मीठे में बनाएं रसमलाई ब्लॉन्डी

फेस्टिवल सीजन प्रारम्भ हो चुका है. त्यौहार पर मिठाइयों का अपना महत्व है मिठाई के बिना त्यौहार ही अधूरा सा लगता है. युवा पीढ़ी को परम्परागत मिठाइयों के स्थान पर फ्यूजन डिशेज अधिक पसन्द आतीं हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही एक फ्यूजन  डिश बनाना बता रहे हैं जिसमें आपको देशी रसमलाई और विदेशी ब्राउनी दोनों ही स्वाद मिलेंगे. आप इसे बनाकर फ्रिज में भी रख सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है.

कितने लोगों के लिए               8-10

बनने में लगने वाला समय       40 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

व्हाइट चॉकलेट               150 ग्राम

मक्खन                            100 ग्राम

रूम टेम्प्रेचर का दूध           100 ग्राम

कंडेंस्ड मिल्क                     आधा टिन

रसमलाई एसेंस                 1/4 टीस्पून

इलायची पाउडर                 1/4 टीस्पून

मैदा                                  150 ग्राम

बेकिंग पाउडर                    1/4 टीस्पून

जायफल पाउडर                  1 चुटकी

पीला फ़ूड कलर                  2-3 बूंद

तैयार रसमलाई                   250 ग्राम

सामग्री(गनाश के लिए)

व्हाइट चाकलेट                  150 ग्राम

व्हिप्ड क्रीम                     1/4 कप

इलायची पाउडर                  1/4 टीस्पून

सामग्री(सजाने के लिए)

बारीक कटे बादाम, पिस्ता       1/4 कप

सूखी गुलाब की पंखुड़ी              4-5

केसर के धागे                          3-4

चांदी का वर्क                        1 फ्लैक्स

विधि

माइक्रोवेब में बटर और आधी व्हाइट चॉकलेट को 1-1 मिनट पर चलाते हुए पूरी तरह मेल्ट कर लें. जब थोडा सा ठंडा हो जाये तो दूध, मैदा, फ़ूड कलर, इलायची पाउडर, जायफल पाउडर, एसेंस और कंडेस्ड मिल्क डालकर अच्छी तरह चलायें. अब  इस मिश्रण को एक चौकोर डिश में डालकर 5 मिनट  प्रीहीट किये ओवन में 20 मिनट तक 180 डिग्री पर बेक करें. एक साफ़ चाक़ू डालकर चेक करें यदि मिश्रण चाक़ू में न चिपके तो समझें कि ब्राउनी बेक हो गयी है. अब इसे अच्छी तरह ठंडा होने दें. बची व्हाइट चाकलेट को माइक्रोवेब में मेल्ट  करके 2 टेबलस्पून रसमलाई वाला दूध धीरे धीरे अच्छी तरह मिलाएं. व्हिप्ड क्रीम में पिघली व्हाइट चॉकलेट और इलायची पाउडर डालकर मिश्रण के एकसार होने तक मिलाएं. अब व्हिपड क्रीम से एक चाकू की सहायता से पूरी ब्राउनी को कवर कर दें. रसमलाई को बीच से काट लें . तैयार ब्लॉन्डी को ऊपर से गुलाब पंखुरी, कटे बादाम पिस्ता, कटी रसमलाई और चांदी के फ्लैक्स से सजाएं और आधे घंटे बाद फ्रिज में रखकर सर्व करें.

इन 5 वजहों से गर्लफ्रेंड से दूरी बनाते हैं बौयफ्रैंड

गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रेंड के रिश्ते में हल्की फुल्की नोंक झोंक तो चलती ही रहती है. ये नोंक-झोंक प्यार को और मजबूत बनाती है. लेकिन कभी-कभी झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाता है. वैसे तो झगडे में कोई एक जिम्मेदार नहीं होता गलती दोनों तरफ से ही होती है. लेकिन आज हम आपको बताएंगे वो बातें जिससे ब्वॉयफ्रेंड अपनी गर्लफ्रेंड से दूरी बनाने लगता है.

1. शक

महिलाएं अक्सर बहुत जल्द शक करने लगती हैं. उनका ब्वॉयफ्रेंड कहां है और क्या कर रहे हैं. इसे जानने के लिए सभी प्रकार की मुखर्तापूर्ण व्यवहार करने लगती हैं. महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस व्यवहार को मर्द बिल्कुल पसंद नहीं करते.

2. जरूरत से ज्यादा खर्चा

ज्यादार गर्लफ्रेंड अपने ब्वॉयफ्रेंड का वॉलट अनावश्यक रूप से शॉपिंग करके खाली करवा देती हैं. गर्लफ्रेंड द्वारा जरूरत से ज्यादा खर्चा करवाए जाने को ज्यादातर ब्वॉयफ्रेंड पसंद नहीं करते. ऐसी स्थिति में भी ब्वॉयफ्रेंड इस रिश्ते से दूरी बनाने लगता है.

3. पर्सनल स्पेस

गर्लफ्रेंड द्वारा पर्सनल स्पेस ना दिए जाने के कारण भी ब्वॉयफ्रेंड को अपनी गर्लफ्रेंड पर गुस्सा आना लगता है. ज्यादातर लड़कियां अपने ब्वॉयफ्रेंड को अपने दोस्ते के साथ टाइम बिताने नहीं देती है. ऐसी स्थिति किसी भी रिश्ते के लिए सही नहीं होती है.

4. मजाक नहीं पसंद

ब्वॉयफ्रेंड को यह कतई पसंद नहीं आता कि उनकी गर्लफ्रेंड किसी और सामने उनका मजाक बनाएं. महिलाओं अक्सर अपनी सहेलियों और दोस्तों के सामने अपने ब्वॉयफ्रेंड का मजाक बनाने से नहीं चूंकती. बता दें कि ब्वॉयफ्रेंड ऐसा चीजे बिल्कुल पसंद नहीं करते और धीरे-धीरे इस रिश्ते से दूरी बनाने लगते हैं.

5. छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा

ज्यादातर लड़किया छोटी-छोटी बातों को लेकर अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ झगड़ा करती रहती हैं.वे भूल जाती है उनका द्वारा किया जा रहा यह मूर्खतापूर्ण व्यवहार उनके अच्छे लाइफ पार्टनर को कितनी परेशानी में डाल सकता है.

इसीलिए जरुरी है कि गर्लफ्रैंड औऱ बौयफ्रेंड के रिश्ते की डोर को संभाल कर रखा जाए ताकि एक छोटे से झटके रिश्ता ना टूट जाए.

दुनिया में परचम लहराती, सबसे युवा महिला उद्यमी नेहा नारखेडे़

भारत की सबसे युवा ‘सेल्फ मेड’ महिला नेहा नारखेड़े, 37 साल की उम्र में 4700 करोड़ रुपए की संपत्ति अजीत करके जहां देश का गौरव बढ़ाया है वहीं महिलाओं को एक बार फिर सशक्त रूप में स्वयं को प्रस्तुत करके एक उदाहरण बन गई है.

आइए! आज आपको हम मिलाते हैं महाराष्ट्र के पुणे में जन्मी नेहा नारखेड़े से . जिसने सिर्फ 37 साल की उम्र में भारत की सबसे युवा ‘सेल्फ मेड’ महिला का मुकाम हासिल किया है. नेहा नारखेड़े ने जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है, वह ‘कंफ्लुएंट’ की सह संस्थापक भी हैं. प्रतिष्ठित फोर्ब्स की लिस्ट में भी नेहा नारखेड़े अपनी जगह बना चुकी हैं. इस तरह नेहा ने जहां देश की युवा पीढ़ी को अपने उद्यम से प्रेरणा दी है वही दुनिया में भारत का नाम भी रोशन किया है.

एक महत्वपूर्ण मुकाम

आमतौर पर महिलाओं को हमारे देश में इस दृष्टि से देखा जाता है कि मानो एक आम गृहणी और बच्चे पैदा कर वंश वृद्धि की हाड मांस की पुतली . मगर जब यह महिलाएं बाहर निकलती हैं तो दूसरी महिलाओं को ही नहीं पुरूष को भी पीछे छोड़ने का माद्दा रखती हैं, यह बारम बार सिद्ध हुआ है.

और इस सच्चाई को नेहा ने फिर दुनिया को बताया है.

पुणे में जन्मी नेहा नारखेड़े ने  37 साल की उम्र में जो मुकाम हासिल किया है, वह असाधारण  है. नेहा नारखेड़े ने IIFL वेल्थ हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2022 में जगह बनाई है. दुनिया के धनपतियों की इस लिस्ट में नेहा नारखेड़े सबसे युवा सेल्फ मेड वुमन आंत्रप्रेन्योर हैं.

नेहा नारखेड़े की प्रारंभिक पढ़ाई पुणे में ही हुई, हालांकि बाद में वह कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चली गई .

नेहा नारखेड़े ने जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की, वह ‘कंफ्लुएंट’ की सह संस्थापक हैं. इसके अलावा आपाचे काफ्का जो कि एक ओपन सोर्स मेसेजिंग सिस्टम है, को डिवेलप करने में नेहा नारखेड़े की महत्ती भूमिका  है, वर्तमान में नेहा कई तकनीकी कंपनियों में सलाहकार और निवेशक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं.

हारुन इंडिया रिच लिस्ट में नेहा नारखेड़े को 336वां स्थान मिला है, उनकी अनुमानित संपत्ति 4700 करोड़ रुपए की है.

नेहा नारखेड़े अपनी कंपनी शुरू करने से पहले प्रतिष्ठित लिंक्डइन और ओरैकल के लिए काम कर चुकी हैं, वह अपाचे काफ्का सॉफ्टवेयर बनाने वाली टीम का हिस्सा थीं, उन्होंने 2014 में अपनी खुद की कंपनी शुरू की. 15 साल पहले नेहा नारखेड़े अमेरिका चली गई थीं और वहीं से मास्टर्स की डिग्री ली, उन्होंने अपना ग्रैजुएशन पुणे विश्वविद्यालय से ही किया था.

दुनिया की प्रसिद्ध

फोर्ब्स की अमीर सेल्फ मेड महिलाओं की लिस्ट में भी नेहा नारखेड़े ने 57वां स्थान हासिल किया था. इससे पूर्व 2018 में फोर्ब्स ने टेक से जुड़ी महिलाओं की लिस्ट में नेहा नारखेड़े का नाम शामिल किया था. हुरुन इंडिया के मुताबिक, लिस्ट में 1000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति वाले कुल 1103 लोगों को शामिल किया गया था.

इस तरह भारतीय परिवेश के लिए विशेष तौर पर हमारे पुरुष समाज को यह एक ऐसा उदाहरण दुनिया ने गौरवशाली भूमिका के साथ दिखलाया है जिससे प्रेरणा लेकर के देश की महिलाओं में ऊंचा मुकाम हासिल करने का हौसला पैदा होगा .

Bhabhi Ji Ghar Par Hai के इस एक्टर के बेटे का हुआ निधन, पोस्ट किया शेयर

सीरियल ‘भाभी जी घर पर हैं’ (Bhabhi Ji Ghar Par Hai) में मलखान का किरदार निभाने वाले एक्टर दीपेश भान ने दो महीने पहले जहां दुनिया को अलविदा कहा था तो वहीं अब सीरियल डॉक्टर का रोल अदा कर रहे एक्टर जीतू गुप्ता के 19 साल के बेटे का अचानक निधन हो गया है, जिसकी जानकारी कॉमेडियन सुनील पाल ने फैंस को सोशलमीडिया के जरिए दी है. वहीं एक्टर ने खुद एक इमोशनल पोस्ट भी फैंस के साथ शेयर किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

19 साल के बेटे का हुआ निधन

टीवी इंडस्ट्री से इन दिनों शॉकिंग खबरों के बीच एक और बुरी खबर सामने आई है. दरअसल, Bhabhi Ji Ghar Par Hai के एक्टर जीतू गुप्ता के 19 साल के बेटे आयुष का निधन हो गया है. एक्टर और कौमेडियन सुनील पाल ने सोशल मीडिया पर एक्टर का पोस्ट शेयर करते हुए बताया कि जीतू गुप्ता के बेटे अब हमारे बीच नहीं रहे. साथ ही आयुष की आत्मा की शांति की भी दुआ करने की गुजारिश भी फैंस से की है.

