले कर और न जाने कितने खर्च शामिल होते हैं, जो जेब में पैसा न होने पर भविष्य में आप के बच्चों की शिक्षा और कैरियर में दीवार बन जाते हैं.

इन हालात में बच्चों की उच्च स्तरीय पढ़ाई का खर्च उठाना क्या इतना आसान है? बिलकुल नहीं. तो क्या आप बच्चों की शिक्षा के लिए पर्याप्त राशि जमा कर रहे हैं? अगर नहीं तो अभी से कमर कस लीजिए. बच्चों की बेहतर शिक्षा और भविष्य के लिए अभी से पैसा जमा करना शुरू कर दीजिए.

खर्च, बजट और प्लानिंग

भारत में शिक्षा 3 तरह की होती है- प्राथमिक, मध्य और उच्च शिक्षा. उच्च शिक्षा में अकादमिक और प्रोफैशनल यानी व्यावसायिक शिक्षा आती है. यही शिक्षा सब से ज्यादा खर्चीली होती है. लगभग सभी तरह की व्यावसायिक शिक्षा पर लाखों रुपए खर्च होते हैं. मसलन, डाक्टरी, इंजीनियरिंग, एमबीए आदि की पढ़ाई पर करीब क्व4 लाख से क्व10 लाख तक खर्च आता है. हम बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का खर्च तो जैसेतैसे निकाल लेते हैं पर कालेज और व्यावसायिक शिक्षा पर खर्च होने वाले पैसों का इंतजाम करना मुश्किल हो जाता है. तब आपातकाल में किसी को लोन लेना पड़ता है, तो किसी को अपने गहने आदि बेचने पड़ते हैं. इसलिए अगर बच्चों के बचपन से ही उन की पढ़ाईलिखाई के लिए पैसे जमा करना शुरू कर दिए जाएं तो बाद में आर्थिक परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

एक बीमा कंपनी से जुड़े फाइनैंशियल प्लानर अखिलेंद्र नाथ इस के लिए कुछ तरीके सुझाते हैं, जिन के आधार पर आप अपने बच्चे की ऐजुकेशन प्लान कर सकते हैं. सब से पहले टारगेट डेट तय कीजिए यानी उस तारीख और वर्ष की गणना कीजिए जब आप का बच्चा उच्च शिक्षा लेने लायक हो जाएगा. उस के बाद वर्तमान में होने वाले शिक्षण व्यय को कैलकुलेट कीजिए. फिर उसे बच्चे की शिक्षा के अनुरूप भविष्य की महंगाई दर के मुताबिक जोडि़ए. इस जोड़ के बाद आप को भविष्य में होने वाले खर्च की रकम का मोटा सा अंदाजा हो जाएगा. मान लीजिए आज उच्च शिक्षा में लगभग क्व10 लाख से क्व12 लाख का खर्च आता है, तो बढ़ती महंगाई के हिसाब से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 20-21 साल तक यह खर्च बढ़ कर क्व25 लाख से क्व30 लाख तक तो हो ही जाएगा. अब आप के पास एक टारगेट रकम का अनुमान आ चुका है. बस इसी रकम के इंतजाम के लिए आप को अपनी आय व हैसियत के हिसाब से पैसे जोड़ने या फिर निवेश करना होता है. अगर आप इस गणना के मुताबिक सही समय में इस राशि को जमा कर पाते हैं, तो आप के बच्चे की शिक्षा में किसी भी तरह की मुश्किल नहीं आ सकती. इस तरह से शिक्षा के लिए वित्तीय योजनाओं का खाका खींच कर आप अपने बच्चे का आज ही से बेहतर भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं.

निवेश कब, कहां और कैसे

अभिभावकों के मन में सब से पहला सवाल यही उठता है कि वे निवेश कब, कहां और कैसे करें. वैसे तो इस का सीधा जवाब यही है कि जब बात बच्चों के लिए निवेश करने की हो तो आप जितनी जल्दी शुरुआत करेंगे, उतना ही बेहतर होगा. एक इंश्योरैंस कंपनी से जुड़े नितिन अरोड़ा बताते हैं कि जिस अनुपात से लोगों का वेतन बढ़ रहा है उस से कहीं ज्यादा तेजी से पढ़ाई में होने वाला खर्च बढ़ रहा है. ऐसे में बच्चों की ऐजुकेशन प्लानिंग हम कुछ चरणों यानी स्टैप्स में बांट लेते हैं. ये चरण अभिभावकों के वेतन और शिशु की अवस्था के आधार पर बांटते हैं. पहले चरण के तहत शिशु के पैदा होने से उस के लगभग 5 साल के होने तक आप ज्यादा से ज्यादा सेविंग करें, क्योंकि इस दौरान शिशु की पढ़ाई पर खर्च लगभग न के बराबर होता है. उस के बाद बच्चा स्कूल जाना शुरू कर देता है. इस चरण में सेविंग कम हो जाती है, क्योंकि उस की पढ़ाई का खर्च आ जाता है. 9 से 16 साल की उम्र के दौरान बहुत ही संतुलित राशि जमा करें. फिर 18 से 25 साल की उम्र में बच्चा युवा होने पर आप की जमा राशि का सही उपयोग करने लायक हो जाता है. इस तरह आप अपनी राशि को अलगअलग चरणों में घटातेबढ़ाते हुए जमा करेंगे तो आप की जेब पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा.

