नर्सिंग सेवाओं की लगातार बढ़ती मांग ने देशभर में नकली और अधकचरे नर्सिंग कालेजों की बाढ़ सी ला दी है. मध्य प्रदेश में 600 नर्सिंग कालेजों की हो रही जांच में पता चला कि कुछ नर्सिंग कालेज केवल नकली पते पर चल रहे हैं पर वे सुंदर आकर्षक सर्टिफिकेट दे देते हैं जिन के बलबूते पर कुकुरमुत्तों की तरह फैल रहे क्लीनिकों में नौकरियां मिल जाती हैं.

बहुत से डाक्टर और नर्सिंगहोम इन्हें ही प्रैफर करते हैं क्योंकि ये सर्टिफिकेट के बल पर बचे रहते हैं. जहां तक सिखाने की बात है, मोटीमोटी बातें तो किसी को भी 4 दिन में बताई जा सकती हैं. अगर कुछ गलत हो जाए तो अस्पताल इसे मरीज की गलती या मरीज की बीमारी पर थोप कर निकल जाता है.

जिस देश में 80% जनता झाड़फूंक, पूजापाठ पर ज्यादा भरोसा करती हो और छोटे डाक्टर या क्लीनिक में जाना भी उस के लिए मुश्किल हो, वह गलत सेवा दे रही नर्स के बारे में कुछ कहने की हैसियत नहीं रखता.

एक मामले में एक नर्सिंग कालेज 3 मंजिले मकान की एक मंजिल में 3 कमरों में चल रहा था और उस का मालिक प्रिंसिपल

मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग का डाइरैक्टर रह चुका है. वह जानता है कि सरकारी कंट्रोल से कैसे निबटा जाता है. नियमों के अनुसार नर्सिंग कालेज में 23 हजार वर्गफुट की जगह होनी चाहिए. उस घरेलू नर्सिंगहोम से 4 बैच निकल भी चुके हैं और नए छात्रछात्राएं आ रहे हैं.

क्या छात्रछात्राओं को मालूम नहीं होता कि वे जिस फेक और फ्रौड मैडिकल या पैरामैडिकल कालेज में पढ़ रहे हैं वह कुछ सिखा नहीं सकता? उन्हें मालूम होता है पर उन का मकसद तो सिर्फ डिगरी या सर्टिफिकेट लेना होता है. यह देश की परंपरा बन गई है जहां प्रधानमंत्री तक अपनी डिगरी के बारे में स्पष्ट कुछ कहने को तैयार नहीं हैं और कभी कुछ कभी कुछ कहते रहे.

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