पिता का बेटे के निधन पर छलका दर्द

एक्टर जीतू गुप्ता (Jeetu Gupta) ने अपने बेटे आयुश की फोटो सोशलमीडिया पर शेयर करते हुए लिखा- नहीं रहा मेरा बाबू आयुष. फोटो देखकर फैंस उन्हें सांत्वना और उनके बेटे को श्रद्धांजलि देते हुए दिख रहे हैं. हालांकि एक्टर जीतू गुप्ता अपने बेटे की तबीयत से जुड़ी सभी अपडेट फैंस के साथ शेयर करते रहे हैं और फैंस से उसके लिए दुआ भी करने की गुजारिश कर चुके हैं.

बता दें, एक्टर जीतू गुप्ता के बेटे आयुश की कुछ समय से हालत बेहत खराब थी. दरअसल, एक्टर ने बेटे के लिए कुछ फोटोज और पोस्ट सोशलमीडिया पर शेयर किए थे, जिसमें उनका बेटा वेंटिलेटर पर दिख रहा था. वहीं हाल ही में एक्टर ने फैंस से बेटे के लिए दुआ करने की भी बात कही थी. लेकिन उनका बेटा नहीं बच पाया, जिसके बाद वह टूट गए हैं.

रियल लाइफ में मां बनना चाहती हैं Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin की पाखी, पढ़ें खबर

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin)की कहानी इन दिनों फैंस का दिल जीत रही है. जहां फैंस पाखी के किरदार की पौजिटीविटी देखकर फैंस हैरान हैं तो वहीं विराट को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि औफस्क्रीन सीरियल के सेट पर पाखी यानी एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा सेट पर बच्चों संग मस्ती करती हुई नजर आ रही हैं. वहीं हाल ही में उन्होंने अपने मां बनने की इच्छा जाहिर की है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मां बनना चाहती हैं एक्ट्रेस

 

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इन दिनों ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में बतौर विनायक की मां के रोल में दिख रहीं पाखी यानी एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) ने मां बनने की इच्छा जाहिर करते हुए एक इंटरव्यू में बताया कि  पर्दे पर मां बनने के बाद अब ऐश्वर्या शर्मा ने असल जिंदगी में भी मम्मी बनने की इच्छा जाहिर की है. उन्होंने इंडिया फोरम को दिए इंटरव्यू में कहा कि “मुझे नहीं पता लेकिन अब मैं अपना भी एक बच्चा चाहती हूं. हालांकि इस बारे में अभी तक हमने कोई प्लानिंग नहीं की है, लेकिन मुझे सेट पर बच्चों के साथ काफी अच्छा लगता है और मैं बहुत खुश भी महसूस करती हूं. विनायक और सवि के साथ मेरी बॉन्डिंग काफी अच्छी है. वे बहुत ही प्यारे बच्चे हैं. मैं उनके साथ खुद भी बच्ची बन जाती हूं और बहुत मस्ती करती हूं.”

 

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सेट पर करती हैं मस्ती

 

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सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) सीरियल के सेट से काफी रील्स शेयर करती रहती हैं. हाल ही में एक्ट्रेस विनायक और सवि के साथ मस्ती करते हुए और डांस करते हुए वीडियो शेयर करते हुए नजर आई थीं. वहीं बच्चों के साथ बौंडिग को लेकर एक्ट्रेस का कहना है कि “मुझे लगता है कि हर मां एक प्रेरणा है. तन्मय और आरिया के साथ मेरा भी बिल्कुल मां जैसा रिश्ता है. पर्दे पर भी मां का किरदार निभाने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि मुझे बच्चे और उनका साथ काफी ज्यादा पसंद है.”

 

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पाखी के किरदार को पसंद कर रहे लोग

 

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सीरियल में पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) और आयशा सिंह लीप के बाद से विनायक और सवि की मां का किरदार निभाते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं फैंस को दोनों का ये ट्रैक काफी पसंद आ रहा है. हालांकि विराट यानी नील भट्ट के किरदार को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि

गरबा 2022: हाईफु ग्लोइंग स्किन टिप्स

क्या आप भी 35 की उम्र में 45 की नजर आने लगी हैं? क्या झुर्रियों ने आप के चेहरे की खूबसूरती छीन ली है? अगर हां, तो अब आप बढ़ती उम्र के इन निशानों को हाईफु ऐंटीएजिंग स्किन ट्रीटमैंट के जरीए कम कर सकती हैं. यह तकनीक न सिर्फ ढीलीढाली त्वचा में कसाव लाती है, बल्कि उसे पहले की तरह यंग और फ्रैश लुक भी देती है.

डर्मैटोलौजिस्ट, डा. डिंपल भंखारिया के अनुसार, ‘‘तेज धूप, प्रदूषण, मौसम में बदलाव के साथसाथ स्ट्रैस, स्मोकिंग, अलकोहल जैसी बुरी लतों का असर सब से पहले त्वचा पर ही दिखाई देता है. त्वचा रूखी, ढीली और डल नजर आती है. दिनबदिन त्वचा से फैट कम होने लगता है. नतीजतन वह पतली और कमजोर हो जाती है, जिस से महीन रेखाएं, झुर्रियां, लटकन जैसी त्वचा संबंधी परेशानियां होने लगती हैं. इन्हें कम करने के लिए सनस्क्रीन, ऐंटीएजिंग क्रीम और जैंटल मौइश्चराइजर का इस्तेमाल और ऐक्सरसाइज के अलावा हाईफु ऐंटीएजिंग स्किन ट्रीटमैंट का सहारा भी लिया जा सकता है.’’