बच्चे के भविष्य को जेहन में रख कर निवेश कहां, कब और कैसे करना चाहिए, इस पर वित्तीय सलाहकारों की अलगअलग राय है. कुछ का मानना है कि बीमा कंपनियां बच्चों के लिए चाइल्ड ऐजुकेशन प्लान की कई योजनाएं चलाती हैं. इन में यह देख कर कि किस प्लान में जोखिम कम और रिटर्न ज्यादा है, निवेश करना उचित रहता है. बाजार में लगभग सभी बड़े बैंक और वित्तीय कंपनियां बच्चों के लिए लुभावने औफर देती हैं. इन के अलावा और भी कई तरह के निवेश के विकल्प हैं, जो अच्छा रिटर्न देते हैं. मसलन, म्यूचुअल फंड, बौंड्स, पब्लिक प्रौविडैंट फंड, राष्ट्रीय बचत खाता आदि. साथ ही डाकघर की निवेश योजनाओं का इस्तेमाल भी अपने बच्चों के लिए निवेश करने में कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड कंपनियों ने तो बच्चों की शिक्षा और शादी को ध्यान में रख कर 20 से भी ज्यादा ऐसी योजनाएं लौंच की हैं. बस, आप को अपनी आवश्यकता के अनुसार योजना का चयन करना है. अखिलेंद्र नाथ के मुताबिक किसी ऐसे विशेष प्रोडक्ट या बीमा कंपनी के प्लान के चक्कर में पड़ने के बजाय आप निवेश के नवीन तरीकों को अपनाएं तो बेहतर रहेगा. 18 साल की उम्र तक बच्चा आर्थिक तौर पर परिवार पर ही आश्रित होता है. उस दौरान अगर उस के मन की पढ़ाई न हो पाए तो वह भटक जाता है. इस उम्र में बेरोजगारी उसे अपराधी तक बना देती है. इसलिए निवेश के परंपरागत तरीकों को छोड़ कर कई और भी तरीके हैं.

मसलन, कुछ लोग अपने बच्चे के नाम पर प्रौपर्टी खरीद लेते हैं, जो बाद में बच्चे के काफी काम आती है. साथ ही सोनाचांदी और शेयरों में भी कुछ अभिभावक निवेश करते हैं. यहां समझने वाली बात यही है कि बच्चे की शिक्षा के लिए पैसा सिर्फ ऐजुकेशन प्लान या परंपरागत तरीकों से ही जोड़ा जाए, ऐसा जरूरी नहीं है. आप को तो बस पैसा जोड़ना है, जिसे भविष्य में उस की पढ़ाई पर खर्च कर सकें. इसी तरह जनरल इंश्योरैंस के साथ भी यह कंडीशन नहीं होती है कि उन में केवल बड़े ही निवेश कर सकते हैं. अभिभावक इन प्लांस में अपने बच्चे के लिए निवेश कर सकते हैं. हां, इस तरह के मसलों में फाइनैंशियल प्लानर या ऐक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें. कुल मिला कर समझने वाली बात सिर्फ इतनी है कि अभी से पैसे जमा करना शुरू कीजिए. फिर चाहे चाइल्ड ऐजुकेशन प्लान के जरीए कीजिए या फिर अन्य किसी योजना के जरीए, लक्ष्य बस यह होना चाहिए कि जब बच्चा बड़ा हो कर अच्छी शिक्षा के लिए बाहर कदम रखे तो आप की जेब उस का पूरा साथ दे. ताकि बिना किसी रुकावट के वह बेहतरीन शिक्षा हासिल कर अच्छा जीवन बसर कर सके और समाज में एक अच्छे नागरिक के रूप में उचित योगदान दे सके.

टैनिंग से बचने और कम करने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं एक वर्किंग वूमन हूं और मु झे रोज धूप में औफिस जाना होता है. जिस से मेरी स्किन बहुत डार्क होती जा रही है. टैनिंग बढ़ती जा रही है. प्लीज मेरी हैल्प करें?

जवाब-

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है धूप में सनस्क्रीन लगाना बहुत ही जरूरी है, वरना सूर्य की किरणें आप की स्किन को टैन करती ही हैं. सनस्क्रीन लगाने का तरीका सही हो तो सनस्क्रीन लगाना बहुत आसान हो जाता है.

घर से निकलने से 10 मिनट पहले सनस्क्रीन को फेस पर लगा लें. कुछ पसीना जरूर आएगा. घबराए नहीं. एक टिशू से या किसी सूती कपड़े से अथवा रूमाल से थपथपाएं. 10 मिनट बाद आप ऐसे ही पाउडर लगा कर या फिर मेकअप कर के घर से जा सकती हैं. अब पसीना दोबारा नहीं आएगा.

अगर आप घर से बाहर 2-3 घंटे से ज्यादा रहती हैं तो सनस्क्रीन दोबारा लगाना भी जरूरी है. जो आप के फेस पर टैनिंग हो गई है उस के लिए 1 चम्मच फ्लैश एलोवेरा जैल और कुछ बूंदें नीबू के रस की मिला कर फेस पर मसाज करें. 1/2 घंटे बाद उस को धो लें. ऐसा करने से 2-3 दिन में ही आप की टैनिंग पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. आप चाहें तो एक बार किसी पार्लर में जा कर ब्लीच भी करा सकती हैं. उस से भी टैनिंग काफी हद तक खत्म हो जाती है.

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गर्मियों के दिनों की सबसे आम परेशानी और शिकायत यही होती है कि, चेहरे के साथ स्किन से टैन को कैसे हटाया जाए. लम्बे समय तक सूरज के सम्पर्क में रहने से हमारी स्किन को काफी कुछ सहन करना पड़ता है. जिसमें से एक परेशानी है टैनिंग की. जी हां ये ऐसी परेशानी है, जो एक बार पीछा पकड़ ले तो जल्दी छोड़ती नहीं. फिर स्किन बेहद भद्दी और काली नजर आती है. आज हम आपको कुछ ऐसी रेमिडी के बारे में बताएंगे, जिससे आपका चेहरे और बाकि की स्किन टैन फ्री हो जाएगी.

