भारतीय जनता पार्टी आजकल जोरशोर से परिवारवादी पािटयों पर मोर्चा खोले हुए हैं. जहां उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के कई राज्यों में भाजपा का असर बना हुआ है, कई राज्यों में दूसरी तीसरी पीढ़ी के नेता जो पािटयां चला रहे हैं वे भाजपा की आंखों में किरकिरी बने हुए हैं.

भारतीय जनता पार्टी परिवार के विरुद्ध है या परिवारवादी पार्टियों के, पता नहीं चलता. अगर राजनीति में परिवार के लोगों का दखल खराब है. जनहित में नहीं तो फिर उद्योगों, व्यापारों में भी नहीं होगा. अगर परिवार का सदस्य होना किसी तरह की डिस्क्वालिफिकेशन है तो यह दूसरी पीढ़ी के टीचर, वकील, जज, आॢटस्ट, फिल्म स्टार, वक्ता, लेखक, संपादक प्रकाशक, महंताई, वैधवी, अफसरी सब पर लागू होना चाहिए.

यह भी समय नहीं आ रहा कि यदि पारिवार  का नाम लेना गलत है तो रामायण में दशरथ के पुत्रों को क्यों राज मिला, महाभारत में कुरूवंश क्यों कई पीढिय़ों से राज करता दिखाया गया था और क्यों भारतीय जनता पार्टी समर्थक उन्हीं को आदर्श क्यों मानती है?

भाजपा में कई पीढिय़ों के नेता हैं. यह भी सब को मालूम है. अब संशय है कि हम भाजपा के नेताओं की कथनी को मानें या करनी को. उन के भाषण सुनें या पुराणों की कहानियां, संयुक्त परिवार की महत्ता पर दादानाना का प्रवचन सुनें या राजनीति की बयानबाजी.

अगर राजनीति की तरह घरों में भी परिवारवाद न हो तो नई बहूओं को तो मजा ही आ जाएगा. इस का अर्थ होगा कि न सास की सेवा करना जरूरी है न ससुर की जी हजूरी. अगर हो सके तो अलग गृहस्थी बनाओ, अपने सुखदुख में रहो और भाजपा के मार्गदर्शकों को आदर्श मान कर परिवार को भूल जाओ क्योंकि उन के अनुसार तो परिवारवाद कोई कोरोना है जो देश के तंत्र को खा रहा है. भाईबहन को कहीं साथ काम नहीं करना चाहिए, यह मंचों पर खड़े हो कर जो कह रहे हैं वे उन बहनों को भरोसा दिला रहे हैं कि भाई से अपने हकों के लिए लड़ों, सरकार आप के साथ है.

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