काम करने की कोई उम्र नहीं होती. जब मन बना लो, काम शुरू कर दो. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मुंबई की 60 वर्षीय डिजाइनर और उद्यमी चित्रलेखा दास ने. उन के ब्रैंड का नाम ‘सुजात्रा’ है. 8 सालों से उन्होंने भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के तमाम देशों में अपने द्वारा डिजाइन की अलगअलग तरह की डिजाइनर साड़ियां, कुरते, दुपट्टे, शालें आदि तैयार कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है. वे पुरानी और न पहनी जाने वाली साडि़यों को भी नया लुक देती हैं. इतना ही नहीं, इस काम के लिए उन्होंने काम करने वाली महिलाओं को ट्रैनिंग भी दी है ताकि उन की रोजी बढ़े. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद चित्रलेखा ने अपनी यह सृजनात्मक रुचि नहीं छोड़ी. उन के पति आर्मी में थे. उन का तबादला होता रहता था, इसलिए उन्हें विभिन्न जगहों की संस्कृति और कला से रूबरू होने का मौका मिलता रहा. इसी कला और अलगअलग संस्कृति को उन्होंने अपनी साडि़यों की डिजाइनों में उतारा. पेश हैं विनम्र स्वभाव की चित्रलेखा से बातचीत के अंश:

इस क्षेत्र में कैसे आना हुआ?

बचपन से ही मुझे क्रिएटिव काम करने में मजा आता था. उस समय मैं त्रिपुरा के अगरतला में रहती थी. शादीविवाह में मुझे हर कोई दुलहन को सजाने या फिर रंगोली बनाने के लिए बुला लेता था. उस समय ब्यूटीपार्लर नहीं थे. इसलिए मेरे द्वारा सजाई गई दुलहन काफी सराही जाती थी. वहां की कला मुझे बहुत आकर्षित करती थी. वहां की सुंदरता से मैं बहुत प्रभावित थी. वहीं से मेरी एस्थैटिक सैंस का विकास हुआ. मैं ने रविंद्र भारती से स्नातकोत्तर की है. मुझे संगीत का भी शौक है. पति के डिफैंस सर्विस में होने की वजह से शादी के बाद मैं उन के साथ पूरा देश घूमी. हर जगह की कला को मैं खुद में आत्मसात करती थी. ॉ

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