1. एक्सफोलिएशन-

एक्सफोलिएशन एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से आप अपनी स्किन से डेड स्किन को हटा सकती हैं. इससे आपको बेहतर रिजल्ट देखने को मिलेंगे.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- 6 टिप्स: फेस के साथ स्किन से ऐसे हटाएं टैनिंग

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बड़े धोखे हैं इस राह में

यौन संबंधों को ले कर बने कानूनों का लाभ उठाने के लिए अपराधियों ने एक नया व्यवसाय खड़ा कर लिया है- हनी ट्रैप का. इस में बड़ी आसानी से सैक्स के भूखे पुरुषों को फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप आदि से पहले दोस्ती की जाती है और फिर फोन नंबर ले कर मिलने का न्योता दिया जाता है.

यहां तक बात स्वाभाविक और 2 व्यस्कों का मामला है. हर पुरुष की चाहत होती है कि पत्नी हो या न हो, उस की गर्लफ्रैंड जरूर हो जिस से वह अपने सुखदुख बांट सके और संभव हो तो सैक्स संबंध बना सके. सिर्फ सैक्स संबंध बनाने के लिए यों तो वेश्याओं का बड़ा बाजार है पर उस में जोखिम बहुत है और लोग वहां जाने से कतराते हैं. हनी ट्रैप में वे फंसते हैं जो कोई  झमेला नहीं चाहते और केवल बदलाव, उत्सुकता या क्षणिक आनंद की खातिर कुछ रोमांचक करने को तैयार हो जाते हैं.

हनी ट्रैप में आने पर लड़की पुरुष के साथ अपनी सैक्सी अदाएं दिखाती है और कभी सैल्फी से तो कभी छिपे कैमरे से फोटो खींच लिया जाता है. कई बार ऐन क्रिटिकल समय पर दरवाजा खोल कर

3-4 लोग घुस जाते हैं जो लड़की के साथी होते हैं और जो ब्लैकमेल, लूट, मारपीट करने लगते हैं.

हाल के बने कानूनों ने हनी ट्रैप बिजनैस को खूब बढ़ावा दिया है. आजकल महिलाएं हनी ट्रैप के शातिर पुरुष पर किसी भी तरह का आरोप लगा सकती हैं और अगर मामला पुलिस में चला जाए तो न केवल पुरुष की जगहंसाई, जग प्रताड़ना होती है बल्कि घर में भीषण गृहयुद्ध भी छिड़ जाता है, जेल भी हो सकती है. यदि पुरुष इस जिद पर अड़ जाए कि जो हुआ वह सहमति से हुआ और अपराध नहीं हुआ तो भी पुलिस और अदालत उसे पहले जेल भेज देगी और सफाई देने का मौका महीनों बाद मिलेगा और लंबी अदालती लड़ाई के बाद ही छुटकारा मिलेगा. यही ब्लैकमेल का अवसर पैदा करता है.

स्त्रीपुरुष संबंध व्यस्क संबंध हैं और इन पर बनाए गए कानून असल में स्त्री को अधिकार नहीं देते, उसे और गुलामी की जंजीरों में बांध रहे हैं. जैसे जून में दिल्ली के एक मामले में हुआ जिस में 3 पुरुषों और 1 युवती ने 1 पुरुष को फंसाया.

उस पुरुष को लूटा तो गया पर वह पुलिस में चला गया और जो पता लगा उस से यह स्पष्ट है कि यह युवती जो अपराधियों के साथ है, खुद एक पीडि़ता ही है. वह इस तरह के अपराध में किसी लालच या भय के कारण शामिल हुई होगी. उसे जबरन चुग्गा बना कर फेंका गया. जो कानून उसे बचाने के लिए बनाया गया था, उसी कानून के अनुसार वह सिर्फ एक अपराध का हथियार थी.

वेश्यावृत्ति समाप्त करने वाले ज्यादातर कानूनों में वेश्याओं को अपराधी नहीं माना गया पर पुलिस उन्हीं को सब से ज्यादा लूटती है. इन कानूनों के बावजूद कोठों में रह रहीं या स्वतंत्र रूप से देह बेचने वालीं समाज व पुरुषों की शिकार हैं और कानूनों ने उन्हें और जकड़ दिया है.

कार्यक्षेत्र में यौन प्रताड़न कानून ने औरतों की आजादी छीन ली है. वे पुरुषों की तरह हंसबोल भी नहीं सकतीं क्योंकि पुरुष उन से डरते रहते हैं. उन्हें जोखिम के काम नहीं दिए जाते. उन की युवावस्था की अपील पर कोई विवाद न खड़ा हो जाए इसलिए कंपनियां उन्हें जिम्मेदारी वाले पद देने से कतराती हैं. जो कंपनियां उन्हें आगे रखने का जोखिम लेती हैं, वे उन का केवल सजावटी उपयोग करती हैं और सब कोशिश करते हैं कि उन्हें दूरदूर रखा जाए. अच्छे से अच्छे दफ्तर या कारखाने में औरतों के अलग गुट बन जाते हैं. जिन कानूनों से अपेक्षा थी कि वे लिंगभेद समाप्त कर के बराबर के अवसर देंगे, वे अब फिर उन्हें औरतों के अलग पुरातन बाड़ों में बंद कर रहे हैं.

