देर से शादी करना, अधिक उम्र में गर्भधारण व अन्य कई कारणों की वजह से आज बांझपन के निदान व उपचार के क्षेत्र में इतनी उन्नति के बावजूद कुछ गलत धारणाएं अब भी बनी हुई हैं, जो जोड़ों को दुविधा में डाल देती हैं. इन मिथकों के पीछे पुरानी कहानियां या विकृत सूचनाएं हैं. यहां कुछ मिथकों व उन के वास्तविक कारणों पर एक नजर डाल रहे हैं:

मिथक: गर्भधारण करने में अक्षम रहने पर महिला के समस्याग्रस्त होने की संभावना.

हकीकत: इनफर्टिलिटी पुरुष व महिला दोनों को समान ढंग से प्रभावित करती है. अमूमन एकतिहाई मामलों में महिला कारक, एकतिहाई मामले में पुरुष कारक व शेष एकतिहाई मामलों में दोनों समान रूप से जिम्मेदार होते हैं या ये अस्पष्टीकृत बांझपन हो सकता है. इसलिए कारण जानने के लिए दोनों ही पार्टनर को समुचित जांच करानी चाहिए.

मिथक: उम्र का प्रजनन क्षमता (फर्टिलिटी) पर असर नहीं होता. अगर आप स्वस्थ हैं और बच्चे की योजना बना रहे हैं तो आईवीएफ जैसी असिस्टेड रीप्रोडक्टिव तकनीक के रहते समस्या की कोई बात नहीं है.

हकीकत: बहुत सी महिलाएं 20 की उम्र में उर्वरता के चरम पर होती हैं. 27 की उम्र से उर्वरता घटने लग जाती है. 35 की उम्र के बाद बहुत तेजी से उर्वरता का हृस होता है. इसलिए आईवीएफ व अन्य बांझपन उपचार (फर्टिलिटी ट्रीटमैंट) उम्र में संबंधित बांझपन के असर को पलट नहीं सकते. यद्यपि एग डोनेशन (अंडाणु दान) मददगार सिद्ध हो सकता है.

मिथक: फर्टिलिटी ट्रीटमैंट से गुजरने वाली महिलाएं जुड़वां या 3 बच्चों को जन्म दे सकती हैं.

हकीकत: हालांकि बांझपन उपचार के मामले में जुड़वां बच्चों की संभावना सामान्य

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