लगभग 70 वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी- अनाड़ी . निर्देशक थे महान फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी. इस फिल्म के माध्यम से यह संदेश दिया गया था कि देश में नकली दवाइयां का व्यापार चल रहा है और यह समाज के लिए कितना खतरनाक है. और इसके बाद गंगा में न जाने कितना पानी बह गया मगर देश में आज भी नकली दवाइयां बेची जा रही है. लाख टके का सवाल लिया है कि आखिर नकली दवाइयां के व्यापार के पीछे कौन है और इनका संरक्षक कौन है? सीधी सी बात यह है कि अगर शासन प्रशासन में बैठे हुए लोगों का संरक्षण इन नकली दवाइयां को बेचने वालों को ना मिले तो यह नकली दवाइयां बेचने की हिम्मत नहीं कर सकते. हमारे देश का कानून अपने आप में इतना पर्याप्त है कि ऐसे लोगों की गिरेबान को पकड़ सकता है और भारतीय समाज कि आज भी यह स्थिति है कि ऐसे लोगों को अच्छी निगाह से कभी नहीं देख सकता. ऐसे में अगर कोई नकली दवाइयां बेचने का काम कर रहा है बनाने का काम कर रहा है तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है और इंगित करता है कि सत्ता में बैठे हुए हमारे माननीय ही आखिरकार इसमें सबसे बड़े दोषी हैं. हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में नकली दवाइयां बेचने का भंडाफोड़ हुआ है जो यह बताता है कि इस व्यवसाय में लगे हुए लोग कितने दुस्साहसी हैं देश की राजधानी जहां प्रशासन अलर्ट जाता है वहां भी इन्होंने रुपए कमाने के लिए अपने लालच को नहीं छोड़ा और आखिरकार कानून के फंदे में फंस गए. बताते चलें कि दिल्ली पुलिस की "अपराध शाखा" ने कैंसर की नकली दवाइयां बनाने और आपूर्ति करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश किया है. पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए सात आरोपियों को प गिरफ्तार किया है. इनमें दिल्ली के कैंसर के प्रतिष्ठित अस्पताल के दो कर्मचारी भी शामिल हैं. आरोपी कैंसर के 1.97 लाख रुपए के इंजेक्शन में भरकर नकली दवाइयां बेचते थे.

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