औरतों के नहीं, समाज के विकास के लिए जरूरी है कि औरत का इस्तेमाल पुरुष के क्षणिक सुख के लिए नहीं हो, उसे समाज की बराबर की यूनिट सम झा जाए. जो एकतरफा कानून बने हैं, वे लिंगभेद को पहले से स्पष्ट कर देते हैं और औरतों के विकास के रास्ते बंद कर देते हैं. औरत साथी को पुरुष साथी की तरह सहजता से लिया जाए, यह भावना वहीं से पैदा नहीं करते.

मामला एमजे अकबर और तरुण तेजपाल जैसे पत्रकार का हो या जौनी डैप और ऐंकर हर्स्ट का हो सैक्सटौर्शन के मामलों में औरतें विक्टिम ही बनी रहती हैं. ये मामले दिखाते हैं कि औरतें आज भी वीकर सैक्स हैं और नए कानूनों या नई कानूनी परिभाषाओं ने वीकर सैक्स को बल देने के नाम पर उन के पैरों में बे्रसस बांध दिए हैं जो उन्हें कमजोर ही दर्शाते हैं.

करण जोहर की चोरी और सीना जोरी! जानें क्या है मामला 

जब करण जोहर के ‘‘धर्मा प्रोडक्शन’’ की फिल्म ‘‘ जुग जुग जियो’’ का ट्रेलर लौंच हुआ था, तब उन पर पाकिस्तान के अबरार उल हक के गीत ‘‘नच पंजाबन’’ गिना अबरारा उल हक की जानकारी के अपनी फिल्म में उपयोग करने का आरोप लगा था. यह विवाद काफी गरमाया था,  उसके बाद ‘धर्मा प्रोडक्शन’ को मजबूरी में इस गाने की के्रडिट बरार उल हक को देना पड़ा था. यह बात सभी जानते हैं.

इस गाने के ही साथ एक दूसरा वाकिया भी जुड़ा हुआ है.  अनिल कपूर, नीतू कपूर,  वरूण धवन व कियारा अडवाणी के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘जुग जियो जियो’’ के गाने ‘‘नच पंजाबन ’’ को मशहूर पंजाबी गायक गिप्पी ग्रेवाल की आवाज में रिकार्ड करवाया गया था. पर कुछ दिन बाद उन्हे सूचित कर दिया गया कि उनकी आवाज का उपयोग नही किया जाएगा.  लेकिन जब फिल्म का ट्रेलर बाजार में आया, तो पता चला कि गाने में तो गिप्पी ग्रेवाल की ही आवाज है. उसके बाद गिप्पी ग्रेवाल ने विरोध जताया. यह विवाद काफी गरमा गया था. लेकिन उस वक्त गिप्पी ग्रेवाल तो लुधियाना में थे. इधर करण जोहर ने पूरी कोशिश करके इस खबर को रूकवा दिया था.

अब जब दो सितंबर को प्रदर्शित हो रही पंजाबी फिल्म ‘‘यार मेरा तितलियां वार्गा’’ के सिलसिले में गिप्पी ग्रेवाल से हमारी मुलाकात हुई. तो हमने उनसे सवाल किया कि 2012 में हिंदी फिल्म ‘‘कॉकटेल’’ में आपका पंजाबी गाना ‘‘अंग्रेजी बीट. . ’’ आया था. पर पिछले कुछ समय से पंजाबी के पुराने लोकप्रिय गीत किसी न किसी रूप में हिंदी फिल्मों में कुछ ज्यादा ही आ रहे हैं. क्या इसकी वजह हिंदी की बजाय पंजाबी गीतों की अत्यधिक लोकप्रियता है? तब गिप्पी ग्रेवाल ने कई माह से दबाकर रखी हुई अपनी पीड़ा को जाहिर करते हुए कहा-‘‘ऐसा हो रहा है. दुःख की बात यह है कि बौलीवुड में इमानदारी व पारदर्शिता का अभाव है. कुछ समय पहले करण जोहर ने फिल्म ‘‘जुग जुग जियो’’ में मेरा गाना ‘‘नच पंजाबन. . ’ डाला था, जो कि पाकिस्तान के अबरार उल हक का गाना था. मुझे तो पता ही नहीं था कि इन्होने अबरार उल हक से इजाजत ही नही ली है. इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ था. इतना ही नही मेरी आवाज में यह गाना रिकार्ड करवा लिया. उसके बाद मुझसे संपर्क भी नहीं किया. जब मैने फिल्म ‘जुग जुग जियो ’ का पोस्टर देखा, तो उसमें मेरा नाम ही नही था. मैने संगीतकार तनिष्क बागची को फोन किया. उन्होने मेरा फोन उठाया नही. तब मैने उन्हे संदेश भेजा कि आपने गाने में मेरी आवाज उपयोग की है,  पर नाम तो दिया नही.  तो उसका जवाब आया कि उन्होने मेरी आवाज का उपयोग नही किया है. तो मुझे लगा कि किसी अन्य गायक से डब करवाया होगा. चलो कोई बात नही. लेकिन जैसे ही बाजार में ट्रेलर आया, आस्टे्लिया से मेरे भाई का फोन आया. मेेरे भाई ने कहा कि गाना बहुत अच्छा है और इसमें मेरी आवाज भी काफी अच्छी है. मैने उससे कहा कि तूने गाना कहंा देख लिया, वह गाना तो आ ही नही रहा. तब मेरे भाई ने कहा कि उसने फिल्म ‘‘जुग जुग जियो’’ का ट्रेलर देखा है. जिसमें मेरी आवाज में गाने का हिस्सा है. मैने तुरंत फिल्म का ट्रेलर देखा, तो पाया कि फिल्म का पूरा ट्रेलर ही मेरी आवाज पर काटा हुआ था. मैं अचंभित रह गया. मेरा कहना था कि यदि आप मेरी आवाज का उपयोग कर रहे हैं, तो मुझे बता देते कि हम आवाज उपयोग कर रहे हंै, मगर क्रेडिट नही देंगे. मैने संगीतकार को संदेश दिया कि अच्छा है, मेरी आवाज का उपयोग नही हुआ है. इसलिए निर्माता निर्देशक से कह देना कि मेरी आवाज का उपयोग न करें. जबकि वह तो मेरी आवाज का उपयोग कर चुके थे. उसके बाद प्रोडक्शन हाउस से फोन आया और दुनिया भर के बहाने व गोल मोल बात करने लगे. उसने कहा कि मेरा चेक बना पड़ा है. वह तो इंतजार कर रहे थे कि मैं आकर चेक ले जाउंगा. मैने कहा कि मुझे चेक नहीं लेना है. मैने चेक लेने के लिए यह गाना नही गाया था. यदि मुझे चेक लेना होता,  तो इस बारे में मैं गाना गाने से पहले बोलता. मैने उनसे कहा था कि मुझे गाना भेज दो, यदि मुझे गाना अच्छालगेगा, तो मैं गाकर भेज दॅूंगा. उन्होने मेरे पास गाना भेजा था. मुझे गाना अच्छा लगा, तो मैने गाकर उनके पास भेज दिया था. तो पहले वह मेरी आवाज के लिए क्रेडिट नही देना चाहते थे और न ही अबरार उल हक को क्रेडिट देना चाहते थे. मुझे यह बहुत बुरा लगा. फिर उन्होने गाने में मेरा व अबरार का नाम जोड़ा और मुझे टैग किया. उससे पहले जब ट्रेलर आया था, तो मुझे टैग भी नहीं किया था. जबकि मुझे पहले संगीतकार तनिष्क बागची ने जवाब भेजा था कि ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के कहने पर मेरी आवाज का उपयोग नही किया गया. सभी जानते है कि ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के मालिक करण जोहर हैं और वही ‘जुग जुग जियो’ के निर्माता भी हैं. आखिर इस फिल्म में इतने बड़े बड़े कलाकारों को जोड़ा है. उसके बाद भी इमानदारी नही. मैं पिछले 22 वर्ष से गा रहा हूं. तो क्या यह लोग समझ रहे थे कि कोई मेरी आवाज नहीं पहचानेगा?’’

