तुनकमिजाजी अकसर औरतों का मर्ज बनाया जाता है. किट्टी पार्टी में एक की ऐब्सैंस में किसी ने उस के बारे में कुछ कह दिया तो अगली पार्टी में कहने वाली पर हंगामा मच जाता है. सास अकसर बहू को कहती है कि अपनी ससुराल की सब बातें खासतौर पर बुरी बातें, मायके में क्यों कह दीं और घर में जोर का झगड़ा खड़ा हो जाता है. यह नहीं परखा जाता कि जो कहा गया वह सच था या नहीं. सवाल होता है, कहा क्यों गया?

यही राजनीति में हो रहा है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ रोपीट रहे हैं कि उन की नकल सांसदों ने संसद के बाहर क्यों उड़ाई. उन्हें

यह देश का, जाट समुदाय का अपमान लग रहा है. धनखड़ साहब जब एक के बाद एक सांसदों को संसद से हैडमास्टर की तरह निकाल रहे थे तो उन्हें खयाल क्यों नहीं आया कि सांसद चुपचाप ही नहीं जाएंगे? वे कुछ तो प्रतिक्रिया करेंगे. इस में हल्ला मचाने की जरूरत

क्या है?

यह तो सासबहू से भी ज्यादा खतरनाक है और सासबहू की एक शिकायत को सारे समुदाय के खिलाफ अपमान कहा जा सकता है. हो सकता है कि सासें राज्यसभा अध्यक्ष को समर्थन देते हुए कहें कि कानून बना दिया जाए कि एक सास की चुगली जंबूद्वीप की सारी सासों की चुगली मानी जाएगी.

इसी तरह तमिलनाडु के नेता दयानिधि मारन ने कहीं कह दिया कि उत्तर भारत के युवा केवल हिंदी जानते हैं इसलिए उन्हें दूसरे राज्यों में सिर्फ क्लीनिंग और कंस्ट्रक्शन का काम मिलता है. इस सच को जानते हुए भी बिहारी भड़क उठे कि अपमान सारे बिहार का हो गया, उन युवकों का नहीं जो क्लीनिंग का और कंस्ट्रक्शन का काम जम्मू कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक करते हैं. तेजस्वी यादव ने उसी तरह हल्ला मचाया है जैसे बहू के ससुर मचाते हैं कि बहू ने मायके में सही पोल खोल कर क्यों ससुराल का अपमान कर डाला.

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