क्या है हाईफु

‘हाई इंटैंसिटी फोकस्ड अल्ट्रासाउंड’ को हाईफु स्किन टाइटनिंग ट्रीटमैंट के नाम से जाना जाता है. यह एक तरह का ऐंटीएजिंग ट्रीटमैंट है, जो नौनसर्जिकल तकनीक है. इस के जरीए चेहरे व गले के साथसाथ शरीर के अन्य हिस्सों की ढीलीढाली त्वचा को टाइट किया जाता है, जिस से त्वचा टाइट और हमेशा जवां नजर आती है.

कहां करता है हाईफु काम

हाईफु की सहायता से आईब्रोज, फोरहैड, गालों, ठुड्डी, गले, पेट आदि की ढीलीढाली त्वचा को टाइट किया जाता है. इस से आंखों, होंठों, माथे, नाक आदि के आसपास उभर आईं फाइन लाइंस को भी हटाया जा सकता है. यह खुले पोर्स को भी कम करता है. इस तकनीक के जरीए स्किन टाइटनिंग के साथसाथ स्किन लिफ्टिंग भी की जा सकती है जैसे अगर जौ लाइन या आईब्रोज अपनी जगह से लटक गई है तो उसे जौ लिफ्टिंग और आईब्रोज लिफ्टिंग के जरीए फिर से अपनी जगह सैट किया जाता है.

कैसे करता है यह काम

इस ट्रीटमैंट से पहले चेहरे पर लोकल एनेस्थीसिया क्रीम लगाई जाती है, जिस से त्वचा नम हो जाती है. उस के बाद मशीन के हैंड पीस के जरीए प्रभावित जगह पर शौट (लेजर की किरणों की तरह) दिया जाता है, जिस से हलकी गरमाहट महसूस होती है. इस के प्रभाव से स्किन टिशु में सिकुड़न आ जाती है जिस से त्वचा में कसाव आ जाता है.

इस टैक्नोलौजी से नए कोलोजन की भी उत्पत्ति होती है. कोलोजन एक तरह का स्किन फाइबर है, जो उम्र के साथ घटता जाता है. उस के कम होते ही चेहरे पर झुर्रियां और महीन रेखाएं उभर आती हैं. ऐसे में इस ट्रीटमैंट के जरीए नए कोलोजन की उत्पत्ति झुर्रियों को आने से रोकती है. पूरे चेहरे की झुर्रियों और फाइन लाइंस को कम करने के लिए 45 मिनट से 1 घंटे का समय लगता है. सब से अच्छी बात यह है कि इस ट्रीटमैंट के दौरान किसी तरह का दर्द नहीं होता.

कब लें यह ट्रीटमैंट

30-35 साल उम्र की महिलाओं और पुरुषों से ले कर 60-65 साल की महिलाएं और पुरुष यह ट्रीटमैंट ले सकते हैं. यह ट्रीटमैंट किसी भी स्किन टाइप और स्किन टोन की महिला और पुरुष ले सकता है.

ट्रीटमैंट लेने के 3-4 महीने बाद इस का असर नजर आता है, जो साल भर बना रहता है. फिर धीरेधीरे महीन रेखाएं और झुर्रियां फिर से दिखने लगती हैं. तब दोबारा इस ट्रीटमैंट के जरीए उन्हें कम किया जा सकता है. अगर आप के चेहरे पर मामूली रिंकल्स हैं, तो साल में 1 बार और अगर बहुत ज्यादा हैं तो 2-3 बार यह ट्रीटमैंट लिया जा सकता है.

न बनाएं लाइफ को फास्ट

आज के युवावर्ग को आमिर खान से सीखने की जरूरत है, क्योंकि आज के युवाओं में धैर्य की कमी है. उन्हें हर काम में जल्दबाजी होती है. खाना खाना हो तो जल्दी, कहीं जाना हो तो जल्दी, सड़क पर गाड़ी चलाना हो तो जल्दी, गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड बनाना हो तो जल्दी, ब्रेकअप करना हो तो जल्दी. वे समय दे कर काम खत्म करने की बजाय फटाफट करना चाहते हैं. उन्हें लगता है जिस तरह से एक क्लिक में गूगल पर हर सवाल का जवाब मिल जाता है, उसी तरह लाइफ में भी हर काम फटाफट करो और ऐंजौय करो. सोचनासमझना तो पुरानी पीढ़ी का काम है. वे तो यंग जैनरेशन हैं. अगर किसी बात के लिए पेरैंट्स कुछ कहते भी हैं तो उन का जवाब होता है कि किस के पास इतना समय है कि बैठ कर सोचे. अगर आगे बढ़ना है तो तेज भागना होगा.

जल्दबाजी में युवा भले ही काम तुरंत खत्म कर लेते हैं, पर वे इस बात को नहीं समझ पाते कि जल्दबाजी में किए गए काम में कुछ न कुछ कमी अवश्य रह जाती है.

आइए जानते हैं जल्दबाजी में किसकिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है:

जल्दबाजी में होती है कन्फ्यूजन: जो लोग जल्दबाजी में होते हैं वे जल्दीजल्दी बोलते हैं, सामने वाले को बात खत्म करने का मौका नहीं देते, बीच में ही टोकते रहते हैं, किसी की बात ध्यान से नहीं सुनते और जब उन्हें कोई काम दिया जाता है तो उसे वे कर नहीं पाते. तब उन्हें कन्फ्यूजन होती है कि क्या करें और क्या नहीं. कई बार तो सामने वाले की बात में हामी भर देते हैं और बाद में अफसोस करते हैं कि क्यों हामी भरी.

निर्णय लेने की क्षमता में कमी: जल्दबाजी में यह समझना मुश्किल होता है कि किस सिचुएशन में क्या करना चाहिए और इसी वजह से कठिन हालात का सामना करते समय चिड़चिड़े हो जाते हैं. सिचुएशन हैंडल नहीं कर पाते और कुछ ऐसा कह देते हैं जिस की वजह से महत्त्वपूर्ण रिश्ते खो देते हैं.