पंजाबी संगीत व फिल्म जगत के स्टार अभिनेता व गायक गिप्पी ग्रेवाल ने अपरोक्ष रूप से पूरे बौलीवुड को कटघरे में खड़ा करते हुए बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है.

https://www.youtube.com/watch?v=q2Dri__2k4U

मां के रोल में दिखेंगी ‘चांद छिपा बादल में’ फेम एक्ट्रेस नेहा सरगम, पढ़ें इंटरव्यू

नेहा सरगम एक भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री हैं, जो मूल रूप से पटना बिहार की रहने वाली हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक गायिका के रूप में इंडियन आइडल 4 से की थी,जिसके बाद वह टेलीविज़न सीरियल “चाँद छिपा बादल में” से टेलीविज़न में डेब्यू किया.नेहा सरगम ने अपने करियर की शुरुआत सिंगिंग कम्पटीशन शो “इंडियन आइडियल” से की थी. उन्होंने कुल दो बार इस शो में भाग लिया, लेकिन सिंगिंग में कैरियर तलाशते हुए सोनाली बेंद्रे की नजर उन पर पड़ गई. सोनाली ने उन्हें एक्टिंग में अपना कैरियर बनाने की सलाह दी. जिसके बाद उन्हें घर बैठे ही ‘चांद छिपा बादल में’ में निवेदिता की भूमिका के लिए ऑफर आया. जिसके बाद वह टेलीविज़न शो जैसे “हार-जीत”, “सावधान इंडिया”, “ये है आशिकी”, “रामायण”, “ये रिश्ता क्या कहलाता है” आदि में नजर आई है. खूबसूरत, शांत और हंसमुख नेहा की शो ‘जशोमती मैया के नंदलाला’ सोनी टीवी पर प्रसारित की जा रही है, जिसमे उन्होंने यशोदा माँ की भूमिका निभाई है, जिसे दर्शकों का बहुत प्यार मिल रहा है. नेहा ने पहले छोटे नंदलाला की माँ और अब बड़े कृष्ण की माँ बनी है, जिससे उन्हें पता चल रहा है कि एक माँ अपने बच्चे को बड़ा करने में कितना समय और धैर्य रखती है. दर्शकों को भी उनका काम नैचुरल लग रहा है. उन्होंने अपने इस अनुभव को गृहशोभा से शेयर किया है, पेश है खास अंश.

सवाल – एक्टिंग के क्षेत्र में कैसे आना हुआ?

जवाब – प्लान कोई नहीं था, मैं पूरी तरह से पढ़ाई और गाने पर फोकस्ड थी, क्योंकि मैं क्लासिकल सिंगर भी हूं. मेरी डेब्यू भी सोनी टीवी की इंडियन आइडल से ही हुआ था. मेरे लिए कॉमबैक है. मेरे ऑडिशन से निर्माता, निर्देशक को लगा कि मैं एक्टिंग भी अच्छा कर लुंगी और मैंने काम शुरू किया. मैंने हमेशा परिवार के साथ रहकर काम किया है. उन्हें भी साथ ले आई. मेरे पहले निर्माता ने बहुत प्यार से पेरेंट्स को समझा दिया था कि कोई एक मेरे साथ आयें, ताकि दिन के अंत में मुझे परिवार का सहयोग मिल सकें. मेरी माँ मेरे साथ आई थी, धीरे-धीरे मेरी पूरी फॅमिली यहाँ आ गयी है.

