समलैंगिक विवाह पर आज सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ देश के गली चौराहे पर चर्चा शुरू हो गई है . सच यह है कि अगर एक आदमी पक्ष में है तो अनेक लोग विरोध में. आज सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक संबंधों पर लगातार चर्चा हो रही है जो मीडिया के माध्यम से आम लोगों के बीच चर्चा का बयास बन गई है .

दरअसल, दुनिया के कुछ  देशों में समलैंगिकता के लिए दरवाजे खुलते चले जा रहे हैं. ऐसे में भारत में यह विषय तो चर्चा का और साथ ही कानून के दरवाजे पर अपने अधिकार के लिए दस्तक देने की कवायद तो होनी ही थी .जहां बहुत सारे लोग समलैंगिकता को लेकर के नाक  सिकोड़ रहे है वही विरोध के स्वर के बीच समर्थन में भी आवाज सुनाई पड़ने लगी है. ऐसे में समाज में यह विषय चर्चा का विषय है और लोग इस पर खुलकर चर्चा कर रहे हैं यह एक अच्छी बात है क्योंकि संवाद से ही समाज में जनमत बनता है और निष्कर्ष निकाले जाते हैं जो आने वाले समय और पीढ़ी के लिए नजीर बन जाते हैं.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के मुताबिक मैं कई दिनों से देश में चल रहे समलैंगिकता के विषय में चर्चा से आहत हूं यह क्या हो रहा है समाज किस दिशा में जाएगा यह विचार करके मैं चिंतित हूं और मैं खुलकर सरकार के समक्ष अपनी बात एक पत्र के माध्यम से रख चुका हूं कि भारत सरकार को इसमें दखल देना चाहिए यह भारत की संस्कृति के लिए एक बड़ा  प्रश्न चिन्ह बन जाएगा.

वही सामाजिक कार्यकर्ता महंत शिवदास के मुताबिक जब दुनिया में समलैंगिकता को लेकर के संवेदनशील की भावना सामने आई है तो भारत भला कैसे पीछे रह सकता है. आखिर यह भी तो हमारे समाज के हिस्सा हैं ऐसे में उन्हें अधिकार तो मिलना ही चाहिए.

हास्यास्पद स्थितियां

अधिकार और कर्तव्य तो देश के हर नागरिक का तय होना चाहिए और यह मिलना भी चाहिए  इसमें दो राय नहीं हो सकती. मगर समलैंगिकता, विवाह और समाज यह एक ऐसा त्रिकोण है जिसे लेकर देश और देश की आवाम जो इस आहट से जहां चिंतित है वही नई परिस्थितियों के लिए समाज अपने आपको तैयार करता हुआ भी दिखाई दे रहा है अगर आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक संबंधों को  हरी झंडी  मिल जाती है तो  निसंदेह इसका स्वागत भी होगा तो विरोध भी. और अगर बाधाएं आई मामला धरा का धरा रह जाएगा तो आने वाले समय में इसकी स्वीकारोक्ति के लिए प्रयास बंद हो जाएंगे ऐसा नहीं है. जो तथ्य सामने आ रहे हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय समाज समलैंगिक विवाह को अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है और इस पर हास्य व्यंग के साथ अभी से फुलझड़ियां छोड़ी जाने लगी है.                 दरअसल अनेक चिकित्सक और संबद्ध चिकित्सा पेशेवर समलैंगिकता को एक ‘विकार’ मानते हैं, जो समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की सूरत में समाज में और बढ़ेगा यह दावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महिला शाखा से संबद्ध संगठन ‘संवर्धिनी न्यास’ के सर्वेक्षण में सामने आया है.

आरएसएस के समानांतर महिला संगठन ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के  मुताबिक सर्वेक्षण के निष्कर्ष देशभर के चिकित्सा पेशेवरों से मिली 318 प्रतिक्रियाओं पर आधारित हैं, जिनमें आधुनिक विज्ञान से लेकर आयुर्वेद तक, आठ अलग-अलग उपचार पद्धतियों के चिकित्सा पेशेवर शामिल हैं.  सर्वेक्षण में शामिल 70 फीसद चिकित्सक और संबद्ध चिकित्सा पेशेवरों ने ‘समलैंगिकता को एक विकार’ बताया है जबकि 83 फीसद ने ‘समलैंगिक संबंधों में यौन रोगों के संचरण की अधिक आशंका होने की पुष्टि की है .’

संगठन के मुताबिक सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले चिकित्सा पेशेवरों ने कहा कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का फैसला मरीजों को ठीक करने और उन्हें सामान्य स्थिति में लाने के बजाय समाज में इस विकार को और बढ़ावा दे सकता है.

सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि इस तरह के मनोवैज्ञानिक विकार से जूझ रहे मरीजों को ठीक करने के लिए काउंसलिंग बेहतर विकल्प है. सर्वेक्षण में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की मांग पर कोई भी निर्णय लेने से पहले जनता की राय जानने का सुझाव दिया गया है.

 

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