मुंबई के लोखंडवाला में एक रेस्तरां ने अपनी ऐंट्रैंस पर 2 बड़े पिंजरों में बौने बंदर रख रखे हैं. ग्राहकों को वे सब से ज्यादा आकर्षित करते हैं. मैं ने राज्य के पशु कल्याण विभाग को मालिक को गिरफ्तार करने को कहा. वन विभाग ने कार्यवाही करने से यह कह कर इनकार कर दिया कि विदेशी जानवरों को रखने पर कोई जुर्म नहीं बनता. लगता है जब तक मुझे कुछ उपाय नहीं मालूम पड़ता, ये तस्कर लुप्तप्राय जानवरों को दर्शाते रहेंगे.

कुछ महीने पहले पुणे में एक पैट फेयर लगा. यहां सुंदर विदेशी पक्षी, मछलियां और खास नस्ल के कुत्ते को प्रदर्शित करने की किसी तरह की कोई अनुमति नहीं थी पर पुलिस और वन विभाग ने कोई कदम नहीं उठाया, क्यों? क्योंकि उन का कहना था कि विदेशी प्रजातियों पर कोई भारतीय कानून लागू नहीं होता. उन्हें नए पशु कल्याण बोर्ड के चेयरमैन ने अनुमति भी दे रखी थी. पशुओं को खुले में नहीं चोरीछिपे बेच भी डाला गया.

खुल कर चलता कारोबार

पिछले दिनों बैंगलुरु में एक घर से 3 खास विदेशी प्रजाति के अजगर मिले. वन विभाग ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि ये विदेशी जातियां हैं और इन्हें रखने पर कोई जुर्म नहीं बनता. बाद में मालिक ने आंख बचा कर इन अजगरों को जंगल में छोड़ दिया.

उत्तर प्रदेश में एक आदमी अफ्रीकी पिट वाइपर सांप के काटने से मर गया. शायद यह सांप बाहर से चोरीछिपे लाया गया था.

किसी भी पशु बेचने वाले के यहां चले जाएं, ऐग्जोटिक दुर्लभ जीवों के कई नमूने मिल जाएंगे. नैट पर हजारों किस्म के रंगबिरंगे, अनूठे जीव बिकने को तैयार मिलेंगे. मैक्सिको, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका से दुर्लभ जीव भारत कस्टम पार कर पहुंच रहे हैं. इन की तस्करी जोरों पर है. इन्हें आमतौर पर दूसरे सामान से भरे कंटेनरों में लाया जाता है, जिन्हें खोल कर देखना कस्टम विभाग के लिए असंभव होता है.

कस्टम वालों की मिलीभगत

एक महिला कस्टम अफसर तो खुद ही तस्करी में शामिल थी. उस का पार्टनर थाईलैंड में था. मेरे शिकायत करने पर उस का तबादला कर दिया गया. पर अब भी वह किसी और पोर्ट पर तैनात है और वहां पार्टनर से मिल कर तस्करी करने को आजाद है.

वाइल्डलाइफ क्राइम ब्यूरो तो सिर्फ कानून बदलने की दुहाई देता रहता है व वाइल्डलाइफ प्रोटैक्शन ऐक्ट 1972 के बदलने के लिए जयराम रमेश, सुनीता नारायण और अब डा. राजेश गोपाल कुछ नहीं कर पाए.

इस तरह से सौफ्ट शैल्ड कछुए, विशेष प्रजाति की छिपकलियां, गिरगिट, लम्बर्ड्स, सांप, मकौड़े भारत में आ कर बिकते रहते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता.

दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे हर तरह के दुर्लभ जीव मिल सकते हैं. इगुआना 18 हजार में मिलती है और टारैंट्युला 16 हजार में. गिरगिट 12 हजार में मिलते हैं. दिल्ली में मुख्य वनजीवी वार्डन का कार्यालय है, 2 इंस्पैक्टरों के साथ, पर वे कभी दफ्तर से बाहर नहीं निकलते. मैं जब चाहूं जहां मरजी कुछ भी खरीद सकती हूं.

महरौली में एक जने के राजनीतिबाजों से अच्छे संबंध हैं पर कानून की कमी के कारण हमेशा बच निकलता है. हमारे सरकारी अफसरों का आलम यह है कि वे सोचते हैं कि देश अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर दुर्लभ जीवों को बचाने के लिए हस्ताक्षर करता है ताकि छवि अच्छी बनी रहे. उन पर अमल करना बेमतलब की बात है.

दुनियाभर के दुर्लभ जीवों को नष्ट करने में अमेरिका व चीन के बाद भारत का ही नंबर है.

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