एकाग्रता में कमी: जब आप जल्दबाजी में होते हैं तब आप किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. आप का ध्यान भटकता रहता है. आप को लगता है कि जल्दी से काम खत्म कर के दूसरा काम शुरू कर दें. अगर किसी काम में ज्यादा समय लगता है तो वह काम बोझ लगने लगता है और आप बिना मन के काम खत्म कर देते हैं.

असफलता का सामना: हड़बड़ी में आप अपना शतप्रतिशत नहीं दे पाते और जब सफल नहीं होते तो उसे छोड़ कर दूसरा काम करना शुरू कर देते हैं. जल्दीजल्दी में समझ नहीं पाते कि क्या सही है और क्या गलत. इस से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार तो असफलता की वजह से गलत रास्ते का चुनाव करने से भी नहीं कतराते.

विश्वास कायम करने में असफल: आप सोचते होंगे कि आप जल्दीजल्दी काम कर के दूसरों पर अपना प्रभाव डालने में सफल होंगे. लेकिन एक सचाईर् यह भी है कि आप जल्दीजल्दी काम कर के सामने वाले पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते. जरा सोचिए एक ड्राइवर आप को बैठा कर गाड़ी बहुत तेजी से चला कर समय से पहले पहुंचाता है तो दूसरा सही स्पीड पर गाड़ी चला कर समय पर पहुंचाता है. आप दोनों में से किस ड्राइवर पर ज्यादा विश्वास करेंगे? यकीनन दूसरे पर. ठीक इसी तरह लाइफ में भी आप धैर्र्य व संयम से दूसरों पर प्रभाव डालने में सफल होते हैं.

हैल्थ के लिए नुकसानदायक: आज के युवाओं को वही खाना अच्छा लगता है जो फटाफट बन जाए. उन्हें लगता है कि कौन खाना बनाने में घंटों मेहनत करे. फटाफट बनाओ और फटाफट खाओ.  यही नहीं कहीं पर भी कुछ भी खा लेते हैं. यही कारण है कि उन्हें कम उम्र में कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

कैरियर में जल्दबाजी करना पड़ता है महंगा: युवा काम सही तरीके से सीखने की बजाय जौब स्वीच करने में विश्वास करते हैं. अगर किसी दिन बौस या फिर अन्य कोईर् सीनियर उन के काम में कोई कमी निकाल दे तो घर आ कर बवाल खड़ा कर देते हैं कि मुझे इस कंपनी में काम नहीं करना. मैं इतना काम करता हूं, लेकिन मुझे कभी क्रैडिट नहीं मिलता वगैरहवगैरह. अगर कभी किसी बात पर जौब छोड़नी भी पड़े तो आगेपीछे की नहीं सोचते और जौब छोड़ देते हैं. लेकिन आप का ऐसा करना आप के कैरियर के लिए ठीक नहीं है. भले ही आप को एक जगह से काम छोड़ कर दूसरी जगह जौइन करने पर पैसे ज्यादा मिलें, लेकिन ऐसा कर के आप किसी भी काम में मास्टर नहीं बन पाते. आप को हर काम की थोड़ीथोड़ी नौलेज ही मिल पाती है. इसलिए जरूरी है कि आप अपने काम को बेहतर बनाने की कोशिश करें.

यही नहीं हर काम में जल्दबाजी दिखाने की वजह से आप को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. स्ट्रैस लैवल बढ़ता है. हारमोनल बदलाव आते हैं. आप के पर्सनल रिलेशन भी प्रभावित होते हैं. यह ठीक है कि आप सफल होना चाहते हैं, जीवन में आगे

बढ़ना चाहते हैं, लेकिन हर काम में जल्दबाजी दिखाने की बजाय अपने काम में थोड़ा परफैक्शन लाने का प्रयास करें, टाइम मैनेजमैंट का गुण सीखें. किसी काम को समय देने का अर्थ यह नहीं है कि आप आलसी या लेटलतीफ हैं, बल्कि इस का मतलब यह है कि आप सिस्टेमैटिक तरीके से काम करते हैं. इसलिए अब आप को कोई काम मिले तो उसे फटाफट खत्म करने के बजाय थोड़ा समय दे कर करने का प्रयास करें.

कानून के निशाने पर पेट्स लवर्स

शहरों में ‘पेट्स लवर्स’ की संख्या बढ़ती जा रही है. इन में कुत्ते के साथसाथ बिल्ली और दूसरे पेट्स भी आते हैं. कुत्ते को ले कर कई बार पड़ोसियों में आपस में  झगड़े होने लगते हैं. कई बार लोग शौकिया पेट्स पाल लेते हैं, फिर आवारा छोड़ देते हैं. छोटे डौग्स को खिलौने जैसा सम झने लगते हैं. मगर अब ऐसा करने वाले सावधान हो जाएं. अब सरकार पशु कू्ररता निवारण अधिनियम का सख्ती से पालन कराने लगी है. पशु अधिकारों के लिए मेनका गांधी ने बड़ी लड़ाई लड़ी. उस के बाद अब तमाम एनजीओ ऐसे बन गए हैं जो पशु अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे हैं.

ऐसे में कोई भी गलती करना पशुओं को पालने वाले पर भारी पड़ सकती है. सरकारी कर्मचारी सड़कों पर घूम रहे पशुओं का भले ही ध्यान न रखें, लेकिन अगर पशु पालने वाले के खिलाफ कोई शिकायत मिलेगी तो वे अपनी मनमानी पर उतर आएंगे. काला हिरन का शिकार करना फिल्म स्टार सलमान खान को भारी पड़ चुका है.

लखनऊ का चर्चित पिटबुल कांड

पेट्स पालने वालों में सब से अधिक संख्या डौग पालने वालों की होती है. ये जहां रहते हैं वहां इन के पड़ोसी परेशान रहते हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि अब लोग खतरनाक किस्म के डौग पालने लगे हैं, जिन को देख कर ही लोग डर जाते हैं खासकर बच्चे बहुत डरते हैं. इस के अलावा कई बार डौग घरों के आसपास गंदगी करते हैं. ऐसे में डौग लवर जिस भी सोसाइटी में रहते हैं वहां लोगों के निशाने पर रहते हैं. सोसाइटी और अपार्टमैंट्स में भी इन के लिए अलग नियम बन गए हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसरबाग महल्ले में एक घर में पिटबुल और लैब्राडोर प्रजाति के 2 डौग पले हुए थे. घर में एक जवान लड़का अमित त्रिपाठी और उस की 82 साल की बूढी मां सुशीला त्रिपाठी रहती थीं. मां टीचर के पद से रिटायर थीं. बेटा जिम ट्रेनर के रूप में काम करता था. एक दिन घर में मां अकेली थीं. पता नहीं किन हालात में पिटबुल प्रजाति वाले कुत्ते ने उन्हें काट लिया.