सवाल – पहला ब्रेक कब मिला ?

जवाब – इंडियन आइडल की ऑडिशन देने के बाद ही पहला ब्रेक टीवी पर मिला था. इसके बाद निर्माता, निर्देशक के ऑफर आने लगे थे, क्योंकि मेरा चेहरा उन्हें एक्टिंग के लिए भी ठीक लग रहा था. इसके बाद शो ‘चाँद छुपा बदल में’ से मैं घर-घर जानी गयी.

सवाल –इस शो में माँ की भूमिका के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ी? पहले छोटे बच्चे और अब बड़े बच्चे के साथ एक्टिंग करने में कितना अंतर महसूस कर रही है?

जवाब –मेरे हिसाब से माँ बनने के लिए किसी भी महिला को कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती, क्योंकि ये उनमे अपने आप ही रहता है, जो बच्चे को देखने के बाद सब समझती है. मैंने अपनी माँ, दादी, नानीके व्यवहार को भी देखा है और मैंने पूरे देश की माँ से इसे उधार मांगी है. इसके अलावा मैंने ब्रज की भाषा को हिंदी में मिलाकर प्रयोग किया है, ताकि दर्शकों को प्रमाणिकता के साथ समझने में आसानी हो, क्योंकि ये पैन – इण्डिया शो है.

बच्चा छोटा होने पर उसके हिसाब से पेरेंट्स अधिकतर चलते है, लेकिन बड़े होने पर पेरेंट्स को बच्चे की बात मनवानी पड़ती है और अगर बच्चे को समझ न आये, तो उसे बैठकर समझाना पड़ता है. ये एक ड्रामा सीरीज है, जिसे सभी पसंद कर रहे है. इसमें मैं बेटे को हर तरह से स्ट्रोंग बना रही हूं. जिसमे मैं दयालू, धीरज, लालच आदि के बारें उदाहरण देकर समझा रही हूं. मुझे छोटे बच्चे के साथ खेलने और बात करने का अनुभव है, क्योंकि कॉलेज के समय में मैंने किंडरगार्डन में कुछ दिनों तक पॉकेट मनी के लिए काम भी किया था. इससे मुझे बच्चों के बारें में थोड़ी अच्छी जानकारी है. इसके अलावा मैं एक कलाकार हूं, मुझे हर तरह की एक्टिंग करनी पड़ती है.

सवाल – माँ की भूमिका एक बच्चे के जीवन में कितनी होती है?

जवाब – माँ एक बच्चे के जीवन की अमूल्य निधि है, जिसके द्वारा उसने इस खूबसूरत संसार को देखा है.शारीरिक रूप से भी एक बच्चा माँ की गर्भनाल से जुडा होता है, ऐसे में बच्चे की किसी परेशानी को माँ अच्छी तरह से समझती है. इसलिए माँ को सम्मान, प्यार और आदर हमेशा देनी चाहिए. बड़ों को भी अपने बच्चों का सम्मान करनी चाहिए.

सवाल – पूरे दिन माँ की भूमिका निभाते-निभाते उससे निकल कर बेटी बनना कितना मुश्किल होता है?

जवाब – कुछ मुश्किल नहीं होता, क्योंकि मेरी माँ आसपास में सबकी माँ है और मुझे बेटी बनना ही पड़ता है.

सवाल – माँ के साथ बिताया कोई पल, जिसे आप याद करती है?

जवाब – माँ की प्यार और ममता अलग होती है, जिसे महसूस हर पल करती हूं. माँ गलती करने पर डांटे, तो समझ लेना पड़ता है कि कुछ गलती हुई है. मैंने माँ के साथ काफी समय बिताया है और वह मेरे लिए अनमोल है. मेरी माँ ने प्यार और अनुसाशन दोनों ही किये है, जिसकी वजह से मैं यहाँ तक पहुँच पाई. मेरी भूमिका इस शो में भी वैसी ही माँ की है, जो लोगों के सामने बच्चे की गलती को नजरअंदाज करती है, पर बाद में डांटती है.

सवाल – सिंगिंग को क्या आप मिस नहीं करती?

जवाब – मैं सिंगिंग मिस नहीं करती. मैं नाटक ‘मुगले आजम’ सिंगिंग शो करती हूं, जिसमे मैं अनारकली की भूमिका के साथ सिंगिंग भी करती हूं. सारे लाइव गाने मैं गाती हूं.

सवाल – यहाँ तक पहुँचने में कितना संघर्ष रहा? परिवार ने कितना सहयोग दिया?

जवाब – संघर्ष तो हर काम में कम या अधिक रहता है. कई बार जब काम होते-होते रुक जाता है तो समझ लेना चाहिए कि इस काम के लिए मैं नहीं बनी हूं. संघर्ष केवल कोविड 19 के समय हुआ था. वह जीवन भी कट गयी, पर जल्दी से सब ठीक हो गया और मुझे काम भी मिला.

परिवार के सहयोग की वजह से ही यहाँ तक पहुंची हूं. सभीने मेरा बहुत सपोर्ट दिया है, हर दिन हर पल उनका साथ मिला. जिससे किसी चैलेंजेस को लेना आसान रहा. मेरी माँ संगीता दूबे एक सिंगर है, पिता रमेश दूबे जॉब औरबहन बैंकर है.

सवाल – कोई सन्देश जो आप देना चाहे?

