"मां आप किस जमाने की बात कर रही हैं. कोर्ट ने तो लिव इन रिलेशनशिप तक को भी कानूनी मान्यता दे दी है और आप हो कि जनरल फ्रेंडशिप पर भी शक कर रही हो, फ्रेंड्स तो फ्रेंड्स हैं, फिर चाहे मेल हों या फीमेल. मौम ब्रौड माइंडेड बनिये आजकल दकियानूसी का जमाना नहीं है." परन्तु डॉक्टर सुलभा को तो मानो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था.

अब तो उन्हें अपनी ही परवरिश पर शक होने लगा था. कल ही तो बेटे तन्मय की इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की परीक्षाएं समाप्त हुईं थीं और आज उसने बताया कि आज रात वह अपने दोस्तों के साथ किसी अन्य दोस्त के फ्लैट पर नाइट स्टे करेगा, परंतु नाइट स्टे करने वाले दोस्तों में लड़कियां भी हैं यह सुनकर उनका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था, परंतु विरोध करने पर बेटे ने उन्हें दकियानूसी विचारधारा वाला घोषित कर दिया था. सुबह हौस्पिटल जाना था सो वे चुपचाप सो गयीं. अगले दिन उन्होंने दो केस ही निपटाए थे कि अचानक उनके केबिन में एक 22-23 वर्ष की खूबसूरत युवती ने अपने हमउम्र लड़के के साथ प्रवेश किया.

"मेम मुझे एबॉर्शन करवाना है. आई हेव 2 months प्रेगनेंसी."

"क्यों एबॉर्शन क्यों, ये कौन है, तुम्हारा पति" सुलभा ने लड़के की ओर इशारा करके पूछा,

"नो मेम ही इज माई फ्रेंड एंड वी आर इन लिव इन फ्रॉम टू इयर्स" लड़की ने बड़ी ही बेबाकी से उत्तर दिया.

"लिव इन सुनते ही वे मानो सोते से जाग गयीं और लगभग झुंझलाते हुए बोलीं" तुम्हारे माता पिता को पता है इस लिव इन के बारे में?"

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