इस के बाद उन की बौडी से खून ज्यादा निकल गया और जब तक कि बेटे को पता चला काफी देर हो चुकी थी. वह अपनी मां को ले कर अस्पताल गया. वहां पता चला मां की मौत हो चुकी है.

मौका पा कर महल्ले वालों ने कुत्ते को बाहर कराने के लिए हल्ला मचा दिया. पिटबुल को आदमखोर घोषित कर दिया. नगर निगम के लोग कुत्ते को ले गए. उस के व्यवहार को देखासम झा. 14 दिन अपनी देखरेख में अस्पताल में रखा. कुत्ते में खराब लक्षण नहीं दिखे तब उसे वापस मालिक को दे दिया गया. इस के बाद भी महल्ले वालों को दिक्कत बनी हुई है.

ऐसे मामले किसी एक जगह के नहीं हैं. अब लोग अपार्टमैंट्स में रहते हैं. वहां भी कुत्ते पालते हैं. बिल्लियां भी पालते हैं. ये पेट्स कई तरह से दिक्कत देते हैं. एक तो आवाज करते हैं, गंदगी करते हैं. दूसरे अनजान लोगों को देख कर काटते और भूकते हैं, जिस की वजह से अनजान लोगों को डर लगता है.

पहले लोगों के बडे़बड़े घर होते थे. ऐसे में डौग या दूसरे पालतू जानवरों को पालने से दूसरों को दिक्कत नहीं होती थी. अब महल्ले और कालोनी में छोटे घर होते हैं. अपार्टमैंट में तो बहुत ही करीबकरीब घर होते हैं. ऐसे में अगर आप पेट्स लवर हैं तो ऐसे पेट्स पालें जिन से लोगों को दिक्कत न हो.

डौंग का ले कर नियम

डौग को ले कर तमाम तरह के नियम बन गए हैं. नगर निगम से लाइसैंस लेना पड़ता है. इन को समयसमय पर वैक्सीन लगवानी पड़ती है. डौग की ट्रेनिंग ऐसी हो जिस से वह ऐसे काम न करे जिस से पड़ोस में रहने वालों को दिक्कत हो. कालोनियों ने अपनेअपने नियम अलग बनाए हैं. ऐसे में अगर आप को पेट्स पालने हैं तो सब से पहले नियमों का पालन करें.

अपने पेट्स को सही तरह से ट्रेनिंग दें और पड़ोसियों की सहमति भी लेते रहें. खतरनाक किस्म की प्रजातियां न पालें. कोई दिक्कत हो तो ऐनिमल्स डाक्टर से संपर्क करें. वह पेट्स के व्यवहार को देख व सम झ कर उस का इलाज करता है. सोसाइटी के निशाने पर आने से बचने के लिए जरूरी है कि उन की सहमति से काम करें.

अगर कोई बेवजह आप को परेशान कर रहा है तो कई कानून पेट्स पालने वालों के लिए भी हैं. कई संस्थाएं भी हैं जो ऐनिमल लवर्स की मदद करती हैं और उन के अधिकारों की रक्षा करने के लिए आवाज उठाती हैं. भारत सरकार ने पशुओं की सुरक्षा के लिए कानून भी बनाया है जो उन के अधिकारों की रक्षा करता है. इस को पशु कू्ररता निवारण अधिनियम के नाम से जाना जाता है.

क्या है पशु कू्ररता निवारण अधिनियम

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उद्देश्य ‘जानवरों को अनावश्यक दर्द पहुंचाने या पीड़ा देने से रोकना’ है, जिस के लिए अधिनियम में जानवरों के प्रति अनावश्यक कू्ररता और पीड़ा पहुंचाने के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. 1962 में बने इस अधिनियम की धारा 4 के तहत ‘भारतीय पशु कल्याण बोर्ड’ की स्थापना भी की गई है. 3 महीने की समय सीमा में इस के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. इस के बाद अधिनियम के तहत किसी भी अपराध के लिए कोई मुकदमा दर्ज नहीं होगा.

जो लोग अपने घर में पालतू जानवर तो रखते हैं, लेकिन जानेअनजाने में उन के साथ कई बार ऐसा सलूक करते हैं, जो अपराध की श्रेणी में आता है. इस की भी सजा मिल सकती है. इसी तरह आसपास घूमने वाले जानवरों के साथ भी लोगों का व्यवहार बहुत माने रखता है. गलत व्यवहार पर सजा हो सकती है.

दंडनीय अपराध

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(1) के मुताबिक, हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है. पशु कू्ररता निवारण अधिनियम में साफ कहा गया है कि कोई भी पशु (मुरगी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा. बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशुओं को मारा नहीं जाएगा.

भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक किसी पशु को मारना या अपंग करना, भले ही वह आवारा क्यों न हो, दंडनीय अपराध है. पशु कू्ररता निवारण अधिनियम 1960 के मुताबिक किसी पशु को आवारा छोड़ने पर 3 महीने की सजा हो सकती है. वाइल्डलाइफ ऐक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है. इस के तहत बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है.

कुत्तों के लिए कानून को 2 श्रेणियों में बांटा गया है- पालतू और आवारा. कोई भी व्यक्ति या स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल औपरेशन कर सकती है. उन्हें मारना गैरकानूनी है. जानवर को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना दंडनीय अपराध है.

इस के लिए जुर्माना या 3 महीने की सजा या फिर दोनों हो सकते हैं. पशुओं को लड़ने के लिए भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उस में हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है. पीसीए ऐक्ट की धारा 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिए ट्रेड करना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है.

