'हाय प्रिया"

अजनबी नंबर से आए कौल पर किसी अपरिचित द्वारा अपना नाम लिए जाने पर वह थोड़ी चौकी जरूर थी फिर सोचा कि शायद कोई हो जो जानता हो मुझे. उस ने सवाल किया, "आप कौन?"

"आप के चाहने वाले और कौन?"

सामने वाले की आवाज में शरारत भरी खनक थी. न चाहते हुए भी वह बरबस बोल पड़ी," चाहने वाले का कुछ नाम तो होगा."

"जो नाम चाहे वह रख लीजिए. आप के नर्म, गुलाबी होठों पर हर नाम खूबसूरत लगेगा. "

प्रिया ने उस की लच्छेदार बातों पर विराम लगाते हुए जल्दी से यह कहते हुए फ़ोन काट दिया कि मैं अजनबियों से बात नहीं करती.

पर यह क्या आधे घंटे के अंदर दोबारा उसी नंबर से फोन देख कर पिया थोड़ी असहज हो गई. फोन उठाती हुई कठोर स्वर में बोली, "हू  इज दिस ,डिस्टर्ब क्यों कर रहे हो?"

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"मैं तो दोस्ती कर रहा हूं."

"पर मैं अजनबियों से दोस्ती नहीं करती."

"अजनबी कहां अभी तो बात हुई थी आप से. जहां तक नाम की बात है तो लोग मुझे राज बुलाते हैं. यदि पहचान की बात है तो आप के ही किसी दोस्त से नंबर मिला है मुझे."

"अच्छा बोलो क्या कहना चाहते हो?"

"बस यही कि आप की निगाहें दिल में खंजर जैसी घुस जाती है. कसम से आप सामने होती तो....... "

"तो क्या ..... "

इस के बाद थोड़ी मस्ती भरी ,थोड़ी नोकझोंक भरी, थोड़ी रोमांटिक और थोड़ी अश्लील बातों का दौर चल पड़ा. शुरुआत में नेहा को किसी अजनबी से यों बातें करने में संकोच लगा मगर उस के बिंदास अंदाज ने वह संकोच भी दूर कर दिया. अब तो नेहा को भी मजा आने लगा. वह युवक धीरेधीरे अश्लील बातों पर उतर आया.  एकदो बार नेहा ने डांटा मगर फिर बेपरवाह हो गई. अब तो दोनों मिलने भी लगे. फिर एक दिन नेहा को अपने घर पर बुला कर उस युवक ने दोस्तों के साथ मिल कर उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया.

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