सोशल   मीडिया प्लेटफौर्मों में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर के बाद अब फेसबुक की कंपनी से ट्विटर जैसा थ्रैड्स भी जुड़ गया है. सोशल मीडिया आज मुख्य मीडिया से ज्यादा महत्त्व का हो गया है. मुसीबत यह है कि इन सब का कोई संपादक नहीं है, कोई यह नहीं देख रहा है कि लोग जो फौरवर्ड कर रहे हैं या लिख रहे हैं वह मतलब का है या नहीं, भ्रामक है या नहीं, झूठा है या सच्चा, उकसाता है या थोड़ा मनोरंजन करता है आदिआदि.

दरअसल, सोशल मीडिया सुलभ है, हाथ में ले कर एकदूसरे से बात करने के लिए बने मोबाइल पर यह मिल रहा है, इसलिए इसे जम कर देखा जा रहा है. वहीं, इस पर बकवास करने वालों की भीड़ इतनी बड़ी हो गई है कि सही व समझदारी की बात ढूंढ़ना मुश्किल हो गया है.दुनिया की सारी सरकारें आज सोशल मीडिया से भयभीत हैं क्योंकि इस ने चौराहों पर होने वाली गपों को एक क्षेत्र तक सीमित न रख कर दुनियाभर में फैला दिया है. इस से जहां सरकारों की पोल खोली जा रही है वहीं सरकारों के समर्थक जम कर अपना प्रचार कर रहे हैं और आमजन सरकारी झूठ को सच मानने लगे हैं.

जो काम कभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के लेखक-संपादक बड़ी गंभीरता और जिम्मेदारी से करते थे वही चीज आज नौसिखिए बिना आगेपीछा सोचे पोस्ट कर रहे हैं. सरकारों को उन मैसेजों की तो चिंता है जो सत्ता में बैठे नेताओं और जनता की परेशानियों पर खरीखोटी सुनाएं. पर जो उन की ?ाठी बड़ाई करें या फालतू के लोगों के स्वास्थ्य, चमत्कारी उपायों, डरावने व घिनौने वीडियो पोस्ट करें उन की कोई चिंता नहीं है.

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