 प्रतिबंधित है यह

ड्रग्स ऐंड कौस्मैटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कौस्मैटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर टैस्ट किए जा चुके कौस्मैटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है. ‘स्लौटर हाउस रूल्स 2001’ के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है. जब हम चिडि़याघर घूमने जाते हैं तो वहां भी कुछ नियम है. चिडि़याघर और उस के परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है. ऐसा करने वाले को 3 साल की सजा, 25 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

पशुओं को एक से दूसरी जगह ले जाने को ले कर भी कानून बनाया गया है. पशुओं को असुविधा में रख कर, दर्द पहुंचा कर या परेशान करते हुए किसी भी गाड़ी में एक से दूसरी जगह ले जाना मोटर व्हीकल ऐक्ट और पीसीए ऐक्ट के तहत दंडनीय अपराध है. पंछी या सांपों के अंडों को नष्ट करना या उन से छेड़छाड़ करना या फिर उन के घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा.

इस के दोषी को 7 साल की सजा या 25 हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं. किसी भी जंगली जानवर को पकड़ना, फंसाना, जहर देना या लालच देना दंडनीय अपराध है. इस के दोषी को 7 साल तक की सजा या 25 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं.

बच्चों में मोटापे की बढ़ती समस्याएं और आत्मविश्वास की कमी

युवाओं और बच्चों में तेजी से फैलती फास्ट फूड की संस्कृति ने घर के खाने से मिलने वाले पोषक तत्वों को उनसे छीन लिया है, जिससे युवाओं और बच्चों में स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएँ हो रही हैं. कुछ दशकों पहले की तुलना में आजकल बच्चों और किशोरों में मोटापा एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है. इसके अलावा, महामारी ने पहले से मौजूद कठिन परिस्थति को और भी बढ़ाने का काम किया है. वायरस को बढ़ने से रोकने के लिये घरों में रहने के आदेश ने गंभीर रूप से लोगों के बाहर निकलने को सीमित कर दिया और परिवारों के लिये कई सारी परेशानियाँ लेकर आया, जिनमें मोटापा और ज्यादा वजन शामिल है, खासकर बच्चों में. स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई होने से बच्चों के खानपान, एक्टिविटी और सोने के पैटर्न पर काफी प्रभाव पड़ा.

डॉ. निशांत बंसल, कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि खाने-पीने की पैकेटबंद चीजें और सुविधाजनक खाने से भी वजन में अस्वास्थ्यकर वृद्धि हो रही है. बच्चों में मोटापे के लिये पेरेंट्स का खाना नहीं बना पाना या सेहतमंद खाना नहीं पका पाना, इसका बहुत बड़ा कारक रहा. ज्यादातर बच्चे शरीर और दिमाग पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को जाने बिना, कैंडीज और सॉफ्ट ड्रिंक्स के रूप में काफी सारा शक्कर लेते हैं.

समय की कमी-

बच्चों के मोटापे में शारीरिक गतिविधि और खेलने के समय में कमी का भी योगदान है. यदि कोई व्यक्ति कम ऐक्टिव है तो उनका वजन बहुत तेजी से बढ़ जाता है, चाहे वे किसी भी उम्र के हों. एक्सरसाइज करने से कैलोरी जलाकर सेहतमंद वजन बनाए रखने में मदद मिलती है. मैदान पर खेलने का समय और बाकी एक्टिविटीज से बच्चों को ज्यादा कैलोरी बर्न करने में मदद मिलती है, लेकिन यदि आप ऐसा करने के लिये प्रेरित नहीं करते हैं तो हो सकता है वे ऐसा नहीं करें. वर्तमान दौर में बच्चे आमतौर पर कंप्यूटर, टेलीविजन या गेमिंग स्क्रीन पर अपना समय बिताते हैं, क्योंकि समाज कहीं ज्यादा असक्रिय हो गया है. पहले के दिनों की तुलना में अब बहुत कम बच्चे ही साइकिल चलाकर स्कूल जाते हैं.

मनोवैज्ञानिक समस्या-

एक और महत्वपूर्ण कारण जिसे अक्सर दरकिनार कर दिया जाता है, वह यह है कि कुछ बच्चों का मोटापा मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण भी हो सकता है. बच्चे और किशोर जो ऊब गए हैं, चिंतित हैं, या परेशान हैं, वे अपनी नकारात्मक भावनाओं से निपटने में मदद के लिये अधिक खाना खा सकते हैं.

शारीरिक रूप से सक्रिय रहे-

खाने के साथ बच्चों का यह हानिकारक रिश्ता उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, दोनों को प्रभावित करता है. छोटे बच्चों में अक्सर बीमारियाँ होने की काफी अधिक संभावनाएं होती है, जोकि आगे चलकर उनकी जिंदगी को प्रभावित करती हैं. मोटे या ओवरवेट बच्चों को अक्सर अपने व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष करना पड़ता है. उनका निम्न आत्मविश्वास उनके शरीर के बढ़े हुए वजन के कारण हो सकता है. वे बदमाशी या मजाक का केंद्र बन सकते हैं. ऐसा हो सकता है कि वे शारीरिक गतिविधि नहीं कर पाएँ और अपने वजन को लेकर शर्म महसूस करें.

अपने बच्चे का सेहतमंद वजन बनाए रखने और उन्हें शारीरिक रूप से सक्रिय बनाए रखने के लिये, कई ऐसे उपाय हैं जो किए जा सकते हैं. अपने बच्चे के बढ़े वजन के पीछे के मुख्य कारण को जानना भी जरूरी है. कई ऐसे तरीके हैं जिससे बचपन में होने वाले मोटापे से वजन बढ़ने से रोका जा सके और चाइल्डहुड ओबिसिटी का इलाज किया जा सकता है. इसके साथ ही, समस्या पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों को रोकना भी जरूरी है. शक्कर और स्टार्च युक्त स्नैक्स की जगह सेहतमंद विकल्प, हेल्दी लंच पैक करना और लो-फैट, हाई-फाइबर वाला डिनर बच्चे की संपूर्ण सेहत को बेहतर बना सकता है और बार-बार लगने वाली भूख को शांत कर सकता है.

