हाल ही में मी टू की तर्ज पर 15 लोगों के एक समूह ने मैन टू आंदोलन की शुरुआत की है ताकि पुरुष भी महिलाओं के हाथों अपने यौन शोषण के बारे में खुलकर बोल सकें.  इन लोगों में फ्रांस के एक पूर्व राजनयिक भी शामिल हैं जिन्हें 2017 में यौन उत्पीड़न के एक मामले में अदालत ने बरी कर दिया था. मैन टू आंदोलन की शुरुआत गैर सरकारी संगठन चिल्ड्रंस राइट्स इनिशिएटिव फॉर शेयर्ड पेरेंटिंग (क्रिस्प) ने की है. उम्मीद है कि यह पुरुषों की समस्याओं का समाधान करेगा.

5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आवेदन में यह स्पष्ट किया कि दुष्कर्म और तेजाब पीड़ितों को मुआवजा देने की योजना में लड़कों और पुरुषों को भी शामिल किया जाएगा.  यह मामले प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्स ऑफेंसेस एक्ट के तहत आते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोक्सो के तहत पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए. पॉक्सो जेंडर न्यूट्रल है और इस के अंतर्गत नाबालिग लड़के लड़कियां दोनों ही आएंगे.

आजकल यौन शोषण का शिकार कोई भी कहीं भी हो सकता है. मजबूत व्यक्ति कमजोर पर निशाना साधता है. लड़का हो या लड़की पुरुष हो या स्त्री , कोई भी दुराचार का शिकार बन सकता है. इस से व्यक्ति के तन के साथसाथ मन भी शिकार होता है. मगर भारतीय समाज में स्त्री के प्रति तो समाज/पुलिस के द्वारा हमदर्दी के भाव रखे जाते हैं. मगर बात जब लड़के की हो तो इसे गंभीरता से नहीं लेते.

कुछ समय पहले ही राजस्थान के प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल की 11वीं कक्षा के छात्र का वही के सीनियर छात्रों द्वारा किए गए यौन शोषण का मामला सामने आया. तो वहीं कठुआ के अवैध हॉस्टल में नाबालिगों के साथ पादरी द्वारा शोषण और अत्याचार किए जाने का मामला भी अधिक पुराना नहीं. जब पुलिस ने छापा मार कर वहां रह रहे 8 लड़कियों और 12 लड़कों को बचाया.

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