2020 के प्रारम्भ में ही चीन के वुहान प्रान्त से निकले कोरोना वायरस ने शनैः शनैः समस्त संसार में तबाही मचा दी. मार्च में जब भारत में यह प्रारम्भिक दौर में ही था तो सरकार ने संक्रमण रोकने की दृष्टि से लॉक डाउन लगा दिया. इस लॉक डाउन में किसी की नौकरी गयी, देश की आर्थिक स्थिति बदहाल हो गयी और कइयों के तो घर ही छूट गए परन्तु कुछ वृद्धों के लिए ये लॉक डाउन वरदान साबित हुआ क्योंकि उन्हें उनका घर परिवार , बेटा बहू और नाती पोते मिल गए. ताउम्र अपने बच्चों के लिए जीने वाले माता पिता को जब उम्र के अंतिम पड़ाव में अपने ही बच्चों का सहारा नहीं मिलता तो उनकी जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है परन्तु कोरोना ने समाज के अनेकों  वृद्धों को उनके परिवार से मिलाकर जीवन जीने की जिजीविषा को पुनः जाग्रत कर दिया. आइये नजर डालते हैं ऐसे ही चंद उदाहरणों पर,

2 बेटों और एक बेटी के पिता भोपाल के 70 वर्षीय मुन्नालाल ने  पारिवारिक विवाद के चलते 6 माह पूर्व घर छोड़ दिया था. पैसों और पिता की देखरेख को लेकर बच्चों में रोज होने वाले विवादों से वे इतने व्यथित हो गए कि जनवरी माह में घर छोड़कर एक वृद्धाश्रम में रहने लगे. वे कहते हैं ," बच्चों ने कभी सुध लेने का प्रयास तक नहीं किया.'' जब मार्च में लॉक डाउन हुआ तो  किसी तरह बेटी ने पिता का पता लगाया और लेने पहुंची और तब से पिता बेटी के साथ उसी के घर में रह रहे हैं. उनकी बेटी अनुराधा कहती है,"कोरोना में जब पूरा परिवार एक साथ था तो पिता की कमी बहुत खली. यह अहसास हुआ कि जीवन का  कोई ठिकाना नहीं है जब तक जिंदा हैं साथ ही रहेंगे"

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