बात 2015 की है. अन्ना आंदोलन से उभरे अरविन्द केजरीवाल ने जब 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन किया, तब आंदोलन से जुड़े अनेक धुरंधरों ने उनकी पार्टी को ज्वाइन किया. जिसमें कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, आशुतोष, प्रशांत भूषण जैसे बहुतेरे नाम थे. आम आदमी पार्टी के गठन के तीन साल बाद ही इसमें एक बड़ा भूचाल आया. पार्टी के दो दिग्गज नेताओं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की अरविन्द केजरीवाल से ठन गयी. उस वक्त योगेंद्र यादव की करीबी आतिशी पार्टी की प्रवक्ता थीं. आतिशी को आम आदमी पार्टी में योगेंद्र यादव ही लेकर आये थे. पार्टी में बगावत हुई और योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, आशुतोष जैसे अनेक लोग पार्टी से अलग हो गए. आतिशी पार्टी में बानी रहीं मगर उनको प्रवक्ता पद से हटा दिया गया.

उस वक्त आतिशी ने योगेंद्र यादव का साथ छोड़ कर अरविन्द केजरीवाल पर भरोसा जताया था. आतिशी का वह फैसला 9 साल बाद उनके लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ और आतिशी दिल्ली में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाली तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं. उनसे पहले सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित इस पद को सुशोभित कर चुकी हैं. 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर अरविन्द केजरीवाल ने आतिशी को अपना उत्तराधिकारी चुन कर दिल्ली की जनता को ही नहीं, बल्कि भाजपा को भी गिफ्ट दिया है. आतिशी एक जुझारू और ईमानदार नेता हैं. उच्च शिक्षित हैं, स्ट्रेट फॉरवर्ड हैं, सख्त हैं, हिम्मती हैं और उनका दामन फिलहाल दाग मुक्त है. केजरीवाल के इस दांव पर भाजपा चकराई हुई है. दिल्ली की राजनीति में एलजी के जरिये मोदी सरकार ने केजरीवाल के हाथ-पैर बाँध रखे थे. जमानत मिलने के बाद भी उन पर अनेक प्रतिबन्ध हैं जिसके कारण जनता से जुड़े कार्य वे नहीं कर सकते थे. आतिशी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होंने मोदी सरकार को ना सिर्फ जबरदस्त धोबीपाट दिया है बल्कि अब वे हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए बिलकुल मुक्त हैं. उधर भाजपा जो जरा जरा सी बात पर केजरीवाल के कान उमेठने में लगी रहती थी, अब एक महिला मुख्यमंत्री पर कोई आरोप मढ़ने से पहले उसे काफी आगापीछा सोचना पड़ेगा.

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