जवाब – माता-पिता से अच्छी बात बच्चे के लिए कोई सोच नहीं सकता, इसलिए माता-पिता कुछ बोले, तो सुन लेना ही उत्तम होता है.

Anupama को वनराज के साथ देख अनुज को होगी जलन, देखें वीडियो

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों गणेश चतुर्थी सेलिब्रेशन होता नजर आ रहा है, जिसमें कई ट्विस्ट और टर्न्स मेकर्स लाने वाले हैं. जहां एक तरफ अनुज के दिल में जलन पैदा होते हुए दिखने वाली है तो वहीं खबरें हैं कि तोषू का अफेयर होते हुए दिखने वाला है, जिसके चलते सीरियल में नए ट्विस्ट फैंस का दिल जीतने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Episode In Hindi) …

तोषू बनाएगा बहाना

 

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अब तक आपने देखा कि बरखा और अंकुश को जलन होती है कि लड़ाई होने के बावजूद अनुज, वनराज और शाह परिवार को अपने घर पर बुलाता है. इसी के चलते कपाड़िया हाउस में शाह परिवार की एंट्री होती है. वहीं दूसरी तरफ, तोषू को संजना नाम की लड़की का फोन आता है और वह इंटरव्यू का बहाना बनाकर चला जाता है. हालांकि परिवार को उस पर बिल्कुल शक नहीं होगा.

अनुज को होगा ये एहसास

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पूजा के दौरान किंजल के पेट में दर्द होगा और पूरा परिवार उसकी मदद करेगा और उसे अस्पताल ले जाएगा. वहीं किंजल और अनुपमा की मदद न कर पाने पर खुद को असहाय महसूस करेगा. दूसरी तरफ, शाह परिवार, किंजल के साथ अस्पताल पहुंचेगा.

 

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वनराज के साथ अनुपमा को देख अनुज को होगी जलन

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि किंजल की खराब हालत देख डौक्टर सिजेरियन औपरेशन की सलाह देंगे, जिसे लेकर बा नाराज होगी. हालांकि वनराज, अनुपमा की राय लेते हुए राजी हो जाएगा. वहीं किंजल की बेटी की खबर फैमिली को मिलेगी. दूसरी तरफ, अनुपमा और वनराज, किंजल के बच्चे को देखकर बेहद खुश होंगे और वीडियो कॉल पर, वनराज अनुज से अपनी भावनाओं को व्यक्त करेगा. जहां अनजाने में वह अनुपमा के कंधे को छू लेगा, जिसे देखकर अनुज को जलन महसूस होगी.

छोटे बैडरूम को यों दें आकर्षक लुक

अगर आप का बैडरूम छोटा है तो निराश न हों. हालांकि इसे बेहतर और बड़ा लुक देना किसी चुनौती से कम नहीं है, फिर भी आप कुछ प्लानिंग और बदलाव ला कर इसे आकर्षक और बड़ा दिखने लायक बना सकती हैं. बेहतर स्टोरेज और बहुउपयोगी फर्नीचर के इस्तेमाल से आप का काम आसान हो जाएगा. पेश हैं कुछ टिप्स:

अनावश्यक फर्नीचर हटाएं: अगर किसी फर्नीचर की बैडरूम में कोई उपयोगिता न हो तो उसे अवश्य हटाएं. आप का रूम बड़ा दिखने लगेगा.

सामान को व्यवस्थित रखें: ज्यादा सामान रखने से कमरा भराभरा और अव्यवस्थित दिखता है. साथ ही आप की नजरें एक चीज से दूसरी पर घूमती रहती हैं. ऐसे में बेहतर है कुछ ऐसा लुभावना सामान व्यवस्थित कर रखें जिस पर निगाहें खुद ही आकर्षित हों.

खिड़की का बेहतर इस्तेमाल: आप अपने बैड को खिड़की से सटा कर रख सकती हैं. इस से आप का कमरा बड़ा दिखेगा और कुछ अतिरिक्त खाली जगह मिलेगी. बैड कमरे के बीच में रखने से उस के आसपास की कुछ जगह बेकार हो जाती है. इस के अलावा सुबह आप को पर्याप्त रोशनी भी मिलेगी. आप खिड़की में ब्लाइंड्स, लेस या वौयल के परदे लगा कर जब चाहें रोशनी कम या बंद कर सकती हैं.

कस्टम मेड फर्नीचर: स्टैंडर्ड फर्नीचर की जगह आप अपने कमरे के साइज के अनुकूल बैड और अन्य फर्नीचर बनवाएं.

मास्टर बैड के नीचे एक पुलओवर बैड बनाया जा सकता है. इसे दराज की तरह खींचने पर आप के पास एक ऐक्सट्रा बैड हो जाएगा जिस पर जरूरत पड़ने पर बच्चे या आप के मेहमान सो सकते हैं. इस के अलावा वाल माउंटेड बैडसाइड टेबल बनवा कर आप 1-1 इंच कारपेट एरिया का लाभ उठा सकती हैं या फिर बच्चों के लिए बंक बैड बनवा सकती हैं.

अतिरिक्त मिरर का जादू: छोटे कमरे की दीवार पर मिरर का इस्तेमाल करने से देखने वाले को कमरा दोगुना बड़ा दिखता है.

रंगों का चुनाव: पेंट के सही ढंग के चुनाव से भी कमरे की रौनक बढ़ जाती है. सफेद रंग से कमरा ज्यादा प्रकाशमान और खुलाखुला दिखता है, पर रूम को सुंदर लुक देने के लिए आप दीवारों पर गुलाबी या हलका नारंगी रंग करा सकती हैं. ये रंग ईंट की दीवार और फर्नीचर के साथ अच्छा मैच करते हैं.