ऐक्टिविटीज में हिस्सा ले-

बच्चों को शारीरिक गतिविधियों के लिये अनुकूल सुरक्षित माहौल प्रदान करना, जैसे कि बाइक रूट, खेल का मैदान और ऐक्टिव रहने के लिये सुरक्षित जगहें, बच्चे के पूरे स्वास्थ्य के लिये जरूरी हैं. बच्चों को ऐक्टिव रहने के लिये प्रेरित करने का एक सबसे मजेदार तरीका है कि पेरेंट्स का ऐक्टिव रहना और शारीरिक गतिविधि में शामिल होना. पेरेंट्स को थोड़ा वक्त निकालकर और बच्चों के साथ उनकी पसंदीदा ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेना चाहिए, इससे पेरेंट-बच्चे का रिश्ता बेहतर होगा. साथ ही उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और खुद को देखने का बच्चे का नजरिया भी बेहतर होगा.

अपनी फैमिली को दें ये 5 तोहफे

बदलती लाइफस्टाइल के कारण बहुत से लोग फैमिली के साथ कम टाइम स्पेंड कर पाते हैं. ऐसे दौर में भी कुछ ऐसे तरीके हैं जिन्हें अपनाकर आप खुद भी और अपनी फैमिली को खुशहाल रख सकते हैं.

1. इन ऑप्शन पर करें फोकस

देश के प्रमुख बैंक, इन्श्योरेंस कंपनियां, पोस्ट ऑफिस ने कई ऐसे प्रोडक्ट्स लाए हैं जिन्हें आप अपने फैमिली मेंबर्स को गिफ्ट कर सकते हैं. इसमें जहां मां-बाप के लिए खास तौर से डिजाइन किए गए हेल्थ इन्श्योरेंस प्रोडक्ट हैं, वहीं बैंकों द्वारा खास तौर से महिलाओं के लिए डिजाइन किए सेविंग अकाउंट और आरडी अकाउंट है.

2. मां-बाप का कराइए हेल्श इन्श्योरेंस

आम तौर पर हमारे मां-बाप ने अपनी लाइफ में हेल्थ इन्श्योरेंस नहीं लिया होता है. आज के दौर में लेकिन हेल्थ इन्श्योरेंस हम सभी की जरूरत है. ऐसे में कई कंपनियों ने खास तौर से सीनियर सीजिटन के लिए प्रोडक्ट लांच किए हैं. अपोलो म्युनिख सीनियर सिटीजन के लिए ऑप्टिमा सीनियर पॉलिसी देती है. इसमें 61 साल या उससे ज्यादा के उम्र के लोगों को कवर किया जाता है

इसी तरह मैक्स बूपा ने एक खास हेल्थ इन्श्योरेंस प्रोडक्ट लांच किया है, जिसमें आप अपने 19 रिलेटिव तक का कवर ले सकते हैं. इन कंपनियों के अलावा भी दूसरी कंपनियां हेल्थ इन्श्योरेंस प्रोडक्ट दे रही हैं.

3. पत्नी,बहन के लिए खोले वुमेन सेविंग अकाउंट

आज कर देश के प्रमुख बैंक महिलाओं के लिए उनकी जरूरतों को देखते हुए खास फीचर्स वाले सेविंग अकाउंट लेकर आए है. जिसे खुलवाकर आप अपनी पत्नी, बहन, बेटी को खास गिफ्ट दे सकते हैं. जिनमें कई ऐसी सुविधाएं उन्हें मिलेंगी, जो नार्मल सेविंग अकाउंट पर नहीं मिलती है. इसमें आपको अनलिमिटेड ATM ट्रांजैक्शन की सुविधा के साथ-साथ लाइफ, हेल्थ और एक्सीडेंट इन्श्योरेंस की सुविधा मिलती है. इसके अलावा लॉकर रेंट पर डिस्काउंट, होम लोन में छूट से लेकर कैश बैक की सुविधा मिलती है.

4. खोलिए सुकन्या समृद्धि अकाउंट

अगर आपकी बेटी की उम्र 10 साल या उससे कम है, तो उसके फ्यूचर के लिए सुकन्या समृद्धि स्कीम सबसे बेस्ट ऑप्शन है. ऐसा इसलिए है कि इन स्कीम के जरिए जहां आपको टैक्स की सेविंग होती है. वहीं दूसरी आरडी या एफडी की तुलना में ज्यादा इंटरेस्ट रेट भी मिलता है.

– 10 साल या उसे कम उम्र की लड़की का अकाउंट खुल सकता है.

– आप दो बेटी तक सुकन्या समृद्धि अकाउंट खोल सकते हैं.

– एक साल में न्यूनतम 1000 रुपए से लेकर 1.5 लाख रुपए तक डिपॉजिट कर सकते हैं.

– 21 साल तक अकाउंट में पैसे जमा करने होंगे. इसके पहले आप पैसे नहीं निकाल सकते हैं, केवल 18 साल की उम्र बेटी के होने के बाद ही 50 फीसदी तक अमाउंट मैच्योरिटी से पहले निकाल सकते हैं.

– सुकन्या समृद्धि पर आपको 8.6 फीसदी इंटरेस्ट मिलेगा.

5. पूरे फैमिली को दें इसका लाभ

केंद्र सरकार ने सस्ते लाइफ इन्श्योरेंस और एक्सीडेंट इन्श्योरेंस की स्कीम प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना लांच की है. इसके लिए आपको केवल 342 रुपए साल में खर्च करने होंगे.

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना एक्सीडेंट इन्श्योरेंस की सुविधा देती है. जिसमें 12 रुपए का प्रीमियम हर साल देना होगा. जिसमें 2 लाख रुपए का इन्श्योरेंस कवर मिलता है. इसी तरह प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में एक लाख रुपए का लाइफ इन्श्योरेंस कवर मिलता है. इसके लिए जरूरी है कि इन्श्योरेंस लेने वाले का बैंक अकाउंट हो.

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