घरों में रहने की वजह से जो अतिरिक्त खर्च आजकल डिजिटल कनैक्शन और डिजिटल डिवाइस पर होने लगा है उस में से काफी बेकार है. आईपीएल मैचों में विज्ञापनदाताओं में बड़े विज्ञापन डिजिटल प्लेटफौर्म पर चलने वाले विडियो गेम्स और औनलाइन पढ़ाने वाली कोचिंग कंपनियां हैं. उन्होंने बैठेठाले लोगों को फुसलाने के लिए सैकड़ों करोड़ के विज्ञापन आईपीएल में ही लिए हैं, जिन का उत्पादकता से या जीवन जीने में कोई रोल नहीं है.

गेमिंग कंपनियां व डिजिटल पढ़ाई कराने वाली कंपनियां असल में दिल बहलाने की बातें करती हैं. देश और समाज कुछ ठोस करने से बनता है. जब तक खेतों और कारखानों में काम न हो कुछ नहीं बनता किसी भी देश का. जो देश कम लोगों से कम मेहनत में बहुत उत्पादन कर लेते हैं वे तो मौजमस्ती पर, फिल्मों पर, खेलों पर, जुए पर, नाचगाने पर खर्च करना वहन कर सकते हैं पर जहां मकान नहीं, खाना नहीं, स्वास्थ्य नहीं, इलाज नहीं वहां लोग अपना पैसा वीडियो या कंप्यूटर गेम्स व भुलाने वाली डिजिटल ऐजुकेशन पर खर्च करें, मूर्खता है.

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आज देशभर में पढ़ाई औनलाइन हो रही है. इस पर मांबापों का अरबों रुपया खर्च हो रहा है. यह किसी काम का नहीं रहेगा. इन बच्चों के पास 5-7 साल बाद डिगरियां होंगी पर नौकरियां नहीं. जो खर्च हो रहा है उसे भी पूरा करतेकरते 10-15 साल लग सकते हैं. बड़े विज्ञापनों के जरीए लोगों को बहकाया जा रहा है, क्योंकि आज इस की डिलिवरी पर सवाल नहीं उठाए जाते.

कंप्यूटर गेम्स और ऐजुकेशन की सामग्री एअरकंडीशंड कमरों में तैयार होती है और इस का असली जीवन से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. ये गेम्स और पढ़ाई रामलीला और मंत्र पाठ की तरह हैं, जो दिखने में रोचक लगें या गंभीर, देते कुछ नहीं. यह दुनिया सदियों से धर्म के इन चक्करों में खूनखराबा करती रही पर जब इन का जोर कम हुआ तो ही वैज्ञानिक व तकनीकी उन्नति हुई, जिस ने लोगों को छत दी, खाना दिया, सेहत दी, जीवन के सुख दिए.

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