स्टोरेज स्पेस का अधिकतम उपयोग: फर्श से भीतरी छत (सीलिंग) तक के वार्डरोब्स बनवाएं, जिन में आप घर का बहुत सा सामान ढंग से रख सकती हैं. ऐसा कर आप 1-1 इंच उपलब्ध जगह का सही उपयोग कर सकती हैं.

क्या औस्टियोपोरोसिस से अपने बचाव के लिए कुछ उपाय कर सकती हूं?

सवाल-

मेरी मां की उम्र 62 साल है. उन्हें हड्डियों में दर्द रहता है. जांच, एक्सरे कर के डाक्टर ने बताया है कि उन्हें औस्टियोपोरोसिस है. उन की हड्डियां कमजोर हो गई हैं. मां डाक्टर की बताई दवा ले रही हैं पर मैं खुद को ले कर चिंतित हूं कि कहीं यह रोग मुझे भी तो नहीं हो जाएगा? क्या मैं अपने बचाव के लिए कुछ उपाय कर सकती हूं?

जवाब-

हां, क्यों नहीं. आप की मां के डाक्टर ने यह बात ठीक ही बताई है कि औस्टियोपोरोसिस में हड्डियां अंदर ही अंदर कमजोर हो जाती हैं. नतीजतन छोटी सी चोट भी उन पर भारी पड़ सकती है और वे चटक सकती हैं. ऐसे लोग जो खानपान, रहनसहन और आचारव्यवहार के प्रति लापरवाही बरतते हैं या कुछ खास दवा लेने के लिए मजबूर होते हैं, उन में जवानी पार होने के बाद हड्डियों की ताकत घटती जाती है. मगर कोई अपने स्वास्थ्य के प्रति समय से चेत जाए, तो हड्डियों को कमजोर होने से बचा सकता है. इस के लिए निम्नलिखित बातों को गांठ बांध लेना जरूरी है:

चुस्त रहें, तंदुरुस्त रहें: आप जितना चलतेफिरते हैं, शारीरिक मेहनत करते हैं, व्यायाम करते हैं आप की हड्डियां उतनी ही मजबूत बनी रहती हैं. जिन लोगों का पूरा दिन बैठेबैठे बीतता है उन की हड्डियां 40 की उम्र से ही कमजोर होनी शुरू हो जाती हैं. लेकिन शारीरिक भागदौड़ करने वालों की हड्डियां बुढ़ापे में भी ताकत नहीं गवांतीं. अगर आप का स्वास्थ्य अनुमति देता रहे तो जब तक यह जीवन है, व्यायाम को अपनी नित्यचर्या का अंग बनाए रखें. रोज 30-40 मिनट की सैर हड्डियों को युवा बनाए रखने का सब से सरल उपाय है.

पर्याप्त कैल्सियम लें: हड्डियों के निर्माण और पोषण के लिए कैल्सियम जरूरी पोषक तत्त्व है. वयस्क स्त्री और पुरुष के लिए नित्य 500-600 मिलीग्राम कैल्सियम जरूरी है. बुढ़ापा आने पर कैल्सियम की यह दैनिक जरूरत बढ़ कर 1,000 मिलीग्राम हो जाती है.

दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही, छेना, पनीर, मक्खन कैल्सियम के सब से अच्छे स्रोत हैं. आधा लिटर दूध में 600 मिलीग्राम कैल्सियम होता है. शरीफा, खजूर, खुबानी, किशमिश, हरी पत्तेदार सब्जियां, अनाज, पेयजल और मछली में भी कैल्सियम अच्छी मात्रा में होता है. आहार से कैल्सियम की भरपाई न हो पाए तो डाक्टर से सलाह ले कर कैल्सियम की गोलियां भी ली जा सकती हैं.

शरीर में विडामिन डी का भंडार बनाए रखें: शरीर में विटामिन डी का पर्याप्त भंडार होना भी हड्डियों के निर्माण और पोषण के लिए जरूरी है. अगर शरीर में विटामिन डी की कमी हो तो कैल्सियम के जज्ब होने में अड़चन आ जाती है. चाय और कौफी का कम सेवन करें: चाय, कौफी और ठंडे पेय अधिक पीने से भी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. मदिरा और धूम्रपान से दूर रहें: मद्यपान और धूम्रपान करने वालों की हड्डियां भी जल्दी ताकत गवां बैठती हैं.

कुछ दवाएं भी दोषी हो सकती हैं: कुछ दवाएं भी हड्डियों की मजबूती कम करती हैं. इन में कार्टिकोस्टीरौयड सब से महत्त्वपूर्ण है. दूसरी दवा हिपेरिन है, जो रक्तजमावरोधक है और कुछ खास हृदयरोगियों को दी जाती है. इस दवा के प्रयोग से बचा तो नहीं जा सकता, पर इसे रोज ले रहे हैं तो सावधान अवश्य हो जाएं.

कुछ बीमारियां भी हड्डियों में सेंध लगाती हैं: कोई लंबी बीमारी जैसे रूमेटाएड गठिया, मिरगी, डायबिटीज, दमा, क्रौनिक ब्रौंकाइटिस और खास हारमोनल विकार तथा उन में दी जाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव से भी हड्डियां छोटी उम्र में ही कमजोर होने लगती हैं.

इन बीमारियों के होने पर जीवन में अनुशासन रख कर हड्डियों की मजबूती कायम रखी जा सकती है. नियमित सैर करें. खानपान का भी ध्यान रखें. किसी गलत लत में न पड़ें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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